01/02/2025 : लुढ़कता रुपया, घटती जीडीपी, फिसलता निवेश, सिमटता रोजगार, पल्ला झाड़ते विदेशी निवेशक, बजट कैसे बचाएगा भारत को... महाकुम्भ में मरने वालों की संख्या पर सवाल, इजरायली स्पाईवेयर का फिर हमला
हरकारा हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रौशनी ज्यादा!
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
उम्मीद है हरकारा आपके मेन फोल्डर में ही जा रहा है, स्पैम में नहीं. एक बार देख लें और तसल्ली कर लें.
आज की सुर्खियां | 1 फरवरी 2025
मुस्कुराइये कि आप हिंदुस्तान में हैं, सीट बेल्ट लगाइए.. आपकी इकोनॉमी की भैंस और भी गहरे पानी में जा रही है! एक फरवरी शनिवार को जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन एनडीए सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट देश को पेश करेंगी तो यह देखने की बात होगी कि अमृतकाल और अच्छे दिन की अर्थव्यवस्था किस तरफ जा रही है. इकोनॉमी का इतना चुनौतीपूर्ण समय पहले कभी शायद ही रहा हो और जिसकी वजह पिछले ग्यारह सालों के मास्टर स्ट्रोक और कुशल प्रबंध रहे हैं. 2025 तक $5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था का लक्ष्य पहले ही धूमिल हो चुका है. शुक्रवार को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 प्रस्तुत किया गया. जो दिशा बताई गई है, उसके मुताबिक नियामक सुधार, ऊर्जा नीति में संतुलन और एआई जैसी तकनीकों में निवेश से देश की अर्थव्यवस्था को गति मिल सकती है. ब्लूमबर्ग की मेनका दोषी कह रही हैं कि जिस तरह डोनल्ड ट्रम्प ने टैरिफ के नाम से, और तभी चीन ने सस्ते एआई के बहाने से पूरी दुनिया का एजेंडा बदल दिया है, क्या नरेन्द्र मोदी भी दुनिया को चमत्कृत करने के लिए अनूठी पेशकश कर सकते हैं? उनका कहना है कि यदि बजट में स्पष्ट रणनीति नहीं उभरी, तो भारत की विकास दर 6.4% पर अटकी रह सकती है.
‘टीम हरकारा’ ने इस बारे में थोड़ी जानकारी खंगालने की कोशिश की है. जिससे बहुत साफ इशारे मिलते हैं कि हमारी आपकी ज़िंदगियों को बजट से राहत मिलेगी या हम और आहत महसूस करेंगे. आइये आसान शब्दों में समझने की कोशिश करें.
विदेशी निवेशक भारत से पैसा निकाल रहे हैं : विदेशी संस्थागत निवेशकों ने जनवरी 2025 तक भारतीय शेयर बाजार से ₹60,859 करोड़ (7 बिलियन डॉलर) के शेयर बेच दिए हैं. एफआईआई भारतीय शेयर बाजार में कम निवेश कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यहाँ अब ज्यादा मुनाफा नहीं है. इसके बजाय, वे अमेरिका में ज्यादा निवेश कर रहे हैं. इससे भारतीय शेयर बाजार में गिरावट आ रही है और रुपए पर दबाव बढ़ रहा है. विवेक कौल के इस लेख को हम पहले भी हरकारा में शामिल कर चुके हैं.
रुपया और भी गिर सकता है : डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया कमजोर हो रहा है. इससे एफआईआई को अपना पैसा वापस डॉलर में बदलने पर कम डॉलर मिलते हैं, इसलिए वे नुकसान से बचने के लिए शेयर बेच रहे हैं. मिंट के मुताबिक गिरता रुपया दर्द को और बढ़ा रहा है. यह भारत के बढ़ते आयात बिल को बढ़ाएगा, जबकि निर्यात आय सुस्त रहेगी. इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च की हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारत का चालू खाता घाटा दूसरी तिमाही में 15 अरब डॉलर के सात-तिमाही उच्च स्तर तक बढ़ने की उम्मीद है, जो पहली तिमाही में 9.8 अरब डॉलर के घाटे से अधिक है. हालांकि भारतीय आगे चलकर विदेशी वस्तुओं और सेवाओं के लिए अधिक भुगतान करेंगे. 2025 में रुपया और गिरने की आशंका है, विशेषज्ञों का अनुमान है कि मार्च के अंत तक यह 85.5-86 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर होगा, और 2025 के अंत तक 87 रुपये तक पहुंच जाएगा. बाजार के विशेषज्ञों को अगले साल अमेरिकी मुद्रास्फीति में फिर से उछाल की उम्मीद है, क्योंकि डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद टैरिफ युद्ध और कम-कर का माहौल बन रहा है. यह यूएस फेडरल रिजर्व को ब्याज दरों को और कम करने से रोकेगा, जिससे डॉलर रखना अधिक आकर्षक हो जाएगा और इसकी मांग और बढ़ जाएगी. रुपये के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां तेज हो रही हैं, जो अस्थिरता का संकेत दे रही हैं. ‘इकॉनमिक टाइम्स’ की खबर है कि रुपया 86.65 प्रति डॉलर तक गिर गया, जो इस महीने की शुरुआत में दर्ज किए गए इसके पिछले रिकॉर्ड निचले स्तर 86.64 से भी नीचे है.
जीडीपी अनुमान घट रहे हैं : 2024 की शुरुआत में, भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर काफी उत्साह था - भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक था और यह उम्मीद थी कि देश 2024-25 में 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. आम सहमति यह थी कि भारतीय अर्थव्यवस्था 7% की प्रभावशाली दर से बढ़ेगी. हालांकि, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के नवीनतम आंकड़ों से पता चला कि इस वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि 5.4% थी, जो सात तिमाहियों में सबसे कम है. सकल मूल्य वर्धित वृद्धि धीमी होकर 5.8% हो गई. यह विकास निराशाजनक है, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में अनुमान लगाया था कि जीडीपी 7% की दर से बढ़ेगी. उधर, दिसंबर में अपनी बैठक में, एमपीसी ने 2024-25 के लिए विकास पूर्वानुमान को 7.2% से घटाकर अब 6.6% कर दिया है. ‘द हिंदू’ की वी निवेदिता ने इस पर एक एक्सप्लेनर वीडियो बनाया है.
आमदनियाँ घट रही हैं : शुक्रवार को जारी वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण में दिखाया गया कि 2023-24 में स्व-रोजगार और वेतनभोगी श्रमिकों के लिए वास्तविक औसत मासिक वेतन 2017-18 के स्तर से नीचे रहा. वित्तीय वर्ष 2024-25 (FY25) के सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चला कि 2023-24 में पुरुष स्व-रोजगार श्रमिकों के लिए वास्तविक मासिक वेतन 2017-18 (9,454 रुपये) के स्तर की तुलना में 9.1 प्रतिशत कम (8,591 रुपये) था. 2023-24 में महिला स्व-रोजगार श्रमिकों का मासिक वेतन भी 32 प्रतिशत कम होकर 2,950 रुपये रहा. दूसरी ओर, पुरुष वेतनभोगी श्रमिकों के लिए मासिक वेतन 2023-24 में 2017-18 के 12,665 रुपये से 6.4 प्रतिशत कम (11,858 रुपये) रहा. महिला वेतनभोगी श्रमिकों के लिए, यह 2017-18 में 10,116 रुपये से 2023-24 में 12.5 प्रतिशत कम (8,855 रुपये) था. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा कि स्व-रोजगार और वेतनभोगी श्रमिकों के वेतन को पिछले वर्षों में नुकसान हुआ है. “पहले, नोटबंदी, कोविड लॉकडाउन जैसे लगातार आर्थिक नीतिगत झटके थे. फिर, आपूर्ति बाधाओं के कारण मुद्रास्फीति उच्च बनी रही, जिसके परिणामस्वरूप आय में कमी आई. उन्होंने कहा. “इसके अलावा, निजी क्षेत्र में लाभप्रदता पिछले कुछ वर्षों में काफी अधिक रही है, लेकिन श्रमिकों की आय में आनुपातिक वृद्धि नहीं हुई है. महामारी की रिकवरी अवधि के दौरान उच्च बेरोजगारी दर का मतलब यह भी था कि लोगों को काफी कम वेतन पर काम करना पड़ा. इन सभी कारकों ने वास्तविक वेतन में संकुचन में योगदान दिया है."
नौकरियां घट रही हैं : कॉरपोरेट मुनाफा वित्त वर्ष 2024 में 22.3 फीसदी दर से बढ़ा, जबकि रोजगार सिर्फ 1.5 % बढ़े. खुद सरकार का सर्वे कह रहा है कि यह असमान विकास पथ गंभीर चिंताएँ पैदा करता है.
कॉरपोरेट कर्ज माफ़ी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले 10 वर्षों के कार्यकाल में भारतीय बैंकिंग प्रणाली ने 16.11 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर दिए हैं. जवाहर सरकार ने इस बारे में कुछ समय पहले इस पर लंबा लेख लिखा था. यह खुलासा सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर सवाल खड़े करता है और विपक्ष को एक नया मुद्दा देता है. अब देखना यह है कि इस मुद्दे पर शनिवार के बजट में क्या प्रतिक्रिया आती है.
किसान अभी भी आंदोलनरत : एमएसपी की गारंटी और दूसरी मांगों के चलते किसानों और सरकार के बीच अब भी सुलह नहीं हो पाई है.
महिलाओं के लिए राहत नहीं : 'सेंटर फॉर फायनेंशियल अकांउटिबिलिटी' और 'द वायर' ने मिलकर एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें बजट में महिलाओं की स्थिति का जिक्र किया गया है. रिपोर्ट है कि सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और अन्य खाद्य सुरक्षा योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का वादा किया था, लेकिन बजट में इन योजनाओं का आवंटन घटाया गया है. महिलाओं और बच्चों के पोषण सुधारने के लिए जरूरी योजनाओं पर भी पर्याप्त निवेश नहीं हो पा रहा है.
मनरेगा मज़दूरों को भुगतान समय पर नहीं : ऐसे ही 'द वायर' की ही एक अन्य रिपोर्ट कहती है कि मनरेगाा मजदूरों को समय से भुगतान ही नहीं मिल पा रहा है, जिससे इस योजना का असल उद्देश्य ही खत्म हो जाता है. अनुराधा डे, राजेंद्रन नारायणन, पारुल साबू और लावण्या तमांग की रिसर्च के अनुसार, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरी भुगतान में देरी का मुख्य कारण अपर्याप्त बजट आवंटन है. सरकार यह दावा कर रही है कि आधार-आधारित भुगतान प्रणाली से भुगतान प्रक्रिया तेज और सुचारू हुई है, लेकिन शोध से यह दावा गलत साबित होता है. भुगतान में देरी से ग्रामीण श्रमिकों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इतना ही नहीं इसके चलते कई बार मजदूरों को अपनी मजदूरी पाने के लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं, जिससे उनका और नुकसान होता है.
सरकारी डीएनए और प्रवृत्ति दोनों में खोट : अरविंद सुब्रमण्यन
मोदी सरकार के पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार (2014-2018) रहे अरविंद सुब्रमण्यन ने बजट पेश होने से 48 घंटे पहले सरकार के दावों की पोल खोल दी है. अरविंद ने ‘द वायर’ के लिए करण थापर से हुई बातचीत में स्पष्ट कह दिया है कि "हर मोर्चे पर अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं है." उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है और यह कोई अल्पकालिक मंदी नहीं, बल्कि संरचनात्मक समस्या है. मतलब कि आम भारतीय अभी लंबे समय तक लगातार खाली होती जेबों की समस्या से ग्रसित रहेंगे और उनकी जमापूंजी खत्म होती चली जाएगी. सुब्रमणियन ने सरकार की आर्थिक नीतियों पर तल्ख टिप्पणियां की हैं और कहा है कि इस समस्या को हल करने के लिए सरकार को अपने "डीएनए और प्रवृत्तियों" को बदलना होगा, क्योंकि मौजूदा आर्थिक स्थिति के लिए सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं. वह सरकार द्वारा कुछ चुनिंदा उद्योगों को बढ़ावा देने की रणनीति, सरकार द्वारा विभिन्न तरीकों से राज्यसत्ता का दुरुपयोग और आयात पर अधिक प्रतिबंध लगाकर घरेलू उद्योगों को बचाने की नीति में बदलाव की बात कहते हैं, जो भारत की बदहाल होती अर्थव्यवस्था पर थोड़ा टेक लगा सकती है. सुब्रमणियन ने कहा कि यदि सरकार अपनी आर्थिक रणनीति पर पुनर्विचार नहीं करती, तो यह मानना तर्कसंगत नहीं होगा कि भारत 2047 तक "विकसित भारत" बन सकेगा. जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत समृद्ध बनने से पहले बूढ़ा हो सकता है, तो उन्होंने कहा कि असली खतरा यह है कि भारत समृद्ध बनने से पहले ही "मध्यम आय वाला विश्वसनीय देश" बनने में असफल हो सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल भारत की प्रति व्यक्ति आय 2,500-2,600 डॉलर के बीच है, जबकि मध्यम आय वाले देश की श्रेणी में आने के लिए कम से कम 5,000 डॉलर की प्रति व्यक्ति आय जरूरी है. कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था के इस विद्धान का संदेश साफ है कि भारत की अर्थव्यवस्था सुस्त हो रही है. यहां देखिए पूरी बातचीत…
निजी क्षेत्र क्यों ठिठक रहा है पैसा लगाने से, यह बड़ा सवाल उद्यमियों से ज्यादा सरकार के लिए है
निजी क्षेत्र को भारत की इकोनॉमी में पैसे लगाने का जोश तो काफी भरा है नरेन्द्र मोदी, निर्मला सीतारमण, मुख्य आर्थिक सलाहकार वगैरह ने, पर हरकत कुछ खास हुई नहीं. रोहन वेंकट ने इंडिया इनसाइड आउट नाम के सब्सटैक पेज पर बहुत ही धांसू लेख लिखा है. सीतारमण ने तो 2022 में, रामायण के एक उदाहरण का भी सहारा लिया, जिसमें हनुमान को अपनी अविश्वसनीय क्षमताओं की याद दिलानी पड़ती है (जिसे वे बचपन के श्राप के परिणामस्वरूप भूल गए थे). इंडिया पब्लिक पॉलिसी रिव्यू में प्रकाशित रेणु कोहली और कृतिमा भापटा के शोध के अनुसार:
2004 से 2013 के दौरान निजी निवेश जीडीपी का 4.5% औसत था, जो 2024-25 में घटकर 0.8% रह गया है.
2023-24 में बैंकों द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं की लागत ₹3.9 लाख करोड़ तक पहुँची, लेकिन यह GDP के अनुपात में 2015 -16 के स्तर से भी कम है.
महामारी के बाद निजी निवेश में आई "झलक" भी फीकी पड़ गई. सीएमआईई के अनुसार, 2024 की तीसरी तिमाही में नई परियोजनाओं का मूल्य 22% गिरा.
सरकारी प्रयास: 'क्यों फेल हुए इलाज?'
कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती (30% से 22%) के बावजूद कंपनियां नकदी को "शेयर बायबैक" या लाभांश में बांट रही हैं, न कि नए उद्यमों में लगा रही हैं.
इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज़ोर : सरकारी पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) 2021-22 के बाद से दोगुना हुआ, लेकिन यह निजी निवेश को प्रेरित नहीं कर सका. विशेषज्ञों का कहना है कि रेल और सड़क परियोजनाओं का उत्पादकता लाभ सीमित है.
जीएसटी और बैलेंस शीट सुधार जैसे कदमों के बाद भी निवेशकों में आत्मविश्वास का संकट बना हुआ है.
प्रताप भानु मेहता के अनुसार, “निवेशक डर या शालीनता के कारण खुले तौर पर यह नहीं कह सकते हैं. लेकिन निजी तौर पर, यहां तक कि उन उद्योगपतियों में भी जो भाजपा को वोट देंगे, सरकार में विश्वास का संकट है. विडंबना यह है कि यह अक्सर उन चीजों से उपजा है, जो सरकार सोचती है कि वह अच्छी तरह से कर रही है, न कि केवल उन चीजों से जो वह नहीं कर रही है”.
प्राइवेट सैक्टर को सरकार पर यकीन क्यों नहीं है यह एक गहरा सवाल है. वह जीएसटी के मामले में वाजिब सवाल कर वित्तमंत्री से माफ़ी मांगना हो या फिर ईडी और इंकम टैक्स वालों के आतंक में रहना, ये सवाल सरकार के सोचने के लिए हैं.
उधर मोदीनॉमिक्स के झंडाबरदार रहे अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला अब इस गतिरोध के पीछे डीप स्टेट की भूमिका देख रहे हैं. वे आश्चर्य कर रहे हैं, "हमारी जीडीपी वृद्धि आश्चर्यजनक रूप से और अस्पष्ट रूप से धीमी हो गई है. विश्व विकास का विस्तार हो रहा है, यहां तक कि आईएमएफ भी ऐसा कहता है, तो वैश्विक सितारा क्यों धीमा हो रहा है? ….इस लेख में, मैं व्यक्तिगत आय और समग्र कराधान की उच्च दरों की अस्पष्ट नीति की ओर इशारा करना चाहता हूं - एक नीति जो मेरा मानना है कि विनिर्माण वस्तुओं पर उच्च टैरिफ की हमारी डीप-स्टेट-प्रेरित नीति और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बंद होने पर समान स्रोत-प्रेरित नीति के साथ-साथ मंदी के लिए जिम्मेदार है. मैं डीप स्टेट के बारे में अपनी टिप्पणी का विस्तार करना चाहता हूं. सबसे पहले, नीति कौन बनाता है? प्रमुख उद्योगपति, वरिष्ठ आईएएस बाबू, और मीडिया में उनके मित्रवत प्रभावशाली लोग."
पर विवेक कौल का कहना है कि "मांग की कमी और आय असमानता ही मूल समस्या है."
क्या भारतीयों पर जरूरत से ज्यादा टैक्स है?
'इंडियन एक्सप्रेस' ने एक रिपोर्ट तैयार की है जो भारतीयों से वसूले जा रहे टैक्स पर बात करती है. इसके मुताबिक
भारत में कर-से-जीडीपी अनुपात विकसित देशों की तुलना में कम है, यानी टैक्स का कुल स्तर बहुत ज्यादा नहीं है. ओईसीडी देशों (अमेरिका, यूरोप, जापान आदि) का कर-से-जीडीपी अनुपात 30-40% के आसपास रहता है, जबकि भारत में यह अनुपात लगभग 16-18% है, जो कि विकसित देशों की तुलना में काफी कम है.
भारत में प्रत्यक्ष करों (जैसे आयकर और कॉर्पोरेट टैक्स) की हिस्सेदारी 40-50% के आसपास होती है, जबकि विकसित देशों में यह हिस्सा 60-70% तक होता है, यानी वहां अमीर और कंपनियां ज्यादा टैक्स देती हैं.
अप्रत्यक्ष करों (जीएसटी, पेट्रोल-डीजल टैक्स) का ज्यादा भार आम जनता पर पड़ता है. ओईसीडी देशों में अप्रत्यक्ष करों की हिस्सेदारी 30-40% रहती है, जबकि भारत में यह 50-60% तक जाती है.
कॉरपोरेट टैक्स में कटौती हुई है, लेकिन व्यक्तिगत आयकर में बड़ी राहत नहीं दी गई. पेट्रोल-डीजल पर टैक्स और जीएसटी का दायरा बढ़ा है, जिससे आम जनता पर ज्यादा भार पड़ा है.
उच्च आय वर्ग पर टैक्स बढ़ा है, लेकिन फिर भी वैश्विक स्तर पर यह बहुत अधिक नहीं है. विकसित देशों में उच्च आय वर्ग पर 50-60% तक कर लगाया जाता है, जबकि भारत में सबसे ऊंची 30% स्लैब के साथ अधिभार जोड़कर लगभग 42% तक कर बनता है. भारत में टैक्स प्रणाली अमीरों की तुलना में आम नागरिकों के लिए अधिक बोझिल दिखती है.
योगी सरकार न बताए, पर ‘दूसरी भगदड़’ में 7 मरे
यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार भले ही कुछ नहीं बता रही हो, पर डेक्कन हेराल्ड ने हिंदुस्तान टाइम्स के हवाले से लिखा है कि प्रयागराज महाकुंभ में “दूसरी” भगदड़ में भी 7 श्रद्धालुओं की जान गई है. मंगलवार-बुधवार की दरमियानी रात 1 से 2 बजे के बीच संगम नोज़ पर “पहली” भगदड़ के कुछ देर बाद लगभग तीन किलोमीटर दूर झूंसी में भी भगदड़ मची थी. बुधवार शाम को यूपी सरकार ने संगम पर भगदड़ की घटना में 30 मौतों और 60 के घायल होने की जानकारी दी थी. लेकिन झूंसी पर हुई “दूसरी भगदड़” के बारे में प्रशासन मौन है और उसने आधिकारिक रूप से अब तक स्थिति स्पष्ट नहीं की है. प्रशासन ने संगम पर मची भगदड़ की जानकारी देने में लगभग 17 घंटे का समय लिया था. इस बीच सोशल मीडिया इन्फ़्लुएंसर तान्या मित्तल झूंसी में मची “दूसरी भगदड़” का मंज़र बताते हुए रो पड़ीं. उन्होंने कहा, “झूंसी के सेक्टर 21 में मची भगदड़ में मेरे सामने कई लोगों की जान गई. मैंने कई अधिकारियों को फोन लगाया, लेकिन किसी ने रिसीव नहीं किया.” द वायर में इंद्र शेखर सिंह अपनी रिपोर्ट में कहते हैं, “मैं मृतकों या घायलों की संख्या की पुष्टि नहीं कर सका, लेकिन कई दुकानदारों और स्थानीय लोगों का मानना है कि मृतकों की कुल संख्या मौजूदा सरकारी संख्या से कहीं अधिक है.” सिंह की कुंभ डायरी कहती है कि सिर्फ संगम नोज़ ही नहीं, बल्कि सेक्टर 17, 20 और 21 भगदड़ वाले इलाके हैं.
सिक्किम में झील फटने की घटना फिर से होने का डर : सिक्किम की दक्षिण ल्होनाक झील पर बादल फटने (जीएलओएफ) के कारण 16 महीने पहले तीस्ता नदी घाटी में करीब 20,000 ओलंपिक स्विमिंग पूल के बराबर पानी बहा था. इस प्राकृतिक आपदा में 55 लोगों की जान चली गई थी. ग्लेशियल झील में अब एक और जीएलओएफ की आशंका बनी हुई है. इस कारण यह क्षेत्र बाढ़ के लिए अतिसंवेदनशील बना हुआ है. यह अध्ययन केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के पैनल की ओर से 10 जनवरी को चुंगथांग में एक बांध के पुनर्निर्माण के प्रस्ताव को मंजूरी देने के तीन सप्ताह बाद आया है, जहां जीएलओएफ ने सिक्किम की सबसे बड़ी पनबिजली इकाई, 1,200 एमडब्लू तीस्ता-III परियोजना को बहा दिया था. यही कारण है कि नए बांध के लिए ‘जल्दबाजी’ में दी गई मंजूरी का सिक्किम-दार्जिलिंग क्षेत्र में सार्वजनिक विरोध बढ़ता जा रहा है.
महिला बॉक्सर से बलात्कार, आईटीबीपी जवान को कैद : उत्तराखंड की एक फास्ट-ट्रैक अदालत ने मसूरी में आईटीबीपी अकादमी में तैनात कांस्टेबल मोहन सिंह दानू को अंतरराष्ट्रीय स्तर की एक महिला मुक्केबाज से बलात्कार करने के लिए दस साल की सजा सुनाई है. यह घटना तब की है, जब वह दोषी जवान के पास अपनी टीम के एक अन्य सदस्य द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न के संबंध में मदद मांगने के लिए वहां गई थी. बॉक्सर ने आरोपी के खिलाफ 9 दिसंबर 2021 को मसूरी थाने में मामला दर्ज कराया था.
गुजरात : आदिवासी महिला को निर्वस्त्र कर घुमाया : गुजरात के दाहोद जिले में 28 जनवरी को एक आदिवासी महिला को नंगा करके मोटरसाइकिल से बांधकर धालसिमल गांव में घुमाया गया. इस आरोप में पुलिस ने 12 लोगों को गिरफ्तार किया है और तीन फरार हैं. आरोपियों में चार महिलाएं और चार नाबालिग भी शामिल हैं. यह घटना तब हुई जब पीड़िता के ससुराल पक्ष के 15-20 लोगों ने उसका अपहरण कर लिया और मारपीट का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया.
बुमराह और मंधाना को सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर अवॉर्ड : बीसीसीआई वार्षिक पुरस्कार समारोह में सचिन तेंदुलकर को कर्नल सीके नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित करेगी. जसप्रीत बुमराह को पुरुष वर्ग में 2023-24 के लिए सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर के लिए पॉली उमरीगर पुरस्कार और महिला वर्ग में स्मृति मंधाना को यही पुरस्कार दिया जाएगा. सरफ़राज़ खान को पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय पदार्पण पुरस्कार के लिए चुना गया है तो महिलाओं में यही पुरस्कार आशा शोभना को मिलेगा. हाल ही में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने वाले आर अश्विन को टेस्ट में भारत की ओर से सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले दूसरे गेंदबाज़ के तौर पर एक विशेष पुरस्कार दिया जाएगा तो ऑफ़ स्पिनर दीप्ति शर्मा को वनडे में सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाली गेंदबाज़ के तौर पर सम्मानित किया जाएगा. वहीं मुंबई के हरफनमौला तनुश कोटियन को बीसीसीआई घरेलू ट्रॉफी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए सम्मानित करेगी.
जेएलएफ ने फिलीस्तीनी राजदूत का इंटरव्यू रोका : जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल के पहले दिन, आयोजन का एक अधिकारी भारत में फिलिस्तीनी राजदूत अबेद एलराजेग अबू जज़र के साथ हो रहे इंटरव्यू में ‘जबरन घुस आया’. वहां एक महिला पत्रकार को धक्का दिया और साक्षात्कार को रुकवा दिया. पीटीआई समाचार एजेंसी के मुताबिक आयोजक ने कहा कि राजनयिक महोत्सव में वक्ता के रूप में नहीं, बल्कि 'महोत्सव के मित्र' के रूप में आए थे, और साक्षात्कार को महोत्सव की जनसंपर्क टीम द्वारा मंजूरी नहीं दी गई थी. बाद में अबू जज़र को यह कहते हुए उद्धृत किया गया, "मैं यहां एक अतिथि के रूप में हूं और मुझे यह फेस्टिवल हमेशा पसंद आया है. साक्षात्कार को बीच में रोकने के लिए उस व्यक्ति ने बहुत असभ्य और अशिष्ट तरीका अपनाया था. एक राजनयिक के रूप में इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन मीडिया के साथ जेएलएफ ने जैसा व्यवहार किया, उस पर सवाल उठते हैं."
बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हिंसा के 174 मामले : बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद ने गुरुवार को कहा कि पिछले साल अगस्त से दिसंबर के बीच 174 ऐसी घटनाएं हुईं, जिनमें देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया गया. परिषद ने मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार पर अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करने के लिए राज्य तंत्र का इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया और संविधान के मूल सिद्धांतों से 'धर्मनिरपेक्षता' हटाने के लिए देश के संविधान सुधार आयोग की सिफारिश की आलोचना की. इसके अलावा परिषद ने देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद विवादास्पद हिंदू भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी की रिहाई की मांग की. रिपोर्ट पर पलटवार करते हुए अंतरिम सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि ‘सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर बताने का परिषद का इतिहास रहा है’.
हिंदू महासभा ने महात्मा की पुण्यतिथि पर नाथूराम को किया सम्मानित
महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर अखिल भारत हिंदू महासभा ने 1948 में महात्मा गांधी का हत्या करने वाला नाथूराम गोड़से को एक समारोह आयोजित कर सम्मानित किया. मेरठ उत्तर प्रदेश के ‘अमर शहीद नाथूराम गोड़से नाना आप्टे धाम’ में महासभा के प्रमुख नेता पंडित अशोक शर्मा के नेतृत्व में इस समारोह में हवन पूजा और हनुमान चालीसा के पाठ सहित पारंपरिक अनुष्ठान किया गया. इस समारोह का उद्देश्य ‘करमचंद गांधी की आत्मा निकालना’ और भारत से ‘गांधीवाद’ समाप्त करना था. इस मौके पर शर्मा ने भारत सरकार से गांधी की ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि रद्द करने का भी आह्वान किया. कार्यक्रम का समापन गोड़से के परिवार को सम्मानित करने की घोषणा के साथ हुआ. महासभा ने इस मौके पर महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े नाथूराम गोडसे और नारायण नाना आप्टे के परिवारों को सम्मानित करने की योजना की भी घोषणा की.
चुनाव के पहले 7 विधायकों ने आप को छोड़ा : दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले शुक्रवार 31 जनवरी को आम आदमी पार्टी (आप) के 7 विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इन सभी को पार्टी ने 5 फरवरी को होने वाले चुनावों के लिए टिकट नहीं दिया था. लिहाजा भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों की आड़ लेकर इनमें से अधिकांश ने अपने इस्तीफे वाले पत्र सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिए.
हरियाणा सरकार दिल्ली में परेशानी पैदा करना चाहती थी : इस बीच आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल यमुना के जहरीले पानी वाली टिप्पणी के लिए मिले नोटिस का जवाब देने शुक्रवार को चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचे. आयोग के साथ बैठक से पहले उन्होंने संवाददाताओं से चर्चा करते हुए कहा कि आप सरकार के प्रयासों के कारण अमोनिया स्तर 26-27 जनवरी को 7 पीपीएम से घटकर 2.1 पीपीएम हो गया है. “यह साफ तौर पर दिखाता है कि भाजपा नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार दिल्ली में परेशानी पैदा करना चाहती थी,” केजरीवाल ने आरोप लगाया. उधर केजरीवाल की जवाब से असंतुष्ट चुनाव आयोग ने उनसे कथित विषाक्तता के संबंध में विशेष जानकारी प्रस्तुत करने को कहा, जिसमें दिल्ली जल बोर्ड की जांच का डेटा शामिल हो. यदि केजरीवाल ऐसा करने में विफल रहते हैं तो आयोग ने इस मामले में उचित निर्णय लेने की चेतावनी दी है.
इजरायली स्पाइवेयर के जरिये पत्रकारों और नागरिक समाज को निशाना बनाया
व्हाट्सएप ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि लगभग 100 पत्रकारों और नागरिक समाज के अन्य सदस्यों को पैरागन सॉल्यूशंस के स्पाइवेयर द्वारा निशाना बनाया गया. यह स्पाइवेयर इजरायल की एक हैकिंग सॉफ़्टवेयर निर्माता कंपनी द्वारा विकसित किया गया है. व्हाट्सएप ने 'द गार्डियन' को बताया कि कंपनी को पूरा विश्वास है कि उसके 90 यूज़र्स को निशाना बनाया गया था और संभवत: उनका डेटा संक्रमित हुआ था. इस हमले के पीछे कौन था, यह स्पष्ट नहीं है. पैरागन के हैकिंग सॉफ़्टवेयर का उपयोग सरकारों द्वारा किया जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार, यह एक "ज़ीरो-क्लिक" हमला था, जिसका मतलब है कि लक्षित व्यक्तियों को संक्रमित होने के लिए कोई लिंक क्लिक करने की जरूरत नहीं थी. कंपनी ने कहा कि इससे पहले दिसंबर में इन हमलों को विफल कर दिया गया था और यह स्पष्ट नहीं है कि कितने समय तक लक्षित व्यक्ति खतरे में थे. व्हाट्सएप ने पीड़ितों को सूचित करना शुरू कर दिया है और कंपनी का कहना है कि यह सुनिश्चित करेगा कि लोगों के निजी संचार की सुरक्षा बनाए रखी जाए. पारागॉन का स्पायवेयर "ग्रेफाइट" नामक है, और इसकी क्षमताएं एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाइवेयर के समान हैं. एक बार फोन संक्रमित होने पर, हैकिंग सॉफ़्टवेयर ऑपरेटर को फोन की पूरी पहुंच मिल जाती है, जिसमें व्हाट्सएप और सिग्नल जैसे एन्क्रिप्टेड एप्लिकेशनों द्वारा भेजे गए संदेशों को पढ़ने की भी क्षमता शामिल है. व्हाट्सएप ने यह समाचार ऐसे समय में साझा किया है जब कुछ सप्ताह पहले कैलिफोर्निया में एक न्यायाधीश ने एनएसओ ग्रुप के खिलाफ एक ऐतिहासिक मामले में व्हाट्सएप के पक्ष में निर्णय दिया था.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.