01/03/2025 : जब ट्रम्प चीख पड़े जेलेंस्की पर, चमोली में हिमस्खलन, भारत को लेकर आईएमएफ को फ़िक्र, स्टॉक मार्केट लुढ़का, डिलिमिटेशन पर सवाल, पीएम डिग्री पर सरकार जेटली के ख़िलाफ़ क्यों
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
ओवल ऑफिस में ट्रम्प ने जेलेंस्की पर आपा खोया
खनिज समझौते की योजना ध्वस्त, अमेरिका-यूक्रेन संबंधों में दरार
शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के साथ ओवल ऑफिस में एक विस्फोटक टेलीविज़न डिबेट की, जिसने दुर्लभ खनिजों के समझौते पर हस्ताक्षर की योजना को ध्वस्त कर दिया और दोनों देशों के युद्धकालीन गठबंधन में गहरी दरार पैदा कर दी.
ट्रम्प ने गुस्से में कहा : "यूक्रेन को छोड़ देंगे, युद्ध तुम लड़ो!" इस अभूतपूर्व सार्वजनिक टकराव में, ट्रम्प और वेंस ने जेलेंस्की पर रूस के खिलाफ युद्ध में अमेरिकी सहायता के प्रति "कृतज्ञता की कमी" का आरोप लगाया और उन्हें अमेरिकी शर्तों पर शांति समझौता करने के लिए दबाव डाला. गुस्से में ट्रम्प ने चेतावनी दी : "अगर तुम नहीं मानोगे, तो अमेरिका यूक्रेन को छोड़ देगा. फिर तुम अपनी लड़ाई खुद लड़ो, और यह बदसूरत होगा!" झगड़े के बाद, पत्रकारों को ओवल ऑफिस से बाहर निकाल दिया गया, और ट्रम्प ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस व खनिज समझौते को रद्द करने की घोषणा कर दी. एक गंभीर मुद्रा लिए जेलेंस्की व्हाइट हाउस से रवाना हो गए.
"जेलेंस्की ने अमेरिका का अपमान किया", सोशल मीडिया पर ट्रम्प ने लिखा : "जेलेंस्की शांति के लिए तैयार नहीं, क्योंकि वह अमेरिकी भागीदारी को अपना फायदा मानते हैं. मुझे फायदा नहीं, शांति चाहिए. उन्होंने ओवल ऑफिस का अपमान किया है. वह तभी लौट सकते हैं, जब शांति के लिए तैयार हों."
यह टकराव रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए एक बड़ी जीत साबित हो सकती है, जो लंबे समय से अमेरिका और यूक्रेन के बीच दरार डालने की कोशिश कर रहे हैं. ट्रम्प ने झगड़े के दौरान पुतिन के साथ एकजुटता भी जताई और कहा कि 2016 के चुनाव में रूसी हस्तक्षेप की जांच के दौरान दोनों ने "कठिन समय साझा किया."
जेलेंस्की ने रूस के साथ युद्ध का इतिहास समझाने की कोशिश की, लेकिन वेंस ने उन्हें काटते हुए कहा : "ओवल ऑफिस में अमेरिकी मीडिया के सामने बहस करना असम्मानजनक है. आपको ट्रम्प का आभार जताना चाहिए." ट्रम्प ने गुस्से में जेलेंस्की से कहा, "तुम्हारे पास कोई बात नहीं है. तुम वर्ल्ड वॉर-III को न्योता दे रहे हो!"
जेलेंस्की की वाशिंगटन यात्रा का मकसद ट्रम्प द्वारा मांगे गए उस समझौते पर मुहर लगाना था, जिसमें यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य सहायता के बदले अरबों डॉलर के प्राकृतिक संसाधन सौंपने थे. ट्रम्प ने बार-बार दावा किया है कि अमेरिका ने यूक्रेन को 350 अरब डॉलर दिए, जबकि यूरोप ने सिर्फ 100 अरब डॉलर. हालांकि, कील इंस्टीट्यूट के अनुसार, यूरोप ने 138 अरब डॉलर दिए हैं, जबकि अमेरिका ने 119 अरब डॉलर. यह टकराव अमेरिका-यूक्रेन संबंधों के भविष्य को अनिश्चित बना गया है. ट्रम्प के रूस-समर्थक रुख और जेलेंस्की के प्रति आक्रामकता ने वैश्विक राजनीति में नई उथल-पुथल पैदा कर दी है.
चमोली, उत्तराखंड
हिमस्खलन में फंसे 57 में से 32 मजदूर बचाए गए
उत्तराखंड के चमोली के माणा गांव में हिमस्खलन के कुछ घंटों बाद सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की परियोजना में लगे 57 मजदूर फंस गए थे. पीटीआई के अनुसार, इनमें से 32 मजदूरों को बचा लिया गया है. इस हिमस्खलन में अब भी 25 मजदूर दबे हुए हैं. इसकी जानकारी चमोली के डीएम संदीप तिवारी ने दी.
सेना के अनुसार, हिमस्खलन सुबह करीब सवा सात बजे आया, जिसमें माणा और बद्रीनाथ के बीच एक मजदूरों का कैंप प्रभावित हुआ. इस भूस्खलन की वजह से आठ कंटेनर्स और एक शेड में 57 मजदूर दब गए थे. घटना की जानकारी मिलते ही इंडियन आर्मी की टीमें तुरंत घटना स्थल पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने के लिए पहुंच गईं. रेस्क्यू किए गए लोगों में चार की हालत गंभीर है. राहत कार्य जारी है और बचावकर्मी मजदूरों को बचाने में जुटे हुए हैं.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर मंडराते बादल : आईएमएफ ने जताई चिंता, शेयर बाज़ार लुढ़का
ब्लूमबर्ग और रॉयटर्स की रिपोर्ट्स के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की चर्चित अर्थव्यवस्था को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है. अपनी नवीनतम रिपोर्ट में आईएमएफ ने कहा है कि राजनीतिक-भौगोलिक विखंडन, घरेलू मांग में सुस्ती और नीतिगत निष्क्रियता देश की विकास दर के लिए बड़े जोखिम बन गए हैं. संस्था ने आगाह किया कि क्षेत्रीय संघर्ष, कमोडिटी की अस्थिर कीमतें और साइबर खतरे विकास को पटरी से उतार सकते हैं. साथ ही, कमजोर आय वसूली और चरम मौसमी घटनाएं निजी खपत और निवेश को प्रभावित कर सकती हैं. आईएमएफ के मुताबिक, भले ही भारत की जीडीपी वृद्धि दुनिया में सबसे तेज है, लेकिन आर्थिक दृष्टिकोण "अनिश्चितताओं से घिरा" है और जोखिम "नीचे की ओर झुके" हुए हैं. सरकार का "विकसित राष्ट्र" बनने का सपना तब तक अधूरा रहेगा, जब तक दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार लागू नहीं किए जाते. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 6.2% की वृद्धि दर्ज की, जो सरकारी खर्च बढ़ने के कारण अपेक्षाओं के अनुरूप रही. हालांकि, खपत और ग्रामीण मांग में लगातार कमजोरी बनी हुई है.
शुक्रवार को सेंसेक्स और निफ्टी 50 इंडेक्स में भारी गिरावट दर्ज की गई. डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ प्रस्ताव, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की लगातार बिकवाली और वैश्विक बाज़ारों में नकारात्मक रुझान के चलते सेंसेक्स 1.97% (1,471 अंक) गिरकर 73,141 के दिन के निचले स्तर पर पहुंच गया. निफ्टी ने भी 1.95% (440 अंक) की गिरावट के साथ 22,105 का स्तर छुआ. अंत में, सेंसेक्स 1,414 अंक टूटकर 73,198 और निफ्टी 420 अंक गिरकर 22,2125 पर बंद हुआ. इन्फोसिस, एमएंडएम, भारती एयरटेल, टीसीएस और एचसीएल टेक जैसे शेयरों ने सूचकांकों पर सबसे अधिक दबाव डाला.
विशेषज्ञों की राय में IMF की चेतावनी को गंभीरता से लेने की जरूरत है. इसके अलावा सरकार को ग्रामीण मांग बढ़ाने और संरचनात्मक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना होगा. बाज़ार में अस्थिरता जारी रह सकती है, क्योंकि एफआईआई बिकवाली और वैश्विक अनिश्चितताएं बरकरार हैं.
8.68 लाख करोड़पति और 185 अरबपति, लेकिन निवेश की 'अंधेरी दुनिया' में बढ़ा जोखिम
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट है कि भारत में दौलत का विस्फोट 8.68 लाख करोड़पति और 185 अरबपति पैदा कर चुका है, लेकिन यह चमकती तस्वीर के पीछे निवेश प्रबंधन की एक संदिग्ध दुनिया छिपी है. ऑफशोर निवेश पर प्रतिबंधों के चलते, अमीरों का पैसा अब जोखिम भरे विकल्पों – जैसे 'अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड्स (एआईएफ)', हाई-यील्ड बॉन्ड्स और डायरेक्ट लेंडिंग – की ओर बह रहा है. इनमें से अधिकांश निवेश निगरानी के बाहर हो रहे हैं.
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) अब इन फंडों में हो रही गलत बिक्री (मिस-सेलिंग) पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहा है. निवेशकों को विवेकहीन वित्तीय सलाहकार अस्थिर संपत्तियों में पैसा लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जो केवल ऊंचे रिटर्न के लालच में फंस रहे हैं. एआईएफ का बाज़ार 2020 के बाद से दोगुना होकर लगभग 60 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जिसमें लापरवाह सट्टेबाजी ने आग में घी का काम किया है. उद्योग के जानकार चेतावनी देते हैं कि यदि समय रहते नियमन नहीं किया गया, तो यह उन्माद भारत के वेल्थ मैनेजमेंट सेक्टर को अस्थिर कर सकता है और कॉर्पोरेट फंडिंग को नुकसान पहुंचा सकता है. हालांकि, सेबी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है.
एआईएफ के अंधाधुंध विस्तार के कारण इन फंड्स में निवेशकों को जोखिम का सही आकलन नहीं दिया जाता, जिससे धोखाधड़ी और पैसा डूबने का खतरा बढ़ता है. नियामकीय खामियां है, जिसकी वजह से डायरेक्ट लेंडिंग और प्राइवेट क्रेडिट मार्केट में पारदर्शिता की कमी से कालेधन को बढ़ावा मिलने का भय. बिना तसल्ली किये बड़े कर्ज़ देने से कंपनियों के डिफॉल्ट का जोखिम बढ़ सकता है.
ब्लूमबर्ग के सूत्रों के अनुसार, सेबी इस साल एआईएफ और अन्य वैकल्पिक निवेश माध्यमों के लिए सख्त दिशा-निर्देश लाने की योजना बना रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि अमीरों के पैसे का यह "अंधाधुंध खेल" भारत के वित्तीय बाज़ारों की विश्वसनीयता के लिए बड़ा खतरा बन सकता है.
पाठकों से अपील
विश्लेषण
डिलिमिटेशन : अपनी नुमाइंदगी को लेकर सवाल क्यों उठा रहे हैं दक्षिण के राज्य ?
परिसीमन के नाम पर भारत के दक्षिणी राज्यों पर एक तलवार लटक रही है. हमारी लोकसभा सीटों में कटौती होने जा रही है और तमिलनाडु की 8 लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 25 फरवरी को यह बयान देकर देश में “उत्तर बनाम दक्षिण” की नई बहस छेड़ दी है. केंद्र पर निशाना साधते हुए स्टालिन ने अपने राज्य के लोगों को यह बताना चाहा है कि तमिलनाडु को जनसंख्या नियंत्रण में कामयाब रहने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. हो सकता है कि अगले परिसीमन के बाद तमिलनाडु 8 लोकसभा सीटें खो दे और उसके 31 सांसद ही चुनकर जाएं. अभी 39 सांसद लोकसभा के लिए निर्वाचित होते हैं.
असल में, तटीय इलाकों के राज्यों को लगता है कि जनसंख्या के नवीनतम आंकड़ों के आधार पर परिसीमन होने से संसद में उनकी नुमाइंदगी घट जाएगी और राजनीतिक शक्ति में भी कमी होगी. सितंबर 2023 में संसद में महिला आरक्षण विधेयक, जिसका क्रियान्वयन परिसीमन प्रक्रिया से जुड़ा है, पर बहस के दौरान डीएमके नेता कनिमोझी ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का एक बयान पढ़कर सुनाया था. जिसके मुताबिक, “यदि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किया जाता है तो इससे दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा. तमिलनाडु के लोगों को इस बात का डर है कि उनकी आवाज़ें दबा दी जाएंगी.” कनिमोझी का समर्थन करते हुए तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी कहा था, “डेटा के अनुसार केरल में 0% सीटें बढ़ेंगी, सिर्फ तमिलनाडु में 26% इजाफा होगा, जबकि उत्तर भारत के दोनों राज्य मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में 79% सीटें बढ़ जाएंगी.”
खास बात यह है कि दक्षिण के सभी राज्यों में परिसीमन को लेकर चिंताएं हैं. यही वजह है कि एनडीए का सदस्य होने के बावजूद आंध्रप्रदेश में बुजुर्गों की बढ़ती आबादी पर चिंता जताते हुए मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने पिछले साल अक्टूबर में अपने राज्य के लोगों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की थी. कहा था कि उनकी सरकार एक विधेयक लाने पर विचार कर रही है, जिसके तहत ज्यादा बच्चे वाले परिवारों को इंसेंटिव दिया जाएगा. नायडू के इस कथन के कुछ दिन बाद स्टालिन ने तो 16-16 बच्चे पैदा करने की बात कही थी. गौरतलब है कि गत वर्ष जुलाई में संघ परिवार ने भी कहा था कि कम जन्म दर ने देश के पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों को नुकसान की तरफ धकेल दिया है. आरएसएस से संबद्ध पत्रिका ऑर्गनाइज़र ने अपने एक संपादकीय में लिखा था, “क्षेत्रीय असंतुलन एक ऐसा गंभीर पहलू है, जिसका भविष्य में संसदीय क्षेत्रों के लिए होने वाली परिसीमन प्रक्रिया पर असर पड़ेगा. तुलनात्मक रूप से पश्चिम और दक्षिण के राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में बेहतर काम किया है, इस नाते परिसीमन के बाद संसद में कुछ सीटें कम हो जाने का डर स्वाभाविक है.”
यूपी-उत्तराखंड में 250 सीटें हो जाएंगी?
अगर परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होता है, तो स्वाभाविक रूप से ज्यादा आबादी वाले राज्यों को अधिक सीटें मिलेंगी, जिसका मतलब है कि उत्तर भारत की सीटें बढ़ सकती हैं, जबकि दक्षिण भारत की सीटें या तो स्थिर रहेंगी या कम हो सकती हैं. अभी दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु (39), केरल (20), कर्नाटक (28), आंध्र प्रदेश (25), तेलंगाना (17) से कुल 129 सांसद लोकसभा में हैं, जबकि सिर्फ उत्तर प्रदेश (80), बिहार (40) और झारखंड (14) से ही 134 सांसद लोकसभा में हैं. जनसंख्या के मौजूदा रुझानों को देखते हुए यह अंतर और बढ़ सकता है. गौरतलब है कि परिसीमन की प्रक्रिया आखिरी बार 1976 में हुई थी. 1976 में भारत की जनसंख्या लगभग 63 करोड़ थी, अब भारत की आबादी लगभग 140 करोड़ हो चुकी है, यानी कि 50 सालों में हमारी आबादी दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गई है.
“द इंडियन एक्सप्रेस” में दीप्तिमान तिवारी और अमिताभ सिन्हा की रिपोर्ट के अनुसार 2025 तक यूपी-उत्तराखंड की आबादी 25 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है, अगर 20 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट को आधार बनाया गया तो यूपी-उत्तराखंड के हिस्से में 126 लोकसभा सीटें आएंगी, बिहार-झारखंड के हिस्से में 85 सीटें आएंगी, जबकि तमिलनाडु की सीटें 39 ही रहेंगी और केरल की सीटें 20 से घटकर 18 हो जाएंगी. अगर 1976 की तरह 10 या 11 लाख की आबादी पर एक सांसद का प्रतिनिधित्व स्वीकार किया गया गया तो यूपी-उत्तराखंड, बिहार-झारखंड की लोकसभा सीटों में बंपर वृद्धि होगी. ऐसी स्थिति में यूपी-उत्तराखंड की लोकसभा सीटें 250, बिहार-झारखंड की 169, राजस्थान की 82, तमिलनाडु की 76 और केरल की 36 सीटें हो जाएंगी.
बता दें कि तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना देश के वो राज्य हैं जहां कर्नाटक को छोड़कर किसी भी राज्य में बीजेपी की दमदार उपस्थिति नहीं है. परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्यों की पार्टियों की बेचैनी का एक कारण यह भी है कि हिंदी पट्टी में भाजपा का दबदबा है, और यहां सीटें बढ़ने से उसकी ताकत और बढ़ सकती है. इससे राजनीतिक संतुलन और प्रभावित होगा. खासकर क्षेत्रीय दलों के तो अस्तित्व पर बन आएगी.
मणिपुर में हथियार सरेंडर की अवधि बढ़ी, कुकी-जो संगठनों ने कहा- "यह सिर्फ़ दिखावा"
मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने लूटे गए और अवैध हथियारों के सरेंडर की अंतिम तिथि बढ़ाकर 6 मार्च शाम 4 बजे कर दी है. यह आदेश तब जारी किया गया, जब 20 फरवरी को समाप्त हुए 7 दिनों के अल्टीमेटम के बाद भी अधिकांश हथियार नहीं सौंपे गए. राज्य में जारी जातीय संघर्ष के दौरान लूटे गए इन हथियारों को स्वेच्छा से जमा करने की अपील की गई थी. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस अवधि बढ़ाए जाने से पहले, गुरुवार को मेइतेई समूह अरम्बाई तेंगोल ने प्रथम मणिपुर राइफल्स कैंपस में 246 हथियार सरेंडर किए.
हथियार सरेंडर के बाद, मणिपुर के कुकी-जो संगठनों इंडीजीनस ट्राइबल लीडर्स फोरम और कमेटी ऑन ट्राइबल यूनिटी ने राज्यपाल के इस कदम को "सिर्फ़ एक दिखावा" और "जनता की नज़र में छवि सुधारने का रणनीतिक प्रयास" बताया. एक संयुक्त बयान में, दोनों संगठनों ने कहा कि अरम्बाई तेंगोल द्वारा सौंपे गए 246 हथियार इम्फाल घाटी से लूटे गए 6,000 हथियारों का महज 5% हैं. उन्होंने आरोप लगाया, "यह कदम राज्यपाल से मुलाकात के बाद सहानुभूति और वैधता हासिल करने की रणनीति है. अरम्बाई तेंगोल पर कुकी-जो समुदाय के 230 से अधिक लोगों की हत्या का आरोप लगाते हुए, संगठनों ने अपने लिए अलग प्रशासन की मांग दोहराई.
मणिपुर में मई 2023 से मैतेई और कुकी-जो समुदायों के बीच हिंसक संघर्ष जारी है, जिसमें अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. हथियार लूटने की घटनाओं के बाद सुरक्षा बलों ने कई बार हथियार जमा करने की अपील की है, लेकिन अब तक केवल कुछ ही सरेंडर किए गए हैं.
पीएमओ के खर्चे पर उमड़ती है विदेशों में भीड़
यहां नरेंद्र मोदी के विदेश दौरों का एक अभिन्न अंग बन चुके सामुदायिक कार्यक्रम, वहां रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की उमड़ती भावना और गर्मजोशी के कारण नहीं हैं, बल्कि भारतीय सरकार द्वारा सावधानीपूर्वक आयोजित और वित्त पोषित कार्यक्रम हैं, जिनका भुगतान मोदी के पीएमओ द्वारा किया जाता है. हाल ही में मॉस्को में हुए सामुदायिक कार्यक्रम पर 1.87 करोड़ रुपये खर्च हुए, पीएमओ ने एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) पूछताछ के जवाब में खुलासा किया.
येदियुरप्पा पर पॉक्सो केस : अदालती समन जारी
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा को पॉक्सो अधिनियम (पॉक्सो) के तहत आरोपों का जवाब देने के लिए विधायकों से जुड़े मामलों की सुनवाई करने वाली एक विशेष अदालत ने समन जारी किया है. डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) द्वारा दायर आरोपपत्र में कहा गया है कि येदियुरप्पा ने 2 फरवरी, 2024 को एक शिकायतकर्ता महिला की 17 वर्षीय बेटी का यौन उत्पीड़न किया. यह घटना तब हुई जब महिला और उसकी बेटी किसी अन्य मामले में सहायता मांगने के लिए येदियुरप्पा के आवास पर गई थीं. सीआईडी ने येदियुरप्पा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354ए (यौन उत्पीड़न), 204 (साक्ष्य छिपाना), 214 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 (बच्चों का यौन शोषण) के तहत आरोप तय किए हैं. अदालत ने मामले में आगे की कार्रवाई के लिए येदियुरप्पा को हाजिर होने का आदेश दिया है. इस मामले में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि येदियुरप्पा ने उसकी नाबालिग बेटी के साथ दुर्व्यवहार किया. सीआईडी की जांच में आरोपों की पुष्टि के बाद पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया. भाजपा ने इस मामले पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, जबकि येदियुरप्पा ने आरोपों को "राजनीतिक षड्यंत्र" बताया है.
कार्टून
40 साल बाद, कार्बाइड का कचरा जलाने की प्रक्रिया शुरू
भोपाल गैस त्रासदी के करीब 40 वर्ष बाद यूनियन कार्बाइड के 337 टन जहरीले कचरे को जलाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. 27 फरवरी को इसका ट्रायल किया गया था. इंदौर संभाग के आयुक्त दीपक सिंह ने बताया, “शुक्रवार दोपहर 3 बजे 10 टन कचरे को जलाने की प्रक्रिया धार जिले के पीथमपुर में निर्धारित संयंत्र के कचरा-भट्ठी में शुरू की गई. प्रारंभिक रिपोर्ट में क्षेत्र वायु गुणवत्ता तथा अन्य मापदंडों पर सामान्य बना हुआ है और रेडियोधर्मी कण नहीं पाए गए. इस बीच अपशिष्ट निबटान का विरोध करने वालों ने बताया कि वे एक बार फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे. “आग जलाने के खिलाफ आंदोलन जारी रहेगा. अपना पक्ष हाईकोर्ट में मजबूती से रखेंगे. पीथमपुरा के लोगों से बात करेंगे."
स्कूली किताबों में ढाका ने भारत की भूमिका घटाई : बांग्लादेश में इस साल इसके राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तक बोर्ड (एनसीटीबी) ने स्कूली पाठ्यपुस्तकों में बड़े पैमाने पर बदलाव किये हैं. इन बदलावों के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को पाठ्यपुस्तकों से करीब-करीब गायब कर दिया गया है और स्वतंत्रता संग्राम में उनके पिता मुजीब की भूमिका को काफी कम कर दिया गया है. इन बदलावों के भीतर एक और बदलाव छिपा है. वह है बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारतीय नेतृत्व के योगदान को कम करना. इस मुक्ति संग्राम में भारतीय सेना और बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों की संयुक्त सेना ने मिलकर दिसंबर 1971 में पाकिस्तान की सशस्त्र सेनाओं को हराया था, जिससे इस राष्ट्र का उदय हुआ था.
दुर्लभ 'ग्रह परेड', 7 ग्रह एक सीध में : फरवरी में एक दुर्लभ खगोलीय घटना घटी. सौरमंडल के सभी सात ग्रह एक सीध में नज़र आए. यह दुर्लभ नजारा 28 फरवरी को अपने चरम पर था. अब इसे देखने का अगला मौका 2040 में मिलेगा. 21 से 29 जनवरी के बीच, छह ग्रह- शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून- रात के आकाश में एक पंक्ति में दिखाई दिए थे. 28 फरवरी को सबसे खास पल तब आया, जब बुध ग्रह भी इस परेड में शामिल हो गया.
फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में भारत आंशिक तौर पर स्वतंत्र, पड़ोसी देशों की स्थिति सुधरी
वाशिंगटन स्थित लोकतंत्र समर्थक शोध समूह ‘फ्रीडम हाउस की वार्षिक रिपोर्ट में भारत को लगातार चौथे वर्ष “आंशिक तौर पर स्वतंत्र” देश का दर्जा दिया गया है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में लोकतंत्र ‘कमजोर पड़ रहा है’. रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे नरेंद्र मोदी सरकार ने न्यायिक नियुक्तियों पर अधिक प्रभाव हासिल करने की कोशिश की है. इसमें कहा गया है कि 2014 में इसने कॉलेजियम प्रणाली को बदलने की कोशिश की, जिसके तहत एक नए आयोग के साथ नए न्यायाधीशों को उनके सहयोगियों द्वारा नामित किया जाता है. इसमें मौजूदा न्यायाधीशों के अलावा सरकार के सदस्य भी शामिल होंगे. “सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में जब से इस कानून को खारिज कर दिया, तब से मोदी सरकार ने नियुक्तियों में देरी की है और बिना किसी स्पष्टीकरण के कॉलेजियम की ओर से किए गए नामांकन को खारिज कर दिया है. परिणामस्वरूप न्यायिक रिक्तियों में वृद्धि हुई है. इसमें आगे कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में चुनावों की वापसी - जिसका फ्रीडम हाउस ने अलग से आकलन किया - के परिणामस्वरूप स्थिति 'स्वतंत्र नहीं' से 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' हो गई. इसमें कहा गया है कि लंबे समय से विलंबित चुनावों ने भारत सरकार की ओर से 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने से हुए ‘अधिकारों के नुकसान को पूरी तरह से दूर नहीं किया है’, मगर उन्होंने स्थानीय आबादी के लिए कुछ राजनीतिक प्रतिनिधित्व बहाल किया, जो पांच साल से अधिक समय से प्रत्यक्ष संघीय शासन के अधीन था.”
इस बीच, 60 देशों के राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता में गिरावट दर्ज की गई. सिर्फ 34 देशों इसमें सुधार दिखलाया है. अल साल्वाडोर, हैती, कुवैत और ट्यूनीशिया वर्ष के लिए सबसे बड़ी गिरावट वाले देश थे, जबकि भारत के निकटतम पड़ोसी भूटान और श्रीलंका उनमें से थे, जिन्होंने सबसे बड़ी बढ़त दर्ज की.
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन को मानवाधिकार पुरस्कार
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने अपने पहले वर्ष में ही वैश्विक गोपनीयता और मानवाधिकार पुरस्कार जीता है. यह पुरस्कार ताइपेई, ताइवान में डिजिटल युग में मानवाधिकारों पर एक्सेस नाउ के शिखर सम्मेलन राइट्सकॉन में प्रदान किया गया. आईएफएफ के संस्थापक और निदेशक अपार गुप्ता ने पुरस्कार स्वीकार करते हुए कहा कि वह इसे हर उस भारतीय की ओर से स्वीकार कर रहे हैं, जो गोपनीयता की मौलिक शक्ति में विश्वास करता है.
टिप्पणी
पीएम की डिग्री मामले में जेटली और शाह को क्यों झुठला रही है सरकार
अनिल जैन
गृह मंत्री अमित शाह और दिवंगत अरुण जेटली की यह तस्वीर 9 मई 2016 की है, जब उन्होंने दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एमए और बीए की डिग्री सार्वजनिक करते हुए दावा किया था कि गुजरात विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय की ये दोनों डिग्रियां सच्ची और प्रामाणिक हैं. अब नौ साल बाद मोदी की डिग्रियों से जुड़ा मामला फिर विवादों के घेरे में है.
दरअसल शाह और जेटली द्वारा मोदी की डिग्रियां सार्वजनिक किए जाने के बाद नीरज नामक व्यक्ति द्वारा सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई आवेदन दाखिल किए जाने के बाद केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआईसी) ने 21 दिसंबर, 2016 को दिल्ली विश्वविद्यायल से 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड के निरीक्षण की अनुमति दी थी. यह वही वर्ष था, जिसमें मोदी के भी बीए की परीक्षा पास करने का दावा किया जाता है.
सीआईसी के इस आदेश को दिल्ली विश्वविद्यालय ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जिस पर हाई कोर्ट ने 23 जनवरी, 2017 को सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी थी. अब इस मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय ने दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री से संबंधित अपने रिकॉर्ड अदालत को दिखाने को तैयार है, लेकिन आरटीआई के तहत इसका खुलासा अजनबी लोगों के समक्ष नहीं करेगा.
दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से जस्टिस सचिन दत्ता के समक्ष यह दलील केंद्र सरकार के वकील यानी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दी, जिसके बाद अदालत ने दिल्ली विश्वविद्यालय की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने हाई कोर्ट में जो दलीलें दी हैं, वे बेहद अजीबोगरीब और दिलचस्प है. उन्होंने कहा, “दिल्ली विश्वविद्यालय को 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों का रिकॉर्ड अदालत को इसे दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन वह इस रिकॉर्ड को जांच के लिए अजनबी लोगों के समक्ष नहीं रख सकता.’’ उनका कहना है कि 'जानने के अधिकार’ से बढ़कर 'निजता का अधिकार’ है.
मेहता ने अदालत से कहा कि 'जानने का अधिकार’ असीमित नहीं है और किसी व्यक्ति की निजी जानकारी, जो सार्वजनिक हित या सार्वजनिक कर्तव्य से संबंधित नहीं है, को प्रकटीकरण से संरक्षित किया गया है. उन्होंने कहा कि वर्तमान मामले में विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड को सार्वजनिक करने की अनुमति देने से विश्वविद्यालय के लाखों छात्रों के संबंध में आरटीआई आवेदनों का खुलासा हो जाएगा. उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान मामले में मांग राजनीतिक उद्देश्य से की गई है, जबकि सूचना का अधिकार कानून दूसरों को शर्मिंदा करने के लिए नहीं है.
सॉलिसिटर जनरल ने जो दलीलें हाई कोर्ट में पेश की हैं, वे हास्यास्पद होने के साथ ही उनके सॉलिसीटर जनरल होने की योग्यता पर भी सवाल खड़े करती हैं. यही नहीं, उनकी दलीलें नौ साल पहले अमित शाह और अरुण जेटली द्वारा सार्वजनिक की गई प्रधानमंत्री की डिग्रियों की विश्वसनीयता को भी शक के दायरे में लाती हैं. कहने की आवश्यकता नहीं कि यह पूरा मामला सच को छुपाने के सौ झूठ बोलने जैसा है. कहने की आवश्यकता नहीं कि यह पूरा मामला एक सच को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने जैसा है.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और टीकाकार हैं. यह लेख उनके फेसबुक पोस्ट से.
“झंझट” में डालने के लिए थरूर ने इंडियन एक्सप्रेस को लताड़ा
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अंग्रेजी दैनिक “द इंडियन एक्सप्रेस” की जमकर खिंचाई की है और अखबार पर “बेहद शर्मनाक” काम करने का आरोप लगाया है. दरअसल, थरूर पहले ही विवाद में थे, क्योंकि उन्होंने “न्यू इंडियन एक्सप्रेस” (जो द इंडियन एक्सप्रेस से असंबद्ध है) में एक लेख लिखकर केरल की औद्योगिक प्रगति की सराहना की थी. इस पर कांग्रेस की केरल ईकाई ने उनकी आलोचना की थी. कुछ दिनों बाद थरूर ने “द इंडियन एक्सप्रेस” के मलयालम पॉडकास्ट में भाग लिया. इंडियन एक्सप्रेस ने अंग्रेजी में थरूर के हवाले से रिपोर्ट किया कि “पार्टी को अगर उनकी जरूरत नहीं है, तो उनके पास "अन्य विकल्प" हैं.”
जबकि पॉडकास्ट में, थरूर ने स्पष्ट किया था कि वह राजनीतिक विकल्पों की बात नहीं कर रहे थे. लेकिन मीडिया ने उनकी बात को राजनीतिक विकल्पों के संदर्भ में पेश किया, जिससे उन पर हमले शुरू हो गए. अंततः थरूर ने “एक्स” पर अपनी चुप्पी तोड़ी और “इंडियन एक्सप्रेस” की आलोचना करते हुए कहा कि अखबार ने “एक साधारण बयान को अंग्रेजी में हेडलाइन बनाकर मुझे एक झंझट से निपटने के लिए छोड़ दिया.” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अखबार ने एक फर्जी खबर दी, जिसमें दावा किया गया कि उन्होंने केरल कांग्रेस में नेतृत्व के अभाव की बात कही थी. थरूर ने लिखा कि जब उन्होंने इस दावे को चुनौती दी, तो उन्हें उनके मलयालम इंटरव्यू का अंग्रेजी “अनुवाद” दिया गया, जबकि उन्होंने मूल वीडियो क्लिप मांगी थी. बाद में “इंडियन एक्सप्रेस” ने स्वीकार किया कि उनके अनुवाद में गलती हुई थी और सुधार प्रकाशित किया. थरूर ने कहा कि इस घटना ने भारतीय पत्रकारिता पर उनके पहले से गहरे संदेह को और बढ़ा दिया है, जिसे उसने “पूर्ण अविश्वसनीयता के अपने सामान्य मानकों” के रूप में बनाए रखा है.
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