01/04/2025: साहेब अभी न रिटायर होने को | रक्षा मंत्रालय का डाटा लीक | रूस को सैन्य सामग्री बेचने का भारत द्वारा खंडन | बोधगया में गुस्सा भिक्षु | ईद पर श्रीनगर की जामिया मस्जिद बंद
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियाँ :
औरंगज़ेब : भैयाजी को नहीं पता कौन उठा रहा “अनावश्यक” मुद्दा?
महुआ मोइत्रा को कानून या संसदीय नियमों का उल्लंघन किए बिना दंडित किया गया : आईपीयू
चीन ने विकसित किया समुद्र की गहराई में केबल काटने वाला कटर
पाकिस्तान अफगान शरणार्थियों को निकालेगा
कनाडा में आर्य का टिकट कटा
कौमार्य परीक्षण की मांग पर अदालत का फैसला, निजी स्वतंत्रता का अधिकार अपरिवर्तनीय
चीन यात्रा से बांग्लादेश लौटे युनुस
आईएएस अधिकारियों ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान पर उठाए सवाल
48 घंटों में गाजा में 80 लोगों की मौत
भारतीय कंपनी एचएएल के जरिये ब्रिटिश कंपनी ने बेचे रूसी कंपनी को युद्ध के लिए जरूरी सामान
ब्रिटेन की एयरोस्पेस निर्माता एच.आर. स्मिथ ग्रुप ने लगभग 2 मिलियन डॉलर के ट्रांसमीटर, कॉकपिट उपकरण और अन्य संवेदनशील तकनीक भारतीय कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स को बेचे है. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स, रूस की प्रतिबंधित राज्य हथियार एजेंसी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट की सबसे बड़ी व्यापारिक साझेदार है. यूक्रेन पर हमले के कारण यह रूसी कंपनी कारोबार के लिए प्रतिबंधित सूची में हैं.
मामला इसलिए संजीदा और पेचीदा है, क्योंकि इस रिपोर्ट के जरिये ब्रिटिश कंपनी भारतीय उपक्रम (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल) के जरिये प्रतिबंधित रूसी कंपनी को युद्ध के लिए जरूरी उपकरण और सामग्री मुहैया करवा रही थी. न्यूयॉर्क टाइम्स में जेड ब्रेडले की खोजी रिपोर्ट के मुताबिक 2023 से 2024 तक, एच.आर. स्मिथ ग्रुप की कंपनी टेकटेस्ट ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स को 118 शिपमेंट भेजे. दस्तावेजों के अनुसार, कुछ मामलों में, भारतीय कंपनी ने इन्हीं उत्पादों को दिनों के भीतर समान पहचान कोड के साथ रूस को भेज दिया.
एच.आर. स्मिथ ग्रुप का कहना है कि उनकी बिक्री कानूनी थी और उपकरण भारतीय खोज और बचाव नेटवर्क के लिए थे. कंपनी के वकील के अनुसार, ये उपकरण "जीवन बचाने वाले अभियानों का समर्थन करते हैं" और "सैन्य उपयोग के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए हैं."
एच.आर. स्मिथ ग्रुप ने रिफॉर्म यू.के. पार्टी को भी 100,000 पाउंड (1,10,71,400 रुपये) का दान दिया. ब्रिटेन की इस धुर दक्षिणपंथी पार्टी के प्रमुख नाइजेल फराज हैं, जो डोनल्ड ट्रम्प की जीत तय होने के बाद मारालागो में उनसे मिलने वाले शुरुआती लोगों में से एक थे. फराज अपने आप को ब्रिटिश रूढ़िवाद की नई आवाज़ के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन रूस-समर्थक माने जाने वाले बयानों पर कई बार विवाद उत्पन्न किया है. फोन पर संपर्क किए जाने पर, फराज ने कहा कि उन्होंने "कभी भी पुतिन के किसी भी काम का समर्थन नहीं किया है," लेकिन एच.आर. स्मिथ की बिक्री पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. पार्टी के प्रवक्ता ने कहा कि दान कानूनी था.
टाइम्स की इस खबर का फोकस फराज की पार्टी को उस ब्रिटिश कंपनी के चंदे से था. पर खबर में भारत और भारतीय पीएसयू की भूमिका भी संदेह के घेरे में है.
द न्यूयॉर्क टाइम्स ने शिपिंग रिकॉर्ड्स की समीक्षा की, जिसमें पता चला कि एच.आर. स्मिथ ग्रुप के स्वामित्व वाली कंपनी टेकटेस्ट ने 2023 और 2024 में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स को प्रतिबंधित प्रौद्योगिकी के 118 शिपमेंट किए. विशिष्ट अंतरराष्ट्रीय कोड्स के जरिए पहचाने गए इन पुर्जों को लगभग 2 मिलियन डॉलर (17,11,17,400 रुपये) में बेचा गया. इसी अवधि के दौरान, भारतीय कंपनी ने रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (रूसी हथियार एजेंसी) के एक खरीदार को समान प्रकार के पुर्जों की कम से कम 13 शिपमेंट कीं. रोसोबोरोनएक्सपोर्ट को ब्रिटिश और अमेरिकी अधिकारियों ने काली सूची में डाला है. रिकॉर्ड्स के मुताबिक, इस उपकरण के लिए रूसी एजेंसी ने 14 मिलियन डॉलर से अधिक का भुगतान किया.
इन उपकरणों के नागरिक और सैन्य दोनों उपयोग हैं, और ब्रिटिश और अमेरिकी अधिकारियों ने इन्हें यूक्रेन में रूस के युद्ध प्रयास के लिए महत्वपूर्ण बताया है. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स सार्वजनिक रिकॉर्ड में रूसी सैन्य आपूर्तिकर्ता के रूप में पहचानी जा सकती है, लेकिन इस पर वित्तीय प्रतिबंध नहीं हैं.
पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस के साथ व्यापार करने की भारत की इच्छा ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को अलग-थलग करने और उनके सैन्य को कमजोर करने के प्रयासों को जटिल बना दिया है. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स ने टिप्पणी के लिए किए गए संपर्कों का जवाब नहीं दिया.
विशेषज्ञों का कहना है कि, टेकटेस्ट द्वारा किए गए डयू डिलिजेंस के आधार पर, कंपनी ने निर्यात नियंत्रण का उल्लंघन किया हो सकता है.
भारत सरकार ने न्यूयार्क टाइम्स की खबर का खंडन किया
भारत ने न्यूयॉर्क टाइम्स की खोजी रिपोर्ट को खारिज कर दिया है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सरकारी स्वामित्व वाली हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने ब्रिटेन के संवेदनशील उपकरणों को रूसी कंपनी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट (जिस पर यूके और यूरोपीय संघ ने प्रतिबंध लगाए हैं) को "रीरूट" किया हो सकता है. सरकारी सूत्रों ने द हिंदू को बताया, "न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक है. यह एक राजनीतिक नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने की कोशिश की गई है."
केंद्र सरकार ने एचएएल के रिकॉर्ड का बचाव करते हुए कहा कि यह संस्था "रणनीतिक व्यापार नियंत्रण और एंड-यूजर प्रतिबद्धताओं" के सभी अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का पालन करती है और भारत का नियामक ढांचा "मजबूत" है. पीटीआई से बात करते हुए एक सूत्र ने कहा, "रिपोर्ट में उल्लेखित भारतीय संस्था ने सभी अंतरराष्ट्रीय नियमों का सख्ती से पालन किया है. हमें उम्मीद है कि प्रतिष्ठित मीडिया ऐसी रिपोर्ट्स प्रकाशित करने से पहले बुनियादी जाँच करेंगे, जो इस मामले में नहीं हुई."
रक्षा मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेज़ों का डार्क वेब पर लीक
एक हैकिंग समूह, बाबुक लॉकर 2.0, ने 10 मार्च को डीआरडीओ के सिस्टम में घुसपैठ कर वर्गीकृत रक्षा दस्तावेज़ों की चोरी का दावा किया. हैकर्स ने कहा कि उन्होंने 20 टेराबाइट संवेदनशील सैन्य डेटा चुराया है, जिसमें रणनीतिक परियोजनाओं के "गुप्त" दस्तावेज़ भी शामिल हैं. हालांकि, सरकारी और निजी सूत्रों के अनुसार, यह दावा अतिरंजित प्रतीत होता है. द प्रिंट में स्नेहेष एलेक्स फिलिप ने इस पर विस्तृत रिपोर्ट लिखी है.
जांच से पता चला है कि यह घुसपैठ व्यक्तिगत स्तर पर हुई थी और लीक हुए दस्तावेज़ रक्षा उत्पादन विभाग के पूर्व संयुक्त सचिव के इंटरनेट से जुड़े व्यक्तिगत कंप्यूटर से आए हैं, न कि सुरक्षित रक्षा मंत्रालय नेटवर्क से. ये फ़ाइलें कम से कम 4 साल पुरानी हैं.
लीक की गई सामग्री में एक "गुप्त" दस्तावेज़ शामिल था, जिसमें भारतीय वायु सेना की सैन्य निर्माण परियोजना का उल्लेख है, साथ ही डीआरडीओ द्वारा विकसित 84 मिमी आरएल एमके-III कंपोजिट बैरल के इंजीनियरिंग आरेख भी शामिल थे. इसके अलावा, बजट आवंटन, खरीद योजनाएं, सैन्य आधुनिकीकरण और फिनलैंड, ब्राजील और अमेरिका जैसे देशों के साथ भारत के रक्षा सहयोग से संबंधित जानकारी भी लीक हुई है.
हैकिंग समूह ने शुरू में $25,000 की फिरौती मांगी थी, जिसे बाद में $5,000 तक कम कर दिया गया, जो उच्च-मूल्य खुफिया जानकारी के लिए असामान्य रूप से कम है. समूह के व्यवहार से संकेत मिलता है कि वे अपने प्रभाव को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं.
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस घटना से उजागर होता है कि रक्षा अधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत उपकरणों पर वर्गीकृत दस्तावेज़ों को संग्रहीत करना सुरक्षा प्रोटोकॉल का उल्लंघन है. यह मामला कठोर साइबर सुरक्षा उपायों, बेहतर एक्सेस कंट्रोल और सक्रिय निगरानी की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है. संवेदनशील फाइलें कभी भी सरकार-अनुमोदित, सुरक्षित प्रणालियों के बाहर सुलभ नहीं होनी चाहिए.
मोदी के 75 पर रिटायरमेंट का शगूफा संजय राउत ने छोड़ा, फडणवीस ने पकड़ा
(साभार : द प्रिंट)
शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने पीएम नरेंद्र मोदी के रिटायरमेंट को लेकर अपने एक दावे से भाजपा खेमे को हिलाकर रख दिया. राउत ने कहा कि मोदी इस साल 75 वर्ष के हो जाएंगे, जो उस आयु सीमा को पार करता है, जिसे उन्होंने 2014 में भाजपा मंत्रियों के लिए तय किया था. वह इसी बारे में बात करने संघ मुख्यालय गए थे. बता दें, ‘75 वर्ष’ के आधार पर विधानसभा-लोकसभा के टिकट न देकर कई राज्यों और केंद्र में भाजपा नेताओं को घर बैठाया गया था. लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे कुछ वरिष्ठतम नेता मार्गदर्शक मंडल में भेज दिए गए थे. बहरहाल, राउत के दावे का जवाब देने खुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को आगे आना पड़ा. उन्होंने कहा, "उनके (मोदी) उत्तराधिकारी की खोज करने की कोई आवश्यकता नहीं है. वह हमारे नेता हैं और बने रहेंगे.” उन्होंने कहा, "हमारी संस्कृति में, जब पिता जीवित होते हैं, तो उत्तराधिकार की चर्चा करना अनुचित है. यह मुगल संस्कृति है. इसे लेकर चर्चा का समय अभी नहीं आया है." फडणवीस ने जोर देकर कहा कि "मोदीजी" आने वाले वर्षों तक देश का नेतृत्व करते रहेंगे.
पाठकों से अपील
भैयाजी को नहीं पता कौन उठा रहा औरंगज़ेब का “अनावश्यक” मुद्दा?
यह पाखंड है; या भैयाजी जोशी के इस विचार में सचमुच सच्चाई भी है? क्योंकि, कुछ दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा मुगल सम्राट औरंगज़ेब की कब्र को हटाने की मांग के बीच, वरिष्ठ आरएसएस नेता सुरेश 'भैयाजी' जोशी ने सोमवार (31 मार्च, 2025) को कहा कि यह विषय अनावश्यक रूप से उठाया गया है. उनकी मृत्यु यहां हुई. इसीलिए उनकी कब्र यहां बनी है. जिसकी श्रद्धा होगी, वह औरंगजेब की कब्र पर जाएगा. जो जाना चाहते हैं, वे जाएं. इसमें कोई बड़ी बात नहीं है. इस मुद्दे को तूल नहीं दिया जाना चाहिए. महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने भी सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिशों की आलोचना करते हुए रविवार को कहा कि धर्म या जाति के नजरिए से इतिहास की घटनाओं का मतलब नहीं निकालना चाहिए. चेताया कि इतिहास के ज्ञान के लिए “व्हाट्स ऐप फॉरवर्ड” पर निर्भर रहना ठीक नहीं है. “इतिहास को व्हाट्स ऐप पर पढ़ना बंद कर दीजिए,” ठाकरे ने कहा. सवाल है, इस “अनावश्यक” मुद्दे को तूल देने वाले, जेसीबी भेजकर कब्र को मिटा देने की मांग करने वाले, कारसेवा की चेतावनी देने वाले या हुमायूं के मकबरे का दौरा करने वाले कौन लोग हैं? केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए के पार्टनर और सरकार में मंत्री आरपीआई (ए) नेता रामदास आठवले ने भी प्रश्न उठाया है कि औरंगज़ेब 1707 में मरा...फिर उसकी कब्र को अभी क्यों हटाना? लेकिन आठवले भी यह नहीं बताते कि वो कौन हैं, जिन्होंने 317 साल पहले मरे औरंगज़ेब की कब्र को संभाजीनगर से हटाने की मांग उठाई है? सतारा से सांसद उदयनराजे भोंसले क्या भाजपा के एमपी नहीं हैं? क्या भोंसले ने सबसे पहले यह विषय नहीं उठाया? “द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार भोंसले ने 7 मार्च शुक्रवार को कहा था, “कब्र की जरूरत क्या है? जेसीबी लाओ और कब्र को हटा दो. औरंगज़ेब एक चोर और लुटेरा था. उसका महिमामंडन क्यों? वह लूटने के लिए आया था. जो लोग उसकी कब्र पर दुआ के लिए जाते हैं, वे कब्र अपने घर ले जाएं. क्या ये लोग उसके वंशज हैं?”
सुरेश “भैयाजी” जोशी 12 साल तक (2009 से 2021) आरएसएस के सरकार्यवाह (महासचिव) रहे हैं. यानी, सरसंघ चालक के बाद दूसरे नंबर का ओहदा. उनकी संघ में प्रतिष्ठा है, सम्मान है. वह कोई बयान दे रहे हैं, तो उसको हवा में नहीं उड़ाया जा सकता. इसीलिए, औरंगज़ेब की कब्र के बारे में आज जब उनकी “नसीहत” सामने आई तो मीडिया ने उसको हाथों हाथ लिया. क्योंकि भैयाजी जोशी की नसीहत संघ के मुख्य प्रवक्ता सुनील अंबेकर के इस बयान के बाद आई है कि, “औरंगजेब अप्रासंगिक है, लेकिन उसकी कब्र का मुद्दा नहीं.” मतलब, औरंगजेब की कब्र का विषय प्रासंगिक है. संभवतः इसीलिए अंबेकर के बयान को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आधिकारिक मत मानकर भाजपा, विहिप, बजरंग दल और अन्य विचार परिवार के सहोदरों ने “अनावश्यक” (बकौल भैयाजी) मुद्दे को एजेंडे से अलग नहीं किया है? भैयाजी चूंकि संघ में किसी ओहदे पर नहीं हैं, लिहाजा उनकी “नसीहत” को कितनी गंभीरता से लिया जाता है, देखना होगा. मगर बात निकली है तो दूर तलक जाएगी... लोग जालिम हैं, हरेक बात का ताना देंगे. कभी भाजपा की मुखर आवाज़ रहे और अब तृणमूल कांग्रेस के सांसद कीर्ति आजाद (जिन्होंने 2024 में बीजेपी के हैवीवेट दिलीप घोष को हराया था) कह रहे हैं कि “राणा सांगा के पोते महाराणा प्रताप थे. महाराणा प्रताप की लड़ाई अकबर से थी. अकबर उनको हराना चाहता था. जिस मान सिंह ने अकबर का साथ देकर महाराणा प्रताप के खिलाफ लड़ाई लड़ी, उसके वंशज राजस्थान की भाजपा सरकार में डिप्टी सीएम हैं. ग्वालियर राजघराने के वंशज, जिन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मी बाई को किले में नहीं घुसने दिया, वह आज केंद्र की भाजपा सरकार में मंत्री हैं. इन सवालों के जवाब देगी भाजपा? देश के गद्दारों के साथ तो ये लोग (भाजपा) हैं. इतिहास के मुद्दों को ये लोग उठाएंगे तो जवाब दिया जाएगा. अन्यथा भाजपा को बताना ये चाहिए कि गरीबी रेखा के नीचे 105 करोड़ लोग हो गए हैं. क्योंकि भाजपा कह रही है कि 25 करोड़ लोगों को उसने गरीबी रेखा से ऊपर उठा लिया है और 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन वह दे रही है.
“द टेलीग्राफ” को दिए एक इंटरव्यू में, औरंगज़ेब की जीवनीकार और अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी की इतिहासकार ऑड्री ट्रश्के ने कहा था, “औरंगज़ेब को एक इस्लामी कट्टरपंथी के रूप में खलनायक बनाना गलत इतिहास है, लेकिन अगर आप हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश कर रहे हैं, तो यह एक अच्छी कहानी है." इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष और मुगलों पर कई किताबों के लेखक हेरंब चतुर्वेदी ने भी कहा, "अगर औरंगज़ेब ने मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया, तो उसने कई मंदिरों को अनुदान भी दिया. जिनमें सोमेश्वर महादेव अरैल, चित्रकूट का बालाजी मंदिर, उज्जैन का महाकाल मंदिर और बगंबरी तथा वाराणसी के जंगमबाड़ी के मंदिर शामिल हैं. बालाजी मंदिर को उसने न केवल अनुदान दिया, बल्कि राजस्व-मुक्त भूमि भी प्रदान की. फरमान में लिखा है कि “यह घी के दीपकों को लगातार जलाने और साम्राज्य की समृद्धि व स्थायित्व के लिए प्रार्थना करने हेतु था."
चतुर्वेदी ने यह भी कहा, "औपनिवेशिक इतिहास लेखन ने सांप्रदायिक इतिहास लेखन को जन्म दिया, और 1857 के विद्रोह के बाद यह और बढ़ गया, क्योंकि ब्रिटिश समझ गए थे कि अगर हिंदू और मुसलमान एकजुट हो गए तो वे यहां टिक नहीं पाएंगे. अगर आज औपनिवेशिक इतिहास को खारिज करने की मांग उठती है, तो हमें इस सांप्रदायिक इतिहास लेखन पर वापस नहीं जाना चाहिए." कुलमिलाकर, भैयाजी जोशी का बयान यदि सचमुच “नसीहत” है तो औरंगजेब और सैंकड़ों साल पुरानी उसकी कब्र का मुद्दा वाकई “अनावश्यक” है. अन्यथा, संघ के आधिकारिक मुख्य प्रवक्ता अंबेकर कह ही चुके कि औरंगजेब नहीं, औरंगजेब की कब्र प्रासंगिक है.
बेचैन ईद : कश्मीर में जामिया मस्जिद बंद, अखिलेश बोले - 'ऐसा कभी नहीं देखा'
‘द वायर’ की खबर है कि जम्मू और कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में स्थित सबसे बड़ी मस्जिद में जब कश्मीर ईद-उल-फितर मनाने की तैयारी कर रहा था, जामिया मस्जिद को सोमवार (31 मार्च) को अधिकारियों द्वारा बंद कर दिया गया और उपासकों को कथित तौर पर अंदर जाने से रोक दिया गया. कश्मीर के मुख्य मौलवी और मध्यमार्गी हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने कहा कि उन्हें फिर से अधिकारियों द्वारा नज़रबंद कर दिया गया है. मीरवाइज ने द वायर को बताया - "बिना किसी कारण बताए, मुझे घर में ही बंद कर दिया गया है और वे [सुरक्षा कर्मी] मुझे बाहर आने की अनुमति नहीं दे रहे हैं." गवाहों और रिपोर्टों के अनुसार, सुरक्षा कर्मियों को श्रीनगर के डाउनटाउन इलाके नौहट्टा में भारी संख्या में तैनात किया गया था, जहां मस्जिद स्थित है और उन्होंने उपासकों को 14वीं शताब्दी की इस स्थापत्य कृति के परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी. हालांकि, बीजेपी की वरिष्ठ नेता और जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दरख्शां अंद्राबी ने रविवार को कहा कि ईदगाह मैदान में ईद की नमाज "चल रहे निर्माण कार्य" के कारण आयोजित नहीं होगी. 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद, वक्फ बोर्ड ने कश्मीर में अधिकांश दरगाहों और मस्जिदों का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया, जिसका मीरवाइज और अन्य कश्मीरी राजनीतिक दलों ने विरोध किया था. यह पहली बार नहीं है, जब कश्मीर की सबसे बड़ी मस्जिद में ईद की नमाज पर पाबंदी लगाई गई है. जब से केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया है, अधिकारियों ने इस मस्जिद में धार्मिक आयोजनों पर अक्सर रोक लगाई है. पुलिस प्रशासन, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है, का कहना है कि श्रीनगर के डाउनटाउन क्षेत्र में कानून-व्यवस्था बिगड़ने का खतरा है, क्योंकि यह इलाका अतीत में भारत विरोधी और आज़ादी समर्थक प्रदर्शनों का केंद्र रहा है.
इधर ‘टेलीग्राफ’ ने रिपोर्ट की है कि समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पर ईद मनाने वाले लोगों के लिए बाधाएं खड़ी करने और संविधान के लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करने का आरोप लगाया है. अखिलेश यादव ने ईद के दिन लखनऊ के ऐशबाग ईदगाह के बाहर पत्रकारों से कहा - "आज सबसे बड़ा खतरा लोकतंत्र और संविधान को है. और मैं पूरी ज़िम्मेदारी से कह रहा हूँ, भले ही मुझे यह नहीं कहना चाहिए कि भाजपा देश को संविधान के अनुसार नहीं चला रही है." यादव ने ईदगाहों और मस्जिदों पर सुरक्षा बढ़ाए जाने की ओर इशारा किया और दावा किया कि ये सुरक्षा इंतज़ाम "अत्यधिक और अनावश्यक" थे. "आप सभी वर्षों से ईद को कवर कर रहे हैं, लेकिन क्या आपने पहले कभी इतनी बड़े पैमाने पर बैरिकेडिंग देखी है?" उन्होंने सवाल किया. पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया कि पुलिस ने बिना किसी ठोस कारण के उनके काफिले को आधे घंटे तक रोक दिया गया.
राजस्थान की राजधानी जयपुर ने ईद की एक बेहद खूबसूरत तस्वीर सामने आई है. यहां हिंदुओं ने ईदगाह आए मुसलमानों पर फूल बरसाए. दरअसल, हिंदू मुस्लिम एकता समिति के बैनर तले हिंदुओं ने सोमवार को जयपुर में ईद-उल-फितर मनाने के लिए ईदगाह आए मुसलमानों पर फूल बरसाए. दिल्ली रोड स्थित ईदगाह पर हजारों लोग त्योहार मनाने के लिए एकत्र हुए थे.
'द टेलीग्राफ' की खबर है कि सोमवार को हरियाणा के नूंह जिले के तिरवाड़ा गांव में ईद की नमाज के बाद एक ही समुदाय के दो गुटों के बीच हिंसक झड़प हो गई, जिसमें 5 से अधिक लोग घायल हो गए. पुलिस के अनुसार, यह घटना रशीद और साजिद नामक दो व्यक्तियों के गुटों के बीच पुरानी दुश्मनी के कारण हुई. सुबह 9 बजे ईदगाह पर नमाज पढ़ने के बाद जब एक गुट के लोग घर लौट रहे थे, तभी दूसरे गुट के साथ उनकी तकरार हो गई. इसके बाद दोनों गुटों ने लाठी-डंडों से एक-दूसरे पर हमला कर दिया.
महुआ मोइत्रा को कानून या संसदीय नियमों का उल्लंघन किए बिना दंडित किया गया : आईपीयू
'द वायर' की रिपोर्ट है कि अंतर-संसदीय संघ (आईपीयू) ने तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को दिसंबर 2023 में जिस तरीके से लोकसभा से निष्कासित किया गया, उस पर चिंता व्यक्त की है. आईपीयू ने कहा कि यह निष्कासन "एक विवादास्पद रिपोर्ट के आधार पर किया गया, जिसे बिना किसी आम सहमति के अपनाया गया और जिसमें मोइत्रा को अपने मामले में खुद को व्यक्त करने का अधिकार नहीं दिया गया." संगठन ने यह भी उल्लेख किया कि यह फैसला "कानूनी रूप से आधारित नहीं था." हालांकि मोइत्रा को दिसंबर 2023 में लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया था, लेकिन उन्होंने 2024 का लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में वापसी की थी. उनका निष्कासन उन आरोपों के बाद हुआ, जिनमें कहा गया था कि उन्होंने संसद में सवाल पूछने के लिए नकद राशि स्वीकार की थी. लोकसभा की एथिक्स कमिटी ने उनके निष्कासन की सिफारिश करते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जबकि अध्यक्ष ओम बिड़ला ने मोइत्रा को निचले सदन में अपनी सफाई देने की अनुमति नहीं दी थी.
आईपीयू ने अपनी 176वीं सत्र (जेनेवा, 3 से 19 फरवरी 2025) में मानवाधिकार समिति द्वारा अपनाए गए फैसले में कहा कि "हम शिकायतकर्ता द्वारा उठाए गए आरोपों से चिंतित हैं, जिनमें यह तथ्य भी शामिल है कि मोइत्रा के निष्कासन पर मतदान एक विवादास्पद रिपोर्ट के आधार पर हुआ, जिसे बिना किसी आम सहमति के अपनाया गया और बिना उन्हें अपने मामले में बोलने का अधिकार दिया गया. इसके अलावा, इस बात के भी आरोप हैं कि उन्हें समिति के अध्यक्ष विजय सोनकर (भाजपा सांसद) द्वारा भेदभावपूर्ण और पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यवहार का सामना करना पड़ा." आईपीयू ने कहा कि वह "विशेष रूप से इस बात से चिंतित है कि मोइत्रा को किसी भी कानून या संसदीय नियमों का उल्लंघन किए बिना दंडित किया गया. संगठन ने 'नुल्ला पोएना सिने लेगे' के सार्वभौमिक और अटूट कानूनी सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को किसी ऐसे कार्य या लापरवाही के लिए अपराधी नहीं ठहराया जा सकता जो उस समय अपराध के रूप में परिभाषित नहीं था." आईपीयू की रिपोर्ट महुआ मोइत्रा के समर्थकों को नैतिक बल दे सकती है, लेकिन भारतीय संसद पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है.
चीन ने विकसित किया समुद्र की गहराई में केबल काटने वाला कटर : 'द संडे गार्डियन' के लिए अभिनंदन मिश्रा की रिपोर्ट है कि चीन के वैज्ञानिकों ने एक अत्याधुनिक इलेक्ट्रिक कटिंग डिवाइस विकसित की है, जो गहरे समुद्र में केबलों को काटने के लिए डिज़ाइन की गई है. यह उपकरण 4000 मीटर तक की गहराई में काम कर सकता है और 60 मिमी मोटी बख्तरबंद केबल को 100% सफलता दर के साथ काट सकता है. यह डिवाइस चीन के चाइना शिप साइंटिफिक रिसर्च सेंटर (CSSRC) द्वारा विकसित की गई है. शोधकर्ताओं के अनुसार, यह उपकरण ऑप्टिकल फाइबर, पावर केबल और अन्य समुद्री संचार लाइनों को काट सकता है, जो इसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है. चीन के ‘जियालोंग’, ‘डीप सी वॉरियर’ और ‘स्ट्रगलर’ जैसे मानव-संचालित पनडुब्बियों में इसे शामिल किया जा सकता है.
पाकिस्तान अफगान शरणार्थियों को निकालेगा : लगभग 900,000 अफगान शरणार्थियों को निष्कासित करने की पाकिस्तान की योजना से मानवीय संकट गहरा सकता है. ट्रम्प प्रशासन द्वारा अमेरिकी विदेशी सहायता यूएसएड निलंबित होने और पुनर्वास कार्यक्रमों के रुकने के बाद यह कदम उठाया गया है. विश्लेषकों के अनुसार इससे लाखों शरणार्थियों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है.
कनाडा में आर्य का टिकट कटा : कनाडा की लिबरल सरकार ने तीन कार्यकाल के सांसद चंद्र आर्य को आगामी संघीय चुनाव में अपने टिकट पर लड़ने से रोक दिया है. पिछले साल भारत यात्रा के दौरान मोदी से मिलने वाले आर्य का कहना है कि खालिस्तानी उग्रवाद पर चिंता व्यक्त करने और भारत से कथित संबंधों के कारण उन्हें निशाना बनाया जा रहा है.
पर्यावरण पत्रकारिता सबसे खतरनाक बीट है : 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' के आंकड़ों के अनुसार, 2014 से अब तक भारत में कम से कम 28 पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है और इनमें से लगभग आधे पर्यावरण से जुड़ी ख़बरों की रिपोर्टिंग कर रहे थे. यह चौंकाने वाला लग सकता है, लेकिन फ्रंटलाइन के लिए जिनॉय जोस पी. की रिपोर्ट तो यही कहती है.
कार्टून | मंजुल

कौमार्य परीक्षण की मांग पर अदालत का फैसला, निजी स्वतंत्रता का अधिकार अपरिवर्तनीय, इसमें छेड़छाड़ नहीं की जा सकती : पत्नी के कौमार्य परीक्षण की मांग करने वाले एक व्यक्ति की आपराधिक याचिका का जवाब देते हुए, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कहा कि कौमार्य परीक्षण की अनुमति देना मौलिक अधिकारों, प्राकृतिक न्याय के प्रमुख सिद्धांतों और एक महिला की गुप्त विनम्रता के खिलाफ होगा.
जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा ने अपने फैसले में कहा, “भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 न केवल जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, बल्कि सम्मान के साथ जीने का अधिकार भी देता है, जो महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है. किसी भी महिला को अपना कौमार्य परीक्षण कराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. यह अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. साथ ही अदालत ने यह भी कहा, ‘हमें यह ध्यान में रखना होगा कि अनुच्छेद 21 मौलिक अधिकारों का हृदय है. अनुच्छेद 21 के तहत निहित निजी स्वतंत्रता का अधिकार अपरिवर्तनीय है और किसी भी तरह से इसके साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है.”
चीन यात्रा से बांग्लादेश लौटे युनुस : बांग्लादेश के अंतरिम सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने पिछले सप्ताह राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर बीजिंग की अपनी राजकीय यात्रा पूरी की. ढाका ने कहा कि दोनों पक्षों ने तीस्ता नदी परियोजना में चीन की भागीदारी, बांग्लादेश द्वारा लड़ाकू विमानों की खरीद के साथ-साथ बांग्लादेशी बंदरगाहों और दक्षिणी चीन में कुनमिंग के बीच मल्टीमॉडल परिवहन संपर्क पर चर्चा की. ढाका ने मोंगला बंदरगाह आधुनिकीकरण परियोजना और चटगाँव में एक विशेष आर्थिक क्षेत्र में चीनी भागीदारी को भी आमंत्रित किया. देविरूपा मित्रा ने बताया कि दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के आंतरिक हितों के समर्थन में भी रुख अपनाया.
पत्रकार दिलवर रिहा, अदालत ने असम पुलिस को लगाई फटकार : पत्रकार दिलवर हुसैन मजूमदार को जमानत देते हुए गुवाहाटी की एक अदालत ने असम पुलिस को जमकर फटकार लगाई. अदालत ने कहा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का इस्तेमाल “मनमाने” ढंग से किसी की गिरफ्तारी के लिए नहीं किया जा सकता. पिछले सप्ताह मजूमदार को असम पुलिस ने दो बार गिरफ्तार किया. अदालत ने दोनों मामलों में उन्हें जमानत दे दी. पहले मामले में उन पर एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था, क्योंकि उन्होंने बैंक के सुरक्षा गार्ड के खिलाफ कथित तौर पर ‘आपत्तिजनक टिप्पणी’ की थी, जहां वे सप्ताह की शुरुआत में एक विरोध प्रदर्शन को कवर कर रहे थे. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, कामरूप (मेट्रोपॉलिटन) की अदालत ने 26 मार्च को पहले मामले में पत्रकार को जमानत दे दी थी.
आईएएस अधिकारियों ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयान पर उठाए सवाल : हरिद्वार से सांसद और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा एक दलित आईएएस अधिकारी पर दिए गए विवादास्पद बयान के एक दिन बाद, उत्तराखंड आईएएस एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव पारित करते हुए मुख्यमंत्री को ज्ञापन देने का निर्णय लिया है. गुरुवार (लोकसभा में) त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड में अवैध खनन को लेकर चिंता जताई थी. उन्होंने कहा था, "देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल में रात के अंधेरे में अवैध खनन धड़ल्ले से हो रहा है." हालांकि, खनन सचिव ने रावत के इन दावों को खारिज कर दिया. इस पर शनिवार को रावत ने कहा, "मैं खनन सचिव के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता... शेर कुत्तों का शिकार नहीं करता." इस पर उत्तराखंड आईएएस एसोसिएशन ने इस बयान को "अपमानजनक और असंवैधानिक" बताया और कहा कि यह न केवल अधिकारियों के मनोबल को प्रभावित करता है, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करता है.
क्रिकेट
आईपीएल ने दो दिनों में दिए तीन गुदड़ी के लाल
अश्वनी कुमार : मुंबई इंडियन की ओर से सोमवार एक अप्रैल को आईपीएल में डेब्यू करने वाले अश्वनी कुमार ने अपने पहले मैच की पहली गेंद पर विकेट लेकर खास लीग में जगह बनाई. इसके अलावा यह उनकी ही गेंदबाजी का कमाल था कि केकेआर जैसी टीम को अकेले अपने दम पर समेट दिया. 30 लाख रुपये के मूल्य पर मुंबई इंडियन के हुए 23 साल के अश्वनी पंजाब के क्रिकेटर हैं और उन्होंने महज तीन ओवर में 24 रन देकर 4 विकेट चटकाए. उनकी ही बदौलत मुंबई इंडियन को आईपीएल में अपनी पहली जीत नसीब हुई. इससे पहले वह अपने दोनों मैच हार चुकी थी. बाएं हाथ के इस गेंदबाज को फटाफट क्रिकेट का एसेट माना जा रहा है. इनके बाउंसर और यॉर्कर बेहद खतरनाक बताए जाते हैं. अश्विनी के फैमिली बैकग्राउंड के बारे में इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके पिता सतनाम सिंह के नाम के अलावा अब तक कोई विशेष जानकारी सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है.
अनिकेत वर्मा : इस आईपीएल में किस टीम की बल्लेबाजी सबसे मजबूत और विस्फोटक है, अगर यह किसी से भी पूछी जाए तो सनराइजर्स हैदराबाद का नाम लेने में कोई भी एक सेकंड की भी देरी नहीं करेगा. वही टीम रविवार को दिल्ली कैपिटल्स की खिलाफ संघर्ष कर रही थी. अभिषेक शर्मा, ट्रेविस हेड, ईशान किशन आउट होकर पैविलियन की शोभा बढ़ा रहे थे, तब भोपाल का एक गुमनाम लड़का अनिकेत वर्मा एक तरफ से न सिर्फ दीवार बनकर खड़ा हुआ, उसने चौके-छक्के की झड़ी लगा दी. छह छक्के और पांच चौके की बदौलत अनिकेत ने महज 41 गेंद पर 74 रन ठोंक दिये. अकेले उनकी पारी की बदौलत सनराइजर्स ने 20 ओवर में 163 रन का चुनौतीपूर्ण स्कोर खड़ा किया.
लेकिन आप जानते हैं यह अनिकेत कौन हैं. उनकी मां का निधन तब हो गया, जब वह महज तीन साल के थे. उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली. तब अनिकेत के चाचा उसे अपने साथ लेकर आ गए. चाचा की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी तो उन्होंने कर्ज लेकर अनिकेत को क्रिकेटर बनाया. इतना ही नहीं, इनके कोच ने फ्री में कोचिंग दी और रहने के लिए मुफ्त में अपना घर भी दिया था.
जीशान अंसारी : सनराइजर्स के खिलाफ दिल्ली ने एकतरफा अंदाज में जीत दर्ज की, मगर अपने असाधारण प्रदर्शन से उनकी जीत को थोड़ा संघर्षमय बनाया तो वह थे उत्तर प्रदेश जीशान अंसारी. उन्होंने अकेले सनराइजर्स के लिए मैच लड़ाने की कोशिश की और दिल्ली के गिरे तीनों विकेट अपने नाम किये. मगर लेग स्पिनर जीशान के लिए सबकुछ बना बनाया नहीं मिला. उसके पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. उनकी एक टेलर की दुकान है. मगर उसी दुकान पर काम करने वाले जीशान के चाचा ने हिम्मत दी और कोच गोपाल सिंह ने फ्री कोचिंग का ऑफर दिया, तब जाकर वह इस मुकाम पर पहुंचे हैं. जीशान टीम इंडिया के लिए अंडर-19 विश्व कप भी खेल चुके हैं.
एक्सप्लेनर
बोधगया के मंदिर प्रबंधन से हिंदुओं को निकाल बाहर करने की मांग

बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थल बोधगया में इन दिनों एक अनूठा दृश्य देखने को मिल रहा है. देशभर से हजारों बौद्ध श्रद्धालु यहां एकत्र हुए हैं, लेकिन इस बार केवल तीर्थाटन के लिए नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक मांग को लेकर. वे नाराज़ हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं. ऑल इंडिया बुद्धिस्ट फोरम (एआईबीएफ) के नेतृत्व में बौद्ध श्रद्धालु 1949 के बोधगया मंदिर अधिनियम (बीटीए) को निरस्त करने और महाबोधि मंदिर का पूर्ण नियंत्रण बौद्ध समुदाय को सौंपने की मांग कर रहे हैं. अल जजीरा में मोहम्मद सरताज़ आलम और यशपाल शर्मा ने लंबी रिपोर्ट लिखी है.
वर्तमान में, 76 वर्षों से चार हिंदू और चार बौद्ध सदस्यों वाली एक आठ-सदस्यीय समिति द्वारा मंदिर का प्रबंधन किया जा रहा है, जिसके अध्यक्ष जिला मजिस्ट्रेट हैं. छत्तीसगढ़ से आए 30 वर्षीय अभिषेक बौद्ध कहते हैं, "मैं 15 साल की उम्र से बोधगया आ रहा हूं, लेकिन इस तरह का माहौल पहले कभी नहीं देखा. सभी धर्म अपने धार्मिक स्थलों का प्रबंधन खुद करते हैं, तो बौद्ध धार्मिक स्थल की समिति में हिंदुओं की भागीदारी क्यों?" प्रदर्शनकारियों का कहना है कि हिंदू साधु मंदिर परिसर में ऐसे अनुष्ठान करते हैं, जो बौद्ध धर्म की मूल भावना के विपरीत हैं. गुजरात के वडोदरा से प्रदर्शन में शामिल होने आई 58 वर्षीया अमोगदर्शिनी कहती हैं, "जब से हम यहां आते रहे हैं, हमें बहुत दुख होता है, जब देखते हैं कि इस आंगन में अन्य धर्मों के लोगों द्वारा ऐसे अनुष्ठान किए जाते हैं, जिन्हें भगवान बुद्ध ने मना किया था."
फरवरी 27 को, 14 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे दो दर्जन से अधिक बौद्ध भिक्षुओं को राज्य पुलिस द्वारा आधी रात को मंदिर परिसर से हटा दिया गया, जिससे विरोध और तेज हो गया. हालांकि, बोधगया मठ के प्रमुख स्वामी विवेकानंद गिरि का कहना है, “यह आंदोलन ‘राजनीतिक प्रेरित’ है. हमारे मठ की शिक्षाएं भगवान बुद्ध को (हिंदू) भगवान विष्णु के नौवें अवतार के रूप में मानती हैं. और हम बौद्धों को अपना भाई मानते हैं." उन्होंने यह भी कहा, "अगर अधिनियम निरस्त हो जाता है, तो मंदिर पूरी तरह से हिंदू पक्ष का होगा, क्योंकि अधिनियम और स्वतंत्रता से पहले यह हमारा था. जब बौद्धों ने मुस्लिम शासकों के आक्रमण के बाद इसे छोड़ दिया, तब हमने मंदिर की देखभाल की."
प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे आकाश लामा का कहना है, "बौद्धों के अधिकारों का धीरे-धीरे उल्लंघन किया जा रहा है. बौद्धों का मंदिर पर अधिकार है, इसलिए इसे बौद्धों को सौंप दिया जाना चाहिए." लद्दाख से आए प्रदर्शनकारी स्टेनजिन सुद्धो ने बताया, "प्रदर्शन भक्तों के योगदान से वित्तपोषित हो रहा है. हम लंबे समय तक नहीं रुकते. जब हम वापस जाएंगे, तो और लोग यहां शामिल होंगे."
'द हिंदू' के लिए अपनी रिपोर्ट में जिया उस सलाम लिखते हैं कि नवंबर 2023 में, बौद्ध भिक्षुओं ने गया में एक रैली निकाली और केंद्र व राज्य सरकारों को ज्ञापन सौंपा. इसका कोई प्रभाव न पड़ने पर, भिक्षुओं ने पिछले साल पटना में भी रैली निकाली. 2012 में, भिक्षुओं ने इस अधिनियम को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिस पर अभी तक सुनवाई नहीं हुई है.
बोधगया मंदिर अधिनियम (बीटीए) क्या है? : बीटीए ने आठ सदस्यों की एक प्रबंधन समिति स्थापित की, जिसमें बौद्धों और हिंदुओं की संख्या बराबर थी. अधिनियम ने स्थानीय जिला मजिस्ट्रेट को समिति का पदेन अध्यक्ष बनाया. चूंकि जिला मजिस्ट्रेट बहुसंख्यक समुदाय (हिंदू) से आते थे, इससे समिति में हिंदू बहुमत हो जाता था, जिससे बौद्ध संगठन नाराज थे. तब से, विभिन्न बौद्ध संगठन बोधगया मंदिर (जिसे वे बोधगया महाविहार कहते हैं) पर स्वायत्तता पाने के लिए आवाज उठाते रहे हैं.
इतिहास क्या कहता है : प्रसिद्ध कवि एडविन अर्नॉल्ड ने अपनी प्रसिद्ध कविता 'द लाइट ऑफ एशिया' में गौतम सिद्धार्थ के बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति का वर्णन किया है. बोधगया को कभी "बौद्ध धर्म का मक्का" कहा जाता था. तीसरी शताब्दी में, मौर्य सम्राट अशोक ने बोधि वृक्ष की पूजा की और वहां मंदिर का निर्माण करवाया. अशोक के समय से लेकर पाल वंश तक, बोधि मंदिर बौद्ध उपासना स्थल और तीर्थ स्थल बना रहा. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 629 ईस्वी में हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान इसका दौरा किया था. ह्वेनसांग ने इसे बौद्ध स्थल बताया था और कहा जाता है कि उन्हें यहां अवलोकितेश्वर की एक मूर्ति के अलावा केवल बौद्ध अवशेष मिले थे. 13वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के साथ स्थिति बदल गई. इस आक्रमण ने पाल शासन का अंत कर दिया, और इस प्रकार बौद्ध धर्म का पतन शुरू हुआ. अकबर के शासनकाल में, 1590 में, एक हिंदू साधु ने बोधगया मठ की स्थापना की. इसके साथ ही मंदिर हिंदू समुदाय के हाथों में चला गया. स्वतंत्रता के बाद, बिहार विधानसभा ने 1949 में बीटीए पारित किया और मंदिर का नियंत्रण हिंदू प्रमुख से नई प्रबंधन समिति को हस्तांतरित कर दिया गया.
सरकार ने किस तरह हस्तक्षेप किया : बीटीए को बिहार सरकार ने महाबोधि मंदिर के नियंत्रण को लेकर बौद्ध और हिंदू प्रमुखों के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद को हल करने के लिए पारित किया था. बौद्ध पक्ष इस प्रावधान से नाराज था कि पदेन अध्यक्ष (जिला मजिस्ट्रेट) केवल तभी नेतृत्व संभाल सकता था, जब वह हिंदू समुदाय से हो. 2013 में राज्य सरकार ने नियम में संशोधन किया और एक प्रावधान जोड़ा कि पदेन अध्यक्ष किसी भी धर्म का हो सकता है. 1990 के दशक की शुरुआत में, तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने बीटीए को बदलने के लिए बोधगया महाविहार विधेयक तैयार किया था. इससे मंदिर का प्रबंधन बौद्ध समुदाय को सौंपा जाना था. विधेयक ने मंदिर के पास मूर्ति विसर्जन और मंदिर के अंदर हिंदू विवाह पर प्रतिबंध लगाया था. हालांकि, यह विधेयक ठंडे बस्ते में चला गया.
48 घंटों में गाजा में 80 लोगों की मौत
गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार पिछले 48 घंटों में इजरायली हमलों में कम से कम 80 लोग मारे गए हैं. इसके साथ ही 18 मार्च को युद्धविराम तोड़ने के बाद से अब तक 1,001 लोगों की जान जा चुकी है. इधर, इजरायली सेना ने दक्षिणी गाजा के राफाह शहर के सभी निवासियों को खाली करने का आदेश दिया है. उन्हें खान यूनिस के पास अल-मवासी इलाके में जाने को कहा गया है, जिसे एक "सुरक्षित क्षेत्र" बताया जा रहा है. हालांकि, यह इलाका भी पूरे युद्ध के दौरान बमबारी का शिकार होता रहा है और वहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के ओक्युपाइड पैलेस्टिनियन टेरिटोरी के प्रमुख के तौर पर कार्यरत जोनाथन व्हिटल ने एक्स पर एक थ्रेड पोस्ट किया है, जिसमें उन्होंने इजरायली आर्मी पर यूएन के वाहनों को निशाना बनाने का आरोप भी लगाया और राफाह से जान बचाकर भागते निहत्थे लोगों को निशाना बनाते इजरायली सेना का वीडियो भी पोस्ट किया है. इजरायली स्वास्थ्य सेवाओं को लगातार निशाना बना रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि इजरायली बलों द्वारा पंद्रह फिलिस्तीनी चिकित्साकर्मियों और बचावकर्मियों, जिनमें कम से कम एक संयुक्त राष्ट्र कर्मचारी भी शामिल था, को एक-एक करके मार दिया गया और आठ दिन पहले दक्षिणी गाजा में सामूहिक कब्र में दफना दिया गया.
विश्लेषण
आकार पटेल : भारत को धार्मिक आज़ादी पर लगते अमेरिकी लांछनों का ठीक से जवाब देना चाहिए
हर साल, संयुक्त राज्य अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग उन देशों के नाम बताता है, जिनकी सरकारें धार्मिक स्वतंत्रता, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों की, "विशेष रूप से गंभीर" उल्लंघनों में शामिल होती हैं या उन्हें सहन करती हैं. यह ऐसे देशों को 'विशेष चिंता वाले देश' कहता है और अमेरिकी विदेश विभाग से इन देशों में व्यक्तियों और संस्थानों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहता है.
इस वर्ष, ये हैं अफ़गानिस्तान, बर्मा, चीन, क्यूबा, इरिट्रिया, भारत, ईरान, निकारागुआ, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और वियतनाम.
भारत पहली बार 2020 में सूची में आया था और तब से हर साल इस पर बना हुआ है.
2020 की रिपोर्ट में, यूएससीआईआरएफ ने कहा कि '2019 में भारत में तेजी से गिरावट आई. राष्ट्रीय सरकार ने भारत भर में, विशेष रूप से मुसलमानों के लिए, धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने वाली राष्ट्रीय स्तर की नीतियों को लागू करने के लिए अपने मजबूत संसदीय बहुमत का उपयोग किया'.
इसमें कहा गया है कि मोदी सरकार का भारत के मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह नागरिकता कानूनों, गोहत्या, कश्मीर और धर्मांतरण पर भारत की कार्रवाइयों के माध्यम से दिख रहा था. रिपोर्ट में अयोध्या फैसले और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आचरण का उल्लेख किया गया है.
इसने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को सिफारिश की कि वह भारत को 'अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा परिभाषित व्यवस्थित, चल रहे और घोर धार्मिक स्वतंत्रता उल्लंघनों में शामिल होने और उन्हें सहन करने के लिए' विशेष चिंता वाले देश के रूप में नामित करें. इसने भारत पर प्रतिबंधों की मांग की.
हमारे विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया इस प्रकार थी : 'हम यूएससीआईआरएफ की वार्षिक रिपोर्ट में भारत पर की गई टिप्पणियों को अस्वीकार करते हैं. भारत के खिलाफ इसकी पक्षपातपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण टिप्पणियाँ नई नहीं हैं. लेकिन इस अवसर पर, इसकी गलत बयानी नए स्तर पर पहुँच गई है. यह अपने प्रयास में अपने स्वयं के आयुक्तों को साथ नहीं ले पाया है. हम इसे विशेष चिंता का संगठन मानते हैं और इसके अनुसार व्यवहार करेंगे.'
भारत ने एक भी आरोप का जवाब नहीं दिया और न ही किसी तथ्य से इनकार किया.
'अपने स्वयं के आयुक्तों को साथ ले जाने' का संदर्भ दो आयुक्तों, गैरी बाउर और तेंज़िन दोरजी की असहमतिपूर्ण टिप्पणियों के बारे में है, जो इस बात पर तो राजी थी कि भारत में हालात खराब हैं, पर उसे ‘कंट्री ऑफ पर्टीकुलर इंटरेस्ट’ का दर्जा नहीं देना चाहते थे.
अगले वर्ष, 2021 में, रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में, 'गलत सूचना और घृणा से भरी बयानबाजी (हेट स्पीच) अक्सर धार्मिक अल्पसंख्यकों को लक्षित करती है. इसमें सरकारी अधिकारी भी शामिल है. कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू हुआ परिचित पैटर्न जारी हैं'.
इस बार कोई असहमति नहीं थी. और यहां से आगे, राष्ट्रपति बायडेन के अधीन प्रत्येक चार वर्षों में, कोई भी असहमत नहीं रहा है. भारत सरकार ने 2021 की रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. एक अन्य पैटर्न में जो तब से जारी है, कभी-कभी भारत ने पलटवार किया है और अन्य समय में बस चुप रहा है.
25 मार्च को जारी 2025 की रिपोर्ट में, यूएससीआईआरएफ ने कहा (अन्य बातों के अलावा) कि ट्रम्प प्रशासन को 'धार्मिक स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघनों में उनकी संलिप्तता के लिए विकास यादव और रॉ जैसी व्यक्तियों और संस्थाओं पर लक्षित प्रतिबंध लगाने चाहिए, उनकी संपत्ति को फ्रीज करके और/या संयुक्त राज्य अमेरिका में उनके प्रवेश पर रोक लगाकर'.
इसके कुछ ही घंटों के भीतर, हमारे विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया. इसमें रिपोर्ट को 'पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक रूप से प्रेरित' कहा गया और कहा कि यह 'अलग-अलग घटनाओं को गलत तरीके से पेश करने और भारत के जीवंत बहुसांस्कृतिक समाज पर आक्षेप लगाने का प्रयास कर रहा था, जो धार्मिक स्वतंत्रता के लिए वास्तविक चिंता के बजाय एक जानबूझकर एजेंडे को दर्शाता है'.
विदेश मंत्रालय ने दोहराया कि 'असल में, यूएससीआईआरएफ को ही ऐसे संगठन (एनटीटी ऑफ कंसर्न) के रूप में नामित किया जाना चाहिए, जिसको लेकर चिंता है'.
वैसे अच्छा होता कि भारत सरकार औपचारिक रूप से यूएससीआईआरएफ को चिंता पैदा करने वाले संगठन (एनटीटी ऑफ कंसर्न) के तौर पर नामित करे और उस पर प्रतिबंध लगाए, क्योंकि यह भी सच है कि यूएससीआईआरएफ पूर्वाग्रह से मुक्त नहीं है.
यूएससीआईआरएफ खुद को एक 'द्विदलीय' संगठन के रूप में संदर्भित करता है, जिसका अर्थ है कि इसमें रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों शामिल हैं. और इसका काम अमेरिकी विदेश विभाग को सलाह देना है. लेकिन यह अन्य तरीकों से पक्षपातपूर्ण है. यूएससीआईआरएफ की रिपोर्टों में गाजा में नरसंहार और फिलिस्तीनियों - जिनमें ईसाई भी शामिल हैं - के खिलाफ इजरायल द्वारा किए गए रंगभेद का कोई उल्लेख नहीं है, क्योंकि यह अमेरिकी सरकार के लिए असुविधाजनक है.
भारत के लिए विशिष्ट आरोपों का जवाब देना बेहतर होता. क्योंकि हमारी तरफ की दुनिया में कह कौन रहा है उतनी ही अहमियत रखता है, शायद इस बात से ज्यादा भी कि कह क्या रहा है.
हमें हर बिंदु विशेष पर जवाब देना चाहिए था. ख़ास तौर पर इसलिए कि जो लोग ऐसा कह रहे हैं, हमारे ख़िलाफ किसी पक्षपात या राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित हैं.
भारत पर 2021 की यूएससीआईआरएफ रिपोर्ट इस प्रकार आयुक्त जॉनी मूर के व्यक्तिगत विचारों के साथ समाप्त हुई: ':
'मुझे भारत से प्यार है. मैंने वाराणसी में गंगा में सुबह-सुबह तैरकर, पुरानी दिल्ली की हर गली में पैदल चलकर, आगरा में वास्तुकला को चमत्कृत होकर देखा है, धर्मशाला में दलाई लामा के मंदिर के बगल में चाय पी है, अजमेर में दरगाह की परिक्रमा की है, और स्वर्ण मंदिर को आश्चर्य से देखा है. रास्ते भर, मैं ईसाई भाइयों और बहनों से मिला हूं जो निस्वार्थ भाव से गरीबों की सेवा करते हैं, अक्सर मुश्किल हालातों में.
'दुनिया के सभी देशों में, कम से कम भारत को ‘कंट्री ऑफ पर्टीकुलर कंसर्न’’ नहीं होना चाहिए. यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यह एक मौलिक संविधान द्वारा शासित है. यह विविधता का प्रतीक है और इसका धार्मिक जीवन इसका सबसे बड़ा ऐतिहासिक आशीर्वाद रहा है.
'फिर भी, भारत एक चौराहे पर खड़ा प्रतीत होता है. इसका लोकतंत्र - अब भी युवा और स्वतंत्रतापूर्वक चलने वाला - अपने लिए मतपेटी के माध्यम से कठिन चुनौतियाँ पैदा कर रहा है.
'साफ तौर पर इसका जवाब यही है कि भारत की संस्थाएँ अपने मूल्यों की रक्षा के लिए अपने समृद्ध इतिहास से प्रेरणा लें. भारत को हमेशा राजनीतिक और अंतर-सामुदायिक संघर्षों को धार्मिक तनावों से बढ़ने देने का विरोध करना चाहिए.’
‘अगर वह सामाजिक सद्भाव को बचा कर रखती है और हर किसी के अधिकार की रक्षा करती है, भारत की सरकार और जनता कुछ खोएगी नहीं और सब कुछ हासिल ही करेगी.’
‘भारत सक्षम है. भारत को यही करना ही चाहिए.’
(लेखक भारत में मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के अध्यक्ष हैं.)
चलते-चलते
सांस्कृतिक विद्रोह में बदल रही है कॉमेडी
'मिड डे' के लिए एजाज अशरफ ने अपने लेख में लिखा है कि कुणाल कामरा का 'नया भारत' सिर्फ एक कॉमेडी शो नहीं, बल्कि सत्ता के खिलाफ एक सांस्कृतिक विद्रोह है. यह उन लोगों की आवाज़ है, जो मीडिया की चुप्पी और सरकार के दमन के बीच हंसकर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं. जैसा कि मार्क ट्वेन ने कहा था - "हंसी के आगे कोई नहीं टिक पाता." और यही वजह है कि सत्ता हंसी से डरती है. 23 मार्च को जब भारतीय, कॉमेडियन कुणाल कामरा का नया वीडियो 'नया भारत' देखकर हंस रहे थे, तब वाशिंगटन डी.सी. के जॉन एफ. केनेडी सेंटर में अमेरिकी हास्य के मार्क ट्वेन पुरस्कार समारोह में कॉनन ओ'ब्रायन को सम्मानित किया जा रहा था. अपने स्वीकृति भाषण में ओ'ब्रायन ने कहा, "मार्क ट्वेन सत्ता के गुंडों से नफरत करते थे. वे ऊपर वालों को निशाना बनाते थे, नीचे वालों को नहीं. वे कमजोरों के प्रति गहरी सहानुभूति रखते थे." उनका डोनाल्ड ट्रम्प की ओर संकेत स्पष्ट था, जिस पर दर्शकों ने खिलखिलाकर हंसते हुए तालियां बजाईं. भारत में ऐसी हिम्मत भरे हास्य के लिए कोई पुरस्कार नहीं है, जबकि यहां के राजनीतिक व्यंग्यकारों को अक्सर भीड़, ट्रोल सेनाएं और संवेदनशील सरकारें साथ मिलकर चुप कराने की कोशिश करती हैं. यहां तक कि जेल में डाल देती हैं. मुनव्वर फारूकी और नलिन यादव जैसे मामले इसके उदाहरण हैं. कई कॉमेडियन्स ने समझदारी से, अपने व्यंग्य को कम कर दिया है या सत्ताधारियों का नाम लेने से बचते हैं. लेकिन बढ़ती असहिष्णुता के बीच, कुणाल कामरा ने 'नया भारत' के जरिए एक अलग तरह का साहस दिखाया है. उन्होंने नरेंद्र मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ, एकनाथ शिंदे, अंबानी, महिंद्रा और मूर्ति जैसे देश के बड़े नामों को अपने तीखे हास्य का निशाना बनाया. यह वीडियो कई लोगों को पसंद आया, तो कुछ को इतना नागवार गुजरा कि मुंबई के 'द हैबिटैट' (जहां यह शो रिकॉर्ड किया गया था) को नुकसान पहुंचाया गया. कामरा के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज किया गया है.
सिगमंड फ्रायड का मानना था कि चुटकुले कमजोरों का सत्ता के खिलाफ विद्रोह होते हैं. ये उत्पीड़ितों के लिए एक सुरक्षा वाल्व हैं, जो अपनी वास्तविकता को बदल नहीं सकते, लेकिन हंसकर सत्ता की मूर्खता उजागर कर देते हैं. कुणाल कामरा का हास्य भी ऐसा ही है - एक सामूहिक विद्रोह, जहां दर्शक उनके साथ हंसकर एक निडर समुदाय बनाते हैं. 'नया भारत' को मिले जबरदस्त समर्थन से साफ है कि लोग भाजपा और उसके सहयोगियों के खिलाफ इस तरह के व्यंग्य का स्वागत कर रहे हैं. यह एक तरफ भारत के विचारधारात्मक ध्रुवीकरण को दिखाता है, तो दूसरी तरफ मीडिया की चुप्पी पर निराशा भी.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. ‘हरकारा’ सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.
महत्वपूर्ण कैप्सूल है। खबरों का चयन बहुत अच्छा है। - अरुण आदित्य