01/06/2025: भारतीय लड़ाकू जहाज गिरे थे | रामभद्राचार्य की बहुतेरी अभद्रताएं | लड़ाई आतंकवाद से है या प्यास से | ट्रम्प ने नौंवी बार | अरिजीत इतिहास बनाएगा लंदन में | पाकिस्तान को सबक या जनता को कहानी
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
राकेश कायस्थ : युद्धोन्माद, वोटबैंक और गप्पबाज़ी से पाकिस्तान को सबक या जनता को कहानी?
एमआईटी में फिलीस्तीन की बात करने वाली मेघा वेमुरी पर एक्शन, ट्रोलिंग भी
पाक ऑपरेटिव को सिम कार्ड सप्लाई करने के आरोप में गिरफ्तार
इस्लाम का अपमान करने वाले पोस्ट के आरोप में लॉ की छात्रा गिरफ्तार
मुख़्तार अंसारी के बेटे अब्बास को 2 साल की सज़ा
पूर्वोत्तर : बारिश, बाढ़ और जलभराव से 27 लोगों की मौत, एक लाख लोग शिविरों में
दीया कुमारी का जयपुर घराना हल्दीघाटी में अकबर के साथ था, अब वे राणा प्रताप को विजेता घोषित कर इतिहास बदल रही हैं
बीजेपी नेता के बेटे के 130 अश्लील वीडियो वायरल, पुत्रवधू ने लगाए संगीन आरोप
चला गया बाघों का तरफदार वाल्मिक थापर
ऑपरेशन सिंदूर
भारत ने लड़ाकू जेट खोए थे
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) अनिल चौहान ने शनिवार को इस बात की पुष्टि कि 8 मई को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान एयर फोर्स के साथ संघर्ष में भारत ने अपने लड़ाकू विमान खो दिए थे.
सिंगापुर में ब्लूमबर्ग टीवी से बात करते हुए चौहान ने यह नहीं बताया कि गिराए गए विमान राफेल, मिग या सुखोई थे या नहीं; और उनकी वास्तविक संख्या क्या थी, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत ने वाकई कोई लड़ाकू विमान खोया है, तो उन्होंने "हां" में जवाब दिया. सीडीएस ने कहा, “महत्वपूर्ण यह नहीं कि विमान गिराए गए, बल्कि यह है कि वे क्यों गिराए गए.” जब रिपोर्टर ने फिर से पूछा कि क्या कम से कम एक जेट गिरा है, तो चौहान ने कहा, “हां.”
उन्होंने कहा, “अच्छी बात यह है कि हम अपनी सामरिक चूक को समझ पाए, उसका समाधान निकाला, उसे ठीक किया और फिर दो दिन बाद उसे फिर से लागू किया और अपने सभी जेट्स को एक बार फिर लंबी दूरी पर टारगेट्स को निशाना बनाते हुए उड़ाया.”
जब उनसे पूछा गया कि क्या पाकिस्तान का छह भारतीय जेट गिराने का दावा सही है, तो चौहान ने कहा, "बिल्कुल गलत... और यह वह जानकारी नहीं है, जिसे मैं महत्वपूर्ण मानता हूं. महत्वपूर्ण यह है... वे क्यों गिरे और उसके बाद हमने क्या किया, यह हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है.”
चौहान ने यह भी कहा कि चीनी एंटी-एयरक्राफ्ट “एवियोनिक्स” भारतीय पौराणिक महाकाव्यों में वर्णित कोई ब्रह्मास्त्र नहीं है– जैसा “ऑपरेशन सिंदूर” के तुरंत बाद ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ सहित कई विदेशी प्रकाशनों ने इन्हें घोषित कर दिया था. सच बात यह है कि भारत ने दो दिनों में चीनी सिस्टम से उत्पन्न खतरे को निष्क्रिय करने का उपाय खोज लिया था. यह व्यापक रूप से अटकलें लगाई गई थीं कि पाकिस्तान ने जो चीनी एवियोनिक्स "किल चेन" तैनात की थी, उसने ऑपरेशन सिंदूर के पहले ही दिन भारतीय जेट विमानों को मार गिराया. सीडीएस चौहान ने कहा कि संघर्ष के दौरान बीजिंग की ओर से किसी भी वास्तविक मदद का कोई संकेत नहीं मिला.
"जब यह सब 22 अप्रैल से शुरू हुआ, हमने अपनी उत्तरी सीमाओं की ऑपरेशनल या टैक्टिकल गहराई में कोई असामान्य गतिविधि नहीं देखी, चीजें सामान्य थीं. जब उनसे पूछा गया कि क्या चीन ने संघर्ष के दौरान पाकिस्तान को कोई सैटेलाइट इमेजरी या अन्य रियल-टाइम इंटेलिजेंस दी, तो चौहान ने कहा कि व्यावसायिक रूप से ऐसी इमेजरी उपलब्ध है और चीन समेत अन्य स्रोतों से भी खरीदी जा सकती है.
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भले ही शत्रुता बंद हो गई है, भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि "अगर पाकिस्तान से कोई और आतंकी हमला हुआ, तो हम बिल्कुल सटीक और निर्णायक जवाब देंगे."
इस बीच कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इंटरव्यू की क्लिप पोस्ट करते हुए पूछा कि क्या नरेंद्र मोदी सरकार इन अभियानों का ऑडिट करने के लिए कोई समीक्षा समिति बनाएगी. “29 जुलाई 1999 को, वाजपेयी सरकार ने भारत के रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ के. सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में कारगिल समीक्षा समिति का गठन किया, जिनके पुत्र अब हमारे विदेश मंत्री हैं. यह समिति कारगिल युद्ध समाप्त होने के मात्र तीन दिन बाद बनाई गई थी. इस समिति ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट पांच महीने बाद प्रस्तुत की. ‘फ्रॉम सरप्राइज़ टू रेकनिंग’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट आवश्यक संपादन के बाद 23 फरवरी 2000 को संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की गई थी. अब क्या चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ द्वारा सिंगापुर में किए गए खुलासे के आलोक में मोदी सरकार भी ऐसा ही कोई कदम उठाएगी?,” यह सवाल जयराम रमेश ने अपने “एक्स” हैंडल पर पोस्ट किया.
कल ही वायु सेना प्रमुख ने जंगी जहाजों की कमी के बारे में बयान दिया था.
विश्लेषण
निधीश त्यागी : गिरिधर मिश्र उर्फ रामभद्राचार्य ने बताया नहीं उन चार लड़कों का पता?
रामभद्राचार्य को कुछ लोग जगदगुरू कहते हैं. शायद वे खुद को भी. कथावाचक हैं. और उन्हें गुलज़ार जैसे औसत फिल्मी शायर के साथ साहित्य का ज्ञानपीठ भी मिला है. जिससे रामभद्राचार्य का जो भी हुआ है, ज्ञानपीठ की इज़्जत जरूर घटी. उन्हें नफरत की जहर बुझी ऋतंभरा की ही तरह पद्म अवॉर्ड भी मिले हैं. और ये इस निज़ाम की खासियत है कि जो लोग समाज को बांटने, अतीत की तरफ ले जाने, हिंसा का विकल्प चुनने, कानून को तोड़ने, संविधान को चुनौती देने का काम करते हैं, उन्हें सम्मानित किया जाता है. वे हमारी उत्कृष्ठता के नये मापदंड हैं.
रामभद्राचार्य जो उटपटांग बातें कह रहे हैं, पहले वह पढ़िये. ये मुझे ग्रोक एआई पर मिला लिंक्स के साथ.
"बाबासाहेब अंबेडकर को संस्कृत का ज्ञान नहीं था, इसलिए उन्होंने मनुस्मृति जलाई... मायावती ने मनुस्मृति को गाली दी, जबकि वह एक अक्षर भी नहीं जानतीं," एक गोष्ठी में उन्होंने कहा.
“मरे मुलायम कांशीराम, प्रेम से बोलो जय श्रीराम.” अप्रैल 2023 में आगरा में एक रामकथा के दौरान यह टिप्पणी एसपी और बीएसपी के समर्थकों के नारे "मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम" की प्रतिक्रिया में थी. सपा-बसपा समर्थकों ने एफआईआर दर्ज करने की मांग की. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर नोटिस जारी किया, लेकिन बाद में आरोपों को "निराधार" बताते हुए खारिज कर दिया.
"जो लोग 'जय श्री राम' नहीं बोलते, वे एक खास जाति (संभवतः दलित) के हैं." जनवरी 2024 में उनका दावा था. इसके अलावा, बिहार में एक जाति विशेष पर टिप्पणी की, जिसे जातिवादी बताया गया.
"देश में कोई नीच या शूद्र नहीं है. आरक्षण तत्काल खत्म किया जाना चाहिए... नेता ही जातिवाद फैला रहे हैं" आगरा में हुए कार्यक्रम में उन्होंने कहा.
"मैं भागवत जी से सहमत नहीं हूँ... वे हमारे अनुशासक नहीं, बल्कि हम उनके अनुशासक हैं, "आरएसएस प्रमुख के "नए मंदिर-मस्जिद विवाद न उठाएं" के बयान पर उन्होंने कहा. यह टिप्पणी हिंदू संगठनों में मतभेद का संकेत देती है और धर्मनिरपेक्षता बनाम हिंदू राष्ट्रवाद की बहस को उकसाती है .
उन्होंने जैनियों को "विधर्मी" कहा और आरोप लगाया कि वे भगवान राम की छवि को खराब करने वाली कहानी का समर्थन करते हैं. उनका दावा था कि जैन, कम्युनिस्ट, मुस्लिम और बौद्धों ने मिलकर रामायण के उत्तरकांड में एक झूठी कहानी को बढ़ावा दिया है.
कुंभ मेले के संदर्भ में उन्होंने कहा था कि "इस बार कुंभ में हम कुछ ऐसा करेंगे जो पाकिस्तान का नाम विश्व मानचित्र से मिटा देगा."
"जिन हिंदुओं ने मोदी को वोट नहीं दिया वे मंथरा के 'वंशज' (संतान) हैं," जो रामायण के एक ऐसे पात्र को संदर्भित करता है, जो धोखे के लिए जाना जाता है. यह 2024 के भारतीय आम चुनावों के संदर्भ में कहा गया था, भाजपा के खिलाफ वोट देने को हिंदू मूल्यों के साथ विश्वासघात के बराबर बताया गया.
रामभद्राचार्य ने दावा किया कि गौतम बुद्ध ने "राष्ट्र को नपुंसक बना दिया" और कहा कि जो लोग राम का नाम नहीं लेते, वे "शूद्र" हैं.
जयपुर में एक राम कथा के दौरान, रामभद्राचार्य ने कथित तौर पर कहा, "मैंने उच्च अधिकारियों से कहा कि राजस्थान में ब्राह्मण मुख्यमंत्री होना चाहिए," और जाति-आधारित आरक्षण समाप्त करने की वकालत की.
बकरीद में बकरे क्यों काट रहे हैं, कुरबानी देनी है अपना सिर काट लें.
अब ग्रोक से बाहर निकलते हैं. ये वह जगदगुरु हैं, जिन्हें इक्कीसवीं सदी में कम से कम दुनिया नहीं तो कम से कम हिंदू समाज के लिए रौशनी बिखेरने वाला समझा जा रहा है. वे कह रहे हैं मोदी मेरे बहुत करीब हैं. फिर वे जो बातें कर रहे हैं, नफरत, हिंसा, वैमनस्यता, जातिवाद का वीभत्स उसका मुख्य रस है. भेदभाव बढ़ाने वाली बातें. और अजीब-सी विकृत काल्पनिकताएं लिए. वे सवर्ण हिंदुओं के पक्षधर दिखते हैं और बाकी सब जो भारतीय हैं, उनके लिए मायने नहीं रखते. उनकी बातें न संविधान के अनुरूप हैं, न भारत के आइडिया के, न वे वैश्विक समीकरणों और पेचीदगियों में फंसे हुए भारत और दुनिया के लिए कोई प्रासंगिक बात कह रहे हैं, न भविष्य की तरफ देखते हुए समावेशी समाज के तरक्कीपसंद, तर्कशील, मानवीय विमर्श की तरफ ले जा रहे हैं. वे नफरती, हिंसक, अंसतुष्ट, क्रुद्ध और हीनभावनाओं से ग्रस्त प्रवृत्तियों के प्रचारक हैं और नकारात्मक भावनाएं भड़काकर सुबह शाम दोपहर तर्कशील मानस पर बुलडोजर चलाने में लगे हैं. वे इंस्टा इंफ्लुएंसर और कांवड़ियों के डीजे की तरह हैं, जिन्हें आप शायद इसलिए माफ़ कर सकते हैं कि वे अभी अनपढ़ हैं. अभी जिंदगी उन्हें देखनी है. पर रामभद्राचार्य अलग ही हस्ती हैं. मीडिया उनके बयानों को ब्रह्मसत्य की तरह परोसती है, राजनेता उनके चरणों पर बिछते हैं और नाखुश लोगों की भीड़ उन्हें सुनने जाती है. तीनों खुद को धन्य समझते हैं. गदगद होकर लौटते हैं. वे अकेले नहीं हैं.
रामभद्राचार्य एक यूनिवर्सिटी चलाते हैं. वहां पढ़ने और पढ़ाने वालों के बारे में चिंतित होना चाहिए. कि भारत का संविधान, नागरिक अधिकार, देश की परिकल्पना और लोकतंत्र को किस तरह से अभ्यास में लाते हैं. अपने चांसलर यानी रामभद्राचार्य के मुताबिक या यूजीसी और संविधान के. अगर इस देश की राजनीति, कानून, अदालतें कायदे से चल रहे होते तो इस आदमी को कई अपराधों का न सिर्फ दोषी ठहरा दिया जाता होता, जो ये जहां कैमरा देखा बोल पड़ते हैं, या फिर किसी अस्पताल में इलाज करवाया जा रहा होता.
अपने बयानों से न तो वह धर्मगुरु लगते हैं, न आध्यात्मिक. वे गोड़सेवादी प्रपंच के प्रचारक लगते हैं. वे धर्म की आड़ में राजनीति कर रहे हैं. उनके जरिये कोई अपना उल्लू सीधा कर रहा है. वह कौन है? कौन भारत को - मुझको और आपको ‘प्रोजेक्ट हिंदू पाकिस्तान’ का हिस्सा बनाने में लगा है.
वे इस समय, इस सरकार, इस तंत्र, बहुसंख्य समाज के हीरो हैं. क्यों? इसके पीछे इनका खुद का प्रताप है, या फिर इन्हें समाज की कुंद होती मानसिकता को और ठस करने के लिए बढ़ाया जा रहा है. ज्ञानपीठ पुरस्कार देना. सरकारों के मुख्यमंत्री किसको बनाना, ये बताना. अंबेडकर या जातियों को लेकर, मुस्लिमों और दूसरे अल्पसंख्यकों को लेकर अल्ल-बल्ल बकते रहना. रामभद्राचार्य की विषाक्तता को फैलाया क्यों जा रहा है? वे मुख्यधारा में कैसे आ गये? आये या लाया गया? उस नीम हकीम रामदेव की तरह.
और अब एक दिन भारत पाकिस्तान संघर्ष के बाद भारतीय सेना के प्रमुख को गदा सौंपते हुए पीओके का तोहफा मांगने की तस्वीरें सामने आईं. रामभद्राचार्य किस की नुमाइंदगी करते हैं? भारतीय सेना का प्रमुख आधिकारिक तौर पर अपनी पूरी वर्दी में उनके साथ क्यों है? क्यों दोनों की प्रतिबद्धताएं एक हैं. साफ तौर पर नहीं, जब आप अलग-अलग मूल्यों और स्थापनाओं के लिए खड़े हैं. रामभद्राचार्य का भारत सबका भारत नहीं है. सेना और उसके प्रमुख के बारे में यह नहीं कहा जा सकता. वे पूरे भारत के हैं और वे अपने पद पर सारे भारतीयों के लिए हैं. निजी तौर पर प्राइवेट मीटिंग एक बात है, पर मिलना, फोटो खिंचवाना, उसे अखबारों में छपना और बेहूदी बातें कहने वाले व्यक्ति को इस तरह से पेश करना जो देश के आर्मी चीफ को पेट्रनाइज कर रहा है, इस देश, उसकी फौज, उसकी वर्दी सबके साथ इतनी क्रूरता के साथ किया गया मजाक है, जिस पर हंसना या उसे टाल देना बहुत मुश्किल है. यह मानना मुश्किल है कि रामभद्राचार्य और हमारे सेना प्रमुख को इसका अंदाजा न हो. पर वे क्या अपनी मर्जी से ये कर रहे हैं. एक तरफ ये हो रहा है दूसरी तरफ कर्नल सोफिया कुरैशी को भारत सेक्युलर है, बताने का चोंचला किया जा रहा था. तीसरी तरफ कुरैशी के परिवार को कलक्टर से फोन करवा कर प्रधानमंत्री पर फूल बरसवाये जा रहे थे. चौथी तरफ घर-घर सिंदूर पंहुचाने की तिकड़म के बैकफायर होने और ममता बनर्जी के क्लास लगाए जाने पर 48 घंटे बाद फेक न्यूज बताया जा रहा था. और अब इकोनॉमिक टाइम्स की खबर है कि कर्नल सोफिया कुरैशी को भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रचार की पोस्टर गर्ल की तरह इस्तेमाल करेंगे.
पर जब देश का प्रधानमंत्री मुख्य न्यायाधीश के घर पंहुचकर गणेश पूजा की घंटी टुनटुना सकता है, तो इसमें ही क्या आश्चर्य का विषय हो सकता है. और देखने वाली बात यह है. कि संवैधानिक लोकतंत्र के पदों, उनके दायित्वों, उनके कार्यालयों की जो गरिमा, परंपरा, लक्ष्मणरेखाएं अब तक रही हैं, वे लकीरें अब धुंधली की जा रही हैं. हम इस उभरते हुए पैटर्न को देख सकते हैं. जब क्रिकेट में फौज़ को घुसेड़ा जा सकता है, फौज में मीडिया को और मीडिया में झूठ को. इन सब चक्करों में भारत जिन स्थापनाओं और संस्थानों में प्रतिष्ठित है, वह कमजोर हो रहा है.
पर ये भी हो सकता है उन चार लड़कों का जो पहलगाम हथियार लेकर आये, हमारी महिला सैलानियों का सिंदूर पोंछा, और फिर आराम से चले भी गये और एक माह से ऊपर होने के बाद भी भारत सरकार जिनका पता नहीं लगा सकी, उनके बारे में पीओके तोहफे में मांगते हुए उस दृष्टि से लाचार जगदगुरु ने सही पता ठिकाना बता दिया होगा. इतना ही तंत्र, मंत्र, यंत्र, ज्योतिष जान रहे होते तो 26 लोग ही क्यों मरते. और अभी ही क्यों. पहले भी. क्या आप अपने बच्चों से रामभद्राचार्य की इन बातों से अवगत करवाना पसंद करेंगे और कहेंगे कि जो ये कह रहे हैं, उस पर बिना सवाल या बहस किये अमल करो. अपने लिए नहीं तो देश के भविष्य के लिए.
विश्लेषण
श्रवण गर्ग : हमारी लड़ाई आतंकवाद से है या पाकिस्तानियों की प्यास से
देश के 140 करोड़ नागरिकों की तरफ़ से सरकार को पूरा समर्थन है कि पहलगाम नरसंहार का बदला लेने के लिए पाकिस्तान में पनप रहे आतंकवादियों के तमाम ढाँचों को पूरी तरह नेस्तनाबूत कर दिया जाना चाहिए. ठीक उसी तरह जैसे अमेरिका ने ‘नौ-ग्यारह’ के आतंकी हमलों के बाद ‘अल-क़ायदा’ का अफ़ग़ानिस्तान से भी सफ़ाया कर दिया था और उसके सरग़ना ओसामा-बिन-लादेन को उसके पाकिस्तान स्थित ठिकाने में घुस कर मार गिराया था.बराक ओबामा प्रशासन द्वारा इस्लामाबाद की हुकूमत को तब किसी भी स्तर पर पूर्व जानकारी भी नहीं दी गई थी और परवेज़ मुशर्रफ ने इसे लेकर नाराज़गी भी जताई थी.
देश की जनता इस मामले में भी पूरी तरह से सरकार के साथ है कि पाकिस्तान की सेना अगर आतंकवादियों के समर्थन में खड़ी होती है तो उसके ख़िलाफ़ भी हमारी सेनाओं द्वारा निर्णायक कार्रवाई की जानी चाहिए. इसी तरह, इस्लामाबाद की हुकूमत भी अगर इस मामले में आतंकवादियों और सेना के पक्ष में खड़ी होती है तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी नक़ाब भी उतारी जानी चाहिए.
यहाँ बहस सिर्फ़ ऐसे संवेदनशील मुद्दे को लेकर है, जिस पर अगर जनता की राय मांगी जाए तो ज़्यादा संभावना इसी बात की है कि वह सरकार के निर्णय के पक्ष में खड़ी नहीं होगी. मामला पाकिस्तान के उन नागरिकों के हितों से जुड़ा है, जिनके हमारे यहाँ बस रहे करोड़ों लोगों के साथ खून के रिश्ते रहे हैं. आत्माओं के तार आज भी आपस में जुड़े हुए हैं ,सिर्फ़ शरीर अलग कर दिये गए हैं.
मुद्दा इस सवाल से जुड़ा हुआ है कि क्या आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई में आम नागरिकों को पानी के लिए तरसाया जाना चाहिए जैसे दावे किए जा रहे हैं ? क्या इस ‘उपलब्धि’ का गर्व के साथ मीडिया के चैनलों और अख़बारों में बखान किया जाना चाहिए कि हमने जबसे सिंधु जल बटवारे की संधि के अमल पर रोक लगाई है : ‘वहाँ के नागरिक बूँद-बूँद पानी के लिये तरसने लगे हैं !’ क्या हमारी कार्रवाई से आतंकवादियों, पाकिस्तानी सेनाओं और शासकों पर फ़र्क़ पड़ गया है कि उन्हें भी पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है ?
हमारी लड़ाई आतंकवाद और उसके संरक्षकों के ख़िलाफ़ है. देश के नागरिकों की सरकार को खुली मैंडेट भी उसी को लेकर मानी जानी चाहिए. अगर हम यूक्रेन और गाजा के नागरिकों, महिलाओं और बच्चों के उत्पीड़न को लेकर इतने चिंतित होते हैं तो ऐसा हरेक मुल्क के संदर्भ में होना चाहिए !
विचार किया जाना चाहिए कि केवल कुछ हज़ार या सिर्फ़ सैंकड़ों की संख्या वाले आतंकवादियों से बदले की कार्रवाई में निशाने पर 25 करोड़ नागरिकों को भी लेकर कहीं उन्हें भी तो भारत-विरोधी तो नहीं बनाया जा रहा है! या हम मानकर ही चलते हैं कि पूरा पाकिस्तान ही भारत-विरोधी है?
हमें जानकारी नहीं है कि पाकिस्तान की ज़मीन से भारत के ख़िलाफ़ चल रही आतंकवादी कार्रवाइयों के ख़िलाफ़ विदेश यात्राओं पर गए हमारे प्रतिनिधिमंडलों से किस तरह के सवाल वहाँ की सरकारों और नागरिकों द्वारा किए गए या किए जा रहे होंगे! अगर किसी ने पूछा होगा या पूछा जाएगा कि पाकिस्तान के नागरिकों का पानी क्यों बंद किया गया या रोका गया तो हमारा जवाब क्या होना चाहिए?
एक जवाब शायद यह हो सकता है कि पानी और अनाज जैसी ज़रूरी चीज़ों के अभावों से त्रस्त होकर वहाँ की जनता अपनी हुकूमत, सेना और आतंकवादियों को दोषी मानते हुए उनके ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर सकती है! पाकिस्तान की सैन्य ताक़तें शायद उसी क्षण की प्रतीक्षा में भी हों कि कब ऐसा हो और बचा-खुचा लोकतंत्र भी ख़त्म करके देश में सैन्य तानाशाही क़ायम कर दी जाए! सवाल यह भी है कि हम किस तरह का पाकिस्तान अपने पड़ोस में देखना चाहेंगे, जबकि देख रहे हैं कि किस तरह के बांग्लादेश का पुनर्जन्म हमारी पूर्वी सीमाओं पर हो रहा है!
विपक्ष द्वारा माँग की जा रही है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए! मानसून सत्र के पहले अगर ऐसा कोई सत्र आमंत्रित करने का साहस सरकार दिखा पाती है तो फिर उसमें पानी बंद करने को लेकर भी कोई प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित करवाया जाना चाहिए! देश की जनता की सहमति अथवा असहमति उसी से प्रकट होगी!
भारत-पाकिस्तान
ट्रम्प ने नौंवी बार कहा डील मैंने करवाई
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि जिस ‘डील’ पर उन्हें सबसे ज़्यादा गर्व है, वह यह है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित परमाणु युद्ध को व्यापार के ज़रिये रोक दिया, गोलियों के ज़रिये नहीं. हाल के हफ्तों में, ट्रम्प बार-बार यह दावा करते आ रहे हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान से कह दिया था कि अगर वे लड़ाई नहीं रोकते तो अमेरिका दोनों देशों के साथ व्यापार बंद कर देता. भारत ने गुरुवार को अमेरिका के इन दावों को सिरे से नकारते हुए स्पष्ट किया कि पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष के दौरान भारत-अमेरिका की बातचीत में व्यापार का मुद्दा कभी उठा ही नहीं. शुक्रवार को ट्रम्प ने पत्रकारों से कहा- “मुझे लगता है कि जिस डील पर मुझे सबसे ज़्यादा गर्व है, वह यह है कि हम भारत और पाकिस्तान के साथ बातचीत कर रहे हैं और हमने संभावित परमाणु युद्ध को गोलियों के बजाय व्यापार के ज़रिये रोक दिया.” “आम तौर पर वे गोलियों से हल निकालते हैं, लेकिन हमने व्यापार से हल निकाला. मुझे इस पर बहुत गर्व है. कोई इस बारे में बात नहीं करता, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच बहुत भयानक युद्ध की आशंका थी और अब देखिए, सब ठीक चल रहा है.” उन्होंने आगे कहा- “स्थिति बहुत ख़राब होती जा रही थी. बहुत गंभीर हो चुकी थी. दोनों देश परमाणु ताक़त हैं.” ट्रम्प ने यह भी कहा कि अगले सप्ताह पाकिस्तानी प्रतिनिधि वॉशिंगटन आने वाले हैं. “हम युद्ध नहीं चाहते, लेकिन लड़ भी सकते हैं” ट्रम्प बोले- “जैसा कि आप जानते हैं, हम भारत के साथ व्यापार समझौता करने के करीब हैं. लेकिन अगर दोनों देश एक-दूसरे से युद्ध करने जा रहे होते, तो मुझे किसी के साथ व्यापार करने में कोई दिलचस्पी नहीं होती. मैंने उन्हें यह बात साफ़ तौर पर बता दी.” यह शुक्रवार का दिन था जब ट्रम्प ने एक ही दिन में दूसरी बार दावा किया कि उनकी सरकार ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को रोका.
कटाक्ष
राकेश कायस्थ : युद्धोन्माद, वोटबैंक और गप्पबाज़ी से पाकिस्तान को सबक या जनता को कहानी?
डोनाल्ड ट्रम्प ने नौंवी बार दावा किया है कि उन्होंने व्यापार बंद करने की धमकी देकर भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर करवा दिया. ट्रम्प बेशक बड़बोले हों, लेकिन सवाल ये भी है कि अगर भारत स्थायी सैन्य तनाव वाला क्षेत्र बन जाता है, तो कोई बड़ा निवेशक यहां पैसा क्यों लगाएगा?
बतौर पत्रकार और नागरिक हम सब लोगों ने पहले भी आतंकवादी हमले देखे हैं. मीडिया आसमान सिर पर उठाकर रखता था कि सुरक्षा चूक कैसे हुई और साजिश किस तरह रची गई, जो लोग इसमें शामिल हैं, उन्हें अब तक पकड़ा क्यों नहीं गया. लेकिन ये सारे सवाल सिरे से गायब हैं.
नरेंद्र मोदी पूरे देश इस तरह घूम रहे हैं, जैसे क्रिकेट मैच जीतकर आये हों. ये पैटर्न ठीक उसी तरह का है, जैसा पुलवामा हमले के बाद था. फर्क सिर्फ इतना है कि पुलवामा के वक्त चुनाव नजदीक था और उसे तत्काल भुना लिया गया. पुलवामा की गुत्थी अनसुलझी रही और अभी तक रुझान बता रहे हैं कि पहलगाम के दोषियों को सजा दिलाने में किसी की रुचि नहीं है.
पाकिस्तान के खिलाफ सैनिक कार्रवाई की जो परतें खुल रही हैं, वे परेशान करने वाली और बहुत हद तक शर्मसार करने वाली भी है. देश के सीडीएस ने एक विदेशी चैनल को दिये गये इंटरव्यू में पहली बार स्वीकार किया है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय विमान गिराये गये. उनका कहना है कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कितने विमान गिरे, बल्कि ज्यादा अहम ये है कि हमने इससे क्या सीखा. पूर्व थलसेना अध्यक्ष वी.पी. मलिक ने कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर से हमें क्या हासिल हुआ यह केवल इतिहास तय करेगा.
नरेंद्र मोदी इतिहास बदलना चाहते हैं, लेकिन उन्हें डर है कि कहीं वर्तमान उनके हाथ से ना फिसल जाये. उनकी पूरी कोशिश वर्तमान को साधे रखने की है. जिस तरह देशभर में घूम-घूमकर प्रधानमंत्री पाकिस्तान को सबक सिखाने की कहानियां बांच रहे हैं, उससे यही लगता है कि उनके पास कोई और नई कहानी बची नहीं है. आगे पूरे राजनीतिक जीवन में सिर्फ युद्धोन्माद से काम चलाना पड़ेगा.
हौंक दिया, पटक के मारा, उल्टा टांग दिया, खाट खड़ी कर दी, जुमले भी अब थकने लगे हैं. लेकिन एक बात तय है कि वो ये कि प्रधानमंत्री के इस देश के आम नागरिकों के असाधारण रूप से मूर्ख होने पर अटल विश्वास है. मुहल्ला स्तरीय राजनीति के अंतरराष्ट्रीयकरण का क्रेडिट तो उन्हें मिलना ही चाहिए.
प्रधानमंत्री उसी वाराणसी के सांसद है, जहां मशहूर अस्सी घाट है और वहां गपोड़ों का प्रसिद्ध अड्डा यानी पप्पू की चाय की दुकान है. तन्नी गुरु अगर मिलते तो अपने अंदाज में इनसे यही कहते-सुनो गुरु वीर चक्र, महावीर चक्र, परमवीर चक्र जो लेना है सब ले लो. आर्मी वाली वर्दी सिलाई, नेवी और एयरफोर्स वाली सिलवाओ, फोटो खिंचवाओ, हाथी हो, घोड़ा हो, गदहा हो या फिर हवाई जहाज जहां मन आये चढ़ जाओ, लेकिन गुरु बस अब चाटो मत...
एमआईटी में फिलीस्तीन की बात करने वाली मेघा वेमुरी पर एक्शन, ट्रोलिंग भी
भारतीय मूल की अमेरिकी छात्रा और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) की 2025 बैच की अध्यक्ष मेघा वेमुरी ने विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में अपने भाषण से खासा विवाद खड़ा कर दिया. अपने संबोधन में, वेमुरी ने एमआईटी के इज़राइली सेना के साथ अनुसंधान संबंधों की आलोचना करते हुए कहा, “इज़राइली कब्ज़ा बल एकमात्र विदेशी सेना है, जिसके साथ एमआईटी के अनुसंधान संबंध हैं. इसका मतलब है कि फिलीस्तीनी लोगों पर इज़राइल का हमला न केवल हमारे देश द्वारा, बल्कि हमारे स्कूल द्वारा भी सहायता और समर्थन प्राप्त कर रहा है. हम देख रहे हैं कि इज़राइल फिलीस्तीन को धरती से मिटाने की कोशिश कर रहा है, और यह शर्म की बात है कि एमआईटी इसका हिस्सा है.” इस भाषण के बाद मेघा और उनके परिवार को समारोह और अधिकतर कैंपस से प्रतिबंधित कर दिया गया.
एमआईटी ने कहा कि दीक्षांत समारोह में दिया गया भाषण वह नहीं था, जो पहले विश्वविद्यालय को दिया गया था. इस बीच सोशल मीडिया पर वेमुरी को तीखी आलोचना और धमकियों का भी सामना करना पड़ा. क्रिप्टोकरेंसी क्षेत्र के एक इज़राइली सीईओ, ओरियल ओहायोन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म “एक्स” पर एक तीखा संदेश पोस्ट किया, जिसमें वेमुरी के रुख की निंदा की और उनका निष्क्रिय हो चुका लिंक्डइन प्रोफाइल साझा किया.
ओहायोन ने लिखा, “इस लड़की को मशहूर कर दो. जो उसने किया, उसके लिए उसे कभी कोई करियर न मिले और उसे अपमानित होना पड़े.” अन्य सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने उनके भाषण को ‘ध्यान आकर्षित करने की कोशिश’ और ‘अस्वीकार्य’ बताया, जबकि कुछ ने उन्हें भारतीय-अमेरिकी समुदाय के व्यापक विचारों से अलग बताते हुए ‘वोक’ आंदोलन का हिस्सा कहा.
पाक ऑपरेटिव को सिम कार्ड सप्लाई करने के आरोप में गिरफ्तार : दिल्ली पुलिस ने जासूसी गतिविधियों के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों को भारतीय सिम कार्ड मुहैया कराने के आरोप में इस हफ्ते की शुरुआत में गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति कासिम के भाई 42 साल के हसीन को गिरफ्तार कर दिल्ली के पटियाला कोर्ट में पेश किया. अदालत ने उसे पांच साल की पुलिस हिरासत में भेज दिया. पीटीआई के अनुसार, हसीन जासूसी का आरोपी कासिम का बड़ा भाई है. हिंदुस्तान टाइम्स ने एक अधिकारी के हवाले लिखा है, “राजस्थान के डीग जिले के नगर इलाके से गिरफ्तार हसीन से पूछताछ में पता चला कि वह करीब 15 साल पहले रिश्तेदारों से मिलने के लिए पाकिस्तान गया था और कथित तौर पर पिछले 4 से 5 सालों से आईएसआई अधिकारियों के संपर्क में था."
इस्लाम का अपमान करने वाले पोस्ट के आरोप में लॉ की छात्रा गिरफ्तार : कोलकाता पुलिस ने शुक्रवार को एक 22 साल की लॉ छात्रा शर्मिष्ठा पनोली को उसके गुड़गांव स्थित घर से सोशल मीडिया पर इस्लाम धर्म का अपमान करने वाला आपत्तिजनक वीडियो पोस्ट करने के आरोप में गिरफ्तार किया और शनिवार को अलीपुर की एक अदालत में पेश किया. अदालत ने उसे 13 जून तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया. अलीपुर पुलिस कोर्ट के मुख्य लोक अभियोजक सोरिन घोषाल ने कहा, "कानून की छात्रा होने के नाते वह अपने कामों के परिणामों के बारे में जानती थी. कई पुलिस थानों में उसके खिलाफ शिकायतें दर्ज हैं, इसलिए हमें उससे गहन पूछताछ करनी होगी." शर्मिष्ठा पनोली सिम्बायोसिस, पुणे की छात्रा है.
मुख़्तार अंसारी के बेटे अब्बास को 2 साल की सज़ा : गैंगस्टर से नेता बने दिवंगत मुख्तार अंसारी के बेटे मऊ सदर विधायक अब्बास अंसारी को शनिवार को पूर्वी उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की एक स्थानीय अदालत ने 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान दर्ज किए गए भड़काऊ भाषण के मामले में दोषी ठहराया और दो साल जेल की सजा सुनाई. अब उनके विधानसभा सदस्यता पर खतरा लटक रहा है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, दो साल या उससे अधिक कारावास की सजा पाने वाले किसी भी विधायक की सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है. हालांकि अब्बास अंसारी के पास इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील का विकल्प है. यदि हाई कोर्ट आदेश पर रोक लगाता है, तो अयोग्यता की कार्यवाही भी रुक जाएगी. विवादित भाषण के दौरान मंच पर मौजूद अब्बास के चुनाव एजेंट मंसूर अंसारी को भी मामले में दोषी ठहराया गया और छह महीने जेल की सजा सुनाई गई. इस बीच, अब्बास के छोटे भाई उमर अंसारी, जो जनसभा स्थल पर भी मौजूद थे, को अदालत ने बरी कर दिया.
पूर्वोत्तर : बारिश, बाढ़ और जलभराव से 27 लोगों की मौत, एक लाख लोग शिविरों में
बंगाल की खाड़ी में दबाव के कारण शनिवार को लगातार दूसरे दिन भी पूर्वोत्तर के छह राज्यों में हुई मध्यम से भारी बारिश के कारण महिलाओं और बच्चों समेत कम से कम 27 लोगों की मौत हो गई और सामान्य जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है. भूस्खलन, मकान ढहने, डूबने और भारी बारिश से संबंधित आपदाओं ने विभिन्न पूर्वोत्तर राज्यों में तबाही मचा दी. गुरुवार से हो रही बारिश के कारण बड़ी संख्या में घर क्षतिग्रस्त हो गए और करीब एक लाख लोगों ने विभिन्न पूर्वोत्तर राज्यों में राहत शिविरों में शरण ली है.
दीया कुमारी का जयपुर घराना हल्दीघाटी में अकबर के साथ था, अब वे राणा प्रताप को विजेता घोषित कर इतिहास बदल रही हैं
'मैं सांसद थी, मैंने हल्दीघाटी के शिलालेख पर हार की जगह जीत लिखवा दिया'
हल्दीघाटी के युद्ध और महाराणा प्रताप को लेकर दिए गए राजस्थान की उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी के बयान से एक बार फिर विवाद छिड़ गया है. जयपुर में एक कार्यक्रम में दीया कुमारी ने कहा, "हल्दीघाटी के शिलालेख में लिखा था कि महाराणा प्रताप यह युद्ध हार गए थे. मैं उस समय वहां से सांसद थी, मैंने उस शिलालेख को बदलवाया. और आज वहां लिखा है कि महाराणा प्रताप युद्ध जीते थे. अपने कार्यकाल में यह मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि थी." दीया कुमारी ने इसके लिए राजस्थान से ही आने वाले तत्कालीन संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल के सहयोग का ज़िक्र किया, जिन्होंने पूर्व लिखित शिलापट्ट हटाने का आदेश दिया था. असल में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (एएसआई) ने 2021 में राजस्थान के राजसमंद ज़िले के रक्ततलाई से वो विवादित शिलालेख हटा दिया था, जिस पर लिखा था कि 1576 में हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप की सेना को पीछे हटना पड़ा था. 'बीबीसी' ने इसी मसले पर विस्तार से रिपोर्ट की है कि आखिर महाराणा प्रताप की 'हार-जीत' पर क्या कहते हैं इतिहासकार?
फैक्ट चेक: दीया कुमारी का परिवार जयपुर के शाही परिवार से संबंधित है, जो इतिहास में आमेर के कछवाहा वंश से जुड़ा है. हल्दीघाटी का युद्ध, जो 18 जून 1576 को लड़ा गया, मेवाड़ के महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच एक महत्वपूर्ण संघर्ष था. इस युद्ध में अकबर की ओर से सेनापति के रूप में आमेर (बाद में जयपुर) के राजा ने अहम भूमिका निभाई. दीया कुमारी जयपुर राजघराने से हैं और वर्तमान में जयपुर राजवंश की उत्तराधिकारी मानी जाती हैं. हल्दीघाटी के युद्ध में मुग़ल बादशाह अकबर की ओर से सेनापति मानसिंह और महाराणा प्रताप की ओर से सेनापति हकीम ख़ान सूर लड़ रहे थे. राजा मान सिंह प्रथम (1550–1614) आमेर (आधुनिक जयपुर) के राजा थे और मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे. उन्हें हल्दीघाटी के युद्ध (1576) में मुगल सेना का सेनापति बनाया गया था और उन्होंने महाराणा प्रताप से युद्ध किया था. ऐसे में देखें तो दीया कुमारी के पूर्वज उस पक्ष से थे, जिसने महाराणा प्रताप के खिलाफ युद्ध किया था.
बीजेपी नेता के बेटे के 130 अश्लील वीडियो वायरल, पुत्रवधू ने लगाए संगीन आरोप
‘फ्री प्रेस जनरल’ की रिपोर्ट है कि उत्तर प्रदेश के मैनपुरी ज़िले में एक नया अश्लील वीडियो कांड सामने आया है, जिसमें भाजपा महिला मोर्चा की एक स्थानीय मंडल अध्यक्ष के बेटे का नाम सामने आ रहा है. यह मामला उस समय उजागर हुआ है जब मध्य प्रदेश के मंदसौर में कथित भाजपा नेता से जुड़े एक अन्य अश्लील वीडियो मामले पर पहले से ही राजनीतिक बवाल मचा हुआ है. बताया जा रहा है कि महिला मोर्चा अध्यक्ष के बेटे से जुड़े 130 से अधिक अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए हैं, जिससे ज़िले में राजनीतिक भूचाल आ गया है. संबंधित भाजपा नेता फिलहाल फोन कॉल्स का जवाब नहीं दे रही हैं और संपर्क से बाहर हैं. वहीं, विपक्षी दलों ने इस पूरे घटनाक्रम पर गंभीर सवाल उठाए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार भाजपा नेता के बेटे का अपनी पत्नी के साथ पिछले लगभग चार वर्षों से दुर्व्यवहार को लेकर विवाद चल रहा था. हाल ही में मामला तब और गंभीर हो गया जब पत्नी ने पुलिस को शिकायत दी कि उसके पति ने सिगरेट से उसे जलाया. हालांकि, आरोप है कि इस मामले को राजनीतिक पहुंच के चलते पुलिस ने दबा दिया. यह भी आरोप है कि युवक अपनी गर्लफ्रेंड के साथ वीडियो बनाता था और उन्हें अपनी पत्नी को दिखाकर मानसिक प्रताड़ना करता था. अब जब 130 वीडियो अचानक वायरल हो गए हैं, तो इस बात पर भी सवाल उठ रहे हैं कि इन्हें लीक किसने किया. स्वयं आरोपी ने, उसकी कथित प्रेमिका ने या किसी अन्य माध्यम से ये वीडियो सार्वजनिक हुए. इस घटना ने एक बार फिर सत्ता और कानून व्यवस्था के बीच की दूरी और सवालों को उजागर कर दिया है.
चला गया बाघों का तरफदार वाल्मिक थापर
वाल्मिक थापर (73), भारत के सबसे कट्टर बाघ संरक्षणवादियों में से एक और 30 से अधिक पुस्तकों के लेखक एवं फिल्म निर्माता, का 30 मई की रात नई दिल्ली में अपने आवास पर बीमारी के बाद निधन हो गया. उनके परिवार में उनकी पत्नी और पुत्र हैं. वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने थापर के निधन को “एक बड़ा नुकसान” बताते हुए कहा, “मेरे स्थायी समिति के अध्यक्ष पद के दौरान भी वह कई मूल्यवान सुझावों और सलाहों का निरंतर स्रोत रहे. हमारे बीच बहस होती थी, लेकिन उनको सुनना हमेशा एक शिक्षा थी, जो जुनून और चिंता से भरा होता था. वह वास्तव में एक अविस्मरणीय और अनोखे व्यक्ति थे.”
1970 के दशक के मध्य में, वाल्मिक थापर की बाघों के प्रति रुचि फतेह सिंह राठौड़ (रणथंभौर टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क के पूर्व निदेशक) के मार्गदर्शन में और गहरी हो गई. थापर ने पार्क में बहुत समय बिताया, जहां वह बाघों का पीछा करते, उन्हें देखते और उनका अध्ययन करते, उनसे बेहद प्रेम जो करते थे. उन्होंने टाइगर वॉच नामक गैर-लाभकारी संस्था के साथ भी मिलकर काम किया, जिसे राठौड़ ने सवाई माधोपुर, राजस्थान में बाघ संरक्षण के लिए स्थापित किया था.
1987 में, थापर ने रणथंभौर फाउंडेशन की स्थापना की, ताकि पार्क के आसपास के स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम किया जा सके. फाउंडेशन ने कई कल्याणकारी कार्यक्रम शुरू किए, जैसे कि गांवों में बायोगैस संयंत्र लगवाना, ताकि लोगों को ईंधन के लिए जंगलों में लकड़ी लेने न जाना पड़े और वे बाघों के करीब न जा सकें. थापर ने 30 से अधिक किताबें लिखीं.
चलते-चलते
अरिजीत बनेंगे लंदन स्टेडियम में प्रस्तुति देने वाले पहले भारतीय संगीतकार
'द गार्डियन' के लिए बेन ब्यूमॉन्ट-थॉमस की रिपोर्ट है कि हर महीने दुनिया भर में स्पोटीफाई पर सबसे ज्यादा सुने जाने वाले कलाकारों की सूची में अमेरिकी पॉप स्टार ओलिविया रोड्रिगो, डूचची और ग्रेसी अब्राम्स से आगे और हैरी स्टाइल्स से बस एक पायदान पीछे एक ऐसा कलाकार है, जिसे अधिकतर ब्रिटिश श्रोता शायद जानते तक न हों - बंगाली गायक अरिजीत सिंह. उनका कोई गाना न तो यूके टॉप 100 सिंगल्स में आया है, न ही एल्बम चार्ट में. फिर भी भारतीय प्रवासी समुदाय की गहरी दीवानगी के कारण, अरिजीत सिंह अब यूके के स्टेडियम में प्रस्तुति देने वाले पहले भारतीय संगीतकार बनने जा रहे हैं.
इस सप्ताह सिंह ने घोषणा की कि वे 5 सितंबर को टोटेनहम हॉट्सपुर स्टेडियम में प्रस्तुति देंगे. यह वही 63,000 सीटों वाला स्टेडियम है, जहां इस गर्मी में बेयॉन्से, केंड्रिक लैमर और इमेजिन ड्रैगन्स जैसे बड़े नाम उतरेंगे. "यह सिर्फ उनकी कला की शक्ति को दिखाने के लिए नहीं है, यह पश्चिम में भारतीय संस्कृति का भी ज़बरदस्त बयान है," दक्षिण एशियाई बीबीसी प्रेजेंटर निहाल अर्तनायक ने कहा. गायक और बहु-वाद्य वादक अरिजीत सिंह एक ऐसे कलाकार हैं जो सिंथेसाइज़र से सजे डांस ट्रैक से लेकर पारंपरिक भारतीय शास्त्रीय संगीत तक में आसानी से स्विच कर सकते हैं. उनकी तकनीकी क्षमता जबरदस्त है और उनकी भावुक गायकी सुनने वालों को थाम देती है.
"यदि आप उन्हें नहीं जानते, तो बस इसे खूबसूरत संगीत की तरह सुनें, भले ही आप भाषा न समझें, लेकिन उसकी भावना और भावप्रवणता आप महसूस करेंगे," अर्तनायक ने आग्रह किया. "उनकी रेंज, उनका हुनर और उनकी साधना उन्हें भारत के लिए भी एक 'वन्स-इन-ए-जेनरेशन' कलाकार बनाते हैं." सिंह का पश्चिम में लोकप्रिय न होना कुछ हद तक समझा जा सकता है. वे शायद ही कभी अंग्रेज़ी में गाते हैं और मुख्यतः "प्लेबैक सिंगिंग" के माहिर हैं. यानी फ़िल्मी अभिनेताओं के लिए गाने रिकॉर्ड करना, जिन पर वे ऑनस्क्रीन लिप-सिंक करते हैं. "सबसे महान गायक वे होते हैं जो भावनाएं निभा सकते हैं और अरिजीत सिंह उनमें अग्रणी हैं," अर्तनायक ने कहा. "जब शाहरुख़ ख़ान जैसे सितारे स्क्रीन पर गाने को निभाते हैं, तो अरिजीत पहले से उस भावना में डूब चुके होते हैं और वही भाव श्रोताओं तक पहुंचता है."
बॉलीवुड का यह पहलू भी सिंह की व्यापक अपील में मदद करता है. "इन फ़िल्मों को इस तरह बनाया जाता है कि तीन पीढ़ियां एक साथ जाकर देख सकें," अर्तनायक कहते हैं. "पश्चिमी सिनेमा में ऐसा नहीं होता. आप अपने दादा-दादी को 'फास्ट एंड फ्यूरियस' दिखाने नहीं ले जाते, लेकिन अरिजीत सिंह को दादा भी सुनते हैं, मां भी और बेटा भी. कोई यह नहीं कहता कि 'ये तो पेरेंट्स का म्यूज़िक है, हम नहीं सुनेंगे'." पश्चिम बंगाल के जियागंज में पले-बढ़े अरिजीत सिंह (उम्र 38) ने तीन साल की उम्र में संगीत की शिक्षा शुरू की थी. उनका बड़ा ब्रेक आया था 2013 की फ़िल्म आशिक़ी 2 के गाने तुम ही हो से. आज वे दुनिया के सबसे अधिक सुने जाने वाले कलाकारों में हैं. उनके सपोटीफाई पर 14.7 करोड़ फॉलोअर्स हैं, टेलर स्विफ्ट और एड शीरन से भी ज़्यादा. लेकिन मुंबई के शोबिज़ माहौल में रहने के बजाय, वे अब भी जियागंज में रहते हैं, अपनी बचपन की दोस्त से विवाह कर चुके हैं और मीडिया से दूरी बनाए रखते हैं. "उनके प्रदर्शन में विनम्रता झलकती है," 'द गार्डियन' की समीक्षक महीका रविशंकर ने 2024 के उनके लंदन टूर पर लिखा था- "विनम्रता ही उनके स्टारडम की कुंजी है, वे संगीत को बोलने देते हैं," अर्तनायक कहते हैं. 'उन्हें 'श्वेत दृष्टिकोण' से वैधता की ज़रूरत नहीं है, वे पहले से ही विशाल हैं' अर्तनायक कहते हैं.
इस रविवार यहां सुनिये अरिजीत के 50 गाने यूट्यूब पर.
पाठकों से अपील-
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.
विकलांग को विकलांग ही लिखें और बोलें, विकलांगता में कोई दिव्यता नहीं होती, इसलिए कम से कम आप तो सही शब्द का प्रयोग करें। जिस व्यक्ति ने विकलांगता को दिव्यांगता कहना शुरू किया, उसकी बौद्धिक क्षमता से आप अपरिचित नहीं है।