01/07/2025: मणिपुर में आग | बिहार मतदाता बनना है तो | भाजपा के गुंडे ने अफसर को पीटा | कोलकाता रेप में टीएमसी नेताओं की भूमिका | होसबोले पर भंवर मेघवंशी | ट्रम्प ने 19वीं बार
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
मणिपुर में फिर हिंसा, चुराचांदपुर में गोलीबारी, कुकी आर्मी के डिप्टी चीफ समेत 4 मरे
1987 के बाद जन्मे मतदाताओं को अब माता-पिता के जन्म प्रमाण की आवश्यकता नहीं, बशर्ते..
भाजपा नेता के लोगों ने वरिष्ठ अफसर को दफ्तर से बाहर घसीटकर बुरी तरह पीटा
अडानी परिवार की सुविधा के लिए रथों को रोक रखा
अबकी बार ट्रम्प बोले 19वीं बार
स्त्रीत्व सिर्फ मां बन सकनें वालों का नहीं
यूनियन कार्बाइड का 337 टन जहरीला कचरा पूरा जलाया
नफ़रत के सबसे जहरीले पैरोकार टी. राजा सिंह ने नाराज़ होकर बीजेपी छोड़ी
तेलंगाना की केमिकल फैक्ट्री में विस्फोट, 13 मजदूरों की मौत, 34 घायल
कोलकाता कॉलेज गैंगरेप : राजनीतिक संरक्षण में पलते अपराध का भयावह चेहरा
अब सेंसर बोर्ड को जानकी नाम से दिक्कत
अयातुल्ला खुमैनी के बाराबंकी कनेक्शन
मणिपुर में फिर हिंसा, चुराचांदपुर में गोलीबारी, कुकी आर्मी के डिप्टी चीफ समेत 4 मरे
मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के मोंगजांग गांव के पास सोमवार दोपहर लगभग 2 बजे अज्ञात बंदूकधारियों ने घात लगाकर हमला किया, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई. पुलिस अधिकारियों ने बताया कि मृतकों को नजदीक से गोली मारी गई थी.
मारे गए लोगों की पहचान थेंखोथांग हाओकिप उर्फ थाहपी (48), सेइखोगिन (34), लेंगौहाओ (35) और फालहिंग (72) के रूप में हुई है. घटनास्थल से दर्जनभर से अधिक खाली कारतूस बरामद किए गए हैं. फिलहाल किसी भी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है. पुलिस और सुरक्षा बलों को इलाके में तैनात कर दिया गया है और मामले की जांच जारी है.
यह हमला उस समय हुआ है, जब मणिपुर पहले से ही जातीय तनाव और हिंसक घटनाओं की चपेट में है. मई 2023 से राज्य में कई बार अलग-अलग समुदायों के बीच टकराव हो चुका है. हालात काबू में करने के लिए फरवरी में राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था. लेकिन, इस घटना ने एक बार फिर से राज्य की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
इस बीच केंद्रीय सुरक्षा बलों के सूत्रों के अनुसार, टी. हाओकिप कूकी नेशनल आर्मी (केएनए) के डिप्टी चीफ थे. इधर, मैतई समुदाय के प्रतिनिधि समूहों ने मणिपुर में शांति बहाली के लिए गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक की. बैठक में मैतई समूहों ने अपनी चिंताएं और मांगें रखीं, जबकि कूकी पक्ष ने भी स्पष्ट किया कि शांति की जिम्मेदारी दोनों पक्षों की है और अगर उनके गांवों या लोगों पर हमला होता है तो वे आत्मरक्षा में जवाब देंगे.
बिहार
1987 के बाद जन्मे मतदाताओं को अब माता-पिता के जन्म प्रमाण की आवश्यकता नहीं बशर्ते..
बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान चुनाव आयोग (ECI) ने सोमवार को 2003 की मतदाता सूची अपलोड की और स्पष्ट किया कि 1987 के बाद जन्मे मतदाताओं को अब अपने माता-पिता के जन्म प्रमाण की आवश्यकता नहीं होगी, यदि उनके माता-पिता के नाम 2003 की मतदाता सूची में दर्ज हैं. ऐसे मामलों में, केवल मतदाता सूची का अंश ही पर्याप्त होगा.
चुनाव आयोग ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि बिहार की 2003 की मतदाता सूची, जिसमें 4.96 करोड़ मतदाताओं का विवरण है, वेबसाइट पर उपलब्ध करा दी गई है.
24 जून को जारी दिशा-निर्देशों में आयोग ने कहा था कि 1 जनवरी 2003 की स्थिति वाली मतदाता सूची सभी बूथ लेवल अधिकारियों को हार्ड कॉपी में और वेबसाइट पर ऑनलाइन उपलब्ध कराई जाएगी, ताकि कोई भी व्यक्ति इसे डाउनलोड कर दस्तावेजी प्रमाण के रूप में उपयोग कर सके.
चुनाव आयोग ने अपने बयान में कहा, “2003 की मतदाता सूची की आसान उपलब्धता से बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण में काफी सुविधा होगी, क्योंकि अब लगभग 60% मतदाताओं को कोई अतिरिक्त दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं होगी. उन्हें केवल 2003 की मतदाता सूची में अपने विवरण की पुष्टि करनी होगी और भरा हुआ एन्युमरेशन फॉर्म जमा करना होगा.”
आयोग ने आगे कहा कि जिनके नाम 2003 की सूची में नहीं हैं, वे भी अपने माता या पिता के लिए कोई अन्य दस्तावेज देने के बजाय 2003 की मतदाता सूची के अंश का उपयोग कर सकते हैं. "ऐसे मामलों में, माता या पिता के लिए कोई अन्य दस्तावेज जरूरी नहीं होगा. केवल 2003 की मतदाता सूची का संबंधित अंश ही पर्याप्त होगा. ऐसे मतदाताओं को केवल अपने लिए दस्तावेज जमा करने होंगे, एन्युमरेशन फॉर्म के साथ."
चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार : जिनका नाम 2003 की सूची में नहीं है, उन्हें अपनी पात्रता साबित करने के लिए सरकारी दस्तावेजों में से कोई एक प्रस्तुत करना होगा. एन्युमरेशन फॉर्म के अलावा, एक अतिरिक्त घोषणा पत्र फॉर्म भी भरना होगा.
जन्म तिथि के आधार पर दस्तावेज़ी आवश्यकताएं :
1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे: स्वयं की जन्म तिथि और स्थान का प्रमाण.
1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे: स्वयं और माता या पिता में से किसी एक की जन्म तिथि और स्थान का प्रमाण.
2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे: स्वयं और दोनों माता-पिता की जन्म तिथि और स्थान का प्रमाण देना होगा.
बिहार में जन्म पंजीकरण की दयनीय हालत
“द हिंदू” में विजेयता सिंह ने वर्ष 2009 की सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (CRS) रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि बिहार में वर्ष 2000 में जन्म पंजीकरण का स्तर 3.7% था, जबकि उसी वर्ष राष्ट्रीय औसत 56.2% था. पूरे देश में 2000 में कुल 1,29,46,823 जन्म पंजीकृत हुए थे. बिहार राज्य में 2004 और 2005 में जन्मे बच्चों के लिए पंजीकरण का स्तर क्रमशः 11.5% और 16.9% था. जबकि, पूरे देश में यह पंजीकरण 2004 में 60.4% और 2005 में 62.5% था. 2004 और 2005 में देशभर में पंजीकृत कुल जन्म क्रमशः 1,57,77,612 और 1,63,94,625 थे.
भाजपा नेता के लोगों ने वरिष्ठ अफसर को दफ्तर से बाहर घसीटकर बुरी तरह पीटा
ओडिशा की यह घटना भाजपा शासित राज्यों में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाती है. सोमवार को भाजपा के एक नेता से जुड़े लोगों ने भुवनेश्वर नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारी रत्नाकर साहू को उनके कार्यालय से जबरन बाहर घसीटकर बेरहमी से पीटा. यह पूरी घटना वीडियो में कैद हो गई है.
पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इस हमले की कड़ी निंदा करते हुए “एक्स” पर लिखा, “मुझे यह वीडियो देखकर गहरा सदमा लगा है.” नवीन पटनायक ने कहा, “अगर एक वरिष्ठ अधिकारी अपने ही कार्यालय में सुरक्षित नहीं है, तो आम नागरिक सरकार से कैसी कानून-व्यवस्था की उम्मीद कर सकते हैं?” उन्होंने मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी से इस मामले में शामिल सभी लोगों के खिलाफ “तत्काल और सख्त कार्रवाई” की मांग की है.
रत्नाकर साहू अपने कार्यालय में जन-सुनवाई कर रहे थे, तभी छह-सात अज्ञात लोग उनके कक्ष में घुसे और उनसे पूछा कि क्या उन्होंने भाजपा नेता जगन्नाथ प्रधान से बात की है. साहू ने बताया कि उन्होंने उसी दिन फोन पर बात की थी. इसके बाद, उन लोगों ने साहू को पीटना शुरू कर दिया और जबरन प्रधान से माफी मांगने के लिए दबाव बनाया. हमलावरों ने उनका मोबाइल फोन भी छीन लिया और उस पर आपत्तिजनक सामग्री अपलोड कर दी. इस घटना के विरोध में नगर निगम के कर्मचारियों ने काम बंद कर सड़क जाम किया और दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की. पुलिस ने अब तक तीन लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें एक नगरसेवक भी शामिल है.
अबकी बार ट्रम्प बोले 19वीं बार
डोनाल्ड ट्रम्प अभी भी अपनी बात पर कायम हैं. उन्होंने 19वीं बार हालिया भारत-पाकिस्तान संघर्ष को रोकने का श्रेय लिया है. ट्रम्प ने कहा, "सर्बिया, कोसोवो लड़ने जा रहे थे, एक बड़ा युद्ध होने वाला था. मैंने कहा, 'तुम लड़ो, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कोई व्यापार नहीं होगा.' भारत और पाकिस्तान के साथ भी यही हुआ. मैं दोनों से बातचीत कर रहा था और मैंने (ट्रेजरी सचिव) स्कॉट (बेसेंट) और (वाणिज्य सचिव) हॉवर्ड (लुटनिक) से कहा, भारत और पाकिस्तान के साथ सभी सौदे रद्द कर दो. वे हमारे साथ व्यापार नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे युद्ध में हैं." ट्रम्प ने कहा कि दोनों देशों ने "वापस फोन किया. 'हम क्या करें?' मैंने कहा, 'देखो, तुम संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ व्यापार करना चाहते हो. यह बहुत अच्छा है, लेकिन तुम एक-दूसरे पर परमाणु हथियार इस्तेमाल करना शुरू करना चाहते हो. हम इसकी अनुमति नहीं देंगे.' और वे दोनों सहमत हो गए."
स्त्रीत्व सिर्फ मां बन सकने वालों का नहीं
एक ऐतिहासिक फैसले में, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने उन दावों को खारिज कर दिया कि स्त्रीत्व केवल उन लोगों के लिए संरक्षित है जो बच्चे पैदा कर सकती हैं और फैसला सुनाया कि ट्रांस महिलाएं "कानूनी रूप से" महिलाओं के रूप में मान्यता की हकदार हैं. मामले की अध्यक्षता करते हुए, न्यायमूर्ति वेंकट ज्योतिर्मयी प्रतापा ने फैसला सुनाया कि महिलाओं की परिभाषा को गर्भावस्था से जोड़ना "कानूनी रूप से अस्थिर" था और यह भारत के संविधान का खंडन करता है, जो कानून के समक्ष समानता पर जोर देता है. 2014 के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए, जिसने "तीसरे लिंग" के व्यक्तियों के अधिकारों को कानूनी रूप से मान्यता दी थी, प्रतापा ने कहा कि ट्रांस महिलाओं को महिलाओं के रूप में अपनी पहचान के अधिकार से वंचित करना "भेदभाव के बराबर" है.
यूनियन कार्बाइड का 337 टन जहरीला कचरा पूरा जलाया
भोपाल स्थित बंद पड़ी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकले 337 टन जहरीले कचरे को मध्यप्रदेश के धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में एक निजी अपशिष्ट निस्तारण संयंत्र में पूरी तरह से जला दिया गया है. अधिकारियों के अनुसार, यह प्रक्रिया करीब छह महीने में पूरी हुई, जिसमें कचरे को 850 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले विशेष इंसीनरेटर में वैज्ञानिक निगरानी के साथ नष्ट किया गया.
इस कचरे में यूनियन कार्बाइड परिसर की मिट्टी, रिएक्टर का अवशेष, सेविन (कीटनाशक) अवशेष, नेफ्थालिन अवशेष और "अर्ध-प्रसंस्कृत" अवशेष शामिल थे. अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि इसमें मिथाइल आइसोसाइनेट गैस या कोई रेडियोधर्मी पदार्थ मौजूद नहीं था.
कचरा जलाने के बाद बची राख और अन्य अवशेषों को फिलहाल संयंत्र के भीतर सीलबंद, रिसाव-रोधी थैलों में सुरक्षित रखा गया है. इन अवशेषों को वैज्ञानिक विधि से बनाए जा रहे विशेष लैंडफिल में दबाया जाएगा, ताकि पर्यावरण या भूजल पर कोई असर न हो. यह प्रक्रिया दिसंबर 2025 तक पूरी होने की संभावना है.
नफरत के सबसे जहरीले पैरोकार टी. राजा सिंह ने नाराज़ होकर बीजेपी छोड़ी
भाजपा हाईकमान द्वारा पूर्व एमएलसी एन. रामचंद्र राव को तेलंगाना का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने का फैसला लेने से नाराज विधायक टी. राजा सिंह ने सोमवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया. पार्टी से इस्तीफा देने के बाद, टी. राजा ने आरोप लगाया कि कुछ वरिष्ठ नेताओं ने उनके समर्थकों को धमकी दी कि अगर वे प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित करेंगे या नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर करेंगे तो उन्हें निलंबित कर दिया जाएगा.
राजा सिंह ने अपना इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी को सौंपते हुए अनुरोध किया कि विधानसभा अध्यक्ष को सूचित किया जाए कि वे अब बीजेपी का प्रतिनिधित्व नहीं करते.
मीडिया से बातचीत में राजा ने कई वरिष्ठ नेताओं पर पार्टी को कमजोर करने और राज्य में सत्ता में वापसी की संभावनाओं के प्रति उदासीन रहने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि वे 2014 से विभिन्न समस्याओं और अपमानों का सामना कर रहे हैं. खुद को आतंकियों की हिट लिस्ट में बताते हुए उन्होंने बीजेपी कार्यकर्ताओं से कहा कि "ऐसे नेताओं" की नियुक्ति से पार्टी को राज्य में सत्ता नहीं मिलेगी. उन्होंने संगठन चुनाव प्रक्रिया की भी आलोचना की और कहा कि इसमें बूथ स्तर की समिति के सदस्यों को शामिल किया जाना चाहिए, जो पार्टी की जरूरतों को समझते हैं और उपयुक्त अध्यक्ष का चयन कर सकते हैं. बता दें, राजा सिंह अपने विवादित बयानों के लिए जाने जाते हैं.
तेलंगाना की केमिकल फैक्ट्री में विस्फोट, 13 मजदूरों की मौत, 34 घायल
तेलंगाना के संगारेड्डी जिले के पशमीलारम इलाके में स्थित सिगाची केमिकल इंडस्ट्री के दवा बनाने वाले संयंत्र में सोमवार को भीषण विस्फोट हो गया, जिसमें कम से कम 13 मजदूरों की मौत हो गई और 34 घायल हो गए. यह धमाका इतना शक्तिशाली था कि कई मजदूरों के अंग 100 मीटर दूर तक फिंका गए और कई लोग पास के टेंटों में फंस गए, जहां आग लगने के कारण स्थिति और गंभीर हो गई. मौके पर दमकल की कई गाड़ियां आग बुझाने और बचाव कार्य में जुटी रहीं.
हादसे के वक्त कई मजदूर ड्यूटी पर थे. घायलों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है, जहां कुछ की हालत गंभीर बनी हुई है. राहत एवं बचाव कार्य लगातार जारी है और संयंत्र के अंदर कुछ और लोगों के फंसे होने की आशंका जताई जा रही है. सिगाची इंडस्ट्रीज लिमिटेड एक प्रमुख फार्मास्युटिकल कंपनी है. इस हादसे के कारणों की जांच की जा रही है.
कोलकाता कॉलेज गैंगरेप : राजनीतिक संरक्षण में पलते अपराध का भयावह चेहरा
'द टेलिग्राफ' की रिपोर्ट है कि दक्षिण कोलकाता लॉ कॉलेज की एक छात्रा के साथ गैंगरेप के मामले में मुख्य आरोपी मोनोजित मिश्रा का नाम केवल आपराधिक गतिविधियों में ही नहीं, बल्कि सत्ता के गलियारों में भी गूंजता रहा है. 31 वर्षीय मिश्रा, जो कॉलेज का पूर्व छात्र और तृणमूल छात्र परिषद का पूर्व अध्यक्ष रह चुका है, वरिष्ठ तृणमूल नेताओं के करीबी के तौर पर जाना जाता रहा है.
कॉलेज के कई शिक्षकों ने बताया कि मिश्रा ने 2012 में एक वरिष्ठ तृणमूल नेता की सिफारिश पर कॉलेज में दाखिला लिया था. 2015 में एक छात्रा से दुर्व्यवहार के आरोप में उसे निष्कासित किया गया, लेकिन 2017 में माफ़ी मांगकर दोबारा प्रवेश पा गया. वह 2022 में स्नातक हो गया, लेकिन फिर भी नियमित रूप से कॉलेज आता-जाता रहा.
छात्रा द्वारा दर्ज कराए गए बयान के अनुसार, मिश्रा ने छात्र संघ के कक्ष में उसके साथ मारपीट की और फिर सुरक्षा गार्ड के कक्ष में ले जाकर बलात्कार किया. इस दौरान दो छात्र ज़ैब अहमद (19) और प्रमित मुखर्जी (20) मौजूद रहे और सब कुछ देखते रहे. इन तीनों के अलावा 55 वर्षीय सुरक्षा गार्ड पिनाकी बनर्जी को भी गिरफ्तार किया गया है.
चारों को गैंगरेप, अवैध रूप से बंधक बनाने और सामूहिक अपराध की धाराओं में आरोपित किया गया है. पुलिस का दावा है कि मिश्रा ने संबंध को ‘आपसी सहमति’ बताया है, लेकिन उसके फोन से मिली आपत्तिजनक वीडियो क्लिपिंग के आधार पर पुलिस ब्लैकमेलिंग की संभावना की जांच कर रही है. हालांकि, अभी तक वीडियो के प्रसारण के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं, इसलिए आईटी एक्ट की धाराएं नहीं लगाई गई हैं. पुलिस चार छात्रों से पूछताछ करने जा रही है जो घटना के समय छात्रा और आरोपियों के साथ देखे गए थे. इधर इस मामले में कॉलेज की गवर्निंग बॉडी सोमवार को आपात बैठक करेगी.
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, मिश्रा के खिलाफ पहले भी कई गंभीर आपराधिक आरोप लगे हैं.
जुलाई 2019: कॉलेज परिसर में एक महिला की साड़ी फाड़ने का आरोप, चार्जशीट दाख़िल.
दिसंबर 2019: एक दोस्त के घर से चेन, साउंड सिस्टम, इत्र और चश्मा चोरी का आरोप, 2020 में चार्जशीट दाख़िल.
मार्च 2022: कस्बा में एक महिला से छेड़छाड़ का मामला.
मई 2024: कॉलेज के सुरक्षा गार्ड संजीब कुमार सिल के साथ मारपीट और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आरोप.
कॉलेज में अनियमित नियुक्ति और सुरक्षा में चूक: इतने गंभीर आरोपों के बावजूद, मिश्रा को सितंबर 2024 में कॉलेज में एक कैजुअल कर्मचारी के रूप में नियुक्त कर लिया गया. कॉलेज सूत्रों का कहना है कि यह नियुक्ति गवर्निंग बॉडी की सिफारिश पर की गई थी, जिसके प्रमुख तृणमूल विधायक अशोक देब हैं. किसी प्रकार का पुलिस सत्यापन नहीं कराया गया. कॉलेज की उप-प्राचार्या नयना चटर्जी ने शुक्रवार को पुष्टि की थी कि मिश्रा की नियुक्ति गवर्निंग बॉडी की सिफारिश पर हुई थी. जब उनसे सवाल किया गया कि पहले मिश्रा के खिलाफ कॉलेज ने ही पुलिस में शिकायत की थी, तो उनका फ़ोन बीच में कट गया और बाद में उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. मिश्रा की फ़ेसबुक प्रोफाइल पर तृणमूल नेताओं के साथ उसकी तस्वीरें भरी पड़ी हैं, जिससे साफ़ है कि उसे राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ था. कॉलेज प्रशासन ने बार-बार उसकी हिंसक प्रवृत्तियों को नज़रअंदाज़ किया.
विश्लेषण
भंवर मेघवंशी : ‘धर्मनिरपेक्ष’, ‘समाजवादी’ शब्द सांप्रदायिक, सवर्णवादी एजेंडे के सबसे बड़े बाधक
1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं. लेकिन यह विडंबना है कि जिस आपातकाल की वे आलोचना करते हैं, उसी दौरान ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े गए, जो भारत के समावेशी और कल्याणकारी चरित्र को मजबूत करते हैं. फॉरवर्ड प्रेस में प्रकाशित लेख में बता रहे हैं आरएसएस के पूर्व स्वयं सेवक और सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी.
भारत का संविधान सिर्फ कागज का एक दस्तावेज भर नहीं है. यह उस सपने का प्रतीक है, जिसे बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर और उनके साथी संविधान निर्माताओं ने देखा था. एक ऐसा भारत, जहां समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय हर नागरिक का हक हो. संविधान की प्रस्तावना इसकी आत्मा है और इसमें 42वें संशोधन में शामिल ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द भारत के बहुलतावादी और समावेशी चरित्र को परिभाषित करते हैं. लेकिन हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयानों ने भारत के संविधान की इस आत्मा पर सीधा हमला बोला है. इन नेताओं ने संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को हटाने की वकालत की है, जिसके खिलाफ देशभर में तीखी प्रतिक्रिया हो रही है. यह बयान न केवल संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि आरएसएस और भाजपा के संविधान-विरोधी चरित्र को भी उजागर करता है.
वैसे तो यह कोई नई बात नहीं है. आरएसएस और भाजपा का इतिहास संविधान को कमजोर करने की साजिशों से भरा पड़ा है, क्योंकि संविधान उनके मनुस्मृति से प्रेरित सवर्णवादी और सांप्रदायिक एजेंडे के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट है. आपातकाल के विरोध के नाम पर आयोजित विभिन्न आयोजनों में संघ-भाजपा नेताओं का असली चेहरा उनके बयानों से सामने आ गया है.
विदित है कि गत 26 जून को दिल्ली में आयोजित ‘इमरजेंसी के 50 साल’ कार्यक्रम में आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द आपातकाल के दौरान जब जोड़े गए थे, तब संसद और न्यायपालिका पंगु थी. उन्होंने दावा किया कि ये शब्द डॉ. आंबेडकर के मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे और अब इनकी प्रासंगिकता पर बहस होनी चाहिए. यह बयान कोई साधारण टिप्पणी नहीं है. यह आरएसएस के उस पुराने एजेंडे का हिस्सा है, जो संविधान को मनुस्मृति पर आधारित व्यवस्था से बदलने की कोशिशें करता रहा है.
आरएसएस नेता होसबाले का यह कहना कि ये शब्द थोपे गए थे, ऐतिहासिक तथ्यों का सरासर मखौल उड़ाना है. 42वें संविधान संशोधन (1976) के जरिए इन शब्दों को शामिल किया गया था, जब इंदिरा गांधी की सरकार पूर्ण बहुमत में थी. यह संशोधन संसद में व्यापक चर्चा के बाद पारित हुआ था और नवंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे वैध ठहराया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द 1978 में 45वें (बाद में 44वें) संविधान संशोधन विधेयक पर विचार-विमर्श के दौरान जांच के दायरे में आए थे (जब भाजपा की पूर्ववर्ती जनसंघ सत्ता में थी) और इन शब्दों को बरकरार रखा गया था. इसलिए होसबाले का दावा न केवल संविधान की प्रस्तावना की गरिमा पर प्रहार करता है, बल्कि बाबासाहेब के सुविचारित वैचारिक दृष्टिकोण को भी गलत तरीके से पेश करता है. बाबासाहेब ने संविधान सभा में कहा था कि भारत का संविधान सामाजिक और आर्थिक समानता पर आधारित होगा. ‘धर्मनिरपेक्ष’ व ‘समाजवादी’ शब्द उनकी सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता की भावना को और स्पष्ट करते हैं.
होसबाले के बोलने भर की देर थी कि संघ-भाजपा के नेताओं में बयान देने को होड़ मच गई है. केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने होसबाले के बयान का समर्थन करते हुए वाराणसी में एक कार्यक्रम में कहा कि “सर्वधर्म समभाव भारतीय संस्कृति का मूल है, न कि धर्मनिरपेक्षता.” उन्होंने कहा कि ये दोनों शब्द आपातकाल में जोड़े गए थे और इन्हें हटाने पर विचार करना चाहिए. चौहान ने यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ जैसे विचार पहले से मौजूद हैं, इसलिए इन शब्दों की जरूरत नहीं है.
चौहान का यह बयान न केवल भ्रामक है, बल्कि खतरनाक भी है. ‘सर्वधर्म समभाव’ का नारा, जिसे अकसर आरएसएस-भाजपा के नेता बार-बार दोहराते हैं, वास्तव में उनकी सांप्रदायिक और घनघोर जातिवादी विचारधारा को छिपाने का हथियार मात्र है. अन्यथा उन्हें धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी जैसे उद्दात्त शब्दों से क्या दिक़्क़त है? धर्मनिरपेक्षता का मतलब है कि राज्य किसी भी धर्म को विशेष तरजीह नहीं देगा और सभी नागरिकों को समान अधिकार देगा, चाहे उनकी जाति, धर्म या वर्ग कुछ भी हो. लेकिन ‘सर्वधर्म समभाव’ का इस्तेमाल अक्सर हिंदू-केंद्रित विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है, जिसमें अल्पसंख्यक समुदायों को हिंदू संस्कृति के दायरे में समाहित करने की कोशिश होती है. यह भारत के बहुलतावादी चरित्र के खिलाफ है, जो संविधान की आत्मा है.
आख़िर यह ‘सर्वधर्म समभाव’ क्या है और किसके प्रति समभाव रखते हैं सवर्ण जातिवादी हिंदुत्व के झंडाबरदार? हकीकत तो यह है कि ये अपने ही समधर्मी लोगों के प्रति अच्छा भाव नहीं रख पाते हैं. आम तौर पर इनकी नफ़रत दलितों और आदिवासियों के ख़िलाफ़ तो ज़ाहिर होती ही रहती है. मौक़ा मिलते ही पिछड़े वर्गों के प्रति भी उजागर होती है. जैसे हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के इटावा में ओबीसी कथावाचकों के साथ किया गया व्यवहार है, जिसमें उनके द्वारा की गई भागवत कथा के बाद मारपीट, सिर के बाल काटने और पैर पकड़ कर नाक रगड़ने और पेशाब छिड़क कर सज़ा दिए जाने का कुकृत्य किया गया. हद तो यह हुई कि पीड़ितों के ख़िलाफ़ भी मुक़दमा क़ायम किया गया. इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि जब स्वयं के धर्म के दलित-पिछड़े लोगों के प्रति समभाव की भावना विकसित नहीं हो सकी तो अन्य धर्म के लोगों के प्रति समभाव ये रख पाएंगे?
संविधान के मूल ढांचे की संवैधानिक अवधारणा को नकारने वाले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ इस बहस से दूर कैसे रह सकते थे. वे भी इसमें शामिल हो गए. उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में बदलाव हुआ, जो लोकतंत्र का काला अध्याय था. उनके मुताबिक़ इंदिरा गांधी द्वारा जबरन जोड़े गए ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द अब नासूर बन चुके हैं, यह सनातन का अपमान है. अब इन्हें हटा देना चाहिए. साथ ही, उन्होंने कहा कि प्रस्तावना संविधान की आत्मा है और इसे बदलना संविधान निर्माताओं के साथ विश्वासघात था. यह बयान अपनेआप में विरोधाभासी है. एक तरफ तो वे संविधान को गलत ठहराते हैं और दूसरी ओर प्रस्तावना की पवित्रता की बात करते हैं. यह आरएसएस भाजपा के दोहरे चरित्र को उजागर करता है.
हालांकि होसबाले, चौहान और धनखड़ के बयान अंतिम बयान नहीं हैं. यह शुरुआत भर है. अभी इनका संविधान पर हमला और बढ़ेगा. यह सुनियोजित षड्यंत्र है, जिसके तहत जानबूझकर इस तरह के बयान दिए जाते हैं, ताकि संविधान के ख़िलाफ़ विमर्श को मुख्यधारा का विमर्श बनाया जा सके. संघियों और भाजपाइयों के इन बयानों के खिलाफ देशभर में तीखी प्रतिक्रिया हुई है. विपक्षी दलों, सामाजिक संगठनों और आम जनता ने इसे संविधान पर हमला बताया है.
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि “आरएसएस और भाजपा को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए. यह दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के अधिकार छीनने की साजिश है.” राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया है कि “आरएसएस का संविधान-विरोधी चेहरा फिर बेनकाब हुआ. वे भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं, लेकिन जनता इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेगी.” राष्ट्रवादी कांग्रेस की सांसद सुप्रिया सुले ने कहा है कि “संविधान में हर शब्द चर्चा और सहमति से जोड़ा गया है. इसे बदलने की कोशिश लोकतंत्र पर हमला है.” विभिन्न सामाजिक संगठनों और बुद्धिजीवियों ने भी इस मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद की है. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों में विरोध प्रदर्शन भी हुए. लोगों ने ‘संविधान बचाओ’ के नारे के साथ सड़क पर आ रहे हैं. दलित और अल्पसंख्यक संगठनों ने इसे अपने अधिकारों पर हमला बताया. इस दौर के प्रखर बहुजन चिंतक और लेखक कांचा आइलैय्या ने कहा है कि “आरएसएस का सपना मनुस्मृति का भारत है, जहां दलित और शूद्र गुलाम हों. लेकिन हम बाबासाहेब के संविधान को बचाने के लिए हर कुर्बानी देंगे.”
आरएसएस का संविधान के प्रति विरोध कोई नई बात नहीं है. सन् 1949 में जब संविधान को अंतिम रूप दिया जा रहा था, तभी आरएसएस ने इसे खारिज कर दिया था. उनके मुखपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ ने 30 नवंबर, 1949 को ही लिख दिया था कि संविधान में भारतीयता का अभाव है और यह मनुस्मृति से प्रेरित नहीं है, जिसे वे विश्व का सबसे प्राचीन और श्रेष्ठ कानून मानते हैं. आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने अपनी किताब ‘बंच ऑफ़ थाॅट्स’ में संविधान को पश्चिमी देशों की नकल बताया था और हिंदू राष्ट्र की खुलकर वकालत की थी. 1975 में आपातकाल के दौरान आरएसएस पर प्रतिबंध लगा था, और तब से वे आपातकाल को अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं. लेकिन यह विडंबना है कि जिस आपातकाल की वे आलोचना करते हैं, उसी दौरान ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़े गए, जो भारत के समावेशी और कल्याणकारी चरित्र को मजबूत करते हैं. अब इन शब्दों को हटाने की मांग करके आरएसएस यह साबित कर रहा है कि उसका असली निशाना संविधान की आत्मा है.
सर्वविदित है कि ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द केवल शब्द नहीं हैं, ये भारत के सामाजिक ताने-बाने की रीढ़ हैं. धर्मनिरपेक्षता का मतलब है कि भारत का कोई राजकीय धर्म नहीं होगा और सभी धर्मों के लोग समान अधिकारों के हकदार होंगे. यह वह सिद्धांत है, जो हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और अन्य समुदायों को एक साथ जोड़ता है. समाजवाद का मतलब है सामाजिक और आर्थिक समानता, जहां गरीबों, दलितों और वंचितों को उनके हक मिलें. डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि नीति-निर्देशक तत्वों में समाजवादी सिद्धांत पहले से मौजूद हैं. ये शब्द केवल उस भावना को और स्पष्ट करते हैं. इसलिए इन शब्दों को हटाने की मांग का मतलब है भारत को एक सांप्रदायिक और असमान समाज की ओर ले जाना. आरएसएस का हिंदू राष्ट्र का सपना, जो उनकी विचारधारा का मूल है, धर्मनिरपेक्षता के रहते संभव नहीं हो सकता है. इसलिए इसका व्यापक विरोध फिर से शुरू किया गया है. आरएसएस की स्थापना के शताब्दी वर्ष से ठीक पहले संविधान पर हमला अचानक नहीं है. यह सुनियोजित हमला है. इससे देश के बहुजनों को सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को हटाना भारत की आत्मा को कुचल देना है और ‘समाजवादी’ शब्द को हटाने की मांग देश के दलित वंचित समुदायों के खिलाफ है, जो शैक्षणिक और सामाजिक न्याय के लिए संविधान पर निर्भर हैं.
यह सही है कि आपातकाल के दौरान कई गलतियां हुईं. लेकिन ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द जोड़ना कोई गलती नहीं थी. ये शब्द उस समय के सामाजिक और राजनीतिक माहौल में भारत के चरित्र को और मजबूत करने के लिए जोड़े गए थे.
बहरहाल, भारत की जनता ने बार-बार दिखाया है कि वह संविधान के साथ खड़ी है. 2024 के लोकसभा चुनावों में जनता ने भाजपा को 400 सीटों का सपना पूरा नहीं होने दिया, क्योंकि लोग जानते हैं कि संविधान उनकी आजादी और सम्मान का रक्षक है. समय आ चुका है जब देश भर के दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और सभी प्रगतिशील भारतीयों को इस साजिश के खिलाफ एकजुट होना होगा.
ग़ाज़ा सिटी पर इज़रायल का भीषण हमला, लोगों को पलायन का आदेश देने के बाद दर्जनों हवाई हमले
(साभार : द गार्डियन)
एक ओर दुनिया में फिलिस्तीन के पक्ष में आवाजें बुलंद हो रही हैं और सीजफायर की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है, लेकिन दूसरी ओर इज़रायली सेना का नरसंहार भी जारी है. ग़ाज़ा धरती का नर्क बना हुआ है. 'अल जज़ीरा' की रिपोर्ट है कि इज़रायल ने ग़ाज़ा पट्टी में दर्जनों हवाई हमले किए हैं, जिनमें उत्तरी ग़ाज़ा सिटी मुख्य निशाना रही. इससे पहले इज़रायली सेना ने जबरन पलायन के आदेश जारी किए थे, जिससे ज़मीन पर बड़े हमले की आशंका और गहरा गई है. ग़ाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 30 जून को सुबह से शाम करीब 8 बजे तक हुए इज़रायली हमलों में कम से कम 80 फ़िलिस्तीनी मारे गए थे और दर्जनों इलाज के इतजार में तड़पते रहे. इनमें दीर अल-बलाह स्थित अल-अक्सा शहीद अस्पताल पर हुआ हमला भी शामिल है, जहाँ कई घायलों का इलाज चल रहा था. इस बीच, इज़रायल के विपक्षी नेता यायर लैपिड ने युद्ध को खत्म करने की मांग करते हुए कहा कि अब इज़रायल के लिए इसे जारी रखने का कोई लाभ नहीं है. मिस्र के विदेश मंत्री ने जानकारी दी है कि उनका देश एक नया ग़ाज़ा समझौता तैयार कर रहा है, जिसमें 60 दिनों की संघर्षविराम योजना और कुछ इज़रायली बंधकों की रिहाई शामिल है.
अब सेंसर बोर्ड को जानकी नाम से दिक्कत
केरल उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से मलयालम फिल्म 'जेएसके - जानकी बनाम स्टेट ऑफ केरल' में 'जानकी' नाम के उपयोग पर आपत्ति को लेकर सवाल किया. फिल्म के प्रोडक्शन हाउस, कॉसमॉस एंटरटेनमेंट द्वारा प्रमाणीकरण में देरी को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति एन नागारेश ने बताया कि भारतीय सिनेमा में बिना किसी विवाद के पौराणिक नामों का उपयोग करने का इतिहास रहा है. अदालत की टिप्पणी तब आई जब सीबीएफसी ने फिल्म निर्माताओं को कारण बताओ नोटिस जारी कर फिल्म के शीर्षक और संवादों से 'जानकी' नाम हटाने का निर्देश दिया. सीबीएफसी ने तर्क दिया कि 'जानकी' नाम का उपयोग, जो देवी सीता से जुड़ा एक नाम है, ऐसी सामग्री वाली फिल्म में सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5बी(2) के तहत दिशानिर्देश 2 (xi) का उल्लंघन कर सकता है, जो नस्लीय, धार्मिक या अन्य समूहों के प्रति अपमानजनक दृश्यों या शब्दों पर रोक लगाता है. न्यायाधीश इस बात से प्रभावित नहीं हुए. उन्होंने पूछा कि सीता और गीता और राम लखन जैसी पहले की हिट फिल्मों के बारे में क्या?
चलते चलते
अयातुल्ला खुमैनी के बाराबंकी कनेक्शन
पत्रकार सईद नकवी ने एक असफल राजनयिक मिशन के भूले हुए इतिहास का पता लगाया है, जो उत्तर प्रदेश के बाराबंकी को तेहरान के क्रांतिकारी नेतृत्व से जोड़ता है. 1979 में, जब शाह के पतन के बाद खुमैनी सत्ता में आए, तो भारत ने संबंधों को फिर से जगाने की कोशिश की. विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विदेश सचिव जगत मेहता ने अशोक मेहता और मौलवी आगा रूही अबकाती के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल भेजा, जिन्हें बाराबंकी के किंतूर से खुमैनी का रिश्तेदार कहा जाता था. लेकिन एक गर्मजोशी भरे पुनर्मिलन के बजाय, खुमैनी ने सार्वजनिक रूप से अबकाती को डांटा, अचानक सभी बैठकें समाप्त कर दीं और भारतीय राजनयिकों को स्तब्ध चुप्पी में घर भेज दिया. जैसा कि नकवी बताते हैं, क्रांति की शुरुआती दौर में ही यह विचार जनता को बर्दाश्त नहीं होता कि कि उसके नेता की "विदेशी जड़ें" थीं - भले ही वे वास्तविक हों. दशकों बाद, ईरान के राजदूत गुलामरेजा अंसारी ने उस दबे हुए संबंध को फिर से जीवित किया और इसे भारत और ईरान के बीच गहरे सभ्यतागत संबंधों के प्रतीक के रूप में मनाया.
पाठकों से अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.