01/08/2025: ट्रम्प ने भारत को डेड इकोनमी कहा | टैरिफ आज से लागू | रूस से तेल लेना भारत ने रोका | यूएपीए का लद्धड़ रिकार्ड | मालेगांव मामला सवालों के घेरे में | एक चौथाई SIR फॉर्म फर्जी?
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां:
‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ के टैरिफ वॉर की भारी मार आज से लागू, खिसियाई प्रतिक्रिया
भारत जल्द ही तीसरी अर्थव्यवस्था बन जाएगा : गोयल
भारत से हम निराश हैं, वो अब ग्लोबल एक्टर नहीं : अमेरिकी वित्त मंत्री
टैरिफ वार से फटका कितना लगेगा ?
भारत ने रोकी रूसी तेल की खरीद: ट्रम्प की धमकी के बाद सरकारी तेल कंपनियों का बड़ा फैसला
8974 गिरफ्तारियां, दोषसिद्धि केवल 252
‘संदेह उच्च स्तर का, लेकिन सजा देने लायक नहीं, एनआईए कोर्ट ने सभी 7 आरोपियों को बरी किया
‘एनआईए आतंकवाद मामलों की जांच के लिए अयोग्य’
मालेगांव अकेला मामला नहीं!
जहां मुस्लिम ज्यादा हैं, वहीं फॉर्म कम जमा हुए
योगेन्द्र यादव : बिहार में भरे गए फॉर्मों में से कम से कम एक चौथाई "फर्जी
कोई ‘संदिग्ध मतदाता’ नामक श्रेणी नहीं, कानून मंत्री ने राज्यसभा को बताया
मसौदा मतदाता सूची प्रकाशन से एक दिन पहले केंचुआ ने की तसल्ली देने की कोशिश
सड़क पर उतरेगा इंडिया गठबंधन
बजरंग दल ने झूठे बयान के लिए मजबूर किया
पाकिस्तान से आए हिंदु शरणार्थियों के मक़ानों पर बुलडोज़रों का ख़तरा मंडराया
अडानी का वियतनाम पर दांव, 10 अरब डॉलर के निवेश की संभावना
लीजेंड्स चैंपियनशिप: भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ खेलने से किया इनकार
127 साल बाद भारत लौटे बौद्ध रत्न
लगातार 15 टॉस हार भारत तोड़ता रिकार्ड और प्रोबेबिलिटी के कायदे
30 साल पुराने भ्रूण से जन्मा दुनिया का 'सबसे पुराना शिशु', अमेरिका में हुआ चमत्कार
अमेरिकी टैरिफ
‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ के टैरिफ वॉर की भारी मार आज से लागू, खिसियाई प्रतिक्रिया
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारतीय अर्थव्यवस्था को “डेड इकोनॉमी” वाले बयान पर राजनीति गर्मा गई है. उसकी वजह यह है कि ट्रम्प के बयान का कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यह कहते हुए समर्थन कर दिया कि सिवाय प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के सबको पता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था “डेड इकोनॉमी” है. भाजपा ने तो इसके लिए उनकी आलोचना की ही, लेकिन खास बात ये है कि राहुल के अपने दल कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने भी उनसे अलग रुख अपनाया. सरकार की तरफ से वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ट्रम्प के “डेड इकोनॉमी” वाले बयान पर सीधे के बजाय परोक्ष उत्तर दिया.
गोयल ने संसद में कहा- “भारत जल्द ही जीडीपी के आकार के हिसाब से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा और फिलहाल भारत विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है.” हालांकि वे इसके साथ ये रेखांकित करना भूल जाते हैं कि भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब रहते हैं, और 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन अभी भी दिया जा रहा है.
ट्रम्प ने ये कहा,
“मुझे परवाह नहीं कि भारत, रूस के साथ क्या करता है. वे चाहें तो अपनी डेड इकोनॉमी को एकसाथ ले डूबें, मुझे इससे क्या. वैसे भी हमने भारत के साथ बहुत कम व्यापार किया है. उनके टैरिफ दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. इसी तरह रूस और अमेरिका भी लगभग न के बराबर व्यापार करते हैं. इसे ऐसे ही बनाए रखते हैं. और, मेदवेदेव, जो रूस के असफल पूर्व राष्ट्रपति हैं, और अब भी खुद को राष्ट्रपति समझते हैं, उनसे कहें कि अपनी जुबान संभालें, वह खतरनाक सीमा में दाखिल हो रहे हैं.
संसद परिसर में गुरुवार को जब मीडिया ने राहुल गांधी से ट्रम्प की टिप्पणी पर सवाल किया तो उन्होंने कहा,
“वह सही हैं. मुझे ख़ुशी है कि उन्होंने सच्चाई रखी. क्या आप लोगों (मीडिया) को नहीं मालूम कि भारतीय अर्थव्यवस्था, “मृत अर्थव्यवस्था” है. पूरी दुनिया इस बात को जानती है कि भाजपा ने भारतीय अर्थव्यवस्था को ख़त्म कर दिया है. और, अडानी जी की मदद करने के लिए ख़त्म किया है. देश के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार ने हमारी आर्थिक नीति, रक्षा नीति और विदेश नीति को बर्बाद कर दिया है. एक तरफ अमेरिका गाली दे रहा है, चीन पीछे पडा है, पूरी दुनिया में डेलिगेशन भेजने के बावजूद एक भी देश पहलगाम के लिए पाकिस्तान की निंदा नहीं करता है. कैसे चला रहे हैं, देश को ये लोग? चलाना ही नहीं आता. ट्रम्प द्वारा 25% टैरिफ लगाया जा रहा है, पाकिस्तान के जिस जनरल ने पहलगाम करवाया उसको ट्रम्प लंच दे रहे हैं, वे जेट गिराने की बात कर रहे हैं, लेकिन मोदी जी कोई जवाब नहीं दे पा रहे हैं. क्यों नहीं दे पा रहे हैं? क्या लगता है आपको? समझ जाइए कंट्रोल किसके हाथ में हैं.”
राहुल के इस बयान के आते ही बीजेपी का आईटी सेल सक्रिय हो गया और उसके प्रमुख अमित मालवीय ने राहुल गांधी की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने भारत के लिए "मृत अर्थव्यवस्था" जैसी ट्रम्प की टिप्पणी का अनुकरण कर देश की 140 करोड़ जनता की आकांक्षाओं, उपलब्धियों और कल्याण का शर्मनाक अपमान किया है. साथ ही कांग्रेस नेता से पूछा कि वे बार-बार ऐसा विदेशी दुष्प्रचार क्यों दोहराते हैं, जिससे देश की छवि को नुकसान पहुंचता है. भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा कि भारत-विरोधी बयान देना राहुल गांधी की मानसिकता बन गई है. दुनिया में जब भी कोई भारत-विरोधी बयान देता है, वह उसे लपक लेते हैं.
कांग्रेस के नेताओं शशि थरूर और राजीव शुक्ला ने भी राहुल गांधी से अलग रुख अपनाया है. थरूर, जिनकी पहलगाम हमला और ऑपरेशन सिंदूर पर की गई टिप्पणियों की कांग्रेस के भीतर आलोचना हुई है, ने कहा कि दिल्ली को वॉशिंगटन डीसी की अनुचित मांगों के आगे नहीं झुकना चाहिए. उन्होंने माना कि अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ताएं चुनौतीपूर्ण हैं और कहा, “हमारी यूरोपीय संघ के साथ वार्ता जारी है, हम पहले ही यूके के साथ एक समझौता कर चुके हैं, और हम अन्य देशों के साथ भी बात कर रहे हैं. यदि हम अमेरिका में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते, तो हमें अपने बाज़ारों का विस्तार अमेरिका के बाहर करना पड़ सकता है. हमारे पास विकल्पों की कमी नहीं है.
कांग्रेस राज्यसभा सांसद राजीव शुक्ला ने ट्रम्प की टिप्पणी को "पूरी तरह गलत" बताते हुए खारिज कर दिया और कहा कि भारत की आर्थिक स्थिति कमजोर नहीं है. उन्होंने कहा, "अगर कोई यह दावा करता है कि वह हमें आर्थिक रूप से समाप्त कर सकता है तो यह संभवतः किसी गलतफहमी का परिणाम है. ट्रम्प एक भ्रम में जी रहे हैं."
इंडिया ब्लॉक की सदस्य शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि यह साबित करने के लिए पर्याप्त विश्वसनीय डेटा उपलब्ध है कि भारत दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है और सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. उन्होंने कहा, “इसे मृत अर्थव्यवस्था कहना केवल अहंकार या अज्ञानता से ही आ सकता है.”
भारत जल्द ही तीसरी अर्थव्यवस्था बन जाएगा : गोयल
केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद गुरुवार को कहा कि भारत किसी भी व्यापार समझौते के दौरान अपने राष्ट्रीय हितों की पूरी तरह से रक्षा करेगा. उन्होंने संसद में कहा, "हम अपने किसानों, श्रमिकों और छोटे उद्यमियों के हितों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. सरकार राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी." सरकार अमेरिकी टैरिफ की घोषणा के प्रभावों का भी बारीकी से अध्ययन कर रही है.
गोयल ने अमेरिकी राष्ट्रपति के “डेड इकोनॉमी” वाले तंज का जवाब देते हुए कहा कि भारत जल्द ही जीडीपी के आकार के हिसाब से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा और फिलहाल भारत विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कुछ ही वर्षों में भारत 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से 5वीं सबसे बड़ी बन गया है. उनका जोर था कि भारत केवल उन्हीं अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों में शामिल होगा, जो देश के हित में होंगे, और 'इंडिया फर्स्ट' नीति के साथ आगे बढ़ेगा.
भारत से हम निराश हैं, वो अब ग्लोबल एक्टर नहीं : अमेरिकी वित्त मंत्री
अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने गुरुवार (31 जुलाई, 2025) को कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प समेत पूरी अमेरिकी ट्रेड वार्ता टीम भारत के साथ व्यापार वार्ता को लेकर "निराश" है. उन्होंने बताया कि भारत व्यापार वार्ता की मेज पर तो जल्दी आया, लेकिन प्रक्रिया में धीरे-धीरे काम कर रहा है, जिससे राष्ट्रपति और टीम को परेशानी हुई है. बेसेंट ने यह भी कहा कि भारत रूस से प्रतिबंधित कच्चे तेल का बड़ा खरीदार रहा है और उसे रिफाइंड उत्पादों के रूप में पुनः बेच रहा है, इसलिए भारत एक अच्छा वैश्विक खिलाड़ी नहीं रह गया है. ये टिप्पणी उस समय आई है, जब राष्ट्रपति ट्रम्प ने 1 अगस्त से भारत से आने वाले सभी सामानों पर 25% टैरिफ लगाने का एलान किया है, साथ ही रूस से कच्चे तेल और सैन्य उपकरण खरीदने पर एक अज्ञात पेनल्टी भी लगाई है.
टैरिफ वार से फटका कितना लगेगा ?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत पर 25% टैरिफ और रूस से हथियार व ऊर्जा खरीद के लिए अतिरिक्त "पेनल्टी" की घोषणा से भारत की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ सकता है. यह टैरिफ 1 अगस्त से लागू होगा. 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 20-50 बेसिस पॉइंट की कमी आ सकती है. ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के अनुसार, 26% टैरिफ से अमेरिका को होने वाला भारतीय निर्यात 30% तक कम हो सकता है. रूस से संबंधित पेनल्टी की प्रकृति स्पष्ट नहीं होने से आर्थिक प्रभाव और गंभीर हो सकता है.
ट्रम्प के 25% टैरिफ से भारत के स्मार्टफोन, दवाइयां, रत्न-आभूषण, कपड़ा और औद्योगिक मशीनरी जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं. विशेष रूप से आभूषण और समुद्री खाद्य क्षेत्र, जो अमेरिका को $10 बिलियन से अधिक का निर्यात करते हैं, पर हजारों नौकरियों का खतरा मंडरा रहा है. जेम्स एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन किरीट भंसाली ने कहा कि टैरिफ से लागत बढ़ेगी और आपूर्ति श्रृंखला पर दबाव पड़ेगा. हालांकि, स्मार्टफोन और फार्मास्यूटिकल्स को अभी टैरिफ से छूट दी गई है.
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते में देरी का मुख्य कारण भारत का अपने कृषि और डेयरी क्षेत्र को खोलने में हिचकिचाहट है. ट्रम्प प्रशासन ने भारत के उच्च कृषि टैरिफ की आलोचना की है, लेकिन भारत किसानों के हितों की रक्षा के लिए इन टैरिफ को हटाने से बच रहा है. भारतीय अधिकारी जेनेटिकली मॉडिफाइड उत्पादों के आयात के खिलाफ भी हैं. दोनों देश अक्टूबर तक व्यापार समझौते के पहले चरण को अंतिम रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं और अगस्त में अमेरिकी अधिकारी भारत का दौरा कर सकते हैं.
ट्रम्प ने भारत के रूस से हथियार और तेल खरीद को टैरिफ का कारण बताया है. भारत और रूस के बीच ऐतिहासिक संबंधों को नजरअंदाज करते हुए ट्रम्प ने इसे यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा देने वाला कदम बताया. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, 2009-2013 में भारत के 76% सैन्य आयात रूस से थे, हालांकि यह निर्भरता हाल के वर्षों में कम हुई है. रूस से सस्ता तेल खरीदकर भारत ने अरबों डॉलर की बचत की है, लेकिन अब उसे वैकल्पिक स्रोत तलाशने पड़ सकते हैं.
ट्रम्प के टैरिफ से भारत का चीन के विकल्प के रूप में वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनने का सपना प्रभावित हो सकता है. कैपिटल इकोनॉमिक्स के शिलन शाह ने कहा कि 25% टैरिफ भारत की आकर्षण को कम करेगा, खासकर जब अन्य एशियाई देशों पर कम टैरिफ लगाए गए हैं. फिर भी, भारत की कम श्रम लागत उसे कुछ प्रतिस्पर्धी लाभ देती है. विशेषज्ञों का मानना है कि दीर्घकालिक व्यापार समझौता इस नुकसान को कम कर सकता है.
भारतीय निर्यातकों ने ट्रम्प के टैरिफ पर निराशा जताई है, लेकिन उद्योग नेताओं को उम्मीद है कि यह अस्थायी होगा. FICCI के अध्यक्ष हर्षवर्धन अग्रवाल ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से चली आ रही साझेदारी को देखते हुए जल्द ही स्थायी व्यापार समझौता हो सकता है. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन के डीजी अजय साहाय ने कहा कि टैरिफ से कीमतों पर असर पड़ेगा, लेकिन व्यापार समझौता टैरिफ को कम कर सकता है.
ट्रम्प ने भारत के साथ $46 बिलियन के व्यापार घाटे को टैरिफ का एक प्रमुख कारण बताया. 2024 में भारत ने अमेरिका को $87.4 बिलियन का सामान निर्यात किया, जबकि आयात $41.8 बिलियन का रहा. ट्रम्प का मानना है कि टैरिफ से अमेरिकी व्यापार घाटा कम होगा, लेकिन अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं को उच्च कीमतों का सामना करना पड़ सकता है. इधर, भारत ने जवाबी टैरिफ नहीं लगाए, बल्कि बातचीत के जरिए समाधान की कोशिश की है.
दक्षिण एशिया विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन ने कहा कि ट्रम्प का रूस के प्रति कम टकराव वाला रुख होने के बावजूद भारत पर पेनल्टी लगाना उनकी अप्रत्याशित नीतियों का उदाहरण है. भारत ने रूस से तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया और यूक्रेन युद्ध के बाद मॉस्को को आर्थिक सहारा दिया.
भारत ने रोकी रूसी तेल की खरीद: ट्रम्प की धमकी के बाद सरकारी तेल कंपनियों का बड़ा फैसला
डोनाल्ड ट्रम्प की धमकी के बाद भारत की सरकारी तेल कंपनियों ने रूस से कच्चे तेल की खरीद को अस्थायी रूप से रोक दिया है. यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब ट्रम्प ने सत्ता में वापसी की स्थिति में रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी है. 'टेलिग्राफ' ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOCL), भारत पेट्रोलियम (BPCL), हिंदुस्तान पेट्रोलियम (HPCL) और मैंगलोर रिफाइनरी (MRPL) ने पिछले एक सप्ताह में रूस से कोई नया कच्चा तेल खरीदने का ऑर्डर नहीं दिया है. ये कंपनियां अब अबू धाबी, पश्चिम अफ्रीका और अमेरिका से विकल्प तलाश रही हैं.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंपने हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर भारत को चेताया था। उन्होंने कहा था - "भारत दुनिया में सबसे ऊंचे टैरिफ लगाता है, और फिर भी रूस से सस्ता तेल खरीदता है. अगर भारत ने यही जारी रखा तो हम उस पर 25% आयात शुल्क लगाएंगे." उन्होंने भारत पर रूस का "सबसे बड़ा समर्थक" होने का भी आरोप लगाया और कहा कि यह अमेरिका के हितों के खिलाफ है.
भारत सरकार ने आधिकारिक बयान में कहा है कि "भारत अपने ऊर्जा सुरक्षा हितों को देखते हुए विविध आपूर्तिकर्ताओं के साथ व्यापार करता है. अमेरिका के साथ हमारे व्यापार संबंध मजबूत हैं और हम निष्पक्ष तथा संतुलित समझौते की दिशा में काम कर रहे हैं." लेकिन सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि रूसी तेल की खरीद क्यों रोकी गई है.
रूस से तेल खरीद कितनी थी?
भारत रूस से प्रति दिन 14 लाख बैरल तक कच्चा तेल आयात कर रहा था, यह उसके कुल आयात का लगभग 35% था.
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदना शुरू किया था.
इससे भारत के तेल आयात बिल में कमी आई थी और रिफाइनरियों को अच्छा मुनाफा हो रहा था.
कौन खरीद रहा है अब भी रूसी तेल? हालांकि सरकारी कंपनियों ने रूसी तेल खरीदना रोका है, रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और नायरा एनर्जी जैसी निजी कंपनियां अब भी रूस से तेल मंगा रही हैं. रिलायंस की रिफाइनिंग क्षमता देश में सबसे अधिक है, लेकिन उसके उत्पादों का बड़ा हिस्सा निर्यात के लिए होता है. सरकारी रिफाइनरियां भारत की कुल घरेलू खपत का दो-तिहाई हिस्सा सप्लाई करती हैं.
ट्रम्प ने हाल में पाकिस्तान के साथ तेल समझौते को लेकर भी बयान दिया - "पाकिस्तान के साथ हमारी बातचीत जारी है. हो सकता है एक दिन वह भारत को तेल बेचे." इस बयान को भारत में राजनीतिक रूप से अपमानजनक माना गया है और विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. बहरहाल देशभर में भारत सरकार के लगातार अमरीका के सामने बैकफुट में आते जाने से राजनीतिक प्रतिक्रियाओं की भी बाढ़ आ गई है.
क्या भारत की अर्थव्यवस्था वास्तव में "मृत" है? अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने जुलाई 2025 में भारत की आर्थिक वृद्धि का अनुमान 6.4% किए हैं, जो अप्रैल में अनुमानित 6.2% से बढ़ा है. यह अनुमान वित्त वर्ष 2025‑26 और 2026‑27 दोनों के लिए समान है. आईएमएफ के विश्लेषणानुसार, भारत अब भी वैश्विक मंदी के बीच में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है. आईएमएफ और विश्व बैंक दोनों ने भारत की प्रगति को स्वीकार किया है. ऐसे में देखें तो राहुल गांधी का यह बयान बिना किसी आंकड़े या मापदंड के किया गया राजनीतिक आरोप है, न कि तथ्यों पर आधारित विश्लेषण.
ईरान के कारण छह भारतीय तेल कंपनियों और तीन नागरिकों पर अमेरिकी प्रतिबंध
इधर, ट्रम्प प्रशासन ने ईरानी तेल और पेट्रोकेमिकल उत्पादों के व्यापार में कथित रूप से शामिल छह भारतीय कंपनियों और तीन भारतीय नागरिकों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इन कंपनियों पर ईरानी कच्चे तेल और पेट्रोकेमिकल उत्पादों के निर्यात और खरीद में सहायता करने का आरोप है. यह कदम 20 अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाने के तहत आया है, जो ईरानी पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों या पेट्रोकेमिकल्स के व्यापार में लिप्त हैं. अमेरिका का दावा है कि ईरान मध्य पूर्व में संघर्ष को बढ़ावा देता रहा है और इसका इस्तेमाल अस्थिर गतिविधियों के लिए वित्तपोषण में करता है.
प्रतिबंधित भारतीय कंपनियों में कंचन पॉलिमर्स, अलकेमिकल सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड, ग्लोबल इंडस्ट्रियल केमिकल्स लिमिटेड, जुपिटर डाई केम प्राइवेट लिमिटेड, रमणिकलाल एस गोसालिया एंड कंपनी और पर्सिस्टेंट पेट्रोकेम प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं. ट्रेज़री विभाग की प्रतिबंध सूची में 115 से अधिक व्यक्ति, जहाज और कंपनियां शामिल हैं. इसे 2018 के बाद से ईरान से संबंधित सबसे बड़े प्रतिबंधों का पैकेज बताया गया है, जो एक ऐसे नेटवर्क को निशाना बनाता है जिसका कथित नियंत्रण मोहम्मद हुसैन शमखानी के पास है, जो ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनेई के एक वरिष्ठ सलाहकार के बेटे हैं.
इसके अलावा, जिन भारतीय नागरिकों पर प्रतिबंध लगे हैं, उनमें जैकब कुरियन, अनिल कुमार पनक्कल, नारायणन नायर और पंकज नागजीभाई पटेल शामिल हैं. कुरियन और नायर को नियो शिपिंग इंक के एकमात्र शेयरहोल्डर और निदेशक के रूप में नामित किया गया है, जो शमखानी के शिपिंग नेटवर्क का हिस्सा है.
यूएपीए का लद्धड़ रिकार्ड
8974 गिरफ्तारियां, दोषसिद्धि केवल 252
गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा प्रस्तुत नवीनतम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, पुलिस और जांच एजेंसियों ने 2018 और 2022 के बीच पांच वर्षों में कठोर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत 8,974 लोगों को गिरफ्तार किया है. इनमें से 6,503 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया, लेकिन केवल 252 को ही दोषी ठहराया जा सका. जम्मू और कश्मीर में इन पांच वर्षों में सबसे अधिक 2,633 गिरफ्तारियां हुईं, लेकिन अदालतों द्वारा केवल 13 लोगों को दोषी ठहराया गया. राज्यों में, उत्तर प्रदेश 2,162 गिरफ्तारियों के साथ कश्मीर के बाद दूसरे स्थान पर है.
यूएपीए की तरह, धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) भी अभियुक्तों के लिए जमानत प्राप्त करना मुश्किल बना देता है. यह प्रवर्तन निदेशालय को विस्तृत अधिकार भी देता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2022 के एक फैसले में बरकरार रखा था. शीर्ष अदालत अपने फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली है, लेकिन उसने कहा है कि वह पहले इन याचिकाओं की विचारणीयता पर दलीलें सुनेगी, और मामले की अगली सुनवाई 6 अगस्त को तय की है.
2008 मालेगांव ब्लास्ट केस
‘संदेह उच्च स्तर का, लेकिन सजा देने लायक नहीं, एनआईए कोर्ट ने सभी 7 आरोपियों को बरी किया
'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत ने 2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है. इनमें पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित शामिल हैं. विशेष न्यायाधीश ए. के. लाहोटी ने फैसले में कहा, "अभियोजन पक्ष ने कोई ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य पेश नहीं किया, इसलिए आरोपियों को संदेह का लाभ दिया जाता है."
न्यायाधीश ने कहा, "सिर्फ संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. संदेह का स्तर उच्च अवश्य है, लेकिन वह सजा देने के लिए पर्याप्त नहीं है." उन्होंने आगे कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, और “नैतिक आधार पर दोषसिद्धि नहीं दी जा सकती.”
17 साल पुराना मामला : 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास रमज़ान के दौरान मोटरसाइकिल पर रखे गए बम में विस्फोट हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक घायल हुए थे. महाराष्ट्र एटीएस ने शुरुआती जांच में दावा किया था कि विस्फोट में प्रयुक्त बाइक साध्वी प्रज्ञा की थी और विस्फोटक (RDX) जम्मू-कश्मीर से लाकर पुरोहित ने अपने घर में रखा था. कोर्ट ने कहा कि बाइक का चेसिस नंबर स्पष्ट नहीं था और फॉरेंसिक जांच अधूरी रही. कोर्ट ने यह भी माना कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि 'अभिनव भारत' नामक संगठन, जिसे पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर ने मिलकर शुरू किया था, उसने आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन का उपयोग किया.
गवाह हुए मुखर या मौन : मामले में 323 गवाह पेश हुए, जिनमें से 34 गवाह कोर्ट में बयान से पलट गए. करीब 30 गवाहों की मृत्यु ट्रायल के दौरान हो गई. कई गवाहों ने यह भी आरोप लगाया कि एटीएस ने उनसे जबरन बयान दिलवाए थे.
पूर्व अभियोजकों पर विवाद : विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालेन को एनआईए ने अचानक हटा दिया था. सालेन ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि एनआईए ने उन पर "हिंदुत्व नेताओं के खिलाफ नरमी बरतने" का दबाव डाला था. इसके बाद अभियोजक अविनाश रासल को भी आरोपपत्र दाखिल करने से पहले सूचना नहीं दी गई थी. अदालत ने पीड़ितों को मुआवज़ा देने का आदेश दिया है. मृतकों के परिजनों को ₹2 लाख और घायलों को ₹50,000 की सहायता दी जाएगी.
‘एनआईए आतंकवाद मामलों की जांच के लिए अयोग्य’
'द लेंस' के संपादकीय बोर्ड ने भी मालेगांव विस्फोट मामले पर प्रश्नचिन्ह लगाया है. उन्होंने लिखा- 'आज ट्रायल कोर्ट ने मालेगांव विस्फोट मामले में फैसला सुनाया और भोपाल की पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर और सेवानिवृत्त कर्नल पुरोहित सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया. यह फैसला आश्चर्यजनक नहीं है और मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए लोगों को ऐसे ही परिणाम की उम्मीद थी. हालांकि, सवाल राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की पेशेवर क्षमता पर उठता है, जो एक सप्ताह के अंतराल में देश के दो सबसे संवेदनशील आतंकवादी मामलों में तथ्यों को स्थापित करने में विफल रही है. राजनीतिक परिणामों और हमारे राष्ट्रीय विमर्श को हुए नुकसान से परे, प्रमुख जांच एजेंसी की विश्वसनीयता चरमरा गई है और इसका मतलब है कि सरकार पर कानून प्रवर्तन के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता.
जबकि महाराष्ट्र सरकार ने पिछले सप्ताह हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की थी, यह देखना बाकी है कि क्या वह निचली अदालत के इस फैसले को चुनौती देगी. हालांकि हमारी आपराधिक जांच प्रणाली की अक्षमता अब कोई नई बात नहीं है, यह मामला अनोखा है. 2016 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद, एनआईए ने कोर्ट में यू-टर्न लिया और आरोपियों के लिए जमानत की सुविधा प्रदान की. नौ साल तक आरोपी जमानत पर रहे, एक ने तो लोकसभा में प्रवेश भी किया और समन से बचते रहे. अचानक इस साल अप्रैल में एनआईए ने फिर से अपना रुख बदला और आरोपियों के लिए मृत्युदंड की मांग की और अब सभी बरी हो गए.
मुकदमे के जटिल इतिहास को देखें, जहां विशेष लोक अभियोजकों ने धीमा करने के दबाव का हवाला देकर खुद को अलग किया और जजों के बार-बार बदलने की घटनाएं हुईं, ऐसा लगता है कि जांच स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थी. जब मामला मजबूत लग रहा था, जैसा कि दिवंगत साहसी पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे ने जांच की थी, तब एनआईए ने जमानत का विरोध नहीं किया और नौ साल बाद जब मामला कमजोर हो गया, तो अचानक मृत्युदंड की मांग की गई.
मीडिया में तीखी बहस शुरू हो चुकी है. भगवा ब्रिगेड ने इस अवसर का फायदा उठाया और यूपीए सरकार पर “भगवा आतंकवाद” जैसे झूठे शब्द गढ़ने और मामले को गढ़ने का आरोप लगाया, जबकि विपक्ष जांच और अभियोजन पर संदेह जता रहा है.
मालेगांव अकेला मामला नहीं!
साल 2008 का मालेगांव बम विस्फोट ऐसा अकेला मामला नहीं है, जब साल 2022 तक 94.39% की दर से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की जांच पर दोषसिद्धि हुई हो. यहां ऐसे ही चर्चित मामले हैं, जो एनआईए की जांच पर सवाल खड़े करते हैं?
2007 समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट मामला : 18 फरवरी, 2007 को दिल्ली-लाहौर समझौता एक्सप्रेस ट्रेन में विस्फोट हुआ, जिसमें 68 लोग मारे गए और कई घायल हुए. इसके आरोपी थे स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी. 20 मार्च, 2019 को पंचकूला की विशेष एनआईए अदालत ने सभी चार आरोपियों को बरी कर दिया. बरी होने का कारण था अभियोजन पक्ष के पास कोई विश्वसनीय और स्वीकार्य सबूत न होना. साजिश साबित करने के लिए आरोपियों के बीच बैठकों का कोई सबूत नहीं, न ही कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) या मोबाइल फोन के स्वामित्व का कोई सबूत एनआई पेश नहीं कर पाई. फिंगरप्रिंट जांच में लापरवाही, क्योंकि विस्फोट में इस्तेमाल प्लास्टिक की बोतलों पर आरोपियों के फिंगरप्रिंट की तुलना नहीं की गई. सीसीटीवी फुटेज जैसे वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाने में विफलता, जो पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर बम रखने की कहानी को मजबूत कर सकता था. कई गवाहों ने अभियोजन पक्ष के खिलाफ बयान दिए (हॉस्टाइल हो गए). विशेष न्यायाधीश जगदीप सिंह ने अपनी टिप्पणी में कहा, "जांच में भारी खामियां हैं और एक आतंकी कृत्य अनसुलझा रह गया." उन्होंने गवाहों की सुरक्षा और बेहतर गवाह संरक्षण योजना की आवश्यकता पर भी जोर दिया.
2006 मालेगांव बम विस्फोट मामला : 8 सितंबर, 2006 को मालेगांव में मस्जिद के पास चार विस्फोट हुए, जिसमें 40 लोग मारे गए व 125 घायल थे. नौ लोग, मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय से आरोपी बनाए गए, लेकिन साल 2016 में एनआईए कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया. एनआईए ने पाया कि महाराष्ट्र एटीएस ने गलत लोगों को फंसाया. गवाहों को प्रताड़ित करने के आरोप. साजिश साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं.
केरल गोल्ड तस्करी मामला (2020) : कोच्चि में राजनयिक चैनल के जरिए सोने की तस्करी का मामला सामने आया. हमजथ अब्दुस्सलाम, टी.एम. संजू और अन्य इस मामले में आरोपी बने. 23 अक्टूबर, 2020 को कोच्चि की एनआईए कोर्ट ने दो आरोपियों को जमानत दी. एनआईए 100 दिन की जांच के बाद आतंकी संगठनों से संबंध साबित नहीं कर सकी. यूएपीए के तहत आरोप, लेकिन आर्थिक सुरक्षा को खतरा साबित करने के सबूत नहीं. कोर्ट ने कहा कि केवल सोना तस्करी आतंकी कृत्य नहीं।
इन मामलों में एनआईए पर राजनीतिक दबाव, सबूतों की कमी, गवाहों का हॉस्टाइल होना, और प्रक्रियात्मक खामियों (जैसे दूषित नमूने, अपर्याप्त वैज्ञानिक साक्ष्य) के आरोप लगे. मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस जैसे मामलों में “हिंदू आतंकवाद” और “मुस्लिम आतंकवाद” की बहस ने जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठाए.
बिहार वोटबंदी
जहां मुस्लिम ज्यादा हैं, वहीं फॉर्म कम जमा हुए
'स्क्रोल' के लिए आयुष तिवारी की रिपोर्ट है कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत 65 लाख मतदाताओं, यानी 8.3% मतदाताओं ने गणना फॉर्म जमा नहीं किए हैं, जिसके कारण वे 1 अगस्त को जारी होने वाली प्रारंभिक मतदाता सूची में शामिल नहीं हो पाएंगे. राज्य के 10 सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले जिलों में से छह में सबसे ज्यादा गणना फॉर्म लंबित हैं. इनमें सीमांचल क्षेत्र के चार जिले—अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार—तथा सितामढ़ी और पूर्वी चंपारण शामिल हैं.
मुस्लिम बहुल जिलों में लंबित फॉर्म : 16 जुलाई के निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 1.49 करोड़ मतदाताओं ने गणना फॉर्म जमा नहीं किए थे, जो बिहार के कुल मतदाताओं का 19% है. पूर्णिया जिले में सबसे अधिक 6 लाख से ज्यादा मतदाताओं (28%) ने फॉर्म जमा नहीं किए, जहां मुस्लिम आबादी 39% है. सीतामढ़ी में 27% मतदाताओं ने फॉर्म नहीं भरे, जहां 22% आबादी मुस्लिम है। अन्य जिले जैसे अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्वी चंपारण भी इस सूची में हैं. वहीं, जिन 10 जिलों में सबसे कम फॉर्म लंबित हैं, उनमें से पांच में मुस्लिम आबादी सबसे कम है, जैसे जहानाबाद, शेखपुरा, मुंगेर, अरवल और वैशाली. खगड़िया में केवल 13% मतदाताओं ने फॉर्म नहीं भरे, जो सबसे कम है.
रोहतास जिले की सासाराम सीट पर एक तिहाई (33%) मतदाताओं ने फॉर्म नहीं जमा किए, जो सबसे अधिक है. पूर्णिया जिले की धमदाहा (32%) और अमौर (31%) सीटें भी पीछे हैं. सीतामढ़ी की सुरसंड, रीगा और बेलसंड सीटें भी शीर्ष 10 में हैं. दूसरी ओर, वैशाली की महुआ और राजा पकड़ सीटों पर केवल 7% मतदाताओं ने फॉर्म नहीं भरे, जो सबसे अच्छा प्रदर्शन है.
विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों ने चेतावनी दी है कि इस संशोधन से लाखों नागरिक, विशेषकर दलित और मुस्लिम समुदाय, मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा, “हमने हमेशा कहा है कि प्रवासी मजदूर और ग्रामीण गरीब मुस्लिम मतदाता इस प्रक्रिया में सबसे कमजोर हैं. असम से बिहार तक बड़े पैमाने पर मतदाताओं का नाम कट सकता है.”
योगेन्द्र यादव : बिहार में भरे गए फॉर्मों में से कम से कम एक चौथाई "फर्जी
"द वायर" मे करन थापर को दिए एक साक्षात्कार में, राजनीतिक विश्लेषक और भारत जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव ने बिहार में चल रहे विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) को एक "धोखाधड़ी" और "वोटबंदी" की तरह की कवायद बताया है. उन्होंने इस प्रक्रिया को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की नींव पर एक गंभीर हमला करार दिया, जो संविधान का मूल आधार है. यादव ने तर्क दिया कि यह केवल एक सूची का संशोधन नहीं है, बल्कि पूरी मतदाता सूची को नए सिरे से लिखने का एक प्रयास है, जिसके गंभीर संवैधानिक और व्यावहारिक परिणाम होंगे.
यादव ने इस पूरी कवायद की तुलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई नोटबंदी से करते हुए कहा कि जैसे नोटबंदी को बिना सोचे-समझे और कम समय के नोटिस पर लागू किया गया था, उसी तरह इस पुनरीक्षण का आदेश भी आनन-फानन में दिया गया.[1] उन्होंने कहा, "जैसे नोटबंदी में पहले दवा दे दी गई और फिर उस बीमारी को खोजा जाने लगा जिसका इलाज करना था, उसी तरह चुनाव आयोग भी अब इस कवायद के लिए तर्क गढ़ रहा है." यादव ने इस बात पर जोर दिया कि इस प्रक्रिया के माध्यम से देश में पहली बार मतदाता पर ही अपनी नागरिकता साबित करने का बोझ डाला जा रहा है, जबकि पिछले 75 वर्षों से यह जिम्मेदारी राज्य की रही है.
साक्षात्कार में यादव ने कई चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे. उन्होंने दावा किया कि बिहार में भरे गए फॉर्मों में से कम से कम एक चौथाई "फर्जी" हैं.[2] इसका मतलब यह है कि लोगों ने वास्तव में ये फॉर्म नहीं भरे हैं, न ही उन्हें दिए गए और न ही उनसे प्राप्त किए गए. यह सब कागजी कार्रवाई ब्लॉक लेवल अधिकारियों (BLO) द्वारा घर बैठे की गई है. उन्होंने बताया कि किस तरह पटना में नगरपालिका के सफाई कर्मचारी फॉर्म बांट रहे हैं और इकट्ठा कर रहे हैं, और जब इस बारे में बूथ लेवल अधिकारी से पूछा गया तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की. यादव ने पत्रकार अजीत अंजुम की रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसमें दिखाया गया है कि मतदाताओं की जानकारी के बिना उनके नाम पर फॉर्म अपलोड किए जा रहे हैं.
दस्तावेजों की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए, यादव ने कहा कि 1987 के बाद पैदा हुए लोगों से जन्म प्रमाण पत्र मांगना अव्यावहारिक है, खासकर यह देखते हुए कि 2007 में भी 75% जन्म पंजीकृत नहीं हुए थे. उन्होंने अपनी व्यक्तिगत स्थिति का उदाहरण देते हुए कहा कि एक शिक्षित परिवार में पैदा होने और सरकारी अस्पताल में जन्म के बावजूद उनके पास अपना जन्म प्रमाण पत्र नहीं है. उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे माता-पिता के जन्म का प्रमाण देना अधिकांश लोगों के लिए असंभव है. यादव ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि इस प्रक्रिया के कारण बिहार की आबादी का लगभग 20% हिस्सा, जो प्रवासी श्रमिक हैं, मताधिकार से वंचित हो सकते हैं, क्योंकि उनके लिए इस कवायद के लिए वापस लौटना संभव नहीं है.
यादव ने चुनाव आयोग के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि यह प्रक्रिया डुप्लिकेट मतदाताओं को हटाने के लिए है. उन्होंने तर्क दिया कि यह काम मौजूदा सूची की जांच करके भी किया जा सकता था, इसके लिए पूरी सूची को नए सिरे से बनाने की कोई आवश्यकता नहीं थी.[3] उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग अपनी ही पुरानी प्रथाओं और अदालती फैसलों का उल्लंघन कर रहा है. गुवाहाटी उच्च न्यायालय के 1993 के एक फैसले का हवाला देते हुए, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था, उन्होंने कहा कि मतदाता सूची तैयार करते समय नागरिकता की जांच करना चुनाव आयोग का काम नहीं है. यादव ने निष्कर्ष निकाला कि यह कवायद लोकतांत्रिक प्रथाओं को खत्म करने और सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की सार्वभौमिकता को मिटाने की दिशा में एक और कदम है.
कोई ‘संदिग्ध मतदाता’ नामक श्रेणी नहीं, कानून मंत्री ने राज्यसभा को बताया
'द हिन्दू' की रिपोर्ट है कि बिहार में जारी विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बीच भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के माध्यम से राज्यसभा को सूचित किया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत “संदिग्ध मतदाता” नामक कोई श्रेणी नहीं है. यह उत्तर समाजवादी पार्टी (SP) के सांसद रामजी लाल सुमन के एक प्रश्न के उत्तर में दिया गया, जिन्होंने पूछा था कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में “संदिग्ध मतदाताओं” ने वोट डाला था.
भारत के चुनाव आयोग ने 24 जून को एक बयान में कहा था कि विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण की आवश्यकता विभिन्न कारणों तीव्र नगरीकरण, बार-बार प्रवासन, नए युवा मतदाताओं की पात्रता, मृत्यु की रिपोर्टिंग न होना और ‘विदेशी अवैध प्रवासियों’ के नाम सूची में होने के कारण पड़ी, ताकि सूची की शुद्धता बनी रहे. “भारत के चुनाव आयोग ने सूचित किया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार ‘संदिग्ध मतदाता’ नाम की कोई श्रेणी नहीं है,” केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राज्यसभा में लिखित उत्तर में कहा. सुमन ने यह भी पूछा कि क्या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) में गड़बड़ी की जा सकती है. मेघवाल ने कहा कि चुनाव आयोग ने सूचित किया है कि ईवीएम के जरिए चुनाव परिणामों में कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती.
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सांसद मनोज कुमार झा के आधार और वोटर आईडी को लिंक करने से जुड़े एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कानून मंत्रालय ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, जिसे 2021 में चुनाव कानून (संशोधन) अधिनियम द्वारा संशोधित किया गया था, चुनाव पंजीकरण अधिकारियों को मौजूदा या संभावित मतदाताओं से पहचान स्थापित करने के लिए स्वैच्छिक रूप से उनका आधार नंबर मांगने की अनुमति देता है.
“चुनाव आयोग ने 4 जुलाई, 2022 को जारी निर्देश के अनुसार, 1 अगस्त 2022 से सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मौजूदा और संभावित मतदाताओं से स्वैच्छिक आधार पर आधार नंबर एकत्र करने का कार्यक्रम शुरू किया है. आधार को मतदाता फोटो पहचान पत्र से जोड़ने की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है,” चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय के माध्यम से कहा. यह प्रतिक्रिया तब आई है जब कुछ महीने पहले चुनाव आयोग ने घोषणा की थी कि वह जल्द ही आधार लिंकिंग प्रक्रिया शुरू करेगा.
मसौदा मतदाता सूची प्रकाशन से एक दिन पहले केंचुआ ने की तसल्ली देने की कोशिश
'द हिन्दू' की रिपोर्ट है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के अंतर्गत बिहार में मसौदा मतदाता सूचियों के प्रकाशन से एक दिन पहले, भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार ने राज्य के मतदाताओं को आश्वस्त किया कि सभी मतदाताओं और राजनीतिक दलों को 1 अगस्त से 1 सितंबर तक नाम जोड़ने, हटाने और सुधार की दावे/आपत्तियां दर्ज कराने का अवसर दिया जाएगा. "बिहार की मसौदा मतदाता सूची शुक्रवार, 1 अगस्त को https://voters.eci.gov.in/download पर प्रकाशित की जा रही है," — मुख्य चुनाव आयुक्त की ओर से ऐसी जानकारी दी गई है. उन्होंने कहा कि बिहार के सभी 38 ज़िलों में जिला चुनाव अधिकारियों (DEO) द्वारा सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को भौतिक और डिजिटल प्रतियां प्रदान की जाएंगी.
बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी (CEO) और 243 निर्वाचन रजिस्ट्रेशन अधिकारी (ERO) मतदाताओं एवं दलों को मसौदा सूची में सुधार हेतु 1 अगस्त से 1 सितंबर तक दावे और आपत्तियां दर्ज कराने के लिए आमंत्रित करेंगे. SIR प्रक्रिया 24 जून को शुरू हुई थी और इसका अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी.
सड़क पर उतरेगा इंडिया गठबंधन
अगले हफ्ते चुनाव आयोग मुख्यालय तक मार्च करेगा विपक्ष; राहुल और तेजस्वी अगस्त के दूसरे-तीसरे सप्ताह में बिहार में चलाएंगे अभियान
'द हिंदू' की रिपेार्ट है कि INDIA गठबंधन ने गुरुवार (31 जुलाई 2025) को हुई अपनी बैठक में सर्वसम्मति से फैसला लिया कि बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ आंदोलन अब संसद के बाहर भी तेज किया जाएगा. गुरुवार को संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही ठप रही.
गठबंधन के नेताओं ने अगले सप्ताह चुनाव आयोग के मुख्यालय तक विरोध मार्च निकालने का फैसला किया है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बैठक में सुझाव दिया कि विपक्ष को यह स्पष्ट रूप से दिखाना चाहिए कि चुनाव आयोग अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर SIR के ज़रिए मतदाताओं की नागरिकता तय करने की कोशिश कर रहा है. राहुल गांधी ने यह भी सुझाव दिया कि विरोध में आम जनता की समझ वाली भाषा का इस्तेमाल किया जाए, जैसे "वोटबंदी" (नोटबंदी की तर्ज़ पर), "वोट की चोरी" या "वोट की लूट". राहुल गांधी और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव, अगस्त के दूसरे और तीसरे सप्ताह में बिहार में SIR के मुद्दे पर दो सप्ताह लंबा अभियान चलाएंगे.
गठबंधन ने जानबूझकर अपनी बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए 25% शुल्क पर कोई चर्चा नहीं की, ताकि SIR के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित रखा जा सके.
कर्नाटक में "वोट चोरी" का आरोप
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे अगले सप्ताह INDIA गठबंधन दलों के लिए एक रात्रिभोज आयोजित करेंगे. एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने बताया, “राहुल गांधी ने कहा है कि वे उस दिन कर्नाटक के उदाहरण के माध्यम से एक प्रस्तुति देंगे.” राहुल गांधी ने हाल ही में दावा किया है कि उनकी टीम ने कर्नाटक में बड़े पैमाने पर मतदाता अनियमितताएं पाई हैं. उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा - “हमने महाराष्ट्र में मैच फिक्सिंग दिखाई. अब कर्नाटक की एक लोकसभा सीट की जांच की, जहां बड़े पैमाने पर वोट चोरी मिली है, हम इसे जल्द ही जनता के सामने लाएंगे.”
बजरंग दल ने झूठे बयान के लिए मजबूर किया
छत्तीसगढ़ में गिरफ्तार की गईं केरल की ननों पर जिन तीन आदिवासी महिलाओं की तस्करी का आरोप है, उनमें से एक 21 वर्षीय महिला कमलेश्वरी प्रधान ने आरोप लगाया है कि बजरंग दल के सदस्यों ने उसे झूठा बयान देने के लिए मजबूर किया और प्रताड़ित किया. उसने पुलिस पर भी अपना बयान बदलने का आरोप लगाया है. नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस के साथ नारायणपुर निवासी सुखमन मंडावी पर तस्करी और इन महिलाओं का जबरन धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाया गया था. बजरंग दल के सदस्य रवि निगम की शिकायत के बाद उन्हें दुर्ग रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया था. अब नारायणपुर में अपने घर लौटीं सुश्री प्रधान ने गुरुवार (31 जुलाई, 2025) को पत्रकारों से कहा कि उन्होंने पुलिस को भी यही बात बताई थी, लेकिन उनका बयान ठीक से दर्ज नहीं किया गया. जब उनसे पूछा गया कि गिरफ्तारी के दिन बजरंग दल के सदस्यों ने क्या किया, तो उन्होंने कहा, "उन्होंने हमारे साथ मारपीट की और कहा कि अगर हमने वह नहीं कहा जो वे चाहते थे, तो वे मेरे भाई और सिस्टर्स (गिरफ्तार ननों) को जेल में डाल देंगे". द हिंदू ने पहले रिपोर्ट दी थी कि महिलाओं के परिवारों ने ननों को निर्दोष बताया था. सुश्री प्रधान ने भी यही बात दोहराई और कहा कि ननों और श्री मंडावी को रिहा किया जाना चाहिए.
पाकिस्तान से आए हिंदु शरणार्थियों के मक़ानों पर बुलडोज़रों का ख़तरा मंडराया
'आर्टीकल 14' के लिए आदित्य शर्मा की रिपोर्ट है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने 30 मई 2025 को मजनू का टीला स्थित यमुना किनारे की बस्ती को गिराने का रास्ता साफ कर दिया है, जहां 800 से ज़्यादा पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी रहते हैं. अदालत ने इस "अवैध अतिक्रमण" को हटाने की अनुमति दी है, लेकिन इन लोगों के पुनर्वास की कोई योजना नहीं बनाई गई है, वो भी तब जबकि इनमें से लगभग 300 लोगों को नागरिकता मिल चुकी है.
मोहिनी बागड़ी, जो 2018 में पाकिस्तान से भारत आई थीं, कहती हैं, “हम यहां अपने बच्चों के लिए आए थे. अब यही हमारा घर है.” लेकिन अब ये घर गिरने की कगार पर है. 2013 से बसनी शुरू हुई इस बस्ती में ज्यादातर लोग सिंध प्रांत से आए हैं और छोटे-मोटे काम करके अपनी जिंदगी चला रहे हैं. बच्चे स्थानीय स्कूलों में पढ़ रहे हैं, महिलाएं दुकानें चला रही हैं. न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि जो लोग भारतीय नागरिक नहीं हैं, उन्हें 2015 की पुनर्वास नीति के तहत कोई राहत नहीं मिल सकती.
उन्होंने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम यानी CAA के तहत ऑनलाइन आवेदन करने की सलाह दी। लेकिन समस्या यह है कि CAA उन्हीं को नागरिकता देने की अनुमति देता है जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ गए थे. मोहिनी बागड़ी जैसी कई महिलाओं के परिवार 2015 या बाद में आए हैं, इसलिए वे CAA के तहत नागरिकता के लिए पात्र नहीं हैं. धर्मवीर बागड़ी जैसे समुदाय के नेताओं का कहना है कि 300 से अधिक लोगों को नागरिकता मिल चुकी है, लेकिन उन्हें भी पुनर्वास नहीं दिया जा रहा. उनका कहना है, “ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया गरीब, अनपढ़ और बिना दस्तावेज़ वालों के लिए एक भूलभुलैया है.”
दिल्ली उच्च न्यायालय के मुताबिक, केंद्रीय आवास मंत्रालय ने 2024 में यमुना किनारे 59 एकड़ भूमि पुनर्वास के लिए आवंटित की थी, लेकिन दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और अन्य मंत्रालयों ने उस पर कोई ठोस काम नहीं किया. मानवाधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने कहा, “इस फैसले में करुणा की कमी है. विस्थापन सिर्फ शारीरिक नहीं होता, यह पहचान की हानि भी है.” वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने अदालत के फैसले को "संवेदनहीन" बताते हुए कहा कि, “जो सरकार हिंदुओं के अधिकारों की बात करती है, वही हिंदू शरणार्थियों को बेघर कर रही है.”
60 वर्षीय रघुबीर, जो 2011 में पाकिस्तान से आए थे, ने कहा, “जब हम आए, तो ये ज़मीन ऊबड़-खाबड़ थी, हमने अपनी जमापूंजी लगाकर इसे रहने लायक बनाया. अब फिर से उजाड़ा जा रहा है.” लक्ष्मी बागड़ी ने कहा, “हमने बच्चों की पढ़ाई और सुरक्षित जीवन के लिए पाकिस्तान छोड़ा था. अब यहां भी डर है कि हम फिर से सड़क पर आ जाएंगे.”
अडानी का वियतनाम पर दांव, 10 अरब डॉलर के निवेश की संभावना
अरबपति गौतम अडानी कथित तौर पर वियतनाम में 10 अरब डॉलर तक के निवेश की संभावनाएं तलाश रहे हैं. यह उनके समूह के लिए एशिया की ओर एक महत्वपूर्ण झुकाव का प्रतीक है, जो अमेरिका में कानूनी और प्रतिष्ठा संबंधी झटकों से उबरने की कोशिश कर रहा है. ब्लूमबर्ग द्वारा उद्धृत एक आधिकारिक बयान के अनुसार, वियतनाम की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव तो लाम के साथ हाल ही में एक बैठक में, अडानी ने बुनियादी ढांचे, ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों सहित क्षेत्रों में गहरी रुचि व्यक्त की. यह बैठक अडानी की चीन यात्रा के ठीक बाद हुई है, जो नवंबर में अमेरिकी अधिकारियों द्वारा उनके और उनके समूह के खिलाफ आपराधिक और नागरिक मामले दर्ज किए जाने के बाद उनकी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा थी.
व्हाट्सएप पर पुलिस समन नहीं चलेंगे
द हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें पुलिस समन को व्हाट्सएप के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजने की अनुमति मांगी गई थी. अदालत ने पुलिस को जांच के लिए आवश्यक व्यक्तियों को भौतिक नोटिस देने के अपने निर्देश को दोहराया है. 16 जुलाई को पारित एक आदेश में, जिसे कल अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया, जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41ए के तहत पुलिस द्वारा जारी नोटिस के किसी भी उल्लंघन के गंभीर परिणाम होते हैं, क्योंकि इससे गिरफ्तारी हो सकती है और व्यक्तियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता छिन सकती है. अदालत ने अपने आदेश में कहा, "हम खुद को यह विश्वास दिलाने में असमर्थ हैं कि इलेक्ट्रॉनिक संचार भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 की धारा 35 के तहत नोटिस तामील करने का एक वैध तरीका है, क्योंकि इसे जानबूझकर छोड़ना विधायी मंशा का एक स्पष्ट प्रकटीकरण है".
लीजेंड्स चैंपियनशिप: भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ खेलने से किया इनकार
वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ लीजेंड्स (डब्ल्यूसीएल) में एक नाटकीय मोड़ आया जब भारत चैंपियंस ने दोनों पड़ोसी देशों के बीच बढ़ते तनाव के कारण पाकिस्तान चैंपियंस के खिलाफ सेमीफाइनल खेलने से इनकार कर दिया. इसके साथ ही पाकिस्तान फाइनल में पहुंच गया. टूर्नामेंट का पहला सेमीफाइनल आज बर्मिंघम में पाकिस्तान चैंपियंस और इंडिया चैंपियंस के बीच होना था. हालांकि, मैच रद्द कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान फाइनल में पहुंच गया, जहां उसका मुकाबला शनिवार, 2 अगस्त को दक्षिण अफ्रीका या ऑस्ट्रेलिया से होगा.
127 साल बाद भारत लौटे बौद्ध रत्न
नीलामी घर सोथबीज ने भारत सरकार और वैश्विक बौद्ध नेताओं के बढ़ते दबाव के बाद, बुद्ध के अवशेषों से जुड़े माने जाने वाले पवित्र रत्नों का एक सेट भारत को लौटा दिया है. पिपरावा रत्न - जिन्हें पुरातत्वविदों ने आधुनिक युग की सबसे आश्चर्यजनक खोजों में से एक बताया है - को मई में हांगकांग में नीलाम किया जाना था. लेकिन दिल्ली के राजनयिक हस्तक्षेप और कानूनी कार्रवाई की धमकी के बाद बिक्री रोक दी गई थी. सोथबीज ने कहा कि मुंबई स्थित समूह गोदरेज इंडस्ट्रीज ग्रुप ने इन रत्नों का अधिग्रहण किया है. भारतीय संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि कीमती कलाकृतियों का औपचारिक रूप से एक विशेष समारोह के दौरान अनावरण किया जाएगा और उन्हें सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखा जाएगा.
चंद्रचूड़ की कार के लिए वीआईपी नंबर? : एक दिलचस्प घटनाक्रम में, सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार ने परिवहन आयुक्त को पत्र लिखकर पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की नई मर्सिडीज-बेंज के लिए एक विशिष्ट पंजीकरण संख्या आवंटित करने का अनुरोध किया है. इससे यह सवाल उठता है कि क्या यह वाहन सुप्रीम कोर्ट कोटे के तहत आवंटित किया जा रहा है? यदि हां, तो एक पूर्व सीजेआई को ऐसा लाभ क्यों दिया जा रहा है? वैकल्पिक रूप से, यदि यह एक निजी वाहन है, तो सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्रार आधिकारिक तौर पर वीआईपी नंबर हासिल करने के लिए हस्तक्षेप क्यों कर रहा है?
लगातार 15 टॉस हार भारत तोड़ता रिकार्ड और प्रोबेबिलिटी के कायदे
भारतीय क्रिकेट टीम इन दिनों सिर्फ खेल के मैदान पर नहीं, बल्कि टॉस के मैदान पर भी सबसे अलग इतिहास रच रही है और दुर्भाग्य से यह रिकॉर्ड किसी भी कप्तान के लिए गर्व की बात नहीं हो सकती. 'द टेलिग्राफ' की रिपोर्ट है कि इंग्लैंड के खिलाफ चल रही टेस्ट सीरीज के पांचवें और आख़िरी टेस्ट में भी टीम इंडिया टॉस हार गई. यह भारत का लगातार 15वां टॉस हारना था, तीनों फॉर्मेट्स में मिलाकर. इस सीरीज में कप्तान शुभमन गिल ने सभी 5 टेस्ट में टॉस गंवाए और आंकड़े कहते हैं कि ऐसा होना लगभग नामुमकिन है. एक निष्पक्ष सिक्के के साथ 15 बार लगातार टॉस हारने की संभावना 1/32,768 यानी मात्र 0.003% होती है. सीधे कहें तो इस साल आपके ऊपर बिजली गिरने की संभावना इससे ज़्यादा है!
28 जनवरी को सूर्यकुमार यादव ने टॉस जीता था. उसके बाद से रोहित शर्मा और अब शुभमन गिल दोनों ही लगातार टॉस हारते आ रहे हैं. इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइक एथरटन ने इस टॉस-सिलसिले पर चुटकी ली - "तुम (रवि शास्त्री) टॉस करवा रहे हो, ज़िम्मेदार तुम भी हो. तुम्हें भी निकाल दिया जाएगा!" शास्त्री हंसते हुए बोले, “अब तो गिल सिक्का देखकर ऊपर देखना भी छोड़ चुके हैं.”
21वीं सदी में यह दूसरा मौका है जब किसी टीम ने 5 मैचों की टेस्ट सीरीज में सारे टॉस गंवाए हों और दोनों बार ये भारत के साथ ही हुआ, इंग्लैंड में, 2018 और अब 2025 में. फिर भी, भारत ने पहले भी बिना टॉस जीते टूर्नामेंट जीते हैं जैसे रोहित शर्मा की अगुवाई में चैम्पियंस ट्रॉफी. अब शुभमन गिल की उम्मीद भी यही है- किस्मत नहीं तो कम से कम परिणाम ही सही.
चलते-चलते
30 साल पुराने भ्रूण से जन्मा दुनिया का 'सबसे पुराना शिशु', अमेरिका में हुआ चमत्कार
चिकित्सा विज्ञान ने एक बार फिर चमत्कार कर दिखाया है. 'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि 26 जुलाई 2025 को अमेरिका के ओहायो में एक बच्चे का जन्म 1994 में फ्रिज़ किए गए भ्रूण से हुआ, जो अब दुनिया का "सबसे पुराना शिशु" माना जा रहा है. थैडियस डैनियल पीयर्स नाम के इस बच्चे का जन्म लिंडसे और टिम पीयर्स दंपती के यहां हुआ है. उन्होंने 30 साल से अधिक समय से फ्रीज़ रखे गए एक भ्रूण को "गोद" लिया था, जिसे मूल रूप से लिंडा आर्चर्ड नाम की महिला ने 1994 में आईवीएफ के ज़रिए बनवाया था.
1990 के दशक की शुरुआत में लिंडा और उनके पति ने गर्भधारण में असमर्थता के चलते आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) का सहारा लिया. 1994 में चार भ्रूण तैयार हुए, एक से लिंडा को बेटी हुई, जो अब 30 साल की है और खुद एक 10 साल की बच्ची की मां है. बाकी तीन भ्रूण क्रायोप्रिज़र्व (फ्रीज़) कर दिए गए. लिंडा को अपने तलाक के बाद इन भ्रूणों की कस्टडी मिल गई. बाद में उन्होंने भ्रूण "गोद लेने" की प्रक्रिया के ज़रिए एक ईसाई, श्वेत, विवाहित जोड़े को इन्हें सौंपने का निर्णय लिया और इस तरह से ये भ्रूण पीयर्स दंपती को मिला.
मां लिंडसे बोलीं - “हमने रिकॉर्ड तोड़ने के लिए नहीं किया, बस बच्चा चाहिए था.” एफआईटी टेक्नोलॉजी रिव्यू से बात करते हुए लिंडसे ने कहा, “हम बस माता-पिता बनना चाहते थे. जन्म के समय थोड़ी कठिनाई हुई, लेकिन अब सब ठीक है. हमारा बच्चा बेहद शांत स्वभाव का है. हम अभी भी हैरान हैं कि यह सच है.” लिंडा आर्चर्ड ने जब बच्चे की तस्वीर देखी तो उन्होंने कहा, “वह मेरी बेटी जैसा ही दिखता है जब वह बच्ची थी. मैंने अपना बेबी बुक निकाला और दोनों की तस्वीरें मिलाकर देखीं, वो एक जैसे हैं. वे भाई-बहन हैं.”
इस भ्रूण को प्रत्यारोपित करने वाले डॉक्टर जॉन गॉर्डन एक रिप्रोडक्टिव एंडोक्राइनोलॉजिस्ट हैं, जो ईसाई संप्रदाय के अनुयायी हैं और मानते हैं कि “हर भ्रूण को जीवन का एक अवसर मिलना चाहिए.” उनका उद्देश्य भंडारण में रखे गए लाखों भ्रूणों की संख्या को कम करना है. वे कहते हैं, “जो भ्रूण गर्भाशय में प्रत्यारोपित नहीं किया गया, वही जीवन नहीं दे सकता. बाकी सभी में संभावना होती है.” यूके में आईवीएफ से जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या 2000 में 1.3% से बढ़कर 2023 में 3.1% हो गई है, यानि हर 32 में से एक बच्चा. 40–44 आयु वर्ग की महिलाओं में 11% बच्चों का जन्म आईवीएफ से हुआ, जो 2000 में सिर्फ 4% था. अमेरिका में करीब 2% बच्चे आईवीएफ से पैदा होते हैं.
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