01/10/2025: 68.5 लाख नाम कटे बिहार वोटिंग लिस्ट से | लोकतंत्र के कसीनो पर पराकला प्रभाकर | नोबेल न मिल जाए वांगचुक को | बिहार डिप्टी सीएम पर हत्या, बलात्कार के आरोप लगाए पीके ने | बरेली में बुलडोज़र
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
बिहार: वोटर लिस्ट से 68.5 लाख नाम गायब...
जब सरकार ही वोटर चुनने लगे... यानी लोकतंत्र का कसीनो
डिप्टी सीएम पर हत्या-बलात्कार के आरोप, पीके की मांग- गिरफ्तार करो
‘इनोवेटर्स के साथ अपराधियों जैसा सलूक, तो विश्वगुरु कैसे बनेगा भारत?’
‘दूध लेने गया था, वापस नहीं लौटा’: बरेली में अवैध हिरासत का आरोप
आई लव मुहम्मद विवाद: गिरफ्तारी के बाद अब बुलडोज़र...
प्रज्ञा ठाकुर का नया विवाद: ‘दुश्मन को आधा काट देना चाहिए’
मानसून का अजीब मिजाज़: देश में ज़्यादा बारिश, फिर भी 20% ज़िलों में सूखा
झारखंड के आदिवासियों के लिए ‘लाख’ की खेती, लाखों की कमाई
पत्रकार को दस्तावेज़ लीक करने वाले आरोपी की जेल में मौत, उठे सवाल
कोंकण का छिपा खज़ाना: लौह अयस्क की आड़ में सोना-प्लैटिनम का निर्यात?
करूर भगदड़: 41 मौतों पर सरकार की सफाई, यूट्यूबर गिरफ्तार
पाकिस्तान: क्वेटा में सुरक्षा मुख्यालय के बाहर धमाका, 8 की मौत
स्मार्ट सिटी का डर: क्या AI कैमरे भी मुसलमान और हिंदू में फर्क करेंगे?.
बिहार की मतदाता सूची से 68.5 लाख नाम हटाए
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग ने बिहार की मतदाता सूची से लगभग 68.5 लाख नाम काट दिए हैं. मंगलवार को प्रकाशित अंतिम सूची में 7.42 करोड़ मतदाता दिखाए गए हैं. यह संख्या 24 जून के 7.89 करोड़ मतदाताओं से 6% कम है. यह कमी तीन महीने के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) के बाद आई है, जिसकी नागरिकता जांच जैसा होने के लिए आलोचना भी की गई थी.
चुनाव आयोग के अनुसार, ड्राफ्ट रोल प्रकाशित करते समय हटाए गए के रूप में चिह्नित 65 लाख नामों के अलावा, 3.66 लाख और नाम हटा दिए गए, जबकि 21.53 लाख नए मतदाता जोड़े गए. सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि अंतिम सूची में 7.42 करोड़ मतदाता हैं, यह जानकारी आज दोपहर ज़िला कलेक्टरों के साथ बैठकों के दौरान राजनीतिक दलों को दी गई. इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट करना और डुप्लीकेट या स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं के नाम हटाना था, लेकिन कुछ समूहों ने इस प्रक्रिया पर चिंता जताई थी कि यह नागरिकता की जांच करने जैसा है.
पराकला प्रभाकर: लोकतंत्र का कसीनो यानी जब सरकार अपने वोटर ख़ुद चुनने लगे
कल्पना कीजिए एक ऐसे लोकतंत्र की, जहाँ जनता सरकार नहीं, बल्कि सरकार ही अपने वोटर चुनने लगे. यह किसी दूर देश की कहानी नहीं, बल्कि भारत में लोकतंत्र के सामने खड़े एक ख़तरनाक सच की तस्वीर है, जो हाल ही में बिहार से आई एक ख़बर ने और साफ़ कर दी है.
द वायर के एम के वेणु से बातचीत में राजनीतिक अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर ने इसी ख़तरनाक चलन पर रौशनी डाली है. मुद्दा बिहार के ढाका विधानसभा क्षेत्र का है, जहाँ कुल दो लाख से कुछ ज़्यादा वोटर हैं. यहाँ बीजेपी के विधायक कार्यालय से क़रीब 78,000 वोटरों के नाम वोटर लिस्ट से हटाने के लिए बाक़ायदा अर्ज़ी दी गई. यह कुल वोटरों का लगभग 40% हिस्सा है. चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से ज़्यादातर नाम मुस्लिम समुदाय के लोगों के थे.
प्रभाकर कहते हैं कि हम लोकतंत्र के एक ऐसे दौर में पहुँच गए हैं, जहाँ शासक दल धर्म, जाति या सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर उन वोटरों को ही सूची से हटाने की कोशिश कर रहा है, जिनके उसे वोट न देने की आशंका हो. यह अब कोई छुपी हुई साज़िश नहीं, बल्कि खुलेआम औद्योगिक पैमाने पर हो रहा है. यह कोई अकेली घटना नहीं है. इससे पहले कर्नाटक के महादेवपुरा और आलंदी में भी इसी तरह वोटर लिस्ट से बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ के मामले सामने आ चुके हैं.
इस पूरी प्रक्रिया में चुनाव आयोग की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठते हैं. प्रभाकर अपने एक दोस्त का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि बीजेपी के युवा मोर्चा और महिला मोर्चा की तरह चुनाव आयोग अब उसका ‘इलेक्शन मोर्चा’ बन गया है. चुनाव आयोग की विश्वसनीयता इतनी कम हो गई है कि वह अब शासक दल की एक शाखा की तरह काम करता नज़र आता है.
प्रभाकर विपक्ष को ‘कसीनो सिंड्रोम’ से बाहर निकलने की सलाह देते हैं. जैसे कसीनो में कोई खिलाड़ी कभी-कभार छोटी-मोटी बाज़ी जीत जाता है, लेकिन अंत में हारता ही है, वैसे ही विपक्ष भी कहीं एक-दो चुनाव जीतकर ख़ुश हो जाता है. लेकिन इस प्रक्रिया में वह एक ऐसी धाँधली भरी व्यवस्था को वैधता दे रहा है, जिसमें उसकी स्थायी हार तय है.
वह आगाह करते हैं कि हो सकता है कि शासक दल विपक्ष को बिहार चुनाव जीतने दे, ताकि वोटर लिस्ट में छेड़छाड़ का मुद्दा शांत हो जाए और फिर वे पूरे देश में इस ‘राजनीतिक सफ़ाई’ के अभियान को अंजाम दे सकें. उनके लिए बिहार हारना एक बड़ी राष्ट्रीय जीत के लिए चुकाई गई छोटी क़ीमत होगी.
यह लड़ाई सिर्फ़ राजनीतिक दलों की नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को बचाने की है. सवाल यह है कि क्या विपक्ष इस कसीनो से बाहर निकलेगा या छोटी-मोटी जीत के धोखे में लोकतंत्र की सबसे बड़ी बाज़ी हार जाएगा.
बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर बलात्कार, हत्या के मामले, पीके ने गिरफ़्तार करने की मांग की
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बिहार के दो वरिष्ठ एनडीए मंत्रियों के ख़िलाफ़ गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. इसी दौरान उन्होंने अपनी आय का भी ब्योरा दिया. किशोर ने कहा कि उन्होंने पिछले तीन वर्षों में सलाहकार सेवाओं के ज़रिए 241 करोड़ रुपये कमाए हैं और इसका “एक-एक रुपया हिसाब में है”. उन्होंने कहा कि इस आय में से 30.95 करोड़ रुपये जीएसटी और 20 करोड़ रुपये आयकर के रूप में चुकाए गए.
प्रशांत किशोर ने भाजपा नेता और उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को तुरंत उनके पद से हटाने और गिरफ़्तार करने की मांग की. उन्होंने चौधरी पर 1995 के तारापुर नरसंहार में शामिल होने का आरोप दोहराया, जिसमें कुशवाहा समुदाय के सात लोगों की हत्या कर दी गई थी. किशोर ने यह भी आरोप लगाया कि चौधरी ने घटना के समय ख़ुद को नाबालिग बताने के लिए जाली दस्तावेज़ जमा किए थे. इसके अतिरिक्त, किशोर ने यह भी पूछा कि क्या 1999 में दो लोगों की मौत के मामले में सम्राट चौधरी की जांच हुई थी. इस मामले की जांच सीबीआई ने की थी, जिसने बाद में मौतों को आत्महत्या करार दिया था. किशोर ने चौधरी से इस मामले में अपनी कथित भूमिका को “स्पष्ट” करने को कहा. जन सुराज नेता ने कहा कि उनकी पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल चौधरी की बर्ख़ास्तगी के लिए राज्यपाल से मिलेगा और वह इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखेंगे.
जहां सम्राट चौधरी ने इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, वहीं भाजपा ने इन आरोपों को बेबुनियाद और व्यक्तिगत प्रतिशोध से प्रेरित बताया. बिहार भाजपा मीडिया प्रभारी दानिश इक़बाल ने कहा, “प्रशांत किशोर प्रासंगिक बने रहने के लिए सनसनी फैला रहे हैं. उनके आरोप सिर्फ़ सुर्खियों में बने रहने की एक हताश कोशिश है.” इक़बाल ने कहा, “तारापुर नरसंहार मामले का फ़ैसला अदालत में हो चुका है, और अदालत ने सम्राट चौधरी को बरी कर दिया है. यहां तक कि लालू प्रसाद यादव को भी ग़लत आरोपों के लिए उनसे माफ़ी मांगनी पड़ी थी.”
प्रेस कॉन्फ्रेंस में किशोर ने जद(यू) मंत्री अशोक चौधरी पर भी नए आरोप लगाए, जिन पर वह पहले भी भ्रष्टाचार और सरकारी ठेकों में कमीशन रैकेट चलाने का आरोप लगा चुके हैं. किशोर ने आरोप लगाया कि मंत्री पिछले आठ महीनों में 20,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा के सरकारी ठेकों से “5% कमीशन वसूल रहे थे.” किशोर ने कहा, “मेरे पास दस्तावेज़ हैं जो दिखाते हैं कि अशोक चौधरी ने 500 करोड़ रुपये की अवैध संपत्ति अर्जित की है. अगर वह सात दिनों के भीतर मेरे ख़िलाफ़ 100 करोड़ रुपये का मानहानि नोटिस वापस नहीं लेते हैं, तो मैं इन दस्तावेज़ों को जारी कर दूंगा.” इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए अशोक चौधरी ने किशोर के आरोपों को बेबुनियाद बताया. उन्होंने कहा, “प्रशांत किशोर को मेरी घोषित संपत्ति से अलग, मेरे नाम पर पंजीकृत एक भी ज़मीन का टुकड़ा दिखाना चाहिए. उन्हें यह साबित करना होगा.”
अपनी आय के बारे में किशोर ने बताया कि सलाहकार शुल्क विभिन्न ग्राहकों को दी गई रणनीतिक सलाह से आया था. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें एक प्रोडक्ट लॉन्च के दौरान “दो घंटे की सलाह” के लिए नवयुग कंस्ट्रक्शन से 11 करोड़ रुपये मिले थे. उन्होंने कहा, “मैंने अपने व्यक्तिगत खाते से 98.75 करोड़ रुपये जन सुराज को दान किए हैं.” इस पर भाजपा के दानिश इक़बाल ने सवाल उठाया, “प्रशांत किशोर किस तरह की सलाह देते हैं? क्या प्रशांत किशोर एक आर्किटेक्ट या इंजीनियर हैं जो निर्माण कंपनियों को सलाह देते हैं? उनके दावों का कोई मतलब नहीं है.”
‘अगर इनोवेटर्स के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार होगा, तो भारत विश्वगुरु कैसे बनेगा?’: सोनम वांगचुक की पत्नी ने सरकार पर उठाए सवाल
द वायर और द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स के अनुसार, लद्दाख के जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी और हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ़ अल्टरनेटिव्स लद्दाख (HIAL) की निदेशक गीतांजलि आंगमो ने केंद्र सरकार को उनके पति के ख़िलाफ़ लगाए गए विदेशी संबंधों और वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों को साबित करने की चुनौती दी है. सोनम वांगचुक को पिछले हफ़्ते राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत हिरासत में लेकर राजस्थान की जोधपुर जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था.
नई दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में मीडिया से बात करते हुए आंगमो ने कहा, “अगर वह (सोनम) देशद्रोही थे, तो सरकार उनके प्रयासों को पुरस्कृत क्यों कर रही थी? सोनम एक महीने के भीतर देशद्रोही कैसे बन गए? यह सब उन्हें फंसाने के लिए किया जा रहा है.” उन्होंने कहा कि उनके पति के काम को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है और HIAL को लद्दाख में पैसिव सोलर हीटेड इमारतों के डिज़ाइन के लिए केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह द्वारा पहला पुरस्कार दिया गया था. उन्होंने कहा, “अगर हम इस अच्छे काम करने वाले व्यक्ति के साथ एक अपराधी जैसा व्यवहार करते हैं और कर्फ़्यू के साथ डर का माहौल बनाते हैं, तो भारत ‘विश्व गुरु’ कैसे बनेगा और दूसरे कैसे प्रेरित होंगे?”
आंगमो ने HIAL में वित्तीय अनियमितताओं और FCRA उल्लंघन के आरोपों को भी ख़ारिज कर दिया. उन्होंने दावा किया कि उनके एनजीओ ने कोई विदेशी चंदा स्वीकार नहीं किया है. उन्होंने कहा, “हमारे भविष्य के शोध को विदेशी विश्वविद्यालयों ने ख़रीदा है और इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है. ये भुगतान सेवा समझौतों के तहत आते हैं और सीबीआई ने भी स्वीकार किया है कि कोई उल्लंघन नहीं हुआ है.”
पाकिस्तान संबंधों के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए, उन्होंने कहा कि वांगचुक ने पड़ोसी देश में एक जलवायु सम्मेलन में भाग लिया था, जो फरवरी में संयुक्त राष्ट्र और इस्लामाबाद स्थित डॉन मीडिया समूह द्वारा आयोजित किया गया था. इसी सम्मेलन पर पत्रकार निरुपमा सुब्रमण्यम ने द वायर के लिए एक लेख में बताया कि वह भी वहां मौजूद थीं. उन्होंने लिखा कि यह जलवायु परिवर्तन पर एक दक्षिण एशियाई सम्मेलन था और वांगचुक ने मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उनके ‘मिशन लाइफ़’ के लिए प्रशंसा की थी.
लद्दाख बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहम्मद शफ़ी लस्सू ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि NSA के तहत हिरासत वांगचुक को “नोबेल पुरस्कार” दिलाएगी. उन्होंने कहा, “वांगचुक पर लगाए गए सभी आरोप झूठे और मनगढ़ंत हैं.” उन्होंने कहा कि अगर वांगचुक देशद्रोही होते, तो वह ‘चीनी उत्पादों का बहिष्कार’ का नारा नहीं देते. लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने भी वांगचुक की गिरफ़्तारी की निंदा की है और उनकी तत्काल रिहाई की मांग की है.
“मोदी ने विश्वासघात किया, क्या राष्ट्र सेवा का यही इनाम है?”
इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लद्दाख के लोगों के साथ “विश्वासघात” किया है. उन्होंने पुलिस की गोलीबारी में चार प्रदर्शनकारियों की मौत की निष्पक्ष न्यायिक जांच की मांग भी की है.
“पीटीआई” के मुताबिक, बुधवार को लद्दाख में मारे गए लोगों में कारगिल युद्ध में लड़ने वाले जवान त्सेवांग थारचिन भी शामिल थे. राहुल ने “एक्स” पर थारचिन के पिता का एक वीडियो पोस्ट किया और कहा, “सेना में पिता, सेना में बेटा - देशभक्ति उनके खून में दौड़ती है. फिर भी भाजपा सरकार ने राष्ट्र के इस बहादुर बेटे को गोली मार दी, सिर्फ इसलिए कि वह लद्दाख और अपने अधिकारों के लिए खड़ा हुआ था. पिता की दर्द भरी आंखें एक सवाल पूछती हैं, क्या आज राष्ट्र की सेवा का यही इनाम है?”
उधर, लेह में मंगलवार को कर्फ्यू में चार घंटे की ढील दी गई. इस अवधि के दौरान किराना, आवश्यक सेवाओं, हार्डवेयर और सब्जी की दुकानों को खोलने का आदेश दिया गया. हालांकि, स्कूल और अन्य शैक्षणिक संस्थान बंद रहे.
आई लव मुहम्मद
“दूध लेने गया था, वापस नहीं लौटा”: बरेली में अवैध हिरासत का आरोप
बरेली में ‘आई लव मुहम्मद’ अभियान के बाद दर्ज हुई एफआईआर के ख़िलाफ़ शुक्रवार को हुए विरोध प्रदर्शनों पर पुलिस की कार्रवाई के बाद कई परिवार सदमे और निराशा में हैं. आरोप है कि कई युवा मुस्लिम पुरुषों और नाबालिगों को पुलिस ने उठाया और हाथ जोड़कर सार्वजनिक रूप से उनकी परेड कराई. तब से, उनके परिवारों का दावा है कि उन्हें उनके ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है. यह रिपोर्ट मक़्तूब मीडिया के लिए ग़ज़ाला अहमद ने की है.
हर दिन, माताएँ और बहनें स्थानीय पुलिस स्टेशनों के बाहर इकट्ठा होती हैं, और अपने लापता रिश्तेदारों के बारे में जानने की गुहार लगाती हैं. उनकी कहानियाँ शहर में फैल रहे डर और लाचारी को दर्शाती हैं. इन्हीं में से एक हैं गुलफ़शां, जिनके 17 वर्षीय बेटे को पुलिस ने शुक्रवार रात को उठा लिया था.
गुलफ़शां ने मक़्तूब को बताया, “मेरा लड़का घर के लिए सिर्फ़ दूध लेने गया था. वह तब से वापस नहीं लौटा है. पड़ोसियों ने हमें बताया कि पुलिस ने अगले चौराहे से अपनी छापेमारी के दौरान उसे उठा लिया. जब हम थाने जाते हैं, तो वे कुछ नहीं कहते. वह तो अभी बच्चा है.” उन्होंने कहा, “अशांति और पुलिस कार्रवाई को देखते हुए वह शुक्रवार को पूरे दिन घर पर ही था. वह चाय पीना चाहता था इसलिए मैंने उसे दूध का एक पैकेट लाने को कहा. वह बाहर गया और कभी वापस नहीं आया.” आज पाँचवाँ दिन है जब अस्थमा की मरीज़ गुलफ़शां अपने बेटे की तलाश में थाने के चक्कर काट रही हैं. उन्होंने कहा, “हम हर दिन सुबह यहाँ आते हैं और अपने बेटे को देखने की उम्मीद में रात के 12-2 बजे के आसपास लौटते हैं.”
एक अन्य महिला, अफ़साना ने कहा कि पुलिस ने उनके चाचा और परिवार के दो अन्य लोगों को रविवार दोपहर को तब उठा लिया जब वह घर पर नहीं थीं. उनके चाचा कबाड़ की दुकान चलाते हैं और गुज़ारे के लिए इंस्टाग्राम पर वीडियो बनाते हैं. अफ़साना ने मक़्तूब को बताया, “हमें नहीं पता कि वे कहाँ हैं. मैं लगातार थाने जा रही हूँ, लेकिन मुझे सिर्फ़ ख़ामोशी मिलती है. हम न खा पा रहे हैं, न सो पा रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे वह हवा में गायब हो गया हो.” उन्होंने बताया, “मेरी बेटी घर पर नहा रही थी, तभी पुलिस आई और उन्हें घर से उठा ले गई. वे सब अपने वीडियो की शूटिंग के लिए बाहर जाने की तैयारी कर रहे थे.”
नसीम फ़ातिमा, जिनका छोटा भाई भी लापता है, ने कहा कि परिवार टूटने की कगार पर है. उन्होंने पूछा, “मेरा भाई बेक़सूर है. उसका विरोध प्रदर्शन या राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. हम हर अधिकारी, कोतवाली, एसएसपी कार्यालय, हर जगह जा रहे हैं. वे हमें इंतज़ार करने के लिए कहते हैं, लेकिन कब तक? अगर वह उनके पास है, तो कम से कम हमें दिखा तो दें, मिलने तो दें. यह ख़ामोशी क्यों?”
परिवारों का कहना है कि उनके साथ कोई आधिकारिक गिरफ़्तारी का रिकॉर्ड साझा नहीं किया गया है. रिश्तेदारों की मदद कर रहे वकीलों का तर्क है कि इस तरह की हिरासत अवैध है और यह संवैधानिक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन करती है. कार्यकर्ता भी चेतावनी देते हैं कि पारदर्शिता के बिना इस तरह की कार्रवाई से समुदाय का पुलिस के साथ विश्वास का संकट और गहरा रहा है. वहीं, पुलिस अधिकारी हिरासत में लिए गए लोगों को “उपद्रवी” बता रहे हैं, लेकिन हिरासत में लिए गए लोगों की सही संख्या अभी भी अज्ञात है. इसके अलावा, पुलिस ने 10 एफआईआर दर्ज की हैं, जिसमें 2,000 से अधिक लोगों को नामज़द किया गया है और प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरु तौक़ीर रज़ा ख़ान सहित कम से कम 60 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, जिनकी गिरफ़्तारी का कोई विशेष कारण परिवारों को नहीं बताया गया है.
बरेली पुलिस ने मौलाना मोहसिन रज़ा को गिरफ़्तार किया, संपत्ति पर बुलडोजर चला
द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, “आई लव मोहम्मद” विवाद पर हंगामे के बीच, उत्तर प्रदेश पुलिस ने मंगलवार को बरेली में 26 सितंबर के विरोध प्रदर्शन के सिलसिले में मौलाना मोहसिन रज़ा को गिरफ़्तार कर लिया. उनकी संपत्ति पर बुलडोज़र भी चलाया गया.
लोगों का एक समूह आला हज़रत दरगाह और इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (IMC) के प्रमुख मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान के घर के बाहर “आई लव मोहम्मद” की तख्तियां लेकर इकट्ठा हुआ था. जुमे की नमाज़ के बाद हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया था.
बरेली रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक (DIG) अजय कुमार साहनी ने कहा कि पथराव मामले में मुख्य साज़िशकर्ता के रूप में उभरे मौलाना तौक़ीर रज़ा के कई सहयोगियों को गिरफ़्तार किया गया है. पुलिस का कहना है कि मौलाना मोहसिन रज़ा मुख्य आरोपी मौलाना तौक़ीर रज़ा से जुड़े हैं, जो न्यायिक हिरासत में हैं. इस मामले में अब तक कुल 56 लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है और पुलिस आगे की कार्रवाई कर रही है.
हेट क्राइम
प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने फिर दिया भड़काऊ बयान, ‘दुश्मन को आधा काट देना चाहिए’, मुस्लिम पुरुषों से बचने की दी सलाह
इस साल की शुरुआत में मालेगांव बम धमाके मामले में बरी हुईं हिंदुत्व कार्यकर्ता प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने भोपाल में दुर्गा वाहिनी शस्त्र पूजन कार्यक्रम में अपने बयान से एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. उन्होंने हिंदू महिलाओं से मुस्लिम पुरुषों से बचने और उन्हें घरेलू कामों के लिए न रखने की अपील की. साथ ही उन्होंने कहा, “जब दुश्मन आए तो उसे आधा काट देना चाहिए.” यह रिपोर्ट मक़्तूब स्टाफ़ द्वारा की गई है.
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, जो भोपाल से पूर्व भाजपा सांसद हैं और मालेगांव विस्फोटों में मुख्य अभियुक्त थीं, जिसमें मुस्लिम बहुल इलाक़े में छह मुस्लिम पुरुषों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक घायल हो गए थे, ने दुर्गा वाहिनी के एक कार्यक्रम में अपनी टिप्पणियों से फिर से विवाद खड़ा कर दिया.
उन्होंने कहा, “मियों [मुसलमानों के लिए एक अपमानजनक शब्द] में कोई भाई-बहन का रिश्ता नहीं होता. अगर वे अपनी बहनों का सम्मान नहीं करते, तो वे आपका सम्मान अपनी बहन के रूप में कैसे कर सकते हैं? कभी भी मुसलमानों की बहनें मत बनना.” उन्होंने आगे कहा, “जब हमारी बेटियों का अपहरण किया जाता है और उनके शव सड़क पर फेंक दिए जाते हैं, तो बहुत दर्द होता है. उस दर्द को दूर करने के लिए, जब दुश्मन आए, तो उसे आधा काट देना चाहिए.”
ठाकुर ने महिलाओं से आग्रह किया कि वे मुस्लिम पुरुषों को अपने घरों से दूर रखने के लिए व्यावहारिक प्रतिज्ञा लें. उन्होंने सलाह दी कि लाइट फिटिंग, पानी के नल की मरम्मत या वाहन चलाने जैसे कामों के लिए मुस्लिम पुरुषों को घर में न आने दें. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि मंदिरों के पास मुसलमानों द्वारा संचालित दुकानों से भोजन न खरीदें और कहा कि समूहों को ऐसी दुकानों की पहचान करनी चाहिए. उन्होंने कहा, “एक बार जब हमारे मंदिरों के पास प्रसाद बेचने वाले ऐसे विधर्मी पकड़े जाएँ, तो उनकी पिटाई की जानी चाहिए और क़ानून प्रवर्तन को सौंप दिया जाना चाहिए.”
ठाकुर की इन टिप्पणियों पर कड़ी राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई है. मध्य प्रदेश में विपक्ष के नेता उमंग सिंघार ने उनके बयानों को “आपत्तिजनक” बताया और भाजपा पर जानबूझकर ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए मुस्लिम विरोधी तनाव को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. एनडीटीवी ने सिंघार के हवाले से कहा, “भाजपा दूसरों पर हिंदू-मुस्लिम राजनीति करने का आरोप लगाती है, लेकिन उसके अपने नेता सार्वजनिक मंचों से ऐसे भड़काऊ बयान देते हैं. प्रज्ञा ठाकुर बार-बार ऐसा करती हैं. ऐसे समय में जब मध्य प्रदेश बेरोज़गारी, महँगाई और भर्ती घोटालों से जूझ रहा है, भाजपा जनता को गुमराह करने के लिए ऐसी बयानबाज़ी का इस्तेमाल करती है.”
ठाकुर की यह टिप्पणी मुसलमानों को निशाना बनाने वाले भड़काऊ बयानों और नफ़रती भाषणों के एक लंबे पैटर्न का हिस्सा है, जिसमें अक्सर “लव जिहाद” की साज़िशों का ज़िक्र, कथित “दुश्मनों” के ख़िलाफ़ हिंसा का आह्वान और मुसलमानों के बहिष्कार को बढ़ावा देना शामिल है. इससे पहले, आतंकी मामले की आरोपी भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने हिंदुओं से घर में हथियार तैयार रखने का आग्रह किया था, जिसमें स्पष्ट रूप से मुसलमानों को “दुश्मन” बताया गया था. उन्होंने कहा था, “घर में हथियार रखो. उन्हें तेज़ रखो. अगर सब्ज़ियाँ अच्छी तरह से काटी जा सकती हैं, तो दुश्मन का सिर भी काटा जा सकता है.”
मानसून 2025: देश में सामान्य से ज़्यादा बारिश, फिर भी 20% ज़िलों में सूखा; कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे जैसे हालात
30 सितंबर को दक्षिण-पश्चिम मानसून 2025 का मौसम सामान्य से अधिक बारिश के साथ आधिकारिक तौर पर समाप्त हो गया. हालाँकि, देश के कुल 727 ज़िलों में से 20 प्रतिशत में इस दौरान बारिश की कमी देखी गई. यह रिपोर्ट डाउन टू अर्थ में प्रकाशित हुई है और इसके आँकड़े भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) पर आधारित हैं.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के 1 जून, 2025 से 30 सितंबर, 2025 तक के आंकड़ों से पता चला है कि मानसून सामान्य से आठ प्रतिशत ज़्यादा बारिश के साथ समाप्त हुआ. इस अवधि में औसत बारिश के मामले में केवल चार राज्यों - अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय और बिहार - में कम बारिश हुई. हालाँकि, ज़िला स्तर पर बारिश का वितरण बहुत असंतुलित और असमान था.
जहाँ दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, देहरादून जैसे कई शहरी शहरों सहित कई अन्य क्षेत्रों में 20 से 40 प्रतिशत के बीच ‘अतिरिक्त वर्षा’ हुई, वहीं देश में कम से कम 146 ज़िले ऐसे थे जहाँ ‘कम’ या ‘बहुत कम’ बारिश हुई. IMD के अनुसार, ‘कम बारिश’ तब होती है जब वास्तविक वर्षा लंबी अवधि के औसत (LPA) से 20 प्रतिशत से 59 प्रतिशत के बीच कम होती है, जबकि ‘बहुत कम बारिश’ का मतलब है कि वर्षा LPA के 60 से 99 प्रतिशत से कम होती है.
30 सितंबर तक, कुल 727 ज़िलों में से, जिनके आँकड़े IMD के पास उपलब्ध थे, 135 ज़िले ‘कम’ श्रेणी में और 11 ‘बहुत कम’ श्रेणी में थे. उत्तर प्रदेश (UP) के देवरिया ज़िले में 87 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई, जो सभी ज़िलों में सामान्य वर्षा से सबसे अधिक कमी थी. हालाँकि, समग्र रूप से उत्तर प्रदेश में ‘सामान्य’ वर्षा हुई. देवरिया के बाद मेघालय के वेस्ट जयंतिया हिल्स और साउथ वेस्ट गारो हिल्स ज़िले थे, जहाँ क्रमशः 75 प्रतिशत और 73 प्रतिशत वर्षा की कमी दर्ज की गई. वास्तव में, आमतौर पर ज़्यादा बारिश वाले राज्य मेघालय में 42 प्रतिशत की सबसे अधिक कमी दर्ज की गई.
दूसरी ओर, लद्दाख के ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र में 1 जून से 30 सितंबर के बीच सामान्य से 342 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई. लद्दाख के साथ, एकमात्र अन्य राज्य/केंद्र शासित प्रदेश जहाँ ‘बहुत अधिक वर्षा’ (सामान्य से 60 प्रतिशत से अधिक) हुई, वह अर्ध-शुष्क राज्य राजस्थान था (सामान्य से 63 प्रतिशत अधिक बारिश).
पत्रकार को संवेदनशील दस्तावेज़ ‘लीक’ करने के आरोपी क्लर्क की गिरफ्तारी के दो हफ्ते बाद जेल में मौत
गुजरात मैरीटाइम बोर्ड (जीएमबी) के एक क्लर्क निशिध जानी की साबरमती जेल के अंदर स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद अस्पताल में मौत हो गई. जानी को पत्रकार महेश लांगा को संवेदनशील दस्तावेज़ लीक करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. लांगा से जुड़े भ्रष्टाचार और जीएसटी घोटाले के आरोपों के बीच उनकी अचानक हुई मौत ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
दिलीप सिंह क्षत्रिय के मुताबिक, लांगा से जुड़े संवेदनशील दस्तावेज़ लीक मामले में गिरफ्तारी के महज़ दो सप्ताह बाद जानी की मृत्यु रहस्यमय परिस्थितियों में हुई है. वह पहले से ही फेफड़ों से संबंधित बीमारी से पीड़ित थे, और सोमवार देर रात साबरमती सेंट्रल जेल में उनकी तबीयत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल ले जाया गया था.
जानी की गिरफ्तारी सीधे तौर पर लांगा के खिलाफ अक्टूबर 2024 के मामले से जुड़ी थी. गांधीनगर पुलिस ने लांगा के आवास पर छापेमारी के दौरान गुजरात मैरीटाइम बोर्ड के गोपनीय दस्तावेज़ बरामद किए थे. उस समय, लांगा को अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने पहले ही जीएसटी घोटाले के संबंध में गिरफ्तार कर लिया था, जिससे एक बड़े भ्रष्टाचार के गठजोड़ का संदेह गहरा गया था.
लांगा के खिलाफ कई जांचें जारी हैं, लेकिन जानी की अचानक मौत ने अब पूरी जांच को ढंक दिया है. मुख्य आरोपी की अनुपस्थिति में यह सवाल बना हुआ है कि गुजरात मैरीटाइम बोर्ड के अंदर दस्तावेज़ लीक का नेटवर्क कितना गहरा था और क्या कुछ और नाम भी इसमें सामने आ सकते थे.
करूर भगदड़
तमिलनाडु सरकार ने अफवाहों को गलत बताया, वीडियो दिखाकर कहा-विजय देरी से पहुंचे, भीड़ बढ़ गई
तमिलनाडु सरकार के शीर्ष अधिकारियों ने मंगलवार (30 सितंबर, 2025) को सोशल मीडिया पर फैली उन अफवाहों को स्पष्ट करने की कोशिश की, जो पिछले शनिवार (27 सितंबर, 2025) को तमिलगा वेट्री कझगम (टीवीके) द्वारा आयोजित रैली के दौरान करूर में हुई दुखद भगदड़ के बारे में थीं. इस भगदड़ में 41 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए थे.
“द हिंदू” के अनुसार, विभिन्न टेलीविजन चैनलों और अन्य स्रोतों द्वारा कैप्चर किए गए वीडियो का संकलन दिखाते हुए, शीर्ष अधिकारियों ने समझाया कि टीवीके नेता विजय के आयोजन स्थल पर आने से कई घंटे पहले जुटी भीड़ शाम होते-होते कैसे बढ़ गई.
सचिवालय में एक संयुक्त प्रेस ब्रीफिंग में, सरकार की अतिरिक्त मुख्य सचिव पी. अमुधा ने भगदड़ की घटना के क्रम को समझाया. इस दौरान गृह सचिव धीरज कुमार, डीजीपी जी. वेंकटरमन और एडीजीपी (कानून और व्यवस्था) एस. डेविडसन देवसीर्थम भी मौजूद थे.
अमुधा ने बताया कि टीवीके ने घोषणा की थी कि विजय शनिवार को दोपहर तक कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे, जबकि वह रात में पहुंचे. बड़ी संख्या में लोग सुबह से ही जमा हो गए थे, और विजय के आने तक कई लोग थककर पानी की कमी का शिकार हो गए थे. उन्होंने कहा कि आयोजन स्थल वेलुसामीपुरम, आयोजकों के अनुरोध पर ही दिया गया था.
बड़ी स्क्रीन पर वीडियो चलाते हुए कि यह त्रासदी कैसे हुई, उन्होंने कहा कि बहुत सारे युवाओं ने विजय के वाहन के साथ आयोजन स्थल तक ड्राइव किया, जिसके परिणामस्वरूप रैली में अपेक्षित लोगों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई. अमुधा ने कहा कि सोशल मीडिया पर कुछ लोगों द्वारा लगाया गया यह आरोप गलत है कि बिजली कटौती हुई थी. उन्होंने उन रिपोर्टों को खारिज कर दिया जिनमें कहा गया था कि भगदड़ का कारण लाठीचार्ज था. उन्होंने कहा कि पुलिस ने केवल वाहनों को रास्ता देने के लिए लोगों को धक्का दिया था.
सोशल मीडिया पर हुई आलोचना, कि भगदड़ खुफिया विफलता का परिणाम थी, का जवाब देते हुए अमुधा ने कहा कि आयोजकों ने रैली में केवल 10,000 लोगों के आने की उम्मीद की थी, लेकिन शाम 6 बजे तक यह संख्या 20,000 को पार कर गई. पुलिस ने पार्टी द्वारा अनुमानित भीड़ के लिए ही योजना बनाई थी.
तमिलनाडु पुलिस ने यूट्यूबर को गिरफ़्तार किया
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, अभिनेता विजय की करूर में हुई रैली में भगदड़ के बाद आलोचना और साज़िश के सिद्धांतों के बढ़ने पर तमिलनाडु पुलिस ने एक यूट्यूबर को गिरफ़्तार किया है और ऑनलाइन पोस्ट के लिए कई अन्य लोगों पर मामला दर्ज किया है. यूट्यूबर फ़ेलिक्स जेराल्ड उन कई प्रभावशाली लोगों, पार्टी पदाधिकारियों और सोशल मीडिया यूज़र्स में से हैं, जिन पर अब आपराधिक आरोप लगे हैं. फ़ेलिक्स के एक वीडियो को 24 घंटे से भी कम समय में यूट्यूब पर दस लाख से ज़्यादा बार देखा गया. इस बीच, विपक्षी समूहों की ओर से राज्य के नियंत्रण से बाहर जांच की मांग बढ़ गई है. मद्रास उच्च न्यायालय आज जांच को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करेगा.
सोमवार को, पुलिस ने सोशल मीडिया पर झूठे दावे प्रसारित करने के आरोप में तीन लोगों को गिरफ़्तार किया - पेरुम्बक्कम से भाजपा पदाधिकारी सगयम, और तमिझगा वेत्री कझगम (TVK) के दो कार्यकर्ता, मंगडु के शिवनेसन और अवादी के शरथकुमार. ग्रेटर चेन्नई पुलिस ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि करूर त्रासदी के बारे में “अफ़वाहें और दुर्भावनापूर्ण सिद्धांत” साझा करने के लिए 25 खातों पर मामला दर्ज किया गया है.
इसका राजनीतिक असर तत्काल हुआ है. AIADMK महासचिव एडप्पादी के पलानीस्वामी, जो शोक संतप्त परिवारों से मिलने करूर गए थे, ने CBI जांच की मांग करते हुए कहा कि लोगों को DMK द्वारा नियुक्त एक सदस्यीय न्यायिक आयोग पर “कोई विश्वास नहीं” है. DMK नेताओं ने पलटवार किया है. पार्टी सांसद कनिमोझी ने पीड़ितों के परिवारों से मिलने के बाद, घटनास्थल से चले जाने के लिए विजय और उनके TVK नेताओं की निंदा की. उन्होंने करूर से उनके तत्काल प्रस्थान को “अमानवीय” बताया.
सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डॉक्टरों ने पुष्टि की कि मौत का प्राथमिक कारण कंप्रेसिव एस्फिक्सिया (भीड़ में छाती पर दबाव के कारण दम घुटना) था. 41 पीड़ितों में 18 महिलाएं, 13 पुरुष और 10 बच्चे थे. अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि 110 लोग घायल हुए थे. सोमवार रात तक, 51 को छुट्टी दे दी गई थी, जबकि 59 का इलाज करूर, मदुरै और निजी अस्पतालों में चल रहा है, जिनमें से दो गहन चिकित्सा इकाई में हैं.
झारखंड के पेड़ों पर होने वाली लाख से हो सकती है आदिवासियों को लाखों की आमदनी
स्क्रॉल.इन से नोलिना मिंज की एक रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड के खूंटी ज़िले के कुल्हई गांव के लॉरेंस कंडुलना दस साल से ज़्यादा समय तक पुणे में प्रवासी मज़दूर थे. लेकिन चार साल पहले, वह एक ऐसे उत्पाद की आर्थिक संभावनाओं के कारण स्थायी रूप से घर लौट आए, जिसकी उन्होंने पहले कभी खेती नहीं की थी. यह फ़सल थीलाख(Lac), जो ‘केरिया लैका’ कीट द्वारा स्रावित एक प्राकृतिक बहुलक (पॉलिमर) है. इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन और गहनों से लेकर बिजली के उपकरणों के लिए इन्सुलेशन कोटिंग तक कई उत्पादों में होता है.
लॉरेंस ने कहा, “लाह बहुत फ़ायदेमंद है. इसमें कुछ मेहनत और समय की पाबंदी की ज़रूरत होती है, लेकिन यह धान की खेती से आसान है.” भारत दुनिया मेंलाखका प्रमुख उत्पादक है, और रांची में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय द्वितीयक कृषि संस्थान के निदेशक अभिजीत कर के अनुसार, भारत दुनिया का लगभग 85%लाखका उत्पादन करता है - और झारखंड देश की कुल उपज का लगभग 55% उत्पादन करता है. राज्य में सालाना औसतन 20 हज़ार मीट्रिक टनलाखका उत्पादन होता है, जिसकी खेती लगभग 4 लाख परिवार करते हैं. वर्तमान में इसका बाज़ार भाव 700 रुपये से 1,000 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच है.
लाह के महत्व को पहचानते हुए, अप्रैल 2023 में, झारखंड सरकार ने इसका वर्गीकरण वन उपज से बदलकर कृषि उपज कर दिया, जिससे कृषकों को विभिन्न कृषि ऋण, योजनाओं और फ़सल बीमा का लाभ उठाने की अनुमति मिली. हालांकि, इसका एक अशांत आर्थिक इतिहास भी रहा है. 1960 के दशक तक,लाखका उपयोग मुख्य रूप से ग्रामोफोन रिकॉर्ड बनाने के लिए किया जाता था. जब ग्रामोफोन रिकॉर्ड चलन से बाहर हो गए तोलाखका बाज़ार गिर गया था. लेकिन अब इसके अनुप्रयोगों के विस्तार के कारण इसकी मांग फिर से बढ़ गई है.
लाह की खेती के लिए, किसान उन टहनियों का उपयोग करते हैं जिन पर गर्भवती मादालाखकीट होती हैं - वे इन टहनियों को, जिन्हें ब्रूडलाखकहा जाता है, मेज़बान पेड़ों से बांधते हैं. लार्वा निकलते हैं और मेज़बान पौधे की शाखाओं पर फैल जाते हैं, जिस पर वे एक रालयुक्त पदार्थ स्रावित करते हैं. यह जम कर पपड़ी बन जाता है जिसे किसान खुरच कर निकाल लेते हैं. कुल्हई गांव के एक किसान राजेश तिर्की ने पिछले साललाखकी खेती से 2 लाख रुपये कमाए, जिससे उन्होंने एक छोटा ट्रैक्टर ख़रीदा. वह कहते हैं, “एक बार जब लोगलाखकी खेती की वैज्ञानिक तकनीकों को समझ जाते हैं, तो यह आय का एक उत्कृष्ट स्रोत बन सकता है.” हालांकि, किसानों को मौसम के पैटर्न में बदलाव, कीटों और बाज़ार की अस्थिरता जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है.
पाकिस्तान के क्वेटा में अर्धसैनिक सुरक्षा मुख्यालय के बाहर बम धमाका, आठ की मौत
टेलीग्राफ़ इंडिया की एक वेब डेस्क रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी क्वेटा में मंगलवार को एक व्यस्त सड़क पर बम विस्फोट होने से कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई और 32 अन्य घायल हो गए. प्रांतीय स्वास्थ्य मंत्री बख्त मुहम्मद काकर ने डॉन को बताया, “बत्तीस घायलों को सिविल अस्पताल और ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया है.”
विस्फोट के बाद, बलूचिस्तान स्वास्थ्य विभाग ने प्रांतीय राजधानी के सभी अस्पतालों में आपातकाल घोषित कर दिया. स्वास्थ्य सचिव मुजीबुर रहमान के अनुसार, “क्वेटा सिविल अस्पताल, बीएमसी अस्पताल क्वेटा और ट्रॉमा सेंटर में आपातकाल घोषित कर दिया गया है.” उन्होंने कहा कि सभी सलाहकारों, डॉक्टरों, फार्मासिस्टों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ़ को ड्यूटी पर रहने का निर्देश दिया गया है.
यह विस्फोट क्षेत्र के साथ-साथ खैबर पख्तूनख्वा में हिंसा और तनाव में ताज़ा वृद्धि के बीच हुआ है. टेलीविज़न फुटेज और सोशल मीडिया क्लिप में शक्तिशाली विस्फोट को सड़क पर तबाही मचाते हुए दिखाया गया, जिसमें कई नागरिक भी चपेट में आ गए. हालांकि अभी तक किसी भी समूह ने विस्फोट की ज़िम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन बलूच विद्रोही समूह अक्सर प्रांत में सुरक्षा कर्मियों को निशाना बनाकर हमले करते हैं.
बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री मीर सरफ़राज़ बुगती ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे “आतंकवादी हमला” बताया. उन्होंने एक्स पर एक बयान में कहा, “आतंकवादी कायरतापूर्ण कृत्यों से राष्ट्र के संकल्प को कमज़ोर नहीं कर सकते. लोगों और सुरक्षा बलों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा.” बलूचिस्तान, जो ईरान और अफ़गानिस्तान की सीमा पर है, लंबे समय से हिंसक विद्रोह का सामना कर रहा है.
उच्च-आय वाले राज्य 44% जीडीपी देते हैं, निम्न-आय वाले राज्य 19% पर अटके
पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने कहा है कि उच्च-आय वाले राज्य, जो भारत की आबादी का 26 प्रतिशत हैं, जीडीपी में 44 प्रतिशत का योगदान करते हैं, जबकि निम्न-आय वाले राज्य, जिनकी आबादी 38 प्रतिशत है, केवल 19 प्रतिशत जीडीपी उत्पन्न करते हैं. उन्होंने इस अंतर को चिंताजनक बताया.
सोमवार को हैदराबाद विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में छठे इकोनॉमिक्स कॉन्क्लेव में ‘भारत की मैक्रो चुनौती: एक बड़े निवेश को उत्पन्न करना और वित्तपोषित करना’ विषय पर एक व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा, “तमिलनाडु और बिहार या उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त विकास रणनीति आवश्यक रूप से बहुत अलग होगी.” उन्होंने कहा, “यह एक तथ्य है कि राज्यों के बीच अंतर रहा है, और यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में हमें चिंता करने की ज़रूरत है.”
बेरी ने कहा, “मैं भारतीय संदर्भ में यह बात लाना चाहता हूं कि सिद्धांत रूप में, आप जितना पीछे होते हैं, उतनी ही तेज़ी से आप बढ़ सकते हैं.” उन्होंने उल्लेख किया कि तथाकथित बीमारू राज्यों - बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश का संक्षिप्त नाम - में से कुछ अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “यह सोचने का कोई कारण नहीं है कि अलग-अलग राज्य हमेशा के लिए पीछे रहने के लिए अभिशप्त हैं.”
बेरी ने यह भी बताया कि कुल रोज़गार में 150 मिलियन की वृद्धि हुई है, जिसमें से 80 मिलियन महिलाएं कृषि कार्यों में शामिल हुईं. उन्होंने कहा, “इनमें से 40 मिलियन अवैतनिक पारिवारिक श्रमिक हैं, लेकिन उन्हें अभी भी एक आर्थिक उद्यम के रूप में घर में योगदान करते हुए देखा जाता है.”
चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में केंद्र का राजकोषीय घाटा बढ़ा, पूरे साल के लक्ष्य का 38.1%
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़कर ₹5.98 लाख करोड़ हो गया है, जो पूरे साल के लक्ष्य का 38.1 प्रतिशत है. पिछले साल की इसी अवधि में यह 27 प्रतिशत था, जैसा कि सरकार के आंकड़ों से मंगलवार को पता चला.
“डेक्कन क्रॉनिकल” की खबर के अनुसार, राजकोषीय घाटे में यह वृद्धि मुख्य रूप से पूंजीगत व्यय में तेज उछालऔरराजस्व में कमी के कारण हुई है. केंद्र का अनुमान है कि 2025-26 के दौरान राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 4.4 प्रतिशत या ₹15.69 लाख करोड़ रहेगा. सीजीए ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा अगस्त तक ₹5.3 लाख करोड़ राज्यों को करों के हिस्से के हस्तांतरण के रूप में दिए गए हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में ₹74,431 करोड़ अधिक है.
कोंकण में छिपे खज़ाने की लड़ाई: फ़िल्मी कहानी और असल ज़िंदगी का संघर्ष
द हिंदू बिज़नेसलाइन से राधेश्याम जाधव की रिपोर्ट के अनुसार, भूविज्ञान और खनन निदेशालय के एक पूर्व सरकारी रसायनज्ञ, सत्तासी वर्षीय रामसिंह हज़ारे, कोल्हापुर के उपनगरों में बिस्तर पर पड़े हैं, लेकिन उनकी आत्मा अभी भी सवाल कर रही है. उनकी कहानी और ब्लॉकबस्टर मराठी फ़िल्म ‘दशावतार’ के बीच समानताएं हैं, जिसमें बाबुली मेस्त्री के ज़िद्दी संघर्ष की कहानी दिखाई गई है. जैसा कि हज़ारे इस फ़िल्मी लड़ाई को ज़बरदस्त तालियां बटोरते हुए देखते हैं, वह एक परेशान करने वाले सवाल से जूझते हैं: क्या सिनेमाघरों में जयकार करने वाली भीड़ कभी उस असली लड़ाई के पीछे खड़ी होगी जो उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी लड़ी है?
महाराष्ट्र के कोंकण तट की हरी-भरी पृष्ठभूमि पर आधारित यह फ़िल्म, बाबुली के व्यक्तिगत संघर्ष को विनाशकारी खनन से अपनी ज़मीन और संस्कृति को बचाने के लिए उसके समुदाय के संघर्ष के साथ जोड़ती है. लेकिन परदे के बाहर, वास्तविकता कहीं ज़्यादा परेशान करने वाली रही है - जो वैज्ञानिक आर.एस. हज़ारे की दशकों लंबी अकेली लड़ाई में गूंजती है.
हज़ारे याद करते हैं कि कैसे सिंधुदुर्ग के लौह अयस्क के नमूनों पर नियमित प्रयोगशाला परीक्षणों ने “अजीब दिखावट” का ख़ुलासा किया. उन्होंने कहा, “असामान्य धातुएं ग्राम-आकार के नमूनों में तब तक नहीं दिखतीं जब तक कि वे असामान्य रूप से उच्च मात्रा में मौजूद न हों. तभी मुझे सोने और प्लैटिनम जैसी कीमती धातुओं की उपस्थिति का संदेह हुआ.”
1978 से 1998 तक, उन्होंने बार-बार सरकारी विभागों को लिखा, चेतावनी दी कि कीमती धातु को लौह अयस्क के रूप में निर्यात किया जा रहा है. उनकी ज़िद ने उन्हें उपहास, धमकियां और अंततः 1995 में ज़बरन सेवानिवृत्ति दिलाई. 2002 में, शिवाजी विश्वविद्यालय जांच में शामिल हुआ. तत्कालीन कुलपति एम.जी. तकावले ने 2004 में मुख्यमंत्री को लिखा कि रेडी अयस्क के नमूनों में प्रति टन 67 ग्राम सोना और प्लैटिनम और कलने के नमूनों में प्रति टन 20 ग्राम था. इसकी तुलना में, कर्नाटक की हट्टी खदानों से प्रति टन सिर्फ़ 6 ग्राम निकलता है.
2022 में, हज़ारे ने सीधे प्रधानमंत्री को लिखा. अप्रैल 2022 तक, पीएमओ ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव को “उचित कार्रवाई” करने के लिए प्रेरित किया. फिर भी, नौकरशाही की चुप्पी बनी हुई है. हज़ारे कहते हैं, “पर्याप्त रिपोर्टें सिंधुदुर्ग के अयस्कों में सोने और प्लैटिनम होने को साबित कर रही हैं. दशकों से, इन धातुओं को साधारण लौह अयस्क के भेस में निर्यात किया गया है. हम सिर्फ़ यह चाहते हैं कि सरकार एक पुनर्सर्वेक्षण करे और राष्ट्र के सामने तथ्य रखे और राष्ट्र की संपत्ति को बचाए.”
विश्लेषण | शहर में मुसलमान की ज़िंदगी
निगरानी, सुरक्षा और संदेह: एक मुसलमान के तौर पर भारत के स्मार्ट-सिटी के भविष्य को समझना
यह लेख कलीम अहमद द्वारा लिखा गया है और मक़्तूब मीडिया पर प्रकाशित हुआ है. उसके प्रमुख अंश.
मैं एक ऐसे शहर में पला-बढ़ा हूँ, जो मेरे किशोरावस्था के दौरान विदेशी-विरोधी अशांति की चपेट में था. मेरे प्यारे माता-पिता नहीं चाहते थे कि मैं सामाजिक न्याय या इसी तरह के कारणों की माँग करने वाले किसी भी आंदोलन में भाग लूँ. उनका तर्क सरल था: क्या होगा अगर कोई तुम्हारी तस्वीर ले और उसे फ़ेसबुक पर पोस्ट कर दे? क्या तुम मुसीबत को दावत देना चाहते हो? मैं उनके तर्क को स्पष्ट रूप से समझ गया और ऐसी सभाओं से बचता रहा.
हालाँकि, हाल ही में, भारत के “एआई-संचालित स्मार्ट शहरों” के बारे में ख़बरें पढ़ने से वे यादें एक नई तीव्रता के साथ वापस आ गई हैं. ये सुर्खियाँ अनिवार्य रूप से हज़ारों नेटवर्क वाले कैमरों में तब्दील हो जाती हैं जो सार्वजनिक स्थानों को स्कैन करते हैं, और ऐसे एल्गोरिदम द्वारा समर्थित होते हैं जो चेहरों को पहचान सकते हैं, शरीरों को ट्रैक कर सकते हैं, और “असामान्य” व्यवहार को फ़्लैग कर सकते हैं. एक बच्चे के रूप में, मेरे माता-पिता मुझे उस तरह की नज़र से बचा सकते थे. एक वयस्क के रूप में, मेरे पास एजेंसी है - या क्या है? क्या वाक़ई में गतिशीलता बदल गई है? क्या चिंता वाष्पित हो गई है, या यह बस विकसित हो गई है? आज एआई-संचालित स्मार्ट सिटी में एक मुसलमान के रूप में घूमने का क्या मतलब है?
हाल के वर्षों में, भारत ने स्मार्ट सिटीज़ मिशन के हिस्से के रूप में एआई-चालित निगरानी के अपने उपयोग का तेज़ी से विस्तार किया है. नगर पालिकाएँ हज़ारों की संख्या में सीसीटीवी कैमरे लगा रही हैं और उन्हें केंद्रीकृत कमांड सिस्टम में नेटवर्क कर रही हैं. इसका घोषित उद्देश्य सार्वजनिक सुरक्षा और शहर प्रबंधन को बढ़ाना है. हैदराबाद जैसे शुरुआती अपनाने वाले शहर दावा करते हैं कि स्मार्ट कैमरे लगाए जाने के बाद सड़क अपराध में 30% तक की कमी आई है. ये कैमरे न केवल भीड़-भाड़ वाले चौराहों पर लगाए जाते हैं, बल्कि नवरात्रि, दुर्गा पूजा और महाकुंभ मेले जैसे प्रमुख त्योहारों के दौरान भीड़ नियंत्रण के लिए भी उपयोग किए जाते हैं.
यह एक कुशल, डेटा-चालित और सुरक्षित स्मार्ट शहरों की एक आशावादी तस्वीर पेश करता है. लेकिन मेरे मन में एक परेशान करने वाला सवाल घूमता रहता है: क्या ये एआई कैमरे मेरे साथ मेरे हिंदू पड़ोसियों जैसा ही व्यवहार करेंगे? या वे, जानबूझकर या अनजाने में, मुझे अलग कर देंगे? अगर मैं पारंपरिक मुस्लिम पोशाक पहनता हूँ या एक मस्जिद के बाहर मुस्लिम दोस्तों के एक समूह के साथ इकट्ठा होता हूँ, तो क्या सिस्टम हमें एक संभावित “भीड़” या “संवेदनशील सभा” के रूप में फ़्लैग करेगा? सुरक्षा का वादा निगरानी के डर में धुंधला होने लगता है - यह अहसास कि सार्वजनिक रूप से एक मुसलमान होना किसी तरह “इरादे से देखा जाना” है.
यह डर इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि राज्य की तकनीकी नज़र एक शून्य में पेश नहीं की जा रही है. यह सामाजिक निगरानी की पहले से ही व्यापक संस्कृति पर स्तरित हो रही है. ऐसे देश में जहाँ आपको आपके धर्म के कारण एक अपार्टमेंट से मना किया जा सकता है, और जहाँ सामुदायिक त्योहारों को तिलक लगाने या आधार कार्ड की जाँच जैसे उपायों का उपयोग करके अलग किया जाता है, इस बात की क्या गारंटी है कि इस नई तकनीक का उपयोग नापाक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाएगा?
2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद, पुलिस ने संदिग्धों की पहचान के लिए बड़े पैमाने पर फ़ेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी (FRT) का सहारा लिया. उनके अपने प्रवेश के अनुसार, उन्होंने चेहरे की पहचान का उपयोग करके दंगों से संबंधित 750 से अधिक मामलों को “सुलझाया”, जिसमें 1,922 व्यक्ति - गिरफ़्तार किए गए लोगों में से 73% - स्वचालित चेहरे के मिलान के माध्यम से पहचाने गए, अक्सर बिना पुख्ता सबूत के. दिल्ली के जाफ़राबाद के मोहम्मद शाहिद का मामला बताता है. उन्होंने 17 महीने जेल में बिताए, उन पर हिंसा में भाग लेने का आरोप था, बड़े पैमाने पर क्योंकि चेहरे की पहचान सॉफ़्टवेयर ने कथित तौर पर उन्हें घटनास्थल से जोड़ा था. शाहिद अपनी बेगुनाही बनाए रखते हैं, लेकिन एल्गोरिदम ने कुछ और कहा, और वह काफ़ी था.
मेरे माता-पिता फ़ेसबुक पर एक अकेली तस्वीर के बारे में चिंतित थे... एक स्थिर छवि जो मुसीबत को दावत दे सकती थी. आज, वह चिंता बढ़ गई है और स्वचालित हो गई है. डर अब एक व्यक्ति के निर्णय का नहीं है, बल्कि एक अदृश्य, एल्गोरिथम की नज़र से संसाधित लाखों डेटा बिंदुओं का है. जब मैं दुर्गा पूजा पंडालों में भीड़ नियंत्रण के लिए एआई-संचालित कैमरे लगे देखता हूँ, तो मेरा दिल डूब जाता है. ऐसे देश में जहाँ अलगाव पहले से ही आवास में और सामुदायिक नेतृत्व वाले त्योहारों में बढ़ता जा रहा है, आज भीड़ नियंत्रण और कल लक्षित अलगाव के बीच की रेखा भयावह रूप से पतली लगती है. उस संदर्भ में, सुरक्षा के लिए गुमनामी का सौदा करना हमेशा से एक मुश्किल सौदा था, लेकिन अब यह साफ़ है कि हममें से कुछ के लिए यह कभी कोई सौदा था ही नहीं.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.