01/11/2025: शाहरुख 60 के | मोकामा में मर्डर? | गरीबी की अति से केरल मुक्त | सरदार बड़े या मोदी? | भारत के लिए रघुराम का मशविरा | इंसान को छोड़ गाय के पीछे पड़ा डीयू | सोनम टाइम 100 में
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
शाहरुख़ के बाद कोई सुपरस्टार क्यों नहीं
गोली, गैंगवार और वोट, मोकामा में उबाल
केरल देश का पहला अति ग़रीबी-मुक्त राज्य, कैसे?
पटेल के नाम पर मोदी का मेला
घुसपैठ, धर्मांतरण और आबादी का डर : RSS ने फिर बजाई ख़तरे की घंटी
दिल्ली यूनिवर्सिटी को मानवाधिकार नहीं, ‘पंचगव्य’ प्यारा
आलंद ‘वोट चोरी’ बीजेपी नेता के घर जलाए गए सबूत?
जेल में वांगचुक, टाइम मैगज़ीन में नाम
बैन के बाद भी भारत ने ख़रीदा रूसी तेल
‘लव जिहाद’ पर स्कूल को पत्र
आदिवासी महिला की 6 साल बाद रिहाई और फिर हिरासत
रघुराम राजन की चेतावनी ट्रंप का असली निशाना सामान नहीं, सर्विस है
लखनऊ के ज़ायके का दुनिया में डंका
SRK@60:
भारत का आख़िरी + इकलौता सुपरस्टार
आज जब बॉलीवुड के बादशाह, शाहरुख़ ख़ान, 60 वर्ष के हो गए हैं, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर क्यों वे आज भी उस पीढ़ी के युवाओं के लिए उम्मीद, प्रेम और महत्वाकांक्षा का पर्याय बने हुए हैं, जो उदारीकरण के बाद के भारत में बड़ी हुई. द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित पूजा पिल्लई के गहन विश्लेषण के अनुसार, शाहरुख़ ख़ान सिर्फ़ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक हैं, जिन्होंने एक पूरी पीढ़ी के सपनों, संघर्षों और अनिश्चितताओं को अपनी फिल्मों के ज़रिए आवाज़ दी.
महत्वाकांक्षा और मध्यवर्गीय नैतिकता का संगम : दिल्ली के एक सामान्य परिवार से आए शाहरुख़ ने मुंबई आकर जो सफ़र तय किया, वह खुद में एक प्रेरणादायक कहानी है. अपनी शुरुआती फ़िल्मों जैसे ‘दीवाना’ (1992), ‘बाज़ीगर’ (1993), ‘कभी हाँ कभी ना’ (1994) और ‘यस बॉस’ (1997) में, उन्होंने एक ऐसे युवा का किरदार निभाया जो बड़े सपने देखता है, जो नई सदी के उल्लास और अनिश्चितताओं के बीच अपने पैर जमाना चाहता है. वे अक्सर बड़े सूट पहनकर, जैसे कोई बच्चा बड़ों का खेल खेल रहा हो, अपनी महत्वाकांक्षाओं को व्यक्त करते थे. लेकिन उनकी यह महत्वाकांक्षा कभी भी मध्यवर्गीय नैतिकता से दूर नहीं हुई. वे अपनी माँ के खोने के दर्द का ज़िक्र करने से भी नहीं हिचकिचाते थे, जिससे दर्शकों को लगता था कि उनके अपने घाव भी शाहरुख़ के घावों से मिलते-जुलते हैं. इसी संवेदनशीलता और प्रासंगिकता ने उन्हें आम लोगों के करीब ला खड़ा किया.
टेलीविज़न का सुनहरा दौर और शाहरुख़ का उदय : लेखिका पूजा पिल्लई का तर्क है कि शाहरुख़ ख़ान का सुपरस्टारडम सिर्फ़ उनकी अभिनय क्षमता का परिणाम नहीं है, बल्कि यह उस दौर का भी प्रतीक है जब भारत में निजी टेलीविज़न चैनलों का उदय हो रहा था. वे लिखती हैं, “अगर हम भारत की MTV पीढ़ी थे, जो समाचारों और फिल्मों से कहीं ज़्यादा की भूख के साथ पल रही थी, तो SRK उस युग के लिए एकदम सही स्टार थे.” ‘फ़ौजी’ और ‘सर्कस’ जैसे टीवी शो से उन्होंने अपनी पहचान बनाई और यहीं से बॉलीवुड ने उन पर ध्यान दिया. बड़े पर्दे पर शायद उनकी बुद्धिमत्ता और हाज़िरजवाबी पूरी तरह से सामने नहीं आ पाती, लेकिन टेलीविज़न पर दिए गए साक्षात्कारों में उनकी यह खासियत खुलकर सामने आई.
अद्वितीय स्टारडम: शाहरुख़ ख़ान की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि वे न तो अपने पूर्ववर्तियों की तरह “अनजान” थे और न ही आज के कलाकारों की तरह “अति-प्रदर्शित” (over-exposed). जहाँ पुराने कलाकार दर्शकों के लिए रहस्य बने रहते थे, वहीं आज के कलाकार सोशल मीडिया पर अपनी हर गतिविधि साझा करते हैं, जिससे उनका रहस्यमयी आकर्षण कम हो जाता है. शाहरुख़ ने इन दोनों छोरों के बीच एक संतुलन बनाया. उन्होंने अपनी निजी ज़िंदगी के बारे में कुछ बातें बताईं, जैसे कि अपनी माँ को खोने का दर्द या पत्नी गौरी के साथ समय बिताने की इच्छा, लेकिन उन्होंने अपनी एक मिस्ट्री (mystique) भी बनाए रखी. जब उन पर सेट पर अहंकार दिखाने के आरोप लगे, तो उन्होंने ‘आप की अदालत’ जैसे मंचों पर आकर अपनी बात रखी, यह समझाते हुए कि उनका आत्म-सम्मान गलत समझा गया. यह सीधा संवाद दर्शकों को उनसे और भी गहराई से जोड़ता है.
‘आखिरी और इकलौता’ क्यों? पूजा पिल्लई का मानना है कि शाहरुख़ ख़ान के पास कोई वास्तविक उत्तराधिकारी नहीं है. वे उस पीढ़ी के आकांक्षाओं और चिंताओं के प्रतीक बन गए, जो तेज़ी से बदल रही दुनिया में अपनी जगह तलाश रही थी. वे लिखती हैं, “वे उस दर्पण की तरह हैं जिसमें एक पीढ़ी अपना प्रतिबिंब देखती है - बेचैन, रोमांटिक, महत्वाकांक्षी, और अपने अस्तित्व की गति से घायल.” प्यार को जटिल बनाने के बजाय, शाहरुख़ ने इसे सरल और सुलभ बनाया. उनकी यह क्षमता, कि वे एक पीढ़ी के सपनों और असुरक्षाओं का प्रतीक बन गए, उन्हें बॉलीवुड का “आखिरी और इकलौता” सुपरस्टार बनाती है. वे सिर्फ़ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक घटना हैं, जिनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करती रहेगी.
बिहार
मोकामा में जब अपराध, राजनीति और बाहुबली आमने-सामने से टकराए
बिहार के मोकामा में एक हिंसक झड़प में एक बाहुबली-राजनेता की मौत हो गई, जिसके बाद अपराध और राजनीति के पुराने गठजोड़ एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुवार को हुई इस झड़प के बाद चुनाव आयोग ने बिहार के डीजीपी से रिपोर्ट मांगी है और पुलिस ने चार एफआईआर दर्ज की हैं. यह घटना तब हुई जब जन सुराज के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी का काफिला, जिसमें दुलारचंद यादव भी शामिल थे, और बाहुबली नेता अनंत सिंह का काफिला तरार गांव के पास आमने-सामने आ गया. जल्द ही दोनों पक्षों के बीच पथराव शुरू हो गया, जिसके बाद गोलियां चलने लगीं. इसी अफरा-तफरी में दुलारचंद को पहले गोली मारी गई और फिर एक वाहन ने उन्हें कुचल दिया. इस घटना में करीब एक दर्जन अन्य लोग घायल हो गए.
पुलिस ने इस मामले में चार एफआईआर दर्ज की हैं, जिनमें से एक दुलारचंद के परिवार द्वारा अनंत सिंह के खिलाफ़ और दूसरी अनंत सिंह के समर्थकों द्वारा जन सुराज के कार्यकर्ताओं के खिलाफ़ दर्ज कराई गई है. मोकामा में अपराध, राजनीति और जाति का गठजोड़ कोई नई बात नहीं है. भूमिहारों के प्रभुत्व वाले इस क्षेत्र को ‘भूमिहारों की राजधानी’ भी कहा जाता है और यहां 1952 से शायद ही कोई गैर-भूमिहार विधायक चुना गया हो.
इस झड़प में मारे गए दुलारचंद यादव का आपराधिक इतिहास 1991 से शुरू होता है, जब उनका नाम कांग्रेस कार्यकर्ता सीताराम सिंह की हत्या में आया था. इस मामले में उनके सह-आरोपी अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह और नीतीश कुमार थे. हालांकि, बाद में नीतीश और दुलारचंद को इस मामले से बरी कर दिया गया था. 2010 तक, दुलारचंद पर हत्या, अपहरण, जबरन वसूली और जालसाजी सहित 11 आपराधिक मामले दर्ज थे.
अनंत सिंह, जिन्हें ‘छोटे सरकार’ के नाम से जाना जाता है, का मोकामा की राजनीति में दबदबा रहा है. 2005 से यह सीट उनके परिवार के पास है. 2020 के चुनावी हलफनामे में अनंत सिंह ने अपने ऊपर 38 मामले दर्ज होने की जानकारी दी थी. 2022 में, उन्हें एक मामले में 10 साल की सजा हुई और उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई, जिसके बाद उनकी पत्नी नीलम देवी ने उपचुनाव जीता. हालांकि, 2024 में पटना उच्च न्यायालय ने सबूतों के अभाव में अनंत सिंह को बरी कर दिया, जिससे उनके फिर से चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया. माना जा रहा है कि दुलारचंद और अनंत सिंह के बीच तनाव तब बढ़ा जब दुलारचंद ने प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज का दामन थाम लिया और अनंत सिंह के खिलाफ़ प्रचार करने लगे.
इस चुनावी मैदान में एक और बाहुबली सूरजभान सिंह भी हैं, जिनकी पत्नी वीणा देवी मोकामा से आरजेडी की उम्मीदवार हैं. सूरजभान और अनंत सिंह की प्रतिद्वंद्विता दशकों पुरानी है. सूरजभान पर भी 26 आपराधिक मामले दर्ज हैं और वे चुनाव नहीं लड़ सकते. इस बार जन सुराज ने राजनीति में अपराध के खिलाफ़ लड़ने के वादे के साथ 30 वर्षीय पीयूष प्रियदर्शी को मैदान में उतारा है, जो शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. अब देखना यह है कि इस हिंसक घटना का 6 नवंबर को होने वाले मतदान पर क्या असर पड़ता है.
केरल पहला अत्यधिक गरीबी-मुक्त राज्य बना
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने ‘केरल पिरवी’ (केरल स्थापना दिवस) के अवसर पर विधानसभा के एक विशेष सत्र में राज्य को अत्यधिक गरीबी से मुक्त घोषित कर दिया है. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, इसी के साथ केरल ऐसी घोषणा करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है. मुख्यमंत्री ने इस मौके को केरल के लिए एक नए युग की शुरुआत बताया और इस उपलब्धि के पीछे चार साल की लंबी प्रक्रिया का ज़िक्र किया. हालांकि, विपक्षी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने इस घोषणा को “खोखला” बताते हुए सत्र का बहिष्कार किया.
मुख्यमंत्री विजयन ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि अत्यधिक गरीबी उन्मूलन परियोजना (EPEP) को लागू करने का निर्णय 2021 में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में लिया गया था. इस प्रक्रिया के तहत, स्थानीय निकाय प्रतिनिधियों, कुटुंबश्री कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों की मदद से अत्यधिक गरीब परिवारों की पहचान की गई. भोजन, स्वास्थ्य, आवास और आय को मुख्य मानदंड मानते हुए 64,006 परिवारों के 1,03,099 व्यक्तियों की पहचान की गई और प्रत्येक परिवार के लिए सूक्ष्म योजनाएं (micro plans) बनाई गईं.
इस परियोजना के तहत, 21,263 लोगों को राशन कार्ड और आधार कार्ड जैसे ज़रूरी दस्तावेज़ दिए गए. 20,648 परिवारों के लिए नियमित भोजन की व्यवस्था की गई. 4,677 परिवारों को लाइफ मिशन के तहत घर दिए गए, जबकि 4,394 परिवारों को आजीविका सहायता प्रदान की गई. 35,000 से अधिक परिवारों को मनरेगा से जोड़ा गया. सरकार ने इस योजना पर 1,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं.
यह परियोजना ज़मीनी स्तर पर लोगों के जीवन में बदलाव ला रही है. तिरुवनंतपुरम की अंबिका देवी को इस परियोजना के तहत घर और एक किराने की दुकान चलाने के लिए वित्तीय सहायता मिली. इडुक्की के दास राज को घर के साथ-साथ अपनी पत्नी और बेटे के मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी मदद मिली. कई मामलों में स्थानीय समुदाय ने भी आगे बढ़कर मदद की.
हालांकि, इस घोषणा की आलोचना भी हो रही है. भाजपा ने इसका श्रेय केंद्र सरकार की योजनाओं को दिया है, जबकि आदिवासी गोत्र महासभा ने आरोप लगाया है कि सर्वेक्षण में आदिवासी आबादी को ठीक से शामिल नहीं किया गया. इन आलोचनाओं के बावजूद, केरल सरकार इस उपलब्धि को बनाए रखने के लिए दूसरे चरण पर काम कर रही है ताकि कोई भी परिवार वापस अत्यधिक गरीबी में न जाए.
मोदी के आयोजनों में खो गई पटेल की विरासत, प्रधानमंत्री सब कुछ अपने बारे में बना देते हैं
द प्रिंट में प्रकाशित अपने एक लेख में स्तंभकार उर्वीश कोठारी का तर्क है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार सरदार पटेल के नाम का उपयोग तो करती है, लेकिन उनके वास्तविक सम्मान से बचती है. लेखक के अनुसार, दो दशकों से अधिक समय से, मोदी और भाजपा ने “सरदार के साथ अन्याय” की कहानी से लेकर दुनिया की सबसे ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ तक, पटेल की छवि का उपयोग सिर्फ़ दिखावे के लिए किया है, न कि उनके आदर्शों को अपनाने के लिए. सरदार के सादे जीवन को देखते हुए, लगभग 3,000 करोड़ रुपये की लागत से बनी यह मूर्ति श्रद्धांजलि कम और विडंबना अधिक लगती है.
कोठारी लिखते हैं कि जब अपनी छवि बनाने की बात आती है तो मोदी, सरदार का नाम भी मिटाने से नहीं हिचकते. इसका उदाहरण 2021 में दिखा, जब मोटेरा के सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बदलकर नरेंद्र मोदी स्टेडियम कर दिया गया. यह एक बड़े पैटर्न का हिस्सा है. जैसे-जैसे मोदी का कद बढ़ा, उनके गुरु और पहले के ‘छोटे सरदार’ कहे जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया.
लेखक के अनुसार, ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को सरदार पटेल के स्मारक के बजाय एक पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा दिया गया है. यहां आने वाले लोग जंगल सफारी, फूलों की घाटी और लेजर शो की बात करते हैं, लेकिन सरदार के जीवन या योगदान पर शायद ही कोई चर्चा होती है. सरकार ने सरदार पटेल की 150वीं जयंती को दो साल तक मनाने की घोषणा की थी, जिसमें स्मारक सिक्का, डाक टिकट और एक विशेष पुस्तक ‘वल्लभ’ जारी करने जैसे वादे किए गए थे. लेकिन इनमें से कई वादे अधूरे हैं. आधिकारिक वेबसाइट ‘404 पेज नॉट फाउंड’ दिखाती है और पुस्तक अभी तक सामने नहीं आई है.
इस भव्य आयोजन का एकमात्र दृश्य कार्यान्वयन प्रधानमंत्री संग्रहालय में सरदार पटेल के एआई-जनित अवतार की स्थापना प्रतीत होती है, जो ऐतिहासिक और नैतिक दोनों चिंताएं पैदा करता है. कोठारी का निष्कर्ष है कि सरदार पटेल की असली विरासत सादगी, प्रशासनिक प्रतिभा, विनम्रता और जवाहरलाल नेहरू के साथ सैद्धांतिक सहयोग में निहित है. लेकिन यह मोदी की कहानी के लिए बहुत कम उपयोगी है, जो प्रतीकात्मक विनियोग और व्यक्तिगत प्रक्षेपण पर पनपती है.
अखिलेश ने मोबाइल हाथ में लिया, और पूछा, “आरएसएस पर बैन क्यों?” ChatGPT ने झट जवाब दे दिया
शुक्रवार को, एकता दिवस पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आरएसएस पर प्रतिबंध की चर्चा करते हुए पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उपहास उड़ाया और बाद में हास्यपूर्ण ढंग से चैटजीपीटी (ChatGPT) से ही आरएसएस पर बैन के बारे में खुद पूछ भी लिया. अखिलेश ने चुटकी लेते हुए कहा, “हमारे मुख्यमंत्री इन दिनों बच्चों के साथ खेल रहे हैं. वह उन्हें अपनी गोद में उठा रहे हैं.” उन्होंने मज़ाक में कहा, “दरअसल, उन्होंने तो ChatGPT से भी पूछ लिया कि क्या आरएसएस पर प्रतिबंध लगना चाहिए.”
यादव ने दावा किया कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस और हिंदू महासभा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. उन्होंने कहा, “आप ChatGPT पर जांच सकते हैं कि सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध क्यों लगाया था. उन्होंने कहा, “चैट जीपीटी निकालकर पढ़ लेता हूं. उन्होंने मोबाइल हाथ में लिया. सवाल किया, व्हाई (WHY) आरएसएस बैन? इसके बाद वे जवाब पढ़ते दिखाई दिए. अखिलेश यादव ने कहा कि तीन बार आरएसएस बैन हुआ. सरकार पटेल ने आरएसएस और हिंदू महासभा को बैन किया था. उन पर महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगा था. साथ ही, सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप लगे थे. आरएसएस आज भी सांप्रदायिकता फैला रहा है. ये मैं नहीं कह रहा हूं. चैट जीपीटी कह रहा है. अब चैट जीपीटी भी बैन होगा?”
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा का मूल संगठन आरएसएस है, और पार्टी ने समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष आदर्शों का पालन करने के अपने वादे को छोड़ दिया है. यादव ने टिप्पणी की, “जब भाजपा का गठन हुआ, तो उन्होंने समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा का पालन करने का वादा किया था. जिस तरह उन्होंने तब झूठ बोला था, उसी तरह वे अब झूठ बोलते हैं.”
‘जनसांख्यिकीय असंतुलन’ से निपटने के लिए जल्द नीति की ज़रूरत: होसबाले
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है कि देश में “जनसांख्यिकीय असंतुलन” को दूर करने के लिए जल्द ही एक जनसंख्या नीति की आवश्यकता है. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जबलपुर में संघ की एक बैठक के बाद उन्होंने इस असंतुलन के लिए तीन मुख्य कारण बताए—घुसपैठ, धर्मांतरण और कुछ समुदायों में जनसंख्या वृद्धि की उच्च दर.
होसबाले की यह टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस के भाषण में जनसांख्यिकीय परिवर्तन को संबोधित करने के लिए एक उच्च-शक्ति मिशन की घोषणा के कुछ महीनों बाद आई है. इसी तरह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी फरवरी 2024 के अंतरिम बजट में “तेजी से जनसंख्या वृद्धि और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों” की चुनौतियों पर विचार-विमर्श के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति की घोषणा की थी. हालांकि, इन दोनों घोषणाओं की वर्तमान स्थिति पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
होसबाले ने कहा, “घुसपैठ और धर्मांतरण को रोका जाना चाहिए. लोग कहते हैं कि जब जनसांख्यिकीय असंतुलन का उल्लेख किया जाता है तो यह एक सांप्रदायिक विचार है. लेकिन सोचें कि जनसांख्यिकीय असंतुलन राष्ट्रीय सुरक्षा को कैसे प्रभावित करेगा.” उन्होंने कहा कि धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून तो हैं, लेकिन इसके लिए सामाजिक स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए.
आरएसएस की इस बैठक में मणिपुर की स्थिति पर भी चर्चा हुई. होसबाले ने कहा कि वहां स्थिति बहुत खराब हो गई थी लेकिन अब सुधर रही है. उन्होंने कहा, “केंद्र ने भी कदम उठाए. प्रधानमंत्री खराब मौसम के बावजूद वहां गए. स्वयंसेवक दो साल से ज़मीन पर थे.” बैठक में छत्तीसगढ़ और झारखंड में माओवादियों के आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में शामिल होने का स्वागत किया गया और नशीली दवाओं की लत की “बढ़ती समस्या” पर भी चर्चा की गई.
एक सवाल के जवाब में, होसबाले ने पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा, “बंगाल की स्थिति चिंताजनक है. वहां के राजनीतिक नेतृत्व के कारण पिछले चुनावों के बाद नफ़रत फैल गई है. एक सीमावर्ती राज्य को हिंसक और अस्थिर बनाना देश के लिए अच्छा नहीं होगा.” उन्होंने जाति जनगणना का समर्थन करते हुए कहा कि इसका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए नहीं किया जाना चाहिए और संघ 100 वर्षों से जाति से ऊपर उठने की कोशिश कर रहा है.
रायपुर में प्रदर्शन करने पर लगेगा 500 रुपये का शुल्क, आलोचकों ने कहा ‘असहमति पर टैक्स’
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के नगर निगम ने विरोध प्रदर्शन या धरना आयोजित करने के लिए 500 रुपये का शुल्क लगा दिया है. द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, इस क़दम को विपक्षी समूहों ने “असहमति पर टैक्स” बताते हुए इसे अलोकतांत्रिक क़रार दिया है.
यह फ़ैसला ऐसे समय में आया है जब शहर के मुख्य विरोध स्थल, टूटा धरना स्थल, पर रखरखाव के काम का हवाला देते हुए रायपुर कलेक्टर ने दो महीने के लिए प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसका मतलब है कि नागरिकों के पास विरोध करने के लिए कोई निर्धारित जगह नहीं है, और जब प्रतिबंध हटेगा, तो उन्हें अपनी आवाज़ उठाने के लिए भुगतान करना होगा.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की नेता और मेयर मीनल चौबे ने इस नए शुल्क का बचाव करते हुए कहा कि यह राज्य सरकार के निर्देशों पर आधारित है. उन्होंने कहा कि यह नीति विरोध स्थलों की “सफ़ाई और रखरखाव” के लिए ज़रूरी है और अनुमति प्रक्रिया से प्रशासन को किसी भी जुलूस के “मार्ग के बारे में पूरी जानकारी” प्राप्त करने में भी मदद मिलती है.
विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इन तर्कों को खारिज कर दिया है. उनका कहना है कि यह नीति लोगों को सार्वजनिक मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाने से हतोत्साहित करने के लिए बनाई गई है. नगर निगम की आम बैठक में पारित प्रस्ताव के अनुसार, मंच या पंडाल स्थापित करने के लिए 5 रुपये प्रति वर्ग फुट का अलग से शुल्क भी लगाया जाएगा. अधिकारियों ने यह भी संकेत दिया है कि विरोध शुल्क जल्द ही दोगुना कर 1,000 रुपये किया जा सकता है, जिसका प्रस्ताव कथित तौर पर उसी बैठक के दौरान सर्वसम्मति से पारित किया गया था.
दिल्ली यूनिवर्सिटी मानवाधिकार की अहमियत छोड़ गाय के पीछे पड़ गई
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने अपने सभी कॉलेजों को ‘पंचगव्य’ उत्पादों (गाय से प्राप्त पांच उत्पाद) को प्रदर्शित करने वाले आगामी शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए कहा है, जिसमें 600 से अधिक गौशालाओं के भाग लेने की उम्मीद है. खास बात ये है कि यह निर्देश उसी दिन आया, जब विश्वविद्यालय ने ‘भूमि और लोकतांत्रिक अधिकारों’ पर एक सेमिनार को रद्द किया था. बसंत कुमार मोहंती की रिपोर्ट कहती है कि कई शिक्षकों ने विश्वविद्यालय के इस निर्णय को “अकादमिक विरोधी” बताया है.
डीयू के डीन ऑफ कॉलेज के कार्यालय ने बुधवार को प्राचार्यों को राष्ट्रीय गोधन महासंघ द्वारा 5 से 9 नवंबर तक राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित किए जा रहे ‘राष्ट्रीय गोधन शिखर सम्मेलन’ के बारे में लिखा. पत्र में कहा गया है, “कृपया शिक्षण, गैर-शिक्षण कर्मचारियों और छात्रों के बीच इस जानकारी को प्रसारित करें, ताकि वे विभिन्न गतिविधियों और प्रदर्शनियों को देखते हुए इस शिखर सम्मेलन में भाग ले सकें. बायो ई-3 (पर्यावरण, रोजगार और अर्थव्यवस्था) की थीम पर आधारित इस शिखर सम्मेलन में कई गणमान्य व्यक्ति, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और पूरे भारत से छह सौ से अधिक गौशालाओं के प्रतिनिधि शामिल होंगे.”
पत्र में आगे कहा गया है, “विभिन्न ‘पंचगव्य’ उत्पादों को प्रदर्शित करने वाली प्रदर्शनियां इस आयोजन का एक प्रमुख आकर्षण हैं. प्रत्येक दिन का कार्यक्रम सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक निर्धारित है. आपको इस आयोजन में भाग लेने के लिए सादर आमंत्रित किया जाता है.”
यह घटनाक्रम उसी दिन हुआ, जब विश्वविद्यालय ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (डीएसई) के समाजशास्त्र विभाग द्वारा 31 अक्टूबर को आयोजित होने वाले “भूमि, संपत्ति और लोकतांत्रिक अधिकार” पर एक सेमिनार को स्पष्टीकरण दिए बिना रद्द कर दिया.
डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (डीटीएफ) ने कहा कि इस “संदिग्ध” कार्यक्रम में कॉलेजों को शामिल होने के लिए कहने के साथ-साथ सेमिनार को रद्द करने का डीयू का निर्णय, विश्वविद्यालय की “ज्ञान से हठधर्मिता की ओर यात्रा” को दर्शाता है. संगठन ने एक बयान में कहा, “इसके हालिया कार्य इस प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान के एक गहरे परेशान करने वाले गतिपथ (रास्ते) को प्रकट करते हैं. इसकी प्रशासनिक प्राथमिकताओं में एक स्पष्ट विपरीतता, जो दो अलग-अलग संचारों से स्पष्ट है, वैज्ञानिक सोच और अकादमिक अखंडता से दूर एक अवैज्ञानिक और प्रतिगामी राजनीतिक एजेंडे के प्रचार की ओर एक कदम को उजागर करती है.” डीटीएफ की सदस्य और मिरांडा हाउस की फैकल्टी सदस्य आभा देव हबीब ने कहा कि गौ उत्पादों से संबंधित एक शिखर सम्मेलन में भागीदारी की मांग करने वाला पत्र डीन के कार्यालय का दुरुपयोग है.
समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर ने आयोजन रद्द होने के बाद ‘कोलोक्वियम’ के संयोजक पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि रद्द करने का कोई कारण नहीं बताया गया, जिससे यह अटकलें लगाई जा सकती हैं कि “आरएसएस के नेतृत्व वाली सरकार भूमि और लोकतांत्रिक अधिकारों के बारे में किसी भी चर्चा से डरी हुई है.”
यह पता चला है कि विश्वविद्यालय ने सेमिनार को इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि इसके लिए कोई अनुमति नहीं ली गई थी, हालांकि कुछ शिक्षकों का कहना है कि पूर्व में ‘फ्राइडे कोलोक्वियम’ के लिए कभी अनुमति नहीं ली गई. शिक्षकों ने कहा है कि विश्वविद्यालय को वैचारिक युद्ध का मैदान नहीं बनना चाहिए.
आलंद ‘वोट चोरी’: बीजेपी के पूर्व विधायक के घर से सीसीटीवी फुटेज मिले
“द इंडियन एक्सप्रेस” की रिपोर्ट है कि आलंद निर्वाचन क्षेत्र में कथित वोट चोरी की जांच कर रही कर्नाटक पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने भाजपा के पूर्व विधायक सुभाष गुट्टेदार के आवास से सीसीटीवी फुटेज इकट्ठा किए हैं. इन फुटेज में कथित तौर पर गुट्टेदार के सहयोगियों को आलंद की मतदाता सूची से जुड़े दस्तावेजों को नष्ट करने की कोशिश करते हुए दिखाया गया है. एसआईटी ने अदालत में तर्क दिया कि यह सीसीटीवी फुटेज और गुट्टेदार के घर से बरामद डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर (डीवीआर) इस बात का सबूत है कि गुट्टेदार के सहयोगियों ने आलंद मतदाता सूचियों से जुड़े दस्तावेजों को नष्ट करने की कोशिश की थी. सरकारी अभियोजक ने गुट्टेदार, उनके बेटे हर्ष और एक सहयोगी टिप्परुद्र द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए इस सीसीटीवी फुटेज और डीवीआर की बरामदगी का हवाला दिया. अभियोजक ने बताया कि डीवीआर की फॉरेंसिक जांच के लिए भेजी गई मिरर इमेज में सामग्री को जलाते हुए दिखाया गया है.
यह मामला 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले आलंद सीट पर 5,994 मतदाताओं के नाम अवैध रूप से हटाने के प्रयास से संबंधित है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पिछले महीने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन अनियमितताओं को कथित “वोट चोरी” के उदाहरणों में से एक बताया था. फरवरी 2023 में मामला दर्ज होने के बावजूद, जांच की धीमी प्रगति के कारण इस साल 26 सितंबर को एसआईटी का गठन किया गया था. अभियोजक ने अदालत को बताया कि देरी इसलिए हुई क्योंकि पुलिस मतदाता ऐप्स और पोर्टलों से संबंधित डिजिटल जानकारी के लिए चुनाव आयोग से जवाब का इंतजार कर रही थी.
गुट्टेदार, उनके बेटे और सहयोगी ने अग्रिम जमानत की मांग करते हुए मामले को राजनीति से प्रेरित बताया है. उन्होंने दावा किया कि 2023 की मूल प्राथमिकी में उनका नाम नहीं था और एसआईटी की छापेमारी के बाद गुट्टेदार ने कहा कि उन्होंने तो “दीपावली के कारण कचरा” जलाया था. एसआईटी को यह भी पता चला कि आवेदन कलबुर्गी में एक डेटा सेंटर से किए गए थे, जिसमें प्रति नाम हटाए जाने के लिए 80 रुपये का भुगतान किया गया था.
‘कोबरा पोस्ट’ का दावा, अनिल अंबानी समूह ने की 28 हजार करोड़ से ज्यादा की धोखाधड़ी
खोजी समाचार संगठन ‘कोबरापोस्ट’ ने गुरुवार को नई दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें उसने अनिल अंबानी के स्वामित्व वाले रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह (रिलायंस एडीएजी) द्वारा किए गए 28,874 करोड़ रुपये की बैंकिंग धोखाधड़ी के अलावा अन्य कथित अवैध लेनदेन का खुलासा करने का दावा किया. कोबरापोस्ट के संपादक अनिरुद्ध बहल के अनुसार, ‘कोबरापोस्ट’ की जांच से पता चलता है कि रिलायंस एडीएजी ने सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों के अलावा आरंभिक सार्वजनिक पेशकशों (आईपीओ) और बॉन्ड के माध्यम से ऋण लिया, फिर कथित तौर पर इन निधियों को शेल कंपनियों और ऑफशोर संस्थाओं के माध्यम से प्रमोटर समूह की कंपनियों में लगा दिया. अतुल होवाले की खबर में पूरा ब्यौरा दिया गया है.
वांगचुक : इधर, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा, उधर “टाइम’” पत्रिका ने 100 की लिस्ट में शामिल किया
जेल में बंद पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे. अंगमो, मामले में उनकी रिहाई सुनिश्चित करने के लिए लगातार काम कर रही हैं. कल, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के वकील रितम खरे से मुलाकात की और इसे “एक्स” पर एक पोस्ट में साझा किया. उन्होंने कहा कि इस बैठक के दौरान रितम खरे को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बारे में जानकारी दी गई. खरे ने आगे कहा कि बापू के नक्शेकदम पर चलते हुए सत्याग्रह, उपवास और पदयात्रा के माध्यम से सोनम वांगचुक अब जेल भी पहुंच गए हैं. अंततः, उन्हें विश्वास है कि यह यात्रा, बापू की तरह, स्वराज की ओर ले जाएगी – “सभी के लिए स्वतंत्रता, चाहे वह लद्दाख के लोग हों, जानवर, पक्षी, मधुमक्खियां, लद्दाख की नदियां, घाटियां और ग्लेशियर, हिमालय और दुनिया.” इस बीच, मोदी सरकार जहां वांगचुक को एनएसए के तहत एक राष्ट्र-विरोधी और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा घोषित करने में व्यस्त है, वहीं ‘टाइम’ पत्रिका उन्हें अपनी 2025 की 100 टाइम क्लाइमेट सूची में “वास्तविक जलवायु कार्रवाई के लिए व्यवसाय को प्रेरित करने वाले दुनिया के सबसे प्रभावशाली नेताओं” के रूप में मान रही है.
कुनार पर बांध बनाने में अफगानिस्तान की मदद करेगा भारत, चिंता पाकिस्तान को
भारत ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि वह पाकिस्तान के साथ साझा की जाने वाली कुनार नदी पर बांध बनाने की अफगानिस्तान की योजना में उसकी मदद करने के लिए तैयार है. भारत का कहना है कि वह जलविद्युत परियोजनाओं सहित स्थायी जल प्रबंधन में अफगानिस्तान का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है. “द वायर” के अनुसार, नई दिल्ली का यह कदम अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनाव के संदर्भ में आया है और इसका पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में पानी के बहाव पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, जिससे पाकिस्तान में चिंता बढ़ गई है. यह एक पहल है, जिस पर काबुल ने हाल ही में कहा था कि वह काम करेगा. रणधीर जायसवाल ने इस साल की शुरुआत में जारी इंडो-अफगान संयुक्त बयान का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि दोनों पक्ष “अफगानिस्तान की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और उसके कृषि विकास का समर्थन करने के उद्देश्य से जलविद्युत परियोजनाओं पर सहयोग करने के लिए सहमत हैं.” कुनार, उत्तरी पाकिस्तान में चिनार नदी के रूप में निकलती है, पूर्वी अफगानिस्तान में बहती है और काबुल नदी से मिलती है, जो बदले में पाकिस्तान में बहती है और अटक में सिंधु नदी से मिलती है. यही कारण है कि दोनों में से किसी भी नदी पर बांध बनाने की अफगान योजनाओं की पिछली रिपोर्टों ने पाकिस्तान में कुछ चिंताएं पैदा की हैं. इस्लामाबाद ने पिछले सप्ताह कहा था कि वह कुनार पर बांध बनाने की काबुल की योजनाओं के बारे में “विवरण की पुष्टि कर रहा है.”
जायसवाल से जब पाकिस्तानी रक्षा मंत्री के इस आरोप के बारे में पूछा गया कि भारत, इस्लामाबाद के खिलाफ एक छद्म युद्ध लड़ने के लिए अफगानिस्तान का उपयोग कर रहा है, तो उन्होंने पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान की घातक सीमा झड़पों पर नई दिल्ली के समर्थन को दोहराया. उन्होंने कहा, “पाकिस्तान, अफगानिस्तान द्वारा अपने क्षेत्रों पर संप्रभुता का प्रयोग करने से नाराज है” और भारत “अफगानिस्तान की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है.” इस बीच, तुर्की सरकार – जिसने कतर के साथ दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता की है – ने घोषणा की कि वे युद्धविराम बनाए रखने और 6 नवंबर को इस्तांबुल में एक बार फिर मिलने पर सहमत हुए थे. बातचीत विफल होती हुई प्रतीत हुई थी, क्योंकि एक पाकिस्तानी कैबिनेट मंत्री ने कुछ दिन पहले कहा था कि अफगान पक्ष द्वारा अपने क्षेत्र से आतंकवादियों को बाहर निकालने की कथित प्रतिबद्धता की कमी के कारण वे “विफल” हो गए थे.
हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की गतिविधि
गहरे समुद्र का एक चीनी अनुसंधान पोत, शेन हाई यी हाओ (डीप सी नंबर 1), वर्तमान में हिंद महासागर के रास्ते में है, और इसकी स्वचालित पहचान प्रणाली (एआईएस) मालदीव के माले को गंतव्य के रूप में दिखा रही है. यह यात्रा नई दिल्ली में नए सिरे से चिंताएं पैदा करती है, जो हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में चीन की बढ़ती गतिविधियों और प्रभाव की ओर इशारा करती है.
सौर ऊर्जा: भारत के व्यापार शुल्क, सब्सिडी को निष्प्रभावी करते हैं, कीमतों को बढ़ाते हैं
“निक्केई एशिया” की रिपोर्ट है कि चीन के प्रभुत्व के सामने भारत के सौर विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लगाए गए व्यापार शुल्क (टैरिफ) परियोजनाओं और उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ा रहे हैं, जिससे सौर ऊर्जा के तेजी से विस्तार और उद्योग की तकनीकी प्रगति को बनाए रखने के सरकार के प्रयासों पर दबाव पड़ रहा है.
अप्रैल 2022 में, भारत ने आयातित सौर सेल पर 25% का मूल सीमा शुल्क और मॉड्यूल पर 40% का शुल्क लगाया था, हालांकि फरवरी में इन दोनों को घटाकर 20% कर दिया गया था. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और कृषि विकास का समर्थन करने वाले अन्य कर सौर उपकरण की कीमत को और बढ़ाते हैं, जबकि सरकारी वित्त पोषित सौर परियोजनाओं और ओपन एक्सेस परियोजनाओं के लिए मॉड्यूल निर्माताओं की एक सफेद सूची ने विदेशी निर्माताओं को बाहर कर दिया है. सौर ऊर्जा मॉड्यूल निर्माता सोलेक्स एनर्जी के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक चेतन शाह के अनुसार, आयातित मॉड्यूल का उपयोग करने की लागत की तुलना में इन शुल्कों ने पहले ही सौर ऊर्जा संयंत्रों की कुल लागत में 20% से 25% की वृद्धि कर दी है. इस बीच, एक प्रमुख नवीकरणीय ऊर्जा डेवलपर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अकेले सौर सेल पर एंटी-डंपिंग शुल्क से परियोजना लागत 10% से 15% तक बढ़ जाएगी.
विशेषज्ञों का कहना है कि घरों के लिए, ये टैरिफ-जुड़ी लागतें रूफटॉप सौर प्रतिष्ठानों को प्रोत्साहित करने वाले सरकार के सब्सिडी कार्यक्रम को निष्प्रभावी कर रही हैं. 750 अरब रुपये ($8.5 बिलियन) की यह पहल, जिसमें भारतीय सौर पैनलों का उपयोग आवश्यक है, प्रति घर 78,000 रुपये तक की सब्सिडी प्रदान करती है. कमर्शियल सौर प्रणालियों के डिजाइनर, निर्माता और ऑपरेटर सोलर क्वेस्ट के तकनीकी निदेशक तमिलवानन विल्वम का अनुमान है कि घरेलू सामग्री आवश्यकताओं का पालन करने वाले भारतीय सौर रूफटॉप पैनलों के लिए प्रीमियम, भारत में आयातित घटकों का उपयोग करके असेंबल किए गए पैनलों की तुलना में 50% से 70% अधिक है. उच्च कीमत के बावजूद, “ग्राहकों को बदले में कोई मूर्त प्रदर्शन या विश्वसनीयता का लाभ नहीं मिलता है, खासकर मध्यम-आकार और बड़ी प्रणालियों को स्थापित करने वालों को.”
इंडियन ऑयल ने अब गैर-प्रतिबंधित कंपनियों से रूसी तेल खरीदा, भारत का जोर सस्ते पर
“रॉयटर्स” की रिपोर्ट के अनुसार, इंडियन ऑयल, जिसने वाशिंगटन द्वारा रूस की दो सबसे बड़ी तेल फर्मों रोसनेफ्ट और लुकोइल के खिलाफ प्रतिबंधों की घोषणा के बाद रूसी कच्चे तेल के ऑर्डर रद्द कर दिए थे, ने दिसंबर में डिलीवरी के लिए गैर-प्रतिबंधित संस्थाओं से लगभग 3.5 मिलियन बैरल ईएसपीओ तेल खरीदा है. ईएसपीओ, जो रूस की ईस्टर्न साइबेरिया-पैसिफिक ओशन तेल पाइपलाइन को संदर्भित करता है, ने अमेरिकी टैरिफ के मद्देनजर चीन द्वारा खरीद कम करने के बाद अपनी तेल कीमतों में कमी की है. इसी गिरावट ने भारतीय खरीदारों को आकर्षित किया है.” इंडियन ऑयल के वित्त प्रमुख ने कहा है कि रिफाइनर तब तक रूसी तेल खरीदना जारी रखेगी, जब तक कि बैरल अमेरिकी प्रतिबंधों की शर्तों का अनुपालन करते हैं.
रोसनेफ्ट या लुकोइल के साथ भारतीय सौदों पर अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि “हम जो निर्णय लेते हैं, वे स्वाभाविक रूप से वैश्विक बाजार में मौजूद गतिशीलता को ध्यान में रखते हैं”, और नई दिल्ली का मार्गदर्शक अनिवार्य सिद्धांत भारतीय लोगों के लिए विविध स्रोतों से सस्ती ऊर्जा हासिल करना है. यह मंत्रालय की पहले की टिप्पणी के अनुरूप है कि भारत “ऊर्जा स्रोतों को व्यापक बनाने और उपयुक्त रूप से उनके विविधीकरण” पर विचार कर रहा है. लेकिन यह इस बात के एक संकेत के रूप में देखा गया कि भारत रूसी तेल पर अपनी बढ़ती निर्भरता को कम करेगा. खासकर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस दावे के संदर्भ में कि प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि भारत मॉस्को से कच्चे तेल की अपनी खरीद में कटौती करेगा.
चीन से दुर्लभ पृथ्वी मैग्नेट का आयात
इस बीच, जायसवाल ने पुष्टि की कि कुछ भारतीय कंपनियों को वास्तव में चीन से दुर्लभ पृथ्वी मैग्नेट आयात करने के लाइसेंस मिले हैं. इसके पहले, सीएनबीसी-टीवी18 ने रिपोर्ट दी थी कि भारतीय फर्म कॉन्टिनेंटल इंडिया, डीई डायमंड, हिताची और जय उशिन, जो मारुति सहित ऑटोमेकर्स को कलपुर्जे प्रदान करती हैं, बीजिंग द्वारा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और ट्रम्प की दक्षिण कोरिया में मुलाकात के बाद अपने निर्यात नियंत्रणों में ढील देने का फैसला करने के बाद आयात लाइसेंस प्राप्त करने वाली पहली कंपनियां थीं. सीएनबीसी के अनुसार, ये चारों फर्म दुर्लभ पृथ्वी मैग्नेट का आयात तब तक कर सकती हैं, जब तक वे अमेरिका को इसका निर्यात और रक्षा उद्देश्यों के लिए उपयोग नहीं करती हैं.
टैरिफ तनाव के बीच, भारत और अमेरिका ने रक्षा साझेदारी को 10 साल के लिए बढ़ाया
टैरिफ को लेकर तनावपूर्ण संबंधों के बीच कुआलालंपुर में आसियान रक्षा मंत्रियों प्लस शिखर सम्मेलन के मौके पर शुक्रवार को एक बैठक में, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके अमेरिकी समकक्ष पीट हेगसेथ ने अगले 10 वर्षों के लिए भारत-अमेरिका रक्षा फ्रेमवर्क समझौते का नवीनीकरण किया, जो 1995 में पहली बार हस्ताक्षरित होने के बाद से इसका तीसरा विस्तार है. सिंह ने कहा कि रक्षा द्विपक्षीय संबंधों का “प्रमुख स्तंभ” बना रहेगा और यह नवीनीकृत समझौता एक “नए युग” की शुरुआत का प्रतिनिधित्व करता है. हेगसेथ ने दोनों पक्षों की रक्षा साझेदारी को “क्षेत्रीय स्थिरता और प्रतिरोध की आधारशिला” बताते हुए प्रशंसा की और कहा कि यह “कभी इतनी मजबूत नहीं रही.” उनके सकारात्मक बयानों के बावजूद, इस समझौते का विस्तार ऐसे समय में हुआ है जब भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद और उसके जवाब में वाशिंगटन द्वारा लगाए गए 50% टैरिफ दर को लेकर द्विपक्षीय संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं.
शिक्षा अधिकारी का स्कूलों को विवादित पत्र, पार्कों में ‘लव जिहाद’ के लिए बच्चे कक्षाओं से बंक मारते हैं
‘लव जिहाद’ अपने आप में एक अजीबोगरीब साज़िश का सिद्धांत है, लेकिन फरीदाबाद के शीर्ष शिक्षा अधिकारी ने इस सप्ताह की शुरुआत में सभी सरकारी और निजी स्कूलों को एक पत्र जारी करके एक नई गहराई को छू लिया. इस पत्र में उन्होंने छात्रों को “विभिन्न पार्कों में असामाजिक गतिविधियों और ‘लव जिहाद’ में शामिल होने” के खिलाफ चेतावनी दी. उनका मानना है कि “सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने और पर्यावरण को प्रदूषित करने” से रोकना जरूरी है.
बच्चों द्वारा समाज को पेश किए गए इस खतरे को रोकने के लिए, जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) अंशु गर्ग ने स्कूलों को माता-पिता को शामिल करते हुए व्हाट्सएप समूह बनाने का आदेश दिया, ताकि अनुपस्थित रहने वाले छात्रों पर नज़र रखी जा सके और “तत्काल जागरूकता” सुनिश्चित की जा सके. सुशील मानव ने गर्ग के हवाले से बताया कि यह निर्णय ‘सीएम विंडो’ पर ‘विभिन्न पार्कों में लव जिहाद में शामिल छात्रों’ के खिलाफ शिकायत मिलने के बाद लिया गया था. हालांकि, विरोध के बीच डीईओ को कल अंततः अपना पत्र “रद्द” करना पड़ा.
6 साल जेल में रहने के बाद बरी हुई आदिवासी महिला को बाहर निकलते ही फिर हिरासत में लिया
गड़चिरोली की मूल निवासी पार्वती सांदमेक को छह साल जेल में रहने के बाद उनके खिलाफ सभी पांच मामलों में बरी कर दिया गया था, लेकिन कल नागपुर केंद्रीय जेल से बाहर निकलते ही सादे कपड़ों में पुलिस कर्मियों ने उन्हें एक कार में बिठा लिया. उनके पति या परिवार के अन्य सदस्यों को कोई नोटिस या सूचना नहीं दी गई. यह तब हुआ जब सांदमेक के वकील ने उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने की धमकी दी, तब पुलिस ने उन्हें फोन किया और दावा किया कि उन्होंने उसे “भविष्य में किसी भी नक्सली (माओवादी) गतिविधियों में शामिल न होने की चेतावनी देने के कार्य के रूप में” हिरासत में लिया है. रात में, वो भी पुलिस की मौजूदगी में, वह अपने पति से मिल पाई, जिन्हें सांदमेक को अपने साथ ले जाने के लिए कहा गया था. सुकन्या शांता से बात करते हुए, एक स्थानीय पुलिस अधिकारी ने दावा किया कि उन्हें कानूनी दस्तावेज बनाने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वे केवल पूछताछ के लिए सांदमेक को हिरासत में ले रहे थे – सुकन्या नोट करती हैं कि यह “न केवल कानून के तहत अनिवार्य प्रक्रिया के विपरीत है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित बार-बार के फैसलों और सख्त निर्देशों का भी उल्लंघन करता है.”
नासिर हुसैन ने सात साल पहले ही कर दी थी भविष्यवाणी
अप्रैल 2018 में, इंग्लैंड के पूर्व कप्तान नासिर हुसैन ने एक युवा लड़की के साथ अपनी एक तस्वीर ट्विटर पर पोस्ट की थी, जिसमें भविष्यवाणी की गई थी कि वह “भारत के लिए एक स्टार बनेगी.” बीते गुरुवार को, उसी युवा लड़की, जेमिमा रोड्रिग्स, ने भारतीय महिला क्रिकेट टीम को शानदार जीत दिलाई, जब उन्होंने नवी मुंबई में महिला विश्व कप सेमीफाइनल में 339 के स्कोर का पीछा किया. जेमिमा ने 127 रन बनाए और उनकी जीत और भी मीठी थी, क्योंकि पिछले साल उनके पिता पर ‘धर्मांतरण’ के लिए मुंबई में एक क्लब परिसर का उपयोग करने के आधारहीन दावों के कारण उन्हें दक्षिणपंथी लोगों द्वारा भारी ट्रोल किया गया था.
वायरल वीडियो पर बजरंग दल के सदस्यों ने नाबालिग मुस्लिम लड़की और उसके परिवार पर किया हमला; 2 गिरफ्तार, मुख्य आरोपी फरार
उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद में बजरंग दल और हिंदू रक्षा दल के सदस्यों के एक समूह ने एक नाबालिग मुस्लिम लड़की के परिवार पर बेरहमी से हमला किया, जब उसका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह कथित तौर पर कह रही थी कि वह गोमांस खाएगी.
“मकतूब मीडिया” की खबर है कि हमलावरों ने कथित तौर पर इस्लाम विरोधी नारे लगाए, परिवार के घर में जबरन घुसने की कोशिश की और लड़की की मां को “गंदी गालियां” दीं.
हमले के मुख्य आरोपी दक्ष चौधरी, जिसने कथित तौर पर लड़की और उसके परिवार के खिलाफ हिंसा भड़काई, पर पहले से ही कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को थप्पड़ मारना, रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को पीटना, और गाजियाबाद की एक मस्जिद के अंदर जूते पहनकर कानून-व्यवस्था भंग करने का प्रयास करना शामिल है. पुलिस ने अन्नू चौधरी, दक्ष चौधरी, अक्कू पंडित, अमित ठाकुर और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है. गाजियाबाद, शालीमार गार्डन के एसीपी अतुल कुमार सिंह ने “मकतूब” को बताया, “अन्नू और अमित को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, जबकि मुख्य आरोपी दक्ष और अन्य फरार हैं.”
तालिबान के प्रति अफ़ग़ानों में व्यापक असंतोष है: निलोफ़र सखी
जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में एसोसिएट रिसर्च प्रोफेसर निलोफ़र सखी ने द हिंदू के साथ एक साक्षात्कार में कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान के भीतर आर्थिक पीड़ा और सामाजिक दमन के कारण अफ़ग़ान लोगों में तालिबान शासन के प्रति व्यापक असंतोष है. उन्होंने कहा कि 1990 के दशक के विपरीत, इस बार तालिबान की प्राथमिकता क्षेत्रीय देशों से मान्यता प्राप्त करना है, और इसीलिए वे भारत जैसे देशों तक पहुंच बना रहे हैं.
भारत-तालिबान संबंधों पर सखी ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान के लोग भारत को एक दोस्त के रूप में देखते हैं, जबकि तालिबान भारत को एक राजनीतिक और आर्थिक भागीदार के रूप में देखता है. उन्होंने चेतावनी दी कि तालिबान पर भरोसा करना एक “गलती” होगी, क्योंकि तालिबान के अल-कायदा और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे आतंकवादी समूहों के साथ अभी भी घनिष्ठ संबंध हैं. उनके अनुसार, “तालिबान को एक राजनीतिक या रणनीतिक साझेदार मानना एक गलती है, क्योंकि यह किसी न किसी मोड़ पर उल्टा पड़ेगा.”
पाकिस्तान और तालिबान के संबंधों पर उन्होंने कहा कि यह एक अच्छा केस स्टडी है कि जब आप एक आतंकवादी समूह पर भरोसा करते हैं तो क्या होता है. पाकिस्तान ने तालिबान का समर्थन किया, लेकिन अब उसे टीटीपी के बढ़ते हमलों का सामना करना पड़ रहा है. सखी का मानना है कि अफ़ग़ान तालिबान और टीटीपी के बीच घनिष्ठ संबंध हैं, जिन्हें अलग नहीं किया जा सकता.
अफ़ग़ानिस्तान की आंतरिक स्थिति पर उन्होंने कहा कि मौजूदा यथास्थिति तब तक जारी रहेगी जब तक लोग उठ खड़े नहीं होते. उन्होंने कहा, “अगर लोगों की मेज पर खाना नहीं होगा, तो वे इसके लिए लड़ेंगे.” महिलाओं के अधिकारों के दमन पर सखी ने कहा कि यह तालिबान की विचारधारा पर आधारित है, न कि अफ़ग़ान संस्कृति पर, और तालिबान इस मुद्दे का इस्तेमाल पश्चिम के साथ सौदेबाजी के लिए एक उपकरण के रूप में करता है. उन्होंने तालिबान के भीतर “उदारवादी” गुटों के अस्तित्व पर भी संदेह व्यक्त किया, क्योंकि लड़कियों की शिक्षा जैसे मुद्दों पर कोई वास्तविक बदलाव नहीं हुआ है. उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “तालिब तालिब है और तालिबान की विचारधारा सभी तालिबान में एक जैसी है.”
रघुराम राजन: ट्रंप के टैरिफ़ का असली ख़तरा सामान पर नहीं, भारत की सर्विस इंडस्ट्री पर है
जब भी अमेरिका और उसके व्यापार युद्ध की बात होती है, तो हमारा ध्यान स्टील, टेक्सटाइल और दूसरे सामानों पर लगने वाले टैरिफ़ पर अटक जाता है. हमें लगता है कि यही सबसे बड़ी चुनौती है. लेकिन अगर भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की मानें, तो हम असल ख़तरे को देख ही नहीं रहे हैं. असली तूफ़ान कहीं और से आने की तैयारी कर रहा है.
निधि राज़दान के साथ एक बातचीत में राजन ने साफ़ किया कि डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ़ नीति का सबसे बड़ा और गहरा असर भारत के गुड्स सेक्टर पर नहीं, बल्कि उसकी जान कहे जाने वाले सर्विस और आउटसोर्सिंग सेक्टर पर पड़ सकता है. यह एक ऐसी चेतावनी है, जिसे नज़रअंदाज़ करना भारत के लिए महंगा साबित हो सकता है.
असली ख़तरा: सामान नहीं, सेवाएं
राजन का कहना है कि अब तक व्यापार युद्ध सामानों तक सीमित रहा है. लेकिन अगर अमेरिका ने भारत की सेवाओं और आउटसोर्सिंग पर टैक्स लगाना शुरू कर दिया, तो इसका असर कहीं ज़्यादा विनाशकारी होगा. अमेरिकी कांग्रेस में “हायर्स एक्ट” (Hires Act) पर बहस चल रही है, जिसका मक़सद आउटसोर्स की जाने वाली सेवाओं पर टैरिफ़ लगाना है. सोचिए, भारत का आईटी और बीपीओ सेक्टर, जो लाखों लोगों को रोज़गार देता है और देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, अगर उस पर हमला होता है तो क्या होगा.
राजन ने एच-1बी वीज़ा के मुद्दे पर भी बात की. हालांकि इसे लेकर चिंताएं हैं, लेकिन उनका मानना है कि अब भारतीय कंपनियों को पहले की तरह अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेजने की ज़रूरत कम हो गई है. ज़्यादातर काम वर्चुअल तरीक़े से हो रहा है. इसलिए वीज़ा से ज़्यादा बड़ा ख़तरा सीधे आउटसोर्सिंग पर लगने वाला टैक्स है. यह भारत के विकास मॉडल के दिल पर चोट करने जैसा होगा.
समाधान बाहर नहीं, भीतर है
तो इस वैश्विक अनिश्चितता के बीच भारत क्या करे. राजन के मुताबिक, जवाब बाहर नहीं, बल्कि देश के भीतर छिपा है. यह स्थिति भारत के लिए एक “वेक-अप कॉल” यानी जागने का इशारा है. हमें अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए उन संरचनात्मक सुधारों को तेज़ी से लागू करना होगा, जिनकी बात सालों से हो रही है.
इसके लिए सबसे ज़रूरी है केंद्र और राज्यों के बीच गहरा सहयोग. राजन ने ज़ोर देकर कहा कि राजनीतिक मतभेदों को किनारे रखकर देश की आर्थिक तरक़क़ी के लिए एक साथ आना होगा. “यह राज्य हमारा है, वह विपक्ष का है,” वाली सोच को छोड़कर एक मज़बूत संघीय ढांचे की भावना से काम करना होगा. राज्यों को एक-दूसरे से सीखना चाहिए और देश में व्यापार करने को आसान बनाना चाहिए. जब हम अपने घरेलू बाज़ार को मज़बूत कर लेंगे, तो बाहरी झटकों का असर अपने आप कम हो जाएगा.
पुराना आत्मविश्वास वापस लाना होगा
राजन ने भारतीय उद्योग जगत को भी एक ज़रूरी संदेश दिया. उन्होंने 2000 के दशक की शुरुआत को याद करते हुए कहा, “मुझे वो दौर पसंद है, जब भारतीय इंडस्ट्री सोचती थी कि वो दुनिया को हरा सकती है.” आज इंडस्ट्री संरक्षणवाद की मांग कर रही है, जो कि लाइसेंस-परमिट राज की पुरानी मानसिकता की तरफ़ लौटना है. यह जवाब नहीं है.
भारत को अपनी सप्लाई चेन को विविध बनाना होगा. सिर्फ़ अमेरिका या पश्चिम पर निर्भर रहने के बजाय हमें पूर्व, अफ़्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे नए बाज़ारों की ओर देखना होगा.
अंत में, राजन का संदेश साफ़ है. दुनिया बदल रही है और ट्रंप की नीतियां इसका एक हिस्सा मात्र हैं. भारत सिर्फ़ बैठकर इंतज़ार नहीं कर सकता. उसे अपने घर को ठीक करना होगा. राज्यों और केंद्र को मिलकर काम करना होगा, व्यापार के लिए माहौल सुधारना होगा और अपनी इंडस्ट्री में वही पुराना आत्मविश्वास जगाना होगा कि “हम किसी से कम नहीं.” अगर हम ऐसा कर पाए, तो कोई भी वैश्विक व्यापार युद्ध हमें डिगा नहीं पाएगा.
लखनऊ को मिली यूनेस्को के ‘क्रिएटिव सिटीज़’ की सूची में जगह, पाक कला के लिए हुआ चयन
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को उसकी समृद्ध और विविध पाक विरासत के लिए यूनेस्को की “क्रिएटिव सिटीज़” की सूची में शामिल किया गया है. पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्रे अज़ोले ने 58 नए शहरों को यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज़ नेटवर्क (UCCN) के सदस्य के रूप में नामित किया है, जिसके बाद अब इस नेटवर्क में 100 से अधिक देशों के 408 शहर शामिल हो गए हैं.
लखनऊ को “गैस्ट्रोनॉमी” (पाक कला) की श्रेणी में यह मान्यता मिली है. यूनेस्को में भारत के स्थायी प्रतिनिधिमंडल ने इसे “भारत के लिए गर्व का क्षण” बताया और कहा कि लखनऊ की समृद्ध पाक विरासत को अब वैश्विक मंच पर पहचान मिली है. लखनऊ अपने पारंपरिक और स्वादिष्ट भोजन के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें लोकप्रिय स्ट्रीट फूड ‘चाट’ से लेकर अवधी व्यंजन और लाजवाब मिठाइयां शामिल हैं.
विश्व शहर दिवस पर की गई यह घोषणा उन शहरों को सम्मानित करती है जो “स्थायी शहरी विकास के चालक के रूप में रचनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता” दिखाते हैं. यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्रे अज़ोले ने कहा, “यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज़ यह दर्शाते हैं कि संस्कृति और रचनात्मक उद्योग विकास के ठोस वाहक हो सकते हैं.”
2004 में स्थापित, UCCN का उद्देश्य उन शहरों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है जो समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए संस्कृति और रचनात्मकता का लाभ उठाते हैं. यह नेटवर्क रोजगार पैदा करने, सांस्कृतिक जीवंतता बढ़ाने और सामाजिक सामंजस्य को मजबूत करने वाली पहलों का समर्थन करता है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.









