02/06/2025: ऊंघता हुआ सरकारी फैक्ट चैक | जब जीनोसाइड के खिलाफ है तो भारत गाज़ा पर कुछ करता क्यों नहीं | 40 रूसी जहाजों पर ड्रोन के हमले | लुंगी पर एतराज | भारतीय महिलाओं को सीमा पर धक्का |
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
बांग्लादेश सीमा पर धकेली गईं दो महिलाएं भारत लौटीं
बांग्लादेश सीमा पर धकेली गईं दो महिलाएं भारत लौटीं
गोमांस नहीं था, फिर भी लिंचिंग के शिकार लोगों पर एफआईआर जारी रहेगी
गोदी मीडिया झूठ पर झूठ परोसता रहा सरकारी फैक्ट चैक ईकाई हाथ पर हाथ रख ऊंघती रही
फौज का 15% समय झूठी खबरों से निपटने में खर्च हुआ
सीडीएस के इंटरव्यू की 3 बड़ी बातें और परमाणु हथियारों के उपयोग का सच!
रक्षा तैयारियों पर संसद का विशेष सत्र बुलाए सरकार: कांग्रेस
विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे चिराग, पार्टी बोली- रिजर्व सीट से नहीं, जनरल से लड़ें
दलित होकर हॉल में शादी, इसलिए दबंगों का लाठी-डंडों से हमला, दो गंभीर
बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना पर सामूहिक हत्या के आरोप में मुकदमा शुरू
दो साध्वियों ने तीसरी का बलात्कार करवाया
महिला सैन्य अधिकारियों को अभियान का हिस्सा नहीं बनाएगी भाजपा
धर्म के सवाल पर सेना अधिकारी की बर्खास्तगी को दिल्ली हाईकोर्ट की मंजूरी
रूस को गच्चा देकर यूक्रेन ने ड्रोन से कई जगह किये हमले, 40 जहाजों को तबाह करने के दावे
99.95% सोने का भंडार पृथ्वी के केंद्रीय कोर में
लुंगी ने थियेटर में एंट्री नहीं मिलने दी
बांग्लादेश सीमा पर धकेली गईं दो महिलाएं भारत लौटीं
'स्क्रोल' की रिपोर्ट है कि असम की दो बंगाली मूल की मुस्लिम महिलाएं, जिन्हें सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) द्वारा भारत और बांग्लादेश के बीच के 'नो मैंस लैंड' में कथित रूप से धकेल दिया गया था, अब अपने घर लौट आई हैं. इनमें से एक, 59 वर्षीय शोना भानु असम के बारपेटा ज़िले की रहने वाली हैं. उनके भाई अशरफ अली ने 'स्क्रोल' को बताया कि शनिवार रात करीब 11 बजे उन्हें हाईवे पर उतार दिया गया, जो उनके घर से करीब 120 किलोमीटर दूर था. दूसरी महिला, रहीमा बेगम, ऊपरी असम के गोलाघाट ज़िले की रहने वाली हैं. उनके परिवार के अनुसार, उन्हें शुक्रवार रात पुलिस द्वारा घर लाया गया. रहीमा बेगम को तीन महीने पहले ही विदेशी न्यायाधिकरण से नागरिकता से संबंधित एक अनुकूल फैसला मिला था, उनके वकील ने बताया.
शुक्रवार को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने स्वीकार किया कि राज्य, विदेशी न्यायाधिकरणों द्वारा विदेशी घोषित किए गए लोगों को बांग्लादेश की ओर "पुश बैक" कर रहा है. विदेशी न्यायाधिकरण असम में नागरिकता मामलों पर फैसला सुनाने वाले अर्ध-न्यायिक निकाय हैं. इन पर अक्सर मनमानी और पूर्वाग्रह का आरोप लगाया जाता है और लोगों को दस्तावेज़ों की मामूली गलतियों के आधार पर 'विदेशी' घोषित कर दिया जाता है. 'स्क्रोल' की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे कम से कम तीन लोग, जिनमें शोना भानु भी शामिल हैं, जिन्हें भारतीय क्षेत्र से बाहर निकाला गया, उनके मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.
भानु उन 14 लोगों में शामिल थीं, जिन्हें 27 मई को भारत से जबरन बाहर निकाला गया. उनके भाई ने बताया, “मुझे रात 11:30 बजे कॉल आया कि उन्हें हाईवे पर छोड़ दिया गया है. मैंने गाड़ी किराए पर ली और उन्हें घर लाया.” उन्हें 25 मई को बारपेटा के पुलिस अधीक्षक कार्यालय बुलाया गया था, जहां से उन्हें मतिया डिटेंशन सेंटर ले जाया गया. 2013 में उन्हें विदेशी घोषित किया गया था, जिसे 2016 में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बरकरार रखा, लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर स्थगन लगा दिया था.
रहीमा ने बताया कि जब वे वापस आने लगे, तो भारतीय और बांग्लादेशी सुरक्षाबलों के बीच गोलीबारी शुरू हो गई. “हम डर के मारे पूरी दोपहर खुले मैदान में गर्मी में बैठे रहे.” शाम 6 बजे, बीएसएफ फिर से आया, उन्हें पानी और खाना दिया और बांग्लादेशी मुद्रा लौटाने को कहा. कानून के अनुसार रहीमा भारतीय नागरिक हैं. रहीमा एक सिलेटी मुस्लिम हैं और वे व उनके पति मालेक उद्दीन चौधरी, कछार ज़िले से गोलाघाट आए थे. उनके वकील लिपिका देब ने बताया कि जोरहाट स्थित विदेशी न्यायाधिकरण ने 26 मार्च को माना कि उनका परिवार 1 जनवरी 1966 और 24 मार्च 1971 के बीच असम में आया था.
अलीगढ़ में मॉब लिंचिंग
गोमांस नहीं था, फिर भी लिंचिंग के शिकार लोगों पर एफआईआर जारी रहेगी
पुलिस ने शुक्रवार को कहा कि पिछले सप्ताह अलीगढ़ में भीड़ द्वारा बेरहमी से हमला किए गए चार लोगों के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द नहीं होगी, हालांकि उन पर से गोहत्या की धाराएं हटा दी जाएंगी. यह घटना पुलिस द्वारा फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए पुष्टि किए जाने के दो दिन बाद हुई है, जिसमें पुष्टि की गई थी कि चारों लोग ट्रक में भैंस का मांस ले जा रहे थे, न कि गाय का मांस, जैसा आरोप लगाया गया था. 24 मई को अलहदादपुर गांव में बड़ी संख्या में लोगों ने अकील (26), अरबाज (27), कदीम (28) और अकील (28) पर रॉड, डंडे और अन्य वस्तुओं से हमला किया था. रोरावर में एक मीट फैक्ट्री से आ रहे उनके वाहन को भी पलट दिया गया और आग लगा दी गई.
चारों को गंभीर हालत में मेरठ के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया था. उनका अब भी इलाज चल रहा है. घटना के बाद पुलिस ने अकील के पिता सलीम खान की शिकायत पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 309 (हत्या का प्रयास) समेत विभिन्न धाराओं के तहत 13 नामजद और 25 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. दूसरी तरफ चारों के खिलाफ एफआईआर विजय बजरंगी की शिकायत पर दर्ज की गई थी, जिन्हें बाद में भानु प्रताप, विजय कुमार और लवकुश के साथ मारपीट के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. हरदुआगंज स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) धीरज यादव ने कहा, “हमने चार आरोपियों की पहचान की और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. जांच जारी है और जल्द ही इसमें शामिल अन्य लोगों की पहचान की जाएगी."
50 वर्षीय कपड़ा विक्रेता सलीम खान ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "हमारे बच्चे कोई गैरकानूनी काम नहीं कर रहे थे. मेरे बेटे के सिर पर गंभीर चोटें आई हैं. उसके सिर पर 58 टांके लगे हैं. वह इसके लायक नहीं था." अकील के मामा मोहम्मद सलीम (52 वर्ष) ने बताया, "हमारे पास सभी दस्तावेज थे. हम पिछले पांच सालों से इस धंधे में लगे हैं. हमारे पास फैक्ट्री के कागजात भी थे. उस दिन 12 से 13 लोगों ने मेरे भतीजे को रोका और आरोप लगाया कि यह गाय का मांस है और उसे गाड़ी से बाहर खींच लिया." उन्होंने बताया, "भीड़ एक दर्जन से बढ़कर 400 हो गई. अगर पुलिस नहीं आती तो वे हमारे बच्चों को मार देते." घटना को याद करते हुए सलीम ने बताया, “गाड़ी सुबह 7 बजे फैक्ट्री से निकली थी. उन सभी की अतरौली में एक दुकान है. वे प्रतिदिन 1,000 से 1,500 रुपये कमाते हैं. उनके जाने के 30 मिनट बाद ही भीड़ गाड़ी के चारों ओर इकट्ठा हो गई और 50,000 रुपये मांगने लगी, लेकिन हमारे लड़कों के पास पैसे नहीं थे."
उन्होंने कहा, "हम बस न्याय चाहते हैं. चारों ही लोग जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनके शरीर पर एक भी जगह ऐसी नहीं है, जहां चोट न लगी हो. घाव तो अंततः ठीक हो सकते हैं, लेकिन निशान हमेशा के लिए रह जाएंगे."
ऑपरेशन सिंदूर
गोदी मीडिया झूठ पर झूठ परोसता रहा सरकारी फैक्ट चैक ईकाई हाथ पर हाथ रख ऊंघती रही
पूर्व भाजपा मंत्री वैंकय्या नायडू ने पीआईबी में फैक्ट चैक यूनिट का उद्घाटन करते वक्त ऐलान तो यही किया था कि इससे फेक न्यूज दूर करने में मदद मिलेगी, ताकि लोगों को तथ्यात्मक, प्रामाणिक, विश्वसनीय स्रोतों से वे फैक्ट चैकिंग का काम जिम्मेदारी, निष्पक्षता और वस्तुपरकता के साथ कर सकें. पर इन सारी कसौटियों पर वे बुरी तरह फेल हुए. इस पूरे एपिसोड एक ही फैक्ट चैक होकर साबित हो पाया, कि पीआईबी की फैक्ट चैकिंग यूनिट नालायक है.
फैक्ट चैकिंग साइट ऑल्ट न्यूज की शिंजनी मजूमदार ने पाया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मुख्यधारा की भारतीय मीडिया द्वारा फैलाए गए झूठे दावों को पीआईबी ने जानबूझकर नजरअंदाज किया. 7 मई को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में नौ आतंकी ठिकानों पर हमला किया. चार दिनों तक चली इस सैन्य कार्रवाई में जम्मू-कश्मीर में कम से कम 21 नागरिकों की मौत हुई. 10 मई को दोनों देशों के बीच युद्धविराम की सहमति बनी.
इन चार दिनों के दौरान भारतीय मीडिया ने अतिराष्ट्रवादी उन्माद में कई झूठे और बेबुनियाद दावे किए. इनमें कराची पोर्ट तबाह होने का झूठा दावा था. आज तक की एंकर अंजना ओम कश्यप ने दावा किया कि भारतीय नौसेना ने कराची पोर्ट पर "भीषण हमला" किया है. जी न्यूज के राममोहन शर्मा ने "ब्रेकिंग न्यूज" के रूप में बताया कि "कराची पोर्ट तबाह कर दिया गया है. इंडिया टुडे, टीवी9 भारतवर्ष, एबीपी न्यूज ने भी यही झूठा दावा किया. पर अगली ही सुबह कराची पोर्ट ट्रस्ट ने आधिकारिक बयान जारी कर इन रिपोर्टों को "पूर्णतः झूठा और निराधार" बताया.
कराची के बाद बारी इस्लामाबाद पर हमले के झूठा प्रचार की थी. पीआईबी फैक्ट चैक वाले बैठे रहे, जब जी न्यूज, न्यूज18, वनइंडिया, सुदर्शन न्यूज ने दावा किया कि भारतीय सेना ने इस्लामाबाद पर हमला किया है. बाद में यह दावा बदलकर "पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के घर पर हमला" हो गया. जी न्यूज ने तो यहां तक दावा किया कि शरीफ ने "आत्मसमर्पण" कर दिया है. जबकि इन दावों का कोई भी विश्वसनीय स्रोत नहीं था.
इसके बाद निर्दोष नागरिक को आतंकी बताने का झूठ सामने आया, जब रिपब्लिक, सीएनएन न्यूज18, एबीपी न्यूज, जी न्यूज ने कारी मोहम्मद इकबाल को "लश्कर आतंकी" बताया. जबकि इकबाल कश्मीर के पूंछ का एक स्कूल टीचर था, जो पाकिस्तानी गोलाबारी में मारा गया था.
पाकिस्तानी सेना प्रमुख के इस्तीफे की अफवाह भी मातृभूमि, डीएनए, वनइंडिया, ग्रेट आंध्रा ने आसिम मुनीर के इस्तीफे की झूठी खबर छापी. जबकि किसी विश्वसनीय स्रोत से इसकी पुष्टि नहीं हुई. इसके अलावा फर्स्टपोस्ट, एनडीटीवी, फ्री प्रेस जर्नल, द स्टेट्समैन ने पाकिस्तानी सैन्य प्रवक्ता का डीपफेक वीडियो दिखाया. इसमें वे दो लड़ाकू विमान खोने की बात स्वीकार कर रहे थे.
ऑल्ट न्यूज के विश्लेषण के अनुसार पीआईबी ने 7-16 मई के बीच 68 फैक्ट-चेक किए. इनमें से केवल 2 फैक्ट-चेक मीडिया आउटलेट्स के झूठे दावों पर थे. बाकी सभी सोशल मीडिया यूजर्स और विपक्षी नेताओं पर केंद्रित थे.
पीआईबी का दोहरा मापदंड इस बात से भी दिखा कि भारतीय मीडिया के लिए इसने नाम छुपाया और हल्के उलाहनों से काम लिया. जबकि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के लिए अल-जज़ीरा जैसे चैनलों का सीधे नाम लेकर कड़ी निंदा की. 15 मई को पीआईबी ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के गलत कोट के मामले में इंडिया टुडे का स्क्रीनशॉट दिखाया, लेकिन चैनल का नाम और लोगो धुंधला कर दिया था. यह स्पष्ट रूप से पक्षपात दर्शाता है.
टाइम्स नाउ नवभारत के कंसल्टिंग एडिटर सुशांत सिन्हा को बीजेपी ने प्लेटफॉर्म दिया ताकि वे मीडिया के झूठे दावों को "राष्ट्रीय हित" में जायज ठहरा सकें. सिन्हा ने कहा कि "ब्रेकिंग न्यूज" के दौरान एंकर के पास वेरिफिकेशन का समय नहीं होता और इस पर सवाल उठाना "राष्ट्र विरोधी एजेंडा" है.
फौज का 15% समय झूठी खबरों से निपटने में खर्च हुआ
'बिजनेस स्टैंडर्ड' की रिपोर्ट है कि सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भ्रामक सूचनाओं (मिसइन्फॉर्मेशन) से उपजे गंभीर खतरे को रेखांकित करते हुए खुलासा किया कि सशस्त्र बलों का लगभग 15% समय झूठी खबरों से निपटने में खर्च हुआ. शांग्री-ला डायलॉग के इतर बोलते हुए जनरल चौहान ने कहा- “फेक न्यूज़ से लड़ना एक निरंतर प्रयास था. हमने अपनी संचार रणनीति को जानबूझकर संयमित रखा, तात्कालिक और भावनात्मक नहीं बनाया, क्योंकि संकट की घड़ी में भ्रामक सूचनाएं जनता की धारणा को तेज़ी से बिगाड़ सकती हैं.”
साइबर हमलों को लेकर उठे सवालों पर जनरल चौहान ने कहा - “साइबर युद्ध मौजूद था, लेकिन उसका असर मुख्य सैन्य अभियानों पर सीमित रहा. दोनों पक्षों ने साइबर हमलों का सामना किया, जिसमें कुछ डिनायल-ऑफ-सर्विस (DoS) जैसे हमले भी थे. परंतु हमारी सैन्य प्रणालियां एयर-गैप्ड हैं. यानी इंटरनेट से जुड़ी नहीं हैं. इसलिए वे काफी हद तक सुरक्षित रहीं.”
सीडीएस के इंटरव्यू की 3 बड़ी बातें और परमाणु हथियारों के उपयोग का सच!
सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने शनिवार (31 मई) को सिंगापुर में शांग्री-ला डायलॉग के दौरान 'ब्लूमबर्ग' और 'रॉयटर्स' को दिए गए साक्षात्कारों में हालिया भारत-पाकिस्तान संघर्ष को लेकर अभूतपूर्व और बेबाक बयान दिए. यह किसी वरिष्ठ भारतीय अधिकारी द्वारा दिए गए दुर्लभ और स्पष्ट टिप्पणियों में से हैं. जनरल चौहान के बयानों ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष की जटिलता को उजागर किया है. अब इन्हीं दोनों साक्षत्कारों से 'द वायर' ने सीडीएस के इंटरव्यू से तीन मुख्य बातें निकाली हैं.
यहां उनके बयानों से जुड़ी तीन प्रमुख बातें हैं:
ऑपरेशन 'सिंदूर' की पहली रात ही एयरफोर्स ने लड़ाकू विमान खो दिए थे. जनरल चौहान ने इन्हें “प्रारंभिक नुकसान” बताया और स्वीकार किया कि ये नुकसान रणनीतिक चूकों की वजह से हुए. हालांकि, उन्होंने पाकिस्तान द्वारा 6 भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराने के दावे को पूरी तरह गलत बताया. उन्होंने ज़ोर दिया कि विमानों की संख्या पर चर्चा करने के बजाय, यह समझना ज्यादा ज़रूरी है कि गलतियां क्यों हुईं और उन्हें कैसे सुधारा गया.
दो दिन तक एयरफोर्स ने सभी लड़ाकू विमान उड़ाए ही नहीं. इन शुरुआती नुकसानों के बाद, भारतीय वायुसेना ने लगभग दो दिन तक पूर्ण पैमाने पर अभियान स्थगित कर दिया. इस दौरान रणनीति की पुनः समीक्षा और सुधार किया गया. ब्लूमबर्ग को दिए साक्षात्कार में जनरल चौहान ने कहा- “हमने जो रणनीतिक चूक की थी, उसे समझा, ठीक किया और फिर दो दिन बाद जब हम दोबारा उड़े तो लंबी दूरी तक सटीक लक्ष्यभेदन किया.”
पाकिस्तान के सैन्य नेतृत्व ने परिपक्वता और विवेक दिखाया. हालांकि यह संघर्ष तीव्र था, लेकिन जनरल चौहान ने कहा कि दोनों पक्षों ने “विवेकपूर्ण और परिपक्व” व्यवहार किया और स्थिति को परमाणु युद्ध की सीमा तक नहीं पहुंचने दिया. रॉयटर्स से बात करते हुए उन्होंने कहा- “ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हर चरण में, मैंने दोनों पक्षों को विचार और क्रियाओं में उच्च स्तर की समझदारी दिखाते देखा.” उन्होंने इस सुझाव को “काल्पनिक” बताया कि कोई पक्ष परमाणु हथियारों का उपयोग करने के करीब पहुंचा था. उन्होंने यह भी बताया कि दोनों देशों के बीच संचार चैनल खुले रहे, जिससे इस संकट को नियंत्रित करने में मदद मिली.
रक्षा तैयारियों पर संसद का विशेष सत्र बुलाए सरकार: कांग्रेस
मुख्य रक्षा प्रमुख (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान के सिंगापुर में दिए गए एक इंटरव्यू में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायुसेना के विमानों के नुकसान और एक 'सामरिक गलती' स्वीकार करने के बाद, कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोला है. पार्टी ने रक्षा तैयारियों और विदेश नीति पर चर्चा के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की तत्काल मांग की है.
कांग्रेस ने सरकार की चुप्पी और विदेश से इस तरह की संवेदनशील जानकारी सामने आने पर सवाल उठाए हैं. पार्टी नेताओं ने कहा कि सरकार को संसद को अंधेरे में रखने के बजाय विपक्षी नेताओं को भरोसे में लेना चाहिए था. सरकार की ओर से अभी तक इस मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
महायुति में सब ठीक नहीं ; दोनों “डिप्टी” का बात कम करना मुद्दा
महाराष्ट्र में नेतृत्व के स्तर पर महायुति गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. एनडीए नेतृत्व में बढ़ते मतभेदों की खबरों और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के इस बयान के बीच कि उनके दोनों उपमुख्यमंत्री बातचीत कम करते हैं, एकनाथ शिंदे ने रविवार को जोर देकर कहा कि “वे सब एक ही पेज पर हैं और एजेंडा विकास है.”
जब फडणवीस से पिछले सप्ताह पूछा गया था कि उनके दोनों उपमुख्यमंत्रियों- एकनाथ शिंदे और अजित पवार- में से कौन बेहतर संवाद करता है, तो उन्होंने कहा, "मैं आपको साफ-साफ बता दूं... उन्हें मुझे माफ कर देना चाहिए... दोनों ही कम्युनिकेटिव नहीं हैं." जहां अजित ने इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी, वहीं उपमुख्यमंत्री और एनसीपी अध्यक्ष के करीबी अमोल मिटकरी ने मुख्यमंत्री की टिप्पणी और दोनों उपमुख्यमंत्रियों पर नाराजगी जताई थी. हालांकि, रविवार को कोंकण क्षेत्र के चुनिंदा मीडिया समूह के साथ अनौपचारिक बातचीत के दौरान जब महायुति नेतृत्व पर सवालों की बौछार हुई तो शिंदे ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा- "हम कम बोलते हैं और ज्यादा काम करते हैं... अगर हम बोलेंगे तो आप लोग ही हमें मुश्किल में डाल देंगे." उन्होंने कहा कि तीनों के बीच संवाद की कोई कमी नहीं है.
उनसे पूछा गया कि जब वे ढाई साल तक मुख्यमंत्री थे और अब जब वे उपमुख्यमंत्री हैं, उनकी कार्यशैली में क्या फर्क है, तो शिंदे ने कहा, "कोई मतभेद नहीं है... मैंने पूरी जिंदगी काम ही किया है." उन्होंने कहा कि “मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री क्या होते हैं…असल में, मुख्यमंत्री आम आदमी होता है और उपमुख्यमंत्री आम आदमी के लिए समर्पित होता है.”
बाला साहेब की ‘एआई’ आवाज़ उद्धव की नैया पार लगा पाएगी?
इधर, शिवसेना (यूबीटी) आगामी महाराष्ट्र नगर निकाय चुनावों से पहले ‘एआई’ (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) पर बड़ा दांव लगा रही है—चाहे वह शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की आवाज़ को फिर से बनाना हो या अपने मुखपत्र 'सामना' के लिए एआई एंकर विकसित करना.
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी द्वारा ‘एआई’ पर दांव ऐसे समय पर लगाया जा रहा है, जब वह अपने राजनीतिक करियर में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. शिवसेना सांसद अनिल देसाई ने बताया कि वे डेटा विश्लेषण के लिए विशेष रूप से, जितना संभव हो सके ‘एआई’ का उपयोग करते हैं.
अप्रैल में, शिवसेना (यूबीटी) ने नासिक में एक कार्यक्रम के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के लिए बाल ठाकरे की आवाज़ की तरह आवाज़ तैयार करने के लिए ‘एआई’ का इस्तेमाल किया. यह कदम पिछले साल राज्य विधानसभा चुनावों में हार के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट की संभावनाओं को मजबूत करने के लिए उठाया गया था.
शिवसेना (यूबीटी) के अनुसार, इस भाषण में यह दिखाने की कोशिश की गई कि अगर बाल ठाकरे जीवित होते तो वे क्या कहते. इस ‘एआई’ भाषण में मुख्य रूप से सत्तारूढ़ बीजेपी और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली प्रतिद्वंद्वी शिवसेना पर निशाना साधा गया. इसने बाल ठाकरे के भाषणों के दौरान उनके हावभाव, लहजे और शैली को भी अपनाने की कोशिश की.
मेरे प्यारे मम्मी-पापा…
राष्ट्रवादी जनता दल (आरजेडी) से निष्कासित होने और परिवार से भी बाहर निकाले जाने के एक हफ्ते बाद, पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने रविवार को एक सोशल मीडिया पोस्ट में अपने माता-पिता को संबोधित करते हुए कहा कि वे उनके द्वारा दिए गए किसी भी आदेश को स्वीकार करेंगे.
उनकी पोस्ट की शुरुआत थी, “मेरे प्यारे मम्मी-पापा….मेरी सारी दुनिया बस आप दोनों में ही समाई है. भगवान से बढ़कर हैं आप और आपका दिया कोई भी आदेश. आप हैं तो सबकुछ है मेरे पास. मुझे सिर्फ आपका विश्वास और प्यार चाहिए ना कि कुछ और. पापा आप नहीं होते तो ना ये पार्टी होती और ना मेरे साथ राजनीति करने वाले कुछ जयचंद जैसे लालची लोग. बस, मम्मी-पापा आप दोनों स्वस्थ और खुश रहें हमेशा.
पिछले रविवार को यह विवाद तब शुरू हुआ जब लालू प्रसाद ने तेज प्रताप को छह साल के लिए आरजेडी से निष्कासित करने और पारिवारिक संबंध तोड़ने की घोषणा की, जिसमें "गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार" और परिवार की "मूल्य और परंपराओं के अनुरूप न होने वाली गतिविधियों" का हवाला दिया गया. लालू द्वारा यह निर्णय उस सोशल मीडिया पोस्ट के बाद लिया गया, जिसे तेज प्रताप ने अब डिलीट कर दिया है. इस पोस्ट में तेज प्रताप ने एक महिला के साथ अपनी तस्वीर साझा करते हुए 12 साल के रिश्ते का दावा किया था. बाद में उन्होंने कहा था कि उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स हैक कर लिए गए थे और उनकी छवि तथा उनके परिवार को बदनाम करने के लिए तस्वीरों को एडिट किया गया था.
विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे चिराग, पार्टी बोली- रिजर्व सीट से नहीं, जनरल से लड़ें
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने खुद भले ही खुले तौर पर अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर न की हो, लेकिन उनकी पार्टी उनसे आगामी बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का अनुरोध कर सकती है. दरअसल, लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) जल्द ही अपने कार्यकारिणी सदस्यों की बैठक बुलाकर इस आशय के एक प्रस्ताव को औपचारिक रूप देने की तैयारी में है.
उनके विधानसभा का चुनाव लड़ने की संभावना को बल पार्टी के ही इस सुझाव से मिला है कि “उन्हें आरक्षित के बजाय सामान्य सीट से चुनाव लड़ना चाहिए.” अब तक चिराग ने विधानसभा चुनावों में किस्मत नहीं आजमाई है और जमुई व हाजीपुर से लोकसभा चुनाव ही लड़ा है, जो रिजर्व सीटें हैं. पार्टी में बिहार मामलों के प्रभारी और जमुई से सांसद अरुण भर्ती ने “एक्स” पर लिखा, “पार्टी कार्यकर्ताओं की आम भावना है कि चिराग पासवान को सामान्य सीट से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए, न कि आरक्षित सीट से.”
सूत्रों के अनुसार, एलजेपी के नेताओं ने 30 मई को बिहार के बिक्रमगंज में बैठक की थी, जहां कुछ घंटे बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक जनसभा को संबोधित किया. इस बैठक में चिराग पासवान स्वयं उपस्थित नहीं थे. अरुण भारती ने कहा कि बिहार, पासवान की राजनीति का केंद्र है और वह बार-बार राज्य के विकास के अपने विजन के बारे में बोलते रहे हैं. उन्होंने केंद्रीय मंत्री द्वारा प्रस्तुत ‘बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट’ एजेंडे को याद करते हुए कहा, “अगर पासवान बिहार की धरती और विधानसभा से इस एजेंडे को दोहराते हैं, तो इसे और बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है.” उन्होंने बताया कि पार्टी के भीतर अपने मुख्य चेहरे को विधानसभा चुनाव लड़ाने की मांग के पीछे यही वजह है. हालांकि, इस कदम को बिहार में भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के इस महत्वपूर्ण घटक द्वारा अपनी ताकत दिखाने के रूप में भी देखा जा रहा है. भाजपा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जद (यू) के बाद एलजेपी एनडीए की तीसरी सबसे बड़ी सदस्य है.
माना जा रहा है कि एनडीए, जो अब राज्य में पहले से कहीं ज्यादा भीड़भाड़ वाला गठबंधन है, में सीट बंटवारे की बातचीत अभी शुरू नहीं हुई है और इसीलिए इसके घटक दल संभावित सौदेबाजी से पहले अपनी-अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं. पार्टी का मानना है कि वह राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन की सफलता के लिए अहम कड़ी है, क्योंकि आरजेडी-कांग्रेस-वाम दलों का महागठबंधन दो दशकों बाद नीतीश कुमार को सत्ता से हटाने का मौका देख रहा है, खासकर उनकी सेहत को लेकर उठ रही चिंताओं के बीच. पासवान के नीतीश कुमार के साथ मतभेदों के कारण 2020 के विधानसभा चुनावों में एनडीए से बाहर निकलने के फैसले और ज्यादातर उम्मीदवारों को जेडीयू के खिलाफ खड़ा करने से राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा था. जद (यू) भाजपा के मुकाबले जूनियर स्थिति में आ गई और महागठबंधन को सत्ता के करीब ला दिया. हालांकि पासवान की पार्टी केवल एक सीट जीत सकी और बाद में विभाजन का सामना करना पड़ा, लेकिन तब से उसने अपनी राजनीतिक ताकत वापस हासिल कर ली है और 2024 के आम चुनावों में जिन पांच लोकसभा सीटों पर उसने चुनाव लड़ा, सभी जीत ली थीं.
इस बीच “द इंडियन एक्सप्रेस” की रिपोर्ट है कि सीट-बंटवारा सत्तारूढ़ एनडीए के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि एलजेपी कई सीटों पर दावा ठोक सकती है. आंकड़े बताते हैं कि राज्य की कुल 243 सीटों में से कम से कम 38 सीटें ऐसी हैं, जिन पर एनडीए में टकराव हो सकता है. खासकर, एलजेपी उन सीटों पर दावा करने के लिए तैयार है, जहां उसके उम्मीदवारों ने अच्छा प्रदर्शन किया था और 2020 में जद (यू) व अन्य सहयोगियों को नुकसान पहुंचाया था. 2020 के चुनावों में, तब की एलजेपी ने इन 38 में से 32 सीटों पर नीतीश कुमार की पार्टी से ज्यादा वोट हासिल किए थे. इन 32 में से कम से कम 26 सीटों पर एलजेपी को जेडीयू की हार के अंतर से ज्यादा वोट मिले थे. अन्य पांच सीटों पर एलजेपी दूसरे स्थान पर रही थी.
दलित होकर हॉल में शादी, इसलिए दबंगों का लाठी-डंडों से हमला, दो गंभीर
उत्तरप्रदेश के रसड़ा (बलिया) में दबंगों ने एक दलित परिवार पर इसलिए लाठी-डंडों से हमला कर दिया, क्योंकि उन्होंने शादी समारोह एक हॉल में आयोजित कर लिया था. पुलिस ने रविवार को बताया कि इस घटना में दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. एफआईआर के अनुसार, हमलावरों ने कहा, “दलित होकर हॉल में शादी कैसे कर सकते हो?” इस मामले में अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. पीड़ित के भाई राघवेंद्र गौतम की शिकायत पर दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि लगभग 20 लोगों का एक समूह, जो लाठी-डंडों से लैस था, रात करीब 10:30 बजे स्वयंवर मैरिज हॉल में घुस आया और वहां शादी समारोह मना रहे लोगों पर हमला कर दिया.
एफआईआर में यह भी बताया गया है कि हमलावरों ने जातिसूचक गालियां दीं और दलित समुदाय के लोगों द्वारा शादी हॉल में शादी करने पर आपत्ति जताई. हमले में गौतम के रिश्तेदार अजय कुमार और मनन कांत गंभीर रूप से घायल हो गए. पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की संबंधित धाराओं में मामला दर्ज किया है.
अब्बास अंसारी विधायकी से अयोग्य घोषित : आधिकारिक सूत्रों ने रविवार को बताया कि गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी के बेटे और उत्तर प्रदेश के विधायक अब्बास अंसारी को भड़काऊ भाषण मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया है.
अब्बास अंसारी मऊ विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे. द हिंदू के अनुसार, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के विधायक अब्बास अंसारी को शनिवार को विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट ने 2022 के भड़काऊ भाषण मामले में दो साल कैद की सजा सुनाई थी. अभियोजन पक्ष के अनुसार, पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान मऊ सदर सीट से एसबीएसपी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे अब्बास अंसारी ने 3 मार्च 2022 को पहाड़पुर मैदान में एक जनसभा के दौरान मऊ प्रशासन को धमकाते हुए कहा था कि वह चुनाव के बाद ‘बदला लेंगे और उन्हें सबक सिखाएंगे’.
दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट के न्यायाधीश के.पी. सिंह ने शनिवार को अब्बास अंसारी को दोषी करार देते हुए धारा 189 और 153-ए के तहत दो-दो साल, धारा 506 के तहत एक साल और धारा 171-एफ के तहत छह महीने कैद की सजा सुनाई. सभी सजाएं एक साथ चलेंगी. अंसारी पर 2,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है.
बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना पर सामूहिक हत्या के आरोप में मुकदमा शुरू
बांग्लादेश के इतिहास में पहली बार कोई अदालती कार्यवाही राष्ट्रीय टेलीविजन पर लाइव प्रसारित की गई. शेख हसीना के खिलाफ मुकदमे की शुरुआत उनके पद से हटने के लगभग दस महीने बाद उनकी अनुपस्थिति में की गई. बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने रविवार को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके दो सहयोगियों पर सामूहिक हत्या सहित कई आरोपों में औपचारिक रूप से अभियोग लगाया. यह आरोप पिछले साल देश में हुए छात्र-नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों पर उनके कथित हिंसक दमन के संबंध में है. पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, तीन न्यायाधीशों की आईसीटी पीठ ने कहा, “हम आरोपों का संज्ञान लेते हैं.”
नए गिरफ्तारी वारंट जारी: मिंट की खबर है कि अदालत ने हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल के लिए नए गिरफ्तारी वारंट भी जारी किए. तीसरे आरोपी, पूर्व पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून हिरासत में हैं. मुख्य अभियोजक ताजुल इस्लाम ने एक कदम आगे बढ़कर न्यायाधिकरण से हसीना की अवामी लीग को आपराधिक संगठन घोषित करने का आग्रह किया. उन्होंने दावा किया कि हिंसा पक्षपातपूर्ण तरीके से की गई थी. यदि आईसीटी-बीडी कानून के तहत दोषी पाया जाता है, तो आरोपी को मौत की सजा हो सकती है.
मुकदमे से पहले बम फेंके गए : रविवार की सुबह न्यायाधिकरण के द्वार पर तीन कच्चे बम फेंके जाने के बाद मुकदमे की शुरुआत में थोड़ी देरी हुई. दो विस्फोट हो गए, जबकि तीसरे को निष्क्रिय कर दिया गया. पुलिस अपराधियों की पहचान करने और उन्हें गिरफ्तार करने के लिए सीसीटीवी फुटेज की जांच कर रही है.
कई आरोपों का सामना कर रही हैं हसीना : 5 अगस्त, 2024 को व्यापक अशांति के बाद पदच्युत की गईं शेख हसीना अब बांग्लादेश में कई मामलों का सामना कर रही हैं. पिछले गिरफ्तारी वारंट के कारण अंतरिम सरकार ने राजनयिक चैनलों के माध्यम से भारत से उनके प्रत्यावर्तन का औपचारिक रूप से अनुरोध किया था. नई दिल्ली ने अनुरोध स्वीकार कर लिया है, लेकिन कोई प्रतिक्रिया जारी नहीं की है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल बांग्लादेश में 15 जुलाई से 15 अगस्त के बीच हुए विरोध प्रदर्शनों और उसके बाद हुई हिंसा में लगभग 1,400 लोगों की जान चली गई थी, जिसमें छात्र, नागरिक और पुलिसकर्मी शामिल थे.
दो साध्वियों ने तीसरी का बलात्कार करवाया
गाजियाबाद पुलिस ने रविवार को बताया कि उन्होंने कथित तौर पर एक साध्वी से दुष्कर्म में मदद करने और उसे ब्लैकमेल करने तथा धमकाने के आरोप में दो साध्वी कही जाने वाली महिलाओं को गिरफ्तार किया है. पुलिस ने बताया कि दोनों आरोपी महिलाएं गाजियाबाद के गुरुकुल शांतिधाम आश्रम में साध्वी हैं. कौशांबी के थाना प्रभारी (एसएचओ) अजय कुमार शर्मा ने बताया, "दोनों महिलाओं की पहचान दिव्या योग माया सरस्वती (62), जो असम की रहने वाली हैं, और उनकी सहयोगी राधिका उर्फ शबनम (35), जो गाजियाबाद के कौशांबी की रहने वाली हैं, के रूप में हुई है." शर्मा ने बताया कि मुख्य आरोपी गोकुल, जो दिव्या का भाई है, अभी तक गिरफ्तार नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि वह शायद असम भाग गया हो सकता है. पुलिस के अनुसार, पीड़िता ने 8 मई को कौशांबी पुलिस स्टेशन में लिखित शिकायत दर्ज कराई थी. एसएचओ ने बताया, "पुलिस को दी अपनी शिकायत में, पीड़िता ने कहा कि तीनों ने उसकी कोल्ड ड्रिंक में नशीला पदार्थ मिलाया और फिर गोकुल ने आश्रम में उसके साथ दुष्कर्म किया. इसके बाद उन्होंने उसे ब्लैकमेल किया और धमकी दी कि अगर उसने किसी को इसके बारे में बताया तो उसे जान से मार देंगे."
साल की पहली तिमाही में असंगठित क्षेत्र में सुधार, लेकिन औपचारिक खपत में गिरावट
‘फायनेंशियल एक्सप्रेस’ की खबर है कि भारतीय अर्थव्यवस्था फिलहाल एक संक्रमणकालीन दौर से गुजर रही है — जहां ग्रामीण और असंगठित क्षेत्र में सुधार की उम्मीद दिख रही है, वहीं शहरी और औपचारिक क्षेत्र की सुस्ती चिंता का विषय है. साल 2025 की शुरुआत भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अपेक्षा के अनुरूप तेज़ नहीं रही है. एचएसबीसी की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2025 में केवल 64% आर्थिक संकेतकों ने सकारात्मक रुझान दिखाया, जबकि मार्च तिमाही में यह आंकड़ा 66% था. रिपोर्ट में बताया गया है कि गैर-औपचारिक क्षेत्र में खपत में सुधार देखा गया है, जबकि औपचारिक क्षेत्र में कमजोरी और सुस्ती बनी हुई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण और शहरी असंगठित क्षेत्रों की खपत में सुधार हुआ है. संकेतकों से यह स्पष्ट होता है कि गांवों और छोटे कस्बों में लोगों की क्रय शक्ति में वृद्धि हो रही है और खर्च बढ़ा है. इसके विपरीत, शहरी और संगठित क्षेत्रों में खपत में गिरावट दर्ज की गई है. विशेष रूप से जिन क्षेत्रों में कमजोरी देखी गई है, वे हैं टिकाऊ उपभोग वस्तुएं, पेट्रोलियम उत्पादों की खपत, आयातित उपभोग वस्तुएं. इसका मतलब यह है कि बड़े शहरों के उपभोक्ता खर्च करने से पहले ज़्यादा सोच-विचार कर रहे हैं. संभवतः महंगाई, ब्याज दरें या भविष्य की अनिश्चितताओं के कारण.
महिला सैन्य अधिकारियों को अभियान का हिस्सा नहीं बनाएगी भाजपा
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उस मीडिया रिपोर्ट का खंडन किया है जिसमें दावा किया गया था कि वह कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को अपने आगामी महिला-केंद्रित अभियान का चेहरा बनाएगी. यह रिपोर्ट सामने आई थी कि मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने पर शुरू होने वाले एक अभियान में इन दोनों सैन्य अधिकारियों को शामिल किया जाएगा. बीजेपी आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर इस खबर को 'फर्जी' बताते हुए कहा कि पार्टी की ऐसी कोई योजना नहीं है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा प्रमुख के बयान को गलत समझा गया, जिन्होंने कर्नल कुरैशी को केवल एक सशक्त मुस्लिम महिला के उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया था.
धर्म के सवाल पर सेना अधिकारी की बर्खास्तगी को दिल्ली हाईकोर्ट की मंजूरी
दिल्ली हाईकोर्ट ने लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन, एक ईसाई सेना अधिकारी की बर्खास्तगी को सही ठहराया है. अधिकारी ने अपनी रेजिमेंट के मंदिर और गुरुद्वारे में धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने से इनकार किया था. बार एंड बेंच के मुताबिक न्यायमूर्ति नवीन चावला और शालिंदर कौर की बेंच ने कहा कि हालांकि अधिकारी को अपनी धार्मिक मान्यताओं का अधिकार था, परंतु कमांडिंग ऑफिसर के रूप में उसकी अतिरिक्त जिम्मेदारियां थीं. 2017 में कमीशन प्राप्त लेफ्टिनेंट कमलेसन को सिख स्क्वाड्रन में तैनात किया गया था. उन्होंने अनिवार्य रेजिमेंटल परेड के दौरान धार्मिक स्थलों के गर्भगृह में प्रवेश करने से मना कर दिया था. सेना ने कहा कि इससे यूनिट की एकजुटता और सैनिकों का मनोबल प्रभावित हुआ. अदालत ने फैसला दिया कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का मामला नहीं, बल्कि वरिष्ठ अधिकारी के वैध आदेश का पालन करने का मुद्दा था. सेना अधिनियम की धारा 41 के तहत वरिष्ठ अधिकारी के आदेश की अवज्ञा अपराध है. कोर्ट ने माना कि अधिकारी ने अपने धर्म को वैध कमान से ऊपर रखा, जो स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है.
रूस को गच्चा देकर यूक्रेन ने ड्रोन से कई जगह किये हमले, 40 जहाजों को तबाह करने के दावे
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि यूक्रेन ने साइबेरिया में रूसी सैन्य बमवर्षक ठिकानों पर "बड़े पैमाने पर" ड्रोन हमला किया है, जिसमें अपनी सीमा से हजारों किलोमीटर दूर स्थित 40 से अधिक युद्धक विमानों को निशाना बनाया गया है. हालांकि, इन दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो सकी है, लेकिन यदि यह पुष्टि होती है, तो यह अब तक के युद्ध में यूक्रेन का सबसे बड़ा और नुकसानदायक ड्रोन हमला होगा. बता दें कि सोमवार को इस्तांबुल में प्रस्तावित शांति वार्ता से पहले सीमा पार हमलों में दोनों ओर से तेजी आई है.
एक अधिकारी ने कहा, “यूक्रेनी सुरक्षा एजेंसियां रूस में मोर्चे से दूर दुश्मन के बमवर्षकों को नष्ट करने के उद्देश्य से एक बड़े पैमाने पर विशेष अभियान चला रही हैं.” उन्होंने बताया कि बेलाया एयरबेस में आग लग गई है. गोपनीयता की शर्त पर बोलते हुए अधिकारी ने बताया कि हमले यूक्रेन की एसबीयू (घरेलू खुफिया एजेंसी) द्वारा किए गए थे और उन्होंने रूस के चार सैन्य एयरबेस को एक साथ निशाना बनाया. बताया जा रहा है कि हमले में Tu-95 और Tu-22 जैसे सामरिक बमवर्षक क्षतिग्रस्त हुए, जिनका रूस, यूक्रेनी शहरों पर लंबी दूरी की मिसाइलें दागने में उपयोग करता है. मार्च में यूक्रेन ने दावा किया था कि उसने एक नया ड्रोन विकसित किया है जिसकी रेंज 3,000 किलोमीटर तक है, हालांकि इसके बारे में और कोई जानकारी नहीं दी गई थी.
लकड़ी की झोपड़ियों की छत में छिपाकर रूस पहुंचे ड्रोन : 'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि यूक्रेनी गुप्त सेवाओं ने रविवार को रूस के सैन्य ठिकानों पर तैनात रणनीतिक बमवर्षक विमानों पर हमले को बेहद चौंकाने वाले और जटिल तरीके से अंजाम दिया - विस्फोटक से लैस ड्रोन को लकड़ी की झोपड़ियों की छत में छिपाकर. यह जानकारी एक यूक्रेनी सुरक्षा अधिकारी और इंटरनेट पर साझा की गई तस्वीरों के जरिए सामने आई है. अधिकारी के अनुसार, ये झोपड़ियाँ ट्रकों पर लादकर रूसी वायुसेना ठिकानों के परिधि क्षेत्र तक ले जाई गईं. झोपड़ियों की छतों में रिमोट से नियंत्रित सिस्टम लगाया गया था, जिससे छत के पैनल हटाए जा सके और ड्रोन वहां से उड़ान भरकर अपने लक्ष्य तक पहुंच सकें. गोपनीयता की शर्त पर बात करते हुए यूक्रेनी सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि रविवार को चार अलग-अलग वायुसेना अड्डों पर हमले किए गए, जिनमें कुल 41 रूसी युद्धक विमान को नुकसान पहुंचाया गया. रूसी सोशल मीडिया पर साझा किए गए अप्रमाणित वीडियो और तस्वीरों में साइबेरिया के इरकुत्स्क क्षेत्र स्थित बेलाया एयरबेस पर रूसी रणनीतिक बमवर्षकों को आग की लपटों में देखा गया. यह हमला यूक्रेन की सीमाओं से 4,300 किलोमीटर (2,670 मील) दूर हुआ, जो अब तक के सबसे लंबी दूरी के ड्रोन हमलों में से एक है.
विश्लेषण
आकार पटेल : गाज़ा नरसंहार पर भारत को कुछ करना चाहिए?
9 फरवरी 2022 को राज्यसभा में सरकार से यह सवाल पूछा गया था: "क्या गृह मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि क्या यह तथ्य है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित नरसंहार कन्वेंशन (1948) की पुष्टि की है; (ब) यदि हां, तो क्या सरकार ने नरसंहार के संबंध में कोई कानून बनाया है."
मोदी सरकार ने जवाब दिया: "भारत ने 29 नवंबर 1949 को नरसंहार के रोकथाम और सजा पर कन्वेंशन, 1948 पर हस्ताक्षर किए और 27 अगस्त 1959 को इस कन्वेंशन की पुष्टि की और इस तरह नरसंहार को अंतरराष्ट्रीय अपराध के रूप में मान्यता दी. कन्वेंशन में निहित सिद्धांत सामान्य अंतरराष्ट्रीय कानून का हिस्सा हैं और इसलिए पहले से ही भारत के सामान्य कानून का हिस्सा हैं. भारतीय दंड संहिता के प्रावधान, प्रक्रियात्मक कानून (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) सहित, इस श्रेणी के अपराध के दोषी व्यक्तियों के लिए प्रभावी दंड प्रदान करते हैं और उन कृत्यों को संज्ञान में लेते हैं जिन्हें अन्यथा नरसंहार की प्रकृति में, दंडनीय अपराध के रूप में लिया जा सकता है."
नरसंहार अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत एक अपराध है, चाहे वह शांति के समय में किया जाए या सशस्त्र संघर्ष के दौरान. यह नरसंहार कन्वेंशन के तहत निषिद्ध और अपराधीकृत है, जिसकी इजराइल ने 1950 में पुष्टि की थी, और रोम स्टेट्यूट के तहत भी. पांच विशिष्ट कृत्य नरसंहार का गठन करते हैं: समूह के सदस्यों की हत्या करना; समूह के सदस्यों को गंभीर शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचाना; जानबूझकर समूह पर जीवन की ऐसी स्थितियां थोपना जो पूर्ण या आंशिक रूप से उसके भौतिक विनाश को लाने के लिए हो; समूह के भीतर जन्म को रोकने के उद्देश्य से उपाय लगाना; और समूह के बच्चों को जबरन दूसरे समूह में स्थानांतरित करना. हालांकि, नरसंहार के अपराध का गठन करने के लिए, इन कृत्यों को "पूर्ण या आंशिक रूप से, एक राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को नष्ट करने के इरादे से" भी किया जाना चाहिए. यह विशिष्ट इरादा ही नरसंहार को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अन्य अपराधों से अलग करता है.
इस बात की परवाह किए बिना कि व्यक्तिगत फिलिस्तीनी इजराइल में रहने वाले इजराइली नागरिक हैं, कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र में इजराइली सैन्य शासन के तहत रह रहे हैं या फिलिस्तीनी शरणार्थी हैं, वे मुख्यतः फिलिस्तीनी के रूप में पहचान करते हैं और उनके गहरे और साझा राजनीतिक, जातीय, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध हैं. फिलिस्तीनी एक सामान्य भाषा साझा करते हैं और अलग-अलग धर्म होने के बावजूद समान रीति-रिवाज और सांस्कृतिक प्रथाएं हैं. इसलिए, वे नरसंहार कन्वेंशन के तहत संरक्षित एक अलग राष्ट्रीय, जातीय और नस्लीय समूह का गठन करते हैं.
अक्टूबर 2023 से, इजराइल ने कब्जे वाली गाज़ा पट्टी में अभूतपूर्व परिमाण, पैमाने और अवधि का सैन्य आक्रमण किया है. तब से, इसने निरंतर हवाई और जमीनी हमले किए हैं, जिनमें से कई बड़े विस्फोटक हथियारों के साथ किए गए हैं, जिससे बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है और गाज़ा भर में पूरे मोहल्ले और शहर जमींदोज़ हो गए हैं, उनके जीवन-सहायक बुनियादी ढांचे, कृषि भूमि, और सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों और प्रतीकों के साथ जो फिलिस्तीनियों की सामूहिक स्मृति में गहराई से जमे हुए हैं. इजराइल के सैन्य आक्रमण ने हजारों बच्चों सहित हजारों फिलिस्तीनियों को मार डाला है और गंभीर रूप से घायल किया है, उनमें से कई प्रत्यक्ष या अंधाधुंध हमलों में, अक्सर पूरे बहु-पीढ़ीगत परिवारों को मिटा देते हुए. इजराइल ने गाज़ा के 22 लाख निवासियों में से 90 प्रतिशत से अधिक को जबरन विस्थापित कर दिया है, उनमें से कई को कई बार, भूमि के लगातार सिकुड़ते, लगातार बदलते टुकड़ों में जिनमें बुनियादी ढांचे की कमी थी, लोगों को ऐसी स्थितियों में रहने के लिए मजबूर करना जो उन्हें धीमी और नियोजित मौत के लिए उजागर करती थी. इसने जानबूझकर जीवन-रक्षक वस्तुओं और मानवीय सहायता के आयात और वितरण में बाधा डाली या इनकार किया है. इसने बिजली की आपूर्ति को सीमित कर दिया है, जिससे नुकसान और विनाश के साथ मिलकर, पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों का पतन हुआ है. इसने गाज़ा के सैकड़ों और संभवतः हजारों फिलिस्तीनियों को असंवाद नजरबंदी और यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार के कृत्यों के अधीन किया है, जिससे कई लोगों की मौत हुई है.
क्या इजराइल फिलिस्तीनियों के साथ जो कर रहा है वह नरसंहार है? हां. यह एमनेस्टी इंटरनेशनल सहित कई समूहों का निष्कर्ष है. एक समूह को "आंशिक रूप से" नष्ट करने का इरादा नरसंहार के अपराध के लिए आवश्यक विशिष्ट इरादे को स्थापित करने के लिए पर्याप्त है. यह निर्धारित करने में कि समूह का कौन सा हिस्सा गठित करता है, अंतरराष्ट्रीय न्यायशास्त्र ने एक विशिष्ट संख्यात्मक सीमा के बजाय पर्याप्तता की आवश्यकता को अपनाया है. इस मानक के लिए आवश्यक है कि अपराधी को कम से कम समूह के एक "पर्याप्त हिस्से" को नष्ट करने का इरादा होना चाहिए, जो समूह के पूरे पर प्रभाव डालने के लिए पर्याप्त महत्वपूर्ण होना चाहिए. इसे इजराइल के युद्ध पर लागू करते हुए, एमनेस्टी इंटरनेशनल मानता है कि गाज़ा में फिलिस्तीनी पूरे फिलिस्तीनी समूह का एक पर्याप्त हिस्सा हैं. 2023 में, गाज़ा में रहने वाले फिलिस्तीनी कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र में रहने वाले लगभग 55 लाख फिलिस्तीनियों का लगभग 40 प्रतिशत थे.
महत्वपूर्ण बात यह है कि नरसंहार स्थापित करने के लिए अपराधी को लक्षित समूह को नष्ट करने में सफल होने की आवश्यकता नहीं है, पूर्ण या आंशिक रूप से. अंतरराष्ट्रीय न्यायशास्त्र यह मानता है कि "पूर्ण या आंशिक रूप से" शब्द वास्तविक विनाश के विपरीत इरादे को संदर्भित करता है. समान रूप से महत्वपूर्ण, विशिष्ट इरादे को ढूंढने या अनुमान लगाने के लिए एकल या एकमात्र इरादे को ढूंढने की आवश्यकता नहीं है. एक राज्य के कार्य सैन्य परिणाम प्राप्त करने और एक समूह को नष्ट करने के दोहरे लक्ष्य की सेवा कर सकते हैं. नरसंहार सैन्य परिणाम प्राप्त करने का माध्यम भी हो सकता है. दूसरे शब्दों में, नरसंहार का निष्कर्ष तब निकाला जा सकता है जब राज्य एक निश्चित सैन्य परिणाम प्राप्त करने के लिए, एक साधन के रूप में, या जब तक वह इसे प्राप्त नहीं कर लेता, एक संरक्षित समूह के विनाश को आगे बढ़ाने का इरादा रखता है.
गाज़ा में फिलिस्तीनियों के साथ जो हो रहा है, वह नरसंहार है. भारत इसे अंतरराष्ट्रीय अपराध के रूप में मानता है और भारत ने नरसंहार को रोकने और सजा देने के कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं. भारत को इस अपराध के खिलाफ बोलना चाहिए और कार्य करना चाहिए जो हमारी आंखों के सामने प्रतिदिन जारी है.
आकार लेखक और एमनेस्टी इंडिया के प्रमुख हैं
99.95% सोने का भंडार पृथ्वी के केंद्रीय कोर में

पृथ्वी के गर्भ में छुपा अरबों का खजाना धीरे-धीरे ऊपर की ओर रिस रहा है. पृथ्वी के 99.95% सोने का भंडार केंद्रीय कोर में दबा हुआ है. यह खजाना साढ़े चार अरब साल पहले उल्कापिंडों की टक्कर से बना था. वैज्ञानिकों का मानना था कि यह संपदा हमेशा केंद्र में ही कैद रहेगी, लेकिन अब पता चला है कि यह धीरे-धीरे बाहर निकल रही है. जर्मनी के वैज्ञानिकों की नई खोज से पता चला है कि हमारे ग्रह के तप्त केंद्र से सोना और अन्य कीमती धातुएं मेंटल परत में रिसकर हवाई जैसे ज्वालामुखी द्वीपों की सतह तक पहुंच रही हैं. हवाई के ज्वालामुखी चट्टानों का तीन साल तक अध्ययन करने के बाद, वैज्ञानिकों ने रुथेनियम नामक दुर्लभ धातु के विशेष आइसोटोप की खोज की. यह आइसोटोप केवल पृथ्वी के केंद्र में ही मौजूद है. "आधा किलो चट्टान में मिलीग्राम से भी कम रुथेनियम था - यह एक ग्रह के आकार के घास के ढेर में सुई खोजने जैसा था," बताते हैं मुख्य शोधकर्ता नील्स मेसलिंग. चूंकि सोना रासायनिक रूप से रुथेनियम के समान है, इसलिए यह भी इसी तरह रिस रहा है. हालांकि यह मात्रा बेहद कम है, लेकिन लाखों वर्षों बाद पृथ्वी की सतह पर और भी अधिक सोना पहुंच सकता है. यह खोज न केवल भूविज्ञान की समझ बदलती है, बल्कि यह भी बताती है कि पृथ्वी का केंद्र पहले से कहीं अधिक सक्रिय है.
चलते-चलते
लुंगी ने थियेटर में एंट्री नहीं मिलने दी
कोलकाता के एक नाट्य कलाकार को कौशिक सेन की 'मार्क्स इन कोलकाता' की स्क्रीनिंग के दौरान जीडी बिड़ला सभागार में प्रवेश करने से मना कर दिया गया. उसकी एकमात्र गलती यह थी कि उसने लुंगी पहनी हुई थी. जॉयराज भट्टाचार्य ने फेसबुक पर अपना अनुभव साझा किया, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें सभागार में प्रवेश करने से रोक दिया, जबकि उनके पास शो के लिए वैध टिकट थे. इस शो में जयंत कृपलानी और सृजित मुखर्जी भी शामिल थे.
"ऋद्धि सेन ने मुझे फोन किया और मुझसे बात की. मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि ‘स्वप्नसंधानी’ समूह इस घटना के लिए कहीं से भी जिम्मेदार नहीं है, और न ही सुरक्षा कर्मियों की कोई गलती है, क्योंकि उन्होंने आदेश के अनुसार ही कार्य किया. इस मामले में मुख्य रूप से प्रबंधन की जिम्मेदारी है," उन्होंने फेसबुक पर अपनी पीड़ा लिखी. “द टेलीग्राफ” से बात करते हुए जॉयराज ने उस 'कृत्रिम सांस्कृतिक श्रेष्ठता' की आलोचना की, जो इस घटना की वजह है. "यह अचानक नहीं हुआ कि सुरक्षा गार्ड्स ने मुझे प्रवेश से रोक दिया. भले ही आयोजन स्थल पर कोई ड्रेस कोड न हो, लेकिन एक ऐसा सांस्कृतिक माहौल बना दिया गया है, जिससे गार्ड को लगा कि मैंने जो पहना है, वह उपयुक्त नहीं है, जॉय राज ने कहा.
टीम संस्कृति सागर, जिसका नेतृत्व कौशिक सेन कर रहे हैं, ने थिएटर कलाकार से माफी मांगते हुए एक बयान जारी किया और उन्हें शो की अगली स्क्रीनिंग में 'अतिथि' के रूप में आमंत्रित किया.
यह सिर्फ लुंगी का सवाल नहीं : भट्टाचार्य ने क्वेस्ट मॉल की उस घटना का भी जिक्र किया, जहां कोलकाता के फिल्म निर्माता आशीष अविकुंठक को धोती पहनने पर सुरक्षा गार्ड्स ने प्रवेश से रोक दिया था – जो एक और पारंपरिक भारतीय पोशाक है. "भारत में सांस्कृतिक बुलिंग हमेशा से रही है. मुझे खुद ऑनलाइन ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा है, लेकिन लोगों से अपने पहनावे के लिए प्यार और अपनापन भी मिला है. मैं नियमित रूप से लुंगी पहनता हूं और थिएटर प्रैक्टिशनर होने के नाते शहर और विदेश के कई ऑडिटोरियम में गया हूं, लेकिन कभी भी मुझे सिर्फ पहनावे के कारण प्रवेश से नहीं रोका गया. यह पहली बार हुआ है,” भट्टाचार्य ने कहा.
भट्टाचार्य ने इस बात पर जोर दिया कि ड्रेस कोड नहीं होना चाहिए, हालांकि उन्होंने माना कि कुछ जगहों पर पाबंदियां होती हैं, लेकिन वह पहले से स्पष्ट होनी चाहिए. "अगर पहले से सूचना दी जाए तो व्यक्ति को तय करने का अधिकार है कि वह उस कार्यक्रम में हिस्सा ले या नहीं. लेकिन शो के दिन, टिकट खरीदने के बाद अचानक ऐसी पाबंदी लागू करना ठीक नहीं है. सारी जानकारी पहले दी जानी चाहिए," उन्होंने कहा.
क्या ड्रेस कोड जरूरी है? इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने "उचित" ड्रेस कोड पर पुरानी बहस को फिर से जगा दिया है, जिसमें लोग तर्क दे रहे हैं कि क्या कोलकाता के ऑडिटोरियम में स्पष्ट ड्रेस कोड होना चाहिए. एक यूजर ने उनकी फेसबुक पोस्ट पर लिखा, "कौन क्या खाता है, कौन क्या पहनता है, यह पूरी तरह व्यक्तिगत मामला है." एक अन्य ने लिखा, "यह नस्लवाद/वर्गवाद/अपार्थीड का घृणित कृत्य है. यही क्वेस्ट मॉल में भी हुआ था. आप बिल्कुल सही हैं."
पाठकों से अपील-
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