02/07/2025: मोदी की बढ़ती दिक्कतें | कर्नाटक सरकार के नेतृत्व को लेकर हलचल | बिहार में मतदाता सत्यापन के लिए समय कम, बाधा ज्यादा | केरल अब 'अत्याधिक गरीब' मुक्त | दिलजीत के जलवे और उनसे होते कष्ट
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
मोदी सरकार के लिए 5 बड़ी मानसूनी मुश्किलें
मोदीनोमिक्स : अच्छे, बुरे और अस्थिर का जायज़ा
औद्योगिक वृद्धि मई में 9 महीने के निचले स्तर पर
कर्नाटक सरकार में कमान डीके को देने की मांग, पर सुरजेवाला का इंकार
मतदाता सत्यापन : समय कम, बाधाएं बहुत
300 साल पुरानी दरगाह गिराने पर नोटिस
मणिपुर : यूनाइटेड कुकी नेशनल आर्मी ने गोलीबारी की जिम्मेदारी ली
तेलंगाना फैक्ट्री विस्फोट में मृतक 36 हुए
रेलवे किराये का नया ढांचा लागू
पवन कल्याण और अन्नामलाई के खिलाफ एफआईआर
केरल: 'अत्यधिक गरीबी' खत्म?
उड़िया आदिवासियों पर 2008 के मामले!
सरकार के कौशल प्रोग्राम फेल
ट्रम्प प्रशासन की बड़ी जीत: सीनेट ने टैक्स और वेलफेयर में कटौती वाला बिल पास किया, उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने टाई-ब्रेकर वोट डाला
तुर्की में पैग़ंबर मुहम्मद को दर्शाने वाले कार्टून को लेकर चार व्यंग्यकार गिरफ़्तार
न्यूयॉर्क में जोहरान ममदानी की जीत का अर्थ
सेंसर बोर्ड के बढ़ते नाख़ून, कसते शिकंजे
पहलगाम के बाद के जिंगोइज्म के निशाने पर दिलजीत और ‘सरदारजी 3’
दिलजीत का कॉलेबोरेशन के-पॉप हीरो के साथ
मोदी सरकार के लिए 5 बड़ी मानसूनी मुश्किलें
सत्ताधारी दल को भले चुनावी जीत मिली हो, लेकिन राजनयिक मोर्चे पर दबाव, पड़ोसियों की चालें, और आर्थिक सुस्ती इस बात का संकेत दे रहे हैं कि 2025 की दूसरी छमाही सरकार के लिए आसान नहीं रहने वाली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल कर इतिहास रचा, लेकिन जून की बारिश दिल्ली की सत्ता के गलियारों में चिंता के बादल भी ले आई है. 'टेलीग्राफ' ने ऐसी ही पांच चिंताओं का जिक्र किया है, जिनसे सरकार पर संकट गहराता दिख रहा है.
ऑपरेशन सिंदूर का खामियाजा : पीओके में की गई सैन्य कार्रवाई का अभी तक कोई आधिकारिक ब्योरा नहीं मिला है. संसद और जनता को नुकसान की जानकारी नहीं दी गई, उल्टा विदेशी मंचों पर जाकर पहले “नुकसान” कबूले गए. अब खबर है कि जिन आतंकी ठिकानों पर हमला हुआ था, वे फिर से बन रहे हैं.
पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय वापसी : IMF से 24वीं बार कर्ज, UNSC में जुलाई की अध्यक्षता, तालिबान कमेटी का नेतृत्व, रूस से स्टील डील और चीन-बांग्लादेश के साथ नया क्षेत्रीय गठजोड़ - सबने पाकिस्तान को “फेल स्टेट” से “ग्लोबल प्लेयर” बना दिया. भारत दर्शक बना रहा.
जनरल मुनीर की वैश्विक चढ़ाई : ISI से आर्मी चीफ बने जनरल असीम मुनीर को वाशिंगटन में व्हाइट हाउस भोज मिला. ट्रम्प से मुलाकात के बाद पाकिस्तान की सेना फिर अमेरिकी ध्यान के केंद्र में है. ये भारत के लिए किसी रेड अलर्ट से कम नहीं.
शंघाई सहयोग संगठन में ठनी बात : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने SCO की साझा घोषणा पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया, क्योंकि उसमें पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र नहीं था. भारत की कूटनीति को झटका और चीन-पाक को राहत.
औद्योगिक उत्पादन में भारी गिरावट : जहां सरकार भारत को “चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था” बता रही थी, वहीं IIP आंकड़े 1.2% की नौ महीने की सबसे कमजोर ग्रोथ दिखा रहे हैं. खपत में गिरावट और ग्रामीण बाज़ार में मंदी का संकेत दे रहे हैं.
मोदीनोमिक्स : अच्छे, बुरे और अस्थिर का जायज़ा
भारत की अर्थव्यवस्था में मजबूत वृद्धि, कम महंगाई और स्थिर रुपया देखने को मिल रहा है, लेकिन इसके बावजूद भारत प्रति व्यक्ति आय के मामले में 136वें स्थान पर है और आय में असमानता पिछले सौ वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. वहीं, आर्थिक सुधारों के लिए इच्छाशक्ति की कमी महसूस की जा रही है.
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और अर्थशास्त्री दुव्वुरी सुब्बाराव ने “टाइम्स ऑफ इंडिया” में प्रकाशित अपने लेख में कहा है कि ग्यारह साल पहले, जब नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली, तब भारतीय अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में थी. विकास दर धीमी थी, महंगाई ज्यादा थी, रुपया अस्थिर था, राजकोषीय और चालू खाते के घाटे असहनीय स्तर पर थे, और बैंकों के खराब ऋणों ने निवेशकों का भरोसा डगमगाया हुआ था. उस समय ‘स्टैगफ्लेशन’ (कम विकास और उच्च महंगाई) का डर वास्तविक लग रहा था.
अब की स्थिति:
विकास दर मजबूत है.
महंगाई नियंत्रण में है.
रुपया अपेक्षाकृत स्थिर है.
लेकिन प्रति व्यक्ति आय में भारत का स्थान बहुत पीछे है.
आय में असमानता ऐतिहासिक स्तर पर है.
आर्थिक सुधारों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता कमजोर दिखती है.
चुनौतियां और आलोचनाएं :
निजी निवेश में गिरावट, औद्योगिक उत्पादन में ठहराव, कृषि क्षेत्र संकट में, निर्माण क्षेत्र और सेवाएं भी धीमी हैं.
निर्यात में कमी आई है और कई क्षेत्रों में आर्थिक संकट गहरा गया है.
नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े फैसलों की क्रियान्वयन में खामियां रही हैं, जिससे छोटे व्यवसायों और नौकरियों पर नकारात्मक असर पड़ा है.
नीतियां ऊपर से नीचे थोपने की प्रवृत्ति और विशेषज्ञों की सलाह की अनदेखी भी आलोचना का कारण रही है.
औद्योगिक वृद्धि मई में 9 महीने के निचले स्तर पर
मई में भारत की औद्योगिक उत्पादन वृद्धि सिर्फ 1.2% रही, जो पिछले नौ महीनों में सबसे कम है. रॉयटर्स की खबर के अनुसार अप्रैल में यह आंकड़ा 2.6% था. यह गिरावट मुख्य रूप से बिजली उत्पादन में 5.8% की तेज गिरावट के कारण आई, जो नौ महीनों में पहली बार संकुचन में गई और जून 2020 के बाद सबसे बड़ी गिरावट रही. खनन क्षेत्र में लगातार दूसरे महीने उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई. मई में यह 0.1% घट गया.
मैन्युफैक्चरिंग (निर्माण) उत्पादन मई में 2.6% बढ़ा, जो पिछले साल अगस्त के बाद सबसे धीमा है. 23 में से सिर्फ 13 क्षेत्रों में सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई, जबकि अप्रैल में यह संख्या 16 थी. पिछले साल मई में फैक्ट्री उत्पादन में 6.3% की वृद्धि हुई थी, जिससे इस साल की वृद्धि पर बेस इफेक्ट का भी असर पड़ा है. इस गिरावट का मुख्य कारण जल्दी मानसून से बिजली और खनन क्षेत्रों में आई कमजोरी और निर्माण क्षेत्र में सुस्ती को माना जा रहा है.
कर्नाटक सरकार में कमान डीके को देने की मांग, पर सुरजेवाला का इंकार

'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट बता रही है कि कर्नाटक में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला के बेंगलुरु में डेरा डालने और कांग्रेस विधायकों की शिकायतें सुनने से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार (डीकेएस) के समर्थक खेमों को अपने-अपने नेताओं के समर्थन का प्रदर्शन करने का मंच मिल गया है. शिवकुमार के करीबी और रामनगर से विधायक इक़बाल हुसैन ने मंगलवार को कहा कि वे सुरजेवाला से मिलकर यह राय रखेंगे कि अगला मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को बनाया जाए. उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस के 137 में से 100 से अधिक विधायक शिवकुमार के पक्ष में हैं. इक़बाल हुसैन ने पत्रकारों से कहा, "अगर नेतृत्व में बदलाव नहीं हुआ, तो कांग्रेस 2028 के विधानसभा चुनावों में बहुमत नहीं ला पाएगी और सत्ता गंवा सकती है." उन्होंने यह भी कहा कि 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने में शिवकुमार की मेहनत सबसे अधिक रही, इसलिए वे मुख्यमंत्री पद के हकदार हैं. जब उनसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के उस बयान पर सवाल किया गया कि मुख्यमंत्री बदलने का फैसला हाईकमान करेगा, तो इक़बाल ने कहा कि वे नेतृत्व का सम्मान करते हैं, लेकिन "सच्चाई बता रहे हैं." उन्होंने दोहराया कि मेकेदातु जलाशय की मांग को लेकर आयोजित पदयात्रा समेत कई रैलियों के आयोजन में डीके शिवकुमार की भूमिका निर्णायक रही. इक़बाल की तरह शिवकुमार के अन्य समर्थक विधायक, जैसे कि मगड़ी के विधायक एच.सी. बालकृष्ण, भी यही मांग उठा चुके हैं. सूत्रों के अनुसार, सोमवार को सुरजेवाला से मिलने वाले कई विधायकों ने न सिर्फ अपनी व्यक्तिगत शिकायतें साझा कीं, बल्कि मुख्यमंत्री पद को लेकर अपनी राय भी रखी. सूत्रों का कहना है कि यह जानकर कि कुछ विधायक सिद्धारमैया के पक्ष में भी हैं, शिवकुमार समर्थक खेमे ने अब खुलकर अपने नेता के लिए समर्थन जुटाने की रणनीति तेज़ कर दी है.
हालांकि, रणदीप सिंह सुरजेवाला ने मंगलवार को साफ़ किया कि उन्होंने राज्य के विधायकों और सांसदों से किसी भी तरह की नेतृत्व परिवर्तन पर राय नहीं मांगी है. यह बयान ऐसे समय आया है जब राज्य कांग्रेस इकाई में नेतृत्व को लेकर अंदरूनी खींचतान की अटकलें तेज़ हैं. सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "आप में से कुछ लोगों ने पूछा कि क्या मैं नेतृत्व परिवर्तन पर राय ले रहा हूं. मैंने कल भी इसका जवाब दिया था और आज भी वही दोहरा रहा हूं. इसका एक शब्द में जवाब है 'नहीं'."
बिहार
मतदाता सत्यापन : समय कम, बाधाएं बहुत
4.76 करोड़ लोगों को एक महीने में नागरिकता का प्रमाण देना होगा, नहीं तो वोट का अधिकार छिन सकता है
'द हिन्दू' की रिपोर्ट है कि भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) ने हाल ही में बिहार में विशेष सघन मतदाता सूची संशोधन अभियान चलाने का आदेश दिया है, जिसे आगे चलकर अन्य राज्यों में भी लागू किया जाएगा. लेकिन यह आदेश आयोग की लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ है, जिसने आज़ादी के बाद से ही वंचित तबकों को मतदान का अधिकार सुनिश्चित करने में अग्रणी भूमिका निभाई थी. निर्देश के अनुसार, जो लोग 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं थे, उन्हें नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 और नियमों के अनुसार नागरिकता का प्रमाण देना होगा.
बिहार की कुल मतदाता आबादी 8.08 करोड़ है. इसमें से 59% यानी 4.76 करोड़ लोग 40 वर्ष से कम आयु के हैं, जिन्हें दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे. चुनाव आयोग का दावा है कि 2003 की सूची में 4.96 करोड़ मतदाता थे, जिनमें से इतने ही आज भी सूची में हैं. लेकिन जनसंख्या आंकड़ों और प्रवास के आधार पर लगभग 1.1 करोड़ मृतक और 70 लाख स्थायी प्रवासी लोगों को हटाने के बाद, केवल 3.16 करोड़ लोग ही 2003 की सूची से आज तक बचे हैं. बाकी 4.74 करोड़ लोगों को दस्तावेज़ जमा करने होंगे.
दस्तावेज़ों की सच्चाई: ECI ने 11 दस्तावेज़ों की सूची दी है, जिनमें से अधिकांश बिहार की बड़ी आबादी के लिए अनुपलब्ध हैं.
पासपोर्ट: केवल 2.4% के पास.
जन्म प्रमाण पत्र: बहुत ही कम लोगों के पास.
मैट्रिक प्रमाण पत्र: लगभग 45-50% के पास.
सरकारी नौकरी पहचान पत्र: 2% से भी कम.
जाति प्रमाण पत्र: लगभग 25% घरों में ही उपलब्ध.
अन्य दस्तावेज़ जैसे कि एनआरसी, वन अधिकार प्रमाण पत्र, परिवार रजिस्टर आदि बिहार पर लागू नहीं होते. इस प्रकार, अधिकांश गरीब, ग्रामीण और वंचित लोग जिनके पास ये दस्तावेज़ नहीं हैं, वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं. चुनाव आयोग ने आधार और राशन कार्ड को मान्य दस्तावेज़ नहीं माना, जबकि यही दस्तावेज़ सरकार की अधिकांश योजनाओं के लिए मान्य हैं. जबकि हर विधानसभा क्षेत्र में औसतन 1.95 लाख लोगों के दस्तावेज़ों की जांच, नामांकन, नोटिस और जांच – सिर्फ़ 62 दिनों में एक ही अधिकारी के ज़िम्मे, जो कि असंभव है.
300 साल पुरानी दरगाह गिराने पर नोटिस
गुजरात हाईकोर्ट ने जूनागढ़ नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त और वरिष्ठ टाउन प्लानर को अदालत की अवमानना का नोटिस जारी किया है. यह नोटिस 300 साल पुरानी हज़रत जोक अलीशा दरगाह को गिराने के मामले में जारी किया गया, जिसमें अधिकारियों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश और राज्य सरकार की नीति की अवहेलना करने का आरोप है. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ( जस्टिसद्वय ए.एस. सुपेहिया और आर.टी. वचहानी) ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और 19 अप्रैल 2024 की नीति का उल्लंघन किया है. अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित उच्च न्यायालयों को अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की छूट दी है, इसलिए उत्तरदाताओं को नोटिस जारी करना उचित है.
“लाइव लॉ” की रिपोर्ट के अनुसार याचिका दरगाह के ट्रस्टी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें 17 अप्रैल को आधी रात को दरगाह गिराने को चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि नगर निगम ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश और हाईकोर्ट में लंबित याचिका की अनदेखी की. अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि राज्य सरकार की 19 अप्रैल 2024 की नीति के अनुसार, नगर आयुक्त और जिला कलेक्टरों की अध्यक्षता में समितियों का गठन और नोडल अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्य है, जो अवैध धार्मिक निर्माणों के हटाने, स्थानांतरण या नियमितीकरण जैसे कदम तय कर सकती हैं.
मणिपुर : यूनाइटेड कुकी नेशनल आर्मी ने गोलीबारी की जिम्मेदारी ली
मणिपुर में पुलिस उन लोगों की तलाश कर रही है, जिन्होंने सोमवार सुबह चुराचांदपुर में एक कार पर गोलियां चलाई थीं और जिसमें कार में सवार तीन लोगों (कुकी नेशनल आर्मी उग्रवादी समूह के एक वरिष्ठ अधिकारी और उसके दो अंगरक्षक) के अलावा घटनस्थल पर मौजूद एक बुजुर्ग महिला की मौत हो गई थी. कुकी नेशनल आर्मी उन कुकी उग्रवादी समूहों में से एक है, जिसने 2008 में केंद्र और मणिपुर सरकार के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. बताया जा रहा है कि यूनाइटेड कुकी नेशनल आर्मी समूह ने कल हुई इस गोलीबारी की जिम्मेदारी ली है.
केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारियों ने कल मणिपुर के तीन नागरिक समाज संगठनों—कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी, ऑल मणिपुर यूनाइटेड क्लब्स ऑर्गनाइजेशन और फेडरेशन ऑफ सिविल सोसाइटी ऑर्गनाइजेशन—के प्रतिनिधियों से मुलाकात की, जिसमें मैतेई और अन्य समुदायों के सदस्य शामिल थे. एक वरिष्ठ अधिकारी ने विजेयता सिंह से बातचीत में कहा कि यह पहली बार है, जब ये तीनों समूह एक साथ किसी बैठक में शामिल हुए. अधिकारी के अनुसार, बैठक में "हाईवे पर मुक्त आवाजाही, किसानों की सुरक्षा, अवैध प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई और आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के पुनर्वास" जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई.
तेलंगाना फैक्ट्री विस्फोट में मृतक 36 हुए
हैदराबाद के बाहरी इलाके में सोमवार को एक फार्मा फैक्ट्री में हुए विस्फोट में मरने वालों की संख्या बढ़कर 36 हो गई है. “द हिंदू” की रिपोर्ट के अनुसार, कई शव इतनी बुरी तरह झुलस गए हैं कि उनकी पहचान करना मुश्किल है. 12 लोग अभी भी लापता हैं और अस्पताल प्रशासन को आशंका है कि मृतकों की संख्या और बढ़ सकती है. इस घटना में 34 लोग घायल भी हुए हैं. सिगाची इंडस्ट्रीज ने अभी तक यह खुलासा नहीं किया है कि उसकी फैक्ट्री में विस्फोट किस वजह से हुआ. तेलंगाना सरकार ने इस घटना की जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति गठित की है.
रेलवे किराये का नया ढांचा लागू
यात्रियों के लिए रेलवे का नया शुल्क ढांचा आज से लागू हो गया. “द हिंदू” में मैत्री पोरेचा ने अपनी रिपोर्ट में हर प्रकार की ट्रेन पर प्रति किलोमीटर यात्री किराया बढ़ोतरी का विवरण दिया है. उन्होंने पूर्व रेलवे बोर्ड सदस्य एम. जमशेद के हवाले से कहा है कि यह बदलाव पांच वर्षों में पहली बार हुआ है और लंबे अरसे से लंबित था.
पवन कल्याण और अन्नामलाई के खिलाफ एफआईआर : एक वकील की शिकायत के आधार पर मदुरै पुलिस ने आंध्रप्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण, तमिलनाडु भाजपा के पूर्व अध्यक्ष के. अन्नामलाई और पिछले महीने शहर में आयोजित मुरुगन भक्त सम्मेलन के कुछ आयोजकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. उन पर आरोप है कि उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश का उल्लंघन किया, जिसमें कार्यक्रम के दौरान राजनीतिक और धार्मिक भाषण पर रोक लगाई गई थी. बताया जाता है कि इस सम्मेलन में अभूतपूर्व भीड़ उमड़ी थी.
केरल: 'अत्यधिक गरीबी' खत्म?
केरल 2021 में शुरू किए गए अपने अत्यधिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (EPEP) की सफलता के बाद, नवंबर 2025 तक अत्यधिक गरीबी को खत्म करने वाला भारत का पहला राज्य बनने की राह पर है. केरल के स्थानीय स्व-शासन मंत्री एम बी राजेश के अनुसार, वित्तीय बाधाओं का सामना करने के बावजूद, राज्य कल्याणकारी योजनाओं और लक्षित कार्यक्रमों में निवेश करने में सक्षम रहा है. उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि पहचाने गए 64,006 अत्यधिक गरीब परिवारों में से 93% को पहले ही गरीबी से बाहर निकाला जा चुका है. केरल नीति आयोग के 2023 के बहुआयामी गरीबी सूचकांक में 0.55% की सबसे कम गरीबी दर के साथ शीर्ष पर है. एक नीति अर्थशास्त्री, यादुल कृष्ण ने द बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, "अमूर्त गरीबी रेखाओं पर निर्भर रहने के बजाय, सरकार ने कुटुंबश्री और पंचायतों के माध्यम से स्थानीय स्तर पर सर्वेक्षण करके अत्यधिक अभाव में जी रहे परिवारों की पहचान की."
उड़िया आदिवासियों पर 2008 के मामले!
ओडिशा के कोरापुट में आदिवासी ग्रामीण चिंतित हैं क्योंकि अधिकारी लगभग 2008 में शुरू हुए चासी मुलिया आदिवासी संघ के नेतृत्व वाले आंदोलन से जुड़े मामलों के निपटारे में तेज़ी ला रहे हैं. यह आंदोलन गैर-स्थानीय लोगों द्वारा शराब की बिक्री और ज़मीन पर नियंत्रण के खिलाफ था. लेकिन जहाँ एक ओर पुलिस ग्रामीणों के खिलाफ लंबे समय से लंबित गिरफ्तारी वारंट लागू कर रही है, वहीं दूसरी ओर कार्यकर्ताओं और वकीलों का कहना है कि कई मामले फर्जी हैं. यह रिपोर्ट सत्यसुंदर बारिक की है.
ऑरेगेनिक कैमिस्ट्री का अवार्ड: कोलकाता में जन्मे वैज्ञानिक, प्रोफेसर शुभब्रत सेन ने रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री (RSC) द्वारा प्रतिष्ठित पर्किन पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय बनकर इतिहास रच दिया है. यह पुरस्कार, जो पहले सिंथेटिक डाई के आविष्कारक सर विलियम हेनरी पर्किन के सम्मान में स्थापित किया गया था, ऑर्गेनिक केमिस्ट्री के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मानों में से एक है.
सरकार के कौशल प्रोग्राम फेल: इस क्षेत्र पर कुशमैन एंड वेकफील्ड की एक रिपोर्ट में सर्वेक्षण किए गए अधिकांश सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) ने महसूस किया कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे कौशल और प्रतिभा कार्यक्रम उनके लिए अप्रभावी हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि विनिर्माण क्षेत्र के 71% एमएसएमई ने महसूस किया कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे कौशल-प्रशिक्षण कार्यक्रमों से उन्हें कोई मदद नहीं मिली है. कुल मिलाकर, 61% एमएसएमई ने कहा कि ये पहल उन तक नहीं पहुंची हैं, जबकि 39% ने पुष्टि की कि उन्हें लाभ मिला है.
ट्रम्प प्रशासन की बड़ी जीत: सीनेट ने टैक्स और वेलफेयर में कटौती वाला बिल पास किया, उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने टाई-ब्रेकर वोट डाला
'द न्यू यॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट है कि वाशिंगटन डीसी से मंगलवार को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में अमेरिकी सीनेट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की घरेलू नीति पर आधारित प्रमुख विधेयक को बेहद कम अंतर से पारित कर दिया. 51-50 के वोट से पास हुआ यह बिल अब प्रतिनिधि सभा (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स) जाएगा, जहां इसकी मंज़ूरी अभी भी अनिश्चित है. यह बिल टैक्स में कटौती और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में भारी बदलाव से जुड़ा है. ट्रम्प प्रशासन इसे "बड़ी, सुंदर योजना" (बिग, ब्यूटीफुल बिल) के नाम से प्रचारित कर रहा है. तीन रिपब्लिकन सीनेटर सुसन कॉलिंस (मेन), थॉम टिलिस (नॉर्थ कैरोलिना) और रैंड पॉल (केंटकी) ने 47 डेमोक्रेट्स के साथ जाकर बिल का विरोध किया. इस टाई को उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने अपने निर्णायक वोट से तोड़ा.
‘मेरे कानों के लिए संगीत जैसा: ’'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने सीनेट में उनके कर और खर्च से संबंधित बिल के पारित होने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह तो मेरे कानों के लिए संगीत जैसा है.” फ्लोरिडा में बनाए गए अत्यधिक विवादित नए प्रवासी हिरासत केंद्र - जिसे मीडिया में “एलिगेटर अल्काट्राज़” कहा जा रहा है, में आयोजित एक राउंडटेबल चर्चा के दौरान एक रिपोर्टर ने उन्हें इस खबर की जानकारी दी. इस पर ट्रम्प ने मुस्कराते हुए जवाब दिया - “वाह, यह तो मेरे कानों के लिए संगीत जैसा है.” उन्होंने आगे कहा- “मैं सोच रहा था कि हम कैसे कर रहे हैं, क्योंकि मुझे पता है कि यह प्राइमटाइम है. यह दिखाता है कि मैं आप लोगों की परवाह करता हूं.” ट्रम्प ने अपने उपराष्ट्रपति जेडी वेंस की भी तारीफ़ की, जिन्होंने इस बिल को पास कराने के लिए निर्णायक वोट डाला.
तुर्की में पैग़ंबर मुहम्मद को दर्शाने वाले कार्टून को लेकर चार व्यंग्यकार गिरफ़्तार
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन ने एक व्यंग्यात्मक पत्रिका LeMan में छपे एक कार्टून को “नीच उकसावा” बताते हुए उसकी कड़ी निंदा की है. यह कार्टून कथित रूप से इस्लाम के पैग़ंबर मुहम्मद और यहूदी धर्म के पैग़ंबर मूसा को युद्ध के दौरान आसमान में हाथ मिलाते हुए दिखाता है, जबकि नीचे मिसाइलें उड़ रही हैं. इस विवादास्पद चित्र के प्रकाशन के बाद सोमवार को चार व्यंग्यकारों को गिरफ़्तार कर लिया गया. यह कार्टून ईरान-इज़राइल के बीच 12 दिन चले सैन्य संघर्ष के कुछ दिनों बाद छपा था. एर्दोआन की पार्टी और धार्मिक रूढ़िवादियों ने इसे “इस्लामोफोबिक घृणा अपराध” करार दिया. राष्ट्रपति ने टेलीविज़न पर कहा - “हम अपने पवित्र मूल्यों का अपमान किसी को नहीं करने देंगे. जो हमारे पैग़ंबर या अन्य पैग़ंबरों का अपमान करेंगे, उन्हें कानून के कटघरे में लाया जाएगा.”
तुर्की के गृह मंत्री अली येरलिकाया ने गिरफ़्तारी का वीडियो साझा किया जिसमें प्रमुख व्यंग्यकार डोगान पेहलेवान को हथकड़ियों में सीढ़ियों से ऊपर खींचा जा रहा है. अन्य तीन कार्टूनिस्टों को भी उनके घरों से उठाकर पुलिस वैन में ले जाया गया, जिनमें से एक नंगे पांव था.
LeMan पत्रिका ने बयान जारी कर कहा — “यह रचना किसी भी प्रकार से पैग़ंबर मुहम्मद को नहीं दर्शाती.” पत्रिका ने यह भी कहा कि चित्र का उद्देश्य “इज़रायली हमलों में मारे गए एक मुस्लिम व्यक्ति के दर्द को दर्शाना” था, और इस्लाम या पैग़ंबर का अपमान करना नहीं था. पत्रिका ने इसे "बदनाम करने का अभियान" बताया और सरकार से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने की मांग की है.
प्राग में निखिल गुप्ता की गिरफ्तारी के पहले 24 घंटे
ठीक दो साल पहले आज ही के दिन, 51 वर्षीय भारतीय व्यवसायी निखिल गुप्ता को प्राग हवाई अड्डे पर एक ऐसे मामले में गिरफ्तार किया गया था जिसकी गूंज चेक गणराज्य से बहुत दूर तक जानी थी. द वायर द्वारा समीक्षा किए गए नए चेक सरकारी दस्तावेज़ों, तस्वीरों और अमेरिकी रिपोर्टों से गुप्ता की हिरासत के पहले 24 घंटों का पुनर्निर्माण होता है, जिसमें उनकी गिरफ्तारी, एक चेक पुलिस वाहन के अंदर पूछताछ और अमेरिकी एवं चेक अधिकारियों के बीच पूर्व समन्वय का विवरण है. यह सब यात्रियों के पासपोर्ट की एक सामान्य जांच के रूप में शुरू हुआ, लेकिन जल्द ही एक अंधेरी पुलिस गाड़ी में पूछताछ में बदल गया. यह मामला पहली बार था जब किसी अमेरिकी अदालत ने एक भारतीय खुफिया अधिकारी को अंतरराष्ट्रीय हत्या की साजिश के सिलसिले में आरोपी बनाया. द वायर में देवीरूपा मित्रा ने विस्तार से ये खोजी रिपोर्ट लिखी है.
गुप्ता की गिरफ्तारी तब सार्वजनिक हुई जब नवंबर 2023 में पहला अभियोग खोला गया. इसमें कहा गया था कि गुप्ता ने एक सहयोगी, जो वास्तव में अमेरिकी ड्रग एन्फोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (DEA) का मुखबिर निकला, से न्यूयॉर्क में एक वकील की हत्या के लिए एक हिटमैन खोजने को कहा था. अदालत के दस्तावेजों में लक्ष्य का नाम कभी नहीं लिया गया, लेकिन मीडिया रिपोर्टों में उसकी पहचान भारत में प्रतिबंधित समूह सिख्स फॉर जस्टिस के जनरल काउंसिल गुरपतवंत सिंह पन्नू के रूप में की गई. यह अनुरोध कथित तौर पर 'CC-1' नामक एक भारतीय खुफिया एजेंट के निर्देश पर किया गया था, जिसका नाम बाद में विकास यादव बताया गया. गुप्ता को यह विश्वास दिलाया गया था कि मुखबिर एक कोलंबियाई कोकीन सप्लायर है.
नए दस्तावेज़ गुप्ता की गिरफ्तारी का विस्तृत विवरण देते हैं, जिसमें उनकी तस्वीरें भी शामिल हैं. एक तस्वीर में वह कतार में सबसे आगे खड़े हैं, जबकि दूसरे में उनके हाथों में हथकड़ी लगी है. अमेरिकी न्याय विभाग ने 19 जून, 2023 को चेक अधिकारियों से गुप्ता की गिरफ्तारी का अनुरोध किया था. अनुरोध में यह भी उल्लेख किया गया था कि गुप्ता ने कथित तौर पर हत्या को भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के बाद करने के लिए कहा था. इसी दौरान गुप्ता ने कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में मारे गए हरदीप सिंह निज्जर का एक वीडियो भी अंडरकवर एजेंट के साथ साझा किया था. निज्जर को पन्नू का करीबी सहयोगी बताया गया था. इससे यह संदेह गहरा गया कि गुप्ता या उसके सहयोगी निज्जर की हत्या के लिए भी जिम्मेदार थे.
गिरफ्तारी के दिन, दो अमेरिकी DEA एजेंट प्राग में मौजूद थे लेकिन हवाई अड्डे के बाहर एक वैन में इंतजार कर रहे थे. गुप्ता को एक कमरे में ले जाया गया, उनकी तलाशी ली गई और उनके दो आईफोन के अनलॉक कोड ले लिए गए. बाद में, उन्हें हथकड़ी लगाकर वैन में लाया गया, जहाँ उनकी मुलाकात अमेरिकी एजेंटों से हुई. रिपोर्टों के अनुसार, गुप्ता ने तुरंत सहयोग करने की पेशकश की और कहा, "मुझे अमेरिका ले चलो और मैं अभी तुम लोगों के साथ सहयोग करूंगा." उसने यह भी दावा किया कि भारत की पुलिस भ्रष्ट है और उसे एक पुराने मामले में फंसाया गया था, जिसे सुलझाने में 'अमानत' (विकास यादव) नामक एक व्यक्ति ने मदद की पेशकश की थी. हालांकि, गुप्ता के वकीलों का तर्क है कि उसे उसके अधिकारों के बारे में कभी नहीं बताया गया.
एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, गुप्ता को 14 जून, 2024 को अमेरिका प्रत्यर्पित कर दिया गया, जहाँ वह अब न्यूयॉर्क की एक संघीय जेल में मुकदमे का इंतजार कर रहा है. इस बीच, विकास यादव का भविष्य अनिश्चित है. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यादव अब भारत सरकार का कर्मचारी नहीं है, और उसका वर्तमान पता अज्ञात है. पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें.
विश्लेषण | राकेश शुक्ला
न्यूयॉर्क में जोहरान ममदानी की जीत का अर्थ
पिछले हफ्ते इंटरनेट पर एक दिलचस्प वीडियो क्लिप छाई रही. न्यूयॉर्क सिटी मेयर पद के एक उम्मीदवार ने अपने वोटरों को आकर्षित करने और यह साबित करने के लिए कि वे सबसे अच्छे हैं और पारंपरिक राजनीति की शैली बदलना चाहते हैं, न्यूयॉर्क की सड़कों पर बॉलीवुड के मशहूर डायलॉग्स बोलते हुए और डांस करते हुए नजर आए. वे आम लोगों के दरवाजे पर जाकर उन्हें वोट देने के लिए मना रहे थे. उनकी यह अनूठी कोशिश सफल रही और अब वे न्यूयॉर्क के पहले अमेरिकी दक्षिण एशियाई मेयर बनने के कगार पर हैं.
न्यूयॉर्क सिटी के डेमोक्रेटिक मेयर प्राइमरी में 24 जून को जोहरान ममदानी ने पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुमो को हराकर सभी को चौंका दिया. अभी कुछ महीने पहले तक, 33 वर्षीय डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट ममदानी को उनके क्वींस के इलाके के बाहर बहुत कम लोग जानते थे, जहां वे न्यूयॉर्क स्टेट असेंबली के सदस्य हैं. लेकिन अब वे न्यूयॉर्क के सबसे बड़े राजनीतिक नामों में से एक को हराकर सुर्खियों में हैं. अंतिम परिणाम रैंक्ड-चॉइस वोटों की गिनती के बाद जुलाई के मध्य तक आएगा, लेकिन बहस अभी से शुरू हो गई है कि इस नतीजे का शहर और डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए क्या मतलब है.
इस परिणाम को वामपंथ और केंद्र के बीच की लड़ाई के तौर पर देखा जा सकता है, जिसमें केंद्र अपनी पकड़ नहीं बना सका. एंड्रयू कुमो एक बिजनेस-फ्रेंडली सेंट्रिस्ट माने जाते हैं. उन्हें डेमोक्रेटिक पार्टी के दिग्गजों और बड़े डोनर्स का समर्थन मिला था, जिनमें बिल क्लिंटन, जिम क्लाइबर्न, बिल एकमैन और माइक ब्लूमबर्ग जैसे नाम शामिल हैं. दूसरी ओर, ममदानी "एकजुटता" और मुफ्त बस सेवा जैसे वामपंथी मुद्दों के हिमायती हैं. वे उन इलाकों में सिटी-संचालित सुपरमार्केट खोलना चाहते हैं, जहां इनकी कमी है, और अमीरों पर टैक्स बढ़ाने की वकालत करते हैं.
ममदानी का एजेंडा और पहचान : ममदानी की जीत का श्रेय उनकी ग्रासरूट रणनीति, सोशल मीडिया की ताकत, और प्रगतिशील नेताओं जैसे बर्नी सैंडर्स और एलेक्ज़ेंड्रिया ओकासियो-कोर्टेज़ के समर्थन को भी जाता है. उनका प्रचार युवाओं, गरीबों और अल्पसंख्यकों के बीच खासा लोकप्रिय रहा. वे न्यूयॉर्क के पहले भारतीय-अमेरिकी और मुस्लिम मेयर बनने की ओर अग्रसर हैं. उनके मुख्य वादों में शामिल हैं: मुफ्त बस सेवा, सार्वभौमिक चाइल्ड केयर, किराए में फ्रीज, अमीरों पर टैक्स बढ़ाना और किफायती आवास!
इजराइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर मुखर रुख : ममदानी ने इजराइल के गाजा में युद्ध की खुलकर आलोचना की है, जिससे वे कुछ न्यूयॉर्कवासियों के प्रिय और कुछ के लिए विवादास्पद बन गए हैं. उन्होंने BDS (Boycott, Divestment and Sanctions) आंदोलन का समर्थन किया है और इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के खिलाफ इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के वारंट के आधार पर गिरफ्तारी की बात कही थी. हालांकि, उन्होंने सभी पक्षों की नागरिकों पर हिंसा की निंदा की है.
ममदानी की जीत को न्यूयॉर्क में वामपंथी राजनीति के उभार और युवा, विविध आबादी के प्रभाव के रूप में देखा जा रहा है. यह नतीजा डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर विचारधारा की लड़ाई को भी उजागर करता है—जहां एक ओर पारंपरिक, बिजनेस-फ्रेंडली नेता हैं, वहीं दूसरी ओर आर्थिक न्याय, समानता और वैश्विक मुद्दों पर मुखर युवा नेता उभर रहे हैं. जोहरान ममदानी की जीत न सिर्फ न्यूयॉर्क बल्कि पूरे अमेरिका के लिए एक बड़ा राजनीतिक संकेत है: यह दर्शाता है कि विविधता, प्रगतिशील एजेंडा और जमीनी स्तर की राजनीति अब मुख्यधारा में जगह बना रही है. आने वाले समय में देखना होगा कि क्या वे अपने वादों को प्रशासनिक स्तर पर भी लागू कर पाते हैं?
ममदानी का सोशल मीडिया अभियान उनकी जीत में क्यों अहम रहा? ममदानी का सोशल मीडिया अभियान खासतौर पर युवाओं, दक्षिण एशियाई, मुस्लिम और लैटिनो मतदाताओं को जोड़ने में बेहद असरदार रहा. इन समुदायों में सोशल मीडिया की लोकप्रियता अधिक है, जिससे ममदानी का संदेश तेजी से और सीधे उन तक पहुंचा. ममदानी ने अपने प्रगतिशील एजेंडे—जैसे मुफ्त बस सेवा, किराया नियंत्रण, और शहर द्वारा संचालित सुपरमार्केट—को सोशल मीडिया के माध्यम से स्पष्ट और सरल भाषा में प्रचारित किया. इससे उनके विचार वायरल हुए और उन्होंने उन लोगों तक भी अपनी बात पहुंचाई, जो पारंपरिक मीडिया से दूर रहते हैं. चुनाव के दौरान ममदानी को कई विवादों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, खासकर उनके भारत, इजरायल और हिंदू विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े बयानों को लेकर. सोशल मीडिया ने उन्हें अपनी स्थिति स्पष्ट करने, फैक्ट चेक साझा करने और समर्थकों को संगठित करने का मंच दिया. इससे वे नकारात्मक प्रचार का प्रभाव कम करने में सफल रहे. ममदानी ने सोशल मीडिया पर हिंदी समेत कई भाषाओं में पोस्ट और वीडियो साझा किए, जिससे भारतीय और दक्षिण एशियाई मूल के मतदाताओं के साथ उनका जुड़ाव और गहरा हुआ. हिंदी में भाषण और अपील ने उन्हें एक अलग पहचान दी और विविध समुदायों में लोकप्रिय बनाया. सोशल मीडिया के जरिए ममदानी ने अपने जमीनी कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवकों और बर्नी सैंडर्स जैसे प्रगतिशील नेताओं के समर्थन को प्रमुखता से दिखाया. इससे उनके अभियान को वैधता और ऊर्जा मिली. उनके कई वीडियो, भाषण और पोस्ट वायरल हुए, जिससे वे न्यूयॉर्क के बाहर भी चर्चा में आए. इससे उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली, जो किसी भी स्थानीय चुनाव के लिए असाधारण है!
ममदानी ने सोशल मीडिया पर अपनी नीतियों और व्यक्तित्व को इतने स्पष्ट, ईमानदार और आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया कि मतदाताओं को उनसे जुड़ाव और भरोसा महसूस हुआ. उनकी पोस्ट्स में हास्य, स्पष्टता और स्थानीय भाषाओं (जैसे हिंदी, बंगाली) का इस्तेमाल उन्हें आम लोगों के और करीब ले आया. उनके वीडियो, मीम्स, और लाइव चैट्स ने न सिर्फ युवाओं बल्कि विविध समुदायों के बीच भी लोकप्रियता हासिल की. उदाहरण के लिए, "I’m freezing… your rent" जैसे वीडियो और जमीनी मुद्दों पर बनी क्लिप्स ने मतदाताओं को भरोसा दिलाया कि ममदानी उनकी बात समझते हैं और उनके लिए लड़ सकते हैं. सोशल मीडिया पर उनके पोस्ट्स ने सिर्फ ऑनलाइन समर्थन नहीं जुटाया, बल्कि हजारों स्वयंसेवकों को प्रेरित किया कि वे घर-घर जाकर प्रचार करें. इसने एक मजबूत जमीनी नेटवर्क तैयार किया, जिससे मतदाताओं को लगा कि यह अभियान सिर्फ इंटरनेट तक सीमित नहीं, बल्कि उनके मोहल्ले तक पहुंच चुका है. जनता ने खुद सोशल मीडिया पर कमेंट्स, शेयर और प्रतिक्रियाओं के ज़रिए अपने भरोसे का इज़हार किया. कई विश्लेषकों ने भी माना कि ममदानी की डिजिटल उपस्थिति ने उन्हें “अपना नेता” साबित किया, जिससे वे पारंपरिक नेताओं की तुलना में ज्यादा भरोसेमंद लगे. निष्कर्ष के तौर पर ममदानी के सोशल मीडिया पोस्ट्स ने न सिर्फ उनकी लोकप्रियता बढ़ाई, बल्कि मतदाताओं के बीच उनके प्रति भरोसा, अपनापन और उम्मीद भी पैदा की—यही उनकी जीत की सबसे बड़ी वजहों में से एक रहीI
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)
सेंसर बोर्ड के बढ़ते नाख़ून, कसते शिकंजे
2025 ने भारत के सेंसर बोर्ड को पहले से कहीं ज़्यादा बाधाकारी के रूप में उजागर किया है. मिंट लाउंज के अपने दिलचस्प लेख में, उदय भाटिया ने उन बेतुकी चुनौतियों को उजागर किया है जिनका सामना चार फिल्मों - 'पंजाब '95', 'संतोष', 'L2: एम्पुरान' और 'फुले' - को करना पड़ा और फिल्मों को सेंसर से बिना किसी नुकसान के पास कराने के असंभव काम को दर्शाया है. निर्देशक हनी त्रेहान की फिल्म 'पंजाब '95' ढाई साल से ज़्यादा समय से भारत के सेंसर बोर्ड के पास अटकी हुई है, और बोर्ड अब इसमें 120 से ज़्यादा कट की मांग कर रहा है. अन्ना एम एम वेट्टीकाड के साथ एक विस्तृत साक्षात्कार में, त्रेहान ने इस अनुभव को भयावह बताया और इस निरंतर बाधा के लिए इस वैधानिक निकाय पर भाजपा के प्रभाव को ज़िम्मेदार ठहराया. उनका मानना है कि बोर्ड तीन दशक पहले एक वास्तविक जीवन के कार्यकर्ता की हत्या पर बनी उनकी फिल्म को दबाने पर तुला हुआ है. जैसा कि अन्ना एम एम वेटिकैड स्पष्ट रूप से कहती हैं, यह एक व्यापक प्रवृत्ति का लक्षण है - एक "दक्षिणपंथी, सरकार-समर्थक, इस्लामोफोबिक लहर" जो 2014 से भारतीय सिनेमा, विशेषकर बॉलीवुड पर हावी हो गई है, और जिसने असहमति की आवाज़ों को चुप कराने के उद्देश्य से सेंसरशिप का एक नया और आक्रामक रूप शुरू किया है.
पहलगाम के बाद के जिंगोइज्म के निशाने पर दिलजीत और ‘सरदारजी 3’
इंडिया केबल में सुशांत सिंह ने भारत के सबसे बड़े वैश्विक सितारों में से एक, दिलजीत दोसांझ के इर्द-गिर्द घूमते एक विवाद पर विश्लेषण किया है. उनकी फिल्म 'सरदार जी 3', जिसमें एक पाकिस्तानी अभिनेत्री हानिया आमिर हैं, को लेकर हंगामा खड़ा हो गया है. यह फिल्म अप्रैल 2025 के पहलगाम आतंकी हमले से बहुत पहले बनकर तैयार हो गई थी. लेकिन हमले के बाद, मोदी सरकार और फिल्म उद्योग ने पाकिस्तानी कलाकारों पर प्रतिबंध लगा दिया. भारी वित्तीय नुकसान से बचने के लिए, निर्माताओं ने फिल्म को सिर्फ विदेशों में रिलीज़ करने का फैसला किया. दिलजीत ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि फिल्म प्रतिबंधों से पहले बनी थी, लेकिन उनकी दलील को अनसुना कर दिया गया. सुशांत का कहना है कि एक ओर, फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉइज (FWICE) जैसी संस्थाएं दिलजीत पर देशद्रोह का आरोप लगा रही हैं, उन्हें फिल्मों से निकालने और यहाँ तक कि उनका पासपोर्ट रद्द करने की मांग कर रही हैं.
वहीं दूसरी ओर, कुछ ही समय पहले प्रधानमंत्री मोदी ने दिलजीत को "बहुआयामी प्रतिभा" कहा था और अंबानी परिवार ने अपनी भव्य पार्टी में उनसे प्रदर्शन करवाया था. लेख बताता है कि जो दिलजीत कल तक राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक थे, आज उन्हीं को सत्ता और मीडिया द्वारा देशद्रोही के रूप में पेश किया जा रहा है. यह उनके वैश्विक कद के बिल्कुल विपरीत है, जहाँ उन्होंने कोचेल्ला और जिमी फॉलन के शो जैसे मंचों पर भारत का नाम रोशन किया है.
सुशांत के मुताबिक यह विवाद सिर्फ एक पाकिस्तानी कलाकार के बारे में नहीं है, बल्कि दिलजीत की मुखर सिख और पंजाबी पहचान से भी जुड़ा है. दिलजीत ने अपनी पहचान को कभी नहीं छिपाया और वैश्विक मंचों पर इसे गर्व से प्रस्तुत किया. उनका ग्रैमी प्रेजीडेंट को दिया गया सार्वभौमिकता का संदेश, कि "संगीत देशों को जोड़ता है", भारत में पनप रही उस अति-राष्ट्रवादी विचारधारा से टकराता है जो अपने देश को सबसे ऊपर रखने की मांग करती है. लेख के अनुसार, एक आत्मविश्वासी, वैश्विक और अपनी जड़ों पर गर्व करने वाले सिख आइकन का उदय, प्रमुख हिंदुत्व विचारधारा के कुछ वर्गों के लिए असहज करने वाला है.
लेख यह निष्कर्ष निकालता है कि यह घटना 2014 के बाद से भारत में उभरी एक खतरनाक प्रवृत्ति का लक्षण है. यहाँ कलात्मक स्वतंत्रता को राजनीतिक वफादारी की वेदी पर कुर्बान किया जा रहा है. यह कलाकारों, विशेषकर अल्पसंख्यक समुदायों से आने वालों को एक डरावना संदेश देता है. संदेश साफ़ है: आज के भारत में, प्रामाणिकता और अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व करने की कीमत निरंतर संदेह और देशद्रोही करार दिए जाने का खतरा है.
फिल्म पता नहीं आपको देखने को मिले न मिले ट्रेलर यहां है. और गाना यहां सुनिये
दिलजीत का कॉलेबोरेशन के-पॉप हीरो के साथ
वैश्विक संगीत जगत में हलचल मचा देने वाले एक कदम के तहत, के-पॉप सनसनी जैक्सन वांग और पंजाबी सुपरस्टार दिलजीत दोसांझ ने अपने पहले सहयोग के लिए हाथ मिलाया, जिसका शीर्षक 'बक' (BUCK) है और जो इसी साल मई में रिलीज़ हुआ था. जीक्यू मैगज़ीन के मुताबिक यह अभूतपूर्व क्रॉस-कल्चरल सहयोग वैश्विक पॉप संगीत के लिए एक नई और साहसिक दिशा का संकेत देता है. इस सहयोग के बारे में बात करते हुए, दिलजीत ने उस सहज रचनात्मक तालमेल और साझा सम्मान पर ज़ोर दिया जिसने उनके काम को प्रेरित किया - यह इस बात का सबूत है कि सच्ची कला कोई सीमा नहीं जानती. जैसे-जैसे संगीत एक वैश्विक संवाद बनता जा रहा है, दिलजीत और जैक्सन जैसे कलाकार सबसे आगे हैं, जो यह दिखा रहे हैं कि संस्कृतियों के बीच सहयोग न केवल संभव है, बल्कि यह पॉप का भविष्य है.
पाठकों से अपील :
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