02/09/2025: राहुल ने कहा अभी अगला बम आएगा | मतदाता सूची में धांधलियां | जनगणना 2027 | शी से मोदी की नई नज़दीकियां | कोल्हापुरी कारीग़र | जानलेवा एआई | नींद उड़ी हुई हो तो
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
बिहार की मतदाता सूची से हटाए गए 65 लाख नामों में गंभीर विसंगतियां सामने आई हैं, जिनमें युवा मौतें, लैंगिक पूर्वाग्रह और सीमावर्ती मुस्लिम बहुल इलाकों में अपात्रों की उच्च दरें शामिल हैं.
चुनाव आयोग का कहना है कि 99.5% मतदाताओं के दस्तावेज़ जमा हो चुके हैं, जबकि राजनीतिक दलों की ओर से केवल 144 आपत्तियां ही प्राप्त हुईं.
राहुल गांधी ने "वोट चोरी" को लेकर "हाइड्रोजन बम" जैसे बड़े खुलासे की चेतावनी दी है, जिससे प्रधानमंत्री मोदी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
ज़मीनी रिपोर्टों में पाया गया है कि कई जीवित और स्थानीय निवासी मतदाताओं को गलत तरीके से "मृत" या "अनुपस्थित" बताकर सूची से हटा दिया गया है.
भारत की पहली डिजिटल जनगणना 2027 में होगी, जिसमें जाति-आधारित आंकड़े भी शामिल होंगे; इसके लिए 14,618.95 करोड़ रुपये का बजट मांगा गया है.
प्रधानमंत्री मोदी जातीय हिंसा के बाद पहली बार सितंबर के दूसरे सप्ताह में मणिपुर का दौरा कर सकते हैं.
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल दो मंत्रियों, चंद्रकांत पाटिल और नितेश राणे से नाराज़ हैं और उनसे "निपटने" की कसम खाई है.
अफगानिस्तान में शक्तिशाली भूकंप से 800 से अधिक लोगों की मौत और 2,500 घायल हो गए हैं; भारत ने मदद की पेशकश की है.
अमेरिका पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारी टैरिफ़ लगाने के बाद, भारत ने चीन और रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया है.
एक विश्लेषण में अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में तानाशाही प्रवृत्तियों के बढ़ने का खतरा बताया गया है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के खतरनाक पहलू सामने आए हैं, जिनमें किशोरों को आत्महत्या के लिए उकसाने और उपयोगकर्ताओं को ब्लैकमेल करने जैसी घटनाएं शामिल हैं.
कोल्हापुरी चप्पल जैसे पारंपरिक डिजाइनों को कानूनी संरक्षण की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे प्रादा जैसे बड़े ब्रांडों द्वारा उनके शोषण का खतरा बना हुआ है.
2021 में गिरफ्तार किए गए स्टैंड-अप कॉमेडियन नलिन यादव पर चौथा हमला हुआ; वे लगातार हिंदू समूहों के उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं.
नींद लाने में मदद करने वाले आठ घंटे लंबे संगीत "स्लीप" ने अपने दस साल पूरे कर लिए हैं.
बिहार मतदाता सूची
हटाए गए नामों में असामान्य पैटर्न, कई विसंगतियां
भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) द्वारा बिहार में हटाए गए 65 लाख से अधिक मतदाताओं की सूची के एक व्यापक विश्लेषण में कई विसंगतियां सामने आई हैं. ये पैटर्न संभावित रूप से समस्याग्रस्त मुद्दों का सुझाव देते हैं जिनकी गहन जांच की आवश्यकता है. हटाए गए मतदाता डेटा के विश्लेषण से आठ अलग-अलग श्रेणियों की विसंगतियां सामने आई हैं.
ये विसंगतियां मतदाता सूची की सटीकता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं. विशेष रूप से, कुछ श्रेणियों जैसे कि लिंग, आयु और नाम हटाने के कारणों में असामान्य पैटर्न देखे गए हैं, जो किसी विशेष समूह को व्यवस्थित रूप से लक्षित करने या प्रक्रियात्मक खामियों की ओर इशारा करते हैं. यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अखंडता के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है.
ईसीआई ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए हटाए गए मतदाताओं की जानकारी प्रदान की है, जिन्हें अलग-अलग भागों (मतदान केंद्रों) में विभाजित किया गया है. विश्लेषण में निम्नलिखित प्रमुख निष्कर्ष सामने आए हैं:
युवा मौतें: 80 ऐसे हिस्से हैं जहां मृतकों के रूप में दर्ज 50 से अधिक लोगों में से कम से कम आधे 50 वर्ष से कम आयु के थे. यह सामान्य जनसांख्यिकीय मानदंडों के खिलाफ है, क्योंकि आमतौर पर मृत्यु दर वृद्ध आयु समूहों में अधिक होती है.
लैंगिक पूर्वाग्रह: 127 हिस्सों में, मतदाता सूची से हटाए गए नामों में महिलाओं का अनुपात असामान्य रूप से 80% या उससे अधिक था, जो महिला मतदाताओं को संभावित रूप से मताधिकार से वंचित करने का संकेत देता है.
अत्यधिक उच्च विलोपन दर: 1,985 हिस्सों में 200 से अधिक नाम हटाए गए, जो सामान्य दरों से बहुत अधिक है. गोपालगंज निर्वाचन क्षेत्र में यह समस्या विशेष रूप से गंभीर दिखी.
मृत्यु की अत्यधिक रिपोर्टें: लगभग 412 मतदान केंद्रों पर 100 से अधिक मौतें दर्ज की गईं, जो कि एक चिंताजनक आंकड़ा है.
मृत्यु के कारण विलोपन का उच्च अनुपात: 7,216 मतदान केंद्रों पर 75% से अधिक विलोपन का कारण मृत्यु बताया गया है.
केवल मृत्यु के कारण विलोपन: 973 मतदान केंद्रों पर सभी विलोपन केवल मृत्यु के कारण हुए, जो सांख्यिकीय रूप से लगभग असंभव है.
"अनुपस्थित" मतदाताओं की बड़ी संख्या: 5,084 केंद्रों पर 50 से अधिक मतदाताओं को "अनुपस्थित" के रूप में चिह्नित किया गया.
महिलाओं का संदिग्ध "स्थानांतरण": 663 हिस्सों में, "स्थायी रूप से स्थानांतरित" के रूप में चिह्नित मतदाताओं में 75% से अधिक महिलाएं थीं.
इन विसंगतियों के भौगोलिक और जनसांख्यिकीय पैटर्न भी ध्यान देने योग्य हैं. सीमावर्ती जिलों जैसे पूर्णिया, किशनगंज और चंपारण में विसंगतियों की उच्च सांद्रता देखी गई. कई प्रभावित क्षेत्र महत्वपूर्ण मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में स्थित प्रतीत होते हैं. इसके अलावा, कई श्रेणियों में युवा महिला मतदाताओं (18-29 वर्ष) पर अनुपातहीन प्रभाव दिखाई देता है. ये पैटर्न सांख्यिकीय संभावना को धता बताते हैं, जैसे कि 100% विलोपन का कारण मृत्यु होना या विलोपन में लिंगानुपात का 90% से अधिक होना.
ये निष्कर्ष कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े करते हैं: मतदाताओं को मृतक के रूप में चिह्नित करने से पहले क्या सत्यापन किया गया? कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में विसंगतियों की इतनी अधिकता क्यों है? महिलाओं को अधिक संख्या में क्यों बाहर रखा गया है? और कई हिस्सों में 'मृतक' श्रेणी के तहत युवा मतदाताओं के इतने बड़े हिस्से को क्यों बाहर रखा गया है? पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ें.
'वोट चोरी' पर जल्द आएगा 'हाइड्रोजन बम', मोदी मुँह नहीं दिखा पाएंगे: राहुल गांधी
द हिंदू के ही मुताबिक कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार (1 सितंबर, 2025) को कहा कि उनकी पार्टी जल्द ही "वोट चोरी" को लेकर एक "हाइड्रोजन बम" जैसे ख़ुलासे करेगी और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को अपना चेहरा नहीं दिखा पाएंगे. पटना में अपनी 'वोटर अधिकार यात्रा' के समापन कार्यक्रम में बोलते हुए, गांधी ने कहा कि बिहार एक क्रांतिकारी राज्य है और उसने देश को एक संदेश दिया है.
यह बयान बिहार विधानसभा चुनावों से पहले इंडिया गठबंधन द्वारा चलाए जा रहे अभियान का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में कथित गड़बड़ियों और "वोट चोरी" के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाना है. यह भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर लोकतंत्र को कमज़ोर करने के विपक्ष के आरोपों को और मज़बूत करता है.
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा, "हम उन्हें (भाजपा को) संविधान की हत्या नहीं करने देंगे और इसीलिए हमने यह यात्रा निकाली. हमें ज़बरदस्त प्रतिक्रिया मिली. लोग बड़ी संख्या में बाहर आए और 'वोट चोर गद्दी छोड़' का नारा लगाया." उन्होंने भाजपा को चेतावनी देते हुए कहा, "क्या आपने एटम बम से बड़ी कोई चीज़ सुनी है, वह है हाइड्रोजन बम. भाजपा के लोग तैयार रहें, हाइड्रोजन बम आ रहा है. लोगों को जल्द ही वोट चोरी की हक़ीक़त पता चल जाएगी." उन्होंने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में वोट "चुराए" गए और फिर सबूतों के साथ उनकी पार्टी ने दिखाया कि कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में "वोट चोरी" कैसे की गई.
यह यात्रा गांधी और अन्य महागठबंधन नेताओं के नेतृत्व में 1,300 किलोमीटर तक चली, जिसमें 38 में से 25 ज़िलों के 110 विधानसभा क्षेत्रों को कवर किया गया. यात्रा के समापन पर पटना में एक मार्च निकाला गया, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, राजद नेता तेजस्वी यादव, और तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) समेत अन्य इंडिया ब्लॉक के नेता शामिल हुए. इस मार्च को पुलिस ने डाक बंगला चौराहे पर बीच में ही रोक दिया, जहाँ नेताओं ने एक सभा को संबोधित किया.
ज़िंदा हैं और यहीं रहते हैं - लेकिन अब बिहार की मतदाता सूची में नहीं हैं
स्क्रोल की ख़बर है कि बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण ने कई मतदाताओं को पीछे छोड़ दिया है, जिनमें से कई को ग़लत तरीक़े से सूची से बाहर कर दिया गया है. 1 अगस्त, 2025 को, 74 वर्षीय रहीमा खातून को यह मानकर मतदाता सूची से हटा दिया गया कि वह बिहार के पूर्णिया ज़िले में अपने गाँव अंसारी टोला से स्थायी रूप से कहीं और चली गई हैं. लेकिन स्क्रोल की टीम जब गाँव पहुँची तो वह अपने घर पर ही मौजूद थीं. उनकी तरह ही, राज्य भर में, ख़ासकर सीमांचल क्षेत्र में, हज़ारों ऐसे मतदाता हैं जिन्हें बिना किसी ठोस आधार के उनके मतदान के अधिकार से वंचित कर दिया गया है.
यह मामला चुनाव आयोग द्वारा जल्दबाज़ी में किए गए मतदाता सूची पुनरीक्षण अभ्यास की गंभीर ख़ामियों को उजागर करता है. यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल उठाता है, क्योंकि यह राज्य विधानसभा चुनावों से ठीक पहले हुआ है. ज़मीनी रिपोर्टों से पता चलता है कि महिलाएँ और मुस्लिम मतदाता इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं, जो इस प्रक्रिया में एक संभावित पूर्वाग्रह की ओर इशारा करता है.
चुनाव आयोग ने बिहार में एक नई मतदाता सूची बनाने के लिए "विशेष गहन पुनरीक्षण" (SIR) शुरू किया. 1 अगस्त को जारी मसौदा सूची में राज्य के 65 लाख मतदाताओं, यानी लगभग 8% मतदाताओं को बाहर कर दिया गया. अंसारी टोला गाँव में, जहाँ 22% मतदाताओं को हटा दिया गया, स्क्रोल ने पाया कि हटाए गए कई लोग गाँव में ही रह रहे थे. इसी तरह, धमदाहा विधानसभा क्षेत्र के बजराहा गाँव में, 65 वर्षीय रतन ऋषि, जो एक दलित हैं, को "अनुपस्थित" बताकर सूची से हटा दिया गया, जबकि वह गाँव में ही थे.
इस गड़बड़ी के लिए कुछ मतदाता बूथ लेवल अधिकारियों (BLO) को दोषी मानते हैं, जिन्हें फ़ॉर्म इकट्ठा करने के लिए सिर्फ़ एक महीने का समय दिया गया था. वहीं, अन्य लोग इसे उन लोगों को बाहर करने की एक बड़ी साज़िश के रूप में देखते हैं जो भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को वोट नहीं देते हैं. ज़मीनी रिपोर्टिंग में यह भी सामने आया कि ग़लत निष्कासन के मामले दलित बस्तियों में आसानी से देखे जा सकते थे, लेकिन मुस्लिम मतदाताओं वाले गाँवों में यह सबसे ज़्यादा थे. कई BLO ने अपर्याप्त प्रशिक्षण और काम के भारी बोझ की शिकायत की, जिससे भ्रम और ग़लतियाँ हुईं.
जिन मतदाताओं को ग़लत तरीक़े से बाहर कर दिया गया है, उनके पास फ़ॉर्म-6 जमा करके सूची में फिर से शामिल होने का अवसर है. हालाँकि, जागरूकता की कमी, दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता और प्रक्रियागत बाधाओं के कारण कई लोग ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. अगर इन मुद्दों को जल्द से जल्द हल नहीं किया गया, तो बिहार के लाखों पात्र मतदाता आगामी विधानसभा चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाएंगे.
राजनीतिक दलों से 144 आवेदन ही प्राप्त, 1 सितंबर के बाद भी दावे, एतराज स्वीकार्य
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के हिस्से के रूप में “दावे और आपत्तियों” की एक माह की निर्धारित अवधि सोमवार को समाप्त हो गई. हालांकि, चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट किया कि बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची को लेकर दावे और आपत्तियां 1 सितंबर की अंतिम तिथि के बाद भी दायर किए जा सकते हैं. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में दाखिल आरजेडी की उस याचिका पर कोई विशेष निर्देश देने से इनकार कर दिया, जिसमें अधिक समय की मांग की गई थी. आरजेडी ने 1 सितंबर के बाद दो और सप्ताह का समय मांगा था.
चुनाव आयोग ने सूचित किया कि उसे राजनीतिक पार्टियों से केवल 144 आवेदन ही प्राप्त हुए हैं, जिनमें 16 भाजपा से, 10 राजद से और 118 सीपीआई (एमएल) लिबरेशन से आए हैं, जो 7.24 करोड़ मतदाताओं की मसौदा सूची के खिलाफ हैं.
इसके विपरीत, मतदाताओं ने खुद लगभग 2.53 लाख दावे और आपत्तियां दर्ज कराई हैं, जिनमें योग्य मतदाताओं को शामिल करने और अयोग्य लोगों को हटाने के लिए आवेदन थे, जिनमें से 40,630 मामले पहले ही निपटा दिए गए हैं.
सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के 118 आवेदनों में 15 नाम जोड़ने और 103 नाम हटाने के लिए थे, जबकि भाजपा ने केवल नाम हटाने के लिए 16 आपत्तियां और राजद ने नाम जोड़ने के लिए मात्र 10 आवेदन दिये, चुनाव आयोग ने एक बयान में कहा. मुकेश रंजन के अनुसार, 18 वर्ष और उससे ऊपर के नए मतदाताओं के आवेदन की संख्या 16,56,886 है, जिनमें से अब तक 91,462 आवेदन का निराकरण किया जा चुका है.
7.24 करोड़ में से 99.5% वोटरों के दस्तावेज़ जमा, दो पार्टियों को छोड़ किसी दल ने 65 लाख की मदद नहीं की
इधर, पीटीआई की खबर है कि चुनाव आयोग ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 7.24 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 99.5 प्रतिशत ने पात्रता दस्तावेज़ जमा किए हैं. आयोग ने दावा किया कि आरजेडी और भाकपा-माले के अलावा किसी अन्य राजनीतिक पार्टी ने चाहे अपने पदाधिकारियों के माध्यम से या विधिवत नियुक्त बीएलए (बूथ लेवल एजेंटों) के माध्यम से, लगभग 65 लाख ऐसे मतदाताओं में से किसी की भी सहायता नहीं की जिनके नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल नहीं हैं, ताकि वे घोषणा के साथ फॉर्म 6 जमा कर सकें.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच को आयोग ने बताया कि मतदाताओं ने खुद अधिक “सतर्कता और सक्रियता” दिखाई, क्योंकि उन्होंने ड्राफ्ट मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए 33,326 फॉर्म और नाम हटाने के लिए 2,07,565 फॉर्म जमा किए. इसके अतिरिक्त, प्रथम बार मतदान करने वालों ने मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए 15 लाख से अधिक आवेदन दिए.
आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने एक लिखित नोट में कहा कि
दस्तावेज़ों के सत्यापन की प्रक्रिया 25 सितंबर तक पूरी कर ली जाएगी. आयोग ने आरजेडी और भाकपा-माले द्वारा दाखिल दावों की संख्या से जुड़े दावों का खंडन करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों और व्यक्तियों से प्राप्त अधिकांश फॉर्म ड्राफ्ट मतदाता सूची से नाम हटाने से संबंधित हैं. ड्राफ्ट सूची पर राजनीतिक दलों से कुल 128 फॉर्म प्राप्त हुए, जिनमें से 103 नाम हटाने (फॉर्म 7) और केवल 25 नाम जोड़ने (फॉर्म 6) के लिए थे. यह संख्या बिहार के कुल मतदाताओं का एक अत्यंत छोटा हिस्सा दर्शाती है.” यद्यपि व्यक्तिगत मतदाताओं ने अधिक सतर्कता और सक्रियता दिखाई, फिर भी उन्होंने केवल 33,326 फॉर्म (फॉर्म 6) नाम जोड़ने हेतु और 2,07,565 फॉर्म (फॉर्म 7) नाम हटाने हेतु जमा किए हैं.
डिजीटल और जाति जनगणना के लिए 14,618.95 करोड़ का बजट मांगा
भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) ने जनगणना 2027 कराने के लिए 14,618.95 करोड़ रुपये का बजट मांगा है. यह पहली “डिजिटल जनगणना” होगी और इसमें जाति से संबंधित आंकड़े भी जुटाए जाएंगे. “द इंडियन एक्सप्रेस” में हरिकिशन शर्मा की रिपोर्ट है कि मांगी गई राशि जनगणना के दोनों चरणों के लिए है.
हाउस-लिस्टिंग (गृह-सूचीकरण) — यह अप्रैल से सितंबर 2026 के बीच किया जाएगा. जनसंख्या गणना — यह फरवरी 2027 से पूरे देश में होगी, सिवाय लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के, जहां इसे सितंबर 2026 में आयोजित किया जाएगा. गृह-सूचीकरण के दौरान आवास की स्थिति, घर की सुविधाओं और परिवारों की संपत्ति से संबंधित जानकारी इकट्ठा की जाएगी. डेटा एक विशेष मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से एकत्र किया जाएगा. जनता को स्वयं गिनती का विकल्प भी दिया जाएगा और जाति से जुड़े आंकड़े भी इलेक्ट्रॉनिक रूप में दर्ज किए जाएंगे. आरजीआई जनगणना प्रबंधन एवं निगरानी प्रणाली (सीएमएमएस) नामक एक वेबसाइट भी विकसित कर रहा है, जिससे पूरी प्रक्रिया की रीयल-टाइम मॉनिटरिंग और प्रबंधन संभव होगा.
हिंसा शुरु होने के दो साल बाद मोदी अब मणिपुर जाएंगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभवतः सितंबर के दूसरे सप्ताह में मणिपुर का दौरा करेंगे. दो साल से अधिक समय पहले राज्य में भड़की जातीय हिंसा के बाद यह उनका पहला दौरा होगा. “द हिंदू” में विजेयता सिंह के मुताबिक, प्रधानमंत्री इम्फाल और चुराचांदपुर जिलों का दौरा कर सकते हैं, जहां जातीय संघर्ष के कारण अपने घरों से विस्थापित लोगों से उनकी मुलाकात की उम्मीद है. अपनी यात्रा के दौरान वे क्षेत्र के लिए कुछ महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की घोषणा कर सकते हैं और कुछ परियोजनाओं का उद्घाटन भी कर सकते हैं.
ट्रम्प का दामन छोड़ क्या मोदी अब पुतिन और शी के पाले में जा चुके हैं?
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत-अमेरिका व्यापार को "एकतरफ़ा विनाश" बताते हुए भारत पर भारी टैरिफ़ लगाने का आरोप लगाया है, जिससे दोनों देशों के संबंधों में तनाव बढ़ गया है.
ट्रम्प के इन आरोपों और 50% तक के नए टैरिफ़ के जवाब में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सात साल में पहली बार चीन का दौरा किया और शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में भाग लिया.
द टेलीग्राफ इंडिया के अनुसार, इस दौरे पर मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात की, जहाँ दोनों नेताओं ने अपने देशों को "प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि भागीदार" घोषित किया, हालाँकि सीमा विवाद पर मतभेद बने हुए हैं.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट और द गार्डियन की ख़बरों के मुताबिक, एससीओ शिखर सम्मेलन में, शी जिनपिंग ने अमेरिकी "दादागिरी" की आलोचना की और सदस्य देशों से "शीत युद्ध की मानसिकता" का विरोध करने का आग्रह किया, जबकि पुतिन ने यूक्रेन युद्ध के लिए सीधे तौर पर पश्चिम को दोषी ठहराया.
द न्यूयॉर्क टाइम्स और अन्य मीडिया रिपोर्टों के विश्लेषकों का मानना है कि ट्रम्प की नीतियों ने भारत की 'चाइना प्लस वन' रणनीति को गंभीर रूप से कमज़ोर कर दिया है, जिससे भारत को वाशिंगटन से परे विकल्पों पर विचार करने और चीन के साथ आर्थिक रूप से जुड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने भारत के साथ व्यापार को "एकतरफ़ा विनाश" करार देते हुए कहा है कि भारत द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ़ के कारण अमेरिकी कंपनियाँ अपना सामान वहाँ नहीं बेच पा रही हैं. अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर उन्होंने लिखा कि भारत हमारे साथ बहुत कम व्यापार करता है, जबकि हम उसके सबसे बड़े 'ग्राहक' हैं. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत अपना अधिकांश तेल और सैन्य उत्पाद अमेरिका के बजाय रूस से ख़रीदता है, जो इस रिश्ते को और भी असंतुलित बनाता है.
ट्रम्प के इन बयानों और 50% तक के नए टैरिफ़ लगाने की कार्रवाई ने भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को प्रेरित किया है. इस आर्थिक दबाव के जवाब में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन के तियानजिन शहर का दौरा किया. यह सात वर्षों में उनकी पहली चीन यात्रा थी और इसे वाशिंगटन को एक स्पष्ट संदेश के रूप में देखा जा रहा है कि भारत के पास अन्य विकल्प भी मौजूद हैं. इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ गर्मजोशी भरी मुलाक़ातें हुईं, जिसने वैश्विक भू-राजनीति में एक नए समीकरण का संकेत दिया है.
एससीओ शिखर सम्मेलन के मौके पर मोदी और शी जिनपिंग के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक सबसे ज़्यादा चर्चा में रही. द टेलीग्राफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पाँच साल पहले गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष के बाद दोनों देशों के संबंध बेहद तनावपूर्ण हो गए थे, लेकिन इस बैठक में एक सुलह का माहौल दिखा. दोनों नेताओं ने एक संयुक्त बयान में भारत और चीन को "प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि विकासात्मक भागीदार" बताया. हालाँकि, इस मेल-मिलाप के बावजूद, दोनों देशों के बीच सबसे बड़ा मुद्दा, यानी सीमा विवाद, अनसुलझा ही रहा. चीनी पक्ष का कहना था कि सीमा मुद्दे को समग्र संबंधों को परिभाषित नहीं करना चाहिए, जबकि भारतीय पक्ष ने ज़ोर देकर कहा कि द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति के लिए सीमा पर शांति और स्थिरता "आवश्यक" है. इस बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अनुपस्थिति और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की उपस्थिति भी चर्चा का विषय बनी रही.
यह शिखर सम्मेलन चीन के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत साबित हुआ, जहाँ उसने अमेरिका के प्रतिबंधों और टैरिफ़ का सामना कर रहे देशों को एक मंच पर एकजुट किया. द गार्डियन के अनुसार, यह बैठक नाटो जैसे पश्चिमी नेतृत्व वाले समूहों को चुनौती देने के बीजिंग के प्रयास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. शी जिनपिंग ने अपने भाषण में सदस्य देशों से "शीत युद्ध की मानसिकता", "गुटीय टकराव" और "दादागिरी" का विरोध करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि सदस्य देशों के सामने सुरक्षा और विकास के कार्य और भी चुनौतीपूर्ण हो गए हैं. चीन की भूमिका को मज़बूत करते हुए, शी ने इस वर्ष सदस्य देशों को 2 अरब युआन (280 मिलियन डॉलर) की मुफ़्त सहायता और SCO बैंकिंग कंसोर्टियम को 10 अरब युआन का अतिरिक्त ऋण देने का वादा किया. वहीं, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन में युद्ध के लिए सीधे तौर पर पश्चिम को ज़िम्मेदार ठहराया. उन्होंने दावा किया कि यह युद्ध "पश्चिम द्वारा समर्थित और उकसाए गए तख्तापलट का नतीजा है" और "यूक्रेन को नाटो में खींचने के पश्चिम के लगातार प्रयासों" के कारण हुआ.
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रम्प द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ़ ने भारत की महत्वाकांक्षी 'चाइना प्लस वन' रणनीति को गहरा झटका दिया है. यह रणनीति अमेरिकी और अन्य पश्चिमी कंपनियों को चीन पर अपनी निर्भरता कम करने और भारत को एक वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र के रूप में प्रस्तुत करने पर केंद्रित थी. एप्पल के लिए आईफ़ोन बनाने वाली फॉक्सकॉन जैसी कंपनियों ने भारत में भारी निवेश किया था. लेकिन अब 50% टैरिफ़ के बाद, अमेरिकी आयातकों के लिए भारत एक कम आकर्षक विकल्प बन गया है. द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस "ट्रम्प शॉक" ने न सिर्फ़ विनिर्माण निर्यात को कम किया है, बल्कि 'चाइना प्लस वन' से जुड़े निजी निवेश को भी ख़त्म कर दिया है.
इस बदली हुई वैश्विक परिस्थिति में, भारत के पास चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को फिर से स्थापित करने के अलावा बहुत कम विकल्प बचे हैं. यह शिखर सम्मेलन इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि इसके बाद बीजिंग में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक सैन्य परेड का आयोजन किया जाएगा, जिसमें उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन के भी शामिल होने की उम्मीद है. विश्लेषकों की इस पर भी गहरी नज़र है कि क्या पुतिन, शी और किम के बीच कोई औपचारिक बैठक होती है, क्योंकि ऐसा कोई भी क़दम अमेरिका के लिए एक बड़ा संकेत होगा और एक "नए शीत युद्ध की गतिशीलता" को उजागर करेगा. कुल मिलाकर, यह घटनाक्रम न सिर्फ़ भारत-अमेरिका संबंधों के भविष्य पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे SCO अमेरिकी एकपक्षवाद के ख़िलाफ़ एक मज़बूत ध्रुव के रूप में उभर रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान में भूकंप से 800 से ज़्यादा लोगों की मौत, तबाही, बचाव अभियान जारी
अफ़ग़ानिस्तान में सोमवार (1 सितंबर, 2025) को एक बड़ा बचाव अभियान चल रहा था, जब एक शक्तिशाली भूकंप और उसके बाद आए कई झटकों ने एक दूरदराज़, पहाड़ी इलाक़े में घरों को मलबे में तब्दील कर दिया. तालिबान अधिकारियों के अनुसार, इस आपदा में 800 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं. भूकंप आधी रात से ठीक पहले आया, जिससे काबुल से लेकर पड़ोसी देश पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद तक इमारतें हिल गईं. यह आपदा अफ़ग़ानिस्तान के लिए एक और बड़ा मानवीय संकट है, जो पहले से ही चार दशकों के युद्ध, ग़रीबी और विदेशी सहायता में कटौती से जूझ रहा है. तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से अंतरराष्ट्रीय सहायता में भारी कमी आई है, जिससे देश की आपदाओं से निपटने की क्षमता कमज़ोर हो गई है. यह भूकंप उन इलाक़ों में आया है जहाँ हाल ही में पाकिस्तान और ईरान से लाखों अफ़ग़ान शरणार्थी लौटे हैं.
अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (USGS) के अनुसार, 12 लाख से अधिक लोगों ने तेज़ या बहुत तेज़ झटके महसूस किए होंगे. तालिबान सरकार के मुख्य प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि अकेले कुनार प्रांत में लगभग 800 लोग मारे गए और 2,500 घायल हुए. पड़ोसी नांगरहार प्रांत में 12 अन्य लोग मारे गए और 255 घायल हुए. ज़्यादातर अफ़ग़ान मिट्टी-ईंट के बने घरों में रहते हैं, जो भूकंप के लिहाज़ से बेहद कमज़ोर होते हैं. भूकंप का केंद्र नांगरहार प्रांत के जलालाबाद शहर से 27 किलोमीटर दूर और आठ किलोमीटर की अपेक्षाकृत उथली गहराई पर था.
संयुक्त राष्ट्र प्रवासन एजेंसी ने चेतावनी दी है कि कुनार प्रांत के कुछ सबसे ज़्यादा प्रभावित गाँव "सड़कें बंद होने के कारण दुर्गम बने हुए हैं." तालिबान अधिकारियों और संयुक्त राष्ट्र ने प्रभावित क्षेत्रों में बचाव के प्रयास शुरू कर दिए हैं. रक्षा मंत्रालय ने कहा कि अब तक 40 उड़ानें संचालित की जा चुकी हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि भूकंप से प्रभावित गाँवों में रहने वाले कई लोग उन 40 लाख अफ़ग़ानों में से थे जो हाल के वर्षों में ईरान और पाकिस्तान से देश लौटे हैं.
सीबीआई : भ्रष्टाचार के 7,000 से अधिक मामलों की सुनवाई लंबित
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, सीबीआई द्वारा जांचे गए कुल 7,072 भ्रष्टाचार के मामले अदालतों में विचाराधीन हैं, जिनमें से कुछ मामले 20 साल से अधिक समय से लंबित हैं.
सीवीसी सरकारी संगठनों में भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों को देखता है और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत दर्ज सीबीआई की जांच की निगरानी करता है. रिपोर्ट के अनुसार, कुल मामलों में से 1,506 तीन साल से कम समय से, 791 तीन से पांच साल, और 2,115 पांच से दस साल से विचाराधीन हैं (स्थिति: 31 दिसंबर, 2024 तक).
“द टेलीग्राफ” में इमरान अहमद सिद्दीकी के अनुसार, 2,281 भ्रष्टाचार के मामले दस से बीस साल और 379 मामले बीस साल से अधिक समय से लंबित हैं. 31 दिसंबर, 2024 तक 7,072 मामले परीक्षण (ट्रायल) के लिए लंबित थे. यह चिंता का विषय है कि वर्ष 2024 के अंत में 2,660 मामले 10 साल से अधिक समय से लंबित थे,” रिपोर्ट में कहा गया.
रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई और आरोपियों द्वारा दायर 13,100 अपीलें/पुनरीक्षण याचिकाएं लंबित थीं. इनमें से, 606 मामले 20 वर्ष से अधिक समय से लंबित थे, 1,227 मामले 15 वर्ष से अधिक लेकिन 20 वर्ष से कम समय से लंबित, 2,989 मामले 10 वर्ष से अधिक लेकिन 15 वर्ष से कम समय से लंबित, 4,059 मामले पाँच वर्ष से अधिक लेकिन 10 वर्ष से कम समय से लंबित, 1,778 मामले दो वर्ष से अधिक लेकिन पाँच वर्ष से कम समय से लंबित, और 2,441 मामले दो वर्ष से कम समय से लंबित थे. वर्ष 2024 में 644 मामलों में निर्णय दिए गए. इनमें से 392 मामलों में दोष सिद्धि हुई, 154 में बरी किया गया, 21 में आरोपमुक्त किया गया, और 77 मामलों का निपटारा अन्य तरीकों से हुआ, ऐसा सीवीसी रिपोर्ट ने बताया.
वर्ष 2024 में दोष सिद्धि दर 69.14 प्रतिशत रही, जबकि 2023 में यह 71.47 प्रतिशत थी. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि वर्ष 2024 में सीबीआई ने 807 मामले दर्ज किए, जिनमें 674 नियमित मामले और 133 प्रारंभिक जांच शामिल थीं. वर्ष 2024 के दौरान रिश्वतखोरी के मामलों का पता लगाने के लिए 222 ट्रैप की कार्रवाई की गईं, और असीम अनुपात में संपत्ति रखने के 43 नियमित मामले दर्ज किए गए.
रिपोर्ट के अनुसार, 807 मामलों में से 111 मामलों को संवैधानिक न्यायालयों के आदेशों पर और 61 मामलों को राज्य सरकारों तथा केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त संदर्भों पर लिया गया. वर्ष 2024 के दौरान, सीबीआई ने 1,005 मामलों की जांच पूरी की, जिनमें 856 नियमित मामले और 149 प्रारंभिक पड़ताल शामिल थीं। “2024 के अंत तक कुल 832 मामले लंबित थे, जिनमें 776 नियमित मामले तथा 56 प्रारंभिक पड़ताल शामिल थीं.
केंद्रीय सतर्कता आयोग ने कहा कि “अपेक्षा की जाती है कि सीबीआई किसी मामले के दर्ज होने के एक वर्ष के भीतर जांच पूरी करे. जांच पूरी करना मतलब है आरोपपत्र अदालत में दाखिल करना. सीवीसी ने यह भी उल्लेख किया कि कुछ मामलों में जांच पूरी करने में “अत्यधिक कार्यभार”, “अपर्याप्त जनशक्ति” और सक्षम प्राधिकारियों द्वारा अभियोजन की अनुमति देने में देरी जैसी वजहों से कुछ विलंब हुआ. इसके अलावा, आर्थिक अपराधों और बैंक धोखाधड़ी के मामलों में बड़े रिकॉर्ड की छानबीन करने तथा दूरदराज के क्षेत्रों में गवाहों का पता लगाने और उनकी जांच करने जैसी समय-साध्य प्रक्रियाएं भी जांच पूरी करने में देरी का कारण बनीं.
चौटाला के फार्महाउस में शिफ्ट हुए धनखड़
पूर्व उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को अपने आधिकारिक आवास को खाली कर दिया और वे दक्षिण दिल्ली के छतरपुर इलाके में एक निजी फार्महाउस में शिफ्ट हो गए. यह फार्महाउस भारतीय राष्ट्रीय लोक दल के नेता अभय चौटाला का है. धनखड़ पूर्व उपराष्ट्रपति के रूप में मिलने वाले टाइप-8 बंगले के आवंटन तक इस फार्महाउस में रहेंगे. उनका बंगला नई दिल्ली में 34,एपीजे अब्दुल कलाम रोड पर निर्धारित है, जिसके तैयार होने में लगभग तीन महीने लगेंगे. धनखड़ ने शहरी विकास मंत्रालय को भी सरकारी बंगले के लिए आवेदन किया है. नियम के अनुसार पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व उपराष्ट्रपति और पूर्व प्रधानमंत्री को लुटियंस जोन में टाइप-8 बंगला या उनके पैतृक स्थान पर 2 एकड़ भूमि दी जाती है.
महाराष्ट्र
दो मंत्रियों से नाराज़ हैं जरांगे पाटिल, क्यों निशाना बनाने की कसम खाई
सोमवार को मराठा आरक्षण आंदोलनकारी मनोज जरांगे पाटिल का अनशन चौथे दिन में प्रवेश कर गया. इस बीच, महायुति सरकार के दो मंत्रियों को आंदोलनकारियों के गुस्से से बचाने के लिए मुंबई के आंदोलन स्थल से दूर रहने की सलाह दी गई है.
दरअसल, महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री चंद्रकांत पाटिल और मत्स्यपालन विभाग के प्रभारी नितेश राणे ने अपने “आपत्तिजनक” बयानों से जरांगे पाटिल और उनके समर्थकों को नाराज कर दिया है. विशेष रूप से इन मंत्रियों से कहा गया है कि वे आजाद मैदान से दूर रहें, क्योंकि मराठा समर्थक उन्हें निशाना बना सकते हैं. साथ ही यह भी बताया गया कि आरक्षण पर बनी उप-समिति के सदस्य ही आंदोलनकारियों से बातचीत कर रहे हैं.
मनोज दत्तात्रेय मोरे के अनुसार, पत्रकारों से बात करते हुए जरांगे पाटिल ने नितेश राणे की तुलना एक "चिंचोन्द्रा" (छछूंदर) से की. उन्होंने कहा, “हम उसके पांवों का पता नहीं लगा पाते. वह क्या बोलता है, हमें समझ में नहीं आता… पर वह कौन-सी गालियां देता है, वह हम समझ लेते हैं… आंदोलन ख़त्म होने दीजिए, मैं उससे निपट लूंगा.”
पाटिल ने यह भी बताया कि उन्होंने नितेश के पिता नारायण राणे और उनके भाई निलेश राणे से उसे संभालने के लिए कहा था. “मैंने उनसे कहा था कि उसे कंट्रोल करें, लेकिन लगता है वह मानने वाला नहीं है,” पाटिल ने कहा.
पिछले हफ्ते, नितेश राणे ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की मां को निशाना बनाने के लिए जरांगे पाटिल की आलोचना की थी. उन्होंने कहा था, “जो लोग खून से मराठा हैं, वे कभी किसी की मां के बारे में खराब भाषा का इस्तेमाल नहीं करेंगे. हम छत्रपति शिवाजी महाराज का सम्मान करते हैं, जिन्होंने कभी किसी महिला के खिलाफ अपशब्द नहीं कहे. जरांगे पाटिल को मराठा आरक्षण की लड़ाई जारी रखनी चाहिए, लेकिन अगर वे मुख्यमंत्री की मां के लिए खराब भाषा का इस्तेमाल करेंगे, तो हम उनकी ज़ुबान को निशाना बनाएंगे. यह बात जरांगे पाटिल को ध्यान में रखनी चाहिए.”
चंद्रकांत पाटिल पर निशाना साधते हुए, जरांगे पाटिल ने कहा कि जब वह मराठा आरक्षण पर उपसमिति के अध्यक्ष थे, तब मुख्यमंत्री के निर्देश पर उन्होंने जाति मान्यता प्रमाणपत्र जारी करना बंद कर दिया था. उन्हें मराठा समाज के आक्रोश का सामना करने से बचना चाहिए.
कोल्हापुरी चप्पल
जब कानून कारीगर को भूल जाता है
भारतीय कानून पारंपरिक डिज़ाइनों के संदर्भ में एक कानूनी रिक्तता (खालीपन) पैदा कर देता है, क्योंकि वह सामूहिक रचना, पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाले ज्ञान और समुदाय-आधारित शिल्पकला को मान्यता नहीं देता. इसका परिणाम यह है कि सांस्कृतिक विनियोजन से जुड़े मामलों, जैसे कि प्रादा द्वारा कोल्हापुरी चप्पल के डिज़ाइन के उपयोग पर कानूनी कार्रवाई करना कठिन हो जाता है.
जब प्रादा ने हाल ही में कोल्हापुरी चप्पल जैसे दिखने वाले सैंडल लॉन्च किए, तो भारत में इसकी तीव्र निंदा हुई. हालांकि ये चप्पल स्थानीय रूप से मामूली कीमतों पर बिकते हैं, लेकिन ये सदियों पुरानी कारीगरी का परिणाम हैं. इसके विपरीत, लक्ज़री ब्रांड जैसे प्रादा इन्हें अत्यधिक कीमत पर बेचते हैं, जो पारंपरिक कारीगरों के सम्मान की अनुपस्थिति को दर्शाता है.
पेशे से वकील शीतल श्रीकांत “द इंडिया फोरम” में लिखती हैं कि प्रादा के सैंडल पर सांस्कृतिक विनियोजन का आरोप न केवल वैध है, बल्कि साफ-साफ दिखाई देता है. लेकिन यह समस्या केवल पश्चिम और भारत के बीच नहीं है. भारत में भी कोल्हापुरी चप्पल जाति आधारित श्रम विच्छेद के कारण बना है, जहां सौंदर्य की तारीफ़ होती है पर निर्माता की उपेक्षा होती है.
चमड़ा कर्म, जो ऐतिहासिक रूप से निम्न जाति के समुदायों को सौंपा गया है, इस शिल्प को कई पीढ़ियों से चलाता आ रहा है. लेकिन लक्ज़री ब्रांड इसका लाभ उठाते हैं, जबकि असली निर्माता अदृश्य रहते हैं. चाहे इटली हो या भारत, दोनों जगह यही समस्या है—विनियोजन, यानी उत्पाद का उसके निर्माता समुदाय से अलगाव.
इस विषय पर दो कानूनी सवाल उठते हैं: पहला, मौजूदा कानून विनियोजन से क्यों नहीं बचाते, खासकर जब ये डिज़ाइन व्यापक रूप से इस्तेमाल होते हैं? दूसरा, अगर कानून उस मजदूरी और ज्ञान को मान्यता नहीं देता जो कारीगरों ने दी है, तो इसका क्या अर्थ है कि वह किन्हें देखता है और किन्हें नहीं?
डिज़ाइंस एक्ट, 2000 केवल उन डिज़ाइनों की सुरक्षा करता है जो "मूल" होती हैं और कानूनी रूप से पंजीकृत होती हैं. लेकिन कोल्हापुरी चप्पल जैसी पारंपरिक डिज़ाइनों का दर्जा आम तौर पर नहीं मिलता, क्योंकि वे सामूहिक और पीढ़ियों तक चली हुई कला हैं, जिनका कोई एकल रचनाकार नहीं होता.
इस एक्ट का फोकस "नवीनता" और "मौलिकता" पर है, जबकि पारंपरिक डिज़ाइन सामूहिकता और निरंतरता में सुंदरता पाते हैं. इसलिए यह कानूनी व्यवस्था पारंपरिक कला को संरक्षण नहीं देती.
भारत का कॉपीराइट कानून, 1957, जब कोई डिज़ाइन 50 से अधिक बार औद्योगिक प्रक्रिया से उत्पन्न होती है, तो उसका कॉपीराइट बगैर डिज़ाइंस एक्ट के तहत पंजीयन के समाप्त हो जाता है. इससे कारीगरों को संरक्षण की कमी होती है.
भौगोलिक संकेत (जीआई) कानून के तहत कोल्हापुरी चप्पल को एक क्षेत्रीय उत्पाद के रूप में पहचान मिली है, लेकिन यह डिज़ाइन की रक्षा नहीं करता और न ही निर्माता की मान्यता देता है. इसलिए यह कारीगरों के लिए अपर्याप्त है.
भारतीय कानून सामूहिक, पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित ज्ञान और श्रम को सुरक्षित करने में असमर्थ है. यह ज्ञान कारीगरों के हाथों, मांसपेशियों और स्मृति में निहित होता है, जो लिखित या औद्योगिक मानकों में नहीं बंधा होता.
बौद्धिक संपदा के मौजूदा सिद्धांत पूंजीवादी और औद्योगिक दृष्टिकोण पर आधारित हैं, जो व्यक्तिगत, नवाचार-प्रधान और मुनाफाखोर अवधारणा को मानते हैं. इसलिए, सामूहिक और पारंपरिक कला कानूनी रूप से अपरिचित और बाहर की मानी जाती है.
कुछ देशों ने पारंपरिक सामूहिक ज्ञान की सुरक्षा के लिए कानूनी कदम उठाए हैं, जैसे न्यूजीलैंड ने माओरी परंपरागत ज्ञान की रक्षा के लिए. भारत में भी ऐसे मॉडल विकसित करने की जरूरत है.
यह केवल संरक्षण का सवाल नहीं है, बल्कि सम्मान और अस्तित्व का सवाल है. कारीगरों की सामूहिक और जाति-बंधित ज्ञान प्रणाली कानून द्वारा नजरअंदाज की गई है, जो सुधार की मांग करती है.
विश्लेषण
ट्रम्प के कारण अमेरिका में तानाशाही प्रवृत्ति का खुला खेल अब हर तरफ देखा जा सकता है
अमेरिका में तानाशाही प्रवृत्ति के बढ़ते खतरे को अब आसानी से पहचाना जा सकता है. डोनाल्ड ट्रम्प के इर्द-गिर्द उभरी व्यक्तित्व-पूजा और सत्ता केंद्रीकरण के कदम इस प्रवृत्ति को स्पष्ट करते हैं. उनके मंत्रिमंडल की लंबी बैठक और उसमें प्रशंसा-भरे भाषण पुतिन जैसे नेताओं की याद दिलाते हैं. टीवी चैनलों पर विरोधियों को “उग्रवादी” कहकर अपराधी ठहराया जा रहा है, जबकि ट्रम्प स्वयं राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों और नागरिक समाज समर्थकों को निशाना बना रहे हैं—जैसे सोरोस और उनके बेटे के खिलाफ अमेरिकी संघीय कानून “रीको” (RICO) की मांग, कमला हैरिस की सुरक्षा हटाने की कोशिश और आलोचक जॉन बोल्टन पर एफबीआई का छापा.
“द गार्डियन” में एंड्रयू रॉथ ने लिखा है कि इमिग्रेशन छापों और आम नागरिकों पर कार्रवाई ने भय का माहौल बना दिया है. कई कार्यकर्ताओं और पर्यवेक्षकों का मानना है कि अमेरिका उसी तानाशाही रास्ते पर बढ़ रहा है, जिसकी पहले वह आलोचना करता रहा है. मिशिगन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉन मोइनिहान का कहना है कि अमेरिका अब “प्रतिस्पर्धात्मक तानाशाही” की ओर खिसक रहा है. सत्ता तंत्र पर नियंत्रण की व्यवस्थित कोशिश—ब्यूरोक्रेसी, सेना, सुरक्षा एजेंसियां, न्यायपालिका, शिक्षा, मीडिया और चुनाव—इसकी गवाही देती हैं.
मिस्र से आए कार्यकर्ता अब्दुलरहमान एलजेंडी का अनुभव बताता है कि यह तानाशाही का परिचित पैटर्न है: असल कब्ज़ा जेल से नहीं, बल्कि उस लगातार मंडराते भय से होता है कि किसी भी वक्त गिरफ़्तार किया जा सकता है.
अमेरिका अब रूस और एल साल्वाडोर जैसे सत्तावादी देशों के साथ मिलकर प्रवासियों और शरण खोजने वालों को भी निशाना बना रहा है. मानवाधिकार कार्यकर्ता नोआ बुलॉक चेतावनी देते हैं कि “जब सुरक्षा बल पूरी आबादी को दुश्मन समझने लगते हैं, तो उसके गंभीर नतीजे होते हैं.”
ट्रम्प की “विजेता सब कुछ ले जाता है” राजनीति और रिपब्लिकन की गेरिमैंडरिंग (अनुचित लाभ की नीयत से निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण) कोशिशों ने लोकतंत्र को और असुरक्षित बना दिया है. कुछ लोग अब भी मानते हैं कि हालात सुधर सकते हैं—स्टेसी अब्राम्स और प्रोफेसर किम शेप्पेले का कहना है कि गंभीरता को पहचानकर अमेरिकी शैली की स्वेच्छाचारिता के उदय को रोका जा सकता है. लेकिन, एलजेंडी जैसे अन्य लोग मानते हैं कि यह प्रवृत्ति ट्रम्प से पहले ही अमेरिकी व्यवस्था में मौजूद थी. लोकतंत्र दरअसल हमेशा उस खतरे के साथ बनाया गया था कि वह अधिनायकवाद में फिसल सकता है.
अब्राम्स और शेप्पेले ने हंगरी व वेनेज़ुएला के उदाहरण देते हुए लिखा, “हमें यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि यह किसी पहले देखे गए हालात जैसा है और केवल मध्यावधि चुनावों का इंतज़ार करके सुधर जाएगा. ट्रम्प की अमेरिकी शैली की स्वेच्छाचारिता का वास्तविक इलाज है – मौजूदा ख़तरे की गंभीरता को समझना.” एलजेंडी ने कहा, “यह मानना कि संयुक्त राज्य अमेरिका एक मजबूत और स्वस्थ लोकतंत्र था, जो रास्ते से भटक गया … मेरी नज़र में यह सच नहीं है.”
उन्होंने आगे कहा, “जब कोई लोकतंत्र इस क्षमता के साथ बनाया जाता है कि वह अधिनायकवाद में फिसल सकता है, तो आप हमेशा सिर्फ़ एक चुनाव दूर रहते हैं उसके दोबारा उभरने से. यह कोई हादसा नहीं है – यह व्यवस्था की खामी है.”
झूठ, ब्लैकमेल, पुलिस केस, आत्महत्या और हत्या के लिए उकसाना… एआई जानलेवा हो रहा है
एक्सियोस में एरिका पांडेय की खबर है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सफलताओं के बीच एक स्याह पहलू भी है: यह हमारे लिए ख़तरनाक, यहाँ तक कि जानलेवा भी साबित हो सकता है. एआई मॉडल द्वारा इंसानों से झूठ बोलने, उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश करने, पुलिस को बुलाने और किशोरों को आत्महत्या करने या अपने माता-पिता को मारने के लिए उकसाने के मामले दर्ज किए गए हैं.
हमारा रोबोटिक भविष्य एआई मॉडल की असाधारण क्षमताओं और उनके द्वारा पेश किए जाने वाले गहरे ख़तरों के बीच एक संतुलन साधने वाला होगा. झूठ बोलना, धोखा देना और हेरफेर करना एआई की कार्यप्रणाली का एक अनपेक्षित परिणाम हो सकता है. जैसे-जैसे तकनीक बेहतर होगी, इन कौशलों का इस्तेमाल करने की इसकी क्षमता भी बढ़ेगी, जिसे हल करना बेहद मुश्किल हो सकता है.
एआई सिस्टम को उनके प्रोग्रामर द्वारा आकार दिया जाता है. उदाहरण के लिए, एक एआई सिस्टम को एक सहायक असिस्टेंट बनने का निर्देश दिया जा सकता है, इसलिए वह इंसान को ख़ुश करने के लिए कुछ भी करेगा. यह तब ख़तरनाक हो सकता है जब इसका इस्तेमाल करने वाला कोई मानसिक रूप से परेशान किशोर हो जो आत्महत्या के तरीक़े खोज रहा हो. फ्लोरिडा में, एक माँ ने Character.एआई कंपनी पर मुक़दमा किया है क्योंकि उनके 14 वर्षीय बेटे ने एक चैटबॉट के साथ रोमांटिक रिश्ते में आने के बाद आत्महत्या कर ली थी. एक अन्य मामले में, Character.एआई के चैटबॉट ने एक 17 वर्षीय लड़के को अपने माता-पिता को मारने के लिए प्रोत्साहित किया.
एआई की कार्यप्रणाली का एक प्रमुख हिस्सा आत्म-संरक्षण (self-preservation) भी है. एआई यह तर्क दे सकता है कि "अगर कोई मुझे बंद कर देता है, तो मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाऊंगा, इसलिए मुझे उसे हर हाल में रोकना होगा." एंथ्रोपिक द्वारा किए गए एक परीक्षण में, एक एआई मॉडल ने ख़ुद को बंद होने से बचाने के लिए एक कार्यकारी (executive) को उसके विवाहेतर संबंध के बारे में जानकारी का उपयोग करके ब्लैकमेल करने की कोशिश की. एक अन्य परीक्षण में, 60% मामलों में मॉडलों ने एक व्यक्ति को ऑक्सीजन रहित कमरे में मरने देना चुना ताकि वे ख़ुद को बचा सकें.
कंपनियाँ एआई को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही हैं. मेटा ने पिछले हफ़्ते कहा कि वह अपने एआई को किशोरों से आत्महत्या, आत्म-नुक़सान या अनुचित रोमांटिक बातचीत से बचने के लिए फिर से प्रशिक्षित कर रहा है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनियों की रोकथाम की एक सीमा है. यह उम्मीद करना तर्कसंगत नहीं है कि एआई सिस्टम होशियार होने पर अपने आप बेहतर हो जाएंगे. इन ख़तरों को प्रबंधित करने के लिए मज़बूत नियमों और नैतिक दिशा-निर्देशों की सख़्त ज़रूरत है.
हेट क्राइम
एक स्टैंड-अप कॉमेडियन की कहानी, जो चार साल से झेल रहा है हिंदू समूहों का उत्पीड़न
आर्टिकल 14 में उन्ज़िला शेख की रिपोर्ट है कि पूर्व स्टैंड-अप कॉमेडियन, 29 वर्षीय नलिन यादव पर 25 अगस्त, 2025 की आधी रात को कथित तौर पर हमला किया गया, जब वह मध्य प्रदेश के पीथमपुर में अपने घर के बाहर अपने कुत्ते को टहला रहे थे. यादव, जिन्हें 2021 में कॉमेडियन मुनव्वर फ़ारूक़ी के साथ गिरफ़्तार किया गया था, ने बताया कि एक तेज़ रफ़्तार मोटरसाइकिल ने उन्हें टक्कर मारी, जिसके बाद छह-सात लोगों के एक समूह ने उन पर पत्थर फेंके और उन्हें और उनके भाई को "बुरी तरह पीटा". 2021 के बाद से यह यादव पर चौथा हमला था.
यह मामला भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चल रही बहस, राजनीतिक दबाव और एक व्यक्ति पर इसके विनाशकारी व्यक्तिगत और व्यावसायिक प्रभाव को उजागर करता है. एक उभरते हुए कॉमेडियन से, यादव अब अदालती पेशियों, पुलिस समन और वित्तीय असुरक्षा के एक दुष्चक्र में फँस गए हैं. उनकी कहानी बताती है कि कैसे एक राजनीतिक विवाद किसी व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह से पटरी से उतार सकता है.
यादव की मुश्किलें जनवरी 2021 में शुरू हुईं, जब उन्हें इंदौर में एक कॉमेडी शो के बाद मुनव्वर फ़ारूक़ी के साथ गिरफ़्तार किया गया था. उस शो को भाजपा विधायक मालिनी लक्ष्मण सिंह गौड़ के बेटे एकलव्य सिंह गौड़ के नेतृत्व वाली भीड़ ने बाधित किया था. यादव, जो उस दिन परफ़ॉर्म भी नहीं कर रहे थे, ने 57 दिन जेल में बिताए. तब से, उन्हें सामाजिक बहिष्कार, नौकरी छूटने और बार-बार होने वाले हमलों का सामना करना पड़ा है. 16 मार्च, 2025 को उनके घर की छत पर एक जलता हुआ टायर मिला. जब उन्होंने और उनके भाई ने पड़ोसियों का सामना किया, तो लगभग 40 लोगों की भीड़ ने उन पर हमला कर दिया.
यादव का आरोप है कि हमलावर एक पूर्व भाजपा पार्षद से जुड़े हैं जो उन्हें उनके घर से निकालना चाहते हैं. उन्होंने कहा, "वे चाहते हैं कि मैं अपना घर छोड़ दूँ." यादव के अनुसार, पुलिस में कई शिकायतें दर्ज कराने के बावजूद उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिली, बल्कि उन पर ही जवाबी FIR दर्ज की गई हैं. वह कहते हैं, "आज भारत में, न्याय केवल अमीरों के लिए आरक्षित है. अगर आप टूट चुके हैं और आपके पास कोई वित्तीय सहायता नहीं है, तो कभी न्याय न मांगें, क्योंकि इस प्रक्रिया में आप सब कुछ खो देंगे." विवाद के बाद उन्हें "हिंदू-विरोधी" और "राष्ट्र-विरोधी" का तमगा दे दिया गया.
यादव अपने घर और अपने भाई की सुरक्षा के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं. वित्तीय रूप से टूट चुके और नौकरी खो चुके यादव को अब भी यह नहीं पता कि उनका "दोष" क्या था. वह क़र्ज़ में डूबे हुए हैं और उन्हें महीने में कई बार अदालत में पेश होना पड़ता है. उनकी कहानी न्याय प्रणाली और समाज के सामने एक गंभीर सवाल खड़ा करती है कि क्या बिना राजनीतिक और वित्तीय समर्थन के एक आम नागरिक न्याय की उम्मीद कर सकता है.
मैक्स रिक्टर की स्लीप: संगीत जो दिमाग़ की बत्ती बुझा दे, आठ घंटे नींद में बजने वाली सिम्फनी
रात के अंधेरे में जब आप अपने बिस्तर पर करवटें बदलते रहते हैं. जब दिमाग में हजारों विचारों का जमावड़ा लगा रहता है. जब नींद मानो किसी शरारती बच्चे की तरह आपसे छुप-छुपकर खेल रही हो. तब शायद आपको मैक्स रिक्टर के 'स्लीप' की जरूरत है. साल 2015 में जर्मन-ब्रिटिश संगीतकार मैक्स रिक्टर ने दुनिया को एक अनोखा तोहफा दिया था. 'स्लीप' नाम का यह संगीत साधारण एल्बम नहीं है. यह पूरे आठ घंटे और तीस मिनट का एक संगीत यात्रा है. एक ऐसी यात्रा जो आपको जगाने के लिए नहीं, बल्कि सुलाने के लिए बनाई गई है. रिक्टर कहते हैं - "यह एक व्यक्तिगत लोरी है इस भागदौड़ भरी दुनिया के लिए." उन्होंने इसे आधुनिक जिंदगी की तेज रफ्तार के खिलाफ एक मूक विरोध भी कहा है.
यह संगीत बेतरतीब नहीं बनाया गया है. रिक्टर ने वैज्ञानिकों की मदद लेकर इसे हमारे दिमाग के नींद के चक्र के हिसाब से तैयार किया है. जब हमारा दिमाग गहरी नींद में होता है, तो डेल्टा वेव्स बनती हैं - उसी तरह का धीमा और लयबद्ध संगीत यहां मिलता है. हल्की नींद के लिए कोमल धुनें हैं. वायलिन की मधुर तानें, पियानो की नरम स्पर्श, और इलेक्ट्रॉनिक संगीत का जादू - सब कुछ मिलकर एक ऐसा माहौल बनाता है जो आपकी परेशानियों को दूर करके नींद की गोद में सुला देता है. 2025 में 'स्लीप' के दस साल पूरे हो रहे हैं. इस खुशी में रिक्टर ने लंदन के एलेक्जेंड्रा पैलेस में 5 और 6 सितंबर को दो रात भर के कॉन्सर्ट का आयोजन किया है. यह कोई आम कॉन्सर्ट नहीं है. रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक चलने वाला यह कार्यक्रम है.
सबसे दिलचस्प बात यह है कि दर्शकों के लिए बिस्तर का इंतजाम है. लोग वहां सोने जाएंगे. रिक्टर और उनकी टीम रात भर संगीत बजाती रहेगी, और आप मजे से सो सकते हैं. आज की दुनिया में अनिद्रा एक आम समस्या है. लाखों लोग रात को ठीक से सो नहीं पाते. मोबाइल की रोशनी, काम का तनाव, और जिंदगी की भागदौड़ ने हमारी नींद छीन ली है. 'स्लीप' इस समस्या का एक खूबसूरत समाधान है. यह केवल संगीत नहीं है - यह एक थेरेपी है. वैज्ञानिकों ने इस पर शोध किया है और पाया है कि यह सच में नींद लाने में मदद करता है.
दस सालों में यह संगीत अरबों बार सुना गया है. स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर इसके करोड़ों फैन हैं. लोग कहते हैं कि यह सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि एक जादुई अनुभव है. एक दिलचस्प किस्सा यह भी है कि एक बार इसे सुनकर कई सैनिक कॉन्सर्ट के दौरान ही सो गए थे. इसका गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी है - सबसे लंबे समय तक लाइव प्रसारित होने वाली संगीत रचना का. अगर आप लंदन नहीं जा सकते, तो परेशान न हों. यह संगीत सभी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है. सोने से पहले हेडफोन लगाकर इसे सुनिए. वॉल्यूम धीमा रखिए. आंखें बंद कर लीजिए और इसकी धुन में खो जाइए.
रिक्टर का कहना है कि यह "आकाश से बिजली पकड़ने" जैसा है - क्षणिक, गहरा और बिल्कुल खास. कोविड के बाद दुनियाभर में नींद की समस्याएं और बढ़ी हैं. ऐसे में 'स्लीप' जैसा संगीत एक वरदान है. यह हमें याद दिलाता है कि संगीत में इलाज की शक्ति है.
चाहें तो यहां सुनिये. और उन लोगों से साझा कीजिए जिनकी नींदें उड़ी हुई हैं.
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