03/04/2025 : वक़्फ़ बिल किसकी 'उम्मीद' | वायु सेना पर मंडराती चुनौतियां | चीन से आया सहयोग का संदेश | दक्षिण भारत के हितों का सवाल | सीमा पर घुसपैठ | नफ़रत पर कंटेट का धंधा। हाई कोर्ट जज का तबादला
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां:
इतना हंगामा क्यों है वक़्फ़ कानून को लेकर
वायु सेना के आकाश में मंडराती चुनौतियां
पन्नू षड्यंत्र में एक और 'भारतीय एजेंट '?
संघ कार्यकर्ताओं को मथुरा काशी आंदोलन में शामिल होने की छूट
भारत -चीन की कूटनीतिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ
ट्रम्प का बदला मस्क के टेस्ला से, बिक्री 13% गिरी
जलती झोपड़ी से अपना स्कूल बैग बचा लाई बच्ची का इंटरव्यू
तो दक्षिण भारत के हित हाशिये पर चले जाएंगे
कॉमेडी शो देखने गये बैंकर को पुलिस का समन, कुणाल कामरा ने उससे माफ़ी मांगी
नफरत पर 'कंटेट का धंधा' : स्क्रिप्टेड वीडियो और सांप्रदायिक उकसावे
तीन ब्रिटिश नागरिकों की हत्या के मामले में छह लोगों को बरी का फैसला बरकरार
जिसे 26 दिन बाद चीफ जस्टिस बनना था, उस हाई कोर्ट जज का जम्मू हाईकोर्ट से तबादला
अमेरिकी सीनेटर बोलता रहा, बोलता रहा, बोलता रहा
हंगामे के बीच वक़्फ़ बिल लोकसभा में पारित
सरकार, विपक्ष की तमाम आपत्तियों और विरोध के बावजूद वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2024 को लोकसभा में पारित कराने में कामयाब हो गई. मध्य रात्रि वोटिंग हुई और 232 के मुकाबले 288 मतों से विधेयक पास हो गया. इसके पहले बुधवार सुबह अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने वक़्फ़ संशोधन बिल 2024 लोकसभा में पेश किया. रिजिजू ने घोषणा की कि वक़्फ़ विधेयक का नाम बदलकर "यूनिफाइड वक़्फ़ मैनेजमेंट एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट (UMEED) बिल" रखा जाएगा. उन्होंने कहा, "हमने जेपीसी द्वारा दिए गए कई सुझावों को स्वीकार किया है और एक महत्वपूर्ण संशोधन पेश किया है. यह 'उम्मीद' (आशा) देगा कि एक नया सवेरा आने वाला है.” विधेयक को केंद्र सरकार में शामिल टीडीपी, जेडीयू और एलजेपी ने समर्थन दिया.
रिजिजू ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 5 मार्च 2014 को 123 प्रमुख संपत्तियों को दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड को ट्रांसफर कर दिया था. ऐसा लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अल्पसंख्यक वोटों के लिए किया गया, पर वे चुनाव हार गए.
रिजिजू ने कहा कि अगर हमने आज यह संशोधन बिल पेश नहीं किया होता, तो जिस इमारत में हम बैठे हैं, उस पर भी वक़्फ़ संपत्ति होने का दावा किया जा सकता था. यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में नहीं आती तो कई अन्य संपत्तियां भी गैर-अधिसूचित हो जातीं. केंद्रीय मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि विधेयक का उद्देश्य किसी भी धार्मिक प्रथा या किसी मस्जिद के प्रबंधन में हस्तक्षेप करना नहीं है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा, “अनजाने में या राजनीतिक कारणों से विपक्षी सांसदों द्वारा कई गलत सूचनाएं फैलाई जा रही हैं. वक़्फ़ का अर्थ है ‘अल्लाह के नाम पर धार्मिक दान’. वक़्फ़ एक प्रकार का धर्मार्थ दान है, जिसे वापस लेने का कोई इरादा नहीं होता. दान केवल अपनी संपत्ति का किया जा सकता है, सरकारी संपत्ति का नहीं.” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया, “वक़्फ़ में किसी गैर-मुस्लिम सदस्य को नियुक्त करने का कोई प्रावधान नहीं है. हम ऐसा करने की इच्छा नहीं रखते. मुसलमानों के धार्मिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं होगा. वे (विपक्ष) इसे अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए विरोध कर रहे हैं.” शाह ने कहा, “एक सदस्य ने कह दिया कि यह विधेयक अल्पसंख्यक स्वीकार नहीं करेंगे. क्या धमकी दे रहे हो भाई? संसद का कानून है, सबको स्वीकार करना पड़ेगा.
लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने एनडीए सरकार पर हमला करते हुए कहा, “यह विधेयक संविधान की बुनियादी संरचना पर ‘4 डी’ हमला है. इस विधेयक के माध्यम से सरकार संविधान को कमजोर, अल्पसंख्यक समुदायों को बदनाम, भारतीय समाज को विभाजित और अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों से वंचित करना चाहती है. हाल ही में भाजपा की डबल-इंजन सरकारों ने लोगों को सड़कों पर नमाज पढ़ने की अनुमति नहीं दी. आपके पास कितने अल्पसंख्यक सांसद हैं?”
ओवैसी ने विधेयक फाड़ा, कहा- मुसलमानों को जलील करना मकसद : चर्चा के दौरान एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि इस बिल का मकसद मुसलमानों को जलील करना है. मैं गांधी की तरह वक़्फ़ बिल को फाड़ता हूं. बिल फाड़ने के बाद ओवैसी संसद की कार्यवाही छोड़कर चले गए.
स्टालिन की मांग, मोदी बिल वापस लें : इस बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक, 2024 को वापस लेने की मांग की. स्टालिन ने कहा कि संविधान प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार देता है और चुनी हुई सरकारों का कर्तव्य है कि वे इस अधिकार की रक्षा करें.
सियासी दाँव
वक़्फ़ बिल से ‘उम्मीद’ किसकी, किस तरह की?
शेक्सपियर की जूलियट ने भले ही कहा हो, "नाम में क्या रखा है?" लेकिन भारत में, नाम केवल शब्द नहीं होते. और भारतीय जनता पार्टी इसे भली-भांति समझती है.
पिछले एक दशक में, ‘नाम बदलना’ उसके शासन करने के सबसे प्रमुख औजारों में से एक बन गया है. इलाहाबाद अब प्रयागराज हो गया है. फैज़ाबाद अब अयोध्या है. औरंगाबाद को छत्रपति संभाजीनगर का नाम दिया गया है. मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया गया है. यहां तक कि आगरा में निर्माणाधीन मुगल संग्रहालय का नाम बदलकर शिवाजी के सम्मान में रख गया है.
“द टेलीग्राफ” में श्रीरूपा दत्ता की रिपोर्ट के अनुसार इस रणनीति का नवीनतम संस्करण वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक है, जिसे अब एक नए संक्षिप्त नाम, “उम्मीद” के साथ पुनः प्रस्तुत किया गया है—एक उर्दू शब्द जिसका हिंदी अर्थ है "आशा". लेकिन यह "आशा" वास्तव में क्या है?
इस विवाद के केंद्र में भारत की विशाल वक़्फ़ संपत्तियां हैं—8.7 लाख संपत्तियां, जो 9.4 लाख एकड़ में फैली हुई हैं, जिससे वक़्फ़ देश में भारतीय रेलवे और सशस्त्र बलों के बाद तीसरा सबसे बड़ा भूमि धारक बन गया है. इस्लामिक कानून के तहत, ये संपत्तियाँ धार्मिक या दान के उद्देश्यों के लिए समर्पित हैं और निजी या सरकारी हाथों द्वारा इन पर दावा नहीं किया जा सकता. उम्मीद विधेयक इसे बदलने का प्रयास करता है.
ये संशोधन प्रस्तावित हैं :
वक़्फ़ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर एकीकृत वक़्फ़ प्रबंधन सशक्तीकरण, दक्षता और विकास अधिनियम करना.
वक़्फ़ बोर्ड की शक्ति को समाप्त करना जो यह निर्धारित करता है कि कोई संपत्ति वक़्फ़ है या नहीं.
सरकारी संपत्तियों की वक़्फ़ स्थिति को रद्द करना.
केंद्रीय वक़्फ़ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को अनुमति देना और दो महिलाओं को अनिवार्य करना.
पैटर्न : उम्मीद विधेयक बीजेपी की पुनर्नामकरण की हालिया कड़ी है, यह पहला नहीं है. पार्टी ने शहरों से लेकर सरकारी योजनाओं तक सब कुछ पुनः ब्रांड करने की आदत बना ली है. 2014 और 2024 के बीच, बीजेपी सरकार ने कांग्रेस-युग की कम से कम 23 योजनाओं का नाम बदल दिया और उन्हें नई पहल के रूप में प्रस्तुत किया. प्रधानमंत्री जन धन योजना, बेसिक सेविंग्स बैंक डिपॉजिट अकाउंट का एक नया नाम था. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना राष्ट्रीय बालिका दिवस कार्यक्रम का पुनः पैकेजिंग था. दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना राजीव ग्रामीण विद्युतीकरण योजना का पुनर्नामकरण था.
"यहां तक कि बड़े पैमाने पर शहरी विकास परियोजनाएं भी उसी सूत्र का अनुसरण करती थीं—अटल मिशन फॉर रीजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT-अमृत) वास्तव में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी पुनर्नवीनीकरण मिशन (JNNURM) था, केवल एक अलग नाम के साथ."
कुलमिलाकर, ‘उम्मीद’ विधेयक के साथ, भाजपा ने एक बार फिर से नाम बदलने की रणनीति का इस्तेमाल किया है. प्रत्येक नाम परिवर्तन को ऐतिहासिक "गलतियों" को सुधारने के रूप में उचित ठहराया जाता है. नाम बदलना यह बताता है कि चीजें अब किस बात का प्रतिनिधित्व करती हैं. प्रयागराज अब अकबर के शासनकाल का इलाहाबाद नहीं है, बल्कि अब यह हिंदू विरासत का प्रतीक है. लेकिन, इस बार नाम परिवर्तन में और भी बहुत कुछ है. दांव बहुत अधिक हैं - शहरों के नाम या सरकारी योजनाओं से अधिक. यह जमीन के बारे में है, नियंत्रण के बारे में है, शक्ति के बारे में है.
नाम बदलना केवल भाजपा के लिए विशिष्ट नहीं है. कांग्रेस ने भी दशकों से नाम बदलने का खेल खेला है. इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से लेकर राजीव गांधी स्टेडियम तक, कांग्रेस नेताओं ने सुनिश्चित किया है कि उनकी विरासत सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में स्थापित हो. सभी दलों ने नामकरण को एक राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है... क्योंकि भारतीय राजनीति में, नाम केवल शब्द नहीं हैं; वे इतिहास के दावे हैं, और जो पार्टी सत्ता में है उसके लिए नैरेटिव कंट्रोल हैं. अब सवाल केवल "नाम में क्या रखा है?" नहीं है. असली सवाल यह है... कौन इसका निर्णय करता है?
कोर्ट में चुनौती देगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड : भारत के मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रमुख संगठन, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने घोषणा की कि वह वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक को अदालत में चुनौती देगा और इस "काले कानून" के खिलाफ समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए सड़कों पर लड़ाई लड़ेगा. बोर्ड के सदस्य मोहम्मद अदीब ने दावा किया कि यह मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों को हड़पने का प्रयास है. अदीब ने कहा, "उन्होंने यह सोचकर तमाशा शुरू किया है कि वे हमारी संपत्तियां छीन सकते हैं. क्या यह स्वीकार्य है? यह मत सोचिए कि हम हार गए हैं. अभी तो इस विधेयक के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत है. यह देश को बचाने की लड़ाई है, क्योंकि प्रस्तावित कानून भारत के मूल ताने-बाने को खतरे में डालता है."
संविधान और कानून के जानकार फैज़ान मुस्तफा का कहना है कि वक्फ संशोधन विधेयक के कुछ प्रावधानों का स्वागत किया जा सकता है. मसलन, हमारा देश विवधताओं वाला है, इस लिहाज से वक्फ बोर्ड में महिलाओं, ओबीसी और गैर मुस्लिम को रखे जाने के प्रावधान को मैं व्यक्तिगत तौर पर ठीक मानता हूं. लेकिन, हममें से कई लोगों की यह धारणा गलत है कि वक्फ बोर्ड पादरियों की एक “निजी ईकाई” है. सच्चाई यह है कि यह एक वैधानिक ईकाई है और इसमें नियुक्तियां राज्य सरकारों द्वारा की जाती हैं.
एक्सप्लेनर
इतना बवाल क्यों है वक़्फ़ कानून को लेकर
“द हिंदू” के अनुसार मूल विधेयक ने "उपयोगकर्ता द्वारा वक़्फ़" की अवधारणा को समाप्त कर दिया था. "उपयोगकर्ता द्वारा वक़्फ़" एक इस्लामी कानूनी परंपरा पर आधारित सिद्धांत, जो संपत्तियों को उनके निरंतर सामुदायिक उपयोग के आधार पर धार्मिक या परोपकारी संपत्ति के रूप में मान्यता देता है, भले ही उनके पास औपचारिक दस्तावेज़ न हो. ऐतिहासिक रूप से, मौखिक घोषणाओं या प्रथाओं के माध्यम से कई मस्जिदें, कब्रिस्तान, दरगाहें और अन्य धार्मिक स्थल स्थापित किए गए थे, और उनकी वक़्फ़ स्थिति पीढ़ियों तक सार्वजनिक उपयोग द्वारा वैधता प्राप्त करती थी.
वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक का प्रमुख प्रावधान : संशोधित विधेयक स्पष्ट करता है कि "उपयोगकर्ता द्वारा वक़्फ़" संपत्तियां, जो कानून लागू होने से पहले पंजीकृत हैं, अपनी स्थिति बनाए रखेंगी, जब तक कि वे विवादित न हों या उन्हें सरकारी संपत्ति घोषित न किया जाए. एक प्रावधान को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं, जिसमें यह अनिवार्य किया गया है कि व्यक्ति को "दिखाना या साबित करना होगा कि वे कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं" ताकि वक़्फ़ स्थापित किया जा सके.
'गैर-मुसलमानों' का समावेश : नए विधेयक में गैर-मुसलमानों को केंद्रीय वक़्फ़ परिषद, राज्य वक़्फ़ बोर्ड और वक़्फ़ न्यायाधिकरण जैसे प्रमुख संस्थानों में नियुक्ति की अनुमति देने वाले प्रावधानों को बनाए रखा गया है. यह केंद्र सरकार को केंद्रीय वक़्फ़ परिषद में तीन सांसदों (दो लोकसभा और एक राज्यसभा से) को नामांकित करने का अधिकार देता है, बिना यह अनिवार्य किए कि वे मुस्लिम हों. इसी प्रकार, विधेयक गैर-मुस्लिम मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति की अनुमति देता है और राज्य सरकारों को वक़्फ़ बोर्डों में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति अनिवार्य करता है. हालांकि संशोधित विधेयक में संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की इस सिफारिश को शामिल किया है कि राज्य सरकार का वह अधिकारी जो वक़्फ़ बोर्ड का हिस्सा होगा, "वक़्फ़ मामलों से संबंधित" संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी होगा.
वक़्फ़ अधिनियम में संशोधन : मुख्य प्रस्ताव ये हैं -
वक़्फ़ बोर्डों में गैर-मुस्लिम और मुस्लिम महिलाओं को शामिल करने का प्रस्ताव
वक़्फ़ बोर्ड को संपत्ति को वक़्फ़ घोषित करने की शक्ति से वंचित किया गया है
वक़्फ़ ट्रिब्यूनल की संरचना को दो सदस्यीय के बजाय तीन सदस्यीय किया गया है. प्रत्येक ट्रिब्यूनल में एक जिला न्यायाधीश, राज्य सरकार का संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी और मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र में विशेषज्ञ शामिल होंगे.
अधिनियम लागू होने से पहले गठित ट्रिब्यूनल तब तक कार्य करते रहेंगे, जब तक उनके अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल समाप्त नहीं हो जाता.
वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों द्वारा सर्वे : पिछले विधेयक के अनुसार, जिला कलेक्टर या समकक्ष रैंक के अधिकारी वक़्फ़ संपत्तियों का सर्वे करने के लिए अधिकृत थे. लेकिन संशोधित विधेयक अब यह अनिवार्य करता है कि जिला कलेक्टर से ऊपर रैंक वाले वरिष्ठ अधिकारी सर्वे का संचालन करें, विशेष रूप से उन मामलों में जहां सरकारी स्वामित्व विवादित है.
विवादित संपत्तियों पर निर्णय : संशोधित विधेयक में वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को अंतिम निर्णायक के रूप में नामित किया गया है, जो 1995 अधिनियम के तहत निर्धारित वक़्फ़ न्यायाधिकरणों की जगह लेंगे. यह भी प्रावधान है कि जब तक अधिकारी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करते, विवादित संपत्ति को वक़्फ़ संपत्ति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता. यदि अधिकारी यह निर्धारित करते हैं कि संपत्ति सरकार की है, तो उन्हें राजस्व रिकॉर्ड को अपडेट करना होगा और राज्य सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी, जो फिर वक़्फ़ बोर्ड को अपने रिकॉर्ड संशोधित करने का निर्देश देगी.
पंजीकरण
वक़्फ़ संपत्ति रिकॉर्ड की सटीकता बढ़ाने के लिए केंद्रीकृत पंजीकरण प्रणाली स्थापित करने का प्रावधान रखा गया है. इस प्रणाली के तहत, वक़्फ़ संपत्तियों से संबंधित सभी जानकारी को कानून लागू होने के छह महीने के भीतर एक निर्दिष्ट पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य होगा.
संशोधित विधेयक में एक यह छूट दी गई है कि संबंधित वक़्फ़ न्यायाधिकरण छह महीने की समय सीमा बढ़ा सकता है. यदि मुतवल्ली (संपत्ति के संरक्षक) यह साबित करने के लिए आवेदन करता है कि वह निर्धारित अवधि में संपत्ति का विवरण प्रस्तुत करने में विफल क्यों रहा, तो न्यायाधिकरण उचित अवधि तक विस्तार प्रदान कर सकता है.
यह विधेयक 1995 के अधिनियम की धारा 107 को निरस्त करने का प्रयास करता है, जिसने परिसीमा अधिनियम, 1963 को वक़्फ़ संपत्तियों पर लागू नहीं होने दिया था. उल्लेखनीय है कि विधेयक के पूर्व संस्करण में यह प्रावधान अनुपस्थित था. परिसीमा अधिनियम, कानूनी कार्यवाही शुरू करने के लिए एक निर्धारित अवधि के बाद कानूनी प्रतिबंध लगाता है. धारा 107 ने वक़्फ़ बोर्डों को अतिक्रमित संपत्तियों को वापस पाने के लिए 12 वर्ष की सीमा अवधि से छूट प्रदान की थी.
न्यायिक समीक्षा
नया विधेयक वक़्फ़ विवादों में न्यायिक हस्तक्षेप की अनुमति देता है, जिसमें वक़्फ़ ट्रिब्यूनल के निर्णयों को “अंतिम” मानने के नियम को समाप्त कर दिया गया है. पीड़ित पक्ष 90 दिनों के भीतर ट्रिब्यूनल के आदेश प्राप्त करने के बाद संबंधित उच्च न्यायालय में सीधे अपील कर सकते हैं.
विशेष रूप से यह विधेयक अदालतों को किसी भी अधिकार के प्रवर्तन से संबंधित मुकदमों की सुनवाई से रोकता है, जब तक कि संबंधित वक़्फ़ संपत्ति कानून लागू होने के छह महीने के भीतर पंजीकृत न हो.
वायु सेना के आकाश में मंडराती चुनौतियां
भारतीय वायु सेना में गंभीर संकट का सामना कर रही है, जैसा कि वायु सेनाध्यक्ष एपी सिंह ने हाल ही में सार्वजनिक रूप से चेतावनी दी है. भारत वर्तमान में मात्र 31 लड़ाकू स्क्वाड्रन के साथ काम कर रहा है, जबकि 2011 में 45 स्क्वाड्रन की आवश्यकता प्रस्तावित की गई थी. इस दशक में नए लड़ाकू विमानों को शामिल करने की दर बहुत कम रही है. कैरेवन पत्रिका में रक्षा मामलों के विशेषज्ञ सुशांत सिंह ने इस पर एक लम्बा लेख लिखा है.
चीन ने इस दिशा में बहुत तेज़ी से प्रगति की है और हाल ही में छठी पीढ़ी के दो स्टील्थ लड़ाकू जेट प्रोटोटाइप (जिन्हें विश्लेषकों ने J-36 और J-50 नाम दिया है) का अनौपचारिक अनावरण करके अमेरिका पर भी बढ़त हासिल कर ली है. इसके विपरीत, भारत अभी भी अपने पांचवीं पीढ़ी के एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की योजना बना रहा है, जो 2035 तक ही सेवा के लिए तैयार होने की उम्मीद है.
साथ ही, पाकिस्तान और चीन की वायु सेनाओं के बीच गहरा सहयोग बढ़ रहा है, जिसमें J-10C जैसे उन्नत चीनी विमानों का पाकिस्तान वायु सेना में एकीकरण शामिल है. शोध के अनुसार, 2014-2024 के बीच, जबकि चीन और पाकिस्तान ने क्रमशः 435 और 31 जेट विमान अपने बेड़े में जोड़े, वहीं भारत का विमान भंडार 151 जेट विमानों से सिकुड़ गया.
मोदी सरकार के तहत भारत की सैन्य क्षमताएं स्थिर हो गई हैं और यहां तक कि गिरावट भी आई है. जीडीपी में रक्षा बजट का हिस्सा आज़ाद भारत में अब तक के निम्नतम स्तर पर पहुंच गया है, जिसमें आधे से अधिक खर्च वेतन और पेंशन पर जाता है. आधुनिकीकरण के लिए बहुत कम बचता है, जिसकी भरपाई "मेक इन इंडिया" और "आत्मनिर्भरता" जैसे खोखले नारों से नहीं की जा सकती. 2015 के विवादास्पद राफेल सौदे के बाद से भारत ने कोई आधुनिक लड़ाकू विमान नहीं खरीदा है. इस बीच, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) स्वदेशी तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट को भारतीय वायु सेना को सप्लाई नहीं दे पा रहा है क्योंकि अमेरिका स्थित जीई ने F- 404 इंजन की सप्लाई नहीं की है.
वायु सेना में पायलटों की भी कमी बढ़ रही है, जो फरवरी 2015 में 486 से बढ़कर 2021 के अंत तक लगभग 600 हो गई है. अग्निवीर योजना, जिसके तहत तीन-चौथाई कर्मियों को चार साल बाद सेवामुक्त कर दिया जाता है, भारतीय वायु सेना जैसे प्रौद्योगिकी-गहन बल के लिए विशेष रूप से हानिकारक है. वायु सेनाध्यक्ष ने अपनी भूमिका निभाते हुए सामने आने वाले संकट को बार-बार उजागर किया है. यदि मोदी सरकार रणनीतिक उपेक्षा की अपनी राजनीति जारी रखने का इरादा रखती है, तो ये चेतावनियां भी लड़ाकू विमानों की गंभीर कमी और पिछड़ते आधुनिकीकरण प्रयासों को संबोधित करने के लिए आवश्यक तत्काल कार्रवाई को प्रोत्साहित करने में विफल हो सकती हैं.
पन्नू षड्यंत्र में एक और 'भारतीय एजेंट' ?
खालिस्तानी अलगाववादी संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) ने एक अमेरिकी अदालत का दस्तावेज जारी किया है, जिसमें दावा किया गया है कि अमेरिकी न्याय विभाग ने संगठन के प्रमुख गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या के षड्यंत्र में एक और "भारतीय एजेंट" की पहचान की है. एसएफजे ने दावा किया कि 'जीएस' के रूप में पहचाने गए एजेंट ने कथित तौर पर अमेरिकी नागरिक पन्नून की हत्या के लिए 15,000 डॉलर का भुगतान किया था. एसएफजे ने कहा कि न्याय विभाग ने इस रकम को जब्त करने के लिए कदम उठाया है, जिसका इंतजाम पूर्व खुफिया अधिकारी विकास यादव (सीसी1) ने किया था और हत्यारों को देने के लिए जीएस को दी गई थी, जो डबल एजेंट और डीईए का खबरी था.
संघ कार्यकर्ताओं को मथुरा काशी आंदोलन में शामिल होने की छूट
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं का एक वर्ग यदि मथुरा के शाही ईदगाह और वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को मंदिरों में बदलने के आंदोलन को ‘सशक्त करना’ चाहता है तो संघ "उन्हें नहीं रोकेगा", संगठन के दूसरे नंबर के नेता दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है. इस निर्देश के खतरनाक स्वरूप को कम करने के लिए – पिछली बार जब हिंदुत्व के मातृ संगठन ने प्रतिशोधी आंदोलन का समर्थन किया था, तब अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ था – होसबाले ने यह भी कहा कि अन्य मुस्लिम पूजा स्थलों के पीछे जाना अप्रभावी होगा, "लेकिन अगर हम अन्य सभी मस्जिदों और संरचनाओं की बात करें, तो क्या हमें 30,000 मस्जिदों की खुदाई शुरू करनी चाहिए और इतिहास को उलटने का प्रयास करना चाहिए? क्या हम समाज में और अधिक शत्रुता और रोष नहीं पैदा करेंगे? हम कितना पीछे जाएं या कितना आगे बढ़ें या फिर अतीत में ही अटके रहें?"
75वीं वर्षगांठ पर शी जिनपिंग ने कहा आओ टैंगो करें, भारत ने कहा थोड़ा मुश्किल, पर तैयार हैं
'द वायर' की खबर है कि जब भारत और चीन अपने कूटनीतिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दोनों एशियाई दिग्गजों के बीच "सहयोगी टैंगो" की अपील की, जबकि भारत ने कहा कि वह इस "मुश्किल रास्ते" पर चलने के लिए तैयार है ताकि संबंधों को पुनः स्थापित किया जा सके. यह महत्वपूर्ण अवसर तब आया है जब पांच महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई थी और दोनों नेताओं ने पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध समाप्त करने पर सहमति जताई थी.
इस अवसर पर दोनों देशों के नेताओं ने संदेशों का आदान-प्रदान किया – शी जिनपिंग ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को संदेश भेजा और चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने मोदी को बधाई दी. शाम को, भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री दिल्ली में चीनी दूतावास द्वारा आयोजित एक विशेष स्वागत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. यह 75वीं वर्षगांठ 2020 में मनाई गई 70वीं वर्षगांठ से बिल्कुल अलग रही. उस समय भारत और चीन ने इस अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम शृंखला की योजना बनाई थी, लेकिन यह पहले कोविड-19 महामारी और फिर अप्रैल-मई 2020 में सैन्य संघर्ष के कारण बाधित हो गई थी. जुलाई 2020 में 40 वर्षों में पहली बार सीमा पर घातक संघर्ष हुआ था. हालांकि, शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी की बैठक अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों से पहले हुई थी, लेकिन यह डोनाल्ड ट्रम्प की व्यापार नीतियों और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं की पृष्ठभूमि में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के रूप में सामने आई.
अपने संदेश में शी जिनपिंग ने भारत और चीन के बीच "ड्रैगन और हाथी के सहयोगी नृत्य" का आह्वान किया और कहा कि यह "दोनों देशों और उनके नागरिकों के मूल हितों की पूरी तरह से सेवा करेगा." उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि दोनों देशों को अपने संबंधों को रणनीतिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखना और संभालना चाहिए. उन्होंने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, आपसी विश्वास और साझा विकास की दिशा में काम करने की आवश्यकता पर बल दिया. शी ने "विश्व में बहुध्रुवीयता को आगे बढ़ाने और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में लोकतंत्र को बढ़ावा देने" की भी आवश्यकता जताई.
चीनी राजदूत द्वारा साझा किए गए अंशों के अनुसार, मोदी ने कहा कि भारत-चीन संबंधों में प्रगति न केवल वैश्विक स्थिरता और समृद्धि में योगदान देगी, बल्कि एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के उदय में भी सहायक होगी. उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह 75वीं वर्षगांठ भारत-चीन संबंधों के स्वस्थ और स्थिर विकास का नया युग लेकर आएगी. हालांकि, भारत सरकार ने इन बधाई संदेशों को आधिकारिक रूप से सार्वजनिक नहीं किया.
सम्भल जामा मस्जिद प्रमुख के बाद अब परिजन पर पुलिस की कार्रवाई : सम्मल में शाही जामा मस्जिद प्रबंधन समिति के अध्यक्ष के बेटे, बड़े भाई और दो भतीजों समेत उनके परिवार के पांच सदस्यों को जिला प्रशासन ने शांति भंग या सार्वजनिक शांति भंग होने की आशंका के चलते एक लाख रुपये की जमानत पर 'बांध' दिया. जिला प्रशासन ने मंगलवार को जफर अली के बेटे हैदर अली, उनके बड़े भाई ताहिर अली एडवोकेट और कमर हसन के साथ-साथ भतीजों मोहम्मद दानिश और मोहम्मद मुजीब के खिलाफ बीएनएसएस की धारा 126 (अन्य मामलों में शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा) और 135 (सूचना की सत्यता की जांच) के तहत कार्रवाई शुरू की. इसका मतलब यह हुआ कि कि अगर 'बांध' गए लोग किसी भी मौखिक या शारीरिक कृत्य में शामिल पाए जाते हैं, जिससे शांति भंग हो सकती है, तो उन्हें अदालत को एक लाख रुपये का भुगतान करना होगा. गौरतलब है कि जफर अली के परिवार के सभी 'बांध' गए सदस्य संभल के स्थानीय चंदौसी कोर्ट में वकालत करते हैं. जफर अली को 23 मार्च को मुरादाबाद जिला न्यायालय में हिरासत में लिया गया था. उन्हें 24 नवंबर को अदालत के आदेश के बाद जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें पांच लोगों की जान चली गई थी. इस बीच, केस डायरी उपलब्ध न होने के कारण जफर अली की जमानत याचिका पर सुनवाई 4 अप्रैल तक के लिए टाल दी गई.
असम में अब पत्रकार का भाई गिरफ्तार : असम की पुलिस ने मंगलवार को पत्रकार दिलवर मजूमदार के भाई को ज़मीन हड़पने के आरोप में गिरफ़्तार किया है. पत्रकार मजूमदार को पिछले महीने एक बैंक के ख़िलाफ़ अनियमितता के आरोपों को कवर करने के बाद गिरफ़्तार किया गया था. इस बैंक के अध्यक्ष मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा हैं. सरमा ने दिलवर को "डंपस्टर ट्रेडर" कहा है और आरोप लगाया है कि उनका पूरा परिवार ज़मीन हड़पने के लिए जाना जाता है. सरमा की टिप्पणी और पुलिस की कार्रवाई निचले असम में राभा हसोंग स्वायत्त आदिवासी परिषद के होने वाले चुनावों से पहले आई है. भगवा पार्टी अपनी सबसे बड़ी पार्टी राभा हसोंग जोथा मंच के साथ गठबंधन में राभा हसोंग परिषद चुनाव लड़ रही है.
विकीपीडिया को एएनआई पेज से अपमानजनक बयानों को हटाने का आदेश : बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश पारित कर विकिमीडिया फाउंडेशन को समाचार एजेंसी एशियन न्यूज़ इंटरनेशनल (एएनआई) के बारे में विकीपीडिया पेज पर किए गए कथित अपमानजनक बयानों को हटाने का निर्देश दिया है. यह आदेश ऐसे समय में आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने समाचार एजेंसी पर एक विशिष्ट पेज को हटाने के लिए हाई कोर्ट के पिछले आदेश के खिलाफ विकीमीडिया फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए एएनआई को नोटिस जारी किया था.
साक्षात्कार में सुधीर धवले बोले, यह बड़ी जेल है… : भीमा कोरेगांव मामले में विचाराधीन कैदी सुधीर धवले ने अपनी बात रखी है. लेखक और कार्यकर्ता धवले को कुख्यात भीमा कोरेगांव मामले में विचाराधीन कैदी के तौर पर छह साल और सात महीने जेल में बिताने के बाद 24 जनवरी को रिहा किया गया है. धवले ने जाति-विरोधी समूह ‘रिपब्लिकन पैंथर्स जटियांटाची चालवल’ की स्थापना की और मराठी पत्रिका ‘विद्रोही’ प्रकाशित की. वे 31 दिसंबर, 2017 को एल्गार परिषद के आयोजकों में से एक थे. यह घटना भीमा कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ पर जातिगत हिंसा भड़कने से एक दिन पहले हुई थी. शाहिद तांत्रे के साथ एक साक्षात्कार में धावले ने जेल में बिताए अपने समय, असहमति पर अंकुश लगाने और इस दौरान भारत में आए बदलावों के बारे में बात की. उन्होंने कहा, “हम सभी इस निगरानी में रह रहे हैं. तो, बेशक, हम जेल से बाहर आ गए हैं, लेकिन यह एक बड़ी जेल है, जो खुली हुई है…”
गुजरात : जामनगर में लड़ाकू विमान कई टुकड़ों में टूटा, पायलट की मौत : गुजरात के जामनगर के कलावड़ रोड पर सुवरदा गांव के पास बुधवार देर रात एक लड़ाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त होकर कई टुकड़ों में टूट गया और आग लग गई. हादसे में एक पायलट की मौत हो गई और दूसरा गंभीर रूप से घायल हो गया. दुर्घटना का 26 सेकंड का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इससे पहले 7 मार्च को हरियाणा के पंचकूला में वायुसेना का जगुआर लड़ाकू विमान तकनीकी खराबी के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया था.
स्वयंभू पादरी को आजीवन कारावास : पंजाब के साहिबज़ादा अजीत सिंह नगर (मोहाली) की एक अदालत ने ईसाई धर्म प्रचारक और स्वयंभू पादरी बजिंदर सिंह को पांच साल पहले एक महिला के साथ बार-बार बलात्कार करने के आरोप में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है. सिंह इंजील-शैली के उपदेशों के लिए जाना जाता है, जहाँ वे भूत-प्रेत भगाने का काम करता है और लोगों को ठीक करने का दावा करता है.
अंबानी पर बीएसएनएल मेहरबान, सरकार को ₹1,757 करोड़ का हुआ नुकसान : ‘द हिंदू’ की एक खबर के मुताबिक भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने मंगलवार को कहा कि सरकारी दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल ने रिलायंस जियो इन्फोकॉम को मई 2014 से मार्च 2024 तक पैसिव इंफ्रास्ट्रक्चर शेयरिंग के लिए बिल नहीं भेजा, जिससे सरकार को ₹1,757.56 करोड़ का नुकसान हुआ. कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार, बीएसएनएल ने मास्टर सर्विस एग्रीमेंट (MSA) का पालन नहीं किया और जियो द्वारा बीएसएनएल के इंफ्रास्ट्रक्चर पर अतिरिक्त टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल का बिल नहीं बनाया. इसके अलावा बीएसएनएल ने टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर्स (TIPs) को दिए गए राजस्व में से लाइसेंस फीस का हिस्सा नहीं काटा, जिससे ₹38.36 करोड़ का और नुकसान हुआ. इंफ्रास्ट्रक्चर शेयरिंग चार्ज में कम बिलिंग और एस्केलेशन क्लॉज न लागू करने से ₹29 करोड़ (GST सहित) का राजस्व नुकसान हुआ. बीएसएनएल ने 10 साल तक जियो से अतिरिक्त शुल्क वसूलने में लापरवाही दिखाई. पेनल्टी इंटरेस्ट सहित कुल नुकसान ₹1,757.76 करोड़ रहा, जो सरकारी खजाने को प्रभावित करता है.
ट्रम्प का बदला मस्क के टेस्ला से, बिक्री 13% गिरी
'द गार्डियन' के अनुसार दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति इलोन मस्क की इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी टेस्ला की बिक्री में वर्ष 2025 की पहली तिमाही में 13% की भारी गिरावट दर्ज की गई है. यह 2022 के बाद कंपनी का सबसे खराब तिमाही प्रदर्शन साबित हुआ है.
जनवरी-मार्च तिमाही में टेस्ला ने वैश्विक स्तर पर केवल 3,36,681 वाहनों की डिलीवरी की, जबकि विश्लेषकों ने 4,08,000 वाहनों की अपेक्षा जताई थी. यह आंकड़ा पिछले वर्ष की इसी अवधि में बेचे गए 3,87,000 वाहनों से काफी कम है.
इस बीच, सोशल मीडिया पर एक कथित ऑडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें मस्क अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से टेस्ला के बिगड़ते हालात पर रोते हुए मदद मांगते सुनाई दे रहे हैं. ऑडियो में मस्क कहते सुनाई दे रहे हैं कि "जनता का गुस्सा टेस्ला को मार रहा है." हालांकि, इस ऑडियो की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं हुई है. विश्लेषक डैन आइव्स का कहना है, "टेस्ला अब सिर्फ एक कार कंपनी नहीं, बल्कि ट्रंप-मस्क राजनीति का प्रतीक बन चुकी है. यह ब्रांड के लिए जहर साबित हो रहा है."
बिक्री में गिरावट के पीछे मस्क के दक्षिणपंथी राजनीति से जुड़ाव को प्रमुख कारण माना जा रहा है. विश्वभर में एंटी-टेस्ला प्रदर्शन तेजी से बढ़ रहे हैं. अमेरिका में "टेस्ला टेकडाउन" नामक आंदोलन के तहत 277 शोरूम पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं. यूरोप में जनवरी में टेस्ला की बिक्री 45%, जर्मनी में 76% और ऑस्ट्रेलिया में 72% तक गिर गई है.
टेस्ला के शेयर भी दिसंबर 2024 में रिकॉर्ड स्तर 480 डॉलर से गिरकर वर्तमान में 222 डॉलर (2 अप्रैल तक) पर आ गए हैं, जो 50% की गिरावट दर्शाता है. हालांकि, राष्ट्रपति ट्रंप ने व्हाइट हाउस के सामने टेस्ला का प्रदर्शन करके बिक्री को बढ़ावा देने की कोशिश की है, परंतु गिरावट जारी है. विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता बीवायडी और यूरोपीय कंपनियों से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा भी इस गिरावट में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.
बुलडोजरों के बीच जलती झोपड़ी से अपना स्कूल बैग बचा लाई बच्ची का इंटरव्यू
आठ साल की अनन्या यादव के लिए उसका स्कूल बैग, जिसमें हिंदी, अंग्रेजी और "गिनती की" (गणित) किताबें हैं, उसकी सबसे कीमती चीज है - एक दिन "आईएएस अधिकारी" बनकर "देश की रक्षा" करने का साधन. 'इंडियन एक्सप्रेस' के लिए मौलश्री सेठ की रिपोर्ट है कि इसलिए जब 21 मार्च को उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में एक विध्वंस अभियान के दौरान उसके बैग के पास रखे एक छप्पर में आग लग गई, तो वह उसे बचाने के लिए दौड़ पड़ी. अनन्या को यह नहीं पता था कि बैग लेकर भागती हुई उसकी वीडियो क्लिप देश के सर्वोच्च न्यायालय का ध्यान खींचेगी. मंगलवार को सुनवाई के दौरान, जस्टिस एएस ओका और उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने इस वायरल वीडियो का जिक्र करते हुए कहा कि इसने "सभी को झकझोर दिया है." जस्टिस भुइयां ने कहा, "हाल ही में एक वीडियो सामने आया है, जिसमें बुलडोजरों द्वारा छोटी झोपड़ियों को गिराया जा रहा है. एक छोटी लड़की किताबों का गट्ठर लेकर ध्वस्त झोपड़ी से भागती दिख रही है. इसने सभी को हिला दिया है."
अनन्या, जो सरकारी प्राथमिक विद्यालय, अरई में कक्षा 1 की छात्रा है, ने द 'इंडियन एक्सप्रेस' को बताया, "मैं स्कूल से लौटी और अपना बैग चप्पर (छप्पर) में रख दिया, जहां मेरी मां ने जानवर बांध रखे थे. (विध्वंस के दौरान) हमारी छप्पर के बगल वाले घर के छप्पर में आग लग गई और मुझे तुरंत अपने स्कूल बैग और किताबों का ख्याल आया. मेरी मां ने मुझे रोकने की कोशिश की, लेकिन मैं भागकर निकल गई. मुझे डर था कि मेरी किताबें और बैग जल जाएंगे. मैं बाद में वापस मां के पास चली गई." अनन्या को डर था कि स्कूल से उसे नई किताबें नहीं मिलेंगी. अनन्या के दादा, राम मिलन यादव (70), ने द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए दावा किया कि प्रशासन ने "दो बिस्वा" जमीन पर बने ढांचे को गिराने आया था, जिस पर उनका परिवार "50 साल से" कब्जा जमाए हुए है. उन्होंने जोर देकर कहा कि वे कोई परेशानी नहीं चाहते.
यह वीडियो समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने शेयर किया था, जबकि कांग्रेस ने परिवार से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजा. हालांकि, विध्वंस में शामिल अधिकारियों का कहना है कि न तो किसी आवासीय ढांचे को और न ही उस छायादार स्थान को हटाया गया था जहां अनन्या का बैग रखा था. सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट, जलालपुर, पवन जायसवाल ने वायरल वीडियो के बारे में पूछे जाने पर जायसवाल ने कहा, "जिस ढांचे से लड़की भाग रही थी, उसे छुआ तक नहीं गया था. वह आग लगने वाले ढांचे से दूर था." उन्होंने कहा कि विध्वंस के साथ लड़की को जोड़ने वाले "फर्जी वीडियो" के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.
डिलिमिटेशन
पीटीआर : तो दक्षिण भारत के हित हाशिये पर चले जाएंगे
आऊटलुक पत्रिका के दक्षिण भारत पर केंद्रित अंक में तमिलनाडु सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री पलानिवेल त्याग राजन (पीटीआर) ने एक लंबा लेख डिलिमिटेशन के मसले पर उत्तर और दक्षिण भारत के बीच बढ़ते अंतरों पर लिखा है.भारत की केंद्रीकृत शासन संरचना और राज्यों के असंतुलन पर आधारित इस लेख के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:
भारत में दुनिया की सबसे केंद्रीकृत शासन व्यवस्था है, जो संविधान में वर्णित "राज्यों का संघ" के सिद्धांत से विपरीत है.
भारत में एक आर्थिक-जनसांख्यिकीय विरोधाभास है: दक्षिणी राज्य राष्ट्रीय जीडीपी को अधिक बढ़ावा देते हैं लेकिन उनकी आबादी छोटी है. उत्तरी राज्यों में बड़ी आबादी है लेकिन वे विकास सूचकांकों में पिछड़े हैं
दशकों से धनी राज्यों (मुख्यतः दक्षिणी) से अधिक कर वसूली और गरीब क्षेत्रों (मुख्यतः उत्तरी) में पुनर्वितरण के बावजूद असमानता बढ़ती जा रही है.
परिसीमन प्रक्रिया (2026 में 50 वर्षीय फ्रीज समाप्त होने के बाद) से दक्षिणी राज्यों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व कम होने की गंभीर चिंता है.
ये चिंताएं तीन कारणों से और बढ़ गई हैं : पहला, वर्तमान सरकार ने पूर्व में संवैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया है (अनुच्छेद 370, कृषि कानून). दूसरा, 2021 की जनगणना में अस्पष्टीकृत देरी. तीसरा, नए संसद भवन में 800 से अधिक सदस्यों के लिए जगह का निर्माण.
परिसीमन प्रक्रिया भारत के राजनीतिक संतुलन को आमूल-चूल बदल सकती है: जिसके मुताबिक जो उत्तरी हिंदी पट्टी पर प्रभुत्व रखता है वह राष्ट्र पर नियंत्रण करेगा. और, दक्षिणी राज्यों के हित हाशिए पर चले जाएंगे.
जनसंख्या आधारित परिसीमन से दो श्रेणियों की नागरिकता का खतरा: पहली, उत्तर के नागरिक जिनके वोट चुनावी परिणाम में महत्वपूर्ण होंगे. दूसरी, दक्षिण के नागरिक जो अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान देते हैं लेकिन राष्ट्रीय शक्ति समीकरण में अप्रासंगिक हो जाएंगे.
अधिक सांसदों का होना उत्तरी राज्यों की विकास समस्याओं का समाधान नहीं करेगा, जो मूलभूत शासन की नाकामयाबियों से पैदा हुई हैं.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कई राज्यों की संयुक्त कार्य समिति (JAC) का गठन किया है और फ्रीज को 25 वर्ष और बढ़ाने की मांग की है.
वर्तमान एनडीए सरकार ने जीएसटी परिषद में "एक राज्य, एक वोट" का सिद्धांत लागू किया, लेकिन अब परिसीमन के लिए जनसंख्या आधारित प्रतिनिधित्व का समर्थन कर रही है, जो विरोधाभासी है.
कॉमेडी शो देखने गये बैंकर को पुलिस का समन, कुणाल कामरा ने उससे माफ़ी मांगी
'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि एक बैंकर जिसने मुंबई में कुणाल कामरा के विवादित शो में भाग लिया था, उन्हें गवाह के रूप में कॉमेडियन के खिलाफ मामला दर्ज करने के बाद समन दिया गया है. हालांकि बाद में पुलिस ने नवी मुंबई निवासी इस व्यक्ति को बताया कि उसकी उपस्थिति की तत्काल आवश्यकता नहीं है. कुणाल कामरा ने सोशल मीडिया पर बैंकर को हुई इस असुविधा पर खेद व्यक्त किया और उन्हें "भारत में कहीं भी अपनी अगली छुट्टी निर्धारित करने" की पेशकश की. कॉमेडियन ने एक मीडिया रिपोर्ट भी साझा की, जिसमें कहा गया था कि पुलिस समन के कारण बैंकर को अपनी छुट्टी बीच में ही छोड़नी पड़ी. रिपोर्ट्स के अनुसार, व्यक्ति को 6 अप्रैल को अपनी छुट्टी से लौटना था, लेकिन उन्हें सोमवार को ही मुंबई वापस आना पड़ा.
मंगलवार को पुलिस ने उन खबरों का खंडन किया था, जिनमें कहा गया था कि कुणाल कामरा के शो में शामिल दर्शकों को बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया गया है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार, कामरा के शो के लिए बुकमायशो ऐप के माध्यम से टिकट बुक करने वाले इस बैंकर को 29 मार्च को उनके मोबाइल फोन पर समन भेजा गया था. बैंकर को इस आधार पर उपस्थित होने के लिए कहा गया था कि पुलिस गवाहों के बयान दर्ज करना चाहती थी. समन भेजने से पहले, जांच अधिकारी ने बैंकर को फोन कर खार पुलिस स्टेशन आने के लिए कहा था, अधिकारी ने यह भी बताया. लेकिन बाद में, मामले में कुछ घटनाक्रमों के बाद, पुलिस ने बैंकर को फिर से फोन कर सूचित किया कि उनकी तत्काल उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है, हालांकि जरूरत पड़ने पर उन्हें बुलाया जा सकता है. गौरतलब है कि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के खिलाफ कथित टिप्पणियों को लेकर शिवसेना विधायक मुरजी पटेल द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर 28 मार्च को खार पुलिस स्टेशन में कामरा के खिलाफ कथित मानहानि का मामला दर्ज किया गया था. कुणाल कामरा ने एक्म में एक पोस्ट में लिखा - "मुझे गहरा खेद है कि मेरे शो में शामिल होने के कारण आपको असुविधा हुई. कृपया मुझे ईमेल करें ताकि मैं आपकी अगली छुट्टी भारत में कहीं भी निर्धारित कर सकूं."
पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ, सीज़फायर का उल्लंघन
'टेलीग्राफ' की रिपोर्ट है कि पुंछ में एलओसी के साथ माइन ब्लास्ट के बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसपैठ की है. पाकिस्तानी सैनिकों ने पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास एक बारूदी सुरंग विस्फोट के बाद बिना किसी उकसावे के गोलीबारी कर संघर्षविराम का उल्लंघन किया है. उन्होंने कहा कि भारतीय सेना ने संघर्षविराम उल्लंघन का "प्रभावी" जवाब दिया और नियंत्रण रेखा पर अपनी स्थिति को बनाए रखा है, जहां स्थिति नियंत्रण में है. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, यह उल्लंघन मंगलवार दोपहर 1:10 बजे हुआ. हालांकि, भारतीय सेना ने पाकिस्तान की ओर किसी हताहत का उल्लेख नहीं किया, लेकिन सूत्रों ने कहा कि विस्फोट और दोनों पक्षों के बीच हुई गोलीबारी में पांच पाकिस्तानी सैनिक घायल हुए हैं. जम्मू स्थित रक्षा जनसंपर्क अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल सुनील बर्तवाल ने अपने संशोधित बयान में कहा - "1 अप्रैल 2025 को कृष्णा घाटी सेक्टर में उस समय एक बारूदी सुरंग विस्फोट हुआ जब पाकिस्तानी सेना नियंत्रण रेखा के साथ गश्त कर रही थी. इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने बिना किसी उकसावे के गोलीबारी कर संघर्षविराम का उल्लंघन किया. "हमारी सेना ने प्रभावी रूप से जवाब दिया. भारतीय सेना नियंत्रण रेखा पर अपनी स्थिति को बनाए रखे हुए है. स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है." 21 फरवरी को, भारत और पाकिस्तान की सेना ने पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा के पास एक फ्लैग मीटिंग की थी ताकि सीमा पर गोलीबारी और एक आईईडी हमले के बाद तनाव को कम किया जा सके. यह ब्रिगेड कमांडर स्तर की फ्लैग मीटिंग 75 मिनट तक चली और यह चक्कन-दा-बाग क्रॉसिंग पॉइंट क्षेत्र में हुई, जहां दोनों पक्षों ने सीमा पर शांति बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया.
तमिलनाडु विधानसभा में श्रीलंका से कच्चातीवु को वापस लेने के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रीलंका यात्रा से पहले, तमिलनाडु विधानसभा ने बुधवार 2 अप्रैल को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें केंद्र सरकार से श्रीलंका से पाक खाड़ी में स्थित कच्चातीवु द्वीप को वापस लेने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया गया. मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव में कहा गया : “कच्चतीवु द्वीप को वापस लेना तमिलनाडु के मछुआरों के पारंपरिक मछली पकड़ने के अधिकारों की रक्षा करने और श्रीलंकाई नौसेना के कारण उन्हें होने वाली परेशानियों को कम करने का एकमात्र स्थायी समाधान है.”
प्रस्ताव पेश करते हुए श्री स्टालिन ने कहा कि श्रीलंका में राजनीतिक परिवर्तन होने के बावजूद, तमिलनाडु के भारतीय मछुआरों पर श्रीलंकाई नौसेना द्वारा लगातार हमले एक सतत और कभी न खत्म होने वाली त्रासदी बन गई है. “केंद्र सरकार अक्सर भूल जाती है कि तमिलनाडु के मछुआरे भी भारतीय मछुआरे हैं. इसलिए, मैं इस बात पर जोर देता हूं कि वे तमिलनाडु के भारतीय मछुआरे हैं… 2014 के संसदीय चुनावों से पहले, मोदी ने कहा था कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो एक भी मछुआरे को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा. फिर भी, हमले बेरोकटोक जारी हैं. जब हमारे मछुआरे, जिनके पास पारंपरिक मछली पकड़ने का अधिकार है, मछली पकड़ने के लिए समुद्र में जाते हैं, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है.
हेट क्राइम
नफरत पर 'कंटेट का धंधा' : स्क्रिप्टेड वीडियो और सांप्रदायिक उकसावे
'द क्विंट' ने ऐश्वर्या वर्मा और अभिषेक आनंद ने ऐसे स्क्रिप्टेड वीडियोज की पड़ताल की है, जो धर्मिक भावनाओं को भड़काने के उदे्श्य से बनाए जा रहे हैं, लेकिन इनपर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है. अगर आप दिए गए प्रिंटशॉट (वीडियो) को देखें, तो आपको एक युवती एक बुजुर्ग व्यक्ति को अपने बगल में बैठा देखकर बेहोश होती नजर आएगी. कैप्शन भी क्लिक करने की उत्कंठा जगाने के लिए पर्याप्त है. इसके कैप्शन में कहा गया है कि 'अब्बूजान जैसे दूल्हे को देखकर लड़की बेहोश'. पोस्ट करने वाले ने ‘मजाहब’ शब्द का उपयोग कर मुस्लिम समुदाय पर कटाक्ष किया है (जो अरबी शब्द 'मज़हब' का विकृत रूप है, जिसका अर्थ विचारधारा या मत होता है). ये स्क्रिप्टेड वीडियो पहले से ही विभाजित समाज में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाते हैं और इनके लिए कोई दंडात्मक कार्रवाई भी नहीं होती. इस वीडियो को एक महिला के अपने बुजुर्ग पति को देखकर बेहोश होने की असली घटना के रूप में साझा किया गया. लेकिन असली समस्या यह है कि यह वीडियो स्क्रिप्टेड है और इसमें दिखाए गए दृश्य वास्तविक नहीं हैं, जिसकी पुष्टि कई तथ्य-जांच संगठनों ने की है. यह एक क्लासिक उदाहरण है कि कैसे स्क्रिप्टेड वीडियो का उपयोग हिंदू और मुस्लिम समुदायों के खिलाफ झूठी सूचनाएं फैलाने और सांप्रदायिक नैरेटिव गढ़ने के लिए किया जाता है.
साल 2021 से मार्च 2025 के बीच, क्विंट की टीम 'वेबकूफ' ने 45 स्क्रिप्टेड वीडियो की तथ्य-जांच की और इनमें से लगभग 50 प्रतिशत (22) वीडियो सांप्रदायिक प्रकृति के थे, जो हिंदू या मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने की कोशिश कर रहे थे. भारत जैसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील और ध्रुवीकृत देश में, इस प्रकार के वीडियो हिंसा भड़काने वाले हो सकते हैं और समाज में पहले से मौजूद विभाजन को और गहरा कर सकते हैं.
स्क्रिप्टेड वीडियो और सांप्रदायिक उकसावे : इस तरह के वीडियो गलत सूचनाओं और सांप्रदायिक नफरत को फैलाने में मददगार होते हैं.
संवेदनशील विषयों का इस्तेमाल : इन वीडियो में विवाह, महिलाओं का शोषण, या अन्य भावनात्मक विषयों को प्रमुखता दी जाती है.
झूठे दावे : वीडियो को ऐसे प्रस्तुत किया जाता है जैसे वे असली घटनाएँ हों, जिससे लोग इन्हें सच मान लेते हैं.
सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा : आरोपित को किसी विशेष धर्म का बताकर नफरत फैलाने की कोशिश की जाती है.
तेजी से वायरल होने की संभावना : चूंकि ये वीडियो विवादास्पद होते हैं, इसलिए लोग इन्हें बिना सोचे-समझे साझा कर देते हैं.
प्रिंसिपल के ‘व्हाट्सएप स्टेटस’ पर जबलपुर स्कूल में तोड़फोड़ : जबलपुर जिले के एक स्कूल में प्रिंसिपल पर भगवान राम के बारे में आपत्तिजनक व्हाट्सएप स्टेटस पोस्ट करने का आरोप लगाते हुए दक्षिणपंथी प्रदर्शनकारियों ने तोड़फोड़ की. विरोधियों ने स्कूल की दीवारों पर काला पेंट फेंका, पोस्टर फाड़े और खिड़कियां तोड़ डालीं. विश्व हिंदू परिषद के एक नेता ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' को बताया कि प्रिंसिपल के व्हाट्सएप स्टेटस में भगवान राम के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी थी, जो वायरल हो गई. प्रदर्शनकारियों ने स्कूल डायरेक्टर से माफी की मांग की और चेतावनी दी कि यदि पुलिस कार्रवाई नहीं करती है, तो वे बड़ा आंदोलन करेंगे. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि तकनीकी जांच चल रही है कि क्या वास्तव में प्रिंसिपल ने ही वह पोस्ट किया था या कोई एआई द्वारा बनाई गई तस्वीर वायरल की गई है. पुलिस के मुताबिक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, लेकिन प्रिंसिपल से पूछताछ की जाएगी. स्कूल परिसर में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है. स्कूल प्रबंधन ने अभी तक प्रिंसिपल पर लगे आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
2002 गुजरात दंगे
तीन ब्रिटिश नागरिकों की हत्या के मामले में छह लोगों को बरी करने का फैसला बरकरार
गुजरात हाई कोर्ट ने गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद भड़के 2002 के दंगों के दौरान तीन ब्रिटिश नागरिकों की हत्या के मामले में छह लोगों को बरी करने के सत्र न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा है. जस्टिस एवाई कोगजे और समीर जे दवे की खंडपीठ ने 6 मार्च को यह आदेश पारित किया और इसे हाल ही में उपलब्ध कराया गया.
हाई कोर्ट ने गवाहों और जांच अधिकारी की गवाही पर विचार किया और पाया कि उसे 27 फरवरी, 2015 को हिम्मतनगर में साबरकांठा के प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित फैसले और बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला. साबरकांठा जिले के हिम्मतनगर में सत्र न्यायालय द्वारा बरी किए जाने के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, “एफआईआर में आरोपी का कोई विवरण नहीं दिया गया था. इसलिए, सत्र न्यायालय ने सही निष्कर्ष निकाला है कि इस तरह की पहचान (डॉक) दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकती." प्रत्येक आरोपी पर एफएसएल (फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला) रिपोर्ट का निष्कर्ष उन्हें संदिग्ध होने से मुक्त करता है. साथ ही, जांच की शुरुआत एक गुमनाम फैक्स संदेश पर आधारित थी, न कि किसी स्वतंत्र प्रत्यक्षदर्शी के साक्ष्य के आधार पर.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) ने 2002 में भारत आए तीन ब्रिटिश नागरिकों की हत्या के लिए छह व्यक्तियों - मिथनभाई चंदू उर्फ प्रहलाद पटेल, रमेश पटेल, मनोज पटेल, राजेश पटेल और कलाभाई पटेल - पर मुकदमा चलाया था. शिकायतकर्ता इमरान मोहम्मद सलीम दाऊद के अनुसार, 28 फरवरी, 2002 को वह और उसके दो चाचा - सईद सफीक दाऊद और सकील अब्दुल है दाऊद, और एक मोहम्मद नल्लाभाई अब्दुलभाई असवर - सभी ब्रिटिश नागरिक अपने ड्राइवर यूसुफ के साथ आगरा और जयपुर की यात्रा पूरी करने के बाद कार से वापस आ रहे थे, जब शाम करीब 6 बजे एक भीड़ ने उनके वाहन को रोक लिया और उन पर हमला कर दिया. जब वे भागने की कोशिश कर रहे थे, तब भीड़ ने असवर और स्थानीय ड्राइवर पर हमला कर दिया और उनके वाहन को आग लगा दी. ड्राइवर की मौके पर ही मौत हो गई और असवर को पुलिस द्वारा बचाए जाने के बाद अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया, जब वे भीड़ द्वारा पीछा किए जाने के दौरान भाग रहे थे. शिकायतकर्ता के चाचा सईद सफीक दाऊद और सकील अब्दुल है दाऊद की भी मृत्यु हो गई.
वैकल्पिक मीडिया
जिसे 26 दिन बाद चीफ जस्टिस बनना था, उस हाई कोर्ट जज का जम्मू से तबादला
जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन का स्थानांतरण वर्तमान मुख्य न्यायाधीश ताशी रबस्तान की 9 अप्रैल 2025 को निर्धारित सेवानिवृत्ति से 26 दिन पहले मध्य प्रदेश हाई कोर्ट कर दिया गया, जबकि जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में अगला नाम उनका ही था. जस्टिस श्रीधरन के निजी स्वतंत्रता पर जोर देने और क्षेत्र के निवारक निरोध कानून और भारत के आतंकवाद विरोधी कानून के तहत अवैध हिरासत के खिलाफ ऐतिहासिक निर्णयों ने लोगों का ध्यान खींचा था. इसके बाद आर्टिकल 14 के लिए जम्मू और कश्मीर के रहने वाले कानूनी शोधकर्ता व अधिवक्ता मुबाशिर नाइक तथा स्वतंत्र पत्रकार इरशाद हुसैन ने पिछले दो सालों में दिए गए ऐतिहासिक फैसलों की कोशिश की है. पूरा लेख आप यहां पढ़ सकते हैं.
जुलाई 2023 में जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन ने पुलिस द्वारा ‘कट्टर कट्टरपंथी’ होने का आरोप लगाए गए एक मुस्लिम व्यक्ति के खिलाफ सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) 1978 के तहत एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा, “एक कट्टरपंथी मुस्लिम की तुलना एक चरमपंथी या अलगाववादी से नहीं की जा सकती है."
जुलाई 2024 में, जस्टिस श्रीधरन ने पीएसए के तहत एक अन्य मामले में ‘अनुचित’ निवारक निरोध आदेश जारी करने के लिए सरकारी अधिकारियों पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया. इस कानून के तहत आरोपी को दो साल तक जमानत नहीं मिल सकती.
अप्रैल 2024 में, जस्टिस श्रीधरन ने सरकार पर मामले के तथ्यों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रवाद, पाकिस्तान के प्रति निष्ठा, कट्टरपंथी इस्लाम और भारत से जम्मू-कश्मीर के अलगाव का दावा करके अदालतों को ‘मनोवैज्ञानिक रूप से डराने’ की कोशिश का आरोप लगाया.
सितंबर 2024 में, न्यायमूर्ति श्रीधरन ने अधिकारियों पर ठेकेदारों के भुगतान के संबंध में अदालती आदेशों के साथ ‘लुका-छिपी’ खेलने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘अनुकरणीय जुर्माना लगाया जाना चाहिए. ‘वैध बकाया’ का भुगतान करने में प्राधिकरण की अक्षमता ने ‘देश की आर्थिक शक्ति के ऊंचे दावों’ पर सवाल खड़े किए.
ये चार उदाहरण जस्टिस श्रीधरन द्वारा जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में दो साल के कार्यकाल के दौरान दिए गए आठ ऐतिहासिक निर्णयों में से हैं. 13 मार्च 2025 को, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 222(1) के तहत, भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के बाद जस्टिस श्रीधरन को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट स्थानांतरित करने का आदेश दिया, जिसके बाद 6 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें वापस उसी न्यायालय में भेजने की सिफारिश की, जहाँ 2016 में उन्हें हाई कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत किया गया था.
इज़रायल बड़े पैमाने गाजा पट्टी पर कब्जा करेगा : 'द गार्डियन' की खबर है कि इज़रायल के रक्षा मंत्री ने कहा है कि देश गाजा पट्टी के "विस्तृत क्षेत्रों पर कब्जा करने" का इरादा रखता है. घिरे हुए फिलिस्तीनी क्षेत्र में हवाई और जमीनी अभियानों का बड़े पैमाने पर विस्तार किया जा रहा है. बुधवार को एक बयान में इसराइल काट्ज़ ने कहा, "सैनिक आतंकवादियों और बुनियादी ढांचे को साफ करने के लिए आगे बढ़ेंगे और व्यापक क्षेत्रों पर कब्जा करेंगे, जिन्हें इज़रायल के सुरक्षा क्षेत्रों में जोड़ा जाएगा." उन्होंने यह भी कहा कि वह फिलिस्तीनी नागरिकों से उन क्षेत्रों को छोड़ने का आह्वान कर रहे हैं, जहां युद्धविराम के विफल होने के बाद लड़ाई फिर से शुरू हो गई है और उनसे "अभी कदम उठाने, हमास को उखाड़ फेंकने और सभी बंधकों को वापस लाने" की अपील की.
पाठकों से अपील
हंगामे के बाद 24 कट लगाने के बाद दिखाई जाएगी गोधरा कांड को दिखाती मलयाली फिल्म
'डेक्कन हेराल्ड' की रिपोर्ट है कि दक्षिणपंथियों के विरोध के बाद मलयालम फिल्म ‘एल2: एम्पुरान’ के निर्माताओं ने मोहनलाल स्टारर 'L2: एमपुराण' अब 24 'स्वैच्छिक कट्स' के साथ सिनेमाघरों में रिलीज़ होने के लिए तैयार है. फिल्म के निर्माता एंटनी पेरुंबवूर ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा कि इन कट्स को किसी भी तरह के दबाव में नहीं, बल्कि स्वेच्छा से किया गया है. फिल्म के पुन: संपादित संस्करण को सिनेमाघरों में जल्द ही रिलीज़ किए जाने की संभावना है क्योंकि इसे नया सेंसर प्रमाणपत्र भी मिल चुका है. फिल्म से विवादित खलनायक बलराज उर्फ 'बाबा बजरंगी' का नाम बदलकर 'बलदेव' कर दिया गया है. इसके अलावा महिलाओं के खिलाफ हिंसा से जुड़े कुछ दृश्य हटाए गए हैं, पूजा स्थलों से संबंधित दृश्यों को हटा दिया गया है, एनआईए (राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी) का संदर्भ म्यूट किया गया है. वर्ष 2002 का संदर्भ बदलकर 'कुछ साल पहले' कर दिया गया है. इसके अलावा अभिनेता-राजनेता और केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी को दिया गया धन्यवाद नोट हटा दिया गया है, क्योंकि उन्होंने स्वयं इसकी मांग की थी. एक आईआरएस अधिकारी को दिया गया धन्यवाद भी हटा दिया गया है. कुल 2 मिनट 8 सेकंड की दृश्य सामग्री फिल्म से हटा दी गई है. फिल्म 27 मार्च को रिलीज़ हुई थी और इसका मूल संस्करण देखने के लिए दर्शकों में भारी उत्साह देखने को मिला है. सोमवार तक, यह फिल्म ₹200 करोड़ से अधिक का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन कर चुकी थी.
लगातार राज्य में इस फिल्म को लेकर विरोध बढ़ता ही जा रहा है. हालांकि केरल भाजपा के नेताओं ने शनिवार को कहा कि पार्टी फिल्म के खिलाफ किसी अभियान में शामिल नहीं है, लेकिन आरएसएस समर्थित 'ऑर्गेनाइज़र' ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमें निर्माताओं पर आरोप लगाया गया कि वे "गोधरा के बाद हुए दंगों का उपयोग हिंदू विरोधी राजनीतिक एजेंडा को बढ़ावा देने के लिए कर रहे हैं, जिससे समाज में अशांति पैदा हो सकती है."
इस बीच केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और उनके परिवार ने शनिवार को लुलु मॉल में इस फिल्म की स्क्रीनिंग में भाग लेकर अपना राजनीतिक समर्थन फिल्म को दिया है. दिलचस्प बात यह है कि खुद फिल्म के एक्टर मोहनलाल दक्षिणपंथ की ओर ही अब झुकाव रखते हैं.
शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने सवाल उठाया कि जब 'द केरल स्टोरी', जो "केरल को बदनाम करती है", बिना किसी कटौती के रिलीज़ हुई, तो 'एम्पुरान' को क्यों संपादित किया जा रहा है? उन्होंने कहा, "गुजरात दंगे और गोधरा कांड भारतीय इतिहास का हिस्सा हैं. चाहे उन्हें किसी भी तरीके से छिपाने की कोशिश की जाए, लेकिन पीढ़ियां उन्हें देख और समझ सकती हैं."
बोलते-बोलते
अमेरिकी सीनेटर बोलता रहा, बोलता रहा, बोलता रहा बिना रुके, बिना बैठे, बिना बाथरूम गये, 25 घंटे ट्रम्प के खिलाफ
आज के ‘चलते-चलते’ कॉलम का नाम बदल दिया गया है. न्यू जर्सी के डेमोक्रेटिक सीनेटर कोरी बुकर ने इतिहास रच दिया है. उन्होंने अमेरिकी सीनेट में 25 घंटे और 5 मिनट का लगातार भाषण देकर 68 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया. इस दौरान वे न तो बैठे, न ही शौचालय जाने या खाने के लिए चैंबर से बाहर निकले. सोशल मीडिया पर सक्रिय सीनेटर ने अपने भाषण को अपने टिकटॉक अकाउंट पर लाइव स्ट्रीम किया, जहां इसे 35 करोड़ से अधिक "लाइक्स" मिले. जब उन्होंने अपना भाषण समाप्त किया, यूट्यूब पर भी उन्हें 110,000 से अधिक लोग देख रहे थे.
56 वर्षीय बुकर ने अपने भाषण में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियों की आलोचना की, जिसमें सरकारी एजेंसियों को बंद करने, संघीय कर्मचारियों को निकालने और गाजा युद्ध के खिलाफ बोलने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों को निष्कासित करने के कार्यकारी आदेश शामिल हैं. न्यूयॉर्क के व्यवसायी एंजेल लेस्टन ने कहा, "डेमोक्रेट्स ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे ट्रम्प जो कर रहे हैं वह ठीक है, और यह ठीक नहीं है. अब आखिरकार कुछ जोश दिख रहा है." हालांकि, कुछ लोगों को चिंता है कि बुकर के इस कदम से ट्रम्प प्रतिशोध ले सकते हैं, जो संघीय धन को नियंत्रित करते हैं और प्रतिशोध के लिए जाने जाते हैं. लेस्टन ने कहा, "ट्रम्प प्रतिशोध लेंगे - 100 प्रतिशत. लेकिन यह लोगों को उनकी नीतियों के खिलाफ बोलने से नहीं रोकना चाहिए." बुकर ने अपना भाषण नागरिक अधिकार नेता जॉन लुईस के प्रसिद्ध आह्वान से समाप्त किया: "आइए अच्छी मुसीबत में पड़ें." पूरा वीडियो तो नहीं मिल रहा, 25 घंटे आपके पास होंगे भी नहीं, पर हिस्सों में उनके भाषण का आपको यहां मिल सकता है. और भाषण के बाद उसके बारे में बात करते हुए यहां रैशल मेडो के साथ एमएसएनबीसी पर.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. ‘हरकारा’ सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.
वाकई शोर कम, रोशनी ज्यादा। -अरुण आदित्य