03/07/2025: मर रहे हैं मराठी किसान | दलाई लामा का सिलसिला जारी रहेगा | नाम भी नहीं लिया, निंदा भी कर दी | वोटबंदी बेवकूफ़ी है या शातिर चाल | मोदी के आगे निकला आरएसएस | चुंबक चमत्कार
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
तीन माह में महाराष्ट्र में 767 किसानों की आत्महत्या
दलाई लामा अपना उत्तराधिकारी बताएंगे
पाकिस्तान का बिना नाम लिए पहलगाम आतंकी हमले की निंदा
भ्रम और चिंता का माहौल, ग्रामीणों में मतदाता सूची से नाम कटने का डर
योगेन्द्र यादव: नोटबंदी के बाद वोटबंदी की कोशिश मूर्खतापूर्ण है या फिर शातिर
मोदी के विदेश दौरों के नतीज़े क्या ?
केवल 2% सटीक: दिल्ली पुलिस की फेशियल रिकग्निशन तकनीक
हरतोष सिंह बल: मोदी के आगे निकल चुका है आरएसएस
रेखा गुप्ता के नए बंगले में 24 एसी, 5 स्मार्ट टीवी, 80 से ज्यादा पंखे
दिल्ली में 60 हजार महिलाओं की पेंशन बंद
रेसीडेंसी में पटना आये बुजुर्ग कवि की यौन हिंसा के बाद हिंदी साहित्य में विवाद, विरोध, लामबंदियां
शेख हसीना को 6 महीने की जेल
ट्रम्प की जोहरान ममदानी को गिरफ्तारी की धमकी
जोहरान ममदानी की अमेरिकी नागरिकता छीनने की तैयारी में ट्रम्प प्रशासन, 'आतंकवाद का समर्थन' के लगे हैं आरोप
जब चुंबक ने खींच लिया दिल में जा फंसा धातु का टुकड़ा
तीन माह में महाराष्ट्र में 767 किसानों की आत्महत्या
राज्य विधानमंडल में पेश की गई जानकारी के अनुसार, इस साल जनवरी और मार्च के बीच महाराष्ट्र में 767 किसानों ने आत्महत्या की. सुधीर सूर्यवंशी की रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से अधिकांश मामले राज्य के विदर्भ क्षेत्र से सामने आए हैं. यह जानकारी कांग्रेस विधायकों द्वारा किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं पर पूछे गए एक लिखित सवाल के जवाब में पुनर्वास मंत्री मकरंद पाटिल द्वारा सदन में दी गई.
सरकार के अनुसार, आत्महत्या करने वाले किसान के परिवार को 1 लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है. हालांकि, रिपोर्ट किए गए 767 मामलों में से केवल 376 परिवारों को ही सरकारी मुआवजे के लिए पात्र पाया गया, जबकि 200 मामले सरकारी मानदंडों को पूरा नहीं करने के कारण खारिज कर दिए गए. अकेले पश्चिमी विदर्भ में हुई 257 आत्महत्याओं में से केवल 76 परिवारों को ही आर्थिक मदद मिली. कांग्रेस विधायकों ने आरोप लगाया कि सरकार पात्र परिवारों तक भी तुरंत मदद पहुंचाने में विफल रही है और मामूली कारणों का हवाला देकर उन्हें वंचित किया जा रहा है. कांग्रेस ने सहायता राशि बढ़ाने की भी मांग की, लेकिन सरकार ने स्पष्ट किया कि वित्तीय सहायता बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं है.
हालांकि, सरकार ने आत्महत्याओं को रोकने के लिए उठाए जा रहे विभिन्न उपायों का जिक्र किया. इनमें बेमौसम बारिश और प्राकृतिक आपदाओं से फसल क्षति के लिए मुआवजा, पीएम किसान सम्मान योजना के तहत केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा 6000-6000 रुपये की वार्षिक सहायता, और निराश किसानों के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श सत्र आयोजित करना शामिल है. सरकार ने यह भी कहा कि वह फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने, सिंचाई के तहत अधिक भूमि लाने और अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है.
दलाई लामा अपना उत्तराधिकारी बताएंगे
दलाई लामा ने पुष्टि की है कि उनका उत्तराधिकारी पिछली परंपरा के अनुसार चुना जाएगा, जिससे सदियों पुराने इस पद को लेकर वर्षों से चली आ रही अटकलों पर विराम लग गया है. अपने 90वें जन्मदिन से कुछ दिन पहले बुधवार को एक वीडियो संदेश में, तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा कि गादेन फोडंग फाउंडेशन, जिसे उन्होंने इस संस्था को संरक्षित करने के लिए स्थापित किया था, के पास उनके भविष्य के पुनर्जन्म को मान्यता देने की शक्ति होगी. उन्होंने कहा कि तिब्बती बौद्ध नेता उनके उत्तराधिकारी की तलाश करेंगे और इस बात पर जोर दिया कि 'किसी और को इस मामले में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है'. 14वें दलाई लामा ने कहा कि उन्हें हाल के वर्षों में बौद्धों से कई संदेश मिले हैं, जिसमें इस पद को जारी रखने की मांग की गई है. उन्होंने कहा, 'इन सभी अनुरोधों के अनुरूप, मैं यह पुष्टि करता हूं कि दलाई लामा की संस्था बनी रहेगी'. रविवार, 6 जुलाई को दलाई लामा के आगामी जन्मदिन समारोह में अमेरिकी अधिकारियों की उच्च-स्तरीय भागीदारी देखने को मिलेगी, जो तिब्बती आध्यात्मिक नेता के लिए वैश्विक सम्मान को रेखांकित करता है. अमेरिका का प्रतिनिधित्व बेथानी पाउलोस मॉरिसन करेंगी, जो अमेरिकी विदेश विभाग के दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों के ब्यूरो में भारत और भूटान की उप सहायक सचिव हैं, जो एक महत्वपूर्ण राजनयिक संकेत है. सिद्धांत सिब्बल की रिपोर्ट के अनुसार, 'रविवार को समारोह में भारत सरकार की उपस्थिति भी होगी, जिसमें दो केंद्रीय मंत्री - संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू और संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग, लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी पार्षद ताशी ग्यालसन, कर्नाटक के गृह मंत्री गंगाधरैया परमेश्वर' शामिल हैं. भारत सरकार द्वारा 'एक प्रसिद्ध चीनी कलाकार की कलाकृति की भेंट' भी की जाएगी.
पाकिस्तान का बिना नाम लिए पहलगाम आतंकी हमले की निंदा
'न्यू इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के रणनीतिक गठबंधन क्वाड (Quad) ने 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले की कड़ी निंदा की है, लेकिन पाकिस्तान का नाम लिए बगैर ही. इस हमले में 26 आम नागरिक मारे गए थे, जिनमें 25 भारतीय और 1 नेपाली नागरिक शामिल था. वॉशिंगटन में आयोजित बैठक के बाद चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर आतंकवादियों, हमले के आयोजकों और उसके वित्तपोषकों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए तत्काल अंतरराष्ट्रीय सहयोग की मांग की. बयान में सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से अपील की गई कि वे अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुसार पूरी तरह सहयोग करें ताकि हमले के ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा मिल सके. हालांकि, बयान में पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया, न ही मई में भारत-पाकिस्तान के बीच चार दिन तक चले सैन्य तनाव का कोई ज़िक्र किया गया. हालाँकि, इस बयान की भाषा लगभग वैसी ही थी जैसी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद जारी की थी. उस वक्त UNSC के बयान में न तो पाकिस्तान का ज़िक्र था, न ही किसी आतंकी संगठन का नाम-इसके पीछे कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार, ग़ैर-स्थायी सदस्य पाकिस्तान का प्रभाव था. यह रवैया 2019 के पुलवामा हमले के बाद UNSC द्वारा जारी कड़े बयान से काफी अलग था, जिसमें भारत सरकार के साथ सहयोग और जैश-ए-मोहम्मद को ज़िम्मेदार ठहराने की बात स्पष्ट रूप से कही गई थी.
इस बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर, अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो, ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग, और जापान के विदेश मंत्री टेकेशी इवाया शामिल हुए.
जयशंकर ने दिया था इशारा | क्वाड बैठक से ठीक पहले, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत को उम्मीद है कि उसके साझेदार देश आतंकवाद के प्रति भारत के रुख को "समझेंगे और सराहेंगे". उन्होंने कहा — “आतंकवाद के शिकार और उसके अपराधियों को एक समान नहीं रखा जाना चाहिए. भारत अपना बचाव करेगा.” यह टिप्पणी उस समय आई जब दिल्ली के सत्ता गलियारों में यह नाराज़गी थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मई में भारत-पाक टकराव के बाद अपने बयान में दोनों देशों को फिर से एक ही तराजू पर रख दिया, जिसे भारत “री-हाइफनेशन” के रूप में देख रहा है.
पहलगाम पर भारत का रुख: दोहरा संदेश | भारत सरकार ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके अमेरिकी समकक्ष पीट हेगसेथ के बीच हुई फोन बातचीत के बाद जारी बयान में कहा था कि “ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर वैध कार्रवाई की, क्योंकि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित आतंकियों का सुरक्षित ठिकाना है.” लेकिन कुछ ही देर बाद, भारत ने बयान संशोधित कर दिया और पाकिस्तान अथवा ऑपरेशन सिंदूर का कोई उल्लेख नहीं किया. यह बदलाव संभवतः कूटनीतिक दबाव या संतुलन की नीति के चलते किया गया.
क्वाड का भविष्य और अमेरिका की सोच | जयशंकर ने क्वाड को एक “संगठित, चुस्त और लक्ष्य केंद्रित” समूह बनाने की बात कही. वहीं अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने माना कि क्वाड की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि “हम बैठकों और विचार-विमर्शों को असली कार्रवाई में कैसे बदलें.” रुबियो ने यह भी कहा कि क्वाड केवल सुरक्षा का मंच नहीं है, बल्कि यह आर्थिक विकास और महत्वपूर्ण खनिजों की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को विविध बनाने के लिए भी कार्य कर सकता है और यह उनका व्यक्तिगत लक्ष्य भी है.
कार्टून
बिहार
भ्रम और चिंता का माहौल, ग्रामीणों में मतदाता सूची से नाम कटने का डर
'द हिन्दू' के लिए अमित भेलारी की रिपोर्ट है कि बिहार में 28 जून से शुरू हुआ मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण भारी भ्रम और आशंका के साथ आगे बढ़ रहा है. यह 2003 के बाद राज्य में पहली बार ऐसा व्यापक पुनरीक्षण है और 30 सितंबर 2025 तक चलेगा. लेकिन ज़मीनी स्तर पर हालात उलझन भरे हैं. महमदा गांव, सारण ज़िले के 65 वर्षीय चंद्र मोहन सिंह के पास एक फॉर्म पहुंचा है. पूछने पर वे कहते हैं - “ये देखने आया है कि मैं मरा हूं या जिंदा.” उनका फॉर्म अभी भी खाली है. उन्हें नहीं मालूम कि इसे कैसे भरना है और क्यों दिया गया है.
चुनाव आयोग (EC) का कहना है कि बिहार के 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 4.96 करोड़ (जिनके नाम 2003 की सूची में थे) को सिर्फ एक फॉर्म और पुरानी वोटर लिस्ट की प्रति देनी है. बाकी 2.93 करोड़ लोग, जिनके नाम 2004 के बाद जुड़े या जो अब 18 साल के हुए हैं, उन्हें जन्म और निवास प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज़ देने होंगे. हालांकि, सारण जिले के कई गांवों में लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं है. फॉर्म बांटे गए हैं, पर ज्यादातर लोग निरक्षर हैं या समझ नहीं पा रहे कि फॉर्म भरें कैसे. BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) भी लोगों को पर्याप्त जानकारी नहीं दे पा रहे.
रामदई देवी (58) कहती हैं - “BLO साहब ने कहा भर दो और जल्दी जमा करो, पर क्या भरें हमें पता नहीं.” ऐसे ही योगेंद्र बैथा ने अपने पास आधार, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, बैंक पासबुक जैसी कई आईडी दिखाईं पर ईसी के नियमों के मुताबिक ये दस्तावेज़ मान्य नहीं हैं. वो कहते हैं - “अगर मुझे जन्म प्रमाण पत्र या जाति प्रमाण पत्र बनवाना है, तो जुलाई 26 तक नहीं बन पाएगा. फिर हम क्या करें?” आश्चर्यजनक रूप से, आधार कार्ड को मान्यता नहीं दी गई है, जबकि यही सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला दस्तावेज़ है.
कौन से दस्तावेज़ मान्य हैं?
जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, शैक्षणिक प्रमाण पत्र
स्थायी निवास, वन अधिकार, जाति प्रमाण पत्र,
सरकारी भूमि या घर का आवंटन प्रमाण पत्र,
1967 से पहले जारी सरकारी दस्तावेज़
कार्टून | अध्वर्यू

विश्लेषण
योगेन्द्र यादव: नोटबंदी के बाद वोटबंदी की कोशिश मूर्खतापूर्ण है या फिर शातिर
स्वराज इंडिया के सदस्य और भारत जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव ने “द इंडियन एक्सप्रेस” में लिखा है कि चुनाव आयोग द्वारा घोषित विशेष गहन पुनरीक्षण (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन-SIR), जिसे अभी बिहार में और फिर देशभर में लागू किया जाना है, भारतीय नागरिकों के मताधिकार पर अब तक का सबसे बड़ा हमला है. वास्तव में, जैसा कि आलोचकों ने आरोप लगाया है, यह नोटबंदी और देशबंदी के बाद वोटबंदी की एक कोशिश है. नीति में यह बदलाव या तो मूर्खतापूर्ण है या फिर शातिर, और यह करोड़ों साधारण भारतीयों का एकमात्र अधिकार— वोट देने का अधिकार— भी छीन सकता है.
बिहार में शुरू की गई इस कवायद को लेकर उन्होंने तीन मुख्य बिंदुओं को रेखांकित किया है :
राज्य से नागरिक पर जिम्मेदारी का स्थानांतरण : पहली बार, मतदाता सूची में नाम शामिल कराने की जिम्मेदारी राज्य से हटाकर नागरिक पर डाल दी गई है. यदि कोई नागरिक 25 जुलाई तक नया फॉर्म नहीं भरता, तो उसका नाम स्वतः मतदाता सूची से बाहर हो जाएगा. इससे भी गंभीर बात यह है कि अब हर व्यक्ति को अपनी नागरिकता का दस्तावेजी प्रमाण देना अनिवार्य कर दिया गया है. यह सीधे-सीधे एनआरसी (National Register of Citizens) को पिछले दरवाजे से लागू करने जैसा है.
दस्तावेज़ी प्रमाण की कठिनाई: चुनाव आयोग का दावा है कि केवल कुछ लोगों को ही नागरिकता का प्रमाण देना होगा, लेकिन आदेश के अनुसार हर मतदाता को फॉर्म के साथ फोटो, हस्ताक्षर, बुनियादी जानकारी और नागरिकता का प्रमाण देना अनिवार्य है. 2003 की मतदाता सूची में जिनका नाम है, वे उसका पेज लगाकर छूट सकते हैं. लेकिन 2003 के बाद हुई मौतें, पलायन, और स्थानांतरण को ध्यान में न रखते हुए, असल में करीब 4.74 करोड़ लोगों को नागरिकता का प्रमाण देना होगा. इसमें जन्मतिथि और जन्मस्थान के दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं, जो अधिकांश लोगों के पास नहीं हैं. 38 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को अपनी जन्मतिथि और स्थान का प्रमाण देना होगा. 20-38 वर्ष के लोगों को स्वयं और माता/पिता का प्रमाण देना होगा. 18-20 वर्ष के लोगों को स्वयं और दोनों माता-पिता का प्रमाण देना होगा.
अधिकांश लोगों के पास दस्तावेज़ नहीं : चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, लेकिन इनमें से अधिकांश बिहार में उपलब्ध ही नहीं हैं. जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट, सरकारी सेवा/पेंशन आईडी, जाति प्रमाणपत्र—बहुत कम लोगों के पास हैं. केवल मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र ही अपेक्षाकृत अधिक लोगों के पास है, लेकिन यह भी सबके पास नहीं है. अनुमान है कि करीब 2.5 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास कोई भी मान्य दस्तावेज़ नहीं है. इससे महिलाओं, गरीबों, दलित-आदिवासी और बहुजन समुदायों पर सबसे अधिक असर पड़ेगा.
सवाल है कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए चुनाव आयोग ने अचानक यह हास्यास्पद समयसीमा क्यों घोषित कर दी? 25 जून से 25 जुलाई के बीच 30 दिनों में, बिहार सरकार को लगभग 1 लाख बूथ-स्तरीय अधिकारियों (जिनमें से 20,000 से अधिक की अभी नियुक्ति बाकी है) से संपर्क करना है, उन्हें पुनरीक्षण के लिए प्रशिक्षित करना है, उन्हें सभी राजनीतिक दलों के लाखों बूथ-स्तरीय एजेंटों से जोड़ना है, जनता को इस प्रक्रिया के बारे में जागरूक करना है, हर घर में एन्यूमरेशन फॉर्म वितरित करना है और उन्हें 2003 की मतदाता सूची की एक प्रति उपलब्ध करानी है. इतना ही नहीं, उन्हें हर घर से भरा हुआ फॉर्म भी एकत्र करना है (जरूरत पड़ने पर तीन बार जाना होगा), इन्हें इंटरनेट पर अपलोड करना है, प्रमाणपत्रों का सत्यापन करना है और अपनी सिफारिशें देनी हैं. यह सब एक महीने के भीतर (जिसमें से एक हफ्ता बीत चुका है) करना है, जबकि बिहार में मानसून और बाढ़ का दौर चल रहा है! तो, जब तक चुनाव आयोग के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, हमें या तो इस आदेश को वापस लेने, दस्तावेजों की सूची में बड़े बदलाव (जैसा कि 30 जून को घोषित किया गया) या बिहार विधानसभा चुनावों को स्थगित किए जाने की उम्मीद करनी चाहिए.
अंत में यह पूछा जा सकता है कि अगर इतना बड़ा बदलाव जरूरी था, तो पिछले महीने मीडिया में 30 मई को रिपोर्ट की गई नई चुनाव आयोग द्वारा सूचीबद्ध 21 पहलों में विशेष गहन पुनरीक्षण क्यों नहीं था? आयोग ने पिछले महीने विभिन्न राष्ट्रीय दलों के प्रमुखों के साथ हुई बैठक में या उसके ठीक पहले देशभर में हुई 4,000 से अधिक सलाहकार बैठकों में इस बड़े प्रस्ताव का जिक्र क्यों नहीं किया? सिर्फ 25 दिनों में आयोग का मन किसने बदल दिया? अचानक कोई फोन कॉल? या 'चाय पर चर्चा'? दूसरे शब्दों में, इस SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) के पीछे असली "सर" कौन है?
मोदी के विदेश दौरों के नतीज़े क्या ?
विपक्ष दलों, खासकर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस, ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसा, जो बुधवार सुबह घाना, त्रिनिडाड और टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राजील और नामीबिया की पांच देशों की यात्रा पर निकले. इस अप्रैल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके बाद भारत की सैन्य कार्रवाई (ऑपरेशन सिंदूर) के बाद से विपक्षी दल मोदी की बार-बार विदेश यात्राओं के नतीजों पर सवाल उठा रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस ने बुधवार सुबह अपने “एक्स” हैंडल पर लिखा, “पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले को 71 दिन बीत चुके हैं, जिसमें 26 निर्दोष लोगों की जान गई, लेकिन अब तक किसी भी देश ने पाकिस्तान की स्पष्ट रूप से निंदा नहीं की है.” तृणमूल ने आगे लिखा, “यह सिर्फ विदेश नीति की विफलता नहीं, बल्कि एक राजनयिक आपदा है. बीजेपी के स्वयंभू, बहुचर्चित ‘विश्वगुरु’ के दर्जे से पूरी तरह गिरावट है.
रिलायंस कम्युनिकेशंस का खाता धोखाधड़ी घोषित : भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड के लोन खाते को 'धोखाधड़ी' के रूप में वर्गीकृत किया है, और अनिल अंबानी का नाम रिपोर्ट करने के लिए कार्रवाई शुरू कर रहा है. एसबीआई ने फाइलिंग के साथ संलग्न 23 जून, 2025 के पत्र में कहा, 'बैंक की धोखाधड़ी पहचान समिति ने रिलायंस कम्युनिकेशन लिमिटेड के लोन खाते को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने का फैसला किया है'. 30 जून को प्राप्त इस पत्र में कई अनियमितताओं का हवाला दिया गया है, जिसमें रिलायंस टेलीकॉम लिमिटेड और समूह की अन्य कंपनियों जैसी संबंधित संस्थाओं के माध्यम से संभावित फंड डायवर्जन और लोन की शर्तों का उल्लंघन शामिल है, जिसके कारण यह धोखाधड़ी वर्गीकरण हुआ. एसबीआई ने उल्लेख किया कि यह निर्णय कई कारण बताओ नोटिस और फोरेंसिक ऑडिट की जांच के बाद लिया गया है. बैंक ने कहा कि वह आरबीआई के मास्टर निर्देशों और परिपत्रों के अनुरूप लोन खाते और अनिल अंबानी के नाम दोनों की रिपोर्ट आरबीआई को कर रहा है.
संसद सुरक्षा चूक मामले में दो को जमानत : दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज दिसंबर 2023 के संसद सुरक्षा चूक मामले में दो आरोपियों, नीलम आज़ाद और महेश कुमावत को जमानत दे दी. आज़ाद और एक अन्य व्यक्ति ने संसद के बाहर 'तानाशाही नहीं चलेगी' के नारे लगाते हुए पीले धुएं के कनस्तर खोले थे, जबकि दो अन्य ने 13 दिसंबर को, जो 2001 के संसद पर आतंकवादी हमले की बरसी थी, सत्र के दौरान लोकसभा के अंदर और कनस्तर खोले थे. कुमावत को बाद में गिरफ्तार किया गया था. अधिकारियों ने सभी आरोपियों के खिलाफ यूएपीए लगाया है.
हैदराबाद प्लांट विस्फोट: लापरवाही के आरोप | द न्यूज़ मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, हैदराबाद के बाहर एक केमिकल प्लांट के उन श्रमिकों में से एक के बेटे ने, जिसकी सोमवार को रिएक्टर में विस्फोट होने से मौत हो गई थी, पुलिस शिकायत में आरोप लगाया है कि उसके पिता और अन्य कर्मचारियों ने बार-बार सुविधा की 'पुरानी मशीनरी' और इससे होने वाले जोखिम के बारे में अपने प्रबंधकों को बताया था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. पुलिस ने इस शिकायत के आधार पर एक एफआईआर दर्ज की, जिसमें सिगाची इंडस्ट्रीज के प्रबंधन के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या सहित कई धाराएं लगाई गई हैं. सिगाची ने कहा है कि विस्फोट में 40 श्रमिक मारे गए थे, और द हिंदू की रिपोर्ट है कि आज दोपहर तक 37 शव बरामद किए गए हैं.
सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों के लिए आरक्षण: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों से संबंधित अपने कर्मचारियों - रजिस्ट्रार, वरिष्ठ निजी सहायक, कनिष्ठ न्यायालय सहायक, सहायक लाइब्रेरियन और चैंबर अटेंडेंट - की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए आरक्षण को औपचारिक रूप दिया है. यह कदम भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, जो दलित हैं, की अध्यक्षता वाली अदालत के तहत आया है.
वर्चुअल सुनवाई में वकील ने पी बीयर, अवमानना की कार्रवाई: गुजरात उच्च न्यायालय की एक पीठ के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पेश होने के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता भास्कर तन्ना के बीयर पीते हुए दिखाई देने के बाद, अदालत ने कल वकील के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की और कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में तन्ना की साख पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. अदालत की एक खंडपीठ ने बार एंड बेंच के अनुसार कहा, 'ऐसा कृत्य निस्संदेह युवा वकीलों को प्रभावित करता है क्योंकि बार वरिष्ठ वकील को रोल मॉडल और संरक्षक के रूप में देखता है'.
केवल 2% सटीक: दिल्ली पुलिस की फेशियल रिकग्निशन तकनीक
'द वायर' के लिए आस्था सब्यसाची ने दिल्ली पुलिस की फेशियल रिकग्निशन तकनीक को लेकर एक लंबी रिपोर्ट की है. साल 2020 के दिल्ली दंगों में एक व्यक्ति को सिर्फ फेशियल रिकग्निशन तकनीक के आधार पर गिरफ्तार किया गया और वह साढ़े चार साल तक जेल में बंद रहा. अली (बदला हुआ नाम) को चांद बाग इलाके से गिरफ्तार किया गया था. उसके वकील का कहना है कि वीडियो फुटेज में दिख रहा व्यक्ति अलग कपड़े पहने था, जबकि अली के कपड़े अलग थे. दिल्ली पुलिस ने स्वीकार किया है कि 2020 के दंगों से जुड़े 750 से अधिक मामलों में फेशियल रिकग्निशन का इस्तेमाल किया गया. हालांकि, अब तक सुनवाई हुए 80% से अधिक मामलों में आरोपी बरी हो गए हैं या उन्हें छोड़ दिया गया है. फेशियल रिकग्निशन तकनीक की सटीकता महज 2% है, जो 2019 में 1% से भी कम हो गई थी. इसके बावजूद पुलिस इस तकनीक पर भरोसा करके लोगों को गिरफ्तार कर रही है. इस मामले को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने 2019 में चिंता जताई थी कि तीन साल में 5,000 से अधिक लापता बच्चों के मामलों में यह तकनीक एक भी केस सुलझाने में कामयाब नहीं हुई. पुलिस 80% समानता को सकारात्मक परिणाम मानती है, जबकि अमेरिकी संस्था ACLU के टेस्ट में इसी थ्रेशहोल्ड पर 28 कांग्रेस सदस्यों की गलत पहचान हुई थी. विशेषज्ञों का कहना है कि यह तकनीक मुस्लिम, दलित और आदिवासी समुदायों के खिलाफ पूर्वाग्रह बढ़ाती है.
विश्लेषण
हरतोष सिंह बल: मोदी के आगे निकल चुका है आरएसएस
फॉरेन अफेयर्स पत्रिका में द कैरेवन के संपादक हरतोष सिंह बल ने लम्बा लेख भारत में हिंदू दक्षिणपंथ के मजबूती से टिके रहने पर लिखा है. हरतोष लिखते हैं, कि भारत के 2024 आम चुनाव के परिणामों ने लगभग सभी को चौंका दिया था. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जिससे लगातार तीसरी बार संसदीय बहुमत की उम्मीद थी, को देश की 545 सीटों में से 240 से भी कम सीटें मिलीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने समर्थकों से संसद में महाबहुमत का वादा किया था, लेकिन इसके बजाय उन्हें अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन करने पर मजबूर होना पड़ा. यह पहली बार था जब मोदी को अपनी सरकार चलाने के लिए भाजपा के बाहर की राजनीतिक पार्टियों पर निर्भर रहना पड़ा.
चुनावी परिणामों का भारत के विपक्ष और मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी नीतियों से दबे करोड़ों आम भारतीयों ने स्वाभाविक रूप से स्वागत किया. प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म किया, जो देश का एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य था. उन्होंने मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाले नागरिकता कानून बनाए. उनकी सरकार ने अयोध्या में एक पूर्व मस्जिद की जगह पर राम मंदिर का निर्माण किया. मोदी के सबसे हालिया चुनावी अभियान में इन उपलब्धियों का जश्न मनाया गया, और प्रधानमंत्री ने मुस्लिम-विरोधी बयानबाजी और इस्लामोफोबिया में लिप्त हुए, जिसने उन्हें पिछले चुनावों में निर्णायक जीत दिलाई थी.
हालांकि, चुनावों ने मोदी को कमजोर जरूर किया है, लेकिन भाजपा ने राष्ट्रीय चुनाव के बाद से हुए अधिकांश क्षेत्रीय चुनावों में जीत हासिल की है, जिसमें वे स्थान भी शामिल हैं जहां इसकी हार की उम्मीद थी. पार्टी ने अपने हिंदू राष्ट्रवादी रुख को कम नहीं किया है, बल्कि रणनीतिक बदलाव किया है. मोदी पर भरोसा करने के बजाय, पार्टी ने 100 वर्षीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर अधिक निर्भरता शुरू की है, जो इसकी मूल संस्था और भारत का व्यापक हिंदू राष्ट्रवादी संगठन है.
हरतोष के मुताबिक कई मायनों में, यह सामान्य स्थिति में वापसी है. आरएसएस ने 2014 में मोदी की भारी जीत तक भाजपा पर नियंत्रण रखा था. हालांकि मोदी अभी भी वैचारिक रूप से संगठन के प्रति प्रतिबद्ध हैं, उनकी राजनीतिक लोकप्रियता ने सुनिश्चित किया कि उन्हें इसके सामने जवाबदेह नहीं होना पड़ा. मार्च में, मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार संगठन के मुख्यालय की तीर्थयात्रा की. हाल के राज्य चुनावी अभियान मोदी के नाम या छवि के साथ नहीं, बल्कि संगठन के विशाल कार्यकर्ता दल द्वारा चलाए गए. आरएसएस की सफलता उन लोगों के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए जो सोचते हैं कि हिंदू राष्ट्रवाद कम हो रहा है. यह सुझाता है कि भाजपा के पतन की भविष्यवाणियां बहुत बढ़ा-चढ़ाकर की गई थीं और पार्टी मोदी के बिना भी बर्बाद नहीं है. वास्तव में, आरएसएस की बदौलत पार्टी पहले से कहीं अधिक मजबूत और टिकाऊ हो सकती है. आरएसएस ने एक शताब्दी के अस्तित्व में शक्तिशाली नेटवर्क बनाए हैं जो चुनाव लड़ते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं और बीच में सब कुछ करते हैं. भविष्य में अगर भाजपा मोदी के बिना भी हो, तो हिंदू राइट भारतीय राजनीति पर अपना नियंत्रण बनाए रखेगा. भारत का राजनीतिक और सामाजिक तंत्र तेजी से आरएसएस मशीन बनता जा रहा है. कोई भी व्यक्ति जो भारत के साथ व्यवहार करना चाहता है, उसे इस तथ्य से निपटना होगा कि अब से वे वास्तव में आरएसएस के साथ व्यवहार करेंगे. पूरा लेख यहां पढ़ें.
रेखा गुप्ता के नए बंगले में 24 एसी, 5 स्मार्ट टीवी, 80 से ज्यादा पंखे
अरविंद केजरीवाल के सरकारी बंगले को ‘शीशमहल’ बताने वाली भाजपा खुद क्या कर रही है? “हिंदुस्तान टाइम्स” में पारस सिंह की खबर के अनुसार दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नए सरकारी बंगले (बंगला नंबर 1, राज निवास मार्ग) में जल्द ही मरम्मत और साज-सज्जा का काम शुरू होगा. बंगले में 24 एयर कंडीशनर, 5 स्मार्ट टीवी (चार 55 इंच और एक 65 इंच), 3 बड़े झूमर, 80 से ज्यादा पंखें लगाए जाएंगे. किचन में नई मशीनें जैसे गैस हॉब, इलेक्ट्रिक चिमनी, माइक्रोवेव, टोस्ट ग्रिल, वॉशिंग मशीन, डिशवॉशर, 50 लीटर प्रति घंटे की आरओ वॉटर प्लांट की सुविधा दी जाएगी. रेनोवेशन के फर्स्ट फेज का कुल बजट 60 लाख रुपए है. सिर्फ एयर कंडीशनिंग पर 11 लाख रुपए से ज्यादा खर्च होगा और लाइट्स, झूमरों पर 6 लाख रुपए का बजट रखा गया है. बंगला नंबर 1 एक टाइप VII आवास है, जिसमें 4 बेडरूम, ड्राइंग रूम, विजिटर्स हॉल, नौकरों का कमरा, किचन, लॉन और बैकयार्ड शामिल हैं.
जानकारी के अनुसार, यह इमारत पहले उपराज्यपाल सचिवालय के कार्यालय के रूप में उपयोग की जाती थी, न कि निवास के रूप में. सीएम के परिवार के रहने योग्य बनाने के लिए व्यापक मरम्मत और उन्नयन की आवश्यकता है. जन निर्माण विभाग ने मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को राज निवास मार्ग, सिविल लाइंस, उत्तर दिल्ली के बंगला नंबर 1 और 2 आवंटित किया है. दूसरा बंगला अब 'कैंप ऑफिस' के रूप में सार्वजनिक बैठकों के लिए इस्तेमाल होगा. आगे के सिविल कार्यों में दोनों बंगलों के बीच रास्ता बनाना, संरचनात्मक बदलाव, पेंटिंग और पाइपलाइन आदि शामिल हैं. मुख्यमंत्री फिलहाल अपने निजी निवास शालीमार बाग में रहती हैं. चुनाव से पहले उन्होंने स्पष्ट किया था कि वह अपने पूर्ववर्ती के निवास 6, फ्लैगस्टाफ रोड में नहीं जाएंगी, जिसे उन्होंने 'भ्रष्टाचार का प्रतीक' बताया था और इस इमारत को 'शीश महल' कहा था.
दिल्ली में 60 हजार महिलाओं की पेंशन बंद
दिल्ली की भाजपा सरकार ने 60 हजार से अधिक महिलाओं की पेंशन बंद कर दी है. दरअसल, महिला एवं बाल विकास विभाग ने सत्यापन कराया तो सामने आया कि कई महिलाएं पुनर्विवाहित होने के बावजूद खुद को तलाकशुदा बता रही थीं, स्थायी आय के बावजूद सहायता ले रही थीं या फिर अपने पंजीकृत पते पर निवास नहीं कर रही थीं.
इस योजना के तहत विधवा, तलाकशुदा, अलग रह रही और बेसहारा महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है. नवंबर 2024 में शुरू हुए डोर-टू-डोर सत्यापन अभियान में लगभग 4.25 लाख लाभार्थियों को कवर किया गया. सत्यापन के बाद अपात्र महिलाओं के नाम लाभार्थी सूची से हटा दिए गए हैं. वहीं, पात्र महिलाओं को पेंशन मिलना जारी है. वर्तमान में लगभग 3.65 लाख महिलाएं इस योजना के तहत नियमित पेंशन प्राप्त कर रही हैं. यह योजना 2007-08 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर विधवाओं को नियमित आय का स्रोत उपलब्ध कराना था.
रेसीडेंसी में पटना आये बुजुर्ग कवि की यौन हिंसा के बाद हिंदी साहित्य में विवाद, विरोध, लामबंदियां
“डरना है तो डरो।/ नहीं! किसी का नाम मत लो।/ रो-रोकर मर जाना, / पर नाम मत लेना।/वे बड़े लोग हैं, ताक़तवर हैं।/ तुम कौन हो, एक नई? / कौन सुनेगा तुम्हें?”
ये पंक्तियाँ एक उभरती हुई महिला कवि ने लिखी हैं, जो यौन हिंसा की पीड़ित हैं. उनकी पहचान गोपनीय रखी जा रही है, लेकिन उन्होंने चुप्पी नहीं साधी, उन्होंने आवाज़ उठाई, नाम लिया और सुनी गईं. उन्हें जबरदस्त समर्थन और एकजुटता मिली.
‘फ्रंटलाइन’ के लिए लिखे अपने सामूहिक लेख में अंजलि देशपांडे और किंशुक गुप्ता ने लिखा है कि सब कुछ शुरू हुआ एक ऐतिहासिक लेखन रेज़ीडेंसी से, जो नई धारा पत्रिका के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में पटना के सूरजपुरा हाउस में आयोजित की गई थी. यह वही सूरजपुरा हाउस है जो राजा राधिका रमण सिंह का पारिवारिक आवास रहा है, और जहां से 1950 में नई धारा पत्रिका शुरू हुई थी. रेज़ीडेंसी में दो लेखकों को आमंत्रित किया गया-राजस्थान के वरिष्ठ कवि कृष्ण कल्पित और एक युवा महिला कवि. आयोजन के एक सप्ताह बाद, महिला कवि ने कल्पित पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए औपचारिक शिकायत दर्ज कराई. अगले ही दिन कल्पित को रेज़ीडेंसी छोड़नी पड़ी. जल्द ही सोशल मीडिया पर उनका नाम सामने आ गया. प्रतिक्रिया तेज और तीखी थी.
साहित्य से प्रतिरोध की ओर : महिला और पुरुष लेखकों ने दो ऑनलाइन सभाएं कीं और आयोजकों को एक खुला पत्र लिखा, जिसमें जांच और उचित कार्रवाई की मांग की गई. पत्र में यह भी पूछा गया कि कल्पित जैसे दुहरावधर्मी और स्त्री-विरोधी व्यक्ति को इतनी प्रतिष्ठित रेज़ीडेंसी में कैसे चुना गया. कल्पित पूर्व में भी कम से कम दो जानी-मानी महिला लेखिकाओं के प्रति अपमानजनक टिप्पणियों के कारण विवादों में रह चुके हैं. जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, और जन संस्कृति मंच ने कल्पित की खुली निंदा की. राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ ने उन्हें अपनी कार्यकारिणी से निष्कासित कर दिया और प्राथमिक सदस्यता भी रद्द कर दी. एक निर्णायक ने चुप्पी तोड़ी और बताया कि उन्होंने कल्पित की नियुक्ति का विरोध किया था क्योंकि इतनी वरिष्ठता में उन्हें चुना ही नहीं जाना चाहिए था, लेकिन उन्होंने यौन उत्पीड़न के पुराने आरोपों के आधार पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी. आलोचना के दबाव में नई धारा ने एक बयान जारी करते हुए कहा - “हमने निष्पक्ष जांच की और आवश्यक कदम उठाए. शिकायतकर्ता हमारी कार्रवाई से संतुष्ट हैं.” वहीं, कल्पित ने फेसबुक पोस्ट में आरोपों से इनकार किया और खुद को "शेर" बताते हुए बाकियों को "भेड़िया" कहा. उन्होंने “इंडिया अमेरिका सोसाइटी ऑफ लंदन” नामक एक अज्ञात संस्था से मानहानि नोटिस भी जारी किया.
जब बहस ने चेहरों के नकाब उतारे : इधर, इस मसले पर छिड़ी बहस ने कई नामचीन लेखकों की प्रगतिशीलता की परतें उधेड़ दीं. सबसे हैरान करने वाला पक्ष था प्रसिद्ध लेखक उदय प्रकाश का, जिन्होंने पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाकर सुर्खियां बटोरी थीं. उन्होंने कल्पित के पक्ष में खुलकर लिखा - “मैं कृष्ण कल्पित के लिए चिंतित हूं… मैं भारत सरकार से आग्रह करता हूं कि राज्य की राजधानियों के गुंडों से एक कवि को बचाया जाए…” उन्होंने पहली बार जाति का मुद्दा उठाया और पूछा - “उसकी जाति क्या है? और इन गुंडों की भी?” उनकी पोस्ट में पीड़िता के लिए एक शब्द नहीं था. नतीजतन कई पाठक निराश हुए. निवेदिता झा ने लिखा - “आपकी पोस्ट पढ़कर महसूस हुआ कि चाहे जितना बड़ा लेखक हो, पुरुषत्व की परत से बाहर नहीं निकल पाता.” जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी ने संयमित प्रतिक्रिया दी - “मुद्दा महिलाओं के प्रति आचरण का है.” पीड़िता की पहचान को उजागर कर, उसकी तस्वीर पोस्ट कर, कहा गया - "वो तो अभी भी पटना में मज़े ले रही है." फिर ट्रोलिंग शुरू हुई. "मर्यादा में रहो", "तुम्हें अपने आचरण पर ध्यान देना चाहिए", "फेमिनिज़्म की दुकान" जैसी टिप्पणियां की गईं. जनवादी लेखक संघ ने बयान जारी कर इन हमलों की निंदा की और कहा - “हम उसकी पहचान उजागर करने, फोटो डालने और पीड़िता को उपदेश देने वालों की भर्त्सना करते हैं.”
जब कविता जवाब बनी: फिर, पीड़िता ने सोशल मीडिया पर अपनी कविता ‘रात के तीन बजे हैं…’ साझा की और अपनी चिट्ठी का अंश लिखा — “या तो कल्पित को यहां से हटाया जाए, या माफीनामा दें. मैं डर के कारण रेज़ीडेंसी छोड़ना नहीं चाहती. गुनहगार के जुर्म की सज़ा मुझे नहीं दी जा सकती और मैं अन्याय नहीं सहूंगी.”
शेख हसीना को 6 महीने की जेल
‘द ढाका ट्रिब्यून’ अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश की एक अदालत ने देश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) द्वारा अदालत की अवमानना के एक मामले में अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को छह महीने की जेल की सजा सुनाई है. हसीना के खिलाफ यह फैसला अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण-1 की तीन-सदस्यीय पीठ द्वारा सुनाया गया, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति एमडी गुलाम मुर्तुजा मजूमदार ने की. न्यायाधिकरण ने गैबांधा के गोबिंदगंज के शकील अकंद बुलबुल को भी दो महीने की जेल की सजा सुनाई. यह पहली बार है जब पिछले साल पद छोड़ने और देश छोड़कर भाग जाने के बाद अपदस्थ अवामी लीग नेता को किसी मामले में सजा सुनाई गई है. अदालत का यह फैसला बांग्लादेश के अपराध न्यायाधिकरण द्वारा हसीना के मृत्युदंड की पिछली मांग पर विवाद खड़ा होने के बाद उनके राज्य द्वारा नियुक्त वकील को हटाने के कुछ दिनों बाद आया है.
ट्रम्प की जोहरान ममदानी को गिरफ्तारी की धमकी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने न्यूयॉर्क के राज्य विधायक जोहरान ममदानी को आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) के अभियानों का विरोध करने पर गिरफ्तारी की धमकी दी है. राष्ट्रपति ने फ्लोरिडा के एवरग्लेड्स में नए तथाकथित 'एलिगेटर अल्काट्राज' प्रवासी हिरासत केंद्र में पत्रकारों से बात करते हुए 33 वर्षीय डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पर 'कम्युनिस्ट' होने का आरोप लगाना भी जारी रखा. जब एक रिपोर्टर ने पूछा कि ममदानी के लिए उनका क्या संदेश है - जब उन्होंने न्यूयॉर्क शहर के डेमोक्रेटिक मेयर प्राइमरी के बाद एक विजय भाषण में कहा था कि वह 'नकाबपोश ICE एजेंटों को हमारे पड़ोसियों को निर्वासित करने से रोकेंगे' - तो ट्रम्प ने जवाब दिया, 'ठीक है, तो हमें उसे गिरफ्तार करना होगा'. ममदानी ने राष्ट्रपति की टिप्पणियों की निंदा करते हुए कहा कि ट्रम्प ने उन्हें गिरफ्तार करने की धमकी दी है 'इसलिए नहीं कि मैंने कोई कानून तोड़ा है, बल्कि इसलिए कि मैं ICE को हमारे शहर में आतंक फैलाने नहीं दूंगा'. ममदानी ने अपने बयान में कहा, 'उनके बयान न केवल हमारे लोकतंत्र पर हमले का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि हर उस न्यूयॉर्कर को एक संदेश भेजने का प्रयास हैं जो परछाई में छिपने से इनकार करता है: यदि आप बोलेंगे, तो वे आपके पीछे आएंगे'. 'हम इस धमकी को स्वीकार नहीं करेंगे'.
जोहरान ममदानी की अमेरिकी नागरिकता छीनने की तैयारी में ट्रम्प प्रशासन, 'आतंकवाद का समर्थन' के लगे हैं आरोप
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि ट्रम्प प्रशासन ने न्यूयॉर्क के मेयर पद के डेमोक्रेटिक उम्मीदवार ज़ोहरान ममदानी की अमेरिकी नागरिकता छीनने की संभावना जताई है. यह कदम विदेशी मूल के उन नागरिकों पर कार्रवाई के हिस्से के तौर पर उठाया जा रहा है, जिन्हें कुछ अपराधों का दोषी पाया गया है. व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने संकेत दिए कि ममदानी की नागरिकता की जांच की जा सकती है. यह बयान उस समय आया जब टेनेसी से रिपब्लिकन सांसद एंडी ओग्लेस ने ममदानी पर “आतंकवाद के समर्थन को नागरिकता हासिल करते समय छिपाने” का आरोप लगाते हुए उनकी नागरिकता रद्द करने की मांग की.
कौन हैं ज़ोहरान ममदानी? 33 वर्षीय ममदानी का जन्म युगांडा में हुआ था. उनके माता-पिता भारतीय मूल के हैं. वे 2018 में अमेरिकी नागरिक बने. पिछले सप्ताह न्यूयॉर्क के मेयर प्राइमरी चुनाव में उन्होंने एंड्रयू कुओमो सहित कई दिग्गजों को हराकर पहला स्थान पाया और इसी के साथ उनकी मुखर फिलिस्तीन समर्थक राजनीति सुर्खियों में आ गई. उनकी जीत के बाद सोशल मीडिया पर इस्लामोफोबिक हमलों का दौर शुरू हो गया. साथ ही, ट्रम्प प्रशासन ने ऐसे नागरिकों की पहचान और नागरिकता रद्द करने का निर्देश दिया है जिन्होंने "जानबूझकर तथ्य छिपाए या गलत जानकारी दी हो."
क्या हैं आरोप? : ओग्लेस ने अटॉर्नी जनरल पैम बॉन्डी को लिखे पत्र में कहा कि ममदानी ने नागरिकता हासिल करते समय "हमास को समर्थन देने" की बात छिपाई. सबूत के तौर पर उन्होंने ममदानी के एक रैप गीत “My Love to the Holy Land Five” का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने "हमास का समर्थन करने वाले" एक संगठन के दोषियों को "मेरे लोग" कहा. उन्होंने ममदानी द्वारा "ग्लोबलाइज़ द इन्फ़तादा" जैसे नारे की आलोचना न करने को भी आतंकवाद के समर्थन की तरह बताया.
ओग्लेस ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, "ज़ोहरान ‘लिटिल मोहम्मद’ ममदानी एक यहूदी-विरोधी, समाजवादी और कम्युनिस्ट हैं जो न्यूयॉर्क शहर को तबाह कर देंगे. उन्हें देश से बाहर फेंकना चाहिए." जब प्रेस सचिव लेविट से इस पर पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “मैंने ये दावे नहीं देखे हैं, लेकिन अगर यह सच है तो निश्चित ही जांच होनी चाहिए.” न्याय विभाग ने पुष्टि की कि उसे ओग्लेस का पत्र मिला है, लेकिन कोई और टिप्पणी नहीं की. इस कार्रवाई की आलोचना करते हुए कनेक्टिकट से डेमोक्रेटिक सीनेटर क्रिस मर्फी ने कहा, “यह नस्लवादी बकवास है. ट्रम्प अरबपतियों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, चाहे वह इस तरह की घृणात्मक राजनीति ही क्यों न हो.” ममदानी, जो खुद को “डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट” कहते हैं, ने अपने अभियान में वर्किंग क्लास के मुद्दों को केंद्र में रखा है. उनकी जीत के बाद से उनके पुराने सोशल मीडिया पोस्ट और राजनीतिक गतिविधियों की गहन जांच हो रही है. ट्रम्प ने उन्हें “एक शुद्ध कम्युनिस्ट” बताते हुए धमकी दी है कि अगर ममदानी मेयर बने और “सही से व्यवहार नहीं किया,” तो न्यूयॉर्क की फंडिंग रोक दी जाएगी.
चलते-चलते
जब चुंबक ने खींच लिया दिल में जा फंसा धातु का टुकड़ा

यूक्रेनी सैनिक सर्गी मेलनिक अपनी जेब से कागज में लिपटा एक जंग खाया टुकड़ा निकालते हैं. "यह मेरे गुर्दे को छूता हुआ, फेफड़े और दिल में घुस गया था," वे धीरे से कहते हैं. यह रूसी ड्रोन का श्रेपनेल (धातु का नुकीला टुकड़ा) है जो पूर्वी यूक्रेन में लड़ाई के दौरान उनके दिल में फंस गया. "मुझे पहले तो एहसास भी नहीं हुआ... डॉक्टरों ने कहा, मैं किस्मत वाला हूं." बीबीसी यूक्रेनियन ने इस पर एक बड़ा फीचर किया है.
केवल किस्मत नहीं, एक चिकित्सा तकनीक ने उनकी जान बचाई: एक शक्तिशाली चुंबकीय एक्सट्रैक्टर. हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. सर्गी मैक्सिमेंको ने दिल की धड़कन के बीच फंसे इस धातु के टुकड़े को एक पतली चुंबकीय डिवाइस की मदद से निकाला. "बड़े चीरे की जरूरत नहीं. एक छोटा सा चीरा लगाकर मैं मैग्नेट डालता हूं और यह श्रेपनेल को खींच लेता है." ड्रोन युद्ध के कारण शार्पनेल घाव अब 80% युद्धक चोटें हैं और यह डिवाइस जीवनरक्षक साबित हो रही है.
इस क्रांतिकारी उपकरण का श्रेय जाता है ओलेह बाइकोव को. एक पूर्व वकील, जो 2014 से सेना की मदद कर रहे हैं. मोर्चे पर मिले चिकित्सकों की बातों से प्रेरित होकर उनकी टीम ने चुंबकीय निष्कर्षकों का आधुनिकीकरण किया. क्रीमियन युद्ध (1850) के समय से घावों से धातु निकालने में मैग्नेट का उपयोग होता आया है. पर ओलेह ने लचीले पेट सर्जरी मॉडल, सूक्ष्म निष्कर्षक और हड्डियों के लिए अतिशक्तिशाली उपकरण बनाए. ओलेह एक पेन जैसी डिवाइस से हैमर उठाकर इसकी शक्ति प्रदर्शित करते हैं. विश्व प्रसिद्ध युद्ध चिकित्सक डेविड नॉट इस उपकरण को "गेम चेंजर" बताते हैं. घाव में शार्पनेल ढूंढना "तिनके के ढेर में सुई खोजने" जैसा है. मैग्नेट से खोज आसान हो गई है, जिससे खून बहना कम होता है और जानें बचती हैं. युद्ध की विशेष परिस्थितियों में प्रमाणीकरण प्रक्रिया को तात्कालिक तौर पर टाला गया है. ओलेह कहते हैं, "ये उपकरण जान बचाते हैं... अगर यह अपराध है तो मैं जिम्मेदारी लेने को तैयार हूं." अब तक 3,000 से अधिक यूनिट यूक्रेन के अस्पतालों और मोर्चे पर तैनात चिकित्सकों तक पहुंच चुके हैं. सर्गी की पत्नी यूलिया आभार से भरी हैं, "उस एक्सट्रैक्टर को बनाने वालों का शुक्रिया... उनकी वजह से मेरा पति जीवित है." युद्ध की भयावहता में, यह छोटा सा चुंबकीय चमत्कार नई उम्मीद बनकर उभरा है.
पाठकों से अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.