03/08/2025: जब हवा में टकराए भारत-पाक | रेवन्ना को उम्र कैद | इकोनमी पर बात की, बिना ट्रम्प का नाम लिये | बिहार में 65 लाख मतदाता सूची से बाहर | ग़ज़ा में भुखमरी हमास की चाल? | एडिनबरा में 1857 पर नाटक
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आज की सुर्खियां
चीनी मिसाइल और किल चेन के जरिये पाकिस्तान ने कैसे मार गिराया भारत का राफ़ेल
'डेड इकोनमी' बयान पर ट्रम्प का नाम लिये बिना मोदी ने स्वदेशी आत्मनिर्भरता की टेर लगाई
आँकड़ों से जितनी दिखती है, उससे कहीं ज्यादा है भारत में आर्थिक असमानता
बलात्कारी रेवन्ना को उम्र कैद
तेजस्वी का आरोप मेरा नाम मतदाता सूची में नहीं, डीएम ने कहा- नाम तो है, बूथ बदला है
बिहार में 65 लाख मतदाता सूची से बाहर
2024 चुनाव की हेराफेरी साबित करेंगे : राहुल
ग़ज़ा में भुखमरी हमास की आख़िरी चाल ?
शेख हसीना के खिलाफ मुकदमा शुरू
जब तोप के मुँह पर बाँधकर सुनाई गई ब्रिटिश क्रूरता की कहानी
ऑपरेशन सिंदूर
चीनी मिसाइल और किल चेन के जरिये पाकिस्तान ने कैसे मार गिराया भारत का राफ़ेल
7 मई की आधी रात के ठीक बाद, पाकिस्तान वायु सेना (PAF) के ऑपरेशंस रूम में लगी स्क्रीन भारत में सीमा पार दर्जनों सक्रिय दुश्मन विमानों की स्थिति से लाल हो गई.
रॉयटर्स के लिए सईद शाह और शिवम पटेल अपने लंबे रिपोर्ताज में लिखते हैं कि एयर चीफ़ मार्शल ज़हीर सिद्धू भारतीय हमले की आशंका में कई दिनों से उसी कमरे के पास एक गद्दे पर सो रहे थे. नई दिल्ली ने पिछले महीने भारतीय कश्मीर में हुए हमले के लिए इस्लामाबाद पर आतंकवादियों का समर्थन करने का आरोप लगाया था, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे. इस्लामाबाद के किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार करने के बावजूद, भारत ने जवाबी कार्रवाई का संकल्प लिया था, जो 7 मई की तड़के पाकिस्तान पर हवाई हमलों के साथ हुई.
सिद्धू ने पाकिस्तान के बेशक़ीमती चीनी निर्मित J-10C जेट को उड़ान भरने का आदेश दिया. एक वरिष्ठ पाकिस्तानी वायु सेना (PAF) अधिकारी, जो ऑपरेशंस रूम में मौजूद थे, ने कहा कि सिद्धू ने अपने कर्मचारियों को राफ़ेल को निशाना बनाने का निर्देश दिया था, जो फ्रांस निर्मित लड़ाकू विमान है और भारत के बेड़े का गहना है, और जिसे लड़ाई में कभी नहीं गिराया गया था. अधिकारी ने कहा, "वह राफ़ेल चाहते थे."
विशेषज्ञों का अनुमान है कि अंधेरे में हुई एक घंटे की इस लड़ाई में लगभग 110 विमान शामिल थे, जो इसे दशकों में दुनिया की सबसे बड़ी हवाई लड़ाई बनाता है.
रॉयटर्स ने मई में अमेरिकी अधिकारियों का हवाला देते हुए बताया था कि J-10 ने कम से कम एक राफ़ेल को मार गिराया. इसके गिराए जाने से सैन्य समुदाय में कई लोग हैरान रह गए और इसने चीनी विकल्पों के ख़िलाफ़ पश्चिमी सैन्य हार्डवेयर की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिए. राफ़ेल बनाने वाली कंपनी डसॉल्ट (Dassault) के शेयरों में लड़ाकू विमान के गिराए जाने की ख़बरों के बाद गिरावट आई. इंडोनेशिया, जिसके पास राफ़ेल के ऑर्डर लंबित हैं, ने कहा है कि वह अब J-10 ख़रीदने पर विचार कर रहा है - जो चीन के इस विमान को विदेशों में बेचने के प्रयासों के लिए एक बड़ी बढ़त है.
लेकिन रॉयटर्स द्वारा दो भारतीय अधिकारियों और उनके तीन पाकिस्तानी समकक्षों के साथ किए गए साक्षात्कार में पाया गया कि राफ़ेल का प्रदर्शन मुख्य समस्या नहीं थी: इसके गिराए जाने का केंद्र J-10 लड़ाकू विमान द्वारा दागी गई चीन निर्मित PL-15 मिसाइल की रेंज के बारे में एक भारतीय ख़ुफ़िया विफलता थी. चीन और पाकिस्तान ही एकमात्र ऐसे देश हैं जो J-10, जिन्हें 'विगरस ड्रैगन्स' (Vigorous Dragons) के नाम से जाना जाता है, और PL-15 दोनों का संचालन करते हैं.
भारतीय अधिकारियों ने कहा कि ग़लत ख़ुफ़िया जानकारी ने राफ़ेल पायलटों को एक झूठा आत्मविश्वास दिया कि वे पाकिस्तानी फायरिंग रेंज से बाहर थे, जिसे वे केवल 150 किलोमीटर के आसपास मानते थे, जो कि PL-15 के निर्यात संस्करण की व्यापक रूप से बताई गई सीमा है. PAF अधिकारी ने कहा, "हमने उन्हें घात लगाकर पकड़ा," और कहा कि इस्लामाबाद ने भारतीय पायलटों को भ्रमित करने के प्रयास में दिल्ली के सिस्टम पर एक इलेक्ट्रॉनिक युद्ध हमला किया. भारतीय अधिकारियों ने उन प्रयासों की प्रभावशीलता पर विवाद किया है.
लंदन के रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट (RUSI) थिंक-टैंक के हवाई युद्ध विशेषज्ञ जस्टिन ब्रोंक ने कहा, "भारतीयों को गोली लगने की उम्मीद नहीं थी. और PL-15 स्पष्ट रूप से लंबी दूरी पर बहुत सक्षम है." पाकिस्तानी अधिकारियों के अनुसार, राफ़ेल से टकराने वाली PL-15 को लगभग 200 किलोमीटर (124.27 मील) दूर से दागा गया था, और भारतीय अधिकारियों के अनुसार और भी दूर से. यह इसे अब तक दर्ज की गई सबसे लंबी दूरी की हवा से हवा में की गई स्ट्राइक में से एक बना देगा.
भारत के रक्षा और विदेश मंत्रालयों ने ख़ुफ़िया ग़लतियों के बारे में टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया. दिल्ली ने एक राफ़ेल के मार गिराए जाने की बात स्वीकार नहीं की है, लेकिन फ्रांस के वायु सेना प्रमुख ने जून में संवाददाताओं से कहा था कि उन्होंने उस लड़ाकू विमान और भारत द्वारा उड़ाए गए दो अन्य विमानों, जिसमें एक रूसी निर्मित सुखोई भी शामिल है, के नुकसान के सबूत देखे हैं. डसॉल्ट के एक शीर्ष कार्यकारी ने भी उस महीने फ्रांसीसी सांसदों को बताया था कि भारत ने अभियानों में एक राफ़ेल खो दिया था, हालांकि उनके पास विशिष्ट विवरण नहीं थे.
पाकिस्तान की सेना ने एक प्रवक्ता द्वारा की गई पिछली टिप्पणियों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि उसकी पेशेवर तैयारी और संकल्प उसके द्वारा तैनात किए गए हथियारों से ज़्यादा महत्वपूर्ण थे. चीन के रक्षा मंत्रालय ने रॉयटर्स के सवालों का जवाब नहीं दिया. डसॉल्ट और सुखोई के निर्माता UAC ने भी टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया.
रॉयटर्स ने हवाई लड़ाई का ब्योरा तैयार करने के लिए आठ पाकिस्तानी और दो भारतीय अधिकारियों से बात की, जिसने दोनों परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच चार दिनों की लड़ाई की शुरुआत की जिससे वाशिंगटन में चिंता पैदा हो गई. सभी अधिकारियों ने राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों पर चर्चा करने के लिए गुमनाम रहने की शर्त पर बात की.
पाकिस्तानी और भारतीय अधिकारियों ने कहा कि इस्लामाबाद के पास न केवल अपनी मिसाइलों की रेंज के साथ आश्चर्य का तत्व था, बल्कि उसने अपने सैन्य हार्डवेयर को ज़मीन और हवा में निगरानी से अधिक कुशलता से जोड़ने में कामयाबी हासिल की, जिससे उसे युद्ध के मैदान की एक स्पष्ट तस्वीर मिली. ऐसे नेटवर्क, जिन्हें "किल चेन" (kill chains) के रूप में जाना जाता है, आधुनिक युद्ध का एक महत्वपूर्ण तत्व बन गए हैं.
चार पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने हवा, ज़मीन और अंतरिक्ष सेंसर को जोड़कर एक "किल चेन" या एक मल्टी-डोमेन ऑपरेशन बनाया. दो पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा कि इस नेटवर्क में एक पाकिस्तानी-विकसित प्रणाली, डेटा लिंक 17 शामिल थी, जिसने चीनी सैन्य हार्डवेयर को स्वीडिश-निर्मित निगरानी विमान सहित अन्य उपकरणों से जोड़ा. विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रणाली ने भारत के करीब उड़ने वाले J-10 को दूर मंडरा रहे निगरानी विमान से रडार फ़ीड प्राप्त करने की अनुमति दी, जिसका अर्थ है कि चीनी निर्मित लड़ाकू विमान अपने रडार बंद कर सकते थे और बिना पता चले उड़ सकते थे. पाकिस्तान की सेना ने इस बिंदु पर टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया.
भारतीय अधिकारियों ने कहा कि दिल्ली एक समान नेटवर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, और कहा कि उनकी प्रक्रिया अधिक जटिल थी क्योंकि देश ने निर्यातकों की एक विस्तृत श्रृंखला से विमान प्राप्त किए थे.
यूके के सेवानिवृत्त एयर मार्शल ग्रेग बैगवेल, जो अब RUSI में एक फेलो हैं, ने कहा कि इस घटना ने निर्णायक रूप से चीनी या पश्चिमी हवाई संपत्तियों की श्रेष्ठता साबित नहीं की, लेकिन इसने सही जानकारी रखने और उसका उपयोग करने के महत्व को दिखाया. बैगवेल ने कहा, "इसमें विजेता वह पक्ष था जिसके पास सबसे अच्छी स्थितिजन्य जागरूकता (situational awareness) थी."
7 मई की तड़के भारत द्वारा पाकिस्तान में उन लक्ष्यों पर हमला करने के बाद, जिन्हें उसने आतंकवादी ढांचा कहा था, सिद्धू ने अपने स्क्वाड्रनों को रक्षा से हमले में बदलने का आदेश दिया. पांच PAF अधिकारियों ने कहा कि भारत ने लगभग 70 विमान तैनात किए थे, जो उनकी अपेक्षा से अधिक थे और इसने इस्लामाबाद की PL-15 को एक लक्ष्य-समृद्ध वातावरण प्रदान किया. भारत ने यह नहीं बताया है कि कितने विमानों का इस्तेमाल किया गया.
बैगवेल ने कहा कि 7 मई की लड़ाई आधुनिक युग की पहली बड़ी हवाई प्रतियोगिता थी जिसमें हथियारों का इस्तेमाल दृश्य सीमा से परे लक्ष्यों पर हमला करने के लिए किया जाता है, यह देखते हुए कि भारत और पाकिस्तान दोनों के विमान लड़ाई की अवधि के दौरान अपने हवाई क्षेत्रों के भीतर ही रहे.
पांच पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा कि भारतीय सेंसर और संचार प्रणालियों पर एक इलेक्ट्रॉनिक हमले ने राफ़ेल के पायलटों की स्थितिजन्य जागरूकता को कम कर दिया. दो भारतीय अधिकारियों ने कहा कि झड़पों के दौरान राफ़ेल अंधे नहीं हुए थे और भारतीय उपग्रहों को जाम नहीं किया गया था. लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि पाकिस्तान ने सुखोई को बाधित किया था, जिसके सिस्टम को दिल्ली अब अपग्रेड कर रहा है.
भारत के रक्षा अताशे ने जकार्ता में एक विश्वविद्यालय संगोष्ठी में बताया कि दिल्ली ने कुछ विमान खो दिए "केवल राजनीतिक नेतृत्व द्वारा (पाकिस्तान के) सैन्य प्रतिष्ठानों और उनके हवाई सुरक्षा पर हमला न करने की बाधा के कारण."
भारत के चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ जनरल अनिल चौहान ने पहले रॉयटर्स को बताया था कि दिल्ली ने शुरुआती नुकसान के बाद जल्दी से "रणनीति में सुधार" किया. 7 मई की हवाई लड़ाई के बाद, भारत ने पाकिस्तानी सैन्य बुनियादी ढांचे को निशाना बनाना और आसमान में अपनी ताक़त का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. दोनों पक्षों के अधिकारियों के अनुसार, इसकी भारत-निर्मित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ने बार-बार पाकिस्तान की हवाई सुरक्षा को भेद दिया.
10 मई को, भारत ने कहा कि उसने पाकिस्तान में कम से 'नौ हवाई अड्डों और रडार स्थलों पर हमला किया. भारतीय और पाकिस्तानी अधिकारियों के अनुसार, उसने दक्षिणी पाकिस्तान में एक हैंगर में खड़े एक निगरानी विमान को भी निशाना बनाया. उसी दिन बाद में एक युद्धविराम पर सहमति बनी, जब अमेरिकी अधिकारियों ने दोनों पक्षों के साथ बातचीत की.
इस घटना के बाद, भारत के डिप्टी आर्मी चीफ़ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल सिंह ने पाकिस्तान पर लड़ाई के दौरान चीन से "लाइव इनपुट" प्राप्त करने का आरोप लगाया, जिसका अर्थ रडार और सैटेलाइट फ़ीड से था. उन्होंने कोई सबूत नहीं दिया और इस्लामाबाद ने इस आरोप का खंडन किया.
जब जुलाई में एक ब्रीफिंग में पाकिस्तान के साथ बीजिंग की सैन्य साझेदारी के बारे में पूछा गया, तो चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने संवाददाताओं से कहा कि यह काम "दोनों देशों के बीच सामान्य सहयोग का हिस्सा है और किसी तीसरे पक्ष को लक्षित नहीं करता है."
दो PAF अधिकारियों ने कहा कि बीजिंग के वायु सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल वांग गैंग ने जुलाई में पाकिस्तान का दौरा किया ताकि यह चर्चा की जा सके कि इस्लामाबाद ने राफ़ेल के लिए "किल चेन" बनाने के लिए चीनी उपकरणों का उपयोग कैसे किया था. चीन ने उस बातचीत के बारे में पूछे जाने पर कोई जवाब नहीं दिया. पाकिस्तानी सेना ने जुलाई में एक बयान में कहा कि वांग ने "मल्टी डोमेन ऑपरेशंस में पीएएफ के युद्ध-सिद्ध अनुभव से सीखने में गहरी रुचि व्यक्त की थी."
इकोनमी जिंदा या?
'डेड इकोनमी' बयान पर ट्रम्प का नाम लिये बिना मोदी ने स्वदेशी आत्मनिर्भरता की टेर लगाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हालिया टिप्पणी पर अप्रत्यक्ष रूप से जवाब दिया, जिसमें भारत की अर्थव्यवस्था को 'डेड' (मृत) बताया गया था. पीएम मोदी ने कहा कि भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है और उसे वैश्विक अस्थिरता के बीच अपने हितों की रक्षा में सतर्क रहना होगा.
वाराणसी में एक रैली को संबोधित करते हुए, पीएम मोदी ने आर्थिक आत्मनिर्भरता के महत्व पर ज़ोर दिया और किसानों, छोटे उद्योगों और युवाओं के रोज़गार के लिए अपनी सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया. उनकी यह टिप्पणी ट्रंप द्वारा भारतीय आयातों पर 25% टैरिफ़ की घोषणा करने और रूस के साथ भारत के निरंतर व्यापार पर और अधिक आर्थिक दंड की चेतावनी देने के कुछ ही दिनों बाद आई है.
प्रधानमंत्री ने कहा, "वैश्विक अस्थिरता का माहौल है. सभी देश अपने व्यक्तिगत हितों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है, और इसीलिए भारत को अपने आर्थिक हितों के मामले में सतर्क रहना होगा."
हालांकि मोदी ने ट्रंप का नाम नहीं लिया, लेकिन उनकी टिप्पणियों को अमेरिकी राष्ट्रपति के इस दावे का एक अप्रत्यक्ष जवाब माना गया कि भारत की अर्थव्यवस्था "डूब" गई थी और यह अमेरिकी बाज़ारों पर बहुत अधिक निर्भर करती है.
विश्लेषण
मिहिर शर्मा: ट्रम्प की व्यापार नीति से मुश्किल में मोदी, भारत पर टैरिफ़ और प्रतिबंध की धमकी
ब्लूमबर्ग में मिहिर शर्मा लिखते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी व्यापार नीतियों से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक मुश्किल स्थिति में डाल दिया है. ट्रंप ने भारत से होने वाले अमेरिकी आयात पर 25% टैरिफ़ लगाने की घोषणा की है, जिससे भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह टैरिफ़ वियतनाम, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर लगाए गए टैरिफ़ से बहुत ज़्यादा नहीं है, लेकिन इसमें एक पेच है. ट्रंप ने भारत के "सबसे कठोर और आपत्तिजनक" गैर-टैरिफ़ बाधाओं और रूस से सैन्य उपकरण व ऊर्जा ख़रीदने के लिए एक अतिरिक्त दंड लगाने की भी बात कही है.
शर्मा का मानना है कि यह एक दिखावा या सौदेबाज़ी की रणनीति हो सकती है. ट्रंप चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी के वार्ताकार व्यापार सौदे में आख़िरी समय पर कुछ और रियायतें दें. रिपोर्ट के मुताबिक़, मोदी के लिए मुश्किल यह है कि अगर वे कोई भी रियायत देते हैं, तो यह उनके विरोधियों को हमला करने का मौक़ा देगा. ट्रंप ने हाल ही में भारत-पाकिस्तान सैन्य गतिरोध में मध्यस्थता करने और व्यापार सौदे की पेशकश करने का दावा किया था, जो नई दिल्ली के लिए शर्मिंदगी भरा था. भारत की लंबे समय से नीति रही है कि वह इस्लामाबाद के साथ विवादों में किसी भी अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप को अस्वीकार करता है.
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, "पाकिस्तान और संयुक्त राज्य अमेरिका अपने विशाल तेल भंडारों को विकसित करने पर मिलकर काम करेंगे. हम उस तेल कंपनी को चुनने की प्रक्रिया में हैं जो इस साझेदारी का नेतृत्व करेगी. क्या पता, शायद वे किसी दिन भारत को भी तेल बेचेंगे." यह टिप्पणी भारत पर दबाव बनाने की एक और कोशिश मानी जा रही है.
रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि मोदी अपनी 'मज़बूत नेता' की छवि को नुक़सान पहुँचाए बिना ट्रंप को और क्या पेशकश कर सकते हैं. लेखक सुझाव देते हैं कि मोदी सरकार आयातित पॉलिएस्टर से लेकर धातु की पानी की बोतलों तक की गुणवत्ता की जाँच के लिए बनाए गए नियमों को ख़त्म कर सकती है. इसी तरह, मक्का और सोयाबीन के आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) वेरिएंट की अनुमति देना भी एक विकल्प हो सकता है.
हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मोदी को डेयरी आयात और जैव ईंधन (biofuels) पर अपनी स्थिति मज़बूत रखनी होगी. भारत में यह शर्त है कि दूध, मक्खन और पनीर केवल उन जानवरों से आ सकते हैं, जिन्होंने जुगाली करने वाले या सुअर मूल के ऊतकों वाला चारा न खाया हो. कोई भी भारतीय सरकार देश की शाकाहारी आबादी के इस मूल सांस्कृतिक मूल्य का त्याग नहीं कर सकती. इसी तरह, अमेरिकी जैव ईंधन का स्वागत नहीं किया जाएगा क्योंकि यह स्थानीय किसानों के हितों को नुक़सान पहुँचाएगा.
जहाँ तक ऊर्जा का सवाल है, रूस से तेल का आयात अचानक बंद करने से पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतें बढ़ सकती हैं और महंगाई फिर से भड़क सकती है. हालांकि, यहाँ एक सौदे की संभावना है. लेखक का सुझाव है कि अमेरिकी प्राकृतिक गैस का एक घटक - ईथेन - मुकेश अंबानी के पेट्रोकेमिकल साम्राज्य के लिए सही हो सकता है, और यह अमेरिका को भी फ़ायदा पहुँचा सकता है.
विश्लेषण
मोहित सत्यानंद | डेड इकोनमी? डेड निफ्टी !
डेड इकोनमी, ट्रंप ने भारत के बारे में यह बात ठीक तब कही, जब मैं 'डेड निफ्टी' के बारे में लिखने की सोच रहा था.
बेशक, ये दोनों एक ही बात नहीं हैं. 'मृत निफ्टी' एक तथ्य है, जबकि 'मृत अर्थव्यवस्था' एक ऐसे व्यक्ति का दावा है जो तथ्यों की बहुत ज़्यादा परवाह नहीं करता.
सबसे पहले, निफ्टी की बात करते हैं - पिछले एक साल में, निफ्टी में लगभग 2% की गिरावट आई है और यह 22,000 और 26,000 के बीच घूमता रहा है. इसमें ऊपर जाने की कोशिशों की तुलना में नीचे की ओर गिरावट कहीं ज़्यादा देखने को मिली है. सबसे बड़ा सेक्टोरल इंडेक्स - बैंक निफ्टी - 8% बढ़ा, और इसने बाज़ार को और गहरी गिरावट से बचा लिया. उपभोग में व्यापक मंदी के साथ, एफएमसीजी सेक्टर में लगभग 10%, ऑटो में 12% और रियल्टी में 17% की गिरावट आई है. हमारे आईटी निर्यातक, जो मेरे अपने पोर्टफोलियो का मुख्य हिस्सा थे, उन्हें भी 15% का नुकसान हुआ.
और 'मृत अर्थव्यवस्था'? आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था 6% से कुछ ज़्यादा की दर से बढ़ रही है, जो दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है, आदि. सच कहूँ तो, मुझे तो ऐसा कुछ नहीं दिखता. न तो उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री में, न ही कारों की बिक्री में.
निश्चित रूप से दोपहिया वाहनों की बिक्री में लंबे समय से जारी मंदी में तो बिल्कुल नहीं, जो 2019 में 2.1 करोड़ के शिखर पर थी, और अब, छह साल और 6.1 करोड़ भारतीयों की आबादी जुड़ जाने के बाद, वापस 2 करोड़ तक पहुँचने की कोशिश कर रही है.
यहाँ तक कि महामारी के बाद हवाई यातायात में बहुचर्चित उछाल भी वास्तव में काफी कमज़ोर है: कोविड लॉकडाउन से ठीक पहले, वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए, घरेलू यात्री यात्राओं की संख्या 14.3 करोड़ थी. 2024-25 में, यह संख्या 16.13 करोड़ थी, जो 2.3% की वार्षिक वृद्धि है.
जीएसटी कलेक्शन के आंकड़े घरेलू गतिविधियों में मंदी को रेखांकित करते हैं. रिफंड में उछाल के साथ, जुलाई का शुद्ध राजस्व पिछले साल की तुलना में केवल 1.7% बढ़ा. रिफंड में एक बड़ी वृद्धि आंकड़ों में अस्थिरता लाती है, लेकिन अगर हम कुल आंकड़ों को देखें, तो जून में कलेक्शन 6.3% और जुलाई में 7.5% बढ़ा - यानी औसतन लगभग 7%. उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति लगभग 3% प्रति वर्ष चल रही है, ऐसे में GST कलेक्शन अर्थव्यवस्था में 4% की वृद्धि का सुझाव देते हैं.
फिर भी, यह दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, और 'मृत अर्थव्यवस्था' से बहुत दूर है. दुर्भाग्य से, डोनाल्ड ट्रंप हमारे निर्यात पर टैरिफ़ बढ़ाकर और हमें रूस से सस्ते तेल को छोड़ने के लिए मजबूर करके हमारी रफ़्तार धीमी करने पर तुले हुए लगते हैं. इस बीच, एआई को अपनाने की गति हमारे आईटी निर्यातकों के भविष्य में अनिश्चितता पैदा कर रही है. कुछ कंपनियां AI का लाभ उठाने वाले उत्पादों के लिए खुद को फिर से तैयार करेंगी, अन्य पीछे रह जाएंगी, और कई फुर्तीली युवा कंपनियां उभरेंगी. हालांकि, इंजीनियरिंग स्नातकों के रोज़गार पर तत्काल असर एक हक़ीक़त है, और यह घरेलू उपभोग में वृद्धि को और धीमा कर देगा.
लेकिन, वापस 'मृत निफ्टी' पर आते हैं. एक साल तक कोमा में रहने के बाद भी, निफ्टी की कीमत कमाई के 21 गुना के आक्रामक स्तर पर है. हमारी शीर्ष एफएमसीजी कंपनियां, जिनकी बिक्री मुश्किल से बढ़ रही है, उनकी कीमत कमाई के 50 और 60 गुना पर है, जो मूल्यांकन के नाम पर एक मज़ाक है. एआई क्रांति के पीछे की ताक़त, और 4 ट्रिलियन डॉलर के मूल्यांकन तक पहुँचने वाली पहली कंपनी एनविडिया की कीमत 56 गुना है!!
लेकिन असली मुश्किल यह है - केवल एक जानकार भारतीय निवेशक, जिसके पास विदेशी ट्रेडिंग खाता खोलने की क्षमता है, वही एनविडिया को खरीद सकता है. हममें से अधिकांश लोग अपनी बचत म्यूचुअल फंड में डालेंगे (सही है, आख़िरकार). भारतीय निवेशक काफ़ी हद तक भारतीय इक्विटी बाज़ारों में निवेश करने के लिए एक तरह से फँसे हुए हैं, इसलिए 'मृत निफ्टी' शायद अपने हक़दार होने से पहले ही फिर से जीवित हो जाए. मैं इस उम्मीद के भरोसे नहीं बैठा हूँ, और न ही मैं हिंदुस्तान लीवर को एनविडिया से भी ज़्यादा के मल्टीपल पर खरीद रहा हूँ. लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था विविध है और, 4% की वार्षिक वृद्धि पर भी, गतिशील है. भारतीय उद्यमिता, इंस्पेक्टर राज की लंबी उम्र के बावजूद, ज़िंदा और सक्रिय है, और मैं युवा भारतीय व्यवसायों का एक उत्साही समर्थक हूँ.
'मृत निफ्टी' के बाहर भी जीवन है - और बहुत जीवन है.
मोहित सत्यानंद उद्यमिता और सांस्कृतिक दोनों क्षेत्रों में एक प्रमुख व्यक्ति हैं। वह टीमवर्क आर्ट्स का नेतृत्व करते हैं, जो जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल और विश्व स्तर पर अन्य कला उत्सवों के आयोजन के लिए प्रसिद्ध है। उनके व्यावसायिक उपक्रमों में भारत के पहले सफल स्नैक फूड ब्रांड, क्रैक्स की स्थापना शामिल है, और उन्होंने इनलिंग्वा जैसी पहलों के साथ शिक्षा क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। व्यवसाय के अलावा, मोहित अपनी विविध रुचियों के लिए जाने जाते हैं, जिनमें अभिनय और पर्वतारोहण और ट्रायथलॉन जैसे खेल शामिल हैं, जो उनके बहुमुखी व्यक्तित्व को दर्शाते हैं।सब्सटैक पर यहां अपनी बातें लिखते हैं.
डाटा
आँकड़ों से जितनी दिखती है, उससे कहीं ज्यादा है भारत में आर्थिक असमानता
विश्व बैंक द्वारा भारत के उपभोग डेटा के विश्लेषण के अनुसार, भारत में उपभोग का अंतर कम होता दिख रहा है, लेकिन आय की असमानता तेज़ी से बढ़ रही है. इंडिया स्पेंड के लिए नुशाइबा इकबाल ने एक विश्लेषण किया है.
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारत का उपभोग-आधारित गिनी गुणांक (Gini coefficient) - जो असमानता का एक सामान्य माप है - 2011-12 में 28.8 से घटकर 2022-23 में 25.5 हो गया, जो उपभोग असमानता में कमी का सुझाव देता है. लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यह आंकड़ा सर्वेक्षण की सीमाओं और अति-अमीर और सबसे कमज़ोर लोगों को शामिल न किए जाने के कारण वास्तविक पैमाने को कम करके आंकता है.
गिनी गुणांक का उपयोग असमानता को एक संख्या में मापने के लिए किया जाता है. यह 0 (पूर्ण समानता) से 1, या 0 से 100 (यदि प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाए) तक होता है, जहां उच्च मान व्यापक असमानताओं का संकेत देते हैं. गिनी गुणांक लोरेंज़ वक्र (Lorenz curve) से प्राप्त होता है, जो आय वितरण को दर्शाता है: वक्र जितना अधिक पूर्ण समानता की रेखा से विचलित होता है, गिनी उतना ही अधिक होता है.
चूंकि भारत में व्यापक आय डेटा की कमी है, ख़ासकर एक बड़ी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के कारण, विश्लेषक उपभोग को एक प्रॉक्सी के रूप में उपयोग करते हैं. लेकिन यह दोनों सिरों पर चरम सीमाओं को समतल कर देता है. उदाहरण के लिए, उच्च आय वाले व्यक्ति अधिक बचत करते हैं, और उन्हें इन सर्वेक्षणों से बाहर रखा जा सकता है, जिसका अर्थ है कि उपभोग डेटा अक्सर वास्तविक असमानता को कम आंकता है.
यहां विरोधाभास यह है कि जहां उपभोग असमानता कम हुई लगती है, वहीं आय-आधारित असमानता एक अलग कहानी बताती है. टैक्स-रिटर्न डेटा का उपयोग करते हुए, वर्ल्ड इनइक्वलिटी डेटाबेस और विश्व बैंक पाते हैं कि भारत का आय गिनी 2004 में 51 से बढ़कर 2023 में 61 हो गया. यह शीर्ष पर आय के बढ़ते संकेंद्रण को इंगित करता है.
हालांकि, जबकि उपभोग डेटा अपने आप में मज़बूत हैं, दशक के दौरान कार्यप्रणाली में अंतर तुलनाओं को त्रुटियों से भरा बना देता है, जैसा कि विशेषज्ञों ने इंडियास्पेंड को बताया. इस एक्सप्लेनर में, हम भारत में आय, उपभोग और धन के आंकड़ों को देखते हैं.
अर्थशास्त्रियों ने इसका एक समाधान निकाला है: आबादी के वयस्क कामकाजी सदस्यों द्वारा दायर आयकर रिटर्न. विश्व बैंक वर्ल्ड इनइक्वलिटी डेटाबेस (WID) का उपयोग करता है, जिसे थॉमस पिकेटी सहित विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा संकलित किया गया है, जो असमानता के विशेषज्ञ हैं.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) उन परिवारों को उनके उपभोग व्यय के आधार पर समूहित करता है जिनका वह सर्वेक्षण करता है. सर्वेक्षण किए गए परिवारों से भोजन, किराया, उपयोगिताओं और शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं पर खर्च की गई राशि बताने के लिए कहा जाता है. 2011-12 के दौर से पहले, सर्वेक्षणों में सभी रिपोर्ट की गई वस्तुओं पर सात दिनों की एक समान रिकॉल अवधि का उपयोग किया जाता था. 2011-12 के दौर में सभी संदर्भ अवधियों से डेटा था, जो अपने आप में डेटा को हाल के दौरों के साथ अतुलनीय नहीं बनाता है, जैसा कि राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष पी.सी. मोहनन ने कहा. उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण अंतर सर्वेक्षण टीम द्वारा की गई यात्राओं की संख्या है.
एनडीएसओ हर पांच साल में उपभोग पर डेटा प्रकाशित करता है, कुछ अपवादों को छोड़कर. पिछला दौर, जिसके डेटा को "उपभोग के स्तर और पैटर्न में भिन्नता के साथ-साथ परिवर्तन की दिशा में बदलाव" के कारण रोक दिया गया था, जो सरकार के अनुसार, "अनुमानों में अशुद्धियों का कारण बनता", 2017-18 में आयोजित किया गया था. इससे पहले का दौर 2011-12 में आयोजित किया गया था, जिसमें एक मिश्रित रिकॉल अवधि का भी उपयोग किया गया था.
ग़रीबी का अनुमान भी उपभोग डेटा से लिया जाता है. इसलिए, ग़रीबी रेखाएं जो ग़रीबी दर का अनुमान लगाने के लिए उपयोग की जाती थीं, वे भी उपभोग डेटा से प्राप्त की गई थीं.
बलात्कारी रेवन्ना को उम्र कैद
बेंगलुरु की एक विशेष अदालत ने शनिवार को जद (एस) के पूर्व सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना को दुष्कर्म मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई और कुल 11 लाख रुपये का जुर्माना लगाया. कोर्ट ने आदेश दिया कि इस पूरी राशि का भुगतान पीड़िता को मुआवजे के रूप में किया जाए.
प्रज्वल रेवन्ना को आईपीसी की धारा 376(2)(क) के तहत सजा हुई, जो पद के दुरुपयोग के दौरान दुष्कर्म के लिए है, और 376(2)(न) के तहत जो एक ही महिला के साथ बार-बार दुष्कर्म की बात करता है, इसके तहत उम्र कैद हुई और 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया. इसके अतिरिक्त, आईपीसी की धारा 354(ब) (उद्देश्य से बल प्रयोग या हमला) के तहत 7 साल कड़ी सजा और 50,000 रुपये का जुर्माना, धारा 354(स) (व्यूअरिज्म) के तहत 2 साल कड़ी सजा, और धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत 2 साल कड़ी सजा और 10,000 रुपये का जुर्माना सुनाया गया. कुलमिलाकर 11 लाख रुपये का जुर्माना और 7 लाख रुपये का मुआवजा पीड़िता को देने का आदेश दिया गया है. यह मामला प्रज्वल रेवन्ना द्वारा साल 2021 में घरेलू नौकरानी के साथ अपने फार्महाउस और बेंगलुरु में दो बार दुष्कर्म का है. प्रज्वल रेवन्ना पर यौन उत्पीड़न, धमकी, और साक्ष्य नष्ट करने के आरोप भी थे. उनकी गिरफ्तारी मई 2024 में हुई थी और यह मुकदमा जनवरी 2025 से सुनवाई में था.
चुनाव आयोग
तेजस्वी का आरोप मेरा नाम मतदाता सूची में नहीं, डीएम ने कहा- नाम तो है, बूथ बदला है
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने शनिवार को दावा किया कि उनका नाम 1 अगस्त, 2025 को चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित बिहार के "ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल्स" में शामिल नहीं है. उन्होंने कहा कि यह "लोकतंत्र की हत्या और मतदान के अधिकार को छीनने" के समान है. तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान ऑनलाइन अपने नाम की जांच करवाई, जिसमें 'कोई रिकॉर्ड नहीं मिला' दिखाया गया. उनका कहना था कि जब एक नेता का नाम सूची से गायब किया जा सकता है, तो आम लोगों की क्या स्थिति होगी? साथ ही, उन्होंने बूथ स्तर के अधिकारी पर आरोप लगाया कि उसने फॉर्म जमा करने की रसीद भी नहीं दी.
हालांकि, तेजस्वी यादव के इस आरोप को चुनाव आयोग ने बेबुनियाद बताते हुए खारिज कर दिया. पटना के जिला निर्वाचन पदाधिकारी डॉ. त्यागराजन एसएम ने “एक्स” पर कहा, “विपक्ष के नेता का नाम ड्राफ्ट मतदाता सूची में दर्ज है. उनका नाम बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के पुस्तकालय भवन, मतदान केंद्र संख्या 204 में, क्रमांक 416 पर दर्ज है. पूर्व में उनका नाम इसी विश्वविद्यालय के पुस्तकालय भवन, मतदान केंद्र संख्या 171 पर, क्रमांक 481 में दर्ज था."
जिला निर्वाचन अधिकारी के स्थिति स्पष्ट करने के बाद, तेजस्वी ने यह सवाल उठाया कि एपिक नंबर बदलता नहीं है, फिर कैसे बदला? यदि मेरा नंबर बदल सकता है तो कितने लोगों का एपिक नंबर बदला होगा? मतदाताओं के नाम काटने की यह साजिश है. कई आईएएस अफसर ट्वीट कर रहे हैं उनके नाम कट गए हैं. चुनाव आयोग को बूथ वार जानकारी देना चाहिए. असल में, तेजस्वी ने मीडिया को जो एपिक कार्ड दिखाया था, उसमें एपिक नंबर जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा जारी की गई ड्राफ्ट मतदाता सूची से अलग था. यद्यपि जिला निर्वाचन अधिकारी ने इस आरोप से भी इनकार किया. कहा- नंबर वही है, जो 2020 के विधानसभा चुनाव में था.
2024 चुनाव की हेराफेरी साबित करेंगे : राहुल
इस बीच चुनाव आयोग पर हमला तेज करते हुए लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने शनिवार को कहा कि सबसे पहले गुजरात चुनाव परिणामों ने उनके 'संदेह' को जन्म दिया, जिसकी 2024 महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों ने पुष्टि कर दी.
दिल्ली में कांग्रेस के विधि विभाग की वार्षिक बैठक में गांधी ने बीजेपी की 'एकतरफा जीतने की क्षमता' पर सवाल उठाया और 2024 के लोकसभा चुनावों में हेराफेरी का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, "चुनाव कैसे चुराया गया, जब हम ये डेटा जारी करेंगे, तो आपको चुनावी सिस्टम में आई गड़बड़ी को देखकर झटका लगेगा. यह सचमुच एक एटम बम जैसा है."
"सच्चाई यह है कि भारत में चुनावी व्यवस्था मर चुकी है. एक बात याद रखें, भारत के प्रधानमंत्री बहुत मामूली बहुमत से प्रधानमंत्री हैं. अगर 10-15 सीटों में हेराफेरी हुई – और हमें संदेह है, असल में संख्या 70, 80, 100 के करीब है – तो वे प्रधानमंत्री नहीं होते. हम साबित करेंगे कि कैसे लोकसभा चुनाव हेराफेरी से हो सकते हैं और हुए हैं." गांधी ने कर्नाटक की एक विधानसभा सीट का भी उदाहरण दिया, जहां कांग्रेस ने मतदाता सूची में वोटरों की तस्वीरें और नाम का परीक्षण किया और पाया कि 1.5 लाख मतदाता 'फर्जी' थे. उन्होंने वकीलों से संविधान की रक्षा करने का आह्वान किया, जिसे हर मोर्चे पर योजनाबद्ध तरीके से कमजोर किया जा रहा है और आरोप लगाया कि चुनाव आयोग एक संस्था के रूप में समाप्त कर दिया गया है और इस पर कब्जा कर लिया गया है.
बिहार में 65 लाख मतदाता सूची से बाहर
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि बिहार की प्रारंभिक मतदाता सूची जारी हो गई है, जिसमें कुल 65 लाख मतदाताओं की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है. यह सूची विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के पहले चरण के बाद चुनाव आयोग द्वारा शुक्रवार को प्रकाशित की गई. चुनाव आयोग के अनुसार, राज्य में 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाता थे, लेकिन अब केवल 7.24 करोड़ मतदाता प्रारूप सूची में शामिल हैं. आयोग का कहना है कि हटाए गए मतदाता या तो मृतक हैं, दो स्थानों पर पंजीकृत हैं, बिहार से स्थायी रूप से पलायन कर गए हैं या अज्ञात हैं. राज्य की राजधानी पटना में सबसे अधिक 3.95 लाख मतदाता सूची से बाहर हुए हैं. पूर्वी चंपारण, मधुबनी और गोपालगंज जिलों में भी तीन-तीन लाख से अधिक नाम हटा दिए गए हैं. दस जिलों में दो-दो लाख और 13 जिलों में एक-एक लाख से अधिक मतदाता हटाए गए हैं.
INDIA गठबंधन के नेताओं ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग उनके सवालों के संतोषजनक जवाब नहीं दे सका. उन्होंने पूछा कि जनवरी 2025 की अंतिम मतदाता सूची से केवल छह महीनों में इतने नाम कैसे हटाए गए. क्या हटाए गए सभी 65 लाख मतदाताओं को नोटिस दिया गया और क्या उन्हें सुनवाई का अवसर मिला?
इधर, चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि जिन लोगों के नाम प्रारंभिक सूची में हैं, उन्हें अभी भी निवास और जन्म प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना होगा. आधार कार्ड और वोटर ID मान्य दस्तावेजों में शामिल नहीं हैं. विपक्ष का कहना है कि लाखों लोगों ने दस्तावेज जमा नहीं किए हैं, जिससे उनका नाम अंतिम सूची में नहीं आ सकता.
2006 मुंबई ब्लास्ट
एहतेशाम सिद्दीकी : मौत की सज़ा से बाइज्ज़त बरी तक के 19 साल
एहतेशाम सिद्दीकी, जिन्हें 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में मौत की सज़ा सुनाई गई थी, को 20 साल जेल में बिताने के बाद बाइज्जत बरी कर दिया गया है. उन्होंने यह सज़ा एक ऐसे अपराध के लिए काटी, जो उन्होंने कभी किया ही नहीं था. हरकारा डीपडाइव के लिए निधीश त्यागी को दिये गये एक इंटरव्यू में सिद्दीकी ने अपने भयावह अनुभव को साझा करते हुए कहा कि कैसे न्याय प्रणाली की लंबी 'प्रक्रिया ही अपने आप में एक सज़ा' बन जाती है.
सिद्दीकी को 2006 में तब गिरफ्तार किया गया था, जब वे केमिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे. उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें गंभीर यातनाएं दी गईं और अवैध रूप से हिरासत में रखा गया. उन्होंने कहा कि उनका कबूलनामा पुलिस द्वारा मनगढ़ंत तरीके से तैयार किया गया था, जिसकी पुष्टि बाद में हाईकोर्ट ने भी की. सिद्दीकी ने यह भी बताया कि कैसे एक दोषपूर्ण पहचान परेड और नष्ट किए गए सबूत, जैसे उनके मोबाइल फोन रिकॉर्ड (जो उनकी लोकेशन कहीं और बता रहे थे), को मामले का आधार बनाया गया.
इस मुश्किल दौर के बावजूद, सिद्दीकी ने जेल में अपने समय का उपयोग आत्म-विकास के लिए किया. उन्होंने 20 से ज़्यादा अकादमिक डिग्रियां और सर्टिफिकेट हासिल किए, जिनमें एमबीए और कई मास्टर डिग्री शामिल हैं, और अब वे अपनी कानून की पढ़ाई (एलएलबी) पूरी कर रहे हैं. उन्होंने लगभग 1800 किताबें पढ़ीं और सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून का इस्तेमाल कर वे सबूत इकट्ठा किए, जिनसे अंततः उनकी बेगुनाही साबित हुई.
उन्होंने कहा कि खोए हुए 20 सालों की भरपाई कभी नहीं हो सकती. सिद्दीकी ने अपने परिवार पर पड़े बोझ, खासकर अपनी पत्नी के त्याग पर प्रकाश डाला, जिन्होंने 19 साल तक उनका इंतजार किया. उन्होंने कहा कि उनके लिए असली मुआवज़ा व्यवस्थागत पुलिस सुधार होगा, ताकि भविष्य में किसी और के साथ ऐसा अन्याय न हो. अब अपने गृहनगर जौनपुर में, सिद्दीकी की योजना वकालत करने और अन्यायपूर्ण तरीके से कैद लोगों की पैरवी करने की है.
ग़ज़ा में भुखमरी हमास की आख़िरी चाल ?
‘द अटलांटिक’ में अहमद फुआद अलखतीब की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि हमास जानबूझकर ग़ज़ा में अकाल और भुखमरी की स्थिति पैदा करना चाहता है. रिपोर्ट के मुताबिक़, भूख से होने वाली सामूहिक मौतें युद्ध को अपने पक्ष में समाप्त करने के लिए हमास की आख़िरी चाल है. लेखक का कहना है कि दुनिया का ध्यान भले ही ग़ज़ा की पीड़ा पर है, लेकिन इसके पीछे की वजहों को समझना ज़रूरी है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ दिनों में सैकड़ों ट्रक ग़ज़ा में पहुँचे हैं, लेकिन बहुत कम आपूर्ति गोदामों तक पहुँच पाई है. सहायता शिपमेंट को हताश नागरिकों, गिरोहों और अन्य लोगों द्वारा लूटा जा रहा है. ग़ज़ा पट्टी में कुपोषण और भुखमरी एक हक़ीक़त है. लेखक का दावा है कि उन्होंने दर्जनों ग़ज़ावासियों से बात की है, जो हमास से बेहद नाराज़ हैं. एक व्यक्ति ने कहा, "हिटलर ने बर्लिन की लड़ाई में ख़ुद को मारने तक अपने बंकर में लड़ाई लड़ी," जबकि हमास अपने सुरंगों में छिपा बैठा है और ग़ज़ा को आख़िरी बच्चे तक नष्ट होते देखने को तैयार है.
रिपोर्ट का तर्क है कि हमास नागरिकों की पीड़ा का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हंगामा खड़ा करने के लिए कर रहा है. इससे इज़राइल की वैश्विक छवि ख़राब होती है और वह अपनी नीतियां बदलने पर मजबूर होता है. यही वजह है कि हमास के ऑनलाइन समर्थक राहत प्रयासों पर हमला करते हैं और उन्हें रोकने की मांग करते हैं. यदि भुखमरी का संकट हल हो जाता है, तो हमास अपने मक़सद के लिए युद्ध समाप्त करने की सौदेबाज़ी की ताक़त खो देगा.
रिपोर्ट में फ़्रांस और सऊदी अरब द्वारा संयुक्त राष्ट्र में बुलाए गए 'टू-स्टेट सॉल्यूशन' सम्मेलन को आगे का रास्ता बताया गया है. इस सम्मेलन में यूरोपीय संघ और अरब लीग ने हमास के 7 अक्टूबर के हमलों की निंदा की और घोषणा की कि "हमास को ग़ज़ा में अपना शासन समाप्त करना चाहिए और अपने हथियार फ़िलिस्तीनी अथॉरिटी को सौंप देने चाहिए." यह एक बड़ा बदलाव है क्योंकि कई अरब देश अब तक सार्वजनिक रूप से हमास की आलोचना करने से बचते रहे हैं.
अंत में, लेखक इज़राइली नीति-निर्माताओं को सलाह देते हैं कि अगर हमास ग़ज़ा के लोगों की पीड़ा से मज़बूत होता है, तो उन्हें इसका ठीक उल्टा करना चाहिए. हमास की स्थिति को कमज़ोर करने का सबसे अच्छा तरीक़ा ग़ज़ा में भोजन और सहायता की बाढ़ ला देना है, जिससे लोगों की तकलीफ़ें कम हों.
इज़रायल ने 88% कथित युद्ध अपराध मामलों को बिना कार्रवाई के बंद किया: रिपोर्ट
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि एक नई रिपोर्ट के अनुसार, ग़ज़ा युद्ध शुरू होने के बाद इज़रायली सेना द्वारा किए गए कथित युद्ध अपराधों और दुर्व्यवहार की लगभग 88% जांच या तो बिना किसी दोष के बंद कर दी गई हैं या अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची हैं. कॉन्फ्लिक्ट मॉनिटर एक्शन ऑन आर्म्ड वॉयलेंस (AOAV) के अनुसार, जिन मामलों की जांच लंबित या अधूरी है उनमें फरवरी 2024 में ग़ज़ा सिटी में आटे की लाइन में खड़े 112 फिलिस्तीनियों की हत्या, मई 2024 में रफ़ा के टेंट शिविर में 45 लोगों की जलकर मौत ओर 1 जून 2024 को रफ़ा में खाद्य वितरण केंद्र के पास 31 लोगों की गोलीबारी में मौत की घटनाएं शामिल हैं. इन घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि इज़रायली सेना ने गोलीबारी की, जबकि सेना ने पहले इन्हें “झूठी खबर” बताया, लेकिन बाद में कहा कि मामला “अब भी समीक्षा में है”. AOAV के शोधकर्ताओं इयान ओवर्टन और लुकास त्सान्ट्ज़ोरिस ने कहा कि इज़रायल की सेना जानबूझकर जांचों को अधूरा छोड़ रही है या दोषमुक्त बता रही है, ताकि "दंडमुक्ति की संस्कृति" को बढ़ावा दिया जा सके.
शेख हसीना के खिलाफ मुकदमा शुरू
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ मुकदमा 3 अगस्त से शुरू होगा, जिसमें उन पर मानवता के खिलाफ अपराधों के गंभीर आरोप लगे हैं. यह मुकदमा उन 1,400 से अधिक लोगों की मौत के संदर्भ में है जो जुलाई 2024 की क्रांति के दौरान मारे गए थे. रकीब हुसैन, जो मात्र 11 वर्ष का था, ढाका की सड़कों पर खड़ा था जब उसे सिर में गोली लगी. यह गोली पुलिस द्वारा चलाई गई थी, ऐसा आरोप है. वह हजारों लोगों में से एक था जो शेख हसीना की सत्ता के खिलाफ विद्रोह के दौरान मारे गए. साल 2024 में जुलाई के महीने में, बांग्लादेश में लाखों लोगों ने शेख हसीना की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया.
सरकार ने इन प्रदर्शनों को कुचलने के लिए हथियारबंद पुलिस और ‘गोली मारने के आदेश’ जारी किए. 5 अगस्त 2024 को, जनता के उग्र विरोध और सेना के हस्तक्षेप से इनकार करने के बाद हसीना को हेलीकॉप्टर से देश छोड़ना पड़ा. शेख हसीना पर हत्या का आदेश देने, षड्यंत्र रचने, यातना और अन्य अमानवीय कृत्यों में सहयोग देने के आरोप लगे हैं.
मुकदमा तीन जजों की पीठ द्वारा बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) में चलाया जा रहा है, जो खुद हसीना ने अपने कार्यकाल में स्थापित किया था. हसीना भारत में शरण लिए हुए हैं और मुकदमे का बहिष्कार कर रही हैं. उन्हें राज्य द्वारा नियुक्त वकील मिला है और मुकदमा उनकी अनुपस्थिति में चल रहा है. रकीब के पिता अबुल खायर ने कहा - “मैं चाहता हूं कि हसीना अदालत में सामने आए. वह हमारे सामने खड़ी हो और अपने अपराधों का जवाब दे, लेकिन भारत उसे वापस नहीं देगा. सबको पता है.”
वैकल्पिक मीडिया
डीपीडीपी एक्ट पर रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने जताई गंभीर चिंता
खोजी पत्रकारों के संगठन 'द रिपोर्टर्स कलेक्टिव' ने देश के चार प्रमुख प्रेस संगठनों को पत्र लिखकर डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) अधिनियम, 2023 को लेकर गंभीर चिंता जताई है. कलेक्टिव ने इन संस्थाओं से आग्रह किया है कि वे सरकार के साथ किसी भी तरह के 'समझौते' से बचें और सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम की रक्षा के लिए एक मजबूत और पारदर्शी रुख अपनाएं.
यह पत्र प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, डिजीपब और इंडियन वुमेन्स प्रेस कोर को भेजा गया है. पत्र में कहा गया है कि डीपीडीपी अधिनियम, 2023 RTI कानून को कमजोर करता है और नागरिकों के सूचना तक पहुँचने के अधिकार पर सीधा प्रहार है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने चेतावनी दी है कि इसके लागू होने से पत्रकारिता 'शक्तिशाली लोगों का प्रचार करने वाले विज्ञापन' के अलावा कुछ नहीं रह जाएगी.
पत्र में हाल ही में केंद्र सरकार और इन चार संस्थाओं के बीच हुई बातचीत का हवाला देते हुए मांग की गई है कि उस चर्चा का लिखित ब्योरा सार्वजनिक किया जाए. कलेक्टिव ने ज़ोर देकर कहा है कि केवल पत्रकारों के लिए एक 'दिखावटी छूट' वाला कोई भी प्रस्ताव अस्वीकार्य है, यदि वह RTI कानून और आम नागरिकों के अधिकारों को कमजोर करता है.
रिपोर्टर्स कलेक्टिव की प्रमुख मांगों में शामिल हैं:
सरकार के साथ हुई बातचीत को सार्वजनिक करना.
RTI की सुरक्षा के लिए DPDP एक्ट में संशोधन की मांग को दोहराना.
यह स्पष्ट करना कि सरकार के मौखिक आश्वासन कानूनी रूप से मान्य नहीं हैं.
पत्रकारिता और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक असमाझौतावादी दृष्टिकोण अपनाना.
संगठन ने कहा कि आरटीआई अधिनियम केवल पत्रकारों के लिए ही नहीं, बल्कि आम नागरिकों और कार्यकर्ताओं के लिए भी सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है. नागरिकों के इन अधिकारों की रक्षा करके ही पत्रकारिता अपने सार्वजनिक उद्देश्य को पूरा कर सकती है.
‘द केरल स्टोरी’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने पर सीएम विजयन का हमला, कहा- 'विभाजनकारी विचारधारा को वैधता दी गई'
'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में ‘द केरल स्टोरी’ को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी का पुरस्कार मिलने के बाद केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने समारोह पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि इस निर्णय ने "विभाजनकारी विचारधारा पर आधारित एक कथानक को वैधता" प्रदान कर दी है. “केरल की छवि को धूमिल करने और सांप्रदायिक नफ़रत फैलाने के उद्देश्य से गलत जानकारी फैलाने वाली फिल्म को सम्मानित कर राष्ट्रीय पुरस्कारों की जूरी ने संघ परिवार की विचारधारा को वैधता दी है,” विजयन ने कहा. उन्होंने आगे कहा, “केरल, जो हमेशा सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ प्रतिरोध और सौहार्द्र का प्रतीक रहा है, इस निर्णय से गंभीर रूप से अपमानित हुआ है. यह केवल मलयालियों की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की जिम्मेदारी है जो लोकतंत्र और संविधानिक मूल्यों में विश्वास करता है कि वह सच के पक्ष में अपनी आवाज़ उठाए.”
2023 में रिलीज़ हुई ‘द केरल स्टोरी’ में कुछ महिलाओं को जबरन धर्म परिवर्तन और इस्लामिक स्टेट जैसे प्रतिबंधित आतंकी संगठन द्वारा कट्टरपंथी बनाए जाने की कहानी दिखाई गई थी. फिल्म के टीज़र में यह दावा किया गया था कि केरल की 32,000 महिलाएं कट्टरपंथ की शिकार हुईं और युद्धग्रस्त क्षेत्रों में पहुंचा दी गईं, जिसे लेकर व्यापक विवाद और आलोचना हुई थी.
चलते चलते
'कानपुर: 1857': जब तोप के मुँह पर बाँधकर स्कॉटलैंड में बताई गई ब्रिटिश क्रूरता की कहानी
जब क्रूर और अमानवीय सज़ा की बात आती है, तो 19वीं सदी में औपनिवेशिक कब्ज़े के ख़िलाफ़ भारतीय विद्रोह के बदले में कानपुर (तत्कालीन Cawnpore) में ब्रिटिश सेना द्वारा दी गई सज़ा से ज़्यादा भयानक कुछ भी सोचना मुश्किल है. विद्रोह के नेताओं को पकड़ने के बाद, हर एक को एक तोप के मुँह से बाँध दिया गया और जनता के सामने उस हथियार को दाग़ दिया गया. गार्डियन में मार्क फिशर ने एडिनबरा में खेले गये इस नाटक के बारे में लिखा है.
'कानपुर: 1857' नाटक में इसी बात पर ज़ोर देने के लिए मंच पर एक तोप रखी गई है, जो शायद एडिनबरा फ्रिंज फेस्टिवल का सबसे बड़ा प्रॉप है. यह तोप नियाल मूरजानी के पीछे ख़तरनाक तरीक़े से रखी गई है, जो एक ऐसे कथाकार की भूमिका निभा रहे हैं जो अपनी अंतिम घड़ी का सामना कर रहा है. वह एक ऐसी कहानी गढ़ने की कोशिश कर रहा है जो उसकी इस भयानक दुर्दशा को कोई मतलब दे सके. गंगा किनारे शांति से पला-बढ़ा कोई व्यक्ति, जो कविता और शब्दों की सुंदरता पर मोहित था, इस स्थिति में कैसे पहुँच गया?
कथाकार की भूमिका निभा रहे मूरजानी एक स्थिर और प्रभावशाली कथावाचक हैं, जिनके प्रदर्शन को सोढ़ी (हरदीप डीरहे) द्वारा बजाए जा रहे लाइव तबले से और भी बल मिलता है, जो उनके बगल में ध्यानमग्न होकर बैठे हैं. उनके साथ ब्रिटिश सेना के जल्लाद के रूप में जोनाथन ओल्डफील्ड भी हैं. उनका एक स्कॉटिश रेजिमेंट का सदस्य होना (उनके दक्षिणी लहजे के बावजूद) इस बात की याद दिलाता है कि स्कॉटलैंड भी ब्रिटिश साम्राज्य का उतना ही उत्साही हिस्सा था जितना कि इंग्लैंड.
सैनिक अपने बंदी की कहानी से हैरान तो है, लेकिन सत्ता के नशे में इतना चूर है कि सहानुभूति नहीं रख पाता. दर्शकों के बीच इस किरदार की मौजूदगी प्रदर्शन को एक जीवंत गतिशीलता देती है, हालांकि यह एक पूर्ण नाटक बनाने के लिए काफ़ी नहीं है. यह प्रस्तुति कहानी सुनाने और नाटक के बीच अधर में लटकी हुई है, फिर भी यह ब्रिटिश इतिहास के एक उपेक्षित दौर की शर्मनाक और महत्वपूर्ण याद दिलाती है.
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