03/09/2025: चीन मे ठहाके लगाने के बाद बिहार में अपमान के आंसू | महुआ मोइत्रा ने आईना दिखाया | पंजाब में बाढ़ | मोदी के योगदानों पर श्रवण गर्ग | ट्रम्प की धौंस के आगे चीन का शक्ति प्रदर्शन
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
प्रधानमंत्री ने बिहार में अपनी मां को गाली दिए जाने पर दुख जताया, तो महुआ मोइत्रा ने उन्हें महिला नेताओं पर की गई पुरानी टिप्पणियां याद दिलाईं.
वरिष्ठ त्रकार श्रवण गर्ग के अनुसार, मोदी ने बीजेपी, संघ को कमजोर किया और अपना कोई उत्तराधिकारी नहीं बनने दिया.
मोदी ने म्यांमार में निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद जताई, मानवाधिकार संगठनों ने जुंटा सरकार से जुड़ाव की निंदा की.
पंजाब के सभी 23 जिले बाढ़ की चपेट में, 30 लोगों की मौत, लेकिन केंद्रीय टीमें अभी तक नहीं पहुंचीं.
पूर्व अमेरिकी NSA के अनुसार, ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ निजी कारोबारी हितों के लिए भारत से रिश्ते खराब किए.
मराठाओं को कुनबी का दर्जा मिलने के बाद मनोज जरांगे ने आंदोलन वापस लिया, लेकिन सत्ताधारी गठबंधन के मतभेद सामने आए.
"बांग्लादेशी यहां भी हो सकते हैं" बयान पर असम के 16 जिलों में कार्यकर्ता सैयदा हामिद के खिलाफ शिकायत दर्ज.
नास्तिक होने के कारण इस्लामी समूहों के दबाव में जावेद अख्तर का कार्यक्रम रद्द हुआ.
केसीआर की बेटी कविता पार्टी से निलंबित:
दिल्ली दंगे: उमर खालिद-शरजील इमाम की जमानत खारिज
भारतीय मजदूर को बांग्लादेशी बताकर नौकरी छीनी
चीन का शक्ति प्रदर्शन
ट्रम्प की नीतियों से पुतिन की वापसी
मोदी और शहबाज शरीफ ने एक-दूसरे का नाम लिए बिना आतंकवाद और संधि जैसे मुद्दों पर निशाना साधा.
चीन में ठिठोली, घरवापसी पर मां के अपमान का दुख, कांग्रेस-राजद पर साधा निशाना
महुआ मोइत्रा ने मोदी को बताया महिलाओं पर उनकी सस्ती, अपमानजनक टिप्पणियों का रिकार्ड

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि बिहार में कांग्रेस की हाल ही में संपन्न 'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान उनकी मां को दी गई गालियों से उन्हें गहरा दुख हुआ है. इसके जवाब में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने प्रधानमंत्री पर महिला नेताओं के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. हालांकि इस घटना और मंगलवार के भाषण के बीच वे पुतिन और शी के साथ हंसी ठठ्ठा करते हुए वीडियो में दिखलाई भी दिये, जिसको लेकर सोशल मीडिया में कई तल्ख़ टिप्पणियां की जा रही हैं.
यह घटनाक्रम राजनीतिक बहस के गिरते स्तर और व्यक्तिगत हमलों के बढ़ते चलन को उजागर करता है. यह दिखाता है कि कैसे राजनीतिक दल चुनावी लाभ के लिए भावनात्मक मुद्दों का इस्तेमाल करते हैं. साथ ही, यह महिला नेताओं के प्रति इस्तेमाल की जाने वाली भाषा पर भी एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ता है, जिससे राजनीति में लैंगिक संवेदनशीलता का सवाल उठता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव वाले बिहार में महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों के लिए एक नई सहकारी पहल के वर्चुअल लॉन्च के दौरान कहा, "मां हमारी दुनिया है. मां हमारा स्वाभिमान है. मैंने कुछ दिन पहले इस परंपरा-समृद्ध बिहार में जो हुआ, उसकी कल्पना भी नहीं की थी. बिहार में राजद-कांग्रेस के मंच से मेरी मां को गाली दी गई." मोदी ने कहा कि 'भारत माता' का अपमान करने वालों के लिए उनकी मां को गाली देना कुछ भी नहीं है, और उन्हें दंडित किया जाना चाहिए.
वहीं, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने एक्स पर लिखा, "ममता बनर्जी के खिलाफ 'दीदी ओ दीदी' की सड़क छाप हूटिंग से लेकर सोनिया गांधीजी के खिलाफ 'जर्सी गाय' और 'कांग्रेस की विधवा' से लेकर शशि थरूर की (दिवंगत) पत्नी के लिए '50 करोड़ की गर्लफ्रेंड' तक, नरेंद्र मोदी ने सब कुछ कहा है. आज उनका 'माइंड योर लैंग्वेज' भाषण थोड़ा अजीब है!"
महुआ मोइत्रा ने प्रधानमंत्री के पिछले बयानों का हवाला देकर उनके नैतिक अधिकार पर सवाल उठाया. उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि प्रधानमंत्री खुद अपने राजनीतिक विरोधियों, खासकर महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने का इतिहास रखते हैं.
इस मामले में मोहम्मद रिज़वी नामक एक स्थानीय कांग्रेस समर्थक को आरोपी के रूप में पहचाना गया और उसे गिरफ्तार कर 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. पीएम मोदी ने बिहार राज्य जीविका निधि साख सहकारी संघ लिमिटेड के लाभार्थियों को वर्चुअली संबोधित करते हुए अपनी पीड़ा व्यक्त की. उन्होंने कहा कि बिहार वह भूमि है जहां महिलाओं और विशेष रूप से माताओं का सम्मान सर्वोपरि है. इस अवसर पर, पीएम मोदी ने ग्रामीण महिलाओं के बीच उद्यमिता विकास को मजबूत करने और सामुदायिक नेतृत्व वाले उद्यमों के विकास में तेजी लाने के लिए संस्था के बैंक खाते में 105 करोड़ रुपये भी हस्तांतरित किए.
जब लोगों ने रेखा गुप्ता को आईना दिखाया
जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहा कि- “मेरी उस मां को आरजेडी-कांग्रेस के मंच से गाली दी गई, जो आज सशरीर इस दुनिया में नहीं है,” बीजेपी का ईको सिस्टम सोशल मीडिया से लेकर हर मंच पर सक्रिय हो गया. विपक्ष की लानत-मलानत की जाने लगी. इन्हीं में दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भी हैं, जिन्होंने “एक्स” पर पीएम मोदी के दर्द भरे भाषण को साझा करते हुए खुद को भी उसके साथ जोड़ा. कहा-“मोदी जी के शब्दों में जब मां के अपमान का दर्द झलका तो हृदय व्यथित हो उठा.” लेकिन गुप्ता के व्यथित मन को आईना दिखाने के लिए कई लोग उनका 5 अक्टूबर 2016 का एक कथित ट्वीट (जिसकी हम पुष्टि नहीं करते) निकालकर ले आए और गुप्ता की पोस्ट पर जवाब देने लगे. इसमें दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी मां के बारे में भद्दी भाषा का इस्तेमाल किया गया है. इतना ही नहीं, मोदी से लेकर अमित शाह और बीजेपी के प्रवक्ताओं के महिलाओं के बारे में समय-समय पर की गईं तमाम टिप्पणियां भी वायरल होने लगीं और सोशल मीडिया पर उन्हें पोस्ट किया जाने लगा.
हरकारा डीपडाइव : गालियों की सियासत से सियासत की गाली तक
श्रवण गर्ग : नरेन्द्र मोदी के तीन बड़े योगदान
हाल के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अक्सर अपने खिलाफ इस्तेमाल की जाने वाली अपमानजनक भाषा और गालियों का मुद्दा उठाया है। इस सियासी गहमागहमी और व्यक्तिगत हमलों के दौर में, वरिष्ठ पत्रकार और संपादक श्रवण गर्ग ने प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल का एक अनूठा विश्लेषण प्रस्तुत किया है, जिसमें उन्होंने मोदी के तीन ऐसे "योगदानों" को रेखांकित किया है जो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और संघ के भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं।
श्रवण गर्ग के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी का पहला और सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह है कि उन्होंने अपनी ही पार्टी, बीजेपी, को संगठनात्मक रूप से मजबूत नहीं होने दिया। गर्ग का तर्क है कि मोदी ने सत्ता और नेतृत्व को इस तरह अपने में केंद्रित किया कि पार्टी में कोई दूसरा नेता उभर नहीं सका। उन्होंने कहा, "एक से लेकर दस तक वही हैं," जिसके कारण पार्टी व्यक्ति-आधारित हो गई और संगठन की सामूहिक शक्ति कमजोर हुई।
गर्ग के विश्लेषण में मोदी का दूसरा बड़ा योगदान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को कमजोर करना है। उनका मानना है कि मोदी के कार्यकाल में संघ का प्रभाव और उसकी पकड़ लगातार कम हुई है, जिससे संघ भविष्य में उतना प्रभावशाली नहीं रह पाएगा जितना पहले था। गर्ग के मुताबिक, अगर मोदी ने पार्टी और संघ, दोनों को मजबूत किया होता, तो उनकी हुकूमत अगले 100 सालों तक बनी रह सकती थी।
तीसरे योगदान के रूप में, गर्ग इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने जानबूझकर अपना कोई राजनीतिक उत्तराधिकारी तैयार नहीं होने दिया। इसके लिए गर्ग उनका आभार व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इस कदम ने यह सुनिश्चित किया है कि उनके बाद पार्टी में नेतृत्व का एक बड़ा शून्य पैदा होगा। उन्होंने मोदी और अमित शाह की जोड़ी की तुलना क्रिकेट के दो बल्लेबाजों से की, जिसमें एक के आउट होते ही दूसरा भी पवेलियन लौट जाएगा।
इस प्रकार, जहां राजनीतिक चर्चा का केंद्र अक्सर गालियों और व्यक्तिगत आरोपों पर टिका रहता है, वहीं श्रवण गर्ग का विश्लेषण सत्ता के भीतर हुए गहरे संरचनात्मक परिवर्तनों की ओर ध्यान आकर्षित करता है, जो दीर्घकाल में बीजेपी और संघ के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं।
मोदी को म्यांमार में निष्पक्ष चुनावों की आशा
भारत में विपक्ष “वोट चोरी” के आरोप लगा रहा है, लेकिन तिआंजिन में मोदी ने म्यांमार की सेना के प्रमुख और जुंटा के चेयरमैन जनरल मिन आंग हलाइंग से भी मुलाकात की और उनसे कहा कि उन्हें आशा है कि “म्यांमार में आगामी चुनाव निष्पक्ष और समावेशी तरीके से होंगे, जिसमें सभी हितधारक शामिल होंगे.” उनकी यह आशा उस आलोचना के बीच आई है जो उन चुनावों को लेकर उठ रही है, जिन्हें जुंटा ने दिसंबर में कराने का कार्यक्रम बनाया है. इन चुनावों में अपदस्थ प्रधानमंत्री आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया है.
म्यांमार के राज्य-नियंत्रित समाचारपत्र न्यू लाइट ने दावा किया कि भारत ने इन चुनावों में पर्यवेक्षक भेजने और म्यांमार (नैपीदॉ) की शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में सदस्यता का समर्थन करने पर सहमति जताई है.मानवाधिकार संगठनों ने म्यांमार की जुंटा सरकार के साथ मोदी सरकार के इस जुड़ाव की निंदा की है. उनका कहना है कि चुनाव पर्यवेक्षक भेजने का कथित फ़ैसला एक “नकली चुनावी प्रक्रिया” को वैध ठहराने का ख़तरा पैदा करेगा.
पंजाब के सभी 23 जिले बाढ़ से प्रभावित, लेकिन केंद्रीय टीमें अब तक नहीं पहुंचीं
पंजाब में अब सभी 23 ज़िले बाढ़ से प्रभावित हो चुके हैं. नदियों के उफान, बांधों से नियंत्रित जल छोड़ने और मंगलवार को राज्य के अधिकांश हिस्सों में हुई मूसलधार बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति बनी है. सोमवार तक केवल 12 ज़िले बाढ़ से प्रभावित थे. इसके बाद पंजाब सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत आपातकालीन प्रतिक्रिया को सक्रिय कर दिया है.
मुख्य सचिव के.ए.पी. सिन्हा द्वारा मंगलवार रात जारी आदेश में सभी उपायुक्तों को यह अधिकार दिया गया है कि किसी भी गंभीर आपदा की स्थिति में वे स्वयं निर्णय लेकर कार्रवाई करें. उन्हें आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिए पूरी तरह तैयार रहने के निर्देश दिए गए हैं.
हालांकि, रुचिका खन्ना के मुताबिक, बाढ़ प्रभावित पंजाब की स्थिति का आकलन करने के लिए केंद्रीय टीमों का आना अभी बाकी है, लेकिन अब तक बाढ़ से संबंधित 30 मौतों की सूचना है. बाढ़ ने अब तक 3,54,626 लोगों को प्रभावित किया है. प्रभावित क्षेत्रों से लगभग 19,600 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है, जिनमें 1,400 गांव भी शामिल हैं. धान और कपास जैसी फसलें, जो चार लाख एकड़ से अधिक ज़मीन पर फैली थीं, पानी में डूब गई हैं.
पाकिस्तान की इच्छा ने बिगाड़े भारत-अमेरिका रिश्ते
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान की उनके परिवार के साथ कारोबारी सौदे करने की इच्छा के कारण भारत के साथ संबंधों को एक तरफ फेंक दिया है. उन्होंने इस कदम को अमेरिका के लिए बहुत बड़ा रणनीतिक नुकसान करार दिया. सुलिवन ने कहा कि भारत के साथ हमें प्रौद्योगिकी, प्रतिभा, अर्थव्यवस्था और कई अन्य मुद्दों पर साझेदारी रखनी चाहिए, और चीन से उत्पन्न रणनीतिक खतरे का सामना करने में भी साथ खड़ा होना चाहिए.
मराठाओं को कुनबी का दर्जा, जरांगे ने आंदोलन वापस लिया, लेकिन महायुति के मतभेद उजागर
महाराष्ट्र सरकार के मराठवाड़ा के मराठाओं को कुनबी का दर्जा देने का सरकारी प्रस्ताव जारी करते ही मराठा आरक्षण आंदोलनकारी मनोज जरांगे पाटिल ने मंगलवार को अपना आंदोलन वापस ले लिया. अब उनके समुदाय को आरक्षण का लाभ मिल सकेगा. जरांगे पाटिल के समर्थकों ने इसे अपनी जीत बताया, लेकिन मुंबई के केंद्र में चार दिन तक चला यह धरना-प्रदर्शन सत्ताधारी महायुति गठबंधन के भीतर मतभेदों को उजागर करने का काम भी कर गया.
यह साफ दिखा कि गठबंधन के शीर्ष तीन नेता — मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे तथा अजीत पवार — जरांगे पाटिल के मुद्दे को लेकर शुरू में एकमत नहीं थे और न ही इसे जल्दी सुलझाने की कोशिश करते दिखे. पिछले शुक्रवार को जब मराठा आरक्षण नेता गणेशोत्सव के बीच मुंबई पहुंचे और उन्होंने उपवास शुरू किया, तब यह असहमति और साफ दिखने लगी.
जरांगे पाटिल का रुख फडणवीस (जो ब्राह्मण हैं) के प्रति पहले से ही कड़ा रहा है, क्योंकि पिछली महायुति सरकार के दौरान हुए आंदोलन में लाठीचार्ज के चलते आरक्षण मांग और उग्र हो गई थी. वहीं, दोनों उपमुख्यमंत्रियों ने इस बार हालात संभालने की कोई ठोस कोशिश नहीं की, जबकि बतौर मराठा नेता, उनके पास सरकार की ओर से हस्तक्षेप करने की राजनीतिक ताकत थी.
शुभांगी खापरे के मुताबिक, भाजपा को शिंदे शिवसेना की मंशा पर संदेह बना रहा, भले ही बाद में उसके मंत्री जाकर जरांगे पाटिल से आंदोलन स्थल पर मिले. भाजपा के एक धड़े का मानना था कि शिंदे गुट ने जानबूझकर पहल नहीं की, क्योंकि यह आंदोलन फडणवीस को कठिन स्थिति में डाल रहा था. वहीं, एनसीपी नेता अजीत पवार को सुरक्षित खेलते हुए देखा गया, क्योंकि उनकी पार्टी का आधार पश्चिम महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में है और वे किसी भी कीमत पर जरांगे पाटिल को नाराज़ नहीं करना चाहते थे. चूंकि निकाय चुनाव निकट हैं, इसलिए भी दोनों नेता सक्रिय रूप से आगे नहीं आए. जब आंदोलन मुंबई में शुरू हुआ तो शिंदे अचानक सतारा स्थित अपने गांव चले गए और पवार पुणे चले गए. हालांकि, हालात बिगड़ते देख दोनों नेता मुंबई लौट आए.
पिता की पार्टी से कविता निलंबित
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) पार्टी ने एमएलसी कल्वाकुंतला कविता को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण पार्टी से निलंबित कर दिया है. मंगलवार को बीआरएस के महासचिव सोमा भरत कुमार और टी रविंदर राव ने इस संबंध में एक बयान जारी किया. बयान में कहा गया है कि "कविता की हालिया गतिविधियां पार्टी को नुकसान पहुंचा रही हैं. पार्टी के नेतृत्व ने उन गतिविधियों को गंभीरता से लिया है. इसके साथ ही पार्टी अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव ने कविता को तत्काल प्रभाव से पार्टी से निलंबित करने का फैसला किया है."
यह निलंबन बीआरएस के भीतर एक बड़े राजनीतिक उथल-पुथल का संकेत है, खासकर इसलिए क्योंकि कविता पार्टी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी हैं. यह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के भीतर गहरे मतभेदों और सत्ता संघर्ष को उजागर करता है. यह कदम पार्टी की छवि और भविष्य की दिशा को प्रभावित कर सकता है, खासकर तेलंगाना की राजनीति में.
बीआरएस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी, एमएलसी कविता ने पार्टी के भीतर राजनीतिक उथल-पुथल मचा दी है. मई महीने में अपने पिता को लिखा एक पत्र लीक होने के बाद, उन्होंने पार्टी नेताओं पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा था कि केसीआर शैतानों से घिरे हुए हैं. तब से, वह पार्टी में सक्रिय नहीं थीं और अपने संगठन - तेलंगाना जागृति के तहत राजनीतिक गतिविधियां शुरू कर दी थीं. जब सरकार ने कालेश्वरम परियोजना के निर्माण में कथित अनियमितताओं पर सीबीआई जांच का आदेश देने का फैसला किया, तो कविता ने पूर्व मंत्री और बीआरएस विधायक, अपने चचेरे भाई टी हरीश राव और पूर्व सांसद जे संतोष कुमार को निशाना बनाया. उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों नेताओं के कारण केसीआर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं.
कविता के निलंबन के बाद, उनके भविष्य के राजनीतिक कदम पर सबकी नजरें टिकी रहेंगी. वह या तो एक स्वतंत्र नेता के रूप में काम करना जारी रख सकती हैं या किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल हो सकती हैं. बीआरएस को इस विभाजन के राजनीतिक नतीजों से निपटना होगा और पार्टी के भीतर एकता बनाए रखने के लिए काम करना होगा. इस घटनाक्रम से तेलंगाना में राजनीतिक समीकरणों में भी बदलाव आ सकता है.
दिल्ली दंगे: हाईकोर्ट ने यूएपीए मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम और 7 अन्य की जमानत याचिका खारिज की
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2020 के दिल्ली दंगों के "बड़ी साज़िश" मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम और सात अन्य आरोपियों द्वारा दायर जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया है. न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया. अन्य आरोपियों में अथर खान, खालिद सैफी, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, मीरान हैदर, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद शामिल हैं.
लाइव लॉ के मुताबिक यह फैसला दिल्ली दंगों से जुड़े सबसे हाई-प्रोफाइल मामलों में से एक में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है. गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) जैसे कड़े कानून के तहत आरोपी व्यक्तियों को जमानत देने से बार-बार इनकार, भारत में नागरिक स्वतंत्रता और आतंकवाद-रोधी कानूनों के उपयोग पर चल रही बहस को और तेज करता है. यह न्यायपालिका के ऐसे संवेदनशील मामलों के प्रति सख्त दृष्टिकोण को भी दर्शाता है.
सभी आरोपियों ने निचली अदालत द्वारा उन्हें जमानत देने से इनकार करने के आदेशों को चुनौती दी थी. सुनवाई के दौरान, उमर खालिद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस ने दलील दी थी कि केवल व्हाट्सएप ग्रुप में होना, बिना कोई संदेश भेजे, कोई अपराध नहीं है. खालिद सैफी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन ने तर्क दिया कि "हानिरहित संदेशों" के आधार पर UAPA लगाना जमानत से इनकार का कारण नहीं हो सकता. शरजील इमाम ने प्रस्तुत किया कि वह सभी सह-आरोपियों से पूरी तरह से अलग है और किसी भी साजिश का हिस्सा नहीं है. वहीं, दिल्ली पुलिस की ओर से पेश हुए एसजीआई तुषार मेहता ने जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा, "यदि आप राष्ट्र के खिलाफ कुछ कर रहे हैं, तो बेहतर है कि आप बरी या दोषी ठहराए जाने तक जेल में रहें."
एक बंगाली मजदूर ने भारतीय होने का सबूत दिया, लेकिन अपनी नौकरी गँवा दी
मेहबूब शेख ने मुंबई में एक राजमिस्त्री के रूप में अपना जीवन बनाया, जब तक कि उन पर बांग्लादेश से एक अवैध प्रवासी होने का आरोप नहीं लगाया गया. 38 वर्षीय मेहबूब को 9 जून को मुंबई के उत्तर में एक शहर मीरा रोड में पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. तमाम दस्तावेज दिखाने के बावजूद, उन्हें बंदूक की नोक पर भारत-बांग्लादेश सीमा के पार धकेल दिया गया. हालांकि, बाद में उन्हें वापस लाया गया, लेकिन अब उनका परिवार उन्हें वापस मुंबई भेजने से डरता है. स्क्रोल ने इस पर लंबी रिपोर्ट लिखी है.
मेहबूब शेख की कहानी भारत में प्रवासी श्रमिकों, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के लोगों के उत्पीड़न और उनकी नागरिकता पर उठते सवालों की एक बड़ी समस्या को दर्शाती है. यह मामला दिखाता है कि कैसे प्रशासनिक कार्रवाइयां और राजनीतिक बयानबाजी भारतीय नागरिकों के जीवन को प्रभावित कर सकती है, उन्हें अपनी ही जमीन पर विदेशी साबित करने के लिए मजबूर कर सकती है और उनकी आजीविका छीन सकती है.
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के रहने वाले मेहबूब शेख एक दशक से अधिक समय से मुंबई में काम कर रहे थे. हिरासत में लिए जाने पर उन्होंने अपना आधार कार्ड और वोटर कार्ड दिखाया, लेकिन पुलिस और बाद में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने उन्हें खारिज कर दिया. 13 जून की रात को, मेहबूब को कथित तौर पर बंदूक की नोक पर बांग्लादेश की सीमा में धकेल दिया गया. इस बीच, मुर्शिदाबाद में उनका परिवार भूमि रिकॉर्ड और अन्य दस्तावेज इकट्ठा करने के लिए हाथ-पैर मार रहा था. एक पुलिस अधिकारी ने दावा किया कि उन्होंने कानून के अनुसार काम किया. 24 घंटे के भीतर, पश्चिम बंगाल के राज्यसभा सांसद समीरुल इस्लाम और मुख्यमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बाद, बीएसएफ और बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश के बीच एक फ्लैग मीटिंग हुई, जिसके बाद मेहबूब को वापस लाया गया.
यह घटना भाजपा शासित राज्यों में बंगाली भाषी प्रवासी श्रमिकों को निशाना बनाने के एक बड़े पैटर्न का हिस्सा लगती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 अगस्त को कोलकाता में एक रैली में, अवैध आप्रवासन की समस्या को ममता बनर्जी की पार्टी, तृणमूल कांग्रेस से जोड़ा था. गृह मंत्रालय के एक निर्देश के तहत पुलिस इस तरह के अभियान चला रही है. हालांकि, जमीन पर, इस प्रक्रिया के कारण भारतीय नागरिकों को विदेशी घोषित किया जा रहा है और बिना निष्पक्ष सुनवाई के उन्हें देश से बाहर निकाला जा रहा है, जैसा कि मेहबूब के साथ हुआ.
भले ही मेहबूब एक अवैध अप्रवासी के रूप में ब्रांडेड होने से बच गए हों, लेकिन वह जल्द ही मुंबई नहीं लौटेंगे. उनका परिवार उनके साथ हुए उत्पीड़न की पुनरावृत्ति से डरता है और जोर देता है कि वह पश्चिम बंगाल में ही काम खोजें. मेहबूब अब कोलकाता के एक उपनगर में एक निर्माण स्थल पर कम मजदूरी पर काम कर रहे हैं. यह घटना उनके गांव में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के डर को फिर से जीवित कर दिया है, जिससे निवासियों में अपनी नागरिकता को लेकर चिंता बढ़ गई है.
बदलते वैश्विक समीकरण
ट्रम्प की धौंसपट्टी के सामने चीन ने अपनी अकड़ दिखाई पकड़ भी..पुतिन, मोदी भी शामिल
चीन के तियानजिन शहर में हाल ही में संपन्न हुए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन ने दुनिया में बदलती राजनीतिक और रणनीतिक समीकरणों की स्पष्ट तस्वीर पेश की है. एक ओर जहाँ यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देशों द्वारा अलग-थलग किए गए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का गर्मजोशी से स्वागत हुआ, वहीं दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की व्यापार नीतियों के कारण भारत और अमेरिका के संबंधों में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली है. इन घटनाओं के केंद्र में रूस, चीन और भारत की बढ़ती नज़दीकियां हैं, जो एक नई विश्व व्यवस्था की संभावनाओं की ओर इशारा कर रही हैं. राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा आयोजित यह शिखर सम्मेलन और उसके बाद होने वाली सैन्य परेड पश्चिम, विशेषकर अमेरिका, के लिए एक सीधा संदेश है कि अब दुनिया के नियम कुछ देशों द्वारा तय नहीं किए जाएंगे.
बीजिंग में 'उथल-पुथल की धुरी' का जमावड़ा
पिछले तीन दिनों से, शी जिनपिंग ने एशिया और मध्य पूर्व के नेताओं की मेज़बानी की है, जो उनकी नई विश्व व्यवस्था की दृष्टि को प्रदर्शित करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक सावधानीपूर्वक आयोजित शिखर सम्मेलन था. अब, चीनी नेता एक भव्य सैन्य परेड के साथ सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं. बुधवार को, वह देश के अत्याधुनिक हाइपरसोनिक हथियारों, परमाणु-सक्षम मिसाइलों और हज़ारों सैनिकों को प्रदर्शित करने वाली एक बड़ी सैन्य परेड का नेतृत्व करेंगे. सीएनएन में सिमोन मैकार्थी ने इसका विश्लेषण किया है.
शी का संदेश स्पष्ट है: चीन एक ऐसी शक्ति है जो वैश्विक नियमों को फिर से स्थापित करना चाहती है और वह पश्चिम के नियमों को चुनौती देने से नहीं डरती. इस संदेश को बल देने के लिए परेड में मेहमानों की सूची है, जिसमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन के साथ-साथ ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान भी शामिल हैं. यह पहली बार है कि वाशिंगटन के रणनीतिकार जिन्हें "उथल-पुथल की धुरी" (axis of upheaval) कहते हैं, उन चार राष्ट्रों के नेता एक साथ एक कार्यक्रम में होंगे.
पश्चिमी नेताओं के लिए, जो पुतिन पर यूक्रेन में अपना युद्ध समाप्त करने के लिए दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, यह दृश्य परेशान करने वाला होगा. ईरान, उत्तर कोरिया, चीन और रूस को पश्चिम में एक उभरते हुए अमेरिकी विरोधी अक्ष के रूप में देखा जाता है क्योंकि तेहरान और प्योंगयांग ने मॉस्को को हथियार और सैनिक दिए हैं, जबकि चीन ने उसकी युद्धग्रस्त अर्थव्यवस्था की मदद की है.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के तहत, अमेरिका अपने गठबंधनों को हिला रहा है और अपने वैश्विक व्यापार युद्ध से दोस्तों और सहयोगियों सहित दुनिया भर के देशों के लिए आर्थिक मुश्किलें पैदा कर रहा है. शी इस मौक़े को पश्चिमी नियमों और संवेदनाओं पर आधारित दुनिया के लिए अपनी चुनौती का सबसे नाटकीय प्रदर्शन करने के एक अवसर के रूप में देखते हैं. हाल के दिनों में नेताओं की गतिविधियों की झलकियों ने एकत्रित लोगों के बीच एक शक्तिशाली सौहार्द दिखाया है, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन ने शी का उत्साहपूर्वक अभिवादन किया.
शी ने अपने भाषणों में यह संदेश दिया है कि दुनिया उथल-पुथल और अराजकता की स्थिति में है, और चीन इसे भविष्य में मार्गदर्शन करने के लिए एक ज़िम्मेदार, स्थिर शक्ति है. उन्होंने कहा, "कुछ देशों के घरेलू नियम दूसरों पर नहीं थोपे जाने चाहिए." यह परेड, जो द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में है, शी के लिए अपने संरेखण का संकेत देने के लिए एक उपयुक्त क्षण है. शी अपनी इस सप्ताह की गतिविधियों का उपयोग अमेरिकी नेतृत्व को अवैध ठहराने, पश्चिमी एकजुटता को कमज़ोर करने और चीन को एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में ऊपर उठाने के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए कर रहे हैं.
वैश्विक मंच पर पुतिन की वापसी, ट्रम्प की नीतियों ने बनाया रास्ता
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक कुछ साल पहले जब व्लादिमीर पुतिन यूरेशिया के प्रमुख राजनीतिक और सुरक्षा संगठन (एससीओ) के वार्षिक शिखर सम्मेलन में शामिल हुए थे, तो वे अलग-थलग और कमज़ोर नज़र आ रहे थे. आज हालात बदल चुके हैं. हाल ही में चीन के तियानजिन में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति का ज़ोरदार स्वागत हुआ, जो उनकी वैश्विक मंच पर वापसी का प्रतीक है.
यह बदलाव इस बात का संकेत है कि दुनिया बदल रही है. इस सम्मेलन में पुतिन ने यूक्रेन में युद्ध के लिए सार्वजनिक रूप से पश्चिम को दोषी ठहराया. उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हाथ मिलाया और चीनी नेता शी जिनपिंग के साथ ठहाके लगाते हुए नज़र आए. ईरान, नेपाल, ताजिकिस्तान, तुर्की और वियतनाम के नेताओं ने भी पुतिन के साथ देर रात तक चली निजी बैठकों में गर्मजोशी दिखाई. जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर मारिया रेपनीकोवा के अनुसार, "ऐसा महसूस हुआ कि युद्ध को कुछ मायनों में स्वीकार कर लिया गया है."
इस बदलाव के पीछे एक बड़ा कारण राष्ट्रपति ट्रम्प की नीतियां हैं, जिन्होंने पुतिन के अलगाव को समाप्त करने में मदद की है. ट्रम्प ने न केवल पुतिन को एक दशक में पहली बार अमेरिकी धरती पर आमंत्रित किया, बल्कि ब्राज़ील, भारत और दक्षिण अफ़्रीका जैसे देशों के नेताओं के साथ टकराव मोल लेकर उन्हें पुतिन के करीब धकेल दिया. भारत के साथ ट्रम्प के संबंध तब और बिगड़ गए जब नई दिल्ली ने भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष को समाप्त करने का श्रेय अमेरिकी नेता को देने के वॉशिंगटन के दबाव का विरोध किया. इसके जवाब में ट्रम्प ने भारत पर भारी टैरिफ़ लगा दिए, विशेष रूप से रूसी तेल खरीदने के लिए उसे निशाना बनाया.
पुतिन की निजी लिमोज़ीन में 50 मिनट तक बातचीत करने और सार्वजनिक रूप से रूसी नेता को गर्मजोशी से गले लगाने के बाद, मोदी यह संदेश देते दिखे कि भारत के पास अन्य विकल्प भी मौजूद हैं. रूस ने भी यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से ही पश्चिम के बाहर, ख़ासकर चीन, भारत और तुर्की के साथ अपने राजनयिक संबंधों को मज़बूत किया है, जो मॉस्को की युद्धकालीन अर्थव्यवस्था के लिए जीवन रेखा हैं. हालांकि, कई यूरोपीय देशों के साथ मॉस्को के संबंध अभी भी ठंडे बस्ते में हैं, लेकिन ट्रम्प के व्यापार युद्धों और अप्रत्याशित विदेश नीति ने एक अवसर पैदा किया है, क्योंकि पुतिन और शी ख़ुद को अधिक स्थिर संभावित भागीदारों के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं.
तियानजिन में बैठक के बाद चीन द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण की 80वीं वर्षगांठ मनाएगा.पुतिन इन कार्यक्रमों के लिए रुकेंगे, जिसमें बुधवार को एक सैन्य परेड भी शामिल होगी.
ट्रम्प के टैरिफ़ और अपमान के बीच मोदी, पुतिन और शी की नज़दीकियां
राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा लगाए गए टैरिफ़ और अपमान का सामना करते हुए, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सात वर्षों में अपनी पहली चीन यात्रा के दौरान अपने रूसी और चीनी समकक्षों के साथ कहीं ज़्यादा दोस्ताना बातचीत की. इसका सबसे बड़ा प्रतीक वह तस्वीर थी जिसमें तीनों नेता हाथ में हाथ डाले नज़र आए, जो अमेरिकी नीति के लिए कम से-कम एक प्रतीकात्मक झटका तो है ही.
एक्सियोस के मुताबिक यह ख़बर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि लगातार कई अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने चीन के मुक़ाबले भारत को एक शक्ति के रूप में खड़ा करने की कोशिश की है. ट्रम्प सक्रिय रूप से भारत और रूस के बीच दरार डालने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए, तीनों नेताओं का हाथ पकड़ना अमेरिकी प्रयासों पर पानी फेरता नज़र आ रहा है.मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में हाथ में हाथ डाले داخل हुए और तुरंत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ एक घेरा बना लिया.इस दौरान तीनों नेताओं के चेहरों पर गर्मजोशी भरी मुस्कान साफ़ दिखाई दे रही थी.
शी जिनपिंग ने अपने भाषण में ट्रम्प का नाम लिए बिना "शीत युद्ध की मानसिकता" और "धमकाने" की निंदा की. बाद में उन्होंने एक "वैश्विक शासन पहल" की घोषणा की, जिसमें राष्ट्रों से अधिक "न्यायसंगत और समान" प्रणाली के लिए मिलकर काम करने का आह्वान किया गया. शिखर सम्मेलन में मौजूद कई देशों के नेता ट्रम्प के टैरिफ़ से प्रभावित हैं, और समूह ने बाद में एक घोषणा पर हस्ताक्षर किए, जो अमेरिकी नेता पर एक छिपा हुआ तंज था.
मोदी और पुतिन ने एक लिमो में साथ सफ़र किया और लगभग एक घंटे तक अकेले में बात की. मोदी ने बाद में पुतिन से कहा, "1.4 अरब भारतीय इस साल के अंत में आपका स्वागत करने के लिए उत्साह के साथ इंतज़ार कर रहे हैं." शी और मोदी ने भी रविवार को मुलाक़ात की, जिसमें दोनों पड़ोसी देशों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वे "प्रतिद्वंद्वी" नहीं, बल्कि "साझेदार" हैं.
मोदी के नज़रिए से, यह प्रदर्शन यह दिखाने का एक स्पष्ट प्रयास है कि भारत प्रभावशाली भागीदारों के साथ एक शक्तिशाली खिलाड़ी है. ट्रम्प के 50% टैरिफ़, जिन्हें भारत द्वारा रूसी तेल की निरंतर खरीद पर पिछले हफ़्ते दोगुना कर दिया गया था, ने देश में आक्रोश पैदा कर दिया है. मोदी ने संकेत दिया है कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करेगा. हालांकि, चीन-भारत संबंध अभी भी पूरी तरह सामान्य नहीं हुए हैं. 2020 की घातक सीमा झड़पें अभी भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण हैं. लेकिन फ़िलहाल, तीनों शक्तियों के बीच दूरी बनाने की ट्रम्प प्रशासन की इच्छा सफल होती नहीं दिख रही है.
एक समय भारत के सबसे अच्छे दोस्त थे ट्रम्प, कैसे बिगड़े रिश्ते?
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के कुछ ही महीनों में, संयुक्त राज्य अमेरिका की सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदारियों में से एक संकट में है. अमेरिका और भारत के बीच संबंध पिछले 25 सालों में सबसे निचले स्तर पर हैं. हालात इतने ख़राब हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर दो महीने से ज़्यादा समय से ट्रम्प के फ़ोन कॉल स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. द कन्वर्सेशन में इयान हॉल का विश्लेषण प्रकाशित हुआ है.
यह सब इतनी जल्दी कैसे हुआ? पिछले साल जब ट्रम्प ने चुनाव जीता था, तो नई दिल्ली में कई लोग ख़ुश थे. मोदी ने अपने "दोस्त" को बधाई दी थी. लेकिन ट्रम्प के पद पर लौटने के कुछ ही दिनों बाद जब मोदी उनसे मिलने वॉशिंगटन गए, तो मुलाक़ात अच्छी नहीं रही. बैठक से ठीक पहले, भारतीय नागरिकों को हथकड़ी और बेड़ियों में अमेरिका से एक सैन्य विमान पर निर्वासित किए जाने की परेशान करने वाली तस्वीरों ने मोदी को शर्मिंदा किया. कुछ हफ़्तों बाद, ट्रम्प ने घोषणा की कि भारत पर 27% का टैरिफ़ लगाया जाएगा.
इसी बीच, 22 अप्रैल को कश्मीर में आतंकवादियों ने 26 लोगों की हत्या कर दी. मोदी सरकार ने जवाबी कार्रवाई का संकल्प लिया. 7 मई को, भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आतंकवादी शिविरों पर बमबारी की, जिसके बाद दोनों परमाणु-सशस्त्र देशों के बीच तनाव तेज़ी से बढ़ गया. 10 मई की सुबह युद्धविराम पर सहमति बनी.
इससे पहले कि भारत या पाकिस्तान की सरकारें कुछ कह पातीं, ट्रम्प ने इसका श्रेय ले लिया. उन्होंने सोशल मीडिया पर घोषणा की कि दोनों पक्ष एक समझौते पर सहमत हो गए हैं. नई दिल्ली इस पर आग-बबूला हो गई, क्योंकि भारत का लंबे समय से यह मानना रहा है कि कश्मीर विवाद को द्विपक्षीय रूप से, बिना किसी तीसरे पक्ष की भागीदारी के सुलझाया जाना चाहिए. पाकिस्तान ने इस मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए ट्रम्प को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित कर दिया.
इसके बाद ट्रम्प ने 17 जून को मोदी को फ़ोन किया और उनसे भी ऐसा ही करने को कहा. इससे भी बदतर, ट्रम्प ने मोदी से G7 शिखर सम्मेलन से लौटते समय वॉशिंगटन में रुकने और पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर से मिलने का अनुरोध किया. एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, यह मोदी के लिए आख़िरी तिनका था. उन्होंने दोनों अनुरोधों को साफ़ तौर पर अस्वीकार कर दिया. कहा जाता है कि तब से दोनों नेताओं ने बात नहीं की है. इससे नाराज़ होकर ट्रम्प ने रूसी तेल खरीदने के लिए भारत पर टैरिफ़ दर को बढ़ाकर 50% कर दिया. अब नई दिल्ली के पास बहुत अच्छे विकल्प नहीं हैं. किसी भी अन्य बड़ी शक्ति के पास वह सब कुछ नहीं है जो भारत को बाज़ार, निवेश, प्रौद्योगिकी, हथियार और राजनयिक समर्थन के मामले में अमेरिका से मिलता है.
पता नहीं, मोदी ने पुतिन से यूक्रेन की बात की या नहीं
तिआंजिन पहुंचने से पहले, मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को भरोसा दिलाया था कि वे पुतिन तक युद्धविराम की जरूरी अपील पहुंचाएंगे. लेकिन अब तक भारतीय प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उन्होंने रूसी राष्ट्रपति को यह संदेश दिया या नहीं, जबकि उन्होंने पुतिन के साथ अपनी तस्वीरें चार बार शेयर की हैं. देवरूपा मित्रा ने अपनी रिपोर्ट में तंज़ किया है, “ये तस्वीरें एक से अधिक दर्शक के लिए थीं, मतलब व्हाइट हाउस और भारत के टीवी चैनलों के लिए.” चीन के विशाल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीबो पर चीनी उपयोगकर्ताओं ने भी इन कुछ तस्वीरों को लेकर खूब मज़े लिए हैं.
न मोदी ने पाकिस्तान, न शरीफ ने भारत का नाम लिया
SCO घोषणा में पहलगाम और जाफर एक्सप्रेस, दोनों आतंकी हमलों का जिक्र
भारत-पाकिस्तान के बीच असामान्य संबंधों को इस बार शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री स्तर पर देखा गया, क्योंकि यह पहला मौका था जब प्रधानमंत्री मोदी ने इसमें भाग लेने का फैसला किया. उन्होंने पहलगाम हमले का उल्लेख करते हुए पूछा, “क्या कुछ देशों द्वारा खुलेआम आतंकवाद का समर्थन करना हमें कभी स्वीकार्य हो सकता है?”
इसके जवाब में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने अप्रत्यक्ष रूप से भारत के सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फैसले का जिक्र किया. कहा-“हम सभी अंतरराष्ट्रीय और द्विपक्षीय संधियों का सम्मान करते हैं और इसी तरह के सिद्धांतों का पालन सभी SCO सदस्यों से भी अपेक्षित है. वर्तमान संधियों के अनुसार SCO सदस्यों के बीच जल के उचित हिस्से तक निर्बाध पहुंच SCO के कार्य को सुचारू करेगा और उन व्यापक लक्ष्यों की उपलब्धि में मदद करेगा जिनके लिए SCO की स्थापना की गई थी.”
शरीफ ने पाकिस्तान में हाल ही में हुए आतंकी हमलों का भी उल्लेख किया और भारत को दोष देने की कोशिश की. हमें जाफर एक्सप्रेस ट्रेन के अपहरण की घटना, साथ ही बलूचिस्तान और पाकिस्तान के केपी प्रांतों में हमारे खिलाफ हुए अनेक अन्य आतंकी हमलों में कुछ विदेशी शक्तियों की संलिप्तता के अपराजेय प्रमाण मिले हैं.”
भारत और पाकिस्तान दोनों के इनपुट्स को देखते हुए, SCO की तियानजिन घोषणा में पहलगाम और जाफर एक्सप्रेस दोनों आतंकी हमलों का उल्लेख किया गया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और रणनीतियों के तहत आतंकवाद, जिसमें सीमा पार आतंकवाद भी शामिल है, के खिलाफ कार्रवाई का आह्वान किया गया.
अमेरिका और पाकिस्तान को संदेश देते हुए, मोदी ने तय किया कि SCO शिखर सम्मेलन में उनकी भूमिका अब पूरी हो चुकी है, लिहाजा उन्होंने तियानजिन में “SCO प्लस” शिखर सम्मेलन से पहले ही वहां से जाने का फैसला कर लिया, जिसमें शी जिनपिंग ने मालदीव और नेपाल के नेताओं के साथ-साथ मलेशिया, तुर्की और मिस्र के नेताओं को भी आमंत्रित किया था.
पाकिस्तान को प्राथमिकता दे रहा चीन, इसलिए पहलगाम के लिए शंघाई घोषणा में उसका जिक्र नहीं
इस बीच “द ट्रिब्यून” ने अपने संपादकीय में लिखा है, “भारत के लिए निराशाजनक बात यह है कि SCO घोषणा में पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया, जबकि पाकिस्तान दशकों से सीमा-पार आतंकवाद का प्रमुख प्रायोजक रहा है. ऑपरेशन महादेव (28 जुलाई को श्रीनगर के बाहरी इलाकों में सुरक्षा बलों ने तीन आतंकियों का सफाया किया था) के दौरान एनआईए की जांच में यह साबित हुआ था कि पहलगाम हमलावर पाकिस्तान से आए थे. इसके बावजूद चीन के नेतृत्व वाले SCO ने इस तथ्य को नज़रअंदाज कर दिया.
घोषणा में भारत की प्रतिकारात्मक कार्रवाई का भी कोई ज़िक्र नहीं किया गया, जबकि भारत ने पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था. एक ऐसा संगठन, जिसने आतंकवाद के ख़िलाफ़ अपनी पक्की प्रतिबद्धता दोहराई हो, उसे भारत की संयमित और गैर-उत्तेजक कार्रवाई की सराहना करनी चाहिए थी.
स्पष्ट है कि बीजिंग दिल्ली के साथ अपने रिश्तों में सुधार की बजाय पाकिस्तान के साथ पुराने रिश्तों को प्राथमिकता दे रहा है. यही कारण है कि घोषणा में पाकिस्तान की ज़मीन पर हुए आतंकी हमलों—जैसे जाफर एक्सप्रेस बम विस्फोट और खुजदार हमला—की निंदा की गई है, जिससे हमलावर के बजाय पाकिस्तान को पीड़ित के रूप में दर्शाया गया है. भारत के लिए यह अस्वीकार्य है, क्योंकि भारत लगातार कहता आया है कि आतंकवाद पर कोई दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए. इन चुनौतियों के बावजूद, भारत को चाहिए कि वह SCO के भीतर अपना दबाव जारी रखे ताकि वे देश जवाबदेह ठहरें जो सीमा-पार आतंकवाद का समर्थन करते हैं.
जयशंकर चीन नहीं गए थे
विदेश मंत्री एस. जयशंकर, जो आमतौर पर सभी विदेश यात्राओं पर प्रधानमंत्री के साथ जाते हैं, इस बार चीन नहीं गए. इसका कोई कारण नहीं बताया गया, हालांकि कुछ रिपोर्ट्स ने उनके न जाने का कारण “स्वास्थ्य संबंधी” बताया. लेकिन सोमवार को वे कार्यालय आने के लिए पूरी तरह स्वस्थ थे.
एक बयान पर सैयदा हामिद के खिलाफ असम के 16 जिलों में शिकायतें दर्ज
कार्यकर्ता और योजना आयोग की पूर्व सदस्य सैयदा हामिद के खिलाफ असम के 16 ज़िलों में शिकायतें दर्ज की गई हैं. उन्होंने पिछले सप्ताह कहा था कि “दुनिया इतनी बड़ी है कि बांग्लादेशी यहां (असम में) भी हो सकते हैं. यह बयान उन्होंने गुवाहाटी में एक कार्यक्रम के दौरान दिया था, जो असम नागरिक सम्मेलन द्वारा आयोजित किया गया था. बाद में संगठन ने उनके इस बयान से खुद को अलग कर लिया.
राज्य भाजपा ने उनके बयान पर कड़ा हमला बोला है, जबकि विपक्ष के नेता और कांग्रेस विधायक देबब्रत सैकिया ने भी इसे “गलत और अस्वीकार्य” कहा. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि उनकी सरकार उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं करेगी, लेकिन अगर वह असम लौटकर आती हैं तो उन्हें पूरा सम्मान देते हुए, लेकिन कानून के अनुसार ही पेश आया जाएगा.
जावेद अख्तर के कारण स्थगित उर्दू का जश्न
पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी ने “हिंदी सिनेमा में उर्दू” विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम को इसलिए स्थगित कर दिया, क्योंकि उसमें एक नास्तिक जावेद अख्तर को आमंत्रित किया गया था. “द हिंदू” में विश्वनाथ घोष ने अकादमी के सूत्रों का हवाला देते हुए बताया कि इस फैसले के पीछे कारण इस्लामी समूहों का दबाव था. साथ ही राज्य सरकार भी "चुनावी वर्ष के पहले किसी को नाराज नहीं चाहती थी. अकादमी की सदस्य ग़ज़ाला यासमीन ने इस स्थगन पर निराशा जताते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि "उर्दू को भारतीय भाषा के रूप में, बिना किसी धार्मिक संबद्धता के, अपने सांस्कृतिक, सौंदर्यात्मक और साहित्यिक उत्कृष्टता के लिए मनाया जा सकेगा, और यह तंग-दिमाग धार्मिक भावना की शिकार नहीं होगी.”
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