03/10/2025: बिहार मतदाता सूची पर सवाल | मस्जिद गिराई, नेता नज़रबंद | आई लव मुहम्मद पर अपूर्वानंद | राहुल ने भाजपा, संघ को कायर कहा | भागवत की फिक़्र | मुनव्वर की सुपारी | पं छन्नूलाल का जाना
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
बिहार की मतदाता सूची से 47 लाख नाम गायब, उठे 5 बड़े सवाल
संभल में भारी सुरक्षा के बीच मस्जिद ध्वस्त, अवैध निर्माण का दावा
‘आई लव मुहम्मद’ विवाद: चंद्रशेखर आजाद नजरबंद, बरेली में इंटरनेट बंद
आस्था पर हंगामा: क्या ‘आई लव मोहम्मद’ कहना भारत में अपराध है
जेन ज़ी और ‘नेपाल मॉडल’ से क्यों बेचैन है बीजेपी
राहुल गांधी का हमला: भाजपा-आरएसएस की विचारधारा कायरता
‘रेवड़ी संस्कृति’ पर सवाल, मोदी ने बिहार में चुनाव से पहले बांटे पैसे
मानव तस्करी रिपोर्ट: अमेरिका ने भारत-पाकिस्तान को एक ही श्रेणी में रखा
मुनव्वर फारुकी की सुपारी लेने वाले गैंगस्टर दिल्ली में मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार
गायक ज़ुबीन गर्ग की मौत: मैनेजर और आयोजक पर हत्या का आरोप
मणिपुर में हिंसा: देश के 45% आगजनी के मामले दर्ज
महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्याएं सबसे ज्यादा, कर्नाटक दूसरे नंबर पर
लद्दाख में ‘ऐतिहासिक भूल’: बीजेपी में संकट, पार्षद छिपे
भीमा कोरेगांव मामला: आनंद तेलतुंबडे को विदेश जाने की इजाजत नहीं
मैनचेस्टर: यहूदी पूजाघर पर आतंकी हमला, दो की मौत
लंदन में गांधी की मूर्ति तोड़ी, ‘आतंकवादी’ लिखा
अफगानिस्तान में इंटरनेट ब्लैकआउट, तालिबान का इनकार
भारतीय कला बाजार में उछाल, दो हफ्तों में $96 मिलियन की बिक्री
मशहूर प्राइमेटोलॉजिस्ट जेन गुडॉल का निधन
ठुमरी सम्राट पंडित छन्नूलाल मिश्र नहीं रहे
बिहार की ‘अंतिम’ मतदाता सूची जारी करने के बाद 5 बड़े सवाल
चुनाव आयोग द्वारा विवादित विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद बिहार की ‘अंतिम’ मतदाता सूची जारी करने की संक्षिप्त विज्ञप्ति कम से कम पांच महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े करती है, जैसा कि श्रावस्ती दासगुप्ता अपनी रिपोर्ट में बताती हैं.
(1) नवीनतम सूची में जून में एसआईआर की शुरुआत की तुलना में लगभग 47 लाख कम नाम हैं, लेकिन किस कारण से इन नामों को बाहर कर दिया गया?
(2) किन आधारों पर 3.66 लाख नाम जो मसौदा सूची में शामिल थे, उन्हें अंतिम सूची से हटा दिया गया?
(3) फॉर्म 6 के माध्यम से 21.53 लाख नाम मसौदा सूची में जोड़े गए, लेकिन इनमें से कितने पहली बार के पंजीकरणकर्ता हैं और कितने पीड़ित व्यक्ति हैं, जिन्हें शामिल करने के अपने दावों के विरुद्ध जोड़ा गया है?
(4) हटाए गए 47 लाख नामों में से कितने स्वीकार्य दस्तावेज़ों की कमी के कारण हटाए गए?
(5) चुनाव अधिकारियों ने कितने “विदेशी अवैध अप्रवासियों” का पता लगाया और उन्हें सूची से हटा दिया?
‘आई लव मुहम्मद’
संभल में भारी सुरक्षा के बीच मस्जिद गिराई
उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में, अधिकारियों ने गुरुवार को राई बुज़ुर्ग गांव में एक मस्जिद को ध्वस्त कर दिया और दावा किया कि यह सरकारी तालाब की ज़मीन पर अवैध रूप से बनाई गई थी. यह कार्रवाई, जिसकी चर्चा लगभग एक साल से चल रही थी, कड़ी सुरक्षा के बीच की गई और पूरे इलाके को पुलिस छावनी में बदल दिया गया. सैकड़ों पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों को तैनात किया गया था, और एसडीएम और सिटी मजिस्ट्रेट सहित अधिकारी विध्वंस की निगरानी कर रहे थे.
मकतूब मीडिया में ग़ज़ाला अहमद की रिपोर्ट है कि पास में ही ‘जनता’ नाम के एक मैरिज हॉल को भी गिराया जाना है. अधिकारियों के अनुसार, राजस्व विभाग ने पहले साइट का निरीक्षण किया था और मस्जिद को अतिक्रमण बताते हुए एक नोटिस दिया था. ग्रामीणों का हालांकि दावा है कि यह मस्जिद लगभग एक दशक पहले बनाई गई थी.
इस बीच, बरेली, शाहजहांपुर, पीलीभीत और बदायूं में पिछले हफ़्ते ‘आई लव मुहम्मद’ पोस्टरों को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन और पुलिस कार्रवाई के बाद हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है. झड़पों के सिलसिले में अब तक 81 से ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. सुरक्षा और कड़ी कर दी गई है. पुलिस, पीएसी और आरएएफ बलों को तैनात किया गया है, और संवेदनशील क्षेत्रों की ड्रोन से निगरानी की जा रही है.
संभल में ज़िला अधिकारियों ने कहा कि यह कार्रवाई अवैध निर्माणों के खिलाफ एक बड़े अभियान का हिस्सा है और स्थानीय लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की.भूमि राजस्व अधिकारी धर्मेंद्र कुमार ने कहा, “यह तालाब और आरक्षित भूमि पर अतिक्रमण का मामला है. अदालत ने बेदखली का आदेश पारित किया था. मस्जिद को खाली करा लिया गया है. मस्जिद कमेटी के अनुरोध पर, डीएम ने उन्हें समय दिया है, और वे खुद मस्जिद हटा देंगे.”
मकतूब से बात करते हुए एसएसपी के. के. बिश्नोई ने कहा, “निर्माण अवैध रूप से किया गया था. हमने मस्जिद कमेटी को एक महीने पहले नोटिस दिया था, लेकिन उन्होंने कोई संज्ञान नहीं लिया.” उन्होंने आगे कहा, “किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए हमने और अधिक पुलिस बल तैनात किया है. एक मस्जिद और उससे जुड़े मदरसे को एक मैरिज हॉल के साथ ध्वस्त कर दिया गया. हमने ऐसी और संपत्तियों की पहचान की है जिन्हें नियत समय में ध्वस्त किया जाएगा.”
नेताओं की नज़रबंदी और इंटरनेट बैन
उत्तर प्रदेश के बरेली में ‘आई लव मुहम्मद’ पोस्टरों को लेकर शुरू हुआ विवाद अब एक बड़े राजनीतिक टकराव में बदल गया है. पिछले हफ़्ते बरेली में हुए विरोध प्रदर्शन और पुलिस की कार्रवाई के बाद से ही माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है. इस मामले ने अब और तूल पकड़ लिया है जब भीम आर्मी के प्रमुख और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद को सहारनपुर में उनके घर पर नज़रबंद कर दिया गया. वे ‘‘आई लव मुहम्मद’ अभियान पर पुलिस की कार्रवाई और बरेली में हुए लाठीचार्ज से प्रभावित परिवारों से मिलने जा रहे थे.
इस नज़रबंदी पर सवाल उठाते हुए आज़ाद ने पूछा, “अगर सब कुछ ठीक है, तो मुझे क्यों रोका जा रहा है?”. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि अगर योगी सरकार उन्हें पुलिस के दम पर रोकना चाहती है, तो वे भी बहुजन समाज को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. आज़ाद ने आरोप लगाया कि शामली में छाती पर ‘आई लव मुहम्मद’ लिखने वाले युवक को जेल भेजना हो या 26 सितंबर को बरेली में पुलिस का “क्रूर लाठीचार्ज”, ये घटनाएं “वोट बैंक हासिल करने के लिए एक विशेष धर्म के लोगों को बदनाम करने की सोची-समझी साजिश” और “सरकार की तानाशाही और अहंकार का प्रतीक” हैं. उन्होंने कहा कि बरेली में मुस्लिम समुदाय केवल शांतिपूर्ण तरीके से ज्ञापन सौंपना चाहता था, लेकिन नमाज़ अदा करने की भी अनुमति नहीं दी गई और पुलिस ने “अपने आकाओं को खुश करने के लिए” लाठीचार्ज किया.
चंद्रशेखर आज़ाद से पहले, सहारनपुर के सांसद इमरान मसूद और अमरोहा के पूर्व सांसद कुंवर दानिश अली को भी बुधवार को विरोध प्रदर्शनों से प्रभावित शहर का दौरा करने से रोकने के लिए घर में नज़रबंद कर दिया गया था.
यह पूरा विवाद 26 सितंबर को तब शुरू हुआ जब एक इस्लामी मौलवी ने देश के विभिन्न हिस्सों में पैगंबर के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणियों के जवाब में धरने की घोषणा की थी. इससे पहले कानपुर में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के जुलूस के दौरान ‘आई लव मुहम्मद’ के पोस्टर पर विवाद हुआ था, जिसके बाद कानपुर पुलिस ने 24 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था.
तनाव को देखते हुए, उत्तर प्रदेश सरकार ने गुरुवार को दशहरा उत्सव के मद्देनज़र कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए बरेली में 48 घंटे के लिए इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करने का आदेश दिया. एक आधिकारिक सरकारी आदेश के अनुसार, यह निलंबन 2 अक्टूबर, 2025 को दोपहर 3:00 बजे से 4 अक्टूबर, 2025 को दोपहर 3:00 बजे तक प्रभावी रहेगा. बरेली के अलावा बाराबंकी और मऊ जिलों में भी तनाव बढ़ गया है, जहाँ अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं. पुलिस और प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (पीएसी) ने कई जिलों में ड्रोन निगरानी के साथ फ्लैग मार्च किया. बरेली की पुलिस अधीक्षक (दक्षिण) अंशिका वर्मा ने कहा, “आज विजयादशमी है. हम महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यह फ्लैग मार्च कर रहे हैं. गश्त की जा रही है. सुरक्षा व्यवस्था की गई है.”
अपूर्वानंद : अपनी आस्था व्यक्त करना अपराध है?
हाल ही में मिलाद-उन-नबी के मौके पर कुछ मुस्लिम युवकों द्वारा ‘आई लव मोहम्मद’ के पोस्टर लगाए जाने के बाद देश के कई हिस्सों, खासकर उत्तर प्रदेश में, जो विवाद खड़ा हुआ है, वह कई गंभीर सवाल खड़े करता है. कानपुर से शुरू हुआ यह विवाद बरेली, लखनऊ समेत कई शहरों तक फैल गया, जिसमें पुलिस ने कई गिरफ्तारियां कीं और कुछ जगहों पर बुलडोज़र की कार्रवाई भी देखने को मिली. हरकारा डीपडाइव में इसी मुद्दे पर अपूर्वानंद और निधीश त्यागी ने बातचीत करते हुए इसके गहरे सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर प्रकाश डाला.
अपूर्वानंद ने इस बात पर हैरानी जताई कि कोई व्यक्ति अगर अपने पैगंबर के प्रति प्रेम व्यक्त कर रहा है तो इससे शांति व्यवस्था कैसे भंग हो सकती है. उन्होंने कहा कि यह घटना पिछले कुछ वर्षों से चल रहे एक पैटर्न का हिस्सा है, जहां मुसलमानों की धार्मिक प्रथाओं को निशाना बनाया जा रहा है. चाहे वह गुड़गांव में खुली जगहों पर नमाज़ पढ़ने पर हमला हो, अज़ान पर आपत्ति हो या फिर संभल में छत पर नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी. यह सब इस मानसिकता को दर्शाता है कि मुसलमानों को उनके धर्म का पालन कैसे करना है, यह दूसरे तय करेंगे.
बातचीत में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि कैसे प्रशासनिक मशीनरी का इस्तेमाल एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ किया जा रहा है. बरेली में एक मौलवी के घर पर बुलडोज़र चला दिया गया, क्योंकि वह ‘आई लव मोहम्मद’ मामले में शामिल थे. वहीं दूसरी तरफ़, नवरात्रि के दौरान सार्वजनिक उत्सवों पर कोई रोक-टोक नहीं है. ‘आई लव मोहम्मद’ के जवाब में ‘आई लव महादेव’ और ‘आई लव योगी’ जैसे पोस्टर भी सामने आए, जो इस मामले को और जटिल बनाते हैं और साफ तौर पर मुसलमानों को निशाना बनाने की राजनीति को रेखांकित करते हैं.
यह भी चिंता का विषय है कि इस पूरे विवाद पर मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने निराशाजनक चुप्पी साध रखी है. अपूर्वानंद का मानना है कि राजनीतिक दलों को लगता है कि मुसलमानों के पक्ष में बोलने से हिंदू वोट नाराज़ हो जाएंगे. यह धारणा बन गई है कि भारत में हिंदू अब मुसलमान विरोधी है, इसलिए वे अपने भाषणों में ‘मुसलमान’ शब्द का इस्तेमाल करने से भी बचते हैं.
यह घटनाएं ऐसे समय में हो रही हैं जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपनी स्थापना का सौवां साल मना रहा है. चर्चा में यह बात उभर कर आई कि यह सब उस नफ़रत के प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो भारत के संविधान और लोकतंत्र के लिए एक बड़ा ख़तरा है. आज भारत एक ऐसे बिंदु पर खड़ा है, जहां पुलिस और प्रशासन भी हिंदुत्व की विचारधारा से प्रभावित नज़र आ रहे हैं. यह केवल मुसलमानों का मुद्दा नहीं है, बल्कि ईसाई और अन्य आदिवासी समुदाय भी इसी तरह के भेदभाव और हिंसा का सामना कर रहे हैं.
संविधान हमें अपने धर्म का पालन करने और उसे व्यक्त करने का अधिकार देता है. ‘आई लव मोहम्मद’ का पोस्टर लगाना इसी अधिकार का एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन था. इस पर हुई दमनकारी कार्रवाइयां न केवल असंवैधानिक हैं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को कमज़ोर करती हैं.
विश्लेषण
सीमा चिश्ती : जेन ज़ी या भारत में नेपाल मॉडल की आशंका को लेकर भाजपा इतनी बेचैन क्यों है?
द वायर की संपादक सीमा चिश्ती का यह लेख इंडिया केबल में प्रकाशित हुआ. उसके अंश.
उपमहाद्वीप पर नज़र रखने वाले राजनीति विज्ञान के ज़्यादातर छात्रों के लिए, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में लोकप्रिय आंदोलनों के कारण सरकार में बदलाव होना, भारत में इसी तरह के बदलाव के लिए कोई टेक्स्टबुक प्रीव्यू नहीं है. 1952 के बाद लोकतंत्र में भारत की गहरी जड़ों से इनकार नहीं किया जा सकता. शायद यह 1940 के दशक में औपनिवेशिक शासन से आज़ाद हुआ एकमात्र ग़रीब देश है, जिसने नियमित अंतराल पर विश्वसनीय और काफी हद तक शांतिपूर्ण चुनावों के बाद सत्ता हस्तांतरण का प्रबंधन किया है.
यहां तक कि 18 महीने तक चले आपातकाल को भी एक ऐसे चुनाव ने धो दिया, जिसकी विश्वसनीयता पर किसी ने एक पल के लिए भी शक नहीं किया. यह सब इसे दक्षिण एशिया में सबसे अलग बनाता है.
ऐसे रिकॉर्ड के साथ, सत्तारूढ़ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा ‘जेन ज़ी’ के ‘नेपाल-मॉडल’ को शुरू करने में सक्षम होने की उत्तेजित करने वाली बातें एक ऐसी बेचैनी को उजागर करती हैं जो दिलचस्प है. गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे और मंडी की सांसद कंगना रनौत, विपक्ष के नेता राहुल गांधी के यह कहने पर नाराज़ हो गए कि, “जेन ज़ेड संविधान को बचाएगा.” निश्चित रूप से, 35 वर्ष से कम आयु के 65% भारतीयों के साथ, यह एक संवैधानिक अपेक्षा है, तो फिर यह बेचैनी क्यों?
इस सवाल का जवाब, भले ही रहस्यमय तरीके से, सूचना और प्रसारण मंत्री के वरिष्ठ सलाहकार, जो एक पुराने और अनुभवी भाजपा नेता हैं, के एक ट्वीट में मिलता है, जिसमें मोदी जी के लिए ‘जेन ज़ी’ के समर्थन का दावा किया गया है.
और ‘जेन ज़ी’ के वे उपद्रवी, जिनके बारे में उन्होंने पोस्ट किया है, असल में क्या कह रहे हैं?
“मोदी जी लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं; लंबे-लंबे लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं; खींच-खींच के लट्ठ बजाओ, हम तुम्हारे साथ हैं…”
मोटे तौर पर इसका मतलब है, “मोदी जी, लाठी चलाओ, और पूरी ताक़त से चलाओ, हम तुम्हारे साथ हैं.” एक ऊर्जावान भीड़ के दृश्य - चाहे वह जेन ज़ी हो या नहीं, यह बताना मुश्किल है - ‘मोदी जी’ द्वारा किसी मज़बूत-हाथ वाली कार्रवाई का समर्थन करते हुए 14-सेकंड के वीडियो में देखे जा सकते हैं.
प्लेबुक चोरी पर चिंता?
चाहे सड़क पर विरोध प्रदर्शन हो या भीड़ की हिंसा, लोगों को सड़कों पर लाना भाजपा के विस्तार कार्यक्रम का केंद्र रहा है - एक ऐसा कार्यक्रम जो पार्टी के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ क्योंकि यह देश की राजनीतिक परिधि से ऊपर उठकर एक प्रमुख विपक्षी ताकत के रूप में केंद्र-मंच पर काबिज़ हो गई. 1980 के दशक में, भाजपा की यात्राएं - जिसमें पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व वाली रथ यात्रा भी शामिल थी, जिसने अपने पीछे विनाश का एक निशान छोड़ा था - सड़कों पर भीड़ और भीड़ को इकट्ठा करने के बारे में थीं. अयोध्या का उभार, जिसके परिणामस्वरूप दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ - सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार “बर्बरों” द्वारा, लेकिन भाजपा के अनुसार “गुस्साए हिंदुओं” द्वारा - वास्तव में अन्य राजनीतिक ताकतों द्वारा की गई बांझ राजनीतिक लामबंदी की तुलना में भगवा भीड़ की शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए था.
अगर सत्ता से बाहर रहते हुए सड़कों पर भीड़ और भीड़ को इकट्ठा करना आसान था, तो भाजपा ने सत्ता में रहते हुए भी भीड़ जुटाने का काम नहीं छोड़ा है. सरकार की नीतियों के लिए सड़कों पर भीड़ का होना वास्तव में यह संकेत देने का एक आदर्श तरीका है कि भाजपा वास्तव में राज करती है. 2002 में गुजरात में, यह भीड़ ही थी जिसने आगे बढ़कर नियंत्रण स्थापित किया - ‘मुसलमानों को ऐसा सबक सिखाने के लिए जिसे वे कभी नहीं भूलेंगे’ - अहमदाबाद और दिल्ली दोनों में भाजपा सरकार ने उदारतापूर्वक देखते हुए. गुजरात में भीड़ की शक्ति का राजनीतिक रूप से उपयोग शक्तिशाली था और इससे चुनावी लाभ मिला.
सत्ता में हों या बाहर, भीड़ हमेशा मौजूद रहती है
ग्यारह से ज़्यादा सालों में जब तक भाजपा दिल्ली में सत्ता में रही है, भाजपा/आरएसएस के ब्रह्मांड के बाहर ‘लोकप्रिय समर्थन’ का स्पर्श रखने वाली सभी लामबंदियों के बाद शातिर कार्रवाई हुई है. साथ ही, शासन उन समूहों को हिंसा पर राज्य के कानूनी एकाधिकार को आउटसोर्स करने में खुश है, जिनसे वह सहमत है, जैसे कि गौ-सतर्कतावादी जो उन लोगों पर हमला करते हैं और कभी-कभी मार डालते हैं जिन पर वे अवैध पशु व्यापार में शामिल होने का आरोप लगाते हैं, या अन्य जो सरकार के समर्थन में रैली करते हैं. लेकिन जो लोग राजनीतिक या वैचारिक रूप से भाजपा के विरोधी हो सकते हैं - अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद कश्मीर में संभावित आंदोलनकारी, तीन गैर-कानूनी रूप से बनाए गए कानूनों को वापस लेने की मांग करने वाले किसान, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 के खिलाफ सड़कों पर मुसलमान - उनके लिए जगह नाटकीय रूप से सिकुड़ गई है. सड़कों पर आने वाले सभी लोगों को संभावित रूप से उमर खालिद जैसा भविष्य का सामना करना पड़ सकता है.
सोनम वांगचुक, जो कभी सरकार के प्रिय थे, 3 इडियट्स में आमिर खान के फुंसुक वांगड़ू के रूप में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, अब लद्दाख में भाजपा के कुप्रबंधन और अपने ही घोषणापत्र के साथ विश्वासघात के खिलाफ लोगों को जगाने और ठोस तर्क देने और दृढ़ रहने की क्षमता के लिए राज्य के दुश्मन हैं.
जातिगत जनगणना को भाजपा ने यह सोचकर मान लिया था कि वह इससे उत्पन्न होने वाले आंदोलनों और बेचैनी को प्रबंधित करने में सक्षम होगी. आख़िरकार, उसने ख़ुद को एकमात्र ऐसी पार्टी के रूप में देखा जो सड़कों पर छोटी (गैर-प्रमुख) जाति समूहों को इकट्ठा करने में सक्षम थी और फिर उन्हें आवास और जगह देने की स्थिति में भी थी. लेकिन चीज़ें पटकथा से बाहर हो गई हैं. आर्थिक मंदी वास्तविक है और भारत की नौकरियां पैदा करने में असमर्थता अब कोई रहस्य नहीं है. वास्तविक गुस्सा दिखाई दे रहा है - ‘पेपर लीक’ अभियानों में या “रिक्तियों के न खुलने” के खिलाफ़ युवा आंदोलनों में. किसान आंदोलनों ने पहले ही मोदी को कृषि कानूनों को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है और हाल ही में पिछले महीने बिहार में विपक्षी दलों के लिए अप्रत्याशित भीड़ उमड़ पड़ी. दीवार पर लिखी इबारत शायद ‘दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी’ को एक ऐसी कहानी बता रही है जिसे वे पढ़ना पसंद नहीं करते. कम से कम एक दशक तक भाजपा के झंडे तले ‘छोटी जातियों’ को लामबंद करने और उनका नेतृत्व करने के बाद, यूपी में जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों पर अचानक प्रतिबंध लगा दिया गया है.
उमर खालिद की ‘मुस्लिमियत’ और वांगचुक की लद्दाखी पहचान सार्वजनिक विरोध के साथ भाजपा की शुरुआती बेचैनी की व्याख्या कर सकती है, लेकिन तथ्य यह है कि उसके अपने नेता अब ‘नेपाल मॉडल’ का हवाला देते हैं और ‘जेन ज़ी’ के डर को व्यक्त करते हैं, एक गंभीर, अंतर्निहित भय को धोखा देता है. यह सत्ता में या बाहर, सड़कों पर स्वतःस्फूर्त और बड़ी भीड़ लाने वाली एकमात्र पार्टी होने का लाभ खोने का डर है.
गृह मंत्री अमित शाह ने कथित तौर पर “निहित स्वार्थों द्वारा बड़े पैमाने पर आंदोलनों को रोकने के लिए” एक जांच शुरू की है. इसके लिए, उन्होंने पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो को भारत में स्वतंत्रता के बाद के सभी विरोध प्रदर्शनों का अध्ययन करने के लिए कहा है. ये “आंदोलन” ऐसे आंदोलन हैं जिन्होंने स्वतंत्र भारत के लोकतंत्र को परिभाषित और समृद्ध किया. इनसे मिलने वाले सबक इसके लोगों और नेताओं के लिए हितकर हैं - पुलिस के लिए नहीं - यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारतीय लोकतंत्र भविष्य में जीवित रहे.
राहुल गांधी : भाजपा-आरएसएस की विचारधारा के मूल में कायरता है
लोकसभा में विपक्ष के नेता, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भाजपा-आरएसएस की विचारधारा पर तीखा हमला करते हुए आरोप लगाया है कि इसके मूल में कायरता है. उन्होंने सत्ताधारी दल पर कमज़ोरों को निशाना बनाने और मज़बूतों से टकराव से बचने का आरोप लगाया.
कोलंबिया की ईआईए यूनिवर्सिटी में छात्रों के साथ बातचीत के दौरान, गांधी ने अपनी बात को साबित करने के लिए विदेश मंत्री एस. जयशंकर की टिप्पणियों का हवाला दिया. उन्होंने कहा, “यह भाजपा-आरएसएस की प्रकृति है. यदि आप विदेश मंत्री के एक बयान पर ध्यान दें, तो उन्होंने कहा, ‘चीन हमसे कहीं ज़्यादा शक्तिशाली है. मैं उनसे लड़ाई कैसे कर सकता हूँ?’ इस विचारधारा के केंद्र में कायरता है.”
राहुल गांधी ने अपनी आलोचना को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर ही हमला हो रहा है. उन्होंने कहा, “भारत में कई धर्म, परंपराएं और भाषाएं हैं. एक लोकतांत्रिक व्यवस्था सभी के लिए जगह प्रदान करती है. लेकिन अभी, लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सभी तरफ़ से हमला हो रहा है.” उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार और आरएसएस पर देश की बहुलवादी नींव को कमज़ोर करने का आरोप लगाया और लोकतंत्र पर इस हमले को भारत के भविष्य के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताया.
गांधी ने विनायक दामोदर सावरकर के लेखन के एक प्रसंग का भी उल्लेख किया. उन्होंने टिप्पणी की, “अपनी किताब में, सावरकर ने लिखा है कि एक बार उन्होंने और उनके कुछ दोस्तों ने एक मुस्लिम व्यक्ति को पीटा, और उस दिन उन्हें बहुत खुशी महसूस हुई. अगर पांच लोग एक अकेले व्यक्ति को पीटते हैं, जिससे उनमें से एक को खुशी मिलती है, तो यह कायरता है. यही आरएसएस की विचारधारा है, कमज़ोर लोगों को पीटना.”
उन्होंने भारत के राजनीतिक ढांचे की तुलना चीन की केंद्रीकृत संरचना से की. उन्होंने कहा, “1.4 अरब लोगों के साथ भारत में अपार संभावनाएं हैं. लेकिन भारत की व्यवस्था चीन से पूरी तरह से अलग है. चीन बहुत केंद्रीकृत और एक समान है. भारत विकेंद्रीकृत है और इसमें कई भाषाएं, संस्कृतियां, परंपराएं और धर्म हैं. भारत की व्यवस्था बहुत अधिक जटिल है.” उन्होंने कहा कि भारत में अधिनायकवाद के माध्यम से विविधता को दबाना संभव नहीं है.
कांग्रेस सांसद ने ऊर्जा में वैश्विक बदलाव और भू-राजनीति पर उनके प्रभाव पर भी ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने बताया कि कैसे ब्रिटेन कोयले और स्टीम इंजन के साथ सत्ता में आया, और संयुक्त राज्य अमेरिका पेट्रोल और आंतरिक दहन इंजन के साथ. उन्होंने कहा, “अब हम इलेक्ट्रिक मोटर, फ्यूल टैंक से बैटरी की ओर एक नए संक्रमण का सामना कर रहे हैं. अमेरिका, जिसकी दुनिया के प्रति एक समुद्री दृष्टि है, और चीन, जिसकी एक स्थलीय दृष्टि है, के बीच असली लड़ाई यह है कि इस संक्रमण का प्रबंधन कौन करेगा. चीनी अब तक जीत रहे हैं,” यह देखते हुए कि भारत इस महाशक्ति प्रतिद्वंद्विता के बीच में है.
पड़ोसी देशों में हिंसक विस्फोट भागवत के लिए चिंता का विषय
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि नेपाल से लेकर श्रीलंका तक हमारे पड़ोस के देशों में हिंसक सड़क विरोध प्रदर्शन क्षेत्र को अस्थिर कर सकते हैं. उन्होंने कहा, “श्रीलंका, बांग्लादेश, और हाल ही में नेपाल में जनता के गुस्से के हिंसक विस्फोट के कारण शासन परिवर्तन हमारे लिए चिंता का विषय है. “द इंडियन एक्सप्रेस” में दीप्तिमान तिवारी ने पांच बिंदुओं से बताईं हैं मोहन भागवत के भाषण की प्रमुख बातें, जो उन्होंने आरएसएस के शताब्दी विजयादशमी कार्यक्रम में दिया.
1. पहलगाम में आतंकी हमला, विदेशों में दोस्ती का परीक्षण
जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए सीमा पार आतंकवादी हमले का जिक्र करते हुए भागवत ने कहा कि इस घटना और इसके बाद के घटनाक्रम ने भारतीय समाज के लचीलेपन और वैश्विक एकजुटता में दरारों दोनों को उजागर किया.
उन्होंने कहा, “22 अप्रैल को, पहलगाम में, सीमा पार आतंकवादियों ने 26 भारतीय नागरिक पर्यटकों को उनके हिंदू धर्म के बारे में पूछकर मार डाला... सावधानीपूर्वक योजना के बाद, भारत सरकार ने मई के महीने में इस हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया. इस पूरी अवधि के दौरान, हमने देश के नेतृत्व की दृढ़ता, हमारे सशस्त्र बलों की बहादुरी और युद्ध की तैयारी, साथ ही हमारे समाज के संकल्प और एकता के हृदयस्पर्शी दृश्य देखे.”
उन्होंने आगे कहा कि इस प्रकरण ने यह भी दिखाया है कि “वैश्विक मंच पर हमारे दोस्त कौन हैं और वे किस हद तक हमारे साथ खड़े होने को तैयार हैं.”
आतंकवाद पर स्पष्ट रूप से खंडित वैश्विक सहमति की पृष्ठभूमि में की गई इस टिप्पणी को आरएसएस प्रमुख के उस प्रयास के रूप में देखा जा रहा है कि भारत की कूटनीति को सतर्कता और यथार्थवादी राजनीति से संतुलित किया जाना चाहिए।
2. ‘नक्सल आंदोलन काफी हद तक नियंत्रण में आया’
आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर, भागवत ने सतर्क आशावाद का भाव व्यक्त किया, यह घोषणा करते हुए कि वामपंथी उग्रवाद कमजोर हो गया है, लेकिन इसके पुनरुत्थान को रोकने के लिए विकास की आवश्यकता पर जोर दिया.
उन्होंने कहा, “सरकार की दृढ़ कार्रवाई और लोगों के बीच उनकी विचारधारा के खोखलेपन और क्रूरता के बारे में बढ़ती जागरूकता के कारण चरमपंथी नक्सली आंदोलन काफी हद तक नियंत्रण में आ गया है.” उन्होंने आगे कहा, “अब जबकि ये बाधाएं दूर हो गई हैं, इन क्षेत्रों में न्याय, विकास, सद्भावना, सहानुभूति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक कार्य योजना की आवश्यकता है. “
3. बढ़ती असमानता के साथ आर्थिक विकास
भागवत ने वर्तमान आर्थिक मॉडल की संरचनात्मक कमियों पर ध्यान आकर्षित किया, जिसमें बढ़ती असमानता और शोषण के प्रति आगाह किया गया.
उन्होंने कहा, “प्रचलित आर्थिक व्यवस्था की कमियां, जैसे अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई, आर्थिक शक्ति का केंद्रीकरण, शोषण करने वालों द्वारा आसान शोषण को सक्षम करने वाले नए तंत्रों का मजबूत होना, पर्यावरण का क्षरण, और वास्तविक पारस्परिक संबंधों के बजाय लेन-देनवाद और अमानवीयता का उदय, विश्व स्तर पर उजागर हो चुकी हैं. “
संयुक्त राज्य अमेरिका की टैरिफ नीतियों की ओर इशारा करते हुए, भागवत ने आत्मनिर्भरता पर जोर दिया. उन्होंने कहा, “स्वदेशी और स्वावलंबन का कोई विकल्प नहीं है.”
यह जोर सरकार के आत्मनिर्भर भारत के अभियान से जुड़ा है, लेकिन असमानता पर उनका बल धन वितरण और कल्याणकारी खर्च को लेकर बढ़ते राजनीतिक विवाद के बीच भी आया है.
4. हिमालय में पारिस्थितिक संकट
“भौतिकवादी और उपभोक्तावादी” विकास मॉडल की लागतों के प्रति चेतावनी देते हुए, आरएसएस प्रमुख ने हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय तनाव की ओर ध्यान दिलाया.
उन्होंने कहा, “भारत में भी, उसी मॉडल के कारण, पिछले 3-4 वर्षों में अनियमित और अप्रत्याशित वर्षा, भूस्खलन, ग्लेशियरों का सूखना और अन्य इसी तरह के प्रभाव तेज हो गए हैं... हिमालय में इन आपदाओं की घटना को भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों के लिए एक चेतावनी की घंटी माना जाना चाहिए. “
5. पड़ोस में उथल-पुथल और लोकतांत्रिक मार्ग
दक्षिण एशिया में राजनीतिक उथल-पुथल की ओर मुड़ते हुए, भागवत ने आगाह किया कि नेपाल से लेकर श्रीलंका तक पड़ोस में हिंसक सड़क विरोध प्रदर्शन क्षेत्र को अस्थिर कर सकते हैं. उन्होंने कहा, “श्रीलंका, बांग्लादेश, और हाल ही में नेपाल में जनता के गुस्से के हिंसक विस्फोट के कारण शासन परिवर्तन हमारे लिए चिंता का विषय है... हिंसक विस्फोटों में वांछनीय परिवर्तन लाने की शक्ति नहीं होती है. समाज केवल लोकतांत्रिक साधनों से ही ऐसा परिवर्तन प्राप्त कर सकता है,” उन्होंने कहा.
पड़ोसियों को “हमारे अपने परिवार का हिस्सा” बताते हुए, भागवत ने आगे कहा, “इन देशों में शांति, स्थिरता, समृद्धि और आराम व कल्याण सुनिश्चित करना हमारे हितों की रक्षा के विचार से परे, इन देशों के साथ हमारी प्राकृतिक आत्मीयता से उत्पन्न होने वाली एक आवश्यकता है.” लोकतांत्रिक साधनों पर यह जोर तब आया है जब भारत के कई हिस्सों, जिसमें लद्दाख भी शामिल है, में हाल ही में युवाओं द्वारा विभिन्न कारणों से हिंसक विरोध प्रदर्शन देखे गए हैं.
उसूल बनाम कहानी की माँग
‘रेवड़ी संस्कृति’ के ख़िलाफ़ होते हुए भी मोदी ने बिहार की महिलाओं के खाते में खुद डाले 10 हजार
बिहार की मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना (एमएमआरवाई) सभी ‘रेवड़ी’ योजनाओं की जननी के रूप में उभरी है और चुनाव-पूर्व लोकलुभावनवाद का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.
चुनावों से ठीक पहले घोषित की गई यह योजना, बिहार की प्रत्येक महिला को 2 लाख रुपये के भारी भुगतान का वादा करती है, जो किसी प्रकार का रोज़गार या आत्मनिर्भरता पहल शुरू करने के आश्वासन पर सरकार के पास पंजीकरण कराती है.
“पंजीकरण पर, उसे अपने बैंक खाते में 10,000 रुपये मिलते हैं. शेष राशि (1.90 लाख रुपये) चुनावों के बाद दिए जाने का वादा किया गया है. बिहार में चुनावों की घोषणा में बस कुछ ही दिन बाकी हैं. कथित तौर पर 1.5 करोड़ महिलाएं पहले ही पंजीकरण करा चुकी हैं. 75 लाख महिलाओं के खातों में 10,000 रुपये का भुगतान किया जा चुका है. 3 अक्टूबर को, शेष पंजीकृत महिलाओं को भी 10,000 रुपये मिलेंगे. बिहार की एमएमआरवाई एक राज्य योजना है. फिर भी, प्रधानमंत्री मोदी ने 75 लाख महिलाओं के खातों में 10,000 रुपये का हस्तांतरण ‘कराया’. ये महिलाएं जल्द ही अपना वोट डालने वाली हैं. मोदी ने इस अवसर का उपयोग बिहार में सत्ताधारी गठबंधन के चुनाव अभियान को शुरू करने के लिए किया.” जैसा कि पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग बताते हैं, यह सशक्तिकरण के रूप में प्रस्तुत चुनावी व्यावहारिकता का एक उत्कृष्ट मामला है. हालांकि, राजनीतिक विडंबना और गहरी है. कुछ समय पहले, मोदी ने ‘रेवड़ी संस्कृति’ के खिलाफ सार्वजनिक रूप से चेतावनी दी थी, और इसे भारत के दीर्घकालिक विकास के लिए खतरनाक बताया था. फिर भी, जैसा कि के.एस. तोमर बताते हैं, भाजपा आज खुद को उसी आरोप का नेतृत्व करते हुए पाती है, जिसकी उसने कभी आलोचना की थी. वह चुनावी लामबंदी के एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में रेवड़ी-शैली के वादों को तैनात कर रही है.
अमेरिकी मानव तस्करी रिपोर्ट में भारत और पाकिस्तान कई कमियों के साथ बराबर
भले ही अमेरिका अपने दो दक्षिण एशियाई प्रतिद्वंद्वियों भारत और पाकिस्तान के साथ सभी क्षेत्रों में समान व्यवहार न करता हो, लेकिन कम से कम एक ऐसा क्षेत्र है, जहां दोनों मुल्कों का मूल्यांकन एक समान स्तर पर किया जाता है. अमेरिकी विदेश विभाग की मानव तस्करी रिपोर्ट 2025 ने भारत और पाकिस्तान दोनों को उन देशों की श्रेणी में रखा है, जो मानव तस्करी को खत्म करने के लिए न्यूनतम मानकों को पूरी तरह से पूरा नहीं करते हैं, लेकिन इस मुद्दे को हल करने के लिए “महत्वपूर्ण प्रयास” कर रहे हैं.
“डॉन” अखबार रिपोर्ट करता है, “रिपोर्ट में पाकिस्तान को जबरन श्रम के शिकार पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के गंतव्य के रूप में पहचाना गया है, खासकर अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के प्रवासियों के लिए. तस्कर अफगानिस्तान, ईरान और अन्य एशियाई देशों की महिलाओं और लड़कियों – और कुछ हद तक लड़कों – का पाकिस्तान के भीतर यौन तस्करी में भी शोषण करते हैं. “
अखबार आगे कहता है कि रिपोर्ट में भारत को भी टियर-2 में रखा गया है. टियर-2 में वे देश हैं, जो प्रयास कर रहे हैं लेकिन न्यूनतम मानकों से पीछे रह गए हैं. रिपोर्ट कहती है कि भारत ने पिछली रिपोर्टिंग अवधि की तुलना में “समग्र रूप से बढ़ते प्रयास” प्रदर्शित किए. सकारात्मक कदमों में बाल-संबंधी अपराधों (तस्करी सहित) को संभालने वाली विशेष अदालतों के लिए अधिक धन, रोकथाम अभियान, और दक्षिण पूर्व एशिया में ऑनलाइन घोटाले के संचालन में शोषित भारतीय नागरिकों की वापसी शामिल है.
कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी की सुपारी लेने वाले गैंगस्टर दिल्ली में मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार
रोहित गोदारा-गोल्डी बराड़-वीरेंद्र चरण गिरोह के दो सदस्यों को गुरुवार को दिल्ली के जैतपुर-कालिंदी कुंज रोड पर एक मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया.पुलिस ने बताया कि इन पर स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी और अन्य हाई-प्रोफाइल लोगों की सुपारी लेने का आरोप है.
पुलिस के अनुसार, आरोपियों की पहचान हरियाणा के पानीपत निवासी राहुल (29) और भिवानी निवासी साहिल (37) के रूप में हुई है. विशेष सेल की काउंटर इंटेलिजेंस यूनिट की एक टीम ने विशेष सूचना के बाद उन्हें रोका. जब उन्हें रुकने के लिए कहा गया, तो उन्होंने कथित तौर पर पुलिस पर गोली चला दी, जिसके जवाब में पुलिस ने भी गोलीबारी की जिसमें वे पैरों में गोली लगने से घायल हो गए. दोनों को बाद में अस्पताल ले जाया गया, और उनकी मोटरसाइकिल और हथियार ज़ब्त कर लिए गए.
जांचकर्ताओं के अनुसार, दोनों विदेश में स्थित गैंगस्टर रोहित गोदारा से निर्देश प्राप्त कर रहे थे, जो कनाडा स्थित गोल्डी बराड़ और फरार अपराधी वीरेंद्र चरण से जुड़ा है. उन पर दिल्ली-एनसीआर में टारगेटेड हत्याओं को अंजाम देने का आरोप था और उन्होंने फारुकी की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए मुंबई और बेंगलुरु में रेकी भी की थी. एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “यह सिंडिकेट सेलिब्रिटी स्पेस में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, और फारुकी उनके लंबे समय से चले आ रहे लक्ष्यों में से एक था.”
गोली लगने से घायल राहुल, दिसंबर 2024 में हरियाणा के यमुनानगर में हुई एक सनसनीखेज तिहरे हत्याकांड के सिलसिले में वांछित था. प्रारंभिक पूछताछ में पता चला है कि वह इस अपराध में शामिल अज्ञात हमलावरों में से एक था. उसे इस साल की शुरुआत में बीकानेर, राजस्थान में आर्म्स एक्ट के एक मामले में भी गिरफ्तार किया गया था. वहीं, साहिल के खिलाफ भिवानी और सिरसा की अदालतों में वित्तीय धोखाधड़ी के कई मामले लंबित हैं. पुलिस ने कहा कि जांच जारी है ताकि सिंडिकेट के अन्य सदस्यों और उनके लक्ष्यों की पहचान की जा सके.
ज़ुबीन के मैनेजर, फेस्टिवल आयोजक गिरफ्तार
असम पुलिस ने गायक ज़ुबीन गर्ग की सिंगापुर में हुई मौत के सिलसिले में उनके मैनेजर सिद्धार्थ शर्मा और फेस्टिवल आयोजक श्यामकणु महंत पर हत्या का आरोप लगाया है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने गुरुवार को यह जानकारी दी. दोनों को बुधवार को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था.
असम पुलिस के आपराधिक जांच विभाग (CID) के विशेष डीजीपी, मुन्ना प्रसाद गुप्ता ने संवाददाताओं को बताया कि गुवाहाटी की एक अदालत द्वारा दोनों को 14 दिन की पुलिस हिरासत में भेजे जाने के बाद उनसे पूछताछ चल रही है. उन्होंने कहा, “जांच चल रही है, और मैं ज़्यादा जानकारी साझा नहीं कर सकता. हमने अब एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 103 को जोड़ा है.”
बीएनएस की धारा 103 हत्या के लिए सज़ा से संबंधित है.इसमें कहा गया है कि जो कोई भी हत्या करेगा उसे मौत या आजीवन कारावास और जुर्माने से दंडित किया जाएगा. पुलिस ने बुधवार को कहा था कि शर्मा और महंत पर गैर इरादतन हत्या, आपराधिक साजिश और लापरवाही से मौत का कारण बनने के लिए बीएनएस की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था.
महंत पूर्व डीजीपी भास्कर ज्योति महंत के छोटे भाई हैं, जो वर्तमान में असम राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त हैं. उनके बड़े भाई नानी गोपाल महंत हैं, जो गुवाहाटी विश्वविद्यालय के कुलपति बनने से पहले मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के शिक्षा सलाहकार थे.
मणिपुर : 2023 में 6,200 से अधिक आगजनी के मामले दर्ज किए गए, जो भारत का 45%
“द हिंदू” में नितिका फ्रांसिस नवीनतम ‘क्राइम इन इंडिया’ रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताती हैं कि मणिपुर में 2023 के जातीय संघर्ष के पहले वर्ष में दर्ज किए गए 6,200 से अधिक आगजनी के मामलों के कारण, देश में आगजनी के मामलों में इसका राष्ट्रीय हिस्सा पिछले वर्ष के लगभग 1% से बढ़कर 45% हो गया.
राज्य 2023 में आगजनी के मामलों में वृद्धि के लिए भी जिम्मेदार था, जो पिछले चार वर्षों में औसतन लगभग 8,200 मामलों से बढ़कर 13,626 हो गया.
महाराष्ट्र में किसानों की सबसे ज्यादा आत्महत्याएं, कर्नाटक का नंबर दूसरा
महाराष्ट्र, जिसने अन्यथा पंजीकृत आगजनी के मामलों में बढ़त बनाई हुई थी, ने ‘क्राइम इन इंडिया’ रिपोर्ट के अनुसार 2023 में आत्महत्या से मरने वाले किसानों या खेतिहर मजदूरों की सबसे अधिक संख्या दर्ज की (जो राष्ट्रीय कुल 10,786 का 38.5% थी), इसके बाद कर्नाटक (22.5%) का स्थान रहा.
अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धवले ने “द हिंदू” से बात करते हुए बताया कि ‘खेती से संबंधित आत्महत्याओं’ की एक बड़ी संख्या कपास और सोयाबीन उगाने वाले क्षेत्रों में हुई. उन्होंने भारत के कपास आयात शुल्क को इस वर्ष के अंत तक माफ करने के मोदी सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि इससे किसानों की पीड़ा और बढ़ जाएगी. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि रिपोर्ट के डेटा में आत्महत्याओं को कम करके दिखाया गया है, जिसका उदाहरण उन्होंने पश्चिम बंगाल का दिया, जहां खेतिहर मजदूरों के बीच ऐसे शून्य मामले दर्ज किए गए.
‘ऐतिहासिक भूल’: भाजपा की लद्दाख इकाई में संकट, कुछ पार्षद छिपे
लेह (लद्दाख): कंधे पर बंदूक लटकाए, एक अर्धसैनिक बल के जवान राज तिलक, हाथ में टिफिन केस लिए एक छोटी पहाड़ी से नीचे उतरे ताकि लेह की चोगलमसर रोड पर रुकी एक पुलिस वैन से अपना दोपहर का भोजन ले सकें. तिलक के पीछे, भारतीय जनता पार्टी का भारी सुरक्षा वाला कार्यालय किसी सैन्य घेराबंदी वाली जगह जैसा दिखता है. 24 सितंबर की हिंसा के निशान ताज़ा हैं; तीन मंजिला इमारत की ज़्यादातर खिड़कियां टूटी हुई हैं, और इसके सामने के प्रवेश द्वार की पीली दीवारों पर कालिख की काली धारियाँ हैं.
एक समय राजनीति का हाई डिमांड वाला पता और शक्ति केंद्र रहा यह कार्यालय अब भुतहा लगता है. कुछ भगवा झंडे हवा में धीरे-धीरे फहरा रहे हैं. प्रदर्शनकारियों द्वारा जलाए जाने के बाद ये इमारत में वापस आ गए हैं, लेकिन परिसर में किसी भी नागरिक जीवन का कोई संकेत नहीं है.
लेह में संवैधानिक सुरक्षा उपायों और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के एक सप्ताह बाद, जो मौत और विनाश के उन्माद में समाप्त हुआ, भगवा पार्टी खुद को एक अस्तित्वगत दलदल में पाती है.
हालांकि लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (लेह) - एलएएचडीसी - में 26 में से 15 पार्षद पार्टी के हैं, उनमें से कम से कम छह ने द वायर को बताया कि वे पार्टी के खिलाफ़ बढ़ते गुस्से के कारण अपने घरों से बाहर निकलने से बच रहे हैं, जिसे प्रदर्शनकारियों के खिलाफ़ पुलिस की कार्रवाई के कारण गर्मी का सामना करना पड़ रहा है.
एक भाजपा पार्षद ने कहा कि उनका “पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है”. “मैं एक राजनेता नहीं हूं. मैंने इस उम्मीद के साथ भाजपा के लिए चुनाव लड़ा था कि (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी और (केंद्रीय गृह मंत्री) अमित शाह लद्दाख की बेहतरी के लिए काम करेंगे. लेकिन जो हुआ है वह एक ऐतिहासिक भूल है.”
स्थानीय गुस्सा पार्षदों के डर को दर्शाता है. मंगलवार को कर्फ्यू में ढील दिए जाने के बाद लेह बाज़ार में बाल कटवाने आए जिग्मेत ने कहा, “वे (भाजपा नेता) सार्वजनिक रूप से अपना चेहरा नहीं दिखा पाएंगे.”
2020 के एलएएचडीसी चुनावों में भाजपा ने जीत हासिल की थी, जब मोदी-शाह की जोड़ी ने एक साल पहले लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की एक पुरानी लोकप्रिय मांग को पूरा किया था. अपने 2020 के परिषद चुनाव घोषणापत्र में, भगवा पार्टी ने लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत उसकी भूमि, नौकरियों और पर्यावरण की रक्षा के लिए सुरक्षा प्रदान करने का भी वादा किया था.
भाजपा के वादे के लगभग पांच साल और नई परिषद के चुनाव के साथ, छठी अनुसूची का वादा पूरा होने से बहुत दूर है. अब, 24 सितंबर की हिंसा ने इसे लद्दाख में एक बहिष्कृत बना दिया है. एक भाजपा पार्षद ने नाम न छापने की शर्त पर समझाया: “समस्या पिछले पांच वर्षों में और सोनम वांगचुक के पांच अनशनों के दौरान जड़ें जमाने लगी. यह सब तब चल रहा था जब केंद्रीय सत्ता लद्दाखियों का विश्वास जीतने के लिए एक वैकल्पिक मॉडल पेश करने में विफल रही.”
हाईकोर्ट ने तेलतुंबडे को यूरोप जाने की अनुमति नहीं दी
बंबई हाईकोर्ट ने लेखक और कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबडे—जो 2018 भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी 16 व्यक्तियों में से एक हैं—को काम के सिलसिले में यूरोप जाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है. ‘लाइव लॉ’ की रिपोर्ट के अनुसार, तेलतुंबडे को उनके “सामाजिक न्याय के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध विद्वता और विशेषज्ञता” के आधार पर यूनिवर्सिटी ऑफ एम्स्टर्डम सहित अन्य विश्वविद्यालयों में अप्रैल में एक विज़िटिंग स्कॉलर के रूप में आमंत्रित किया गया है.
जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस रणजीतसिंह भोंसले की एक खंडपीठ ने उनकी यात्रा की अनुमति देने में अपनी अनिच्छा व्यक्त की, जिसमें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की उस आपत्ति का उल्लेख किया गया कि तेलतुंबडे फरार हो सकते हैं. जब पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने मामले में आरोपी दो लोगों को जमानत दी थी, तो उसने यह टिप्पणी की थी कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा उद्धृत प्राथमिक साक्ष्य—पत्रों का एक समूह—”कम प्रमाणिक मूल्य या गुणवत्ता” का था. इसके अतिरिक्त, एक डिजिटल फोरेंसिक फर्म, आर्सेनल कंसल्टिंग, ने यह निष्कर्ष निकाला था कि झूठे साक्ष्य आरोपियों के लैपटॉप और उपकरणों में प्लांट किए गए थे.
5 साल बाद भारत-चीन के बीच सीधी उड़ान सेवाएं इसी माह से
पांच साल के अंतराल के बाद, भारत और चीन इस महीने के अंत तक सीधी उड़ान सेवाएं फिर से शुरू करेंगे. पूर्वी लद्दाख में सीमा पर गतिरोध के बाद दोनों देशों के संबंधों में गंभीर तनाव आ गया था, और यह कदम संबंधों के पुनर्निर्माण के प्रयासों का एक हिस्सा है. “पीटीआई” के मुताबिक, विदेश मंत्रालय द्वारा यह घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के मौके पर बातचीत होने के एक महीने बाद आई है.
दोनों पक्षों के बीच उड़ान सेवाएं 2020 में कोविड-19 महामारी के बाद निलंबित कर दी गई थीं. पूर्वी लद्दाख में चार साल से अधिक चले सीमा गतिरोध के मद्देनज़र उन्हें बहाल नहीं किया गया था, जो पिछले साल अक्टूबर में समाप्त हुआ.
प्रकाश पर्व के लिए सिख जत्थे को पाकिस्तान जाने की अनुमति
केंद्र सरकार ने प्रथम सिख गुरु, गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व (जन्म शताब्दी) को चिह्नित करने के लिए सिख जत्थे को नवंबर में पाकिस्तान जाने की अनुमति दे दी है. “द ट्रिब्यून” के मुताबिक, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि आधिकारिक अनुमोदन पत्र कल शुक्रवार तक मिलने की उम्मीद है.
इससे पहले, गृह मंत्रालय ने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और अन्य राज्यों के मुख्य सचिवों को लिखा था कि पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के मद्देनज़र इस साल जत्थे को अनुमति नहीं दी जाएगी. इस फैसले ने सिख संगठनों की ओर से कड़ा विरोध दर्ज कराया था. शिरोमणि कमेटी के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने केंद्र सरकार से करतारपुर कॉरिडोर को फिर से खोलने की भी अपील की.
उत्तराखंड में मोदी मॉडल : रोज़ाना 55 लाख रुपये तो विज्ञापन का खर्च
बसंत कुमार की रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखंड की आबादी भारत की 1% से भी कम है, लेकिन राज्य की सरकार रोज़ाना केवल विज्ञापनों पर ही 55 लाख रुपये की राशि खर्च करती है. सीमित संसाधनों वाले राज्य के लिए, यह एक चौंका देने वाला आंकड़ा है. सार्वजनिक धन (जनता का पैसा), जिसका उपयोग अस्पताल बनाने, स्कूलों को वित्त पोषित करने या रोज़गार सृजित करने में किया जा सकता था, लेकिन इसके बजाय होर्डिंग्स, टीवी स्पॉट और चमकदार अभियानों में चला गया.
यह तथाकथित “मोदी मॉडल” का भी एक सुविधाजनक खाका (टेम्पलेट) है, जहां शासन को दिखावे (ऑप्टिक्स) के रूप में पैकेज किया जाता है और विकास को एक ब्रांड के रूप में बेचा जाता है. योगी आदित्यनाथ ने इसे उत्तरप्रदेश में अपनाया, और अब पूरे भारत के मुख्यमंत्री मानते हैं कि विज्ञापन ही उपलब्धि है.
“ऑटोक्रेट्स हैंडबुक” : सोरोस के पीछे क्यों पड़ रहे हैं ट्रम्प?
“फाइनेंशियल टाइम्स” में, अमेरिकी राष्ट्रीय संपादक और स्तंभकार एडवर्ड लूस तर्क देते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प की जॉर्ज सोरोस के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाने की धमकी, “ऑटोक्रेट्स हैंडबुक” (अधिनायकवादियों की नियमपुस्तिका) में अगला कदम है. लूस के अनुसार, यह एक ऐसी रणनीति है जो मोदी के भारत सहित दुनिया भर के मजबूत नेताओं द्वारा उपयोग की जाने वाली रणनीति की प्रतिध्वनि करती है, और जिसे ट्रम्प लागू कर रहे हैं.
जैसा कि लूस टिप्पणी करते हैं, “सोरोस के प्रमुख आलोचकों में रूस के व्लादिमीर पुतिन, हंगरी के विक्टर ओर्बन, इज़राइल के बेंजामिन नेतन्याहू और भारत के विदेश मंत्री, एस. जयशंकर शामिल हैं. क्योंकि दक्षिणपंथी लोकलुभावनवाद राष्ट्रवादी होता है, और यह कई किस्मों में आता है. सोरोस दुनिया के मजबूत नेताओं के लिए एक अंतर-सीमाई शैतान के जितना करीब हैं. सैकड़ों मानवाधिकार समूहों, खोजी पत्रकारों, लोकतंत्र अधिवक्ताओं और अन्य अवज्ञाकारी लोगों को सोरोस से अनुदान प्राप्त हुआ है.”
मैनचेस्टर सिनागॉग हमले में दो यहूदियों की मौत
मैनचेस्टर में एक सिनागॉग (यहूदी पूजाघर) पर कार से टक्कर मारने और चाकू से हुए हमले में दो यहूदी लोगों की मौत हो गई है. यह हमला यहूदी धार्मिक कैलेंडर के सबसे पवित्र दिन योम किप्पुर पर हुआ, और पुलिस इसे एक आतंकी घटना मानकर चल रही है. पुलिस का कहना है कि वे हमलावर की पहचान जानते हैं, जिसे सशस्त्र अधिकारियों ने घटनास्थल पर ही गोली मार दी थी.
पुलिस ने गुरुवार को सुबह 9:31 बजे हीटन पार्क हिब्रू कॉन्ग्रिगेशन सिनागॉग में एक कार के लोगों की तरफ़ बढ़ने और एक व्यक्ति को चाकू मारने की ख़बरों पर कार्रवाई की. अधिकारियों ने तुरंत एक बड़ी घटना की घोषणा की और मिनटों के भीतर घटनास्थल पर पहुंच गए, और सुबह 9:38 बजे संदिग्ध को गोली मार दी.
उस समय सिनागॉग में बड़ी संख्या में लोग पूजा कर रहे थे, और आसपास के क्षेत्र को सुरक्षित किए जाने तक उन्हें अंदर ही रखा गया. ग्रेटर मैनचेस्टर पुलिस ने कहा कि उपासकों ने हमलावर को इमारत में घुसने से रोकने में मदद की.
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि उन्होंने एक वाहन को “तेज़ी से आते और सीधे लोगों की तरफ़ जाते” देखा. फिर एक आदमी “बाहर कूदा” और लोगों की ओर दौड़ने लगा. एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी, गैरेथ टोंग ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने एक आदमी को “फ़र्श पर खून से लथपथ” देखा. मिस्टर टोंग ने कहा, “सेकंडों में, पुलिस आ गई, उन्होंने उसे कुछ चेतावनियाँ दीं, उसने नहीं सुनी तो उन्होंने गोली चला दी.” जब वह आदमी फिर से उठने लगा तो पुलिस ने उसे फिर से गोली मार दी.
ग्रेटर मैनचेचर पुलिस के अनुसार, इस हमले में दो यहूदी लोग मारे गए. चार अन्य लोग अभी भी अस्पताल में हैं जिनका विभिन्न गंभीर चोटों के लिए इलाज चल रहा है. पुलिस ने पहले कहा था कि चोटें वाहन और चाकू के घावों दोनों के परिणामस्वरूप थीं. माना जा रहा है कि जिस व्यक्ति को चाकू मारा गया वह एक सुरक्षा गार्ड है.
पुलिस का मानना है कि वे संदिग्ध की पहचान जानते हैं, लेकिन आतंकवाद-रोधी पुलिसिंग प्रमुख लॉरेंस टेलर ने गुरुवार दोपहर को कहा कि “घटनास्थल पर सुरक्षा कारणों से” अभी इसकी पुष्टि नहीं कर सकते. उन्होंने कहा कि दो और गिरफ्तारियां की गई हैं. जीएमपी के सर स्टीफन वॉटसन ने कहा कि संदिग्ध ने “एक बनियान पहन रखी थी जो एक विस्फोटक उपकरण जैसा दिख रहा था.”
भारतीय पेशेवरों का विरोध कर रहे चीनी नेटिज़न्स
अमेरिका द्वारा अब अपनी सीमाएं सील करने के बाद, चीन तकनीकी रूप से काबिल विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (स्टेम) पेशेवरों को अपने देश में आकर्षित करने की उम्मीद में, एक नया “के वीज़ा” लेकर आया है, जिसमें लंबी अवधि के निवास का प्रावधान है. हालांकि, रेशम की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रवादी चीनी ‘नेटिज़न्स’ (इंटरनेट उपयोगकर्ता) चेतावनी दे रहे हैं कि भारतीय इस नई वीज़ा व्यवस्था के लाभार्थी नहीं होने चाहिए.
लंदन में बापू की प्रतिमा खंडित की और ऊलजलूल नारे लिखे
महात्मा गांधी की एक मूर्ति को मध्य लंदन में क्षतिग्रस्त किए जाने के बाद भारत ने तत्काल कार्रवाई की मांग की है. ब्लूम्सबरी के टैविस्टॉक स्क्वायर में स्थित इस मूर्ति पर ‘आतंकवादी’ और ‘गांधी, मोदी और हिंदुस्तानी (भारतीय)’ के नारे स्प्रे पेंट किए गए थे. “बीबीसी” के अनुसार, भारतीय उच्चायोग ने इस कृत्य को ‘शर्मनाक’ बताते हुए कहा, “यह सिर्फ तोड़फोड़ नहीं है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस से तीन दिन पहले और महात्मा की विरासत पर अहिंसा के विचार पर एक हिंसक हमला है.”
अफगानिस्तान में इंटरनेट ब्लैकआउट से तालिबान का इनकार
पिछले लगातार तीन दिनों से अफगानिस्तान में संचार ब्लैकआउट के बाद, तालिबान ने इस बात से इनकार किया है कि उसने देशभर में इंटरनेट प्रतिबंध लागू किया. बुधवार को एक चैट समूह पर पाकिस्तानी पत्रकारों को दिए गए एक बयान में, तालिबान अधिकारियों ने दावा किया कि ये पुरानी फाइबर-ऑप्टिक केबलों के कारण इंटरनेट सेवा बंद हुई थी, जिन्हें बदलने की आवश्यकता थी.
“द गार्डियन” की खबर है कि वैश्विक इंटरनेट निगरानी संस्था ‘नेटब्लॉक्स’ ने उस समय कहा था कि 4.3 करोड़ लोगों के इस देश में संपूर्ण इंटरनेट ब्लैकआउट था. हालांकि तालिबान ने इंटरनेट बंद करने में अपना हाथ होने से इनकार किया है, लेकिन समूह ने पहले कथित अनैतिकता का मुकाबला करने के लिए नेता हिबतुल्लाह अखुंदजादा के फरमान के तहत देश के कुछ क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया था. इस बीच, ऑनलाइन टीवी चैनल टोलोन्यूज़ ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि तालिबान ने सभी मोबाइल फोन के लिए 3जी और 4जी इंटरनेट सेवाओं को बंद करने के लिए एक सप्ताह की समय सीमा तय की थी.
भारतीय कला बाज़ार में उछाल, दो सप्ताह की नीलामी में 96 मिलियन डॉलर की बिक्री
आधुनिक भारतीय कला बाज़ार में एक बड़ा उछाल देखा जा रहा है, पिछले दो हफ्तों में अंतरराष्ट्रीय नीलामियों में कुल 96.2 मिलियन पाउंड की बिक्री हुई है. बाज़ार की अग्रणी कंपनी सैफ्रनआर्ट ने एक भारतीय नीलामी के लिए अधिकतम कुल बिक्री को लगभग दोगुना कर 40.2 मिलियन डॉलर तक पहुंचा दिया, जबकि सोथबी और पुंडोले ने क्रमशः 25.5 मिलियन और 18.3 मिलियन डॉलर की बिक्री की, और क्रिस्टी 12.4 मिलियन डॉलर के साथ पीछे रही. इन सभी को “व्हाइट ग्लव” बिक्री के रूप में मनाया गया, जहां सभी लॉट बिक गए.
जॉन इलियट के ब्लॉग के मुताबिक भिन्न कलाकारों के लिए शीर्ष कीमतें हासिल की गईं. इनमें बॉम्बे स्थित प्रोग्रेसिव्स ग्रुप के सदस्य प्रमुख थे, जिसकी शुरुआत 1940 के दशक में हुई थी, जिसमें एफ.एन. सूज़ा, एम.एफ. हुसैन और वी.एस. गायतोंडे जैसे नाम शामिल हैं. हालांकि, बाद के कलाकारों भूपेन खखर, मोहन सामंत, अर्पिता सिंह, विवान सुंदरम और नलिनी मालानी के लिए भी रिकॉर्ड बनाए गए, जो नीलामियों में बढ़ती दिलचस्पी को आकर्षित कर रहे हैं.
दो शीर्ष संग्राहकों के बीच प्रतिस्पर्धा ने कुछ प्रमुख लॉट की कीमतों को बढ़ाने में मदद की, विशेष रूप से 30 सितंबर को लंदन में सोथबी की नीलामी में. दो सूज़ा कृतियों ने कलाकार के लिए एक नया रिकॉर्ड बनाया. अमेरिका के शंख मित्रा, जो एक अपेक्षाकृत नए संग्राहक हैं, और दिल्ली में अपने बड़े कला संग्रहालय के लिए टेलीफोन पर बोली लगाने वाली किरण नादर के बीच मुकाबला हुआ. मित्रा के खिलाफ बोली लगाते हुए, नादर ने ‘द एम्परर’ को 4.2 मिलियन पाउंड के हैमर प्राइस पर जीता (प्रीमियम के साथ 6.9 मिलियन डॉलर), जिसने मार्च 2024 में न्यूयॉर्क में क्रिस्टीज में कलाकार के पिछले 4.89 मिलियन डॉलर के रिकॉर्ड को तोड़ दिया. कुछ लॉट बाद, मित्रा ने ‘हाउसेज़ इन हैम्पस्टेड’ के साथ 4.6 मिलियन पाउंड (प्रीमियम के साथ 7.57 मिलियन डॉलर) में एक उच्च रिकॉर्ड स्थापित किया.[9]
एक और सूज़ा रिकॉर्ड 27 सितंबर को दिल्ली में सैफ्रनआर्ट की बिक्री में ‘सिक्स जेंटलमैन ऑफ अवर टाइम्स’ नामक छह 10 इंच x 8 इंच के पेन और इंक ऑन पेपर चित्रों के एक अनूठे संग्रह के लिए आया. यह अप्रत्याशित रूप से 170 मिलियन रुपये (20% खरीदार के प्रीमियम सहित 2.30 मिलियन डॉलर) के हैमर प्राइस पर बिका, जो दक्षिण एशियाई वर्क ऑन पेपर के लिए अब तक की सबसे ऊंची नीलामी कीमत थी.
भारत में कला को एक मज़बूत निवेश के रूप में देखा जा रहा है, जो नए संग्राहकों को आकर्षित कर रहा है - सोथबी के एक तिहाई खरीदार नीलामी घर के लिए नए थे. सैफ्रनआर्ट के सह-संस्थापक दिनेश वज़ीरानी कहते हैं, “भारतीय कला को अब सोने या अचल संपत्ति की तरह एक संपत्ति के रूप में स्वीकार किया जा रहा है, जिसे आप उसके दीर्घकालिक मूल्य के कारण खरीदते और रखते हैं, न कि व्यापार करते हैं.”
प्राइमेट्स के अध्ययन में क्रांति लाने वाली जेन गुडॉल का निधन
प्राइमेटोलॉजिस्ट (वानर विशेषज्ञ) जेन गुडॉल, जिनके जीवन भर के काम ने जानवरों के व्यवहार और भावनाओं की दुनिया की समझ को व्यापक बनाने में मदद की, का निधन हो गया है, उनके संस्थान ने बुधवार को यह जानकारी दी. वह 91 वर्ष की थीं. चिंपैंजी के साथ उनके फील्ड अध्ययन ने न केवल महिलाओं के लिए बाधाओं को तोड़ा और वैज्ञानिकों के जानवरों के अध्ययन के तरीके को बदल दिया, बल्कि इन प्राइमेट्स के भीतर भावनाओं और व्यक्तित्व लक्षणों का दस्तावेजीकरण भी किया, जिसने मनुष्यों और पशु साम्राज्य के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया.
उनके संस्थान के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में एक व्याख्यान दौरे के दौरान कैलिफोर्निया में प्राकृतिक कारणों से उनका निधन हो गया. उनके संस्थान ने सोशल मीडिया पर एक बयान में कहा, “डॉ. गुडॉल की एक इथोलॉजिस्ट (पशु व्यवहार विज्ञानी) के रूप में खोजों ने विज्ञान में क्रांति ला दी, और वह हमारी प्राकृतिक दुनिया के संरक्षण और पुनर्स्थापन की एक अथक समर्थक थीं.”
गुडॉल 1960 में अपने बॉस, प्रसिद्ध मानवविज्ञानी और जीवाश्म विज्ञानी डॉ. लुई लीकी के अनुरोध पर तंजानिया के गोंबे स्ट्रीम चिंपैंजी रिजर्व में पहुंचीं. वहां, 26 वर्षीय युवती, जो लंबे समय से अफ्रीका और उसके जानवरों से मोहित थीं - लेकिन उनके पास कोई औपचारिक उच्च शिक्षा नहीं थी - ने इन बौद्धिक प्राइमेट्स को उनके प्राकृतिक आवास में देखने और अध्ययन करने का अपना अभूतपूर्व काम शुरू किया. पहले तो चिंपैंजी उनसे दूर भागते थे. गुडॉल ने 2019 में दीपक चोपड़ा को बताया, “उन्होंने पहले कभी कोई सफेद वानर नहीं देखा था.”
यह सब तब बदल गया जब वह एक बड़े चिंपैंजी से मिलीं जिसे उन्होंने डेविड ग्रेबियर्ड नाम दिया. जंगल में डेविड का पीछा करने के बाद, उन्होंने उसे एक ताड़ का फल दिया. गुडॉल ने याद किया, “उसने फल लिया, उसे गिरा दिया, लेकिन बहुत धीरे से मेरी उंगलियों को निचोड़ा. चिंपैंजी एक-दूसरे को इसी तरह आश्वस्त करते हैं. इसलिए उस पल में, हमने एक ऐसे तरीके से संवाद किया जो निश्चित रूप से मानव भाषा से पहले का रहा होगा.”
गोंबे में चिंपैंजियों के बीच रहते हुए, गुडॉल ने पाया कि चिंपैंजी मांस खाते थे और न केवल औजारों का इस्तेमाल करते थे - बल्कि उन्हें बनाते भी थे. 2017 की डॉक्यूमेंट्री “जेन” में गुडॉल ने कहा, “मैंने मंत्रमुग्ध होकर देखा, जैसे ही चिंपैंजी एक दीमक के टीले की ओर बढ़े, एक छोटी पत्तेदार टहनी तोड़ी, फिर उसके पत्ते उतारे.” चिंपैंजियों ने छिलके वाली टहनियों को टीले में घुसाया और आसानी से दीमकों के गुच्छों को खाने के लिए इकट्ठा कर लिया. “यह वस्तु संशोधन था, औजार बनाने की कच्ची शुरुआत - यह पहले कभी नहीं देखा गया था.” उनकी खोजों और कार्यप्रणाली ने अकादमिक और वैज्ञानिक हलकों में काफी हलचल मचा दी.
पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन
गुरुवार, 2 अक्टूबर, 2025 को ठुमरी की दुनिया खामोश हो गई, जब इस अर्ध-शास्त्रीय कला के सबसे मधुर प्रतिपादक पंडित छन्नूलाल मिश्र का उम्र संबंधी बीमारियों के कारण निधन हो गया. वह 89 वर्ष के थे. एक साधारण पृष्ठभूमि से उठकर, पंडित मिश्र ने बनारस के घाटों पर अपनी आवाज़ पाई, और उनकी खनकती आवाज़ भगवान शिव के डमरू के लौकिक नाद और गंगा की शांति के पवित्र संगम का प्रतिनिधित्व करती थी. किराना और बनारस घराने का यह संगम हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की कठोरता और अर्ध-शास्त्रीय रूपों की गीतात्मक बारीकियों की सहज अभिव्यक्ति के साथ आत्मा को खरोंचता और शांत करता था.
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के साथ, पंडित मिश्र ने वाराणसी की गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतिनिधित्व किया, जहां भगवान शिव और गंगा का गहरा संगीत और सांस्कृतिक महत्व है. उनकी आध्यात्मिक रूप से विचारोत्तेजक और संगीत की दृष्टि से उदात्त प्रस्तुतियों ने कविता के प्रति उनकी संवेदनशीलता को सुनिश्चित किया, जिसमें हर सुर पाठ के अर्थ की सेवा करता था. विनम्र पद्म विभूषण के लिए, शास्त्रीय संगीत केवल धनी लोगों के लिए एक दुर्लभ कक्ष नहीं था. उन्होंने अपने भक्ति संगीत से आम श्रोता की रुचि को बढ़ाया, जो राजसी और अंतरंग दोनों महसूस होता था.
पंडित मिश्र की पूरी रामचरितमानस को कंठस्थ सुनाने की क्षमता ने उनके भजनों में शास्त्रीय प्रामाणिकता भर दी. ख्याल से लेकर ठुमरी, चैती और होरी तक, तुलसीदास से लेकर कबीर तक, उनकी समृद्ध भक्ति प्रदर्शनों की सूची रूप से निराकार, शास्त्रीय से लोकप्रिय तक चली गई.
3 अगस्त, 1936 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के हरिहरपुर में एक संगीत परिवार में जन्मे, पंडित मिश्र को संगीत से उनके पिता, बद्री प्रसाद मिश्र ने परिचित कराया था. उन्होंने किराना घराने के उस्ताद अब्दुल गनी खान के तहत प्रशिक्षण लिया और संगीतज्ञ ठाकुर जयदेव सिंह के संगीत दर्शन से उनके जुड़ाव ने उन्हें घरानों और खानदानों की सीमाओं को पार करने और कविता की बारीकियों को हिंदुस्तानी शास्त्रीय ढांचे में ढालने में सक्षम बनाया.
2014 में, पंडित मिश्र तब सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतीक बनकर उभरे, जब वे वाराणसी से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी के नामांकन के दौरान चार प्रस्तावकों में से एक बने.शहर में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति, उनके समर्थन ने श्री मोदी को सांस्कृतिक बाधाओं को पार करने में मदद की. जब श्री मोदी विजयी हुए, तो पंडित मिश्र ने शपथ ग्रहण समारोह में अपने अचूक अंदाज में ‘बधैया’ प्रस्तुत किया. गुरुवार को, प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पर शोक व्यक्त करते हुए पंडित मिश्र को स्नेह और आशीर्वाद का स्रोत बताया. उनके परिवार में उनके बेटे, प्रतिभाशाली तबला वादक राम कुमार मिश्र और तीन बेटियां हैं. सुनिये ग्यारह साल पहले दूरदर्शन की उनकी रिकॉर्डिंग.
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