03/11/2025 : प्रशांत किशोर की मोदी-शाह पर चुप्पी क्यों? ज़ुबीन का मर्डर हुआ? | हमें मुसलमान नहीं घुसपैठिये कहते हैं | मणिपुर के टेप | अनिल अंबानी का बंगला | डिजिटल अरेस्ट | लेह का नुमाइंदा कौन
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आज की सुर्खियां 
ज़ुबीन गर्ग की मृत्यु ‘हत्या’ थी: असम के मुख्यमंत्री हिमंता
बिहार चुनाव: लालू बोले, महागठबंधन की वापसी तय, तेजस्वी बनेंगे मुख्यमंत्री
श्रवण गर्ग | मोदी-शाह के भाषणों में ‘पीके’ पर कोई हमला सुना क्या ?
सीमांचल: “वे मुसलमान नहीं कह सकते, इसलिए घुसपैठिया कहते हैं, हम अच्छी तरह समझते हैं”
मणिपुर: बीरेन सिंह के ऑडियो टेप “संशोधित और छेड़छाड़” वाले पाए गए
अनिल अंबानी समूह की ₹3,000 करोड़ से अधिक की संपत्ति जब्त, पाली हिल का निवास और कई दफ्तर शामिल
जम्मू-कश्मीर टी20 के आयोजक रातोंरात गायब, खिलाड़ी फंसे; घोटाले में क्रिस गेल सहित सितारे भी उलझे
सुप्रीम कोर्ट: ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ बड़ी चुनौती, सिर्फ भारत में ₹3,000 करोड़ हड़पे
एक सांसद को छोड़कर, लद्दाख के लेह में अब कोई निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं
मस्जिद के लाउडस्पीकर की आवाज़ अधिक होने पर इमाम पर केस
पैटागोनिया में 7 करोड़ वर्ष पुराना डायनासोर का अंडा; जीवाश्म विज्ञान के लिए उपलब्धि
जाफ़र पनाही : ‘चुपचाप’ क्यों बनानी पड़ी अपनी नई फिल्म
ज़ुबीन गर्ग की मृत्यु ‘हत्या’ थी: असम के मुख्यमंत्री हिमंता
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने सोमवार को घोषणा की कि सुपरस्टार ज़ुबीन गर्ग की 19 सितंबर को हुई मौत एक “हत्या” थी, हादसा नहीं– जबकि सिंगापुर और असम दोनों में इस मौत की प्रकृति की जांच चल रही है – और इसकी जांच कर रही विशेष जांच टीम (एसआईटी) दिसंबर के मध्य तक अपना आरोप पत्र दाखिल कर देगी. गर्ग का निधन 19 सितंबर को 52 वर्ष की आयु में सिंगापुर में हुआ था. वह वहां नॉर्थ ईस्ट इंडिया फेस्टिवल के सांस्कृतिक ब्रांड एंबेसडर के रूप में गए थे, जो 20 और 21 सितंबर को होना निर्धारित था.
सुकृता बरुआ के अनुसार, सरमा ने पत्रकारों को असम पुलिस की एसआईटी द्वारा आरोप पत्र दाखिल करने की संभावित समय सीमा की जानकारी देते हुए कहा कि यह एक “हत्या” थी. “मैं आज ज़ुबीन गर्ग की मौत को ‘दुर्घटना’ नहीं कहूंगा. हमें 17 दिसंबर से पहले ज़ुबीन गर्ग की हत्या का आरोप पत्र दाखिल करना है. मैंने 8 दिसंबर तक इसे दाखिल करने का लक्ष्य दिया है. हम सभी दिशाओं से तैयार हैं. यदि कुछ विदेश में होता है, तो आरोप पत्र दाखिल करने से पहले, हमें गृह मंत्रालय से मंज़ूरी लेनी होती है. कल, मैंने गृह मंत्री अमित शाह को भी अवगत कराया, ताकि मंज़ूरी जल्दी मिल सके. अगले कुछ दिनों में, एसआईटी गृह मंत्रालय को लिखेगी. एक बार हमें मंज़ूरी मिल जाने के बाद, हम 8, 9 या 10 दिसंबर को आरोप पत्र दाखिल कर देंगे,” उन्होंने कहा.
बिहार चुनाव: लालू बोले, महागठबंधन की वापसी तय, तेजस्वी बनेंगे मुख्यमंत्री
बिहार चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की भी एंट्री हो गई है. सोमवार एक रोड शो के दौरान आरजेडी प्रमुख ने घोषणा की कि राज्य में महागठबंधन गठबंधन सत्ता में लौटने के लिए तैयार है और पूर्ण विश्वास व्यक्त किया कि उनके बेटे तेजस्वी यादव जल्द ही मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे.
इस चुनाव अभियान में अपनी पहली उपस्थिति के दौरान ‘एनडीटीवी’ से बात करते हुए, लालू यादव ने कहा कि जनता का फैसला स्पष्ट है और 14 नवंबर को सरकार में बदलाव देखने को मिलेगा. पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, “हम सरकार बनाएंगे. तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगे.” स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण हाल के वर्षों में सीधे प्रचार से दूर रहे लालू यादव, राजद के नेतृत्व वाले और कांग्रेस तथा वाम दलों द्वारा समर्थित विपक्षी गठबंधन महागठबंधन के लिए एक रणनीतिकार के रूप में फिर से उभरे हैं. समाचार एजेंसी एएनआई के हवाले से उन्होंने कहा, “चुनाव प्रचार बहुत अच्छा चल रहा है. गठबंधन जीतेगा. स्थानीय नेता अच्छा काम कर रहे हैं. लोगों का ज़बरदस्त समर्थन मिल रहा है. तेजस्वी को लोगों का समर्थन मिल रहा है. “
मोदी ने भी हमलों को तेज किया : राजद खेमे में जहां आत्मविश्वास है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर बिहार में अपने एक दिवसीय अभियान के दौरान विपक्ष पर अपने हमलों को तेज़ कर दिया, लालू यादव और तेजस्वी यादव को सीधे नाम लिए बिना निशाना बनाया. कटिहार में एक रैली को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने तेजस्वी यादव पर अपने पिता के “पापों को छिपाने” की कोशिश करने का आरोप लगाया, और राजद के चुनावी पोस्टरों से लालू यादव की तस्वीर की अनुपस्थिति पर ध्यान दिलाया.
प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया, “अपने ही पिता की तस्वीरें न लगाकर वह कौन सा पाप छिपा रहे हैं, जिन्हें आप इतना बड़ा नेता बताते हैं और जो सालों तक मुख्यमंत्री रहे? शायद इसलिए कि उन्हें इस बात का एहसास हो गया है कि वह बड़े नेता जंगल राज का बोझ ढो रहे हैं. “
प्रधानमंत्री ने आगे आरोप लगाया कि राजद “बिहार के सबसे भ्रष्ट परिवार द्वारा नियंत्रित है” जबकि कांग्रेस, जो इंडिया ब्लॉक में उनकी सहयोगी है, “देश के सबसे भ्रष्ट परिवार द्वारा चलाई जाती है.”
श्रवण गर्ग | मोदी-शाह के भाषणों में ‘पीके’ पर कोई हमला सुना क्या ?
चौदह नवंबर को जिस रहस्य से पर्दा उठने वाला है वह यह नहीं होगा कि बिहार के कश्मकश भरे चुनावों में जीत किसकी होने वाली है ! इस बात से उठेगा कि मोदी, ममता,केजरीवाल,आदि नेताओं को जिताकर सरकारें बनवाने वाले चुनावी कंसलटंट प्रशांत किशोर(पीके) अपने दावे के मुताबिक ख़ुद की पार्टी को 150 सीटें नहीं दिला पाते हैं तो फिर किस दल को हराने की उन्होंने ‘सुपारी’ ली थी ! प्रशांत किशोर दावे करते नहीं थकते कि उन्होंने 2014 में मोदीजी को, 2017 में अमरिंदर सिंह, 2019 में उद्धव और जगन, 2020 में केजरीवाल और 2022 में ममता को जितवाया था.
प्रशांत जानते हैं कि उनकी ‘जन सुराज पार्टी’ का अगर वही हश्र हुआ जो पिछले चुनाव में चिराग़ की ‘लोक जनशक्ति पार्टी’ का हुआ था तो न सिर्फ़ उनकी चुनावी कन्सल्टेंसी ख़तरे में पड़ जाएगी बिहार की राजनीति में भी वे हाशिए पर आ जाएँगे ! अतः मानकर चलना चाहिए कि वे इतना बड़ा जुआँ किसी बड़े दावँ के लिए खेल रहे हैं ! तो क्या नीतीश की नाराज़ी को दरकिनार कर चुनाव लड़ रही बीजेपी के अंदर पक रहा आत्मविश्वास प्रशांत किशोर के चमत्कार के भरोसे है? साल 2015 में जेडी(यू) को जितवाकर नीतीश को मुख्यमंत्री बनवाने वाले पीके के इस कथन पर गौर किया जाना चाहिए कि जो पुरोहित विवाह संपन्न करवाता है वही श्राद्ध भी निपटाता है.
बिहार में विधानसभा चुनावों की सबसे ज़्यादा ज़मीनी तैयारी अगर किसी एक व्यक्ति ने की है तो वे प्रशांत किशोर हैं. पिछले साल पार्टी की स्थापना के भी पहले दो साल तक उन्होंने 665 दिनों तक 2,697 गाँवों की पैदल यात्रा की थी. विधानसभा के रिक्त स्थानों के लिए पिछले नवंबर हुए उपचुनावों में उनके द्वारा खड़े किए गए चार उम्मीदवारों ने पाँच से सैंतीस हज़ार वोट हासिल कर लिए थे. पिछली बार (2020) के चुनावों में 40 सीटें ऐसी थीं जिन पर फ़ैसला दो प्रतिशत के मार्जिन से हुआ था। सरकार बनाने में तेजस्वी के महागठबंधन की हार सिर्फ़ पंद्रह सीटों से हुई थी.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के मुताबिक़ सबसे ज़्यादा करोड़पति पीके की पार्टी में ही हैं ! प्रशांत किशोर घोषणा कर चुके हैं कि इस बार नीतीश सरकार की छुट्टी होने वाली है ! ‘किसकी सरकार बनेगी यह जनता तय कर करेगी’! पीके की भविष्यवाणी के पीछे निश्चित ही कोई ‘ठोस’ आधार होना चाहिए ! उनके घोषित गणित पर यक़ीन करना हो तो महागठबंधन और एनडीए दोनों के वोट शेयर लगभग बराबर हैं. दोनों के पास 36-36 प्रतिशत वोट शेयर है और 28 प्रतिशत की जगह उनकी पार्टी के लिए ख़ाली है.
क्या बीजेपी और प्रशांत दोनों के आत्मविश्वास एक ही डोर से बंधे नहीं हो सकते ? प्रशांत किशोर और चिराग़ दोनों द्वारा ही चुनाव न लड़ने की घोषणा को नतीजों के बाद ही डी-कोड किया जा सकेगा. दोनों ने पहले चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा की थी. तो क्या फ़ैसला बीजेपी के दबाव में बदला गया ? ध्यान रखा जाना चाहिए कि तेजस्वी,चिराग़ और प्रशांत तीनों के बीच सिर्फ़ पाँच-पाँच साल का फ़र्क़ है. तीनों महत्वाकांक्षी हैं. चिराग़ ज़्यादा कुछ नहीं कर पाएँ तो भी इसलिए फ़र्क़ नहीं पड़ेगा कि वे केंद्र में मंत्री हैं. तेजस्वी को बिहार की राजनीति में ही रहना है. विपरीत नतीजों का सबसे ज़्यादा असर प्रशांत के प्रोफेशनल और पोलिटिकल करियर पर पड़ने वाला है.
मोदीजी को छोड़ दें तो अपनी कन्सल्टेंसी के ज़रिए जिन-जिन नेताओं को सत्ता में लाने का दावा प्रशांत किशोर करते हैं उनमें से अब सिर्फ़ दो बड़े ही बचे हैं: नीतीश और ममता. बीजेपी की मदद के लिए इस चुनाव में वे अगर नीतीश को सत्ता से बाहर करवा देते हैं तो हो सकता है अगले साल ममता का नंबर लगा दें. राहुल जानते हैं प्रशांत किशोर को उन्होंने भाव नहीं दिया था और वे कांग्रेस से नाराज़ हैं. कहीं नोट तो किया ही जा रहा होगा कि मोदी और शाह अपनी सभाओं में न तो प्रशांत पर हमला कर रहे हैं और न ओवैसी पर. दाल में कुछ तो काला होना ही चाहिए !
सीमांचल: “वे मुसलमान नहीं कह सकते, इसलिए घुसपैठिया कहते हैं, हम अच्छी तरह समझते हैं”
सीमांचल क्षेत्र में सीमा कभी दूर नहीं होती—एक ओर पश्चिम बंगाल के रास्ते बांग्लादेश से, तो दूसरी ओर नेपाल से जुड़ी हुई. यह बात आपको साइनबोर्डों पर लिखी बांग्ला में दिखती है, और ‘सुरजापुरी’ बोली बोलने वाले मतदाताओं की बातचीत में बार-बार आने वाले “खेला” (खेल) शब्द में सुनाई देती है, जो बांग्ला, हिन्दी और उर्दू का मिश्रण है. यह क्षेत्र एक बड़ी मुस्लिम आबादी का भी घर है — यह अनुपात पूर्णिया के 39 प्रतिशत से बढ़कर किशनगंज में लगभग 68 प्रतिशत तक पहुंच जाता है.
सीमांचल के चार ज़िलों — पूर्णिया, किशनगंज, अररिया और कटिहार — को कांग्रेस और राजद के प्रसिद्ध एम-वाई (मुस्लिम-यादव) फॉर्मूले के लिए मुस्लिम समर्थन बनाए रखने वाला माना जाता रहा है—जब तक कि ऐसा होना बंद नहीं हो गया. 2020 के विधानसभा चुनावों में, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को पांच सीटों पर अप्रत्याशित जीत इसी क्षेत्र में मिली थी, जिसने सीमांचल और बिहार में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का पलड़ा भारी करने में योगदान दिया. निवर्तमान सदन की इस क्षेत्र की 24 सीटों में से, ओवैसी की पाँच सीटों को छोड़कर, 12 सीटें एनडीए के पास थीं — आठ भाजपा के पास, चार जद(यू) के पास — और महागठबंधन के पास सात सीटें थीं (कांग्रेस 5, राजद और भाकपा (माले) के पास एक-एक).
“द इंडियन एक्सप्रेस” में वंदिता मिश्रा की बिहार के सीमांचल पर ग्राउंड रिपोर्ट है. वह लिखती हैं कि इस क्षेत्र में आने से आपको यह पता चलता है कि इस अंकगणित को कैसे बाधित किया गया और इसका परिणाम क्या रहा. यहां आकर आपको एक नई शक्ति के मुखर होने की झलक मिलती है, जो स्वयं को अल्पसंख्यक समुदाय का, उनके द्वारा और उनके लिए होने का दावा करती है, और साथ ही इसकी सीमाओं का भी अंदाज़ा होता है — पांच विजयी एआईएमआईएम विधायकों में से चार बाद में राजद में शामिल हो गए. इस इलाके में एक बड़े मुद्दे पर बहस के अंश भी सुनने को मिलते हैं — कि क्या मुसलमानों को एक “मुस्लिम” पार्टी को वोट देना चाहिए, क्या उन्हें ऐसी पार्टी की ज़रूरत है? सीमांचल जैसे क्षेत्र में इस सवाल पर बहस के लिए अधिक जगह है, शायद इसलिए कि यहां अल्पसंख्यक समुदाय संख्यात्मक रूप से खुद को लगातार घिरा हुआ और दबाव में महसूस नहीं करता है. इसलिए, उन्हें आंख बंद करके किसी एक पक्ष का साथ देने के लिए मजबूर महसूस नहीं होता — चाहे वह “धर्मनिरपेक्ष” राजद-कांग्रेस गठबंधन हो, या नीतीश की जद(यू), जिसे अल्पसंख्यक-विरोधी भाजपा के साथ गठबंधन के बावजूद सांप्रदायिक संघर्ष को दूर रखने वाला माना जाता है. यहां, दोनों पक्षों से कुछ कठिन और सीधे सवाल पूछे जा रहे हैं. एक नई पार्टी के आगमन ने विकल्पों की एक नई भावना पेश की है, जो इन सवालों को व्यक्त करने में मदद करती है — और यह नई पार्टी मुख्य रूप से एआईएमआईएम है. प्रशांत किशोर की जन सुराज को, राज्य के अन्य हिस्सों की तरह ही, यहां भी बहुत नया और अप्रमाणित माना जाता है, हालांकि कई लोग कहते हैं कि किशोर महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाते हैं और सही बातें करते हैं. लेकिन अगर नई पार्टी ने राजनीतिक बातचीत को खोलने में मदद की है, तो भाजपा का “घुसपैठिया” अभियान इस पर एक असर डालता है.
लाइन बाज़ार के झंडा चौक में, मनोज कुमार शाह विदेशी के कब्ज़े के खतरे को रेखांकित करते हैं: “घुसपैठिया भरा हुआ है, बांग्लादेशी... हम लोग देखते हैं ना.” थोड़ी ही दूर कब्रिस्तान चौक में, स्कूल यूनिफॉर्म बनाने वाले कैसर इसका खंडन करते हैं: “घुसपैठिया कौन है? अगर कोई विदेशी हमारे घर आता है, तो क्या हमें पता नहीं चलेगा, क्या हम रिपोर्ट नहीं करेंगे? स्थानीय चुनाव होने पर हर कोई हर किसी के पास जाता है... हमारी भी ज़िम्मेदारी है ना, अगर कोई नया आता है तो और पता करें.”
चिकित्सा क्षेत्र में काम करने वाले शादाब कहते हैं: “1971 में, कई लोग शरणार्थी के रूप में यहां आए, सरकार ने उन्हें शरणार्थी कॉलोनियाँ स्थापित करने के लिए ज़मीन दी, वे बांग्ला भाषी हैं...” ऐसे ही, कौसर कहते हैं, “11 साल से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है. अगर घुसपैठिए हैं, तो यह सरकार की विफलता है, है ना?” छोटी मस्जिद मोहल्ला में, इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान में काम करने वाले मोहम्मद साबिर अंसारी कहते हैं, “गृह मंत्री को जवाब देना चाहिए.” “सीमा सुरक्षा बल क्या कर रहा था? यह तो बस एक चुनाव का मुद्दा है...” और मियां बाज़ार में, मोहम्मद अफ़ज़ल हुसैन कहते हैं: “जैसे बरसात में मेंढक टायें टायें करते हैं...” वह (भाजपा) मुस्लिम नहीं कह सकते, इसलिए वे घुसपैठिया कहते हैं. मुस्लिम का नाम बदलकर घुसपैठिया रखा जा रहा है. हम पूरी तरह समझते हैं.”
इन हिस्सों में, चुनाव से ठीक पहले वोटर लिस्ट में संशोधन (एसआईआर), तमाम आपाधापी और गड़बड़ी के बावजूद — “जो ज़िंदा है उसको मार दिया, जो मुर्दा है उसको ज़िंदा कर दिया”— को जानबूझकर मताधिकार छीनने के सबूत के तौर पर नहीं लिया जाता, बल्कि भाजपा की चुनाव-पूर्व “घुसपैठिया” राजनीति की खोखलेपन और बदनीयती को साबित करने के लिए पेश किया जाता है. जहां भी नाम हटाए गए हैं, उसका दोष प्रशासनिक चूक पर मढ़ा जा रहा है, जिसे, कई लोगों का कहना है, ठीक कर लिया जाएगा. लेकिन, “क्या एसआईआर (SIR) ने घुसपैठिए के सबूत दिए? बांग्लादेशी हैं तो निकालो, हम भी यही चाहते हैं कि वे जाएं,” यह एक आम बात है.
बाइसी में, जहां एआईएमआईएम ने पिछली बार जीत हासिल की थी, और जहां इसका विजयी विधायक बाद में राजद में शामिल हो गया था, चाय की दुकान पर बातचीत में एक किसान, मोहम्मद गयासुद्दीन, कहते हैं, “पिछली बार हमने विधायक बदलने के लिए वोट दिया, एआईएमआईएम को लाए, लेकिन हम सफल नहीं हुए.” वह कहते हैं, इस बार, भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोज़गारी के अलावा, वक्फ कानून पर नीतीश की चुप्पी, सरकार बदलने की लहर को तेज़ कर रही है. कई लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार ने राज्य में अभूतपूर्व तरीके से विकास किया, लेकिन उनकी सरकार भाजपा के दबाव के आगे झुक गई और अपना रास्ता भटक गई, जैसा कि वक्फ बिल पारित होने में उनकी चुप्पी या सहमति से स्पष्ट था. यहां कई लोग जो कहते हैं कि उन्होंने पिछली बार नीतीश को वोट दिया था, वे इस चुनाव में कांग्रेस और राजद के महागठबंधन को चुनेंगे. राज्य में कहीं और कांग्रेस की उपस्थिति भले ही घटती-बढ़ती रहती हो, लेकिन सीमांचल में राहुल गांधी के लिए समर्थन और सद्भावना के बल पर यह स्थिर फोकस में आती दिखती है. वे कहते हैं, “बड़े नेता हैं राहुल, फ़ैक्ट्स की बात करते हैं, सेक्युलर बात करते हैं.... वह जातिवादी नहीं हैं. “
बाइसी में चाय की दुकान पर वापस, किसान मोहम्मद मोईन कहते हैं कि अपने विधायकों को रोक पाने में असमर्थता के बावजूद, ओवैसी का आकर्षण इस तथ्य में निहित है कि “वह मुसलमानों के लिए बोलते हैं” जबकि तेजस्वी का राजद मुस्लिम वोट लेता है लेकिन समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व देने से इनकार करता है. “जहां भी वे यादव उम्मीदवार खड़ा करते हैं, राजद एम-वाई समीकरण की बात करता है, और जहां उम्मीदवार मुस्लिम होता है, वहां यादव हिन्दुओं के रूप में भाजपा को वोट देते हैं.”
लेकिन, वार्ड सदस्य असलम पूछते हैं, “इसका क्या मतलब होगा, भले ही हम टिकटों और सीटों, विधायकों और सांसदों में अपने आनुपातिक हिस्से की मांग करें? क्या हम अकेले अपनी सरकार बना सकते हैं? क्या हमें अभी भी दूसरों के साथ गठबंधन नहीं करना पड़ेगा?” वह कहते हैं कि इस बार ज़्यादा मुसलमानों को राजद को वोट देने की ज़रूरत है, अगर वे नहीं चाहते कि राजद इस समुदाय को छोड़ दे, क्योंकि एक मुख्यधारा की पार्टी का मुस्लिम वोट को छोड़ देना अच्छी बात नहीं होगी.
असलम राजनीतिक “मुख्यधारा” में मुस्लिम भागीदारी को वास्तविकता और आवश्यकता के रूप में बोलते हैं. वह कहते हैं कि भाजपा इसके बिना अपना वर्तमान प्रभुत्व हासिल नहीं कर सकती थी. “क्या आपने (भाजपा) हमारे समर्थन के बिना बिहार में नीतीश के साथ 20 साल तक शासन किया? मुस्लिम वोट एकतरफा नहीं है, तो भाजपा मुसलमानों को टिकट क्यों नहीं देती?”
वह कहते हैं कि मुसलमान, ठीक वैसे ही हैं, जैसे अन्य हैं, कोई अखंड समूह नहीं हैं, और, अन्य लोगों की तरह, वे सभी शासक व्यवस्थाओं का हिस्सा बनना चाहते हैं. समुदाय पर एकतरफापन थोपा जा रहा है: “हमारे कार्यकर्ता हर पार्टी में हैं. हम आपको वोट देना चाहते हैं, लेकिन आप कुशवाहों से लेकर सहनियों तक हर जाति को टिकट देते हैं, हमें नहीं... और ऐसा नहीं है कि सभी हिंदू आपको वोट देते हैं, वे राहुल और लालू जैसे नेताओं का भी समर्थन करते हैं. आप टिकट देके देखिए, फिर देखिए खेला,” वह भाजपा को चुनौती देते हैं.
किशनगंज के चूड़ीपट्टी बाज़ार में, व्यवसायी सनौर रशीद कहते हैं: “ओवैसी साहब ने हमारी मदद भी की है और हमें नुकसान भी पहुंचाया है. उन्होंने हमें एक नया विकल्प दिया है और हमारी बेबसी की भावना को ठेस पहुंचाई है. लेकिन उनके समर्थक अक्सर उग्र होते हैं, जो जम्हूरियत के लिए नुकसान है.”
बहादुरगंज के एलआरपी चौक में एक मोटरसाइकिल मरम्मत की दुकान पर, सेल्समैन शमशेर आलम कहते हैं: “भाजपा ने हिंदुओं के साथ जो किया है, हमें किशनगंज में मुसलमानों के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए. एमआईएम कहती है कि मुसलमानों को महागठबंधन में उपमुख्यमंत्री का पद नहीं मिला, जबकि वे आबादी का 18 प्रतिशत हैं (राज्य में), जबकि सहनियों को मिला, जिनकी संख्या कहीं कम है... लेकिन हमें 2 प्रतिशत बनाम 18 प्रतिशत की बात नहीं करनी चाहिए. हमें सभी के लिए बात करने की ज़रूरत है, बेरोज़गारी, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य और शिक्षा के बारे में.”
यदि मुसलमान मुस्लिम मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री पाने के लिए 18 प्रतिशत के रूप में एक साथ आने की बात करते हैं, तो वह पूछते हैं, “तो क्या हम 82 प्रतिशत के रूप में मतदान करने वाले हिंदुओं के साथ ठीक रहेंगे? अगर यहां हिंदुओं की संख्या कम है, तो हमें याद रखना चाहिए कि उनके रिश्तेदार अन्य जगहों पर रहते और काम करते हैं, जो किशनगंज में होने वाली घटनाओं से प्रभावित होंगे... हिंदुस्तान की फिज़ा खतरे में है.”
मणिपुर: बीरेन सिंह के ऑडियो टेप “संशोधित और छेड़छाड़” वाले पाए गए
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (3 नवंबर, 2025) को एक कूकी अधिकार संगठन को सूचित किया कि गुजरात के गांधीनगर स्थित राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (एनएफएसयू) द्वारा दायर एक गोपनीय रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की जातीय संघर्ष भड़काने वाली टेलीफोन बातचीत होने का दावा करने वाले व्हिसलब्लोअर से प्राप्त ऑडियोटेप ‘संशोधित और संपादित हैं और उनके साथ छेड़छाड़’ की गई है. “द हिंदू” के अनुसार, जस्टिस संजय कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कोर्ट रूम में विश्वविद्यालय की रिपोर्ट को पढ़कर सुनाया, क्योंकि पक्षकार इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे.
जस्टिस कुमार ने कूकी संगठन फ़ॉर ह्यूमन ट्रस्ट की ओर से पेश हुए अधिवक्ताओं प्रशांत भूषण और चेरिल डिसूजा को बताया कि ऑडियोटेप “प्रोसेस्ड और बदला हुए” था, और यह “वैज्ञानिक रूप से आवाज़ के मिलान के लिए उपयुक्त नहीं” है. कूकी संगठन ने आरोप लगाया था कि ऑडियोटेप में पूर्व मुख्यमंत्री की टेलीफोन बातचीत थी, जिससे “मणिपुर राज्य में जातीय हिंसा में उच्चतम पदाधिकारी और अन्य लोगों की संलिप्तता” स्थापित होती है.
संगठन ने लीक हुए ऑडियो क्लिप की न्यायालय की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग की थी. अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्रुथ लैब्स द्वारा किए गए परीक्षणों के परिणामों का हवाला दिया, जिसमें दावा किया गया था कि रिकॉर्डिंग में “कोई ब्रेक नहीं” था और आवाज़ की संभावना 93% थी. इस पर, जस्टिस कुमार ने कहा कि एनएफएसयू को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और उसके निष्कर्षों पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है.
पीठ ने आदेश दिया कि रिपोर्ट याचिकाकर्ता (कूकी संगठन) और मणिपुर राज्य दोनों के साथ साझा की जाए, जिसका प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कर रहे थे. मेहता ने कोर्ट को सूचित किया कि मणिपुर में अब “शांति और अमन” है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दो सप्ताह के भीतर विश्वविद्यालय की रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने की अनुमति दी.
अनिल अंबानी समूह की ₹3,000 करोड़ से अधिक की संपत्ति जब्त, पाली हिल का निवास और कई दफ्तर शामिल
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अनिल अंबानी के रिलायंस समूह से संबंधित ₹3,000 करोड़ से अधिक मूल्य की संपत्तियां जब्त कर ली हैं, जिनमें अंबानी का पाली हिल निवास और भारत के प्रमुख शहरों में फैली कई अन्य संपत्तियां शामिल हैं.
एजेंसी ने कहा कि उसने समूह की संस्थाओं से जुड़ी लगभग ₹3,084 करोड़ की संपत्तियों को अस्थायी रूप से कुर्क कर लिया है. ये आदेश शुक्रवार को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 5(1) के तहत जारी किए गए, जिसके बाद दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, मुंबई, पुणे, ठाणे, हैदराबाद, चेन्नई, कांचीपुरम और पूर्वी गोदावरी में संपत्तियां कुर्क की गईं.
यह मामला रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड (आरएचएफएल) और रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस लिमिटेड (आरसीएफएल) द्वारा जुटाए गए सार्वजनिक फंडों के दुरुपयोग और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित है.
2017 से 2019 के बीच, यस बैंक ने आरएचएफएल इंस्ट्रूमेंट्स में ₹2,965 करोड़ और आरसीएफएल इंस्ट्रूमेंट्स में ₹2,045 करोड़ का निवेश किया, जो दिसंबर 2019 तक गैर-निष्पादित निवेश में बदल गए. उस समय, आरएचएफएल के लिए ₹1,353.50 करोड़ और आरसीएफएल के लिए ₹1,984 करोड़ बकाया थे.
ईडी के अनुसार, सेबी के म्यूचुअल फंड हितों के टकराव के ढांचे के तहत, तत्कालीन रिलायंस निप्पॉन म्यूचुअल फंड का अनिल अंबानी समूह की वित्तीय कंपनियों में सीधे निवेश कानूनी रूप से अनुमति योग्य नहीं था. इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए, म्यूचुअल फंड में आम जनता द्वारा निवेश किए गए फंड को कथित तौर पर यस बैंक के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से रिलायंस अनिल अंबानी समूह की संस्थाओं तक पहुंचाया गया.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के मुताबिक, जांच में पता चला कि फंड यस बैंक के आरएचएफएल और आरसीएफएल में निवेश के माध्यम से आया, जिसने फिर रिलायंस अनिल अंबानी समूह से जुड़ी संस्थाओं को ऋण दिया. ईडी की फंड ट्रेसिंग से फंड के डायवर्जन, समूह से जुड़ी संस्थाओं को पुन: ऋण देने और अंततः पैसे की हेराफेरी का संकेत मिला. जनरल पर्पस कॉर्पोरेट लोन का एक बड़ा हिस्सा रिलायंस समूह के खातों में गया.
ईडी को ऋण संवितरण प्रक्रिया के दौरान गंभीर नियंत्रण विफलताएं मिलीं, जैसे-कई ऋण उसी दिन स्वीकृत, संसाधित और यहां तक कि वितरित भी कर दिए गए, कुछ मामलों में तो ऋण आवेदन दाखिल करने से पहले ही. क्षेत्रीय जांच और व्यक्तिगत चर्चाएं माफ़ कर दी गईं, दस्तावेज़ खाली छोड़े गए या उन पर ओवरराइटिंग की गई. उधारकर्ताओं की वित्तीय स्थिति कमज़ोर थी या उनका परिचालन नगण्य था, और प्रतिभूतियां या तो अपंजीकृत थीं या अधूरी थीं. एजेंसी ने रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड (आरकॉम) और संबंधित कंपनियों की जांच भी तेज़ कर दी है, जिसमें ऋण धोखाधड़ी और फंड डायवर्जन का आरोप है.
ईडी ने पाया कि आरकॉम और उसके सहयोगियों ने ₹13,600 करोड़ से अधिक का दुरुपयोग किया, जिसमें से ₹12,600 करोड़ संबंधित पक्षों को भेजे गए और ₹1,800 करोड़ फिक्स्ड डिपॉजिट और म्यूचुअल फंड में निवेश किए गए — जिन्हें बाद में नकद में बदल कर समूह की संस्थाओं को भेज दिया गया. ईडी ने संबंधित पक्षों को फंड पहुंचाने के लिए बिल डिस्काउंटिंग के बड़े दुरुपयोग का भी पता लगाया है.
जम्मू-कश्मीर टी20 के आयोजक रातोंरात गायब, खिलाड़ी फंसे; घोटाले में क्रिस गेल सहित सितारे भी उलझे
इंडियन हेवन प्रीमियर लीग (आईएचपीएल)— एक शानदार टी20 शो जिसका उद्देश्य वैश्विक क्रिकेट को जम्मू-कश्मीर तक लाना था— रातोंरात ठप हो गया. आयोजक कथित तौर पर आधी रात को श्रीनगर से भाग गए, जिससे कोई पीछे छूटा तो वो थे- बिना चुकाए बिल, फंसे हुए खिलाड़ी, और अचंभित होटल कर्मचारी. पूर्व वेस्टइंडीज के पूर्व स्टार खिलाड़ी क्रिस गेल, न्यूजीलैंड के जेसी राइडर और श्रीलंका के थिसारा परेरा ने युवा सोसायटी (एक गैर-लाभकारी संस्था जो युवा विकास पर केंद्रित है) द्वारा जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन के सहयोग से आयोजित इस अल्पकालिक टूर्नामेंट का नेतृत्व किया था.
लेकिन रविवार तक, बख्शी स्टेडियम वीरान हो चुका था, और लगभग 40 खिलाड़ी होटलों में फंसे हुए थे, जिन्हें भुगतान नहीं किया गया था और जो भ्रमित थे. एक अंग्रेजी अंपायर मेलिसा जूनिपर ने कहा, “आयोजक होटल से भाग गए हैं. उन्होंने होटल, खिलाड़ियों और अंपायरों को भुगतान नहीं किया है. हमने होटल के साथ एक समझौता किया है, ताकि खिलाड़ी घर जा सकें. उन्हें उनके परिवारों से दूर यहां रोके रखना अनुचित है.”
नसीर गनई को “द रेजीडेंसी होटल”, जहां ज़्यादातर खिलाड़ी ठहरे थे, के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि युवा सोसायटी ने 10 दिन पहले खिलाड़ियों के लिए लगभग 150 कमरों की मांग की थी. अधिकारी ने कहा, “उन्होंने कश्मीरी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए क्रिस गेल जैसे सितारों के साथ एक भव्य कार्यक्रम का वादा किया था.” पूर्व भारतीय ऑलराउंडर परवेज रसूल, जो लीग में खेले थे, ने कहा कि कुछ खिलाड़ियों को होटल तक पहुंचने से से ठीक पहले लीग छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, क्योंकि आयोजकों से संपर्क नहीं हो पा रहा था. एक अंग्रेजी अंपायर को अपने दूतावास से संपर्क करना पड़ा. इस लीग की विशेषता यह थी कि आठ टीमों की घोषणा 18 सितंबर को की गई थी, जिसमें 23 अक्टूबर से 7 नवंबर तक खेलने का वादा किया गया था. आईएचपीएल ने 32 पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की सूची जारी की थी. लेकिन एक दिन से दूसरे दिन तक, टर्नआउट निराशाजनक था, यहां तक कि टिकट की कीमतें भी कम कर दी गई थीं.” सिर्फ गेल के मैचों ने ही भीड़ खींची, जबकि परेरा केवल एक ही मैच में दिखाई दिए. एक स्थानीय खिलाड़ी ने आरोप लगाया कि आयोजकों ने उनसे किफायती दर पर कश्मीर में एक आयोजन के लिए गुमराह किया. “प्रायोजकों ने आखिरी समय में हाथ खींच लिए, और कम टर्नआउट के कारण उनका पैसा खत्म हो गया. पहले दिन, कोई वर्दी नहीं थी. उन्होंने उन्हें स्थानीय स्तर पर खरीदा. खिलाड़ियों के अनुबंध पर हस्ताक्षर नहीं किए गए थे,” खिलाड़ी ने कहा.
सुप्रीम कोर्ट: ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ बड़ी चुनौती, सिर्फ भारत में ₹3,000 करोड़ हड़पे
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (3 नवंबर, 2025) को कहा कि ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ के माध्यम से धोखाधड़ी करने वालों ने पीड़ितों, जिनमें अधिकतर बुजुर्ग आबादी शामिल है, से 3,000 करोड़ से अधिक की धोखाधड़ी की है.
“द हिंदू” की खबर के अनुसार, जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ केंद्रीय सरकार द्वारा प्रस्तुत एक गोपनीय रिपोर्ट का संदर्भ दे रही थी. नामित सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि रिपोर्ट से पता चलता है कि डिजिटल गिरफ्तारी की समस्या एक “बहुत बड़ी चुनौती” है. उन्होंने टिप्पणी की, “जितना हमने सोचा था, उससे कहीं ज़्यादा.”
जस्टिस कांत ने पूछा, “रिपोर्ट से पता चलता है कि धोखाधड़ी का दायरा बहुत बड़ा है... अकेले भारत में पीड़ितों से 3,000 करोड़ रुपये एकत्र किए गए हैं. वैश्विक स्तर पर कितनी पीड़ा होगी?”
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस कांत से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि डिजिटल गिरफ्तारी घोटाले का शुरू में जो अनुमान लगाया गया था, वह उससे कहीं अधिक बड़ा निकला.
जस्टिस कांत ने कहा कि न्यायपालिका, धोखेबाजों के खिलाफ एजेंसियों के हाथों को मजबूत करने के लिए कठोर और कड़े आदेश पारित करेगी, “हम आपको पूरा समर्थन देंगे.” मेहता ने कहा, “अन्यथा, यह समस्या और बढ़ जाएगी, और इसके शिकार बुजुर्ग लोग हैं.”
एक सांसद को छोड़कर, लद्दाख के लेह में अब कोई निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं
“चूंकि लद्दाख के लेह ज़िले में हिल काउंसिल का पांच साल का कार्यकाल समाप्त होने के साथ 31 अक्टूबर, 2025 से कोई भी निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं रह गया है, इसलिए स्थानीय निकाय के चुनाव सिविल सोसाइटी समूहों और केंद्र के बीच चल रही बातचीत के निर्णायक मोड़ लेने के बाद ही होने की संभावना है. इस समय लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफ़ा ही इसके एकमात्र प्रतिनिधि हैं.
उल्लेखनीय है कि राज्य के दर्जे की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस कार्रवाई में कारगिल युद्ध में लड़ने वाले एक बुजुर्ग सहित चार लोगों के मारे जाने के एक महीने बाद, 22 अक्टूबर को, सिविल सोसाइटी समूहों लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) — जो लद्दाख के दो ज़िलों का प्रतिनिधित्व करते हैं — ने गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ क्षेत्र की स्थिति पर बातचीत फिर से शुरू की थी. सरकार ने अगली बैठक से पहले, इन समूहों को एक ऐसी मसौदा रूपरेखा (ड्राफ्ट फ्रेमवर्क) तैयार करने के लिए कहा, जिसमें लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों का एक रोडमैप भी शामिल हो.
“द हिंदू” में विजयेता सिंह की रिपोर्ट है कि अगली बैठक की तारीखों की घोषणा अभी बाकी है, फिर भी लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस ने संविधान की छठी अनुसूची (जनजातीय दर्जा) के तहत शामिल करने और पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने सहित अपनी मौजूदा मांगों के पक्ष में दलील देने के लिए संवैधानिक और कानूनी विशेषज्ञों की मदद ली है.
केडीए के सज्जाद कारगिली ने कहा, “एलएबी और केडीए” अपने सुझावों का मसौदा तैयार कर रहे हैं और मंत्रालय के सामने एक साझा प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए नोट्स साझा करेंगे. छठी अनुसूची और पूर्ण राज्य का दर्जा हमारी मुख्य मांगें हैं.”
22 अक्टूबर की बैठक में, मंत्रालय के अधिकारियों ने दोनों समूहों को संकेत दिया था कि लद्दाख के लिए संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत गारंटीकृत विशेष प्रावधानों पर विचार किया जा सकता है.
31 अक्टूबर को, लद्दाख प्रशासन के एक आदेश में चुनावों में देरी का कारण नए ज़िलों के निर्माण की चल रही प्रक्रिया और इसके परिणामस्वरूप परिषद क्षेत्रों और निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की ज़रूरत को बताया गया. इसके अलावा, इसमें लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (एलएएचडीसी) अधिनियम, 1997 में संशोधन को लागू करने की ज़रूरत पर भी प्रकाश डाला गया, जो एलएएचडीसी में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण प्रदान करता है. आदेश में कहा गया कि “इस स्तर पर एक नई एलएएचडीसी, लेह, के गठन के लिए चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि इससे प्रतिनिधित्व संबंधी असामान्यताएं और प्रशासनिक विसंगतियां पैदा होंगी.”
इस आदेश ने पहाड़ी परिषद के कार्यों को उपायुक्त को तब तक के लिए सौंप दिया “जब तक कि नए चुनावों के बाद एक नई परिषद का गठन नहीं हो जाता.” नए ज़िलों की घोषणा 2024 में की गई थी और महिलाओं के आरक्षण को इस साल 3 जून को अधिसूचित किया गया था.
चीन सीमा के पास स्थित चुशूल के पूर्व पार्षद कोंचोक स्तान्ज़िन ने कहा कि वर्तमान में, एक सांसद को छोड़कर, लेह में कोई जन प्रतिनिधि नहीं है. उन्होंने कहा कि यह विशेष रूप से चीन की सीमा से सटे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए हानिकारक है. “क्योंकि अगर उनको कोई समस्या है, तो उन्हें सैकड़ों किलोमीटर दूर लेह शहर में ज़िला मुख्यालय आना पड़ेगा. ज़्यादातर लोगों के पास इसके लिए संसाधन नहीं हैं. एक पार्षद के तौर पर, मैं कनेक्टिविटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और अन्य चीज़ों से संबंधित उनकी मांगों का ध्यान रखता था,” स्तान्ज़िन ने “द हिंदू” को बताया.
उन्होंने कहा कि पहाड़ी परिषद को 40 कार्यों पर निर्णय लेने का अधिकार है और प्रत्येक पार्षद के पास 1.5 करोड़ रुपये का विकास कोष उपलब्ध होता है.
30 सदस्यीय एलएएचडीसी, लेह के चुनाव पिछली बार 2020 में हुए थे, जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने 15 सीटें और कांग्रेस ने 9 सीटें जीती थीं. चार पार्षदों को उपराज्यपाल द्वारा नामित किया जाता है. कारगिल ज़िले के लिए एलएएचडीसी का गठन 2023 में हुआ था और इसका कार्यकाल 2028 में समाप्त होगा.
2025-26 के लिए लेह हिल काउंसिल को गृह मंत्रालय द्वारा 255 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था. जम्मू और कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे को संसद द्वारा समाप्त किए जाने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के बाद, लद्दाख 2019 में विधान सभा के बिना केंद्र शासित प्रदेश बन गया था. 2011 की जनगणना के अनुसार, लेह ज़िले की आबादी 1.33 लाख है, यह लगभग 45,100 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है और देश के सबसे ठंडे और सबसे ऊंचे बसे हुए क्षेत्रों में से एक है.
मस्जिद के लाउडस्पीकर की आवाज़ अधिक होने पर इमाम पर केस
उत्तरप्रदेश के शामली ज़िले की पुलिस ने घूमथल गांव के एक इमाम के खिलाफ कथित तौर पर मस्जिद के लाउडस्पीकर को डेसिबल सीमा से अधिक आवाज़ में बजाने के लिए प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की है. “मकतूब मीडिया” ने द इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से खबर दी है कि गांव वालों द्वारा अधिक शोर की शिकायत किए जाने के बाद इमाम मौलाना रफीक खान को पहले भी चेतावनी दी गई थी. एसएचओ मनोज वर्मा ने कहा, “पुलिस की एक टीम ने मस्जिद का दौरा किया था और इमाम को आवाज़ को अनुमेय डेसिबल सीमा के भीतर रखने की सलाह दी थी. चूंकि कोई सुधारात्मक कार्रवाई नहीं की गई और उल्लंघन दोहराया गया, इसलिए अब कानूनी कार्यवाही शुरू की गई है.”
पुलिस ने बताया कि हिंदू बहुल इस गांव में एहतियात के तौर पर सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया गया है. मकतूब के अनुसार, इस मामले ने शोर प्रदूषण नियमों के चयनात्मक प्रवर्तन पर बहस छेड़ दी है, जिन्हें अक्सर अज़ान, भजन और मंदिर की घंटियों सहित सभी समुदायों के धार्मिक आयोजनों के दौरान लागू किया जाता है. कई लोगों का तर्क है कि ये नियम चयनात्मक रूप से लागू किए जाते हैं, अक्सर मस्जिदों को निशाना बनाया जाता है, जबकि अन्य पूजा स्थलों पर इसी तरह के उल्लंघनों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, जिससे क्रियान्वयन में भेदभाव और पक्षपात के आरोप लगते हैं.
इस घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए, कारवां पत्रिका के सलाहकार संपादक और येल विश्वविद्यालय के व्याख्याता सुशांत सिंह ने कहा, “यह कानून का शासन नहीं, बल्कि कानून द्वारा शासन है. कानून का शासन सभी अपराधियों पर समान रूप से लागू होता है; जबकि कानून द्वारा शासन उन पर लागू होता है, जिन्हें आप दंडित करना चाहते हैं.” फरवरी में, उत्तरप्रदेश की सम्भल पुलिस ने ध्वनि प्रदूषण का हवाला देते हुए 16वीं सदी की शाही जामा मस्जिद से लाउडस्पीकर हटवा दिए थे, जिसके बाद इमाम को छत से अज़ान देनी पड़ी थी.
पैटागोनिया में 7 करोड़ वर्ष पुराना डायनासोर का अंडा; जीवाश्म विज्ञान के लिए उपलब्धि
शोधकर्ताओं का मानना है कि इसमें भ्रूण के अवशेष हैं. यदि यह सही साबित होता है, तो यह जीवाश्म विज्ञान में एक महत्वपूर्ण मोड़ होगा, जो वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद कर सकता है कि डायनासोर का विकास और परिपक्वता कैसे हुई. इससे उनकी उत्पत्ति के बारे में भी जानकारी मिल सकती है. (छवि: एल पेस)
अर्जेंटीना की राष्ट्रीय वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधान परिषद, जिसे कॉनिसिट (CONICET) के नाम से जाना जाता है, इस वर्ष की कई सबसे रोमांचक वैज्ञानिक प्रगति में महत्त्वपूर्ण रही है. कई महीने पहले, उसने एक पनडुब्बी अभियान चलाया था, जो तुरंत हिट हो गया था, जिसने लाखों लोगों को गहरे समुद्र के जीवों पर एक लाइवस्ट्रीम देखने के लिए प्रेरित किया. अब उसने एक ऐसी खोज की है, जो डायनासोर के बारे में हमारी समझ को बदल सकती है. CONICET के जीवाश्म विज्ञानियों ने लगभग 70 मिलियन (7 करोड़) वर्ष पुराना डायनासोर का अंडा लगभग उत्कृष्ट (पूरी तरह से संरक्षित) स्थिति में खोजा है.
“द इंडियन एक्सप्रेस” की साइंस डेस्क की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह अंडा अर्जेंटीना के प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय की टीम के प्रमुख डॉ. फेडेरिको एग्नोलिन ने रियो नीग्रो प्रांत में खोजा था, जो पैटागोनिया के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित है. हालांकि, अर्जेंटीना में पहले भी अन्य अंडे पाए गए हैं, लेकिन इस जीवाश्म जितना उत्कृष्ट स्थिति में कोई नहीं मिला है.
करीब से जांच करने पर, उन्होंने इसे मांस खाने वाले बोनापार्टेनिकस नामक एक छोटे डायनासोर का जीवाश्म अंडा माना, जो लाखों साल पहले दक्षिणी अर्जेंटीना में मौजूद था. यह खोज के सबसे आश्चर्यजनक पहलुओं में से एक है, क्योंकि मांस खाने वाले डायनासोर के अंडे काफी अधिक नाजुक होते हैं और उनके बाहरी खोल पतले होते हैं.
अंडा अन्य प्राचीन सरीसृपों और स्तनधारियों के जीवाश्म अवशेषों से घिरा हुआ था, जिसके कारण टीम ने इस स्थान को प्रागैतिहासिक जानवरों की नर्सरी कहा. इस प्रकार, यह स्थल यह भी बता सकता है कि डायनासोर अपने बच्चों का पालन-पोषण कैसे करते थे, साथ ही उनके व्यवहार के अन्य तत्वों के बारे में भी जानकारी दे सकता है.
स्पेनिश समाचार संगठन ‘एल पेस’ को एग्नोलिन ने बताया, “बाकी के अंडे बहुत खंडित (टूटे हुए) हैं, क्योंकि कटाव ने उनमें से कई को नष्ट कर दिया. हो सकता है कि कुछ चट्टान के अंदर बरकरार हों. इस मामले में, अंडा स्वतंत्र रूप से टूटकर बाहर आ गया, बहुत महीन रेत में लुढ़का, और वहीं रुका रहा. इस बात ने उसे टूटने से रोका. यह लगभग एक चमत्कार है. अगर बारिश हुई होती या कुछ और हुआ होता, तो यह नष्ट हो जाता. इसलिए यह खोज इतनी रोमांचक है. ऐसा लगता है, जैसे यह जानबूझकर किया गया हो. जब मुझे यह मिला, तो मुझे विश्वास नहीं हुआ कि यह एक जीवाश्म है. यह ऐसे पड़ा था जैसे किसी ने इसे वहां रख दिया हो.”
उन्होंने उल्लेख किया कि वे अंडे की सामग्री के बारे में लोगों को उत्साहित – या निराश – महसूस करने देने के लिए इसे प्रसारण में जांचने पर भी विचार कर रहे हैं. बाद में, इस ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण जीवाश्म को पैटागोनिया के एक संग्रहालय को दे दिया जाएगा, ताकि स्थानीय लोग इसकी प्रशंसा कर सकें.
जाफ़र पनाही : ‘चुपचाप’ क्यों बनानी पड़ी अपनी नई फिल्म
ईरानी फिल्म निर्माता जाफ़र पनाही को अपनी कला के कारण जेल और सेंसरशिप का सामना करना पड़ा है. अपनी नई फिल्म — “इट वाज़ जस्ट एन एक्सीडेंट” (It Was Just an Accident) — जो ऑस्कर की दावेदार बन गई है, के लिए उन्होंने अपने उत्पीड़कों (परेशान करने वालों) से प्रेरणा ली. यह फिल्म कान फिल्म फेस्टिवल में इस वर्ष “पाल्मे डी’ओर” भी जीत चुकी है.
अमेरिकी फिल्म-उद्योग से जुड़े ज्यादातर लोग जानते हैं कि ऑस्कर अभियान एक नृत्य जैसा होता है. व्यक्ति को छह महीने क्यू एंड ए (Q&As) और लंच के लिए उड़ान भरने बड़े लोगों से मेल-जोल बढ़ाने और जब कोई ‘ओ-शब्द’ (ऑस्कर) का उल्लेख करे तो मना करने का दिखावा करने में खर्च करना पड़ता है. यह वह खोज है, जिसका नाम नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि, जैसा कि सभी जानते हैं, सबसे बड़ा पाप यह दिखाना है कि आप इसे कितना चाहते हैं.
“द वाशिंगटन पोस्ट” में जे. यूआन लिखती हैं, “जब मैं असंतुष्ट ईरानी निर्देशक जफ़र पनाही से पहली बार मिली, तो उन्होंने तुरंत विषय छेड़ दिया. वह अपने अथक दुभाषिए, शीदा दयानी के माध्यम से मुझे बताते हैं, “उन्होंने मुझे आधे घंटे पहले ही बताया कि 100 ईरानी फिल्म निर्माताओं और सिनेमा जगत के लोगों ने एक बयान लिखने के लिए इकट्ठा होकर सरकार से यह पूछने के लिए कहा है कि वह ऑस्कर के लिए भेजी जाने वाली फिल्म के चयन में हस्तक्षेप न करे.” “लेकिन ऐसा होने की संभावना बहुत कम है.”
हमने टोरंटो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में एक खाली पॉप-अप कार्यालय में बैठकर इंटरव्यू लिया. 65 वर्षीय पनाही ईरान के सबसे प्रसिद्ध पूर्व राजनीतिक कैदियों में से एक हैं — और एक आकर्षक कहानीकार भी, जिनमें त्रुटिहीन हास्य बोध है, जो उनके गंभीर विषय को छिपा सकता है. अपने ट्रेडमार्क पूरी तरह काले परिधान और गहरे रंग के चश्मे पहने हुए, वह अपने चुटकुलों को बताने से पहले ही एक तिरछी मुस्कान देते हैं.
2010 में, पनाही को सरकार ने “व्यवस्था के खिलाफ प्रचार” के आरोप में गिरफ्तार किया, उन्हें एविन जेल में एकांत कारावास और लगातार पूछताछ का सामना करना पड़ा. यह उनकी तीसरी गिरफ्तारी थी. तीन महीने बाद जमानत पर रिहा होने पर, उन पर 20 साल के लिए फिल्में बनाने, ईरान से बाहर यात्रा करने या पत्रकारों से बात करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. उन पर छह साल की जेल की सज़ा भी लटकी हुई थी, जिसे 2022 में लागू कर दिया गया. पनाही ने सात महीने एविन में बिताए और अंतर्राष्ट्रीय आक्रोश पैदा करने वाली भूख हड़ताल के बाद ही बाहर निकल पाए.
पनाही मज़ाक में कहते हैं कि वह फिल्म बनाने के अलावा और कुछ नहीं जानते. 2023 में प्रतिबंध हटने के बावजूद, वह गुप्त रूप से काम करते रहे. प्रतिबंधों के दौरान, उन्होंने खुद पर कैमरा मोड़ा और गुप्त रूप से फिल्में बनाईं : “दिस इज़ नॉट ए फिल्म” (2011): घर पर फिल्माया गया, इसे एक यूएसबी ड्राइव पर देश से बाहर तस्करी किया गया.
“टैक्सी” (2015): गोल्डन बेयर विजेता, जिसके लिए उन्होंने टैक्सी चलाई और यात्रियों को फिल्माया.
“नो बेयर्स” (2022): जब इसका प्रीमियर हुआ, तब वह एविन जेल में थे.
पनाही अब रॉबर्ट ऑल्टमैन और माइकल एंजेलो एंटोनियोनी के साथ, पाल्मे डी’ओर, गोल्डन लायन और गोल्डन बेयर जीतने वाले एकमात्र जीवित निर्देशक हैं.
पनाही ने अपनी नवीनतम फिल्म “इट वाज़ जस्ट एन एक्सीडेंट” को गुप्त रूप से बनाया, जिसे मई 2025 में तेहरान से बाहर तस्करी कर फ्रांस ले जाया गया. यह फिल्म शासन की एक तीखी आलोचना है, जो जेल में उनके अनुभवों और सुनी गई कहानियों पर आधारित है. फिल्म की कहानी: यह पूर्व राजनीतिक कैदियों के एक समूह के बारे में है जो उस गार्ड का अपहरण करते हैं जिसके बारे में उनका मानना है कि उसने उन्हें प्रताड़ित किया. खुले में शूटिंग के लिए सरकारी मंजूरी की आवश्यकता होती, जिसे “हम यह खेल नहीं खेलेंगे” कहकर पनाही ने टाला. उन्होंने 25 दिनों में शूटिंग पूरी की, ताकि पकड़े न जाएं. गोपनीयता बनाए रखने के लिए, सभी क्रू सदस्य दो कारों में समा गए थे. अभिनेताओं को एक रात पहले ही शूटिंग के स्थान और स्क्रिप्ट के पन्ने मिलते थे. सेट पर नकली स्क्रिप्ट, नकली कैमरे और खाली मेमोरी कार्ड रखे जाते थे. शूटिंग समाप्त होने से दो दिन पहले, 15 सादे कपड़ों वाले पुलिस अधिकारियों ने सेट पर छापा मारा, लेकिन टीम पहले से तैयार थी, और फुटेज छिपा दिया गया था.
महिला अभिनेताओं और सिनेमैटोग्राफर को कान्स से पहले पूछताछ के लिए बुलाया गया और रेड कार्पेट पर हिजाब पहनने के लिए दबाव डाला गया, ऐसा न करने पर 15 साल तक की जेल की धमकी दी गई. अभिनेत्री मरियम अफ़शरी ने इस दबाव का विरोध किया.
निर्देशक पायल कपाड़िया ने कहा कि पनाही जैसे कलाकार जीने के लिए जोखिम उठाते हैं. पनाही के लिए, अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म के लिए ऑस्कर नामांकन “प्रतिरोध का एक रूप” है. वह कहते हैं कि यह सेंसरशिप के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय फटकार है.
ईरान की फिल्म गिल्ड द्वारा चयन प्रक्रिया पर नियंत्रण पाने की कोशिश के बाद, यह फिल्म अब फ्रांस की आधिकारिक प्रविष्टि है. वह हमेशा चाहते थे कि उनकी फिल्में ईरान में रिलीज़ हों, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. हालांकि, इंटरनेट पर फिल्म आने के बाद हर कोई इसे तुरंत देख लेता है. ईरान में रहते हुए, पनाही जानते हैं कि ऑस्कर जैसी सुरक्षा भी अस्थिर है. एविन जेल से उनके एक मित्र, पत्रकार मेहदी महमूदियन, पहले ही जेल वापस जा चुके हैं.
हालांकि, पनाही आत्मविश्वास से मुस्कुराते हुए कहते हैं कि वह ठीक रहेंगे: “उनके लिए और क्या बचा है करने को?”
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