04/03/2025 : पेटीएम को ईडी नोटिस, मायावती का भतीजा पार्टी से बाहर, ममता के महाकुंभ अलग, दक्षिण और हिंदी के सवालों का मतलब, मस्क का बदला टेस्ला से लेते लोग, सेक्सकर्मियों पर बनी फिल्म ने 5 ऑस्कर जीते
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
डिजीपब ने मोदी सरकार को दिलाई प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में कमजोर ट्रैक रिकॉर्ड की याद
मस्क की हरकतों का बदला टेस्ला कार से
काम-धंधे और सुनहरे भविष्य की खोज में विदेश जाने का मौका तलाशती पंजाब की औरतें
सुप्रीम कोर्ट ने अल्लाहबादिया को शो शुरू करने की अनुमति दी
दमकल की गाड़ियों में 'पवित्र पानी' की सप्लाई
केंद्रीय मंत्री की बेटी को परेशान करने के आरोप में 4 गिरफ्तार
5,000 साल पहले सिंधु घाटी के किसानों ने जंगली सूअरों को पालतू बनाया था
पश्चिम बंगाल में 'वैकल्पिक' कुम्भ मेलों की राजनीति
माधवी बुच पर एफआईआर हाईकोर्ट ने रोकी : 'द हिंदू' की खबर है कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को एंटी-करप्शन ब्यूरो (एसीबी) से कहा कि वह मुंबई सत्र अदालत के उस आदेश पर कार्रवाई न करे, जिसमें पूर्व भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और अन्य पांच लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया गया था. 1 मार्च 2025 को सत्र अदालत ने एसीबी को 1994 में एक कंपनी की लिस्टिंग से जुड़े कथित स्टॉक मार्केट धोखाधड़ी, नियामक उल्लंघनों और भ्रष्टाचार के मामले में बुच, सेबी तथा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था. 'हरकारा' के 3 मार्च के अंक में आप इस बारे में विस्तार से पढ़ सकते हैं.
फेमा का उल्लंघन, पेटीएम को ईडी का नोटिस : प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सोमवार को पेटीएम की मूल कंपनी, उसके प्रबंध निदेशक और संबंधित संस्थाओं को विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के उल्लंघन के आरोप में नोटिस जारी किया है. यह मामला 2015 से 2019 के बीच 611 करोड़ रुपये के लेनदेन से जुड़ा है. ईडी ने एक विज्ञप्ति में बताया कि कारण बताओ नोटिस पेटीएम की प्रमुख कंपनी वन 97 कम्युनिकेशन लिमिटेड (ओसीएल), इसके प्रबंध निदेशक और पेटीएम की अन्य सहायक कंपनियों जैसे, लिटिल इंटरनेट प्राइवेट लिमिटेड और नियरबाय इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया है. जांच में पाया गया कि ओसीएल ने सिंगापुर में विदेशी निवेश किया और विदेशी स्टेप-डाउन सब्सिडियरी बनाने के लिए आरबीआई को आवश्यक रिपोर्टिंग दाखिल नहीं की. ईडी के मुताबिक कंपनी ने आरबीआई द्वारा निर्धारित उचित मूल्य निर्धारण दिशानिर्देशों का पालन किए बिना विदेशी निवेशकों से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) भी प्राप्त किया.
मायावती ने आकाश को अब पार्टी से ही निकाला : बसपा सुप्रीमो मायावती ने सोमवार को अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी से ही निष्कासित कर दिया. एक दिन पहले रविवार को उन्होंने आकाश को पार्टी के सभी दायित्वों से मुक्त किया था. "एक्स" पर एक पोस्ट के जरिए मायावती ने खुद ही यह जानकारी दी और कहा, "आकाश को पश्चाताप करके अपनी परिपक्वता दिखानी थी. लेकिन आकाश ने जो प्रतिक्रिया दी, वह राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं है. वह अपने ससुर के प्रभाव में स्वार्थी और अहंकारी हो गया है."
भारत की दया याचिकाओं के बावजूद शहजादी को मिली फांसी : 13 फरवरी को पीएम मोदी ने यूएई की विजिट की थी, लेकिन इससे भारतीय नागरिक शहजादी की जान बचाने में कोई मदद नहीं मिल सकी. सुहाषिनी हैदर ने एक्स पर लिखा है- 'भारत सरकार ने आज कोर्ट में जो प्रस्तुत किया, उसकी पुष्टि करते हुए विदेश मंत्रालय (एमईए) ने कहा कि एक भारतीय नागरिक शहजादी को पिछले महीने यूएई में फांसी दी गई. सरकार को 28 फरवरी को इसकी जानकारी मिली थी. हालांकि, मंत्रालय ने बताया कि यह सजा भारत सरकार की दया याचिकाओं के बावजूद लागू की गई.
नाइंसाफी को प्यार से सहना हेट स्पीच कैसे है? सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात पुलिस से सवाल किया कि कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी की कविता — जिसका सीधा अर्थ "अन्याय को प्यार से सहना" है — ने उनके खिलाफ धर्म और जाति के आधार पर समूहों के बीच दुश्मनी फैलाने के आरोप में मामला दर्ज करने को कैसे उकसाया. हिंदू की रिपोर्ट है कि न्यायमूर्ति एएस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि यह कविता अहिंसा की बात करती है, जो महात्मा गांधी का मार्ग था. गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कविता को "सड़क छाप" (घटिया) बताते हुए फैज अहमद फैज से तुलना का विरोध किया. उन्होंने न्यायाधीशों से अनुरोध किया : "कृपया प्रतापगढ़ी की तुलना गांधीजी से न करें." न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि यह मामला एक बुनियादी सवाल उठाता है : क्या संविधान लागू होने के 75 साल बाद भी देश की पुलिस अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार को नहीं समझ पाई? पीठ ने कला और कविता को दबाने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई.
सुप्रीम कोर्ट ने अल्लाहबादिया को शो शुरू करने की अनुमति दी : सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ यू-ट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया को अपने पॉडकास्ट ‘द रणवीर शो’ को फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी है. लेकिन उन्हें यह अंडरटेकिंग देना होगी कि उनके शो पर शालीनता और नैतिकता के अपेक्षित मानदंडों का पालन किया जाएगा, ताकि हर आयु वर्ग का व्यक्ति उसे देख सके. अल्लाहबादिया ने एक आवेदन लगाकर सुप्रीम कोर्ट से 18 फरवरी के उस आदेश को संशोधित करने का आग्रह किया था, जिसमें उनके पॉडकास्ट पर रोक लगा दी गई थी.
पूर्व भाजपा नेता बलात्कार मामले में गिरफ्तार: 'द प्रिंट' की खबर है कि मध्य प्रदेश के एक बीजेपी नेता संजू यादव को पार्टी से निष्कासित किए जाने के बाद गिरफ्तार किया गया है. बीजेपी नेता को दरअसल टीकमगढ़ में अपने होटल में 15 साल की लड़की के साथ बलात्कार के मामले में गिरफ्तार किया गया है. यादव एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के प्रतिनिधि थे, ऐसा बताया गया है.
दमकल की गाड़ियों में 'पवित्र पानी' की सप्लाई : आग बुझाने के लिए दमकल गाड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राज्य में इन्हें राज्य के 75 जिलों में 'पवित्र' पानी ले जाने के लिए तैनात किया जा रहा है.
पश्चिम बंगाल में 'वैकल्पिक' कुम्भ मेलों की राजनीति
'द वायर' की खबर है कि पश्चिम बंगाल में त्रिवेणी कुम्भ मेला के आयोजन को लेकर ममता बनर्जी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच नूराकुश्ती चल रही है. एक कहता है ये हमारा मेला है, तो दूसरा इसे अपना बताने में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता. त्रिवेणी कुम्भ मेला जिसे हिंदुत्व समूहों ने 2022 में "पुनः जागृत" किया था, अब एक बड़ा धार्मिक और राजनीतिक मंच बन गया है. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने इस मेले को अपनी पहचान के हिस्से के रूप में अपनाया और इसे राज्यभर में बढ़ावा दिया, हालांकि यह मूल रूप से बीजेपी के समर्थक समूहों द्वारा शुरू किया गया था. ममता सरकार ने न केवल राज्य के संसाधनों का इस्तेमाल कर कुम्भ स्नान और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों को बढ़ावा दिया, बल्कि इसका आयोजन राज्य के प्रमुख नेताओं द्वारा किया गया. हालांकि ममता ने व्यक्तिगत रूप से इस कार्यक्रम में भाग नहीं लिया, उन्होंने अपने समर्थन का संदेश भेजा. यह घटना पश्चिम बंगाल में धर्म और राजनीति के बीच बढ़ते समीकरण और बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे के मुकाबले ममता की सांस्कृतिक रणनीति को दर्शाती है. कुम्भ मेला के प्रचार के साथ-साथ ममता सरकार ने गंगासागर मेला और अन्य धार्मिक आयोजनों के लिए भी बड़ी योजनाओं की घोषणा की, ताकि बंगाल में हिंदू मतों को आकर्षित किया जा सके और अपनी राजनीति को हिंदू पहचान से जोड़ सकें. इस प्रकार, ममता बनर्जी की सरकार बीजेपी के धार्मिक-राष्ट्रवादी प्रचार का मुकाबला करने के लिए एक नई रणनीति अपना रही है, हालांकि इसे लेकर आलोचनाएँ भी उठ रही हैं, खासकर सरकारी धन के उपयोग को लेकर.
पाठकों से अपील
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की वृद्धि दर 14 महीने के निचले स्तर पर : फरवरी में भारत के विनिर्माण क्षेत्र (मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर) की वृद्धि दर 14 महीने के निचले स्तर पर आ गई. हालांकि, इस दौरान नये ठेके और उत्पादन में वृद्धि तो हुई, पर कम. एक मासिक सर्वेक्षण में सोमवार को यह जानकारी दी गई. एचएसबीसी भारत विनिर्माण खरीद प्रबंधक सूचकांक (पीएमआई) फरवरी में 56.3 अंक पर रहा, जो जनवरी के 57.7 अंक से कम है. पीएमआई की भाषा में 50 से ऊपर का अंक विस्तार को दर्शाता है, जबकि 50 से नीचे का अंक गतिविधियों में संकुचन का संकेत है. एचएसबीसी के मुख्य भारतीय अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी ने कहा कि दिसंबर 2023 के बाद से फरवरी में उत्पादन वृद्धि सबसे धीमी रही, यद्यपि समग्र गति मोटे तौर पर सकारात्मक बनी रही.
केंद्रीय मंत्री की बेटी को परेशान करने के आरोप में 4 गिरफ्तार : केंद्रीय मंत्री रक्षा खडसे की नाबालिग बेटी को जलगांव में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में एक समूह ने परेशान किया. इस मामले में तीन नाबालिग सहित चार को गिरफ्तार किया गया है. यह घटना महाराष्ट्र में सुरक्षा और पुलिस पर सवाल खड़े करती है, क्योंकि आरोपी सत्तारूढ़ गठबंधन से जुड़े हैं.
जुबैर की याचिका खारिज करने की मांग पर फैसला सुरक्षित : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को ऑल्ट न्यूज़ के पत्रकार और तथ्य-जांचकर्ता मोहम्मद जुबैर की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और जुबैर को गिरफ्तार से दी गई अंतरिम सुरक्षा की अवधि भी बढ़ा दी. इसमें गाजियाबाद डासना देवी मंदिर के पुजारी यति नरसिंहानंद के भाषण की आलोचना करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस की दर्ज प्राथमिकी (एफआईआर) रद्द करने की मांग की गई है.
बंगाल में छात्र को कार से कुचलने का आरोप : पश्चिम बंगाल के विभिन्न विश्वविद्यालय परिसरों और कॉलेजों में सोमवार को छात्रों ने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और कार्यकर्ताओं तथा उसके छात्र संगठन तृणमूल छात्र परिषद (टीएमसीपी) द्वारा की गई हिंसा के विरोध में हड़ताल की. यह घटना 1 मार्च को जादवपुर विश्वविद्यालय में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई, जब राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु की कार ने उन छात्रों को ‘कुचल दिया’ जो राज्य भर में तत्काल छात्र संघ चुनाव की मांग को लेकर एकत्र हुए थे. हड़ताल का आह्वान स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने किया था. इसने घटना की एक तस्वीर और वीडियो भी जारी किया है. इसमें एसएफआई सदस्य इंद्रानुज रॉय को मंत्री की कार के पहियों के नीचे देखा जा सकता है, क्योंकि कार एकत्रित छात्रों के बीच से गुजर रही थी. रॉय को फ्रैक्चर और सिर और आंख में चोट के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
डिजीपब ने मोदी सरकार को दिलाई प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में कमजोर ट्रैक रिकॉर्ड की याद
'द टेलीग्राफ' की खबर है कि डिजिटल मीडिया के संगठन डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन ने खोजी पत्रकारिता पोर्टल 'रिपोर्ट्स कलेक्टिव' और कन्नड़ वेबसाइट 'फाइल' पर नरेंद्र मोदी सरकार के हमलोंं की आलोचना की है और सरकार को भारत के प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में कमजोर ट्रैक रिकॉर्ड की याद भी दिलाई है. डिजीपब ने उस दावे को "गंभीर रूप से परेशान करने वाला और लोकतंत्र की नींव के खिलाफ" बताया है, जिसमें कहा गया था कि पत्रकारिता सार्वजनिक उद्देश्य की सेवा नहीं करती. सरकार ने यह दावा इन दो डिजिटल मीडिया प्लेटफार्मों का गैर-लाभकारी दर्जा रद्द करते हुए किया था. डिजीपब ने अपने बयान में कहा है कि ऐसा दावा अन्य स्वतंत्र समाचार आउटलेट्स को वित्तीय रूप से निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यदि सरकार मानती है कि भारत एक लोकतंत्र है, तो उसे इस स्थिति को वापस लेना चाहिए. गौरतलब है कि जिन दोनों संगठनों का गैर-लाभकारी दर्जा रद्द किया गया था, उन दोनों ने नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते हुए रिपोर्ट प्रकाशित की थीं. 25 जनवरी को 'रिपोर्ट्स कलेक्टिव' ने अपनी वेबसाइट पर एक बयान जारी कर बताया था कि आयकर विभाग ने उनके गैर-लाभकारी दर्जे को रद्द कर दिया है. 'रिपोर्ट्स कलेक्टिव' 2021 में शुरू हुआ था. 'रिपोर्ट्स कलेक्टिव' जो 2021 से एक सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित गैर-लाभकारी ट्रस्ट है, अब करों से छूट से वंचित हो जाएगा. डिजीपब ने अपने बयान में कहा - 'ऐसे समय में जब भारत का प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक सबसे निचले स्तर पर गिर चुका है और मुख्यधारा मीडिया के बड़े हिस्से सरकार के समर्थक बन चुके हैं, स्वतंत्र मीडिया आउटलेट्स सरकार और उसकी नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं'. बता दें कि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा प्रकाशित वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 2023 में भारत 180 देशों में से 161वें स्थान पर है. पिछले साल, यह दो स्थान ऊपर 159वें स्थान पर था, जो पाकिस्तान (152) और श्रीलंका (150) से काफी नीचे है.
शिक्षा नीति
अपूर्वानंद : हिंदी वालों के पास नहीं है तमिलनाडु से उठ रहे सवालों का तर्क
त्रिभाषा फार्मूले पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बयानों से उठी बहस पर फ्रंटलाइन में प्रकाशित लेख के उद्धधरण
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भाषा को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर दोहरे रवैये की खुलकर मुखालफत की है और “तीन भाषा प्रणाली” पर हमला तेज कर दिया है. उन्होंने राज्य में दशकों से प्रचलित दो-भाषा प्रणाली को छोड़ने से इनकार कर दिया है. इसमें तमिल को स्थानीय भाषा के रूप में और अंग्रेजी को एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है. इस सुझाव पर कि तमिल लोग तीसरी भाषा, खासकर हिंदी सीखने से लाभान्वित होंगे, क्योंकि इससे उन्हें भारत की भाषाई विविधता का लाभ मिलेगा, इसपर उनका दो टूक कहना है — 'धन्यवाद, हम भाषाओं को ईमानदारी से और सच्चाई से सीखते हैं, बिना किसी फार्मूले के. हमारा इतिहास बताता है कि यह दो-भाषा प्रणाली हमें भौतिक रूप से मदद कर चुकी है, क्योंकि हम आर्थिक रूप से ‘हिंदी’ क्षेत्रों जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार से बेहतर हैं. हमें दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए नहीं जाना पड़ता, जैसा कि ‘हिंदी’ क्षेत्रों के लोग तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक आदि में आते हैं, क्योंकि उनके अपने राज्य उनका पेट भरने के लिए सक्षम नहीं हैं'.
2022 में तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री ने कोयंबटूर में पानीपुरी बेचने वाले लोगों की भाषा के बारे में सवाल उठाया था. इससे हिंदी बोलने वालों को चोट पहुंची, क्योंकि वह स्पष्ट रूप से यह संकेत दे रहे थे कि ये लोग तमिलनाडु में अपनी आजीविका कमाने आते हैं. उनका कहना था कि हिंदी सीखने से आप यहीं तक पहुंच सकते हैं और वह गलत नहीं थे. हिंदी बोलने वालों को यह बात बुरी लगी, लेकिन उनके पास इसका कोई उत्तर नहीं था. उनका मतलब यह था कि हिंदी क्षेत्र के लोगों के लिए यह अधिक आवश्यक है कि वे तमिल या कन्नड़ सीखें, क्योंकि उनकी आजीविका इन भाषाओं के क्षेत्रों में है, न कि इसके विपरीत.
यदि हम इस भौतिक पहलू को छोड़ दें और अपनी बहुभाषी क्षमता के बारे में सोचें, तो दक्षिण भारत के लोग "हिंदी" भाषी लोगों से बहुत आगे हैं. उत्तर प्रदेश या बिहार के लोग अधिकांशतः एकलभाषी होते हैं, अगर हम उनकी घर की भाषाओं जैसे अवधी या भोजपुरी को छोड़ दें. उन्हें किसी अन्य भारतीय भाषा को सीखने की आवश्यकता महसूस नहीं होती अंग्रेजी, फिर भी एक ऐसी मजबूरी है जिसे वे टाल नहीं सकते. हमें यह पूछना चाहिए कि ऐसा क्या है कि तीन-भाषा प्रणाली के दशकों के उपयोग के बावजूद भी वे भाषाई दृष्टि से गरीब क्यों हैं? क्या इन क्षेत्रों में अन्य भारतीय भाषाएं सीखने की इच्छा है? क्या आप उत्तर प्रदेश या मध्य प्रदेश में किसी स्कूल में तमिल या असमिया के शिक्षक देख सकते हैं?
यह माना गया था कि तीन-भाषा प्रणाली का उद्देश्य विभिन्न भाषाई क्षेत्रों के लोगों को आपस में करीब लाना होगा, लेकिन हम यह देखते हैं कि इसे "हिंदी" क्षेत्रों में कभी इस उद्देश्य के लिए उपयोग नहीं किया गया. उन्होंने कभी मराठी, बंगाली या कन्नड़ को नहीं अपनाया तो फिर वह "भारतीयता" क्या है जिसे हिंदी लोग बार-बार बोलते हैं? वे सोचते हैं कि भारतीयता हिंदी द्वारा परिभाषित होती है, क्योंकि यह सबसे बड़ी संख्या में बोली जाने वाली भाषा है, लेकिन यह भी तथ्यात्मक रूप से गलत है.
मुख्यमंत्री स्टालिन ने "हिंदी" भाषी लोगों को याद दिलाया है कि राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रचारित की जा रही हिंदी ने उन भाषाओं को दबा दिया है, जो अब हिंदी क्षेत्र के रूप में माने जाते हैं. यह उनके कंधों पर सवार है. मैं एक हिंदी शिक्षक के रूप में जानता हूं कि मेरी कक्षा में छात्र हिंदी को अपनी पहली या घर की भाषा के रूप में नहीं जानते. वे घर पर ब्रज, मैथिली, मारवाड़ी या हरियाणवी का उपयोग करते हैं. उनके लिए, हिंदी एक भाषा है, जिसे सीखना होता है और यह उनके लिए आसान नहीं है. उत्तर प्रदेश में हिंदी परीक्षा में असफल होने वाले छात्रों की संख्या बताती है कि हमारी स्कूलों में जो शैक्षिक पद्धति अपनाई जाती है, वह हिंदी को उनके घर की भाषाओं से पूरी तरह से काट देती है, जो गलत है. "शुद्ध" हिंदी की खोज, जो सभी स्थानीय प्रभावों से मुक्त हो, भी एक कारण है. यह नीरस हिंदी, जो राष्ट्र निर्माण के काम में बुरी तरह से घिरी हुई है, बच्चों को डराती है. मैं भाषाविद आयशा किदवई को उद्धृत करना चाहूँगा, ताकि हमें यह समझने में मदद मिल सके कि स्टालिन की टिप्पणी का क्या अर्थ था :
"स्टालिन जो कह रहे हैं, वह एक तथ्य है. क्योंकि हमारी जनगणना हिंदी के तहत 50 भाषण किस्मों को एक साथ समूहित करती है, और क्योंकि शिक्षा पर राज्य नीति उस समूहीकरण से सूचित होती है, एक बार जब कोई बच्चा स्कूल जाता है और उसे केवल मानक हिंदी सिखाई जाती है, तो निश्चित रूप से उन अन्य भाषाओं का क्षरण होता है, जिसकी वह वक्ता है. जबकि ऐसी भाषाएँ जरूरी नहीं कि तुरंत मर जाएं, उनके उपयोग का क्षेत्र दिन-ब-दिन सिकुड़ता जाता है, अक्सर केवल घर पर उपयोग तक ही सीमित रहता है, जब तक कि वे स्वयं वक्ताओं द्वारा कम उपयोगिता वाली होने के रूप में माना जाने लगती हैं, और वे अपने बच्चों से इसे बोलना बंद कर देते हैं. हमने इस प्रक्रिया को पिछले डेढ़ सदी में भारत में बार-बार दोहराते हुए देखा है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. भाषाविद् इसे भाषा परिवर्तन कहते हैं."
स्टालिन के जवाब में, यह कहा गया है कि हिंदी के रूप में जो उभरा है वह मानकीकरण की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. लेकिन प्रोफेसर किदवई हमें बताती हैं कि मानकीकरण से निकटवर्ती भाषाओं की मृत्यु नहीं होनी चाहिए :
"...भाषा मानकीकरण किसी भी तरह से विभिन्न किस्मों के उन्मूलन की यह प्रक्रिया नहीं है (जब तक कि आप 19वीं शताब्दी में फ्रांसीसी न हों). बल्कि, भाषाएं पाठ्य सम्मेलनों, व्याकरण, शब्दकोशों, वर्तनी पुस्तकों के विकास और साहित्य और कला की शैलियों के विकास के रूप में संहिताकरण द्वारा मानकीकृत होती हैं. हिंदी के तहत क्लब की गई कई भाषाओं ने वास्तव में इन प्रक्रियाओं को काफी हद तक पूरा कर लिया है, और थोड़ी भी हिंदी जैसी नहीं बनी हैं. ब्रज भाषा को याद रखें - जिसे भाषा कहा जाता है, बोली नहीं, क्योंकि इसकी प्रतिष्ठित साहित्यिक परंपरा है - और पूछें कि क्या यह स्कूलों में पढ़ाई जाती है और क्या ब्रज में नये महान लेखन, या नई फिल्में या संगीत भाषा में हैं. या क्या ब्रज भाषी, जिन्हें राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश के भारतीय राज्यों में फैले होना चाहिए, सभी जनगणना करने वालों को 'हिंदी भाषी' के रूप में पहचानते हैं."
जो लोग तमिलनाडु स्टालिन को सलाह देते हैं कि हिंदी को तीन-भाषा प्रणाली का हिस्सा के रूप में पढ़ाया जाए, उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि क्यों ब्रज जैसी भाषा हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाई जाती. क्यों हिंदीवालों को तुलसीदास या सूरदास या केशव के ग्रंथों को पढ़ने में कठिनाई होती है? ये हमारे सिलेबस का हिस्सा हैं, और उनके गंभीर पाठक यूरोप में पाए जाते हैं!
हमें तीन-भाषा प्रणाली की प्रथा का ईमानदारी से पुनरावलोकन करने की आवश्यकता है. इसे एक खोखले नारे के रूप में उपयोग करने के बजाय, जो हिंदीवालों को उनके अपने भ्रमित संसार में जीने में मदद करता है.
लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के ही प्रोफेसर हैं.
विश्लेषण
पश्चिम की नकली कहानियों को बेचकर गुजारा करता भारत का दक्षिणपंथ
‘स्क्रोल’ के लिए अपने वीकली न्यूजलेटर 'द इंडिया फिक्स' में शोएब दानियल ने उन संभावनाओं को तलाशने की कोशिश की है, जहां से ये समझ आ सके कि क्या भारत का धुर दक्षिणपंथ, पश्चिम के धुर दक्षिणपंथ से कदमताल कर रहा है, या फिर दुत्कारे जाने के बावजूद नकल उतार रहा है… यहां तक कि भाषा और दुश्मन तक चुनने की!
21 फरवरी को इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने वाशिंगटन डीसी में कंजरवेटिव पॉलिटिकल एक्शन कॉन्फ्रेंस (सीपैक) में उदार और खासतौर पर वामपंथ को निशाने पर लेते हुए यह तर्क पेश किया कि वैश्विक दक्षिणपंथ के उदय ने वामपंथियों को परेशान कर दिया है. इस दौरान उन्होंने नरेंद्र मोदी का उल्लेख करते हुए कहा- “जब बिल क्लिंटन और टोनी ब्लेयर ने 90 के दशक में वैश्विक वामपंथी उदार नेटवर्क बनाया, तो उन्हें स्टेट्समैन कहा गया था. आज जब [डोनाल्ड] ट्रम्प, मेलोनी, [जावियर] मिलाई, या शायद [नरेंद्र] मोदी बात करते हैं, तो उन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा कहा जाता है. यह वामपंथियों का दोहरा मानक है, लेकिन हम इससे परिचित हैं और अच्छी खबर यह है कि अब लोग उनके झूठ पर विश्वास नहीं करते. उनके द्वारा हमारे ऊपर फेंके गए कीचड़ के बावजूद, नागरिक लगातार हमें वोट दे रहे हैं.” शोएब ने लिखा है कि पश्चिमी राजनेता ने मोदी की प्रशंसा की और उन्हें वैश्विक दक्षिणपंथ का हिस्सा बताया, जो भारतीय जनता पार्टी और उसकी हिंदुत्व विचारधारा के समर्थकों को प्रसन्न करेगा. हिंदुत्व की राजनीति करने वाले, ऐसी ही स्वीकृति की आस में सालों से वैश्विक मंचों पर टहल रहे हैं. वे लगातार पश्चिम की दक्षिणपंथी राजनीति से प्रेरणा, रणनीतियां और यहां तक कि शब्दावली भी ले रहे हैं.
मसलन, जॉर्ज सोरोस को ही लें. पिछले साल दिसंबर में बीजेपी सांसदों ने लोकसभा में हंगामा मचाया और आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी हंगेरियन-अमेरिकन बिलियनेयर-फिलांथ्रोपिस्ट सोरोस के साथ मिली हुई है. बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा- 'कांग्रेस का हाथ सोरोस के साथ.' पिछले लंबे समय से बीजेपी सोरोस का इस्तेमाल कांग्रेस को निशाने पर लेने के लिए करती आई है. यह अजीब है, क्योंकि सोरोस को भारत में लोग नहीं जानते हैं. हालांकि वो अमेरिका में एक प्रमुख व्यक्ति हैं, जहां दक्षिणपंथी उनके उदारवादी कार्यों के लिए फंड देने की लगातार आलोचना करते आए हैं. इनमें कुछ काम डेमोक्रेसी को दुरुस्त रखने वाले भी हैं. डोनाल्ड ट्रम्प ने भी इस बिलियनेयर पर हमला किया है. खैर, बीजेपी ने पश्चिमी दक्षिणपंथ की राजनीति को इस हद तक अपनाया है कि उसने सोरोस पर बनी कॉन्स्पिरेसी थ्योरी को सीधे पश्चिम से भारत में उधार ले लिया. साल 2023 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने "वोक" (जागृत लोग) पर हमला किया, जो शब्द उनके श्रोताओं के लिए इतना अपरिचित था कि उन्हें इसे हिंदी में “जगे हुए लोग” के रूप में हास्यास्पद रूप से समझाना पड़ा. कई बीजेपी नेताओं ने "भारत में शरिया कानून लाने" के कथित प्रयासों पर हमले किए हैं. यह शब्दावली सीधे अमेरिकी दक्षिणपंथ से आयात की गई है, जो इस तथ्य को अनदेखा करती है कि शरिया या इस्लामिक कानून भारत में पहले से ही मुस्लिम व्यक्तिगत कानून (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 के तहत लागू है.
बीजेपी ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के बाद पश्चिम में इस्लामोफोबिया के बढ़ते प्रभाव का उत्साहपूर्वक लाभ उठाया है, ताकि वह घर में अपनी अल्पसंख्यक विरोधी राजनीति को आगे बढ़ा सके. पश्चिम के दक्षिणपंथ के प्रति यह आकर्षण डोनाल्ड ट्रम्प के उदय और उनकी बेझिझक इस्लामोफोबिया को लेकर चरम पर पहुंच गया है. भारत में तो हिंदुत्व समर्थकों ने ट्रम्प की जीत के लिए सार्वजनिक प्रार्थनाएं भी की हैं. मोदी ने 2019 में भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में एक असामान्य कदम उठाते हुए ट्रम्प को राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन दिया था. कुल मिलाकर दुनिया भर में दक्षिणपंथी विचारधारा के बीच सहयोग बढ़ा है. कारोबारी इलोन मस्क ने तो ब्रिटेन और जर्मनी में धुर दक्षिणपंथी राजनीति को खुला समर्थन दिया है.
अचानक से उभरे इस वैश्विक दक्षिणपंथी गठबंधन बनाने का ख्याल क्यों उछला? इसका एक कारण मेलोनी ने स्वयं बता दिया है कि वामपंथी और उदारवादी कुछ समय से ऐसा कर रहे हैं. कम्युनिस्टों के अपने अंतरराष्ट्रीय संगठनात्मक संबंध हैं और उदारवादी अक्सर थिंक टैंकों जैसे संस्थानों के माध्यम से नेटवर्क बनाते हैं. दक्षिणपंथ इस मामले में अब तक पिछड़ चुका था, लेकिन अब नहीं.
पश्चिमी श्वेत राष्ट्रवादियों और भारत में हिंदुत्व समर्थकों के बीच कुछ वैचारिक तौर पर समन्वय भी देखने को मिलता है. हालांकि, दक्षिणपंथ के लिए अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाना एक बुनियादी विरोधाभास है, क्योंकि लगभग सभी दक्षिणपंथी विचारधाराओं का मूल तत्व पेरोचियलिज़्म (स्थानीयतावाद) है. यह विरोधाभास उस समय और स्पष्ट हो गया, जब ट्रम्प ने अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद भारतीय अवैध प्रवासियों को अपमानित किया और उन्हें बंदी बना कर वापस भेज दिया. उन्होंने भारत को उच्च शुल्कों के साथ धमकी दी और इसे "टैरिफ का राजा" कहा. और इधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन तमाम अपमानों को न केवल स्वीकार किया, बल्कि अमरीकी ताकत के आगे चुप हो गए. असल में भाजपा के पास उस व्यक्ति पर हमला करने की भाषा ही नहीं है, जिसे उसने लंबी अवधि तक अपना आदर्श माना है.
सवाल यह है कि क्या पश्चिम को भारत के हिन्दुत्व की जरूरत भी है या नहीं? हिंदुत्व एक ऐसा आंदोलन है, जिसकी गहरी जड़ें भारत में हैं. भाजपा का मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, एक सदी पहले स्थापित हुआ था. भारतीय जनता पार्टी का पहला संस्करण जनसंघ 1951 में बना था. मोदी की राजनीति के पीछे दशकों का वैचारिक और संगठनात्मक काम है, जबकि पश्चिमी दक्षिणपंथ का हिंदुत्व की सफलता से कोई खास संबंध नहीं है और यदि वह भारत की सबसे बड़ी पार्टी को गले भी लगाता है, तो इससे उसे कोई ठोस लाभ मिलने की भी दूर-दूर तक संभावना नहीं है.
हिंदुत्व समर्थक भले ही पश्चिमी दक्षिणपंथ से प्रेरित होते हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें इनकी वास्तव में आवश्यकता है. पश्चिमी दक्षिण पंथ और भारतीय दक्षिण पंथ की राजनीति में बहुत कम समानताएं हैं, लेकिन जहां यह दोनों पक्ष मिलते हैं, वह है इस्लामोफोबिया. हिंदुत्व ने पश्चिमी दक्षिण पंथ की राजनीति से कथाएं उधार ली हैं, जो आतंकवाद के युद्ध के कारण पिछले दो दशकों से मुसलमानों को शैतान ठहरा रही हैं.
करना कुंभ को कैमरे में बंद : एक फोटोग्राफर से मिलिए जो 30 सालों से भारत के कुंभ मेले को कवर कर रहे हैं. संजय बनौधा, एक फोटोजर्नलिस्ट, 1990 के दशक से भारत के कुंभ मेले को कवर कर रहे हैं. इस साल 13 जनवरी से शुरू हुआ यह त्योहार बुधवार को समाप्त हो गया. दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम को कैप्चर करने की बनौधा की दशकों लंबी यात्रा में बहुत कुछ बदल गया है - भीड़ के बढ़ने से लेकर फोटोग्राफी की कला तक. उन्होंने बीबीसी को अपनी यादों और अनुभवों के बारे में बताया.
5,000 साल पहले सिंधु घाटी के किसानों ने जंगली सूअरों को पालतू बनाया था
एक आनुवांशिकी अध्ययन से पता चला है कि सिंधु घाटी सभ्यता के समय भारत के गंगा के मैदानों में रहने वाले किसानों ने जंगली सूअरों को पालतू बनाया — जिससे आज देश में पाई जाने वाली तीन विशिष्ट सूअर प्रजातियों में से एक का उदय हुआ. वैज्ञानिकों ने गंगा के मैदानों में लगभग 5,000 वर्ष पूर्व स्वतंत्र रूप से सूअरों को पालतू बनाने के प्रमाण पाए हैं. यह काम संभवतः उन्हीं किसानों द्वारा किया जाता था, जिन्होंने चावल की खेती शुरू की. बहरहाल, वैज्ञानिकों का यह शोध पहले के इस विचार को चुनौती देता है कि सूअर एशिया के अन्य हिस्सों से भारतीय उपमहाद्वीप में आए थे.उनके शोध से पता चलता है कि मध्य और उत्तरी भारत में सूअर गंगा के मैदानों में उनको पालतू बनाए जाने से उत्पन्न एक प्रजाति से संबंधित हैं, जबकि पूर्वोत्तर भारत में पाए जाने वाले सूअर दूसरी प्रजाति का हिस्सा हैं, जो चीन से उत्पन्न हुए हैं. निकोबार द्वीपों पर सूअर तीसरी प्रजाति का निर्माण करते हैं. इस शोध में और क्या-क्या है, इसे “द टेलीग्राफ” में जीएस मुडुर की रिपोर्ट में यहां पढ़ा जा सकता है.
काम-धंधे और सुनहरे भविष्य की खोज में विदेश जाने का मौका तलाशती पंजाब की औरतें
'इंडिया स्पेंड' की रिपोर्ट है कि पंजाब में महिलाओं के प्रवास के पैटर्न में हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण बदलाव आया है. जहां पहले पंजाब में विदेश जाने के मामले में पुरुष आगे थे, वहीं अब महिलाएं भी विदेशों में रोजगार के अवसरों की तलाश में बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं. पंजाब के दिल मोगा के एक स्लम में रहने वाली 22 साल की जसप्रीत, जो एक निजी अस्पताल में नर्स के रूप में काम करती हैं, सिंगापुर में भविष्य बनाने का सपना देखती हैं. वो अपनी चाची के दुबई में सफल अनुभव से प्रेरित होकर, विदेश में नौकरी को वित्तीय समृद्धि की दिशा में एक रास्ता मानती हैं. 'यहां 9 बजे से 7 बजे तक पूरे शिफ्ट काम करने के बावजूद मुझे केवल 7,000 रुपये [प्रति माह] मिलते हैं," वह बताती हैं. 'अगर मैं घर के काम करने वाली या देखभाल करने वाली के रूप में विदेश जाऊं, तो मुझे चार से पांच गुना ज्यादा मिल सकता है.' जसप्रीत ने अपनी यात्रा के लिए पैसे बचाने शुरू कर दिए हैं. एक स्थानीय एजेंट के अनुसार, इस प्रक्रिया में एजेंसी शुल्क और कार्य आवंटन शामिल है, जिसके लिए क्लाइंट को 1.5 से 2 लाख रुपये खर्च करने पड़ेंगे. 'मैंने थोड़े पैसे बचाए हैं, लेकिन मुझे और चाहिए,' जसप्रीत कहती हैं.
जसप्रीत की कहानी पंजाब के प्रवासन परिदृश्य में एक बड़े परिवर्तन को दर्शाती है. राज्य का प्रवासन इतिहास अच्छी तरह से दस्तावेजीकृत है, जिसमें 2016 से फरवरी 2021 के बीच लगभग दस लाख लोग पंजाब और चंडीगढ़ से बाहर गए. 2023 के एक अध्ययन में यह पता चला है कि पंजाब में विदेश जाने वाले परिवारों का अनुपात केरल के बाद दूसरा सबसे अधिक है. पंजाब में 13.34% ग्रामीण परिवारों का कम से कम एक सदस्य विदेश में रहता है. अध्ययन ने 640 परिवारों के 831 व्यक्तियों के प्रवासन पैटर्न का विश्लेषण किया, जिनमें से 247 (30%) महिलाएं थीं, लेकिन महिलाओं का प्रवासन बढ़ रहा है. जहां 70% पुरुषों ने 2016 से 2022 के बीच अन्य देशों में प्रवास किया था, वहीं 80% महिलाएं इन वर्षों में प्रवासित हुईं. कनाडा पंजाब की महिलाओं के लिए प्रमुख गंतव्य है, जहां 64% महिला प्रवासी जाती हैं, इसके बाद ऑस्ट्रेलिया का स्थान है (13%). इसके लिए अध्ययन वीजा मुख्य मार्ग था, जिसका 64.4% पंजाबी महिलाएं उपयोग करती हैं. ज्यादातर इसे कामकाजी परमिट और स्थायी निवास प्राप्त करने के रूप में इस्तेमाल करती हैं, न कि शिक्षा प्राप्त करने और वापस लौटने के साधन के रूप में. इसके बाद 15% महिलाएं वैवाहिक वीजा का उपयोग कर प्रवास करती हैं. इसके अलावा पंजाब में 'कॉन्ट्रैक्ट मैरिज' का भी चलन इधर बढ़ा है. महिलाएं अपने IELTS स्कोर या शिक्षा का उपयोग विदेश जाने के लिए करती हैं. हालांकि, इसमें धोखाधड़ी और शोषण की घटनाएं भी बढ़ी हैं और इससे निपटने के लिए पंजाब सरकार ने विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है.
एक उभरता हुआ रुझान यह भी है कि जसप्रीत जैसी कई महिलाएं, छोटे देशों में अवसरों की तलाश कर रही हैं. लगभग 9% पंजाबी महिलाएं दुबई, सिंगापुर, ओमान, कुवैत, बहरीन, दोहा, इराक, मस्कट, मलेशिया, सऊदी अरब, साइप्रस और अन्य देशों में प्रवास कर रही हैं. पंजाब से विदेश जाने के मामले में महिलाओं के सामने दो रास्ते खुलते हैं. पहला जो समृद्धि की ओर ले जाता है ओर दूसरा जहां शोषण और सुरक्षा को लेकर चिंताएं हैं.
मस्क की हरकतों का बदला टेस्ला कार से
'द गार्डियन' की खबर है इलोन मस्क के राजनीतिक दृष्टिकोण और व्यवहार से नाराज होकर, कई टेस्ला मालिक अब कंपनी से अपने संबंध तोड़ रहे हैं. मस्क के ट्रम्प को खुला समर्थन देने और शपथ ग्रहण समारोह के दौरान नाजी शैली का सलूट देने के बाद, कुछ लोग अपनी टेस्ला कारें बेच रहे हैं या लीज़ समाप्त कर रहे हैं.
जब इलोन मस्क ने 2019 में टेस्ला के "भविष्य के ट्रक" को पेश किया, तो फिलिपोस अपनी उत्तेजना को रोक नहीं पाए. उन्होंने जल्दी से $100 का भुगतान किया और वेटलिस्ट में अपना नाम डाला. फिलिपोस ने खुद को "एक सच्चे टेस्ला फैनबॉय" के रूप में बताया और साइबरट्रक वह तीसरी गाड़ी होगी, जिसे वह कंपनी से खरीदेंगे. फिलिपोस ने कहा कि जब साइबरट्रक आया, तो मैंने उस रात लाइव इवेंट देखा और मेरी पत्नी वहीं बैठी रही. उन्हें वो पसंद नहीं आया था, लेकिन फिलिपोस को वह विशाल ट्रैपेज़ॉइडल ट्रक बेहद पसंद आया. 'मैं सच में इसके बारे में उत्साहित था' उन्होंने कहा. हालांकि, अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं. फिलिपोस ने साइबरट्रक की बजाय फोर्ड F-150 लाइटनिंग खरीदी. इतना ही नहीं उन्होंने केवल 30,000 मील चली टेस्ला कार को भी बेच दिया है. पिछले कुछ महीनों में फिलिपोस में निराशा बढ़ रही थी, लेकिन निर्णायक पल तब आया, जब मस्क ने जनवरी में डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह में नाजी शैली का सलूट दिया.
टेस्ला के स्टॉक भी बिक रहे हैं. इनमें से कई लोगों का मानना है कि मस्क का रवैया उनके व्यक्तिगत विचारों से मेल नहीं खाता, खासकर जब वह नफरत और अत्याचार से जुड़े प्रतीकों का समर्थन करते हैं. इन विरोधों के बीच, टेस्ला की बिक्री में गिरावट देखी जा रही है और कंपनी के स्टॉक की कीमत भी घट रही है.
फिलिपोस ने टेस्ला से नाता तोड़ते हुए कहा- 'मैं ऐसा वाहन नहीं रखना चाहता था जो इतनी घिनौनी चीज़ से जुड़ा हुआ हो. जब आप ऐसा वाहन रखते हैं, तो आप उस कंपनी का प्रचार कर रहे होते हैं.' फिलिपोस जैसे कई ग्राहकों ने पिछले दिनों टेस्ला से नाता तोड़ दिया है. टेस्ला की बिक्री में पिछले साल गिरावट आई है. कैलिफोर्निया में जो इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सबसे बड़ा अमेरिकी बाजार है, वहां बिक्री 12% घट गई है और नए टेस्ला वाहनों की रजिस्ट्रेशन में 11.6% की गिरावट आई है, जबकि राज्य में कुल इलेक्ट्रिक वाहन रजिस्ट्रेशन में इस बीच वृद्धि हुई है.
ऑस्कर अवार्ड 2025 :
सेक्स कर्मियों पर बनी फिल्म ने 5 अवार्ड जीते
97वें अकादमी अवार्ड्स का समापन हो चुका है. यह समारोह हर साल एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेस (AMPAS) द्वारा आयोजित किया जाता है और इस वर्ष के समारोह में 23 श्रेणियों में शानदार उपलब्धियों को सम्मानित किया. इस बार कॉमेडियन कोनन ओ'ब्रायन ने मेज़बान के रूप में अपनी शुरुआत की और 2025 का ऑस्कर समारोह एक भव्य शो बन गया. एमीला पेरेज़ ने इस साल 13 नामांकनों के साथ प्रमुख स्थान प्राप्त किया था, जिसमें बेस्ट पिक्चर और बेस्ट डायरेक्टर भी शामिल थे, लेकिन निर्देशक शॉन बेकर की रोमांटिक कॉमेडी-ड्रामा फिल्म 'अनोरा' समारोह की सबसे बड़ी फिल्म बनकर छा गई. फिल्म ने पांच अवार्ड्स जीते हैं, जिनमें बेस्ट पिक्चर, बेस्ट एक्ट्रेस (मिकी मैडिसन), बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट फिल्म एडिटिंग और बेस्ट ओरिजिनल स्क्रीनप्ले शामिल है. एड्रियन ब्रॉडी ने बेस्ट एक्टर इन लीडिंग रोल का ऑस्कर जीता. उन्होंने ब्रैडी कॉर्बेट की 'द ब्रूटलिस्ट' में लास्ज़लो तोथ का किरदार निभाया था.
'अनोरा' एक सेक्स वर्कर की कहानी है, जो एक रूसी ओलिगार्क के बेटे से शादी करती है. 'अनोरा' पिछले साल कान्स फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर हुई थी और यह चौथी Palme d'Or जीतने वाली फिल्म भी थी, जिसने बेस्ट पिक्चर का ऑस्कर जीता. फिल्म के निर्देशक शॉन बेकर ने निर्देशक, फिल्म संपादन और ओरिजिनल स्क्रीनप्ले के लिए ऑस्कर जीते. उन्होंने अपनी पहली स्पीच में सेक्स वर्कर समुदाय को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा, “उन्होंने अपनी कहानियाँ साझा की हैं, वे सालों से अपनी जीवन अनुभवों को साझा करते आए हैं, मैं उनका सबसे गहरा सम्मान करता हूं और इसे उनके साथ साझा करता हूं.” वह पहले व्यक्ति बने हैं जिन्होंने एक ही फिल्म के लिए एक रात में चार ऑस्कर जीते.
मिकी मैडिसन, जिन्होंने बेस्ट एक्ट्रेस का ऑस्कर जीता, उन्होंने अपनी स्पीच में इसे “बहुत असल” बताया. “मैं सेक्स वर्कर समुदाय को भी पहचानना और सम्मानित करना चाहती हूं,” उन्होंने कहा. उन्होंने डेमी मूर को हराया, जो 'द सब्सटेंस' के लिए फेवरेट मानी जा रही थीं. हालांकि 'कॉन्क्लेव', जिसे बाफ्टा और स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड अवार्ड्स में बड़ी जीत के बाद बेस्ट पिक्चर के लिए सबसे कड़ी प्रतिस्पर्धा माना जा रहा था, केवल बेस्ट अडैप्टेड स्क्रीनप्ले का ऑस्कर जीत सकी.
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