04/04/2025 : ममता का वाटरलू | ट्रम्प के टैरिफ का अर्थात | वक़्फ़ बिल पर बीजद पलटा | परिसीमन का फायदा भाजपा को | ख़ुदकुशियां 44% बढ़ीं | इंडिया को यशवंत की समझाइश | बैठता हुआ बॉक्स ऑफिस
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां:
अधजले नोट; सुप्रीम कोर्ट के जज संपत्ति का विवरण सार्वजनिक करेंगे
युनूस-मोदी मुलाकात की संभावना
ओबीसी क्रीमी लेयर की आय सीमा बढ़ाने की सिफारिश
चीन हमारे 4 हजार वर्ग किमी दबाए बैठा है, और आप चीनी राजदूत के साथ केक काट रहे हैं
उत्पादन बढ़ा पर किसान अभी भी संकट में, फिर उतरेंगे आंदोलन की राह पर
तेलंगाना : कांचा गाचीबोवली में पेड़ कटाई पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, बोला- मुख्य सचिव को भेजा जाएगा जेल, छात्र भूख हड़ताल पर बैठे
सुप्रीम कोर्ट का पटाखों पर प्रतिबंध में ढील देने से किया इनकार
रात के 2 बजे वक़्फ़ बिल पास होने के बाद स्पीकर ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन पर कराई चर्चा, विपक्ष हैरान
27,753 शिक्षाकर्मियों की भर्ती रद्द होना ममता का वाटरलू होगा या वह इससे बच निकलेंगी?
बंगाल एसएससी घोटाले में 25,753 शिक्षकों और कर्मचारियों की नियुक्तियां रद्द होने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए एक गंभीर राजनीतिक संकट पैदा कर दिया है. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए 2016 में स्कूल सर्विस कमीशन (एसएससी) के माध्यम से की गई इन नियुक्तियों को "दूषित" और "धोखाधड़ी" पर आधारित बताया.
"पूरी चयन प्रक्रिया दूषित" : मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा, "हमारी राय में यह मामला ऐसा है जहां पूरी चयन प्रक्रिया दूषित हो गई है. बड़े पैमाने पर हेरफेर और धोखाधड़ी, साथ ही इसे छिपाने के इरादे ने चयन प्रक्रिया को मरम्मत से परे दूषित कर दिया है."
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि नियुक्त किए गए उम्मीदवारों को वेतन और अन्य भत्ते वापस करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं. "दूषित" पाए गए उम्मीदवारों को नई चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति नहीं होगी.
ममता का प्रतिरोध :मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फैसले से असहमति जताई है. उन्होंने कहा, "इस देश के एक नागरिक के रूप में, मेरे पास एक राय रखने का हर अधिकार है. मैं न्यायाधीश और न्यायपालिका का सम्मान करती हूं, लेकिन मैं फैसले से सहमत नहीं हो सकती."
विपक्ष का हमला : इस फैसले के बाद विपक्षी दलों ने ममता बनर्जी पर हमले तेज कर दिए हैं. भाजपा राज्य अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, "मुख्यमंत्री जिम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने अपने पार्टी सदस्यों को, जिन्होंने रिश्वत ली, अयोग्य व्यक्तियों को नौकरियां देने की अनुमति दी. इन पार्टी नेताओं को बचाने के लिए, जिन्होंने पैसे लिए, उन्होंने योग्य उम्मीदवारों का बलिदान किया जिन्होंने मेहनत की, पढ़ाई की और सही मायने में अपनी नौकरियां अर्जित कीं." बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी के इस्तीफे और गिरफ्तारी की मांग की. उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने एसएससी को अनुचित तरीकों से नियुक्तियां पाने वाले उम्मीदवारों की पहचान करने के लिए पर्याप्त समय दिया था. इस भ्रष्ट सरकार ने अयोग्य उम्मीदवारों को बचाने के लिए अतिरिक्त पद बनाए. योग्य उम्मीदवारों का बलिदान अयोग्य लोगों को बचाने के लिए किया गया है जो पैसे लेकर आए थे." कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया कि सरकार ने कोर्ट को दस्तावेज नहीं दिए, ताकि दोषियों को बचाया जा सके. मार्क्सवादी नेता बिकाश रंजन भट्टाचार्य ने कहा, "जब पूरी प्रक्रिया धांधली है, तो किसी को निर्दोष नहीं माना जा सकता." पार्टी के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने शिक्षा व्यवस्था पर संकट की आशंका जताई.
हजारों शिक्षकों का दर्द
इस फैसले ने हजारों शिक्षकों और उनके परिवारों के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है. मुर्शिदाबाद के अफ्तर अली, जिन्होंने 2016 में बिना कोई रिश्वत दिए इस नौकरी को हासिल किया था, ने कहा, "हमें सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा था कि वह योग्य लोगों को बनाए रखेगा और अयोग्य लोगों को हटा देगा. लेकिन भले ही उन्होंने फैसला दिया है कि हम योग्य हैं, फिर भी उन्होंने हमारी नौकरियां छीन ली हैं. यह न्याय कैसे है?"
सागर मंडल, जो सात साल से शिक्षक के रूप में काम कर रहे थे, ने कहा, "मेरे पास प्रथम श्रेणी की बीए, प्रथम श्रेणी की एमए और प्रथम श्रेणी की बीएड है. भ्रष्टाचार के बावजूद, मैंने पढ़ाई की, मेहनत की और योग्यता से परीक्षा पास की. और फिर भी, एक झटके में, सब कुछ खत्म हो गया."
क्या होगा अब? : 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले यह फैसला तृणमूल कांग्रेस के लिए एक बड़ा राजनीतिक झटका है. पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी पहले से ही जेल में हैं, और अब इस मामले ने पूरी सरकार की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं. विश्लेषकों का मानना है कि इस फैसले के राजनीतिक प्रभाव दूरगामी हो सकते हैं. शिक्षा क्षेत्र में व्यापक भ्रष्टाचार के आरोप बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के शासन के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकते हैं. विपक्षी दलों को अब अपने चुनावी अभियान के लिए एक मजबूत मुद्दा मिल गया है. हालांकि, ममता बनर्जी के पास अभी भी अपने राजनीतिक करिश्मे और जनता के बीच लोकप्रियता के साथ इस संकट से उबरने का मौका है. उनकी रणनीति अब इस मुद्दे को कैसे संभालती है, यह देखने वाली बात होगी. राज्य सरकार को अब एक नई और पारदर्शी चयन प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर इस प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया है. इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ा सवाल यह है : क्या यह ममता बनर्जी के राजनीतिक करियर का वाटरलू साबित होगा, या वह अपनी राजनीतिक चतुराई से इस संकट से भी बाहर निकल आएंगी? आने वाले महीने इसका जवाब देंगे.
यूपी को तो 4,500 करोड़ दिए, लेकिन केरल, तमिलनाडु और बंगाल को धेला नहीं
पिछले वर्ष केंद्रीय सरकार की 37,000 करोड़ रुपये की समग्र शिक्षा अभियान (SSA) योजना के तहत केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल को कोई धनराशि नहीं मिली, जबकि उत्तरप्रदेश को 4,487 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. यह असमानता राज्यसभा में प्रस्तुत सरकारी आंकड़ों से सामने आई, जिसने शिक्षा निधियों के वितरण में संभावित राजनीतिक पक्षपात पर चिंताएं बढ़ा दी हैं. केरल से राज्यसभा सांसद डॉ. जॉन ब्रिटास ने यह आंकड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म “एक्स” पर साझा किए हैं. बता दें, उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार है और बाकी तीनों राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं. इस अकेली योजना से पता चलता है कि गैर भाजपा शासित राज्यों को राशि आवंटित करने में केंद्र का रवैया क्या है? तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी केंद्र सरकार पर पक्षपात करने का आरोप लगाते रहे हैं.
5 सवालों से समझिए ट्रम्प के टैरिफ वॉर का असर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में कई देशों, जिनमें भारत भी शामिल है, पर नए टैरिफ की घोषणा की है. इस कदम से वैश्विक व्यापार संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ने की संभावना है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत की पहले से धीमी गति से बढ़ रही अर्थव्यवस्था पर इस कदम का नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को ब्याज दरों में और कटौती करनी पड़ सकती है. मॉर्गन स्टेनली के अनुसार आर्थिक विकास दबाव में है, इसलिए आरबीआई रेपो रेट को 5% तक कम कर सकता है. 2022 में, केवल 13.4% वैश्विक व्यापार अमेरिका के साथ हुआ, जबकि 87% निर्यात अन्य देशों के बीच हुआ. भारत, चीन और ईयू का केवल 15-20% निर्यात ही अमेरिका जाता है. 87% वैश्विक व्यापार अमेरिका से बाहर होता है. ऐसे में भारत को यूरोप, आसियान और अफ्रीका के साथ संबंध मजबूत करने की जरूरत है.
'ब्लूमबर्ग' के लिए श्रुति श्रीवास्तव और रुचि भाटिया लिखती हैं कि अमेरिका द्वारा भारत से होने वाले आयात पर 26% टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता को तेजी से आगे बढ़ाने का दबाव बढ़ गया है. अमेरिकी आयात पर 26% टैरिफ की घोषणा मोदी सरकार के लिए एक झटका साबित हुआ, जिसने पहले ही ट्रंप की व्यापार और आव्रजन नीतियों को लेकर कई रियायतें दी थीं. आइए समझें इस नीति के प्रमुख पहलू और इसके संभावित परिणाम.
प्रश्न 1 : ट्रम्प ने भारत पर कितना टैरिफ लगाया है और इसका क्या कारण बताया गया?
उत्तर : ट्रम्प ने भारत से आयात पर 26% टैरिफ लगाने की घोषणा की है. उन्होंने कहा, "भारत बहुत मुश्किल देश है. प्रधानमंत्री मोदी मेरे अच्छे मित्र हैं, लेकिन आप हमें सही तरीके से व्यवहार नहीं कर रहे हैं. वे हमसे 52% टैरिफ वसूलते हैं." ट्रम्प का मानना है कि अमेरिका को "नज़दीकी और दूरस्थ देशों, दोस्तों और दुश्मनों द्वारा लूटा और शोषित किया गया है."
प्रश्न 2 : इस टैरिफ से भारत के किन क्षेत्रों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर : सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल हैं : रत्न और आभूषण (₹9.9 बिलियन का निर्यात), इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटो पार्ट्स, कृषि उत्पाद (झींगा, बासमती चावल और बफ़ेलो मीट). इंजीनियरिंग सामान जैसे ऑटो पार्ट्स, बिजली उपकरण और औद्योगिक मशीनरी भी प्रभावित होंगे, जो अमेरिका को भारत का सबसे बड़ा निर्यात क्षेत्र है. अर्थशास्त्रियों के अनुसार, भारत से अमेरिका को निर्यात में $30-33 बिलियन (GDP का 0.8-0.9%) की गिरावट आ सकती है.
प्रश्न 3 : क्या इस टैरिफ से भारत को कोई फायदा भी हो सकता है?
उत्तर: हां, कुछ संभावित फायदे हो सकते हैं. भारत पर 26% टैरिफ अन्य प्रतिस्पर्धी देशों से कम है - चीन पर 54% और वियतनाम पर 46% टैरिफ लगाया गया है. यह टेक्सटाइल और गारमेंट जैसे क्षेत्रों में भारत को तुलनात्मक लाभ दे सकता है. इसके अलावा, यह भारत को एशिया, यूरोप और अन्य बाजारों में नई संभावनाएं तलाशने का अवसर प्रदान करता है. भारत का यूरोपीय यूनियन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट अंतिम दौर में है, जिससे ट्रेड वॉल्यूम बढ़ाकर अमेरिकी बाजार के नुकसान की भरपाई की जा सकती है.
प्रश्न 4 : भारत सरकार ने इस टैरिफ पर क्या प्रतिक्रिया दी है?
उत्तर : भारतीय वाणिज्य मंत्रालय ने एक संतुलित प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने के लिए बातचीत जारी है. मंत्रालय ने बयान जारी किया : "भारतीय और अमेरिकी व्यापार दलों के बीच एक बहुपक्षीय व्यापार समझौते को शीघ्रता से अंतिम रूप देने के लिए चर्चा जारी है. हम इन मुद्दों पर ट्रम्प प्रशासन के साथ संपर्क में हैं और आने वाले दिनों में इसे आगे ले जाने की उम्मीद करते हैं." भारत पहले ही अपने टैरिफ ढांचे में कई बदलाव कर चुका है, जिसमें 8,500 औद्योगिक वस्तुओं पर आयात शुल्क में कटौती और बोर्बन व्हिस्की और हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिलों पर शुल्क घटाना शामिल है.
प्रश्न 5 : इस टैरिफ का वैश्विक व्यापार पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
उत्तर : अमेरिका के इस कदम से वैश्विक व्यापार में उथल-पुथल मच सकती है. यूरोपीय संघ, जापान, ऑस्ट्रेलिया और चीन जैसे देश जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं, जिससे व्यापार युद्ध भड़क सकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अमेरिका वैश्विक व्यापार प्रणाली से अलग-थलग पड़ सकता है, जिसे स्वयं उसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित किया था. इस स्थिति का फायदा उठाकर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत करने का प्रयास कर सकते हैं. 2022 में, केवल 13.4% वैश्विक व्यापार अमेरिका के साथ हुआ, जबकि 87% निर्यात अन्य देशों के बीच हुआ. यह स्थिति भारत को यूरोप, आसियान और अफ्रीका के साथ अपने संबंध मजबूत करने का अवसर प्रदान करती है.
पाठकों से अपील
चीन के लिए बाज़ार, रसूख बढ़ाने का सुनहरा मौका
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हाल ही में घोषित व्यापक टैरिफ ने वैश्विक व्यापार में हलचल मचा दी है. जहां एक ओर इससे चीन की अर्थव्यवस्था को झटका लगेगा, वहीं दूसरी ओर यह शी जिनपिंग के लिए एक अभूतपूर्व अवसर लेकर आया है. ट्रम्प के "लिबरेशन डे" के तहत, अमेरिका ने न केवल चीन पर 54% का टैरिफ लगाया है, बल्कि जापान, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे अपने पारंपरिक मित्रों पर भी 24% तक के टैरिफ लगाए हैं. ‘ब्लूमबर्ग’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में शंघाई के एमलियॉन बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर फ्रैंक त्साई का मानना है, "यह कदम अमेरिका को विश्व से अलग-थलग कर देगा, क्योंकि अब अन्य देश आपस में व्यापार करने को प्रोत्साहित होंगे. चीन के पास अमेरिका को उसी के खेल में हराने का सुनहरा अवसर है."
बीजिंग स्थित सेंटर फॉर चाइना एंड ग्लोबलाइज़ेशन के हेनरी वांग हुईयाओ का कहना है कि इससे विश्व की 80% अर्थव्यवस्था एक-दूसरे के साथ व्यापार को बढ़ावा देगी और अमेरिका पीछे छूट जाएगा. हालांकि यूरोपीय संघ चीन को लेकर सतर्क है, विशेषकर रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ शी के संबंधों को देखते हुए, फिर भी ट्रम्प के टैरिफ के कारण कई यूरोपीय नेता चीन के प्रति अधिक उदार रुख अपना सकते हैं. शी जिनपिंग को इस महीने कंबोडिया, वियतनाम और मलेशिया की यात्रा के दौरान इस स्थिति का लाभ उठाने का मौका मिलेगा - जो देश ट्रम्प के टैरिफ से सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प का असली निशाना चीन है, और वे चीनी निवेश वाले देशों को प्रभावित कर चीन की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं. पर इससे अमेरिका स्वयं उस वैश्विक व्यापार प्रणाली से अलग-थलग पड़ सकता है, जिसे उसने ही द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित किया था.
वक़्फ़ बिल राज्यसभा में
बिल के खिलाफ बीजद का वोट बाद में अंतरात्मा का सवाल बन गया, रास में भी आसानी से पास
लोकसभा में मध्यरात्रि मतदान के माध्यम से वक्फ (संशोधन) विधेयक पारित करवाने के बाद सरकार ने इसे गुरुवार को राज्यसभा में पेश किया और दोहराया कि मुसलमानों के अधिकार छीनने का उसका कोई इरादा नहीं है. जबकि, विपक्षी दलों ने सरकार पर मुसलमानों को निशाना बनाने का आरोप लगाया. कहा कि यह विधेयक “बुलडोज़र” के लिए “कानूनी आवरण” है. इस बीच विपक्ष में एक दरार दिखाई दी. बीजू जनता दल (बीजेडी) जिसने पहले विधेयक के खिलाफ मतदान करने की बात कही थी, लेकिन पार्टी ने कोई व्हिप जारी नहीं किया. बल्कि, उसने यह स्पष्ट कर दिया कि उसके सदस्य मतदान से कुछ घंटे पहले “अपने विवेक का प्रयोग” कर सकते हैं. 13 घंटे से भी ज्यादा चली बहस के बाद राज्यसभा ने भी मध्य रात्रि 2.33 बजे विधेयक पास कर दिया. विधेयक के पक्ष में 128 और विरोध में 95 वोट पड़े.
इसके पहले, राज्यसभा में विधेयक पेश करते हुए केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि यह "समावेशी" कानून मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाने और सभी मुस्लिम संप्रदायों के अधिकारों की रक्षा करने का लक्ष्य रखता है. उन्होंने कहा, "वक़्फ़ संपत्तियों का प्रबंधन, निर्माण मुसलमानों द्वारा किया जाएगा और लाभार्थी भी मुसलमान ही होंगे. वाक़िफ़ और मुतवल्ली मुसलमान होंगे. इन मामलों में गैर-मुसलमानों की भागीदारी का कोई सवाल ही नहीं है. इस विधेयक का उद्देश्य पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता' लाना है. इसका धर्म से कोई संबंध नहीं है, बल्कि यह केवल संपत्तियों से संबंधित है.”
नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि वक़्फ़ विधेयक के बारे में देश भर में यह माहौल बना है कि अल्पसंख्यकों को तंग करने के लिए यह बिल लाया गया है. कांग्रेस के कर्नाटक से सांसद सैयद नसीर हुसैन ने विपक्ष की ओर से बहस की शुरुआत करते हुए विधेयक की आलोचना की और इसे “मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का प्रयास” बताया. उन्होंने कहा, “हर कोई जानता है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होने पर किसे फायदा होता है.” तृणमूल कांग्रेस के मोहम्मद नदीमुल इस्लाम ने भी यही सवाल उठाया और कहा : 'क्या मुसलमानों को यह साबित करने के लिए पंजीकरण करना होगा कि वे मुसलमान हैं?' सीपीआई (एम) के जॉन ब्रिटास ने पूछा कि क्या 'घर वापसी' में रुचि रखने वाली सरकार नए परिवर्तित हिंदू को हिंदू मानने के लिए समान शर्तें लगाएगी?"
आरजेडी के मनोज झा ने मुस्लिम समुदाय को हाशिए पर डालने के एक सुनियोजित प्रयास का आरोप लगाया और पूछा कि क्या यह विधेयक "बुलडोजर" के लिए एक "कानूनी आवरण" है?
वक़्फ़ बिल पास होते ही यूपी पुलिस ने सभी की छुट्टियां रद्द कीं : लोकसभा में देर रात के सत्र में वक़्फ़ संशोधन विधेयक पास होने के तुरंत बाद, उत्तर प्रदेश पुलिस ने राजपत्रित या अन्य अधिकारियों की सभी छुट्टियां रद्द कर दीं. यह कदम ‘किसी भी अशांति को रोकने और पुलिस बल को हाई अलर्ट पर रखने के लिए एहतियाती उपाय के तहत उठाया गया है.
अधजले नोट ; सुप्रीम कोर्ट के जज संपत्ति का विवरण सार्वजनिक करेंगे
भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट के सभी 33 वर्तमान न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से अपने संपत्ति विवरण को सार्वजनिक रूप से प्रकट करने का निर्णय लिया है. यह विवरण सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाएगा. सोमवार को हुई एक बैठक में लिया गया यह निर्णय मौजूदा प्रथा में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है. अब तक संपत्ति घोषणाएं न्यायाधीशों की इच्छानुसार होती थीं. सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार "न्यायाधीशों को पद ग्रहण करते समय और जब भी किसी महत्वपूर्ण प्रकृति की संपत्ति का अधिग्रहण किया जाए, तो अपनी संपत्ति की घोषणा करनी चाहिए." माना जा रहा है कि यह निर्णय दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आवास पर कथित तौर रूप से मिले अधजले करोड़ों नोटों की घटना के प्रकाश में लिया गया है.
ओबीसी क्रीमी लेयर की आय सीमा बढ़ाने की सिफारिश
संसद की अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कल्याण समिति ने मंगलवार (1 अप्रैल, 2025) को कहा कि "क्रीमी लेयर" के लिए निर्धारित ₹8 लाख की आय सीमा को बढ़ाना "समय की मांग" है. भाजपा सांसद गणेश सिंह की अध्यक्षता वाली इस समिति ने लोकसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि सात साल पहले निर्धारित यह सीमा "कम" है और केवल "पिछड़े वर्गों के एक छोटे से वर्ग" को ही कवर करती है.
समिति ने केंद्र सरकार से सभी हितधारकों से परामर्श के बाद "काफी ऊंची आय सीमा" तय करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की सिफारिश की है, ताकि "पिछड़े वर्गों के अधिक से अधिक लोग OBC के लिए आरक्षण नीति और सरकार की विभिन्न चल रही कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकें."
समिति ने ओबीसी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति हेतु वर्तमान में निर्धारित ₹2.5 लाख की आय सीमा में "उचित वृद्धि" की भी सिफारिश की है. पैनल ने प्री और पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति के लाभार्थियों के लिए आय सीमा को दोगुना करने के लिए कहा है. इसके अलावा, समिति ने यह भी कहा कि यह समझ से परे है कि OBC के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति केवल कक्षा IX और X के लिए क्यों दी जा रही है, और सिफारिश की है कि छात्रवृत्ति कक्षा V से शुरू होनी चाहिए. रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि सरकार नौकरी कोटा कार्यान्वयन पर डेटा को वार्षिक रिपोर्ट में शामिल करे और वेबसाइट पर अपलोड करे, जिससे पारदर्शिता आएगी.
चीन हमारे 4 हजार वर्ग किमी दबाए बैठा है, और आप चीनी राजदूत के साथ केक काट रहे हैं
लोकसभा में गुरुवार को केंद्र सरकार पर चीन के साथ सीमा विवाद और “सहयोगी” अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ पर सवाल किये गए. विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भारत-चीन के राजनयिक रिश्तों को लेकर सरकार को घेरा. शून्यकाल में यह मुद्दा उठाते आरोप लगाया- यह ज्ञात तथ्य है कि चीन हमारे 4 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्जा जमाए बैठा है, लेकिन मुझे यह देखकर झटका लगा कि हमारे विदेश सचिव चीनी राजदूत के साथ केक काट रहे थे. “मैं जानना चाहता हूं कि सरकार इस चीनी कब्जे पर क्या कर रही है? गलवान घाटी में हमारे 20 जवान शहीद हो गए, और उनकी शहादत पर केक काटकर जश्न मनाया जा रहा है,” नेता विपक्ष राहुल गांधी ने कहा. सरकार की विदेश नीति पर सवाल खड़े करते हुए राहुल ने कहा- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, दोनों ने चीनी सरकार को पत्र लिखा और भारत के लोगों को इसके बारे में चीनी राजदूत से पता चला. हम सामान्य स्थिति के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इससे पहले “यथास्थिति” होना चाहिए. हमें अपनी जमीन वापस लेना चाहिए. विदेश नीति बाहरी देशों को संभालने के बारे में है...एक तरफ चीन को आपने जमीन दे दी, वहीं दूसरी ओर अचानक हमारे “सहयोगी” ने हम पर टैरिफ लगा दिया. यह हमारी अर्थव्यवस्था को तबाह कर देगा. इससे हमारे देश की फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल और कृषि इंडस्ट्री दांव पर है. जैसा कि अब तक होता आया है, सत्ता पक्ष की तरफ से अनुराग ठाकुर ने कहा कि राहुल गांधी द्वारा बताए गए सभी गलत कार्य नेहरू की नीतियों और उनके समय के दौरान हुए.
राजनीति
एसी दफ्तरों से बाहर निकल सकें तो बच सकता है इंडिया गठबंधन, यशवंत सिन्हा ने बताई रणनीति
भारत के पूर्व वित्त और विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा, ने इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्लूसिव अलायंस) गठबंधन के लिए एक व्यापक कार्य योजना प्रस्तुत की है. उनका मानना है कि देश अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है, जहां "अंधकार की शक्तियां" फिर से उभर रही हैं. वे पूर्व में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और अब तृणमूल कांग्रेस के नेता रहे है. विपक्ष ने उन्हें 2022 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया था.
सिन्हा का कहना है कि 2023 में बड़े उत्साह के साथ गठित इंडिया गठबंधन ने 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को कड़ी टक्कर दी. भाजपा ने 63 सीटें गंवाईं और उसका आंकड़ा 303 से घटकर 240 हो गया, जो बहुमत से 32 कम है. सिन्हा का कहना है कि 20 और सीटों के नुकसान से मोदी निश्चित रूप से पद से बाहर हो जाते, लेकिन नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन से वे बच गए.
सिन्हा के अनुसार, कांग्रेस ने पर्याप्त सीटें (99) जीतीं, जिससे राहुल गांधी को विपक्ष के नेता के रूप में औपचारिक मान्यता मिली. लेकिन तब से, भाजपा ने कई राज्य स्तरीय चुनाव जीते हैं और अपनी पकड़ मजबूत की है. उनका मानना है कि मोदी ने "सांप्रदायिकता फैलाने, संस्थाओं को नष्ट करने और लोकतंत्र का गला घोंटने" जैसी अपनी पुरानी कार्यशैली को फिर से अपना लिया है.
सिन्हा का कहना है कि इंडिया गठबंधन को निम्नलिखित कार्य करने चाहिए:
विचारधारात्मक स्पष्टता और दृष्टि : गठबंधन को घर के अंदर और बाहर के बुद्धिजीवियों की एक समिति स्थापित करनी चाहिए जो भारत के लिए एक विज़न डाक्यूमेंट तैयार करे, जिसमें मूल्यों का एक वैकल्पिक सेट और भाजपा की विभाजनकारी राजनीति का मुकाबला करने के लिए एक कार्ययोजना शामिल हो.
संगठनात्मक ढांचा : गठबंधन को सभी गठबंधन पार्टियों के प्रमुखों से युक्त एक "समानता समिति" स्थापित करनी चाहिए. यह छोटे-छोटे झगड़ों को दूर करेगा और सर्वोच्च नीति-निर्माण निकाय के रूप में काम करेगा.
संचालन समिति : समिति के तहत, प्रत्येक गठबंधन पार्टी से एक महत्वपूर्ण नेता से युक्त एक "अधिकृत संचालन समिति" होनी चाहिए जो कम से कम महीने में एक बार या आवश्यकतानुसार अधिक बार मिल सके.
मजबूत सचिवालय : गठबंधन को तुरंत एक महासचिव के नेतृत्व में एक मजबूत सचिवालय स्थापित करना चाहिए. राज्य, जिला और निचले स्तरों पर भी यही फॉर्मूला अपनाया जाना चाहिए.
आम सहमति : सिन्हा बताते हैं कि 1989 में जनता दल का गठन आम सहमति के आधार पर हुआ था और यह तब तक चला जब तक आम सहमति कायम रही. वे इंडिया गठबंधन के लिए भी यही सलाह देते हैं.
आंदोलन बनना : सिन्हा का मानना है कि इंडिया को केवल राजनीतिक दलों का गठबंधन नहीं, बल्कि एक आंदोलन बनना चाहिए. "ट्विटर अकेले काम नहीं करेगा. नेताओं को उन मुद्दों के साथ सड़कों पर उतरना चाहिए जो लोगों को प्रभावित करते हैं. आवश्यक हो तो उन्हें जेल भी जाना चाहिए. एसी दफ्तरों में बैठने के दिन अब समाप्त हो गए हैं." सिन्हा का कहना है : "अब काम करना होगा या हमेशा के लिए अभिशप्त हों."
डेटा जर्नलिज्म
परिसीमन का असर सिर्फ उत्तर - दक्षिण दरार नहीं, बल्कि भाजपा को सीधे सीटों का फायदा
परिसीमन को लेकर चिंता केवल दक्षिण प्रायद्वीप के राज्यों से उत्तर के राज्यों की ओर राजनीतिक शक्ति के संभावित स्थानांतरण के बारे में नहीं है. लोकसभा क्षेत्रों का अंतर-राज्य परिसीमन भी गैर-भाजपा दलों से भाजपा की ओर शक्ति के बदलाव का कारण बन सकता है.
विश्लेषण बताता है कि अगर 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य सीमाओं के पार लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन किया जाता, तो भाजपा को 2019 में 14 अतिरिक्त सीटें और 2024 में 6 अतिरिक्त सीटें मिल सकती थीं, जबकि मतदान प्रतिशत वही रहता.
द हिंदू में किये गये डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि परिसीमन होने पर तमिलनाडु की सांसद संख्या 39 से घटकर 32, केरल की 20 से 15, और कर्नाटक की 28 से 27 हो जाएगी. इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश की संख्या 80 से बढ़कर 88, बिहार की 40 से 46, राजस्थान की 25 से 30 और मध्य प्रदेश की 29 से 32 हो जाएगी. आप इसके ग्राफिक्स इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं.
2019 और 2024 के वास्तविक मतदान और सीटों के आधार पर परिसीमन के बाद प्रत्येक राज्य की लोकसभा सीटों का अनुमान बताता है कि भाजपा को मिलने वाली सभी अतिरिक्त सीटें उसके प्रमुख गढ़ों - उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, झारखंड और हरियाणा में होंगी. वहीं कर्नाटक, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल में कुल सीटों की कमी से वह मामूली रूप से प्रभावित हो सकती है.
इसका मतलब है कि परिसीमन दो व्यापक राजनीतिक प्रवृत्तियों को मजबूत करेगा - राष्ट्रीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका का कम होना और दक्षिणी राज्यों की भूमिका का कम होना. भाजपा राष्ट्रीय वर्चस्व के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करेगी, लेकिन हृदय क्षेत्र में केंद्रित समर्थन के साथ.
इसलिए भाजपा के पास संवैधानिक योजना को बाधित न करने का प्रोत्साहन है, जिसके लिए 2026 के बाद पहली जनगणना के बाद परिसीमन की आवश्यकता है. लेकिन यदि भाजपा सोचती है कि दक्षिणी राज्यों और पंजाब को इस मुद्दे पर आश्वस्त करना और अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए इस अवसर का उपयोग करना बुद्धिमानी है, तो उसका मार्ग अलग हो सकता है.
विपक्ष के लिए, इन संख्याओं का मतलब है कि भाजपा के खिलाफ उनकी लड़ाई हृदय क्षेत्र के राज्यों में है. यदि राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में भाजपा का विरोध कमजोर है, तो कम राज्यों से लोकसभा में बहुमत जीतने की भाजपा की क्षमता बढ़ जाएगी.
तालिका 2A और 2B 2024 और 2019 में इंडिया गठबंधन और एनडीए द्वारा जीती गई सीटों की संख्या दिखाती हैं, और यह भी दिखाती हैं कि अगर 2011 जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जाता तो क्या होता. अगर राष्ट्रीय एकता को कमजोर नहीं करना है, तो संसद में बहुमत और अल्पसंख्यक की संख्या भौगोलिक और सामाजिक रूप से अधिक समान रूप से वितरित होनी चाहिए.
मानसिक स्वास्थ्य
4 साल में 44% बढ़ीं भारत में आत्महत्याएं
भारत में 2018 से 2022 के बीच मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी आत्महत्याओं में 44% की वृद्धि हुई है, जैसा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े दर्शाते हैं. इन आत्महत्याओं में से तीन में से दो 18 से 45 वर्ष की आयु वर्ग में दर्ज की गईं. इंडिया स्पेंड के लिए विजय जाधव ने भारत में बढ़ती आत्महत्याओं पर रिपोर्ट की है.
महामारी के दौरान इन मामलों में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई, जहां 2020 में 2019 की तुलना में 25% अधिक मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित आत्महत्याएं हुईं. पुणे की मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ वृषाली राउत के अनुसार, "कोविड ने सामूहिक आघात, प्रियजनों की हानि, नौकरी का नुकसान और अलगाव का कारण बना. यह सिर्फ दुख नहीं था, यह राष्ट्रीय स्तर पर पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) था."
2022 में, सभी आयु समूहों में, 10,365 पुरुषों ने आत्महत्या की, जो मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी आत्महत्याओं का लगभग 72% है. उसी वर्ष, 4,234 महिलाओं (28%) ने आत्महत्या की. यह प्रवृत्ति इस अवधि में बनी रही, जहां पुरुष आत्महत्याएं ऐसे सभी मामलों का लगभग 71% थीं.
2022 में, 18 से 30 वर्ष की आयु समूह में सभी कारणों से सबसे अधिक आत्महत्याएं (59,108) दर्ज की गईं, इसके बाद 30-45 समूह (54,351) का स्थान था. मिलकर, वे उस वर्ष देश में हर तीन में से दो आत्महत्याओं के लिए जिम्मेदार थे.
अक्टूबर 2022 में, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की घोषणा की, जिसे टेली-मानस (टेली मेंटल हेल्थ असिस्टेंस एंड नेटवर्किंग अक्रॉस स्टेट्स) के रूप में ब्रांडेड किया गया, जो 24x7 मानसिक स्वास्थ्य परामर्श प्रदान करता है. टेली-मानस सेवाएं 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 53 केंद्रों के माध्यम से उपलब्ध हैं. टोल-फ्री हेल्पलाइन ने 1.8 मिलियन से अधिक कॉल्स का प्रबंधन किया है, और सेवाएं 20 भाषाओं में उपलब्ध हैं.
कुल मिलाकर, 2022 में, देश में 170,924 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जो 2018 में 134,516 से बढ़कर 27% की वृद्धि हुई. आंकड़ों में वृद्धि के साथ-साथ, भारत की प्रति 100,000 जनसंख्या पर आत्महत्या दर से भी वृद्धि हुई है. 2018 में 10.2 से, यह दर 2022 में बढ़कर 12.4 हो गई, जो एक दशक से अधिक समय में दर्ज की गई उच्चतम है.
भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में मानसिक स्वास्थ्य को संबोधित करने की तत्कालीकता पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें कहा गया है कि "आर्थिक एजेंडे के केंद्र में मानसिक कल्याण को रखना विवेकपूर्ण है". 2024 के एक अध्ययन के अनुसार, 20-24, 25-29, और 30-34 वर्ष के आयु समूह मिलकर आत्महत्या से संबंधित कुल आर्थिक बोझ के 53.05% के लिए जिम्मेदार थे, जिससे अनुमानित उत्पादकता का नुकसान 73,040 करोड़ रुपये ($8.8 बिलियन) से अधिक हो गया.
उत्पादन बढ़ा पर किसान अब भी संकट में, फिर उतरेंगे आंदोलन की राह पर
भारत के किसानों पर गहराते संकट और उनके विरोध प्रदर्शनों के ताज़ा घटनाक्रमों में पंजाब सरकार द्वारा आंदोलनकारियों की गिरफ़्तारी और शांभू-खनौरी सीमा पर विरोध शिविरों का जबरन हटाया जाना प्रमुख है. फरवरी 2024 में दिल्ली कूच रोके जाने के बाद पंजाब-हरियाणा सीमा पर डटे किसानों के साथ पुलिस की कार्रवाई और मार्च 2025 में चंडीगढ़ प्रदर्शन की योजना को विफल करने के लिए नेताओं की नज़रबंदी ने तनाव बढ़ाया. आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार के इस रुख को किसान नेता "कॉर्पोरेट हितों का समर्थन" बता रहे हैं. आर्टिकल 14 के लिए कविता अय्यर ने इस पर एक लंबा डिस्पैच लिखा है, जिसमें ऐसी आशंका जताई गई है कि किसानों का आंदोलन आगे और जोर पकड़ सकता है.
किसानों की मुख्य मांग हैं, कानूनी एमएसपी गारंटी. किसान "C2+50%" फॉर्मूले के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी बाध्यता चाहते हैं, जो उत्पादन लागत (जमीन का किराया, पारिवारिक श्रम आदि सहित) पर 50% अतिरिक्त मुनाफ़ा सुनिश्चित करे. वर्तमान में सरकार "A2+FL" फॉर्मूले (केवल नकद लागत + पारिवारिक श्रम) का उपयोग करती है, जो अपर्याप्त है. किसान नेता राष्ट्रीय कृषि विपणन नीति को कॉर्पोरेट-हितैषी और 2021 में रद्द कानूनों का पुनर्जन्म बता रहे हैं. इसके अलावा 2020-21 के आंदोलन के दौरान लगे आपराधिक मामले वापस लेने की मांग तो है ही.
कर्ज़ का बोझ : 2021-22 के नाबार्ड सर्वे के अनुसार, 55% किसान परिवार कर्ज़ में डूबे हैं, जिनका औसत ऋण ₹91,231 है. तेलंगाना (92%), आंध्र प्रदेश (86%) जैसे राज्यों में यह समस्या गंभीर है. किसान आय की विषमता का भी सामना कर रहे हैं. किसान परिवारों की औसत मासिक आय ₹13,661 है, जिसमें खेती से सिर्फ़ 33% योगदान है. शेष आय मजदूरी, दुकानदारी आदि से आती है. अधिकांश राज्यों में फसलों का बाज़ार मूल्य एमएसपी से नीचे रहता है, जिससे किसानों को नुकसान होता है. और यह सिर्फ उत्तर भारत के किसानों के साथ ही नहीं है. बल्कि तमिलनाडु में चावल की कीमतों में गिरावट और निजी खिलाड़ियों को शामिल करने से किसान चिंतित हैं. महाराष्ट्र में सोयाबीन और कपास की फसल में नुकसान, सिंचाई व्यवस्था की खामियाँ, और 2024 में 2,635 किसान आत्महत्याएँ वहाँ के किसानों की हालात बयां करती है. महाराष्ट्र, जो देश में किसान आत्महत्याओं का एक-तिहाई हिस्सा है, ने 2024 में 2,635 किसानों की आत्महत्याएं दर्ज कीं. तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में किसानों के कर्ज का स्तर राष्ट्रीय औसत से अधिक है. तेलंगाना में सूखे के बावजूद धान की कीमतों में निराशा और टमाटर की फसल का भाव ₹2-6 प्रति किलो तक गिरने से किसान परेशान है.
2012 से 13 ऋण माफी योजनाओं के बावजूद संकट बरकरार है. महाराष्ट्र सरकार द्वारा चुनावों में ऋण माफी का वादा और बाद में इनकार करना किसानों में रोष का कारण बना. फसल बीमा योजना की बात है पर वह प्राकृतिक आपदाओं के नुकसान की भरपाई में अक्षम है. केंद्रीय कृषि मंत्री के निर्देश के बावजूद एमएसपी लागू करने का कोई कानूनी तंत्र नहीं है.
किसानों की मांगें केवल पंजाब या हरियाणा तक सीमित नहीं, बल्कि देशव्यापी हैं. उत्पादन बढ़ने के बावजूद आय न होना, जलवायु संकट, और नीतिगत उपेक्षा कृषि संकट के मूल कारण हैं. किसान नेताओं का कहना है कि एमएसपी कानून, ऋण मुक्ति, और टिकाऊ आय सुनिश्चित करने वाली नीतियाँ ही इस संकट का स्थायी समाधान हो सकती हैं. 20 मई 2025 को देशव्यापी ग्रामीण बंद और श्रमिक संघों के समर्थन से आंदोलनों के और तेज़ होने की संभावना है.
हालांकि भारत में खाद्यान्न उत्पादन 2014-15 के 252 मिलियन टन से बढ़कर 2023-24 में 332 मिलियन टन हो गया है, किसानों की आर्थिक परिस्थितियां चिंताजनक बनी हुई हैं.
किसान परिवारों की आय में खेती का योगदान केवल 33% है, जो 2016-17 में 35% था. 56% किसान परिवार अब तीन या अधिक आय स्रोतों पर निर्भर हैं. 55% किसान परिवारों पर कर्ज का बोझ है, जो औसतन 91,231 रुपये प्रति परिवार है - उनकी मासिक आय का 6.6 गुना.
रात के 2 बजे वक़्फ़ बिल पास होने के बाद स्पीकर ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन पर कराई चर्चा
लोकसभा में विवादास्पद वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक पर चली करीब 14 घंटे तक की मैराथन चर्चा, मतदान और विधेयक पारित होने के बाद गुरुवार की रात 2 बजे सरकार ने ‘जातीय हिंसा से प्रभावित मणिपुर में राष्ट्रपति शासन’ की घोषणा पर चर्चा शुरू की. यह चर्चा महज 41 मिनट चली. इसी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का 9 मिनट का उत्तर भी शामिल है.
मणिपुर में 13 फरवरी को केंद्रीय शासन की घोषणा की गई थी और इसे इसी सत्र में संसद से अनुमोदित किया जाना है. विपक्ष के विरोध के बावजूद स्पीकर ओम बिरला ने चर्चा पर जोर दिया.
शाह द्वारा प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद बिरला ने कांग्रेस के शशि थरूर को चर्चा शुरू करने के लिए आमंत्रित किया. हैरान थरूर ने स्पीकर से पूछा कि क्या वह ‘‘वास्तव में इस समय चर्चा चाहते हैं. चलिए कल सुबह करते हैं.” लेकिन स्पीकर नहीं माने, तो थरूर ने बोलना शुरू किया- “मुझे कहना होगा कि मैं इस पर बहुत देर से कहने के लिए बहुत उत्सुक हूं, कि कभी नहीं से देर से ही सही, और विधेयक को पारित होने दें. लेकिन मुझे लगता है कि कुछ घरेलू सच्चाई बताई जानी चाहिए. हम सभी ने मणिपुर की भयावहता देखी है, जो मई 2023 में अशांति शुरू होने के बाद धीरे-धीरे जलती हुई भयावहता थी, और राष्ट्रपति शासन की घोषणा होने से पहले 21 महीने तक जारी रही. कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार लोगों ने अपना काम नहीं किया.” थरूर ने कहा कि केंद्र राष्ट्रपति शासन तभी लाया, जब उसे एहसास हुआ कि एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार नहीं टिक पाएगी. उन्होंने मणिपुर हिंसा को ‘राष्ट्र की अंतरात्मा पर धब्बा’ बताया और वहां इतने लंबे समय तक अशांति बने रहने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज्य का दौरा न करने के लिए अपनी आलोचना को दोहराया और कहा कि राष्ट्रपति शासन एक आवश्यक शर्त है, लेकिन पर्याप्त नहीं.
अपने जवाब में शाह ने कहा, “मणिपुर में अशांति हाई कोर्ट के एक फैसले के कारण दो समुदाय में जातीय हिंसा से शुरू हुई थी. यह न तो दंगा है और न ही आतंकवाद.”
गृह मंत्री ने यह भी कहा, “पिछले चार महीनों - दिसंबर, जनवरी, फरवरी और मार्च - में वहां कोई हिंसा नहीं हुई है.” शाह ने यह भी कहा, “अशांति को किसी पार्टी से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. मैं सदन में यह नहीं कहना चाहता कि 'आपके समय में इतनी हिंसा हुई, हमारे समय में इतनी हिंसा हुई, हमारे समय में कम हिंसा हुई...’ हिंसा बिल्कुल नहीं होनी चाहिए, लेकिन यह दिखाने की कोशिश की गई है कि सांप्रदायिक हिंसा केवल भाजपा के शासन के दौरान हुई है... मणिपुर में, 1993 में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी. नगा-कुकी संघर्ष पांच साल तक चला... 750 लोग मारे गए और एक दशक तक छिटपुट घटनाएं होती रहीं. 1997-98 में कुकी-पाइते संघर्ष हुआ था, जिसमें 40,000 लोग विस्थापित हुए थे. 352 लोग मारे गए थे, तथा 1993 में मैतेई-पंगल संघर्ष में 100 से अधिक लोग मारे गए थे तथा हिंसा छह महीने तक जारी रही थी. ये घटनाएं भारतीय गठबंधन के कार्यकाल में हुई थीं... तीनों वक्त आप के ही प्रधानमंत्री थे और न तो प्रधानमंत्री, न ही गृहमंत्री ने उस समय राज्य का दौरा किया था.”
शाह ने कहा, “पहली चिंता शांति स्थापित करने की है. पिछले चार महीनों में एक भी मौत नहीं हुई है. दो लोग घायल हुए हैं. मैं यह नहीं कहता कि यह संतोषजनक है. जब तक विस्थापित लोग शिविरों में रहेंगे, तब तक संतुष्ट होने का सवाल ही नहीं उठता.”
तृणमूल कांग्रेस की सयानी घोष ने कहा कि उनकी पार्टी भी राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव का समर्थन करती है, लेकिन जल्द शांति बहाली की पक्षधर है. शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अरविंद सावंत ने स्थिति पर चिंता व्यक्त की. डीएमके की के कनिमोझी ने मणिपुर में ‘विभाजनकारी’ राजनीति खत्म होने की बात कही.
संदीपनि के नाम पर स्कूलों के नाम : देश में चल रही नाम बदलने की प्रवृत्ति के तहत, केंद्र सरकार द्वारा संचालित केंद्रीय विद्यालयों का नाम बदलकर ‘पीएम श्री’ स्कूल कर दिया गया. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए सीएम राइज स्कूलों का नाम भगवान कृष्ण और बलराम के गुरु आचार्य संदीपनि के नाम पर रखने की घोषणा की है. सीएम राइज स्कूल पिछली शिवराज सरकार ने खोले थे, लेकिन यादव ने नाम बदलने का ऐलान कर दिया. उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री यादव उज्जैन के हैं, जहां संदीपनि ऋषि के आश्रम में रहकर श्रीकृष्ण ने शिक्षा ग्रहण की थी.
तेलंगाना में पेड़ कटाई पर सुप्रीम कोर्ट सख्त : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार की सुबह स्वत: संज्ञान लेकर हैदराबाद के कांचा गाचीबोवली गांव में राज्य द्वारा कराये जा रहे वनों की कटाई के लिए तेलंगाना सरकार के मुख्य सचिव को कड़ी चेतावनी दी है. राज्य सरकार 400 एकड़ वन भूमि में राज्य आईटी अवसंरचना विकसित करने के लिए तेलंगाना औद्योगिक अवसंरचना निगम (टीजीआईआईसी) के माध्यम से इसे नीलाम करने का प्रस्ताव है. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना सरकार द्वारा विशेषज्ञ समिति के गठन के कुछ ही दिनों बाद और पहचान की कवायद किए बिना कांचा गाचीबोवली में वन कटाई शुरू करने की ‘खतरनाक जल्दबाजी’ पर सवाल उठाया. जस्टिस गवई ने कहा, “यदि मुख्य सचिव राज्य के आतिथ्य का आनंद लेना चाहते हैं, तो कोई उनकी मदद नहीं कर सकता, वह झील के पास उसी स्थान पर बने अस्थायी जेल में जाएंगे... यह बहुत गंभीर मामला है. कानून को अपने हाथ में नहीं लिया जा सकता.” तेलंगाना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) ने शीर्ष अदालत के निर्देश पर आज ही साइट का दौरा कर अदालत को बताया कि यहां की तस्वीर बड़ी भयावह है. वन क्षेत्र में भारी विकास कार्य किए जा रहे हैं. करीब 100 एकड़ क्षेत्र को नष्ट करने के लिए भारी मशीनरी का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे पहले अदालत ने 04 मार्च को राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को वन क्षेत्रों की पहचान के लिए विशेषज्ञ समितियों का गठन करने का आदेश दिया था और यह स्पष्ट किया था कि वन भूमि में कमी सहित किसी भी चूक के लिए मुख्य सचिवों को जिम्मेदार माना जाएगा.
भूमि नीलामी रोकने के लिए हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने की भूख हड़ताल : इस योजना का क्षेत्र में चौतरफा विरोध हो रहा है. विरोध करने वालों का तर्क है कि यह क्षेत्र एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र है, जो हैदराबाद शहर के 'फेफड़े' के रूप में काम करता है. कांचाबोवली गांव हैदराबाद विश्वविद्यालय से सटा हुआ है. नीलामी के खिलाफ 18 छात्रों ने क्रमिक रूप से भूख हड़ताल शुरू कर दी है और उनका कहना है कि यह तब तक जारी रहेगी, जब तक कि आखिरी बुलडोजर और आखिरी मजदूर हैदराबाद विश्वविद्यालय परिसर से बाहर नहीं निकल जाते. पिछले कुछ दिनों से जमीन के बड़े हिस्से को ढहाने की कोशिशों के बीच छात्र पुलिस की भिड़ंत हो चुकी है. खबरों के मुताबिक, दो पूर्व छात्रों को भी गिरफ्तार किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने दलबदल पर टिप्पणी के लिए तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी की खिंचाई की : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की राज्य विधानसभा में की गई टिप्पणी की आलोचना की कि विधायकों के पाला बदलने पर भी उपचुनाव नहीं होंगे. जस्टिस बीआर गवई ने इसे ‘दसवीं अनुसूची का मज़ाक’ कहा. जस्टिस गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ सत्तारूढ़ कांग्रेस में शामिल होने वाले पार्टी विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में तेलंगाना अध्यक्ष द्वारा की गई देरी के खिलाफ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के विधायकों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. जस्टिस गवई ने यह टिप्पणी मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के इस बयान पर की, जिसमें उन्होंने कहा था, “माननीय अध्यक्ष महोदय, आपके माध्यम से मैं सदस्यों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि उन्हें उपचुनावों के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. कोई उपचुनाव नहीं होगा. भले ही वे (बीआरएस) अपनी सीटों के लिए उपचुनाव चाहते हों, लेकिन कोई उपचुनाव नहीं होगा. भले ही उनके सदस्य पक्ष बदल लें, लेकिन उपचुनाव नहीं होगा."
फ्री मूवमेंट जारी रहेगा : मिजोरम के राज्यपाल वीके सिंह ने कहा कि भारत-म्यांमार सीमा पर फ्री मूवमेंट रेजीम (एफएमआर) को “बाधित” करने की कोई योजना नहीं है. हां, पड़ोसी देश की स्थिति के कारण अवैध सीमा पार गतिविधियों को रोकने के लिए कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं.
सुप्रीम कोर्ट का पटाखों पर प्रतिबंध में ढील देने से किया इनकार : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 3 अप्रैल को दिल्ली-एनसीआर में पटाखों के निर्माण, भंडारण और बिक्री पर लगाए गए प्रतिबंध में ढील देने से इनकार कर दिया और कहा कि पिछले आदेश पर पुनर्विचार का सवाल ही नहीं उठता. वायु प्रदूषण का स्तर काफी समय से खतरनाक बना हुआ है.
युनूस-मोदी मुलाकात की संभावना : थाईलैंड में होने वाले बिम्सटेक शिखर सम्मेलन से पहले, बांग्लादेश के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने शुक्रवार को मुख्य सलाहकार मुहम्मद युनूस और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बैठक की "उच्च संभावना" व्यक्त की. बांग्लादेशी मीडिया ने सूत्रों का हवाला देते हुए पुष्टि की कि बैठक निर्धारित है. इस बीच, दिल्ली से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली, सूत्रों का संकेत है कि चर्चा अभी जारी है.
अमेरिकी नागरिक ने अंडमान के प्रतिबंधित द्वीप पर किया प्रवेश : अमेरिकी नागरिक माइकेल पोल्याकोव को गिरफ्तार किया गया, क्योंकि वह कथित तौर पर पिछले महीने के अंत में अंडमान के प्रतिबंधित नॉर्थ सेंटिनल द्वीप पर गया और स्थानीय लोगों से संपर्क करने का प्रयास किया. द्वीप पर पहुंचने के बाद - जिसके एकांतप्रिय निवासी आगंतुकों को मार डालने और हेलीकॉप्टरों पर भाले फेंकने के लिए जाने जाते हैं और बाहरी लोगों द्वारा लाई गई बीमारियों के लिए अतिसंवेदनशील माने जाते हैं - पोल्याकोव ने द्वीपवासियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक सीटी बजाई, लेकिन अंततः वहां 'भेंट' के रूप में एक नारियल और कोला का कैन छोड़ दिया, रेत के नमूने एकत्र किए और जाने से पहले अपना एक वीडियो बनाया.
चलते - चलते
कोविड के बाद से हाँफता बॉलीवुड बॉक्स ऑफिस
2025 में अब तक केवल दो बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर आई हैं, वह भी मार्च में. 2024 में तो केवल छह फिल्में हिट हुईं. वेलेंटाइन डे पर 'दिल तो पागल है' के लिए लोग सिनेमाघरों में उमड़े और 'सनम तेरी कसम' और 'ये जवानी है दीवानी' जैसी पुरानी फिल्मों पर तालियां बजाईं. सिनेमाघरों में नाचते और रील्स बनाते लोग एक जीवंत फिल्म संस्कृति का आभास देते हैं.
लेकिन द प्रिंट के लिए लिखी रिपोर्ट में मानसी फड़के और टीना दास के मुताबिक वास्तविकता कुछ और है.
भारत का सिनेमा प्रेम अब पुरानी हिट फिल्मों के आकर्षण से ही जिंदा है. महामारी खत्म हुए तीन साल हो चुके हैं, लेकिन बॉलीवुड अभी भी 'लॉन्ग कोविड' से जूझ रहा है. हर कोई इस अव्यवस्था के लिए कोविड को दोष दे रहा है. "इंडस्ट्री एक भ्रम से बाहर आ रही है," कहते हैं सिद्धार्थ जैन, 'द स्टोरी इंक' के संस्थापक और प्रोड्यूसर. "बिजनेस साइकिल रीसेट हो रही है. हर कोई कम जोखिम ले रहा है. मुझे लगता है कि धीमी गति से चलना, पुनर्मूल्यांकन करना और मजबूत होकर बाहर आना बेहतर है."
अब प्रोड्यूसर और डिस्ट्रीब्यूटर नए बॉलीवुड के आविष्कार के लिए सांस रोके हैं. इंडस्ट्री के अंदरूनी सूत्र कहते हैं कि 2025 इस नए बॉलीवुड को देखने का वर्ष है. पीवीआर इनॉक्स के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर संजीव कुमार बिजली कहते हैं कि 2025 और 2026 वे वर्ष होंगे जब उद्योग आखिरकार "सामान्य" स्थिति में लौटेगा. पुराना फॉर्मूला - स्टार, भव्यता और त्योहार पर रिलीज - अब काम करने की गारंटी नहीं देता. बॉलीवुड का नया सामान्य शायद बड़े-बड़े सितारों और फूले हुए बजट के बिना होगा - जो इंडस्ट्री के पतन के मुख्य दोषियों में से हैं. "दर्शक बहुत चुनिंदा हो गए हैं कि वे अपना समय और पैसा सिनेमाघर जाने पर क्या खर्च करना चाहते हैं. दक्षिण भारतीय फिल्में हिंदी बाजारों में दर्शक पा रही हैं. लेकिन इसका उल्टा सच नहीं है," कहते हैं करण तौरानी, एलारा कैपिटल के मीडिया विश्लेषक.
बिजली अब भी सितारों पर दांव लगा रहे हैं. उन्होंने 2025 के लिए निर्धारित बड़ी रिलीज़ की सूची दी, सभी शीर्ष नामों के साथ - सलमान खान के साथ सिकंदर, सनी देओल अभिनीत जाट, अक्षय कुमार और संजय दत्त के साथ हाउसफुल 5, ऋतिक रोशन और कियारा आडवाणी के साथ वॉर 2, आमिर खान की सितारे ज़मीन पर, और आलिया भट्ट की अल्फ़ा. हालांकि ये सारी फिल्में 2025 में इंडस्ट्री को ऊपर उठा सकती है. पर यह केवल एक बात को छिपा रही हैं. कुछ है जो हमेशा के लिए बदल चुका है. एक समय था, जब बड़े-बड़े फिल्मों ने एक ही शुक्रवार को रिलीज़ होने के लिए संघर्ष किया था—2007 में ओम शांति ओम और सांवरिया, 2015 में दिलवाले और बाजीराव मस्तानी. अब ऐसे लम्बे दौर हैं, जब कुछ भी रिलीज़ नहीं हो रहा होता.
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