04/05/2025 : खुफिया सुराग थे | इन 12 दिनों में | पाकिस्तान की धमकी | यहां के गाने वहां बंद | इंपोर्ट पर रोक | प्रणव अडाणी और इनसाइडर ट्रेडिंग | 3 साल की उम्र में संथारा | 99 के एटनबरो | शाजी का कैमरा
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा!
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
पाकिस्तान के रेडियो में नहीं बजेंगे भारतीय गाने
हम हिंदू-मुसलमान क्यों कर रहे हैं? वे आतंकवादी इंसान नहीं, राक्षस थे
पाकिस्तानी महिला से शादी छुपाने पर सीआरपीएफ कांस्टेबल बर्खास्त
मुर्शिदाबाद हिंसा : पश्चिम बंगाल राज्यपाल की केंद्र को रिपोर्ट
कनाडा में लिबरल्स के बाद ट्रम्प ने ऑस्ट्रेलिया में भी लेबर पार्टी को जीत दिलवाई
ट्रम्प फैक्टर : चुनाव परिणामों पर अमेरिकी राष्ट्रपति का प्रभाव
गोवा के मंदिर में भगदड़ से 7 की मौत, 65 घायल
एसबीआई की तिजोरी से पटना गैंग तक - नीट-यूजी पेपर लीक का पूरा घटनाक्रम
पहलगाम आतंकवादी हमला
खुफिया ब्यूरो को पता था हमला होने वाला है
खुफिया ब्यूरो (आईबी) और अन्य एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर में स्थानीय सुरक्षा अधिकारियों को पर्यटकों पर संभावित हमले की चेतावनी दी थी, लेकिन यह चेतावनी प्रधानमंत्री के 19 अप्रैल के दौरे के आसपास और श्रीनगर में हमले की थी. सुनेत्रा चौधरी ने हिंदुस्तान टाइम्स में यह खबर की है.
जानकारी के अनुसार, इसके जवाब में श्रीनगर में और उसके आसपास सुरक्षा बढ़ा दी गई थी, जिसमें पर्यटकों के लोकप्रिय होटलों के आसपास और डाचीगाम नेशनल पार्क जैसे पर्यटन स्थलों पर विशेष सुरक्षा शामिल थी. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा खराब मौसम के कारण रद्द कर दिया गया, और जब आतंकवादियों ने हमला किया, जिसमें 26 लोग मारे गए, सभी पुरुष, जिनमें 25 पर्यटक थे (24 हिंदू), तो यह श्रीनगर से 90 किमी दूर पहलगाम में 22 अप्रैल को हुआ.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने पुष्टि की, "नौ में से दस बार ऐसी चेतावनियां कुछ नहीं होती, लेकिन इस बार पर्यटकों के बारे में यह सही साबित हुई. खुफिया सुरागों की व्याख्या सबसे कठिन हिस्सा होती है. वह स्थान के बारे में गलत थी." सेना और नागरिक सुरक्षा अधिकारियों को प्रधानमंत्री के दौरे के आसपास श्रीनगर के पास पर्यटन स्थल पर हमले की तैयारी करने के लिए कहा गया था.
मौसम विभाग की 18-19 अप्रैल के आसपास खराब मौसम की चेतावनी के बाद, प्रधानमंत्री कार्यालय ने यात्रा रद्द कर दी. दौरा रद्द होने के बाद भी, सुरक्षा अधिकारियों ने अपनी तैयारी कम नहीं की.
पुलिस महानिदेशक नलिन प्रभात चार दिनों तक श्रीनगर में तैनात रहे. 22 अप्रैल को जब आतंकवादियों ने हमला किया, तब प्रभात जम्मू पहुंचे थे और उन्हें तुरंत वापस जाना पड़ा.
अधिकारियों ने पुष्टि की कि प्राप्त खुफिया जानकारी में पहलगाम का कोई विशेष उल्लेख नहीं था. अब स्पष्ट है कि पीएम के दौरे के रद्द होने के बाद, आतंकवादी अगले अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्हें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा - एक दिन बाद, अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वांस के दौरे की घोषणा की गई.
अधिकारियों का कहना है कि बड़ी चूक बैसरन में हमले की आशंका न होना था, जो पूरे वर्ष खुला रहता है और केवल अमरनाथ यात्रा के दौरान बंद होता है. एक अधिकारी ने कहा, "आतंकवादियों में से दो स्थानीय थे, जिन्होंने पर्यटकों को एक तरफ धकेला. गोलियां दो विदेशी आतंकवादियों ने चलाई. टिकट द्वारा नियंत्रित एक ही प्रवेश और निकास होने के कारण, पर्यटकों के लिए हमलावरों से बचना मुश्किल था." अब यह ज्ञात है कि आतंकवादी क्षेत्र में रह रहे थे और वहीं बने हुए हैं, सबसे बड़ी चूक स्थानीय खुफिया जानकारी की थी. स्थानीय सेना अधिकारियों ने कहा कि वे इन जानकारियों से अवगत नहीं थे.
विश्लेषण
पहलगाम के 12 दिन बाद
- निधीश त्यागी
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले को 12 दिन हो गये हैं. इन 12 दिनों में क्या हुआ.
छोड़ेंगे नहीं. ढूंढ़ निकालेंगे. ओवल ऑफिस में हिंदी बोलने वाले मधुबनी में अंग्रेजी बोलकर दुनिया को संदेश दे रहे हैं. जो सीधा प्रभारी है वह भी ऐसा दावा कर रहा है. फिर कहा, सारा जिम्मा फौज पर है. अभी तक कुछ गुस्से में बयान आये हैं. एक मुंहफट मंत्री बोल रहा है, देश की राष्ट्रभक्ति ही गड़बड़ है, इसलिए कश्मीर में सब बढ़िया है, समझकर सैलानी वहां गये और मार डाले गये.
पर इंचार्ज कौन है? सिक्योरिटी की चूक का. इंटेलिजेंस की चूक का. आज सुनेत्रा चौधरी की खबर है कि इंटेलिजेंस थी. इतने सारे सैलानी इतनी सारी सुरक्षा जांच करवा कर, अपना सफर और रहने की जगह तय करवा कर गये और सिक्योरिटी को पता नहीं चला. पहलगाम उनके फोकस में था ही नहीं. इंचार्ज कौन था इंटेलिजेंस पर अमल का.
कहीं भी जाओ, तो पंद्रह जगह आधार कॉर्ड दिखाते हैं, जांच करवाते है, तलाशी होती है, कारों के फास्ट टैग स्कैन में आते है, केवाईसी होती है. सारा डेटा सरकार के पास है. इतने सारे सैलानी किसी जगह जाएं, और सरकार को लगा ही नहीं कि उन पर हमला हो सकता है. सरकार तो इस केंद्रशासित प्रदेश में सब बढ़िया है, सब नार्मल है कह रही थी. ये बात झूठ निकली. पर सरकार के लिए सच को स्वीकारना मुश्किल है. उसे न आतंकियों का पता था. न सैलानियों का खयाल.
इतने सारे आतंकवादी बंदूकें लेकर आ गये और इतने इत्मीनान से हत्याकांड किया और फिर चले भी गये, सुरक्षा को पंहुचने में ही डेढ़ घंटे लग गये.
सुनेत्रा की खबर के मुताबिक खतरा 19 अप्रैल का था और श्रीनगर में बताया जा रहा था. क्योंकि प्रधानमंत्री के साथ पूरा लाव लश्कर वहां आना था. हालांकि निशाने पर सैलानी ही बताये जा रहे थे. क्योंकि वह दौरा खराब मौसम की वजह से रद्द हुआ, इसलिए हाथ पर हाथ रख कर बैठ गये.
19 को श्रीनगर में कुछ नहीं हुआ. 22 को हुआ. श्रीनगर से 90 किलोमीटर दूर.
12 दिन बाद अभी तक किसी की बर्खास्तगी क्यों नहीं हुई. इन 12 दिनों में इस विफलता, अक्षमता का कोई जवाबदेह नहीं, कोई जिम्मेदार नहीं तय हुआ. किसी पर कार्रवाई नहीं हुई. कोई मंत्री, कोई अफसर. सब मासूमियत की मूर्ति हैं. न होते तो कार्रवाई होती, ग़ैरत होती तो इस्तीफे दिये जाते. नहीं होती तो लिये जाते.
कार्रवाई के नाम पर जो किया जा रहा है, वह अपना मुंह छिपाने की कोशिश है. जो जवाबदेह और जिम्मेदार हैं, उन पर कार्रवाई नहीं हुई. बल्कि उन पर हो रही है, जो हमले और हमले को रोक न पाने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं.
कार्रवाई के नाम पर उन परिवारों को निशाना बनाया गया, जिनके सदस्य संदिग्ध आतंकवादी है. उनके मकानों को बमों से उड़ा दिया गया. बिना उनके जुर्म साबित किये. बिना अदालत गये. ये ऑप्टिक्स किसके लिए हैं. क्या बताने के लिए है? इंटेलिजेंस और सिक्योरिटी फेल्यर के बाद ये इंसाफ की भी नाकामी है, जिसे ये सरकार बार-बार लगातार उत्तर प्रदेश से लेकर बाकी राज्यों में बेरहमी से इस्तेमाल करती है.
इन बारह दिनों में कश्मीर के लोग पहली बार इतनी बड़ी तादाद में पहलगाम हमले के खिलाफ सड़कों पर उतरे. सरकार के पास ये अच्छा मौका था कि इस बदले हुए तेवर को अच्छे के लिए काम लाए. पर नहीं, उन्हें पराया और सौतेला साबित करना ही था. किसके लिए. किसको पास करने, किसको दूर करने के लिए.
जो इंटेलिजेंस, सिक्योरिटी, इंसाफ तीनों कसौटियों पर फेल हुए, उनके मुंह से एक भी बयान नहीं निकला कि कश्मीरियों को बाकी भारत में तंग, जलील मत करो. सोशल मीडिया और सड़कों पर उनके साथ हिंसा मत करो. ये किसका काम है? इनसे तो बेहतर हमले के शिकार हुए फौजी अफसर विकास नरवाल की पत्नी हिमांशी की अपील थी, जिसने कश्मीरियों को तंग न करने की अपील की. हमारी सरकार, हमारे नेता, हमारे अफसर चुप रहे. क्या किसी अपराध को होते हुए देखकर चुप रहना भी अपराध होता है? इन्हीं बारह दिनों में यह कई बार हुआ.
इन बारह दिनों में इस तरह हमने एक बार फिर से कश्मीरियों का दिल खट्टा कर दिया. उन्हें फिर से कठघरे में खड़ा कर दिया. क्या वे किसी और संविधान के हकदार है, किसी और देश के नागरिक है.. पराये और सौतेले?
इन बारह दिनों में हम एक भी महत्वपूर्ण देश से नहीं कहलवा पाए कि इसके पीछे पाकिस्तान है. ये हमारी कूटनीतिक काबिलियत है. सभी ने आतंकवाद की भर्त्सना की. अमेरिका और बाकी देशों ने यही कहा कि ठंड रखो. तनाव को बढ़ाओ मत. जिनसे भारत ने बात की, उन्होंने न्यू यॉर्क टाइम्स को बताया कि भारत के पास अभी मुकम्मल सबूत नहीं है कि पाकिस्तान का हाथ साबित कर सके.
पाकिस्तानी नागरिकों को वापस भेजने के अलावा (जो ज्यादातर पारिवारिक किस्म के लोग दिखे ऑटो रिक्शा में लद कर अटारी की तरफ जाते हुए) पाकिस्तान से कई और बदले की कार्रवाइयां की गईं. जैसे उनके गाने, उनके चुटकुले, उनके सोशल मीडिया ब्लाक करवा दिये. उस तरफ भी एफएम पर हिंदुस्तानी गानों पर रोक लगा दी गई.
जो थोड़ा-मोड़ा कारोबार था दोनों देशों के बीच उसे बंद कर दिया. और उस संधि को खत्म करने का एलान किया, जिसे न अभी लागू किया जा सकता है, न कभी आसानी से मुमकिन. वह एक और खाली वार की तरह है, जिसे लेकर कई तरह से सवाल उठ खड़े हुए हैं.
इन बारह दिनों में पाकिस्तान ने शिमला समझौते के निलंबित करने का एलान किया और साथ में इस हमले की निष्पक्ष देशों से जाँच करवाने की बात की. शिमला समझौते के तहत दोनों देश आपसी बातचीत के जरिये मसले सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध थे. और अब पाकिस्तान उस समझौते को मानने से मुकर रहा है. निष्पक्ष देशों की जांच के प्रस्ताव को चीन जैसे देश ने तुरंत समर्थन किया, जिसके लद्दाख सीमा पर किये गये घाव अब भी हरे हैं.
इन बारह दिनों में पाकिस्तान ने पहले और फिर भारत ने अपने आकाश दूसरे देशों के हवाई जहाजों के लिए बंद कर दिये हैं. इससे एयर इंडिया को ही सालाना 5000 करोड़ रुपये का फटका लगने वाला है. जबकि इंडिगो, स्पाइसजेट जैसी और भी हवाई सेवाएं है. पाकिस्तान के जहाज हमारे आकाश में कम उड़ते है.
चीन पाकिस्तान को हथियार भी दे रहा है और भारत पर आंखें भी तरेर रहा है. युद्ध की डुगडुगी बज रही है और पाकिस्तान से कई गुना ज्यादा अपनी सामरिक शक्ति पर पैसे खर्च करने वाला भारत जंग के लिए कितना तैयार है, इसको लेकर दूसरी पेचीदगियां है.
बिना सोचे विचारे फैसले करने का रिकॉर्ड मोदी सरकार का पुराना है. ऐसे में जंग की बजती डुगडुगी सुनना और भी अपशकुन की तरह है.
इन्हीं बारह दिनों में बीएसएफ का एक मासूम जवान गलती से सरहद पार कर पकड़ा गया था. अभी तक उसे बिठा कर रखा हुआ है. उसे उम्मीद है कि उसका देश जल्द ही उसे छुड़वा लेगा. उसके परिवार को भी.
बारह दिन बाद भी अनिश्चितता के बादल है. जिनका बेनेफिट नहीं लिया जा पा रहा. तब तक बयानों को और डुगडुगी बजाने को ही मास्टर स्ट्रोक माना जाता रहे.
पाकिस्तान की धमकी, सिंधु नदी पर ढांचा बनाया तो हमला करेंगे
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने भारत को चेतावनी दी है कि यदि भारत इंडस नदी पर कोई ढांचा बनाता है जो 'इंडस जल संधि' का उल्लंघन करता है, तो पाकिस्तान उस पर हमला करेगा. यह बयान उस समय आया है, जब पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने इस संधि को निलंबित कर दिया है. उन्होंने जियो न्यूज पर एक कार्यक्रम में कहा, “अगर वे (भारत) किसी भी प्रकार का ढांचा बनाने की कोशिश करते हैं, तो हम उस पर हमला करेंगे. इंडस नदी पर कोई भी निर्माण कार्य पाकिस्तान के खिलाफ ‘आक्रामकता’ माना जाएगा.” रक्षा मंत्री ने आगे कहा, “आक्रामकता सिर्फ तोप या गोली चलाने तक सीमित नहीं होती; इसके कई रूप होते हैं. पानी रोकना या मोड़ना भी एक प्रकार की आक्रामकता है, जो भूख और प्यास से मौतों का कारण बन सकती है.”
पाकिस्तान के रेडियो में नहीं बजेंगे भारतीय गाने : पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद कई पाकिस्तानी कलाकारों के इंस्टाग्राम अकाउंट्स भारत में ब्लॉक कर दिए गए हैं. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट है कि भारत की इन कार्रवाइयों के जवाब में पाकिस्तान ने भी भारतीय गानों को अपने सभी रेडियो स्टेशनों से हटा दिया है. इससे पहले किशोर कुमार, लता मंगेशकर जैसे दिग्गज गायकों और अरिजीत सिंह, श्रेया घोषाल जैसे नए गायकों के गाने पाकिस्तान के रेडियो पर लोकप्रिय थे. अब, बॉलीवुड शादिस की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (PBA) ने 1 मई को इस फैसले की पुष्टि की है.
भारत ने पाकिस्तान से आयात पर लगाई रोक
'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि शनिवार को भारत ने पाकिस्तान से आने वाले या पाकिस्तान के ज़रिए ट्रांज़िट होकर आने वाले सभी सामान के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है और पाकिस्तानी जहाज़ों के भारतीय बंदरगाहों पर प्रवेश पर भी रोक लगा दी है. यह कदम कश्मीर में पर्यटकों पर हुए एक घातक आतंकी हमले के बाद दोनों परमाणु संपन्न पड़ोसी देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच उठाया गया है. विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने एक अधिसूचना में कहा कि यह प्रतिबंध तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है. अधिसूचना में कहा गया है, "यह प्रतिबंध राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक नीति के हित में लगाया गया है." हाल ही में कश्मीर घाटी के पहलगाम क्षेत्र के एक पर्यटन स्थल पर हुए हमले में कम से कम 26 लोगों की मौत हो गई थी. पाकिस्तान का दावा है कि उसे "पुख़्ता खुफ़िया जानकारी" है कि भारत सैन्य कार्रवाई की योजना बना रहा है. भारत ने शनिवार को कहा कि पाकिस्तानी झंडे वाले जहाज़ किसी भी भारतीय बंदरगाह पर नहीं आ सकेंगे. ठीक ऐसे ही भारतीय झंडे वाले जहाज़ पाकिस्तान के किसी भी बंदरगाह पर नहीं जाएंगे. हाल के वर्षों में भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार लगातार घटता गया है और अब यह कदम पूरी तरह से वाणिज्यिक संपर्कों को ठप्प कर देगा.
आप बीती
हम हिंदू-मुसलमान क्यों कर रहे हैं? वे आतंकवादी इंसान नहीं, राक्षस थे
शुभम द्विवेदी ने “हिंदू” शब्द पूरा ही कहा था कि उन्हें गोली मार दी गई. उनकी पत्नी ऐशान्या, जो उनके पास ही खड़ी थीं, तब तक कुछ समझ ही नहीं पाईं. बहुत देर नहीं हो चुकी थी. 'द टेलीग्राफ' की रिपोर्ट है कि ऐशान्या ने कहा - “उन्होंने हमसे पूछा, ‘तुम हिंदू हो या मुस्लिम?’ जब हमने कहा कि हम हिंदू हैं, तो उन्होंने सीधे गोली मार दी,” ऐशान्या ने पिछले हफ्ते बीबीसी हिंदी को दिए एक इंटरव्यू में कहा. उत्तर प्रदेश का यह नवविवाहित जोड़ा अपने परिवार के साथ कश्मीर घूमने गया था, जब पहलगाम इलाके में आतंकवादियों ने हमला किया. शुभम उन 26 लोगों में शामिल थे, जिनकी जान चली गई. अब ऐशान्या ने एक ऐसा सवाल उठाया है, जो उनके अपने दुख से बहुत आगे तक गूंज रहा है - “हम इस घटना को हिंदू-मुस्लिम क्यों बना रहे हैं?” उन्होंने कहा, “वे आतंकवादी थे. वे इंसान नहीं थे. उनका कोई धर्म नहीं था. वे राक्षस हैं.” घटना को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिशों पर सख्त प्रतिक्रिया देते हुए ऐशान्या ने असली विफलता की ओर इशारा किया, लोगों की नहीं, बल्कि राज्य की. उन्होंने कहा, “मैं साफ कह सकती हूं : हमारे देश ने हमें वहां छोड़ दिया. हमारी सरकार ने हमें छोड़ दिया. हमारी सेना ने हमें छोड़ दिया.” ऐशान्या ने बताया कि हमले के दिन वहां कोई सुरक्षा व्यवस्था नज़र नहीं आ रही थी. “पूरे कश्मीर में हर 30 मीटर पर सीआरपीएफ के जवान तैनात थे, लेकिन जहां हमला हुआ, वहां कोई नहीं था. भगवान ही जाने यह खुफिया तंत्र की विफलता थी, योजना की या फिर स्वीकार करने की, लेकिन विफलता तो थी. जैसे घर में माता-पिता हमें सुरक्षित रखते हैं, वैसे ही देश में सरकार और सेना हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है.” उन्होंने यह भी कहा कि जिस इलाके में हमला हुआ वह ऐसा पहाड़ी इलाका था जहां ना भागा जा सकता था, ना छिपा जा सकता था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया है कि भारत “हर आतंकी और उसके समर्थकों को सज़ा देगा.” लेकिन ऐशान्या जैसी पीड़ितों के लिए यह घाव केवल व्यक्तिगत नहीं है. कुछ समाजिक तबके इस घटना को धार्मिक चश्मे से देखने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐशान्या इस बंटवारे को और भी बड़ा दुख मानती हैं. उन्होंने पूछा, “हम हिंदू, मुसलमान, ब्राह्मण की बात क्यों कर रहे हैं? वे इंसान नहीं हैं. वे राक्षस हैं.”
पाकिस्तानी से शादी छुपाने पर सीआरपीएफ कांस्टेबल बर्खास्त
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने शनिवार को कहा कि एक कांस्टेबल को "पाकिस्तानी महिला से शादी छुपाने" के चलते सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है. सीआरपीएफ की ओर से जारी बयान में कहा गया कि 41 बटालियन के कांस्टेबल मुनीर अहमद को एक पाकिस्तानी नागरिक से शादी करने और उसकी वीजा अवधि खत्म होने के बावजूद उसे भारत में छुपाकर रखने के आरोप में, तत्काल प्रभाव से सेवा से हटा दिया गया है. “उनकी हरकतें सेवा अनुशासन के उल्लंघन में पाई गईं और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हानिकारक मानी गईं,” सीआरपीएफ ने कहा. दरअसल, कांस्टेबल मुनीर अहमद ने 2023 में सियालकोट (पाकिस्तान) निवासी मीनल खान से विवाह की अनुमति के लिए सीआरपीएफ से अनुरोध किया था, लेकिन बिना आधिकारिक अनुमति का इंतजार किए, उन्होंने 24 मई 2024 को ऑनलाइन शादी कर ली और बाद में जम्मू में एक विवाह समारोह भी हुआ. मीनल खान 2024 में अल्पकालिक वीजा पर भारत आई थीं, जो 22 मार्च 2025 को समाप्त हो गया था. पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद, जिसमें 26 लोगों की जान गई, सरकार ने कई पाकिस्तानी नागरिकों का वीजा रद्द कर दिया था. मीनल खान भी उसी सूची में थीं और उन्हें 27 अप्रैल तक भारत छोड़ने का आदेश दिया गया था. जब उन्हें पंजाब के अटारी सीमा चौकी से पाकिस्तान वापस भेजा जा रहा था, तभी उनके पति मुनीर अहमद ने जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में याचिका दायर की. 29 अप्रैल को अदालत ने अंतरिम रोक लगाई और कहा कि याचिका के निपटारे तक निर्वासन पर रोक रहेगी. अगली सुनवाई 14 मई को होगी.
मुर्शिदाबाद
हिंसा को रोकने के लिए संवैधानिक विकल्पों पर विचार करें : राज्यपाल
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने मुर्शिदाबाद में हुई सांप्रदायिक हिंसा के अन्य जिलों में फैलने की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार से "संविधान के तहत उपलब्ध विकल्पों" पर विचार करने का आग्रह किया है, ताकि "कानून का राज स्थापित करने में जनता का विश्वास बहाल किया जा सके." दरअसल धूलियान और शमशेरगंज क्षेत्रों में 11 और 12 अप्रैल को सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें तीन लोगों की जान गई और सैकड़ों लोग बेघर हो गए थे. अब राज्यपाल ने एक व्यापक कानून बनाने की सिफारिश की है, जो राज्य सरकार की विफलता की स्थिति में केंद्र सरकार को कानून-व्यवस्था संभालने का अधिकार दे. 1952 के जांच आयोग अधिनियम के तहत एक जांच आयोग गठित किया जाए, जो इस घटना की चूक और लापरवाही की जांच करे और भविष्य में ऐसे हालात से बचने के उपाय सुझाए. राज्यपाल ने रिपोर्ट के अंत में संविधान के अनुच्छेद 356 का भी उल्लेख किया, जिसके तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. हालांकि, इसका उन्होंने सिफारिश के रूप में नहीं, बल्कि एक विकल्प के तौर पर ज़िक्र किया है. राज्यपाल ने चेतावनी दी कि राज्य में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा अब धार्मिक पहचान पर आधारित हो गई है. इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ा है और प्रशासन हेट स्पीच पर नियंत्रण या निष्पक्ष कानून-व्यवस्था लागू करने में विफल रहा है. उन्होंने आगाह किया कि विकास की बजाय विभाजन पर आधारित राजनीति राज्य को संकट की ओर धकेल रही है.
प्रणव अडाणी पर इनसाइडर ट्रेडिंग की, सेबी का आरोप
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने अडाणी समूह की कई कंपनियों के निदेशक और गौतम अडाणी के भतीजे प्रणव अडाणी पर संवेदनशील जानकारी साझा करने और इनसाइडर ट्रेडिंग को रोकने के लिए बनाए गए नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया है. यह जानकारी रॉयटर्स द्वारा देखे गए एक दस्तावेज के आधार पर सामने आई है. दस्तावेज के अनुसार, प्रणव अडाणी को पिछले वर्ष मार्केट रेगुलेटर सेबी द्वारा एक नोटिस भेजा गया था, जिसमें आरोप था कि उन्होंने 2021 में अडाणी ग्रीन द्वारा सॉफ्टबैंक समर्थित एसबी एनर्जी होल्डिंग्स के अधिग्रहण से जुड़ी जानकारी सौदे की सार्वजनिक घोषणा से पहले अपने बहनोई के साथ साझा की थी. यह मामला इनसाइडर ट्रेडिंग नियमों का संभावित उल्लंघन है. सूत्रों के अनुसार, प्रणव अडाणी अब इस मामले को सेटलमेंट प्रक्रिया के तहत निपटाने की कोशिश कर रहे हैं.
कनाडा में लिबरल्स के बाद ट्रम्प ने ऑस्ट्रेलिया में भी लेबर पार्टी को जीत दिलवाई
ऑस्ट्रेलिया के एंथनी अल्बनीज़ ने शनिवार को ऐतिहासिक रूप से लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री पद हासिल किया, जो एक नाटकीय वापसी थी, फिर से उभर रही रूढ़िवादी (कंज़र्वेटिव) ताकतों के ख़िलाफ़.
‘रायटर्स’ की रिपोर्ट है कि ऑस्ट्रेलिया के आम चुनावों में प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी ने शानदार जीत हासिल की है. चुनाव परिणामों में लेबर पार्टी ने 150 सदस्यीय हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में बहुमत हासिल किया है, जिससे अल्बनीज़ दो दशकों में लगातार दूसरा कार्यकाल जीतने वाले पहले प्रधानमंत्री बन गए हैं. विपक्षी नेता पीटर डटन ने न सिर्फ चुनाव हार स्वीकार की, बल्कि वे अपनी सीट डिक्सन से भी हार गए, जहां वह पिछले 24 वर्षों से प्रतिनिधित्व करते आ रहे थे. यह परिणाम कनाडा के हालिया चुनावों से मिलता-जुलता है, जहां विपक्षी नेता पियरे पोइलीव्र भी अपनी सीट हार गए थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अल्बनीज़ को उनकी जीत पर बधाई दी. मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा - "बधाई @AlboMP आपकी शानदार जीत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री के रूप में पुनर्निर्वाचन पर! यह स्पष्ट जनादेश आपके नेतृत्व में ऑस्ट्रेलियाई जनता के स्थायी विश्वास को दर्शाता है. मैं भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों को और गहरा करने के लिए आपके साथ मिलकर काम करने के लिए तत्पर हूं..." भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंध हाल के वर्षों में काफी मजबूत हुए हैं. दोनों देश क्वाड गठबंधन के सदस्य हैं और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच रणनीतिक साझेदारी बढ़ा रहे हैं. अल्बनीज़ के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया ने चीन के साथ संवाद भी फिर से शुरू किया है.
लेबर पार्टी की जीत में इस चुनाव में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कारक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ऑस्ट्रेलियाई मतदाताओं ने वैश्विक अनिश्चितता के समय में स्थिरता को प्राथमिकता दी ओर दक्षिणपंथी पार्टियों को नकार दिया. आश्चर्यजनक रूप से ट्रम्प के नीतिगत फैसलों और अस्थिर कूटनीति ने चुनाव परिणामों को प्रभावित किया. एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 48% ऑस्ट्रेलियाई मतदाताओं ने ट्रम्प द्वारा पैदा की गई अनिश्चितताओं को अपनी शीर्ष पांच चिंताओं में से एक के रूप में चुना था. ट्रम्प द्वारा ऑस्ट्रेलियाई निर्यातों पर 10% टैरिफ लगाने के बाद, अल्बनीज़ ने कहा था कि यह "एक मित्र का कार्य नहीं है". ट्रम्प का दांव लिबरल पार्टी पर था. अपने विजय भाषण में अल्बनीज़ ने कहा, "वैश्विक अनिश्चितता के इस समय में, ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने आशावाद और दृढ़ संकल्प का चयन किया है."
गोवा के मंदिर में भगदड़ से 7 की मौत, 65 घायल : गोवा में शुक्रवार रात एक मंदिर में हुई भगदड़ में कम से कम 7 लोगों की मौत हो गई, जबकि 65 से अधिक लोग घायल हो गए. यह हादसा उस समय हुआ जब सैकड़ों श्रद्धालु एक धार्मिक उत्सव में शामिल होने के लिए एकत्र हुए थे. यह घटना शिरगांव गांव में हर साल आयोजित होने वाले श्री लैराई जात्रा उत्सव के दौरान हुई. यह उत्सव अग्नि-पथ पर चलने जैसी अनोखी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है.
नीट-यूजी पेपर लीक
एसबीआई की तिजोरी से पटना गैंग तक
द इंडियन एक्सप्रेस को मिले दस्तावेजों से पता चला है कि किस तरह आरोपियों ने पिछले साल के राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (स्नातक), या NEET-UG 2024 परीक्षा के पेपर लीक करने के लिए मिलकर काम किया. इसमें बिहार से लेकर झारखंड तक के तार जुड़े हैं.
परीक्षा 5 मई, 2024 को दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक, 571 शहरों में 4,750 केंद्रों पर आयोजित की गई थी. इसमें 14 केंद्र विदेश में थे. पटना में, पुलिस को सूचना मिली कि कुछ उम्मीदवारों को पेपर लीक हो गया है, जिसके बाद मामला दर्ज किया गया और उसी दिन चार उम्मीदवारों सहित आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया था. 17 मई, 2024 को मामला बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) को सौंप दिया गया और 23 जून को सीबीआई ने इसे अपने हाथ में ले लिया. 1 अगस्त को सीबीआई ने अपना पहला आरोपपत्र दाखिल किया. जांच के दौरान आपराधिक साजिश, आपराधिक विश्वासघात और जालसाजी की धाराओं के तहत 37 गिरफ्तारियां की गईं.
3 साल की बच्ची से संथारा करवाया, मौत
एक तीन साल की अबोध बच्ची की मौत तब हो गई, जब उसके माता-पिता ने उसे जैन धर्म में आमरण अनशन की दीक्षा दी. इससे विवादास्पद संथारा प्रथा चर्चा में आ गई है. यह घटना 21 मार्च को मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में हुई थी, लेकिन अब प्रकाश में आई, जब आईटी पेशेवर पीयूष जैन, 35, और वर्षा जैन, 32 को एक अमेरिकी संस्था गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स से मान्यता मिली कि उनकी बेटी वियाना ‘धार्मिक अनुष्ठान संथारा’ लेने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्ति बन गई है. ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के लिए श्रुति तोमर के अनुसार, संथारा, जिसे सल्लेखना भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रथा है, जिसमें व्यक्ति मरने के इरादे से स्वेच्छा से भोजन और पानी का त्याग करता है. 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट ने इसे अवैध करार दिया था. इसमें कहा गया था कि यह प्रथा जैन धर्म के लिए आवश्यक नहीं है, लेकिन कुछ ही समय बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी, जिससे यह पुन: वैध हो गया.
यह तो तय है कि इस मामले में एक बच्चा शामिल है और नाबालिगों से जुड़े ऐसे ही मामलों ने कानूनी बहस छेड़ दी है कि क्या उन्हें इस तरह की प्रथा के लिए सहमति देने योग्य माना जा सकता है. मध्य प्रदेश बाल अधिकार आयोग के सदस्य ओमकार सिंह ने कहा, “यह धार्मिक प्रथा बुजुर्गों के लिए है. मुझे माता-पिता से सहानुभूति है, लेकिन यह एक छोटे बच्चे के साथ नहीं किया जाना चाहिए, भले ही वह मृत्युशैया पर हो. बच्चे को कुछ भी पता नहीं था.” सिंह ने कहा कि आयोग ‘इस मामले के कानूनी पहलुओं पर विचार कर रहा है’ और जल्द ही तय कर सकता है कि माता-पिता के खिलाफ आरोप लगाए जाएं या नहीं.
दिसंबर में वियाना को ब्रेन ट्यूमर का पता चला था. 10 जनवरी को मुंबई में सफल सर्जरी के बावजूद, मार्च में कैंसर फिर से उभर आया. वर्षा ने कहा, “वह ठीक थी, लेकिन 15 मार्च को बीमार पड़ गई और डॉक्टरों ने ट्यूमर के फिर से उभरने का निदान किया.” वर्षा के अनुसार, वियाना 15 मार्च से गले में जकड़न की समस्या से पीड़ित थी और 18 मार्च से उसे जूस पिलाया जा रहा था. उन्होंने कहा, “21 मार्च की शाम को डॉक्टरों ने तरल पदार्थ देने के लिए कृत्रिम फीडिंग ट्यूब लगाई और कहा कि उसके ठीक होने के बाद इसे हटा दिया जाएगा.” लेकिन बाद में उस शाम दंपती ने अपने आध्यात्मिक नेता राजेश मुनि महाराज से सलाह ली. मां ने बताया कि उन्होंने ‘बच्ची की पीड़ा कम करने और उसके अगले जन्म को बेहतर बनाने’ के लिए संथारा चुनने के लिए राजी किया. इंदौर में आध्यात्मिक नेता के आश्रम में रात 9.25 बजे संथारा समारोह शुरू हुआ. अनुष्ठान शुरू होने के करीब 40 मिनट बाद रात 10.05 पर वियाना की मौत हो गई. वर्षा ने कहा, ‘इस घटना के बाद हम टूट गए.’
माता-पिता ने बताया कि आध्यात्मिक गुरु ने उन्हें विश्व रिकॉर्ड के लिए आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित किया और उनके अनुयायियों ने आवेदन पूरा करने में मदद की. विशेषज्ञों ने कहा कि कानूनी दृष्टिकोण से यह घटना जटिल थी. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज अभय जैन गोहिल ने कहा, “संथारा के 40 मिनट के भीतर लड़की की मौत हो गई. इसका अर्थ है कि वह पहले से ही मृत्युशैया पर थी. इस मामले में हालांकि निर्णय माता-पिता द्वारा अपनी बीमार बेटी के लिए लिया गया है, इसके बावजूद इसे कानूनी रूप से चुनौती देना मुश्किल होगा.”
चिकित्सा विशेषज्ञ स्पष्ट रूप से इस घटना के विरोध में हैं. नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा, “मेरी राय में माता-पिता को उसे आध्यात्मिक स्थान पर ले जाने के बजाय अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराना चाहिए था. लड़की बहुत छोटी थी और वह अनुष्ठान के तनाव को सहन नहीं कर सकती थी.”
शाजी करुण (1952-2025)
शाजी का कैमरा एक कविता की तरह था
शाजी करुण, जिन्हें सत्यजित रे के कैमरामैन सुब्रत मित्र के बाद भारत का सर्वश्रेष्ठ छायाकार माना जाता है, एक ऐसी विशिष्ट दृष्टि के साथ आए थे, जिसने भारतीय सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी. उनका कैमरा चेतन, संवेदनशील प्राणी की तरह था, जो मनुष्य की आत्मा से बहुत करीब से मुठभेड़ करता था - जहां रोजमर्रा की बाधाएँ नहीं थीं और जहां खामोश मानवता, उसकी छोटी जीत और बड़ी कमजोरियों के बारे में सशक्त रूप से बोलती थी. गोविंद अरविंदन के साथ उनका सहयोग केरल सिनेमा का स्वर्णिम युग था. 'पोक्कुवेयिल', 'कंचना सीता', 'थम्पु' और 'चिदंबरम' जैसी फिल्मों में शाजी का कैमरा कविता की तरह था - अनावश्यक चीजों से मुक्त, धीमा, प्रतीक्षारत और सौंदर्य से भरपूर. उनके दृश्य आपकी आत्मा से चिपक जाते थे. निर्देशक के रूप में, उनकी पहली फिल्म 'पिरवी' एक पिता की कहानी थी, जो खोए बेटे की तलाश करता है. उनका कैमरा नुकसान की अचानकता, आशा का धीमा रिसाव और प्रकृति के अटल मार्च को कैद करता था.
इंगमार बर्गमैन के स्वेन नाइक्विस्ट की तरह, उनका कैमरा पहले देखता और फिर सहेजता था. अपनी रोशनी में, वह गॉर्डन विलिस जैसे दिग्गज अमेरिकी छायाकार की तरह उदात्तता हासिल कर सकते थे. भारत के विजुअल शोर में, उन्होंने एक ऐसी शैली विकसित की, जो मौन और कवित्व से भरी थी. शाजी का योगदान विशेष था, क्योंकि उन्होंने एक ऐसी दृश्य भाषा का निर्माण किया, जिसने कई अनुयायियों को प्रेरित किया. उनका कैमरा समय और विषम परिस्थितियों से परे, मानवता की आत्मा के बहुत करीब था. मनीकंट्रोल में राकेश बेदी का पूरा लेख यहां पढ़ सकते हैं.
99 के डेविड एटनबरो, एक अलग दुनिया दिखाने वाले
प्रसिद्ध प्रकृतिवादी और ब्रॉकास्टर सर डेविड एटनबरो, जो अपने 99वें जन्मदिन के करीब हैं, ने अपने जीवन के अंत के बारे में खुलकर बात की है. 8 मई को उनका जन्मदिन है. अपनी नई फिल्म "ओशन : विद डेविड एटनबरो" के विमोचन के साथ, उन्होंने ग्रह के भविष्य के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की है, खासकर जब वे नहीं रहेंगे. एटनबरो ने अपने दशकों लंबे अनुभव को साझा करते हुए बताया कि कैसे समुद्र के प्रति उनकी समझ बदली है. बचपन में वे समुद्र को एक विशाल जंगल मानते थे, जिसे मानवता के लाभ के लिए वश में किया जाना था. लेकिन अब, लगभग सौ साल इस ग्रह पर बिताने के बाद, वे मानते हैं कि पृथ्वी पर सबसे महत्वपूर्ण स्थान जमीन नहीं, बल्कि समुद्र है. उन्होंने स्वीकार किया कि आज समुद्र की स्थिति बहुत खराब है, लेकिन वे एक "असाधारण खोज" के कारण आशान्वित हैं. सात दशकों से अधिक समय तक काम करने वाले सर डेविड का मानना है कि समुद्र में "जीवन में वापस उछाल" मारने की क्षमता है. उनका दृढ़ विश्वास है, "अगर हम समुद्र को बचाते हैं, तो हम अपनी दुनिया को बचाते हैं." एटनबरो का जीवनकाल समुद्री खोज के महान युग के साथ मेल खाता है, जिसमें वैज्ञानिकों ने अद्भुत नई प्रजातियों, महाकाव्य प्रवासन और जटिल पारिस्थितिक तंत्रों का खुलासा किया है. उनकी फिल्म इन खोजों को साझा करती है, समुद्र के खराब स्वास्थ्य के कारणों पर प्रकाश डालती है, और इसे पुनर्स्थापित करने के तरीके दिखाती है. उन्होंने इस पर भी प्रकाश डाला कि पृथ्वी के लगभग हर देश ने समुद्र के एक तिहाई हिस्से की रक्षा के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमति व्यक्त की है, जिसे वे बदलाव का एक महत्वपूर्ण क्षण मानते हैं.
सर डेविड एटनबरो (जन्म 8 मई 1926) एक विश्व प्रसिद्ध ब्रिटिश प्रसारक, जीवविज्ञानी, प्राकृतिक इतिहासकार और लेखक हैं. उन्हें व्यापक रूप से प्राकृतिक दुनिया पर आधारित वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री) बनाने और प्रस्तुत करने के लिए जाना जाता है. लगभग सात दशकों से अधिक के अपने करियर में, उन्होंने बीबीसी के साथ मिलकर कई अभूतपूर्व शृंखलाएँ बनाईं, जिनमें "लाइफ ऑन अर्थ", "द लिविंग प्लैनेट", "द ब्लू प्लैनेट" और "प्लैनट अर्थ" जैसी कालजयी रचनाएँ शामिल हैं. उनकी विशिष्ट आवाज़, प्रकृति के प्रति गहरा ज्ञान और जुनून ने दुनिया भर के करोड़ों लोगों को पृथ्वी के आश्चर्यों से परिचित कराया है. शुरुआत में उनका काम मुख्य रूप से वन्यजीवों की सुंदरता और विविधता दिखाने पर केंद्रित था, लेकिन हाल के वर्षों में, वे पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान जैसे गंभीर मुद्दों के मुखर पैरोकार बन गए हैं. वे अपनी फिल्मों और भाषणों के माध्यम से लगातार इन खतरों के प्रति जागरूकता बढ़ाते हैं और तत्काल कार्रवाई का आग्रह करते हैं.
द गार्डियन ने उनके योगदान के बारे में 99 मशहूर लोगों से बातचीत की है. और बीबीसी ने उनकी फिल्मों से 99 दृश्यों को संजोकर पेश किया है.
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