04/09/2025: उल्टा तो नहीं पड़ेगा मोदी का दांव | तेजस्वी ने कहा, 'दिखावटी'। चीन का शक्ति प्रदर्शन, ट्रम्प का सोशल मीडिया | लुढ़कता रुपया | बढ़ता बेरोजगार | हाईकोर्ट के फैसले से हलाकान
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
'मां का अपमान' पर बिहार में सियासी उबाल, तेजस्वी का पलटवार; NDA का बंद।
चीन का शक्ति प्रदर्शन: परेड में पुतिन-किम साथ, अमेरिका को सीधा संदेश।
बैंकों की RBI को चेतावनी: राज्यों के बॉन्ड से दम घुट रहा, फंडिंग का संकट।
रोजगार पर बुरी खबर: EPFO के मुताबिक लगातार दूसरे साल घटीं औपचारिक नौकरियां।
सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में शर्मनाक घटना, अस्पताल में चूहों ने दो नवजातों को मारा।
दिल्ली दंगा: 5 साल से मुकदमा नहीं, उमर खालिद समेत 9 आरोपियों की जमानत फिर खारिज।
GST में बड़ा बदलाव: अब चार की जगह सिर्फ 5% और 18% के दो स्लैब होंगे।
18 साल बाद जेल से रिहा हुआ गैंगस्टर अरुण गवली, हत्या में काट रहा था उम्रकैद।
रिलायंस पर बढ़ा दबाव, अंबानी ने भू-राजनीतिक संकट से निपटने को परिवार को उतारा।
ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति बोल्सोनारो पर तख्तापलट का मुकदमा, हो सकती है लंबी जेल।
क्या BCCI से जुड़ेंगे धोनी? पूर्व कप्तान को बड़े 'मेंटॉरशिप रोल' का ऑफर।
किताब बैन पर लेखिका मार्गरेट एटवुड का व्यंग्यात्मक जवाब, लिखी नई कहानी।
बिहार
उल्टा तो नहीं पड़ेगा ‘मां के अपमान’ के बयान वाला सियासी दांव?
पीएम के बयान पर तेजस्वी का पलटवार, कहा- यह सब 'दिखावटी' है
द हिंदू के मुताबिक राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने बुधवार (3 सितंबर, 2025) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान को 'दिखावटी' करार दिया, जिसमें पीएम ने अपनी मां के कथित अपमान को लेकर विपक्ष पर निशाना साधा था. तेजस्वी ने प्रधानमंत्री के बयान के समय पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि इस टिप्पणी के बाद मोदी विदेश गए थे और वहां हंसते हुए देखे गए, लेकिन भारत लौटते ही वे रोने लगे. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता ने आरोप लगाया कि बीजेपी उन नेताओं का सम्मान करती है जो महिलाओं का अपमान करते हैं.
उन्होंने कहा कि मोदी जी ने अतीत में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 'डीएनए' पर सवाल उठाए थे, कांग्रेस सांसद शशि थरूर की पत्नी को '50 करोड़ की गर्लफ्रेंड' कहा था और कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का भी अपमान किया था. तेजस्वी की यह टिप्पणी प्रधानमंत्री के उस बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें उन्होंने 27 अगस्त को दरभंगा में 'मतदाता अधिकार यात्रा' के दौरान अपनी मां के कथित अपमान को लेकर राजद और कांग्रेस पर हमला बोला था. इस मामले में टिप्पणी करने वाले एक युवक को गिरफ्तार कर लिया गया है.
तेजस्वी यादव इसे प्रधानमंत्री का 'चुनावी स्टंट' बताकर और बीजेपी नेताओं द्वारा पहले महिलाओं पर की गई टिप्पणियों की याद दिलाकर इस हमले को कुंद करने की कोशिश कर रहे हैं. तेजस्वी यादव ने सवाल किया, "हर किसी की मां होती है और किसी को भी किसी की मां के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. हम ऐसे कामों का समर्थन नहीं करते, लेकिन सवाल यह है कि प्रधानमंत्री ने प्रज्वल रेवन्ना (हाल ही में बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए गए पूर्व सांसद) के लिए प्रचार क्यों किया?" उन्होंने आगे कहा, "यह मोदीजी ही थे जिन्होंने '50 करोड़ की गर्लफ्रेंड' कहा और सोनिया गांधीजी के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया... क्या प्रधानमंत्री के लिए नीतीश कुमार के डीएनए पर बोलना उचित था? बीजेपी विधायकों ने बिहार विधानसभा में मेरी मां और बहन का अपमान किया है." तेजस्वी ने मोदी के बयान के समय पर भी सवाल उठाया.
बीजेपी 'मां के अपमान' के मुद्दे को भावनात्मक रूप से भुनाकर महिला मतदाताओं और आम जनता की सहानुभूति हासिल करना चाहती है. वहीं, आरजेडी इसे बीजेपी का पाखंड बताकर यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि बीजेपी खुद महिलाओं का सम्मान नहीं करती. तेजस्वी का नीतीश कुमार के 'डीएनए' और '50 करोड़ की गर्लफ्रेंड' जैसे पुराने बयानों का ज़िक्र करना यह याद दिलाने की कोशिश है कि राजनीतिक हमलों में बीजेपी भी पीछे नहीं रही है.
राहुल की यात्रा से 5 बड़ी बातें
“द इंडियन एक्सप्रेस” में संतोष सिंह ने बताया है कि राहुल गांधी की 16 दिन की “वोटर अधिकार यात्रा” से पांच प्रमुख बातें निकलती हैं. इस यात्रा से कांग्रेस को मजबूती मिली है. तेजस्वी यादव के साथ इंडिया गठबंधन में एकता प्रदर्शित हुई है, जिससे एनडीए पर दबाव बना है.
कांग्रेस को महागठबंधन की "कमजोर कड़ी" कहा जा रहा था, लेकिन बिहार भर में “वोटर अधिकार यात्रा” के दौरान उमड़ी भारी भीड़ ने पार्टी को नई ऊर्जा दी है. यह यात्रा मुख्य रूप से कांग्रेस का कार्यक्रम थी. यात्रा में शामिल आरजेडी के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव का कहना है कि जो लोग पूछते हैं कि यात्रा के बाद गति कैसे बनाए रखेंगे, तो वे चिंता न करें, क्योंकि हम इसके लिए काम कर रहे हैं. यह यात्रा बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन की स्थिति को मजबूती देने का काम कर रही है. संतोष सिंह के अनुसार, ये पांच संदेश हैं :-
कांग्रेस को नई ऊर्जा : कांग्रेस बिहार में 1990 के बाद राजनीतिक रूप से कमजोर हो गई थी. 2015 में महागठबंधन के साथ आने पर उसने 27 सीटें जीतीं, लेकिन 2020 में सीटों की संख्या घटकर 19 रह गई. राहुल गांधी की इस यात्रा ने कांग्रेस को फिर से राजनीतिक मंच पर लाने में मदद की है, खासकर मुस्लिम वोटरों के बीच कई इलाकों में. यात्रा में बड़ी भीड़ जुटने से यह साफ दिखा कि बिहार में कांग्रेस को नया समर्थन मिल रहा है. पहले इसे गठबंधन की कमजोर कड़ी कहा जाता था, लेकिन अब पार्टी ने अपनी ताकत दिखाई. यात्रा पूरी तरह राहुल गांधी के नेतृत्व में रही. इससे यह संदेश गया कि कांग्रेस अब सीधे अपने दम पर जनता से जुड़ रही है.
तेजस्वी यादव का उदय: राहुल के साथ यात्रा में तेजस्वी यादव भी थे, जिन्होंने खुद को विपक्षी गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के विकल्प के रूप में पेश किया. तेजस्वी और कांग्रेस में करीबी तालमेल दिखा.
इंडिया ब्लॉक की एकजुटता: राहुल की यात्रा ने चुनावी धोखाधड़ी के आरोपों पर जोर दिया और विशेष रूप से बिहार में एसआईआर के खिलाफ एकजुट विपक्ष को सामने लाया, जिसमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन समेत कई विपक्षी नेता शामिल थे.
यात्रा में बेरोज़गारी, महंगाई और वोटर अधिकार जैसे मुद्दों को बड़े पैमाने पर उठाया गया. इससे कांग्रेस ने यह दिखाने की कोशिश की कि वह जनता से जुड़े असल मुद्दों पर लड़ रही है. पप्पू यादव, जो पूर्व में कांग्रेस से जुड़े थे, अब महागठबंधन में शामिल हो गए हैं. उनकी पकड़ सीमांचल क्षेत्र के कई सीटों पर है. यह महागठबंधन के लिए लाभकारी है.
एनडीए पर दबाव: यात्रा ने एनडीए को रणनीति बदलने पर मजबूर किया है. बड़ी भीड़ और लोकप्रियता के कारण एनडीए को चिंता हुई कि विपक्ष एकजुट होकर जनता में पकड़ बना रहा है. इससे बिहार की राजनीति पर सीधा असर पड़ेगा.
मोदी की माँ को मुद्दा बनाने की तैयारी बीजेपी की दिल्ली में बड़ी बैठक, आज बिहार बंद का आह्वान
द हिंदू की ही खबर है कि भारतीय जनता पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र एक बड़ी रणनीति तैयार की है. दिल्ली में हुई बिहार बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक में यह फैसला लिया गया कि राज्य की हर विधानसभा सीट पर सभी सहयोगी दलों के साथ संयुक्त बैठकें की जाएंगी. पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी और मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ विपक्ष के अभियान पर पलटवार करने की भी योजना बनाई है.
सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने प्रधानमंत्री की मां के अपमान के विरोध में गुरुवार (4 सितंबर, 2025) को राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया है, जो इस मुद्दे को और हवा देगा. वहीं, तेजस्वी यादव अपनी 'मतदाता अधिकार यात्रा' और मतदाता सूची में गड़बड़ी के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित रखने की कोशिश करेंगे.
नई दिल्ली में हुई इस बैठक में बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, बिहार बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और नित्यानंद राय जैसे बड़े नेता शामिल हुए. बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने बताया कि सीटों के बंटवारे पर कोई चर्चा नहीं हुई क्योंकि यह फैसला केंद्रीय नेतृत्व को लेना है. बैठक में यह तय हुआ कि 25 सितंबर तक हर विधानसभा क्षेत्र में एनडीए कार्यकर्ताओं की बैठकें आयोजित की जाएंगी. सूत्रों के अनुसार, बैठक में कई नेताओं का मानना था कि मतदाता सूची (SIR) के खिलाफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अभियान का ज़मीन पर कोई खास असर नहीं हो रहा है.
बीजेपी को लगता है कि विपक्ष का मतदाता सूची पर अभियान स्थानीय मुद्दों से ध्यान भटका रहा है, जो अंततः विपक्ष के लिए ही नुकसानदायक हो सकता है. पार्टी का मानना है कि प्रधानमंत्री की मां पर हुए हमले की इंडिया ब्लॉक के नेताओं द्वारा निंदा न करना विपक्ष को महंगा पड़ेगा. बीजेपी इस भावनात्मक मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाकर बढ़त हासिल करना चाहती है. इसके अलावा, एनडीए को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा घोषित कल्याणकारी योजनाओं से भी काफी उम्मीदें हैं, जो चुनाव में फायदेमंद साबित हो सकती हैं.
एनडीए अब ज़मीन पर और आक्रामक तरीके से प्रचार अभियान शुरू करेगा. गुरुवार को बुलाया गया राज्यव्यापी बंद इसी जवाबी हमले का एक हिस्सा है. जल्द ही पार्टी की चुनाव अभियान समिति की घोषणा की जाएगी और उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू होगी. आने वाले दिनों में एनडीए और विपक्ष के बीच टकराव और बढ़ेगा, जिसमें मतदाता सूची और व्यक्तिगत हमले प्रमुख मुद्दे बने रहेंगे.
एक पोलिंग बूथ पर 45% वोटर कैसे हटे? ज़मीनी रिपोर्ट में 'फ़र्ज़ी' वोटरों का खुलासा
स्क्रोल के आयुष तिवारी के मुताबिक बिहार के पूर्णिया ज़िले के प्राणपट्टी गांव के एक पोलिंग बूथ की मतदाता सूची से 45% से ज़्यादा नाम हटा दिए गए हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. इस ज़मीनी रिपोर्ट के अनुसार, इस गांव के पोलिंग स्टेशन नंबर एक की मतदाता सूची में बड़ी संख्या में मुस्लिम नाम जोड़े गए थे, जबकि गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं रहता. स्थानीय लोग इन्हें 'फ़र्ज़ी वोटर' बता रहे हैं. चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के तहत इनमें से अधिकांश नाम अब हटा दिए गए हैं. इसी बीच, द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट ने चिंता और बढ़ा दी है, जिसके अनुसार चुनाव आयोग अब बिहार की अंतिम मतदाता सूची नामांकन की आखिरी तारीख के बाद जारी कर सकता है, जबकि पहले यह 30 सितंबर को आनी थी.
यह रिपोर्ट विपक्ष के उन आरोपों को बल देती है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हो रही हैं. एक ही बूथ से 45% मतदाताओं का हटना बताता है कि चुनावी सूचियों में हेरफेर की आशंका कितनी गहरी है. यह मामला सिर्फ कुछ नामों के कटने का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद, यानी निष्पक्ष चुनाव पर सवाल उठाता है. चुनाव आयोग द्वारा अंतिम सूची जारी करने में देरी से यह संदेह और भी गहरा हो गया है.
पूर्णिया के कसबा विधानसभा क्षेत्र में आने वाले प्राणपट्टी गांव के पोलिंग स्टेशन नंबर एक पर अप्रैल 2024 में मतदाताओं की संख्या 732 से बढ़कर 812 हो गई थी. इसमें 165 नए वोटर जोड़े गए थे, जिनमें से 40 मुस्लिम थे. स्थानीय वार्ड सदस्य राजेश कुमार का आरोप है कि ये फ़र्ज़ी वोटर हैं, क्योंकि गांव में कोई मुस्लिम परिवार नहीं रहता. एसआईआर प्रक्रिया के तहत इस बूथ से कुल 499 मतदाताओं के नाम हटाए गए, जिनमें से 351 को 'अनुपस्थित' बताया गया. स्थानीय लोगों का दावा है कि यही 351 लोग 'फ़र्ज़ी वोटर' थे. हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में इन 'अनुपस्थित' या 'फ़र्ज़ी' वोटरों में से किसी ने भी वोट नहीं डाला था, जिससे यह रहस्य और भी गहरा हो गया है कि आखिर इन्हें सूची में जोड़ा ही क्यों गया था. स्थानीय लोग इसके लिए कांग्रेस के स्थानीय विधायक मो. अफाक आलम पर आरोप लगा रहे हैं.
यह मामला एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करता है. संभव है कि इन फ़र्ज़ी वोटरों को पंचायत या स्थानीय चुनावों को प्रभावित करने के लिए सूची में जोड़ा गया हो. लोकसभा चुनाव में वोट न पड़ना यह भी बताता है कि शायद यह कोशिश सफल नहीं हो पाई. अब सबसे बड़ा सवाल चुनाव आयोग की भूमिका पर है. द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, अंतिम मतदाता सूची नामांकन के बाद जारी करने का मतलब होगा कि उम्मीदवारों को यह पता ही नहीं होगा कि उनके असली मतदाता कौन हैं. यह कदम चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता पर एक काला धब्बा लगा सकता है और विपक्ष इसे एक बड़ी साज़िश के तौर पर पेश करेगा. प्राणपट्टी गांव का यह मामला एक नज़ीर बन सकता है और चुनाव से पहले यह एक बड़ा कानूनी और राजनीतिक मुद्दा बन सकता है.
जीएसटी के अब केवल दो स्लैब, लेकिन विपक्ष शासित राज्यों ने राजस्व हानि का प्रश्न उठाया
जीएसटी के अब चार की जगह केवल दो स्लैब होंगे- 5% और 18%. जीएसटी काउंसिल ने बुधवार को दो-स्तरीय दर संरचना को मंजूरी दे दी, जो 22 सितंबर से लागू होगी. देर रात हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सभी फैसले सर्वसम्मति से लिए गए हैं और किसी भी राज्य ने इन संशोधनों का विरोध नहीं किया. लेकिन, राज्यों ने संभावित राजस्व हानि की भरपाई के लिए मुआवज़ा तंत्र पर आश्वासन की मांग की. वे स्पष्टता चाहते हैं कि संभावित घाटे की भरपाई किस तरह की जाएगी. पुष्पिता डे के मुताबिक, झारखंड, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक जैसे विपक्ष-शासित राज्यों ने राजस्व हानि को लेकर चिंता जताई है और कहा है कि जब तक स्पष्ट मुआवज़ा तंत्र नहीं लाया जाता, वे काउंसिल की बैठक में इस प्रस्ताव को मंज़ूरी नहीं देंगे. मीडिया से बात करते हुए झारखंड के वित्त मंत्री राधा कृष्ण किशोर ने कहा कि जब तक वे राजस्व हानि के प्रभाव को भलीभांति नहीं समझ लेते, तब तक इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे. हिमाचल प्रदेश के तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी ने कहा कि वे इस नुकसान को दूर करने के लिए संभावित समाधान तलाशेंगे. इससे पहले विपक्षी राज्यों ने यह तर्क दिया था कि सभी राज्यों का कुल राजस्व घाटा लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है, और कुछ राज्यों को 10,000–15,000 करोड़ रुपये तक का नुकसान उठाना पड़ सकता है. राज्यों ने चिंता जाहिर की कि यह राजस्व घाटा सीधे उनके सामाजिक कल्याण और विकास कार्यक्रमों को प्रभावित करेगा. सरकारी सूत्र ने बताया कि दो-दर संरचना को पास कराने के लिए काफी प्रयास करने होंगे.
के. कविता ने भाई को चेताया, बीआरएस छोड़ी
जैसा कि अनुमान था, तेलंगाना की एमएलसी के. कविता ने बुधवार को विधान परिषद और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया. उनका इस्तीफ़ा पार्टी से उनके निलंबन के एक दिन बाद आया. मंगलवार को बीआरएस नेतृत्व ने उन्हें "पार्टी विरोधी गतिविधियों" के आरोप में निलंबित कर दिया था, लेकिन निलंबन पत्र में उनके खिलाफ लगाए गए सटीक आरोपों का उल्लेख नहीं किया था. हैदराबाद में अपने आवास पर मीडिया से बातचीत करते हुए कविता ने साफ किया कि वह किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल नहीं होंगी. उन्होंने कहा, “मेरे लिए इसकी कोई ज़रूरत नहीं है.” कविता ने मुख्य रूप से पूर्व मंत्री टी. हरीश राव और पूर्व राज्यसभा सदस्य जे. संतोष कुमार को निशाना बनाया और कहा कि ये दोनों ताकतें के. चंद्रशेखर राव परिवार को तोड़ने की कोशिश कर रही हैं.
अपने भाई और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष, पूर्व मंत्री के.टी. रामाराव (केटीआर) से सीधा अपील करते हुए कविता ने कहा, “रमन्ना, इन ताकतों से सावधान रहो. ये लोग हम सबको बाहर निकालने के बाद पार्टी पर कब्ज़ा करना चाहते हैं. जब तक परिवार को पूरी तरह तोड़ न दें, तब तक वे रुकने वाले नहीं हैं.”
18 साल बाद जेल से रिहा हुआ गैंगस्टर अरुण गवली
शिवसेना नेता कमलाकर जामसांडेकर की हत्या के मामले में गिरफ्तारी के करीब 18 साल बाद, गैंगस्टर से नेता बना अरुण गवली बुधवार (3 सितंबर, 2025) को नागपुर सेंट्रल जेल से बाहर आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ़्ते 2007 के इस मामले में उसे ज़मानत दे दी थी. गवली महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) के तहत उम्रकैद की सज़ा काट रहा था. 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए उसकी रिहाई का आदेश दिया कि गवली लगभग दो दशक जेल में बिता चुका है, जबकि उसकी अपील अदालत में लंबित है. कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद गवली दोपहर करीब 12:30 बजे जेल से बाहर आया, जहां उसके परिवार, रिश्तेदारों, वकीलों और समर्थकों की भारी भीड़ ने उसका स्वागत किया. कड़ी सुरक्षा के बीच उसे सीधे नागपुर हवाई अड्डे ले जाया गया, जहां से वह मुंबई के लिए रवाना हो गया..
चीता कॉरिडोर की योजनाएं स्थगित
मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क और गांधीसागर अभयारण्य को राजस्थान के मुकंदरा हिल्स टाइगर रिज़र्व से जोड़ने वाले 17,000 वर्ग किलोमीटर के चीता कॉरिडोर की योजनाओं को स्थगित कर दिया गया है. आनंद मोहन जे. के मुताबिक, अधिकारियों को आशंका है कि प्रोजेक्ट चीता के तहत दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीते यदि इस कॉरिडोर के ज़रिए राजस्थान चले गए तो वे वापस अपने मूल राज्य (मध्य प्रदेश) में नहीं लौटेंगे. मध्यप्रदेश के एक वन्यजीव अधिकारी ने कहा, “इसलिए हम पहले मध्यप्रदेश में ही चीता आबादी बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.”
अमेरिकी ट्रेडिंग फर्म जेन स्ट्रीट ने सेबी के ख़िलाफ़ खोला मोर्चा, बाज़ार में हेरफेर के आरोपों पर दस्तावेज़ न देने का लगाया आरोप
अमेरिका की बड़ी ट्रेडिंग फर्म जेन स्ट्रीट ने बुधवार को भारत के बाज़ार नियामक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के ख़िलाफ़ एक मामला दायर किया है. फर्म का आरोप है कि सेबी उसे बाज़ार में हेरफेर के आरोपों के ख़िलाफ़ अपनी सफ़ाई पेश करने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ मुहैया नहीं करा रहा है. रॉयटर्स द्वारा समीक्षा किए गए फ़ाइलिंग के अनुसार, प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (SAT) में दायर इस मामले में, फर्म ने न्यायाधिकरण से सेबी को वे सामग्री साझा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है, जो नियामक के अनुसार आरोपों को ग़लत साबित करने के लिए ज़रूरी हैं. जेन स्ट्रीट ने अपनी अपील में कहा, "ये दस्तावेज़ निर्विवाद रूप से प्रासंगिक हैं."
यह मामला भारत के वित्तीय बाज़ार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें एक बड़ी वैश्विक फर्म और देश के शीर्ष बाज़ार नियामक आमने-सामने हैं. इसका नतीजा भारत में विदेशी निवेशकों के भरोसे को प्रभावित कर सकता है. अगर सेबी पर निष्पक्ष जांच न करने के आरोप सही साबित होते हैं, तो यह भारत की नियामक प्रणाली की छवि पर असर डाल सकता है. सेबी ने 3 जुलाई को एक अंतरिम आदेश में जेन स्ट्रीट पर निफ्टी बैंक इंडेक्स में हेरफेर करने का आरोप लगाया था और उसे भारत में ट्रेडिंग करने से रोक दिया था. सेबी के अनुसार, फर्म ने दो-चरणीय रणनीति अपनाई: पहले, इंडेक्स को कृत्रिम रूप से बढ़ाने के लिए कैश और वायदा बाज़ार दोनों में घटक स्टॉक ख़रीदे. फिर, इंडेक्स ऑप्शंस में बड़ी शॉर्ट पोज़िशन रखते हुए अपनी पोज़िशन को बेचा, जिससे इंडेक्स में गिरावट से मुनाफ़ा कमाया जा सके. हालांकि, जेन स्ट्रीट ने इन दावों को ख़ारिज करते हुए ज़ोर दिया है कि उसके कार्य मानक "इंडेक्स आर्बिट्राज" थे. यह एक ट्रेडिंग प्रैक्टिस है जिसका उद्देश्य बाज़ारों में मूल्य के अंतर का फ़ायदा उठाकर बाज़ार में तरलता और दक्षता को बढ़ाना है. इस विवाद के केंद्र में बाज़ार में हेरफेर और "इंडेक्स आर्बिट्राज" जैसी वैध ट्रेडिंग रणनीतियों के बीच का बारीक अंतर है. जेन स्ट्रीट का तर्क है कि सेबी उसके व्यापार मॉडल को ग़लत समझ रहा है और सबूतों तक पहुंच से इनकार करके उसे अपना पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं दे रहा है. यह मामला नियामक की शक्तियों और एक आरोपी फर्म के अधिकारों के बीच संतुलन को भी परखेगा.
भारतीय बैंकों ने रिजर्व बैंक को चेताया: राज्यों के बॉन्ड से 'दम घुट रहा है', ख़रीदारी की सीमा पूरी, मंडराया फंड का संकट
भारत के सबसे बड़े बैंकों ने भारतीय रिज़र्व बैंक (रिजर्व बैंक ) को दबे छुपे चेतावनी दी है कि वे राज्यों के सरकारी बॉन्ड के बोझ तले दब रहे हैं. राज्यों द्वारा जारी किए गए कर्ज़ को बड़ी मात्रा में ख़रीदने के बाद, बैंकों ने रिजर्व बैंक को बताया है कि उनका एक्सपोज़र इतनी तेज़ी से बढ़ गया है कि यह अब उनकी आंतरिक सीमाओं को छू रहा है. यह ख़ुलासा एक बड़े वित्तीय संकट का संकेत है. अगर बैंक, जो राज्यों के बॉन्ड के मुख्य ख़रीदार हैं, और ज़्यादा ख़रीदारी करने से पीछे हटते हैं, तो राज्यों के लिए फंड की भारी कमी हो सकती है. इससे उन राज्यों के लिए दरवाज़े बंद हो जाएंगे जिन्होंने इस साल अपने नियोजित उधार कार्यक्रमों को मुश्किल से शुरू ही किया है. इससे राज्यों को नकदी के लिए संघर्ष करना पड़ेगा और विकास कार्यों पर असर पड़ सकता है.
बैंकों ने स्पष्ट संदेश दिया है कि अगर आरबीआई ने हस्तक्षेप नहीं किया, तो राज्यों के कर्ज़ का बाज़ार लगातार जारी होने वाले बॉन्ड और निवेशकों की घटती रुचि के बोझ तले ढह सकता है. यह खुलासा करता है कि बाज़ार कितना नाज़ुक हो गया है. अगर बैंक पहले से ही अपनी अधिकतम सीमा पर हैं, तो उनका पीछे हटना राज्यों के लिए एक गंभीर फंडिंग संकट पैदा कर सकता है. यह स्थिति राज्यों द्वारा की जा रही लगातार और भारी उधारी का नतीजा है. बाज़ार की क्षमता से ज़्यादा बॉन्ड जारी किए जा रहे हैं, जिसे ख़रीदने के लिए अब पर्याप्त निवेशक नहीं मिल रहे हैं. बैंकों की यह चेतावनी रिजर्व बैंक और सरकार के लिए एक ख़तरे की घंटी है कि यह स्थिति टिकाऊ नहीं है. यह मांग और आपूर्ति के बीच एक क्लासिक असंतुलन है, जहां आपूर्ति मांग से बहुत ज़्यादा हो गई है.
अब रिजर्व बैंक को बाज़ार में हस्तक्षेप करने की ज़रूरत पड़ सकती है. इसमें बाज़ार में नकदी बढ़ाने, अन्य निवेशकों को राज्यों के बॉन्ड ख़रीदने के लिए प्रोत्साहित करने, या राज्यों के उधार कार्यक्रम को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए सरकार के साथ काम करने जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं. अगर इस स्थिति को सावधानी से नहीं संभाला गया, तो यह राज्यों के लिए एक बड़े वित्तीय संकट का रूप ले सकती है.
नाटो प्रमुख बोले- "रूस पर दबाव न डालने के कारण लगे प्रतिबंध", अमेरिका में बढ़ा भारत-विरोधी माहौल
उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के प्रमुख मार्क रुटे ने बुधवार को कहा कि उन्हें उम्मीद है कि पेरिस में यूरोपीय नेताओं के बीच होने वाली बातचीत में यूक्रेन के लिए सुरक्षा गारंटी की योजनाओं को अंतिम रूप दिया जाएगा और अमेरिकी भागीदारी पर एक स्पष्ट तस्वीर सामने आएगी. उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रपति ट्रम्प यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने को लेकर गंभीर हैं, और उन्होंने भारत पर लगे प्रतिबंधों को अपनी मंशा के एक उदाहरण के रूप में उद्धृत किया, क्योंकि "भारत युद्ध समाप्त करने के लिए रूस पर दबाव नहीं डाल रहा है." इस बीच, यूरोप की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं - जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों - ने रूस के युद्ध को बाधित करने के उद्देश्य से सेकेंडरी प्रतिबंधों का आह्वान किया है. ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका एक आक्रामक विदेश नीति अपना रहा है, यहां तक कि भारत जैसे सहयोगियों के साथ भी. भारत पर प्रतिबंध लगाना अमेरिका-भारत संबंधों में एक बड़े बदलाव का संकेत है. वहीं, यूरोप रूस पर एक मज़बूत और एकीकृत रुख़ अपनाने की कोशिश कर रहा है, जिससे उन देशों के साथ टकराव पैदा हो सकता है जो मॉस्को के साथ संबंध बनाए हुए हैं.
25वीं फ्रेंको-जर्मन मंत्रिस्तरीय परिषद के बाद, जर्मनी और फ्रांस ने रूस की युद्ध मशीन को निशाना बनाने वाले उपायों में तेज़ी लाने पर सहमति व्यक्त की है, जिसमें "तीसरे देशों की वे कंपनियां भी शामिल हैं जो रूस के युद्ध का समर्थन करती हैं."
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में खाली कुर्सियां, मोदी सरकार की सुशासन विफलता उजागर
भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSBs) अब भी बुनियादी कॉर्पोरेट गवर्नेंस मानकों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं. कई प्रमुख बोर्ड पद वर्षों से खाली पड़े हुए हैं. “बिज़नेसलाइन” द्वारा प्राप्त आरटीआई जवाबों से चिंताजनक तस्वीर सामने आई है. बैंक ऑफ़ बड़ौदा, जहां 16 निदेशक होने चाहिए, वहां सिर्फ 10 ही हैं. चेयरपर्सन और चार्टर्ड अकाउंटेंट निदेशक जैसे अहम पद खाली हैं. सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया में केवल 8 निदेशक हैं; यहां चेयरपर्सन, प्रबंध निदेशक और सीईओ का पद रिक्त है, साथ ही पांच अन्य पद भी खाली हैं. यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया में भी प्रबंध निदेशक और सीईओ नहीं हैं. इंडियन बैंक और पंजाब एंड सिंध बैंक में चार्टर्ड अकाउंटेंट निदेशक और चेयरपर्सन दोनों ही नहीं हैं. नेतृत्व का यह अभाव सिर्फ प्रशासनिक देरी नहीं है, बल्कि यह मोदी सरकार के तहत शासन की विफलता और नीतिगत पंगुता को उजागर करता है. यह दुर्भावना से नहीं, बल्कि सीधे-सीधे अयोग्यता से उपजा संकट है.
लगातार दूसरे साल औपचारिक रोज़गार में गिरावट, मोदी का रोजगार विहीन विकास
भारत में जिसे “रोज़गार उछाल” के रूप में पेश किया गया था, उसकी हवा अब स्पष्ट रूप से निकल चुकी है. नवीनतम ईपीएफ़ओ पे-रोल आंकड़े एक कठोर सच्चाई उजागर करते हैं, औपचारिक रोज़गार सृजन लगातार दो वर्षों से घट रहा है.
योगिमा सेठ शर्मा की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 में कुल नई नौकरियां घटकर 1.29 करोड़ रह गईं, जो वित्त वर्ष 2024 में 1.31 करोड़ थीं और 2023 के उच्च स्तर 1.38 करोड़ से भी नीचे आ गईं. यह गिरावट 2024 में 1.3% रही, जबकि इससे पहले यानी 2023 में यह और भी तीव्र 5.1% थी.
मोदी के रोज़गार सृजन के नारे अब खोखले साबित हो रहे हैं, क्योंकि भारत के युवाओं को तथाकथित "न्यू इंडिया" में सिमटते अवसरों और बढ़ती असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है.
बीसीसीआई से जुड़ेंगे एमएस धोनी ?
दो बार भारत को वर्ल्ड कप जिताने वाले पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) में एक बड़ी भूमिका की पेशकश की गई है. “क्रिक ब्लॉगर” की एक रिपोर्ट के अनुसार, धोनी को बीसीसीआई में "मेंटॉरशिप रोल" की पेशकश की गई है, जो 2021 टी-20 विश्व कप के दौरान मिले अल्पकालिक दायित्व से कहीं अधिक व्यापक है.
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) चाहता है कि धोनी, जूनियर और महिला क्रिकेट सहित भारतीय क्रिकेट की सभी टीमों में योगदान दें. इसका उद्देश्य है कि धोनी अपनी तीक्ष्ण क्रिकेटीय समझ और अनुभव से देश के उभरते सितारों को निखारने में मदद करें.
श्याम सरन: चीन की ताकत और प्रभाव बढ़ेगा, भारत के लिए शुभ संकेत नहीं
पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने चेतावनी दी है कि बीजिंग की बढ़ती आक्रामकता, पाकिस्तान के साथ गहराते संबंध, और शक्ति अंतर को संतुलित करने के लिए असममित रणनीतियों की आवश्यकता भारत के लिए चुनौती बन रही है. “हिंदुस्तान टाइम्स” में सरन ने लिखा कि इन सभी भू-राजनीतिक परिवर्तनों का सबसे बड़ा लाभार्थी चीन है, जिसकी शक्ति और प्रभाव बढ़ेंगे. यह भारत के लिए शुभ संकेत नहीं हो सकता. भारत तब सबसे अधिक सहज स्थिति में होता है, जब उसके अमेरिका और चीन के साथ संबंध, अमेरिका-चीन आपसी संबंधों से बेहतर हों.” उनका कहना है कि भारत-अमेरिका साझेदारी के कुछ महत्वपूर्ण पहलू ऐसे हैं जो शीर्ष स्तर पर उत्पन्न अस्थिरता से प्रभावित नहीं हुए हैं. इनमें प्रौद्योगिकी, रक्षा और आतंकवाद-रोधी सहयोग शामिल हैं. हालांकि, इसमें बदलाव संभव है. इसलिए, हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि इस व्यावहारिक सहयोग को बनाए रखा जाए, क्योंकि यह भारत के विकास लक्ष्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. इन्हीं सीमाओं के भीतर, तिआंजिन भारत के उन प्रयासों में एक छोटा-सा सफल कदम दर्शाता है, जिनके माध्यम से भारत एक प्रतिकूल अमेरिका से निपटने की कोशिश कर रहा है.
चीन में कैसे देखी जा रही मोदी-शी मुलाकात
“द प्रिंट” में सना हाशमी ने समीक्षा की है कि चीनी टिप्पणीकार नरेंद्र मोदी की हालिया चीनी राष्ट्रपति के साथ बैठकों के बारे में क्या लिख रहे हैं. उनके मुताबिक, “चीनी विमर्श में, मोदी की तिआंजिन यात्रा को मुख्यतः ट्रम्प के शुल्कों और चीन के प्रति भारत के सतर्क संपर्क के नजरिए से समझा जा रहा है. फिर भी, सहयोग की सीमाएं स्पष्ट बनी हुई हैं. जापान और फिलीपींस के साथ भारत की समानांतर सहभागिता बीजिंग के लिए यह याद दिलाने का काम करती है कि नई दिल्ली की सामरिक स्वायत्तता और बहुपक्षीय जुड़ाव महज नारे नहीं, बल्कि मार्गदर्शक सिद्धांत हैं.” इधर, “वॉशिंगटन पोस्ट” अपने संपादकीय में लिखता है, “भारत के साथ ट्रम्प की सख़्ती उल्टी पड़ सकती है.”
रुपया रिकॉर्ड गिरा, रिजर्व बैंक पीछे क्यों हट रहा है?
हितेश व्यास ने डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के गिरने पर रिपोर्ट की है. उनका कहना है कि ट्रम्प के टैरिफ के झटके के दबाव में डगमगाता रुपया अब रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है. डॉलर के मुकाबले 88 रुपये से भी नीचे गिर चुका है, और संभव है कि यह इस स्तर पर अटका रहे. क्योंकि भारतीय रिज़र्व बैंक आक्रामक हस्तक्षेप करने के प्रति विशेष रुचि नहीं दिखा रहा है. विश्लेषकों का कहना है कि गहरी वैश्विक अनिश्चितता के बीच केंद्रीय बैंक निर्यातकों को बचाने के लिए अपने भंडार में से खर्च करने को तैयार नहीं दिखता. “इसके पीछे यह विचार हो सकता है कि रुपये का थोड़ा अवमूल्यन निर्यातकों की मदद करेगा. इसलिए, टैरिफ के असर को संतुलित करने के लिए रुपये के कुछ कमजोर होने को स्वीकार किया जा सकता है,” रिपोर्ट में एक विदेशी मुद्रा बाज़ार विश्लेषक के हवाले से कहा गया है.
इंदौर के सरकारी अस्पताल में दो नवजातों की चूहों के काटने से मौत
बड़ी-बड़ी बातों के बरक्स हकीकत यह है कि हम अस्पतालों में नवजात शिशुओं को चूहों से बचाने की व्यवस्था तक नहीं बना सके हैं. मध्यप्रदेश में इंदौर के महाराजा यशवंतराव (एमवाय) अस्पताल में चूहों के काटने से दो बच्चों की मौत ने सरकार के दावों की सच्चाई सामने ला दी है. दोनों नवजात शिशु, जिन्हें इंदौर के सरकारी एमवाय अस्पताल के नवजात शल्य चिकित्सा गहन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) में चूहों ने काट लिया था, दम तोड़ चुके हैं. पहले शिशु की मृत्यु मंगलवार को हुई थी, जबकि दूसरे नवजात का आज बुधवार दोपहर निधन हो गया.
एमवाय अस्पताल के उप अधीक्षक डॉ. जितेंद्र वर्मा ने कहा, नवजात शिशु की दो उंगलियों पर खरोंच जैसी चोटें थीं, जिनको संभवतः चूहे के काटने के निशान माना जा रहा है. उसकी हालत अनियंत्रित सेप्टिसीमिया संक्रमण के कारण और बिगड़ गई, जो पूरे शरीर में फैल गया.
“द न्यूइंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, इस घटनाक्रम का एक दुखद पहलू यह भी है कि इंदौर पुलिस उस नवजात के माता-पिता का पता लगाने में असफल रही है, जिसकी मृत्यु मंगलवार को हुई थी. इस बीच, मध्यप्रदेश राज्य मानवाधिकार आयोग ने मामले का संज्ञान लिया है और अस्पताल से एक सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. एमवाय अस्पताल, मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल और मध्य भारत के प्रमुख देखभाल केंद्रों में से एक है. एक विडंबना यह भी है कि इंदौर को देश के सबसे स्वच्छ शहर का तमगा हासिल है, लेकिन अस्पताल परिसर में पहले भी चूहों के संक्रमण की शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं. जिससे स्वच्छता और अस्पताल रखरखाव में लगातार हो रही लापरवाहियों पर सवाल उठते हैं.
दिल्ली दंगा:
गौतम भाटिया : 5 साल से बिना ट्रायल आरोपियों की ज़मानत ख़ारिज, अदालत पर गंभीर सवाल
2 सितंबर, 2025 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने "दिल्ली दंगा मामले" में आरोपी नौ व्यक्तियों को ज़मानत देने से इनकार कर दिया. यह लेख लिखे जाने तक, ये व्यक्ति पांच साल से अधिक समय से जेल में हैं और अभी तक मुक़दमा शुरू नहीं हुआ है. यह लेख उस अदालती आदेश की एक आलोचनात्मक समीक्षा है, जिसमें लेखक गौतम भाटिया ने तर्क दिया है कि यह न्याय का एक गंभीर हनन है. यह विश्लेषण विशेष रूप से आरोपी उमर ख़ालिद के मामले पर केंद्रित है.
यह मामला भारत में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, न्याय प्रणाली की निष्पक्षता और आतंकवाद विरोधी क़ानूनों (जैसे UAPA) के उपयोग पर मौलिक सवाल खड़े करता है. पांच साल तक बिना मुक़दमे के लोगों को जेल में रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है. यह मामला यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका अभियोजन पक्ष के दावों का मूल्यांकन कैसे करती है – क्या वह सबूतों की गहन जांच करती है या केवल अभियोजन की कहानी को स्वीकार कर लेती है. यह फ़ैसला देश में नागरिक अधिकारों और क़ानून के शासन के भविष्य के लिए दूरगामी परिणाम रखता है.
अभियोजन पक्ष का मामला एक साज़िश के सिद्धांत पर आधारित है. चूंकि आरोपियों ने सार्वजनिक रूप से हिंसा का आह्वान नहीं किया था, इसलिए अभियोजन का आरोप है कि उन्होंने गुप्त रूप से दंगे भड़काने की साज़िश रची. इसके सबूत के तौर पर "संरक्षित गवाहों" (जिनकी पहचान गुप्त रखी जाती है) के बयान और परिस्थितिजन्य साक्ष्य जैसे व्हाट्सएप ग्रुप संदेश, फ़ोन कॉल्स और सार्वजनिक भाषणों को पेश किया गया है. लेखक का तर्क है कि अदालत ने इन कमज़ोर सबूतों को बिना किसी आलोचनात्मक जांच के स्वीकार कर लिया. अदालत ने उमर ख़ालिद के "इंक़लाबी सलाम" और "क्रांतिकारी इस्तेक़बाल" जैसे नारों को भी आपत्तिजनक माना. अदालत ने उमर ख़ालिद को साज़िश का "बौद्धिक वास्तुकार" (intellectual architect) करार दिया, लेकिन इस शब्द को परिभाषित करने या इसके लिए कोई ठोस सबूत देने में विफल रही.
लेखक गौतम भाटिया अदालत के दृष्टिकोण को "आंखें बंद करने वाला रवैया" (eyes wide shut approach) कहते हैं, जहाँ अदालत न केवल अभियोजन के सबूतों को, बल्कि उन सबूतों से निकाले गए निष्कर्षों को भी जस का तस मान लेती है. भाटिया इस आदेश की तुलना पिछली दो अदालतों के आदेशों से करते हुए कहते हैं कि यह फ़ैसला उनसे भी बदतर है, क्योंकि इसने सबूतों के साथ जुड़ने का कोई प्रयास तक नहीं किया. सबसे चौंकाने वाली बात अदालत की वह टिप्पणी है जिसमें उसने पांच साल की देरी को यह कहकर उचित ठहराया कि "मामला जटिल है, और मुक़दमा प्राकृतिक गति से आगे बढ़ रहा है." भाटिया इसे "न्यायिक बर्बरता" (judicial barbarism) कहते हैं. वह इस मामले की तुलना स्तालिन के दौर के "मास्को ट्रायल्स" से करते हैं, जहाँ सबूतों की अवमानना करते हुए लोगों को साज़िश के आरोप में दोषी ठहराया गया था.
इस फ़ैसले के बाद, सभी नौ आरोपी जेल में ही रहेंगे और मुक़दमे के शुरू होने का इंतज़ार करेंगे, जिसमें और भी देरी हो सकती है. उनके वकीलों के लिए अगला क़दम संभवतः सुप्रीम कोर्ट में इस फ़ैसले को चुनौती देना होगा. हालांकि, लेखक का लहज़ा निराशावादी है, जो यह दर्शाता है कि न्याय की राह बहुत लंबी और अनिश्चित है. यह मामला भारत में न्याय प्रणाली के सामने एक गंभीर चुनौती बना रहेगा, और इसका अंतिम परिणाम यह तय करेगा कि नागरिक स्वतंत्रता और राज्य की शक्ति के बीच संतुलन किस दिशा में जाएगा.

चीन का शक्ति प्रदर्शन:
परेड में पुतिन-किम को साथ बैठाकर ट्रंप को दिया सीधा संदेश, दुनिया को दिखाई नए हथियार
चीन ने बीजिंग के ऐतिहासिक तियानमेन स्क्वायर पर एक भव्य और विशाल सैन्य परेड का आयोजन किया, जिसका मक़सद दुनिया को अपनी बढ़ती सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करना था. आधिकारिक तौर पर यह परेड दूसरे विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण की 80वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित की गई थी, लेकिन इसका असली संदेश कहीं ज़्यादा गहरा और सीधा था. इस परेड में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ दो ऐसे नेता मौजूद थे, जो अमेरिका के सबसे बड़े विरोधियों में गिने जाते हैं - रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग-उन. उनकी मौजूदगी ने इस सैन्य प्रदर्शन को एक मज़बूत भू-राजनीतिक बयान में बदल दिया. परेड के दौरान चीन ने अपने सबसे नए और घातक हथियारों की नुमाइश की, जिसमें DF-61 और DF-5C जैसी नई पीढ़ी की इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें (ICBMs), हाइपरसोनिक मिसाइलें, लेज़र-संचालित हथियार, विशाल अंडरवाटर ड्रोन और लड़ाकू विमानों के साथ उड़ने वाले "लॉयल विंगमेन" ड्रोन शामिल थे. इस अवसर पर शी जिनपिंग ने अपने भाषण में एक कड़ा संदेश देते हुए कहा, "चीनी राष्ट्र किसी भी धमकी से नहीं डरता है और हमेशा अपने दम पर मज़बूती से खड़ा रहता है."
यह परेड महज़ एक सैन्य जश्न से कहीं बढ़कर है. यह वैश्विक शक्ति संतुलन में आ रहे एक बड़े बदलाव का खुला ऐलान है. यह पहली बार है जब अमेरिका की ताक़त को चुनौती देने वाले तीन परमाणु-शक्ति संपन्न देशों के नेता - शी, पुतिन और किम - इस तरह एक साथ एक मंच पर दुनिया के सामने आए हैं. ईरान के साथ मिलकर इन देशों के गठबंधन को "उथल-पुथल की धुरी" (Axis of Upheaval) कहा जा रहा है, जिन्होंने यूक्रेन युद्ध के बाद से आपसी सहयोग को और भी मज़बूत किया है. यह आयोजन सीधे तौर पर अमेरिका के नेतृत्व वाले "नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था" को चुनौती देता है. यह इस बात का भी संकेत है कि दुनिया अब एक-ध्रुवीय नहीं रह गई है और अमेरिका के प्रभुत्व के ख़िलाफ़ एक नया और शक्तिशाली गुट आकार ले रहा है, जिसके बनने की प्रक्रिया में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों ने भी अहम भूमिका निभाई है.
इस शक्ति प्रदर्शन पर अमेरिका से तत्काल और तीखी प्रतिक्रिया आई. पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर शी जिनपिंग पर तंज़ कसते हुए लिखा, "जब आप संयुक्त राज्य अमेरिका के ख़िलाफ़ साज़िश रच रहे हों, तो कृपया व्लादिमीर पुतिन और किम जोंग-उन को मेरी तरफ़ से हार्दिक शुभकामनाएँ दें." ट्रंप ने यह भी सवाल उठाया कि क्या शी अपने भाषण में उस "भारी समर्थन और खून" का ज़िक्र करेंगे जो अमेरिका ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान चीन को एक विदेशी आक्रमणकारी से बचाने के लिए दिया था. इस परेड से जुड़ा एक और अहम घटनाक्रम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी थी. तियानजिन में हुए शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी, शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन के साथ हाथ में हाथ डाले नज़र आए. इस तस्वीर ने दुनिया भर के रणनीतिकारों का ध्यान खींचा. इस मुलाक़ात के दौरान शी ने मोदी से कहा कि "अब ड्रैगन (चीन) और हाथी (भारत) को एक साथ आने का समय है," जो यह दिखाता है कि चीन, अमेरिका के अहम सहयोगी भारत को भी अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है.
इस परेड का असली मक़सद अमेरिका और पश्चिमी देशों को यह संदेश देना है कि चीन को अब अलग-थलग नहीं किया जा सकता. रूस और चीन की दोस्ती अमेरिकी नीति निर्माताओं के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है. हालांकि दोनों देशों के बीच आर्थिक असंतुलन और कुछ मुद्दों पर मतभेद हैं, लेकिन अमेरिका के प्रति उनकी साझा दुश्मनी उन्हें एक साथ जोड़े हुए है. वहीं, शी जिनपिंग के लिए इस परेड के गहरे घरेलू मायने भी हैं. चीन इस समय एक सुस्त अर्थव्यवस्था, रिकॉर्ड तोड़ युवा बेरोज़गारी और प्रॉपर्टी बाज़ार में भारी गिरावट जैसी गंभीर आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा है. ऐसे में, राष्ट्रवाद की भावना को भड़काकर और सैन्य ताक़त का प्रदर्शन करके कम्युनिस्ट पार्टी जनता का ध्यान इन समस्याओं से हटाना चाहती है. बीजिंग में की गई असाधारण सुरक्षा व्यवस्था, जिसमें सड़कों को बंद करना, ड्रोन पर प्रतिबंध लगाना और लोगों को अपने घरों में रहने की सलाह देना शामिल था, यह भी दिखाता है कि चीनी सरकार किसी भी तरह के विरोध या प्रदर्शन को लेकर कितनी सतर्क है.
इस घटना के बाद वैश्विक राजनीति में ध्रुवीकरण और तेज़ होने की आशंका है. एक तरफ़ अमेरिका और उसके लोकतांत्रिक सहयोगी देश होंगे, तो दूसरी तरफ़ चीन, रूस और उनके सहयोगियों का यह नया गठबंधन होगा. ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति ने अमेरिका के पारंपरिक गठबंधनों को कमज़ोर किया है, जिसका फ़ायदा चीन और रूस उठा रहे हैं. हालांकि, इस नई "धुरी" की भी अपनी सीमाएँ हैं. चीन ने रूस को यूक्रेन युद्ध में आर्थिक मदद तो दी है, लेकिन सीधे तौर पर हथियार नहीं दिए. इसी तरह, भारत के साथ चीन का गहरा सीमा विवाद है, जो दोनों देशों के बीच पूर्ण विश्वास क़ायम होने में एक बड़ी बाधा है. इसके बावजूद, यह स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में वैश्विक मंच पर तनाव और प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी. दुनिया एक नए शीत युद्ध जैसे दौर की तरफ़ बढ़ सकती है, जहाँ अलग-अलग गुट अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े होंगे.
रिलायंस पर बढ़ा दबाव, अंबानी ने परिवार और वैश्विक दिग्गजों को मोर्चे पर उतारा
ब्लूमबर्ग में एंडी मुखर्जी लिखते हैं कि एशिया के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी ने अपने 250 अरब डॉलर के साम्राज्य को एक बड़े भू-राजनीतिक तूफ़ान से निकालने के लिए अपने परिवार के सभी सदस्यों और वैश्विक सहयोगियों को मैदान में उतार दिया है. रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड की वार्षिक आम बैठक (AGM) में चेयरमैन मुकेश अंबानी के साथ उनकी पत्नी, तीन बच्चे और अल्फाबेट इंक, मेटा प्लेटफ़ॉर्म्स इंक, वॉल्ट डिज़्नी कंपनी और सऊदी अरब के पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड (PIF) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी शामिल हुए.
यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अंबानी की कंपनी द्वारा रियायती रूसी तेल की ख़रीद अमेरिका और भारत के संबंधों में तनाव का एक बड़ा कारण बन गई है. (काल्पनिक परिदृश्य के अनुसार) राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्लादिमीर पुतिन के युद्ध का समर्थन करने के आरोप में भारत पर 50% का भारी टैरिफ़ लगा दिया है. हालांकि अमेरिकी अधिकारियों ने सीधे तौर पर अंबानी का नाम नहीं लिया है, लेकिन व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो का यूक्रेन संघर्ष को "मोदी का युद्ध" कहना भारत में रूसी तेल के सबसे बड़े ख़रीदार रिलायंस को मुश्किल में डालता है. अंबानी को एक तरफ़ घरेलू राजनीति में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का समर्थन करना है, तो दूसरी तरफ़ अपनी कंपनी के भविष्य के विकास के लिए अमेरिकी पूंजी और तकनीक की भी सख़्त ज़रूरत है.
इस मुश्किल स्थिति से निपटने के लिए अंबानी ने एक स्पष्ट रणनीति बनाई है. बड़े बेटे आकाश अंबानी को समूह के डिजिटल सेवा कारोबार, जियो प्लेटफ़ॉर्म्स, का एक बड़ा आईपीओ लाकर अमेरिकी निवेशकों को ख़ुश रखने का काम सौंपा गया है. बेटी ईशा अंबानी रिटेल कारोबार के साथ एक कंज़्यूमर गुड्स कंपनी बना रही हैं, जिसके विज्ञापन के लिए डिज़्नी के साथ मीडिया साझेदारी का इस्तेमाल किया जाएगा. वहीं, सबसे छोटे बेटे अनंत अंबानी को नवीकरणीय ऊर्जा (रिन्यूएबल्स) का कारोबार खड़ा करने की सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई है. इसका लक्ष्य उन निवेशकों को आकर्षित करना है जिन्हें ट्रंप प्रशासन अब अमेरिकी सौर और पवन परियोजनाओं में निवेश करने से रोक रहा है.
अंबानी की रणनीति सिर्फ़ व्यापार तक सीमित नहीं है. वह एक वैश्विक न्यूज़ नेटवर्क बनाने की भी योजना बना रहे हैं, जो भारत को वैश्विक मंच पर अपनी बात रखने में मदद करेगा, ठीक वैसे ही जैसे क़तर के लिए अल जज़ीरा करता है. यह मोदी सरकार के लिए भी एक समर्थन का संकेत है. इसके अलावा, सऊदी पीआईएफ़ के गवर्नर और सऊदी अरामको के चेयरमैन यासिर अल-रुमायन के साथ अंबानी के अच्छे संबंध रिलायंस के पेट्रोकेमिकल कारोबार को रूसी तेल से हटाकर मध्य-पूर्व के कच्चे तेल और अमेरिकी गैस की ओर मोड़ने में मदद कर सकते हैं. यह एक रणनीतिक बदलाव हो सकता है जो अमेरिकी सरकार को भी संतुष्ट कर सकता है.
अब सारी नज़रें अंबानी के बच्चों के प्रदर्शन पर टिकी हैं. क्या आकाश जियो का सफल आईपीओ ला पाएंगे? क्या अनंत अंबानी रिलायंस के मौजूदा तेल कारोबार जितना बड़ा ग्रीन एनर्जी का कारोबार खड़ा कर पाएंगे? निवेशक अभी भी संशय में हैं, जैसा कि रिलायंस के शेयर की सुस्त क़ीमत से पता चलता है. इसी बीच, अंबानी परिवार सार्वजनिक रूप से अपनी प्रोफ़ाइल को थोड़ा कम कर रहा है. नीता अंबानी द्वारा न्यूयॉर्क में एक बड़े कार्यक्रम को स्थगित करना और अनंत अंबानी के वन्यजीव अभयारण्य 'वनतारा' को लेकर चल रही जांच जैसे मामलों से पता चलता है कि परिवार इस नाज़ुक समय में किसी भी तरह के विवाद से बचना चाहता है.
ब्राज़ील के पूर्व राष्ट्रपति बोल्सोनारो पर तख़्तापलट का मुक़दमा, 40 साल से ज़्यादा सज़ा मुमकिन
ब्राज़ील के पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के ख़िलाफ़ 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में हार के बाद तख़्तापलट की कोशिश करने के आरोप में चल रहे मुक़दमे का अंतिम चरण शुरू हो गया है. बुधवार को ब्रासीलिया में सुप्रीम कोर्ट में उनके वकील अपना बचाव पक्ष पेश करेंगे. बोल्सोनारो पर अपने वामपंथी प्रतिद्वंद्वी लुइज़ इनासियो लूला डा सिल्वा से हारने के बाद सत्ता में बने रहने के लिए एक साज़िश का नेतृत्व करने का आरोप है. यह मुक़दमा ब्राज़ील के लोकतंत्र के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है. देश के एक पूर्व राष्ट्रपति पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को हिंसक रूप से उखाड़ फेंकने की कोशिश करने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं. अगर वह दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें 40 साल से अधिक की जेल की सज़ा हो सकती है, जो भविष्य के लिए एक कड़ा संदेश होगा. यह मामला दुनिया भर में इस बात को रेखांकित करता है कि लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमले के क्या परिणाम हो सकते हैं. अभियोजन पक्ष के अनुसार, बोल्सोनारो और उनके सात सह-साजिशकर्ताओं ने एक सशस्त्र आपराधिक संगठन का नेतृत्व किया और लोकतांत्रिक शासन को हिंसक तरीक़े से ख़त्म करने की कोशिश की. मंगलवार को सुनवाई की अध्यक्षता कर रहे जज ने आरोप लगाया कि बोल्सोनारो एक "असली तानाशाही" स्थापित करना चाहते थे. पुलिस का यह भी आरोप है कि बोल्सोनारो को तत्कालीन नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा की हत्या की योजना की "पूरी जानकारी" थी. हालांकि, बोल्सोनारो ने इन सभी आरोपों से इनकार किया है और इसे राजनीति से प्रेरित "विच हंट" (बदले की कार्रवाई) बताया है. इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ बोल्सोनारो के पूर्व शीर्ष सहयोगी मौरो सिड का सरकारी गवाह बनना है. सिड ने सज़ा में नरमी के बदले अभियोजन पक्ष को सबूत मुहैया कराने के लिए एक 'प्ली डील' पर हस्ताक्षर किए हैं. अभियोजकों का कहना है कि सिड द्वारा दी गई जानकारी बोल्सोनारो के ख़िलाफ़ सबसे हानिकारक सबूतों में से है. बोल्सोनारो के वकीलों ने यह तर्क दिया है कि सिड से दबाव में गवाही ली गई, लेकिन सिड के वकील ने अदालत में इस बात का खंडन किया, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला और मज़बूत हुआ है.
सभी प्रतिवादियों के वकीलों द्वारा अपनी दलीलें पूरी करने के बाद, सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों का पैनल एक-एक करके अपना वोट डालेगा. फ़ैसला 12 सितंबर तक आने की उम्मीद है. किसी भी प्रतिवादी को दोषी ठहराने के लिए पांच में से तीन जजों के बहुमत की ज़रूरत होगी. अगर बोल्सोनारो और उनके सह-आरोपी दोषी पाए जाते हैं, तो वे पूर्ण सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं.
चलते चलते
‘वे बड़े हुए और एक-दूसरे से शादी कर ली, और बिना कभी सेक्स किए पांच आदर्श बच्चे पैदा किए’
अपनी किताब हैंडमेड्स टेल पर बैन के बाद मार्गरेट एटवुड ने व्यंग्यात्मक कहानी लिखकर दिया जवाब
द गार्डियन के मुताबिक मशहूर लेखिका मार्गरेट एटवुड ने कनाडा के अल्बर्टा प्रांत में किताबों पर लगे व्यापक प्रतिबंध की आलोचना करते हुए एक नई व्यंग्यात्मक लघु कथा जारी की है. अल्बर्टा में "स्पष्ट यौन सामग्री" वाली किताबों को हटाने के विवादास्पद फ़ैसले के बाद कई साहित्यिक कृतियों को स्कूलों से बाहर कर दिया गया है, जिसमें एटवुड की डायस्टोपियन किताब 'द हैंडमेड्स टेल' भी शामिल है. एटवुड ने सोशल मीडिया पर लिखा कि चूंकि उनकी प्रसिद्ध किताब अब अल्बर्टा के स्कूलों के लिए स्वीकार्य नहीं है, इसलिए उन्होंने किशोरों के लिए एक "उपयुक्त" छोटी कहानी लिखी है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह ज़रूरी था क्योंकि प्रांत के शिक्षा मंत्री सोचते हैं कि छात्र "बेवकूफ़ बच्चे" हैं.
एक विश्व प्रसिद्ध लेखक सरकारी सेंसरशिप और किताबों पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाने के लिए अपनी कला का इस्तेमाल कर रहा है. यह घटना अमेरिका में चल रहे "संस्कृति युद्ध" (culture wars) की प्रवृत्ति को दर्शाती है, जो अब कनाडा जैसे देशों में भी फैल रही है, जहाँ स्कूलों में किताबों की सामग्री को लेकर सामाजिक और राजनीतिक बहस तेज़ हो गई है. यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और साहित्य पर राजनीतिक नियंत्रण के बीच बढ़ते तनाव को भी उजागर करता है.
एटवुड की बेहद संक्षिप्त कहानी जॉन और मैरी नाम के दो "बहुत, बहुत अच्छे" बच्चों के जीवन पर आधारित है. वह लिखती हैं, "उन्होंने कभी अपनी नाक में उंगली नहीं डाली, न ही उन्हें कभी शौच या मुंहासे हुए." वे कट्टर ईसाई थे, जिन्होंने "इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया कि यीशु ने ग़रीबों के बारे में वास्तव में क्या कहा था" और इसके बजाय "रूढ़िवादी साहित्यिक नायिका ऐन रैंड की तरह स्वार्थी और लुटेरे पूंजीवाद का अभ्यास किया." कहानी का अंत इस तरह होता है: "ओह, और वे कभी नहीं मरे, क्योंकि कौन मौत और लाशों के बारे में सोचना चाहता है?" एटवुड लिखती हैं कि जब वे "हमेशा ख़ुशी से रहते थे", तब 'द हैंडमेड्स टेल' की भविष्यवाणियां सच हो गईं और "(अल्बर्टा की प्रमुख) डेनिएल स्मिथ ने ख़ुद को एक अच्छी नई नीली पोशाक में पाया, लेकिन उनके पास कोई नौकरी नहीं थी." यह उपन्यास में उन कुलीन पत्नियों का संदर्भ है जिनके पास शक्ति तो है, लेकिन काम करने की अनुमति नहीं है.
अल्बर्टा में यह प्रतिबंध सामाजिक रूप से रूढ़िवादी "माता-पिता के अधिकार" समूहों की गहन लॉबिंग का नतीजा है. एक्शन4कनाडा (Action4Canada) और पेरेंट्स फॉर चॉइस इन एजुकेशन (PCE) जैसे समूहों ने इस प्रतिबंध का श्रेय लिया है. इन समूहों का तर्क है कि वे बच्चों को "ग्राफ़िक" और "स्पष्ट यौन सामग्री" से बचा रहे हैं. हालांकि, प्रतिबंध के आलोचकों का कहना है कि ये शक्तिशाली लॉबी समूह असल में उन किताबों को निशाना बना रहे हैं जो एलजीबीटीक्यू+ (LGBTQ+) पहचान की पुष्टि करती हैं, जैसे माइया कोबेब की किताब 'जेंडर क्वीर'. इस प्रतिबंध की चपेट में जॉर्ज ऑरवेल के '1984' और एल्डस हक्सले के 'ब्रेव न्यू वर्ल्ड' जैसे क्लासिक उपन्यास भी आ गए हैं. अल्बर्टा के पब्लिक स्कूलों को इस आदेश का पालन करने के लिए अक्टूबर तक का समय दिया गया है, लेकिन कुछ स्कूलों ने पहले ही प्रतिबंधित किताबों की सूची जारी कर दी है. उदाहरण के लिए, एडमोंटन स्कूल बोर्ड ने 200 किताबों को हटाने की घोषणा की है. इस बीच, प्रीमियर डेनिएल स्मिथ ने ख़ुद अधिकारियों की आलोचना की है कि उन्होंने इतनी लंबी सूची तैयार की, और इसे "दुर्भावनापूर्ण अनुपालन" (vicious compliance) बताया. यह विवाद आने वाले समय में और बढ़ने की संभावना है, क्योंकि लेखक, प्रकाशक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थक इस प्रतिबंध का विरोध करना जारी रखेंगे.
एटवुड की अपनी किताब बैन पर छोटी सी कहानी
पेश है मेरी लिखी हुई एक साहित्यिक कृति, जो अल्बर्टा के स्कूलों में सत्रह साल के बच्चों के लिए उपयुक्त है, 'द हैंडमेड्स टेल' के विपरीत - जैसा कि हमें बताया गया है. (माफ़ करना, बच्चों; तुम्हारे शिक्षा मंत्री को लगता है कि तुम बेवकूफ़ बच्चे हो.)
जॉन और मैरी दोनों बहुत, बहुत अच्छे बच्चे थे. उन्होंने कभी अपनी नाक में उंगली नहीं डाली, न ही उन्हें कभी शौच या मुंहासे हुए. वे बड़े हुए और एक-दूसरे से शादी कर ली, और बिना कभी सेक्स किए पांच आदर्श बच्चे पैदा किए. हालांकि उन्होंने ईसाई होने का दावा किया, लेकिन उन्होंने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया कि यीशु ने वास्तव में ग़रीबों, नेकदिली और अपने दुश्मनों को माफ़ करने जैसी बातों के बारे में क्या कहा था; इसके बजाय, उन्होंने स्वार्थी और लुटेरे पूंजीवाद का अभ्यास किया, क्योंकि वे ऐन रैंड की पूजा करते थे. (हालांकि उन्होंने 'द फाउंटेनहेड' के उस दृश्य को नज़रअंदाज़ कर दिया जिसमें 'स्वागत योग्य बलात्कार' की वकालत की गई है, क्योंकि कौन इन बातों पर सोचना चाहता है, और साथ ही इसमें सेक्स शामिल होता और यह वास्तव में अश्लील होता. खैर, यह कुछ वैसा ही है, है न?) ओह, और वे कभी नहीं मरे, क्योंकि कौन मौत, लाशों और छी! जैसी बातों पर सोचना चाहता है? तो वे हमेशा ख़ुशी-ख़ुशी रहे. लेकिन जब वे ऐसा कर रहे थे, तब 'द हैंडमेड्स टेल' की कहानी सच हो गई और डेनिएल स्मिथ ने ख़ुद को एक अच्छी नई नीली पोशाक में पाया, लेकिन उनके पास कोई नौकरी नहीं थी. समाप्त.
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