05/01/2025: किसानों से सरकार की कन्नी क्यों, बाइज्जत बरी पर ज़िंदगी तबाह, तेलतुंबडे ने गिनाए भाजपा- संघ के झूठ, गाज़ा: दो दिन में 130, दोषी होने के बाद भी ट्रम्प बनेंगे राष्ट्रपति, 2073 की दुनिया
हिंदी भाषियों का क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज्यादा
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
डल्लेवाल को सुनने भारी भीड़ आई, दिल्ली को ब्लॉक करेंगे : पंजाब-हरियाणा की खनौरी सीमा पर किसान महापंचायत को संबोधित करते हुए किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने शनिवार को कहा कि वह अपने साथी किसानों की ज़िंदगी के बारे में अधिक चिंतित हैं. उनकी ज़िंदगी लाखों दुखी भारतीय किसानों की ज़िंदगी के मुकाबले उतनी महत्वपूर्ण नहीं है. पहले ही सात लाख से अधिक किसानों ने कृषि क्षेत्र में संकट के कारण आत्महत्या कर ली है. डल्लेवाल के अनशन का आज 40वां दिन था. उन्हें सुनने के लिए किसानों की भारी भीड़ जमा हुई थी. इस बीच बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि अगला किसान आंदोलन दिल्ली को ब्लॉक करने के लिए केएमपी एक्सप्रेसवे पर होगा. इस बीच पंजाब के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुडियन ने शनिवार को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से व्यक्तिगत हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा कि केंद्र किसानों की शिकायतों का तुरंत समाधान करे और डल्लेवाल की जान बचाए.
किसानों से कन्नी क्यों काट रही है इस बार मोदी सरकार : 2020-21 में सरकार ने किसान संगठनों के साथ सक्रिय रूप से बातचीत की और तीन कृषि कानूनों को रद्द किया, लेकिन इस बार केंद्र न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून की मांग कर रहे किसानों के साथ बातचीत करने से बच रही है. कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है और उनके निर्देशों का पालन किया जाएगा. सरकार को लगता है कि 2020 में कृषि सचिव द्वारा किसान नेताओं को दिल्ली बुलाने से आंदोलन और भड़का था. उस समय, किसान नेता कृषि मंत्री से बातचीत करना चाहते थे और उन्होंने तीन कृषि बिलों की प्रतियां फाड़ दी थीं. इस बार किसान आंदोलन केवल पंजाब-हरियाणा सीमा तक ही सीमित है, जबकि 2020 से 21 का आंदोलन अधिक व्यापक था. कई प्रमुख किसान संगठन, जैसे एसकेएम, ने भी इस आंदोलन में भाग नहीं लिया है. 2020 से 21 का आंदोलन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ था, जबकि वर्तमान विरोध प्रदर्शन में एमएसपी पर कानूनी गारंटी और कर्ज माफी सहित कई मांगें हैं. सरकार का मानना है कि किसान नेता एमएसपी जैसे मुद्दों पर बातचीत को तैयार नहीं हैं.
एचएमपीवी पर नज़र: चीन में ह्यूमन मेटाप्न्यूमोवायरस (एचएमपीवी) के प्रकोप की हालिया रिपोर्टों के मद्देनजर, स्वास्थ्य मंत्रालय ने शनिवार को कहा कि भारत सभी उपलब्ध चैनलों के माध्यम से स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है और डब्ल्यूएचओ से समय पर अपडेट साझा करने का भी अनुरोध किया है. एहतियाती उपाय के तौर पर, एचएमपीवी मामलों की जांच करने वाली प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ाई जाएगी और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) पूरे वर्ष एचएमपीवी के रुझानों की निगरानी करेगी.
भोपाल का जहरीला कचरा जलाने की प्रक्रिया रोकी, हाईकोर्ट में 6 को सुनवाई : नागरिकों के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए भोपाल के यूनियन कार्बाइड संयंत्र के जहरीले कचरे को जलाने की प्रक्रिया को रोक दिया गया है. राज्य सरकार धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के लोगों की चिंताओं, आशंकाओं और भावनाओं को हाईकोर्ट के समक्ष रखेगी. कोर्ट में सुनवाई 6 जनवरी को है.
यह कार्टून बनाने के लिए पुलित्जर विजेता ने वाशिंगटन पोस्ट से इस्तीफा दिया
डेमोक्रेसी डाइज इन डार्कनेस (लोकतंत्र अंधकार में मरता है) - यह लोगो है दुनिया के सबसे गुणी अखबारों में से एक वाशिंगटन पोस्ट का. पर जब उनके अपने कार्टूनिस्ट एन टेनलेस ने एक ऐसा कार्टून बनाया जिसमें अमेरिका के धन्ने सेठ ट्रम्प के सामने बिछे पड़े हैं, तो वह कार्टून अखबार ने नहीं छापा. इस कार्टून में जिन लोगों पर तंज है, उनमें जैफ बेजोस भी हैं- अमेजॉन और इसी अखबार वाशिंगटन पोस्ट के मालिक. इसके बाद टेनलेस ने अखबार में अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने सबस्टैक पर लिखा- ‘प्रकाशन के लिए बनाए गए कार्टूनों के बारे में संपादकीय प्रतिक्रिया में कुछ मतभेद था. अपने करियर में अब तक मैंने कभी भी किसी कार्टून को इस वजह से नहीं मारा कि मैंने अपनी कलम को किस पर या किस पर निशाना बनाने का फैसला किया है’. वहीं वाशिंगटन पोस्ट के विचार संपादक डेविड शिपली कार्टून न छापने के फैसले का बचाव करते हुए कहा, ‘हर संपादकीय निर्णय किसी दुर्भावनापूर्ण ताकत का प्रतिबिंब नहीं होता है’.
दिल्ली दंगों के झूठे मामलों का जाल
बरी तो बाइज्ज़त हुए, पर जिंदगियां तबाह
2020 में दिल्ली में हुए दंगों के बाद, कई लोगों को झूठे आरोपों में फंसाया गया, जिसके कारण उनकी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गई. इन दंगों में 53 लोग मारे गए थे, जिनमें से ज़्यादातर मुसलमान थे. हाल ही में, दिल्ली की एक अदालत ने छह लोगों को दंगों और आगजनी के आरोपों से बरी कर दिया, क्योंकि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला. इन लोगों में से चार, हाशिम अली (58), अबू बकर (28), मोहम्मद अज़ीज़ (28) और नजमुद्दीन (28), ने बताया कि कैसे झूठे आरोपों के कारण उन्हें और उनके परिवारों को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से बहुत नुकसान हुआ. आर्टिकल 14 के लिए अदनान अली, आक़िब नाज़िर और हुदा आइशा ने इन लोगों की जिंदगियों पर एक लम्बा रिपोर्ताज लिखा है.

28 फरवरी 2020 को, दिल्ली पुलिस ने 28 से 58 वर्ष की आयु के छह मुस्लिम पुरुषों को दंगा और आगजनी के आरोपों में गिरफ्तार किया. जमानत मिलने से पहले, दो पुरुषों को जेल में डाल दिया गया—एक को 15 दिनों के लिए और दूसरे को 75 दिनों के लिए. चार साल बाद, सभी छह को बरी कर दिया गया, जो 180 से अधिक लोगों में नवीनतम हैं जिन्हें निर्दोष पाया गया है. एक न्यायाधीश ने पाया कि छह पुरुषों के खिलाफ ‘एक भी सबूत नहीं’ था. चार ने बताया कि उनके खिलाफ मामले के कारण दोस्त और काम छूट गए. यहां तक कि उनकी अंतिम बरी भी झूठे मामले से हुए नुकसान की मरम्मत करने में बहुत कम काम आई.
एक मामले में, एक पड़ोसी नरेश चंद ने आरोप लगाया कि इन लोगों ने उसके घर पर हमला किया और उसे जला दिया. लेकिन अदालत में, इस आरोप के समर्थन में कोई सबूत नहीं मिला, और गवाह अपने पहले दिए बयान से मुकर गए. अदालत ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ कोई भी ठोस सबूत नहीं है. इन छह लोगों पर दंगों में शामिल होने, हथियार रखने, चोरी करने, और आगजनी करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे. इन आरोपों के तहत उन्हें दो साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती थी.
हाशिम अली को 75 दिन और अबू बकर को 15 दिन जेल में बिताने पड़े. इन लोगों ने बताया कि कैसे अदालती कार्यवाही के कारण उनके काम छूट गए और उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा. अबू बकर को अपने परिवार की आर्थिक परेशानी से जूझना पड़ा, क्योंकि उनके पिता ने कानूनी कार्यवाही पर 1.5 लाख रुपये खर्च किए, जिसके कारण परिवार कर्ज में डूब गया. वहीं मोहम्मद अज़ीज़ ने बताया कि कैसे झूठे आरोपों की वजह से उनकी नौकरी छूट गई और उन्हें कर्ज लेना पड़ा.
नजमुद्दीन ने दंगों में अपनी दुकान और घर खो दिया था. उनके पूर्व मकान मालिक ने उन्हें फिर से दुकान किराए पर देने से इनकार कर दिया, जिसके कारण उन्हें अपना व्यवसाय एक मुस्लिम इलाके में स्थानांतरित करना पड़ा. वहीं, हाशिम अली ने बताया कि जेल में उनके साथ बुरा व्यवहार किया गया और उन्हें बिना कारण पीटा गया.
इन लोगों ने बताया कि झूठे आरोपों ने उनके जीवन को किस तरह प्रभावित किया और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया. एक तरफ, उन्होंने अपने हिंदू दोस्तों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे, वहीं दूसरी तरफ, कुछ लोगों ने उनसे दूरी बना ली.
दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, दंगों के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए 2,619 लोगों में से, 2,094 लोगों को जमानत मिल गई थी. अदालतों ने 183 लोगों को बरी कर दिया, जबकि 47 लोगों को दोषी ठहराया. इससे यह पता चलता है कि ज्यादातर मामले झूठे थे.
अदालत ने इन छह लोगों को बरी कर दिया, लेकिन किसी भी प्रकार से उनकी हुई क्षति की भरपाई नहीं हो सकती. ये मामले दिखाते हैं कि कैसे झूठे आरोप किसी व्यक्ति और उसके परिवार के जीवन को बर्बाद कर सकते हैं. इन मामलों से पता चलता है कि पुलिस ने कुछ लोगों को झूठे मामलों में फंसाया, जिससे न केवल उन्हें बल्कि उनके परिवारों को भी बहुत नुकसान हुआ. इन सब के बावजूद, कई असली अपराधी आज भी आज़ाद घूम रहे हैं.
उमर खालिद के जेल लौटने से पहले इंस्टा पर तस्वीर
जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को एक पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए एक सप्ताह की अंतरिम जमानत थे. इस बीच स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने शुक्रवार को कार्यकर्ता उमर खालिद से मुलाकात की. कामरा ने खालिद के 3 जनवरी को जेल लौटने की तैयारी के दौरान उनके प्रति एकजुटता व्यक्त की. खालिद को कुछ शर्तों के साथ जमानत दी गई थी. इनमें उन्हें सोशल मीडिया से दूर रहना भी शामिल था. दिल वाले इमोजी के साथ कैप्शन में कामना ने लिखा, ‘दिल को समय का कोई अंदाजा नहीं होता’. इस पोस्ट को देखते ही देखते हज़ारों लाइक और कमेंट मिल गए और कई यूज़र्स ने इसे ‘दिल को छू लेने वाला’ दृश्य बताया. खालिद पर 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों का ‘मास्टरमाइंड’ होने के कारण आतंकवाद विरोधी गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम और आईपीसी के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था. वह सितंबर 2020 से जेल में बंद हैं.
मोदी की चादर अजमेर शरीफ पँहुची
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से अजमेर शरीफ दरगाह जाकर औपचारिक ‘चादर’ पेश की. 13वीं सदी के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सालाना जलसे का हिस्सा रहे इस कदम को रिजिजू ने ‘एकता और भाईचारे’ का प्रतीक बताया. मंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर इसे साझा करते हुए लिखा, ‘यह भारत की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत और सद्भाव और करुणा के स्थायी संदेश के प्रति गहरे सम्मान का प्रतिबिंब है’.
धर्म से जुड़ी शत्रुता और सरकारी पाबंदियों के मामले में भारत का प्रदर्शन बदतरीन
2022 के लिए धर्म से जुड़ी शत्रुता (होस्टिलिटीज़) को मापने वाले एक सूचकांक में, भारत 198 देशों में सबसे ऊपर रहा. प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, सामाजिक शत्रुता सूचकांक (एसएचआई) पर उच्च स्कोर धर्म से संबंधित उत्पीड़न, भीड़ हिंसा, आतंकवाद, उग्रवादी गतिविधि और धार्मिक धर्मांतरण या धार्मिक प्रतीकों और पोशाक के उपयोग पर संघर्ष के उच्च स्तर को इंगित करता है. एसएचआई पर 10 में से भारत का स्कोर 9.3 था. 7.2 से ऊपर के स्कोर को 'बहुत उच्च' माना जाता है. रिपोर्ट में सरकारी प्रतिबंध सूचकांक (जीआरआई) का उपयोग करके धर्म पर सरकारी प्रतिबंधों के आधार पर देशों का भी आकलन किया गया. जीआरआई उन कानूनों, नीतियों और कार्यों को मापता है जो धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं को नियंत्रित या सीमित करते हैं. इनमें विशेष मान्यताओं या प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने वाली नीतियां, कुछ धार्मिक समूहों को असमान रूप से लाभ देना और धार्मिक समूहों को लाभ प्राप्त करने के लिए पंजीकरण कराने वाले नौकरशाही नियम शामिल हैं. 2022 में भारत का जीआरआई स्कोर 10 में से 6.4 था, जिसे 'उच्च' माना गया है. 6.6 से ऊपर के स्कोर को 'बहुत उच्च' के रूप में वर्गीकृत किया गया है.रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी प्रतिबंध और सामाजिक शत्रुता अक्सर एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं, यानी एक सूचकांक पर स्कोर जितना कम होगा, दूसरे पर भी स्कोर आमतौर पर उतना ही कम होगा, और इसके विपरीत भी.
आनंद तेलतुबंडे : भाजपा, आरएसएस और गोएबल्स के नाती- पोतों के 99 झूठ
मानवाधिकारों के पक्षधर लेखक और शिक्षक प्रोफ़ेसर आनंद तेलतुबंडे ने ‘द वायर’ में लिखा है कि हिंदुत्व की वर्तमान पीढ़ी के विचारक गोएबल्स के नाती पोतों के रूप में देखे जा सकते हैं. इनके झूठों की फैक्ट्री अब तक उनके लिए चमत्कार कर चुकी है, लेकिन इतिहास दिखाता है कि ऐसा धोखा अनंतकाल तक नहीं टिक सकता. उन्हें अपने ही ग्रंथ मुंडक उपनिषद की बुद्धिमत्ता पर ध्यान देना चाहिए, जो कहता है "सत्यमेव जयते" (सत्य ही विजय प्राप्त करता है).
हिंदुत्व के पैरोकार- जैसे वी.डी. सावरकर, बी.एस. मुंजे, के.बी. हेडगेवार और एम.एस. गोलवलकर से लेकर उनके समकालीन उत्तराधिकारी लंबे समय से मुसोलिनी और हिटलर के तौर तरीकों के प्रशंसक रहे हैं. कालखंड और परिस्थितियों में भिन्नताओं के बावजूद उनके और यूरोप में उनके फासीवादी पूर्वजों के बीच समानताओं को स्पष्ट रेखांकित किया जा सकता है. संभवतः दुष्प्रचार पर निर्भरता दोनों में सबसे बड़ी समानता है. विशेष रूप से सत्य को तोड़ मरोड़ के पेश करना और सफेद झूठों का स्थायीकरण. एक ऐसी विख्यात तकनीक जो हिटलर के प्रचार मंत्री जोसेफ गोएबल्स के कारण जानी जाती है. गोएबल्स ने झूठ को सच में बदलने का मंत्र देते हुए कहा था, “एक बड़ा झूठ बोलो और इसे बार-बार दोहराओ तो यह सच बन जाता है.” इस खेल की किताब का पालन करते हुए हिंदुत्व के वर्तमान पीढ़ी के विचारक ‘गोएबल्स के नाती पोतों’ के रूप में देखे जा सकते हैं, जो झूठ की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.
आधारभूत झूठ : हिंदुत्व आंदोलन का वैचारिक आधार एक श्रृंखला के बड़े झूठों पर आधारित है. एक केंद्रीय कथा यह है कि हिंदू अखंड भारत (अखंड भारत) के मूल निवासी थे, जिन्होंने एक महान सभ्यता बनाई जो ज्ञान और बुद्धि का स्रोत थी. इस कथा के अनुसार यह महिमा 7वीं शताब्दी से इस्लामी शासन के तहत खो गई थी और हिंदुओं को अपनी 'पूर्व महिमा' को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए. इस मिथक का हिंदुओं को संगठित करने के लिए उपयोग किया गया है. दिलचस्प बात यह है कि ‘हिंदू धर्म’ शब्द स्वयं ब्रिटिश लेखकों द्वारा 19वीं शताब्दी की शुरुआत में गढ़ा गया था, न कि स्वदेशी प्रैक्टिशनरों द्वारा.
हिंदुत्व का निर्माण : हिंदुत्व अपने आप में एक आयातित विचारधारा है. इसे वी.डी. सावरकर ने 1923 में अपने पैम्फलेट “हिंदुत्व : हिंदू कौन है?” में गढ़ा था. इसने हिंदू को धार्मिक प्रथाओं के बजाय भारत से जुड़ी सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान के रूप में परिभाषित किया. यह सनातन धर्म के आध्यात्मिक लोकाचारों से दूर होने को दर्शाता है.
हिंदुत्व के विचारक जैसे सावरकर और एम.एस. गोलवलकर, यूरोपीय राष्ट्रवादी आंदोलनों, विशेष रूप से इटली में फासीवाद और जर्मनी में नाजीवाद से प्रेरित थे. गोलवलकर की रचनाएं हिटलर के अल्पसंख्यकों के प्रति व्यवहार की प्रशंसा करती थीं और इसे हिंदू-बाहुल्य राज्य बनाने के लिए एक मॉडल मानती थीं. एक समान पहचान पर ध्यान केंद्रित करना, अल्पसंख्यकों (विशेष रूप से मुसलमानों और ईसाइयों) का अपमान करना, और एक काल्पनिक, 'शुद्ध' अतीत का महिमामंडन करना हिंदुत्व विचारधारा की विशेषताएं हैं, जो स्पष्ट रूप से यूरोपीय फासीवाद के साथ समानता दर्शाती हैं.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने राजनीतिक शक्ति हासिल करने के लिए अकसर दुष्प्रचार, झूठी खबर और रणनीति के तौर पर तोड़मरोड़ के पेश किए गए तथ्यों का इस्तेमाल किया है. यहां उनके कुछ प्रमुख झूठों और विकृतियों की सूची दी गई है. आप पूरे लेख का अनुवाद यहाँ हरकारा में ही पढ़ सकते हैं.
गाजा में फिर दो अस्पताल खाली करवाए, दो दिन में मारे 130
गाजा में इज़राइली बलों ने उत्तरी गाजा के सबसे महत्वपूर्ण अस्पतालों इंडोनेशियाई अस्पताल और अल-अवदा अस्पताल के स्टाफ और मरीजों को तुरंत अस्पताल खाली करवाने का आदेश दिया है. यह आदेश हमले की धमकी के बीच जारी किया गया है. इजराइल का हमला अब भी गाजा पट्टी पर जारी है और पिछले दो दिनों के हमलों में करीब 130 नागरिक अब तक अपनी जान गंवा चुके हैं.
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इस आदेश की कड़ी निंदा की है. उन्होंने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवीय मूल्यों के खिलाफ बताया है. इससे पहले, गाजा के कमाल अदवान अस्पताल को इज़राइली हमलों में पूरी तरह नष्ट कर दिया गया था, जिसके बाद वहां के मरीज और स्टाफ इंडोनेशियाई और अल-अवदा अस्पतालों में शरण लेने को मजबूर हुए. अस्पताल में संसाधनों की स्थिति बेहद खराब हो चुकी है. चिकित्सा उपकरण और आवश्यक दवाओं की भारी कमी के चलते मरीजों की जान खतरे में है. कई मरीज, जिनमें बच्चे और गंभीर रूप से घायल लोग शामिल हैं, तत्काल चिकित्सा देखभाल के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
और जाते जाते बाइडेन देंगे इज़राइल को और हथियार
अमेरिकी विदेश विभाग ने कांग्रेस को इज़राइल को 8 अरब डॉलर के हथियारों की बिक्री की योजना के बारे में सूचित किया है, एक अमेरिकी अधिकारी ने बीबीसी को इसकी पुष्टि की है. हथियारों की खेप, जिसके लिए हाउस और सीनेट समितियों से मंजूरी की आवश्यकता है, में मिसाइलें, गोले और अन्य युद्ध सामग्री शामिल हैं. यह कदम राष्ट्रपति जो बाइडेन के पद छोड़ने से ठीक दो सप्ताह पहले आया है. वाशिंगटन ने गाजा में युद्ध के दौरान मारे गए नागरिकों की संख्या के कारण इजरायल के लिए सैन्य समर्थन को निलंबित करने के आह्वान को खारिज कर दिया है. अगस्त में, अमेरिका ने इजरायल को 20 अरब डॉलर के लड़ाकू विमानों और अन्य सैन्य उपकरणों की बिक्री को मंजूरी दी थी.
डोनाल्ड ट्रम्प हश मनी केस में दोषी करार
अमेरिका में 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रम्प शपथ ग्रहण करने वाले हैं. इससे पहले उन पर एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है. न्यूयॉर्क के एक जज ने डोनाल्ड ट्रम्प को हश मनी क्रिमिनल केस में दोषी करार दिया है और वह 10 जनवरी को सजा सुनाएंगे. ट्रम्प ने 2006 में पोर्न स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स के साथ संबंध बनाए थे और चुप रहने के लिए उन्हें पैसे दिए थे. इसके लिए ट्रम्प ने व्यवसायिक रिकॉर्ड में हेराफेरी की थी. जज जुआन मर्चेन ने ये भी संकेत दिया है कि वह नहीं चाहते कि उनके फैसले से ट्रम्प सरकार पर कोई असर पड़े. उम्मीद जताई जा रही है कि ट्रम्प को सशर्त रिहाई दे दी जाएगी. इस आदेश के बाद डोनाल्ड ट्रंप ऐसे पहले राष्ट्रपति होंगे, जो आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद अमेरिका का शीर्ष पद ग्रहण करेंगे.
परमाणु वैज्ञानिक आर चिदंबरम का निधन
1974 और 1998 के परमाणु परीक्षणों में खास रोल निभाने वाले प्रख्यात भौतिक विज्ञानी राजगोपाल चिदंबरम का शनिवार को 88 साल की उम्र में निधन हो गया. परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) के एक अधिकारी ने बताया कि चिदंबरम ने मुंबई के जसलोक अस्पताल में अंतिम सांस ली. डॉ. चिदंबरम 17 साल तक भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार रहे. अपने छह दशक के करियर में उन्होंने कई प्रतिष्ठित पदों पर कार्य किया. इसमें भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (2001-2018), भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक (1990-1993), परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष और भारत सरकार के सचिव, डीएई (1993-2000) शामिल हैं. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) (1994-1995) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया.
अमेरिकी मॉडल बनकर दिल्ली के ठग ने 700 लड़कियों को किया ब्लैकमेल
दिल्ली पुलिस ने शनिवार को एक 23 साल के ठग तुषार बिष्ट को गिरफ्तार किया है. इसने डेटिंग प्लेटफॉर्म पर खुद को अमेरिकी मॉडल बताकर 700 से अधिक महिलाओं को ठगा. आरोपी ने वर्चुअल इंटरनेशनल मोबाइल नंबर और फर्जी आईडी का इस्तेमाल कर बंम्बल, शेयरचैट और अन्य चैटिंग ऐप्स पर फेक प्रोफाइल बनाया था. पुलिस के मुताबिक, आरोपी 18 से 30 साल की लड़कियों से दोस्ती कर उनका भरोसा जीतता था. इसके बाद उनकी निजी तस्वीरें और वीडियो मंगवाता था. लड़कियों की प्राइवेट तस्वीरें और वीडियो मिलने के बाद वह उन्हें ब्लैकमेल कर पैसों की मांग करता था. अगर कोई पैसे देने से मना करती, तो वो धमकी देता था कि उनकी तस्वीरें और वीडियो वह सोशल मीडिया पर अपलोड कर देगा और डार्क वेब पर बेच देगा.
180 विदेशियों समेत 5,864 कैदियों को रिहा करेगी म्यांमार की सैन्य सरकार : म्यांमार की सैन्य सरकार अपने देश के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 180 विदेशियों सहित 5,864 कैदियों को रिहा करेगी. म्यांमार 2021 की शुरुआत से ही उथल-पुथल में है, जब सेना ने निर्वाचित सरकार को अपदस्थ कर दिया था और लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शनों को हिंसक रूप से दबा दिया था. इसके बाद से देश भर में सशस्त्र विद्रोह भड़क उठा, जो जारी हे.
स्टालिन युग के बाद की रूस में सबसे बड़ी दमनकारी मुहिम
'द वॉल स्टीट जर्नल' के मुताबिक रूस में पुतिन के लिए सबसे ज्यादा दमनकारी काम खुफिया एजेंसी एफएसबी (फेडरल सिक्योरिटी सर्विस) कर रही है. अकेले 2022-2024 के बीच एफएसबी ने 1,500 से अधिक गिरफ्तारियां कीं, जिनमें पत्रकार, कार्यकर्ता, और आम नागरिक शामिल हैं. एफएसबी के तहत चलने वाले जेलों में 500 से अधिक राजनीतिक कैदी बंद हैं. अंतरराष्ट्रीय पत्रकार सुरक्षा समिति (CPJ) के अनुसार, रूस में स्वतंत्र मीडिया पर हमलों की संख्या 2024 तक 30% बढ़ गई. एफएसबी ने हाल ही में एक अमेरिकी पत्रकार एवान गेर्शकोविच को गिरफ्तार किया. गेर्शकोविच पर जासूसी का आरोप लगाया गया है, लेकिन उनकी गिरफ्तारी को आलोचक पुतिन के प्रशासन द्वारा असहमति को दबाने की रणनीति मानते हैं. एफएसबी का इस्तेमाल पुतिन अपनी सत्ता को मजबूत बनाए रखने के लिए करते हैं. पुतिन का यह मानना है कि किसी भी तरह की असहमति, चाहे वह राजनीतिक हो या सामाजिक, एक "राष्ट्रीय खतरा" है जिसे खुफिया एजेंसियों के जरिए दबाना जरूरी है. मानवाधिकार संगठनों ने रूस पर प्रतिबंध लगाने और राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग की है. हालांकि, रूस ने इन आलोचनाओं को "देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप" बताया.
इन कार्रवाइयों में गिरफ्तारियां, जबरन गुमशुदगी, और कठोर दंड शामिल हैं. मानवाधिकार संगठन इस एजेंसी के कार्यों को "स्टालिन युग की याद दिलाने वाला" मानते हैं, जब खुफिया एजेंसियां राजनीतिक विरोधियों को बिना किसी मुकदमे के दंडित करती थीं.
नजरिया:
भारत - चीन का एक दूसरे के बिना भला मुश्किल
पिछले कुछ सालों से भारत की सीमाओं पर अतिक्रमण कर रहा चीन, लगता है डोनाल्ड टम्प के आने के बाद के बाद बाजार पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर बेहद गंभीर हो गया है. भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव और सीमा विवाद के बावजूद, साफ है कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं गहरे स्तर पर आपस में जुड़ी हुई हैं. नई दिल्ली, बीजिंग से अलग होने की कोशिश कर रही है, लेकिन जब तक भारत ग्लोबल सप्लाई चेन का हिस्सा नहीं बनता, जिसे वर्तमान में चीन नियंत्रित करता है, तब तक यह संभव नहीं है.
ब्लूमबर्ग में प्रकाशित अपने कॉलम में मिहिर शर्मा लिखते हैं कि चीन ने अपनी औद्योगिक अवसंरचना में आवश्यकता से अधिक निवेश किया है; और अब, ऐसा लगता है कि उपभोक्ता मांग उस अतिरिक्त उत्पादन को पूरी तरह से सोखने में असमर्थ है. अतिरिक्त उत्पादन का निर्यात करना भी मुश्किल होता जा रहा है. दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों ने चीन से आयात पर लक्षित एंटी-डंपिंग प्रावधान लागू किए हैं.
डोनाल्ड ट्रम्प के व्हाइट हाउस में आने के साथ ही व्यापार युद्ध तेज होने पर, बीजिंग के आर्थिक योजनाकार अपने विनिर्मित उत्पादों के लिए नए गंतव्यों की तलाश करेंगे. भारत द्वारा चीन के साथ आर्थिक संबंध तोड़ने के प्रयासों को एक समस्या के रूप में पहचाना गया होगा जिसे हल करने की आवश्यकता है.
भारत पहले से ही भारी मात्रा में चीनी सामान आयात करता है; लेकिन 2020 में सीमा पर तनाव बढ़ने के बाद इनसे दूर होने के प्रयास तेज हो गए. नियामक कार्रवाई मुख्य भूमि से आयात पर केंद्रित थी, जिसमें वे भी शामिल थे जिन्हें दक्षिण पूर्व एशिया में पुन: पैक किया जा रहा था, जिसके साथ भारत का एक मुक्त व्यापार समझौता है. भारत में चीनी निवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था. चीनी नागरिकों को भारत आने के लिए वीजा मिलना बंद हो गया.
लेकिन वह रणनीति योजना के अनुसार काम करती नहीं दिखी. भारतीय नीति निर्माताओं ने देखा कि व्यापार घाटा बढ़ता ही जा रहा है. अजीब बात यह है कि भारत ठीक उन्हीं क्षेत्रों में चीन से अधिक आयात कर रहा था — जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स — जहाँ वह अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार भी करता हुआ दिख रहा था, और पश्चिम में अधिक निर्यात कर रहा था.
उन्हें इसकी उम्मीद करनी चाहिए थी. यह विफलता नहीं, सफलता का संकेत था. एपल अब भारत में जो आईफ़ोन बनाती है, उसकी आपूर्ति श्रृंखला में स्वाभाविक रूप से चीन की कंपनियाँ भी शामिल होंगी. भारत सरकार अपने लाखों युवाओं के लिए नए, उच्च-गुणवत्ता वाले रोज़गार पैदा करने के लिए संघर्ष कर रही है, एक ऐसी समस्या जो लगभग दो वर्षों में सबसे कम आर्थिक विकास के कारण और भी गंभीर हो गई है. यदि इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में इन नई नौकरियों के लिए भारत को चीन के साथ आपूर्ति श्रृंखला साझा करने की आवश्यकता है, तो यह एक ऐसी कीमत हो सकती है जिसे चुकाना उचित हो.
मिहिर आगे कहते हैं, फिर भी समस्या की जड़ यहां है: दोनों अलग-अलग चीजें भी चाहते हैं. भारत चाहता हैं कि चीनी निवेश करे, सहयोग करे और सीमा पर दबाव डालना बंद करेे. चीनी एक और बाजार चाहते हैं, और उम्मीद करते हैं कि जब ट्रम्प प्रशासन अपनी धौंसपट्टी पर उतरेगा, तो वह भारत से नर्माई बरत कर अपने नुक्सान कम कर सकते हैं. नई दिल्ली इस बेमेल स्थिति के बारे में जानती है, और बीजिंग भी. लेकिन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएँ इतने बुरे हाल में हैं कि वे फिलहाल इसे नज़रअंदाज़ करने को तैयार हैं.
चलते चलते : तबाही की तरफ जा रही दुनिया में मुंह चुराएंगे या उसका सीधा सामना करेंगे
दुनिया जब नरक की तरफ तेजी से जा रही हो, ऐसे में फिल्म निर्माता क्या कर सकते हैं? गार्डियन के मुताबिक वह या तो पलायनवाद और निरन्तर बढ़ते हुए पतन से कुछ राहत दे सकते हैं या फिर आसिफ कपाड़िया (जो वृत्तचित्र सेना और एमी के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं) द्वारा पसंदीदा दृष्टिकोण अपनाना है, जो साई फाई और नॉन फिक्शन के सहारे इस साहसी और भयावह मिश्रण बना कर सीधे जा कर टकराते हैं. क्रिस मार्कर की 1962 की लघु फिल्म ला जेटे से प्रेरित, आसिफ की 2073 आंशिक रूप से एक दुखी भविष्य से चेतावनी के रूप में कार्य करती है। सामंथा मोर्टन एक गूंगी सरवाइवर के रोल में हैं, जो सब बरबाद हो जाने के बाद एकाकी, सफाईकर्मी की जीविका व्यतीत कर रही हैं। काल्पनिक कहानी में वृत्तचित्र तत्वों को बुना गया है, जिसमें जलवायु संकट, अति-दक्षिणपंथी का उदय, सरवेलेंस, नरसंहार और एआई के आसन्न खतरों को रेखांकित किया गया है. यह बताते हुए कि निराशावादी भविष्य कैसे आया. यह एक मुश्किल संतुलन है, जिसे फिल्म हमेशा पूरी तरह से साध नहीं पाती है, एक चेतावनी देने और अस्तित्वगत आतंक के साथ चीखने के बीच; दर्शकों को कार्रवाई के लिए प्रेरित करने और उन्हें निराशा में डुबोने के बीच. यूरोप में यह फिल्म अभी जारी हुई है. इसका ट्रेलर
और आसिफ से ब्रालीगार्की पर लम्बा हिसाब लिखने वाली केरल कैडवालाडर से हाल का इंटरव्यू यहाँ पढ़ सकते हैं.
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