05/03/2025 : कुंभ में भगदड़ की ख़बर योगी ने दबवाई, अमेरिका ने यूक्रेन की मदद रोकी, जेलेंस्की ने अफसोस जताया, 75% मानते हैं उनका निजी डेटा लीक, सोना गिरवी रखने वाली औरतें बढ़ीं, क्रिकेट में भारत जीता
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
पुतिन की तरफदारी में ट्रम्प ने यूक्रेन की मदद रोकी, जेलेंस्की ने ओवल बैठक पर अफसोस जताया, रूस पर लगी पाबंदियां घटाने का इंतज़ाम शुरू
87% भारतीय मानते हैं उनका निजी डेटा लीक हुआ
कश्मीर और मणिपुर में हिंसा पर चिंता के जवाब में भारत ने कहा ऐसा कुछ नहीं!
असम के एक गाँव के डेटा ने बिगाड़ी सरकारी आँकड़ों का औसत
'विश्व के सबसे बड़े संग्रहालय' में इतिहास को 'दोबारा लिखने' की योजना?
पीयूष गोयल का अचानक अमेरिका दौरा
कश्मीरियों ने गायब कर दिया इजराइल का खजूर
ठग ने यूपी सरकार से कर लिया 13,500 करोड़ का एमओयू
सोना गिरवी रखने वाली औरतें 22% बढ़ीं
हरियाणा | गौ-रक्षकों ने पीट-पीटकर की ट्रक कंडक्टर की हत्या, 5 गिरफ्तार
महाराष्ट्र के मंत्री मुंडे का इस्तीफा
भारत खिताब से एक कदम दूर, सेमी में ऑस्ट्रेलिया को हराया
गुजरात मॉडल की असलियत : स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबी प्रबंधन में बिहार जैसी हालत
स्टालिन ने डिलिमिटेशन पर सभी तमिल दलों की बैठक बुलाई
विदेश भेजने के लिए गुजरात में एजेंटों की बाढ़, अब ईडी की रडार पर मानव तस्कर
कष्ट में कोस्टा रिका में अटके भारतीय
योगी ने माना महाकुंभ में भगदड़ की खबर दबाई
'द इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि महाकुंभ में हुई भगदड़ में 30 लोगों की मौत के एक महीने बाद, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को कहा कि उनकी सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए तुरंत कार्रवाई की और घटना को उजागर नहीं होने दिया, ताकि उस दिन महाकुंभ स्थल पर मौजूद करोड़ों भक्तों के बीच घबराहट न फैल सके. उन्होंने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट पर आधारित उन दावों को भी खारिज किया, जिसमें महाकुंभ में पानी के नमूनों में उच्च स्तर के फिकल कोलिफॉर्म पाए जाने की बात कही गई थी. आदित्यनाथ ने कहा कि सीपीसीबी ने बाद में यह स्वीकार किया कि पानी में इन प्रदूषण स्तरों की बात सही नहीं थी. महाकुंभ में हुई भगदड़ पर पहली बार विस्तृत रूप से बात करते हुए, आदित्यनाथ ने कहा कि "भीड़ एक नदी की धारा की तरह होती है… जब भी उसे रोकने की कोशिश की जाती है, तो वह या तो रास्ता बना लेती है या फैल जाती है और नुकसान करती है." उन्होंने बताया कि 29 जनवरी की रात महाकुंभ में 4 करोड़ भक्तों की भारी भीड़ थी और हर कोई 4 बजे सुबह गंगा में डुबकी लगाना चाहता था. इसी दौरान घटना घटी. आदित्यनाथ ने कहा कि महाकुंभ क्षेत्र में चार करोड़ लोग मौजूद थे और इतने ही लोग प्रयागराज शहर में थे. उन्होंने यह भी बताया कि 2 लाख वाहन आसपास के जिलों में खड़े थे, जो महाकुंभ क्षेत्र में पहुंचने के लिए इंतजार कर रहे थे.
ट्रम्प - जेलेंस्की
पुतिन की तरफदारी में ट्रम्प ने यूक्रेन की मदद रोकी, जेलेंस्की ने ओवल बैठक पर अफसोस जताया,रूस पर लगी पाबंदियां घटाने का इंतज़ाम शुरू
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने शुक्रवार की नाटकीय बैठक के दौरान यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की के साथ कैमरों के सामने जो धौंसपट्टी की, उसके झटके इस हफ्ते भी जारी रहे. आज अमेरिका ने रूसी हमले से सुरक्षा के लिए यूक्रेन को दी जाने वाली तमाम सैन्य मदद पर रोक लगा दी. फिर सूत्रों ने कहा कि ये स्थायी नहीं है. रुस पर जो बंदिशें अमेरिका ने लागू कर रखी थीं, उन्हें ढीला किये जाने की तैयारी की जा रही है. अमेरिका के मित्र देशों और कनाडा जैसे पड़ोसियों पर टैरिफ की मार आज से लागू हो रही है. अमेरिका ने यूक्रेन पर हुए हमले को लेकर लाए गये संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पर भी रूस की तरफदारी की थी.
जेलेंस्की ने अफसोस जताया : इस बीच घटनाक्रम तेज़ी से बदल रहा है. मंगलवार देर शाम यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ ओवल ऑफिस में हुई तल्खी पर अफसोस जताते हुए कहा कि "बातचीत अपेक्षित तरीके से आगे नहीं बढ़ पाई." उन्होंने युद्ध समाप्ति के लिए ट्रंप की अगुवाई में तेजी से काम करने की तैयारी जताई.
ज़ेलेंस्की ने युद्धविराम की ओर पहले चरण के रूप में कैदियों की रिहाई, समुद्र और आकाश में युद्धविराम का प्रस्ताव रखा. अमेरिका के प्रस्तावित खनिज समझौते पर हस्ताक्षर के लिए कीव की तैयारी की बात कही और अमेरिकी समर्थन के लिए आभार जताया. हालांकि, अमेरिका द्वारा यूक्रेन को सैन्य सहायता रोकने के निर्णय पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. ज़ेलेंस्की ने जोर देकर कहा कि यूक्रेन "मजबूत नेतृत्व" के साथ रूस के साथ युद्ध को जल्द से जल्द खत्म करने को प्रतिबद्ध है. उनके इस बयान के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें अब ट्रंप प्रशासन की प्रतिक्रिया पर टिकी हैं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने कहा कि उन्होंने अमेरिका द्वारा सैन्य सहायता रोकने संबंधी आधिकारिक जानकारी हासिल करने के लिए देश के अधिकारियों को अमेरिकी समकक्षों से संपर्क करने का निर्देश दिया है. राष्ट्रपति ने अपने रात्रिकालीन संबोधन में कहा, "मैंने रक्षा मंत्री, खुफिया प्रमुखों और राजनयिकों को अमेरिकी अधिकारियों से संपर्क कर तथ्यात्मक विवरण प्राप्त करने का आदेश दिया है. लोगों को अंदाज़ा लगाने के लिए नहीं छोड़ा जाना चाहिए." ज़ेलेंस्की ने जोर देते हुए कहा कि "अमेरिका के साथ सामान्य, साझेदारी संबंध बनाए रखना युद्ध समाप्ति के लिए अहम है. हममें से कोई भी अंतहीन युद्ध नहीं चाहता." उन्होंने यूक्रेन-अमेरिका संबंधों को युद्धविराम की दिशा में महत्वपूर्ण बताया.
उधर अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने अपने एक बयान में कहा कि जेलेंस्की को समझौते को लेकर बातचीत प्राइवेट में करनी चाहिए.
कीव लौटने के बाद जेलेंस्की ने कहा था कि जंग के खत्म होने का रास्ता अभी काफी लंबा और दूर लगता है. इस बात पर ट्रम्प फिर भभक गये, और कहा मैंने पहले ही कहा था कि ये आदमी शांति चाहता ही नहीं. जिस तरह की कूटनीति हम अब तक जानते थे, अब धसक चुकी है. कूटनीति के नाम पर डोनल्ड ट्रम्प के अपने प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल के हैंडल से दुनिया को हांका जा रहा है.
ट्रम्प और उनकी सरकार ज़ेलेंस्की और दुनिया को साफ-साफ नहीं बता पा रहे हैं कि शांति की बहाली के लिए ज़ेलेंस्की को और क्या कुछ करना चाहिए. जिस कृतज्ञता के न होने की जेडी वेंस उस दिन शिकायत कर रहे थे, वह बैठक में, उसके पहले और बाद भी ज्ञापित होती रही है. ट्रम्प और उनकी सरकार का पूरा रवैया ज़ेलेंस्की के खिलाफ निजी वैमनस्य से भरा हुआ है. बताते हैं कि ये नज़ला ट्रम्प के पिछले कार्यकाल का है, जब यूक्रेन पर झूठे आरोप लगाने के कारण ट्रम्प को इम्पीचमेंट प्रस्ताव झेलना पड़ा था.
ट्रम्प की तरफ से ज़ेलेंस्की के हटने की शर्त तो नहीं, पर मांग जरूर रखी जा रही है. ट्रम्प हर उस बात पर बिदक रहे हैं, जो जेलेंस्की के मुंह से निकल रही है. और उनके मागा समर्थक भी. मामला निजी और व्यक्तिगत हो चुका है.
यूरोप यूक्रेन की तरफ : इससे पहले जेलेंस्की ने वाशिंगटन से कीव लौटने का रास्ता लंदन होकर पकड़ा और वहाँ उनके समर्थन में पूरा यूरोप आ गया. वहाँ उसी युद्ध रत देश के भेष में ब्रिटेन के महाराजा चार्ल्स भी उनसे मिले और फोटो खिंचवाया. यूरोपीय देशों के लिए भी शुक्रवार का एपिसोड परेशान करने वाला है, भले ही वह अभी दिलदारी से यूक्रेन के साथ खड़े हैं. बिना अमेरिकी मदद के रूस से लड़ना मुश्किल और महंगा सौदा है. पर यूरोपीय देश जानते हैं कि पुतिन और रूस भी इस जंग में खोखला और तंगहाल, कमज़ोर हुआ है. पुतिन को लग रहा था कि यूक्रेन को आसानी से गड़प जाएंगे, पर चौथा साल चालू हो चुका है और यूक्रेन अब भी मुकाबिल है.
मंगलवार को दिए गए एक भाषण में - ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के 27 राष्ट्रीय नेताओं के संकट शिखर सम्मेलन से 48 घंटे पहले - यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा कि सरकारों को अगले पांच वर्षों में 150 बिलियन यूरो के ऋण निकालने में सक्षम होना चाहिए. यह पैसा किसी भी बजट में पहले से मौजूद नहीं है, इसमें आयोग अपनी वित्तीय ताकत का उपयोग नकद उधार लेने के लिए करेगा, जिसे वह बाद में व्यक्तिगत सरकारों को उधार देगा, और उन्हें अंततः वापस भुगतान करना होगा.
यूक्रेन में चिंता पर रूस को लेकर मुरव्वत नहीं : मदद रोकने के बाद भी यूक्रेनी सरकार ने अमेरिका के प्रति कृतज्ञता दिखाई, पर सबकी प्रतिक्रिया वैसी नहीं थी. "यह पता चला है कि ट्रम्प, रूस और यूक्रेन पर दबाव और प्रभाव डालने का अवसर होने के बावजूद, इस दबाव का उपयोग आक्रामक पर नहीं, बल्कि आक्रामकता के शिकार पर करते हैं," यूक्रेनी संसद में विदेश संबंध समिति के प्रमुख ओलेक्सांद्र मेरेज़को ने कहा. "यह बहुत भयानक लगता है. खासकर जब बात एयर डिफेंस सिस्टम की हो. सहायता की यह रुकावट पहले से ही यूक्रेन के लिए एक राजनीतिक झटका है."
यूरोप में अमेरिका के बिना भी यूक्रेन की तरफ खड़े रहने की कवायद शुरू हो चुकी है. अमेरिका की दिक्कत यह है कि स्कूली बच्चों की तरह धौंस पट्टी भी करनी है और दुनिया की लीडरी पर भी काबिज रहना है. चाहे यूक्रेन का मामला हो या फिलीस्तीन का और या फिर टैरिफ का, जिस पर कनाडा हो या चीन, सभी जवाबी कार्रवाइयां कर रहे हैं और अमेरिकी धौंस के खिलाफ घुटने नहीं टेक रहे. ट्रम्प चीख कर ज़ेलेंस्की को कह रहे थे कि क्या वे दुनिया को तीसरी जंग की तरफ धकेलना चाहते हैं. तीसरे विश्व युद्ध की बात तो सच हो सकती है, पर उसे चाहने वाला ज़ेलेंस्की नहीं है.
इधर यूक्रेन के पूर्व विदेश मंत्री दिमित्री कुलेबा ने न्यूयॉर्क टाइम्स मे ‘अब ये यूरोप की जंग है’ शीर्षक से लिखा है कि यूक्रेन शांति के समझौते के खिलाफ नहीं, शांति की शर्तों से तबाह होने के खिलाफ है. और ये बात अमेरिकी सरकार नहीं समझ रही, पर यूरोपीय देश जानते हैं. पुतिन की निगाह पूरे यूक्रेन पर है, जैसे कि पिछले तीन सौ सालों से रूस की रही है. कुलेबा लिखते हैं जब ट्रम्प अपने सोशल हैंडल पर बता रहे थे कि जेलेंस्की तभी लौटे, जब शांति के लिए तैयार हों, उसी दिन रूस ने यूक्रेनियन शहरों पर 150 से ज्यादा ड्रोन हमले किये थे.
पुतिन की रणनीति : जबकि ट्रम्प लगातार रूस के हमले के लिए यूक्रेन को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं. एटलांटिक की एन एपलबॉम ने लिखा है कि पुतिन की जीत तभी मुमकिन है, जब उसे जीतने दिया जाएगा. इस युद्ध के तीन साल बाद, दांव वही हैं, जो इसे शुरू होने की रात को थे. पुतिन, जिन्होंने कल पूरे युद्ध के सबसे बड़े हमलों में से एक को अंजाम दिया, अब भी यूक्रेन की संप्रभुता, नागरिक समाज, लोकतंत्र और आज़ादी को नष्ट करना चाहते हैं. वे अब भी दुनिया को यह दिखाना चाहते हैं कि अमेरिकी शक्ति का युग खत्म हो गया है, कि अमेरिका यूरोप, एशिया या कहीं और अपने सहयोगियों की रक्षा नहीं करेगा. वे अब भी उन नियमों और कानूनों को खत्म करना चाहते हैं, जिन्होंने यूरोप को आठ दशकों तक शांतिपूर्ण बनाए रखा, अस्थिरता और डर पैदा करने के लिए, न केवल रूस की सीमा से लगे देशों में, बल्कि पूरे महाद्वीप और यहां तक कि दुनिया भर में.
रूस का जब्त पैसा यूक्रेन को देने की मांग : इस बीच एक पुरानी मांग भी उठी है कि अमेरिकी, यूरोपीय और दूसरी जगहों पर फ्रीज किया हुआ रूस का पैसा जो करीब 300 बिलियन डॉलर है, उसे यूक्रेन को दे दिया जाए. ये मांग यूरोप से ज्यादा उठ रही है.
पाठकों से अपील
विश्लेषण
आकार पटेल : क्या ट्रम्प के निशाने पर चीन है?
अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा यूक्रेन के नेता को विश्व युद्ध के साथ जुआ खेलने के बारे में डांटने के ठीक बाद कोई क्या लिखे?
नवंबर 2024 में, केवल तीन महीने पहले, यह बताया गया था कि बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन को युद्ध को बढ़ाने के लिए रूस के अंदर गहराई तक हमला करने के लिए अमेरिकी निर्मित मिसाइलों का उपयोग करने की "अनुमति" दी थी. इसके बाद, रॉयटर्स ने एक रिपोर्ट चलाई : "मिसाइल निर्णय से बाइडेन ‘विश्व युद्ध 3’ को जोखिम में डाल रहे हैं, रूसी सांसद का कहना है".
उससे एक महीने पहले, अक्टूबर 2024 में, सबसे बड़े अमेरिकी बैंक के प्रमुख को एक शीर्षक में उद्धृत किया गया था: "जेपी मॉर्गन सीईओ का कहना है कि पश्चिमी शक्ति खतरे में है और तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है,". वह न केवल यूक्रेन युद्ध का जिक्र कर रहे थे, बल्कि गाजा में नरसंहार और चीन के उदय को भी कुछ व्यापक के लिए ट्रिगर करने वाली घटनाओं के रूप में बता रहे थे.
इसलिए, शुक्रवार को व्हाइट हाउस के प्रसिद्ध ओवल ऑफिस में जो सर्कस हुआ, वह पहली बार नहीं हो रहा था कि हम मानव जाति के संभावित विनाश पर चर्चा कर रहे थे.
कोई इसका क्या मतलब निकाले? आइए यह देखने की कोशिश करें कि क्या हो रहा है, इसका कुछ अर्थ निकाला जा सकता है.
शुरू करने के लिए, डोनाल्ड ट्रम्प क्या चाहते हैं? ऊपरी तौर पर, यह बताना मुश्किल है, क्योंकि वह बहुत-सी चीजों के बारे में बहुत अधिक और लापरवाही से बात करते हैं. उनके आलोचक कहते हैं कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि वह मूर्ख और चंचल हैं, लेकिन इसे उस व्यक्ति के साथ जोड़ना मुश्किल है, जिसने दो बार अमेरिकी राष्ट्रपति पद जीता. आइए मान लें कि वह जानते हैं कि वह क्या कर रहे हैं.
जो दृष्टिकोण सबसे सुसंगत प्रतीत होता है, वह यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति का असली लक्ष्य चीन है. वह इसके उदय को रोकना चाहते हैं, ताकि यह शक्ति में अमेरिका के बराबर न हो. वह चाहते हैं कि डॉलर एकमात्र वैश्विक मुद्रा बना रहे और वह चाहते हैं कि चीन मैन्यूफैक्चरिंग और निर्यात पर कुछ जमीन वापस अमेरिका को दे.
और इसलिए, इस दृष्टिकोण के अनुसार, उनकी सभी बड़ी कार्रवाइयों को चीन के लेंस से देखा जाना चाहिए.
यदि पिछली विकास दरें बनी रहती हैं तो चीन अगले कुछ दशकों में अमेरिकी अर्थव्यवस्था के बराबर और फिर उससे आगे निकलने वाला है. ट्रम्प इसे होने देना नहीं चाहते. उनके पहले कार्यकाल के शुल्क और अन्य प्रतिबंध जो जो बाइडेन के तहत चीन पर आए, जैसे उच्च-स्तरीय कंप्यूटर चिप्स पर प्रतिबंध के साथ नग्न इच्छा कि चीन तकनीकी रूप से प्रगति न करे, उस योजना का सबसे बड़ा हिस्सा हैं. इस कार्यकाल में, ट्रम्प ने अमेरिका में आने वाले सभी चीनी सामान पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क जोड़ा. इसके बाद फिर 10 प्रतिशत और जो इस सप्ताह लागू होने वाला है. उन्होंने कहा कि वह 60 प्रतिशत तक जा सकते हैं. इससे चीन और अमेरिका दोनों में उच्च स्तर की अनिश्चितता और उथल-पुथल आएगी, क्योंकि कई उद्योग आपस में जुड़े हुए हैं. कई लोगों ने सीधे ट्रम्प से कहा है कि इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर उतना ही असर पड़ेगा, जितना चीनी कंपनियों पर, लेकिन उन्होंने बार-बार इस चिंता को खारिज कर दिया है.
डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं का उपयोग करने के खिलाफ ब्रिक्स को उनकी खुली धमकी चीन को नियंत्रण में रखने की योजना का एक और हिस्सा है. इस दृष्टिकोण के तहत, इस तर्क को जारी रखने के लिए, यूक्रेन और मध्य पूर्व में अमेरिकी भागीदारी दरअसल ध्यान भटकाव है, जिसे जल्दी से समाप्त किया जाना चाहिए, ताकि चीन के मुख्य व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित किया जा सके. चीन अमेरिका का एकमात्र समकक्ष प्रतिस्पर्धी है, न कि रूस और न ही कोई और. इसलिए समग्र मिशन से विचलित होना बहुत कम समझ में आता है.
गाजा पर लगातार और खूनी बमबारी के दो साल बाद जनवरी में इज़राइल पर ट्रम्प द्वारा लगाए गए एक शांति समझौते के साथ समाप्त हुए, और अब ऐसा लगता है कि अमेरिका के समर्थन के समाप्त होने के बाद यूक्रेन को रूस के सामने झुकना होगा.
यदि यह दृष्टिकोण सही है, तो उसके बाद, मतलब रूस के यूक्रेन पर हावी होने के बाद, अमेरिका का ध्यान चीन पर अधिक तेज होगा. लेकिन अगर ऐसा है, तो ट्रम्प अमेरिका के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों और सहयोगियों और मेक्सिको और कनाडा के पीछे क्यों जा रहे हैं?
इस दृष्टिकोण के तहत जिसे हमने ट्रम्प का माना है, सुझाव है कि यह चीन से आगे अमेरिका को बनाए रखने की उनकी इच्छा की निरंतरता है. शुल्कों ने वैश्विक बाजारों में अराजकता और अनिश्चितता का एक स्तर पेश किया है और इससे हमेशा डॉलर को मजबूती मिलती है, जैसा हम देख रहे हैं.
यहाँ एकमात्र प्रतिवाद यह है कि एक मजबूत डॉलर तब अमेरिकी निर्माताओं के लिए अपने निर्माणों का निर्यात करना और भी कठिन बना देता है और व्यापार घाटा, जिसे ट्रम्प कम करना चाहते हैं, बना रहता है. शायद ट्रम्प ने इसके बारे में भी सोचा है, और शायद उन्होंने नहीं सोचा है कि हम देखेंगे: चार साल एक लंबा समय होता है.
बड़ा सवाल यह है कि चीन कैसे प्रतिक्रिया देगा. चीन आज जहाँ है, वहाँ किसी बाहरी उदारता का लाभार्थी होकर नहीं पहुँचा. इसके पास एक बड़ी और प्रतिभाशाली आबादी है, जिसने अपनी अर्थव्यवस्था और उद्योग को मूल्य शृंखला में किसी भी राष्ट्र की तुलना में तेजी से केवल 40 वर्षों की अवधि में आगे बढ़ाया है. यह अपनी स्थिति की रक्षा करेगा और यह वह सब करेगा, जो वह पहले अमेरिका के बराबर और फिर उससे आगे निकलने के लिए कर सकता है. चीन की महत्वाकांक्षाओं का निर्धारण अमेरिका द्वारा नहीं किया जा सकता है.
चीन के नेता को व्हाइट हाउस के राजदरबार में बुला कर न तो डांटा जा सकता है और न ही घुटने टेकने के लिए मजबूर किया जा सकता है जैसे अन्य सहयोगियों को ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया है. और एआई में हाल के विकास और 2024 में दुनिया के बाकी हिस्सों में चीनी निर्यात की वृद्धि (चीन के पास 1 ट्रिलियन डॉलर का व्यापार सरप्लस है) दिखाते हैं, अकेले शुल्क चीन को धीमा कर सकते हैं, लेकिन रोक नहीं सकते.
इसलिए यदि यह दृष्टिकोण कि ट्रम्प का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अमेरिका अपनी वैश्विक प्रभुत्व बनाए रखे, सही है, तो यूक्रेन युद्ध का अंत चीन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उनकी ओवल ऑफिस डेस्क को साफ कर देगा. आगे क्या होता है, चाहे विश्व युद्ध हो या कुछ और, किसी को भी बिल्कुल नहीं पता.
लेखक स्तंभकार हैं और एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के प्रमुख भी
87% भारतीय मानते हैं उनका निजी डेटा लीक हुआ
एक सर्वे के मुताबिक, देश के एक बड़े हिस्से को लगता है कि उनका निजी डेटा या तो सार्वजनिक डोमेन में है या हैक हुए डेटाबेस में मौजूद है. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म लोकलसर्किल्स (LocalCircles) के सर्वे में 87% उत्तरदाताओं ने माना कि उनका डेटा लीक हुआ है. यह सर्वे 25 अगस्त से 28 फरवरी के बीच देश के 375 जिलों के 36,000 से अधिक लोगों से प्रतिक्रियाएं एकत्र करके किया गया.
इनमें से 50% ने राज्य/स्थानीय सरकार के कार्यालयों, डेटाबेस या कर्मचारियों को दोषी ठहराया और 48% ने पेमेंट ऐप्स या वेबसाइटों को जवाबदेह बताया. 37% ने अन्य व्यवसायों/संस्थाओं को दोषी ठहराया और 26% ने शिक्षण संस्थानों को जिम्मेदार बताया.
जिन लोगों का निजी डेटा लीक हुआ है, उनमें से आधे से अधिक का मानना है कि उनका आधार या पैन कार्ड डिटेल्स हैक हुए हैं या सार्वजनिक हो चुके हैं. अधिकांश प्रतिभागियों ने टेलीकॉम ऑपरेटर्स, ई-कॉमर्स ऐप्स, बैंकों, वित्तीय सेवा प्रदाताओं और सरकारी विभागों को अपना डेटा लीक करने के लिए जिम्मेदार ठहराया.
कश्मीर और मणिपुर में हिंसा पर चिंता के जवाब में भारत ने कहा ऐसा कुछ नहीं! : संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क ने भारत में कश्मीर और मणिपुर जैसे क्षेत्रों में हिंसा और विस्थापन पर चिंता जाहिर की है. साथ ही कहा कि पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ प्रतिबंधात्मक कानूनों का उपयोग और उनकी मनमानी गिरफ्तारी भी चिंता का विषय है. इस पर भारत के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि अरिंदम बागची ने कहा कि टर्क के मानवाधिकार परिषद में किए गए वैश्विक अपडेट में "बेनाम और निराधार टिप्पणियां" हैं, जिसमें उनकी भारत के बारे में टिप्पणी "जमीन पर वास्तविकताओं के साथ पूरी तरह से विपरीत" हैं.
असम के एक गाँव के डेटा ने बिगाड़ी सरकारी आँकड़ों का औसत : 2022-23 के श्रम बल सर्वेक्षण में असम के एक गाँव को गलती से जिले के अन्य गाँवों/शहरी ब्लॉक्स की तुलना में 650 गुना अधिक 'वेटेज' दे दिया गया. इससे जिले और असम की जनसंख्या आंकड़े 'काफी बढ़े' दिखे, जबकि राज्य का कर्मचारी-जनसंख्या अनुपात कम आंका गया. पत्रकार प्रमित भट्टाचार्य और नंदलाल मिश्रा ने चेतावनी दी है कि इस गाँव के डेटा को हटाए बिना सर्वे के निष्कर्ष 'गलत' होंगे.
'विश्व के सबसे बड़े संग्रहालय' में इतिहास को 'दोबारा लिखने' की योजना? मोदी सरकार दिल्ली में फ्रांस के साथ मिलकर 'युग युगीन भारत राष्ट्रीय संग्रहालय' बना रही है, जिसे 'विश्व का सबसे बड़ा संग्रहालय' बताया जा रहा है. हालांकि, सरकारी गोपनीयता के चलते इसकी योजना स्पष्ट नहीं है. पत्रकार जाह्नवी सेन की रिपोर्ट के मुताबिक, आंतरिक प्रस्तावों से पता चलता है कि इसमें हिंदू धर्म को 'शाश्वत', मुस्लिम शासकों को 'खलनायक' और 'भारत' को लोकतंत्र जैसे आधुनिक विचारों का जनक दिखाने की कोशिश हो सकती है.
पीयूष गोयल का अचानक अमेरिका दौरा : वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने 8 मार्च तक की अपनी सभी बैठकें रद्द कर अचानक अमेरिका के लिए उड़ान भरी. सूत्रों के अनुसार, वह वाशिंगटन के प्रस्तावित 'प्रतिशुल्क' (रिसिप्रोकल टैरिफ) पर स्पष्टता चाहते हैं और रियायतें देने पर चर्चा कर सकते हैं. भारत औद्योगिक उत्पादों पर टैरिफ कटौती पर बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन कृषि उत्पादों पर कटौती का विरोध कर रहा है, क्योंकि इससे 'करोड़ों गरीब किसान प्रभावित' होंगे.
कश्मीरियों ने गायब कर दिया इजराइल का खजूर : 'कश्मीर टाइम्स' की खबर है कि कश्मीर के बाजारों से इजराइल के खजूर गायब हैं और इसकी जगह सऊदी अरब, ईरान, मोरक्को और अल्जीरिया से आई हुई खेप ने रमजान के महीने में कश्मीर के बाजारों की रौनक बढ़ाई हुई है. कश्मीरी दुकानदारों ने ऐसा फिलीस्तीन के समर्थन में किया है, जो अब कश्मीर में चर्चा का विषय बन गया है. दुकानदारों का यह कदम इज़राइल के कब्जे और फिलीस्तीनियों के प्रति अत्याचार के खिलाफ एक विरोध के रूप में देखा जा रहा है.
ठग ने यूपी सरकार से कर लिया 13,500 करोड़ का एमओयू : उत्तरप्रदेश सरकार के साथ ठग हजारों करोड़ का एमओयू साइन कर जा रहे हैं ओर अधिकारियों को भनक तक नहीं लग पा रही है. 'अमर उजाला' की खबर है कि उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में 750 डेटा सेंटर बनाने का जिम्मा लेने को आगे आई कंपनी व्यूनाउ मार्केटिंग सर्विसेज लिमिटेड और व्यूनाउ इंफ्राटेक फर्जी निकली. कंपनी के प्रबंध निदेशक ने कागजों में फर्जीवाड़ा कर अफसरों की आंखों में धूल झोंक एमओयू की चाल चली थी. दिलचस्प बात यह है कि शीर्ष अधिकारियों ने कंपनी के बारे में ठीक से पड़ताल ही नहीं की. इसी एमओयू की आड़ में मास्टरमाइंड सुखविंदर सिंह खरोर ने अपनी टीम के साथ 3,558 करोड़ रुपये निवेशकों से बटोर लिए. बहरहाल, विदेश भागने से पहले ईडी ने उसे पत्नी सहित इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया है.
सोना गिरवी रखने वाली औरतें 22% बढ़ीं
'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' की एक खबर के मुताबिक सिबिल-नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2019 और 2024 के बीच महिला उधारकर्ताओं की संख्या में सालाना 22% की वृद्धि हुई है. इस बीच 4 करोड़ नई महिला उधारकर्ता उभरी हैं, जिन्होंने अपने सोने के आभूषण के बदले में 4.7 ट्रिलियन रुपये का कर्ज लिया है. सोने का कर्ज महिलाओं के लिए एक प्रमुख विकल्प के रूप में उभरा है. 2024 में यह कुल महिला उधारी का 38% हिस्सा बना, जो 2019 से सोने के कर्ज में पांच गुना वृद्धि का संकेत है. युवा महिलाएं क्रेडिट निगरानी में भी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं, 2024 में इनकी संख्या में 56% की सालाना वृद्धि हुई है और ये महिला आत्म-निगरानी जनसंख्या का 22% हिस्सा बन चुकी हैं. रिपोर्ट के अनुसार, इसका मतलब है कि अधिक महिलाएं कर्ज लेने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल हो रही हैं, वे सोने के बदले कर्ज लेने को प्राथमिकता दे रही हैं और अपने क्रेडिट स्कोर की निगरानी भी कर रही हैं. यह रिपोर्ट ट्रांसयूनियन सिबिल, नीति आयोग के महिला उद्यमिता प्लेटफॉर्म और माइक्रोसावे कंसल्टिंग द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई है. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि महिलाओं द्वारा क्रेडिट एक्सेस करने की वार्षिक दर में 22% की वृद्धि हुई है, जो 2019 में 20 लाख से बढ़कर 2024 में 2.7 करोड़ हो गई है, जिनमें से 60% महिला उधारकर्ता अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से हैं.
हरियाणा | गौ-रक्षकों ने पीट-पीटकर की ट्रक कंडक्टर की हत्या, 5 गिरफ्तार : हरियाणा के पलवल में करीब एक हफ्ते पहले गायों की तस्करी के संदेह में 'गौ-रक्षकों' ने पहले एक ट्रक चालक और कंडक्टर का अपहरण किया और बाद में बर्बरता से उनकी पिटाई की, जिसके कारण कंडक्टर की मौत हो गई. अब हरियाणा पुलिस ने पांच 'गौ-रक्षकों' को गिरफ्तार किया है. आरोपियों ने दोनों को मार कर नहर में फेंक दिया था, यह मानते हुए कि दोनों मर चुके हैं, लेकिन चालक बालकिशन किसी तरह तैरते हुए बाहर आ गया और पुलिस में शिकायत दी. उसके साथी कंडक्टर संदीप का शव घटना के करीब आठ दिन बाद 2 मार्च को नहर से निकाला गया.
महाराष्ट्र के मंत्री मुंडे का इस्तीफा : महाराष्ट्र के बीड के मासाजोग गांव के सरपंच संतोष देशमुख हत्याकांड की चार्जशीट के एक दिन बाद विवादों में घिरे धनंजय मुंडे ने मंगलवार 4 मार्च 2025 को राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को मंत्री पद से अपना इस्तीफा सौंप दिया है. यह कदम विपक्ष द्वारा उनके इस्तीफे की मांग के बढ़ते शोर के बीच उठाया गया है. एफआईआर के अनुसार, पिछले साल दिसंबर में देशमुख की काफी बर्बरतापूर्ण तरीके से हत्या की कर दी गई थी. हालांकि एफआईआर में बीड से एनसीपी विधायक मुंडे का नाम नहीं है, लेकिन इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड बताए जा रहे वाल्मीक कराड से उनके करीबी रिश्ते हैं. देशमुख हत्याकांड में अब तक सात लोगों को गिरफ्तारी हो चुकी है, जबकि एक आरोपी फरार है.
भारत खिताब से एक कदम दूर, सेमी में ऑस्ट्रेलिया को हराया : चैंपियंस ट्रॉफी 2025 के पहले सेमीफाइनल में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को एकतरफा अंदाज में हराकर फाइनल में जगह बनाई. दुबई के दुबई इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में मंगलवार 4 मार्च को टॉस जीतकर पहले बैटिंग करते हुए ऑस्ट्रेलिया 49.3 ओवरों में 264 रन बनाकर ऑलआउट हो गई. इसके जवाब में 11 गेंद शेष रहते भारत ने छह विकेट के नुकसान पर लक्ष्य हासिल कर लिया. ऑस्ट्रेलिया की ओर से कप्तान स्टीव स्मिथ (73), एलेक्स कैरी (61) ने अर्धशतक बनाया तो वहीं बड़े मैचों के खिलाड़ी मोहम्मद शमी ने तीन, वरुण चक्रवर्ती तथा रविंद्र जडेजा ने दो-दो विकेट निकाले.
भारतीय पारी में आकर्षण चुराया फॉर्म में वापस लौटे विराट कोहली (84) ने. कोहली के अलावा श्रेयस अय्यर (45) और केएल राहुल (42) ने उपयोगी अंश दान किया. ऑस्ट्रेलिया की तरफ से नाथन एलिस और एडम जम्पा को दो-दो विकेट मिला. अब भारत का मुकाबला फाइनल में न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के बीच खेले जाने वाले दूसरे सेमीफाइनल के विजेता से होगा. फाइनल रविवार 9 मार्च को इसी मैदान पर खेला जाएगा. स्कोरकॉर्ड देखें.
गुजरात मॉडल की असलियत : स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबी प्रबंधन में बिहार जैसी हालत
'द वायर' के लिए श्रावस्ती दास गुप्ता की रिपोर्ट है कि गुजरात का विकास मॉडल उच्च वृद्धि की ओर तो बढ़ा है, लेकिन इसने सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को भी कई गुना बढ़ाया है. जहां गुजरात औद्योगिकीकरण में तेज़ी से बढ़ा है, वहीं शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में निवेश कम होने के कारण यह बिहार जैसे पिछड़े राज्यों के समान ही है. बिहार, ने सीमित संसाधनों के बावजूद अपने विकास में सामाजिक निवेश को प्राथमिकता दी है, जबकि गुजरात ने अपने बुनियादी ढांचे पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है. तमिलनाडु ने भी सामाजिक खर्चों पर ध्यान दिया है और यहां भी गरीबी उन्मूलन के मामले में राज्य गुजरात से आगे ही है. इतना ही नहीं रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात की औद्योगिक नीति में भारत की चीन पर निर्भरता बढ़ी है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्युटिकल्स के आयात में. "मेक इन इंडिया" पहल के बावजूद भारत, चीन पर ज्यादा निर्भर है.
"इंडिया : द चैलेंज ऑफ कंट्रास्टेड रीजनल डायनेमिक्स" शीर्षक वाले पेपर में क्रिस्टोफ जेफरलो, विग्नेश राजाहमानी और नील भारद्वाज ने तीन राज्यों बिहार, गुजरात और तमिलनाडु का विश्लेषण किया है, ताकि "भारत में विभिन्न भारत" की तुलना की जा सके और उनके विकास को आकार देने वाली सामाजिक-आर्थिक और शासकीय नीतियों के बीच अंतर को देखा जा सके. रिपोर्ट में कहा गया है कि जबकि बिहार लगातार अविकसित रहा है, प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से गुजरात देश का सबसे अमीर राज्य है. गुजरात का विकास तेजी से औद्योगिक विस्तार का मॉडल रहा है, जो बड़े उद्योगों, बुनियादी ढांचे के निवेश और व्यापार-मैत्रीपूर्ण नीतियों से प्रेरित है. हालांकि, असमानताएं बनी रही हैं, क्योंकि राज्य ने शिक्षा में बहुत कम निवेश किया है. रिपोर्ट में इन तीन राज्यों के सामाजिक खर्च के पैटर्न को देखा गया है, ताकि यह पता चल सके कि यह उनके प्राथमिकताओं का संकेत है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति में सार्वजनिक खर्च के मामले में गुजरात पिछड़ रहा है, जबकि बिहार अधिक खर्च करता है. गुजरात के स्वास्थ्य क्षेत्र का खर्च 2012-13 और 2019-20 के बीच केवल 10.5% बढ़ा, जबकि बिहार में यह 29.5% था और तमिलनाडु में यह 20.5% था, जो गुजरात से दोगुना था. रिपोर्ट में यह भी जोड़ा गया है कि बिहार का उच्च सामाजिक खर्च इसे हिंदी पट्टी में एक अद्वितीय स्थिति में रखता है. बिहार ने लगातार अपने जीडीपी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सामाजिक खर्चों के लिए आवंटित किया है, जो 2021-22 में 22.25% तक पहुंच गया. इसके विपरीत, गुजरात, जो अपने बुनियादी ढांचे-आधारित विकास के लिए जाना जाता है, उसने अपेक्षाकृत कम सामाजिक खर्च बनाए रखा है, जो 2021-22 में 4.46% के आसपास स्थिर रहा. इसके उलट तमिलनाडु जो मानव विकास पर केंद्रित है, अपने सामाजिक क्षेत्र में निवेश के प्रति स्थिर प्रतिबद्धता दिखाता है, जो इस अवधि में 4.90% से 6.01% के बीच रहा. रिपोर्ट कहती है कि ये प्रवृत्तियां दिखाती हैं कि तमिलनाडु ने अपने दक्षिणी समकक्षों की तरह सामाजिक कल्याण को प्राथमिकता दी है, गुजरात का मॉडल मुख्य रूप से बुनियादी ढांचे के विकास की ओर झुका हुआ है.
'द वायर' से बात करते हुए, जेफरलो ने कहा कि गुजरात का मॉडल भारत का प्रतिनिधि बन गया है, जहां विकास हुआ है, लेकिन वह नौकरियों के साथ नहीं हुआ. वो कहते हैं- "जब आप गुजरात और तमिलनाडु की तुलना करते हैं तो आप पाते हैं कि गुजरात बुनियादी ढांचे और उद्योग के मामले में तमिलनाडु के समान ही है. बिजली उत्पादन और सड़कों के मामले में यह तमिलनाडु से बेहतर है. सड़कें शायद वही हैं, जिनमें नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में सबसे ज्यादा निवेश किया, लेकिन गुजरात बिहार के करीब है, खासकर कुपोषण और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की दर के मामले में. शिक्षा की दर भी अच्छी नहीं है, कम से कम अंग्रेजी माध्यम शिक्षा तो बहुत खराब है. यह दिलचस्प है कि अगर आज भारत में कोई मॉडल है, तो वह तमिलनाडु है. यहां एक राज्य है जिसने लगभग गरीबी उन्मूलन कर लिया है, तेज़ी से औद्योगिकीकरण किया है और जहां सेवाएं उद्योग से आगे बढ़ रही हैं. यह कुछ ऐसा नहीं है जो गुजरात में दिखता है. जेफरलो ने कहा कि हमें बीजेपी को "केवल एक हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में नहीं, बल्कि एक एलीटिस्ट पार्टी के रूप में देखना चाहिए. एलीटिस्ट पार्टी, क्योंकि यह मंडल विरोधी थी और पार्टी क्रॉनी पूंजीवाद की प्रवृत्ति रखती है. जब नौकरियों का सृजन प्राथमिकता होनी चाहिए, तो यह नकारात्मक साबित हो सकता है.
स्टालिन ने डिलिमिटेशन पर सभी तमिल दलों की बैठक बुलाई
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने सोमवार को राजनीतिक भेदभाव को एकतरफ रखकर उन पार्टियों से सीमांकन डिलिमिटेशन को लेकर होने वाली बैठक में शामिल होने की अपील की है, जो प्रस्तावित सीमांकन पर होने वाली सर्वदलीय बैठक में भाग नहीं लेने का निर्णय ले चुकी हैं. ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट है कि उन्होंने कहा कि सीमांकन से तमिलनाडु का संसद में प्रतिनिधित्व कम होगा और हमारी आवाज दब जाएगी. इसलिए, हम इसके खिलाफ अब आवाज उठाने लगे हैं. स्टालिन ने यह बात नागपट्टिनम कलेक्टोरेट में विकास परियोजनाओं के उद्घाटन और कल्याण सहायता वितरण के दौरान कही. उन्होंने बैठक के लिए सभी पंजीकृत दलों को निमंत्रण भेजा है.
विदेश भेजने के लिए गुजरात में एजेंटों की बाढ़, अब ईडी की रडार पर मानव तस्कर
'द टेलीग्राफ' की रिपोर्ट है कि भारत से मानव तस्करी नेटवर्क की एक जांच में यह खुलासा हुआ है कि इसमें हजारों स्थानीय एजेंटों और कम से कम 150 कनाडाई कॉलेजों का हाथ है, जो अमेरिका में अवैध प्रवेश की सुविधा प्रदान कर रहे हैं. ऐसा प्रवर्तन निदेशालय (ED) के हवाले से छापा गया है. लगभग 4,000 से 4,500 तस्करी एजेंट इस वक्त देश में सक्रिय हैं, जिनमें से 2,000 अकेले गुजरात में हैं. यह स्कैम इस प्रकार काम करता है कि भारतीय एजेंट अपने ग्राहकों को कनाडा के कॉलेजों में छात्र वीज़ा पर प्रवेश दिलवाते हैं और फिर ये छात्र अवैध रूप से यूएस-कनाडा सीमा पार कर लेते हैं. इस तस्करी रैकेट में वृद्धि के कारण पिछले एक साल में 14,000 से अधिक भारतीय अप्रवासी सीमा पर पकड़े गए हैं और अमेरिका में 7,25,000 से अधिक अवैध भारतीय अप्रवासी निवास कर रहे हैं.
कष्ट में कोस्टा रिका में अटके भारतीय
'द वायर' की एक रिपोर्ट है कि कोस्टा रिका में अस्थायी डिटेंशन सेंटर में रह रहे भारतीय नागरिक नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं. फरवरी 2025 में अमेरिका से निष्कासित किए गए भारतीयों को कोस्टा रिका भेजा गया है, जहां उन्हें अपनी वापसी के टिकट खुद खरीदने के लिए कहा गया है. वे एक अस्थायी शेड जैसी संरचना में रह रहे हैं, जहां उनके पास खाने-पीने की सीमित सुविधाएं हैं और उन्हें खराब परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. एक भारतीय नागरिक नवदीप सिंह ने 'द वायर' से बात करते हुए बताया कि उन्हें और अन्य निष्कासितों को "आतंकी" कहकर अपमानित किया गया और हाथों में हथकड़ी और बेड़ियां डालकर कोस्टा रिका भेजा गया. उन्होंने बताया कि सुरक्षा कर्मचारी उनसे कहते हैं कि उनके परिवार अमेरिका में अच्छी स्थिति में है और उन्हें टिकट खरीदने में मदद करनी चाहिए, जो गलत है. इन लोगों को भारतीय दूतावास की ओर से भी कोई मदद नहीं मिल रही है और परिवारवाले भारत सरकार से वित्तीय सहायता की अपील कर रहे हैं.
इधर 'डायचे वेले' की एक रिपोर्ट है कि हरियाणा के कई युवक अमेरिका से डिपोर्ट हो चुके हैं और कई अब भी अमेरिका में हिरासत में हैं, लेकिन अब उनके परिवारवालों को डिपोर्टेशन का डर सता रहा है.
यह भी देखें- हरियाणा के गांवों में बेटों के डिपोर्टेशन का डर [Fear of Son's Deportation Grips Haryana Villagers]
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