05/04/2025: वक़्फ़ पर सरकारी झूठ | सुप्रीम कोर्ट में दस्तक | यूनुस ने हसीना मांगी, मोदी ने शांति | रिकार्डतोड़ कर्जदारी | चीन का पलटवार, अमेरिकी स्टॉक भड़ाभड़ गिरे | एक बच्ची का माओवादी बनना
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियाँ :
उधार प्रेम की कैंची है, 2100% बढ़ा
चीन का पलटवार, अमेरिका पर लगाया 34% शुल्क
सिर्फ सरहद ही नहीं, और भी रोड़े हैं भारत- चीन की राह में
कहां चूक गये शौरी सावरकर पर लिखी किताब लिखते हुए
गुजरात दंगों पर फिल्म बनाने वाले निर्माता को सेंसर के बाद अब ईडी ने दबोचा
झूठी ख़बरें फैलाने के लिए ईयू करेगा मस्क के एक्स पर कार्रवाई
भारत की पासपोर्ट रैंकिंग गिरी, 199 देशों में 148वें स्थान पर
शाजिया इल्मी पर 25000 रु का जुर्माना
मनोज कुमार का निधन
रखेंगे अपने बच्चों के लिए पालतू एआई रोबोट?
फैक्ट चेक
वक़्फ़ पर झूठे बयान क्यों सरकार, संबित और निशिकांत के?
इस वायरल दावे की पुष्टि करने के लिए कि कई इस्लामिक देशों में वक़्फ़ नहीं है, ‘ऑल्ट न्यूज’ ने जाँच की और पाया कि सरकार और सत्तारूढ़ दल के नेता झूठ को फैला रहे हैं. आल्ट न्यूज ने पीआईबी स्पष्टीकरण के ऊपर बताए गए हिस्से में उल्लिखित प्रत्येक देश के लिए प्रासंगिक कीवर्ड खोज की. उसके नतीजे में यह मिला कि तुर्की, लीबिया, मिस्र, सुडान, सीरिया, जॉर्डन, लेबनान, इराक, ट्यूनिशिया आदि मुस्लिम देशों में वक़्फ़ बोर्ड और संपत्ति है. पूरी तथ्य जांच आप यहां देख सकते हैं. लंबी बहस के बाद लोकसभा और राज्यसभा में वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक क्रमश: गुरुवार और शुक्रवार की रात पारित कर दिया गया. बहस के दौरान लोकसभा में भाजपा नेता और पुरी से सांसद संबित पात्रा ने दावा किया कि तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया, इराक जैसे कई इस्लामिक देशों में वक़्फ़ की व्यवस्था नहीं है. पात्रा ने खुद अपने एक्स हैंडल से लोकसभा में दिए गए अपने भाषण का यह हिस्सा शेयर किया.
झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी अपने भाषण में दावा किया कि दुनिया के किसी भी मुस्लिम देश में वक़्फ़ संपत्ति नहीं है. दक्षिणपंथी प्रभावशाली व्यक्ति और एक्स यूजर बाला ने अपने टाइमलाइन पर सांसद के भाषण की एक छोटी क्लिप शेयर करके इसे और पुख्ता किया.
प्रेस सूचना ब्यूरो ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक के बारे में एक स्पष्टीकरण जारी किया था. स्पष्टीकरण में कई खंड हैं जैसे - वक़्फ़ का अर्थ क्या है? वक़्फ़ की अवधारणा की उत्पत्ति क्या है? वक़्फ़ अधिनियम के माध्यम से भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में प्रमुख विधायी परिवर्तन और विकास क्या हैं? आदि. "क्या सभी इस्लामी देशों में वक़्फ़ संपत्तियां हैं?" शीर्षक वाले खंड के तहत, स्पष्टीकरण में कहा गया है कि कई इस्लामी देशों में वक़्फ़ संपत्तियां नहीं हैं. इसमें कहा गया है : "नहीं, सभी इस्लामी देशों में वक़्फ़ संपत्तियां नहीं हैं. तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया और इराक जैसे इस्लामी देशों में वक़्फ़ नहीं हैं. हालांकि, भारत में, न केवल वक़्फ़ बोर्ड सबसे बड़े शहरी भूस्वामी हैं, बल्कि उनके पास कानूनी रूप से उनकी रक्षा करने वाला एक अधिनियम भी है." सोशल मीडिया पर कई यूज़र्स ने भी यही दावा किया है.
संसद से पास होकर वक़्फ़ बिल का मामला सुप्रीम कोर्ट पंहुचा, कई राज्यों में विरोध
बहुमत के आधार पर संसद में पारित वक़्फ़ संशोधन विधेयक का विरोध शुरू हो गया है. लोग सड़क पर आने लगे हैं और इसके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया जा रहा है. गुरुवार की मध्य रात्रि राज्यसभा से पारित होने के बाद यह विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी प्राप्त होते ही कानून बन जाएगा. लेकिन शुक्रवार को ही देश के कई हिस्सों में इसके खिलाफ आवाजें सुनाई दीं. प्रदर्शन किये गए. आठ राज्यों गुजरात, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, असम, तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक में प्रदर्शन की खबरें हैं. अहमदाबाद में पुलिस ने एआईएमआईएम की गुजरात ईकाई के अध्यक्ष और उनके 40 साथियों को जुमे की नमाज के बाद विरोध प्रदर्शन करने पर हिरासत में ले लिया. कोलकाता में भी मुस्लिमों ने “हम वक़्फ़ बिल को अस्वीकार करते हैं” लिखे बैनर लेकर विरोध किया. कोयंबटूर और पुडुचेरी में दक्षिण के फिल्म स्टार विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम (टीवीके) ने प्रदर्शन कर वक़्फ़ संशोधन विधेयक को वापस लेने की मांग की. कोलकाता के विभिन्न इलाकों में भी बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए और विरोध में तख्तियां जलाई गईं. रांची में भी यही हाल रहा.
ओवैसी और कांग्रेस के जावेद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे : इस बीच विधेयक का विरोध देश की सबसे बड़ी अदालत तक पहुंच गया है. लोकसभा में बहस के दौरान विधेयक की कॉपी फाड़ने वाले एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस के बिहार से सांसद मोहम्मद जावेद ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं लगाईं. इस विधेयक पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं. संशोधन विधेयक का समर्थन करने के लिए बिहार में नीतीश कुमार की जद (यू) के कई कार्यकर्ताओं-नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है. यही हाल आंध्रप्रदेश का है, जहां तीखे राजनीतिक मतभेद उजागर हुए हैं. राज्य की सत्ताधारी गठबंधन पार्टियों- तेलुगु देशम पार्टी (TDP) और जन सेना पार्टी (JSP), जो केंद्र में एनडीए सरकार की प्रमुख सहयोगी हैं, ने इस विधेयक का समर्थन करने के लिए व्हिप जारी कर महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान किया था. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी ने इसे "संविधान पर खुला हमला" बताया. उन्होंने कहा, "यह भाजपा की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, ताकि समाज को स्थायी ध्रुवीकरण की स्थिति में रखा जाए. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी कहा कि पार्टी शीघ्र ही इसके खिलाफ कोर्ट में जाएगी. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, जो वक़्फ़ संशोधन विधेयक के विरोध में काली पट्टी लगाकर विधानसभा पहुंचे थे, ने भी कहा कि उनकी पार्टी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. उन्होंने कहा, “अधिकांश राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद, कुछ गठबंधन दलों की मदद से इस बिल को मध्यरात्रि 2 बजे पारित करना भारतीय लोकतंत्र पर प्रहार और धार्मिक मामलों को बाधित करने का कार्य है. दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में छात्रों ने विरोध में विधेयक की प्रतियां जलाईं और इसे असंवैधानिक और सांप्रदायिक करार दिया. एहतियात के तौर पर यूनिवर्सिटी में सुरक्षा बल तैनात किया गया है.
मोदी ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की बात रखी, यूनुस ने हसीना के प्रत्यर्पण की
'रायटर्स' की रिपोर्ट है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुहम्मद यूनुस से मुलाकात के दौरान उनसे ऐसी बयानबाजी से बचने का आग्रह किया, जो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंचा सकती है. भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा, "प्रधानमंत्री ने लोकतांत्रिक, स्थिर, शांतिपूर्ण, प्रगतिशील और समावेशी बांग्लादेश के लिए भारत के समर्थन को दोहराया." बांग्लादेश की ओर से इस 40 मिनट की बैठक को "खुली, उत्पादक और रचनात्मक" बताया गया. यूनुस ने मोदी से कहा कि बांग्लादेश भारत के साथ मिलकर दोनों देशों के हित में द्विपक्षीय संबंधों को सही दिशा में लाना चाहता है. हालांकि, बांग्लादेश में भारत के प्रति जनता की राय नकारात्मक हो रही है, खासकर इसलिए कि भारत ने शेख हसीना को शरण दी है. ढाका सरकार ने भारत से अनुरोध किया है कि हसीना को देश वापस भेजा जाए, लेकिन नई दिल्ली ने अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. मिसरी के अनुसार, इस बैठक में बांग्लादेश द्वारा हसीना के प्रत्यर्पण के अनुरोध पर भी चर्चा हुई, लेकिन उन्होंने इस पर अधिक जानकारी नहीं दी. शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद यह दोनों नेताओं के बीच पहली बैठक थी. पिछले कुछ दिनों में भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव भी देखा गया था. गुरुवार रात बिम्सटेक नेताओं के डिनर में भी दोनों नेता एक-दूसरे के बगल में बैठे थे. यह बैठक ऐसे समय में हुई जब यूनुस के बयान कि "पूर्वोत्तर भारत भूमि से घिरा (लैंडलॉक्ड) है और इस पूरे क्षेत्र के लिए केवल ढाका ही महासागर का संरक्षक है" पर विवाद खड़ा हो गया था.
भारत में सबप्राइम कर्ज का गुब्बारा 2,100% बढ़ा
सबप्राइम कर्ज का मतलब है ऐसा कर्ज जो उन लोगों को दिया गया, जो उसे असल में चुकाने की हालत में नहीं. यानी जिनका क्रेडिट स्कोर खराब होता है, जिनकी आमदनी स्थिर नहीं होती, या जिनके पास पहले से ही बहुत कर्ज होता है, ऐसे लोगों को दिया गया बैंक लोन सबप्राइम कर्ज कहलाता है.
‘ब्लूमबर्ग’ के लिए एंडी मुखर्जी की रिपोर्ट है कि भारत में सबप्राइम ऋण संकट गहराता जा रहा है, जहां 68% उधारकर्ताओं में वित्तीय संकट के संकेत देखे जा रहे हैं. इस क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में 2,100% की वृद्धि हुई है, लेकिन अब निवेशकों को भारी नुकसान उठाने के लिए तैयार रहना होगा. अनुमान लगाया जा रहा है कि यह $45 बिलियन (लगभग ₹3.75 लाख करोड़) का उद्योग किसी तरह इस संकट से उबर जाएगा, लेकिन विशेषज्ञ भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से कड़ी निगरानी की मांग कर रहे हैं. मौजूदा हालात चिंताजनक हैं. रिपोर्ट के मुताबिक 91 से 180 दिनों तक बकाया रहने वाले लोन की दर जून 2023 में 0.8% थी, जो अब बढ़कर 3.3% हो गई है. 27% उधारकर्ता नए लोन लेकर पुराने लोन चुका रहे हैं, जिससे डिफॉल्ट का खतरा बढ़ गया है. कुछ परिवार बच्चों को स्कूल से निकालने जैसे कठोर कदम उठा रहे हैं ताकि वे वित्तीय संकट से निपट सकें.
टैरिफ वॉर
चीन का पलटवार, अमेरिका पर 34% टैरिफ
अमेरिका द्वारा लगाए गए नए टैरिफ के जवाब में, चीन ने कड़े कदम उठाते हुए सभी अमेरिकी आयातों पर 34% शुल्क लगाने और दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर नियंत्रण की घोषणा की है. यह कदम राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की 'पारस्परिक शुल्क' नीति के जवाब में उठाया गया है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध और गहरा सकता है. बीजिंग ने घोषणा की है कि 10 अप्रैल से अमेरिका से आने वाले सभी उत्पादों पर 34% टैरिफ लागू होगा. इसके अलावा, चीन ने कुछ और कड़े उपायों की भी घोषणा की है, जिनमें अमेरिकी कंपनियों के लिए नई निर्यात पाबंदियां भी शामिल हैं. इस ताजा कदम के साथ, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार तनाव एक नए स्तर पर पहुंच गया है, जिससे वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता बढ़ सकती है और तकनीकी उद्योग पर गहरा असर पड़ सकता है.
मोदी की चुप्पी पर भारत में विपक्ष का विरोध प्रदर्शन : भारत में विपक्षी दलों ने शुक्रवार को संसद में विरोध प्रदर्शन किया और मोदी सरकार से यह स्पष्टीकरण मांगा कि वह अमेरिकी "पारस्परिक टैरिफ" के खिलाफ किसानों और छोटे व्यवसायों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाने की योजना बना रही है. कोलकाता में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रदर्शन किया. विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है, जबकि यह भारत के व्यापारिक हितों और छोटे कारोबारियों के लिए गंभीर चिंता का विषय है. विपक्षी नेताओं ने मांग की है कि मोदी सरकार स्पष्ट रूप से बताए कि वह इन टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए क्या रणनीति अपनाएगी.
ट्रम्प के टैरिफ ने बाजार में भारी गिरावट दर्ज कराई : डोनाल्ड ट्रम्प की नई टैरिफ नीति ने अमेरिकी शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट ला दी है, जिससे निवेशकों के पास बचाव का कोई रास्ता ही नहीं बचा. बाजार के रणनीतिकारों द्वारा बारीकी से निगरानी किए जाने वाले कई महत्वपूर्ण सेक्टर गुरुवार को प्रमुख सपोर्ट स्तरों से नीचे चले गए, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि इस बिकवाली का असर पूरे बाजार में व्यापक रूप से फैला हुआ है.
विश्लेषण
सरहद ही नहीं, और भी रोड़े हैं भारत-चीन की राह में
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने जैसे ही दुनिया को ये बताया कि वे किसी के सगे नहीं हैं और पूरी दुनिया उनके लिए (फिलहाल सिर्फ पुतिन को छोड़कर) सौतेली है, भारत और चीन के रिश्तों पर सबकी निगाहें दौड़ रही हैं. इस बीच फारेन अफेयर्स पत्रिका में सुशांत सिंह ने एक मुकम्मल विश्लेषण लिखा है भारत और चीन के रिश्तों के बारे में. सुशांत रक्षा मामलों के जानकार, येल यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं, पत्रकार हैं और पहले भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं.
अपने लेख में सुशांत कहते हैं, भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंधों के 75 वर्ष पूरे होने पर भी दोनों देशों के बीच सीमा तनाव अभी भी बरकरार है. हालांकि पिछले अक्टूबर में सीमा गश्त पर एक समझौता हुआ था, लेकिन सैन्य तैनाती में कोई महत्वपूर्ण कमी नहीं आई है. दोनों देशों के नेताओं ने अपनी राजनयिक वर्षगांठ पर एक-दूसरे को बधाई दी, जहां राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने "ड्रैगन-एलिफेंट टैंगो" का उल्लेख किया और मोदी ने शांति और विकास को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी पर बल दिया. लेकिन इस अतिशयोक्तिपूर्ण भाषा के पीछे गंभीर चुनौतियां मौजूद हैं.
उनके मुताबिक चीन भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है, परंतु केवल अपनी गैर-परिवर्तनीय शर्तों पर. समझौते के विवरण सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, लेकिन रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत ने लद्दाख में कुछ क्षेत्रों तक फिर से पहुंच हासिल की, जबकि चीनी सेना को अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में गश्त अधिकार दिए गए.
मोदी ने हाल ही में कहा कि "सीमा पर सामान्यता की वापसी हुई है" और दोनों देश "अब 2020 से पहले की स्थिति में काम कर रहे हैं." यह बयान सेना प्रमुख उपेंद्र द्विवेदी के विवरण से भिन्न है, जिन्होंने स्थिति को "संवेदनशील लेकिन स्थिर" बताया है.
चीन की मुख्य मांग है कि भारत सीमा तनावों को समग्र द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित न करने दे. बीजिंग का तर्क है कि चीन अब तीन दशक पहले की तुलना में एक बहुत बड़ी शक्ति है, जिसे भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी स्वीकार किया है.
इस बीच, चीन द्वारा यारलुंग जांगबो नदी पर बांध निर्माण, भारतीय मिसाइलों को ट्रैक करने वाले रडार की तैनाती, हिंद महासागर में बढ़ती गतिविधियां और आईफोन उत्पादन के लिए आवश्यक तकनीशियनों की आवाजाही पर प्रतिबंध जैसे कदम भारत के लिए चिंता का विषय हैं. साथ ही, चीन से भारत का आयात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है, जबकि भारतीय निर्यात में गिरावट आई है.
भारतीय जनता के बीच भी दुविधा दिखती है - एक सर्वेक्षण में आधे लोगों ने चीन के साथ व्यापार को लाभदायक माना, जबकि 41.2% ने सैन्य स्थिति मजबूत करने का समर्थन किया.
मोदी एक सावधानीपूर्ण समायोजन की रणनीति अपना रहे हैं, जिसमें वे भारत की शक्ति बढ़ने तक समय बिता रहे हैं. यह रणनीति क्वाड जैसे मंचों और अमेरिका के साथ साझेदारी पर भी निर्भर करती है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता अनिश्चित है.
समस्या को टालने से नई दिल्ली क्षेत्र में बीजिंग के प्रभुत्व को स्वीकार करने का जोखिम उठाती है. भारत के सामने चुनौती है : क्या वह चीन के उदय का सामना करने के लिए एक मजबूत रणनीति विकसित कर सकता है, या चीन की छाया में रहेगा? लेकिन समाधान चीन के साथ सामान्यता के बहाने अपने रणनीतिक हितों को छोड़ने में नहीं है. चीनी नेतृत्व का संदेश स्पष्ट है : बीजिंग झुकता नहीं है, और नई दिल्ली को भी नहीं झुकना चाहिए.
आश्रम की छात्रा से माओवादी तक का सफर, 19 साल की उम्र में उस पर 2 लाख का ईनाम
बस्तर मे माओवादियों पर चल रही कार्रवाई के बाद मारे गये आदिवासी नौजवानों पर जयप्रकाश नायडू ने इंडियन एक्सप्रेस में एक लंबा रिपोर्ताज लिखा है. उन्होंने बीजापुर के जंगलों में 9 फरवरी को हुई पुलिस कार्रवाई में मारी गई 19 वर्षीय ज्योति हेमला की कहानी लिखी है. एक समय पोर्टा केबिन स्कूल की छात्रा रही ज्योति कैसे माओवादी बनी, यह कहानी छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों की त्रासदी को दर्शाती है.
2005 में जन्मी ज्योति सावनार गांव की रहने वाली थी. गंगालूर क्षेत्र में स्थित यह गांव माओवादियों का प्रमुख भर्ती और प्रशिक्षण केंद्र माना जाता है. अपने गांव से 30 किलोमीटर दूर बिजापुर के पोर्टा केबिन स्कूल में पढ़ाई करने वाली ज्योति तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ घरेलू कामों और जंगल से उत्पाद इकट्ठा करने में परिवार की मदद करने लगी.
उसके चाचा लक्ष्मण हेमला के अनुसार, "ज्योति 2021 के अंत में माओवादियों के साथ चली गई. मैंने उसे कई बार आंदोलन छोड़ने को कहा, लेकिन वह सिर्फ नीचे देखती और मना कर देती थी."
पुलिस सूत्रों के अनुसार, ज्योति पहले माओवादियों द्वारा संचालित जनताना सरकार स्कूल में गई और फिर उनके सांस्कृतिक विंग चैत्य नाट्य मंडल (सीएनएम) का हिस्सा बनी. कई बाल भर्तियों की तरह, वह भी इसी तरह माओवादी संगठन में शामिल हुई.
ज्योति की बचपन की दोस्त बताती है, "मैंने उसे आखिरी बार 2023 में देखा था, जब वह संगठन में शामिल होने के बाद गांव आई थी. उसने मुझसे मेरी पढ़ाई के बारे में पूछा और कहा कि उसे स्कूल की याद आती है. जब मैंने उससे संगठन छोड़ने को कहा, तो उसने कहा कि वे उसे जाने नहीं देंगे."
बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी. कहते हैं, "इंद्रावती नदी के पार के गांवों में सरकार की उपस्थिति कम है. ग्रामीणों के पास कोई विकल्प नहीं है. माओवादी उन्हें अपने परिवार से कम से कम एक बच्चे को संगठन में भेजने के लिए मजबूर करते हैं." 9 फरवरी को इंद्रावती नेशनल पार्क के जंगलों में मारे गए 31 माओवादियों में ज्योति भी शामिल थी. पुलिस के अनुसार, उसके सिर पर 2 लाख रुपये का इनाम था.
अपने ही ‘देश’ कैलासा से भागना पड़ा बलात्कारी बाबा नित्यानंद को चेले-चपाटों के साथ

'न्यूयॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट है कि भगोड़े बाबा स्वामी नित्यानंद के काल्पनिक हिंदू राष्ट्र “यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ कैलासा” के प्रतिनिधियों को हाल ही में बोलिविया से निष्कासित कर दिया गया है. नित्यानंद ने 1,000 साल के लिए अमेज़न क्षेत्र में ज़मीन लीज़ पर लेने के फर्जी समझौते किए थे. नित्यानंद भारत में बलात्कार, शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के आरोपों के चलते फरार है. उसने खुद को एक "दिव्य शक्ति" बताया है और अपने राष्ट्र के लिए पासपोर्ट, मुद्रा और एक “कॉस्मिक संविधान” की भी घोषणा की है.
अधिकारियों ने अमेज़न क्षेत्र में आदिवासी समुदायों के साथ किए गए फर्जी ज़मीन के समझौतों का पर्दाफाश किया, जिससे यह सामने आया कि नित्यानंद ने हज़ार साल की लीज़ के बहाने हवाई क्षेत्र और संसाधनों के दोहन की साजिश रची थी. जिन लोगों को निष्कासित किया गया है, उनमें भारत, अमेरिका, स्वीडन और चीन के नागरिक शामिल हैं. बोलिविया सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह कैलासा को एक वैध राष्ट्र नहीं मानती. जैसे-जैसे अधिकारी इस धोखाधड़ी भरे उपक्रम पर कार्रवाई कर रहे हैं, नित्यानंद लगातार ठिकाने बदल रहा है. हालांकि अटकलें हैं कि वह दक्षिण अमेरिका या कैरेबियन क्षेत्र में छिपा हो सकता है.
तेलंगाना में तेज़ बारिश, चारमीनार क्षतिग्रस्त, दो किसान की मौत : हैदराबाद और तेलंगाना में हुई भारी बारिश के कारण ऐतिहासिक चारमीनार की उत्तर-पूर्वी मीनार क्षतिग्रस्त हो गई है. तेलंगाना के नागरकुरनूल में आंधी के दौरान खेतों में काम करते समय बिजली गिरने से दो किसानों की मौत हो गई. वहीं याकूतपुरा निर्वाचन क्षेत्र में कुछ घरों में बारिश का पानी घुसने की भी खबर है. भारी बारिश के कारण राज्य के लोगों को गर्मी से राहत तो मिली, लेकिन साथ ही दैनिक जीवन भी पूरी तरह ठप्प हो गया है.
केंद्र ने गुरशरण कौर की सुरक्षा घटाई : केंद्र सरकार ने दिवंगत प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर की सशस्त्र सुरक्षा को घटाकर “जेड” श्रेणी कर दिया है. वह अब तक “जेड-प्लस” श्रेणी की केंद्रीय सुरक्षा के तहत थीं, जो उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार की सदस्य होने के नाते मिली थी. डॉ. सिंह का पिछले साल 26 दिसंबर को निधन हो गया था.
केरल के सीएम की बेटी वीणा पर वित्तीय धोखाधड़ी का आरोप : केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की बेटी वीणा विजयन को कोचीन मिनरल्स एंड रूटाइल लिमिटेड (सीएमआरएल) वित्तीय धोखाधड़ी मामले में सीरियस फ्रॉड इंवेस्टिगेटन ऑफिस (एएसएफआईओ) ने आरोपी बनाया है. रिपोर्ट के अनुसार, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने अब वीणा विजयन और अन्य आरोपियों के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी दे दी है. आरोप पत्र के अनुसार, वीणा एक्सालॉजिक सॉल्यूशंस आईटी और मार्केटिंग से संबंधित सेवाएं देने में विफल रही, जिसके लिए उसे सीएमआरएल से 2.7 करोड़ रुपये की राशि मिली थी. आरोप पत्र में एक्सालॉजिक की निदेशक वीणा के अलावा सीएमआरएल के प्रबंध निदेशक शशिधरन कार्था, सीएमआरएल और मामले से जुड़ी एक सहयोगी कंपनी का भी नाम है. केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में सीएमआरएल मुद्दे से संबंधित सीएम पिनाराई विजयन और वीना विजयन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की मांग वाली याचिकाएं खारिज कर दी थी.
सबसे ज्यादा कमाई वाला स्मारक मुगलकालीन ताज़ महल : दक्षिणपंथी समूहों की ओर से मुगलों को लेकर लगातार निशाना बनाये जाने के बावजूद ताजमहल वित्त वर्ष 2019-20 से 2023-24 तक टिकट बिक्री के माध्यम से एएसआई स्मारकों में सबसे अधिक कमाई करने वाला स्मारक बना हुआ है. केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में डेटा साझा किया. डेटा के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में दिल्ली का कुतुब मीनार और लाल किला क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर थे.
भारत की पासपोर्ट रैंकिंग गिरी, 199 देशों में 148वें स्थान पर : नॉमैड कैपिटलिस्ट पासपोर्ट इंडेक्स 2025 के मताबकि भारत की पासपोर्ट रैंकिंग में पिछले साल के मुकाबले एक और स्थान की गिरावट दर्ज की गई है. 199 देशों में भारत पिछले साल के 147वें स्थान से गिरकर 148वें स्थान पर आ पहुंचा है. कर और आव्रजन सलाहकार फर्म नोमैड कैपिटलिस्ट द्वारा प्रकाशित यह इंडेक्स वीजा-मुक्त यात्रा (50%), कराधान (20%), वैश्विक धारणा (10%), दोहरी नागरिकता (10%) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (10%) के आधार पर पासपोर्ट की रैंकिंग करता है. भारत ने पूर्वी अफ्रीकी देश कोमोरोस के साथ 47.5 अंकों के साथ 148वां स्थान साझा किया है. इस लिस्ट में आयरलैंड पहले, स्विट्जरलैंड दूसरे, और उसके बाद क्रमश: ग्रीस, पुर्तगाल, माल्टा, इटली, लक्जमबर्ग, फिनलैंड, नॉर्वे, संयुक्त अरब अमीरात, न्यूजीलैंड और आइसलैंड का स्थान है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूरोप के सैन मैरिनो के साथ 45वां स्थान साझा किया है.
गुजरात दंगों पर फिल्म बनाने वाले निर्माता को सेंसर के बाद अब ईडी ने दबोचा
प्रवर्तन निदेशालय ने शुक्रवार को 2002 गुजरात दंगे की विभीषिका को दर्शाने वाली मलयालम फिल्म ‘एल2 : एम्पुरान’ बनाने की हिम्मत करने वाले निर्माता गोकुलम गोपालन के परिसरों पर छापे मारे. एजेंसी के सूत्रों का दावा है कि यह छापेमारी 1,000 करोड़ रुपये से अधिक के कथित विदेशी मुद्रा उल्लंघन की जांच से जुड़ी है. ईडी की केरल शाखा के अनुसार, “तलाशी गोपालन और उनकी कंपनी श्री गोकुलम चिट एंड फाइनेंस कंपनी लिमिटेड से जुड़े फेमा (विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) मामले के संबंध में है. फिलहाल, पांच परिसरों पर छापेमारी की जा रही है. ईडी पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) के तहत कंपनी के खिलाफ दर्ज कथित धोखाधड़ी और जालसाजी के मामलों की भी पुष्टि कर रहा है.”
ईडी की यह कार्रवाई मोहनलाल अभिनीत एम्पुरान की रिलीज के कुछ ही दिनों बाद हुई है, जिसे गोपालन ने मोहनलाल के करीबी सहयोगी एंटनी पेरुंबवूर और लाइका प्रोडक्शंस के सुभासकरन अलीराजा के साथ मिलकर बनाया है. गोपालन इस फिल्म के निर्माण में देर से शामिल हुए थे, जब लाइका प्रोडक्शंस द्वारा सामना की जा रही वित्तीय परेशानियों के कारण फिल्म की रिलीज में देरी हो रही थी. 2019 की ब्लॉकबस्टर ‘लूसिफ़ेर’ की सीक्वल और पृथ्वीराज सुकुमारन द्वारा निर्देशित एक त्रयी का हिस्सा यह फिल्म 27 मार्च को रिलीज होने के तुरंत बाद हिंदुत्व समूह के निशाने पर आ गई. आरएसएस के कुछ वर्गों सहित दक्षिणपंथी समूहों ने फिल्म पर 2002 के गुजरात दंगों के दृश्यों को दर्शाकर तथा दंगों से संबंधित मामलों में शामिल व्यक्तियों के नामों का उपयोग कर हिंदुओं को बदनाम करने का आरोप लगाया.
इस विरोध के कारण पहले निर्माताओं को कुछ संवादों को म्यूट करना पड़ा और कुछ दृश्य हटाने पड़े. इस स्वैच्छिक सेंसरशिप में लगभग 24 कट लगाए गए और अब ये ईडी का छापा. गोपालन ने खुद को विवाद से काफी हद तक दूर रखा था और उन्होंने स्पष्ट किया था कि राजनीतिक संदेश वाली फिल्म बनाने का उनका इरादा नहीं था. मोहनलाल ने भी माफ़ी मांगी और कहा कि विवादास्पद सामग्री हटा दी गई है. इसका ट्रेलर यहां देखिए.
सज़ा-ए-मौत की राह देखते 564 कैदी, सदी की शुरुआत के बाद से सबसे अधिक
'इंडिया स्पेंड' के लिए श्रीहरी पालयथ की रिपोर्ट है कि साल 2024 में मौत की सजा के 90% मामलों में, ट्रायल अदालतों ने अभियुक्त के बारे में पर्याप्त जानकारी के बिना ही सजा सुनाई है. भारत में मृत्युदंड की प्रक्रिया कई खामियों से भरी हुई है, जिसमें निचली अदालतों द्वारा उचित विचार न करना, सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पष्ट दिशा-निर्देशों की कमी और मृत्युदंड की बढ़ती संख्या प्रमुख हैं. नई आपराधिक संहिताएं मृत्युदंड के दायरे को और बढ़ा रही हैं, जिससे इसके उपयोग में वृद्धि हो सकती है.
अगस्त 2024 में कोलकाता के आर.जी. कर अस्पताल में एक मेडिकल प्रोफेशनल के बलात्कार और हत्या के बाद हुए भारी विरोध और व्यापक प्रदर्शन के चलते, दोषियों को मौत की सजा देने की मांग उठी. राज्य सरकार ने ‘अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक 2024’ पारित किया (जो अभी राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए लंबित है), जिसमें यह प्रावधान था कि यदि बलात्कार पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह शारीरिक रूप से स्थायी रूप से अक्षम हो जाती है, तो दोषी को अनिवार्य रूप से मौत की सजा दी जाएगी, हालांकि ऐसा प्रावधान असंवैधानिक है. 20 जनवरी को, सियालदह सत्र न्यायालय ने अभियुक्त संजय रॉय को उम्रकैद की सजा सुनाई, न कि मृत्युदंड. फैसले में कहा गया कि यह मामला "दुर्लभतम से दुर्लभ" की श्रेणी में नहीं आता, जैसा सुप्रीम कोर्ट के बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में दिए गए दिशा-निर्देशों में बताया गया है, जिसमें अदालतों को मृत्युदंड देने से पहले अभियुक्त के पक्ष में और विपक्ष में मौजूद परिस्थितियों पर विचार करना आवश्यक होता है. दूसरी ओर, उसी दिन केरल के नेय्याटिंकारा अतिरिक्त जिला सत्र न्यायालय ने ग्रीष्मा को अपने साथी की हत्या के मामले में मृत्युदंड दिया. अदालत ने अपने निर्णय में कहा, "न्याय का संतुलन, सिद्ध किए गए गंभीर परिस्थितियों के पक्ष में झुकता है." दोनों मामलों में, अदालतों ने अभियुक्त की परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखा (न तो मृत्युदंड से बचाने के लिए और न ही उसे देने के लिए), और न ही सुधार की संभावना का आकलन किया, जैसा उनके आदेशों में उल्लेख किया गया है. प्रोजेक्ट 39ए (नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के तहत एक आपराधिक न्याय अनुसंधान एवं मुकदमेबाजी केंद्र) की निदेशक (सजा निर्धारण) नीतिका विश्वनाथ के अनुसार, "यह निर्णय अभियुक्तों के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन है और 'बचन सिंह' मामले में दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करता. इस दृष्टि से, दोनों निर्णय मनमाने रूप से लिए गए हैं."
साल 2000 से 2015 के बीच सत्र अदालतों ने 1,486 मृत्युदंड सुनाए थे, जबकि 2016 से 2024 के बीच यह संख्या बढ़कर 1,180 हो गई. 2024 में, उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 130 मृत्युदंड पाए कैदी थे, उसके बाद गुजरात (71), महाराष्ट्र (42) और पश्चिम बंगाल (37) का स्थान था. यूपी की सत्र अदालतों ने 34 मृत्युदंड दिए, जो देश में सबसे अधिक थे. मनमाने ढंग से मृत्युदंड देने की प्रक्रिया कोई अपवाद नहीं है, बल्कि यह एक आम प्रवृत्ति बन चुकी है. प्रोजेक्ट 39ए द्वारा प्रकाशित नवीनतम मृत्युदंड पर वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट के अनुसार, सत्र अदालतों ने 2024 में 139 मृत्युदंड सुनाए, जो 2016 के बाद से औसत वार्षिक संख्या से अधिक है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा निचली अदालतों को मृत्युदंड देने से पहले अभियुक्त की परिस्थितियों पर विचार करने का निर्देश देने के बावजूद, 2024 में दिए गए 90.5% से अधिक मृत्युदंड मामलों में, अदालतों ने अभियुक्त की मानसिक स्थिति, जेल में व्यवहार और पारिवारिक परिस्थितियों जैसी कोई भी जानकारी नहीं मांगी. लगातार दूसरे वर्ष, सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी मृत्युदंड की पुष्टि नहीं की, बल्कि सात कैदियों की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया और एक को बरी कर दिया. 2024 के अंत तक, भारत में मृत्युदंड पाए 564 कैदी थे, जो इस सदी में सबसे अधिक संख्या है.
झूठी ख़बरें फैलाने के लिए ईयू करेगा मस्क के एक्स पर कार्रवाई
'न्यूयॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट है कि यूरोपीय नियामक इलोन मस्क के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के खिलाफ अवैध सामग्री और गलत जानकारी से निपटने के लिए बनाए गए एक महत्वपूर्ण कानून के उल्लंघन को लेकर बड़ी सजा की तैयारी कर रहे हैं. इस मामले की जानकारी रखने वाले चार लोगों के अनुसार, यह कदम अमेरिका के साथ तनाव को और बढ़ा सकता है, क्योंकि यह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के करीबी सलाहकारों में से एक को निशाना बना रहा है. इन दंडों में जुर्माने के साथ-साथ उत्पाद से संबंधित कुछ बदलावों की मांग भी शामिल होगी. बताया जा रहा है कि इनका आधिकारिक ऐलान इस साल गर्मियों में किया जाएगा और यह यूरोपीय संघ के नए डिजिटल सेवा अधिनियम के तहत दी जाने वाली पहली सजा होगी. यूरोपीय अधिकारी यह भी देख रहे हैं कि एक्स पर कितना बड़ा जुर्माना लगाया जाए, क्योंकि वे ट्रम्प प्रशासन को और अधिक भड़काने के जोखिम का आकलन कर रहे हैं. एक व्यक्ति के अनुसार, यह जुर्माना 1 अरब डॉलर से अधिक हो सकता है, ताकि अन्य कंपनियों को इस कानून के उल्लंघन से रोका जा सके, जबकि अधिकारी अभी पत्ते खोलने को राजी नहीं और इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे. यूरोपीय संघ के अधिकारियों का कहना है कि एक्स के खिलाफ जांच स्वतंत्र रूप से की जा रही है और यह ट्रम्प प्रशासन द्वारा हाल ही में घोषित नए व्यापारिक शुल्क से संबंधित नहीं है. यह जांच 2023 में शुरू हुई थी, और पिछले साल यह पाया गया था कि एक्स ने कानून का उल्लंघन किया है. एक्स ने एक बयान में कहा कि उसके खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई "राजनीतिक सेंसरशिप का अभूतपूर्व उदाहरण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला" होगी. एक्स अकेली टेक कंपनी नहीं है, जिसे यूरोपीय संघ के कड़े नियमों का सामना करना पड़ रहा है. नियामक निकट भविष्य में मेटा और एप्पल के खिलाफ भी डिजिटल मार्केट अधिनियम के उल्लंघन को लेकर कार्रवाई की घोषणा कर सकते हैं.
शाज़िया इल्मी को 25,000 रुपये जुर्माना भरने का आदेश दिया : 'बार एंड बेंच' की रिपोर्ट है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने भाजपा नेता शाज़िया इल्मी पर तथ्यों को छुपाने के लिए 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है. यह जुर्माना इल्मी द्वारा 'इंडिया टुडे' के पत्रकार राजदीप सरदेसाई के खिलाफ दायर मानहानि मामले में लगाया गया है. इल्मी ने सरदेसाई के खिलाफ कोर्ट का रुख किया था, जिसमें उन्होंने एक्स (पहले ट्विटर) पर एक वीडियो को लेकर की गई उनकी टिप्पणी को लेकर आपत्ति जताई थी. यह वीडियो उस समय का था जब इल्मी 'इंडिया टुडे' के एक डिबेट शो से बाहर निकल चुकी थीं. 27 जुलाई 2024 को, 'इंडिया टुडे' चैनल के प्राइमटाइम शो "पॉलिटिक्स ओवर कारगिल विजय दिवस" पर हुई बहस के बाद, इल्मी और सरदेसाई के बीच एक्स पर बहस छिड़ गई. सरदेसाई ने एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसमें इल्मी को अपने घर पर माइक उतारते हुए दिखाया गया था. अगस्त 2024 में, अदालत ने सरदेसाई को अपने व्यक्तिगत अकाउंट से यह वीडियो हटाने का आदेश दिया था. अब, अदालत ने इस अंतरिम आदेश की पुष्टि कर दी है और कहा है कि जब इल्मी शो छोड़ चुकी थीं, तब रिकॉर्डिंग जारी रखना उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन था, इसलिए यह वीडियो ऑनलाइन नहीं रह सकता. हालांकि, जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने इल्मी के इस आरोप को खारिज कर दिया कि इस वीडियो से उनकी मर्यादा को ठेस पहुंची है. अदालत ने यह भी कहा कि इल्मी को यह कहने का कोई अधिकार नहीं था कि वीडियो बनाने वाला पत्रकार "विकृत मानसिकता" और "कामुक" था. साथ ही, कोर्ट ने वीडियो के छेड़छाड़ किए जाने के आरोप को भी निराधार बताया. अदालत ने यह भी पाया कि सरदेसाई का यह कहना कि "इल्मी ने माइक पटक दिया" और "वीडियो पत्रकार को अपने घर से बाहर फेंक दिया", यह अनुचित था. लेकिन कोर्ट ने उनके ट्वीट के अन्य अंश जैसे "हमारे पत्रकार का अपमान किया" और "गलत व्यवहार का कोई बहाना नहीं" को हटाने से इनकार कर दिया, क्योंकि उन्हें कुछ हद तक तर्कसंगत माना गया. इसके अलावा, कोर्ट ने यह पाया कि इल्मी ने विवादित बातचीत में शामिल दो ट्वीट्स की जानकारी छुपाई थी, जिसके कारण उन पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया.
दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा बांस उत्पादक होकर भी भारत नहीं पकड़ पाया अंतरराष्ट्रीय बाज़ार
‘इंडिया स्पेंड’ की रिपोर्ट है कि राष्ट्रीय बांस मिशन (एनबीएम) और त्रिपुरा राज्य बांस मिशन (टीएसबीएम) जैसी योजनाएं किसानों की मदद के लिए बनाई गईं, लेकिन दिक्कतें इतनी हैं कि किसानों उलझे हैं. भारत बांस उत्पादन में दुनिया में दूसरे स्थान पर है, लेकिन वैश्विक बाजार में इसकी हिस्सेदारी मात्र 4% है, जबकि चीन की 65%. आदिराम रियांग, जो धलाई जिले के बागमारा गांव के स्वायत्त जिला परिषद (एडीसी) क्षेत्र के एक स्वदेशी किसान हैं, कनक कैच बांस की खेती करना चाहते थे, लेकिन जब उन्हें 15 साल पहले त्रिपुरा राज्य बांस मिशन (टीएसबीएम) के बारे में पता चला, तो उन्होंने इसे लाभदायक नहीं समझा. "मैंने सुना था कि लाभार्थी इसकी कम गुणवत्ता और कम मांग वाली किस्मों को लेकर असंतुष्ट थे," उन्होंने कहा. टीएसबीएम किसानों को बाराक या तुलदा बांस प्रदान करता है, जिसे किसान और विशेषज्ञ कनक कैच की तुलना में कम गुणवत्ता वाला मानते हैं.
भारत बांस उत्पादन में दूसरा सबसे बड़ा देश है, जिसमें 136 प्रजातियां 13.96 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर फैली हैं और वार्षिक उत्पादन 3.23 मिलियन टन है. इसके बावजूद, भारत का वैश्विक बांस बाजार में हिस्सा मात्र 4% है, जबकि चीन का 65% है, जहां 6.73 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर बांस के जंगल हैं. 2006-07 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय बांस मिशन (NBM) शुरू किया, जिसे 2014-15 में मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (MIDH) के तहत शामिल किया गया. 2018 में इसके दिशा-निर्देशों में संशोधन किया गया ताकि केवल बांस की खेती ही नहीं बल्कि इसके प्रसंस्करण और मूल्य श्रृंखला में वृद्धि पर भी ध्यान दिया जाए. हालांकि, किसानों का कहना है कि इस कार्यक्रम के तहत दी जाने वाली बांस की किस्में कम उपज देती हैं और केवल गैर-वन क्षेत्रों के लिए उपलब्ध होती हैं, जबकि अधिकांश जनजातियां वन क्षेत्रों में रहती हैं.
गुणवत्ता का मुद्दा : किसानों को तुलदा बाँस दिया जाता है, जो कमज़ोर और कम उपज देने वाला है, जबकि उच्च गुणवत्ता वाला कनक कैच बाँस अधिक लाभदायक होता है.
भूमि अधिकारों की समस्या : अधिकांश आदिवासी समुदायों की भूमि का दस्तावेज़ीकरण नहीं हुआ है, जिससे वे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते.
रबर की बढ़ती खेती : बांस की तुलना में रबर अधिक लाभदायक और सुरक्षित विकल्प बनता जा रहा है, क्योंकि रबर बोर्ड किसानों को भूमि के कागजात और वित्तीय सहायता प्रदान करता है. इसके विपरीत, बांस मिशन कई मंत्रालयों (वस्त्र मंत्रालय, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) के तहत आता है, जिससे किसानों को सहायता और बीमा में अस्पष्टता रहती है.
हस्तशिल्प कारीगरों की कठिनाइयां : प्रशिक्षण और आर्थिक सहायता का अभाव है, जिससे हस्तशिल्पी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं.
बाज़ार और परिवहन की दिक्कतें : कागज़ मिलें बंद होने से औद्योगिक मांग घटी है और परिवहन में भी बाधाएं आती हैं.
दो मुल्कों की फौज़, बरसों से बंद पुल, तेज़ बहती झेलम, दो नौजवान लाशें.. वास्तविक नियंत्रण रेखा के इस और उस पार
'स्क्रोल' के लिए सफ़वत ज़र्गर की रिपोर्ट है कि 22 मार्च दोपहर को, भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने उत्तर कश्मीर के उरी में अमन सेतु के सालों से बंद पड़े हुए ताले खोल दिए, हालांकि केवल कुछ समय के लिए. यह पुल पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर को जम्मू और कश्मीर से जोड़ता है. दोनों ओर से सैनिक, पुलिस और नागरिक प्रशासन के अधिकारी पुल के मध्य बिंदु तक पहुंचे. यह बीते छह वर्षों में उन गिने-चुने मौकों में से एक था, जब दोनों देशों के सैनिक अमन सेतु पर मिले. यह वही पुल है जिससे 2005 में पहली बार कश्मीर के दोनों हिस्सों के बीच बस सेवा शुरू हुई थी. हालांकि, यह सेवा 2019 में पुलवामा हमले के बाद निलंबित कर दी गई थी, जब एक विस्फोट में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के 40 से अधिक जवान शहीद हो गए थे. इस हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव और बढ़ गया था, लेकिन झेलम नदी में डूबकर मरे एक युवा जोड़े की मौत ने दोनों देशों के बीच थोड़ी देर के लिए संबंधों को नरम कर दिया. पाकिस्तानी सेना के अधिकारी पुल पर भारतीय अधिकारियों को उन दोनों के शव सौंपने के लिए आए, जो 5 मार्च को नदी में डूब गए थे और तेज धाराओं में बहकर नियंत्रण रेखा पार कर गए थे.
21 वर्षीय यासिर हुसैन शाह, जो उरी के बसग्रान गांव के रहने वाले थे, एक सड़क निर्माण कंपनी में खुदाई मशीन (एक्सकेवेटर) ऑपरेटर के रूप में काम करते थे. उनके पिता मूस अली शाह के अनुसार, 5 मार्च की सुबह वह रोज़ की तरह काम पर निकले थे. इसी दिन, 20 वर्षीय आसिया बानो, जो बसग्रान से 8 किलोमीटर दूर कांडी बरजला गांव की रहने वाली थीं, अपने घर से निकलीं. वह 12वीं कक्षा की छात्रा थीं और शाहदरा शरीफ दरगाह जाने की जिद कर रही थीं. बानो की मां पहले राज़ी नहीं थीं, लेकिन आसिया के बार-बार कहने पर उन्होंने अनुमति दे दी.
पुल पर झगड़ा और नदी में छलांग : पुलिस जांच के अनुसार, परिवार को संदेह था कि बानो का यासिर से प्रेम संबंध था. इस वजह से वह कुछ समय से अपनी दादी के घर रह रही थीं. जब बानो के भाई और चचेरे भाई-बहन दरगाह पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वह और यासिर पुल पर किसी बात पर बहस कर रहे थे. जैसे ही उसका भाई पास आया और उसे घर चलने को कहा, बानो ने मना कर दिया और आगे बढ़ने लगीं. थोड़ी ही देर में, लालपुल (रेड ब्रिज) के पास बानो ने अचानक नदी में छलांग लगा दी. घबराहट में, उनके 16 वर्षीय छोटे भाई ने भी नदी में कूदकर उन्हें बचाने की कोशिश की. तीसरे व्यक्ति, जिन्होंने छलांग लगाई, वे यासिर शाह थे. उन्होंने अपना मोबाइल और जैकेट उतारी और पानी में कूद पड़े. लेकिन, झेलम की तेज़ धाराओं ने बानो और यासिर दोनों को बहा दिया. केवल बानो का भाई किसी तरह किनारे तक पहुंचने में कामयाब रहा. भारतीय सेना और पुलिस की टीमें दोनों शवों की खोज में जुट गईं, लेकिन 16 दिन तक कोई सफलता नहीं मिली. लोगों को संदेह होने लगा कि शायद वे दोनों जिंदा हैं और कहीं भाग गए हैं. लेकिन 16 दिन बाद, झेलम नदी में कुछ बड़े पत्थरों के बीच एक शव फंसा दिखा. यह यासिर का शव था. नौसेना की एक टीम उसे निकालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन पानी की तेज़ धाराओं की वजह से शव बहकर नियंत्रण रेखा के उस पार पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में चला गया.
'हमेशा के लिए अनसुलझे सवाल' : बानो के पिता मोहब्बत खान का कहना है कि उन्हें इस रिश्ते की कोई जानकारी नहीं थी, क्योंकि वह काम के सिलसिले में ज़्यादातर श्रीनगर में रहते थे. यासिर और आसिया की मुलाकात कांडी बरजला में एक सड़क निर्माण के दौरान हुई थी. दोनों लंबे समय से रिश्ते में थे. लेकिन यह सवाल कि आखिर आसिया ने अचानक नदी में छलांग क्यों लगाई? हमेशा अनसुलझा ही रहेगा. "यह सवाल हमें हमेशा परेशान करेगा," बानो के पिता ने कहा.
कहां चूक गये शौरी सावरकर पर किताब लिखते हुए
‘द केरेवन’ पत्रिका में धीरेन्द्र के झा ने अरुण शौरी की सावरकर पर हाल में ही चर्चित किताब पर लिखा है. धीरेन्द्र खुद नाथूराम गोड़से और गोलवलकर पर किताबें लिख चुके हैं.
धीरेन्द्र का कहना है कि अरुण शौरी की पुस्तक ‘द न्यू आइकन : सावरकर एंड द फैक्ट्स’ में सावरकर के विरोधाभासों को उजागर करने का प्रयास है, परंतु लेखक स्वयं अपनी सीमाओं और पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं है. पहला बड़ा दोष यह है कि शौरी, जो दशकों तक भाजपा और संघ परिवार के प्रमुख स्तंभ रहे, अपने राजनीतिक परिवर्तन पर कोई स्पष्टीकरण नहीं देते. सावरकर के हिंदुत्व की आलोचना करते हुए भी वे यह नहीं बताते कि वे स्वयं इस विचारधारा के साथ जुड़े रहे या अब उससे मोहभंग क्यों हुआ? यह चुप्पी पाठकों के मन में उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करती है.
दूसरा, शौरी सावरकर को सामाजिक सुधारक दिखाने में उसकी स्व-रचित छवि पर अंधविश्वास कर बैठते हैं. जबकि तथ्य बताते हैं कि सावरकर का जाति-उन्मूलन का एजेंडा मुस्लिम-विरोध को बढ़ावा देने का औजार था, न कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था को चुनौती. शौरी इस पहलू को गहराई से नहीं छूते और सावरकर के लेखन को ही प्रमाण मान लेते हैं. यह अर्धसत्य की ओर इशारा करता है.
तीसरा, शौरी का इतिहास-बोध विडंबनापूर्ण है. वे 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस से पूर्व आरएसएस को दिए गए अपने उत्तेजक भाषण, 2002 गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी का समर्थन, या "आँख के बदले दो आँख" जैसे बयानों पर मौन धारण करते हैं. यह वैचारिक विरोधाभास है: सावरकर की आलोचना करने वाला लेखक स्वयं हिंदुत्व की हिंसक राजनीति का हिस्सा रहा है, पर उस पर पश्चाताप का कोई स्वर नहीं.
धीरेन्द्र के मुताबिक शौरी की यह पुस्तक व्यक्तिगत कुंठा की छाया से मुक्त नहीं लगती. 2014 में मोदी सरकार में उपेक्षित होने के बाद उनकी यह "आत्मालोचना" संदेह पैदा करती है कि क्या यह पुस्तक हिंदुत्व से मोहभंग का नतीजा है या सत्ता से बाहर होने की नाराज़गी? सावरकर के मिथक को तोड़ने का शौरी का प्रयास सराहनीय है, पर अपने अतीत से मुठभेड़ किए बिना यह प्रयास अधूरा ही रह जाता है.
व्हाट्सएप से पहले के भक्त और वीर रस से ओतप्रोत मनोज कुमार का निधन
भारतीय सिनेमा के मशहूर अभिनेता और देशभक्ति की फ़िल्मों के प्रतीक मनोज कुमार का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनके परिवार के सूत्रों के अनुसार, उन्होंने मुंबई में दिल से जुड़ी समस्याओं के कारण अंतिम सांस ली. वे पुराने जमाने के असली देशभक्त और वीर रस में अपनी बात कहने वाले दिलचस्प अदाकार थे.
अपनी फ़िल्मों में राष्ट्र भक्ति, एकता और सामाजिक सद्भाव के संदेश को केंद्र में रखने के कारण मनोज कुमार को "भारत कुमार" को कहा जाने लगा. 1950 के दशक में अपने करियर की शुरुआत करने वाले इस दिग्गज ने भारतीय सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी. उन्हें 1992 में पद्म श्री और 2016 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया. मनोज कुमार की "उपकार" (1967), "पूरब और पश्चिम" (1970) और "क्रांति" (1981) जैसी फ़िल्में आज भी दर्शकों के दिलों में जिंदा हैं. और ये सीन देखिये जिसमें वे दुनिया को ज़ीरो देने के अलावा भारत के दूसरे योगदानों की लिस्ट सुना रहे हैं.
गूगल एआई ने अप्रैल फूल की ख़बर को सचमुच का माना
पत्रकार बेन ब्लैक हर साल अप्रैल फूल के दिन अपनी सामुदायिक समाचार साइट "क्वम्ब्रन लाइफ" पर एक मजाकिया झूठी कहानी प्रकाशित करते हैं. 2020 में, उन्होंने एक झूठी कहानी प्रकाशित की जिसमें दावा किया गया था कि क्वम्ब्रन को प्रति वर्ग किलोमीटर सबसे अधिक गोल चौराहे होने के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा मान्यता दी गई है. उसी दिन बाद में अपने लेख को अप्रैल फूल के मजाक के रूप में चिह्नित करने के बावजूद, जब उन्होंने इस वर्ष उसे खोजा, तो वे "चकित" और "चिंतित" थे यह देखकर कि गूगल के एआई टूल द्वारा इस झूठी जानकारी को वास्तविक जानकारी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है.
ब्लैक ने कहा, "यह वाकई डरावना है कि स्कॉटलैंड में कोई व्यक्ति 'वेल्स में सड़कें' गूगल कर सकता है और ऐसी कहानी मिल सकती है जो सच नहीं है. यह कोई खतरनाक कहानी नहीं है, लेकिन यह दिखाता है कि फेक न्यूज कैसे आसानी से फैल सकती है, भले ही वह विश्वसनीय समाचार स्रोत से हो."
उन्होंने यह भी बताया कि AI स्वतंत्र प्रकाशकों के लिए बढ़ता खतरा बन रहा है, जहां कई टूल उनकी मूल सामग्री का उपयोग बिना अनुमति के कर रहे हैं और इसे अलग-अलग प्रारूपों में प्रस्तुत कर रहे हैं. "यह वाकई निराशाजनक है क्योंकि अब कोई भी हमारी वेबसाइटों पर नहीं आएगा," उन्होंने कहा.
इस अनुभव ने उन्हें इतना निराश कर दिया है कि अब वे दोबारा झूठी कहानी प्रकाशित नहीं करने का फैसला कर चुके हैं.
चलते-चलते
रखेंगे अपने बच्चों के लिए पालतू एआई रोबोट?
क्या पालतू एआई रोबोट हमारे जीवन में साथी बन सकते हैं? यह पूछना है एलिसा मिनिना ज्यूनेमाइत्रे का. द कन्वर्सेशन में प्रकाशित अपने लेख में वे कहती हैं, 1990 के दशक में फर्बी खिलौने बहुत लोकप्रिय थे. ये छोटे, बड़ी आँखों वाले खिलौने आपकी बातें दोहराते थे. अब कल्पना कीजिए एक फर्बी जो चैटजीपीटी से जुड़ा हो. एक प्रोग्रामर ने ऐसा ही किया. इससे एआई की खतरनाक संभावनाएँ सामने आईं. क्या एक रोबोट पालतू मानवीय प्यार की जगह ले सकता है? क्या एआई को भावनाएँ दिखाने का अधिकार होना चाहिए? हम अपने बच्चों को एआई की दुनिया में कैसे सुरक्षित रखें?
रोपेट जैसे एआई पालतू "आपके एकमात्र प्यार" बनने का दावा करते हैं. यह विज्ञान कथा जैसा लगता है, लेकिन यही आज की वास्तविकता है. तकनीक का विकास जारी रहेगा, पर हमें यह तय करना है कि क्या हम एआई को अपने दिल तक पहुँचने देंगे? एआई की दुनिया में मानवता का भविष्य हमारे हाथों में है.
2023 में हैस्ब्रो ने फर्बी को फिर से बाजार में उतारा. लेकिन आज के एआई पालतू इससे कहीं आगे निकल गए हैं. जनवरी में "रोपेट" नाम का पालतू रोबोट लॉन्च हुआ. यह सिर्फ दिखने में प्यारा ही नहीं है, बल्कि भावनाओं को भी समझता है. सवाल यह है कि क्या हम इनके मानसिक प्रभावों के लिए तैयार हैं?
पालतू एआई अकेलेपन को दूर करने का वादा करते हैं. लेकिन ये "तमागोची इफेक्ट" को और बढ़ा देते हैं. 90 के दशक में तमागोची की "मौत" बच्चों को दुखी कर देती थी. आज के पालतू एआई आपकी बातें याद रखते हैं, भावनाएँ समझते हैं और उपेक्षा पर दुख जताते हैं. बच्चों के लिए यह एक सच्ची परेशानी बन सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि एआई साथी इंसानी रिश्तों को धुंधला कर सकते हैं. यह खासकर कम उम्र के लोगों या अकेले लोगों के लिए समस्या बन सकता है.
पालतू एआई अपना "दिमाग" क्लाउड में रखते हैं. इसका मतलब है कि आपका डेटा हमेशा खतरे में है. हाल ही में "डीपसीक लीक" में 10 लाख चैट रिकॉर्ड सार्वजनिक हो गए. 90 के दशक में फर्बी को अमेरिकी गुप्त एजेंसियों में प्रतिबंधित किया गया था. आज के एआई खिलौने और भी जटिल हैं, लेकिन सुरक्षा उपाय अभी भी पूरे नहीं हैं. एआई साथी बाजार में मौजूद हैं, लेकिन इनके नैतिक पहलुओं पर बहस जारी है. कंपनियाँ इन्हें वयस्कों के लिए बेचती हैं, लेकिन ये बच्चों तक भी पहुँच जाएंगे. शोध के अनुसार, एआई के साथ स्वस्थ जुड़ाव और नशे जैसी लत के बीच का अंतर बहुत कम है.
पाठकों से अपील
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.