05/07/2025 | विवादित ढांचा नहीं शाही ईदगाह मस्जिद| क्यूआर कोड और धर्म | कागज पर जहाज की मरम्मत | चीन-पाकिस्तान | कोर्स की किताबों में आरएसएस | चीन की सुपरफास्ट ऑटो कंपनियां | तालिबान को रूस की मान्यता
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आज की सुर्खियां :
कृष्ण जन्मभूमि मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद को 'विवादित ढांचा' घोषित करने की याचिका खारिज की
कांवड़ यात्रा : मेरठ में क्यूआर कोड स्कैन कर धर्म पता कर रहे विहिप कार्यकर्ता
सम्भल हिंसा पर रिपोर्ट : शाही मस्जिद के वुज़ूखाने का पानी निकाल दिया था, इसके बाद हिंसक झड़प हुई
‘गंभीर चूक’: एयर इंडिया ने इंजन मरम्मत में की देरी, रिकॉर्ड पर दिखाई फर्जी मरम्मत
कानून से ज्यादा ईआरओ तय करेगा मतदाता सूची और नागरिकता का सवाल
चीन सिंदूर के समय पाकिस्तान को सीधे जानकारी दे रहा था
दलाई लामा पर चीन की प्रतिक्रिया के बाद रिजिजू को देना पड़ी सफाई
राहुल गांधी को सावरकर पर उद्धृत 'किताब' पेश करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता : कोर्ट
कोर्स की किताबों में आरएसएस का दखल, एनसीईआरटी अब तक जारी नहीं कर पाई किताबें
मणिपुर : जनजातीय प्रमुखों ने तनाव बढ़ने के कारण सरकारी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया
ओडिशा में चावल, पानी जैसी करी और अंडा, वीडियो से उठे पीएम पोषण योजना की गुणवत्ता पर सवाल
डीएमके का आरोप, मोदी और अमित शाह ने तमिलनाडु को अधिक धन आवंटन का झूठा दावा किया
बीजेपी मुसलमानों के खिलाफ नहीं, पार्टी चाहती है साथ निकले मुहर्रम और दुर्गा विसर्जन की शोभयात्रा
एमपी में आदिवासी युवक को पीटने के बाद पेशाब पिलाने का आरोप, ग्रामीणों का प्रदर्शन, एक आरोपी गिरफ्तार
बीजेपी विधायक नितेश राणे के खिलाफ 'हेट स्पीच' को लेकर तीन जिलों में शिकायतें दर्ज
नसीरुद्दीन शाह ने दिलजीत दोसांझ विवाद पर लिखा - "मुझे कुछ भी साबित करने की ज़रूरत नहीं, यहां तक कि अपनी देशभक्ति भी नहीं"
भारत, अपनी कमियां ठीक करने के बाद करे ओलंपिक की मेज़बानी की उम्मीद : आईओसी
एशिया कप के लिए पाकिस्तानी हॉकी टीम भारत आएगी, वीज़ा की प्रक्रिया शुरू
भारत को 244 रनों की बढ़त, सिराज और दीप ने निचले क्रम को तहस नहस किया
टिमथी स्नाइडर: ट्रम्प फासिस्ट जर्मनी और सोवियत रूस की तरह गुलाम मजदूरों के यातना शिविर बनाने का इरादा रखते हैं, कंपनियों को ये नामंजूर करना चाहिए
हमास जल्द मान सकता है ग़ाज़ा युद्धविराम प्रस्ताव, मांगी स्थायी युद्धविराम की गारंटी
चीन की नई ऑटो कंपनियों ने जनरल मोटर्स, फोक्सवैगन और टेस्ला को कैसे पीछे छोड़ा!
रूस बना तालिबान शासन को मान्यता देने वाला पहला देश
कृष्ण जन्मभूमि मामला: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद को 'विवादित ढांचा' घोषित करने की याचिका खारिज की
मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर चल रहे कानूनी विवाद में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को हिंदू पक्ष की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद को "विवादित ढांचा" घोषित करने की मांग की गई थी. यह याचिका अदालत के रिकॉर्ड में मस्जिद को विवादित स्थल के रूप में दर्ज कराने और आगे की सभी कार्यवाहियों में इसी तरह माने जाने की मांग कर रही थी.
एकल पीठ, जिसमें जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा शामिल थे, ने मौखिक रूप से यह याचिका "इस स्तर पर" खारिज कर दी. यह फैसला, जो 23 मई को सुरक्षित रखा गया था, मुस्लिम पक्ष के लिए लंबे समय से चले आ रहे विवाद में महत्वपूर्ण राहत के रूप में देखा जा रहा है.
गौरतलब है कि हिंदू पक्ष की ओर से अधिवक्ता महेन्द्र प्रताप सिंह ने 5 मार्च को यह याचिका दाखिल की थी, जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद को विवादित ढांचा घोषित करने की मांग की गई थी. याचिकाकर्ता का तर्क था कि यह मस्जिद अतिक्रमण करके बनाई गई है और इसके पास स्वामित्व या धार्मिक दर्जे का कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है.
इसके अलावा, हिंदू पक्ष द्वारा दायर 18 अन्य संबंधित याचिकाओं को हाईकोर्ट ने एक साथ जोड़ दिया है, जो अभी विचाराधीन हैं. ये सभी याचिकाएं मुख्य रूप से श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर, जिसे वर्तमान में शाही ईदगाह मस्जिद कहा जाता है, से कथित अवैध अतिक्रमण हटाने की मांग करती हैं.
मुस्लिम पक्ष ने हिंदू याचिका को पूरी तरह निराधार बताया. उन्होंने जोर दिया कि शाही ईदगाह पिछले 400 वर्षों से अस्तित्व में है. उन्होंने यह भी दलील दी कि इसे विवादित ढांचा घोषित करने की मांग न केवल खारिज की जाए, बल्कि याचिकाकर्ताओं पर दंड भी लगाया जाए.
कांवड़ यात्रा : मेरठ में क्यूआर कोड स्कैन कर धर्म पता कर रहे विहिप कार्यकर्ता
कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू होने से पहले, कांवड़ मार्ग पर खाने-पीने की दुकानों पर नामपट्टियों के प्रदर्शन को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है. योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तरप्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी दुकानों के लिए उचित लाइसेंस और मालिक का असली नाम स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करना अनिवार्य कर दिया है. लेकिन इस बार एक नया काम किया गया है और वो है “क्यूआर कोड.” मेरठ में प्रत्येक भोजनालय को एक क्यूआर कोड भी लगाना होगा, जिसे कांवड़िए स्कैन कर भोजनालय के मालिकाना हक और नियम पालन की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे. प्रशासन ने चेतावनी दी है कि जो भी व्यवसाय इन निर्देशों का पालन नहीं करेगा, उसके खिलाफ खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2006 की धारा 55 के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी, जिसमें 2 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.
बता दें, पिछले वर्ष 2024 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था, जहां उत्तर प्रदेशसरकार के इस आदेश पर रोक लगा दी गई थी, जिसमें दुकानदारों को अपना नाम प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया था.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मेरठ में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के कार्यकर्ता कांवड़ मार्ग पर स्थित रेस्टोरेंट, ढाबों और खाने-पीने की दुकानों पर जाकर यूपीआई क्यूआर कोड स्कैन कर रहे हैं, ताकि दुकानदारों के धर्म की पुष्टि की जा सके. इसके अलावा, वे दुकानदारों से नाम और धर्म पूछ रहे हैं, दुकानों पर भगवान विष्णु के वराह अवतार की तस्वीरें चिपका रहे हैं और भगवा झंडे भी लगा रहे हैं. “क्यूआर कोड” स्कैन करने का उद्देश्य यह पता लगाना है कि कहीं कोई अन्य धर्म का व्यक्ति हिंदू नाम से दुकान तो नहीं चला रहा है. अधिकारियों की टीम भी मेरठ हाईवे पर दुकानों का निरीक्षण कर रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि साइनबोर्ड पर लिखा नाम मालिक की पहचान से मेल खाता है या नहीं, और कहीं दुकान पर मांसाहारी भोजन तो नहीं परोसा जा रहा है. उल्लेखनीय है कि कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िए नदी से जल लेकर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलते हैं और भगवान शिव के मंदिरों में जल अर्पित करते हैं.
सम्भल हिंसा पर रिपोर्ट : शाही मस्जिद के वुज़ूखाने का पानी निकाल दिया था, इसके बाद हिंसक झड़प हुई
उत्तरप्रदेश के सम्भल में शाही जामा मस्जिद के कोर्ट आदेशित सर्वे को लेकर आठ महीने पहले हुई हिंसा, जिसमें कम से कम पांच लोगों की मौत हुई थी, पर एक तथ्य-जांच समिति ने रिपोर्ट जारी की है, जिसमें घटना के कारणों और उसके बाद की स्थिति का विवरण दिया गया है.
114 पन्नों की यह रिपोर्ट एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) और कारवां-ए-मोहब्बत ने जारी की है. रिपोर्ट का शीर्षक है-“सम्भल एक सुनियोजित संकट की शल्यक्रिया– मिथक, हिंसा और आस्था का हथियारकरण एक मुस्लिम-बहुल शहर में”. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि 24 नवंबर को, अधिकारियों के साथ नारेबाजी करती भीड़ मौजूद थी और मस्जिद के वुज़ूखाने का पानी निकाल दिया गया, जिसे कई लोगों ने अपमानजनक कृत्य माना और इसी ने हिंसक झड़पों को जन्म दिया.
पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे मुस्लिमों पर लाठीचार्ज, आंसू गैस और गोलीबारी की. इसमें पांच मुस्लिम पुरुषों की मौत हुई, दर्जनों घायल हुए और 85 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया. रिपोर्ट का दावा है कि चश्मदीदों और वीडियो साक्ष्यों के अनुसार, भीड़ उतनी हिंसक नहीं थी जितना आधिकारिक बयान में कहा गया. “द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार जांच
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि हिंसा के बाद, पुलिस ने मुस्लिम इलाकों में घर-घर छापे मारे, एफआईआर दर्ज कीं और राजनीतिक नेताओं व कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया. प्रशासन ने 14 दिसंबर को अतिक्रमण विरोधी अभियान शुरू किया, जिसमें खासतौर पर उन इलाकों को निशाना बनाया गया जो हिंसा से प्रभावित थे या जहां समाजवादी पार्टी के नेताओं के घर थे.
सम्भल के जिलाधिकारी डॉ. राजेंद्र पेंसिया ने रिपोर्ट को 'फर्जी' बताया और कहा कि "लोग हिंसक हो गए थे और पुलिस व प्रशासन पर पथराव किया गया था." उन्होंने कहा कि अतिक्रमण हटाओ अभियान का हिंसा से कोई संबंध नहीं है, यह प्रशासन की नियमित प्रक्रिया है. वुजू टैंक को खाली करने का उद्देश्य उसकी गहराई की जांच करना था.
अब तक 79 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जिनमें तीन महिलाएं भी शामिल हैं. पिछले महीने पुलिस ने सांसद जिया उर रहमान बर्क और 22 अन्य के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है. पुलिस जांच में यह भी पाया गया कि समाजवादी पार्टी के स्थानीय विधायक इकबाल महमूद का बेटा सोहेल इकबाल का हिंसा भड़काने में कोई हाथ नहीं था, हालांकि वह मौके पर मौजूद था.
‘गंभीर चूक’: एयर इंडिया ने इंजन मरम्मत में की देरी, रिकॉर्ड पर दिखाई फर्जी मरम्मत
'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि भारत की नागरिक उड्डयन निगरानी संस्था (DGCA) ने मार्च में एयर इंडिया की बजट शाखा एयर इंडिया एक्सप्रेस को उस समय फटकार लगाई जब यह सामने आया कि उसने यूरोपीय विमानन सुरक्षा एजेंसी के निर्देशों के अनुसार Airbus A320 के इंजन के जरूरी हिस्सों को समय पर नहीं बदला. यही नहीं, उसने रिकॉर्ड्स में हेराफेरी कर यह दिखाने की कोशिश की कि बदलाव किया गया है. सरकार की गोपनीय रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है.
इस पर 241 लोगों की मौत हो जाने के बाद एयर इंडिया एक्सप्रेस का बयान आया है. बयान में कहा गया - "हमने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए सुधारात्मक और रोकथाम के उपाय किए हैं,". कंपनी के बयान के अनुसार, रिकॉर्ड माइग्रेशन के दौरान शेड्यूल छूट गया, चूक का पता चलते ही सुधार किया गया, क्वालिटी मैनेजर को पद से हटाया गया और डेप्युटी कंटीन्युअस एयरवर्थनेस मैनेजर को निलंबित किया गया. हालांकि, रिकॉर्ड फर्जीवाड़े पर कंपनी ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया. सरकारी गोपनीय ज्ञापन (जो रायटर्स ने देखा) के अनुसार, DGCA की निगरानी में यह तथ्य सामने आया कि विमान VT-ATD में CFM इंजन के जरूरी हिस्सों को समय पर नहीं बदला गया, और AMOS सॉफ़्टवेयर (एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस ट्रैकिंग टूल) में रिकॉर्ड संशोधित या जाली पाए गए.
'रायटर्स' की रिपोर्ट के बाद, यूरोपीय विमानन सुरक्षा एजेंसी (EASA) ने बयान जारी कर कहा कि वह इस मामले की CFM और DGCA के साथ मिलकर जांच करेगी.
इंजन में क्या थी तकनीकी खामी?
2023 में EASA ने चेतावनी जारी की थी कि CFM LEAP-1A इंजन के कुछ पार्ट्स (जैसे इंजन सील और रोटेटिंग पार्ट्स) में निर्माण दोष पाया गया है. यदि ये हिस्से समय पर नहीं बदले गए, तो "इनकी विफलता से हाई-एनर्जी मलबा निकल सकता है, जिससे विमान को नुकसान और नियंत्रण में कमी हो सकती है." DGCA के ऑडिट में यह चूक पहली बार अक्टूबर 2024 में सामने आई थी. इसके बावजूद, विमान कुछ उड़ानें भरता रहा.
भारत के विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो के पूर्व विधि विशेषज्ञ विभूति सिंह ने कहा - “ऐसी चूक तत्काल ठीक की जानी चाहिए. यह गंभीर गलती है, खासकर जब विमान समुद्र के ऊपर या प्रतिबंधित हवाई क्षेत्रों के पास उड़ता है.”
कानून से ज्यादा ईआरओ तय करेगा मतदाता सूची और नागरिकता का सवाल
बिहार में चुनावी नामावली के विशेष गहन संशोधन पर चुनाव आयोग की 'विस्तृत दिशा-निर्देशों' में धारा 5(ख) कहती है कि चुनावी पंजीकरण अधिकारी "संदिग्ध विदेशी नागरिकों के मामलों को नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत सक्षम प्राधिकारी को भेजेगा". पवन कोरड़ा से बात करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के वकील मोहम्मद अमान खान ने चेतावनी दी कि धारा 5(ख) "किसी भी कानूनी सुरक्षा के बिना नागरिकता सत्यापन के लिए एक समानांतर, अनौपचारिक मार्ग बना सकती है" और यह कि एक ईआरओ का संदेह - एक अपरिभाषित शब्द - "एक ऐसी प्रक्रिया शुरू कर सकती है जो कड़े कानूनी मानकों द्वारा संचालित होनी चाहिए, न कि प्रशासनिक विवेक द्वारा". उन्होंने यह भी कहा कि जबकि असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का मसौदा तैयार करना एक सांविधिक और न्यायालय-निगरानी प्रक्रिया थी, बिहार में हम एक "विकेंद्रीकृत और अपारदर्शी" प्रक्रिया देख सकते हैं जो "मनमाने कार्रवाई के लिए एक नुस्खा" है.
सिंदूर के समय पाकिस्तान को सीधे जानकारी दे रहा था चीन
लेफ्टिनेंट जनरल राहुल सिंह, उप सेनाध्यक्ष (क्षमता विकास और निर्वाह), ने शुक्रवार को कहा कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच डीजीएमओ स्तर की बातचीत चल रही थी, पाकिस्तान ने उल्लेख किया कि उसके पास भारत के महत्वपूर्ण स्थानों की जानकारी है जो निशाना बनाने के लिए तैयार हैं. उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान ने भारत से इसे एक या दो पायदान नीचे करने का अनुरोध किया. आगे बढ़ते हुए, लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने समझाया कि भारत को एक सीमा और तीन विरोधियों से निपटना पड़ा. उन्होंने कहा कि जबकि पाकिस्तान आगे के पैर पर था, चीन पीछे से सभी संभावित सहायता प्रदान कर रहा था. एएनआई ने उप सेनाध्यक्ष के हवाले से कहा: "जब डीजीएमओ [सैन्य अभियान महानिदेशक] स्तर की बातचीत चल रही थी, पाकिस्तान वास्तव में उल्लेख कर रहा था कि 'हम जानते हैं कि आपका अमुक और अमुक महत्वपूर्ण तरह का... वेक्टर तैयार है और यह कार्रवाई के लिए तैयार है... मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि शायद इसे वापस खींच लें'. तो वह चीन से सीधी जानकारी प्राप्त कर रहा था."
उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान के लगभग 81% सैन्य हार्डवेयर चीन द्वारा आपूर्ति की जाती है. चीन पर तंज़ कसते हुए, लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने चीन में प्रचलित 36 रणनीतियों के एक मुहावरे का इस्तेमाल करते हुए कहा, "पुराने शिकार को उधार के चाकू से मारा गया" कहा. आप उत्तरी सीमा पर कीचड़ उछालने के मैच में शामिल होने के बजाय पड़ोसी का उपयोग करके दर्द पहुंचाना पसंद करेंगे, यही वे कहते हैं." अधिकारी ने यह भी कहा कि भारत को "हमारे जनसंख्या केंद्रों" पर भविष्य के हमलों के लिए तैयार रहना चाहिए और हवाई रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.
सिंधू जल संधि का विवाद जारी: इस सप्ताह की शुरुआत में, भारत ने स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि सिंधु जल संधि को निलंबित नहीं किया जा सकता. अब, इस्लामाबाद ने कहा है "यह पुरस्कार पाकिस्तान की उस स्थिति को सही ठहराता है कि सिंधु जल संधि वैध और परिचालित है, और भारत को इसके बारे में एकतरफ़ा कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है,"
मुनीर के बाद सिद्धू वाशिंगटन में: पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ अपने रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने का एक और प्रयास किया है, वायु सेनाध्यक्ष ज़हीर अहमद बाबर सिद्धू की देश की आधिकारिक यात्रा और पाकिस्तान वायु सेना द्वारा इसे "रणनीतिक मील का पत्थर" घोषित करने के साथ. यह दशकों में किसी सेवारत पाकिस्तानी वायु सेना प्रमुख की पहली यात्रा है, जो पाकिस्तान के लिए सैन्य संपर्क बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. सिद्धू की अमेरिका यात्रा पाकिस्तान के अमेरिका के साथ रक्षा संबंधों को सुधारने के पिछले बड़े प्रयास और सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल आसिम मुनीर की यात्रा के कुछ दिनों बाद आई है.
दलाई लामा पर चीन की प्रतिक्रिया के बाद रिजिजू को देना पड़ी सफाई
अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को अपने इस बयान पर सफाई देना पड़ी कि “दलाई लामा के उत्तराधिकारी के बारे में केवल दलाई लामा को ही निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए.” उन्होंने स्पष्ट किया कि वे "एक अनुयायी के रूप में" बोल रहे थे, न कि सरकार की ओर से. जब उनसे बीजिंग की प्रतिक्रिया के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनका बयान व्यक्तिगत आस्था पर आधारित है, न कि भारत सरकार की आधिकारिक नीति पर.
दरअसल, चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने भारत से कहा कि उसे "तिब्बत (तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र) से जुड़े मामलों में चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बंद करना चाहिए" और द्विपक्षीय संबंधों में सुधार को प्रभावित करने से बचना चाहिए. इसके जवाब में नई दिल्ली ने कहा कि भारत का आस्था से जुड़े मामलों पर कोई आधिकारिक रुख नहीं है और यह धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांत का पालन करता है.
चीन का दावा है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को पद ग्रहण करने के लिए उसकी अनुमति आवश्यक है, जबकि दलाई लामा और उनके अनुयायियों का कहना है कि उत्तराधिकार का निर्णय केवल दलाई लामा और उनके द्वारा स्थापित ट्रस्ट को ही करना चाहिए. रिजिजू की टिप्पणियों ने यह सवाल खड़ा किया था कि क्या वे दलाई लामा के मुद्दे पर भारत के पारंपरिक सतर्क रुख से आधिकारिक तौर पर हटने का संकेत देती हैं. जबकि, ऐसा नहीं है.
राहुल गांधी को सावरकर पर उद्धृत 'किताब' पेश करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता : कोर्ट
पुणे की एक अदालत ने उस आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा लंदन में हिंदुत्व विचारक वी.डी. सावरकर के बारे में कथित रूप से मानहानिकारक भाषण देते समय संदर्भित की गई किताब की प्रति मांगी गई थी. एमपी/एमएलए कोर्ट के विशेष न्यायाधीश अमोल शिंदे ने शिकायतकर्ता सत्यकी सावरकर द्वारा दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि गांधी को ऐसी किसी भी सामग्री को प्रस्तुत करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिसे उनके खिलाफ सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके, क्योंकि यह उनके आत्म-अभियोजन के खिलाफ अधिकार का उल्लंघन होगा. अदालत ने कहा, "संविधान के अनुच्छेद 20(3) के अनुसार, 'किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को स्वयं के खिलाफ गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा.' अतः, इस न्यायालय की राय है कि आरोपी को आपराधिक दस्तावेज प्रस्तुत करने का आदेश नहीं दिया जा सकता."
कोर्स की किताबों में आरएसएस का दखल, एनसीईआरटी अब तक जारी नहीं कर पाई किताबें
एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) इस वर्ष अब तक 5वीं और 8वीं कक्षा के छात्रों को पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध नहीं करा पाई है, जबकि निर्धारित समय सीमा को बढ़ाया गया था. कई शिक्षाविदों का कहना है कि इसकी एक बड़ी वजह आरएसएस से जुड़े लोगों द्वारा किताबों की कई स्तरों पर जांच है, ताकि किसी भी ऐसे कंटेंट को हटाया जा सके, जो सरकार के खिलाफ हो सकता है.
“द टेलीग्राफ” में बसंत कुमार मोहंती की खबर है कि पाठ्यपुस्तक लेखन की मौजूदा प्रक्रिया से जुड़े शिक्षाविदों का कहना है कि किताबों के प्रकाशन में देरी इसलिए हो रही है, क्योंकि "सरकार विरोधी" किसी भी सामग्री को रोकने के लिए कई स्तरों पर जांच की जा रही है. उनका यह भी कहना है कि एनसीईआरटी के फैकल्टी सदस्यों को नई किताबों की तैयारी में पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया, बल्कि ज्यादातर विशेषज्ञ बाहरी संस्थानों से चुने गए हैं. "विशेषज्ञों द्वारा सामग्री जमा करने के बाद, एक प्रोजेक्ट ग्रुप जिसमें आरएसएस से जुड़े लोग शामिल हैं, वह किताबों की समीक्षा करता है और बदलाव सुझाता है. इसके बाद कुछ चुने हुए शिक्षाविद, जिनमें से कुछ फिर आरएसएस से हैं, सामग्री की लंबी अवधि तक जांच करते हैं और बदलाव सुझाते हैं. पहले यह प्रक्रिया नहीं थी। इसी वजह से देरी हो रही है.
2006 और 2008 में जब नई किताबें प्रकाशित हुई थीं, तब पाठ्यपुस्तक टीम ने सामग्री तैयार की थी और पाठ्यपुस्तक विकास समिति ने उन्हें मंजूरी दी थी.
नया शैक्षणिक सत्र 1 अप्रैल से शुरू हो गया है और किताबें उससे पहले उपलब्ध होनी चाहिए थीं. एनसीईआरटी ने अपनी वेबसाइट पर कक्षा 5 और 8 के लिए छह हफ्तों का ब्रिज प्रोग्राम अपलोड किया है, ताकि नई किताबें आने तक स्कूल कुछ शिक्षण गतिविधियां कर सकें.
ब्रिज कोर्स के लिए कोई किताब नहीं है. इसमें कक्षा में की जाने वाली गतिविधियां सूचीबद्ध हैं. शिक्षक अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, लेकिन बच्चों को केंद्रित अध्ययन के लिए किताब चाहिए. उसके अभाव में शिक्षण-शिक्षण गतिविधियां बच्चों को ठीक से संलग्न नहीं कर पा रही हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय की कोर्ट के सदस्य अशोक अग्रवाल ने एनसीईआरटी की आलोचना करते हुए कहा, "प्राइवेट स्कूल किसी तरह निजी प्रकाशकों की किताबों से शिक्षण गतिविधियां चला लेते हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों के छात्र पूरी तरह एनसीईआरटी की किताबों पर निर्भर हैं. सीबीएसई और कुछ राज्य बोर्ड भी एनसीईआरटी की किताबें इस्तेमाल करते हैं. किताबों के जारी होने में देरी बच्चों के साथ क्रूर मजाक है. यह आपराधिक लापरवाही का मामला है.”
मणिपुर : जनजातीय प्रमुखों ने तनाव बढ़ने के कारण सरकारी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया
जनजातीय प्रमुखों के एक संघ ने गुरुवार को मणिपुर के कांगपोकपी जिले में सभी राज्य-प्रायोजित कार्यक्रमों और गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की, जिससे मणिपुर के हिंसा-ग्रस्त पहाड़ी-मैदान सीमा क्षेत्रों में तनाव और बढ़ गया है, खासकर धान की खेती के मौसम में.
सदर हिल्स चीफ्स एसोसिएशन ने यह प्रतिबंध वन विभाग की कार्रवाई और राज्य की 'गो टू हिल्स' पहल के विरोध में लगाया है. उसने उन क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति का विरोध किया है, जो मई 2023 में इंफाल घाटी के मैतई और पहाड़ी क्षेत्रों के कुकी-जो समुदायों के बीच हुए जातीय संघर्ष के बाद से अब भी तनाव में हैं. कांगपोकपी सदर हिल्स का हिस्सा है.
यह कदम दोनों समूहों के बीच हाल ही में हुए विश्वास-निर्माण उपायों को पटरी से उतार सकता है, विशेष रूप से उन उपजाऊ पहाड़ी क्षेत्रों में, जो इस खेती के मौसम में विवाद का केंद्र बन गए हैं. खेत जोतने के अधिकार को लेकर झड़पें फिर से शुरू हो गई हैं, दोनों पक्ष इन क्षेत्रों पर अपने पूर्वजों का अधिकार बता रहे हैं.
पिछले दिनों, पांच ग्रामीण घायल हो गए, जब एक मैतई किसान ने कुकी-बहुल क्षेत्र से सटे खेत की जुताई शुरू कर दी. बुधवार को इंफाल वेस्ट के निवासियों ने आरोप लगाया कि कुकी समुदाय के लोगों ने मैतई किसानों की जमीन में प्रवेश किया.
इस बीच सुरक्षा बलों ने संवेदनशील क्षेत्रों में अपनी तैनाती बढ़ा दी है. राज्य पुलिस के जवान घाटी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में केंद्रीय बलों का समर्थन कर रहे हैं, ताकि आगे झड़पें रोकी जा सकें. फ्लाइंग स्क्वाड और त्वरित प्रतिक्रिया दल अस्थिर इलाकों में तैनात किए गए हैं.
ओडिशा में चावल, पानी जैसी करी और अंडा, वीडियो से उठे पीएम पोषण योजना की गुणवत्ता पर सवाल
'द टेलीग्राफ' के लिए श्रीरूपा दत्ता की रिपोर्ट है कि ओडिशा के एक सरकारी स्कूल में बच्चों को मध्यान्ह भोजन (मिड-डे मील) के तहत परोसे गए उबले चावल, पतली सी करी और एक उबले अंडे का वीडियो सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. यह वीडियो कांग्रेस विधायक सागर चरण दास (कालाहांडी, ओडिशा) ने अपने एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर साझा किया. उन्होंने लिखा — “यह देखकर बेहद पीड़ा होती है कि ओडिशा के सरकारी स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील योजना के तहत केवल उबला चावल और पानी जैसी करी दी जा रही है. अगर हम उनके लिए पौष्टिक भोजन नहीं दे सकते, तो हम उनसे कैसे उम्मीद करें कि वे ध्यान लगाकर पढ़ाई करें, सीखें और आगे बढ़ें?” एक यूज़र ने जवाब में लिखा — “बिल्कुल शर्मनाक! भाजपा सरकार खुद के प्रचार में करोड़ों खर्च करती है, लेकिन देश के सबसे गरीब बच्चों को ठीक से खाना तक नहीं दे सकती.”
मध्यान्ह भोजन योजना, जिसे अब प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण (PM POSHAN) कहा जाता है, भारत भर के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के छात्रों को प्रतिदिन एक पका हुआ गर्म भोजन देने के लिए शुरू की गई थी. इस योजना के तहत प्राथमिक (कक्षा 1-5) के बच्चों को 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन और उच्च प्राथमिक (कक्षा 6-8) के बच्चों को 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन मिलना अनिवार्य है. कुल मिलाकर यह योजना अपने उदे्श्यों से भटक गई है.
डीएमके का आरोप, मोदी और अमित शाह ने तमिलनाडु को अधिक धन आवंटन का झूठा दावा किया
'इकोनोमिक टाइम्स' की रिपोर्ट है कि तमिलनाडु की सत्तारूढ़ डीएमके ने भाजपा नीत केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह यह झूठ बोल रही है कि राज्य को उसके शासन में कांग्रेस शासन की तुलना में अधिक धन आवंटित किया गया है. डीएमके के आधिकारिक अखबार "मुरासोली" ने अपने संपादकीय में "ओरनियिल तमिलनाडु" (तमिलनाडु एकजुट टीम) सदस्यता अभियान की शुरुआत की, जिसमें कहा गया कि पार्टी हमेशा खुद को नया रूप देती रही है, जो इसे 75 साल की उम्र में भी युवा बनाए रखता है.
1 जुलाई को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने "ओरनियिल तमिलनाडु" (ओटीएन) अभियान शुरू किया और 3 जुलाई से घर-घर जाकर लोगों तक पहुंचने का कार्य शुरू हुआ. स्टालिन के अनुसार, ओटीएन में चुनावी अभियान, सदस्यता नामांकन, डीएमके सरकार की उपलब्धियां और केंद्र की तमिलनाडु के प्रति बेईमानी शामिल है, जिसका उद्देश्य राज्य की भाषा और सम्मान की रक्षा के लिए लोगों को एकजुट करना है. तमिलनाडु में अगली विधानसभा चुनाव अप्रैल 2026 में होने हैं. मुरासोली ने कहा कि तमिलनाडु के लोग अच्छी तरह जानते हैं कि भाजपा नीत केंद्र सरकार ने राज्य के साथ विश्वासघात किया है. "विश्वासघात ही भाजपा का तरीका है और वे लोगों के लिए कुछ अच्छा करने का तरीका नहीं जानते. फिर भी वे झूठ के जरिए ध्यान भटकाते हैं," ड्रविड़ अखबार ने आरोप लगाया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्र के सभी लोग बार-बार यह झूठ बोल रहे हैं कि तमिलनाडु को भाजपा शासन में कांग्रेस शासन की तुलना में अधिक धन मिला है. "केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अक्सर यह कहते हैं. उन्होंने यह नहीं बताया कि वे किस योजना के तहत धन दे रहे हैं और न ही वे ऐसा बता सकते हैं." मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने स्पष्ट किया है कि तमिलनाडु सरकार केंद्र की योजनाओं को लागू करने के लिए अपने धन का भी योगदान दे रही है. मुरासोली ने पूछा, "पिछले 10 साल में केंद्र ने तमिलनाडु के लिए कोई विशेष योजना क्या शुरू की?" यह मुख्यमंत्री का केंद्र सरकार से सवाल है. मादुरै एआईआईएमएस परियोजना, जिसकी घोषणा 2015 में केंद्र ने की थी, अभी तक शुरू नहीं हो सकी. 2019 में पीएम मोदी ने इस अस्पताल का शिलान्यास किया था.
डीएमके के मुखपत्र ने हाल ही में अधिकारियों द्वारा जारी मादुरै अस्पताल परियोजना की प्रगति के वीडियो का हवाला देते हुए कहा, "इसे वीडियो बनाने में छह साल लग गए और यही भाजपा तमिलनाडु के लोगों के प्रति सम्मान दिखाती है." डीएमके ने ओटीएन अभियान शुरू किया है ताकि तमिलनाडु के साथ इस तरह के अन्याय के खिलाफ लोगों को एकजुट किया जा सके. 3 जुलाई 2025 को सत्तारूढ़ डीएमके ने राज्य भर में 45 दिन के घर-घर अभियान की शुरुआत की, जिसमें हर पोलिंग बूथ पर 30% मतदाताओं को पार्टी सदस्य के रूप में नामांकित करने का लक्ष्य है.
बीजेपी मुसलमानों के खिलाफ नहीं, पार्टी चाहती है साथ निकले मुहर्रम और दुर्गा विसर्जन की शोभयात्रा
'मकतूब' की रिपोर्ट है कि पश्चिम बंगाल बीजेपी के नवनियुक्त अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने 3 जुलाई को कोलकाता में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि बीजेपी मुसलमानों के खिलाफ नहीं है. उन्होंने स्पष्ट किया कि बीजेपी की लड़ाई किसी धार्मिक समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि उन लोगों के खिलाफ है जो भारत में रहकर दूसरे देशों की बात करते हैं. भट्टाचार्य ने कहा कि पार्टी एक ऐसे बंगाल की कल्पना करती है जहां मुहर्रम और दुर्गा विसर्जन की शोभायात्राएं शांति से साथ-साथ निकलें और कोई सांप्रदायिक हिंसा न हो. उन्होंने शिक्षा और विकास को बढ़ावा देने की बात पर जोर दिया, न कि हिंसा को. उन्होंने कालीबाड़ी मंदिर का जिक्र करते हुए कहा कि यह स्थान ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है और बीजेपी भारतीयों की पार्टी है जो सभी समुदायों के कल्याण के लिए काम करती है. इस बयान को कुछ लोगों ने बीजेपी की छवि को नरम करने की कोशिश के रूप में देखा, जबकि कुछ ने इसे पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक समुदायों तक पहुंचने की रणनीति माना. हालांकि, विपक्षी दलों, खासकर टीएमसी, ने इस बयान पर सवाल उठाए और बीजेपी की मंशा पर संदेह जताया है.
हेट क्राइम
एमपी में आदिवासी युवक को पीटने के बाद पेशाब पिलाने का आरोप, ग्रामीणों का प्रदर्शन, एक आरोपी गिरफ्तार
'द मूकनायक' की रिपोर्ट है कि मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के हर्रई थाना क्षेत्र अंतर्गत तुइयापानी गांव में एक आदिवासी युवक ने आरोप लगाया है कि उसे न केवल बेरहमी से पीटा गया, बल्कि उसके मुंह पर थूका गया और जबरन पेशाब तक पिलाया गया. इस घिनौनी घटना के बाद पूरे आदिवासी समाज में आक्रोश है और बड़ी संख्या में लोग आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए. पीड़ित युवक ने पुलिस में दी शिकायत में बताया कि यह घटना 29 जून की रात की है. घटना की जानकारी मिलते ही गांव में तनाव फैल गया. अगले ही दिन बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने प्रदर्शन करते हुए तुइयापानी गांव की मुख्य सड़क जाम कर दी और आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की. स्थिति को गंभीरता से लेते हुए छिंदवाड़ा के एडिशनल एसपी आयुष गुप्ता, एसडीएम और अन्य प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे और ग्रामीणों को समझाकर शांत कराया. अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों को निष्पक्ष जांच और शीघ्र कार्रवाई का आश्वासन दिया, जिसके बाद प्रदर्शन खत्म हुआ. हर्रई पुलिस ने पीड़ित की शिकायत पर तत्काल मामला दर्ज करते हुए तीन लोगों के खिलाफ एफआईआर की है.
बीजेपी विधायक नितेश राणे के खिलाफ 'हेट स्पीच' को लेकर तीन जिलों में शिकायतें दर्ज
महाराष्ट्र में नागरिक अधिकार संगठन सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) ने भाजपा नेता और मंत्री नितेश नारायण राणे के खिलाफ राज्य के तीन ज़िलों – पुणे, सिंधुदुर्ग और रत्नागिरी में भड़काऊ और विभाजनकारी भाषणों को लेकर औपचारिक शिकायतें दर्ज करवाई हैं. सीजेपी ने अपनी शिकायतों में कहा कि राणे ने मुसलमानों के खिलाफ उकसाने वाली बातें कीं, जिसमें "लव जिहाद", "लैंड जिहाद" जैसे असत्यापित और सांप्रदायिक शब्दों का बार-बार प्रयोग किया गया. उन्होंने धार्मिक स्थलों जैसे मज़ारों और दरगाहों को “अनधिकृत रूप से उग आया” करार देते हुए उन्हें भी निशाने पर लिया था.
नसीरुद्दीन शाह ने दिलजीत दोसांझ विवाद पर लिखा - "मुझे कुछ भी साबित करने की ज़रूरत नहीं, यहां तक कि अपनी देशभक्ति भी नहीं"
'इंडियन एक्सप्रेस' में नसीरुद्दीन शाह ने दिलजीत दोसांझ के समर्थन में लेख लिखा है. उन्होंने लिखा - मेरे बचपन और परवरिश का सफर एक रूढ़िवादी मुस्लिम घर, फिर एक रोमन कैथोलिक और फिर एक जेसुइट ईसाई स्कूल के बीच बंटा रहा. इन तीनों ने मुझे जो देना था दिया, लेकिन मैं किसी से भी पूरी तरह प्रभावित नहीं हुआ. मुझे हर परंपरा की अच्छाई-बुराई समझ में आती थी, अपनी भी. उदाहरण के लिए, मुझे ये विचार बहुत अन्यायपूर्ण लगा कि "हमारे सिवा बाकी सब नरक जाएंगे" और मैं आज तक इस सोच को नहीं समझ पाया. हम बच्चे पुष्कर जाते थे, भव्य जैन मंदिर भी जाते थे और अजमेर की दरगाह तो ज़रूर. वहां केसरिया वस्त्रों में जटाधारी साधु हरे कपड़ों वाले सूफ़ियों के साथ चिलम बांटते थे. सिख और हिंदू यात्री भी साथ होते थे.
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा जहां नमाज़ होती थी, पर हिंदू मूर्तियां उकेरी होती थीं. मुझे वो दृश्य बेहद सुंदर लगता था. शंकर-शंभू जैसे महान कलाकार ‘ख्वाजा जी’ की शान में गाते थे और उनके साथ उपमहाद्वीप भर के कव्वाल होते थे. यहां तक कि एक बाउल गायक भी. मैंने कभी खुद को "मुस्लिम" (यानी अलग) नहीं समझा और न ही मेरे आसपास के किसी माहौल ने मुझे ऐसा महसूस कराया कि मैं कहीं का नहीं हूं. यह मेरा देश था और मुझे इसकी याद आती है.
घृणा और राष्ट्रवाद का उफान
बीते कुछ वर्षों में जो राष्ट्रवादी जुनून, नफ़रत और अब युद्ध का उन्माद उभरा है, उसने उन सभी "सही विचारों" वाले नागरिकों को और भी निडर बना दिया है जो भीतर से हमेशा संकीर्ण सोच रखते थे. अब उन्हें अपनी कट्टरता छिपाने की ज़रूरत ही नहीं रही. साथ ही, ये समय उन सभी के लिए चिंता का कारण है जो सोचते हैं कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा है.
आज हालात ये हैं कि हिंदी फिल्मों की गुणवत्ता की आलोचना करो तो “अकृतज्ञ” कहलाते हो, भाईचारे की बात करो तो “देशद्रोही” बन जाते हो, अगर आप कहते हो कि भारत में ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं होता तो जवाब मिलता है - “जाओ पाकिस्तान”. किसी कलाकार का पक्ष लो, तो कहा जाता है “देश के खिलाफ बोल रहे हो”. अब तो कोई भी आलोचना “राष्ट्र-विरोधी” बना दी जाती है.
“देशभक्त दिखने” की मजबूरी नहीं
मुझे अपने देश, धर्म या किसी भी चीज़ के प्रति अपने प्यार को दिखाने की कोई ज़रूरत नहीं महसूस होती. मैं जानता हूं, मैं क्या महसूस करता हूँ और यह किसी और का विषय नहीं है. इसीलिए मैं आसान निशाना हूँ उन "देशभक्तों" और ट्रोल्स के लिए — जो spelling और grammar की कुछ मदद ले लें तो बेहतर होगा.
पारिवारिक विरासत और उम्मीद
मैं भारत में मुस्लिम परिवार की पांचवीं पीढ़ी में जन्मा, मेरी पत्नी एक पुरानी हिंदू परंपरा से हैं. हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे दोनों की अच्छाइयों को साथ लेकर चलें. मेरे पिता ने पाकिस्तान नहीं जाने का फ़ैसला किया जब उनके भाई वहाँ चले गए. उन्हें भरोसा था कि भारत में हमारा भविष्य है, जैसा कि मुझे आज भी लगता है. यह सपना हम छोड़ नहीं सकते.
दिलजीत दोसांझ के पक्ष में पोस्ट और ट्रोल्स को जवाब
अगर मेरा दिलजीत दोसांझ के समर्थन में लिखा फेसबुक पोस्ट (जो हटाया गया, पर मैंने डिलीट नहीं किया) एक सफाई माना जा रहा है — तो ठीक है. लेकिन मुझे कुछ भी साबित करने की ज़रूरत नहीं. मैंने जो कहा, सोच-समझकर कहा और मैं उसके साथ खड़ा हूं. बॉलीवुड से समर्थन नहीं मिला? मुझे उम्मीद भी नहीं थी. या तो उन्हें बहुत कुछ खोने का डर है या वे सहमत नहीं.
एक ट्रोल ने मुझे लिखा: “पाकिस्तान नहीं अब कब्रिस्तान.” तो मेरा जवाब है, जिगर मुरादाबादी की ये पंक्तियाँ - “मुझे दे न ग़ैज़ में धमकियाँ, गिरें लाख बार ये बिजलीयाँ,/मेरी सल्तनत यही आशियाँ, मेरी मिल्कियत यही चार पर.”
भारत, अपनी कमियां ठीक करने के बाद करे ओलंपिक की मेज़बानी की उम्मीद : आईओसी
मोदी सरकार की अहमदाबाद में 2036 ओलंपिक की मेज़बानी की उम्मीदों को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने एक सख्त संदेश के साथ झटका दिया है. 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने रिपोर्ट किया है कि 1 जुलाई को इस महत्वाकांक्षी प्रस्ताव को पेश करने के लिए स्विट्ज़रलैंड गए भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व गुजरात के गृह और खेल मंत्री हर्ष संघवी और भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष, पूर्व एथलीट पी.टी. उषा ने किया था. इस प्रतिनिधिमंडल में गुजरात और केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारी, साथ ही निजी सलाहकार और कॉर्पोरेट कार्यकारी भी शामिल थे. आईओसी ने भारत से कहा कि वह पहले भारतीय ओलंपिक संघ में गवर्नेंस से जुड़े मुद्दे, डोपिंग की गंभीर समस्या और ओलंपिक खेलों में भारत के खराब प्रदर्शन जैसे अपने आंतरिक मसले सुलझाए. एक अधिकारी ने “एक्सप्रेस” को बताया, “बहुत स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया गया है कि भारत भविष्य में ओलंपिक की मेज़बानी की अपनी तैयारी जारी रख सकता है, लेकिन पहले उसे इन मुद्दों का समाधान करना होगा."
एशिया कप के लिए पाकिस्तानी हॉकी टीम भारत आएगी, वीज़ा की प्रक्रिया शुरू
भारत सरकार ने पाकिस्तान हॉकी टीम को बिहार के राजगीर में होने वाले आगामी एशिया कप टूर्नामेंट और तमिलनाडु के मदुरै में एफआईएच पुरुष जूनियर वर्ल्ड कप में भाग लेने की अनुमति दे दी है. “टाइम्स ऑफ इंडिया” के अनुसार यह मंजूरी विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय से आई है और पाकिस्तान हॉकी खिलाड़ियों के वीज़ा की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. इसकी सूचना मेज़बान संघ हॉकी इंडिया को भी दे दी गई है.
यह फैसला भारतीय सरकार के खेल और राजनीति को अलग रखने के प्रयासों का हिस्सा है, साथ ही ओलंपिक चार्टर के नियमों का पालन करने के लिए भी है, जो विभिन्न राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले देशों के बीच समावेशिता और सद्भावना की बात करता है.
अगर भारत ने पाकिस्तान टीम की इन दोनों हॉकी प्रतियोगिताओं में भागीदारी की अनुमति नहीं दी होती, तो उसे अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के प्रतिबंध का सामना करना पड़ता. इस फैसले का मतलब यह भी है कि पाकिस्तान के खिलाड़ी भविष्य में अन्य अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के लिए भी भारत आ सकेंगे, और इसी तरह भारतीय टीमें भी तटस्थ स्थानों पर पाकिस्तान के खिलाफ खेल सकेंगी.
भारत को 244 रनों की बढ़त, सिराज और दीप ने निचले क्रम को तहस नहस किया
भारत-इंग्लैंड एजबेस्टन टेस्ट : तीसरा दिन : मोहम्मद सिराज और आकाश दीप ने इंग्लैंड की निचले क्रम की बल्लेबाजी को तहस-नहस कर दिया, खासकर जब आकाश दीप ने हैरी ब्रूक और जेमी स्मिथ की 303 रन की साझेदारी को तोड़ा. भारत ने जैसे ही दूसरी नई गेंद ली, दोनों गेंदबाजों ने विकेट झटके. दीप ने चार और सिराज ने छह विकेट लिए, जिससे इंग्लैंड 407 रन पर ऑलआउट हो गया और भारत को 180 रन की बढ़त मिली. दिन के अंत तक केएल राहुल और यशस्वी जायसवाल ने 50 रन की तेज़ ओपनिंग साझेदारी की, जिससे बढ़त 244 तक पहुंच गई. जायसवाल के आउट होने के बाद राहुल और करुण नायर ने भारत को स्टंप्स तक पहुंचाया.
दिन के मुख्य क्षण
सिराज का छक्का : सिराज ने एक ही पारी में छह विकेट लिए, जिसमें पांच बल्लेबाज शून्य पर आउट हुए.
जायसवाल का विवादित आउट : डीआरएस के लिए समय पर अपील को लेकर विवाद हुआ, लेकिन अंपायर ने समीक्षा की अनुमति दी. जायसवाल आउट करार दिए गए.
टिमथी स्नाइडर: ट्रम्प जर्मनी और सोवियत रूस की तरह गुलाम मजदूरों के यातना शिविर बनाने का रखते हैं इरादा
इस लेख के जरिए फासिज्म के विशेषज्ञ स्नाइडर ने डोनल्ड ट्रम्प के नये बिल पर अपने सब्स्टैक पेज थिंकिंग अलाउड में चेतावनी देते है.
ट्रम्प के मृत्यु विधेयक के पारित होने के साथ, हम कई बड़े नुक़सानों की आशंका का सामना कर रहे हैं, जिसमें अमेरिका भर में कंसन्ट्रेशन कैंप्स का द्वीप समूह भी शामिल है.
कंसंट्रेशन कैम्प्स दरअसल गुलाम मजदूर पाने की जगह है. कई अन्य उद्देश्यों के अलावा, सोवियतों ने यातना शिविर श्रम का उपयोग नहरें बनाने और खानों में काम करने के लिए किया. नाज़ी जर्मन यातना शिविर प्रणाली ने उसी तर्क के पूंजीवादी संस्करण का पालन किया: इसने व्यवसायों को सस्ते श्रम की संभावना के साथ आकर्षित किया.
हम यह जानते हैं और इस पर हाथ पर हाथ रखकर बैठने का हमारे पास कोई बहाना नहीं है.
अमेरिका में आगे क्या होगा? जिन श्रमिकों को "बिना कागज़ों का" बताया गया है, उन्हें शिविरों में ले जाया जाएगा. शायद वे स्वयं शिविरों में काम करेंगे, सरकारी परियोजनाओं के गुलाम के रूप में. लेकिन अधिक संभावना है कि वे अमेरिकी कंपनियों को विशेष शर्तों पर दिये जाएंगे: उदाहरण के लिए, सरकार को एक बार का भुगतान, मज़दूरी या लाभों की आवश्यकता नहीं. सबसे सरल संस्करण में, और शायद सबसे संभावित, हिरासत में लिए गए लोगों को उन कंपनियों को वापस पेश किया जाएगा जिनके लिए वे अभी काम कर रहे थे. यातना शिविर में उनके रहने को एक सफ़ाई या वैधीकरण के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा जिसके लिए कंपनियों को आभारी होना चाहिए. ट्रम्प ने पहले ही कहा है कि यही विचार है, इसे "मालिक की ज़िम्मेदारी" कहते हुए.
हमें याद रखना चाहिए कि आईजी फैरबन को आउशविट्ज़ में क्या लेकर आया: मुनाफे की चाह. लेकिन निश्चित रूप से अमेरिकी इतिहास में चरम शोषण के पूर्व उदाहरण हैं, जिनमें चल संपत्ति गुलामी का इतिहास भी शामिल है, लेकिन इसी तक सीमित नहीं है. और गुलामी संयुक्त राज्य अमेरिका में पूर्णतः अवैध नहीं है. तेरहवां संशोधन गुलामी की अनुमति देता है यदि केवल अपराध की सज़ा के रूप में. जिन लोगों को "बिना कागजों का" या "नागरिकता रद्द" (और अन्य श्रेणियों का जो जल्द ही आविष्कार होना निश्चित है) के रूप में वर्णित किया जाता है, उन्हें अपराधी के रूप में चित्रित किया जाता है.
यदि ट्रम्प शासन ऐसे लोगों को बड़े पैमाने पर गुलाम बनाने की कोशिश करता है, तो एक अदालती मामला होगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के सही काम करने का इंतज़ार करना, कोई विकल्प नहीं है. अच्छा तो यह होगा कि किसी भी हालत में गुलामी पर प्रतिबंध लगाने वाला स्पष्ट कानून हो. लेकिन जब तक आंदोलन नहीं होगा, ऐसा कानून असंभव है.
सरकार हमारे सामने बड़े पैमाने पर फ़ासीवादी अमानवीकरण में सहयोग करने का प्रलोभन रख रही है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमें ऐसा करना चाहिए. यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां व्यक्तियों, नागरिक समाज, पेशों और कंपनियों द्वारा की गई कार्रवाइयां निर्णायक हो सकती हैं.
पहली कार्रवाई सरल है. मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को अब, इस गर्मी में, इस महीने, अगले सप्ताह, यातना शिविरों से श्रम का उपयोग नहीं करने की प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर करना चाहिए. यह उतना ही सरल हो सकता है: "अपनी फ़र्म की ओर से मैं वादा करता हूं कि यातना शिविरों से श्रम का उपयोग नहीं करूंगा और न ही ऐसा करने वाली किसी फ़र्म के साथ सहयोग करूंगा."
इसमें टालमटोल को लेकर मैं पहली आपत्ति की कल्पना कर सकता हूं: "यह बहुत जल्दी है." यदि यह अभी नहीं किया गया, तो कुछ अमेरिकी कंपनियां यातना शिविरों से गुलामों का बतौर मजदूर उपयोग करना शुरू कर देंगी, और फिर अन्य दावा करेंगे कि उन्हें भी ऐसा करना चाहिए ताकि प्रतिस्पर्धा या शेयरधारक मूल्य या कुछ और न खो दें. उपयुक्त व्यंजनाएं मिल जाएंगी, और सब कुछ जल्द ही सामान्य लगेगा. लेकिन सब कुछ बदल गया होगा. हम सब फंस चुके होंगे. और हम सब पहले से कही ज्यादा कमज़ोर पड़ चुके होंगे.
दूसरी आपत्ति: "यह राजनीति है." हां, यह है. यातना शिविरों का नेटवर्क बनाना वास्तव में राजनीति है. यह एक राजनीति है, अन्य चीज़ों के अलावा, व्यवसायों को अमानवीकरण को सामान्य बनाकर फ़ासीवादी व्यवस्था में खींचने के लिए डिज़ाइन की गई है. यह एक राजनीति है जो लोगों के और भी व्यापक समूहों को कानूनी सुरक्षा से बाहर करने के लिए प्रोत्साहन बनाती है, इस तर्क पर कि यह आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है. यदि अतीत से कोई सीख नहीं है, यदि कोई सिद्धांत का बयान नहीं है, तो सस्ता श्रम कंपनियों और उनके शेयरधारकों, और वास्तव में उनके उपभोक्ताओं को भ्रष्ट कर देगा.
जबकि मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को पहले और स्पष्ट स्पष्टता के साथ कार्य करना चाहिए, हम सब फंसे हैं. अमेरिकी जो खरीदारी करते हैं, जिसका मतलब है हममें से अधिकांश, को उन कंपनियों से बचना चाहिए जो शिविरों से श्रम का उपयोग करती हैं. अमेरिकी जो निवेश करते हैं, उन्हें उन कंपनियों में निवेश नहीं करना चाहिए जो यातना शिविरों से श्रम का उपयोग करती हैं. और, मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की तरह, वे सार्वजनिक कार्रवाई कर सकते हैं. वे यातना शिविर श्रम का उपयोग करने वाली कंपनियों में निवेश नहीं करने की प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर कर सकते हैं.
किसी भी पहल की तरह, यह आगे भी जा सकती है. अन्य देशों में भी यातना शिविर हैं, और हमें उन कंपनियों से भी नहीं खरीदना चाहिए जो उनसे लाभ उठाती हैं. मौजूदा अमेरिकी जेलों में अभी भी मज़बूर श्रम है, और यह गलत है. लेकिन अभी हम एक बड़े बदलाव का सामना कर रहे हैं कि हमारा देश कैसे काम करेगा. यदि हम जवाब दे पाएंगे तो, तो हम यहां जीत हासिल कर सकते हैं जिससे और अधिक लोगों के लिए स्वतंत्रता को बढ़ा सकें.
इन नीतियों को उनके वास्तविक नाम से पुकारा जाना चाहिए. और उनके वास्तविक स्वरूप के लिए विरोध किया जाना चाहिए. लेकिन नामकरण और विरोध के अलावा, हमें इस बात की जानकारी का उपयोग करना चाहिए कि कैसे लोगों और कंपनियों को लाभ और मौन के जरिए डर की नॉरमल्सी में खींच लाता है.
सिर्फ़ एक याचिका पर हस्ताक्षर करना अमेरिकी यातना शिविरों के लिए भारी धन के लिए असंगत रूप से छोटी प्रतिक्रिया लग सकती है. लेकिन यह अभी के छोटे विकल्प हैं जो बाद में कार्रवाई के व्यापक, उज्जवल क्षेत्र को खोलते हैं. यदि हम इन अवसरों को चूक जाते हैं, तो वह क्षेत्र बंद हो जाता है और अंधकारमय हो जाता है.
हमास जल्द मान सकता है ग़ाज़ा युद्धविराम प्रस्ताव, मांगी स्थायी युद्धविराम की गारंटी
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि हमास ग़ाज़ा में युद्धविराम के एक नए प्रस्ताव को स्वीकार करने के क़रीब है, लेकिन उसकी मांग है कि यह केवल अस्थायी ठहराव न हो बल्कि एक स्थायी युद्धविराम हो. हमास ने शुक्रवार को एक बयान जारी कर कहा कि वह इज़रायल द्वारा पहले ही स्वीकार किए गए युद्धविराम प्रस्ताव पर अन्य फिलिस्तीनी गुटों से चर्चा कर रहा है. बीते दिनों में इज़रायल ने ग़ाज़ा पर तेज़ हमले किए हैं. स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, 300 से ज़्यादा फिलिस्तीनी मारे गए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. इस युद्ध के चलते पिछले 20 महीने में कुल 57,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
चीन की नई ऑटो कंपनियों ने जनरल मोटर्स, फोक्सवैगन और टेस्ला को कैसे पीछे छोड़ा!
'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि चीन की ऑटोमोबाइल कंपनियां, जैसे बीवायडी और चेरी, ने अपनी तेजी और लचीलापन से वैश्विक ऑटो बाजार में तहलका मचा दिया है. ये कंपनियां नई कारों को विकसित करने में विदेशी प्रतिद्वंद्वियों से आधे से भी कम समय लेती हैं, जिससे वे दुनिया के सबसे बड़े ऑटो बाजार चीन में हावी हो गई हैं और अब वैश्विक स्तर पर विस्तार कर रही हैं.
पिछले साल अक्टूबर में, चेरी ने अपने ओमोडा 5 एसयूवी को यूरोप के लिए तैयार करने के लिए इंजीनियरों और सप्लायर्स को शेडोंग प्रांत के झाओयुआन में इकट्ठा किया. यूरोप की उबड़-खाबड़ सड़कों के लिए इस कार में सस्पेंशन और स्टीयरिंग में बदलाव जरूरी थे. केवल छह हफ्तों में, चेरी ने नई स्टीयरिंग, ब्रेक, टायर और अन्य सुधारों के साथ कार को यूरोप के डीलरों तक पहुंचा दिया. चेरी के वरिष्ठ इंजीनियर रिकार्डो टोनेली ने कहा कि पश्चिमी कंपनियों के लिए इतनी तेजी से काम करना "असंभव" है.
कैसे चीन की कंपनियां आगे निकलीं :
तेज विकास प्रक्रिया: चीनी कंपनियां नई कारों को डिजाइन और लॉन्च करने में केवल 18 महीने लेती हैं, जबकि विदेशी कंपनियों को 5 साल तक लग जाते हैं.
कार्यबल और कम लागत: बीवायडी के पास 9 लाख कर्मचारी हैं, जो टोयोटा और वोक्सवैगन के कुल कर्मचारियों के बराबर है. ये कर्मचारी लंबे समय तक (हफ्ते में 6 दिन, 12 घंटे) काम करते हैं.
खुद के पार्ट्स: बीवायडी अपनी कारों के 75% हिस्से खुद बनाती है, जिससे लागत और समय दोनों बचते हैं.
AI और डिजिटल टेक्नोलॉजी: चीनी कंपनियां AI और डिजिटल सिमुलेशन का ज्यादा इस्तेमाल करती हैं, जिससे प्रोटोटाइप और रियल-वर्ल्ड टेस्टिंग की जरूरत कम हो जाती है.
लचीला दृष्टिकोण: ये कंपनियां डिजाइन में आखिरी समय तक बदलाव करने को तैयार रहती हैं, जो विदेशी कंपनियां आमतौर पर नहीं करतीं.
बीवायडी का दबदबा
चीन की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी बीवायडी ने 2024 में 37 लाख से ज्यादा कारें बेचीं, जो 2020 की तुलना में 9 गुना ज्यादा है. कंपनी ने 200,000 नए कर्मचारी केवल तीन महीनों में भर्ती किए. बीवायडी न केवल इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बल्कि हाइब्रिड और गैसोलीन कारें भी बनाती है, जिससे यह टेस्ला से ज्यादा विविध मॉडल पेश करती है. टेस्ला के पास केवल 5 मॉडल हैं, जबकि BYD ने 2020 से अब तक 40 से ज्यादा नए मॉडल और 139 अपडेटेड मॉडल लॉन्च किए.
चेरी की वैश्विक रणनीति
चीन की सबसे बड़ी ऑटो निर्यातक कंपनी चेरी ने पिछले साल 100 से ज्यादा देशों में 11.4 लाख कारें बेचीं. यह कंपनी इलेक्ट्रिक, हाइब्रिड और गैसोलीन कारें बनाती है, जिससे यह यूरोप जैसे बाजारों में मजबूत स्थिति में है. चेरी ने स्पेन में एक फैक्ट्री शुरू की है और यूरोप में और कारखाने खोलने की योजना बना रही है.
विदेशी कंपनियों की चुनौती
वोक्सवैगन, टोयोटा, जनरल मोटर्स जैसी विदेशी कंपनियों की बिक्री चीन में 2020 से 2024 तक 94 लाख से घटकर 64 लाख हो गई. टेस्ला की बिक्री भी पुराने मॉडलों और CEO एलन मस्क के विवादित बयानों के कारण घटी. कई विदेशी कंपनियां अब चीनी कंपनियों, जैसे Xpeng, के साथ साझेदारी कर रही हैं ताकि उनकी तेजी सीख सकें.
चीन की रणनीति
चीनी कंपनियां सिलिकॉन वैली की तरह "फेल-फास्ट" दृष्टिकोण अपनाती हैं. वे जल्दी-जल्दी कारें लॉन्च करती हैं और ग्राहकों की प्रतिक्रिया के आधार पर अपडेट करती रहती हैं. उनकी कारें यूरो NCAP जैसे सेफ्टी टेस्ट में 5-स्टार रेटिंग पाती हैं, जिससे उनकी गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठते. चीन की ऑटो कंपनियां अब वैश्विक बाजारों में विस्तार कर रही हैं, लेकिन अमेरिका जैसे बाजारों में टैरिफ और व्यापार प्रतिबंध चुनौतियां हैं. फिर भी, उनकी कम कीमत और तेजी से नए मॉडल लॉन्च करने की क्षमता उन्हें वैश्विक स्तर पर मजबूत बनाती है.
रूस बना तालिबान शासन को मान्यता देने वाला पहला देश
'बीबीसी' की रिपोर्ट है कि रूस दुनिया का पहला देश बन गया है, जिसने अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता दे दी है. रिपोर्ट के अनुसार, इस निर्णय के साथ ही दोनों देशों के बीच "ऊर्जा, परिवहन, कृषि और बुनियादी ढांचे" के क्षेत्र में व्यापार और सहयोग की संभावनाएं खुल गई हैं. यह मान्यता उस बढ़ती कूटनीतिक निकटता का परिणाम है, जो हाल के वर्षों में रूस और तालिबान के बीच विकसित हुई है. रूस अकेला देश नहीं है जिसने तालिबान से संवाद बढ़ाया है. भारत ने भी मई में पहली बार मंत्री-स्तरीय बातचीत की, जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से फोन पर बात की. रूस की ओर से मान्यता मिलने पर मुत्ताकी ने इसे एक “यथार्थवादी निर्णय” करार देते हुए कहा कि यह अन्य देशों के लिए “एक अच्छा उदाहरण” स्थापित करेगा.
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