05/08/2025: वाह सिराज! | सच्चा भारतीय कौन? | मिया मुस्लिमों को अल्टीमेटम | संसद बिहार पर बात करेगी या.. | संघ से करीब होते वीसी को अकाल तख्त.. | दिल्ली पुलिस और बांग्ला आत्म सम्मान | विदा शिबु सोरेन
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
सिराज का कमाल, भारत ने हार के मुंह से जीत छीन ली
भारतीय जमीन पर चीन के कब्ज़े पर सफाई मांगी तो राहुल गांधी के सच्चे भारतीय होने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया
मिया मुसलमानों को 24 घंटे का अल्टीमेटम
“एसआईआर” पर चर्चा कराने के लिए राज़ी नहीं सरकार, संसद में गतिरोध
भागवत को इम्प्रेस करते जीएनडीयू के वीसी को अकाल तख्त के किनारे किया
मोदी को वाजपेयी से कुछ सीखना चाहिए : आर्कबिशप
सभी बांग्ला भाषी लोगों का अपमान
मुनीर और ट्रम्प की करीबियां
"जब तालिबान आया, तो स्कूलों के सारे दरवाज़े बंद हो गए."
झारखंड के निर्माता 'दिशोम गुरु' का निधन
टेस्ट क्रिकेट :
सिराज का कमाल, भारत ने हार के मुंह से जीत छीनी
भारत ने ओवल में खेले गए अंतिम और निर्णायक टेस्ट मैच के पांचवें और आखिरी दिन, हार के मुंह से जीत छीन ली. इंडिया ने इंग्लैंड के बाकी 4 विकेट झटक कर 6 रनों से रोमांचक जीत दर्ज की और एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी को 2-2 से बराबर कर दिया.
"द इंडियन एक्सप्रेस" के अनुसार, जेमी ओवर्टन ने दिन की शुरुआत दो चौकों के साथ की, तो लगने लगा था कि इंग्लैंड आसानी से लक्ष्य हासिल कर लेगा, लेकिन मोहम्मद सिराज ने दिन के दूसरे ही ओवर में जेमी स्मिथ (2 रन) को आउट कर भारत को बड़ी सफलता दिलाई. सिराज ने अपने अगले ही ओवर में ओवर्टन (9 रन) को भी पवेलियन भेजा और इस तरह उन्होंने अपनी 4 विकेट पूरी कीं. यहीं से भारत को फिर से जीत की संभावना नज़र आने लगी. इसके बाद, प्रसिद्ध कृष्णा ने दो ओवर बाद ही जोश टंग की गिल्लियां बिखेर दीं और अब इंग्लैंड की टीम बस एक विकेट दूर थी; जबकि मेज़बानों को जीत के लिए 17 रन और चाहिए थे.
अब बल्लेबाजी करने आए क्रिस वोक्स, जिनका कंधा पहले दिन उतर गया था और हाथ को स्वेटर के अंदर स्लिंग में रख रहे थे. वह बॉल फेस नहीं कर पा रहे थे, लेकिन एटकिनसन ने कुछ देर तक स्ट्राइक को बदलकर मैच को रोचक बनाए रखा. इससे मैदान पर तनाव और बढ़ गया.
आखिरकार, जब इंग्लैंड जीत से सिर्फ 6 रन दूर था, सिराज ने 86वें ओवर की पहली गेंद पर एटकिनसन को ऑफ स्टंप पर फुल टॉस फेंकी. एटकिनसन ने स्वीप की कोशिश की, गेंद चूक गए और गिल्लियां बिखर गईं. मैदान और स्टैंड्स में मौजूद भारतीय खिलाड़ी और फैंस खुशी से झूम उठे. सिराज ने 5/104 की बेमिसाल गेंदबाजी की, जबकि प्रसिद्ध कृष्णा ने 4/126 विकेट हासिल किए.
इस बार तो जय शाह ने भी सिराज की तारीफ़ कर दी
इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) के चेयरमैन जय शाह ने आज ओवल में भारत को मिली ऐतिहासिक जीत के लिए जिन खिलाड़ियों की प्रशंसा की है, उनमें मोहम्मद सिराज का नाम भी शामिल किया है. पिछले माह दूसरे टेस्ट मैच में 336 रन की जीत के बाद उन्होंने सिराज का नाम नहीं लिया था, जबकि उस मैच में भी सिराज ने इंग्लैंड के खिलाफ घातक गेंदबाजी की थी. शाह ने शुभमन गिल, आकाशदीप और ऋषभ पंत की तो तारीफ की थी, पर सिराज का जिक्र भी नहीं किया था. जिसके बाद फैंस भड़क गए थे और जय शाह को जमकर ट्रोल किया गया था. उन्हें याद दिलाया गया था कि सिराज ने पहली पारी में इंग्लैंड की बल्लेबाजी को ध्वस्त करने में निर्णायक भूमिका निभाई थी. बहरहाल, ओवल टेस्ट में इंग्लैंड से मैच छीनने के बाद शाह ने सिराज समेत कुल पांच क्रिकेटरों की प्रशंसा की है.
भारतीय जमीन पर चीन के कब्ज़े पर सफाई मांगी तो राहुल गांधी के सच्चे भारतीय होने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 4 अगस्त, 2025 को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के ख़िलाफ़ एक आपराधिक मानहानि मामले में कार्यवाही पर रोक लगा दी. यह मामला उनकी 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान भारत-चीन सीमा पर झड़पों के संबंध में मीडिया को दिए गए बयानों से संबंधित है, जिसमें उन्होंने भारतीय क्षेत्र पर चीनी क़ब्ज़े का आरोप लगाया था. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने सुनवाई के दौरान राहुल गांधी की टिप्पणी पर सख़्त नाराज़गी जताई. न्यायमूर्ति दत्ता ने सवाल किया, "आपको कैसे पता चला कि 2,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया गया था. क्या आप वहां थे. क्या आपके पास कोई विश्वसनीय सबूत है. अगर आप एक सच्चे भारतीय हैं, तो आप यह सब बातें नहीं कहेंगे."
संसद में बोलते, सोशल मीडिया में क्यों गये?
जस्टिस दत्ता ने यह भी पूछा कि राहुल गांधी को सोशल मीडिया पर इस तरह के विचार रखने की मजबूरी क्यों थी, और कहा कि उन्हें ये सवाल संसद में उठाने चाहिए थे. जस्टिस दत्ता ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि एक जिम्मेदार विपक्ष के नेता को इस तरह की बातें करनी चाहिए. जो भी कहना है संसद में कहिए. ये मुद्दे संसद के हैं. सोशल मीडिया पोस्ट में क्यों कहते हैं?
जस्टिस दत्ता के ये दोनों बयान चर्चा का विषय बने रहे. न तो असली भारतीय तय करने का काम देश की आला अदालत का है, न ही किसी राजनेता को ये बताना कि वह कौन सी बात कहां बोले और कहां नहीं.
सिंघवी ने तर्क दिया कि उनकी पूरी दलील यह है कि कोई जरूरी नहीं कि जो कहा गया, उससे सहमत हुआ जाए, लेकिन सरकार की नीतियों से असहमति रोकने के लिए मानहानि कानून का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए. राहुल गांधी ने बताया कि उनके विरुद्ध विभिन्न अदालतों में भाषण संबंधी अपराधों में 20 से अधिक मामले लंबित हैं. उन्होंने कहा कि “ये सारी कार्यवाहियां बस कानूनी हथियारबाजी हैं, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग, ताकि विरोधी स्वर को दबाया जा सके और उन्हें मौन कराया जा सके.” राहुल गांधी के वकीलों ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता श्रीवास्तव की पात्रता को गलत तरीके से स्वीकार किया, जबकि वे न तो सेना के कर्मचारी हैं और न ही सीधे तौर पर पीड़ित व्यक्ति.
राहुल गांधी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी ने जवाब दिया कि "एक सच्चा भारतीय यह भी कहेगा कि हमारे भारतीय सैनिकों को पीटा गया." सिंघवी ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल की टिप्पणी सार्वजनिक हित में जानकारी का खुलासा करने के उद्देश्य से थी और मानहानि क़ानून का इस्तेमाल सरकारी नीतियों के प्रति असहमति को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता. उन्होंने दलील दी कि राहुल गांधी के ख़िलाफ़ भाषण से संबंधित 20 से ज़्यादा मामले हैं, जो उन्हें मुक़दमों में फंसाकर चुप कराने की एक कोशिश ("लॉफ़ेयर") है. यह शिकायत सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के एक सेवानिवृत्त अधिकारी उदय शंकर श्रीवास्तव ने अगस्त 2023 में लखनऊ की एक मजिस्ट्रेट अदालत में दायर की थी. लखनऊ की अदालत ने फरवरी 2025 में राहुल गांधी को समन जारी किया था, जिसे रद्द करने की उनकी अपील इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मई 2025 में ख़ारिज कर दी थी. इसके बाद राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.
इस बीच, न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस पार्टी ने चीन के मुद्दे पर मोदी सरकार पर अपना हमला जारी रखा है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि 2020 में गलवान घटना के बाद से हर देशभक्त भारतीय जवाब मांग रहा है, लेकिन मोदी सरकार "इनकार करो, ध्यान भटकाओ, झूठ बोलो और सफ़ाई दो" (DDLJ) की नीति से सच छिपा रही है. उन्होंने प्रधानमंत्री के उस बयान पर भी सवाल उठाया जिसमें उन्होंने कहा था कि "न कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है." सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता श्रीवास्तव को नोटिस जारी कर तीन हफ़्तों में जवाब मांगा है.
असम
मिया मुसलमानों को 24 घंटे का अल्टीमेटम
असम सरकार ने रविवार को नंबोर साउथ रिजर्व फॉरेस्ट, गोलाघाट जिले में रहने वाले लगभग 350 मुस्लिम परिवारों के खिलाफ एक बेदखली अभियान शुरू किया, जिनमें से ज्यादातर बंगाली मूल या मिया मुसलमान हैं. इस बेदखली अभियान के बीच, समाचार आउटलेट्स के वीडियो में असमिया राष्ट्रवादी समूहों को मिया मजदूरों को ऊपरी असम छोड़ने की धमकी देते हुए दिखाया गया है. इन समूहों के सदस्य मिया मुसलमानों को ऊपरी असम के शिवसागर जिले को छोड़ने की चेतावनी देते हुए नजर आए, जहां जातीय असमिया समुदाय बहुमत में हैं.
न्यूज लाइव के एक वीडियो में जातीय संग्रामी सेना के सितु बरुआ को मध्य असम के होजाई जिले के बंगाली मूल के एक मुस्लिम व्यक्ति को चेतावनी देते हुए दिखाया गया था, जिसमें उन्होंने कहा, "चुप रहो, तुम मिया... मियाओं को 24 घंटे के भीतर ऊपरी असम खाली करना होगा." गोलाघाट जिला प्रशासन ने कहा कि रविवार को "गेलाजन और 3 नंबर राजपुखुरी में अतिक्रमित क्षेत्रों को साफ किया गया." प्रशासन ने बताया कि 350 परिवारों को बेदखल किया गया और लगभग 1,000 बीघा वन भूमि वापस हासिल की गई. जिला प्रशासन ने कहा, "बेदखली अभियान शांतिपूर्वक बिना किसी प्रतिरोध के संपन्न हुआ, जो जमीन पर अधिकारियों द्वारा समन्वित योजना और निष्पादन को दर्शाता है." एक जिला अधिकारी ने “स्क्रोल” को बताया कि बेदखल किए गए अधिकांश लोग मिया मुस्लिम थे, जिन्होंने 1980 के दशक की शुरुआत से वन भूमि पर अतिक्रमण किया था. अधिकारी ने कहा कि कुछ ने दावा किया कि वे 1978 में इस वन भूमि पर बसे थे.
बेदखल किए गए लोगों को आश्रय न दें : हिमंता
इस बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने सोमवार को कहा कि जंगलों और सरकारी जमीनों से बेदखल किए गए बंगाली भाषी मुसलमानों को आश्रय नहीं दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "हमारे लोग अब बहुत जागरूक हैं. मुझे नहीं लगता कि हमारे लोग उनके साथ ज्यादा सहयोग करेंगे. मैं चाहता हूं कि वे अपने मूल स्थान पर वापस जाएं, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन हमारे लोग उन्हें आश्रय न दें. अन्यथा स्थिति फिर से खराब हो जाएगी. " उन्होंने कहा, "हमने बेदखली जैसे कदम उठाकर अपनी स्थिति में सुधार किया है."
बिहार
“एसआईआर” पर चर्चा कराने के लिए राज़ी नहीं सरकार, संसद में गतिरोध
चुनाव आयोग के विवादित विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर केंद्र सरकार और विपक्ष के बीच जारी टकराव के कारण संसद के मानसून सत्र का कामकाज सामान्य ढंग से चलने की संभावना दिन पर दिन धुंधली होती दिखाई पड़ रही है. विपक्ष चाहता है कि चुनावी राज्य बिहार में हुईं कथित गड़बड़ियों पर संसद में चर्चा हो, जिससे दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित हो रही है. लेकिन, सरकार चर्चा कराने के लिए तैयार नहीं है.
"द इंडियन एक्सप्रेस" में लिज़ मैथ्यू ने लिखा है कि सिवाय ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले पर विशेष चर्चा के, एसआईआर को लेकर गतिरोध की वजह से संसद की कार्यवाही लगातार बाधित हो रही है. सोमवार को जब राज्यसभा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और शिबू सोरेन के निधन पर शोक संवेदनाएं व्यक्त करने के लिए दिनभर के लिए स्थगित की गई, तो लोकसभा की कार्यवाही विपक्षी सांसदों द्वारा एसआईआर मुद्दे पर जोरदार विरोध के कारण बिना किसी कामकाज के स्थगित हो गई. स्पीकर ओम बिड़ला ने सभी दलों के नेताओं की एक बैठक बुलाकर गतिरोध तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला. विपक्ष के नेताओं ने स्पीकर को बताया कि वे चुनाव आयोग के कामकाज पर चर्चा की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि यह चर्चा चुनाव सुधारों और मतदाता सूचियों पर सामान्य रूप से हो सकती है. लेकिन उन्हें बताया गया कि सरकार इस मुद्दे पर चर्चा करने का कोई इरादा नहीं रखती है. ख़ास बात यह है सत्तारूढ़ दल भाजपा भी 'एसआईआर' विवाद पर चर्चा कराने में उत्सुक नहीं दिख रही है, जबकि एनडीए में उसके कुछ सहयोगी दल इस मामले में चिंतित नज़र आ रहे हैं.
सभी बांग्ला भाषी लोगों का अपमान
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिल्ली पुलिस द्वारा बांग्ला को "बांग्लादेशी भाषा" बताए जाने पर सवाल उठाया है. यह मामला लोधी कॉलोनी पुलिस स्टेशन के एक अधिकारी द्वारा बंगा भवन को लिखे एक कथित पत्र से जुड़ा है, जिसमें अधिकारी ने पहचान दस्तावेज़ों का बांग्ला से हिंदी और अंग्रेज़ी में अनुवाद करने के लिए कहा था. तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने एक्स पर कहा, "यह भारत के सभी बांग्ला भाषी लोगों का अपमान है." उन्होंने कहा, "वे इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं कर सकते जो हम सभी को नीचा दिखाए और अपमानित करे." बनर्जी ने भारत के बांग्ला भाषी नागरिकों का "अपमान और तिरस्कार" करने के लिए "संविधान-विरोधी भाषा" का उपयोग करने के लिए केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ विरोध का आह्वान किया.
भारत ने अमेरिका से कच्चा तेल खरीदा, उधर रूस से सप्लाई जारी
देश की शीर्ष रिफाइनर, इंडियन ऑयल कॉर्प (आईओसी) ने सितंबर में डिलीवरी के लिए अमेरिका, कनाडा और मध्य पूर्व से 70 लाख बैरल कच्चा तेल खरीदा है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कई व्यापारिक सूत्रों का हवाला देते हुए यह ख़बर दी है. रॉयटर्स के अनुसार, आईओसी की यह ख़रीददारी ऐसे समय में हुई है जब अमेरिकी कच्चे तेल के लिए एशिया का आर्बिट्रेज विंडो खुला है और भारतीय सरकारी रिफाइनरियों ने रूसी कच्चे तेल पर छूट कम होने के कारण उसकी ख़रीद रोक दी है. इस बीच, भारत सरकार के सूत्रों ने द न्यूयॉर्क टाइम्स को शनिवार को बताया कि नई दिल्ली अमेरिकी धमकियों के बावजूद मॉस्को से तेल खरीदना जारी रखेगा. भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि रूस के साथ उसके संबंध "स्थिर और समय की कसौटी पर खरे" हैं और इसे किसी तीसरे देश के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए. लेकिन द फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रम्प के टैरिफ़ संबंधी आरोपों और रूसी तेल को लेकर अमेरिका-भारत संबंधों में तनाव है.
राष्ट्रपति ट्रम्प भले ही रूस के साथ घनिष्ठ संबंधों और रूसी तेल की खरीद के लिए भारत की आलोचना कर चुके हैं, लेकिन इससे अपने पुराने दोस्त के प्रति भारत के दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं आया है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल दोनों रूस की यात्रा की योजना बना रहे हैं. डोभाल अपने समकक्ष के साथ रक्षा उद्योग सहयोग के विस्तार पर चर्चा कर सकते हैं, जबकि जयशंकर अपने समकक्ष सर्गेई लावरोफ़ के साथ रूस को भारतीय निर्यात बढ़ाने और संसाधन संपन्न आर्कटिक क्षेत्र में सहयोग पर चर्चा करेंगे. रिपोर्टों के अनुसार, भारत इस साल भारत-रूस शिखर सम्मेलन की मेज़बानी भी करेगा, जिससे व्लादिमीर पुतिन 2021 के बाद पहली बार भारत की यात्रा कर सकेंगे.
मोदी प्रेमी प्रवासी भारतीयों की चुप्पी :
संजय बारू याद दिलाते हैं कि कैसे मोदी-प्रेमी प्रवासी भारतीय उस समय चुप हैं जब ट्रम्प भारत को निशाना बना रहे हैं. उन्होंने कहा, "हिंदू अमेरिकन फ़ाउंडेशन ने पहलगाम आतंकी हमले पर कई पोस्ट किए हैं, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर या राष्ट्रपति ट्रम्प के ट्वीट्स पर अभी तक कोई पोस्ट नहीं किया है."
ये रिश्ता क्या कहलाता है?
"हाउडी मोदी" और "नमस्ते ट्रम्प" के भव्य मंचों से लेकर "टैरिफ किंग" के तानों और कश्मीर पर मध्यस्थता के दावों तक, ट्रम्प और मोदी की दोस्ती ने एक पूरा चक्र देख लिया है. एक समय था जब उनकी पर्सनल केमिस्ट्री की मिसालें दी जाती थीं, और आज कूटनीति की कड़वाहट सामने है. इस विशेष रिपोर्ट में हम पड़ताल कर रहे हैं: कैसे "अबकी बार, ट्रम्प सरकार" का नारा भारत के लिए ही उल्टा पड़ गया? ट्रम्प और मोदी के बीच क्या समानताएं थीं जिसने इस "ब्रोमांस" को जन्म दिया? ट्रम्प ने 29 बार भारत-पाक जंग रुकवाने का दावा क्यों किया और नोबेल पुरस्कार क्यों मांगा? भारतीय सामान पर 25% टैरिफ और H-1B वीज़ा नियमों ने भारत को कैसे चोट पहुंचाई? जब दुनिया के नेता ट्रम्प का विरोध कर रहे थे, तब भारत चुप क्यों रहा? यह रिपोर्ट सिर्फ दो नेताओं के रिश्ते का विश्लेषण नहीं है, बल्कि इस बात की केस स्टडी है कि कैसे दिखावे की दोस्ती राष्ट्रीय हितों के सामने बिखर जाती है और भारत के लिए इसके क्या सबक हैं.
भागवत को इम्प्रेस करते जीएनडीयू के वीसी को अकाल तख्त के किनारे किया
कांग्रेस विधायक परगट सिंह द्वारा साझा की गई एक वीडियो पंजाब में राजनीतिक विवाद का कारण बन गई है. इस वीडियो में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के उपकुलपति करमजीत सिंह को कोच्चि में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत को अपनी संस्था की कुछ पहलों के बारे में ब्रीफिंग देते हुए दिखाया गया है. एक ओर, पंजाब की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी या मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, वहीं शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार या प्रमुख के सेवा नियम बनाने वाली समिति से उप कुलपति को हटा दिया है.
यह वीडियो कोच्चि में 'ज्ञान सभा – शिक्षा विकसित भारत के लिए' नामक कार्यक्रम का है, जिसमें उप कुलपति करमजीत सिंह ने भागवत को तीन चीजें बताईं- (एक) हमने "भारतीय ज्ञान परंपरा" पर अनिवार्य अनिवार्य प्री-पीएचडी कोर्स शुरू किया है. (दूसरा) हमने एक सिख अध्ययन चेयर स्थापित किया है, जिसका उद्देश्य ऋग्वेद और ‘सर्वे सुखिनो भवन्तु’ के साथ श्री गुरु नानक देव की शिक्षा ‘सरबत दा भला’ के अध्ययन से जुड़ा है. (तीसरा) हमने आईटी से जुड़ा पंजाबी कोर्स शुरू किया है.
बहरहाल, “द वायर” में कुसुम अरोरा के अनुसार, इस घटना के बाद सिख समुदाय में इस बात को लेकर चिंता बढ़ गई कि आरएसएस और भाजपा उनके धार्मिक मामलों में दखल दे रहे हैं. एसजीपीसी के सचिव प्रताप सिंह ने कहा कि करमजीत सिंह की बातों में एक सिख विरोधी विचारधारा झलकती है और सिख समुदाय की आपत्तियों को देखते हुए एसजीपीसी ने करमजीत सिंह की सदस्यता समाप्त कर दी है.
हेट क्राइम
मोदी को वाजपेयी से कुछ सीखना चाहिए : आर्कबिशप
'द वायर' के लिए करण थापर को दिए एक विशेष इंटरव्यू में, बैंगलोर के आर्कबिशप पीटर माचाडो ने छत्तीसगढ़ में दो कैथोलिक ननों की गिरफ्तारी और उन पर लगे आरोपों को लेकर सरकार और पुलिस-प्रशासन पर गंभीर सवाल उठाए हैं. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इस मामले में पुलिस ने पक्षपातपूर्ण, अन्यायपूर्ण और गलत तरीके से कार्रवाई की है. आर्कबिशप ने इस घटना को न सिर्फ ईसाई समुदाय के लिए बल्कि पूरे देश के लिए शर्मनाक बताया. उन्होंने कहा कि दो ननों, सिस्टर प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस, पर मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण जैसे गंभीर आरोप लगाना बेहद दुखद है, खासकर तब जब इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं थी.
आर्कबिशप माचाडो ने मामले का विवरण देते हुए बताया कि बजरंग दल के एक सदस्य, रवि निगम की झूठी शिकायत पर ननों को आठ दिनों तक हिरासत में रखा गया.जिन तीन आदिवासी महिलाओं को आगरा ले जाया जा रहा था, उन्होंने और उनके परिवारों ने स्पष्ट किया कि वे पहले से ही ईसाई थीं और अपनी मर्ज़ी से नौकरी के लिए जा रही थीं. पुलिस ने इन सभी तथ्यों को नजरअंदाज कर दिया. आर्कबिशप ने इस बात पर भी गहरी नाराजगी जताई कि पुलिस की मौजूदगी में दुर्गा वाहिनी की ज्योति शर्मा नामक महिला द्वारा एक आदिवासी युवती को ननों के खिलाफ झूठा बयान देने के लिए पीटा गया, और पुलिस मूकदर्शक बनी रही.
आर्कबिशप ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय द्वारा बिना जांच के ननों को दोषी ठहराने वाले ट्वीट की कड़ी आलोचना की. उन्होंने केंद्र सरकार के रवैये को भी धीमा और निराशाजनक बताते हुए कहा कि सरकार को तुरंत हस्तक्षेप कर ननों के खिलाफ दर्ज झूठे मामले को वापस लेना चाहिए था, न कि सिर्फ जमानत मिलने का इंतजार करना चाहिए था.
इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए आर्कबिशप ने भारत में ईसाइयों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा, "जिस तरह मुसलमानों को लव-जिहाद और अन्य आरोपों में निशाना बनाया जाता है, उसी तरह ईसाइयों को भी धर्मांतरण के झूठे आरोपों में फंसाया जा रहा है. हमारे स्कूल, अस्पताल और सामाजिक सेवा के कार्यों को हमेशा धर्मांतरण से जोड़कर देखा जाता है. यह 'धर्मांतरण का भूत' हमें बहुत परेशान और आहत करता है. हम सरकार से कहते हैं कि अगर जबरन धर्मांतरण का कोई सबूत है तो आप कानून के तहत कार्रवाई करें, लेकिन हमारे अच्छे कामों को बदनाम न करें. कृपया हमें इस धर्मांतरण के भूत से बख्श दें."
अंत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करते हुए आर्कबिशप माचाडो ने कहा कि उन्हें एक राजनेता नहीं, बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी की तरह एक स्टेट्समैन बनना चाहिए. उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री को देश के सभी लोगों को साथ लेकर चलना चाहिए. उन्हें ईसाइयों पर भरोसा करना चाहिए और अल्पसंख्यकों में विश्वास बहाल करने के लिए अधिक उदारता दिखानी चाहिए. हम भी इसी देश के नागरिक हैं और देश की सेवा करना चाहते हैं."
ओडिशा : छात्रा के आत्मदाह मामले में एबीवीपी नेता गिरफ्तार
ओडिशा पुलिस की क्राइम ब्रांच ने बालासोर के फकीर मोहन (स्वायत्त) कॉलेज की 20 वर्षीय छात्रा के आत्मदाह मामले में भाजपा के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के एक नेता सहित दो और लोगों को गिरफ्तार किया है. ये गिरफ्तारियां रविवार रात की गईं. गिरफ्तार किए गए लोगों में ज्योति प्रकाश बिस्वाल, जो कॉलेज का छात्र है और पीड़िता को बचाने के दौरान खुद भी झुलस गया था, और एबीवीपी का राज्य संयुक्त सचिव शुभ्र संबित नायक शामिल हैं. अधिकारियों के मुताबिक, जब छात्रा ने खुद को आग लगाई थी, तब दोनों घटनास्थल पर मौजूद थे.
"द टेलीग्राफ" के मुताबिक, एक वरिष्ठ क्राइम ब्रांच अधिकारी ने बताया, "ज्योति प्रकाश बिस्वाल और शुभ्र संबित नायक को लड़की को आत्मदाह के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है." बिस्वाल, जो इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी पाकर बाहर आया था, उसे उसी के बाद हिरासत में लिया गया. दोनों को रविवार रात बालासोर के सब-डिवीजनल न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसडीजेएम) के सामने पेश किया गया. उनकी जमानत याचिकाएं खारिज की गईं और दोनों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
मुनीर और ट्रम्प की करीबियां
इस बीच, द इकोनॉमिस्ट का कहना है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर पाकिस्तान के राजनीतिक और वैश्विक मामलों पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए ट्रम्प के बहुत क़रीब जा रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, "फील्ड मार्शल की क़िस्मत अमेरिका की नीति में एक बदलाव को दर्शाती है जो भारत, चीन और मध्य पूर्व को प्रभावित करती है. 2011 में अमेरिकी सेना द्वारा ओसामा बिन लादेन को उसके पाकिस्तानी ठिकाने में मारने के बाद पाकिस्तान के साथ अमेरिका के घनिष्ठ संबंध बिगड़ गए थे. फिर एक दशक बाद अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने के बाद अमेरिका ने रुचि खो दी. लेकिन भारत की निराशा के बावजूद, अमेरिका और पाकिस्तान अब व्यापार, आतंकवाद-निरोध और मध्य पूर्वी नीति पर परामर्श पर ध्यान केंद्रित करते हुए संबंधों का पुनर्निर्माण कर रहे हैं. अमेरिका पाकिस्तान को फिर से हथियार भी बेच सकता है (वर्तमान में वह लगभग चार-पांचवां हिस्सा चीन से प्राप्त करता है)."
‘ताकि उनके साथ बलात्कार न हो’ : अहमदाबाद में लगाए गए सार्वजनिक पोस्टरों पर नाराज़गी के बाद पुलिस ने उन्हें पिछले हफ़्ते के अंत में हटा दिया. इन पोस्टरों में से एक पर 'शहर यातायात पुलिस द्वारा प्रायोजित' लिखा था और महिलाओं को रात में पार्टियों या सुनसान जगहों पर न जाने की सलाह दी गई थी, ताकि उनके साथ 'बलात्कार या सामूहिक बलात्कार' न हो. पुलिस ने दावा किया कि इसका उनसे कोई लेना-देना नहीं है. उसने कहा कि एक सतर्कता ग्रुप को यातायात जागरूकता के बारे में पोस्टर बनाने की अनुमति दी गई थी, लेकिन उसने "अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर" आपत्तिजनक पोस्टर बना दिए.
बीरेन सिंह की आवाज और धीमी गति का सीएफएसएल: सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर टेप मामले में हो रही देरी पर कहा कि 'यह अनिश्चित काल तक नहीं चल सकता'. तीन महीने हो गए हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में जातीय हिंसा में पूर्व मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को फंसाने वाले ऑडियो रिकॉर्डिंग की एक नई फ़ोरेंसिक रिपोर्ट का आदेश दिया था. अदालत ने शुरू में केंद्र सरकार की उन्हें केंद्रीय फ़ोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफ़एसएल) द्वारा जांच कराने की याचिका स्वीकार कर ली थी, लेकिन यह रिपोर्ट अभी तक तैयार नहीं है. लाइव लॉ ने बेंच के हवाले से कहा, "सीएफ़एसएल को आवाज़ के विश्लेषण पर एक निश्चित रिपोर्ट देने में कितना समय लगता है... यह अनिश्चित काल तक नहीं चल सकता." मामले में याचिकाकर्ता, कुकी संगठन फ़ॉर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट, ने टेप की फ़ोरेंसिक जांच ट्रुथ लैब से करवाई है, जिसने फैसला दिया कि इसमें आवाज़ और बीरेन सिंह की आवाज़ के बीच '93% मेल' है.
"जब तालिबान आया, तो स्कूलों के सारे दरवाज़े बंद हो गए."
सीएनएन में इसोबेल यंग और मिक क्रेवर रिपोर्ट करते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में लौटने के चार साल बाद, लड़कियों की शिक्षा का परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है. सीएनएन की एक विशेष रिपोर्ट के अनुसार, जहां माध्यमिक स्कूलों और विश्वविद्यालयों के दरवाज़े लड़कियों के लिए बंद हैं, वहीं देश भर में धार्मिक स्कूलों यानी मदरसों की संख्या में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है. शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़, पिछले तीन सालों में 22,972 सरकारी वित्त पोषित मदरसे स्थापित किए गए हैं. ये मदरसे अब 12 साल से ज़्यादा उम्र की लाखों लड़कियों के लिए शिक्षा का एकमात्र सहारा बन गए हैं, लेकिन सवाल यह है कि यहां उन्हें क्या सिखाया जा रहा है. काबुल के बाहरी इलाक़े में स्थित नाजी-ए-बशरा मदरसे की एक छात्रा, जो डॉक्टर बनने का सपना देखती थी, कहती है, "जब तालिबान आया, तो स्कूलों के सारे दरवाज़े बंद हो गए."
इसोबेल युंग और मिक क्रेवर की रिपोर्ट बताती है कि तालिबान सरकार इन मदरसों के पाठ्यक्रम को नियंत्रित करती है. यहां मुख्य रूप से क़ुरान और धार्मिक ग्रंथों की पढ़ाई होती है. निजी मदरसों में कुछ हद तक भाषा और विज्ञान जैसे विषय पढ़ाने की छूट है, लेकिन सरकारी मदरसों में पाठ्यक्रम लगभग पूरी तरह से धार्मिक है. तालिबान ने इतिहास, भूगोल और धार्मिक पाठ्यपुस्तकों में बदलाव किए हैं और लोकतंत्र, मानवाधिकार और महिला अधिकार जैसी अवधारणाओं को पाठ्यक्रम से हटा दिया है. मदरसे के प्रिंसिपल शफीउल्लाह दिलावर तालिबान के समर्थक हैं और कहते हैं कि "यह पाठ्यक्रम समाज में माताओं की भूमिका के लिए बहुत फ़ायदेमंद है, ताकि वे अच्छे बच्चों की परवरिश कर सकें." हालांकि, कई अफ़ग़ान लड़कियां और महिलाएं इसे असली शिक्षा का विकल्प नहीं मानतीं.
इस निराशा के बीच, नरगिस जैसी बहादुर महिलाएं उम्मीद की किरण जगा रही हैं. 23 वर्षीय नरगिस, जो ख़ुद विश्वविद्यालय की छात्रा थीं, अब अपने घर में एक गुप्त स्कूल चलाती हैं. हर सुबह, तालिबान के जागने से पहले, लगभग 45 लड़कियां चुपके से उनके घर गणित, विज्ञान, कंप्यूटिंग और अंग्रेज़ी पढ़ने आती हैं. यह बेहद ख़तरनाक काम है. नरगिस कहती हैं, "हर दिन जब वे मेरे पास आती हैं, तो मुझे बहुत चिंता होती है. यह एक बड़ा जोखिम है." कुछ महीने पहले तालिबान ने उनके ठिकाने पर छापा मारा था और उन्हें एक रात जेल में भी बितानी पड़ी थी. इन गुप्त स्कूलों को पहले यूएसएड जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से मदद मिलती थी, लेकिन सहायता बंद होने से कई कार्यक्रम ठप हो गए हैं. नरगिस सवाल करती हैं, "मेरी माँ कभी शिक्षित नहीं हुईं. अब मुझमें और मेरी माँ में क्या फ़र्क़ है. मेरे पास शिक्षा है, लेकिन हम दोनों घर पर हैं. हम इतनी मेहनत किसलिए कर रहे हैं. किस नौकरी और किस भविष्य के लिए."
ब्रिटेन में पढ़ रहे चीनी छात्रों पर सहपाठियों पर नज़र रखने का दबाव
यूके-चीन ट्रांसपेरेंसी (यूकेसीटी) की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे चीनी छात्रों पर अपने सहपाठियों पर नजर रखने के लिए दबाव बनाया जा रहा है, ताकि चीनी सरकार के लिए संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा को दबाया जा सके. यह रिपोर्ट इंगित करती है कि चीनी छात्रों को राजनीतिक रूप से संवेदनशील विषयों- जैसे कि शिनजियांग क्षेत्र में कथित जातीय सफाया, कोविड-19 की उत्पत्ति, और चीनी तकनीकी कंपनियों के उभरने पर चर्चा को रोकने के लिए अपने सहपाठियों की निगरानी करने को कहा गया है. बीबीसी में नैथन स्टैन्डली की खबर के अनुसार, चीनी अधिकारियों ने विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को भी कुछ विषयों पर चर्चा न करने की चेतावनी दी है. कुछ विश्वविद्यालय इस मुद्दे से निपटने में हिचक रहे हैं, क्योंकि वे चीनी छात्रों की फीस पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं. हालांकि, ब्रिटेन की सरकार और शिक्षा नियामक संस्था 'ऑफिस फॉर स्टूडेंट्स' ने शैक्षणिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा को अहम बताया है. साथ ही इस तरह के दबाव और विदेशी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करने का दावा किया है. हालांकि, चीनी दूतावास ने इस रिपोर्ट को "निराधार" बताया है.
शिबू सोरेन (1944-2025)
झारखंड के निर्माता 'दिशोम गुरु' का निधन
4 अगस्त, 2025 को भारत ने अपने सबसे प्रभावशाली आदिवासी नेताओं में से एक, शिबू सोरेन को खो दिया, जिनका 81 वर्ष की आयु में दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया. वे गुर्दे से संबंधित बीमारियों से लंबी लड़ाई लड़ रहे थे. उन्हें प्यार से 'दिशोम गुरु' या 'गुरुजी' के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ है 'धरती के नेता'. सोरेन भारतीय राजनीति, विशेषकर पूर्वी भारत के आदिवासी हृदय क्षेत्र में एक विशाल व्यक्तित्व थे. उनके निधन से झारखंड और उन आदिवासी समुदायों के लिए एक युग का अंत हो गया है, जिनके लिए उन्होंने जीवन भर अथक संघर्ष किया. एक अलग राज्य के रूप में झारखंड के गठन में उनके योगदान और आदिवासी अधिकारों के लिए उनकी वकालत ने एक स्थायी विरासत छोड़ी है, हालांकि उनका करियर विवादों से भी घिरा रहा, जिसने बहसों को जन्म दिया.
प्रारंभिक जीवन और सक्रियता की चिंगारी : शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी, 1944 को नेमरा गाँव, रामगढ़ ज़िले में हुआ था, जो उस समय बिहार का हिस्सा था और अब झारखंड में है. भारत की अनुसूचित जनजातियों में से एक, संथाल जातीय समूह के सदस्य, सोरेन का प्रारंभिक जीवन एक गहरी त्रासदी से चिह्नित था. 15 साल की उम्र में, उनके पिता, शोबरन सोरेन की 27 नवंबर, 1957 को लुकैयाटांड जंगल में कथित तौर पर साहूकारों द्वारा हत्या कर दी गई थी. इस व्यक्तिगत क्षति ने सोरेन को गहराई से प्रभावित किया और साहूकारों तथा अन्य निहित स्वार्थों द्वारा आदिवासी समुदायों के शोषण के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए उनमें जीवन भर का जुनून जगा दिया. आर्थिक कठिनाइयों के कारण 10वीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर हुए सोरेन ने अपने परिवार का समर्थन करने के लिए लकड़ी के व्यापारी के रूप में काम करना शुरू कर दिया. उनकी माँ ने शिबू और उनके भाई-बहनों की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने गहने बेच दिए, जो विपरीत परिस्थितियों में परिवार के लचीलेपन का प्रमाण है. इन शुरुआती अनुभवों ने सोरेन के वंचितों की वकालत करने के संकल्प को आकार दिया.
झामुमो का जन्म और झारखंड के लिए संघर्ष : 1972 में, 28 साल की उम्र में, सोरेन ने धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में एक सार्वजनिक सभा के दौरान ए.के. रॉय और बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की सह-स्थापना की. झामुमो की स्थापना का प्राथमिक लक्ष्य आदिवासी समुदायों के अधिकारों, विशेषकर उनके भूमि अधिकारों की वकालत करना और एक अलग झारखंड राज्य के निर्माण के लिए दबाव बनाना था. सोरेन ने शुरू में महासचिव के रूप में कार्य किया और बाद में निर्मल महतो के निधन के बाद 1987 में झामुमो के अध्यक्ष बने. इस पद पर वे 38 वर्षों तक रहे, जब तक कि अप्रैल 2025 में उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण उनके बेटे हेमंत सोरेन ने यह पद नहीं संभाल लिया. दशकों के अथक आंदोलन के बाद, सोरेन का सपना 15 नवंबर, 2000 को भारत के 28वें राज्य के रूप में झारखंड के गठन के साथ पूरा हुआ.
राजनीतिक करियर, योगदान और विवाद : शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. वे आठ बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए. उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय कोयला और खान मंत्री के रूप में भी कार्य किया. उनका करियर आदिवासी अधिकारों की वकालत से गहराई से जुड़ा हुआ है. उन्होंने 2006 के वन अधिकार अधिनियम और 2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम जैसे क़ानूनों को पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि, उनका करियर विवादों से अछूता नहीं रहा. उन पर 1975 के चिरूडीह नरसंहार और 1994 में अपने पूर्व निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के मामले में आरोप लगे. 2006 में, सोरेन को झा मामले में दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई, लेकिन 2007 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस सज़ा को पलट दिया.
निजी जीवन और विरासत : शिबू सोरेन के परिवार में उनकी पत्नी रूपी सोरेन, उनके बेटे हेमंत सोरेन (झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री), बसंत सोरेन (विधायक), और बेटी अंजनी सोरेन (झामुमो की ओडिशा इकाई की प्रमुख) हैं. उनके सबसे बड़े बेटे दुर्गा सोरेन का 2009 में निधन हो गया था. सोरेन के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सहित देश भर के नेताओं ने शोक व्यक्त किया. झारखंड विधानसभा और राज्यसभा को उनके सम्मान में स्थगित कर दिया गया. हेमंत सोरेन ने एक भावुक पोस्ट में अपने पिता को झारखंड के आदिवासियों के लिए एक 'सुरक्षात्मक छाया' कहा.
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