05/11/2025: राहुल का भंडाफोड़ | ममदानी की जीत के मायने और अगली चुनौतियों | नीतीश की दिमागी हालत और 90 लाख का फ्लैट | बढ़ता कर्ज | बदतर होती हवा | 6 रुपये का मुआवजा | उड़ नहीं पा रही उड़ान परियोजना
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
राहुल का ‘बम’, अब क्या करें हम?
ब्राज़ीलियन मॉडल, 22 फ़र्ज़ी वोट: लोकतंत्र की खुली लूट!
ममदानी है तो मुमकिन है!
6 रुपये का किसान को मुआवज़ा
नहीं उड़ पा रही ‘उड़ान’, 11 हवाई अड्डे सुनसान!
नीतीश की ‘दिमागी हालत’ पर बहस, बेटे को 91 लाख का ‘गिफ्ट’!
5 मिनट में ‘हिंदू राष्ट्र’?
नेपाल में जेन जी का असर
निधीश त्यागी | राहुल का बम, क्या करें हम?
अब चोरी पकड़ी गई, तो क्या कुछ किया जाना चाहिए? बीस बिंदू
राहुल गांधी ने आज फिर साबित कर दिया कि जिस लोकतंत्र और संविधान की बुनियाद पर भारत खुद को खड़ा समझ रहा है, वह अपनी जगह से खिसक और धसक चुकी है. आप उसका वीडियो और उस पर आ रही ख़बरों से अपने निष्कर्ष खुद निकाल सकते हैं. पर सवाल यह है कि इस भंडाफोड़ के बाद आप और हम, ये देश, इसके राजनेता, इसकी पार्टियां, इसकी सरकार, हमारे संस्थान क्या कर सकते हैं.
एक चीज होती है ग़ैरत. आत्मसम्मान जैसा, पर कुछ उससे ज्यादा. थोड़ी भी ग़ैरत होगी इस देश की सरकार में, प्रधानमंत्री में, गृहमंत्री में, चुनाव आयोग में, सर्वोच्च न्यायालय में, तो राहुल गाँधी की बातों को गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई करेंगे. अगर वह झूठ है, तो राहुल गाँधी को सज़ा के इंतजाम करने चाहिए.
पर अगर वह सच है, तो लोकतंत्र, संविधान, नागरिक अधिकार, मतदान को लेकर सवाल, संशय और सरोकारों को लेकर एक निष्पक्ष और स्वतंत्र समीक्षा करवाने का गूदा दिखाना चाहिए. अगर गूदा है तो. दिखाना चाहिए.
नहीं दिखाते हैं, जिसकी उम्मीद है और अभी तक का रिकॉर्ड भी, तो फिर वह राहुल के ही आरोपों, दलीलों का समर्थन कर रहे हैं, कि वोट चोरी के जरिये, लोकतंत्र की लंपट झपटमारी में वे सब शामिल है. कुछ सीधे. कुछ चुप रह कर.
चुनाव आयुक्तों को इस्तीफ़ा देना चाहिए. नहीं तो उनसे ले लेना चाहिए. वे न सिर्फ फ़्री और फ़ेयर चुनाव करवाने में असमर्थ रहे. बल्कि उन्होंने सरकार और भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में डंडी मारने का खुले आम काम भी किया. पूरे देश को आश्चर्य करना चाहिए कि ज्ञानेश इस कुर्सी पर क्यों बैठा हुआ है.
हरियाणा सरकार को अपने अवैध होने पर शर्म तो नहीं आएगी, पर उसका इंतेजाम किया जाना चाहिए. हरियाणा के लोगों, नेताओं, पार्टियों, संगठनों को इस इंतेजाम के लिए आगे आना चाहिए. शांतिपूर्ण तरीकों से चाहे वह सड़क पर हो, विधानसभा में हो, अदालतों में हो. नसीब को बदलना चाहिए. मुख्यमंत्री हो या हरियाणा.
नरेन्द्र मोदी को इस पर भी मन की बात कहनी चाहिए. देश को उनसे इस फरमाइशी प्रोग्राम के लिए अपनी रिक्वेस्ट भेजनी चाहिए.
अपनी कुर्सियों में धँसे हुए सुप्रीम कोर्ट और दूसरी अदालतों के जजों को अपने धूल खाते संविधान और दूसरी क़ानूनी किताबों को झाड़ पोंछ कर अपने रिटायरमेंट पोस्टिंग और बेनेफिट सोचने की बजाय आईनों में खुद से निगाह मिलाने की कोशिश करनी चाहिए ये तय करने के लिए कि वे किस तरफ हैं. संविधान, नागरिक, मतदाता, लोकतंत्र की तरफ़ या फिक्स्ड मैच के मिलावटी रेफ़री की तरह भ्रष्ट सरकार की तरफ.
वकीलों को इस देश की विकलांग अदालतों में याचिकाओं के ढेर लगाने चाहिए, ताकि अदालतें इस मुल्क की सच्चाई से मुँह चुराना भी चाहें, तो कोई कोना न मिले.
कांग्रेस पार्टी को वैसे ही वापस गांधी की तरफ जाना चाहिए, जैसा वह आज़ादी के पहले गई थी. उन्हीं तरीकों के साथ, जैसा महात्मा ने अपनाए थे. सत्याग्रह का इससे ज्यादा मुफ़ीद और जरूरी मौक़ा और कौन सा हो सकता है?
अगर अब भी वह खुद को आंदोलन में नहीं बदल पाती है, तो हमें समझना पड़ेगा कि भारत अपनी नियति में ग़ुलामी के कैंसर से तो मुक्त हुआ, पर जो कैंसर लोकतंत्र और संविधान को आज़ाद भारत में इस सरकार, सत्तारूढ़ पार्टी और उसके संघी गुरूओं ने लगाया है, वह लाइलाज है, जो देश को ख़त्म कर देगा, कम से कम उस तरह से जैसा हम जानते समझते थे.
संघ और भारतीय जनता पार्टी के लोगों को भी समझना होगा कि वे इस लूट पर आखिर कब तक चुप रहना और सच के बगल से निकलना चाहते हैं. क्या मोदी भारत से बड़ा है? क्या सत्ता के लिए चाल, चरित्र, चोला सिर्फ इस बदचलनी के लिए बचा कर रखा था?
वे सारे नौकरशाह जो इस प्रक्रिया में शामिल रहे, क्योंकि इतनी बड़ी डकैती न अकेले केंचुआ के बस की है, न मोदी सरकार की, उन्हें ये सोचना चाहिए कि किस किताब की शपथ लेकर, किस देश के लिए प्रतिबद्धता जताकर वे इस जुर्म में शरीक हुए हैं. और ये कॉन्फीडेंस उनमें कहां से और कैसे आया कि उनकी चोरियां पकड़ी नहीं जाएँगी.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संविधान के साथ इस खुले आम, दिन दहाड़े हो रही नंगई और गुंडई का संज्ञान लेते हुए बजाय आलतू फालतू बातों पर प्रेस विज्ञप्तियां जारी करवाने के ये तलाशना चाहिए कि लोकतंत्र का चीरहरण करती सरकार, उसके संवैधानिक संस्थान, सत्तारूढ़ पार्टी की आपराधिक संलिप्तता पर कैसे लगाम कसी जाएगी.
मोहन भागवत के पास संघ के सौवें साल एक बेहतरीन मौका है कि वे भारत माता, उसकी अखंडता, एकता के लिए बजाय पंचगव्य के अब ऐसा कुछ कहें, करें जिससे लोग कह सकें कि संघ बेगैरत संस्थान नहीं है. आख़िर हर साधु का अतीत होता है, हर शैतान का भविष्य. ये साबित करने की शुभ घड़ी और क्या हो सकती है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सचमुच इस मुल्क से प्यार करता है, भारत माता का सम्मान करता है, और उसके लिए कोई भी त्याग, समर्पण और बलिदान कर सकता है. सिर्फ़ डॉक्टर भागवत ही क्यों यह बात तो हर स्वयंसेवक के लिए लागू होती है.
वे सारे लोग जो दीन और धर्म की बात करते हैं. जो धर्माचार्य हैं, मठाधीश हैं, जो खुद को ईश्वर और जनता के बीच का पुल समझते हैं, नैतिकता के ठेकेदार बनते हैं, उन सबका वक्त आ गया है. कि साफ़ करें कि ईश्वर उनसे क्या कह रहा है? कहने को. करने को.
विपक्षी दलों को लामबंद होना चाहिए क्योंकि उनका भी नंबर आएगा. आ रहा है. आ चुका है. वे चुन सकते है कि किस तरह उनको इसका सामना करना है. अकेले, अलग रह कर, चुप रह कर, बगल से निकल कर या फिर देश की आत्मा को बचाने के लिए सच का सामना कर.
ये बात भारतीय जनता पार्टी के एनडीए के घटक दलों पर और भी ज्यादा लागू होती है. जब इतिहास उनसे पूछेगा कि तुम क्या कर रहे थे, जब मुमकिन मोदी भारत के लोकतंत्र का चीर हरण कर रहे थे? ये जवाब कितना शर्मनाक होगा कि हम बग़ल में खड़े होकर चीयरलीडरों की तरह फुंदने हिलाते हुए जयजयकार कर रहे थे. नायडू और नीतीश, उनकी पार्टी के लोग, उनके समर्थकों के लिए ये सवाल लाजिमी है.
बॉलीवुड के सितारों और क्रिकेट के खिलाड़ियों को भी सरकारी फरमाइश पर भौंडे नाच, घटिया ट्वीट और सोशल मीडिया करने से अब मना करना चाहिए. उनके साथ उन सारे लोगों को भी जो संस्कृति, साहित्य से जुड़े लोग हों. जैसे आज की शाम से ही बड़े मीडिया के प्राइम टाइम ज़मूरों को राहुल गाँधी के अकाट्य तथ्यों से मुँह चुराना बंद करना चाहिए.
इस देश के लोगों को हर मुमकिन प्लेटफ़ॉर्म तलाशने चाहिए, जहां उनके मताधिकार के साथ हो रहे दमन, हनन के ख़िलाफ़ वे आवाज उठा सकें. उन्हें सरकार, सत्ता, चुनाव आयोग, भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस को कठघरे में खड़ा करना चाहिए. ये साबित करने के लिए कि ये देश नरेन्द्र मोदी से बहुत ज्यादा बड़ा है. कि यह लोकतंत्र और आज़ादी एक बड़ी विरासत है, जिसके हम सब लाभार्थी हैं. और उससे खिलवाड़ करने की इजाजत किसी को नहीं है. न चुनाव आयोग को. न नरेन्द्र मोदी को.
आज के राहुल गांधी के उस प्रजेंटेशन के बाद कई पत्रकार ये पूछते हुए दिखे कि अब वे क्या करेंगे? टीम राहुल ने ये काम कर दिया कि वोट चोरी हुई है, और उसके चौकीदार चोर हैं. अब ये देश और उनके रहवासियों को तय करना है कि वे इसके साथ क्या करना चाहते हैं.
अगर इनमें से सारे या कुछ या बहुत ये सब नहीं कर सकते, तो समझ लीजिए कि गुलिस्ताँ बरबाद हो चुका है. हमें लोकतंत्र और संविधान दोनों के बाद के भारत को अपनी मजबूर नियति मान लेना चाहिए.
भयानक भंडाफोड़ : वोट चोरी पर राहुल गाँधी ने केंचुआ, मोदी, आरएसएस को निशाने पर लिया
कांग्रेस नेता ने 25 लाख फ़र्ज़ी वोटरों, डुप्लीकेट तस्वीरों और बीजेपी नेताओं द्वारा दो राज्यों में वोटिंग के सबूत पेश करते हुए चुनाव आयोग और केंद्र सरकार पर लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाया.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक सनसनीखेज़ प्रेस कॉन्फ़्रेंस में हरियाणा चुनाव को एक निष्पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक ‘सरकार चोरी’ का मामला बताया है. उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस पार्टी हरियाणा चुनाव असल में जीती थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और चुनाव आयोग ने एक केंद्रीकृत साज़िश के तहत नतीजों को बदल दिया.
राहुल गांधी ने आंकड़ों के साथ दावा किया कि हरियाणा के 2 करोड़ वोटरों में से 25 लाख वोटर फ़र्ज़ी थे, यानी हर 8 में से 1 वोटर फ़र्ज़ी था. उन्होंने कहा कि यह हैरान करने वाली बात है कि कांग्रेस पार्टी सिर्फ़ 22,000 वोटों के मामूली अंतर से चुनाव हारी, जबकि वोटर लिस्ट में 25 लाख वोटों की गड़बड़ी थी. गांधी ने याद दिलाया कि सभी प्रमुख एग्ज़िट पोल कांग्रेस को 54 से 62 सीटें देकर उसकी भारी जीत का अनुमान लगा रहे थे. उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री के उस बयान का भी ज़िक्र किया जिसमें उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा था, “हमारे पास सारी व्यवस्थाएं हैं.”
गांधी ने अपनी बातों को साबित करने के लिए कई ठोस उदाहरण पेश किए:
ब्राज़ीलियन मॉडल: सबसे चौंकाने वाला उदाहरण एक ब्राज़ीलियन मॉडल की तस्वीर का था, जिसका इस्तेमाल हरियाणा की वोटर लिस्ट में 10 अलग-अलग बूथों पर 22 बार अलग-अलग नामों से किया गया. उन्होंने इसे एक सेंट्रलाइज़्ड ऑपरेशन का सबसे बड़ा सबूत बताया.
एक तस्वीर, सैकड़ों वोट: एक महिला की तस्वीर का इस्तेमाल एक विधानसभा में 100 बार और एक अन्य महिला की तस्वीर का दो पोलिंग बूथों पर 223 बार इस्तेमाल किया गया.
डुप्लीकेट वोटिंग: यूपी के बीजेपी सरपंचों जैसे नेताओं को हरियाणा और उत्तर प्रदेश, दोनों राज्यों में वोट डालते हुए दिखाया गया.
बल्क वोटर्स: एक बीजेपी नेता के घर के पते पर 66 वोटर और एक अन्य घर में 501 वोटर दर्ज पाए गए, जो कि असंभव है. चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक़ 10 से ज़्यादा वोटर होने पर फ़िज़िकल वेरिफिकेशन अनिवार्य है, जो नहीं किया गया.
‘हाउस नंबर ज़ीरो’ का झूठ: चुनाव आयुक्त के इस दावे को ख़ारिज किया कि ‘हाउस नंबर ज़ीरो’ बेघर लोगों के लिए है. गांधी ने उदाहरण देकर बताया कि यह तरीक़ा वोटरों को ट्रेस करने से रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
वोटर डिलीट करना: जान-बूझकर कांग्रेस समर्थकों के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए. इसके लिए उन्होंने कुछ पीड़ितों के वीडियो बयान भी दिखाए.
सोची-समझी साज़िश और चुनाव आयोग की भूमिका
राहुल गांधी ने सीधे तौर पर आरोप लगाया कि यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जानकारी में बीजेपी और चुनाव आयोग की मिलीभगत से हो रहा है. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग जान-बूझकर डुप्लीकेट वोटरों को नहीं हटा रहा है क्योंकि वह बीजेपी की मदद कर रहा है.
उन्होंने चेतावनी दी कि यह सिस्टम सिर्फ़ हरियाणा तक सीमित नहीं है, बल्कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में भी इसका इस्तेमाल हो चुका है और अब बिहार में भी यही होने जा रहा है. अंत में, राहुल गांधी ने इसे भारत के लोकतंत्र और संविधान पर हमला बताते हुए देश के युवाओं से लोकतंत्र की रक्षा करने की अपील की.
राहुल गांधी को प्रशांत किशोर का अप्रत्याशित समर्थन, बिहार में केंचुआ भी सवालों के घेरे में
हरियाणा में “वोट-चोरी” के अपने दावों पर आलोचनाओं का सामना कर रहे लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को एक अप्रत्याशित जगह से समर्थन मिला है. जन सुराज के संस्थापक और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा है कि चुनाव आयोग के खिलाफ़ राहुल द्वारा उठाए गए सवाल जायज़ हैं.
द टेलीग्राफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, प्रशांत किशोर ने कहा, “चुनाव प्रक्रिया के बारे में राहुल गांधी जो सवाल उठा रहे हैं, वे जायज़ हैं, और हम इस मांग का समर्थन करते हैं कि चुनाव आयोग को उनका जवाब देना चाहिए.” हालांकि, किशोर ने बिहार के नतीजों के बारे में राहुल की आशंका से सहमति नहीं जताई और कहा कि बिहार में असली मुद्दे पलायन, भ्रष्टाचार और शिक्षा हैं.
राहुल के आरोपों का जवाब देने के लिए भाजपा ने केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, अनुराग ठाकुर और हरियाणा के मंत्री अनिल विज को मैदान में उतारा. रिजिजू ने इसे भारत की छवि को खराब करने की “सुनियोजित साज़िश” बताया, जबकि ठाकुर ने इसे “लोकतंत्र और लोगों का अपमान” कहा.
वहीं, राहुल गांधी को विपक्ष का भरपूर समर्थन मिला. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने सबूतों को “चौंकाने वाला” बताया. टीएमसी की सागरिका घोष, शिवसेना (यूबीटी) की प्रियंका चतुर्वेदी और AAP के सौरभ भारद्वाज ने भी चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए.
यह मामला सिर्फ़ हरियाणा तक ही सीमित नहीं है. द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में भी चुनाव आयोग की मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट में सवालों के घेरे में है. याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) 2025 पर सवाल उठाए हैं. आयोग का दावा है कि यह प्रक्रिया 2003 के “पारदर्शी” पुनरीक्षण पर आधारित है. हालांकि, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) जैसी संस्थाओं ने अदालत में बताया है कि 2003 और 2025 की प्रक्रियाओं में पांच बुनियादी अंतर हैं. 2003 में, नाम दर्ज करने का ज़िम्मा मतदाता पर नहीं, बल्कि बूथ स्तर के अधिकारी पर था; मतदाताओं को कोई फॉर्म नहीं भरना पड़ता था; दस्तावेज़ देना अनिवार्य नहीं था; नागरिकता की जाँच केवल विशेष मामलों में होती थी; और किसी भी नाम को हटाने के लिए एक उचित प्रक्रिया का पालन करना ज़रूरी था. इन सभी बिंदुओं पर 2025 की प्रक्रिया अलग है, जिससे विपक्ष के आरोपों को और बल मिलता है.
नीतीश कुमार की ‘दिमागी हालत’ पर बहस और बेटे को 91 लाख वाले ‘पेंटहाउस’ के तोहफे की भी
बिहार विधानसभा चुनावों से पहले, नीतीश कुमार की मानसिक तीक्ष्णता में आई कथित गिरावट चर्चा का विषय बन गई है. विपक्ष भी इसे लेकर मुख्यमंत्री पर निशाना साध रहा है. लेकिन राज्य के आम लोग इस बारे में क्या सोचते हैं?
“स्क्रॉल” में अनंत गुप्ता ने पाया है कि मुख्यमंत्री के कई समर्थक अभी भी उन्हें एक मौका देने को तैयार हैं और मानते हैं कि वह सत्ता के शीर्ष पर बने रहने में सक्षम हैं. हालांकि, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और भारतीय जनता पार्टी के कुछ समर्थक “कुमार के बने रहने से नाखुश” हैं. फिर भी, जदयू के एक नेता ने गुप्ता से बात करते हुए कहा कि अगर नीतीश कुमार “वास्तव में स्वस्थ होते, तो वह अब तक स्वेच्छा से कुर्सी छोड़ चुके होते.” उनके कुछ समर्थकों ने सुझाव दिया है कि नीतीश को धीरे-धीरे जदयू का नियंत्रण अपने इकलौते बेटे निशांत कुमार को सौंप देना चाहिए.
निशांत की बात करें तो “द वायर” में आशुतोष पांडे और श्रुति शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि केंद्रीय मंत्री और जदयू नेता राजीव रंजन ‘ललन’ सिंह ने पिछले साल की शुरुआत (लोकसभा चुनाव के तीन माह पहले) में मुख्यमंत्री के बेटे को एक ‘पेंटहाउस’ उपहार में दिया था, जिसकी आधिकारिक कीमत 91 लाख रुपये थी, लेकिन शहर के कई बिल्डरों ने अनुमान लगाया कि इसकी कीमत इससे दोगुनी है. आम चुनावों से महीनों पहले हस्ताक्षरित उपहार विलेख (गिफ्ट डीड) में, ललन सिंह ने कहा कि उन्होंने पटना के प्रमुख बेली रोड के पास स्थित यह फ्लैट निशांत को देने का फैसला किया, क्योंकि उन्हें निशांत से “अत्यधिक स्नेह और प्यार” रहा है और वह “ दान दाता के प्रति उनके (निशांत के) रवैये से प्रसन्न” हैं.
भारतीय परिवारों का दोगुनी तेज़ी से बढ़ रहा है कर्ज
“द हिंदू” की एक रिपोर्ट, जिसमें भारतीय रिज़र्व बैंक के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है, में कहा गया है कि महामारी से पहले की अवधि की तुलना में भारतीय परिवारों का कर्ज उनकी वित्तीय परिसंपत्तियों की तुलना में दोगुनी से भी अधिक तेज़ी से बढ़ा है. जहां 2019 और 2025 के बीच हर साल जोड़ी जाने वाली वित्तीय परिसंपत्तियों की मात्रा में 48% की वृद्धि हुई, वहीं इसी अवधि में वार्षिक देनदारियां, या ऋण, 102% तक बढ़ गया. निरपेक्ष रूप से, परिवारों ने 2019-20 में अपनी वित्तीय परिसंपत्तियों में 24.1 लाख करोड़ रुपये जोड़े, जो 2024-25 तक बढ़कर 35.6 लाख करोड़ रुपये हो गया. इसके विपरीत, इसी समय-सीमा में वित्तीय देनदारियां 7.5 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 15.7 लाख करोड़ रुपये हो गईं.
दिल्ली में वायु प्रदूषण बना हुआ है प्रमुख स्वास्थ्य खतरा
नवीनतम ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) डेटा के विश्लेषण के अनुसार, वायु प्रदूषण दिल्ली के निवासियों के लिए प्रमुख स्वास्थ्य खतरा बना हुआ है, जो 2023 में सभी मौतों के लगभग 15% के लिए ज़िम्मेदार है. अध्ययन में कहा गया है, “इसका मतलब है कि दिल्ली में हर सात में से एक मौत प्रदूषित हवा से जुड़ी हुई है. ये आंकड़े जीबीडी 2023 डेटा से लिए गए हैं और हाल ही में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) द्वारा जारी किए गए हैं. अनुमान है कि 2023 में दिल्ली में परिवेशी कण प्रदूषण के संपर्क में आने से लगभग 17,188 मौतें हुईं.
धर्मांतरण के ‘फर्जी’ केस में हाईकोर्ट की टिप्पणी, वाहवाही बटोरने का ज्वलंत उदाहरण
उत्तरप्रदेश के बहराइच में पुलिस ने एक व्यक्ति पर अपहरण और अवैध धर्मांतरण के आरोप में मामला दर्ज किया और उसे जेल भेज दिया. यह कार्रवाई तब हुई जब शिकायतकर्ता की पत्नी अपने घर से अपने जेवर और कुछ नकदी लेकर चली गई. लेकिन जब महिला ने दावा किया कि पुलिस को दिया गया उसका शुरुआती बयान दबाव में था और कोई अवैध धर्मांतरण नहीं हुआ, तो पुलिस ने कोई सुधारात्मक कार्रवाई नहीं की. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में जेल में बंद उस व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए, उसके खिलाफ एफआईआर रद्द कर दी और कहा कि यह मामला राज्य के अधिकारियों द्वारा ‘वाहवाही’ बटोरने के लिए एक-दूसरे से आगे निकलने और हड़बड़ी दिखाने का एक ज्वलंत उदाहरण है. “द इंडियन एक्सप्रेस” में मनीष साहू ने अपनी खबर में विस्तार से रिपोर्ट किया है.
‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने को केंद्र से 5 मिनट का समय मांगा
उत्तरप्रदेश में एक अन्य घटना में, विश्व हिन्दू महासंघ (भारत) नामक एक संगठन, जो कहता है कि वह भारत को “केवल हिन्दुओं के लिए” एक देश बनाने की दिशा में काम करता है, ने मुरादाबाद में एक महायज्ञ आयोजित किया. संगठन की महासचिव तूलिका शर्मा ने इस कार्यक्रम में कहा कि उनके संगठन ने प्रधानमंत्री से “जल्द से जल्द” भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने का अनुरोध किया है और “जो लोग विभाजन के बाद अभी भी यहां रह रहे हैं, उन्हें हिन्दू धर्म अपना लेना चाहिए या जल्द ही देश छोड़ देना चाहिए. इस महिला नेता ने देश को “हिंदू राष्ट्र” में बदलने के लिए केंद्र सरकार से पांच मिनट की खुली छूट मांगी है. “द टेलीग्राफ” में पीयूष श्रीवास्तव की रिपोर्ट है कि शर्मा द्वारा दिए गए इस बयान पर राज्य के अधिकारियों को ‘एक-दूसरे से आगे निकलते और हड़बड़ी दिखाते’ हुए देखना अभी बाकी है.
फसल नुकसान के लिए महाराष्ट्र के किसान को मिले सिर्फ़ 6 रुपये मुआवज़ा
महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर ज़िले के एक किसान ने बुधवार को दावा किया कि भारी बारिश और उसके बाद आई बाढ़ के कारण हुए फसल के नुकसान के लिए उसे सरकार से मुआवज़े के तौर पर महज़ 6 रुपये मिले हैं. किसान, दिगंबर सुधाकर तांगड़े, पैठण तालुका के डावरवाड़ी गांव के निवासी हैं.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, तांगड़े ने पैठण के नंदर गांव में संवाददाताओं से बात की. यह उस समय की बात है जब शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे मराठवाड़ा क्षेत्र के अपने दौरे के हिस्से के रूप में किसानों से बातचीत कर रहे थे.
यह कोई अकेली घटना नहीं है. हाल ही में, राज्य के अकोला ज़िले के कुछ गांवों के किसानों ने दावा किया था कि भारी बारिश के कारण हुए फसल नुकसान के लिए उन्हें एक केंद्रीय बीमा योजना के तहत 3 रुपये और 21 रुपये जैसी छोटी राशि मुआवज़े के रूप में मिली है. किसानों ने इस सहायता को “अपमानजनक” और उनकी दुर्दशा का “मज़ाक” बताया था. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत सहायता पाने वाले इन किसानों ने बाद में ज़िला कलेक्टर कार्यालय में विरोध प्रदर्शन किया और चेक के माध्यम से राशि वापस कर दी. तांगड़े का मामला किसानों को मिलने वाले मुआवज़े की अपर्याप्तता और प्रक्रियात्मक खामियों को एक बार फिर उजागर करता है, जहाँ मुआवज़े की राशि इतनी कम है कि उससे एक कप चाय भी नहीं खरीदी जा सकती.
उड़ नहीं पा रही उडान परियोजना : यूपी के 7 समेत 11 हवाई अड्डों पर परिचालन ठप
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना ‘उड़ान’ (UDAN) पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं, क्योंकि पिछले एक दशक में इस योजना के तहत शुरू किए गए 11 हवाई अड्डों पर परिचालन ठप हो गया है. इनमें से सात हवाई अड्डे अकेले उत्तर प्रदेश में हैं.
द टेलीग्राफ इंडिया के लिए अमिय कुमार कुशवाहा की रिपोर्ट के अनुसार, ‘उड़े देश का आम नागरिक’ (UDAN) योजना 21 अक्टूबर 2016 को इस दृष्टिकोण के साथ शुरू की गई थी कि छोटे शहरों में रियायती दरों पर उड़ान सेवाएं प्रदान करके आम लोगों के लिए हवाई यात्रा को सुलभ बनाया जा सके. लेकिन अब उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, मुरादाबाद, चित्रकूट, श्रावस्ती, कुशीनगर, आज़मगढ़ और सहारनपुर; गुजरात के भावनगर; पंजाब के लुधियाना; सिक्किम के पाक्योंग; और मध्य प्रदेश के रीवा हवाई अड्डों पर उड़ानें बंद हो गई हैं.
इन हवाई अड्डों पर सेवाएं बाधित होने के कई कारण हैं, जिनमें मौसम की समस्या, यात्रियों की बहुत कम संख्या, एयरलाइनों की संचालन में عدم دلچسپی (अरुचि) और तकनीकी सुविधाओं की कमी शामिल है. उदाहरण के लिए, कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को बौद्ध तीर्थयात्रियों और विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बनाया गया था, लेकिन यात्रियों की कमी के कारण स्पाइसजेट ने दिल्ली की उड़ान बंद कर दी. चित्रकूट, जो यूपी का पहला टेबलटॉप हवाई अड्डा है, वहां दृश्यता (visibility) संबंधी चिंताओं के कारण एयरलाइंस रुचि नहीं दिखा रही हैं. श्रावस्ती हवाई अड्डे पर कम यात्री संख्या का एक बड़ा कारण लखनऊ से इसकी अच्छी सड़क और रेल कनेक्टिविटी है.
इनमें से कई हवाई अड्डों पर फ्लाईबिग (FlyBig) एकमात्र एयरलाइन थी जो उड़ानें संचालित कर रही थी, लेकिन उसने भी अपनी सेवाओं में भारी कटौती की है. यह स्थिति सरकार की योजना और व्यवहार्यता सर्वेक्षणों पर सवाल उठाती है. रिपोर्ट के अनुसार, नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया कि क्या इन हवाई अड्डों की योजना बनाने से पहले व्यवहार्यता सर्वेक्षण किए गए थे. महीनों और कुछ मामलों में सालों से एक भी व्यावसायिक उड़ान न होने के कारण, इन हवाई अड्डों पर सन्नाटा पसरा हुआ है, जिससे क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने की योजना को झटका लगा है.
ममदानी है तो मुमकिन है
द न्यूयॉर्क टाइम्स, एक्सियोस, पोलिटिको और द वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्टों पर आधारित एक व्यापक विश्लेषण
न्यूयॉर्क शहर ने एक राजनीतिक भूकंप का अनुभव किया है. 34 वर्षीय डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट ज़ोहरान ममदानी ने शहर के शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग को पछाड़ते हुए मेयर का चुनाव जीत लिया है. यह एक ऐसी जीत है जो न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि शहर और देश की राजनीति के लिए गहरे मायने रखती है. ममदानी न्यूयॉर्क के पहले मुस्लिम और पहले दक्षिण एशियाई मेयर होंगे, और एक सदी से भी अधिक समय में शहर के सबसे युवा नेता बनेंगे. उनकी जीत एक शानदार अभियान का परिणाम है जिसने ज़मीनी स्तर पर ऊर्जा और राजनीतिक प्रतिष्ठान के साथ चतुराई भरी बातचीत का एक अनूठा मिश्रण पेश किया. लेकिन अब, उन्हें एक विभाजित शहर, एक शत्रुतापूर्ण व्हाइट हाउस और अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिए भारी वित्तीय दबावों का सामना करना पड़ेगा.
एक असंभव अभियान की कहानी
साल की शुरुआत में, ज़ोहरान ममदानी को कोई बड़ी राजनीतिक हस्ती नहीं माना जाता था. द न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, वह सर्वेक्षणों में सिर्फ़ 1 प्रतिशत पर थे और उनकी अपनी टीम ने उनके जीतने की संभावना 3 प्रतिशत से भी कम आंकी थी. युगांडा में जन्मे और 7 साल की उम्र में न्यूयॉर्क आए, इस युवा असेंबली सदस्य ने एक ऐसा अभियान चलाया जिसने शहर की राजनीति के नियमों को फिर से लिखा.
उन्होंने पारंपरिक मीडिया और राजनीतिक संरक्षकों को दरकिनार करते हुए सीधे मतदाताओं से संपर्क साधा. उनका अभियान शहर के बढ़ते सामर्थ्य संकट पर केंद्रित था, जिसने ब्रुकलिन के नए निवासियों से लेकर क्वींस के टैक्सी ड्राइवरों तक, एक विविध गठबंधन को आकर्षित किया. उनकी टीम ने पैसे जुटाने के पारंपरिक तरीकों को छोड़कर, समर्थकों को समय देने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने सीमित संस्करण में नीली टोपी और बंदाना जैसे उत्पाद बनाए जो केवल स्वयंसेवा करने पर ही मिलते थे. शहर-व्यापी मेहतर शिकार (scavenger hunt) और फुटबॉल टूर्नामेंट जैसे आयोजनों ने हज़ारों समर्थकों को जोड़ा, जो बाद में उनके स्वयंसेवकों की एक विशाल सेना बन गए.
यह रणनीति पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो के ठीक विपरीत थी, जो एक राजनीतिक राजवंश के वंशज थे और अपने बड़े धन वाले अभियान पर निर्भर थे. ममदानी की ऊर्जा और ज़मीनी जुड़ाव ने उन्हें जून में डेमोक्रेटिक प्राइमरी में एक आश्चर्यजनक जीत दिलाई.
प्रतिष्ठान को साधना
प्राइमरी जीत के बाद, ममदानी को न्यूयॉर्क के शक्तिशाली व्यापारिक और राजनीतिक अभिजात्य वर्ग के तत्काल और तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा. द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, शहर के सत्ता के दलाल उनके उदय को एक “शत्रुतापूर्ण अधिग्रहण” के रूप में देख रहे थे. अरबपति निवेशक बिल एकमैन ने उन्हें नवंबर में हराने के लिए “सैकड़ों मिलियन डॉलर” देने की धमकी दी.
इस चुनौती का सामना करते हुए, ममदानी ने एक दूसरा, और भी मुश्किल अभियान शुरू किया: प्रतिष्ठान को शांत करना. उन्होंने रियल एस्टेट और वित्त जगत के दिग्गजों के साथ दर्जनों बैठकें कीं. उनका लक्ष्य अपनी नीतियों को समझाना और यह संकेत देना था कि वह सहयोग के लिए तैयार हैं. उन्होंने गवर्नर कैथी होचुल से भी संपर्क साधा, जिनकी वह पहले आलोचना कर चुके थे, और उनसे माफ़ी मांगकर साथ काम करने का वादा किया. इन बैठकों ने अभिजात्य वर्ग के बीच “हिस्टीरिया को शांत करने” में मदद की, जैसा कि द न्यूयॉर्क टाइम्स ने उल्लेख किया है, भले ही उनकी नीतियों को लेकर गहरे संदेह बने हुए हैं.
ऐतिहासिक जीत और भविष्य का दृष्टिकोण
मंगलवार को अपनी जीत के बाद, ममदानी ने अपने विजय भाषण में एक समावेशी भविष्य का वादा किया. एक्सियोस के लिए एवेरी लोट्ज़ की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा, “राजनीतिक अंधकार के इस क्षण में, न्यूयॉर्क रोशनी बनेगा.” उन्होंने यहूदी-विरोध और इस्लामोफोबिया दोनों से लड़ने का संकल्प लिया और घोषणा की, “न्यूयॉर्क अप्रवासियों का शहर बना रहेगा, अप्रवासियों द्वारा बनाया गया शहर, अप्रवासियों द्वारा संचालित और आज रात से, एक अप्रवासी के नेतृत्व में.”
चुनौतियों का पहाड़
मगर ममदानी का रास्ता काँटों से भरा है. पोलिटिको में जो अनुता और वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्टों के अनुसार, वह एक ऐसे शहर का नेतृत्व करेंगे जो सेवाओं से असंतुष्ट है और बढ़ती महंगाई से त्रस्त है.
आर्थिक दबाव: ममदानी ने मुफ़्त बस सेवा, सार्वभौमिक बाल देखभाल और 2030 तक न्यूनतम मज़दूरी 30 डॉलर प्रति घंटा करने जैसे महत्वाकांक्षी वादे किए हैं. द वाशिंगटन पोस्ट बताता है कि इन योजनाओं पर अरबों डॉलर का खर्च आएगा. इसके लिए उन्होंने अमीरों पर टैक्स बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है, जिसे अल्बानी में राज्य सरकार से मंजूरी की आवश्यकता होगी, और गवर्नर होचुल पहले ही इसका विरोध कर चुकी हैं.
व्हाइट हाउस से टकराव: राष्ट्रपति ट्रंप ने ममदानी को बार-बार “कम्युनिस्ट” कहा है और शहर की संघीय फंडिंग में कटौती करने तथा नेशनल गार्ड भेजने की धमकी दी है. न्यूयॉर्क का बजट संघीय सहायता पर बहुत अधिक निर्भर करता है, और इसमें कोई भी कटौती ममदानी की योजनाओं को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है, जैसा कि दोनों प्रकाशनों में विस्तार से बताया गया है.
बँटी हुई डेमोक्रेटिक पार्टी: राष्ट्रीय स्तर पर, डेमोक्रेटिक पार्टी ममदानी को लेकर विभाजित है. पोलिटिको ने इस पर प्रकाश डाला है कि प्रगतिशील नेता जैसे बर्नी सैंडर्स और अलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कोर्टेज़ ने उनका समर्थन किया है, लेकिन कई उदारवादी नेता चिंतित हैं कि उनकी समाजवादी नीतियां पार्टी को नुकसान पहुँचा सकती हैं. रिपब्लिकन पहले से ही ममदानी को पूरी डेमोक्रेटिक पार्टी के चरम-वामपंथी चेहरे के रूप में पेश करने की तैयारी कर रहे हैं.
ज़ोहरान ममदानी की जीत न्यूयॉर्क की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत है. उन्होंने एक असंभव सा लगने वाला अभियान जीतकर यह तो साबित कर दिया है कि वह एक कुशल रणनीतिकार हैं. लेकिन अब असली परीक्षा शुरू होगी: क्या वह अपने वादों को पूरा कर पाएंगे और एक विभाजित शहर को एकजुट करते हुए वाशिंगटन से आने वाले राजनीतिक तूफानों का सामना कर पाएंगे. उनका कार्यकाल यह तय करेगा कि क्या प्रगतिशील राजनीति अमेरिका के सबसे बड़े शहर में सफल हो सकती है.
और ममदानी की जीत का मायने क्या है, हरकारा डीपडाइव में वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने समझाया.
‘क्रांति’ के बाद की हकीकत: क्या नेपाल वो कर पाएगा जो बांग्लादेश और श्रीलंका नहीं कर सके?
सितंबर 2025 में नेपाल में जेन-Z (1995 से 2010 के बीच जन्मे लोग) के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शनों ने देश की राजनीति को झकझोर कर रख दिया. अब सवाल यह है कि क्या नेपाल उथल-पुथल और निराशा के चक्र से बाहर निकल पाएगा, खासकर जब उसके पड़ोसी देश श्रीलंका और बांग्लादेश भी इसी तरह के लोकप्रिय आंदोलनों के बाद संघर्ष कर रहे हैं.
द टेलीग्राफ में अरिजीत सेन की एक रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल में भ्रष्टाचार और असंवेदनशील सरकार के खिलाफ युवाओं का गुस्सा हिंसक विरोध प्रदर्शनों में बदल गया, जिसमें 70 से अधिक लोग मारे गए. इस आंदोलन के कारण 73 वर्षीय प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा और प्रदर्शनकारियों ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री चुना. लेकिन दो महीने बाद भी, स्थिति अस्पष्ट बनी हुई है. 24 वर्षीय छात्र रजनीश पंत कहते हैं, “अंतरिम सरकार का एकमात्र उद्देश्य छह महीने के भीतर चुनाव कराना था. लेकिन भ्रष्टाचार और राजनीतिक जवाबदेही जैसे मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं. ऐसा लगता है कि सत्ता में आने के बाद बदलाव की आवाज़ें शांत हो गई हैं.”
नेपाल की राजनीति में नए चेहरों को शामिल करने की कोशिशें भी विवादों में घिर गईं. जब अंतरिम प्रधानमंत्री कार्की ने जेन-Z समूह के चार प्रतिनिधियों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने की योजना बनाई, तो 25 वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता ताशी ल्हाज़ोम पर व्यक्तिगत हमले हुए, जिससे उन्हें अंततः शामिल नहीं किया गया. इस आंदोलन से उभरे एक प्रमुख नेता, 36 वर्षीय सूडान गुरुंग, जो एक पूर्व डीजे और ‘हामी नेपाल’ एनजीओ के संस्थापक हैं, ने राजनीति में प्रवेश करने की इच्छा जताई है. उन्होंने कहा, “यह जनता की सरकार होगी. अगला चुनाव नेपाली जीतेंगे.”
लेखक अमीश मुलमी का मानना है कि यह आंदोलन पिछले आंदोलनों से अलग है क्योंकि इसका नेतृत्व किसी राजनीतिक दल ने नहीं किया. हालांकि, चुनाव तक राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी. काठमांडू की कवयित्री और शिक्षिका उज्वाला महार्जन ‘सतर्क आशावाद’ के साथ स्थिति को देख रही हैं. वह कहती हैं, “जेन-Z क्रांति ने हमें पिछली गलतियों को सुधारने और बदलाव लाने का एक अवसर दिया है.” नेपाल अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ उसे यह तय करना होगा कि क्या वह अपने युवाओं द्वारा जगाई गई लोकतांत्रिक गति का लाभ उठा सकता है या एक बार फिर राजनीतिक मोहभंग का शिकार हो जाएगा.
कफ सिरप त्रासदी में डॉक्टर की पत्नी भी गिरफ्तार, सरकार में जवाबदेही तय नहीं
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, मध्यप्रदेश में खांसी की जहरीली सिरप त्रासदी की जांच कर रही एसआईटी ने मुख्य आरोपी डॉ. प्रवीण सोनी की पत्नी ज्योति को भी गिरफ्तार किया है. इस त्रासदी में 24 बच्चों की जान चली गई थी. इनमें अधिकतर 5 वर्ष से कम आयु के थे.
छिंदवाड़ा में कार्यरत डॉ. सोनी को पिछले महीने कथित लापरवाही के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने कई बीमार बच्चों को दूषित कफ सिरप कोल्ड्रिफ दिया था, जिनकी बाद में किडनी फेल होने से मृत्यु हो गई थी. पड़ोसी राज्य राजस्थान में भी इसी तरह की कम से कम तीन मौतें दर्ज की गई थीं.
एसडीओपी और एसआईटी प्रभारी जितेंद्र जाट के अनुसार, ज्योति सोनी एक मेडिकल शॉप की मालकिन हैं, जहां से यह कफ सिरप कई पीड़ितों को बेचा गया था. इस त्रासदी के सिलसिले में अब तक सात लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. बच्चों की मौत के बाद, तमिलनाडु सरकार ने कफ सिरप बनाने वाली कंपनी स्रेसन फार्मा का लाइसेंस रद्द कर दिया था. गिरफ्तार किए गए लोगों में स्रेसन फार्मा के मालिक जी रंगनाथन, मेडिकल प्रतिनिधि सतीश वर्मा, केमिस्ट के. माहेश्वरी, थोक विक्रेता राजेश सोनी और फार्मासिस्ट सौरभ जैन शामिल हैं. लेकिन, राज्य सरकार में अभी तक किसी की जावबदेही तय नहीं की गई है.
दिल्ली में इस साल ‘फूल वालों की सैर’ कैंसल
दिल्ली की सांप्रदायिक सद्भावना की भावना का जश्न मनाने वाला सदियों पुराना त्योहार ‘फूल वालों की सैर’ इस साल आयोजित नहीं किया जाएगा. आयोजकों का कहना है कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) ने महरौली के आम बाग में कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति नहीं दी है. हालांकि, DDA ने त्योहार को रोकने के आरोपों से इनकार करते हुए दावा किया है कि उसने वन नियमों के अनुपालन के अधीन सशर्त अनुमति पहले ही दे दी थी.
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, यह सप्ताह भर चलने वाला कार्यक्रम हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की भागीदारी का प्रतीक है, जहाँ महरौली स्थित ख्वाजा बख्तियार काकी की दरगाह पर फूलों की चादर और पंखे चढ़ाए जाते हैं और पास के योगमाया मंदिर में पंखे और छत्र चढ़ाए जाते हैं.
त्योहार का आयोजन करने वाली गैर-लाभकारी संस्था ‘अंजुमन सैर-ए-गुल फरोशां’ की महासचिव उषा कुमार ने बताया कि उन्होंने देरी से बचने के लिए इस साल प्रक्रिया जल्दी शुरू कर दी थी, लेकिन DDA से अनुमति नहीं मिली. उन्होंने कहा, “DDA ने कहा कि वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) की आवश्यकता है. वन विभाग ने कोई जवाब नहीं दिया... 2023 तक, वे हमें आम बाग में त्योहार आयोजित करने की अनुमति दे रहे थे. उन्हें अचानक कैसे पता चला कि वे हमें अनुमति नहीं दे सकते?”
दूसरी ओर, एक वरिष्ठ DDA अधिकारी ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि 2023 में वन विभाग ने सूचित किया था कि आरक्षित या संरक्षित जंगलों में बिना उचित अनुमोदन के कोई भी गैर-वन गतिविधि नहीं हो सकती है, और यह क्षेत्र संरक्षित वन के अंतर्गत आता है. इसलिए, सशर्त अनुमति दी गई है.
इस त्योहार की जड़ें दिल्ली के समन्वित इतिहास में गहरी हैं. इसकी शुरुआत 1812 में एक मुगलकालीन घटना से हुई थी, जब शहज़ादे मिर्ज़ा जहांगीर की सुरक्षित वापसी पर उनकी मां मुमताज़ महल बेगम ने महरौली स्थित दरगाह पर मन्नत पूरी की थी. इस उत्सव को 1942 में अंग्रेजों ने रोक दिया था, लेकिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के तहत 1962 में इसे दिल्ली की मिश्रित संस्कृति के जश्न के रूप में फिर से शुरू किया गया.
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