05/12/2025: रूस से तेल लेना और यूक्रेन के बच्चे | जनता के 48,000 करोड़ मार्फत एलआईसी अडानी को | साइबर अरेस्ट पर ग्राफिक नॉवेल | जनरल मुनीर की ताकत | शाहरुख और अन्य को नचाने के रेट | अरुंधति की बीड़ी
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
इंडिगो का ‘फ्लाइट क्राइसिस’ चौथे दिन भी जारी: 400 उड़ानें रद्द, 8.5% ही समय पर
मोदी-पुतिन की ‘दोस्ताना’ मुलाकात: 100 अरब डॉलर के व्यापार का लक्ष्य, रूसी पर्यटकों को फ्री वीज़ा
विपक्ष को ‘नो एंट्री’, लेकिन थरूर को न्योता: राष्ट्रपति भवन के डिनर पर कांग्रेस का तंज
भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ पर सवाल: फॉरेन पॉलिसी की रिपोर्ट में ‘उदासीनता’ का ज़िक्र
यूक्रेन पर UN में भारत की ‘चुप्पी’: बच्चों की वापसी के प्रस्ताव पर वोटिंग से परहेज़
LIC का अदानी में बड़ा निवेश: 48,000 करोड़ से ज्यादा लगाए
रूसी सेना में फंसे 61 भारतीय: सांसद हनुमान बेनीवाल ने उठाई आवाज
कलकत्ता हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: मुर्शिदाबाद में ‘बाबरी-शैली’ मस्जिद पर रोक नहीं
मेलघाट में बच्चों की मौतों का सिलसिला: 94 मासूमों ने तोड़ा दम
वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन सुस्त: सरकार ने दी 3 महीने की राहत
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट: ‘प्राचीन परिदृश्य खोने का खतरा’
RBI के नियमों से फंसे 67,000 करोड़: ‘इनऑपरेटिव’ खातों ने बढ़ाई परेशानी
पाकिस्तान के नए ‘किंग’ जनरल मुनीर: ट्रंप के ‘फेवरेट’, असीमित ताक़त
बॉलीवुड वेडिंग रेट कार्ड: शादी में आने के लिए करोड़ों चार्ज करते हैं सितारे
मदुरै मंदिर-दरगाह विवाद: दीप जलाने को लेकर बवाल, भाजपा नेता हिरासत में
ट्रंप की वापसी और भारत का ‘मल्टीअलाइनमेंट’: फॉरेन अफेयर्स का विश्लेषण
अरुंधति रॉय की किताब पर विवाद खत्म: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका
इंडिगो उड़ानों में भारी अव्यवस्था: चौथे दिन भी सैकड़ों फ्लाइट रद्द, यात्रियों की मुश्किलें बढ़ीं
देशभर के प्रमुख एयरपोर्ट्स पर शुक्रवार (5 दिसंबर 2025) को अव्यवस्था जारी रही, क्योंकि इंडिगो की उड़ानों में देरी और रद्दीकरण का संकट चौथे दिन भी बना रहा. द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक़ एयरलाइन ने 400 से अधिक उड़ानें रद्द कर दीं. गुरुवार को छह बड़े एयरपोर्ट्स पर इंडिगो का ऑन-टाइम परफॉर्मेंस सिर्फ 8.5% तक गिर गया, जिससे यात्रियों की भारी भीड़ और उनका गुस्सा देखने को मिला. इंडिगो ने माफी मांगते हुए कहा कि वह संचालन को जल्द सामान्य करने के प्रयास कर रही हैं.
देरी और कैंसिलेशन की वजह क्या है?
इंडिगो ने फ्लाइट संकट की कई वजहें बताई हैं, तकनीकी गड़बड़ियाँ, सर्दियों की वजह से बदला शेड्यूल, मौसम की ख़राबी, एयर ट्रैफिक में बढ़ती भीड़ और पायलटों के लिए लागू हुए नए फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशंस (एफडी FDTL) नियम, जिनके चलते उनकी ड्यूटी घंटे सीमित हुए. हालांकि “द हिंदू” की रिपोर्ट के मुताबिक़, यह समस्या कई हफ्तों से बन रही थी, क्योंकि 1 नवंबर से लागू हुए कड़े नियमों ने एयरलाइन की पायलट प्लानिंग और स्टाफ की ड्यूटी की सूची पर बड़ा असर डाला. इन नियमों के तहत पायलटों को अधिक आराम समय देना अनिवार्य हो गया और रात की उड़ानों के लिए ड्यूटी सीमाएँ घटा दी गईं. पायलटों की साप्ताहिक आराम अवधि 36 से बढ़ाकर 48 घंटे कर दी गई.
एयरलाइंस पहले ही चेतावनी दे चुकी थीं कि इससे तेज़ी से उड़ानों की संख्या कम करनी पड़ेगी. इंडिगो पर असर इसलिए ज्यादा पड़ा क्योंकि पायलटों की संख्या ज़रूरत के मुक़ाबले कम थी, कई पायलट पुराने मुद्दों से नाराज़ थे, जैसे उनपर छुट्टियाँ रद्द करने के लिए दबाव डाला जा रहा था, और लगातार 13 घंटे काम कराने, तथा तनख्वाह न बढ़ाने को लेकर असंतोष बढ़ गया था.
स्थिति गंभीर होने पर नागरिक उड्डयन मंत्री और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) प्रमुख के साथ इंडिगो अधिकारियों की बैठक हुई, जहाँ एयरलाइन ने अपनी योजना में चूक और गलत आकलन को स्वीकार किया. इंडिगो के सीईओ पीटर एल्बर्स ने कर्मचारियों को बताया कि इतने बड़े नेटवर्क में छोटी समस्याएँ भी बड़ा संकट पैदा कर देती हैं. एयरलाइन ने सरकार को सूचित किया है कि 8 दिसंबर से उड़ानें कम की जाएंगी ताकि देरी और रद्दीकरण को नियंत्रित किया जा सके. अगले दो–तीन दिनों तक यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.
इंडिगो ने डीजीसीए से यह भी अनुरोध किया है कि रात की उड़ानों के नए नियमों को 10 फरवरी तक स्थगित किया जाए. नियामक संस्था ने कहा है कि वह इस मांग पर विचार करेगी. यात्रियों को अभी कुछ और दिनों तक धैर्य रखना होगा, क्योंकि एयरलाइन के अनुसार संचालन सामान्य होने में समय लगेगा.
पुतिन का भारत दौरा
2030 आर्थिक रोडमैप पर सहमति, रूसियों के लिए 30 दिन का फ्री वीज़ा, रूसी तेल की सप्लाई
“द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से शुक्रवार को मुलाकात के बाद, भारत और रूस ने 2030 के लिए एक रणनीतिक आर्थिक रोडमैप पर सहमति व्यक्त की और श्रम गतिशीलता, उर्वरक आपूर्ति तथा रूसी नागरिकों के लिए 30-दिवसीय निःशुल्क पर्यटक वीज़ा प्रदान करने पर समझौतों पर हस्ताक्षर किए.
दोनों नेताओं ने हैदराबाद हाउस में एक घंटे से अधिक समय तक बैठक की, जहां उन्होंने यूक्रेन की स्थिति और आर्थिक, राजनीतिक एवं रणनीतिक क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा की.
यूक्रेन पर भारत का रुख: “हम तटस्थ नहीं, शांति के पक्ष में हैं”
प्रधानमंत्री मोदी ने रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को समाप्त करने के लिए शांति प्रयासों के लिए दिल्ली के समर्थन को रेखांकित किया. उन्होंने पुतिन से कहा कि भारत “तटस्थ नहीं है” और “शांति के पक्ष में है.”
मोदी ने कहा, “यूक्रेन संकट के बाद, हम लगातार संपर्क में रहे हैं... एक सच्चे दोस्त के रूप में आप हमें घटनाक्रमों से अवगत भी कराते रहे हैं. यह विश्वास एक बड़ी शक्ति है, और हमने इस मुद्दे पर कई बार चर्चा की है. दुनिया का कल्याण शांति के माध्यम से ही है. हम सभी को शांति की दिशा में मिलकर काम करना चाहिए. और मेरा मानना है कि जो प्रयास हाल ही में चल रहे हैं, उनसे दुनिया एक बार फिर शांति की दिशा में लौटेगी.”
मोदी ने, पुतिन के बगल में बैठे हुए, कहा, “पिछले कुछ दिनों में, जब भी मैंने विश्व नेताओं से बात की है, मैंने हमेशा उन्हें बताया है कि भारत तटस्थ नहीं है, भारत शांति के पक्ष में है; हम शांति के लिए सभी प्रयासों का समर्थन करते हैं. और हम इन शांति प्रयासों में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं.” फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पुतिन की यह भारत की पहली यात्रा है—वह आखिरी बार दिसंबर 2021 में यहां आए थे.
मोदी ने रूस के साथ आर्थिक सहयोग रोडमैप की घोषणा की, क्योंकि दोनों देशों ने 2030 तक 100 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य रखा है. तेल आयात के ज्वलंत मुद्दे पर बात करते हुए, पुतिन ने कहा, “हम ऊर्जा में भी एक सफल साझेदारी देख रहे हैं. रूस तेल, गैस, कोयला और भारत के ऊर्जा विकास के लिए आवश्यक हर चीज का एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता है. हम तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ईंधन की निर्बाध शिपमेंट जारी रखने के लिए तैयार हैं.” (संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूसी तेल खरीदने के लिए भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया है. भारत को अमेरिका और यूरोप से भी द्वितीयक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है.)
नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग के बारे में बात करते हुए, पुतिन ने कहा, “हम सबसे बड़े भारतीय परमाणु ऊर्जा संयंत्र, कुडनकुलम के निर्माण के लिए एक प्रमुख परियोजना भी चला रहे हैं. छह रिएक्टर इकाइयों में से दो को ऊर्जा नेटवर्क से जोड़ा जा चुका है, और चार अभी भी निर्माणाधीन हैं. इस परमाणु ऊर्जा संयंत्र को पूर्ण बिजली उत्पादन तक ले जाने से भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं में एक प्रभावशाली योगदान मिलेगा, जो भारतीय उद्यमों और घरों को सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा की आपूर्ति में मदद करेगा.”
उन्होंने आगे कहा, “हमने छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों और फ्लोटिंग परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण, और साथ ही चिकित्सा या कृषि जैसे गैर-ऊर्जा अनुप्रयोगों में परमाणु प्रौद्योगिकियों के बारे में भी बात की.”
रक्षा सहयोग पर टिप्पणी करते हुए, पुतिन ने कहा, “रूस और भारत पारंपरिक रूप से सैन्य तकनीकी क्षेत्र में घनिष्ठ सहयोग कर रहे हैं. हमारा देश, पिछले आधे दशक से, भारतीय सेना को सशस्त्र करने और आधुनिकीकरण में मदद कर रहा है, जिसमें वायु रक्षा बल, विमानन और सामान्य तौर पर नौसेना शामिल हैं. हम अभी-अभी हुई बातचीत के परिणामों से निस्संदेह संतुष्ट हैं.” नेताओं ने S-400 वायु रक्षा प्रणाली या सुखोई विमान जैसे रक्षा उपकरणों और परियोजनाओं के बारे में विस्तार से नहीं बताया.
गुरुवार को मोदी के लोक कल्याण मार्ग स्थित आवास पर निजी रात्रिभोज के बारे में बात करते हुए, जहां पीएम ने उन्हें रूसी में गीता की एक प्रति उपहार में दी थी, पुतिन ने कहा, “कल की बैठक बहुत अच्छी थी. हमारी मैत्रीपूर्ण और साथ ही बहुत महत्वपूर्ण बातचीत हुई. हमने यूक्रेन में हो रहे घटनाक्रमों के बारे में बहुत सारे विवरणों पर चर्चा की, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कुछ भागीदारों के साथ, संभावित शांतिपूर्ण समाधान पर भी बात की गई.”
मोदी ने वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति को अनिश्चितताओं के बड़े संदर्भ में प्रस्तुत करते हुए कहा (अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ जैसे विघटनकारी कदमों का उल्लेख किए बिना), “दुनिया कोविड सहित कई संकटों से गुजरी है. हमें उम्मीद है कि दुनिया चिंताओं से मुक्त होगी और सही दिशा में आगे बढ़ेगी.” उन्होंने कहा कि “भारत-रूस आर्थिक संबंध मजबूत होंगे”, और “नई ऊंचाइयों को छूएंगे.”
इससे पहले दिन में, पुतिन का राष्ट्रपति भवन में औपचारिक स्वागत किया गया, जहां उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और पीएम मोदी के साथ-साथ वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों से मुलाकात की. वहां से, वह महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के लिए राजघाट गए.
संसद के दोनों नेता विपक्ष को पुतिन भोज का न्यौता नहीं, थरूर को बुलाया, कांग्रेस ने साधा निशाना
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सम्मान में राष्ट्रपति भवन में शुक्रवार को हुए रात्रि भोज में संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष क्रमशः राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को तो आमंत्रित नहीं किया गया, लेकिन कांग्रेस के ही सांसद शशि थरूर को न्यौता दिया गया. थरूर ने न सिर्फ न्यौता स्वीकार कर लिया, बल्कि यह कहा भी कि वे डिनर में अवश्य शामिल होंगे.
कांग्रेस ने शुक्रवार को यह जानकारी दी और अपने ही सांसद शशि थरूर पर आमंत्रण स्वीकार करने के लिए तंज कसा. कांग्रेस महासचिव प्रभारी संचार जयराम रमेश ने कहा, “इस बारे में अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या लोकसभा में विपक्ष के नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता को राष्ट्रपति पुतिन के सम्मान में आज रात के आधिकारिक रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया गया है. दोनों एलओपी को आमंत्रित नहीं किया गया है.”
द इकनॉमिक टाइम्स में “पीटीआई” के अनुसार, कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने सरकार पर दैनिक रूप से प्रोटोकॉल तोड़ने और लोकतांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास न रखने का आरोप लगाया. उन्होंने एक कार्यक्रम से इतर पीटीआई वीडियो से कहा, “दोनों एलओपी, (मल्लिकार्जुन) खड़गे और (राहुल) गांधी को कोई निमंत्रण नहीं मिला है. यह आश्चर्यजनक है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमें हैरान होना चाहिए. यह सरकार सभी प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने के लिए जानी जाती है. और क्या कहें, सरकार से पूछिए.”
पार्टी सांसद थरूर को भोज में आमंत्रित किए जाने और आमंत्रण स्वीकार करने के बारे में पूछे जाने पर, खेड़ा ने कहा, “थरूर से पूछिए. हम सभी जो पार्टी में हैं, अगर हमारे नेताओं को आमंत्रित नहीं किया जाता है और हमें आमंत्रित किया जाता है, तो हमें अपनी अंतरात्मा पर सवाल उठाना चाहिए और अपनी अंतरात्मा की बात सुननी चाहिए. लोगों को आमंत्रित करने या न करने में राजनीति खेली गई है, जो अपने आप में प्रश्नगत है, और जो लोग ऐसे आमंत्रण को स्वीकार करते हैं, वह भी प्रश्नगत हैं,” खेड़ा ने कहा. उन्होंने आगे कहा, “हम अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनते.”
इससे पहले, थरूर ने कहा था कि एक समय था जब विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष को नियमित रूप से आमंत्रित किया जाता था, लेकिन ऐसा लगता है कि वह प्रथा कुछ वर्षों से बंद हो गई है. संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष थरूर ने अब कहा, “इसे फिर से शुरू कर दिया गया है... मुझे आमंत्रित किया गया है, हाँ. मैं निश्चित रूप से जाऊँगा.”
विपक्ष के नेताओं को कथित तौर पर आमंत्रण न मिलने पर, थरूर ने कहा, “मुझे नहीं पता कि किस आधार पर आमंत्रण भेजे गए. मुझे लगता है कि जिस प्रथा का आमतौर पर पालन किया जाता था, वह व्यापक प्रतिनिधित्व के लिए थी. निश्चित रूप से, मुझे पुराने दिनों में याद है, वे न केवल एलओपी को, (बल्कि) विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों के विभिन्न अन्य वर्गों को भी आमंत्रित करते थे. यह एक अच्छा असर डालता है.”
थरूर ने संसद भवन परिसर में पत्रकारों से कहा, “मुझे आधार (निमंत्रण का) नहीं पता, यह सब सरकार द्वारा, प्रोटोकॉल द्वारा, राष्ट्रपति भवन द्वारा किया जाता है, मैं क्या जानूँ. मैं बस इतना कह सकता हूँ कि मुझे आमंत्रित किए जाने पर सम्मान महसूस हुआ है.”
गुरुवार को राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि सरकार अपनी “असुरक्षा” के कारण विदेशी गणमान्य व्यक्तियों को विपक्ष के नेता से न मिलने के लिए कहती है. उनकी यह टिप्पणी पुतिन के दो दिवसीय भारत दौरे से कुछ घंटे पहले आई थी. गांधी ने कहा था कि यह एक परंपरा है कि विदेशी गणमान्य व्यक्ति विपक्ष के नेता से मिलते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्रालय इस नियम का पालन नहीं कर रहे हैं.
गांधी ने पत्रकारों से कहा था, “सामान्यतः परंपरा यह है कि जो लोग विदेश से आते हैं, वे विपक्ष के नेता से मिलते हैं. यह (अटल बिहारी) वाजपेयी जी के समय में होता था, मनमोहन सिंह जी के समय में होता था, यह एक परंपरा रही है, लेकिन आजकल क्या होता है कि जब विदेशी गणमान्य व्यक्ति आते हैं और जब मैं विदेश जाता हूँ, तो सरकार उन्हें विपक्ष के नेता से न मिलने का सुझाव देती है.”
पुतिन की यात्रा से ठीक पहले भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के ख़िलाफ़ वोटिंग से बनाई दूरी
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री मोदी के साथ डिनर से ठीक एक दिन पहले, भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर वोटिंग से परहेज़ किया. ‘द वायर’ की रिपोर्ट के मुताबिक़, बुधवार (3 दिसंबर) को लाए गए इस प्रस्ताव में रूस से मांग की गई थी कि वह उन यूक्रेनी बच्चों को तुरंत वापस करे जिन्हें जबरन स्थानांतरित या निर्वासित किया गया है.
इस प्रस्ताव के पक्ष में 91 वोट पड़े, जबकि 12 देशों ने इसका विरोध किया और भारत, चीन, ब्राज़ील व खाड़ी देशों सहित 57 देश वोटिंग से अनुपस्थित रहे. भारत ने अपने वोट को लेकर कोई स्पष्टीकरण (Explanation of Vote) नहीं दिया, लेकिन फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ही नई दिल्ली ने रूस की निंदा करने वाले प्रस्तावों से लगातार दूरी बनाए रखी है. भारतीय राजनयिकों का तर्क रहा है कि ऐसे प्रस्ताव शांति के लिए अनुकूल माहौल नहीं बनाते.
प्रस्ताव में आरोप लगाया गया है कि रूस ने बच्चों को उनके परिवारों से अलग किया है और उनकी नागरिकता बदलकर उन्हें गोद दिया जा रहा है. यूक्रेन का दावा है कि कम से कम 20,000 बच्चों को निर्वासित किया गया है. वहीं, रूस ने इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए इन्हें शांति प्रयासों को पटरी से उतारने वाला “निंदनीय झूठ” क़रार दिया है. ग़ौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने बच्चों के अवैध निर्वासन के आरोपों में ही पुतिन के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट जारी किया था.
पुतिन के दौरे से पहले रूसी सेना में फंसे 61 भारतीयों का मुद्दा संसद में गूंजा
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से पहले, राजस्थान के नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने बुधवार को लोकसभा में रूसी सेना में फंसे 61 भारतीयों की सुरक्षा का मुद्दा ज़ोर-शोर से उठाया. ‘द वायर’ की रिपोर्ट के मुताबिक़, बेनीवाल ने शून्यकाल के दौरान कहा कि ये भारतीय, जो छात्र या वर्क वीज़ा पर रूस गए थे, अब वहां की सेना में जबरन भर्ती कर लिए गए हैं और यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ने को मजबूर हैं.
बेनीवाल ने कहा कि परिवारों को अपने बच्चों से संपर्क किए हुए तीन से चार महीने हो गए हैं, जिससे वे भारी मानसिक तनाव में हैं. उन्होंने सरकार से मांग की कि रूस के साथ तत्काल कूटनीतिक बातचीत करके इन युवाओं की सुरक्षित वतन वापसी सुनिश्चित की जाए. उन्होंने बताया कि पीड़ित परिवार जंतर-मंतर पर प्रदर्शन भी कर चुके हैं.
विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2024 तक 127 भारतीय रूसी सेना में थे, जिनमें से कूटनीतिक प्रयासों के बाद कई लोगों को डिस्चार्ज किया गया. हालांकि, 8 नवंबर को विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की थी कि अभी भी 44 भारतीय नागरिक रूसी सेना में सेवा दे रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने जुलाई में अपनी मॉस्को यात्रा के दौरान यह मुद्दा पुतिन के सामने उठाया था, जिसके बाद रूस ने भारतीयों की भर्ती रोकने का वादा किया था.
भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ अब दुनिया को ‘उदासीनता’ जैसी लग रही है: फॉरेन पॉलिसी
‘फॉरेन पॉलिसी’ पत्रिका में चिएतिज बाजपेयी का विश्लेषण बताता है कि 2025 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए विदेश नीति के मोर्चे पर सबसे कठिन वर्ष साबित हुआ है. भारत लंबे समय से अपनी ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) पर गर्व करता आया है, लेकिन अब यह नीति दुनिया को अलग-थलग या ‘उदासीन’ लगने लगी है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 50 फ़ीसदी टैरिफ हैं. ट्रंप ने भारत के व्यापार असंतुलन और रूसी तेल की ख़रीद को निशाना बनाया, जबकि चीन जैसे देशों या जापान जैसे सहयोगियों के साथ ऐसा सख़्त बर्ताव नहीं किया गया.
लेख के अनुसार, भारत की यह स्थिति उसकी वैश्विक व्यवस्था में ‘रणनीतिक अनिवार्यता’ की कमी को दर्शाती है. मई में भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिन का संघर्ष हुआ, जिसे दशकों में सबसे ख़राब माना गया. इसके बाद अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते गहरे हुए हैं. पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को वाइट हाउस ने दो बार होस्ट किया, जबकि मोदी और ट्रंप के रिश्तों में खटास आई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी ने ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश को ठुकरा दिया था, जिसके बाद दोनों नेताओं के बीच बातचीत बंद हो गई थी.
लेखक का कहना है कि भारत को अब निष्क्रिय रहने के बजाय सक्रिय कूटनीति अपनानी होगी. जहाँ एक तरफ़ भारत गाज़ा शांति शिखर सम्मेलन जैसे महत्वपूर्ण मंचों से नदारद रहा, वहीं पाकिस्तान चीन, अमेरिका और रूस सभी के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है. भारत को अब यह तय करना होगा कि वह सिर्फ़ ‘विश्वमित्र’ कहलाना चाहता है या वास्तव में दुनिया के संघर्षों को सुलझाने में कोई भूमिका निभाना चाहता है. ट्रंप प्रशासन की अस्थिरता के बीच भारत के लिए वैश्विक नेतृत्व में कदम रखने का यह सही समय हो सकता है.
एलआईसी ने अदानी समूह में लगाए हैं 48,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा: सरकार ने संसद में बताया
संसद में एक लिखित जवाब में केंद्र सरकार ने ख़ुलासा किया है कि भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने अदानी समूह की कंपनियों में कुल 48,284.62 करोड़ रुपये का निवेश किया है. ‘द वायर’ की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि 30 सितंबर तक के आंकड़ों के मुताबिक़, इसमें से 38,658.85 करोड़ रुपये इक्विटी में और 9,625.77 करोड़ रुपये कर्ज़ (Debt) के रूप में दिए गए हैं.
सांसद मोहम्मद जावेद और महुआ मोइत्रा के सवालों के जवाब में सरकार ने कहा कि एलआईसी ने अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों और उचित प्रक्रियाओं (Due Diligence) का पालन करते हुए अदानी पोर्ट्स में 5,000 करोड़ रुपये के नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर में भी निवेश किया है. वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि वह एलआईसी के निवेश निर्णयों को लेकर कोई निर्देश या सलाह जारी नहीं करता है और ये फ़ैसले पूरी तरह से एलआईसी द्वारा स्वतंत्र रूप से लिए जाते हैं.
यह जानकारी वाशिंगटन पोस्ट की उस ख़बर के कुछ महीनों बाद आई है, जिसमें दावा किया गया था कि सरकार ने अदानी समूह को बचाने के लिए एलआईसी के फ़ंड का उपयोग करने की रणनीति बनाई थी. हालांकि, सरकार ने इन दावों को ख़ारिज करते हुए कहा है कि एलआईसी का निवेश मुख्य रूप से NSE और BSE की शीर्ष 500 कंपनियों में होता है और अदानी समूह में उसका निवेश नियमों के तहत ही है. सरकार ने यह भी कहा कि एलआईसी के निवेशों की निगरानी आंतरिक और वैधानिक ऑडिटर्स द्वारा की जाती है.
कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा, मुर्शिदाबाद में बाबरी-शैली की मस्जिद के निर्माण में कोई हस्तक्षेप नहीं
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में “अयोध्या की बाबरी मस्जिद की तर्ज पर” एक मस्जिद के निर्माण में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसका प्रस्ताव निलंबित टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर ने रखा था.
“पीटीआई” के मुताबिक, अदालत का यह अवलोकन प्रस्तावित ‘बाबरी मस्जिद’ के लिए निर्धारित शिलान्यास समारोह से पहले आया है, जो 6 दिसंबर को होने वाला है. यह तारीख बाबरी मस्जिद (मूल गर्भगृह) के विध्वंस की बरसी भी है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजॉय पॉल की खंडपीठ ने, प्रस्तावित मस्जिद के शिलान्यास समारोह पर रोक लगाने की मांग वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई के बाद, निर्देश दिया कि कानून और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी पश्चिम बंगाल सरकार की होगी.
गुरुवार को दायर की गई इस जनहित याचिका में इस आधार पर रोक लगाने की मांग की गई थी कि यह समारोह क्षेत्र में सांप्रदायिक सौहार्द को बाधित कर सकता है. याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की कि कबीर की कथित रूप से सांप्रदायिक सौहार्द को बाधित करने वाली भड़काऊ टिप्पणियों के खिलाफ अदालत को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए.
कबीर, जो अतीत में पार्टी के आंतरिक मामलों सहित कई विवादास्पद बयानों के साथ सुर्खियों में रहे हैं, को तृणमूल कांग्रेस ने गुरुवार को “सांप्रदायिक राजनीति” में लिप्त होने के आरोप में निलंबित कर दिया था. निलंबित नेता ने इसके बाद विधायक पद से इस्तीफा देने और इस महीने के अंत में अपनी पार्टी शुरू करने की घोषणा की थी.
इस बीच, प्रस्तावित मस्जिद के निर्माण के शिलान्यास समारोह से एक दिन पहले, शुक्रवार को अतिरिक्त बलों की तैनाती के साथ इलाके में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. पुलिस, रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) और बीएसएफ इकाइयों को जुटाकर क्षेत्र को “अत्यधिक सुरक्षा” वाले क्षेत्र में बदल दिया गया है. कबीर, जो रेजीनगर में मंच की तैयारियों की निगरानी करते हुए देखे गए थे, ने कार्यक्रम के लिए अनुमति मांगने वाला एक औपचारिक अनुरोध प्रस्तुत किया, लेकिन एक अधिकारी ने कहा कि प्रशासन ने अभी तक मंजूरी नहीं दी है.
मेलघाट में बच्चों की मौतों का सिलसिला जारी: ख़राब पोषण, कमज़ोर स्वास्थ्य व्यवस्था और कुपोषण बड़ी वजह
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के मेलघाट में हालात बेहद चिंताजनक हैं. द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक़, अप्रैल से अब तक 94 बच्चों (0–6 वर्ष) की मौत हो चुकी है और 46 बच्चों का जन्म मृत (स्टिलबर्थ) अवस्था में हुआ है. यह इलाका कठिन पहाड़ी भूभाग, ख़राब सड़कें, कमज़ोर नेटवर्क और सीमित स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण पहले से ही संघर्ष कर रहा है. चिखलदरा और धारणी तहसीलों के कई गांवों में माताओं ने इस साल अपने बच्चों को कुपोषण, संक्रमण और गंभीर बीमारियों से खो दिया. कुलांगना गांव की अंजलि कसडेक्कर ने अपने जुड़वां बच्चों में से एक को जन्म के 14 दिन बाद खो दिया, जिसका वज़न सिर्फ 1.4 किलो था. जमलीआर की किरण कसडेक्कर की तीन महीने की बेटी कावेरी की मौत सेप्सिस और डिहाइड्रेशन से हुई. गिरगुटी गांव की प्रमिला बेलसारे ने अपने चार साल के बच्चे आतिश को गंभीर कुपोषण के कारण खो दिया. धारणी के चौराकुंड गांव में तारा सावारकर के एक महीने के बच्चे की मौत निमोनिया और हाइपोग्लाइसीमिया से हुई. मेलघाट की 80% आबादी कोरकू जनजाति की है. डॉक्टरों के अनुसार, यहाँ महिलाओं का हीमोग्लोबिन स्तर सामान्य 12–15 ग्राम/डिसि.ली. के बजाय अक्सर 7–8 ग्राम/डिसि.ली. होता है, जबकि गर्भवती महिलाओं में यह और कम होकर 5–6 ग्राम/डिसि.ली. तक पहुँच जाता है. कम उम्र में शादी और बार-बार गर्भधारण से उनकी स्थिति और ख़राब होती है. अधिकांश परिवार हर साल ईंट भट्ठों पर काम करने के लिए लंबी दूरी पर जाते हैं, जिससे गर्भवती महिलाओं को न तो आराम मिलता है और न ही पर्याप्त पोषण.इलाके में स्वास्थ्य सुविधाएँ बेहद सीमित हैं और कई डॉक्टर मेलघाट जैसी पोस्टिंग को “सज़ा” मानते हैं. क्षेत्र में सांस्कृतिक और भाषाई अंतर भी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच मुश्किल बनाते हैं.
पिछले कई दशकों में इस मामले पर कई जनहित याचिकाएं (पीआईएल) दायर की गईं, और हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए इन मौतों को “भयावह” और सरकारी रवैये को “बेहद लापरवाह” बताया. अदालत ने वरिष्ठ अधिकारियों को मेलघाट जाकर स्थिति का आकलन करने और 18 दिसंबर तक रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया है.
देशभर में वक़्फ़ संपत्ति रजिस्ट्रेशन में देरी, सरकार ने 3 महीने तक कार्रवाई न करने की दी राहत
‘द वायर’ के अनुसार, केंद्र सरकार के उम्मीद पोर्टल पर वक़्फ़ संपत्तियों का अनिवार्य डिजिटल रजिस्ट्रेशन करने की अंतिम तारीख 5 दिसंबर है, लेकिन देश के कई बड़े वक़्फ़ बोर्ड अब तक अपनी संपत्तियों का केवल एक छोटा हिस्सा ही अपलोड कर पाए हैं. पोर्टल बार-बार क्रैश होने, सदियों पुराने दस्तावेज़ ढूंढने में कठिनाई, डिजिटल प्रशिक्षण की कमी और अलग-अलग राज्यों में ज़मीन मापने की अलग प्रणालियों के कारण काम बहुत धीमा चल रहा है.
यह पोर्टल सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम के तहत 6 जून को शुरू किया था, जिसमें देश की सभी वक़्फ़ संपत्तियां यानि लगभग 8.7 लाख प्रॉपर्टी और 9.4 लाख एकड़ ज़मीन को डिजिटल रूप से दर्ज करना अनिवार्य किया गया है. सरकार का कहना है कि इससे पारदर्शिता और सुरक्षा बढ़ेगी.
‘ऑल्ट न्यूज़’ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर ने भी बताया कि कई उपयोगकर्ता पोर्टल न खुलने, ओटीपी न आने और डेटा सबमिट न होने की समस्याओं का सामना कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश, जहाँ सबसे ज़्यादा (1.4 लाख) वक़्फ़ संपत्तियाँ हैं, ने अब तक लगभग 35% ही जानकारी अपलोड की है. पश्चिम बंगाल में यह आंकड़ा 12%, जबकि कर्नाटक और तमिलनाडु में लगभग 10% है. पंजाब अपवाद है, जिसने लगभग 80% रिकॉर्ड अपलोड कर लिए हैं, क्योंकि वहां “वक़्फ़ एस्टेट” के रूप में संपत्तियाँ दर्ज होती हैं, जिससे प्रक्रिया आसान हो जाती है.
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरन रिजिजू ने बताया कि भले ही अंतिम तारीख़ वही रहेगी, लेकिन अगले तीन महीनों तक न तो कोई जुर्माना लगेगा और न ही कोई सख़्त कार्रवाई होगी. उन्होंने कहा कि जो लोग मुतवल्लियों के ज़रिये जानकारी अपलोड नहीं कर पाए हैं, उन्हें अतिरिक्त मौक़ा दिया जायेगा. सुप्रीम कोर्ट ने 1 दिसंबर को रजिस्ट्रेशन की छह महीने की समयसीमा बढ़ाने से इनकार कर दिया था और कहा कि वक़्फ़ बोर्ड ज़रूरत पड़ने पर वक़्फ़ ट्रिब्यूनल से और समय माँग सकते हैं.
कई विपक्षी सांसदों ने रिजिजू से मुलाक़ात कर कम से कम 6 महीने की मोहलत की मांग की. कांग्रेस सांसद नसीर हुसैन ने कहा कि पोर्टल देर से चला, नियम देर से आए और लगातार तकनीकी खराबी ने काम और मुश्किल कर दिया. ग्रामीण और बुज़ुर्ग मुतवल्ली डिजिटल फॉर्म भरने में सक्षम नहीं हैं, जबकि पोर्टल बेहद विस्तृत जानकारी मांगता है, जिसमें कई पुराने वक़्फ़ के रिकॉर्ड उपलब्ध ही नहीं हैं.
किशनगंज के कांग्रेस सांसद डॉ. मोहम्मद जावेद ने लोकसभा में कहा कि पोर्टल बार-बार क्रैश होने से हज़ारों मस्जिदें, क़ब्रिस्तान , मदरसे और दरगाहें डि-रिकग्निशन के ख़तरे में हैं, जो एक बड़ी प्रशासनिक चूक है. कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने संसद के बाहर प्रदर्शन करते हुए कहा कि अभी तक केवल 30% रजिस्ट्रेशन हो पाए हैं और सर्वर लगातार क्रैश हो रहा है, इसलिए समयसीमा बढ़ाई जानी चाहिए. सरकार ने भले ही तीन महीने तक कार्रवाई रोकने का भरोसा दिया है, पर औपचारिक रूप से डेडलाइन बढ़ाने पर अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है.
‘ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट से हम भारत का सबसे प्राचीन और अनछुआ परिदृश्य खो देंगे’
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में प्रस्तावित 92,000 करोड़ रुपये के मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को लेकर पर्यावरणविदों की चिंताएं गहरा गई हैं. ‘आर्टिकल-14’ में कविता अय्यर की रिपोर्ट के मुताबिक़, इस प्रोजेक्ट के लिए 130 वर्ग किलोमीटर वर्षावन (Rainforest) काटे जाएंगे, जिसका सीधा असर वहां की नाज़ुक जैव-विविधता और आदिम जनजातियों पर पड़ेगा. पंकज सेकसरिया की नई संपादित किताब ‘आइलैंड ऑन एज’ (Island on Edge) में इस परियोजना की क़ानूनी, नैतिक और पारिस्थितिक खामियों को उजागर किया गया है.
सेखसरिया ने साक्षात्कार में बताया कि यह प्रोजेक्ट सिर्फ़ पर्यावरण के साथ ही नहीं, बल्कि देश के क़ानून और नागरिकों के साथ भी ‘विश्वासघात’ है. प्रोजेक्ट की लागत पिछले चार सालों में 72,000 करोड़ से बढ़कर 92,000 करोड़ रुपये हो गई है. एम. राजशेखर के विश्लेषण का हवाला देते हुए रिपोर्ट में बताया गया है कि यह परियोजना आर्थिक रूप से भी अव्यावहारिक हो सकती है क्योंकि यहाँ बनने वाले पोर्ट (बंदरगाह) के लिए पर्याप्त ट्रैफ़िक मिलने की उम्मीद कम है.
सबसे बड़ी चिंता शोम्पेन जनजाति और लेदरबैक कछुओं को लेकर है. प्रोजेक्ट वाली जगह लेदरबैक कछुओं के लिए हिंद महासागर का सबसे महत्वपूर्ण नेस्टिंग साइट है. इसके अलावा, यह क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है, जिसे नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. सेखसरिया चेतावनी देते हैं कि हम एक ऐसे परिदृश्य को खोने जा रहे हैं जहाँ आज भी नई प्रजातियां खोजी जा रही हैं.
आरबीआई नियमों ने आम नागरिकों के 67,000 करोड़ रुपये ‘इनऑपरेटिव’ खातों में क़ैद किए
भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के सख़्त नियमों के कारण लाखों भारतीयों की गाढ़ी कमाई बैंकों में फंस गई है. ‘न्यूज़क्लिक’ पर कुलविंदर सिंह सेठी की रिपोर्ट के अनुसार, अगर किसी खाते में 24 महीने तक ग्राहक की तरफ़ से कोई लेन-देन नहीं होता है, तो उसे ‘इनऑपरेटिव’ (निष्क्रिय) घोषित कर दिया जाता है. इसका नतीजा यह होता है कि डिजिटल लेन-देन बंद हो जाता है और खाते को दोबारा चालू करने के लिए फिर से KYC की मांग की जाती है.
आरबीआई के ‘डिपाज़िटर एजुकेशन एंड अवेयरनेस’ (DEA) फ़ंड में 67,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा लावारिस पड़े हैं. रिपोर्ट बताती है कि यह नियम सबसे ज़्यादा बुज़ुर्गों, प्रवासी मज़दूरों और जन धन खाताधारकों को प्रभावित कर रहा है. कानपुर के एक रिटायर्ड शिक्षक और भागलपुर की एक गृहिणी जैसे कई लोग इस नियम के शिकार हुए हैं, जिन्हें पता ही नहीं चला कि उनका खाता कब बंद हो गया.
लेखक का तर्क है कि ‘चुप्पी’ को ‘परित्याग’ नहीं माना जाना चाहिए. कई बार लोग लंबी अवधि के लिए पैसा जमा करके छोड़ देते हैं. रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि डोरमेंसी (निष्क्रियता) की सीमा को 24 महीने से बढ़ाकर 5 साल किया जाना चाहिए और खाता निष्क्रिय करने से पहले ग्राहकों को चेतावनी देना अनिवार्य होना चाहिए. साथ ही, लावारिस खातों को खोजने की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने की ज़रूरत है.
जनरल आसिम मुनीर: पाकिस्तान का ‘राजा’, जिसके पास अब असीमित ताक़त है
पाकिस्तान की संसद द्वारा हाल ही में पास किए गए 27वें संविधान संशोधन ने सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को देश का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बना दिया है. ‘द गार्जियन’ की रिपोर्ट में हाना एलिस-पीटरसन और शाह मीर बलोच लिखते हैं कि इसे आलोचक “संवैधानिक तख्तापलट” बता रहे हैं. इस संशोधन के ज़रिए मुनीर को आजीवन अभियोजन (Prosecution) से छूट मिल गई है और उनका कार्यकाल बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया है, जिसके और आगे बढ़ने की भी संभावना है.
अब मुनीर न केवल सेना, बल्कि नौसेना और वायु सेना के भी प्रमुख होंगे. रिपोर्ट के मुताबिक़, मुनीर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का “पसंदीदा फ़ील्ड मार्शल” माना जा रहा है. भारत के साथ मई में हुए तनाव और कथित तौर पर भारतीय जेट्स को मार गिराने के दावों ने मुनीर की लोकप्रियता को बढ़ाया है, जिसे विश्लेषक उनके लिए “गॉड सेंड” (ईश्वरीय वरदान) मान रहे हैं.
इस संशोधन ने न्यायपालिका की शक्तियों को भी सीमित कर दिया है. आलोचकों का कहना है कि अब पाकिस्तान में कोई संविधान या न्यायपालिका नहीं बची है, बल्कि सिर्फ़ एक व्यक्ति का राज है. हालांकि, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ़ ने इसका बचाव करते हुए कहा है कि मुनीर को ये शक्तियां इसलिए दी गई हैं क्योंकि उन्होंने भारत के ख़िलाफ़ ‘युद्ध’ जीता है. लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि मुनीर अब प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति से भी ज़्यादा ताक़तवर हो गए हैं और उन्हें हटाना लगभग नामुमकिन होगा.
बॉलीवुड का वेडिंग रेट कार्ड: शादियों में शिरकत करने के लिए कितना चार्ज करते हैं सितारे?
आजकल अरबपतियों की शादियों में बॉलीवुड सितारों का नाचना या सिर्फ़ दिखना स्टेटस सिंबल बन गया है. ‘द हॉलीवुड रिपोर्टर इंडिया’ ने इंडस्ट्री के अंदरूनी सूत्रों के हवाले से इन सितारों की फ़ीस का एक अनुमानित ‘रेट कार्ड’ तैयार किया है. रिपोर्ट बताती है कि बॉलीवुड में रिश्तों के लिए नहीं, बल्कि ‘इन्ववॉइस’ (बिलों) के लिए शादियों में हाज़िरी लगाई जाती है. सुपरस्टार शाहरुख ख़ान इस लिस्ट में सबसे ऊपर हैं. ख़बरों के मुताबिक़, वह सिर्फ़ शादी में आने, मेहमानों से मिलने और फ़ोटो खिंचवाने के लिए 5 से 6 करोड़ रुपये चार्ज करते हैं. सलमान ख़ान इसके लिए 3 से 4 करोड़ रुपये लेते हैं, जबकि रणवीर सिंह लगभग 2 करोड़ रुपये लेते हैं. अक्षय कुमार, जो परफ़ॉर्मेंस के लिए भी तैयार रहते हैं, 1.25 से 1.50 करोड़ रुपये चार्ज करते हैं. शाहिद कपूर और वरुण धवन परफ़ॉर्मेंस के लिए 1 से 2 करोड़ रुपये लेते हैं. रिपोर्ट में एक दिलचस्प “चार्टर जेट क्लॉज” का भी ज़िक्र है. आम तौर पर सिर्फ़ चार सितारों—शाहरुख, सलमान, रणवीर और अक्षय—को ही शादी वाले आयोजकों की तरफ़ से प्राइवेट चार्टर जेट मिलता है. बाक़ी कलाकारों को चार्टर प्लेन तब मिलता है जब वे समूह में जा रहे हों. एंकरिंग के लिए मनीष पॉल जैसे होस्ट 12-15 लाख रुपये तक चार्ज करते हैं.
मदुरै में मंदिर-दरगाह विवाद क्यों भड़का, और इसने कैसे एक राजनीतिक तूफान खड़ा किया?
मद्रास उच्च न्यायालय के 1 दिसंबर के आदेश के बाद, तमिलनाडु के मदुरै स्थित तिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर एक हिंदू मंदिर और उससे सटे दरगाह के बीच सदी पुराना संपत्ति विवाद फिर से भड़क उठा है, जिसने वर्तमान राजनीतिक तनावों को और गहरा कर दिया है.
इस पहाड़ी पर सुब्रमण्यम स्वामी मंदिर (जिसे भगवान मुरुगा के छह निवास स्थानों में से एक माना जाता है) और उससे कुछ मीटर दूर सुल्तान सिकंदर अवुलिया दरगाह स्थित है. पिछले दो वर्षों से, याचिकाएँ, प्रदर्शन और न्यायिक निर्देश पहाड़ी पर स्थित विवादित ‘दीपातून’ स्थल से जुड़े अनुष्ठानों, जुलूसों और क्षेत्रीय दावों को परिभाषित करने का प्रयास कर रहे हैं.
हालिया गरमागरमी तब शुरू हुई जब राज्य के अधिकारी ‘दीपातून’ स्तंभ पर “कार्तिगई दीपम” दीपक जलाने के न्यायालय के 1 दिसंबर के निर्देश को पूरा करने में विफल रहे. बुधवार को, मदुरै पीठ के अवमानना आदेश के बाद, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की सुरक्षा में याचिकाकर्ता और समर्थकों को अनुष्ठान पूरा करने के लिए पहाड़ी पर पहुँचाया गया. न्यायाधीश ने इस कृत्य को “प्रतीकात्मक लेकिन आवश्यक” बताते हुए कहा कि आदेश लागू न करना “लोकतंत्र के लिए मृत्यु की घंटी बजाएगा.”
इस खबर के फैलते ही, हिंदू मुन्नानी संगठन के समर्थकों ने मंदिर परिसर के पास पत्थरबाजी की, जिसमें कम से कम छह अधिकारी घायल हो गए. इसके जवाब में, मदुरै के जिला मजिस्ट्रेट ने “आकस्मिक कानून और व्यवस्था की स्थिति” का हवाला देते हुए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 163 (सीआरपीसी की धारा 144 के बराबर) के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी.
गुरुवार को, न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार की अवमानना आदेश को चुनौती देने वाली अपील को खारिज कर दिया, जिससे मूल निर्देश बरकरार रहा. देर रात, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नैनार नागेंद्रन और वरिष्ठ नेता एच राजा को विवादित स्थल में प्रवेश के प्रयास पर हिरासत में ले लिया गया.
यह विवाद, वर्तमान में दीप जलाने के अनुष्ठान पर केंद्रित है, लेकिन इसका मूल पहाड़ी के नियंत्रण से जुड़ा है, जो स्वतंत्रता-पूर्व का है. 1915-1916 में, दरगाह के हुकदारों (देखभाल करने वालों) द्वारा पहाड़ी के पत्थरों से नेल्लिटोप क्षेत्र में एक मंडपम बनाने की कोशिश के बाद विवाद भड़क उठा. मंदिर के अधिकारियों ने 1837 के दस्तावेज़ का हवाला देते हुए पूरी पहाड़ी पर अपना स्वामित्व दावा किया. ब्रिटिश कलेक्टर जी एफ पैडिसन की मध्यस्थता विफल रही, और मामला अदालत में गया.
1931 में, मामला लंदन की प्रिवी काउंसिल तक पहुँचा. प्रिवी काउंसिल ने अधीनस्थ न्यायाधीश के निष्कर्ष को बरकरार रखा: पहाड़ी मंदिर की थी, सिवाय नेल्लिटोप क्षेत्र, मस्जिद के वास्तविक स्थल और उसके ढांचे के.
इस फैसले ने पहाड़ी को स्वामीमलाई या भगवान की पहाड़ी के रूप में संदर्भित करते हुए, मंदिर द्वारा सदियों से किए जा रहे “स्वामित्व के कार्य” को मान्यता दी. उस समय, यह विवाद राजनीतिक लामबंदी के बिना, मुख्य रूप से प्रशासकों के बीच सुलझा लिया गया था.
दशकों तक शांत रहने के बाद, हाल के वर्षों में अनुष्ठानिक प्रथाओं और जुलूसों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के बीच यह विवाद फिर से जीवित हो गया है. फरवरी 2024 में, न्यायमूर्ति एन इलांथिरैयान ने वैकल्पिक मार्ग पर विचार करने को कहा, लेकिन दोनों पक्षों ने इसे खारिज कर दिया. वरिष्ठ लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि नया मार्ग “सांप्रदायिक जुनून भड़काएगा.”
वर्तमान याचिका, जो स्थानीय निवासियों के बजाय हिंदू मुन्नानी से जुड़े व्यक्तियों द्वारा दायर की गई थी, ने विशिष्ट अनुष्ठानों पर ध्यान केंद्रित करके एक रणनीतिक बदलाव को चिन्हित किया. बुधवार का अवमानना फैसला प्रिवी काउंसिल के निष्कर्षों पर आधारित था, जिसमें ‘दीपातून’ पर दीप जलाना मंदिर के स्वामित्व वाली भूमि से जुड़ी एक ऐतिहासिक प्रथा के रूप में स्थापित किया गया.
“द इंडियन एक्सप्रेस” में अरुण जनार्दन की रिपोर्ट है कि अब इस मुद्दे ने राजनीतिक रूप ले लिया है. द्रमुक सरकार ने भाजपा और संघ से जुड़े संगठनों पर तमिलनाडु में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती मंत्री पी के शेखरबाबू ने कहा कि भाजपा का लक्ष्य “कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा करना” है. उन्होंने कहा कि मस्जिद लगभग 600 वर्षों से और मंदिर सदियों से है, और तिरुप्परनकुंद्रम के लोग “पूर्ण सद्भाव में” रहे हैं. उन्होंने कहा कि राज्य “कानून के शासन का पालन करेगा” और अदालती आदेशों को लागू करेगा, यह सुनिश्चित करेगा कि पुराने अनुष्ठान जारी रहें.
राज्य सरकार की अपील खारिज होने के बाद, 1 दिसंबर का आदेश बरकरार है. खंडपीठ ने दोहराया कि ‘दीपातून’ पर दीपक जलाना अब न्यायिक रूप से स्थापित अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 से जुड़ा है, और राज्य मशीनरी का संवैधानिक दायित्व है कि वह अदालती फैसलों को लागू करे. आगामी राज्य विधानसभा चुनावों से पहले, भाजपा राजनीतिक लाभ उठाने के लिए इस विवाद पर लामबंद होने की कोशिश करेगी. यह मामला अब धार्मिक पहचान, कानूनी मिसाल, राज्य के अधिकार और न्यायिक दृढ़ता को संतुलित करने वाला एक “परीक्षण” बन गया है.
ब्लूमबर्ग ने साइबर अरेस्ट को समझाने के लिए ग्राफिक नॉवेल के फॉरमेट में प्रयोग किया है. इसे हिंदी और अंग्रेजी दोनों में बनाया गया है. आप यहां देख सकते हैं.
अरुंधति रॉय की किताब की बिक्री पर रोक लगाने की याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अरुंधति रॉय की किताब, ‘मदर मैरी कम्स टू मी’ की बिक्री, प्रसार और प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी, क्योंकि इसके कवर पर उन्हें बीड़ी या सिगरेट पीते हुए दिखाया गया था, जो कानून का उल्लंघन है.
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर केरल उच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका खारिज किए जाने के खिलाफ एक व्यक्ति, राजसिम्हन द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया.
“पीटीआई” के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “वह एक जानी-मानी लेखिका हैं. उन्होंने ऐसी किसी चीज़ को बढ़ावा नहीं दिया है. किताब में एक चेतावनी भी है, और वह एक प्रमुख व्यक्ति भी हैं. प्रचार के लिए ऐसी चीजें क्यों करें? शहर में किताब की तस्वीर वाला कोई होर्डिंग नहीं है. यह उन लोगों के लिए है जो किताब लेंगे और पढ़ेंगे. उस पर उनकी तस्वीर ऐसी किसी बात को चित्रित नहीं करती है.”
पीठ ने कहा कि लेखिका और प्रकाशक पेंगुइन हैमिश हैमिल्टन ने सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का निषेध और व्यापार और वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का विनियमन) अधिनियम, 2003 की धारा 5 का उल्लंघन नहीं किया है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “किताब, प्रकाशक या लेखक का सिगरेट आदि के विज्ञापन से कोई लेना-देना नहीं है. यह कोई विज्ञापन नहीं है. आप लेखक के विचारों से असहमत हो सकते हैं... लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि ऐसा कोई मामला दायर किया जा सकता है.”
अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.










