06/02/2025 : महाकुंभ की लाशों का गोरखधंधा जारी, एक्जिट पोल्स में भाजपा दिल्ली में आगे, भारतीयों को हथकड़ी पर नाराज़गी, बजट में फिर सौतेले हुए अल्पसंख्यक, नये आग़ा खान का आग़ाज़
हरकारा हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
उम्मीद है ‘हरकारा’ आपके मेन फोल्डर में ही जा रहा है, स्पैम में नहीं. एक बार देख कर तसल्ली कर लें.
आज की सुर्खियां | 6 फरवरी 2025
महाकुंभ की लाशें ढूंढ़ रही हैं अपना नंबर सरकारी डाटा में, डेढ़ हज़ार लोगों को परिजनों की तलाश
72 के शव परिजनों को सौंपे जा चुके, कुल मृतक संख्या 79
“न्यूज़लॉन्ड्री” में बसंतकुमार की रिपोर्ट में अस्पतालों और पुलिस रिकॉर्ड्स के आधार पर दावा किया गया है कि प्रयागराज महाकुंभ में 29 जनवरी को संगम नोज़ पर मची भगदड़ में 79 श्रद्धालुओं की मौत हुई है. इनमें से 72 मृतकों के शव परिजनों को सौंपे जा चुके हैं और बाकी सात को सौंपा जाना शेष है. सरकारी आंकड़ा हालांकि मृतकों का अब भी 30 ही बना हुआ है. मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में कुल 69 शव लाए गए. 3 फरवरी की शाम तक 66 शव परिजनों को सौंपे जा चुके थे. वहीं तीन शव (एक पुरुष और दो महिलाओं) अस्पताल में मौजूद थे, क्योंकि इनकी पहचान नहीं हो सकी थी. “द टेलीग्राफ” के अनुसार महाकुंभ में भगदड़ के बाद करीब डेढ़ हजार लोग अपने लापता परिजनों को तलाश रहे हैं. कई अपीलें सोशल मीडिया पर आ रही हैं. “खोया पाया” केंद्रों से कोई जानकारी न मिलने के कारण कई लोग अब शवगृह जाकर संपर्क कर रहे हैं, ताकि उन्हें अपने लापता रिश्तेदारों के बारे में कोई जानकारी मिल सके. लापता श्रद्धालुओं में अधिकतर महिलाएं हैं. उनमें से एक, फूली निषाद, जो हमीरपुर के ढेहा डेरा गांव से हैं, मौनी अमावस्या के दिन से लापता हैं. उनके बेटे राजेश निषाद, जो अहमदाबाद में काम करते हैं, ने बताया कि मेरी मां मेले में परिवार से अलग हो गईं और तब से हमारा उनसे कोई संपर्क नहीं हुआ है. ग्वालियर से 15 श्रद्धालुओं के समूह के साथ महाकुंभ में आईं शकुंतला देवी भी लापता हैं. “घटना के बाद से हमारा आंटी से कोई संपर्क नहीं हुआ है. उनके गले में एक पहचान पत्र है. उनका फोन बंद है और उन्होंने किसी से संपर्क नहीं किया है. हमें नहीं पता कि क्या करना है,” उनके भतीजे जितेंद्र साहू ने बताया. परेशान लोगों की इस खबर के बीच ही बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्रिवेणी संगम पर डुबकी लगाई. मोदी ने “एक्स” पर लिखा, “संगम में स्नान एक दिव्य संबंध का क्षण है, और करोड़ों अन्य लोगों की तरह जिन्होंने इसमें भाग लिया, मैं भी भक्ति की भावना से भर गया. मां गंगा सभी को शांति, ज्ञान, अच्छे स्वास्थ्य और सामंजस्य का आशीर्वाद दें.”
कार्टून
साभार : मंजुल
दिल्ली चुनाव
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की पोलिंग बुधवार को शाम साढ़े छह बजे समाप्त हो गई. एक ही चरण में हुए चुनाव में 57.89% मतदान हुआ. 2020 के मुकाबले 5% की गिरावट दर्ज की गई. पिछले चुनाव में दिल्ली में 62.59% वोट पड़े थे. दिल्ली विधानसभा चुनाव के साथ मिल्कीपुर, उत्तर प्रदेश और इरोड (पूर्व), तमिलनाडु की सीटों पर बुधवार को उपचुनाव हुआ. इन दोनों जगहों पर क्रमशः 65.25% और 64.02% मतदान हुआ.
भरोसा खो चुके एक्जिट पोल्स में भाजपा आगे
वोटिंग समय समाप्त होते ही वेबसाइट्स और टीवी चैनलों पर एक्जिट पोल्स की दुकानें सज गईं. कई चुनावी विश्लेषक और डेटा एनालिसिस ने ‘एक्जिट पोल के जरिये भाजपा की सरकार दिल्ली में बनवा दी’. लेकिन वहीं पर यह भी सच है कि एक्जिट पोल गलत साबित होते रहे हैं. ताजा उदाहरण हालिया लोकसभा चुनाव का ले सकते हैं.
दिल्ली चुनाव को लेकर कई एजेंसियों ने एक्जिट पोल जारी किया है और सभी में भाजपा बहुमत ला रही है. चुनाव सर्वेक्षण एजेंसी पीपुल्स इनसाइट के अनुसार, कुल 70 विधानसभा सीटों में से भाजपा 40-44 सीटें जीत सकती है, जबकि अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप को 25-29 सीटें मिल सकती हैं.
पी-मार्क भाजपा को 39-49 तो आप को 21-31 सीट दे रहा है. पीपुल्स पल्स ने कहा कि भाजपा 51-60 और आप 10-19 सीटें जीत सकती है. मैट्रिज ने भाजपा को 35-40 आप को 32-37 सीटों का अनुमान लगाया है. इसी तरह जेवीसी भाजपा को 39-45 तो आप को 22-31 सीटें दे रहा है. चाणक्य स्ट्रैटेजीज ने भाजपा को 39-44 और आप को 25-28 सीटें जीतने का अनुमान बताया है. वहीं कांग्रेस को अधिकतम तीन सीटें मिलने का अनुमान है.
कैसे रहे हैं दिल्ली के एक्जिट पोल : दिल्ली हमेशा एक्जिट पोल्स को ग़लत साबित करती रही है. उदाहरण के लिए पिछले तीन चुनावों के एक्जिट पोल, जबसे ‘आम आदमी पार्टी’ चुनाव लड़ रही है, देखते हैं. 2013 में भी एग्जिट पोल्स ने बीजेपी की करीब-करीब सरकार बना दी थी. उसने भारतीय जनता पार्टी को बहुमत के आंकड़े से महज एक कम 35 सीटें दी थी. वहीं आप और कांग्रेस, दोनों को 17-17 सीटें. असली नतीजे में भाजपा को 32, आप को 28 और कांग्रेस सिर्फ आठ सीट मिली थी. इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से आप की सरकार बनी, जो 48 दिन ही चल पाई. फिर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लग गया.
इसके बाद 2015 में चुनाव हुआ. इसमें एक्जिट पोल्स ने आप को 45, बीजेपी को 24 और कांग्रेस को एक सीट मिलने का अनुमान जताया था. पोल्स इस बार औंधे मुंह गिरे और आप ने 70 में से 67 सीटें जीत लीं. भाजपा तीन पर अटक गई तो कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला.
2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक्जिट पोल्स के अनुमान पिछले दोनों चुनावों से थोड़े बेहतर थे. उन्होंने आप को 54 और भाजपा को 15 सीटों का अनुमान जताया था. मगर भाजपा महज आठ पर सिमट गई तो आप ने फिर 62 सीटों के साथ क्लीन स्वीप किया.
डिपोर्ट किये गये 104 भारतीयों को हथकड़ी पहनाने पर लोग नाराज़, सरकार चुप
आखिरकार, 104 अवैध प्रवासी भारतीयों को लेकर एक अमेरिकी सैन्य विमान बुधवार को अमृतसर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतर गया. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में यह पहला निर्वासन है. निर्वासित भारतीयों में पंजाब से 30, हरियाणा और गुजरात से क्रमशः 33-33, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र से 3-3 और दो चंडीगढ़ से हैं. यह पहली बार है जब अमेरिका ने प्रवासियों को भारत भेजने के लिए एक सैन्य विमान का उपयोग किया है, जबकि पूर्व में निर्वासन वाणिज्यिक उड़ानों के जरिए किए गए थे. 104 निर्वासित प्रवासियों में 79 पुरुष और 25 महिलाएं हैं. 13 नाबालिग हैं, जिनकी उम्र 4 से 17 वर्ष के बीच है. सबसे बड़ी उम्र के निर्वासित व्यक्ति मुंबई के 44 वर्षीय गुरविंदर सिंह हैं. इधर, विपक्षी दल कांग्रेस ने अमेरिका से निर्वासित भारतीयों को “हथकड़ी पहनाकर अपमानित” करने का विरोध किया है. कांग्रेस नेता शशि थरूर, जो कि विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष हैं, ने इस मुद्दे पर “द इंडियन एक्सप्रेस” से कहा, “मैंने सुना है कि उन्होंने उन्हें एक सैन्य विमान में भेजा है. यही एक चीज़ है, जिससे मैं खुश नहीं हूं.” थरूर ने यह भी कहा कि भारत भी अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को निर्वासित कर सकता है, यदि उनकी राष्ट्रीयता की पुष्टि हो जाती है. उन्होंने यह भी कहा कि कई लोग जो भारतीय होने का दावा करते हैं, उन्हें कुछ लोग बिना इसे साबित किए बांग्लादेशी बताते हैं.
इस बीच द नॉर्थ अमेरिकन पंजाबी एसोसिएशन (एनएपीए) ने पंजाब सरकार से अमेरिका से निर्वासित युवाओं के लिए पुनर्वास कोष स्थापित करने की अपील की है. एसोसिएशन ने निर्वासन को एक सामाजिक समस्या बताया है और कहा है कि वापस लौट रहे अवैध प्रवासियों पर यह दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकती है.
15 दिन ही हुए थे अमेरिका गये
20 वर्षीय अजयदीप (अमृतसर) को अमेरिका भेजे हुए सिर्फ 15 दिन हुए थे. उसके दादा ने बताया, "विमान उतरने से पहले उसने माँ से बात की थी." होशियारपुर के हरविंदर सिंह के परिवार ने एजेंट को 42 लाख रुपए दिए थे. पत्नी ने द वायर को बताया, "एजेंट ने कानूनी रास्ते का वादा किया था, लेकिन धोखा दिया. सरकार नकली एजेंटों के खिलाफ कार्रवाई करे." 26 वर्षीय मनजीत कौर (नाम बदला हुआ) को अमेरिका में शादी के लिए भेजा गया था. परिवार ने 40 लाख रुपए खर्च किए, जिसमें दूल्हे का भी योगदान था.
द वायर की कुसुम अरोरा ने डिपोर्ट किये गये भारतीयों में से कुछ और उनके रिश्तेदारों से बात की.अमृतसर के एयरफोर्स स्टेशन पर बुधवार को अमेरिकी सैन्य विमान C-17 ग्लोबमास्टर से 104 भारतीय प्रवासी उतारे गए, जिनमें से अधिकांश हाल ही में अवैध रास्तों ("डुंकी") से अमेरिका घुसे थे. यह ट्रंप प्रशासन द्वारा अमेरिकी महाद्वीप के बाहर आयोजित पहली डिपोर्टेशन फ्लाइट है.
पंजाब के एनआरआई मामलों के मंत्री कुलदीप धालीवाल ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, "मोदी ने ट्रंप के लिए 'अबकी बार, ट्रंप सरकार' का नारा दिया था. अब वे डिपोर्टेशन का मुद्दा उठाएं." उन्होंने खुलासा किया कि कई युवाओं को डुबई-आधारित एजेंट ने फंसाया.
बजट 2025
अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा और विकास योजनाओं में एक बार फिर कटौती
अफ़रोज़ आलम साहिल एक स्वतंत्र लेखक हैं. उन्होंने ‘द वायर’ के लिए अल्पसंख्यकों के लिए मौजूदा बजट 2025-26 में क्या है, इसका विश्लेषण किया है. उनके अनुसार, अल्पसंख्यकों के शिक्षा और विकास बजट में उल्लेखनीय कमी की गई है.
कटौती का सामना करने वाली पहली शैक्षिक योजना अल्पसंख्यकों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति है. यह एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है, जो अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को स्कूल जाने में मदद करता है. 2023-24 में, इस योजना के लिए बजट 433 करोड़ रुपये निर्धारित किया था. 2024-25 में इसे घटाकर 326.16 करोड़ रुपये कर दिया गया. अब, 2025-26 के लिए आवंटन में जबरदस्त कमी कर महज 195.70 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
वास्तविक व्यय का संदर्भ में देखें तो 2023-24 में महज 95.83 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया और 2024-25 में, 326.16 करोड़ रुपये आवंटित किए जाने के बावजूद सिर्फ 90 करोड़ रुपये जारी किए गए. आवंटन में गिरावट को देखते हुए इस वर्ष के व्यय के आंकड़े और भी अधिक चिंताजनक हो सकते हैं.
अल्पसंख्यकों के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति के मामले में भी यही पैटर्न दिख रहा है. 2025-26 के बजट में पिछले साल की तुलना में करीब 65% कटौती कर 413.99 करोड़ रुपये कर दिया गया है. व्यावसायिक और तकनीकी पाठ्यक्रमों (स्नातक और स्नातकोत्तर) के लिए मेरिट-कम-मीन्स छात्रवृत्ति के मामले में भी यही देखा गया है. पिछले साल 33.80 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन इस साल केवल 7.34 करोड़ रुपये रखे गए हैं. विदेश में अध्ययन के लिए शैक्षिक ऋण पर ब्याज सब्सिडी का बजट पिछले साल के 15.30 करोड़ रुपये से घटाकर 8.16 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
2023-24 में मदरसों और अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा योजनाओं के लिए वित्तपोषण में 93% की कटौती की गई थी, जो घटकर मात्र 10 करोड़ रुपये रह गया था. 2024-25 में इसे और घटाकर मात्र 2 करोड़ रुपये कर दिया गया. इस वर्ष आवंटन में कटौती कर मात्र 0.01 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
कुल मिलाकर, 2024-25 में सरकार ने अल्पसंख्यक शिक्षा से संबंधित छह योजनाओं के लिए 1,575.72 करोड़ रुपये आवंटित किए, लेकिन वास्तव में केवल 517.20 करोड़ रुपये ही जारी किए गए. व्यय के आंकड़े, जो अब तक सामने नहीं आए हैं, और भी अधिक भयावह हो सकते हैं.
यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी प्रशासन ने मुस्लिम छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की संवैधानिकता को चुनौती दी थी. इसके कारण कई वर्षों तक गुजरात में अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को केंद्र सरकार की छात्रवृत्ति से वंचित रखा गया.
इस साल के बजट में वक़्फ़ से संबंधित योजनाओं के बजट में और कमी की गई है. ऐसी ही एक योजना है कौमी वक़्फ़ बोर्ड तरक्की योजना, जो वक़्फ़ बोर्ड द्वारा प्रबंधित वक़्फ़ संपत्तियों के रिकॉर्ड को कंप्यूटरीकृत या डिजिटल बनाने पर केंद्रित है. दूसरी योजना है शहरी वक़्फ़ संपत्ति विकास योजना, जो वक़्फ़ संपत्तियों के वाणिज्यिक विकास को बढ़ावा देने के लिए वक़्फ़ संस्थानों और वक़्फ़ बोर्डों को ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करती है. इन ऋणों का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में खाली वक़्फ़ भूमि पर व्यावसायिक परिसर, विवाह भवन, अस्पताल, कोल्ड स्टोरेज इकाई आदि जैसी आर्थिक रूप से लाभकारी इमारतों का निर्माण करना है. शुरुआत में इन दोनों योजनाओं के लिए अलग-अलग फंड थे, लेकिन 2020-21 में केंद्र सरकार ने बजट कम कर दिया और दोनों की फंडिंग को एक कर दिया.
वर्ष 2023-24 में इन दोनों योजनाओं के लिए 17 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, लेकिन केवल 8 करोड़ रुपए जारी किए गए और वास्तविक व्यय 0.10 करोड़ रुपए रहा. वर्ष 2024-25 के लिए 16 करोड़ रुपए का बजट घोषित किया गया था, लेकिन केवल 3.07 करोड़ रुपए जारी किए गए. इस वर्ष दोनों योजनाओं के लिए बजट को घटाकर 13 करोड़ रुपए कर दिया गया है.
इसके अलावा मोदी सरकार ने कई महत्वपूर्ण योजनाओं को स्थायी रूप से बंद कर दिया है. कौशल विकास कार्यक्रम, नई मंजिल (एकीकृत शैक्षिक और आजीविका पहल), यूएसटीटीएडी (विकास के लिए पारंपरिक कला/शिल्प में कौशल उन्नयन और प्रशिक्षण), अल्पसंख्यक महिलाओं के नेतृत्व विकास की योजना और हमारी धरोहर (अल्पसंख्यक संस्कृतियों और विरासत के संरक्षण और सुरक्षा के लिए) जैसी पहलों को पूरी तरह से रोक दिया गया है. इसके अलावा यूपीएससी, एसएससी और राज्य लोक सेवा आयोगों की प्रारंभिक परीक्षा पास करने वाले छात्रों के लिए सहायता जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम भी रोक दिए गए हैं. मौलाना आज़ाद एजुकेशन फ़ाउंडेशन (एमएईएफ) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम (एनएमडीएफसी) के लिए इक्विटी योगदान का बजट पिछले साल ही शून्य कर दिया गया था. इस साल भी यही पैटर्न दोहराया गया है.
असली कहानी अलग है : यहां यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि सरकार अक्सर रिलीज़ के समय अपने घोषित बजट में संशोधन करती है. उदाहरण के लिए, 2024-25 में, सरकार ने शुरू में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के लिए 3,183.24 करोड़ रुपये का बजट घोषित किया था, लेकिन समीक्षा के बाद इसे घटाकर 1,868.18 करोड़ रुपये कर दिया था. यह देखना अभी बाकी है कि अंतिम बजट जारी होने के बाद 2025-26 के लिए 3,350 करोड़ रुपये के मौजूदा आवंटन में और कितनी कटौती की जाएगी.
तेलंगाना सरकार ने जाति सर्वेक्षण का पूरा डाटा जारी नहीं किया
हैदराबाद : तेलंगाना सरकार ने मंगलवार को राज्य की जातिगत और सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर आधारित एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष जारी किए. इसके अनुसार, राज्य की 56% आबादी पिछड़ा वर्ग (कुछ मुस्लिम समुदायों सहित), 17% अनुसूचित जाति (SC), 10% अनुसूचित जनजाति (ST) और 16% अन्य जातियों (मुस्लिम समेत) से ताल्लुक रखती है. हालाँकि, मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने विधानसभा के विशेष सत्र में पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि इसका चौथा भाग "नागरिकों के निजी डेटा" को समेटे हुए है, जिसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि तीन अन्य भागों को कानूनी राय लेने के बाद टेबल किया जाएगा.
उप-वर्गीकरण : सरकार ने घोषणा की कि राज्य की 59 अनुसूचित जातियों को तीन उप-वर्गों में बाँटकर आरक्षण दिया जाएगा :
पहला समूह : 1% आरक्षण
दूसरा समूह (मादिगा समुदाय) : 9% आरक्षण
तीसरा समूह : 5% आरक्षण
मादिगा समुदाय, जो तेलंगाना में दलित आबादी का बड़ा हिस्सा है, लंबे समय से दावा करता रहा है कि उसे आरक्षण का समान लाभ नहीं मिला. सरकार का यह कदम इसी मांग के मद्देनजर बताया जा रहा है.
विपक्ष ने उठाए सवाल, आँकड़ों पर संदेह : विपक्षी नेताओं ने सर्वेक्षण के आँकड़ों की सटीकता पर सवाल उठाए हैं. उनका आरोप है कि रिपोर्ट को अधूरा जारी करके सरकार "जानबूझकर पारदर्शिता से परहेज" कर रही है. कांग्रेस सरकार पर राजनीतिक लाभ के लिए आरक्षण नीति में बदलाव का भी आरोप लगाया जा रहा है. मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा कि सर्वेक्षण का उद्देश्य "सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना" है. उन्होंने कहा, "एससी उप-वर्गीकरण से हर समुदाय को उसके हिस्से का अधिकार मिलेगा. हम इस नीति को कानूनी रूप से मजबूत करने के लिए हर कदम उठाएंगे." तेलंगाना में जाति आधारित आरक्षण को लेकर लंबे समय से बहस चल रही है. मादिगा समुदाय ने 1994 से ही उप-वर्गीकरण की मांग की है, जिसे अब सरकार ने लागू करने का ऐलान किया है. हालाँकि, इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती की आशंका भी जताई जा रही है.
तिरुपति में 18 गैर-हिंदू कर्मचारियों पर कार्रवाई शुरू : तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम ने गैर-हिंदू धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए 18 कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है. कर्मचारियों से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन करने या विभिन्न सरकारी विभागों में स्थानांतरित होने को भी कहा गया है. टीटीडी बोर्ड ने तर्क दिया कि उसका निर्णय उसके मंदिरों और धार्मिक गतिविधियों की 'आध्यात्मिक पवित्रता' को बनाए रखने के प्रयासों के अनुरूप है. टीटीडी 12 मंदिरों और उप-मंदिरों का रख-रखाव करता है और 14,000 से अधिक लोगों को रोजगार देता है.
हिंदू संगठन का विरोध प्रदर्शन : राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनों के बीच खुलेआम लड़ाई के बावजूद, थिरुपरनकुंद्रम तमिलनाडु के निवासी हाल की घटनाओं को ‘सांप्रदायिक’ बनाने के प्रयासों के खिलाफ खुलकर सामने आए हैं. मदुरै की जिला कलेक्टर एमएस संगीता ने बुधवार को कहा, ‘‘दोनों समुदाय के निवासी सद्भाव में रह रहे हैं. ‘बाहरी लोग’ परेशानी पैदा कर रहे हैं.” मंगलवार को प्रसिद्ध मुरुगन मंदिर के बाहर कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों द्वारा पहाड़ी पर मांस खाने के विरोध में विरोध में हिंदू मुन्नानी और भाजपा के सदस्यों ने प्रदर्शन किया. इसे उन छह निवासों में से एक माना जाता है, जहाँ मुरुगन का निवास माना जाता है. प्रदर्शनकारियों ने हिंदू मंदिर की ‘पवित्रता’ की रक्षा करने की मांग की.
भारतीय मूल के रैपर सुभाष नायर को सिंगापुर में ‘भड़काऊ, नस्लवादी’ गीत और पोस्ट के लिए जेल : भारतीय मूल के संगीतकार सुभाष गोविंद प्रभाकर नायर को नस्लीय और धार्मिक मतभेद को ऑनलाइन बढ़ावा देने के लिए अदालत में अपनी अपील हारने के बाद छह सप्ताह की जेल की सज़ा सुनाई है. 2023 में दोषी ठहराए जाने से पहले उन्हें 2019 और 2021 के बीच की गई नस्लवादी टिप्पणियों के लिए सशर्त चेतावनी मिली थी. सिंगापुर निवासी को ऑनलाइन पोस्ट के माध्यम से विभिन्न नस्लीय और धार्मिक समूहों के बीच दुर्भावना को बढ़ावा देने का प्रयास करने के लिए दोषी ठहराया गया है. बयानों के अलावा नायर ने यूट्यूब वीडियो में बहन के साथ नस्लवादी बोल वाले गीत पर परफॉर्म किया था.
चैट जीपीटी के लिए भारत दूसरा सबसे बड़ा बाजार : चैट जीपीटी चलाने वाली कंपनी ओपनएआई के प्रमुख सैम ऑल्टमैन ने बुधवार को केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के साथ दिल्ली में मुलाकात की. पीटीआई के अनुसार, ऑल्टमैन ने कहा कि भारत "एआई के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण बाजार" है और ओपनएआई का यहाँ दूसरा सबसे बड़ा यूजर बेस है. उन्होंने कहा, "भारत को एआई क्रांति का अगुआ होना चाहिए. देश ने इस तकनीक को अपनाकर उस पर अद्भुत निर्माण किया है." हालाँकि, ओपनएआई पर भारत में किताब प्रकाशकों और समाचार संस्थानों ने कॉपीराइट उल्लंघन के आरोप में मुकदमे दायर किए हैं. इस पृष्ठभूमि में ऑल्टमैन का यह बयान महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
अडानी ग्रुप : अपनी रिपोर्ट पर कायम हैं हिंडनबर्ग के नाथन एंडरसन
'फायनेंशियल एक्सप्रेस' की खबर है कि प्रसिद्ध एक्टिविस्ट शॉर्ट-सेलर नाथन एंडरसन ने कहा है कि वह अपनी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की सभी रिपोर्टों, विशेष रूप से अडानी ग्रुप पर जनवरी 2023 में जारी रिपोर्ट के निष्कर्षों पर अडिग हैं, जिसमें उन्होंने समूह पर वित्तीय धोखाधड़ी का आरोप लगाया था. इस रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप के शेयरों में 150 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट आई थी. हालांकि अडानी ग्रुप ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को "झूठ और गलत सूचनाओं का पुलिंदा" करार दिया था.
इस्माइली मुसलमानों की दुनिया में आया नया आग़ा खान
‘द गार्डियन’ की खबर है कि आग़ा खान IV का मंगलवार को लिस्बन में 88 साल की उम्र में अपने घर पर निधन हो गया है. वो इस्माइली मुसलमानों के विश्व नेता थे और उन्होंने उद्यमिता और दानशीलता से दुनिया के सबसे धनी वंशानुगत शासकों में से एक के रूप में अपनी पहचान बनाई. इस्माइली मुसलमान एक मुस्लिम संप्रदाय, एक वैश्विक, बहु-जातीय समुदाय हैं जिनके सदस्य मध्य एशिया, मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया, उप-सहारा अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में रहते हैं. उनकी मृत्यु के बाद, उनके बेटे प्रिंस रहीम को आग़ा खान V के रूप में 50वें इमाम के रूप में नियुक्त किया गया है.
आग़ा खान IV का असली नाम प्रिंस करीम अल-हुसेनी था. 'द गार्डियन' की खबर है कि उनके निधन की आग़ा खान डेवलपमेंट नेटवर्क के संचार निदेशक फय्याज़ नूर मोहम्मद ने पुष्टि की है. हालांकि, मृत्यु का कारण नहीं बताया गया. आग़ा खान IV के कई अनुयायी उन्हें दिव्य मानते थे, हालांकि उन्होंने खुद ऐसी बातों को नकारा किया. उन्होंने 1969 में ब्रिटिश मॉडल सारा क्रोकर पूल से शादी की थी, जिनका नाम बाद में सलीमा आग़ा खान रखा गया. इस दंपती के तीन बच्चे हुए, जिनमें प्रिंस ज़हरा, प्रिंस रहीम और प्रिंस हुसैन शामिल हैं. 1995 में उनका तलाक हो गया.
आग़ा खान IV के दो विवाह और कई कारोबारी प्रयासों के बावजूद, उन्होंने विश्वभर में अपनी मानवतावादी परियोजनाओं को जारी रखा. उनके योगदानों में ताजिकिस्तान में शैक्षिक और स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास और अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में उनके समुदाय के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना शामिल था. उन्होंने एक बार आग़ा खान बनने के बाद कहा था. "यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह रोजमर्रा के जीवन से दूर हो. इसके विपरीत, वह अपनी समुदाय की रक्षा करने और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए जिम्मेदार होते हैं. इसलिए, इस्लाम में विश्वास और दुनिया के बीच कोई विभाजन की धारणा विदेशी है."
आग़ा खान अक्सर मीडिया से दूर रहते थे. उन्होंने इस बात को खारिज किया था कि उनका निजी संपत्ति बढ़ाना उनके दान कार्यों के विपरीत होगा. उन्होंने कहा कि उनकी समृद्धि उनकी जिम्मेदारी को पूरा करने में मदद करती है, जिससे इस्माइली मुसलमानों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद मिलती है. इस्माइली मुसलमान शिया इस्लाम का ही एक अनुयायी समुदाय है. इसके दुनिया भर के 35 देशों में लगभग डेढ़ करोड़ लोग हैं.
आग़ा खान की जीवन शैली खासी रईसी और ठाठबाट वाली रही. उनके कारोबार में सार्डिनिया के कास्टा स्मेराल्डा रिसॉर्ट क्षेत्र का विकास, शुद्ध नस्ल के रेस घोड़ों की प्रजनन और विकासशील देशों में गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं स्थापित करना शामिल था. उनके घोड़े शेरगर ने 1981 में डर्बी जीतने के बाद चार और बार बड़ी दौड़ें जीतीं. इसके अलावा, 1964 में आग़ा खान ने शीतकालीन ओलंपिक में ईरान का प्रतिनिधित्व एक स्कीयर के रूप में किया था.
वह एक निजी कैरेबियाई द्वीप के मालिक थे और उनके पास दुनियाभर में कई घर भी थे, जिनमें फ्रांस के पास स्थित एग्लेमोंट भी शामिल था, जो उनके नेटवर्क का मुख्यालय बन गया था. आग़ा खान IV की संपत्ति का मूल्य 1000 करोड़ रुपये से 13000 करोड़ रुपये तक आंकी जाती है, जो उनके निवेशों, साझेदारियों और निजी होल्डिंग्स से आता था. इसमें लक्जरी होटलों, एयरलाइनों, रेस घोड़ों और समाचार पत्रों में निवेश शामिल था. साथ ही उनके अनुयायियों से भी इस धन का बड़ा हिस्सा आता था. उनके दादा आग़ा खान III ने अपने बेटों को छोड़कर इस पोते को अपना वारिस बनाया था. जब 1957 में उनके दादा का निधन हुआ, तो 20 वर्षीय करीम अल-हुसेनी ने इस्माइली मुसलमानों के 49वें इमाम के रूप में नेतृत्व संभाला. उस समय वह हार्वर्ड में इस्लामिक इतिहास के छात्र थे.
आग़ा खान कौन थे? आग़ा खान का जन्म 13 दिसंबर 1936 को स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा के पास क्रेक्स-डे-गेंथोड में हुआ था. वे जोआन यार्ड-बुलर और अली खान के बेटे थे. उन्होंने अपनी बचपन की कुछ अवधि नैरोबी, केन्या में बिताई, जैसा कि इस्माइली समुदाय की वेबसाइट पर बताया गया है. आग़ा खान ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय छोड़ दिया था ताकि वे अपने बीमार दादा, सर सुलतान महमद शाह आग़ा खान के पास रह सकें, और बाद में 1957 में 20 साल की उम्र में उन्हें इस्माइली मुसलमानों के इमाम के रूप में दायित्व मिला. 18 महीने बाद, उन्होंने अपनी शिक्षा फिर से शुरू की और एक गहरी जिम्मेदारी की भावना के साथ लौटे, जैसा कि एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट में बताया गया.
आध्यात्मिक नेता के रूप में आग़ा खान : आग़ा खान इस्लाम को एक सोचने-समझने वाला, आध्यात्मिक धर्म मानते थे. जो करुणा, सहनशीलता सिखाता है और मानव गरिमा का समर्थन करता है. वे मुस्लिम समाजों और पश्चिम के बीच पुल बनाने वाले के रूप में माने जाते थे. आग़ा खान के फिलेन्थ्रॉपिक कामों में स्वास्थ्य, शैक्षिक और सांस्कृतिक परियोजनाएं शामिल हैं, जो स्विट्ज़रलैंड में स्थित एकेडीएन के बड़े नेटवर्क का हिस्सा हैं. कुछ प्रमुख विकास एजेंसियों में आग़ा खान हेल्थ सर्विसेस, आग़ा खान स्कूल्स, आग़ा खान एजेंसी फॉर माइक्रोफाइनेंस, आग़ा खान फाउंडेशन, आग़ा खान एजेंसी फॉर हैबिटेट और दो विश्वविद्यालय, आग़ा खान विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय ऑफ़ सेंट्रल एशिया शामिल हैं. यह नेटवर्क 30 से अधिक देशों में काम करता है और इसका वार्षिक बजट लगभग 82,000 करोड़ रुपये है.
भारत से आग़ा खान का संबंध : भारत में उनके सामाजिक विकास कार्यों के अलावा, आग़ा खान को भारत में उनके इमामत के डायमंड जुबली समारोह के लिए बुलाया गया था, और उन्होंने 2018 में दिल्ली में सुंदर नर्सरी का उद्घाटन किया था. इसके अलावा साल 2013 में आग़ा खान ने भारत में 16वीं सदी के पुनर्निर्मित हुमायूं के मकबरे का उद्घाटन किया. आग़ा खान को 2015 में भारत में पद्म विभूषण, जो कि भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है, से सम्मानित किया गया था.
गाज़ा पर ट्रम्प के बयान की दुनिया भर में निंदा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के गाजा पट्टी को "टेकओवर" करने और फिलिस्तीनियों को अन्य देशों में बसाने के बयान की वैश्विक स्तर पर कड़ी आलोचना हो रही है. ये बयान उन्होंने नेतन्याहू के साथ एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया. ‘द गार्डियन’ की रिपोर्ट है कि संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत फ्रांसेस्का अल्बानीज ने ट्रम्प की इस योजना को "अवैध, अनैतिक और पूरी तरह गैर-जिम्मेदाराना" करार दिया है. उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव "अंतरराष्ट्रीय अपराध" के तहत आता है, क्योंकि यह जबरन विस्थापन को बढ़ावा देता है.
‘अलजजीरा’ की रिपेार्ट है कि हमास ने भी ट्रंप के बयान की निंदा करते हुए कहा कि यह "क्षेत्र में अराजकता और तनाव पैदा करने की साजिश" है. संगठन ने स्पष्ट किया कि "गाजा के लोग इन योजनाओं को कभी पूरा नहीं होने देंगे." इस बयान के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद तेज हो गया है और कई देशों व संगठनों ने इसे खारिज किया है.
तुर्की, अरब लीग, यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों ने इस प्रस्ताव को "अस्वीकार्य" और "अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन" करार दिया है.तुर्की के विदेश मंत्री हाकान फिदान ने आधिकारिक समाचार एजेंसी अनादोलु से बातचीत में कहा, "यह एक अस्वीकार्य मुद्दा है." उन्होंने कहा कि गाजा से फिलिस्तीनियों को हटाना "न तो हम स्वीकार कर सकते हैं और न ही यह क्षेत्र इसे स्वीकार करेगा."
चलते चलते
जब रास्ता भटक जाए गूगल मैप्स
आप गूगल मैप्स पर कितना भरोसा करते हैं. ज्यादातर लोग अब उसे सामने रखकर ही सड़क पर निकलते हैं. पर हाल की कुछ घटनाओं के कारण इस ऐप के गलत निर्देशों को कई घातक हादसों का कारण बताया जा रहा है. उत्तर प्रदेश में एक अधूरे पुल पर कार के गिरने से तीन लोगों की मौत और केरल में नदी को सड़क समझने की भूल से दो डॉक्टरों की जान जाने जैसी घटनाओं ने गूगल मैप्स की सटीकता पर चिंता बढ़ा दी है.
रेस्ट ऑफ वर्ल्ड में अनन्या भट्टाचार्य के मुताबिक भारत में सड़कों और पते के मानकीकरण का अभाव नेविगेशन ऐप्स के लिए बड़ी बाधा है. जियोस्पेशल टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट मुस्कान थरेजा के अनुसार, "ज्यादातर घरों में नंबर नहीं होते, जिससे मैपिंग में गड़बड़ी होती है." गूगल ने स्थानीय भाषाओं में वॉइस नेविगेशन, फ्लड अलर्ट, और AI-आधारित सड़क चौड़ाई अनुमान जैसे फीचर्स लॉन्च किए हैं, लेकिन समस्याएँ बनी हुई हैं.
गूगल मैप्स इंडिया की प्रमुख ललिता रमणी के मुताबिक, भारत में 30 करोड़ इमारतें, 3.5 करोड़ व्यवसाय और 70 लाख किमी सड़कें मैप की गई हैं. साथ ही, स्ट्रीट व्यू को 3,000 शहरों तक विस्तारित किया गया है. रमणी ने बताया कि लैंडमार्क-आधारित नेविगेशन और ऑफलाइन मैप्स जैसे फीचर्स भारत में ही विकसित हुए हैं. गूगल के सामने मैपमाइइंडिया और ओला मैप्स जैसे देशी ऐप्स की चुनौती है. 2024 में, ओला ने गूगल मैप्स से किनारा करते हुए 1 अरब डॉलर बचाने का दावा किया. हालाँकि, उत्तर प्रदेश के हादसे वाले रूट का गलत दिखना दर्शाता है कि यह समस्या सभी ऐप्स में मौजूद है.
मेटा के पूर्व इंजीनियर अर्णव गुप्ता मानते हैं कि गूगल को दोष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह "पब्लिक यूटिलिटी नहीं है." सड़क सुरक्षा एनजीओ 'सेवलाइफ' के पीयूष तिवारी के अनुसार, स्थानीय प्रशासन और टेक कंपनियों के बीच सहयोग ही समाधान हो सकता है.
भारत जैसे जटिल इंफ्रास्ट्रक्चर वाले देश में डिजिटल मैपिंग अभी एक 'वर्क इन प्रोग्रेस' है. गूगल मैप्स की गलतियाँ सिर्फ तकनीकी खामियाँ नहीं, बल्कि व्यवस्थागत समस्याओं का संकेत हैं, जिनके समाधान के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं.
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