06/04/2025 : ऑर्गेनाइज़र से ईसाइयों पर लेख गायब | राम के नाम पर दंगे क्यों | जजों के रिश्तेदार 30% सुप्रीम कोर्ट जज | फ्लॉप शो में कैसे बदली स्मार्ट सिटी | स्टार्ट अप पर पीयूष के तंज की भद पिटी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
यूपी में वक़्फ़ बिल का विरोध करना महंगा पड़ा, 2-2 लाख के बॉन्ड जमा करने के नोटिस
“बुक माय शो” ने कुणाल का कंटेंट और नाम हटाया
गौवध की धरपकड़ में भेदभाव : मुसलमानों से नारे लगवाए, परेड निकाल मीडिया में कवरेज, जबकि हिंदुओं को चुपचाप पकड़ा
बलात्कार के मामले में जैन मुनि को 10 साल कैद
मणिपुर : केंद्र की शांति बैठक को कोकोमी ने नाटक बताकर खारिज किया
एबीवीपी ने कहा दो सवाल ‘राष्ट्रविरोधी’, यूपी की प्रोफेसर को जीवनभर के लिए परीक्षा कार्य से किया गया बाहर
ग्रेट निकोबार : आदिवासी भूमि नक्शों में नहीं दिखती, केंद्र सरकार आगे बढ़ा रही है मेगा प्रोजेक्ट
केंद्र के पास भले ही हेट स्पीच का डेटा न हो, लेकिन जज साहब सच जानते हैं!
वकीलों के कड़े विरोध के बीच जस्टिस यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के रूप में शपथ ली
एम्पुरान बनाने वाले के खिलाफ सेंसर, ईडी और अब इनकम टैक्स विभाग पीछे पड़ा
अमेरिकी उपराष्ट्रपति वेंस के साथ स्वदेश आएंगी उषा
ज़ेलेंस्की के शहर पर रूस का हमला, 18 मारे
15 स्वास्थ्यकर्मियों को इजरायली सेना ने मारा
राहुल के कहते ही कि मुसलमानों के बाद अगला टारगेट ईसाई, “ऑर्गेनाइज़र” ने लेख हटा लिया
आरएसएस से जुड़ी अंग्रेजी पत्रिका “ऑर्गेनाइज़र” ने हाल ही में एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें कैथोलिक चर्च और वक़्फ़ बोर्ड द्वारा भूमि स्वामित्व की तुलना की गई थी. इस लेख को बाद में हटा दिया गया, क्योंकि विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि मुस्लिम समुदाय के बाद अब भाजपा ईसाई समुदाय को निशाना बनाने की तैयारी कर रही है.
यह घटना ऐसे समय हुई, जब नरेंद्र मोदी सरकार ने वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक को सफलतापूर्वक पारित किया है. इस विधेयक में वक़्फ़ संपत्तियों के नियमन में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जिसमें राज्यों को वक़्फ़ भूमि पर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है और आदिवासी एवं पुरातात्विक भूमि को वक़्फ़ से बाहर रखा गया है.
ऑर्गेनाइज़र के लेख में दावा किया गया था कि कैथोलिक चर्च भारत में गैर-सरकारी भूमि का सबसे बड़ा मालिक है. इसके पास लगभग 7 करोड़ हेक्टेयर भूमि है. इसमें यह भी आरोप लगाया गया कि चर्च द्वारा संचालित संस्थाएं, जैसे- स्कूल और अस्पताल, गरीब तबकों को मुफ्त या सस्ती सेवाओं के माध्यम से ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं.
राहुल गांधी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वक़्फ़ विधेयक मुस्लिमों पर हमला करता है और अन्य समुदायों को निशाना बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है. उन्होंने संविधान को ऐसे हमलों से बचाने का आह्वान किया. केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी शनिवार को कहा, “संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र के लेख से समझा जाना चाहिए कि वक़्फ़ संशोधन विधेयक पारित होने के बाद अब आरएसएस कैथोलिक चर्च को निशाना बना रहा है. इससे दक्षिणपंथी संगठन की “असली मानसिकता” और संघ परिवार की बहुसंख्यक सांप्रदायिक भावना का पता लगता है.” विजयन ने कहा कि इस लेख से नकारात्मक संकेत मिलता है. संघ की अल्पसंख्यक समुदायों को एक बाद एक खत्म करने की बड़ी योजना के रूप में देखा जाना चाहिए. इस बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, जो संघ के शताब्दी वर्ष के सिलसिले में वाराणसी में हैं, ने कहा कि समस्त हिंदुओं के लिए मंदिर, पानी और श्मशान एक होना चाहिए. हिंदुओं को एकजुट करना संघ का उद्देश्य है.
सांप्रदायिकता
राम के नाम पर ज्यादा दंगे क्यों होते हैं?
आज के भारत में, दंगे गरम दिमाग लोगों के कारण नहीं, बल्कि ठंडे दिमाग से सोची-समझी योजना, वित्तपोषण, निर्दयता और एक ऐसी दंडमुक्ति के साथ होते हैं, जिसकी कल्पना बहुलतावादी भारत कुछ साल पहले तक कभी नहीं कर सकता था. पूर्व नौकरशाह और राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार ने “द वायर” में भारत की सांप्रदायिकता पर एक शोधपरक लेख लिखा है.
सरकार के मुताबिक, अक्सर यह माना जाता है कि दंगे-जब-चाहे-करवाने का पूरा कारोबार एक व्यक्ति के आगमन के बाद शुरू हुआ, जो इस तरह के मामलों में अच्छी तरह से पारंगत है. लेकिन फिर, उसके और इतिहास के प्रति निष्पक्ष होने के लिए, हम इस घटना को एक दशक पहले तक ट्रेस कर सकते हैं, उस दिन से जब बाबरी मस्जिद को जमींदोज कर दिया गया था.
और भी अधिक बारीकी से खोजने वाले इतिहासकार सितंबर-अक्टूबर 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा तक जाते हैं, जिसमें बाबरी मस्जिद द्वारा कब्जा किए गए उसी स्थल पर राम मंदिर की मांग की गई थी. इस रथ यात्रा के बाद सांप्रदायिक तनाव तेजी से बढ़ा, और स्वतंत्रता के बाद के भारत में स्थानीय स्तर और खुदरा पैमाने पर व्यापक दंगे अपने चरम पर पहुंच गए.
सरकार कहते हैं कि वास्तव में, हम और भी पीछे जा सकते हैं और यह दावा कर सकते हैं कि अगर राजीव गांधी की सरकार ने राज्य के स्वामित्व वाले दूरदर्शन पर रामानंद सागर की रामायण का प्रसारण (जनवरी 1987 से जुलाई 1988) करके राम के पंथ को अभूतपूर्व लोकप्रियता प्रदान नहीं की होती, तो हम शायद वर्तमान में राज्य-समर्थित आउटसोर्स सांप्रदायिक हिंसा की वर्तमान घटना से कभी नहीं गुजरते, जैसा कि हमारे पास वर्तमान में है.
धार्मिक आक्रामकता को मंदिर-मस्जिद विवाद से जोड़ने की इस खोज में हम जो चूक जाते हैं, वह यह है कि इस बहस के लिए राम उनके मंदिर से अधिक महत्वपूर्ण हैं. और, यह भी कि 1967 से राम नवमी काफी नियमित रूप से एक ट्रिगर पॉइंट रही है. वास्तव में, हम यह सोच सकते हैं कि हिंदुओं के लिए उपलब्ध 33 करोड़ देवताओं में से, पुरुषोत्तम राम को अधिकतम हिंसा और सांप्रदायिक दंगों के रिकॉर्ड को न्यायोचित ठहराने के लिए क्यों घसीटा जाना चाहिए. हम शिव-केंद्रित दंगों या लक्ष्मी-प्रेरित दंगों के बारे में शायद ही कभी सुनते हैं, हालांकि हमें दुर्गा पूजा की प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान और बहुत कम गणेश चतुर्थी पर कुछ झगड़े के मामले मिलते हैं. राम नवमी के दौरान होने वाले दंगों की तुलना में ये संख्याएँ वास्तव में नगण्य हैं, जिस दिन राम का जन्म हुआ था.
शुरू में, यह समझना होगा कि राम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), मूल हिंदू राष्ट्रवादी मूल संगठन, और पूरे संघ परिवार, विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अस्तित्व के लिए कितने केंद्रीय हैं. राम इतने गहराई से और अविभाज्य रूप से इसके अस्तित्व में एम्बेडेड हैं कि यह वास्तव में हिंदू दक्षिणपंथ की धड़कती राजनीतिक आत्मा है. यह राम की महान विजय के दिन, विजय दशमी के दिन (27 सितंबर) 1925 था जब डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने हिंदू राष्ट्रवादियों का 'संघ' स्थापित किया और अगले वर्ष राम नवमी (17 अप्रैल) को उन्होंने संगठन का नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रखा. उन्होंने आरएसएस को जो पहला सार्वजनिक कार्य सौंपा, वह रामटेक मंदिर में था, जो राम से जुड़ा हुआ है. आरएसएस का भगवा झंडा राम का माना जाता है और इसे शिवाजी ने लोकप्रिय बनाया था.
हिंदी बेल्ट और उसके आसपास के हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग हमेशा से ही दोनों नवरात्रियों (नौ दिन), एक वसंत (चैत्र) में और दूसरी शरद ऋतु में, बहुत उत्साह के साथ मनाता आया है. आश्चर्य की बात है कि वसंत में पहली नवरात्रि जो राम नवमी के साथ समाप्त होती है, उसका सांप्रदायिक तनाव और दंगे का लंबा इतिहास है. यह मुख्य रूप से राम नवमी जुलूसों के माध्यम से 'हिंदू शक्ति' प्रदर्शित करने की अपेक्षाकृत हाल की परंपरा के कारण है, जिन्हें अक्सर जानबूझकर मुस्लिम क्षेत्रों से होकर निकाला जाता है. शरद नवरात्रि दशहरा पर पटाखों और रावण और उसके सहयोगियों के पुतलों के दहन के साथ समाप्त होती है - जो मासूम मनोरंजन था/है. लेकिन, राम नवमी पर राम के नाम पर निकाले जाने वाले कई जुलूसों ने पहले ही काफी खून-खराबा कर दिया है और अभी और अधिक बहाने की धमकी देते हैं.
राम नवमी जुलूस पर दंगे का पहला उल्लेख हमें 1871 में, बरेली में मिलता है, जहां एक मुस्लिम भीड़ ने एक पूर्वनियोजित हमला किया और एक हिंदू पुजारी की हत्या कर दी. उन्हें कोई अंदाजा नहीं था कि एक सदी बाद क्या आने वाला है. आधुनिक युग की राम नवमी शोभा यात्रा का पहला उल्लेख हमें हिताभाषा से मिलता है - जिसमें कई वाहन और हथियार लहराते लोग शामिल थे. यह अप्रैल 1967 में नागपुर में था, जो आरएसएस का मुख्यालय है. फिर, 1979 में, आरएसएस प्रमुख, बालासाहेब देवरस ने जमशेदपुर में एक भड़काऊ भाषण दिया, जिसके बाद उनके संगठन ने राम नवमी पर शक्ति प्रदर्शन के लिए हिंदुओं को लामबंद करना शुरू कर दिया. वांछित दंगा भड़क उठा - देश को झकझोर कर - और 108 लोग मारे गए, जिनमें, 79 मुसलमान और 25 हिंदुओं की पहचान की जा सकी. जितेंद्र नारायण आयोग ने आरएसएस और आरएसएस से संबद्ध स्थानीय विधायक, दीनानाथ पांडे को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया.
चूंकि भारत दंगाइयों और लिंचिंग करने वालों को फांसी नहीं देता - वह उन्हें मंत्री और यहां तक कि बहुत ऊंचे पद पर भी पदोन्नत करता है - और राम नवमी हथियारों के साथ उकसावे वाले जुलूसों के लिए धार्मिक बहाना प्रदान करती है, मंच तैयार हो चुका था.
1980 के दशक के दौरान, आरएसएस ने भावनाओं को भड़काने और दंगे भड़काने का काम विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) को सौंप दिया ताकि ध्रुवीकरण किया जा सके और एक 'हिंदू वोट' बनाया जा सके. वीएचपी ने अयोध्या में जन्मभूमि (रामा के जन्मस्थान) को बाबरी मस्जिद के कब्जे से मुक्त कराने की मांग करते हुए कई सम्मेलन (धर्म संसद) आयोजित किए. आक्रामकता बिना रुके जारी रही और 1983 से 1993 तक सांप्रदायिक भड़काव नया सामान्य बन गया - जब तक बाबरी मस्जिद को ध्वस्त नहीं कर दिया गया और उसके साथ होने वाले दंगों ने भारत के शरीर और आत्मा को झुलसा दिया. राम, विशेष रूप से उनकी नवमी और जन्मभूमि, आग और तलवार चमकाते हुए तबाही के अग्रदूत थे. उल्लेख करने के लिए बहुत सारे स्थान और घटनाएं हैं. 1993 के भयानक बॉम्बे विस्फोटों ने, जिनमें 257 निर्दोष लोग मारे गए और 700 से अधिक घायल हुए, नफरत की सुनामी को कुछ समय के लिए रोक दिया.
हालांकि, राम नवमी उकसाती और चौंकाती रहती है. 2014 के संसदीय चुनावों में बंगाल में भाजपा के रथ को रोकने और 2016 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को बुरी तरह से हराने के बाद, हर मौके पर सांप्रदायिक विभाजन पैदा करने के लिए बंगाल को विशेष रूप से लक्षित किया गया. दिलचस्प बात यह है कि हालांकि बंगाल चैत्र नवरात्रि का पालन नहीं करता है, राज्य का अपना पारंपरिक उत्सव है, अशोक षष्ठी, बसंती दुर्गा और अन्नपूर्णा पूजा के माध्यम से इस अवधि के दौरान. लेकिन राम का कोई उल्लेख नहीं है - जिसे भाजपा द्वारा पाप के रूप में देखा गया. 2017 से, पार्टी ने शोभा-जात्रा निकाली - सैकड़ों दहाड़ते मोटरसाइकिलों के साथ, भगवा झंडों से सुसज्जित, और आक्रामक सवार जो खुली तलवारें और त्रिशूल लहरा रहे थे. अपने ईर्ष्या करने योग्य राजनीतिक हिंसा के इतिहास के बावजूद, बंगाल ने आम लोगों द्वारा, न कि सिर्फ गुंडों द्वारा, आक्रामकता और हथियारों का ऐसा संगठित सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं देखा था. लेकिन फिर, धार्मिक विश्वास इतिहास और परंपरा का मामला है- हिंदी-केंद्रित पार्टी द्वारा राम को अनिच्छुक लोगों पर जबरदस्ती नहीं किया जा सकता. वास्तव में, यह मतदाता को और भी अधिक अलग कर देता है.
अब हर राम नवमी पश्चिम बंगाल और उन राज्यों में पूर्ण तनाव का समय है, जिन्हें धार्मिक विभाजन और युद्धों के निर्माण या सुदृढ़ीकरण के लिए लक्षित किया गया है. 2017 से, यह स्पष्ट है कि इस त्योहार के दौरान हिंसक झड़पों की घटनाएं बढ़ गई हैं. 2018 में, देश भर में 17 झड़पों या दंगों की सूचना मिली और 2022 तक बढ़ते हुए, हम पाते हैं कि छह राज्यों ने हिंसा की सूचना दी - झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, गोवा और दिल्ली. फिर, 2023 में, राम नवमी समारोह कम से कम छह राज्यों में हिंसक हो गए - पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात. पिछले साल राम नवमी समारोह भी भारत भर में कई हिंसक घटनाओं से प्रभावित हुए, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात में.
इस वर्ष, राम नवमी 6 अप्रैल को है और भारत के कई हिस्सों में स्पष्ट तनाव है. वक़्फ़ अधिनियम में किए गए संशोधन ने भी माहौल को गर्म कर दिया है, क्योंकि एक वर्ग बहुत अधिक आहत और क्रोधित है. राज्यों में, पुलिस बलों को अतिरिक्त सतर्कता पर रखा गया है. इसमें जोड़ने के लिए, हमारे पास बंगाल के शीर्ष भाजपा नेता, सुवेंदु अधिकारी हैं, जो पश्चिम बंगाल में 2,000 रैलियां निकालने की शेखी बघारते हैं - युद्धक मोटरबाइक सवारों के साथ, जो धमकी भरे हथियार ले जा रहे हैं. आज उनका नवीनतम बयान है "राम नवमी के पवित्र दिन पर 1.5 करोड़ से कम हिंदू सड़कों पर नहीं निकलेंगे. कृपया घर पर बैठे न रहें. अपनी ताकत दिखाओ."
जवाहर सरकार टीएमसी के पूर्व राज्यसभा सांसद हैं. वे पहले भारत सरकार के सचिव और प्रसार भारती के सीईओ थे.
यूपी में वक़्फ़ बिल का विरोध करने वालों को 2-2 लाख के बॉन्ड जमा करने का नोटिस
उत्तरप्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर जिले में अधिकारियों ने वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ काली पट्टी लगाकर विरोध प्रदर्शन करने वाले 24 लोगों को नोटिस जारी किए हैं और उनसे 2-2 लाख रुपये का बॉन्ड जमा करने को कहा है. शनिवार को पुलिस अधीक्षक (शहर) सत्यनारायण प्रजापति ने बताया कि इन व्यक्तियों को नोटिस जारी किए गए हैं और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर और अधिक लोगों की पहचान की गई है. पुलिस रिपोर्ट के आधार पर सिटी मजिस्ट्रेट विकास कश्यप ने नोटिस जारी किए, जिसमें इन व्यक्तियों को 16 अप्रैल को अदालत में पेश होने और ₹2 लाख का बॉन्ड जमा करने का निर्देश दिया गया है. ये लोग रमज़ान के अंतिम शुक्रवार की नमाज के दौरान, 28 मार्च को विभिन्न मस्जिदों में काले बैज पहनकर विरोध करते पाए गए थे. विरोध करने वाले लोगों ने कहा कि उन्होंने केवल शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध जताने के लिए काले बैज पहने थे.
गौवध की धरपकड़ में भेदभाव : मुसलमानों से नारे लगवाए, परेड निकाल मीडिया में कवरेज, जबकि हिंदुओं को चुपचाप पकड़ा
भाजपा शासित मध्यप्रदेश में गौवध कानून को लेकर कार्रवाई के मामले में मुस्लिम और हिंदुओं के साथ भेदभाव किया जाता है और इसमें कांग्रेस की भूमिका भी सामने आई है. “आर्टिकल14” में काशिफ काकवी की रिपोर्ट कहती है कि मध्यप्रदेश के उज्जैन और दमोह में, जहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार है, मुस्लिम संदिग्धों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया गया, कोड़े मारे गए, परेड करवाई गई और "गाय हमारी माता है" तथा "पुलिस हमारी बाप है" जैसे नारे लगाने के लिए मजबूर किया गया. दमोह में, कांग्रेस पार्टी द्वारा संचालित नगरपालिका परिषद ने उनकी संपत्तियों को गिराने का आदेश दिया, जबकि उसी राज्य के छिंदवाड़ा में हाल के गोवध मामले में हिंदू संदिग्धों को बिना किसी सार्वजनिक प्रदर्शन या अधिक मीडिया कवरेज के गिरफ्तार किया गया. जानकारों के अनुसार, इस विपरीत प्रतिक्रिया का कारण हिंदुत्व संबंधी चिंताओं को राज्य का समर्थन और मुसलमानों (जो जनसंख्या के 7% से कम हैं) को बुरा दिखाना है.
“बुक माय शो” ने कुणाल का कंटेंट और नाम हटाया : टिकट बुकिंग प्लेटफॉर्म “बुक माय शो” ने स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा का नाम आर्टिस्ट लिस्ट से हटा लिया है. साथ ही कामरा के शो से जुड़ा सारा कंटेंट भी वेबसाइट से हटा लिया गया है. शिवसेना (शिंदे) के एक नेता राहुल कनाल के पत्र के बाद बुक माय शो ने यह कदम उठाया है. महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर कटाक्ष करने के कारण कामरा शिंदे समर्थकों के निशाने पर हैं. उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हैं और मद्रास हाईकोर्ट ने उन्हें ट्रांजिट जमानत दी हुई है. इस बीच कामरा ने भी “एक्स” पर “बुक माय शो” से पूछा,“क्या आप कृपया पुष्टि कर सकते हैं कि क्या मेरे पास अपने शो को सूचीबद्ध करने के लिए आपका प्लेटफॉर्म है? यदि नहीं, तो कोई बात नहीं. मैं समझता हूं.” कुणाल कामरा के इस वीडियो पर बवाल मचा हुआ है.
बलात्कार के मामले में जैन मुनि को 10 साल कैद : सूरत के सत्र न्यायालय ने शनिवार को जैन दिगंबर संप्रदाय के 56 वर्षीय जैन मुनि शांतिसागरजी महाराज को सात साल पहले 19 साल की कॉलेज छात्रा के साथ बलात्कार करने के जुर्म में दस साल कैद की सजा सुनाई, साथ में 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया. शिकायत के अनुसार, यह घटना अक्टूबर 2017 में जैन धर्मशाला में हुई थी. तभी से जैन मुनि जेल में है. अब उसकी सजा पूरी होने में केवल ढाई साल शेष है.
न्याय पालिका
30% सुप्रीम कोर्ट जज पूर्व में रहे जजों के रिश्तेदार
‘द प्रिंट’ के लिए अपूर्वा मंधानी द्वारा दो हिस्सों में लिखी गई एक लम्बी जांच रिपोर्ट से पता चला है कि सुप्रीम कोर्ट के लगभग 30 प्रतिशत मौजूदा न्यायाधीश पूर्व न्यायाधीशों के रिश्तेदार हैं, और अन्य 30 प्रतिशत के माता-पिता या दादा-दादी वकील रहे हैं. वर्तमान में, सीजेआई संजीव खन्ना सहित सुप्रीम कोर्ट में 33 न्यायाधीश हैं.
यही स्थिति देश के उच्च न्यायालयों में भी है, जहां हर तीन में से एक न्यायाधीश या तो किसी मौजूदा या पूर्व न्यायाधीश का रिश्तेदार है, या वकीलों के परिवार से आता है. मार्च 2025 तक, भारत के 25 उच्च न्यायालयों के कुल 687 स्थायी न्यायाधीशों में से कम से कम 102 न्यायाधीश मौजूदा या पूर्व न्यायाधीशों के रिश्तेदार हैं, और अन्य 117 ऐसे न्यायाधीश हैं जिनके पिता, दादा या रिश्तेदार कानूनी बिरादरी के सदस्य थे.
इन न्यायाधीशों के परिवारों का विस्तृत अध्ययन न्यायिक परिवारों का एक जटिल वंश वृक्ष दर्शाता है जिसकी शाखाएँ पीढ़ियों और अदालतों के बीच आपस में जुड़ी हुई हैं. उदाहरण के लिए, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में, न्यायमूर्ति दीपक वर्मा पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति अशोक भूषण के बहनोई हैं. न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिरला के बेटे की शादी न्यायमूर्ति आलोक माथुर की बेटी से हुई है.
दिल्ली उच्च न्यायालय में, न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की बहन की शादी न्यायमूर्ति अनीश दयाल से हुई है. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में, न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश, न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा के भाई हैं. उनके पिता न्यायमूर्ति हरगोविंद मिश्रा, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश थे.
इसके अलावा, कम से कम तीन ऐसे जोड़े हैं जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं. उदाहरण के लिए, राजस्थान उच्च न्यायालय में, न्यायमूर्ति पुष्पेंद्र सिंह भाटी और न्यायमूर्ति नूपुर भाटी एक-दूसरे से विवाहित हैं; इसी तरह न्यायमूर्ति महेंदर कुमार गोयल और न्यायमूर्ति शुभा मेहता भी हैं.
पूर्व मद्रास उच्च न्यायालय न्यायाधीश न्यायमूर्ति के. चंद्रू का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों में पिछले 75 वर्षों के नियुक्तियों की समीक्षा "स्पष्ट रूप से दिखाएगी कि उच्च न्यायपालिका में सत्ता के पदों पर व्यापक अंतर्जनन था."
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह कहती हैं कि इस प्रणाली में "विशेषाधिकार ही विशेषाधिकार पैदा करता है". वह कहती हैं कि अब इसे आमतौर पर "विरासत" या "वंशवादी उत्तराधिकार" के रूप में जाना जाता है. वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर का कहना है कि ‘द प्रिंट’ के निष्कर्ष "पुष्टि करते हैं कि कॉलेजियम द्वारा किए गए न्यायिक नियुक्तियां 'कानूनी अभिजात वर्ग' के एक छोटे से समूह से ली जाती हैं और यह स्थिति को बनाए रखती है".
सुधारों की मांग करते हुए, कई कानूनी विशेषज्ञों ने पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता पर जोर दिया है. मद्रास और मेघालय उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी के अनुसार, "अच्छे न्यायाधीशों का मतलब अच्छे प्रबंधक नहीं होता. इसलिए हमें न्यायाधीशों पर से इस बोझ को कम करने के लिए एक प्रणाली की आवश्यकता है.
मणिपुर : केंद्र की शांति बैठक को कोकोमी ने नाटक बताकर खारिज किया
मणिपुर एकता समन्वय समिति (COCOMI) ने शनिवार को नई दिल्ली में केंद्र द्वारा मैतेई और कुकी-जो संगठनों के साथ आयोजित शांति बैठक को खारिज कर दिया. समिति ने इसे "प्रतीकात्मक" बताते हुए कहा कि यह संकट के मूल कारणों को हल करने के लिए कोई ईमानदार या ठोस कदम उठाए बिना समाधान का दिखावा करने का प्रयास है.
इम्फाल घाटी स्थित नागरिक समाज संगठनों के इस समूह ने "जल्दबाजी में बुलाई गई" बैठक को "प्रगति का भ्रम पैदा करने के लिए एक और रणनीतिक चाल" करार दिया, जिसे गृह मंत्री के संसदीय भाषण को समयानुकूल बनाने के लिए आयोजित किया गया. रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बैठक में मैतेई समुदाय से छह और कुकी-जो समुदाय से नौ प्रतिनिधियों ने भाग लिया. यह बैठक केंद्र द्वारा आयोजित की गई थी.
समन्वय समिति ने अपने बयान में कहा, " समिति इसे एक प्रायोजित नाटक मानती है, जो केवल उस भ्रामक कथा को वैधता प्रदान करने की रणनीति है जिसे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में प्रस्तुत किया था. उनके अनुसार, मणिपुर संकट केवल मैतेई और कुकी समुदायों के बीच का 'जातीय संघर्ष' है, जिसे कथित तौर पर मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने के हाई कोर्ट के निर्देश से प्रेरित बताया गया.
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट की याचिका की जांच पर सहमति जताई
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 4 अप्रैल को शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट की प्रबंधन समिति की याचिका की जांच पर सहमति जताई. इसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें हिंदू दावेदारों को मथुरा में चल रहे कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में केंद्रीय गृह मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को पक्षकार बनाने की अनुमति दी गई थी. सुनवाई के दौरान, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना सहित एक पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट और वादी सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत याचिकाओं में संशोधन करने के हक़दार हैं, जिससे किसी मुकदमे में पक्षकार वादी या प्रतिवादी के रूप में शामिल हो सकते हैं. सीजेआई खन्ना ने कहा कि यदि बचाव पक्ष पूजा स्थल अधिनियम, 1991 पर निर्भर करता है, तो वादी अपनी याचिका में यह तर्क देते हुए संशोधन कर सकते हैं कि यह लागू नहीं होता है. हिंदू दावेदारों का दावा है कि यह विवाद प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के अंतर्गत आता है, उनका दावा है कि यह स्थल एक प्राचीन संरक्षित स्मारक है.
पीयूष गोयल का स्टार्टअप पर तंज इंडस्ट्री में ही बहुतों को नागवार गुजरा
शुक्रवार को स्टार्टअप महाकुंभ में बोलते हुए केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था, "क्या हमें आइसक्रीम या चिप्स बनाने हैं? क्या सिर्फ दुकानदारी ही करनी है?" गोयल के अनुसार, भारतीय उद्यमी खाद्य वितरण और गिग-इकोनॉमी समाधानों में व्यस्त हैं, जबकि "हमारे चीनी समकक्ष" इलेक्ट्रिक वाहन, सेमीकंडक्टर्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में आगे बढ़ रहे हैं. मंत्री ने कहा, "हम डिलीवरी बॉय और गर्ल्स बनने में ही संतुष्ट हैं."
यदि भारतीय स्टार्टअप्स को खाद्य वितरण को प्राथमिकता देने के लिए मजाक उड़ाया जा रहा है, तो पकौड़ा-बेचने के विचार को आर्थिक सशक्तिकरण के रूप में किसने लोकप्रिय बनाया? 2018 में, पीएम नरेंद्र मोदी ने तर्क दिया कि एक पकौड़ा विक्रेता जो प्रतिदिन 200 रुपये कमाता है, वह अभी भी "रोजगार में है" - जिससे 'पकौड़ानॉमिक्स' शब्द की उत्पत्ति हुई.
बीजेपी नेताओं जैसे अमित शाह ने इस पर जोर दिया: "बेरोजगार रहने से पकौड़े बेचना बेहतर है. जब एक चाय-विक्रेता प्रधानमंत्री बन सकता है, तो कौन जानता है, एक पकौड़ा विक्रेता उद्योगपति बन सकता है!" इस बीच, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 2022 में युवा उद्यमियों को चाय, बिस्कुट और पकवानों के साथ छोटे स्तर से शुरुआत करने के लिए प्रोत्साहित किया. "यहां तक कि पकवानों (बंगाली में चॉप) को बनाना भी एक उद्योग में बदला जा सकता है," उन्होंने बेरोजगारी के आरोपों का जवाब देते हुए कहा.
आलोचकों ने उन पर बेरोजगारी को तुच्छ बताने का आरोप लगाया. लेकिन यहां व्यंग्य स्पष्ट है: भारत के शीर्ष राजनीतिक नेताओं ने खाद्य स्टालों को नौकरी निर्माता के रूप में समर्थन दिया है, फिर भी गोयल अब खाद्य वितरण स्टार्टअप्स का मजाक उड़ाते हैं कि वे बड़े सपने नहीं देख रहे हैं.
स्टार्टअप्स फल-फूल रहे हैं - बस मंत्री की शर्तों पर नहीं
गोयल की आलोचना प्रमुख वास्तविकताओं को भी नजरअंदाज करती है. स्टार्टअप ट्रैकर ट्रैक्शन के अनुसार, भारत विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप हब है, केवल अमेरिका और चीन के बाद.
अकेले बेंगलुरु में 49 यूनिकॉर्न हैं, इसके बाद गुरुग्राम (19) और मुंबई (17) हैं. उपभोक्ता तकनीक स्टार्टअप्स—जैसे खाद्य वितरण—आगे हैं, लेकिन एंटरप्राइज एप्लिकेशन और खुदरा जैसे क्षेत्र भी फल-फूल रहे हैं. इसके अलावा, जोमैटो और स्विगी जैसे खाद्य वितरण दिग्गज केवल आलसी अमीरों के लिए होम डिलीवरी के बारे में नहीं हैं, जैसा कि गोयल ने संकेत दिया था. इन कंपनियों ने विदेशी निवेश में अरबों को आकर्षित किया है, जो सालाना 1,000 करोड़ रुपये से अधिक कर का भुगतान करते हैं.
भारतपे के पूर्व सह-संस्थापक अश्नीर ग्रोवर ने स्पष्ट शब्दों में कहा: "भारत में जिन लोगों को वास्तविकता की जांच की जरूरत है वे राजनेता हैं. चीन ने भी गहरी तकनीक में विकसित होने से पहले खाद्य वितरण से शुरुआत की थी. शायद राजनेताओं के लिए नौकरी पैदा करने वालों को फटकार लगाने से पहले 10%+ आर्थिक विकास की आकांक्षा रखने का समय आ गया है."
इस पोस्ट में आईआईटी स्नातक एस. युवराजा का उदाहरण दिया गया, जिन्होंने “सुपर तत्काल “ नामक एक ऐप विकसित किया था. यह ऐप भारतीय रेलवे की तत्काल टिकट बुकिंग प्रक्रिया को तेज और सरल बनाने के लिए बनाया गया था. हालांकि, 2020 में रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
युवराजा ने 2016 और 2019 में सुपर तत्काल और सुपर तत्काल प्रो नाम से दो ऐप लॉन्च किए थे, जो उपयोगकर्ताओं को फॉर्म भरने और लेन-देन को तेजी से पूरा करने में मदद करते थे. इन ऐप्स ने जल्दी ही लोकप्रियता हासिल की और लगभग एक लाख उपयोगकर्ता जुटाए. इसके जरिए युवराजा ने लगभग 20 लाख रुपये कमाए. लेकिन रेलवे अधिकारियों का आरोप था कि ये ऐप्स रेलवे के टिकटिंग सिस्टम को बायपास कर उपयोगकर्ताओं को अनुचित लाभ प्रदान करते हैं, जो रेलवे अधिनियम की धारा 143(2) के तहत अवैध है. हालांकि, युवराजा के समर्थकों का कहना है कि उनका उद्देश्य केवल टिकट बुकिंग प्रक्रिया को सरल बनाना था, न कि किसी तरह की धोखाधड़ी करना. इस मामले ने भारत में नवाचार और कानून के बीच संतुलन पर एक बड़ी बहस छेड़ दी है.
गोयल ने तो अपनी बात कह दी, लेकिन उद्योग जगत की नामचीन हस्तियों ने चुप्पी नहीं साधी. ज़ेप्टो के सह-संस्थापक आदित पलीचा और भारतपे के पूर्व प्रबंध निदेशक अशनीर ग्रोवर ने इस विडंबना की ओर इशारा किया. पलीचा ने सरकार पर स्थानीय चैंपियनों का समर्थन करने के बजाय अरबों का राजस्व पैदा करने वाले स्टार्टअप्स को नीचे खींचने का आरोप लगाया. इंफोसिस के पूर्व कार्यकारी मोहनदास पई ने कहा, "डीप-टेक स्टार्टअप्स को बढ़ाने में पीयूष गोयल ने क्या किया है? उंगली उठाना तो आसान होता है."
"भारत में नवाचार करने से आप जेल जा सकते हैं, और पीयूष गोयल चाहते हैं कि आप तभी नवाचार करें जब वे तय करें. केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री गोयल की एक अपील के जवाब में शनिवार को “एक्स” (पूर्व में ट्विटर) पर यह टिप्पणी की.
गौरतलब है कि अपनी रिहाई के बाद युवराजा ने कहा था कि मैं चाहता हूं कि वे मुझसे बात करें और पता लगाएं कि ये ऐप्स आईआरसीटीसी की टिकट बुकिंग संचालन में कैसे मदद कर सकते हैं. जब मैंने ये ऐप्स बनाए, तो मैं शायद भोला था और परिणामों से अनजान था, लेकिन मेरी मंशा अच्छी थी." कांग्रेस नेता शशि थरूर ने उनकी गिरफ्तारी को "राष्ट्रीय शर्मिंदगी" बताते हुए ट्वीट किया था कि, "इस व्यक्ति को प्रोत्साहित करें, उसे सज़ा मत दें."
मुर्तजा अमीन नाम के एक उद्यमी ने भी गोयल को टैग करते हुए “एक्स” पर लिखा, “मैं बुरहानपुर (मप्र) से 100 लोगों की एक सॉफ्टवेयर कंपनी चलाता हूं और प्रति वर्ष 10 लाख डॉलर बुरहानपुर की अर्थव्यवस्था में लाता हूं. और मैं बुरहानपुर में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला सफेदपोश हूं. चूंकि, आप कह रहे हैं कि भारतीय स्टार्टअप्स नवाचार (इनोवेशन) नहीं कर रहे हैं, तो मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि- क्या आप हमें कुछ नया करने के लिए संसाधन मुहैया करवा रहे हैं? हमको अपने शहर में 24x7 बिजली नहीं मिलती, नौकरशाही परेशान करती है, बुरहानपुर में जीएसटी और पीएफ का ऑफिस नहीं है, मुझे 60 किमी दूर खंडवा बुलाया जाता है ताकि आमने-सामने घूस की बात हो सके. मैं हर चीज के लिए रिश्वत देते देते थक चुका हूं. मुझे रोजाना अमेरिका से वापस आने के अपने फैसले पर पछतावा होता है.
एबीवीपी ने कहा दो सवाल ‘राष्ट्रविरोधी’, यूपी की प्रोफेसर जिंदगी भर एक्जाम ड्यूटी नहीं कर पाएगी
'द वायर' के लिए ओमर राशिद की रिपोर्ट है कि उत्तर प्रदेश के मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (सीसीएसयू) की प्रोफेसर सीमा पंवार को परीक्षा और मूल्यांकन कार्यों से जीवनभर के लिए प्रतिबंधित कर दिया है. यह कार्रवाई तब की गई जब आरएसएस की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने राजनीतिक विज्ञान के पेपर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े दो सवालों पर आपत्ति जताई और उन्हें ‘राष्ट्रविरोधी विचारधारा से ग्रसित’ बताया. एबीवीपी ने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (सीसीएसयू), मेरठ के प्रशासन को एक ज्ञापन सौंपा, जिसके बाद विश्वविद्यालय ने प्रोफेसर को सभी परीक्षा कार्यों से जीवनभर के लिए हटा दिया. सीसीएसयू के रजिस्ट्रार धीरेंद्र कुमार वर्मा ने वायर को बताया, “उन्हें जीवनभर के लिए पेपर सेटिंग से डिबार कर दिया गया है.”
विवादित सवाल क्या थे?
यह विवाद 2 अप्रैल को हुई एमए अंतिम वर्ष की ‘भारत में राज्य राजनीति’ विषय की परीक्षा को लेकर था. यह पेपर विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों में कराया गया था. सवाल नंबर 87 में पूछा गया था कि निम्न में से कौन से समूह ‘एनोमिक ग्रुप्स’ माने जाते हैं (यानी समाज से अलग-थलग पड़े समूह). विकल्पों में दल खालसा, नक्सलवादी समूह, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और आरएसएस शामिल थे. दूसरा सवाल जिसपर आपत्ति दर्ज की गई वह था सवाल नंबर 93. यह एक ‘मैच-द-फॉलोइंग’ प्रकार का सवाल था, जिसमें यह दर्शाया गया था कि आरएसएस का संबंध धार्मिक और जातीय पहचान की राजनीति से है. अन्य विकल्पों में बसपा को दलित राजनीति से, मंडल आयोग को ओबीसी राजनीति से और शिवसेना को क्षेत्रीय पहचान की राजनीति से जोड़ा गया था. एबीवीपी का कहना है कि इन सवालों से ऐसा प्रतीत होता है कि आरएसएस को धार्मिक और जातीय राजनीति के उदय का कारण बताया गया है. प्रोफेसर सीमा पंवार, जो मेरठ कॉलेज में पढ़ाती हैं, से स्पष्टीकरण मांगा गया था. उन्होंने लिखित माफी दी और कहा कि “उनका ऐसा कोई इरादा नहीं था और उन्होंने पाठ्यक्रम के एक अध्याय के आधार पर सवाल पूछे थे.” रजिस्ट्रार ने कहा, “उन्होंने गलती के लिए माफी मांगी है. इससे ज्यादा वो कर भी क्या सकती थीं.”
विश्लेषण
एक और फ्लॉप जुमले में क्यों बदला मिशन स्मार्ट सिटी?
2014 में प्रधानमंत्री बनने के एक महीने बाद, नरेंद्र मोदी ने 100 स्मार्ट शहर बनाने की घोषणा की थी. उन्होंने कहा था, "पहले शहर नदियों के किनारे बसाए जाते थे, अब राजमार्गों के साथ बसाए जाते हैं, लेकिन भविष्य में वे ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क और अगली पीढ़ी के बुनियादी ढांचे की उपलब्धता के आधार पर बनाए जाएंगे." इस परियोजना में $1.2 बिलियन का निवेश किया जाना था, और निजी स्रोतों और विदेशों से अधिक धन आने की उम्मीद थी.
‘द इंडिया केबल’ में वरिष्ठ पत्रकार पी रमन ने स्मार्ट सिटी परियोजना की विस्तृत समीक्षा की है. इसे द वायर ने भी छापा है.
रमन के मुताबिक मीडिया ने बिना जांच-पड़ताल के इस योजना का स्वागत किया और इसे आधुनिक भारत के लिए मोदी की सर्वश्रेष्ठ दृष्टि के रूप में सराहा गया. मध्यम वर्ग के लिए, मोदी एक नायक बन गए और उनके 'स्मार्ट शहर' करियर के अवसरों के संभावित केंद्र.
फ्रांस, अमेरिका, चीन, स्वीडन, इज़राइल, जर्मनी, ब्राजील और सिंगापुर सहित 14 देशों ने इसमें रुचि दिखाई. विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और यूएसएड जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने समर्थन की पेशकश की. प्राइसवाटरहाउस कूपर्स, मैकिंसे, लिया असोसिएट्स और बॉश जैसी कंसल्टिंग कंपनियां इसमें भागीदार बनी.
लेकिन जल्द ही योजना में महत्वपूर्ण बदलाव आया. निजी और विदेशी निवेशक आगे नहीं आए, और उनका निवेश उनकी प्रारंभिक रुचि के अनुरूप नहीं था. सरकार पर वित्तीय बोझ बहुत अधिक होने वाला था. अफवाह है कि सरकार में किसी ने - कहा जाता है कि अरुण जेटली ने - मोदी को समझाया कि उनका सपना आर्थिक रूप से विनाशकारी, तकनीकी रूप से अस्थिर और राजनीतिक रूप से अनुचित है.
अंततः, सरकार ने नामकरण को बरकरार रखते हुए लक्ष्य बदलने का फैसला किया. स्मार्ट सिटीज़ मिशन को मौजूदा शहरों के नवीनीकरण और रेट्रोफिटिंग तक सीमित कर दिया गया और आवास, स्वच्छ पानी, बिजली और परिवहन जैसी सुविधाएं प्रदान की गईं. स्पेशल परपस व्हीकल्स द्वारा इन योजनाओं का प्रबंधन किया जाता था.
स्मार्ट सिटीज़ मिशन मनमोहन सिंह के जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय नवीकरण मिशन (JNNURM) से काफी प्रभावित था और अटल मिशन फॉर रेजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (AMRUT) जैसी कई अन्य योजनाओं के साथ ओवरलैप करता था.
मूल रूप से 2020 तक पूरा होने वाला मिशन, कार्यान्वयन में बाधाओं के कारण कई बार बढ़ाया गया. अंततः सरकार ने इसे 31 मार्च, 2025 तक समाप्त करने का निर्णय लिया है. मिशन की प्रमुख समस्याओं में शामिल हैं:
बिना ठोस आधार के अचानक योजना की घोषणा
'स्मार्ट' शहर की स्पष्ट परिभाषा का अभाव
विकसित देशों के विपरीत, भारत में मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान देने की आवश्यकता
पुरानी योजनाओं और हाई-टेक सपनों का अजीब मिश्रण
स्थानीय निकायों को बाईपास करके एलीट SPVs को अधिकार देना
सूचना प्रवाह में पारदर्शिता की कमी और विस्तृत विश्लेषण में बाधा
अब मिशन के अचानक समापन से कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठ रहे हैं. क्या सरकार वास्तव में मानती है कि मिशन के सभी उद्देश्य - 'कोर इन्फ्रास्ट्रक्चर, क्लीन एनवायरनमेंट और स्मार्ट सॉल्यूशंस' - पूरे हो गए हैं? यदि नहीं, तो इसे बीच में ही क्यों छोड़ दिया गया? क्या इसे दोबारा कमियों की समीक्षा के बाद सुधारों के साथ शुरू किया जाएगा?
आप चाहें तो ये वीडियो देख कर शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी द्वारा जारी साल भऱ पुराना ये वीडियो देख सकते हैं, जिसमें गूंजती आवाज़ स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की है. अभी तक इसे 25 व्यूज मिले हैं. 26वां हरकारा टीम का है. अगर स्मार्ट सिटी के बारे में जानना है तो आप यहां देख सकते हैं. और अगर स्मार्ट सिटी को देखना है, तो डिवाइस बंद कर बाहर निकलना होगा.
ग्रेट निकोबार : नक्शों से आदिवासियों की जमीनें छिपा कर केंद्र बढ़ा रहा है अपना मेगा प्रोजेक्ट
मोदी सरकार का ₹81,000 करोड़ का मेगा प्रोजेक्ट ग्रेट निकोबार में तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन इस परियोजना में जनजातीय गांवों, शिकार के रास्तों या भोजन जुटाने के क्षेत्रों के अस्तित्व को मान्यता नहीं दी जा रही है. आधिकारिक दस्तावेज़ों में इनका कोई उल्लेख नहीं है, मुख्यतः इसलिए क्योंकि सरकार ने कभी व्यवस्थित रूप से द्वीप के घने वर्षावनों में स्थित जनजातीय क्षेत्रों का नक्शा ही तैयार नहीं किया. 'द न्यूज मिनट' के लिए रिषिका पार्डिकर की रिपोर्ट के अनुसार, "स्वीकृतियां दी जा रही हैं, फिर भी यह अनुमान नहीं है कि कितने जनजातीय गांवों और शिकार व भोजन संग्रहण क्षेत्रों को कब्जे में लिया जाएगा या इस अधिग्रहण का इन दो समुदायों पर सामाजिक प्रभाव क्या पड़ेगा." स्पष्ट आंकड़ों या जनपरामर्श के बिना इस परियोजना को आगे बढ़ाकर सरकार ग्रेट निकोबार के इन पूर्वजों की भूमि को एक खाली स्थान की तरह देख रही है, जिससे अपूरणीय क्षति का रास्ता साफ हो रहा है. इस परियोजना के लिए अब तक केवल एक सामाजिक आकलन (सोशल असेसमेंट) किया गया है, वह भी परियोजना के केवल एक छोटे हिस्से के लिए और उसमें भी आदिवासी समुदायों पर प्रभावों का कोई उल्लेख नहीं है.
केंद्र के पास भले ही हेट स्पीच का डेटा न हो, लेकिन जज साहब सच जानते हैं!
'द वायर' के लिए श्रावस्ती दासगुप्ता की रिपोर्ट है कि मोदी सरकार ने भले ही पिछले सप्ताह संसद में यह कहा हो कि भारत में घृणा भाषण (हेट स्पीच) से संबंधित सरकार के पास कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है ("क्योंकि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है"), लेकिन इससे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस ए.एस. ओका की राय जरा अलग है. कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल में एक सेमिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “धार्मिक अल्पसंख्यक और वंचित वर्ग” भारत में घृणा भाषण के मुख्य शिकार होते हैं और इसके लिए उन्होंने “राजनीतिक नेताओं” को जिम्मेदार ठहराया.
जस्टिस ओका ने कहा - "भारत में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा भाषण दिए जाते हैं और ऐसे भाषणों का उद्देश्य बहुसंख्यक समुदाय को अल्पसंख्यकों पर हमला करने के लिए उकसाना होता है... भारत में अधिकांश घृणा भाषण धार्मिक अल्पसंख्यकों और वंचित वर्गों के खिलाफ होते हैं. दंडात्मक पहलू को एक तरफ रख दें, तो भी ये भाषण सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ते हैं. इन भाषणों के पीछे राजनीतिक कारण भी हो सकते हैं और राजनीतिक नेता इसका उपयोग लाभ पाने के लिए करते हैं.”
जस्टिस ओका ने इस बात को भी रेखांकित किया कि कैसे प्रशासन घृणा भाषण के मामलों में उदारता दिखाता है लेकिन असहमति (डिसेंट) के मामलों में कठोरता अपनाई जाती है. उन्होंने कहा - "लोकतंत्र में असहमति बहुत महत्वपूर्ण होती है. यह हर स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है और विरोध का अधिकार भी है. अगर छात्र अन्याय का सामना कर रहे हैं तो विश्वविद्यालयों को उन्हें विरोध करने की अनुमति देनी चाहिए और घृणा भाषण के प्रावधानों का उपयोग इस असहमति को दबाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. भारतीय संविधान हमें सामाजिक सौहार्द और अन्य मूल्यों की शिक्षा देता है. अदालतों को ऐसे घृणा भाषणों के खिलाफ सख्त रुख अपनाना चाहिए जो अपराध की श्रेणी में आते हैं, लेकिन साथ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध के अधिकार की भी रक्षा करनी चाहिए. यह एक ऐसा क्षेत्र है जो हमेशा विकसित होता रहेगा.” आप जस्टिस ओका का पूरा भाषण यहां सुन सकते हैं.
वकीलों के कड़े विरोध के बीच जस्टिस यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में शपथ ली : न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने शनिवार 5 अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के रूप में आम तौर पर होने वाले सार्वजनिक समारोह के बजाय निजी तौर पर अपने कक्ष में ली. हाल ही में उनका स्थानांतरण दिल्ली से उनके पैतृक इलाहाबाद हाई कोर्ट में किया गया था. उनके आवास में लगी आग को बुझाने के दौरान अग्निशमन कर्मियों को कथित तौर पर बेहिसाब नकदी मिली थी. हालांकि, भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से कहा है कि वे फिलहाल जस्टिस वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपें.
एम्पुरान बनाने वाले के खिलाफ सेंसर, ईडी और अब इन्कम टैक्स विभाग पीछे पड़ा : आयकर (आई-टी) विभाग ने अभिनेता-निर्देशक पृथ्वीराज सुकुमारन से पहले रिलीज हुई कुछ फिल्मों से अर्जित आय के संबंध में और स्पष्टीकरण मांगा है. पता चला है कि अभिनेता को कोच्चि में आयकर विभाग ने मार्च के अंतिम सप्ताह में नोटिस भेजा गया था और उन्हें अप्रैल के अंत तक जवाब देने को कहा गया है. स्पष्टीकरण उन कुछ फिल्मों से संबंधित मांगे गए हैं, जिनका उन्होंने सह-निर्माण किया था. वहीं प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गोकुलम समूह के कार्यालयों और इसके अध्यक्ष गोकुलम गोपालन के आवास पर तलाशी अभियान के दौरान 1.5 करोड़ रुपये नकद जब्त किए हैं. ‘एल2 : एम्पुरान’ में 2002 के गुजरात नरसंहार पर बनी फिल्म के निर्देशक और अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन हैं, वहीं गोकुलन गोपालन इस फिल्म के निर्माताओं में से एक हैं.
अमेरिकी उपराष्ट्रपति वेंस के साथ स्वदेश आएंगी उषा : 'द हिंदू' की खबर है कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस, उनकी पत्नी उषा चिलुकुरी वेंस और उनके बच्चे इस माह के अंत में भारत यात्रा पर आ रहे हैं, इसकी पुष्टि दिल्ली स्थित सूत्रों ने की है. वेंस, जो इस वर्ष पेरिस और वॉशिंगटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल चुके हैं, उन्होंने इस यात्रा की इच्छा पहले ही जताई थी, खासकर अपनी पत्नी की दक्षिण भारतीय विरासत के चलते एक पारंपरिक ‘हेरिटेज टूर’ के लिए. हालांकि अधिकारियों ने बताया कि वेंस की यह यात्रा मुख्यतः "निजी" होगी, लेकिन वह प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करेंगे और प्रधानमंत्री उनके सम्मान में एक रात्रिभोज आयोजित करेंगे. वेंस परिवार जयपुर और आगरा की यात्रा करेगा, जिसे "गोल्डन ट्राएंगल" टूर कहा जाता है. यात्रा की संभावित तिथियां 21 से 24 अप्रैल बताई जा रही हैं, हालांकि प्रधानमंत्री की सऊदी अरब यात्रा (22-24 अप्रैल) को देखते हुए तारीखों में कुछ बदलाव हो सकता है. इस यात्रा के दौरान अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वॉल्ट्ज भी भारत आएंगे और एनएसए अजीत डोभाल से मुलाकात करेंगे.
ज़ेलेंस्की के शहर पर रूस का हमला, 18 मारे
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के गृह नगर पर रूसी मिसाइल हमले में नौ बच्चों सहित अठारह लोगों की मौत हो गई है. क्षेत्रीय गवर्नर सेरही लिसाक ने बताया कि शुक्रवार को क्रिवी रीह पर हुए इस हमले में 61 लोग घायल भी हुए हैं, जिनमें एक तीन महीने का बच्चा और कुछ बुज़ुर्ग भी शामिल हैं. इनमें से 40 लोग अब भी अस्पताल में भर्ती हैं. दो बच्चे गंभीर हालत में हैं और 17 अन्य की हालत भी चिंताजनक बताई गई है. ज़ेलेंस्की ने टेलीग्राम पर लिखा - “हर मिसाइल, हर ड्रोन हमला यह साबित करता है कि रूस सिर्फ युद्ध चाहता है.” उन्होंने यूक्रेन के सहयोगियों से मास्को पर दबाव बढ़ाने और यूक्रेन की वायु रक्षा को मजबूत करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, “संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और दुनिया के अन्य देश इतने शक्तिशाली हैं कि वे रूस को आतंक और युद्ध छोड़ने के लिए मजबूर कर सकते हैं.” ब्रिटेन के यूरोप मंत्री स्टीफन डाउटी ने कहा कि नागरिक ढांचे पर हमला “इस बात की गंभीर याद दिलाता है कि पुतिन यूक्रेन के खिलाफ अपना बर्बर युद्ध जारी रखे हुए हैं.” स्थानीय प्रशासन के अनुसार, हमले में लगभग 20 अपार्टमेंट इमारतें, 30 से अधिक वाहन, एक शैक्षणिक भवन और एक रेस्टोरेंट क्षतिग्रस्त हुए हैं. इधर, रूसी रक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार को दावा किया कि उसने एक उच्च-विस्फोटक वारहेड के साथ उच्च-सटीकता वाली मिसाइल से उस रेस्टोरेंट पर हमला किया जहां यूनिट कमांडरों और पश्चिमी प्रशिक्षकों की बैठक हो रही थी. रूसी सैन्य अधिकारियों का दावा है कि इस हमले में 85 सैन्य कर्मियों और विदेशी अधिकारियों की मौत हुई और 20 वाहन नष्ट हुए. हालांकि, यूक्रेनी जनरल स्टाफ ने इस दावे को खारिज कर दिया.
15 स्वास्थ्यकर्मियों को इजरायली सेना ने मारा
गाज़ा फिलहाल दुनिया के सबसे खतरनाक स्थानों में से एक बन गया है, खासकर आम नागरिकों के लिए, क्योंकि इज़रायली सेना ने अपने सैन्य अभियान को पहले से कहीं अधिक क्रूरता से फिर से शुरू कर दिया है. 'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि गाजा में पिछले महीने हुई एक घटना में मारे गए 15 फ़िलिस्तीनी पैरामेडिक्स और बचावकर्मियों की अंतिम क्षणों की मोबाइल फ़ोन फुटेज ने इज़रायली रक्षा बलों (IDF) द्वारा दी गई घटना की आधिकारिक व्याख्या की पोल खोल दी है कि कैसे इजरायल ने मेडिकल कर्मियों को भी चुन-चुन कर मार डाला. यह लगभग सात मिनट का वीडियो, जिसे फिलीस्तीनी रेड क्रिसेंट सोसाइटी (PRCS) ने शनिवार को जारी किया, रिफ़ात रदवान नामक एक मारे गए व्यक्ति के फ़ोन से बरामद किया गया. वीडियो एक चलते वाहन के अंदर से शूट किया गया प्रतीत होता है और इसमें एक लाल रंग की दमकल और स्पष्ट रूप से चिन्हित एम्बुलेंसें दिखाई देती हैं जो रात के समय हेडलाइट्स और आपातकालीन लाइटों के साथ चल रही होती हैं. जब वाहन रुकता है और दो व्यक्ति एक अन्य सड़क किनारे रुके वाहन की जांच करने उतरते हैं, तभी गोलियां चलती हैं और वीडियो की स्क्रीन काली हो जाती है. इज़रायली सेना ने दावा किया है कि उसके सैनिकों ने किसी एम्बुलेंस पर ‘हमला’ नहीं किया, बल्कि “संदिग्ध वाहनों” में आने वाले “आतंकवादियों” पर गोलियां चलाईं. सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल नादव शोषानी ने कहा कि जिन वाहनों पर गोलीबारी की गई वे बिना पूर्व अनुमति के इलाके में दाखिल हुए थे और उनकी लाइटें बंद थीं. बता दें कि 23 मार्च को रफ़ा में हुई इस घटना में 15 फ़िलिस्तीनी बचावकर्मी, जिनमें कम से कम एक यूएन कर्मचारी भी शामिल था, मारे गए. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इज़रायली बलों ने इन लोगों को "एक-एक करके गोली मार दी" और फिर एक सामूहिक कब्र में दफना दिया. यह गोलीबारी उस दिन हुई जब इज़रायल और हमास के बीच दो महीने से चले आ रहे संघर्ष विराम के टूटने के बाद रफ़ा में इज़रायली हमले फिर से शुरू हुए थे. इधर, आईडीएफ द्वारा गाज़ा में पैरामेडिक्स की हत्या पर परिवारों में आक्रोश है और वो पूछ रहे हैं कि आखिर ‘उनका गुनाह क्या था?’
इधर, 'लैंड पैलेस्टाइन' नाम के एक इंस्टाग्राम हैंडल पर एक वीडियो अपलोड़ किया गया है जिसमें इजरायली धमाकों के बाद गाजा में लोग हवा में कई फीट ऊपर उड़ते दिख रहे हैं. इसे मिडिल ईस्ट को लंबे समय से कवर कर रहे कई पत्रकारों ने भी शेयर किया है.
चलते-चलते
सैम अल्टमैन का भारत प्रेम : दिल से या व्यापार से?
क्रिकेट-प्रेमी भारत में हलचल मच गई जब ओपन एआई के संस्थापक सैम अल्टमैन ने अपनी एक तस्वीर साझा की जिसमें वे भारतीय क्रिकेट टीम की नीली जर्सी पहने क्रिकेट का बल्ला थामे हुए थे. सोशल मीडिया पर कई भारतीयों ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सोचा - "क्या यह भारतीय ग्राहकों को लुभाने की रणनीति है?" बीबीसी के लिए शेरलिन मोलन ने एक फीचर लिखा है.
दिलचस्प बात यह है कि इसके कुछ घंटों पहले ही अल्टमैन ने भारत के एआई प्रौद्योगिकी अपनाने की दर की प्रशंसा की थी, कहते हुए कि यह "दुनिया से आगे बढ़ रही है". इससे पहले, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्टूडियो जिब्ली शैली में बनी तस्वीरें भी रीट्वीट की थीं.
2023 में भारत की यात्रा के दौरान, अल्टमैन ने छोटे भारतीय स्टार्टअप्स द्वारा प्रतिस्पर्धी एआई उपकरण बनाने की संभावना को "पूरी तरह से निराशाजनक" बताया था. लेकिन इस वर्ष फरवरी में, उनका सुर बदल गया. उन्होंने कम लागत वाले एआई मॉडल बनाने में भारत के साथ सहयोग करने की इच्छा व्यक्त की और खुलासा किया कि भारत ओपन एआई का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है, जहां उपयोगकर्ताओं की संख्या पिछले वर्ष में तिगुनी हो गई है.
विशेषज्ञों का मानना है कि अल्टमैन का भारत के प्रति यह अचानक बढ़ा प्रेम व्यावसायिक हित से प्रेरित है. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रशासन के अनुसार, भारत में एआई बाजार 2025 तक $8 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है, जो 2020 से 2025 तक 40% से अधिक की वार्षिक वृद्धि दर दर्शाता है. जैसा मीडियानामा के संस्थापक निखिल पहवा कहते हैं, "इन भव्य भारत प्रेम प्रदर्शनों के पीछे कोई वास्तविक प्रेम नहीं है; यह सिर्फ व्यापार है."
पाठकों से अपील
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अपने नारे के साथ न्याय करता हुआ.