06/05/2025 : आतंकवादियों का पता नही, जंग की तैयारी चालू | राहुल और हिंदू धर्म | सरकार शामिल है पहलगाम पीड़ित की फजीहत में? | चामू की मोटी तनख़्वाह | ट्रम्प और संविधान | साँप काटे का इलाज
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
स्थानीय समर्थन और सीमा पार साज़िश के सुराग़
पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जानकारी देगा
पाक ने एक और मिसाइल ‘फतह’ का परीक्षण किया
भारत ने ‘जलविद्युत परियोजनाओं’ पर काम शुरू किया
कांग्रेस नेता ने पूछा राफेल पर से कब हटेगी ‘नींबू-मिर्ची’
‘पाकिस्तान का समर्थन’ करने के आरोप में असम में 42 गिरफ्तार
भारत-पाक तनाव के बीच चीन का पाकिस्तान को समर्थन
सरकार हिमांशी का तमाशा बनते देख रही है या उसमें हिस्सेदार भी है?
सीजेआई खन्ना वक़्फ़ कानून मामले की सुनवाई से हटे
पंजाब का हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने से इनकार
बर्खास्त सीआरपीएफ कांस्टेबल ने बताया था डिपार्टमेंट को पाकिस्तानी पत्नी के बारे में
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को लगाई कड़ी फटकार, ‘यह पैटर्न है- बिना किसी संदर्भ के सिर्फ आरोप लगाना’
मोदी-राहुल-सीजेआई बैठक में नहीं बनी सहमति, सूद बने रहेंगे सीबीआई निदेशक!
ट्रम्प प्रशासन से संपर्क में अडाणी समूह
तो नकदी मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा से इस्तीफे के लिए कहा जा सकता है
भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए गठित तीन-न्यायाधीशों की आंतरिक समिति ने कथित तौर पर आरोपों को विश्वसनीय पाया है. न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास पर आग लगने की घटना के बाद कथित तौर पर नकदी बरामद हुई थी.
‘द वायर’ के लिए मनीष छिब्बर को सूत्रों ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश, जिन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश अनु शिवराम वाले पैनल की रिपोर्ट सौंपी गई थी, सर्वोच्च न्यायालय में अपने वरिष्ठ साथी न्यायाधीशों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करने के बाद, न्यायमूर्ति वर्मा से इस्तीफा देने के लिए भी कह सकते हैं.
तीन-न्यायाधीशों की समिति का गठन 22 मार्च को 1999 में सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण अदालत द्वारा अपनाई गई आंतरिक प्रक्रिया के तहत किया गया था. एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए, मुख्य न्यायाधीश खन्ना, जो 13 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, ने इस मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय की रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करने का फैसला किया था.
रिपोर्ट में न्यायमूर्ति वर्मा द्वारा उस आरोप के संबंध में प्रस्तुत जवाब भी शामिल था कि उन्हें आवंटित आधिकारिक बंगले के परिसर में स्थित एक स्टोरहाउस में जली हुई मुद्रा पाई गई थी. समिति के गठन के कुछ ही दिनों के भीतर, उनका तबादला वापस उनके मूल उच्च न्यायालय इलाहाबाद कर दिया गया और तब से उन्हें कोई न्यायिक कार्य आवंटित नहीं किया गया है.
क्या न्यायमूर्ति वर्मा इस्तीफा देते हैं या लड़ने का फैसला करते हैं, यह देखा जाना बाकी है. हालांकि, सूत्रों ने द वायर को बताया कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनका बने रहना 'असंभव हो गया है' और अगर उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा जाता है और वे इनकार करते हैं, तो इससे मुख्य न्यायाधीश को कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ सकता है. यदि संबंधित न्यायाधीश इस्तीफा देने से इनकार करते हैं, तो मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से कह सकते हैं और महाभियोग प्रस्ताव शुरू करने सहित आगे की कार्रवाई की सिफारिश कर सकते हैं.
पहलगाम हमला
स्थानीय समर्थन और सीमा पार साज़िश के सुराग़
अब सुरक्षा प्रतिष्ठान निश्चित बताये जा रहे हैं कि पहलगाम हमले को अंजाम देने वाले चार आतंकवादी थे, जिनमें से दो घाटी के ही थे. अधिकारियों ने बताया कि संदिग्धों की पहचान उन कश्मीरियों के विवरण से मेल खाने के बाद इसकी पुष्टि हुई जो अटारी सीमा के रास्ते पाकिस्तान गए थे. दक्षिण कश्मीर के ये दो युवक पाकिस्तान गए थे, लेकिन उनकी भारत वापसी का कोई रिकॉर्ड नहीं था. संभावना है कि वे जम्मू में कठुआ की तरफ से भारत लौटे.
यह भी पता चला है कि ये दोनों स्थानीय आतंकवादी हमला शुरू होने से पहले पर्यटकों के साथ घुलमिल गए थे. उन्होंने पर्यटकों को एक फूड कोर्ट परिसर में इकट्ठा किया, जहां अन्य दो संदिग्ध पाकिस्तानी आतंकवादियों ने उन्हें करीब से गोली मार दी. एक अधिकारी ने कहा, "स्पष्ट रूप से, आतंकवादी 4-5 दिनों तक बैसरन के आसपास थे, और यह इलाके के कुछ लोगों के स्थानीय समर्थन के बिना संभव नहीं हो सकता था." खुफिया एजेंसियों ने वायरलेस संकेतों को भी पकड़ा था, जिससे पता चलता था कि ये आतंकवादी आसपास ही थे, लेकिन उनके द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे उन्नत संचार सेटों के कारण बातचीत को डिकोड नहीं किया जा सका.
सरकार में सशस्त्र आतंकवादियों के ‘घूमने’ की संभावना को लेकर चिंता है. सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ स्थलों से स्निपर राइफल, एम-सीरीज राइफल, कवच-भेदी गोलियों जैसे उन्नत हथियार बरामद किए गए हैं. इनमें से कई हथियारों के अफगानिस्तान में तैनात रहे नाटो सैनिकों के बच गए गोला-बारूदों में से होने का संदेह है.
हमले के बाद स्थानीय कश्मीरियों में स्वतःस्फूर्त गुस्सा और पीड़ा देखी गई, जिसमें राजनीतिक दल बाद में शामिल हुए. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अब इस मामले की जांच कर रही है और लगभग 100 स्थानीय लोगों से पूछताछ कर चुकी है, जिनमें एक दुकानदार भी शामिल है, जिसने घटना के दिन अपनी दुकान नहीं खोली थी. एनआईए सीमा पार से रची बड़ी साजिश की भूमिका की जांच कर रही है और यह भी देख रही है कि क्या यही समूह पिछले हमलों में भी शामिल था.
सुरक्षा प्रतिष्ठान और सरकार को पहलगाम नरसंहार से कई दिन पहले श्रीनगर और आसपास के होटलों में ठहरे पर्यटकों को निशाना बनाकर संभावित हमले की खुफिया जानकारी मिली थी. इस हमले में आतंकवादियों ने 25 पर्यटकों और एक स्थानीय नागरिक की हत्या कर दी थी. घटनाक्रम से अवगत अधिकारियों ने यह जानकारी दी है.
अधिकारियों ने बताया कि हमले के इस खतरे को देखते हुए, श्रीनगर में डल झील और मुगल गार्डन के निकट ज़बरवान रेंज की तलहटी में सुरक्षा उपस्थिति बढ़ाई गई थी. एक शीर्ष अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "पुलिस के आला अधिकारी, जिसमें पुलिस महानिदेशक भी शामिल थे, हमले से कुछ दिन पहले घाटी में डेरा डाले हुए थे." उन्होंने आगे कहा, "सुरक्षा एजेंसियों (जम्मू-कश्मीर पुलिस सहित) के पास खुफिया जानकारी थी. वे हमले की आशंका जता रहे थे. उन्हें लगा था कि यह श्रीनगर के बाहरी इलाके में किसी होटल पर होगा... क्योंकि नागरिकों की हत्याएं ज्यादातर दक्षिण कश्मीर में हुई हैं." इसी के चलते पहलगाम हमले से पहले 10-15 दिनों तक दचीगाम, निशात और आसपास के इलाकों में तलाशी अभियान चलाया गया था, लेकिन इससे कोई सफलता नहीं मिली.
हालांकि, जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक सूत्र ने कहा कि खुफिया जानकारी विशिष्ट नहीं थी और घटना के बाद ही सामने आई, और इसे ‘बहुत अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए.’
आतंकवादियों की ख़बर नहीं, पर जंग की तैयारी
सरकारी सूत्रों ने सोमवार को कहा कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कई राज्यों को 7 मई को मॉक ड्रिल आयोजित करने का निर्देश दिया है.
ड्रिल के दौरान उठाए जाने वाले कदमों में हवाई हमले की चेतावनी देने वाले सायरन का संचालन और ‘शत्रुतापूर्ण हमले’ की स्थिति में खुद को बचाने के लिए नागरिकों को नागरिक सुरक्षा पहलुओं पर प्रशिक्षण देना शामिल है. अन्य उपायों में क्रैश ब्लैकआउट उपायों का प्रावधान, महत्वपूर्ण संयंत्रों और प्रतिष्ठानों का शीघ्र छलावरण और निकासी योजनाओं का अद्यतन और उनका पूर्वाभ्यास शामिल है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शीर्ष रक्षा अधिकारियों सहित कई उच्च-स्तरीय बैठकें कर रहे हैं, क्योंकि भारत 22 अप्रैल के आतंकी हमले के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के विकल्पों पर विचार कर रहा है, जिसमें अधिकतर पर्यटकों सहित 26 नागरिक मारे गए थे.
मोदी ने अपराधियों और साजिश में शामिल लोगों का ‘धरती के छोर तक’ पीछा करने और उन्हें ‘उनकी कल्पना से परे’ सजा देने का संकल्प लिया है.
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख का बयान : 'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि पहलगाम आतंकी हमले के लगभग 12 दिन बाद, संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने हमले की निंदा की और कहा कि नागरिकों को निशाना बनाना अस्वीकार्य है और जिम्मेदार लोगों को विश्वसनीय, कानूनी साधनों के माध्यम से न्याय के दायरे में लाया जाना चाहिए. तनावपूर्ण भारत-पाकिस्तान संबंधों पर टिप्पणी करते हुए, गुटेरेस ने अधिकतम संयम बरतने और युद्ध की कगार से पीछे हटने का आग्रह किया है.
पाकिस्तानी हैकर्स का दावा : साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ और सुरक्षा एजेंसियां सक्रिय रूप से साइबरस्पेस की निगरानी कर रही हैं, ताकि किसी भी साइबर हमले का पता लगाया जा सके. बता दें कि एक्स पर एक हैंडल ने भारतीय सैन्य इंजीनियरिंग सेवा और मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान से संवेदनशील डेटा तक पहुंच प्राप्त करने का दावा किया है.
पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जानकारी देगा : पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान में उपजे तनाव के बीच पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने रविवार 5 मई को कहा कि वह पहलगाम आतंकवादी हमले के मद्देनजर नवीनतम क्षेत्रीय घटनाक्रम पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को जानकारी देने का फैसला किया है. द हिंदू के अनुसार, पाक विदेश मंत्री इशाक डार ने पाकिस्तान के संयुक्त राष्ट्र स्थायी प्रतिनिधि असीम इफ्तिखार को सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया है. पाक विदेश मंत्रालय के अनुसार, “वह भारत की आक्रामक कार्रवाइयों, उकसावे और भड़काऊ बयानों के बारे में यूएनएससी को सूचित करेगा.” इसमें कहा गया है, “पाकिस्तान सिंधु जल संधि को निलंबित करने के भारत के अवैध कार्यों को विशेष रूप से उजागर करेगा और यह स्पष्ट करेगा कि नई दिल्ली के कार्य किस प्रकार क्षेत्र में ‘शांति और सुरक्षा’ को खतरे में डाल रहे हैं.” पाकिस्तान वर्तमान में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है. संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी दूत ने पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस से मुलाकात की और उन्हें क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति के बारे में जानकारी दी.
पाक ने एक और मिसाइल ‘फतह’ का परीक्षण किया : पाकिस्तान ने सोमवार को 120 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली 'फतह सीरीज' की सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल का सफल प्रशिक्षण प्रक्षेपण किया. रेडिफ डॉट काम के अनुसार, सेना की मीडिया शाखा इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) ने कहा कि चल रहे अभ्यास ‘इंडस’ के हिस्से के रूप में ‘फतह सीरीज’ का परीक्षण किया गया है. इस का उद्देश्य सैनिकों की परिचालन तत्परता सुनिश्चित करना और मिसाइल की उन्नत नेविगेशन प्रणाली और बढ़ी हुई सटीकता सहित प्रमुख तकनीकी मापदंडों को मान्य करना है." इससे एक दिन पहले पाकिस्तान ने 450 किलोमीटर की रेंज वाली कम दूरी की मिसाइल अब्दाली और 2,200 किलोमीटर की रेंज वाली मध्यम दूरी का अबाबील का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया था.
भारत ने ‘जलविद्युत परियोजनाओं’ पर काम शुरू किया : पाकिस्तान के साथ ताजा तनाव के बीच जल-बंटवारे के समझौते को निलंबित करने के बाद भारत ने कश्मीर में दो पनबिजली परियोजनाओं में जलाशय धारण क्षमता को बढ़ाने के लिए काम शुरू कर दिया है. यह काम भारत द्वारा सिंधु जल संधि के अंतर्गत आने वाले समझौतों से बाहर होने के बाद पहला ठोस कदम है. यह संधि 1960 से तीन युद्धों और परमाणु-सशस्त्र प्रतिद्वंद्वियों के बीच कई अन्य संघर्षों के बावजूद अब तक जारी थी. ‘द टेलीग्राफ’ की खबर है कि इस्लामाबाद ने निलंबन पर अंतरराष्ट्रीय कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है और हमले में किसी भी भूमिका से इनकार किया है. उसने चेतावनी दी है, “पाकिस्तान से संबंधित पानी के प्रवाह को रोकने या मोड़ने का कोई भी प्रयास... युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा.” इस काम से पाकिस्तान को आपूर्ति पर तत्काल कोई खतरा नहीं है, जो अपनी सिंचाई और जलविद्युत के लिए भारत से होकर बहने वाली नदियों पर निर्भर है, लेकिन अगर अन्य परियोजनाएं भी इसी तरह के प्रयास शुरू करती हैं, तो अंततः यह प्रभावित हो सकता है. इस क्षेत्र में ऐसी आधा दर्जन से अधिक परियोजनाएं हैं. रॉयटर्स को सूत्रों ने बताया कि भारत ने सलाल और बगलिहार परियोजनाओं में काम के बारे में पाकिस्तान को सूचित नहीं किया है, जो क्रमशः 1987 और 2008/09 में बनने के बाद पहली बार किया जा रहा है, क्योंकि संधि ने इस तरह के काम को रोक दिया था.
कांग्रेस नेता ने पूछा राफेल पर से कब हटेगी ‘नींबू-मिर्ची’ : उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रमुख अजय राय ने सोमवार को नींबू और मिर्च से सजे खिलौने राफेल जेट को हाथ में लेकर अपने सांकेतिक विरोध किया और कहा, “रक्षा मंत्री जब राफेल की डिलीवरी लेने गए थे, तो उन्होंने राफेल पर ‘नींबू-मिर्च’ लटका दी थी. देश जानना चाहता है कि उन पर लटके 'नींबू-मिर्च' कब हटेंगे. वे अपना काम कब करेंगे, लोग जानना चाहते हैं. हमारे बच्चे (पहलगाम आतंकी हमले में) शहीद हुए हैं. भारत के लोग कुछ कार्रवाई चाहते हैं." राय ने कहा, “मैंने देश को तथ्य दिखाए हैं. कांग्रेस हमेशा सरकार के साथ खड़ी रही है. सीडब्ल्यूसी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह सरकार द्वारा (पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में) की गई किसी भी सख्त कार्रवाई का समर्थन करती है, लेकिन हम कह रहे हैं - लोगों को गुमराह करना बंद करें और कार्रवाई करें." वहीं भाजपा नेताओं ने राय की टिप्पणी को सशस्त्र बलों का अपमान बताया. भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी समेत कई नेताओं ने राय पर हमला किया. त्रिवेदी ने कहा, “अजय राय राफेल विमान को खिलौना बताकर और नींबू-मिर्च लगाकर उसका मजाक उड़ा रहे हैं. पाकिस्तान की सेना भारत की सेना को डर की नजर से देखती है और कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की पार्टियां उसे बुरी नजर से देख रही हैं. वास्तव में मैं ईमानदारी से कहना चाहता हूं कि भारत की सेना को कांग्रेस और इंडिया गठबंधन जैसी विपक्षी पार्टियों की बुरी नजर से बचाने की जरूरत है.”
‘पाकिस्तान का समर्थन’ करने के आरोप में असम में 42 गिरफ्तार : 'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि असम के विभिन्न हिस्सों से ‘भारतीय धरती पर पाकिस्तान का समर्थन करने’ के आरोप में तीन और लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिससे पहलगाम आतंकी हमले के बाद अब तक कुल गिरफ्तारियों की संख्या 42 हो गई है. यह जानकारी मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने दी. रविवार देर रात सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए सरमा ने कहा कि बरपेटा, होजई और चिरांग जिलों से एक-एक व्यक्ति को हिरासत में लिया गया है. उन्होंने लिखा, "#भारतीय_धरती_पर_पाकिस्तान_का_समर्थन करने वाले गद्दारों पर कार्रवाई की अपडेट… अब तक कुल 42 देशविरोधी लोगों को सलाखों के पीछे डाला गया है." इससे पहले, विपक्षी पार्टी एआईयूडीएफ (AIUDF) के विधायक अमीनुल इस्लाम को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उन पर आरोप है कि उन्होंने पाकिस्तान और पहलगाम आतंकी हमले में उसकी संलिप्तता का समर्थन किया.
भारत-पाक तनाव के बीच चीन का पाकिस्तान को समर्थन
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के माहौल में, चीन ने सोमवार को इस्लामाबाद को ‘दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता सुरक्षित करने के लिए’ हमेशा समर्थन देने का वचन दिया. रेडियो पाकिस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, यह बयान चीनी राजदूत जियांग ज़ैदोंग ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी से मुलाकात के दौरान दिया. जरदारी ने हमले के बाद भारत द्वारा उठाए गए कदमों (जैसे आयात प्रतिबंध, बंदरगाह प्रतिबंध, सिंधु जल संधि निलंबन) पर चिंता व्यक्त की. जियांग ने चीन-पाक दोस्ती को ‘फौलादी भाइयों’ जैसा बताया और कहा कि चीन हमेशा पाकिस्तान का समर्थन करेगा. इससे पहले, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी पीएम मोदी से फोन पर बात कर हमले की निंदा की और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत को पूर्ण समर्थन दिया. अमेरिका ने भी हमले की निंदा करते हुए भारत का साथ देने की बात कही थी.
हमले के पीड़ित
सरकार हिमांशी का तमाशा बनते देख रही है या उसमें हिस्सेदार भी है?
पहलगाम हमले के बाद शहीद लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी ऑनलाइन ट्रोलिंग की शिकार हो रही है. हिमांशी के बारे में कई किस्म की अफवाह दौड़ाई जा रही हैं और अब ऐसी ही एक अफवाह को उड़ा रहे एक यूजर को जवाब देते हुए टीएमसी नेता साकेत गोखले ने एक्स पर पोस्ट किया - गलतफहमी में मत रहिए : हिमांशी नरवाल के खिलाफ जो अश्लील उत्पीड़न हो रहा है, वह राज्य प्रायोजित है और इसे मोदी सरकार की सक्रिय सहमति और समर्थन प्राप्त है.
जिस पहलगाम आतंकी हमले में लेफ्टिनेंट नरवाल शहीद हुए, उसके दोषियों को सज़ा दिलाने के बजाय, भाजपा इस घटना का इस्तेमाल देश में साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए करना चाहती थी. लेकिन हिमांशी नरवाल द्वारा दिया गया साहसी बयान और शांति का आह्वान उनकी गंदी राजनीति को ध्वस्त कर गया और इसी वजह से वह आज टारगेट बनी हुई हैं.
हिमांशी के खिलाफ किए गए घृणित ट्वीट पर लगभग 10 हज़ार "लाइक्स" हैं - यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस घिनौने अभियान को एक संगठित तरीके से बढ़ावा दिया गया है. आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव जब सरकार की आलोचना करने वाले अकाउंट्स को ब्लॉक करने की बात आती है तो बेहद सक्रिय नजर आते हैं. तो फिर इस ट्वीट और उस पर आए बेहूदा और अश्लील कमेंट्स पर उनकी मंत्रालय की नज़र क्यों नहीं पड़ी? भाजपा की सहयोगी संस्था राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने भी इन ट्वीट्स की केवल ‘निंदा’ की है - कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. एनसीडबल्यू प्रमुख विजया रहाटकर तो बंगाल में किसी भी मामूली घटना पर प्रतिनिधिमंडल लेकर दौड़ पड़ती हैं.
तो फिर हिमांशी नरवाल के मामले में एफआईआर दर्ज करवाने का आदेश क्यों नहीं दिया गया? पूरी सरकारी मशीनरी चुप है, जबकि हजारों लोग बार-बार इस उत्पीड़न के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर चुके हैं. यह चुप्पी नहीं, बल्कि स्पष्ट समर्थन है, मोदी सरकार की तरफ से उन लोगों को, जो हिमांशी नरवाल को निशाना बना रहे हैं.
विश्लेषण
राहुल देव : एक ओर हिमांशी है, अपनी गरिमा और पीड़ा-दीप्त प्रज्ञा के साथ.. दूसरी ओर यह रक्त-पिपासु उद्दंड भीड़
कल से हिमांशी का गहरी, मर्मांतक पीड़ा को भीतर पीकर सद्यवैधव्य से गुज़रती स्त्री का गरिमा-दीप्त चेहरा, उसकी सीधी-सरल भाषा में कह दी गई असाधारण बात और उसकी निजी विभीषिका के संदर्भ की चेतना मन में घुमड़ रही है. अभिव्यक्ति के वे सही सटीक शब्द खोज रही है, जो उसे व्यक्त कर सकें जो उसे देख और सुन कर उमड़ रहा है. कोशिश करता हूँ. हिमांशी नरवाल आज भारत में नैतिक और बौद्धिक ऊँचाई के उस असाधारण शिखर पर खड़ी दिखती है, जो भारतीयता के श्रेष्ठतम, उदात्ततम, महानतम मूल्यों को स्वयं जीकर ही पाया जा सकता है.
नहीं जानता हिमांशी की पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षिक पृष्ठभूमि क्या है. यही मालूम है कि वह पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा मारे गए सेनाधिकारी लेफ़्टिनेंट विनय नरवाल की वह पत्नी है, जिसे वैवाहिक जीवन के सिर्फ़ पाँच-छह दिन मिले.
उसकी मनःस्थिति की कल्पना भी हमारे लिए कठिन है. अपना सुहाग और भावी जीवन के मिल कर देखे, सोचे गए सारे सपनों के मिट जाने की विभीषिका से गुज़रती युवा स्त्री से हम केवल चीत्कारों, रुदन, पीड़ा की स्वाभाविक भावनात्मक अभिव्यक्तियों की ही अपेक्षा करते हैं. उससे हम देश की वर्तमान परिस्थितियों, व्यापक सामाजिक-धार्मिक संदर्भों की गहरी समझ रखने, एक असाधारण अंतर्दृष्टि और प्रज्ञा से विचार करने, संवाद करने की अपेक्षा नहीं करते.
हिमांशी ने ऐसी सामान्य अपेक्षाओं को ध्वस्त कर ऐसी बात कह दी है, जिसने पूरे देश को चौंका दिया है. प्रत्येक सज्जन और समझदार व्यक्ति ने स्वाभाविक ही उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है. मेरे लिए वह आज हमारी नैतिक नायिका है.
" मैं चाहती हूँ पूरा देश उनके लिए प्रार्थना करे, वो जहाँ भी हैं खुश हे. मैं किसी के प्रति कोई नफ़रत नहीं चाहती. लोग कश्मीरियों और मुसलमानों के ख़िलाफ़ जा रहे हैं. हम यह नहीं चाहते. हम शांति चाहते हैं. सिर्फ़ शांति. हाँ, हम न्याय तो चाहते ही हैं. जिन लोगों ने उनके साथ ग़लत किया है उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए."
जब सारे देश में पाकिस्तान पर स्वाभाविक क्रोध के ज्वार को भारत में रहने वाले मुसलमानों के ख़िलाफ़ मोड़ देने का दक्षिणपंथी अभियान ज़ोरों पर है, कश्मीरियों को पीटा जा रहा है, कोसा जा रहा है, सारे तथाकथित बड़े चैनल युद्धोन्माद भड़काने में अपनी रचनात्मकता दिखा रहे हैं, उस समय में अपनी आँखों के सामने आतंकवादियों का अपने एक सप्ताह पुराने पति को गोली मार देना देख चुकी हिमांशी के ये शब्द क्रांतिकारी हैं.
हिमांशी की पीड़ा अकेली नहीं है. 27 अन्य पत्नियाँ, माएँ, परिवार इसी पीड़ा में जी रहे हैं. सबका दुख साझा है. पूरा देश उनके आगे, उनके दिवंगत परिजनों को शहीद मान कर नतमस्तक और नम है. हम उन सभी महिलाओं, परिजनों का अभिनन्दन करते हैं, क्योंकि लगभग सबने ही लौट कर अपने-अपने ढंग से यह कहा कि उन विकट क्षणों में सबसे पहले और सबसे ज़्यादा सहायता उन्हें कश्मीरियों ने दी, जो उस समय पहलगाम की बैसरण घाटी में मौजूद थे. जिन कश्मीरियों को दशकों से भारत-विरोधी, हिंदू-विरोधी बताया-प्रचारित किया जा रहा था, उन्हीं आम कश्मीरियों ने इन हिंदू पर्यटकों की मदद की, जिन्हें इस्लामी आतंकवादियों ने धर्म पूछ कर मारा था. इन सब परिजनों के आगे भी हम नतमस्तक है.
लेकिन हिमांशी ने जो कहा, जिस तरह से कहा, वह उसे अलग खड़ा करता है. वह मददगार कश्मीरियों की भूमिका की बात कर उन्हें धन्यवाद देकर अपना दुख व्यक्त कर सकती थी. उसने एक नितांत अनपेक्षित बात कही, जो अपने अर्थ और निहितार्थों में उसे असामान्य ऊँचाई और विशिष्टता देती है. इसलिए उसका असामान्य अभिनन्दन और सम्मान हो रहा है. इसलिए कि उसकी बात के पीछे एक असामान्य अंतर्दृष्टि और नैतिक साहस संपन्न ऐसी चेतना और बुद्धि है, जो उसे सक्षम बनाती है कि अपने निजी दुख को झेलते हुए भी वह देश के व्यापक वातावरण, घटनाओं और उनके कारणों को देख ही न सके, बल्कि उनमें नीर-क्षीर विवेक के साथ आतंकवादियों के अधर्म और कश्मीरी मुसलमानों सहित भारतीय मुसलमानों में अन्तर कर सके. दोनों को एक ही मानने और भारतीय मुसलमानों को इस हमले के प्रत्यक्ष या परोक्ष उत्तरदायी मानने के विरुद्ध हमें आगाह कर सके.
इस असाधारण धैर्य, समझदारी और गरिमा का राष्ट्रीय अभिनन्दन होने की जगह उसके विरुद्ध न कहे जा सकने वाले शब्दों में निंदा अभियान चलाया जाना अमानव हो चुके मनुष्यरूपी विषाणुओं का ही काम हो सकता है. ऐसी हरकतें पशु भी नहीं करते.
मनुष्यता के दो मॉडल हमारे सामने हैं. एक ओर हिमांशी है. अपनी गरिमा और पीड़ा-दीप्त प्रज्ञा के साथ. दूसरी ओर यह रक्त-पिपासु उद्दंड भीड़ है. चुनाव हमें करना है.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.
एक्सप्लेनर
चीन ऐसे ही पाकिस्तान का बगलगीर नहीं है
- गौरव नौड़ियाल
पहलगाम हमले के बाद उपजे तनाव के बीच भारत और पाकिस्तान के अलावा अगर कोई तीसरा सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी इधर उभरा है तो, वह है चीन. चीन ने भारत और पाकिस्तान के बीच खड़े होकर, युद्ध की मीडियाई सुगबुगाहट को एक नया आयाम यह कहकर दे दिया है कि पाकिस्तान और चीन की दोस्ती तो "फौलादी भाइयों" की तरह है. इसके कई निहतार्थ निकलेंगे, लेकिन मामला अंत में विशुद्ध रूप से भारत की भू-राजनीतिक तौर पर घेरेबंदी के अलावा, बाजार पर आकर टिकता है. अकेले साल 2024 में दोनों मुल्कों ने कुल 23.1 अरब अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार किया, जो कि भारतीय मुद्रा में बैठता है तकरीबन 1,92,000 करोड़ रुपये. साल 2023 की तुलना में इस साल 11.1% की वृद्धि दर्ज हुई है. चीन का पाकिस्तान को निर्यात तकरीबन 20.2 अरब डॉलर का रहा, मतलब कि सीधे 17 फीसदी की कारोबार में छलांग, जबकि इसके बरक्स पाकिस्तान से चीन का आयात 2.8 अरब डॉलर रहा यानी 18.2% की गिरावट.
भारत और चीन के आर्थिक संबंध अधिक जटिल, संतुलन-विहीन और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं. वित्त वर्ष 2023-24 में भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार 118.40 अरब डॉलर (लगभग ₹9.87 लाख करोड़) पर पहुंचा, जिसमें मात्र 4% की वृद्धि दर्ज हुई. हालांकि यह पाकिस्तान-चीन व्यापार की तुलना में 5 गुना बड़ा है, लेकिन इसमें भी व्यापारिक संतुलन चीन के पक्ष में है. FY24 में भारत ने चीन से 101.74 अरब डॉलर का आयात किया, जबकि निर्यात केवल लगभग 16.66 अरब डॉलर का रहा, यानी कि भारी व्यापार घाटा भारत के हिस्से में आता है.
खैर, चीन के लिए पाकिस्तान कई मायनों में उस जरूरी टापू की तरह है, जिसपर सुस्ताए बिना वो भारत और बाकी दुनिया में एक महत्वपूर्ण कारोबारी ताकत के रूप में नहीं उभर सकता. चीन और पाकिस्तान का संबंध केवल राजनयिक या आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक स्तर पर भी बेहद मजबूत है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपैक), रक्षा सहयोग, व्यापारिक साझेदारी और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन, इन सभी मसलों ने इस साझेदारी को एशिया की सबसे स्थिर और गहरी द्विपक्षीय संबंधों में से एक बना दिया है.
चीन और पाकिस्तान के बीच दशकों से मजबूत सैन्य साझेदारी रही है. हाल के वर्षों में यह सहयोग और भी बढ़ा है. चीन ने पाकिस्तान को J-10 लड़ाकू विमान और HQ-9 वायु रक्षा प्रणाली जैसे उन्नत हथियार प्रदान किए हैं, जिससे पाकिस्तान की सैन्य क्षमता में इजाफा हुआ है. पाकिस्तान की "क्विड प्रो क्वो प्लस" नीति के तहत, किसी भी भारतीय हमले का तीव्र और असीमित जवाब देने की योजना है, जिसमें चीन का समर्थन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
J-10C लड़ाकू विमान पाकिस्तान को 2022 में मिला था. यह चीन की चेंगदू एयरोस्पेस कॉर्पोरेशन द्वारा विकसित बहु-भूमिकाओं वाला एकल इंजन फाइटर जेट है. इसी विमान को लेकर हाल ही में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का चौंकाने वाला दावा सामने आया था, जिसमें उन्होंने कहा कि 29-30 अप्रैल की दरमियानी रात को पाकिस्तान के नियंत्रण रेखा (LoC) के पास की गई कार्रवाई में, भारतीय वायुसेना के चार राफेल लड़ाकू विमानों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से जैम कर दिया गया, जिससे उन्हें पीछे हटने और श्रीनगर में आपातकालीन लैंडिंग के लिए मजबूर होना पड़ा.
आर्थिक और भू-राजनीतिक हित : चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपैक) चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का प्रमुख हिस्सा है, जो दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है. सीपैक चीन को मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप तक सीधा और सुरक्षित व्यापार मार्ग प्रदान करता है, जिससे वह मलक्का जलडमरूमध्य पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है. सीपैक पाकिस्तान की गरीबी ढंकने का गलियारा भी बना है. खस्ताहाल पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को इस गलियारे ने काफी कुछ दिया है. सीपैक के तहत बुनियादी ढांचे, ऊर्जा और औद्योगिक क्षेत्रों में निवेश से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है, जो चीन के लिए एक स्थिर और सहयोगी पड़ोसी सुनिश्चित करता है. कुछ समय पहले ही खबर आई थी कि चीन पाकिस्तान में 1 अरब डॉलर निवेश कर मेडिकल सिटी स्थापित करने का इच्छुक है.
इसके अलावा पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में ग्वादर बंदरगाह, जो कि अरब सागर में स्थित है, वो भी चीन के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि चीन इसे एक रणनीतिक नौसैनिक अड्डे के तौर पर देखता है, जिससे हिंद महासागर में उसकी उपस्थिति मजबूत होती है. चीन ने इस बंदरगाह के निर्माण, संचालन और विकास में भारी निवेश किया है. इसके साथ ही ग्वादर एयरपोर्ट, फ्री ज़ोन और एक्सप्रेसवे का भी विकास किया जा रहा है. इसका उद्देश्य चीन को मध्य एशिया, अफ्रीका और पश्चिम एशिया से जोड़ना है.
मई, साल 1951 और बदल गए भारत के पड़ोसियों के रिश्ते : चीन और पाकिस्तान ने 21 मई, 1951 को औपचारिक रूप से राजनयिक संबंध स्थापित किए. शुरुआत में दोनों देशों के बीच संपर्क सीमित थे, लेकिन 1950 के दशक के मध्य तक उच्च स्तरीय आदान-प्रदान बढ़ने लगे, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को गति मिली.
चीन-पाकिस्तान के रिश्ते माओ त्से तुंग के जमाने से चले आ रहे हैं. 1 अक्टूबर 1949 को जब कम्युनिस्ट शासन की स्थापना हुई थी, तब तक अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन को पूरी तरह मान्यता प्राप्त नहीं थी. अधिकतर पश्चिमी देश ताइवान को ही 'वैध चीन' मानते थे. पाकिस्तान उन पहले मुस्लिम देशों में था, जिसने बीजिंग की नयी कम्युनिस्ट सरकार को तब मान्यता दी थी.
साल 1963 में एक महत्वपूर्ण पड़ाव तब आया, जब दोनों देशों ने सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसने क्षेत्रीय सीमाओं को स्पष्ट किया और राजनयिक संबंधों को मज़बूत आधार प्रदान किया. साल 1980 और 1990 के दशकों में चीन और पाकिस्तान ने रक्षा, व्यापार और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में सहयोग को व्यापक रूप दिया. इस दौरान पाकिस्तान ने कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चीन का समर्थन किया. साल 1996 में दोनों देशों ने एक "व्यापक सहयोगी साझेदारी" स्थापित की, जिससे उनके संबंध और सुदृढ़ हुए.
खेल का केन्द्र बिंदु असल में है कहां? भारत की वजह से चीन का बहुत कुछ दांव पर भी लगा है. बाजार चीन को पाकिस्तान का न केवल बगलगीर बनाता है, बल्कि उसकी समस्याओं के वक्त चीन को मजबूरी में पाकिस्तान के साथ खड़ा होने के लिए साथ में बांध देता है. हाल ही में ऐसी भी खबरें आई कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, जिसे पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को रूपांतरित करने वाली परियोजना के रूप में देखा गया था, अब गंभीर आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियों में फंसा हुआ है. 2015 में चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के हिस्से के रूप में शुरू किया गया सीपैक, शुरुआत में 62 अरब अमेरिकी डॉलर की परियोजना थी, जिसका उद्देश्य पूर्वी तुर्केस्तान (शिनजियांग) को अरब सागर से जोड़ना था, ताकि व्यापार को बढ़ावा दिया जा सके और पाकिस्तान में बुनियादी ढांचे का विकास हो सके, लेकिन लगभग एक दशक बाद, यह महत्वाकांक्षी मेगा-परियोजना गंभीर अवरोधों से घिरी है और इसके भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं.
ग्वादर, जिसे कभी ‘पाकिस्तान का दुबई’ कहा गया था, सीपैक का सबसे चमकदार रत्न माना गया था, लेकिन रिपोर्ट हैं कि वहां बना नया हवाई अड्डा और पास का गहरा पानी बंदरगाह, जो चीनी निवेश का प्रतीक माने जाते है, आज तक अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाए हैं. चीन द्वारा किए गए आर्थिक समृद्धि के वादों के बावजूद, ग्वादर के स्थानीय निवासी अब निराश हो चुके हैं. ग्वादर एयरपोर्ट, जो पाकिस्तान के सबसे बड़े हवाई अड्डों में से एक है, एक ‘व्यावसायिक सफेद हाथी’ माना जा रहा है. एक ऐसा ढांचा जिसका आकार बड़ा है, लेकिन व्यावहारिक उपयोग न्यूनतम है. ग्वादर की जनसंख्या लगभग 1.5 लाख है, जिनमें से अधिकतर गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीते हैं. बंदरगाह, जिसे एक वाणिज्यिक केंद्र के रूप में विकसित किया जाना था, मुख्य रूप से पारगमन के लिए प्रयोग हो रहा है, और स्थानीय अधिकारियों के अनुसार, यह घाटे में चल रहा है.
सीपैक अब उग्रवादी संगठनों, खासकर बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) का निशाना बन चुका है, जो इस परियोजना को अपने क्षेत्र के संसाधनों के शोषण के रूप में देखती है. वहां के निवासी चीन पर यह आरोप लगाते हैं कि उसने पूरे शहर को एक हाई-सिक्योरिटी ज़ोन में बदल दिया है. जगह-जगह पर कड़े सुरक्षा चौकियां बनाई गई हैं और चीनी कर्मचारियों के लिए विशेष प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित किए गए हैं. इसके अलावा, गधों का एक वधशाला प्रोजेक्ट, जिसका उद्देश्य पारंपरिक चीनी चिकित्सा के लिए उत्पाद निर्यात करना था, उसने स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है.
बलूचिस्तान के इलाके में ‘टेंशन’ व्यापार के लिए ठीक नहीं है. पाकिस्तान बलूचिस्तान में भारत के हस्तक्षेप का हमेशा से आरोप लगाता आया है. बलूचिस्तान के गृह मंत्री ने पिछले साल जून में कहा था कि भारत, पाकिस्तान में सक्रिय तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) जैसे आतंकी संगठनों के गठजोड़ का ‘प्रमुख निवेशक’ है. उन्होंने दावा किया था कि इन संगठनों को समर्थन देकर भारत, पाकिस्तान में अस्थिरता फैलाने की कोशिश कर रहा है और अस्थिरता बाजार के हित में तो कभी नहीं होती. चीन के सुरक्षित व्यापार का रास्ता बलूचिस्तान में शांति के गलियारे से निकलता है. ऐसे में भारत के अड़ोस-पड़ोस में मित्र कौन हैं, हमारे लिए तो बतौर देश फिलवक्त यह ज्यादा महत्वपूर्ण हो उठता है!
शंकराचार्य ने राहुल गांधी को हिंदू धर्म से निष्कासित करने की अपील की
उत्तराखंड में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य ने सनातन धर्म के संतों और पुजारियों से अपील की है कि वे राहुल गांधी को हिंदू धर्म से ‘निष्कासित’ करें, क्योंकि उन्होंने ‘मनुस्मृति’ के खिलाफ़ टिप्पणियाँ की हैं. हिंदू कानून और परंपरा का एक आधारभूत ग्रंथ मनुस्मृति जाति व्यवस्था को संहिताबद्ध करने के लिए जाना जाता है.
शंकराचार्य के कार्यालय ने दिसंबर 2024 से राहुल को तीन पत्र भेजे थे. इसमें लोकसभा में मनुस्मृति पर उनकी टिप्पणी के बारे में स्पष्टीकरण मांगा गया था. टेलीग्राफ के अनुसार, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने रविवार को बद्रीनाथ में अपने आश्रम में संवाददाताओं से कहा, “राहुल गांधी ने हमारे सभी पत्रों को नजरअंदाज कर दिया है. इसका मतलब है कि उन्हें वास्तव में मनुस्मृति से घृणा है. इसका मतलब यह भी है कि वह हिंदू धर्म में विश्वास नहीं करते हैं. इसलिए उन्हें हिंदू धर्म से बहिष्कृत माना जाना चाहिए. मैं सभी संतों और पुजारियों से अपील करता हूं कि उन्हें हिंदू धर्म से निष्कासित कर दें. कोई भी उन्हें पूजा में मदद नहीं करेगा और किसी भी मंदिर में प्रवेश की उन्हें अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.”
यह पहली बार है, जब किसी शंकराचार्य ने राहुल के खिलाफ इस तरह का फरमान जारी किया है. उत्तर प्रदेश के हाथरस की यात्रा के कुछ समय बाद, जहाँ 2020 में 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था, राहुल ने पिछले साल 14 दिसंबर को संसद को बताया था : “संविधान में कहाँ लिखा है कि बलात्कारियों को आज़ाद रहना चाहिए, जबकि पीड़ित के परिवार को एक जगह पर सीमित रहना चाहिए? यह आपकी मनुस्मृति में लिखा है.” पीड़िता ने सितंबर 2020 में चार आरोपियों के नाम बताते हुए अपना बयान दर्ज कराने के कुछ दिनों बाद दम तोड़ दिया था. इनमें से तीन को बाद में बरी कर दिया गया था.
कथित तौर पर उच्च जातियों से ताल्लुक रखने वाले बलात्कारियों को बचाने के लिए हाथरस पुलिस ने लड़की का देर रात अंतिम संस्कार कर दिया था. इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. पीड़िता के परिजनों ने आरोप लगाया था कि जेल से गाँव लौटने पर आरोपियों का माला पहनाकर स्वागत किया गया, जबकि दलित परिवार को घर के अंदर बंद रहने के लिए मजबूर किया गया. इससे पहले कौल ब्राह्मणों ने भी राहुल के परदादा मोतीलाल नेहरू को अरब सागर पार कर विदेश जाने के लिए बहिष्कृत कर दिया था. हालांकि, मोतीलाल ने इस आदेश को महत्व देने से इनकार कर दिया था.
इतनी मोटी क्यों है चामू की तनख्वाह
केंद्र ने नवंबर 2021 में गठित भारतीय भाषा समिति (BBS) के अध्यक्ष पद पर आरएसएस से जुड़े सांस्कृतिक निकाय 'संस्कृत भारती' के सदस्य चामु कृष्ण शास्त्री को नियुक्त किया. एक आरटीआई आवेदन के जवाब में शिक्षा मंत्रालय उनका बायो-डेटा उपलब्ध नहीं करा सका. शास्त्री को दिसंबर 2023 से ₹2.5 लाख मासिक मानदेय दिया जा रहा है, जो किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति के ₹2.1 लाख वेतन से अधिक है. मंत्रालय ने आरटीआई में वेतन निर्धारण के फॉर्मूले की जानकारी देने से भी परहेज किया. पहले यह पद ‘मानद’ था. आरटीआई दस्तावेजों से पता चला कि उन्हें सरकारी आवास भी आवंटित किया गया है. प्रथम अपीलीय प्राधिकारी सुमन दीक्षित ने भी सूचना को ‘अनुपलब्ध’ बताया. पूर्व अधिकारियों और प्रोफेसरों ने कहा कि ऐसी नियुक्तियों के लिए बायो-डेटा न्यूनतम आवश्यकता है और शास्त्री की ‘प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान’ की साख पर भी सवाल उठाए, क्योंकि उनके शोध प्रकाशन नहीं मिले हैं. मंत्रालय और शास्त्री से इस संबंध में भेजे गए ईमेल का जवाब लंबित है.
किसान नेताओं की नज़रबंदी और विरोध : संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) द्वारा 6 मई को शंभू पुलिस स्टेशन पर घोषित विरोध प्रदर्शन से एक दिन पहले, किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को फरीदकोट जिले में उनके गांव में नजरबंद कर दिया गया. राज्य भर में कई अन्य किसान नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी कानून-व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर हिरासत में लिया गया या नजरबंद किया गया. डल्लेवाल ने फेसबुक पर वीडियो अपलोड कर AAP सरकार पर उत्पीड़न का आरोप लगाया और कहा कि यह विरोध खनौरी और शंभू में पहले हुए पुलिस दुर्व्यवहार और किसानों के ट्रैक्टर आदि गायब होने के खिलाफ था, जिसके लिए सरकार ने मुआवजे का वादा किया था, लेकिन कार्रवाई नहीं की. पुलिस ने इसे सामान्य उपाय बताया, जबकि नेताओं के घरों तक जाने वाले रास्ते सील कर दिए गए. भारतीय किसान यूनियन (दोआबा) के अध्यक्ष मनजीत सिंह राय और बलदेव सिंह सिरसा जैसे नेता भी नजरबंद किए गए. मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक्स पर चेतावनी दी कि सड़क या रेल रोकने वाले किसी भी प्रदर्शन पर सख्त कानूनी कार्रवाई होगी.
सीजेआई खन्ना वक़्फ़ कानून मामले की सुनवाई से हटे : भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना 5 मई 2025 को वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाले मामले की सुनवाई से हट गए. अपनी सेवानिवृत्ति (13 मई) से कुछ दिन पहले उन्होंने कहा कि वे कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं करना चाहते, क्योंकि उनके पास विस्तृत सुनवाई के लिए पर्याप्त समय नहीं बचा है. अब यह मामला नामित सीजेआई जस्टिस बी.आर. गवई की पीठ 15 मई को सुनेगी, जो 14 मई को पदभार ग्रहण करेंगे. पिछली सुनवाई (17 अप्रैल) में, पीठ ने सरकार का बयान दर्ज किया था कि अगली सुनवाई तक किसी वक़्फ़ को अधिसूचित नहीं किया जाएगा या उसका चरित्र नहीं बदला जाएगा. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि 2025 के संशोधन मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, वक़्फ़ प्रशासन में राज्य की भूमिका बढ़ाते हैं और 'वक़्फ़-बाय-यूज़र' की अवधारणा को हटाते हैं. वहीं, केंद्र का कहना है कि कानून का दुरुपयोग रोकने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए संशोधन जरूरी थे.
पंजाब का हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने से इनकार : पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र में सोमवार (5 मई 2025) को भगवंत मान सरकार ने हरियाणा के साथ पानी साझा करने के मुद्दे पर एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें पड़ोसी राज्य को अपने हिस्से से एक बूंद भी पानी न देने का संकल्प लिया गया. जल संसाधन मंत्री बरिंदर कुमार गोयल द्वारा पेश प्रस्ताव में कहा गया कि भाजपा हरियाणा, केंद्र और BBMB के माध्यम से पंजाब के अधिकारों को छीनने की कोशिश कर रही है. प्रस्ताव के अनुसार, हरियाणा 31 मार्च तक अपने हिस्से का पानी इस्तेमाल कर चुका है और अब BBMB की "असंवैधानिक" बैठक बुलाकर पंजाब का पानी जबरन हरियाणा को देने का प्रयास किया जा रहा है. प्रस्ताव में बताया गया कि पंजाब में नहरी सिंचाई का रकबा 22% से बढ़कर 60% हो गया है, इसलिए पानी की हर बूंद कीमती है और राज्य के पास अतिरिक्त पानी नहीं है. मानवीय आधार पर पीने के लिए दिए जा रहे 4,000 क्यूसेक पानी को जारी रखा जाएगा, लेकिन इससे अधिक नहीं दिया जाएगा. विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने भी प्रस्ताव का समर्थन किया.
बर्खास्त सीआरपीएफ कांस्टेबल ने बताया था डिपार्टमेंट को पाकिस्तानी पत्नी के बारे में
पाकिस्तानी से अपनी शादी को छिपाने के आरोप में बर्खास्त किए गए सीआरपीएफ कांस्टेबल मुनीर अहमद ने दावा किया है कि उन्होंने मई 2024 में शादी करने से पहले और बाद में अपने आला अधिकारियों को अपनी होने वाली पत्नी की राष्ट्रीयता के बारे में न सिर्फ सूचित किया था, बल्कि सारी आवश्यक औपचारिकताएं भी पूरी की थी.
टेलीग्राफ के मुताबिक, रविवार को जम्मू में संवाददाता सम्मेलन में मुनीर ने सीआरपीएफ मुख्यालय से एक कथित जवाब दिखाया, जिसमें स्वीकार किया गया था कि उन्होंने विभाग को सूचित किया था और विभाग ने कहा था कि किसी अनापत्ति प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है.
कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी नागरिक मीनल खान से अपनी शादी के बारे में विभाग को दिसंबर 2022 में ही सूचित कर दिया था. इसके बाद भी कई बार ऐसा किया है. उन्होंने बताया कि उन्होंने डीजीपी से लेकर कमांड चेन तक से संपर्क करने के बाद दिल्ली में सीआरपीएफ मुख्यालय को सूचित किया था कि वह एक पाकिस्तानी से शादी कर रहे हैं. भोपाल में 41 बटालियन में तैनात जम्मू निवासी मुनीर ने सीआरपीएफ से अपने मामले पर फिर से विचार करने का आग्रह किया है. इस मौके पर उन्होंने न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने की बात भी कही.
पहलगाम हमले के बाद केंद्र ने पाकिस्तानियों को भारत छोड़ने का आदेश दिया है. इसमें मुनीर की पत्नी को भी डिपोर्ट करने का आदेश था, जिस पर जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी. इसके कुछ ही दिन बाद शनिवार को मुनीर को पाकिस्तानी पत्नी के बारे में विभाग को सूचित नहीं करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया. मुनीर ने कहा कि उनकी पत्नी अल्पकालिक वीज़ा पर भारत आई थी. इसके बाद उन्होंने दीर्घकालिक वीज़ा के लिए आवेदन किया था.वहीं सीआरपीएफ़ के बर्खास्तगी पत्र में कहा गया है : “गंभीर चिंता का विषय है... मुनीर अहमद... को एक पाकिस्तानी नागरिक से अपनी शादी को छिपाने और जानबूझकर उसके वीज़ा की वैधता से परे उसे शरण देने के लिए तत्काल प्रभाव से सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है.”
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को लगाई कड़ी फटकार, ‘यह पैटर्न है- बिना किसी संदर्भ के सिर्फ आरोप लगाना’
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को व्यक्तियों के खिलाफ आरोप लगाने के ईडी के ‘पैटर्न’ पर सवाल उठाया. जस्टिस अभय ओका ने 2,000 करोड़ रुपये के छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से टिप्पणी की, “हमने प्रवर्तन निदेशालय की कई शिकायतें देखी हैं. यह पैटर्न है – बिना किसी संदर्भ के सिर्फ आरोप लगाना.”
जस्टिस ओका ने अतिरिक्त महाधिवक्ता एस.वी. राजू से कहा, "आपने एक विशिष्ट आरोप लगाया है कि उसने 40 करोड़ कमाए हैं. अब आप इस व्यक्ति का इस या किसी अन्य कंपनी से संबंध नहीं दिखा पा रहे हैं. आपको यह बताना चाहिए कि क्या वह इन कंपनियों का निदेशक है? क्या वह बहुसंख्यक शेयरधारक है? क्या वह प्रबंध निदेशक है? कुछ तो होना ही चाहिए." छत्तीसगढ़ के इस हाई प्रोफाइल मामले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल के आवास पर करीब दो महीने पहले छापेमारी की गई थी. ईडी ने आरोप लगाया था कि राज्य के उच्चस्तरीय अधिकारियों, व्यक्तियों और राजनीतिक नेताओं ने इस घोटाले को अंजाम दिया था, जिसमें डिस्टिलर्स से करीब 2,000 करोड़ रुपये की रिश्वत ली गई थी और देसी शराब को बिना बताए बेचा जा रहा था. इससे पहले 29 अप्रैल को इसी मामले में सुनवाई के दौरान भी जस्टिस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने ईडी पर सख्त टिप्पणी की थी : “जांच अपनी गति से चलेगी. यह अनंत काल तक चलती रहेगी. तीन आरोपपत्र दाखिल किए जा चुके हैं. आप व्यक्ति को हिरासत में रखकर उसे वस्तुतः दंडित कर रहे हैं. आपने प्रक्रिया को ही सजा बना दिया है.”
यह पहली बार नहीं है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों को सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना का सामना करना पड़ा है. पिछले साल नवंबर में बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस भुइयां और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने ईडी की खराब सजा दर पर टिप्पणी की थी. पीठ ने कहा था, “एएसजी, ईडी के लिए आपकी सजा दर क्या है?... यह बहुत खराब है... अगर यह 60 से 70 प्रतिशत होती तो हम समझ सकते थे.” टेलीग्राफ के अनुसार, पिछले साल 6 अगस्त को, केंद्रीय राज्य गृह मंत्री नित्यानंद राय के संसद को बताए गए आंकड़ों से भी यह बात सिद्ध होती है. दिये गये आंकड़ों के अनुसार, 2014 से 2024 तक धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत दर्ज किए गए 5,297 मामलों में से महज 40 मामलों में दोषसिद्धि हुई और तीन लोगों को बरी कर दिया गया.
गलत को बचाने की जरूरत नहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में गलत कामों में शामिल किसी भी व्यक्ति को बचाने की कोई जरूरत नहीं है. भारत के चीफ जस्टिस न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को कथित तौर पर मामले में फंसाने वाली ऑडियो रिकॉर्डिंग से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. यह टिप्पणी सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता द्वारा कुकी ऑर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाने के बाद की गई, जिसने ऑडियो रिकॉर्डिंग की जांच की मांग की है. बार एंड बेंच की खबर के अनुसार, न्यायालय ने ऑडियो रिकॉर्डिंग की प्रामाणिकता पर फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) से रिपोर्ट मांगी थी. सोमवार को इसे कोर्ट में पेश किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने 4पीएम ब्लॉक करने पर केंद्र से मांगा जवाब : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र से उस याचिका पर जवाब मांगा, जिसमें 4पीएम न्यूज यूट्यूब चैनल को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के आधार पर ब्लॉक करने को चुनौती दी गई है. जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने चैनल चलाने वाले संजय शर्मा की याचिका पर भी नोटिस जारी किया. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, शर्मा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, “ब्लॉक करने से पहले कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था. एक मध्यस्थ से इस बारे में पता चला. बिना कारण के पूरा चैनल ब्लॉक कर दिया गया है. यह कार्रवाई ‘प्रत्यक्ष रूप से असंवैधानिक’ है. ब्लॉक करने का आदेश हटाया जाए.” इस पर जस्टिस गवई ने कहा, “हमें दूसरे पक्ष को भी सुनना होगा.”
मोदी-राहुल-सीजेआई बैठक में नहीं बनी सहमति, सूद बने रहेंगे सीबीआई निदेशक! : ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को मिली जानकारी के अनुसार, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के मौजूदा प्रमुख प्रवीण सूद को एक साल का सेवा विस्तार मिल सकता है. सूद के उत्तराधिकारी का चयन करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य न्यायधीश संजीव खन्ना और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की तीन सदस्यीय चयन समिति के सदस्यों के बीच किसी नाम पर आम सहमत नहीं बन पाई. सूत्रों के अनुसार, समिति ने कुछ वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के नामों पर विचार-विमर्श किया. इसके बाद सदस्यों ने सूद का कार्यकाल एक साल बढ़ाने पर सहमति जताई. बैठक शाम करीब 6:45 बजे शुरू हुई और शाम 7:30 बजे समाप्त हुई. जल्द ही गजट अधिसूचना के जरिए इस फैसले की घोषणा होने की उम्मीद है. यह विचार-विमर्श 25 मई को सूद के पूरे हो रहे दो साल के निर्धारित कार्यकाल के समाप्त होने से पहले हुआ.
ट्रम्प प्रशासन से संपर्क में अडाणी समूह : 'द टेलीग्राफ' की रिपोर्ट के अनुसार, अडानी समूह ने अमेरिका में गौतम अडाणी पर लगे आपराधिक आरोपों को खारिज करवाने के प्रयास में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के अधिकारियों से मुलाकात की है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, यह बातचीत इस साल की शुरुआत से चल रही है और हाल के हफ्तों में तेज़ हुई है. अगर यही रफ्तार बनी रही, तो एक महीने के भीतर किसी समाधान तक पहुंचा जा सकता है. मार्च में न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन में अमेरिकी अटॉर्नी ऑफिस और न्याय विभाग (DOJ) के अधिकारियों के साथ बैठक भी हुई थी. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, "अडाणी के प्रतिनिधि यह दलील देने की कोशिश कर रहे हैं कि गौतम अडाणी के खिलाफ मुकदमा राष्ट्रपति ट्रम्प की प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं है और इसे पुनर्विचार के लिए देखा जाना चाहिए." हालांकि अडाणी समूह ने इस पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं दी है.
ट्रम्प ने कहा संविधान की जिम्मेदारी के बारे में ‘नहीं जानता’
राष्ट्रपति ट्रम्प ने एनबीसी न्यूज़ को लम्बा इंटरव्यू दिया. इसमें उन्होंने अर्थव्यवस्था और अपने दूसरे कार्यकाल के लक्ष्यों समेत कई मुद्दों पर बात की. एक्सियोज ने इंटरव्यू के बारे संक्षिप्त ब्यौरा प्रकाशित किया है.
ट्रम्प ने अर्थव्यवस्था के खराब हिस्सों के लिए पूर्व राष्ट्रपति बाइडेन को दोषी ठहराया और अच्छे हिस्सों का श्रेय खुद लिया. उन्होंने इस बात को नज़रअंदाज़ किया कि हालिया नकारात्मक आर्थिक आंकड़े ज़्यादातर उनके कार्यकाल के दौरान के थे.
ट्रम्प ने तीसरा कार्यकाल चाहने की बात से इनकार किया, हालांकि उनके समर्थक ऐसा चाहते हैं. उन्होंने इस सवाल को टाल दिया कि संविधान तीसरे कार्यकाल की इजाज़त नहीं देता. उन्होंने कहा कि कुछ विदेशी टैरिफ स्थायी हो सकते हैं, ताकि कंपनियां अमेरिका में उत्पादन करें. हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि चीन पर लगे भारी टैरिफ हमेशा नहीं रहेंगे. जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें संविधान का पालन करना आवश्यक है, खासकर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के संदर्भ में, तो ट्रम्प ने कहा ‘मुझे नहीं पता’. उन्होंने कहा कि उनके वकील कोर्ट के निर्देशों का पालन करेंगे. ट्रम्प ने कनाडा को अमेरिका में मिलाने के विचार को ज़्यादातर खारिज कर दिया. लेकिन उन्होंने ग्रीनलैंड में गहरी दिलचस्पी दिखाई और कहा कि सुरक्षा कारणों से अमेरिका को इसकी ज़रूरत है.उन्होंने जून में होने वाली महंगी सैन्य परेड का बचाव करते हुए कहा कि लागत कम है और यह अमेरिकी सैन्य ताकत दिखाने के लिए ज़रूरी है. यह परेड अमेरिकी सेना की 250वीं वर्षगांठ और उनके जन्मदिन पर होगी.
सीएनएन के स्टीफन कोलिन्सन एक विश्लेषण के अनुसार, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ऐसा व्यवहार कर रहे हैं मानो संविधान उन पर लागू नहीं होता और वे अपनी शक्तियों पर कोई सीमा नहीं मानते. वे अपने कामों के परिणामों से भी बेफिक्र दिखते हैं. हाल की उनकी नीतियां, कानूनी लड़ाइयां और बयान दर्शाते हैं कि वे राष्ट्रपति पद के पारंपरिक तौर-तरीकों और सीमाओं को लगातार तोड़ रहे हैं.
एनबीसी को दिये गये एक इंटरव्यू में, संविधान की रक्षा की शपथ लेने के बावजूद, उन्होंने कहा कि उन्हें ‘नहीं पता’ कि क्या उन्हें इसका पालन करने की ज़रूरत है. उनके कई कदम सामान्य स्थिति को भंग करने, विरोधियों को डराने और अपने समर्थकों को खुश करने के उद्देश्य से लगते हैं. उनके समर्थक मानते हैं कि ट्रम्प का यह रवैया उदारवादी राजनीतिक, कानूनी और मीडिया संस्थानों के ख़िलाफ़ सही है. लेकिन विश्लेषकों को डर है कि यह रवैया अमेरिका को तानाशाही की ओर ले जा सकता है, खासकर अगर वे दोबारा राष्ट्रपति बनते हैं. ट्रम्प अदालतों के आदेशों की अनदेखी कर रहे हैं और अपनी नापसंद संस्थाओं के ख़िलाफ़ प्रशासनिक शक्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं. तीसरे कार्यकाल की संभावना पर उनका जवाब भी ऐसा था मानो यह संविधान नहीं, बल्कि उनकी व्यक्तिगत पसंद का मामला हो.
ट्रम्प शक्ति प्रदर्शन के लिए अनोखे तरीके अपनाते हैं, जैसे खुद को पोप के रूप में दिखाना या अपने जन्मदिन पर भव्य सैन्य परेड की योजना बनाना. ऐसे प्रदर्शन अक्सर तानाशाहों से जोड़े जाते हैं और यह दिखाते हैं कि वे सेना को जनता के बजाय शासक के प्रति समर्पित मानते हैं.
आर्थिक मोर्चे पर भी, ट्रम्प आम लोगों की परेशानियों से कटे हुए लगते हैं. चीन के साथ व्यापार युद्ध से होने वाली महंगाई और सामान की कमी पर उनकी टिप्पणियां, जैसे ‘लोगों को 250 पेंसिल की ज़रूरत नहीं है, वे पांच से काम चला सकते हैं’, इस दूरी को दर्शाती हैं. वे महंगाई कम होने जैसे दावे करते हैं, जो आम लोगों के अनुभव से मेल नहीं खाते.
विश्लेषण के मुताबिक, ट्रम्प ऐसा इसलिए कर पाते हैं, क्योंकि उनके कैबिनेट सदस्य और रिपब्लिकन पार्टी के नेता उन्हें सार्वजनिक रूप से चुनौती देने से बचते हैं. विदेश नीति में भी उनकी महत्वाकांक्षाएं बड़ी हैं, जैसे ग्रीनलैंड पर बल प्रयोग की संभावना से इनकार न करना. कुल मिलाकर, सीएनएन का विश्लेषण कहता है कि ट्रम्प का रवैया अमेरिकी लोकतंत्र की संवैधानिक और कानूनी बुनियाद के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करता है.
चलते-चलते
एक सर्पदंश का आदी, दूसरा ज़हर काटने का वैज्ञानिक, मिलकर बनाई अचूक दवा

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई जानबूझकर खुद को कोबरा, मांबा और रैटलस्नेक जैसे दुनिया के सबसे घातक साँपों से कटवाए? कैलिफोर्निया के टिम फ्रीड ने यही अविश्वसनीय और खतरनाक काम किया. उन्होंने लगभग 18 वर्षों तक सैकड़ों बार खुद को ज़हरीले साँपों से कटवाया और उनका ज़हर इंजेक्ट किया. जहाँ मीडिया उन्हें 'सनकी आदमी' बता रहा था, वहीं इम्यूनोलॉजिस्ट (प्रतिरक्षा विज्ञानी) जैकब ग्लानविल की पारखी नज़र ने इस जोखिम भरे जुनून में एक 'अनमोल हीरा' (diamond in the rough) देखा. यह कहानी है टिम के असाधारण जोखिम, ग्लानविल की वैज्ञानिक दूरदृष्टि और साँप काटने के इलाज में क्रांति लाने की क्षमता रखने वाली एक संभावित खोज की.
साल 2017 में ग्लानविल ने फ्रीड के बारे में पढ़ा. फ्रीड, एक स्व-प्रशिक्षित साँप विशेषज्ञ, ने धीरे-धीरे ज़हर की खुराक लेकर कई घातक न्यूरोटॉक्सिन के प्रति अपने शरीर में प्रतिरक्षा विकसित कर ली थी. ग्लानविल ने फ्रीड से संपर्क किया. ग्लानविल याद करते हैं, "मैंने कहा, मुझे पता है यह अजीब है, पर मैं आपके खून की जांच करना चाहूंगा." फ्रीड का जवाब था, "आखिरकार. मुझे इसी कॉल का इंतज़ार था." फ्रीड ने ग्लानविल और उनकी टीम को अपने खून का 40-मिलीलीटर नमूना दान दिया. खास बात यह थी कि फ्रीड ने 17 साल 9 महीने तक विभिन्न महाद्वीपों के साँपों के ज़हर का सामना करने और अपनी प्रतिक्रियाओं का बेहद सावधानीपूर्वक रिकॉर्ड रखा था, जो वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत मूल्यवान था.
साँप का काटना आज भी दुनिया भर में, खासकर विकासशील देशों में, एक भयावह स्वास्थ्य समस्या है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, लगभग 200 लोग साँप काटने से रोज़ाना मर जाते हैं और सालाना 4 लाख लोग स्थायी विकलांगता का शिकार होते हैं. इसे 2017 में 'उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग' घोषित किया गया था. मौजूदा एंटीवेनम बनाने की पारंपरिक प्रक्रिया सदियों पुरानी है : घोड़ों जैसे जानवरों में साँप का ज़हर इंजेक्ट कर एंटीबॉडीज़ तैयार की जाती हैं. यह प्रक्रिया न केवल खतरनाक, श्रमसाध्य और त्रुटियों से भरी हो सकती है, बल्कि इससे बनी एंटीवेनम से मरीज़ों में गंभीर एलर्जी प्रतिक्रियाएं (साइड इफेक्ट्स) भी हो सकती हैं.
आठ साल के शोध के बाद, ग्लानविल और कोलंबिया विश्वविद्यालय के पीटर क्वोंग ने एक नई एंटीवेनम का विवरण प्रकाशित किया है. यह टिम फ्रीड के खून से मिली दो विशिष्ट एंटीबॉडीज़ (LNX-D09 और SNX-B03) और 'वेरेस्प्लेडिब' नामक एक छोटे-अणु वाली दवा का कॉकटेल है. वेरेस्प्लेडिब लगभग 95% साँप के ज़हर में पाए जाने वाले एक महत्वपूर्ण एंजाइम को निष्क्रिय करती है और वर्तमान में अकेले उपचार के रूप में मानव परीक्षणों से गुज़र रही है. चूहों पर किए गए प्रारंभिक परीक्षणों में, इस कॉकटेल ने 19 विभिन्न प्रजातियों (जैसे मांबा, कोरल स्नेक, कोबरा, क्रेट) के ज़हर के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की - 13 प्रजातियों के लिए 100% और शेष 6 के लिए आंशिक (20-40%) सुरक्षा.
ब्रिटेन के विशेषज्ञ स्टीवन हॉल ने इसे "बहुत चतुर और रचनात्मक तरीका" बताया है. उनका मानना है कि मानव-आधारित एंटीबॉडीज़ के कारण इसके दुष्प्रभाव पारंपरिक एंटीवेनम से काफी कम होंगे और यदि यह मनुष्यों के लिए स्वीकृत होता है, तो यह "क्रांतिकारी" साबित हो सकता है. हालांकि, ग्लानविल और फ्रीड दोनों ही ज़ोर देकर कहते हैं कि किसी को भी फ्रीड की नकल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए; साँप का ज़हर बेहद खतरनाक है. फ्रीड ने भी 2018 में यह काम बंद कर दिया था और अब वह ग्लानविल की कंपनी सेंटिवैक्स में कार्यरत हैं. टीम का अगला लक्ष्य इस एंटीवेनम को वाइपर (जैसे रैटलस्नेक) परिवार के साँपों के खिलाफ भी विकसित करना और ऑस्ट्रेलिया में कुत्तों पर फील्ड ट्रायल शुरू करना है. यह कहानी विज्ञान, मानव शरीर की अद्भुत क्षमता और अप्रत्याशित स्रोतों से मिलने वाली आशा का प्रतीक है.
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