06/08/2025: 1.5 करोड़ नाम कटने का ख़तरा | बादल फटा, 60 सैकंड में तबाही | बहुत ही ज्यादा टैरिफ की धमकी | जम्मू कश्मीर का दर्जा | बाबे को फिर पैरोल | ट्रम्प और पुतिन | सत्यपाल मलिक के जिंदा सवाल
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
20 लाख युवा समेत 94 लाख वोटर ग़ायब, 1.5 करोड़ के नाम कटने का ख़तरा
चुनाव आयोग पर विश्वास का संकट
उत्तरकाशी में बादल फटा, उफनती नदी ने शहर के परखच्चे उड़ा दिये
'बहुत ही ज़्यादा' टैरिफ़ बढ़ाने की भारत को ट्रम्प की धमकी
जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाली के लिए सड़कों पर उतरे राजनीतिक दल, बीजेपी की निंदा
बलात्कारी. हत्यारा. बाबा. 5 सालों में 366 दिन की पैरोल. दिलदार सरकार. मेहरबान अदालतें
सच्चा भारतीय कौन है, यह तय करना जजों का काम नहीं : प्रियंका
"यह सदन कौन चला रहा है, आप या अमित शाह?"
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को बढ़ाने की संसद की मंजूरी
सत्यपाल मलिक (1946-2025) सवाल करने वाला आदमी
क्या एनिमेटेड शो 'ब्लूई' बच्चों को जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार करता है?
पुतिन और ट्रम्प के रिश्ते बिगड़े
बिहार मतदाता सूची
20 लाख युवा समेत 94 लाख वोटर ग़ायब, 1.5 करोड़ के नाम कटने का ख़तरा
बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची को लेकर एक गंभीर संकट खड़ा हो गया है. भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा शुरू किए गए "विशेष गहन पुनरीक्षण" (SIR) के बाद जारी मसौदा मतदाता सूची से कम से कम 94 लाख पात्र मतदाताओं के नाम ग़ायब हैं. द वायर में प्रकाशित और द रिपोर्टर्स कलेक्टिव (TRC) द्वारा की गई एक विस्तृत जांच में यह खुलासा हुआ है. इस बड़ी संख्या में 20 लाख से ज़्यादा वे युवा मतदाता भी शामिल हैं जो पहली बार अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करने वाले थे, लेकिन अब वे सूची से बाहर हो गए हैं. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि प्रक्रियात्मक बाधाओं को दूर नहीं किया गया तो अपने मताधिकार से वंचित होने वाले नागरिकों की अंतिम संख्या 1.5 करोड़ तक पहुँच सकती है.
यह पूरा मामला 24 जून, 2025 को ECI द्वारा SIR प्रक्रिया शुरू करने के बाद सामने आया. ECI ने दावा किया था कि उसने सूची को दुरुस्त करने के लिए 65 लाख ऐसे नाम हटाए हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है, जो कहीं और स्थायी रूप से बस गए हैं, या जिनके नाम एक से ज़्यादा जगह दर्ज थे. हालांकि, जांच यह उजागर करती है कि यह आंकड़ा एक बड़ी और गंभीर कहानी को छुपाता है, जो बड़े पैमाने पर लोगों को चुनावी प्रक्रिया से बाहर करने की ओर इशारा करती है.
आंकड़ों का विश्लेषण और बड़ा अंतर : विश्लेषकों ने मतदाता सूची की सटीकता को मापने के लिए निर्वाचक-जनसंख्या (EP) अनुपात का उपयोग किया है. यह कुल वयस्क आबादी (18+ वर्ष) में पंजीकृत मतदाताओं का प्रतिशत होता है. एक आदर्श सूची में यह अनुपात 100% के करीब होना चाहिए. जाने-माने चुनाव विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने 'द वायर' को बताया कि सरकारी जनसंख्या अनुमानों के अनुसार, जुलाई 2025 में बिहार की 18+ आबादी 8.18 करोड़ होनी चाहिए. इसके विपरीत, ECI द्वारा जारी मसौदा सूची में केवल 7.24 करोड़ मतदाता ही दर्ज हैं. यह सीधा-सीधा 94 लाख पात्र मतदाताओं का अंतर दिखाता है. इस भारी गिरावट के कारण बिहार का EP अनुपात 97% से गिरकर 88% के ऐतिहासिक निचले स्तर पर आ गया है.
इस 94 लाख के अंतर में लगभग 69 लाख वे नागरिक हैं जिन्हें पिछली सूची से हटाया गया है और क़रीब 25 लाख वे पात्र नागरिक हैं, जिनमें अधिकतर नए वोटर हैं, जिन्हें कभी जोड़ा ही नहीं गया.
लाखों युवा पहली बार वोट देने से वंचित : इस पुनरीक्षण की सबसे बड़ी और चौंकाने वाली कमी यह है कि इसमें एक भी नया मतदाता नहीं जोड़ा गया है, जो सांख्यिकीय रूप से असंभव है. सरकारी अनुमानों के अनुसार, चुनाव के समय तक बिहार में 20.62 लाख युवा 18 वर्ष के हो जाएंगे और मतदान के पात्र होंगे. इसका मतलब है कि प्रति विधानसभा क्षेत्र औसतन 8,500 नए मतदाता इस प्रक्रिया से बाहर कर दिए गए हैं. यह बिहार में दशकों से चली आ रही लोकतांत्रिक प्रक्रिया को उलटने जैसा है, क्योंकि पिछले सभी चुनावों में मतदाताओं की संख्या में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है.
ECI के दावे और प्रक्रिया पर सवाल : ECI ने इस कठोर कदम के पीछे तर्क दिया था कि बिहार की मतदाता सूची त्रुटिपूर्ण थी. लेकिन द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की जांच ने इस दावे को गलत साबित किया. TRC ने सबूतों के साथ बताया कि ECI ने इसी साल जनवरी 2025 में 7.80 करोड़ मतदाताओं की एक "मजबूत" और सत्यापित अंतिम सूची प्रकाशित की थी, जिसे केवल पांच महीने बाद ही रद्द कर दिया गया.[
जिस "विशेष गहन पुनरीक्षण" (SIR) प्रक्रिया के तहत यह किया जा रहा है, वह चुनावी कानूनों में नहीं पाई जाती. यह 2003 के बाद पंजीकृत किसी भी मतदाता को सीमित और कड़े दस्तावेज़ों के साथ अपनी पात्रता फिर से साबित करने के लिए मजबूर करती है, जो एक अभूतपूर्व और भेदभावपूर्ण प्रक्रिया है. ज़मीनी स्तर पर यह कवायद नागरिकता सत्यापन अभियान में बदल गई है, जो ECI के अधिकार क्षेत्र से बाहर है.
1.5 करोड़ तक कैसे पहुंच सकता है आंकड़ा? विशेषज्ञों का अनुमान है कि 94 लाख का यह आंकड़ा अंतिम नहीं है और यह 1.5 करोड़ तक बढ़ सकता है. इसके पीछे कई प्रक्रियात्मक बाधाएं हैं. बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) आवेदनों को "अनुशंसित नहीं" के रूप में चिह्नित कर सकते हैं. मतदाताओं को 11 विशिष्ट दस्तावेज़ों में से कोई एक जमा करना अनिवार्य किया गया है, जो ग़रीबों, प्रवासियों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए एक बड़ी चुनौती है. अंतिम निर्णय निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (ERO) पर निर्भर करता है, जो "स्थानीय जांच" के बाद किसी भी आवेदन को अस्वीकार कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले पर संज्ञान लिया है और कहा है कि अगर बड़े पैमाने पर लोगों को सूची से बाहर किया गया तो वह हस्तक्षेप करेगा. इस पूरी प्रक्रिया ने बिहार में एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक विवाद खड़ा कर दिया है, जिससे लाखों नागरिकों का सबसे बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकार ख़तरे में पड़ गया है.
चुनाव आयोग पर विश्वास का संकट
द हिंदू ने अपनी संपादकीय टिप्पणी में लिखा है कि किसी भी चुनावी प्रणाली या सामान्य रूप से लोकतंत्र की विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि उसे सभी निष्पक्ष मानें, विशेष रूप से हारने वाला पक्ष. इस मामले में यह एक न्यायिक विवाद या खेल आयोजन के समान है. अगर हारने वाले पक्ष को लगता है कि वे केवल इसलिए हारे क्योंकि प्रक्रिया में उनके खिलाफ धांधली हुई थी, तो विश्वास का संकट पैदा होता है. भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के खिलाफ लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा उठाए जा रहे गंभीर आरोपों को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. उनका कहना है कि 2024 के आम चुनाव में हुई गड़बड़ियों के बारे में उनके पास और जानकारी देने की योजना है.
इन आरोपों की योग्यता पर कोई भी टिप्पणी करने से पहले उनके विवरण का इंतजार करना चाहिए. चुनाव आयोग पर पहले भी राजनेताओं द्वारा हमले किए गए हैं. नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए बार-बार चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे. आयोग के खिलाफ इनमें से कई आरोप राजनीतिक दलों या नेताओं द्वारा समर्थकों को उत्साहित करने के लिए बयानबाजी के प्रयास होते हैं. बिहार में, राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि उनका नाम उस मसौदा मतदाता सूची में मौजूद नहीं था, जिसे चुनाव आयोग द्वारा संशोधित किया जा रहा है. हालांकि, बाद में यह सामने आया कि जिस मतदाता फोटो पहचान पत्र (एपिक) संख्या को वे अपना समझ रहे थे, वह चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में मौजूद संख्या से अलग है, जिससे एक नया विवाद खड़ा हो गया.[3] राजनेताओं को चुनावी प्रक्रिया के बारे में सवाल तभी उठाने चाहिए जब ऐसा करने के लिए उनके पास पुख़्ता आधार हों. चुनावी प्रणाली में विश्वास प्रतिनिधि लोकतंत्र के लिए मौलिक है.
इसके बावजूद, चुनाव आयोग के हालिया बयान और कार्य, प्रक्रिया में सार्वजनिक विश्वास को मजबूत करने और पारदर्शिता बढ़ाने के बजाय, अधिक सवाल खड़े करते हैं. मतदाता सूची तैयार करने, चुनाव के कार्यक्रम, आचार संहिता के प्रवर्तन, मतगणना प्रक्रिया और शिकायतों के निवारण जैसे हर मोर्चे पर इसकी दक्षता और तटस्थता की परीक्षा होती है. चुनाव आयोग इन सभी मामलों में आरोपों का सामना कर रहा है. इस बात पर जोर देने के अलावा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के साथ छेड़छाड़ नहीं हो सकती और राजनीतिक दलों को मतदाता सूची के बारे में उचित समय पर आपत्तियां उठानी चाहिए, चुनाव आयोग ने कई मुद्दों पर अपनी स्थिति साफ़ करने से इनकार कर दिया है. यह वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) मशीन के बारे में पारदर्शी नहीं रहा है. वीवीपैट में एक सॉफ्टवेयर होता है जो केंद्रीय रूप से स्थापित होता है और यह कंट्रोल यूनिट से जुड़ा होता है. इलेक्ट्रॉनिक रूप से डाले गए वोटों के साथ वीवीपैट का रैंडम मिलान अब एक बेहद मनमानी प्रक्रिया है. सभी राजनीतिक दलों के पास चुनावी प्रक्रिया के विभिन्न चरणों की निगरानी करने की समान क्षमता नहीं होती है. चुनावी प्रक्रिया केवल पार्टियों और चुनाव आयोग के बीच बातचीत का मामला नहीं है. राजनीतिक दलों की इसमें भूमिका है, लेकिन असली सवाल यह सुनिश्चित करना है कि देश के नागरिकों को चुनावी प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा का आश्वासन दिया जाए. चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करने के लिए अपने तौर-तरीकों को सही करने की ज़रूरत है.
उत्तरकाशी में बादल फटा, उफनती नदी ने शहर के परखच्चे उड़ा दिये
4 मरे, 50 से अधिक लापता, कई मकान और होटल मिट्टी में मिले
उत्तराखंड के धराली कस्बे में मंगलवार की दोपहर करीब 2 बजे बादल फटने से अचानक तबाही मच गई. उत्तरकाशी जिले का यह क़स्बा समुद्री तल से 8,600 फीट ऊंचाई पर बसा हुआ है. बादल फटने से खीर गंगा नदी में बाढ़ आ गई और ऊपर से इतनी वेग से पानी और मलबा आया कि कुछ सेकण्ड में ही धराली के होटल और आवासीय भवन उसकी चपेट में आ गए. चार लोगों की मौत हो गई और 50 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं, जिनके बह जाने की आशंका है.
स्थानीय निवासियों द्वारा रिकॉर्ड की गई वीडियो फुटेज में दिखाई पड़ रहा है कि पानी और उसके साथ मलबा कितने आवेग के साथ आया. जिसने अपने रास्ते में घरों, लोगों और हर चीज़ को निगल लिया. फुटेज में लोगों को अपने परिचितों को जान बचाने के लिए भागने की चेतावनी देते हुए सुना जा सकता है, जबकि कुछ दूसरे लोग आपदा क्षेत्र के पास मौजूद अपने मित्रों की सूचना लेने के लिए घबराहट में कॉल कर रहे थे. कुछ ही सेकंड में इस लोकप्रिय पर्यटक कस्बे का पूरा बाज़ार और इलाका कीचड़ से भरी नदी की तलहटी की तरह दिखने लगा.
सांसद ने कहा, 2013 त्रासदी से भी बड़ी घटना : टिहरी गढ़वाल की सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह ने कहा कि बादल फटने की आज की घटना 2013 में हुई केदारनाथ त्रासदी से भी बड़ी है. केंद्र और राज्य की ओर से मदद भेजी जा रही है. राहत दल भी रास्ते में हैं, लेकिन कुछ जगहों पर सड़कें बंद होने के कारण समय लग रहा है.
डीआईजी ने कहा, बड़े पैमाने पर बचाव अभियान चलाना पड़ेगा : एनडीआरएफ के डीआईजी मोहसिन शाहेदी के अनुसार, करीब 40-50 घर बह गए हैं और 50 से अधिक लोग लापता हैं. उन्होंने कहा कि एनडीआरएफ की तीन टीमें मौके पर भेजी गई हैं. प्रत्येक टीम में 35 सदस्य हैं और वे विषम परिस्थितियों में फंसे लोगों को बचाने के लिए पूरी तरह से सक्षम और सुसज्जित हैं. मगर, डीआईजी ने कहा, "वहां बड़े पैमाने पर बचाव अभियान चलाना पड़ेगा."
हमें प्रकृति के अनुसार काम करना चाहिए : इस बीच भौगोलिक आपदा विशेषज्ञ डॉ. डी.एन. जोशी ने कहा कि हमें प्रकृति के अनुसार काम करना चाहिए. “जब बहुत कम समय में भारी बारिश होती है तो उसे बादलफट (क्लाउडबर्स्ट) कहा जाता है. ये घटनाएं ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में होती हैं. मौसम विभाग चेतावनी जारी करता है. उत्तरकाशी और केदारनाथ घाटी को उच्च जोखिम क्षेत्र कहा जाता है," उन्होंने कहा. “हम अक्सर ऐसी घटनाओं के बारे में सुनते रहते हैं, इसलिए जब भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो, हमें ऊंची जगह पर शरण लेनी चाहिए,” उन्होंने जोड़ा.
सूखी टॉप पर एक और ‘क्लाउडबर्स्ट’ की सूचना : धराली में बादल फटने की घटना के कुछ घंटे बाद, उत्तरकाशी के एक अन्य पर्यटन स्थल सूखी टॉप से भी बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) की सूचना मिली, यह जानकारी गढ़वाल के आयुक्त विनय शंकर पांडे ने दी है.उन्होंने बताया कि घटनास्थल से किसी जानमाल के नुकसान की खबर नहीं है, लेकिन क्लाउडबर्स्ट के चलते नदी का जल स्तर बहुत तेजी से बढ़ गया है.
पर्यावरण संतुलन बिगड़ेगा तो बादल फटेंगे, हाईकोर्ट ने दोबारा बंद किए 48 स्टोन क्रशर
पर्यावरण संतुलन जब बिगड़ता है, तो बादल फटने जैसी आपदाएं ही सामने आती हैं. पिछले दिनों उत्तराखंड हाईकोर्ट का एक आदेश यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भाषणों में लाख बड़ी-बड़ी बातें की जाएं, लेकिन धरातल पर वास्तविकता भयावह है. कोर्ट के हस्तेक्षप और उसके आदेशों की परवाह भी नहीं की जा रही है और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में बेधड़क उत्खनन किया जा रहा है. "द टाइम्स ऑफ़ इंडिया" की खबर है कि हाईकोर्ट ने बुधवार को हरिद्वार क्षेत्र में संचालित 48 स्टोन क्रशरों को तत्काल बंद करने का आदेश दिया है, और संबंधित अधिकारियों को इन क्रशरों की बिजली और पानी की आपूर्ति तुरंत बंद करने के निर्देश दिए हैं. इस आदेश का कारण पिछले निर्देशों के अनुपालन में विफलता बताया गया है.
कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों से एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई की रिपोर्ट भी मांगी है. मामले की अगली सुनवाई 12 सितंबर को होगी. यह आदेश न्यायाधीश रवींद्र मैथानी और न्यायाधीश पंकज पुरोहित की डिवीजन बेंच ने दिया, जो हरिद्वार स्थित संस्था मातृ सदन द्वारा दायर जनहित याचिका की सुनवाई कर रही थी.
मातृ सदन ने याचिका में रायवाला से भोगपुर तक गंगा नदी के किनारे तथा हरिद्वार के कुंभ मेले के क्षेत्र में गैरकानूनी खनन की समस्या उठाई थी. याचिका में आरोप लगाया गया कि नियमों के उल्लंघन कर खनन किया जा रहा है, जबकि राष्ट्रीय मिशन फॉर क्लीन गंगा ने इस संबंध में कई निर्देश जारी किए थे, जिन्हें नजरअंदाज किया गया और स्टोन क्रशर संचालित होते रहे, जिससे नदी को खतरा पैदा हो रहा है. कोर्ट ने कहा कि उसके निर्देशों का पालन न करना अवमानना के बराबर है.
हाईकोर्ट का यह आदेश 2017 में भी इसी तरह के पुराने आदेशों के संदर्भ में आया है, जब 48 स्टोन क्रशरों को पहले बंद किया गया था, लेकिन वे बाद में बिना हाईकोर्ट के नए आदेश के पुनः चालू हो गए थे. कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण, गंगा नदी की सुरक्षा और अवैध खनन के कारण हो रहे नुकसान को ध्यान में रखते हुए, सख्त कदम उठाए हैं.
अबकी बार 'बहुत ही ज़्यादा' टैरिफ़ की मार!
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को कहा कि भारत एक अच्छा व्यापारिक भागीदार नहीं रहा है और घोषणा की कि वह अगले 24 घंटों में नई दिल्ली पर टैरिफ़ "बहुत ही ज़्यादा" बढ़ाएंगे क्योंकि वह रूसी तेल ख़रीद रहा है. ट्रम्प ने सीएनबीसी स्क्वॉक बॉक्स के साथ एक साक्षात्कार में कहा, "भारत के साथ, जो लोग भारत के बारे में कहना पसंद नहीं करते हैं, वे सबसे ज़्यादा टैरिफ़ वाले राष्ट्र हैं. उनके पास किसी से भी ज़्यादा टैरिफ़ है. हम भारत के साथ बहुत, बहुत कम व्यापार करते हैं क्योंकि उनके टैरिफ़ बहुत ज़्यादा हैं." उन्होंने आगे कहा, "भारत एक अच्छा व्यापारिक भागीदार नहीं रहा है, क्योंकि वे हमारे साथ बहुत व्यापार करते हैं, लेकिन हम उनके साथ व्यापार नहीं करते हैं. इसलिए हम 25% (टैरिफ़) पर सहमत हुए, लेकिन मुझे लगता है कि मैं अगले 24 घंटों में इसे बहुत ज़्यादा बढ़ाने जा रहा हूँ, क्योंकि वे रूसी तेल ख़रीद रहे हैं. वे युद्ध मशीन को ईंधन दे रहे हैं. और अगर वे ऐसा करने जा रहे हैं, तो मैं ख़ुश नहीं होऊँगा."
इसके कुछ ही घंटों बाद, भारत ने रूसी कच्चे तेल की अपनी ख़रीद के लिए नई दिल्ली को निशाना बनाने पर अमेरिका और यूरोपीय संघ पर एक असामान्य रूप से तीखा जवाबी हमला किया. आलोचना को दृढ़ता से ख़ारिज करते हुए, भारत ने इस मुद्दे पर उसे निशाना बनाने में दोहरे मानकों की ओर इशारा किया और कहा कि अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंध जारी रखे हुए हैं. विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "हमारे मामले के विपरीत, ऐसा व्यापार एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मजबूरी भी नहीं है." विदेश मंत्रालय ने कहा कि यूरोप-रूस व्यापार में न केवल ऊर्जा, बल्कि उर्वरक, खनन उत्पाद, रसायन, लोहा और इस्पात, और मशीनरी और परिवहन उपकरण भी शामिल हैं. इसमें कहा गया, "जहां तक अमेरिका का संबंध है, वह अपने परमाणु उद्योग के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, अपने ईवी उद्योग के लिए पैलेडियम, उर्वरकों के साथ-साथ रसायनों का आयात करना जारी रखता है." विदेश मंत्रालय ने कहा, "इस पृष्ठभूमि में, भारत को निशाना बनाना अनुचित और अव्यावहारिक है. किसी भी प्रमुख अर्थव्यवस्था की तरह, भारत अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा."
इस बीच रूस ने मंगलवार को अमेरिका पर भारत पर अवैध व्यापार दबाव डालने का आरोप लगाया. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने संवाददाताओं से कहा, "हम कई बयान सुनते हैं जो वास्तव में धमकियाँ हैं, देशों को रूस के साथ व्यापार संबंध तोड़ने के लिए मजबूर करने का प्रयास है. हम ऐसे बयानों को क़ानूनी नहीं मानते हैं." ट्रम्प ने कहा है कि शुक्रवार से वह रूस के साथ-साथ उसके ऊर्जा निर्यात ख़रीदने वाले देशों पर भी नए प्रतिबंध लगाएंगे, जब तक कि मॉस्को यूक्रेन के साथ अपने साढ़े तीन साल के संघर्ष को समाप्त करने के लिए क़दम नहीं उठाता. दो भारतीय सरकारी सूत्रों ने सप्ताहांत में रॉयटर्स को बताया कि ट्रम्प की धमकियों के बावजूद भारत रूस से तेल ख़रीदना जारी रखेगा.
जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाली के लिए सड़कों पर उतरे राजनीतिक दल, बीजेपी की निंदा
कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के कार्यकर्ताओं ने मंगलवार (5 अगस्त, 2025) को जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन किया. ये विरोध प्रदर्शन पूर्व राज्य के विशेष दर्जे को अनुच्छेद 370 के तहत रद्द करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने की छठी वर्षगांठ पर हुए. इन तीन दलों ने, जम्मू स्थित ऑल पार्टीज़ यूनाइटेड मोर्चा (एपीयूएम) के साथ मिलकर, जो विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक दलों का एक समूह है, 2019 में राज्य का दर्जा घटाए जाने की निंदा करते हुए 5 अगस्त को "काला दिवस" के रूप में मनाया. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष रमन भल्ला ने पूर्व मंत्री लाल सिंह और तरनजीत सिंह टोनी के साथ शहर के मध्य में स्थित तवी पुल पर अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह की प्रतिमा पर माला पहनाने के लिए एक क्रेन का इस्तेमाल किया.
विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए भल्ला ने संवाददाताओं से कहा, "आज का काला दिवस विरोध 'हमारी रियासत हमारा हक़' के तहत हमारे गहन अभियान का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य इस ऐतिहासिक डोगरा राज्य के गौरव और महिमा को बहाल करना है, जिसे 5 अगस्त, 2019 को बीजेपी ने नष्ट कर दिया था." पार्टी के जम्मू-कश्मीर के मुख्य प्रवक्ता, रविंदर शर्मा ने कहा कि बीजेपी ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को कमज़ोर किया है और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के कार्यालय से "रिमोट कंट्रोल" के माध्यम से मामलों का संचालन कर रही है. उन्होंने कहा, "विधानसभा चुनाव पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुए थे, लेकिन लोकप्रिय सरकार को काम करने की अनुमति नहीं है. वे चुनाव हार गए हैं लेकिन फिर भी एलजी कार्यालय के माध्यम से सरकार चला रहे हैं, और दोहरे शासन के परिणामस्वरूप, लोग पीड़ित हैं."
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर को "जितनी जल्दी हो सके" राज्य का दर्जा बहाल करने का निर्देश दिया है, लेकिन आदेश के 10 महीने बाद भी केंद्र राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए अनिच्छुक है. शर्मा ने कहा, "'हमारी रियासत हमारा हक़' के तहत पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली की हमारी मांग समर्थन जुटाना और बीजेपी को बेनकाब करना जारी रखेगी. हम अब 9 से 21 अगस्त तक एक श्रृंखलाबद्ध भूख हड़ताल करने जा रहे हैं, उम्मीद है कि बीजेपी कारण देखेगी और संसद के चल रहे मानसून सत्र के दौरान जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करेगी." कांग्रेस ने सभी जिला मुख्यालयों पर इसी तरह के प्रदर्शन किए. राजौरी में पुलिस ने इसके कार्यकर्ताओं द्वारा रैली निकालने के एक प्रयास को विफल कर दिया, जिसने विधायक इफ्तिखार अहमद और कई अन्य लोगों को कुछ समय के लिए हिरासत में भी लिया.
सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकर्ताओं ने प्रांतीय अध्यक्ष रतन लाल गुप्ता के नेतृत्व में जम्मू में रेजीडेंसी रोड पर पार्टी मुख्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों को अपना मार्च तब रोकना पड़ा जब पुलिस ने उन्हें रोक दिया, और वे पार्टी कार्यालय लौटने के लिए मजबूर हो गए. पीडीपी कार्यकर्ताओं ने शहर के गांधी नगर इलाके में पार्टी मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन किया.
आयुष मंत्रालय ने 'आयुर्वेद आहार' की सूची जारी की: आयुर्वेद आहार उत्पादों के निर्माण के लिए एक विश्वसनीय संदर्भ प्रदान करने के उद्देश्य से, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने आयुष मंत्रालय के परामर्श से 'आयुर्वेद आहार' श्रेणी के तहत आयुर्वेदिक खाद्य तैयारियों की एक सूची जारी की है. आयुर्वेद आहार उन खाद्य उत्पादों को संदर्भित करता है जो आयुर्वेद के समग्र आहार सिद्धांतों के अनुरूप विकसित किए गए हैं.
बलात्कारी. हत्यारा. बाबा. 5 सालों में 366 दिन की पैरोल. दिलदार सरकार. मेहरबान अदालतें
बलात्कार और हत्या के दोषी गुरमीत राम रहीम सिंह को एक बार फिर 40 दिन की पैरोल मिल गई है. इससे पहले अप्रैल में उसे 21 दिन की फरलो दी गई थी. लोग सवाल कर रहे हैं कि ये किस तरह का कानून है कि डबल मर्डर और डबल रेप केस का दोषी हर दूसरे महीने ‘छुट्टी’ मनाने के लिए बाहर आ जाता है. जेल है या सराय खाना? कानून है या तमाशा? सजा है या किस्तों की दिहाड़ी? इस अकेले शख्स ने उस सिद्धांत को गलत साबित कर दिया जिसमें कहा गया कि “कानून के सामने सब बराबर हैं.”
2025 में 91 दिन बाहर : 2025 में इस 14वीं परोल के बाद राम रहीम 91 दिन जेल से बाहर रह चुका होगा. पैरोल मिलती भी है तो कोई एक-दो दिन या एक-दो हफ्ते के लिए नहीं. कभी-कभी सीधे एक महीने के लिए. साल की शुरुआत में ही पूरे एक महीने के लिए राम रहीम पैरोल पर बाहर आया था. 28 जनवरी से 28 फरवरी तक. वापस जेल लौटा तो 40 दिन के अंदर ही फिर दूसरी बार फरलो मिल गई. साल के सात महीने गुजर चुके हैं, राम रहीम 91 दिन जेल से बाहर रह चुका है. यानी पूरे तीन महीने.
दोषी पाए जाने के बाद से राम रहीम कुल 326 दिन जेल से बाहर रह चुका है. अगस्त में मिली इस पैरोल के बाद ये दिन बढ़कर 366 हो जाएंगे. एक बार लिस्ट पर नजर डालने से पहले एक बात याद रखिए कि राम रहीम को 2017 में दो अनुयायियों के साथ रेप मामले में 20 साल की सजा सुनाई गई थी. इसके बाद 2019 में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में उसे दोषी ठहराया गया. इसके अलावा 2002 में उसे अपने ही मैनेजर की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया और उम्रकैद की सजा सुनाई गई. राम रहीम को कब-कब पैरोल मिली, अर्पित कटियार ने पूरी सूची दी है.
"यह सदन कौन चला रहा है, आप या अमित शाह?"
उच्च सदन में सीआईएसएफ कर्मियों को मार्शल के रूप में तैनात किए जाने को लेकर नाराज, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने मंगलवार को उपसभापति हरिवंश से पूछा, "यह सदन कौन चला रहा है? आप, या अमित शाह?" दरअसल, सीआईएसएफ गृह मंत्रालय के अधीन आता है, जिसका नेतृत्व अमित शाह करते हैं.
विपक्ष ने कहा कि संसद के सुरक्षा कर्मियों के अलावा किसी को भी सदन के अंदर सांसदों को नियंत्रित करने की अनुमति देना संसद की स्वतंत्रता का उल्लंघन है. खड़गे ने आरोप लगाया कि सीआईएसएफ कर्मियों ने विपक्ष के सांसदों को सदन के वेल में प्रवेश करने से रोक दिया जैसे कि वे "आतंकवादी" हों.उन्होंने कहा, "आप सीआईएसएफ को अंदर लाते हो (सदन में)? क्या हम आतंकवादी हैं? हमारे संसद के कर्मचारी हमें सुरक्षित रखने के लिए सक्षम हैं, लेकिन आप पुलिस लाना चाहते हो? सेना को सदन की कार्यवाही करवानी है?"
खड़गे के इस बयान पर राज्यसभा में सत्तापक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी और संसदीय मामलों के मंत्री किरेन रिजीजू ने कहा कि विपक्ष के नेता सदन को "गलत तथ्यों" के साथ "गुमराह" कर रहे हैं.सीआईएसएफ कर्मी मार्शल के रूप में तैनात किए गए थे ताकि सदन के अंदर प्रदर्शन और उपद्रव के दौरान व्यवस्था बनायी़ रखी जा सके.
सच्चा भारतीय कौन है, यह तय करना जजों का काम नहीं : प्रियंका
चीनी घुसपैठ के संबंध में राहुल गांधी के बयान के बारे में सुप्रीम कोर्ट के जज दीपांकर दत्ता की टिप्पणी को लेकर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने भाई का समर्थन किया है. प्रियंका ने कहा कि यह न्यायाधीशों का काम नहीं है कि वे यह तय करें कि "सच्चा भारतीय" कौन है? उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के विचारों पर टिप्पणी करते हुए कहा, "सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों का सम्मान है, लेकिन वे यह तय नहीं करते कि सच्चा भारतीय कौन है. यह विपक्ष के नेता का कर्तव्य है कि वह सरकार से प्रश्न पूछे." प्रियंका ने यह भी कहा कि राहुल गांधी कभी सेना के खिलाफ नहीं बोलेंगे और वह सेना का बहुत सम्मान करते हैं. उन्होंने कहा, "यह एक गलत व्याख्या है," जो उनके भाई के खिलाफ मानहानि मामले के संदर्भ में थी.
इसी संदर्भ में, तृणमूल कांग्रेस सांसद साकेत गोखले ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए यह बहुत खतरनाक है कि वे किसी के "सच्चा भारतीय" होने पर सवाल उठाएं. उन्होंने कहा कि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो सुप्रीम कोर्ट को "सच्चा भारतीय" होने का प्रमाणपत्र देने का अधिकार देता है और हम सभी कानून के समक्ष समान हैं.
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को बढ़ाने की संसद की मंजूरी
संसद ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को 13 अगस्त के बाद अगले छह महीने के लिए बढ़ाने के लिए एक वैधानिक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. यह प्रस्ताव, जिसे पिछले सप्ताह लोकसभा ने पारित किया था, राज्यसभा ने भी मंगलवार को मंजूर कर दिया. हालांकि विपक्षी सदस्य बिहार में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण के मुद्दे पर हंगामा कर रहे थे. जब विपक्षी सांसद शांत नहीं हुए तो राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने कहा कि यह प्रस्ताव पारित करना "संवैधानिक कर्तव्य" है.
तेज प्रताप ने 5 दलों के गठबंधन की घोषणा की
बिहार के पूर्व मंत्री तेज प्रताप यादव ने मंगलवार को पूर्वी राज्य में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पांच छोटे दलों के गठबंधन की घोषणा की. यादव, जिन्हें हाल ही में उनके पिता और पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद ने राजद से निष्कासित कर दिया था, ने एक संवाददाता सम्मेलन में यह घोषणा की. पांच दल विकास वंचित इंसान पार्टी (VVIP), भोजपुरिया जन मोर्चा (BJM), प्रगतिशील जनता पार्टी (PJP), वाजिब अधिकार पार्टी (WAP) और संयुक्त किसान विकास पार्टी (SKVP) हैं. यादव ने कहा कि वह इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव महुआ सीट से लड़ेंगे.
केंद्र ने सहमति की उम्र घटाने का विरोध किया
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बाल संरक्षण क़ानूनों के तहत सहमति की उम्र को 18 से घटाकर 16 साल करने के किसी भी क़दम पर आपत्ति जताई है, और चेतावनी दी है कि इस तरह के बदलाव से सहमति की आड़ में तस्करी और बाल शोषण के अन्य रूपों के लिए बाढ़ के दरवाज़े खुल जाएंगे. केंद्र ने, जिसका प्रतिनिधित्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने किया, लिखित प्रस्तुतियों में स्पष्ट किया, "एक विधायी क़रीबी-आयु अपवाद पेश करना या सहमति की उम्र कम करना भेद्यता की वैधानिक धारणा को अपरिवर्तनीय रूप से कमज़ोर कर देगा जो बाल संरक्षण क़ानून के केंद्र में है." अपने तर्क को पुष्ट करने के लिए, केंद्र ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के 2007 के एक अध्ययन का हवाला दिया, जिसमें पाया गया कि 53.22% बच्चों ने एक या एक से अधिक प्रकार के यौन शोषण का सामना करने की सूचना दी थी. इसने उल्लेख किया कि इन मामलों में से 50% में, दुर्व्यवहार करने वाले विश्वास या अधिकार के पदों पर मौजूद व्यक्ति थे, जिनमें माता-पिता, रिश्तेदार, पड़ोसी और स्कूल के कर्मचारी शामिल थे. केंद्र की स्थिति वरिष्ठ अधिवक्ता और न्याय मित्र इंदिरा जयसिंह की स्थिति के विपरीत है, जिन्होंने अदालत के समक्ष तर्क दिया है कि 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों के बीच सहमति से यौन गतिविधि को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत "दुर्व्यवहार" या अपराधीकरण के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाना चाहिए. हालांकि, केंद्र ने कहा कि "बच्चे" को 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के रूप में परिभाषित करना एक "जानबूझकर किया गया चुनाव था, जो इस मान्यता पर आधारित था कि नाबालिगों में यौन गतिविधि से जुड़े मामलों में सार्थक और सूचित सहमति देने की क़ानूनी और विकासात्मक क्षमता की कमी होती है."
कुबेरेश्वर धाम में फिर भगदड़, दो मरे, 15 घायल
मध्यप्रदेश के सीहोर में कथावाचक प्रदीप मिश्रा के कुबेरेश्वर धाम में मंगलवार को भारी भीड़ के चलते भगदड़ में दो लोगों की मौत हो गई. करीब 15 श्रद्धालु घायल हो गए. वे चक्कर और घबराहट की शिकायत के बाद अस्पताल पहुंचे, जिनमें से दो की हालत गंभीर बताई जा रही है.
“फ्री प्रेस जर्नल” के अनुसार, प्रदीप मिश्रा बुधवार को कुबेरेश्वर धाम से चितावलिया हेमा गांव तक कांवड़ यात्रा निकालने वाले हैं और रुद्राक्ष वितरण का कार्यक्रम भी है. जिससे भोपाल-इंदौर हाईवे पर भारी जाम है. श्रावण माह के दौरान कई राज्यों से लाखों लोग यहां पहुँच चुके हैं. कांवड़ यात्रा में शामिल होने के लिए एक दिन पहले ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. भंडारे, ठहराव और दर्शन के लिए जगह कम पड़ने लगी, जिससे भीड़ बेकाबू हो गई. अफरातफरी का माहौल बन गया. बता दें, कुबेरेश्वर धाम में करीब दो साल पहले भी रुद्राक्ष महोत्सव में भारी भीड़ के चलते हालात बेकाबू हो गए थे. भगदड़ की स्थिति बन गई थी. तीन साल के बच्चे की मौत हो गई थी. एक अन्य महिला की मौत भी जिला अस्पताल में हो गई थी. दो दिन के दौरान कुल दो महिलाओं समेत तीन मौतें हुई थीं, जबकि 73 लोग बीमार हुए थे.
बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन संभालने के लिए यूपी सरकार की 'ज़बरदस्त जल्दबाज़ी' !
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (4 अगस्त) को उत्तर प्रदेश सरकार की उस "ज़बरदस्त जल्दबाज़ी" के लिए आलोचना की, जिसमें उसने वृंदावन, मथुरा में बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन संभालने के लिए श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश, 2025 प्रख्यापित किया. शीर्ष अदालत ने उस "गुप्त तरीक़े" पर भी असंतोष व्यक्त किया, जिससे योगी आदित्यनाथ सरकार ने 15 मई को एक दीवानी विवाद में आवेदन दायर करके मथुरा में कॉरिडोर विकास परियोजना के लिए मंदिर के धन का उपयोग करने की अनुमति अदालत से हासिल कर ली थी. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाल्य बागची की पीठ अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
यह विवाद बांके बिहारी मंदिर के सेवायतों के दो संप्रदायों के बीच लंबे समय से चले आ रहे आंतरिक मतभेदों से जुड़ा है. नवंबर 2023 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी सरकार को कॉरिडोर विकास परियोजना के लिए मंज़ूरी दे दी थी, लेकिन देवता के बैंक खाते से धन का उपयोग करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. मार्च 2025 में, उच्च न्यायालय ने प्रबंधन से संबंधित जटिलताओं को हल करने में सहायता के लिए अधिवक्ता संजय गोस्वामी को न्याय मित्र नियुक्त किया. इस बीच, राज्य ने एक अध्यादेश प्रख्यापित किया, जिसमें एक वैधानिक ट्रस्ट बनाने का प्रस्ताव था. 15 मई को, सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2023 के आदेश को संशोधित किया गया, जिसने यूपी सरकार को कॉरिडोर विकास के लिए मंदिर के आसपास पांच एकड़ भूमि के अधिग्रहण के लिए धन का उपयोग करने की अनुमति दी, इस शर्त पर कि अधिग्रहित भूमि देवता के नाम पर पंजीकृत की जाएगी.
बांके बिहारी मंदिर के पूर्व प्रबंधन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी कि अध्यादेश ने उन गोस्वामियों को हटा दिया, जो मंदिर का प्रबंधन करते थे, और इसके बजाय प्रबंधन को सरकारी नियंत्रण में दे दिया. उन्होंने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा (15 मई को) निर्देश "प्रबंधन की पीठ पीछे" पारित किए गए थे. जस्टिस कांत ने कहा, "क्या कोई अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर था. यह लावारिस ज़मीन का मामला नहीं था. मंदिर की ओर से किसी को सुना जाना था... अगर सिविल जज निगरानी कर रहे थे, तो सिविल जज को नोटिस जारी किया जा सकता था... इस अदालत द्वारा कुछ सार्वजनिक नोटिस जारी किया जाना चाहिए था."
पीठ ने पिछले फ़ैसले में उन निर्देशों को वापस लेने का प्रस्ताव रखा, जिन्होंने राज्य सरकार को मंदिर के धन का उपयोग करने की अनुमति दी थी और अध्यादेश की वैधता तय होने तक मंदिर के प्रबंधन की देखरेख के लिए एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करने का भी प्रस्ताव रखा. यूपी सरकार के "गुप्त" दृष्टिकोण का उपयोग करने की आलोचना करते हुए, जस्टिस कांत ने कहा, "अगर राज्य कोई विकास करना चाहता था, तो उसे क़ानून के अनुसार ऐसा करने से किसने रोका. ज़मीन निजी है या नहीं, यह मुद्दा अदालत द्वारा तय किया जा सकता है... राज्य गुप्त तरीक़े से आ रहा है, उन्हें सुने जाने की अनुमति नहीं दे रहा है... हम इसकी उम्मीद नहीं करते हैं... राज्य को उन्हें पूरी ईमानदारी से सूचित करना चाहिए था."
अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज को आदित्यनाथ सरकार से प्रस्तावों पर जवाब सुनने में सक्षम बनाने के लिए याचिकाओं की सुनवाई कल तक के लिए स्थगित कर दी और मौखिक रूप से व्यक्त किया कि वह अध्यादेश को चुनौती देने के लिए पार्टियों को उच्च न्यायालय में भेजेगी और इस बीच, मंदिर का प्रबंधन एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली समिति के अधीन होगा. अदालत ने यह भी कहा कि वह क्षेत्र के विकास की योजना के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को भी शामिल कर सकती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस बीच, मंदिर के अनुष्ठान परिवार द्वारा पहले की तरह जारी रहेंगे.
सत्य पाल मलिक (1946-2025)
सवाल करने वाला आदमी
जम्मू और कश्मीर के अंतिम राज्यपाल, सत्य पाल मलिक, जो 2021 के किसान आंदोलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक प्रखर आलोचक बन गए थे, का लंबी बीमारी के बाद मंगलवार (5 अगस्त, 2025) को दिल्ली में निधन हो गया. यह अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की छठी वर्षगांठ का दिन था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अनुभवी ज़मीनी राजनेता, जिन्होंने पांच दशकों से अधिक के राजनीतिक जीवन में कई राजनीतिक तूफ़ानों का सामना किया, लंबे समय से किडनी की समस्याओं से जूझ रहे थे और उन्हें इस साल मई में राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यह घटना सीबीआई द्वारा उन पर और पांच अन्य लोगों पर 2,200 करोड़ रुपये की किरू हाइड्रोपावर परियोजना मामले में कथित भ्रष्टाचार के आरोप में आरोप पत्र दायर करने के कुछ ही घंटों बाद हुई.
79 वर्षीय मलिक ने इन आरोपों का पुरज़ोर खंडन किया था और उन्हें राजनीति से प्रेरित बताया था. 7 जून को एक सोशल मीडिया पोस्ट में, उन्होंने दोहराया कि उन्हें इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि उन्होंने किसानों के आंदोलन और महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आंदोलन का समर्थन किया था. इससे पहले, मीडिया साक्षात्कारों में, उन्होंने सरकार पर बदले की भावना से कार्रवाई करने का आरोप लगाते हुए दावा किया था कि उन्होंने जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान दो बार रिश्वत की पेशकश के बारे में शीर्ष नेतृत्व को सूचित किया था और उनकी ईमानदारी के लिए उनकी प्रशंसा की गई थी. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, जिससे जम्मू और कश्मीर का दर्जा एक केंद्र शासित प्रदेश तक कम हो गया, श्री मलिक को गोवा और बाद में मेघालय स्थानांतरित कर दिया गया.
मलिक अपनी बात रखने से पीछे नहीं हटने वाले नेता थे और वे एकमात्र ऐसे राजनेता थे जिन्होंने संवैधानिक पद पर रहते हुए मोदी सरकार के ख़िलाफ़ खुलकर बात की. पद छोड़ने के बाद, मलिक ने यह आरोप लगाकर हलचल मचा दी कि 2019 में पुलवामा हमले में हुई मौतों के लिए जब उन्होंने केंद्र की चूकों को ज़िम्मेदार ठहराया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें चुप करा दिया था, और उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा एक विमान देने से इनकार करने के कारण क़ाफ़िले को सड़क मार्ग से यात्रा करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. हाल ही में, उन्होंने पहलगाम हमले से निपटने के पीएम मोदी के तरीक़े पर सवाल उठाए थे. हालांकि, वह अनुच्छेद 370 पर पूरी तरह से तटस्थ रहे और कहा कि उन्होंने केंद्र द्वारा निर्धारित बिंदीदार रेखा पर हस्ताक्षर किए.
1946 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत में एक किसान परिवार में जन्मे, मलिक ने अपने पिता को जल्दी खो दिया था. कविता और इतिहास में गहरी रुचि रखने वाले एक क़ानून स्नातक, उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय में कृषि राजनीति में अपना करियर शुरू किया. किसान के मुद्दों पर एक स्वतंत्र विचार रखने के लिए जाने जाने वाले, भले ही इसका मतलब पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जाना हो, उन्हें चौधरी चरण सिंह ने खोजा और उन्होंने 1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर बागपत सीट से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता. 1980 में, उन्होंने कांग्रेस का रुख किया और उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में प्रवेश किया. जब बोफोर्स आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा, तो वे जनता दल में शामिल हो गए, 1989 में अलीगढ़ लोकसभा सीट जीती और वी.पी. सिंह सरकार में मंत्री बने.
अलीगढ़ मलिक की चुनावी राजनीति में आख़िरी जीत थी और इसके बाद उन्हें लंबे समय तक चुनावी सूखे का सामना करना पड़ा. समाजवादी पार्टी में कुछ समय बिताने के बाद, राजनीतिक एकांत का सामना करते हुए, उन्होंने 2004 में एक वैचारिक बदलाव किया. वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो गए और अपने गुरु चौधरी चरण सिंह के बेटे, अजीत सिंह के ख़िलाफ़ बागपत से लोकसभा चुनाव लड़ा. चुनावी असफलताओं के बावजूद, वह भाजपा के प्रति वफ़ादार रहे, और पार्टी ने 2012 में उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त करके उनके धैर्य का प्रतिफल दिया. वह मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के बाद पार्टी के प्रमुख जाट चेहरा थे, जिन्होंने तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के साथ गन्ना बेल्ट में पार्टी की क़िस्मत को पुनर्जीवित करने के लिए काम किया. 2017 में, उन्हें बिहार का राज्यपाल नामित किया गया. एक साल बाद, उन्हें जम्मू और कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया गया, जिसके बाद गोवा और मेघालय में उनका कार्यकाल रहा. 2021 तक, मलिक, जो कभी गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान श्री मोदी के नेतृत्व के प्रबल समर्थक थे, ने फिर से प्रदर्शित किया कि वह एक जन्मजात विद्रोही हैं. दिलचस्प बात यह है कि जब उन्होंने मोदी पर हमला किया, तब भी मलिक ने कभी भी शाह के साथ अपने संबंध नहीं तोड़े.
उनके आलोचक उन्हें एक अवसरवादी के रूप में देखते थे, जिसने उपराष्ट्रपति पद की दौड़ में एक अन्य जाट/किसान राज्यपाल, जगदीप धनखड़ द्वारा पीछे छोड़ दिए जाने पर पार्टी छोड़ दी. हालांकि, मलिक ने अंत तक यही कहा कि यह उनके सिद्धांतों और किसानों के हितों की लड़ाई थी. प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि की धारा का नेतृत्व किया. उनके परिवार में उनकी प्रसिद्ध शिक्षिका-पर्यावरणविद् पत्नी इक़बाल मलिक और जाने-माने ग्राफिक डिजाइनर बेटे देव कबीर हैं.
कुछ दिन पहले हरकारा ने उनकी अहमियत पर एक रिपोर्ट बनाई थी. उन सवालों के बारे में जो आज भी ज़िंदा हैं, जिनके जवाब देश को नहीं मिले.
पुतिन और ट्रम्प के रिश्ते बिगड़े - लेकिन दिखावे के पीछे, यूक्रेन पर समझौता अभी भी संभव है
बीबीसी के रूस संपादक स्टीव रोजनबर्ग ने एक लंबा विश्लेषण बीबीसी में किया है. उसकी प्रमुख बातें.
क्या डोनाल्ड ट्रम्प और व्लादिमीर पुतिन के बीच संबंध पटरी से उतर गए हैं. एक लोकप्रिय रूसी अख़बार तो ऐसा ही मानता है. उसने अमेरिका-रूस संबंधों की वर्तमान स्थिति को दर्शाने के लिए ट्रेनों का उदाहरण दिया है. टैब्लॉयड 'मोस्कोव्स्की कोम्सोमोलेट्स' ने हाल ही में घोषणा की, "एक आमने-सामने की टक्कर अपरिहार्य लगती है." "ट्रम्प लोकोमोटिव और पुतिन लोकोमोटिव एक-दूसरे की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं. और कोई भी मुड़ने या रुकने और पीछे हटने वाला नहीं है." 'पुतिन लोकोमोटिव' के लिए, तथाकथित 'विशेष सैन्य अभियान': यूक्रेन में रूस का युद्ध, पूरी गति से आगे बढ़ रहा है. क्रेमलिन के नेता ने शत्रुता समाप्त करने और दीर्घकालिक युद्धविराम की घोषणा करने की कोई इच्छा नहीं दिखाई है. इस बीच, 'ट्रम्प लोकोमोटिव' ने मॉस्को पर लड़ाई समाप्त करने के लिए दबाव डालने के प्रयासों को तेज़ कर दिया है: समय सीमा, अल्टीमेटम, रूस के ख़िलाफ़ अतिरिक्त प्रतिबंधों के ख़तरे और भारत और चीन जैसे रूस के व्यापारिक भागीदारों पर भारी टैरिफ़ की घोषणा की है. इन सबके साथ, दो अमेरिकी परमाणु पनडुब्बियां भी हैं, जिनके बारे में राष्ट्रपति ट्रम्प का दावा है कि उन्होंने उन्हें रूस के क़रीब तैनात किया है. लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि व्हाइट हाउस वास्तव में यूक्रेन को लेकर क्रेमलिन के साथ "टकराव के रास्ते" पर है. या फिर डोनाल्ड ट्रम्प के विशेष दूत, स्टीव विटकॉफ़ की इस हफ़्ते मॉस्को की यात्रा इस बात का संकेत है कि तमाम दिखावे के बावजूद, लड़ाई को समाप्त करने के लिए रूस और अमेरिका के बीच एक समझौता अभी भी संभव है.
दूसरे ट्रम्प राष्ट्रपति पद के शुरुआती हफ़्तों में, मॉस्को और वाशिंगटन अपने द्विपक्षीय संबंधों को फिर से शुरू करने के लिए सही रास्ते पर दिखाई दे रहे थे. टकराव का कोई संकेत नहीं था. फरवरी में संयुक्त राष्ट्र में संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस का पक्ष लिया था, और यूक्रेन में रूस की "आक्रामकता" की निंदा करने वाले एक यूरोपीय-मसौदा प्रस्ताव का विरोध किया था. उस महीने एक टेलीफोन कॉल में दोनों राष्ट्रपतियों ने एक-दूसरे के देशों का दौरा करने के बारे में बात की. ऐसा लगा कि पुतिन-ट्रम्प शिखर सम्मेलन किसी भी दिन हो सकता है. इस बीच ट्रम्प प्रशासन मॉस्को पर नहीं, बल्कि कीव पर दबाव डाल रहा था, और कनाडा और डेनमार्क जैसे पारंपरिक अमेरिकी सहयोगियों के साथ झगड़े मोल ले रहा था. भाषणों और टीवी साक्षात्कारों में, अमेरिकी अधिकारी नाटो और यूरोपीय नेताओं की तीखी आलोचना कर रहे थे. यह सब क्रेमलिन के कानों के लिए संगीत जैसा था.
इस बीच डोनाल्ड ट्रम्प के दूत, स्टीव विटकॉफ़, रूस के नियमित आगंतुक बन गए थे. उन्होंने केवल दो महीनों में चार बार यहां की यात्रा की, और व्लादिमीर पुतिन के साथ घंटों बातचीत की. एक बैठक के बाद, क्रेमलिन नेता ने उन्हें व्हाइट हाउस वापस ले जाने के लिए डोनाल्ड ट्रम्प का एक चित्र भेंट किया. कहा गया कि राष्ट्रपति ट्रम्प इस भाव से "स्पष्ट रूप से प्रभावित" हुए. लेकिन राष्ट्रपति ट्रम्प मॉस्को से सिर्फ़ एक पेंटिंग से ज़्यादा की उम्मीद कर रहे थे. वह चाहते थे कि राष्ट्रपति पुतिन यूक्रेन में एक बिना शर्त व्यापक युद्धविराम पर हस्ताक्षर करें. इस विश्वास के साथ कि युद्ध के मैदान में अब रूस की पहल है, व्लादिमीर पुतिन लड़ने से रोकने के लिए अनिच्छुक रहे हैं, बावजूद इसके कि उनका दावा है कि मॉस्को एक राजनयिक समाधान के लिए प्रतिबद्ध है. यही कारण है कि डोनाल्ड ट्रम्प क्रेमलिन से लगातार निराश होते गए हैं. हाल के हफ़्तों में उन्होंने यूक्रेनी शहरों पर रूस के लगातार हमलों की "घृणित", "अपमानजनक" के रूप में निंदा की है और राष्ट्रपति पुतिन पर यूक्रेन पर "बहुत बकवास" करने का आरोप लगाया है. पिछले महीने, डोनाल्ड ट्रम्प ने युद्ध समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति पुतिन को 50-दिवसीय अल्टीमेटम की घोषणा की, जिसमें प्रतिबंधों और टैरिफ़ की धमकी दी गई. बाद में उन्होंने इसे घटाकर दस दिन कर दिया. समय सीमा इस सप्ताह के अंत में समाप्त होने वाली है. अब तक, कोई संकेत नहीं है कि व्लादिमीर पुतिन वाशिंगटन के दबाव के आगे झुकेंगे.
न्यूयॉर्क शहर के एक विश्वविद्यालय, द न्यू स्कूल में अंतरराष्ट्रीय मामलों की प्रोफेसर नीना ख्रुश्चेवा का मानना है, "क्योंकि डोनाल्ड ट्रम्प ने बहुत सारी समय-सीमाएं बदल दी हैं और वह किसी न किसी तरह से मुड़ गए हैं, मुझे नहीं लगता कि पुतिन उन्हें गंभीरता से लेते हैं." "पुतिन तब तक लड़ने जा रहे हैं जब तक वह लड़ सकते हैं, या, जब तक यूक्रेन यह नहीं कहता, 'हम थक गए हैं, हम आपकी शर्तों को स्वीकार करने को तैयार हैं'." "मुझे लगता है कि पुतिन क्रेमलिन में बैठे हैं और सोचते हैं कि वह रूसी ज़ारों के सपनों को पूरा कर रहे हैं, और फिर जोसेफ स्टालिन जैसे महासचिवों के, पश्चिम को यह दिखाकर कि रूस के साथ अनादर का व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए."
अब तक मैंने जो तस्वीर पेश की है, उससे ऐसा लग सकता है कि पुतिन और ट्रम्प लोकोमोटिव के बीच आमने-सामने की टक्कर अनिवार्य है. ज़रूरी नहीं. डोनाल्ड ट्रम्प ख़ुद को एक महान सौदागर के रूप में देखते हैं और, चीज़ों को देखते हुए, उन्होंने व्लादिमीर पुतिन के साथ एक को सुरक्षित करने की कोशिश करना नहीं छोड़ा है. स्टीव विटकॉफ़ इस सप्ताह क्रेमलिन नेता के साथ बातचीत के लिए रूस वापस आने वाले हैं. हम नहीं जानते कि वह अपने साथ किस तरह का प्रस्ताव ला सकते हैं. लेकिन मॉस्को में कुछ टिप्पणीकारों का अनुमान है कि छड़ी से ज़्यादा गाजर होगी. सोमवार को, मॉस्को के एमजीआईएमओ विश्वविद्यालय में राजनीतिक सिद्धांत के एसोसिएट प्रोफेसर इवान लोशकरेव ने इज़वेस्तिया को बताया कि बातचीत को सुविधाजनक बनाने के लिए, श्री विटकॉफ़ "रूस को सहयोग के लाभप्रद प्रस्ताव" प्रस्तुत कर सकते हैं जो यूक्रेन पर एक सौदे के बाद खुलेंगे. साढ़े तीन साल के युद्ध के बाद क्रेमलिन को शांति स्थापित करने के लिए मनाने के लिए क्या यह पर्याप्त हो सकता है. इसकी कोई गारंटी नहीं है. आख़िरकार, अब तक यूक्रेन में व्लादिमीर पुतिन क्षेत्र, यूक्रेन की तटस्थता और यूक्रेनी सेना के भविष्य के आकार पर अपनी अधिकतम मांगों से नहीं हटे हैं. डोनाल्ड ट्रम्प एक समझौता चाहते हैं. व्लादिमीर पुतिन जीत चाहते हैं.
क्या एनिमेटेड शो 'ब्लूई' बच्चों को जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार करता है?
द कन्वर्सेशन में दो बच्चों के व्यवहार को समझने वाली केली बोहल और मेरी बोलिंग ने एक ऑस्ट्रेलियाई एनीमेशन सीरियल ब्लूई से यह समझने की कोशिश की है कि क्या बच्चों के मनोरंजन कार्यक्रम एक शक्तिशाली शिक्षण माध्यम में बदल सकते हैं. इस लेख के कुछ अंश.
वह छह साल की है, ब्रिस्बेन में रहती है और टेलीविज़न पर सबसे अच्छी लचीलापन सिखाने वाली प्रशिक्षकों में से एक हो सकती है. हम बात कर रहे हैं ब्लूई की, जो एक एनिमेटेड ऑस्ट्रेलियाई पिल्ला है, जिसके कारनामों ने दुनिया भर के परिवारों का दिल जीत लिया है. लेकिन जैसा कि हमारे नए अध्ययन से पता चलता है, ब्लूई सिर्फ़ बच्चों का मनोरंजन नहीं कर रही है, वह जीवन के उतार-चढ़ाव से निपटने का तरीक़ा भी सिखा रही है. लचीलापन केवल "डटे रहने" के बारे में नहीं है. यह चुनौतियों का सामना करने, असफलताओं के अनुकूल होने और कठिनाइयों से उबरने की क्षमता है. यह स्वस्थ बाल विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. शोध से पता चलता है कि लचीलापन बच्चों को तनाव का प्रबंधन करने, अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने, बेहतर संबंध बनाने और यहां तक कि स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करने में भी मदद करता है. इसके बिना, बच्चे बाद के जीवन में चिंता, अवसाद और ख़राब मुकाबला करने के कौशल के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं.
फ़िल्मों, किताबों और टीवी में कहानी सुनाना बच्चों को यह दिखा सकता है कि चुनौतियों का सामना कैसे किया जाए - व्याख्यान के माध्यम से नहीं, बल्कि भावनात्मक विनियमन, समस्या-समाधान और सहानुभूति जैसे व्यवहारों को मॉडलिंग करके. ब्लूई पहली बार 2018 में प्रसारित हुआ था. तब से यह ऑस्ट्रेलिया का सबसे सफल बच्चों का कार्यक्रम बन गया है, जिसे दुनिया भर में अरबों बार देखा गया है. यह युवा पारिवारिक जीवन के यथार्थवादी चित्रण के लिए जाना जाता है. फिर भी अब तक, किसी ने भी व्यवस्थित रूप से यह जांच नहीं की थी कि यह - या किसी भी बच्चे का टीवी शो - स्क्रीन पर लचीलेपन को कैसे प्रस्तुत करता है.
अपने अध्ययन में, हमने सीज़न एक से तीन तक ब्लूई के हर एपिसोड का विश्लेषण किया. 150 एपिसोड का मतलब ब्लूई, बिंगो, चिली, बैंडिट और उनके दोस्तों के साथ 18 घंटे बिताना था. प्रत्येक एपिसोड के लिए, हमने कहानी, पात्रों और विषयों को बारीकी से देखा, उन क्षणों की पहचान की जहां एक पात्र ने चुनौती का सामना किया और एक लचीली प्रतिक्रिया दिखाई. अपने विश्लेषण का मार्गदर्शन करने के लिए, हमने ग्रोटबर्ग रेजिलिएंस फ्रेमवर्क का उपयोग किया. यह मनोविज्ञान में एक व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त मॉडल है जो लचीलेपन को तीन प्रमुख तत्वों में तोड़ता है: मेरे पास है: इसमें बच्चे के आस-पास के समर्थन प्रणालियाँ शामिल हैं, जैसे कि परिवार, दोस्त और सामुदायिक रोल मॉडल जिन पर वे भरोसा कर सकते हैं. मैं कर सकता/सकती हूँ: इसमें व्यावहारिक मुकाबला कौशल शामिल है, जैसे समस्याओं को हल करना, भावनाओं का प्रबंधन करना और ज़रूरत पड़ने पर मदद मांगना. मैं हूँ: इसमें बच्चे की आंतरिक शक्तियाँ जैसे आत्मविश्वास, आशावाद, भावनात्मक विनियमन और आत्म-मूल्य की भावना शामिल है.
हमारे शोध में पाया गया कि लगभग आधे एपिसोड (150 में से 73) में प्राथमिक या द्वितीयक विषय के रूप में एक स्पष्ट लचीलेपन का संदेश शामिल था. लचीलेपन के लगभग दो-तिहाई क्षण एक माता-पिता द्वारा सुगम किए गए थे - अक्सर ब्लूई की माँ द्वारा. यह लचीलेपन की "मेरे पास है" श्रेणी में फिट बैठता है. उदाहरण के लिए 'द शो' (सीज़न दो, एपिसोड 19) में, बिंगो ग़लती से नाश्ते की ट्रे गिरा देती है और रोने लगती है. माँ धीरे से भावनात्मक कोचिंग का मॉडल बनाती है और अपनी मुकाबला प्रक्रिया बताती है: "मैं थोड़ा रोती हूँ, मैं ख़ुद को उठाती हूँ, ख़ुद को साफ़ करती हूँ, और आगे बढ़ती रहती हूँ." बाद में एपिसोड में, जब चीजें फिर से ग़लत हो जाती हैं तो बिंगो उन्हीं शब्दों को दोहराती है. ब्लूई और उसकी बहन भी अक्सर अपने दम पर व्यावहारिक मुकाबला कौशल का प्रदर्शन करती हैं. 'कीपी अप्पी' (सीज़न एक, एपिसोड तीन) में, खेल में आख़िरी गुब्बारा फूट जाता है. बच्चे रुकते हैं, इसे समझते हैं, और मुस्कुराते हैं. वे कहते हैं, "ठीक है, यह मज़ेदार था." हम पात्रों को अपनी आंतरिक शक्ति से चुनौतियों पर काबू पाते हुए भी देखते हैं. 'सीसॉ' (सीज़न दो, एपिसोड 26) में, पोम पोम सीसॉ के शीर्ष पर पहुंचने और अपने दोस्तों को बचाने के लिए दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास दिखाती है, जो "मैं हूँ" का एक उदाहरण है.
बेशक, कोई भी स्क्रीन वास्तविक रिश्तों की जगह नहीं ले सकती. लेकिन जब माता-पिता अपने बच्चों के साथ ब्लूई जैसे शो देखते हैं, तो वे शक्तिशाली शिक्षण उपकरण बन जाते हैं. इसलिए अगली बार जब आपका बच्चा दसवीं बार कोई एपिसोड देखना चाहे, तो दोषी महसूस न करें - उनके साथ शामिल हों. जब माता-पिता भी देखते हैं, तो वे क्षण बातचीत की शुरुआत बन जाते हैं. उदाहरण के लिए, "तुम्हें क्या लगता है कि ब्लूई ने तब कैसा महसूस किया होगा?", "क्या तुमने कभी ऐसा महसूस किया है?" या "तुम उस स्थिति में क्या करते?". बच्चे स्क्रीन पर जो देखते हैं, उसके बारे में बात करने से उन्हें उन कौशलों को प्रतिबिंबित करने, संसाधित करने और बनाने में मदद मिल सकती है जिनकी उन्हें मुकाबला करने, अनुकूलन करने और बढ़ने के लिए आवश्यकता होती है. इंस्टा पर यहां इसके बारे में और जान सकते हैं.
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