06/09/2025: सऊदी में मोदी, सवा करोड़ घंटा खर्च | उमर खालिद पर योगेंद्र यादव | अमेरिका पर श्याम सरन | ऑक्सफोर्ड में पेरियार | ट्रम्प फिर बोले | गूगल पर जुर्माना | गाज़ा की बच्ची पर 23 मिनट तालियां
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
मोदी की 12 घंटे की सऊदी यात्रा पर 15.54 करोड़ खर्च, हर घंटे सवा करोड़ जले
हज़रतबल दरगाह में तनाव, भीड़ ने अशोक स्तंभ वाली पट्टिका तोड़ी
उमर खालिद 5 साल से जेल में, योगेन्द्र यादव बोले- मुझे भी बंद होना चाहिए
जमानत फिर खारिज, उमर खालिद के पिता का दर्द- 'प्रक्रिया ही सज़ा बन गई है'
धर्मांतरण का आरोप, हिरासत में टॉर्चर, हाईकोर्ट ने बरेली पुलिस को किया तलब
पीएम-सीएम हटाने वाले विधेयक पर सस्पेंस, दो हफ्ते बाद भी कमेटी नहीं बनी
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अब पेरियार, स्टालिन ने किया चित्र का अनावरण
पिता बनाते हैं नीति, बेटे कमाते हैं पैसा: गडकरी पर कांग्रेस का बड़ा आरोप
शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा की बढ़ी मुश्किलें, लुकआउट सर्कुलर जारी
'तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई', महिला IPS अधिकारी पर भड़के अजित पवार
एस्ट्रोनॉमी ओलंपियाड में इज़राइल पर बैन को लेकर भारतीय वैज्ञानिक बंटे
2024 तक आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को राहत, विपक्ष को दिखी CAA की साज़िश
डोनाल्ड ट्रम्प का दावा: 'भारत और रूस, चीन के हाथों में चले गए हैं'
अमेरिकी मंत्री का बयान, भारत जल्द माफी मांगेगा और समझौता करेगा
भारत-अमेरिका रिश्ते दशकों में सबसे निचले स्तर पर: पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन
यूक्रेन में फौज भेजी तो निशाना बनाएंगे: पुतिन की पश्चिम को सीधी चेतावनी
विज्ञापनों में मनमानी, गूगल पर यूरोप ने ठोका 3.5 अरब डॉलर का जुर्माना
गाज़ा की बच्ची की कहानी पर बनी फिल्म, वेनिस में 23 मिनट तक बजती रहीं तालियां
आरटीआई जवाब
पहलगाम के वक्त मोदी सऊदी में थे, 12 घंटे का सफ़र, 15.54 करोड़ खर्च यानी सवा करोड़ घंटा
शुक्रवार को कांग्रेस की केरल इकाई ने “एक्स” पर पोस्ट किया, “आरटीआई से खुलासा हुआ है कि पीएम मोदी की सऊदी अरब यात्रा में महज़ 12 घंटे में ही 15 करोड़ रुपये खर्च हुए.” इस दावे का स्रोत जेद्दा में भारतीय वाणिज्य दूतावास की ओर से महाराष्ट्र के आरटीआई कार्यकर्ता अजय बसुदेव बोस को दिए गए जवाब में है. एक मीडिया रिपोर्ट में इस आरटीआई का हवाला देते हुए जानकारी सार्वजनिक की गई. कांग्रेस ने अपनी पोस्ट में कैप्शन लिखा, “यानी हर घंटे 1.25 करोड़ रुपये जलाना. सिर्फ 12 घंटे के लिए 10.2 करोड़ में पूरा होटल बुक किया. राष्ट्र का सबसे बड़ा बोझ!”
आरटीआई के जवाब के अनुसार, अप्रैल में मोदी की सऊदी यात्रा—जो पहलगाम आतंकी हमले के बाद घटकर 12 घंटे से भी कम की रह गई थी—से सरकारी खजाने पर 15.54 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा.
“द टेलीग्राफ” में ‘सियासत’ के हवाले से खबर है कि बोस ने पत्रकारों से कहा, “वाणिज्य दूतावास की ओर से जो जानकारी दी गई, वह यह दिखाती है कि सरकार ने जेद्दा में कुछ घंटों के लिए ही असामान्य रूप से भारी राशि खर्च कर दी. यह चौंकाने वाली बात है कि केंद्र सरकार ने सिर्फ़ होटल बुकिंग पर ही 10 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर दिए.” बोस ने 29 अगस्त को एक्स पर लिखा, “क्या कोई मोदी से इस फिज़ूलखर्ची के बारे में सवाल करेगा?”
राजनयिक प्रोटोकॉल के तहत, मेजबान राष्ट्र की यह जिम्मेदारी होती है कि वह राज्याध्यक्ष या सरकार प्रमुखों के लिए ठहरने की व्यवस्था करे. मोदी की यह सऊदी यात्रा अब तक उनकी हाल की यात्राओं में सबसे महंगी है, जिसने फरवरी में फ्रांस की चार दिवसीय यात्रा (25.59 करोड़ रुपये), अमेरिका की एकदिवसीय यात्रा (16.54 करोड़ रुपये) और थाईलैंड की एकदिवसीय यात्रा (4.92 करोड़ रुपये) को पीछे छोड़ दिया. जुलाई में राज्यसभा में पेश आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 से 2025 के बीच मोदी की विदेशी यात्राओं का कुल खर्च लगभग 362 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है.
2025 में जुलाई तक पांच देशों की यात्राओं पर ही 67 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, जिनमें अकेले फ्रांस पर 25 करोड़ रुपये से भी अधिक रहे. मॉरीशस, साइप्रस और कनाडा की यात्राओं के आंकड़े अभी जोड़े जाने बाकी हैं. विवरण के अनुसार, 2024 में 16 देशों की यात्राओं पर 109 करोड़ रुपये खर्च हुए, 2023 में लगभग 93 करोड़ रुपये, 2022 में 55.82 करोड़ रुपये और 2021 में 36 करोड़ रुपये खर्च हुए.
मोदी की विदेशी यात्राएं लगातार विपक्ष के निशाने पर रही हैं. इससे पहले भी कांग्रेस ने इन आंकड़ों को आधार बनाते हुए मोदी को “सुपर प्रीमियम फ़्रीक्वेंट फ़्लायर पीएम” कहा था और उन पर मणिपुर जैसी घरेलू संकट स्थितियों से बचने का आरोप लगाया था. वहीं, बीजेपी ने पलटवार करते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि वह विदेश यात्राओं जैसी गंभीर कूटनीतिक गतिविधियों को “ओछी राजनीतिक छींटाकशी” में बदल रही है.
प्रोसेस इज पनिशमेंट
योगेन्द्र यादव: अगर उमर ख़ालिद और ख़ालिद सैफ़ी जेल में हैं, तो मुझे भी होना चाहिए!
अगर वह सीएए को मुस्लिम विरोधी कहने के लिए जेल में है, तो मुझे भी होना चाहिए. अगर ख़ालिद सैफ़ी सीएए के ख़िलाफ़ स्थानीय प्रदर्शनों को कोऑर्डिनेट करने के लिए जेल में है, तो मुझे भी होना चाहिए.
सब याद रखा जाएगा!
मैं आमिर आज़िज़ की अमर लाइनें बुदबुदाता हूं जब मैं दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश के सदमे को बरदाश्त करने की कोशिश करता हूं जो दिल्ली दंगे षड्यंत्र मामले में नौ आरोपियों को जमानत देने से इनकार करता है. मैं उमर ख़ालिद की पार्टनर बनोज्योत्सना और ख़ालिद सैफ़ी की पत्नी नर्गिस और उनके परिवारों के बारे में सोचता हूं.
और मुझे जनवरी 2020 की भिवंडी की वह तारों भरी शाम याद है. उमर ख़ालिद ने नागरिकता संशोधन अधिनियम के ख़िलाफ़ अपने तर्कपूर्ण और भावुक भाषण से एक लाख से ज़्यादा लोगों से भरे स्टेडियम को मंत्रमुग्ध और प्रेरित किया था. "इंक़िलाबी इस्तक़बाल" से शुरुआत करते हुए, उन्होंने भगत सिंह, बी आर अंबेडकर और महात्मा गांधी का आह्वान करते हुए अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक सीएए के ख़िलाफ़ अहिंसक संघर्ष का आह्वान किया था जो मुसलमानों को दूसरे दर्जे की नागरिकता में धकेलता है. अमरावती के भाषण से अलग कुछ नहीं, जो दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा उन्हें "सांप्रदायिक आधार पर भड़काऊ भाषण" देने के लिए प्राइमा फ़ेसी दोषी ठहराने के आधारों में से एक है.
समापन करते समय, उन्होंने मौजूद सभी लोगों को अपनी मोबाइल फ़ोन की टॉर्च ऑन करने और उनके साथ आज़ादी का नारा लगाने का न्यौता दिया. हम क्या मांगें... आज़ादी... सीएए से आज़ादी... भूख से आज़ादी... अंबेडकर वाली आज़ादी. स्टेडियम उनके साथ इस आज़ादी की पुकार में झूम उठा. किसी से या किसी चीज़ से नहीं, बल्कि बराबर की नागरिकता के एहसास के लिए. अपनत्व की आज़ादी. बराबरी के साथ गले लगाने की आज़ादी. मैं उस पल को कभी नहीं भूल सकता. अंधेरे में तैरते तारे. और बीच में सबसे चमकीला, बिल्कुल वैसा नेता जिसकी भारत को ज़रूरत है, बिल्कुल वैसा हीरो जिसका मुसलमान इंतज़ार करते हैं.
जैसे-जैसे मैं दिल्ली हाई कोर्ट की प्रताड़ित दलील में से गुज़रता हूं, मैं उन तारों को एक-एक करके बुझते देखता हूं. मैं फिर से आमिर आज़िज़ की तरफ़ रुख करता हूं, तसल्ली के लिए: "तुम रात लिखो हम चांद लिखेंगे/ तुम जेल में डालो हम दीवार फांद लिखेंगे". मैं उस चांद को पढ़ने का इंतज़ार करता हूं.
और मैं सोचता हूं कि इतिहास इस 133 पन्ने के फ़ैसले को कैसे याद रखेगा. क़ानूनी स्कॉलर गौतम भाटिया के ब्लॉग पोस्ट्स ("इंडियन कॉन्स्टिट्यूशनल लॉ एंड फ़िलॉसफ़ी") ने इस असाधारण मामले की यात्रा को ट्रैक किया है जहां अदालतों ने जिसे वह "आइज़ वाइड शट" एप्रोच कहते हैं, अपनाया है और "प्रोसिक्यूशन के स्टेनोग्राफ़र" का काम किया है. वह मौजूदा आदेश की विचित्र तर्क प्रणाली पर हमला करते हैं: "अदालत 'षड्यंत्र' के मास्को ट्रायल्स स्टाइल के आह्वान पर वापस लौट जाती है, जो गुमनाम 'संरक्षित' गवाहों के अस्पष्ट और अपुष्ट बयानों पर आधारित है, प्रोसिक्यूशन के मामले में ख़ालीपन को अपनी धारणाओं और अनुमानों से भर देती है..." इस फ़ैसले के बारे में और कुछ कहने की ज़रूरत नहीं जो सुप्रीम कोर्ट के कुख्यात ADM जबलपुर केस के फ़ैसले के बग़ल में बैठने को मजबूर है, न्याय क्या नहीं है इसके टेक्स्टबुक उदाहरण के रूप में.
एक दिन, कोई इतिहासकार दिल्ली दंगे की षड्यंत्र थ्योरी की निरी बेतुकी बात दर्ज करेगा जो पीड़ितों को अपराधी बनाती है और प्रदर्शनकारियों को षड्यंत्रकारी, एक सी-ग्रेड फ़िल्म की स्क्रिप्ट जो विश्वसनीयता से असंभव मांगें करती है. आख़िरकार, यह सुझाना कि उमर ख़ालिद, जो 2018 से 24×7 पुलिस सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी में है, राजधानी में हिंसा इंजीनियर करने का षड्यंत्र डिज़ाइन कर सकता है, कि ऐसा षड्यंत्र 100 से ज़्यादा मेंबर्स वाले व्हाट्सऐप ग्रुप के ज़रिए अंजाम दिया गया था, कि इन मुस्लिम एक्टिविस्ट्स ने ऐसी हिंसा इंजीनियर की जिसके परिणामस्वरूप भारी अनुपात में मुसलमान मारे गए - यह क्रिएटिव कल्पना की छलांग लगाने की मांग करता है.
मेरे पास इस मामले की कुछ व्यक्तिगत जानकारी है, ख़ासकर दो आरोपियों के बारे में जिन्हें मैं जानता था और सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान जिनके साथ काम किया था. जो कोई भी उमर ख़ालिद को जानता है, देखा है या सुना है, वह जानता है कि उनके शरीर में सांप्रदायिक हड्डी नहीं है. वह सीएए विरोधी आंदोलन के विचारक और एम्बेसडर-एट-लार्ज थे, जनवरी और फ़रवरी 2020 के महीनों में ज़्यादातर दिल्ली से दूर रहे, और दिल्ली के प्रदर्शनों से हाथ की दूरी पर रहे. इसी तरह, ख़ालिद सैफ़ी, एक एक्टिविस्ट के रूप में जो अपने पूर्वी दिल्ली के इलाक़े में हिंदुओं और मुसलमानों दोनों में समान रूप से लोकप्रिय थे, उन लोगों में शामिल थे जो सबसे ज़्यादा चिंतित थे कि प्रदर्शन कोई टकराव वाला, हिंसक मोड़ न ले. मैं उनकी किसी भी सांप्रदायिक हिंसा में दूर से भी संलिप्तता की कल्पना नहीं कर सकता. मुझे यक़ीन है कि यह बात दूसरे आरोपियों के लिए भी सच है, हालांकि मैं उनके मामलों में व्यक्तिगत जानकारी और अनुभव के साथ नहीं बोल सकता.
अगर उमर सीएए को मुस्लिम विरोधी कहने के लिए जेल में है, तो मुझे भी होना चाहिए. अगर ख़ालिद सीएए के ख़िलाफ़ स्थानीय प्रदर्शनों को कोऑर्डिनेट करने के लिए जेल में है, तो मुझे भी होना चाहिए. दरअसल, दिल्ली पुलिस द्वारा दायर चार्जशीट ने मुझे मुख्य षड्यंत्रकारियों में से एक के रूप में पहचाना और मेरे लिए कुछ मोगैम्बो स्टाइल के संवाद आरोपित किए. जज अपने आप से पूछ सकते थे: अगर दिल्ली पुलिस अपने षड्यंत्र सिद्धांत को गंभीरता से लेती है, तो इन पांच सालों में उन्होंने मेरे ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं की या मुझे एक बार भी पूछताछ के लिए क्यों नहीं बुलाया?
टेक्स्ट से ज़्यादा, इतिहास शायद उस संदर्भ को याद रखे जिसमें इस मामले को चिह्नित करने वाले विचित्र संयोगों की श्रृंखला थी. एक जमानत का मामला जिसका फ़ैसला एक हफ़्ते में हो जाना चाहिए था, महीनों तक खींचा गया, एक बार नहीं बल्कि तीन बार. एक के बाद एक, दिल्ली हाई कोर्ट के दो जज इस मामले में फ़ैसला आरक्षित करने के बाद बस उस पर बैठे रहे. सुनवाई की समाप्ति के बाद आदेश आरक्षित करने के बाद. वे दोनों को दूसरे हाई कोर्ट्स के मुख्य न्यायाधीश के रूप में प्रोमोट किया गया और तबादला कर दिया गया, इस मामले में बिना कोई आदेश पास किए. नवीनतम आदेश दो महीने की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की सेवानिवृत्ति से तीन दिन पहले सुनाया गया.
इतिहास यह भी दर्ज कर सकता है कि जब जज उमर ख़ालिद के भाषणों में सांप्रदायिक उकसावा खोजने में ख़ुद को गांठों में बांध रहे थे, तब वे रगिनी तिवारी, प्रदीप सिंह, यति नरसिंहानंद, और निश्चित रूप से, माननीय मंत्रियों कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर के घृणास्पद भाषणों के कुछ काफ़ी सीधे वीडियो नोटिस नहीं कर सके. यह इन अंडरट्रायल्स को पांच साल से ज़्यादा अच्छे से जमानत से इनकार की विचित्रता भी दर्ज करेगा, एक ऐसे देश में जहां गुरमीत राम रहीम, बलात्कार के दोषी, को पिछले आठ सालों में 14 छुट्टियों की अनुमति दी गई है. इतिहास इस मामले को याद रख सकता है, इन नौ आरोपियों के मुकदमे के रूप में उतना नहीं, जितना भारत की आपराधिक न्याय व्यवस्था के मुकदमे के रूप में. और फ़ैसला दयालु नहीं हो सकता.
अंत में, एक फ़ुटनोट, दयालुता का एक विकृत इशारा. अत्यधिक लंबी कैद की दलील का जवाब देते हुए, हर आरोपी के लिए पांच साल प्लस, और मुकदमे की घोंघे की गति, जो अभी तक शुरू नहीं हुआ है और इस रफ़्तार से 10 साल तक लग सकते हैं, फ़ैसला हमें आश्वासन देता है कि मामला "आगे बढ़ रहा" है, कि "मुकदमे की गति स्वाभाविक रूप से आगे बढ़ेगी". बस इतना ही नहीं, यह हमें आश्वासन देने की दयालुता करता है, "एक जल्दबाज़ी का मुकदमा भी अपीलकर्ताओं और राज्य दोनों के अधिकारों के लिए हानिकारक होगा!"
यहां कवि ज़्यादा समझदारी की बात करता लगता है: "तुम अदालतों से बैठकर चुटकुले लिखो/ हम सड़कों, दीवारों पर इंसाफ़ लिखेंगे".
लेखक स्वराज इंडिया के सदस्य और भारत जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक हैं. विचार व्यक्तिगत हैं. यह लेख इंडियन एक्सप्रेस के ओपिनयन पन्ने से.
उमर ने 150 किताबें पढ़ीं दूसरे कैदियों की मदद की, मुझे फख्र है अपने बेटे पर : डॉ इलियास
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र उमर खालिद की ज़मानत याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा एक बार फिर खारिज किए जाने के बाद उनके पिता डॉक्टर एस.क्यू.आर. इलियास ने कहा है कि अब "प्रक्रिया ही सज़ा बन गई है". हरकारा के साथ एक विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि इस बार उन्हें ज़मानत मिलने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन अदालत के फैसले और बताए गए कारण "अजीबोगरीब" हैं.
डॉक्टर इलियास ने कहा कि उनके बेटे को जेल में पांच साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक आरोप भी तय नहीं हुए हैं. उन्होंने कहा, "किसी भी आदमी के पांच साल आपने जेल में बंद कर दिए और अभी ट्रायल भी शुरू नहीं हुआ." उन्होंने आरोप लगाया कि यह पूरा केस "मनगढ़ंत" है और सरकार की आलोचना करने वालों को सबक सिखाने की कोशिश है.
उन्होंने बताया कि सीएए-एनआरसी के खिलाफ हुए आंदोलन में उमर खालिद एक प्रमुख चेहरा थे और सरकार ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया. डॉक्टर इलियास के अनुसार, "सरकार ने सोचा कि ये लड़के हमको चुनौती दे रहे हैं, तो ज़रा इनको भी कुछ सबक सिखाते हैं." उन्होंने यूएपीए (UAPA) जैसे कठोर कानूनों के इस्तेमाल पर भी सवाल उठाए और कहा कि इन कानूनों का इस्तेमाल असहमति की आवाज़ को दबाने और लोगों को लंबे समय तक बिना ज़मानत के जेल में रखने के लिए किया जाता है.
भावुक होते हुए डॉक्टर इलियास ने कहा कि इन पांच सालों में उमर के हौसले पस्त नहीं हुए हैं. जेल में भी वह दूसरे कैदियों की मदद करते रहते हैं. उन्होंने बताया, "उमर ने इन पांच सालों में तकरीबन 150 किताबें पढ़ ली हैं." उन्हें अपने बेटे पर फख्र है और उनका मानना है कि जब उमर बाहर आएंगे तो एक हीरो की तरह उनका स्वागत होगा. उन्होंने यह भी कहा कि अब उनकी अपनी पहचान खत्म हो गई है और लोग उन्हें 'उमर के पिता' के रूप में जानते हैं.
बरेली: 7 मुस्लिम पुरुषों पर हिरासत में यातना का आरोप, हाईकोर्ट ने पुलिस को किया तलब
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरेली के सात मुस्लिम पुरुषों के मामले में हस्तक्षेप किया है, जिन्हें अगस्त में अलग-अलग समय पर उनके घरों और कार्यस्थलों से कथित तौर पर ज़बरदस्ती उठा लिया गया था. इन लोगों ने हिरासत में गंभीर यातना और जबरन कबूलनामे पर हस्ताक्षर कराने का आरोप लगाया है. अदालत ने बरेली पुलिस के शीर्ष अधिकारियों को 8 सितंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर अपना पक्ष रखने और लगाए गए आरोपों पर सफ़ाई देने का आदेश दिया है. इन लोगों को "धार्मिक धर्मांतरण रैकेट" चलाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
यह मामला पुलिस की कार्यप्रणाली, मानवाधिकारों के उल्लंघन और उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी क़ानून के संभावित दुरुपयोग पर गंभीर सवाल खड़े करता है. हिरासत में यातना, अवैध हिरासत और बिना सूचना दिए गिरफ़्तारी के आरोप भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का सीधा उल्लंघन हैं. हाईकोर्ट का हस्तक्षेप इस मामले में पुलिस की जवाबदेही तय करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
परिवारों का आरोप है कि सादे कपड़ों में आए पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) के लोगों ने इन सात लोगों को बिना किसी वॉरंट या एफ़आईआर की कॉपी दिए मनमाने ढंग से उठाया. कई दिनों तक परिवारों को उनकी कोई जानकारी नहीं दी गई. जब परिजनों ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की, तब कोर्ट ने हस्तक्षेप किया. परिजनों के अनुसार, हिरासत में मिलने पर आरोपियों ने बताया कि उन्हें बुरी तरह पीटा गया, बिजली के झटके दिए गए और खाली कागज़ों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया.
मामले में पहले गिरफ़्तार हुए मोहम्मद अब्दुल्ला (पहले का नाम ब्रजपाल) ने 2014 में अपनी मर्ज़ी से इस्लाम कबूल किया था. उनकी पत्नी तबस्सुम और हिंदू माँ ऊषा रानी, दोनों का कहना है कि यह उनका निजी फ़ैसला था और इसमें किसी का कोई दबाव नहीं था. इसके बावजूद पुलिस ने अब्दुल्ला पर 'घर वापसी' के लिए दबाव डाला और दूसरे लोगों के ख़िलाफ़ गवाही देने के लिए मजबूर किया. अन्य गिरफ़्तार लोगों में मोहम्मद सलमान और मोहम्मद आरिफ़ को इसलिए उठाया गया क्योंकि वे बचपन में अब्दुल्ला के साथ पढ़ते थे. एक नाई फहीम को अब्दुल्ला का खतना करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया, जबकि वह अनपढ़ है.
यह मामला उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी क़ानून के इस्तेमाल से जुड़े एक पैटर्न की ओर इशारा करता है. अक्सर मामूली या बिना किसी ठोस सबूत के आधार पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जाता है. पुलिस की कहानी, जिसमें अलग-अलग लोगों को एक "रैकेट" का हिस्सा बताया गया है, काफी कमज़ोर नज़र आती है. जैसे, बचपन के सहपाठियों को दशकों बाद धर्मांतरण के लिए ज़िम्मेदार ठहराना तर्कहीन लगता है. यह मामला दिखाता है कि कैसे क़ानून का इस्तेमाल डर का माहौल बनाने और अल्पसंख्यक समुदाय को परेशान करने के लिए किया जा सकता है.
मामले की अगली सुनवाई 8 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट में होगी, जहाँ सभी बंदियों को अदालत के सामने पेश किया जाना है. बरेली के एडीजी, आईजी और एसएसपी को भी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहना होगा. यह सुनवाई उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए जवाबदेही की एक बड़ी परीक्षा होगी. अदालत के रुख से यह तय होगा कि क्या इन गंभीर आरोपों की निष्पक्ष जांच होगी और क्या पीड़ितों को न्याय मिलेगा. यह मामला भविष्य में पुलिस द्वारा की जाने वाली ऐसी कार्रवाइयों के लिए एक नज़ीर भी बन सकता है.
पीएम-सीएम हटाने वाले विधेयक : दो सप्ताह बाद भी जेपीसी का गठन नहीं
संसद ने अब तक उस संयुक्त समिति (जेपीसी) का गठन नहीं किया है, जो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तारी की स्थिति में पद से हटाने से संबंधित तीन विधेयकों की 30 दिनों तक समीक्षा करेगी. लोकसभा ने इन विधेयकों को समिति के पास भेजने का प्रस्ताव दो सप्ताह पहले पारित किया था.
कांग्रेस, जो लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, ने अभी तक समिति में शामिल होने पर कोई निर्णय नहीं लिया है, जबकि तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और शिवसेना (यूबीटी) ने समिति से दूर रहने का अपना इरादा जाहिर किया है. सोभना के. नायर ने अपनी रिपोर्ट में इस बारे में विस्तृत जानकारी दी है.
ऑक्सफोर्ड विवि में पेरियार के चित्र का अनावरण
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने गुरुवार (4 सितंबर 2025) को ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (यूके) परिसर में समाज सुधारक “पेरियार” ई.वी. रामासामी के चित्र का अनावरण किया. इस अवसर पर उन्होंने सभी देशों से समाज के वंचित और हाशिए पर मौजूद तबकों के लिए आरक्षण नीति लागू करने की अपील की. स्टालिन ने कहा, “हमने आरक्षण के माध्यम से समाज के हर वर्ग के अधिकारों की रक्षा की है. सभी देशों को भी वंचित और हाशिए पर रहे वर्गों के लिए ऐसी ही आरक्षण नीति लागू करनी चाहिए. जो संगठन सामुदायिक अधिकारों के लिए कार्य करते हैं, उन्हें यह मुद्दा उठाना चाहिए.
कांग्रेस का आरोप, गडकरी सरकार में बैठकर नीतियां बनाते हैं और बेटे पैसा कमाते हैं
कांग्रेस ने परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के बेटों पर केंद्र की एथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल नीति से मुनाफा कमाने का आरोप लगाया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दी है कि वह “हितों के इस टकराव” की जांच कराएं.
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने दावा किया कि गडकरी के बेटे निखिल और सारंग एथेनॉल आधारित कारोबार चलाते हैं, जिनकी वृद्धि उस समय से लगातार तेज़ हुई है, जब सरकार ने पूरे देश में पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथेनॉल मिलाने की नीति लागू की. खेड़ा ने आरोप लगाया, “पिता सरकार में बैठकर नीतियां बनाते हैं और बेटे पैसा कमाते हैं. यह हितों के टकराव का साफ मामला है.” उन्होंने सवाल उठाया, “क्या ई-20 एथेनॉल एक लोकनीति है या गडकरी के बेटों और उनकी कंपनियों के लिए विशेष लाभ कमाने का जरिया? मोदी जी भ्रष्टाचार पर ‘शून्य सहिष्णुता’ की बात करते हैं, तो क्या लोकपाल गडकरी और उनके बेटों के खिलाफ इन आरोपों की जांच करने का साहस दिखाएगा?”
जेपी यादव की रिपोर्ट के अनुसार, खेड़ा ने दावा किया कि गडकरी के बेटे दो एथेनॉल कंपनियां चलाते हैं — सियान एग्रो इंडस्ट्रीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और मानस एग्रो इंडस्ट्रीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड. उनके अनुसार, “सियान एग्रो की आय जून 2024 में 18 करोड़ रुपये से बढ़कर जून 2025 तक 523 करोड़ रुपये हो गई, वहीं इसके शेयर की कीमत जनवरी 2025 में ₹37.45 से बढ़कर अगस्त 2025 तक ₹638 पर पहुंच गई, यानी 2,184 प्रतिशत की बढ़ोतरी. यह साफ दिखाता है कि बेटों ने तो खूब मुनाफा कमाया, मगर आम आदमी आज भी संघर्ष कर रहा है.”
हज़रतबल दरगाह पर तनाव, भीड़ ने अशोक स्तंभ अंकित पट्टिका को क्षतिग्रस्त किया
शुक्रवार को श्रीनगर की झील के किनारे स्थित हज़रतबल दरगाह में ईद मिलाद-उन-नबी के जश्न के दौरान भीड़ ने "अल्लाहु अकबर" के नारों के बीच नए लगाए गए काले संगमरमर के शिलालेख पर अंकित अशोक चिन्ह को क्षतिग्रस्त कर दिया. आक्रोशित लोगों का कहना था कि इस प्रतीक की मौजूदगी इस्लामी तौहीद (एकेश्वरवाद) के विपरीत है. यूसुफ जमील के मुताबिक, श्रद्धालुओं ने इसे "प्रतिमा जैसी आकृति" मानते हुए शिलालेख के बाएं कोने को तोड़ दिया. यह शिलालेख दो दिन पहले जम्मू-कश्मीर वक़्फ़ बोर्ड की अध्यक्ष डॉ. दरख़्शां अंद्राबी द्वारा उद्घाटित एक नवीनीकरण परियोजना की आधारशिला का हिस्सा था. जैसे ही घटना के वायरल वीडियो ने विवाद को और बढ़ाया, अंद्राबी ने जल्दबाज़ी में बुलाई गई एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इस घटना को “दिल दहला देने वाला” कृत्य और एक “आतंकी हमला” करार दिया.
भारत की ‘पुशबैक’ नीति : नागरिकता की एक अनुचित, वैकल्पिक परीक्षा
भारत की "पुशबैक" नीति, जिसके तहत कथित बांग्लादेशियों और अन्य विदेशी नागरिकों को भारत की सीमाओं से बाहर धकेला जा रहा है, एक ऐसी कानूनी प्रक्रिया है जो प्रक्रियागत रूप से त्रुटिपूर्ण, अपारदर्शी और बोझिल है. यह नीति भारतीय नागरिकता और संबद्धता से जुड़े जटिल प्रश्नों को उजागर करती है.
मई से, पुलिस—विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में—ऐसे लोगों को पकड़ रही है, जिन्हें वे बांग्लादेशी या अन्य विदेशी मानते हैं और जिनके भारत में घुसने या यहां ठहरने को अवैध बताया जाता है. लेकिन गिरफ्तार किए गए लोगों की नागरिकता सही ढंग से जांचने या उनके विरुद्ध आपराधिक मुकदमे चलाने के बजाय, पुलिस और सीमा बल राज्य-प्रेरित जांच करते हैं और फिर सीधे निर्वासन की कार्रवाई करते हैं. हिरासत में लिए गए लोगों को भारत से बाहर, सामान्यतः बांग्लादेश, भेज दिया जाता है.
भारतीय नागरिक, जो देश के किसी अन्य हिस्से में प्रवासी हो सकते हैं, उनके “अवैध प्रवासी” बन जाने की यह यात्रा आश्चर्यजनक रूप से छोटी होती है, जहां उनके पास कानूनी उपाय का बहुत कम या बिलकुल अवसर नहीं होता.
इस प्रकार "पुशबैक" नीति एक वैकल्पिक प्रक्रिया का रूप ले चुकी है, जिसमें निगरानी और सुरक्षा प्रावधान लगभग नहीं हैं. इससे लोगों के राज्यविहीन हो जाने का खतरा पैदा होता है और हाशिये पर खड़े समुदायों पर अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने का भारी बोझ डाल दिया जाता है.
मनमानी प्रक्रिया भारतीय नागरिकता को प्राप्त संवैधानिक व कानूनी संरक्षण का उल्लंघन करती है और साथ ही निष्पक्ष प्रक्रिया की संवैधानिक गारंटी का भी हनन करती है, जो विदेशी नागरिकों पर भी लागू होती है. किसी भी व्यक्ति को गैर-नागरिक घोषित करने या उसे किसी देश की सीमा से बाहर करने की प्रक्रिया में न्यायसंगत प्रक्रिया और मनमानी से बचाव का पालन होना अनिवार्य है.
भारत सरकार की “पुशबैक” नीति इन बिंदुओं पर विफल साबित होती है. इनमें से कई समस्याएं नई नहीं हैं, लेकिन इस प्रक्रिया का ताज़ा संस्करण और उसके क्रियान्वयन का तरीका निश्चित रूप से अधिक चिंताजनक है. और भी परेशान करने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक उदासीन रवैया अपनाया है. उसने “पुशबैक” नीति के विरोध में दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया.
“पुशबैक” अभियान और न्यायपालिका की यह प्रतिक्रिया इस बात को उजागर कर देती है कि किन्हें पक्का “हमारा” समझा जाता है और किन्हें महत्वहीन मानते हुए मनमानी प्रक्रिया का शिकार बनाया जा सकता है, चाहे वे कानून की दृष्टि से नागरिक ही क्यों न हों? इस बारे में एडवोकेट मनस्विनी जैन, जो दिल्ली में प्रैक्टिस करती हैं, ने “स्क्रॉल” में लंबा लेख लिखा है.
शिल्पा शेट्टी, कुंद्रा के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर
मुंबई पुलिस ने बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी और उनके पति राज कुंद्रा के खिलाफ 60 करोड़ रुपये की ठगी के मामले में लुकआउट सर्कुलर जारी किया है, क्योंकि यह दंपत्ति अक्सर विदेश यात्राएं करता है. शिल्पा शेट्टी और उनके पति के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने एक व्यापारी को लोन-कम-इन्वेस्टमेंट डील में करीब 60 करोड़ रुपये का चूना लगाया. यह शिकायत 60 वर्षीय व्यवसायी दीपक कोठारी ने दर्ज कराई थी, जो जुहू के निवासी हैं.
“तुमने हिम्मत कैसे की?” अवैध खुदाई को लेकर अजित पवार का महिला आईपीएस से तीखा विवाद
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वे सोलापुर में अवैध उत्खनन के खिलाफ कार्रवाई कर रहीं एक महिला आईपीएस अधिकारी के साथ कथित तौर पर तीखी बहस करते सुनाई पड़ रहे हैं, क्योंकि आईपीएस अधिकारी “स्पीकर” ऑन करके बात कर रही थीं.
“एनडीटीवी” के अनुसार, दो मिनट के इस वीडियो में 31 अगस्त को पवार एनसीपी के एक कार्यकर्ता के फोन पर उपविभागीय पुलिस अधिकारी अंजना कृष्णा से बात करते सुने जाते हैं. वीडियो में पवार कहते सुनाई देते हैं –“सुनो, मैं डिप्टी सीएम बोल रहा हूं और आपको आदेश देता हूं कि वह रुकवाओ.” कृष्णा उस समय सोलापुर के कुरडू गांव में सड़क निर्माण के लिए मुर्रम मिट्टी की अवैध खुदाई की शिकायत मिलने के बाद कार्रवाई करने पहुंची थीं.
लेकिन, केरल की रहने वाली और हाल ही में महाराष्ट्र में नियुक्त हुईं अंजना कृष्णा आवाज पहचान नहीं पाईं और उन्होंने पवार से कहा कि वे सीधे उनके मोबाइल पर कॉल करें. इस पर पवार ने कहा, “मैं तुम्हारे ऊपर एक्शन लूंगा.” वीडियो में कृष्णा खेत में खड़ी नजर आती हैं, जहां कुछ एनसीपी कार्यकर्ता भी मौजूद थे. पवार आगे कहते हैं, “तुझे मुझे देखना है ना? तुम्हारा नंबर दे दो या व्हाट्सऐप कॉल करो. मेरा चेहरा तो समझ में आ ही जाएगा ना?” और फिर कहते हैं, “इतनी हिम्मत हो गई है क्या?” इसके बाद मंत्री ने उन्हें वीडियो कॉल किया और कथित तौर पर कार्रवाई रोकने को कहा.
इस बीच, एनसीपी सांसद सुनील टटकरे ने दावा किया कि यह वीडियो जानबूझकर लीक किया गया है. उनका कहना था कि पवार कार्रवाई रोकने का इरादा नहीं रखते थे, बल्कि संभवतः पार्टी कार्यकर्ताओं को शांत करने के लिए अधिकारी को डांट रहे होंगे.
इस बीच अजित पवार ने अपनी सफाई में कहा कि उनका कदम मौके पर शांति बनाए रखने और किसी भी तरह की स्थिति बिगड़ने से रोकने की आवश्यकता से प्रेरित था. उन्होंने कहा, “मेरा इरादा कानून-व्यवस्था में हस्तक्षेप करने का नहीं था, बल्कि यह सुनिश्चित करने का था कि स्थल पर माहौल शांत रहे और आगे न बढ़े.”
भारतीय वैज्ञानिकों में मतभेद, क्योंकि ‘आईओएए’ ने इज़राइल पर प्रतिबंध लगाया
इंटरनेशनल ओलंपियाड ऑन एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईओएए) द्वारा इज़राइल को भविष्य के संस्करणों से निलंबित किए जाने के फैसले पर भारतीय वैज्ञानिकों के बीच गहरा मतभेद उभर आया है. मुंबई में हुए प्रतियोगिता के 18वें संस्करण के दौरान आईओएए के अंतरराष्ट्रीय बोर्ड ने यह निर्णय लिया कि अब इज़राइली छात्र केवल व्यक्तिगत रूप से भाग ले सकते हैं, जबकि उनकी राष्ट्रीय टीम को प्रतिस्पर्धा की अनुमति नहीं दी जाएगी. यह फैसला 1 अगस्त को भारतीय और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय के 500 से अधिक सदस्यों द्वारा भेजी गई एक याचिका के बाद लिया गया, जिसमें ग़ाज़ा में इज़राइल की कार्रवाई और फलस्तीन की भागीदारी को रोके जाने की वजह से इज़राइल के निलंबन की मांग की गई थी. बोर्ड ने इस सिफारिश को भारी बहुमत से स्वीकार किया.
पूर्णिमा साह के मुताबिक, यह याचिका उन वैज्ञानिकों ने भेजी थी जो मानते हैं कि विज्ञान ओलंपियाड का उद्देश्य विद्यार्थियों की प्रतिभा को प्रोत्साहित करना और विज्ञान शिक्षा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना है. इसमें यह भी लिखा गया था कि ओलंपिक भावना सभी देशों से अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन और दूसरे देशों के विद्यार्थियों के मानवाधिकारों का सम्मान करना मांगती है. वैज्ञानिकों ने इज़राइल की सैन्य कार्रवाई, ग़ाज़ा में बच्चों सहित 60,000 फलस्तीनी नागरिकों की मौत और फलस्तीन की टीम को बाधित करने की घटनाएं भी गिनाईं. वैज्ञानिकों ने कहा कि इज़राइल का ओलंपियाड में आना तब तक रोका जाना चाहिए, जब तक वह फलस्तीनी छात्रों की भागीदारी में बाधा डालना बंद नहीं करता और अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन नहीं करता. उन्होंने इज़राइल की सैन्य कार्रवाई को ओलंपियाड के लक्ष्यों के विरुद्ध बताया.
हालांकि, इस फैसले के विरुद्ध भारत के लगभग 300 वैज्ञानिकों और संस्थानों के फैकल्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखते हुए कहा कि यह निर्णय एक "अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक मंच का राजनीतिक मक़सद के लिए दुरुपयोग" है, जिससे भारत की विज्ञान में तटस्थता तथा वैश्विक छवि को नुकसान पहुंच सकता है.
2024 तक के ग़ैर-मुस्लिम शरणार्थियों को बड़ी राहत, भारत में रुक सकेंगे, बंगाल की पार्टियों को दिखी सीएए से जुड़ी साज़िश
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने घोषणा की है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न के चलते भारत आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों—हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई—के उन सदस्यों को जो 31 दिसंबर 2024 या उससे पहले भारत आए हैं, पासपोर्ट या अन्य यात्रा दस्तावेजों के बिना भी देश में रुकने की अनुमति दी जाएगी. लेकिन, इस कदम ने आरोपों को जन्म दिया है. मसलन, नरेंद्र मोदी सरकार अगले वर्ष निर्धारित बंगाल और असम के चुनावों से पहले ध्रुवीकरण वाला एजेंडा फिर से जीवित कर रही है. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, माकपा और कांग्रेस ने मोदी सरकार पर राज्य की जनसांख्यिकी (डेमोग्राफिक) तस्वीर बदलने की कोशिश करने का आरोप लगाया है.
इमरान अहमद सिद्दीकी के अनुसार, यह निर्णय हाल ही में लागू हुए इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स एक्ट, 2025 के तहत जारी किया गया है. आदेश के मुताबिक, उपर्युक्त देशों के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक यदि बिना वैध दस्तावेजों (या दस्तावेजों की वैधता खत्म हो गई हो) के भारत पहुंचे हैं, उन्हें वैध पासपोर्ट और वीज़ा की आवश्यकता से छूट दी जाएगी. यह निर्णय विवादास्पद और कथित रूप से विभाजनकारी नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) का परिणाम है, जो पिछले वर्ष लागू हुआ था. सीएए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले सताए गए अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता पाने की प्रक्रिया को तेज़ करता है, बशर्ते वे 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले भारत में आकर बसे हों. यह आदेश ऐसे हजारों शरणार्थियों के लिए राहत लेकर आएगा, जो अब तक अपनी कानूनी स्थिति को लेकर अनिश्चितता झेल रहे थे. हालांकि, यह आदेश नागरिकता के बारे में मौन है और कोई स्पष्टता नहीं है; सीएए के तहत नागरिकता की कट-ऑफ तिथि 2014 ही बनी हुई है.
इस बीच बंगाल से भाजपा सांसद और केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने “एक्स” पर सरकार के आदेश की घोषणा करते हुए दावा किया था कि गृह मंत्रालय ने “सीएए के तहत आवेदन करने की कट-ऑफ तारीख (31 दिसंबर 2014) को 10 साल बढ़ाकर 31 दिसंबर 2024 तक कर दिया है. हालांकि, बाद में मजूमदार ने अपनी यह पोस्ट हटा दी. इस पर टीएमसी सांसद साकेत गोखले ने मजूमदार पर झूठ फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि कट-ऑफ तारीख अब भी 2014 ही है. इसे केवल संसद में संशोधन लाकर ही बदला जा सकता है, न कि अमित शाह के आदेश से. क्या @PIBFactCheck में इतनी हिम्मत है कि इसे झूठ करार दे? अब इंतज़ार है कि मोदी के मंत्री @DrSukantaBJP वही करेंगे, जो वे सबसे अच्छा करते हैं — चुपचाप अपनी पोस्ट हटा देंगे, बिना माफ़ी मांगे.” सचमुच, मजूमदार ने यही किया. बहरहाल, कई आलोचकों का मानना है कि मुसलमानों को इस प्रक्रिया में बाहर रखा गया है, इसलिए यह कानून धर्मनिरपेक्षता के संविधानिक सिद्धांतों के विरुद्ध है.
मणिपुर: कोकोमी–मैतेई संगठन ने कुकी समूहों के साथ एसओओ समझौते के विस्तार की निंदा की
मणिपुर अखंडता समन्वय समिति (COCOMI-कोकोमी) ने शुक्रवार को केंद्र सरकार के उस निर्णय की कड़ी निंदा की, जिसमें कूकी उग्रवादी गुटों के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (एसओओ-सू) समझौते की अवधि बढ़ाने का फैसला किया गया है.
मनोज आनंद के मुताबिक, ‘कोकोमी’ ने इन गुटों को नार्को-टेररिस्ट (मादक पदार्थों से जुड़े आतंकवादी) संगठन बताते हुए कहा कि एसओओ समझौते की अवधि बढ़ाना "जनविरोधी" है और इससे मणिपुर की मूलनिवासी आबादी के हितों को नुकसान पहुंचता है.
समिति ने कहा कि मणिपुर की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार ने 10 मार्च 2023 को सर्वसम्मति से एसओओ समझौते को समाप्त करने का फैसला किया था. समिति ने बयान में जोड़ा—“वर्तमान राष्ट्रपति शासन के दौरान प्रशासन के पास मणिपुर के लोगों का प्रतिनिधित्व करने की वैधता नहीं है. ऐसे हालात में एसओओ को बढ़ाना अलोकतांत्रिक और प्रभुत्ववादी कदम है. इससे आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त उग्रवादी गुटों को अनुचित मान्यता और ताकत मिलती है.
पाकिस्तान-चीन ने सीपीईसी 2.0 पर सहयोग करने पर सहमति जताई
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ़ ने गुरुवार (4 सितंबर, 2025) को बीजिंग में चीन के प्रधानमंत्री ली क़ियांग से मुलाक़ात की, जिसमें दोनों पक्षों ने यह सहमति भी जताई कि वे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी 2.0) के अगले चरण पर करीबी सहयोग जारी रखेंगे, जिसमें पांच नए गलियारे शामिल हैं. यह जानकारी रेडियो पाकिस्तान ने दी.
डोनाल्ड ट्रम्प का दावा: 'भारत और रूस, चीन के हाथों में चले गए हैं'
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के कुछ दिनों बाद, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुक्रवार को कहा कि ऐसा लगता है कि भारत और रूस "सबसे गहरे, सबसे काले चीन" के हाथों में चले गए हैं. उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर यह टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच तियानजिन में हुई हालिया बैठक के संदर्भ में की. ट्रम्प ने आगे कहा, "उम्मीद है कि उनका भविष्य एक साथ लंबा और समृद्ध हो".
यह बयान एक पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ़ से आया है, जो भविष्य में फिर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हो सकते हैं. यह टिप्पणी भारत, रूस और चीन के बीच बढ़ती नज़दीकियों पर अमेरिकी राजनीतिक हलकों की चिंता को दर्शाती है. यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और भारत के बीच व्यापार और रूस से तेल आयात जैसे मुद्दों पर कुछ तनाव चल रहा है. यह दिखाता है कि दुनिया की बड़ी शक्तियां भारत की गुटनिरपेक्ष और बहु-संरेखण नीति को किस नज़र से देख रही हैं.
ट्रम्प की इस पोस्ट पर टिप्पणी करने के लिए पूछे जाने पर भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने कोई भी बयान देने से इनकार कर दिया. हालांकि, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो की रूस-यूक्रेन युद्ध पर की गई टिप्पणी को "भ्रामक" बताकर खारिज कर दिया, जिसमें नवारो ने यूक्रेन युद्ध को "मोदी का युद्ध" कहा था. एससीओ शिखर सम्मेलन में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 20 से ज़्यादा ग़ैर-पश्चिमी देशों के नेताओं का स्वागत किया, जिनमें पुतिन और मोदी सबसे प्रमुख थे. एक प्रतीकात्मक क्षण में, पुतिन और मोदी हाथ में हाथ डाले शी की ओर बढ़ते हुए देखे गए, जिसके बाद तीनों नेताओं ने एक साथ तस्वीरें खिंचवाईं. इससे पहले ट्रम्प ने शी पर रूस और उत्तर कोरिया के नेताओं के साथ मिलकर अमेरिका के ख़िलाफ़ साज़िश रचने का आरोप लगाया था.
ट्रम्प का बयान भारत की स्वतंत्र विदेश नीति पर एक सीधी टिप्पणी है. भारत जहाँ एक ओर अमेरिका के नेतृत्व वाले क्वाड (Quad) का हिस्सा है, वहीं वह एससीओ और ब्रिक्स (BRICS) जैसे मंचों पर रूस और चीन के साथ भी सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है. ट्रम्प की भाषा ("गहरे, काले चीन") चीन के प्रति उनके कड़े रुख को दर्शाती है और यह संकेत देती है कि वह भारत के इस संतुलन को चीन के पक्ष में झुकने के रूप में देखते हैं. वहीं, रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भी अमेरिका को चेतावनी दी कि वह भारत जैसे देशों को आर्थिक दबाव के ज़रिए कमज़ोर करने की कोशिश न करे, क्योंकि "औपनिवेशिक युग अब समाप्त हो गया है".
भारत सरकार ट्रम्प के इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया देने से बचेगी, क्योंकि यह एक पूर्व राष्ट्रपति की व्यक्तिगत टिप्पणी है. हालांकि, भारत अपनी बहु-संरेखण की विदेश नीति पर कायम रहेगा, जिसमें वह अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार सभी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंध बनाए रखेगा. अमेरिका और भारत के बीच कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी रहेगी, लेकिन इस तरह के बयान दोनों देशों के बीच चल रही रणनीतिक जटिलताओं को उजागर करते रहेंगे.
‘भारत जल्द ही बातचीत की मेज़ पर लौटेगा और माफ़ी मांगेगा’
इधर, अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने शुक्रवार को कहा कि भारत जल्द ही वाशिंगटन के साथ बातचीत की मेज़ पर लौटेगा, माफ़ी मांगेगा और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ समझौता करने की कोशिश करेगा.
“ब्लूमबर्ग” को दिए एक साक्षात्कार में लुटनिक ने कहा, “हां, मुझे लगता है कि एक या दो माह में भारत बातचीत के लिए तैयार होगा. वे कहेंगे कि उन्हें खेद है और फिर डोनाल्ड ट्रम्प से समझौता करने का प्रयास करेंगे.” लुटनिक ने आगे कहा, “यह ट्रम्प पर निर्भर करेगा कि वे (नरेंद्र) मोदी से किस तरह व्यवहार करना चाहते हैं, क्योंकि वे राष्ट्रपति हैं.” लुटनिक ने भारत द्वारा रियायती दर पर रूस से कच्चा तेल खरीदने की आलोचना करते हुए इसे पूरी तरह ग़लत और बेतुका करार दिया. उन्होंने कहा कि भारत को यह तय करना होगा कि वह किस पक्ष में है. लुटनिक शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के प्रीमियर शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया बैठक का हवाला दे रहे थे.
श्याम सरन: भारत-अमेरिका के रिश्ते दशकों में सबसे निचले स्तर पर
क्या भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंध दशकों के सबसे निचले स्तर पर आ गए हैं? क्या राष्ट्रपति ट्रम्प का भारत के प्रति रवैया प्रतिशोधी होता जा रहा है? और इस बिगड़ते माहौल में भारतीय कूटनीति के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? इन महत्वपूर्ण सवालों पर भारत के पूर्व विदेश सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष श्याम सरन ने एक विशेष साक्षात्कार में अपनी विस्तृत राय रखी. सरन का मानना है कि यह भारतीय कूटनीति के लिए निश्चित रूप से एक अधिक चुनौतीपूर्ण समय है, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत के पास इस स्थिति से निपटने के लिए विकल्प और आंतरिक शक्ति मौजूद है.
पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत-अमेरिका संबंध उस सुनहरे दौर की तुलना में बहुत निचले स्तर पर हैं, जो 1990 के दशक के अंत और 2000 की शुरुआत में शुरू हुआ था. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रपति ट्रम्प का व्यवहार भारत के प्रति स्पष्ट रूप से "प्रतिशोधी" लगता है. ट्रम्प और उनके प्रमुख सहयोगियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही भाषा ऐसी है जो दशकों से अमेरिका की तरफ से नहीं सुनी गई. सरन ने ट्रम्प की टिप्पणियों, जैसे कि भारत-अमेरिका संबंधों को "एकतरफा आपदा" कहना और भारत की अर्थव्यवस्था की परवाह न करने की बात को, इसी प्रतिशोधी रवैये का प्रमाण माना. उनका मानना है कि यह स्थिति भारतीय कूटनीति के लिए एक गंभीर चुनौती है और भारत शायद कुछ समय से अपनी सबसे कमजोर स्थिति में है.
श्याम सरन ने चेतावनी दी कि अगर राष्ट्रपति ट्रम्प इसी रास्ते पर चलते रहे तो संबंधों में और गिरावट आ सकती है. हालांकि, उन्होंने एक सकारात्मक पहलू की ओर भी ध्यान दिलाया. उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी और सैन्य अभ्यास जैसे कार्यात्मक संबंध अभी भी कायम हैं. आधिकारिक स्तर पर भी बातचीत जारी है, जिसमें मैत्रीपूर्ण माहौल दिखा है. लेकिन उन्होंने यह भी आगाह किया कि अगर नकारात्मकता का यह दौर जारी रहा, तो इन मजबूत संबंधों पर भी असर पड़ सकता है.
इस विश्लेषण में सबसे बड़ी चिंता का विषय अमेरिका-चीन संबंधों में सुधार की संभावना है. सरन के अनुसार, ट्रम्प का चीन के प्रति नरम रुख, राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अपनी दोस्ती का जिक्र करना, और चीन की यात्रा की बात करना भारत के लिए चिंताजनक है. यह अमेरिका की 'इंडो-पैसिफिक' रणनीति को कमजोर कर सकता है, जो भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी की आधारशिला रही है. सरन ने कहा कि एक संभावित अमेरिका-चीन "जी-2" (दो देशों का गुट) भारत के लिए पैंतरेबाज़ी की गुंजाइश को काफी कम कर देगा. इसी संदर्भ में, 'क्वाड' समूह का भविष्य भी अनिश्चित दिख रहा है और यह भी संभव है कि ट्रम्प चीन के साथ एक बड़ी डील के लिए इसे हाशिए पर डाल दें.
बातचीत में पाकिस्तान का मुद्दा भी उठा. सरन ने कहा कि ट्रम्प का पाकिस्तान के प्रति रवैये में आया नाटकीय बदलाव, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को "आतंकवाद के खिलाफ एक अभूतपूर्व भागीदार" बताया, मुख्य रूप से ट्रम्प के अहंकार को तुष्ट करने की पाकिस्तानी रणनीति का नतीजा है. यह भारत के लिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि इससे पाकिस्तान को भारत के खिलाफ उकसावे वाली कार्रवाई करने का प्रोत्साहन मिल सकता है, ताकि कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया जा सके.
रूस से तेल खरीदने के मुद्दे पर लगाए गए अमेरिकी टैरिफ पर, श्याम सरन का मानना है कि यह मुद्दा सिर्फ तेल खरीदने तक सीमित नहीं है. यह ट्रम्प द्वारा भू-राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक व्यावसायिक उपकरण का उपयोग है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत को एक "धौंस जमाने वाले" के सामने नहीं झुकना चाहिए, क्योंकि एक बार झुकने का मतलब भविष्य में बार-बार अपमानित होने का रास्ता खोलना होगा. उन्होंने यह भी बताया कि चीन और तुर्की जैसे कई अन्य देश भी रूस से तेल खरीद रहे हैं, लेकिन केवल भारत को निशाना बनाया जा रहा है.
अंत में, श्याम सरन ने निष्कर्ष निकाला कि यह निस्संदेह भारतीय कूटनीति के लिए एक चुनौतीपूर्ण और चिंताजनक समय है. लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि भारत को अपनी क्षमताओं को कम नहीं आंकना चाहिए. भारत को जापान, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य प्रमुख देशों के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए, जो अमेरिकी नीति में हो रहे बदलावों से समान रूप से चिंतित हैं. सरन का मानना है कि भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था, राजनीतिक स्थिरता और ऐतिहासिक लचीलापन वे संपत्तियां हैं, जो इस कठिन भू-राजनीतिक दौर से निकलने में देश की मदद करेंगी.
अगर यूरोपीय देश अपनी फौज़ यूक्रेन भेजेंगे, तो रूस उन्हें भी निशाना बनाएगा: पुतिन
बीबीसी के लिए पॉल किर्बी की रिपोर्ट है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन में किसी भी युद्धविराम के बाद 'आश्वासन बल' की तैनाती के पश्चिमी प्रस्तावों को खारिज कर दिया है. यह बयान पेरिस शिखर सम्मेलन के एक दिन बाद आया, जिसका उद्देश्य यूक्रेन के लिए सुरक्षा गारंटी की योजनाओं को अंतिम रूप देना था. पुतिन ने चेतावनी दी कि यूक्रेन में तैनात किसी भी सैनिक को "वैध निशाना" माना जाएगा, खासकर अगर वे अभी दिखाई देते हैं, भले ही तत्काल तैनाती की कोई योजना नहीं है.
पुतिन की यह चेतावनी बताती है कि रूस यूक्रेन में किसी भी तरह की सीधी पश्चिमी सैन्य उपस्थिति को बर्दाश्त नहीं करेगा, भले ही वह शांति स्थापना के लिए ही क्यों न हो. इससे एक सुरक्षित और स्थायी शांति समझौते की उम्मीदें कमज़ोर होती हैं, क्योंकि यूक्रेन और उसके सहयोगी बिना ठोस सुरक्षा गारंटी के किसी भी समझौते पर भरोसा नहीं करेंगे.
फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा था कि यूक्रेन के 26 सहयोगियों ने लड़ाई रुकने के तुरंत बाद सुरक्षा प्रदान करने में मदद के लिए "ज़मीन, समुद्र या हवा" के ज़रिए सैनिक भेजने के लिए औपचारिक रूप से प्रतिबद्धता जताई है. पुतिन ने इस पहल को पूरी तरह से खारिज कर दिया. पिछले महीने अलास्का में पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुए शिखर सम्मेलन के बाद शांति की थोड़ी उम्मीद जगी थी, लेकिन अब युद्धविराम की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है. पुतिन ने शुक्रवार को कहा कि वह यूक्रेनी नेता के साथ संपर्क के लिए तैयार हैं, "लेकिन मुझे इसमें कोई ख़ास मतलब नहीं दिखता. क्योंकि यूक्रेनी पक्ष के साथ प्रमुख मुद्दों पर समझौता करना लगभग असंभव है."
अलास्का बैठक के बाद से, ब्रिटेन और फ्रांस के नेतृत्व में "इच्छुकों का गठबंधन" (Coalition of the Willing) कीव को गारंटी प्रदान करने पर काम कर रहा है. मैक्रों ने जोर देकर कहा कि किसी भी सैनिक को "किसी भी नए बड़े आक्रमण" को रोकने के लिए तैनात किया जाएगा, न कि अग्रिम मोर्चे पर. वहीं, मॉस्को ने इस बात पर जोर दिया है कि उसे यूक्रेन की सुरक्षा के "गारंटर" के रूप में काम करने वाले देशों में से एक होना चाहिए - एक ऐसा विचार जिसे कीव और उसके सहयोगियों ने खारिज कर दिया है. क्रेमलिन ने बीबीसी को बताया कि नाटो या किसी अन्य विदेशी सेना को रूस के लिए ख़तरा माना जाएगा, "क्योंकि हम नाटो के दुश्मन हैं." पश्चिमी नेताओं का मानना है कि रूस और अधिक यूक्रेनी क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के लिए समय निकाल रहा है.
फिलहाल, कूटनीतिक गतिरोध जारी रहने की संभावना है. अमेरिका अपनी भागीदारी के स्तर को अंतिम रूप देगा. ट्रंप ने हवाई समर्थन का संकेत दिया है. रूस यूक्रेन में अपने सैन्य अभियान को आगे बढ़ाता रहेगा, जैसा कि पुतिन ने दावा किया है कि उनकी सेना सभी मोर्चों पर आगे बढ़ रही है. पश्चिमी देश यूक्रेन को हथियार देना जारी रखेंगे और ज़मीनी सैनिकों की सीधी तैनाती के बिना सुरक्षा गारंटी के अन्य तरीकों पर विचार करेंगे. नाटो प्रमुख मार्क रूट ने स्पष्ट किया है कि यूक्रेन में सैनिकों की तैनाती पर रूस का कोई वीटो नहीं है, क्योंकि यह एक संप्रभु देश है.
विज्ञापनों में डंडी मारने के लिए गूगल पर यूरोप में 3.5 अरब डॉलर का जुर्माना
यूरोपीय संघ के अधिकारियों ने अमेरिकी टेक दिग्गज गूगल पर ऑनलाइन विज्ञापन बाज़ार में अपने छोटे प्रतिद्वंद्वियों को अनुचित रूप से कमज़ोर करने के लिए प्रतिस्पर्धा कानूनों का उल्लंघन करने के आरोप में शुक्रवार को लगभग 3.5 अरब डॉलर (30,800 करोड़ रुपये) का जुर्माना लगाया है. यह इस सप्ताह अवैध व्यावसायिक प्रथाओं के लिए गूगल के खिलाफ दूसरा बड़ा कानूनी फैसला है. न्यूयॉर्क टाइम्स में एडम सैटारियानो ने इस पर रिपोर्ट लिखी है. गूगल का अरबों डॉलर का कारोबार ऑनलाइन विज्ञापन बाज़ार में उसके प्रभुत्व पर टिका है. यह जुर्माना कंपनी के विज्ञापन व्यवसाय मॉडल के लिए एक बड़ी चुनौती है और भविष्य में उसे अपने संचालन के तरीके को बदलने के लिए मजबूर कर सकता है. यूरोपीय आयोग ने कहा कि गूगल ने डिस्प्ले विज्ञापन व्यवसाय को नियंत्रित करने के लिए अपने आकार और प्रभुत्व का दुरुपयोग किया. इससे पहले इसी सप्ताह, अमेरिका में एक संघीय न्यायाधीश ने गूगल को अपने खोज परिणाम और कुछ डेटा प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को सौंपने का आदेश दिया था. गूगल के विज्ञापन व्यवसाय पर न्याय विभाग द्वारा एक और मामला चलाया जा रहा है. गूगल न केवल अपनी वेबसाइटों और एप्लिकेशन के लिए विज्ञापन बेचता है, बल्कि अन्य वेबसाइटों पर विज्ञापन देने वाली कंपनियों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में भी काम करता है. नियामकों ने कहा कि कंपनी के "एडटेक सप्लाई चेन में हितों के स्वाभाविक टकराव" हैं. यह जुर्माना 2021 में शुरू हुई एक जांच का परिणाम है. गूगल का कहना है कि वह इस फैसले के खिलाफ अपील करेगा. कंपनी ने एक बयान में कहा, "विज्ञापन खरीदारों और विक्रेताओं के लिए सेवाएं प्रदान करने में कुछ भी प्रतिस्पर्धा-विरोधी नहीं है, और हमारी सेवाओं के पहले से कहीं ज़्यादा विकल्प मौजूद हैं." हालांकि, यह फैसला नियामकों की उस चिंता को उजागर करता है कि गूगल विज्ञापन तकनीक के हर चरण को नियंत्रित करके छोटे खिलाड़ियों के लिए प्रतिस्पर्धा करना असंभव बना रहा है. गूगल के पास यह बताने के लिए 60 दिन का समय है कि वह इस फैसले का पालन करने की योजना कैसे बना रहा है. कंपनी इस फैसले के खिलाफ अपील करेगी, जिससे यह कानूनी लड़ाई और लंबी खिंच सकती है. इस बीच, अमेरिका में भी गूगल को अपने विज्ञापन व्यवसाय से संबंधित एक और मुकदमे का सामना करना पड़ेगा, जिसमें संभावित उपायों पर सुनवाई होनी है. इन फैसलों का गूगल के वैश्विक विज्ञापन साम्राज्य पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है.
चलते चलते
गाज़ा की बच्ची पर बनी फिल्म ‘द वॉयस ऑफ हिंद रजब' पर 23 मिनट बजती रही तालियां
"इस साल के वेनिस फेस्टिवल की सबसे शक्तिशाली और ज़रूरी फिल्म" बताया गया
पिछले साल ग़ाज़ा में इजरायली सेना द्वारा मारी गई पांच साल की बच्ची की दर्दनाक कहानी पर बनी एक नई फिल्म को बुधवार को वेनिस फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर के बाद 23 मिनट का स्टैंडिंग ओवेशन मिला. 'द वॉयस ऑफ हिंद रजब' नामक इस फिल्म ने दर्शकों और कई पत्रकारों को रुला दिया. यह फिल्म ग़ाज़ा में चल रहे मानवीय संकट और बच्चों पर युद्ध के विनाशकारी प्रभाव को एक शक्तिशाली और व्यक्तिगत कहानी के माध्यम से दुनिया के सामने लाती है. आलोचकों द्वारा इसे "इस साल के फेस्टिवल की सबसे शक्तिशाली और ज़रूरी फिल्म" बताया गया है. कला के माध्यम से बताई गई सच्ची कहानियाँ वैश्विक स्तर पर कितना गहरा प्रभाव डाल सकती हैं.
ट्यूनीशियाई फिल्म निर्माता काउथर बेन हानिया द्वारा निर्देशित यह फिल्म हिंद रजब की अंतिम, घबराहट भरी फोन कॉल को फिर से जीवंत करती है. जनवरी 2024 में, हिंद उत्तरी ग़ाज़ा में एक कार के मलबे में फंस गई थी, जो उसके चाचाओं और चार छोटे चचेरे भाइयों के शवों से घिरी हुई थी. वह अकेली जीवित थी और फोन पर फिलिस्तीनी रेड क्रिसेंट से संपर्क करने में कामयाब रही. हालांकि, बाद में बच्ची और उसे खोजने गए चिकित्साकर्मी इजरायली सेना द्वारा मारे गए. फिल्म में हिंद की असली फोन रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल किया गया है, जो इसे और भी मार्मिक बनाता है. फिल्म निर्माता बेन हानिया ने कहा, "जब मैंने पहली बार हिंद रजब की आवाज़ सुनी, तो उसके शब्दों से परे कुछ था. यह खुद ग़ाज़ा की आवाज़ थी जो मदद के लिए पुकार रही थी - और कोई भी उस तक नहीं पहुंच सका." फिल्म की टीम ने एक बयान में कहा कि यह फिल्म कोई राय या कल्पना नहीं है, बल्कि सच्चाई पर आधारित है, और हिंद की आवाज़ उन 19,000 बच्चों में से एक है जिन्होंने पिछले दो सालों में ग़ाज़ा में अपनी जान गंवाई है. हिंद की मां, विसम हमादा ने उम्मीद जताई कि यह फिल्म युद्ध को समाप्त करने में मदद करेगी. ब्रैड पिट, जोकिन फीनिक्स और अल्फोंसो क्वारोन जैसे बड़े नाम इस ड्रामा के कार्यकारी निर्माता हैं. फिल्म को मिली जबरदस्त प्रतिक्रिया और अंतरराष्ट्रीय ध्यान से उम्मीद है कि हिंद रजब और ग़ाज़ा में मारे गए अन्य नागरिकों के मामलों पर अधिक जांच और जवाबदेही की मांग बढ़ेगी. यह फिल्म दुनिया भर के फिल्म समारोहों में यात्रा कर सकती है, जिससे ग़ाज़ा के संघर्ष के बारे में जागरूकता और बढ़ेगी. इजरायली सेना ने अब तक इस मामले में किसी औपचारिक जांच की घोषणा नहीं की है. फिल्म का आधिकारिक ट्रेलर नहीं मिल रहा, पर अल जज़ीरा का ये वीडियो आप देख सकते हैं. विचलित करेगा.
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