06/12/2025: बाबरी के 33 साल | अपनी ही शादी के रिसेप्शन में नहीं पहुंच पाया जोड़ा | इंडिगो भसड़ | पुतिन, मोदी और बदलती दुनिया पर श्रवण गर्ग | रघुराम राजन की चेतावनी | सुशांत सिंह का मायूस ईयरएंडर
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
बाबरी के मलबे में दफ़न सपने: एक भारतीय मुस्लिम का 33 साल का सफ़र.
क्या मंदिर तोड़कर बनी थी बाबरी? इतिहास में सबूत नदारद.
अयोध्या की नई मस्जिद: डिज़ाइन तो फाइनल, पर ईंट 2026 में लगेगी.
बंगाल में ‘बाबरी’ की वापसी: टीएमसी विधायक ने रखी नींव, लगे नारे.
इंडिगो का ‘खेल’: अपनी ही रिसेप्शन में वीडियो कॉल से जुड़े दूल्हा-दुल्हन.
हवाई अड्डों पर कोहराम: 1000 उड़ानें रद्द, यात्री बेहाल, मदद को कोई नहीं.
पाँच दिन बाद जागी सरकार: इंडिगो संकट के बीच रेलवे का सहारा, 84 ट्रेनें चलाईं.
हर पल की खबर रखेगी सरकार? स्मार्टफ़ोन ट्रैकिंग पर एपल-गूगल से ठनी.
नेपाल के नोट पर नया नक्शा: भारत से फिर गहराया सीमा विवाद.
अमेरिका का बदला रुख: पाक पर नरमी, ट्रम्प बोले- मैंने सुलझाया भारत-पाक झगड़ा.
पहाड़ पर ‘पोषण आपातकाल’: अल्मोड़ा में सबसे बुरे हालात, लाखों बच्चे कुपोषित.
पुतिन के गले मिले मोदी: क्या भारत बदल रहा है अपनी धुरी? श्रवण गर्ग का विश्लेषण.
बाज़ार का जश्न या खतरे की घंटी? रघुराम राजन ने चेताया- अगला संकट आ रहा है.
2025: वह साल जब भारत का ‘विश्वगुरु’ वाला भ्रम टूटा और लाचारी दिखी.
कोयले का मोह पड़ा भारी: क्लाइमेट रैंकिंग में 13 पायदान फिसला भारत.
‘डिजिटल अरेस्ट’ का खौफ: भारत में 5 गुना बढ़े साइबर अपराध.
चीन से जान बचाकर भागे, भारत में 12 साल से कैद: तीन उइगर भाइयों की दास्तां.
एक सपने का मलबा: बाबरी मस्जिद विध्वंस के साये में एक भारतीय मुस्लिम की 33 साल की यात्रा
असद अशरफ़ स्वतंत्र पत्रकार हैं और 1992 में जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया, तब 5 साल के मासूम बच्चे थे. उन्होंने तब से लेकर अब तक, एक भारतीय मुस्लिम के रूप में 33 साल की अपनी यात्रा पर “द क्विन्ट” में लंबा लेख लिखा है, जिसके संपादित अंश यहां पेश हैं. वह लिखते हैं- “जब बाहरी दुनिया आग पकड़ लेती है, तो एक मुस्लिम घर पर एक खास तरह का सन्नाटा छा जाता है. यह एक भारी, घुटन भरी खामोशी होती है, जो अदृश्य हो जाने की सामूहिक प्रवृत्ति से पैदा होती है—यह रोकी हुई सांस का सन्नाटा है. मैंने यह सन्नाटा पहली बार 6 दिसंबर, 1992 को सुना था.”
मैं पाँच साल का था, और हम बिहार के गया में रहते थे. मेरे पिता, विजया बैंक में एक मामूली क्लर्क, भारतीय व्यवस्था में विश्वास रखते थे—कि कड़ी मेहनत, नियमों का पालन और शिक्षा का फल मिलता है. मेरी दुनिया छोटी और सुरक्षित थी. लेकिन उस जाड़े की शाम, टेलीविजन पर भगवा पहने पुरुषों की गुंबद पर चढ़ने की तस्वीरों ने सब कुछ बदल दिया.
मैं “कार सेवक” या “बाबरी मस्जिद” जैसे शब्द नहीं समझा, लेकिन मुझे “डर” समझ में आया. मैंने इसे अपने पिता की आँखों में देखा. यह आदमी, जो मेरी दुनिया की स्थिरता था, अचानक कमजोर और छोटा लगने लगा. वह कमरे में घूम रहे थे, उनकी चुप्पी चिल्ला रही थी. मेरी माँ ने हमें कस कर पकड़ रखा था, मानो वह हमें उस भविष्य से बचा सकती थीं जो अचानक अंधकारमय हो गया था.
पाँच साल की उम्र में, मैंने एक ढाँचे को टूटते देखा, लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण, मैंने अपने पिता के विश्वास को टूटते देखा. मुझे लगा कि सुरक्षा की एक काँच की छत टूट गई है, और हम उसके टुकड़ों पर चल रहे थे. उस शाम ने एक ऐसे विघटन की शुरुआत को चिन्हित किया जो अगले तैंतीस वर्षों तक जारी रहा—सिर्फ़ एक मस्जिद का नहीं, बल्कि ‘धर्मनिरपेक्षता के सपने का विघटन’.
शुरुआती वर्षों में, गया के नाज़रेथ एकेडमी (1994-2000) में, मैं बाहरी दुनिया से सुरक्षित था. लेकिन यह सुरक्षा क्षणभंगुर थी. ड्राइंग क्लास में मेरे दोस्त ने फुसफुसाया, “मस्जिद मत बनाओ, असद. क्योंकि वे अंततः टूट ही जाएंगी. क्या फ़ायदा?” उस बचपन में ही मुझे संदेश मिल गया था: मुस्लिम प्रतीक अस्थायी हैं. पटना सेंट्रल स्कूल (2000-2003) में, छत उड़ गई. 11 सितंबर, 2001 के बाद, “मुसलमान” अब घरेलू “अन्य” नहीं रहा; वह एक वैश्विक “आतंक” फ़्रेंचाइज़ी का हिस्सा बन गया.
फिर आया 2002. गुजरात. एक किशोर के रूप में, मैंने समाचार पत्रों में क्रूरता को समझा. पूर्व सांसद एहसान जाफ़री का नरसंहार इस भ्रम को तोड़ गया कि वर्ग या स्थिति हमें बचा सकती है. इसने मेरी पीढ़ी को सिखाया कि हमारी सुरक्षा बहुसंख्यक वर्ग की सद्भावना पर सशर्त थी. मेरी पहचान बदल गई. खेल के मैदान में, दोस्त मज़ाक में चिल्लाते थे: “अरे, असद से मत लड़ो! वह ओसामा बिन लादेन को बुला लेगा!” मैं अल-कायदा की हॉटलाइन कैसे बन गया? मुझे ‘अच्छा मुस्लिम’ दिखने के लिए उस मज़ाक पर हँसना पड़ा, जिसने मुझे अमानवीय बना दिया.
जब मेरे पिता के करियर की प्रगति हुई, और मैं डीएवी पंचकुला (2003-2004) गया, तो मेरे आईआईटी-जाने वाले भाई की प्रतिभा भी मेरी मदद नहीं कर सकी. मुझे मेरे नाम से नहीं, बल्कि एक लेबल से पुकारा गया: “मुल्ला.” मैंने सीखा कि मैं हमेशा एक ऐसे इतिहास से परिभाषित किया जाऊंगा, जिससे उन्हें नफरत करना सिखाया गया था.
जामिया मिलिया इस्लामिया (2004-2014) में, मुझे पहली बार अपनेपन का एहसास हुआ. लेकिन 19 सितंबर, 2008 को, बाटला हाउस मुठभेड़ हुई. अचानक, हमारा विश्वविद्यालय मीडिया के लिए “आतंक की नर्सरी” बन गया. डर की वापसी हुई, लेकिन इस बार अस्पष्टता के साथ—क्या यह वास्तविक था? हम परिवीक्षा पर नागरिक थे. 2014 में, जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए, मैंने एक पत्रकार के रूप में शुरुआत की. मैंने धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के शोकपत्र लेखक के रूप में काम किया. मेरी नोटबुक्स की लेखन शैली खून और पहचान के बारे में थी.
दादरी (2015): मोहम्मद अखलाक को पीट-पीटकर मार डाला गया. राज्य की प्राथमिकता: आदमी नहीं, मांस की फोरेंसिक जांच.
अलवर (2017): डेयरी किसान पहलू खान को कानूनी कागजात होने के बावजूद लिंच किया गया. पीड़ित को मृत्यु में अपराधी बना दिया गया.
सड़कों पर लिंचिंग जारी रही, जबकि संसद में कानूनी घेराबंदी जारी थी. तीन तलाक को आपराधिक बनाना मुस्लिम पुरुषों को बदनाम करने की रणनीति जैसा लगा.
फिर आया अंतिम आघात: 9 नवंबर, 2019 को बाबरी मस्जिद टाइटल सूट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला. कोर्ट ने विध्वंस को “जघन्य उल्लंघन” माना, फिर भी ज़मीन उसी पक्ष को सौंप दी, जिसने यह अवैधता की थी. संदेश स्पष्ट था: न्याय पर शांति को प्राथमिकता दी गई. धर्मनिरपेक्ष भारत का सपना आधिकारिक तौर पर दफ़न हो गया.
इसके तुरंत बाद सीएए/एनआरसी आया, जिसने हमारे अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया. लेकिन इसी से शाहीन बाग का चमत्कार पैदा हुआ, जहां मुस्लिम महिलाओं ने संविधान को वापस जीत लिया. मगर यह आशा क्षणभंगुर थी. पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों (फरवरी 2020) ने 1992 का भयानक पुनर्मूल्यांकन किया, जहां पुलिस या तो अनुपस्थित थी या मिलीभगत में थी. बाद में, किसान विरोध सफल रहा, लेकिन शाहीन बाग की महिलाओं को आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत जेल भेज दिया गया. प्रतिरोध की कीमत अंतिम नाम पर निर्भर करती थी. 2021 में, मेरे पिता एक भ्रमित व्यक्ति के रूप में चल बसे, यह जानते हुए कि जिस भारत की उन्होंने सेवा की थी, वह अब अपरिचित हो चुका है.
बुलडोजर न्याय और अंतिम चरण
2022 में, कर्नाटक में हिजाब के कारण मुस्लिम लड़कियों के लिए शिक्षा के द्वार बंद कर दिए गए. फिर आया “बुलडोजर न्याय”, जहां सांप्रदायिक अशांति के बाद मुस्लिम घरों को बिना नोटिस के ढहा दिया गया. राज्य स्वयं भीड़ बन गया था. जनवरी 2024 में, राम मंदिर का अभिषेक हुआ, जिसने 1992 में शुरू हुए चक्र को बंद कर दिया. बाहर का शोर बहरा कर देने वाला था, लेकिन अंदर, यह गया की उस सर्द शाम की बस गूंज थी.
हाल ही में, वंदे भारत एक्सप्रेस में यात्रा करते हुए, मैंने देखा कि एक दाढ़ी वाले मुस्लिम सहयात्री को उसकी खोपड़ी टोपी के कारण एक महिला ने बार-बार पुलिस बुलाकर सत्यापित करवाया. मैंने हस्तक्षेप नहीं किया—मेरा ‘विवेक’ डर से दब गया था. जब मैंने उस आदमी से पूछा कि क्या उसे मदद चाहिए, तो वह मुस्कराया और गुस्से से भरे, लेकिन जबरदस्त समर्पण भाव से कहा: “हमारे लिए, ये चीजें सामान्य हैं.” वह अपने बैग के साथ भीड़ में चला गया, एक ऐसे गणराज्य की राजधानी में गायब हो गया जिसने उसे समानता का वादा किया था, और मुझे उस वादे के मलबे के साथ प्लेटफॉर्म पर खड़ा छोड़ गया.
बाबरी मस्जिद तोड़े गए मंदिर पर बनी थी, इस दावे का कोई सबूत नहीं
अयोध्या विवाद में एक बड़ा दावा यह किया गया था कि मुगल सम्राट बाबर के अधिकारियों ने एक मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था. रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े कई नेताओं ने कहा था कि उनका संघर्ष तब तक नहीं रुकेगा जब तक मध्यकाल में ‘तोड़कर बनाई गई सभी मस्जिदें’ वापस हिंदुओं को नहीं मिल जातीं. हिंदू राष्ट्रवाद की दृष्टि से मध्यकाल को ‘दमन का दौर’ माना जाता है, इसलिए मुग़ल प्रतीकों को हटाना उनके लिए औपनिवेशिक प्रतीकों को हटाने जैसा क़दम है. यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी नेता राम माधव ने बाबरी मस्जिद ढहाने की तुलना अंग्रेज़ी कालीन प्रतीकों को हटाने से की थी. 2019 में स्क्रोल में प्रकाशित हुए लेख में बताया है कि इस दावे की मूल समस्या यह है कि ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद नहीं है कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी.
हिंदुत्व समर्थक अक्सर 2003 की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) रिपोर्ट का हवाला देते हैं, जिसमें दावा किया गया था कि मस्जिद के नीचे एक मंदिर के अवशेष मिले हैं. लेकिन इस रिपोर्ट को दो पुरातत्वविदों सुप्रिया वर्मा और जया मेनन ने चुनौती दी थी. उनका कहना था कि रिपोर्ट में मंदिर का कोई ठोस प्रमाण नहीं है और एएसआई “पूर्वाग्रह” के साथ खुदाई कर रहा था. वर्मा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मस्जिद के नीचे वास्तव में पुराने मस्जिदों के अवशेष हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि एएसआई जिस संरचना को मंदिर बता रहा है, वह 12वीं सदी की थी, यानी बाबर के भारत आने से चार सदियां पहले. इन चार सौ वर्षों के बीच क्या हुआ, इसका कोई प्रमाण नहीं है. एएसआई ने यह भी नहीं दिखाया कि 12वीं सदी की उस संरचना को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी. फैसले में कोर्ट ने लिखा कि एएसआई रिपोर्ट अपने सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर नहीं देती: क्या मस्जिद बनाने के लिए मंदिर गिराया गया था? इसीलिए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी तरह मंदिर-ध्वंस का प्रमाण नहीं है, और ज़मीन का हक़ कानूनी सिद्धांतों और क़ब्ज़े के आधार पर तय किया गया, न कि इतिहास की व्याख्याओं पर.
हालांकि, कोर्ट ने मंदिर-ध्वंस का दावा ख़ारिज किया, लेकिन फैसले के बाद कई लोगों ने इसे ऐसे पेश किया जैसे अदालत ने इस दावे को “सही” मान लिया हो. के.के. मोहम्मद और कई समर्थकों ने कहा कि फैसले से “500 साल पुरानी गलती सुधरी”, जबकि कोर्ट ने ऐसा कोई ऐतिहासिक निष्कर्ष नहीं दिया. वहीं, विश्व हिंदू परिषद ने फैसले के तुरंत बाद कहा कि अब काशी और मथुरा पर भी आगे बढ़ा जाएगा. रामजन्मभूमि आंदोलन ने 30 साल पहले यह धारणा पूरे देश में फैला दी थी कि बाबरी मस्जिद एक तोड़े गए मंदिर पर बनी थी. सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस दावे को अस्वीकार किए जाने के बावजूद, आज भी बड़ी संख्या में लोग इसे सच मानते हैं.
अयोध्या फैसला: 6 साल बाद मस्जिद का नया डिज़ाइन तैयार, लेकिन निर्माण कार्य में अभी भी देरी
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 6 साल बाद भी प्रस्तावित मस्जिद का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है. ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, मस्जिद का एक नया डिज़ाइन फाइनल कर लिया गया है, और इसका स्ट्रक्चरल मैप (ढांचागत नक्शा) जल्द ही मंजूरी के लिए सौंपा जाएगा. हालांकि, निर्माण कार्य मार्च 2026 के बाद ही शुरू होने की उम्मीद है.
इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (आईआईसीएफ), जिसे बाबरी मस्जिद स्थल से 25 किमी दूर धन्नीपुर गांव में 5 एकड़ जमीन दी गई थी, ने बताया कि धन की कमी और डिज़ाइन में बदलाव के कारण देरी हुई है. फाउंडेशन के चेयरमैन ज़ुफर अहमद फ़ारूक़ी ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया, “अभी ज़मीन पर कुछ भी नहीं है. हमने चर्चा के बाद पुराना डिज़ाइन बदल दिया है. नए डिज़ाइन के आधार पर नक्शा तैयार किया जा रहा है, जिसे इस महीने के अंत तक अयोध्या विकास प्राधिकरण को सौंपा जाएगा.”
मस्जिद का नाम ‘मोहम्मद बिन अब्दुल्ला मस्जिद’ रखा जाएगा. 2021 में पेश किए गए पुराने डिज़ाइन में कांच का गुंबद था, जिसे ‘आधुनिक’ माना गया था और समुदाय ने इसे बहुत पसंद नहीं किया, जिससे चंदे में कमी आई. अब नया डिज़ाइन पारंपरिक शैली में है, जिसमें पांच मीनारें और पारंपरिक गुंबद होंगे. मस्जिद परिसर में एक अस्पताल, कम्युनिटी किचन, और इंडो-इस्लामिक कल्चरल रिसर्च सेंटर भी होगा.
एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 दिन पहले राम मंदिर निर्माण पूरा होने के प्रतीक के रूप में ध्वजारोहण किया, वहीं मस्जिद निर्माण के लिए फंड की समस्या बनी हुई है. राम मंदिर ट्रस्ट के नृपेंद्र मिश्रा ने बताया कि मंदिर को 3,000 करोड़ रुपये का चंदा मिला था, जबकि मस्जिद ट्रस्ट का कहना है कि नए डिज़ाइन के बाद फंड आ रहा है, लेकिन रफ़्तार धीमी है.
मुर्शिदाबाद में टीएमसी के निलंबित विधायक ने “बाबरी” की आधारशिला रखी
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने शनिवार को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में बाबरी मस्जिद की तर्ज पर बनने वाली एक मस्जिद की आधारशिला रखी. यह समारोह 1992 में एक हिंदुत्व भीड़ द्वारा 16वीं सदी की इस धार्मिक संरचना के हिंसक विध्वंस की बरसी पर आयोजित किया गया.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, कबीर, जिन्होंने इस महीने की शुरुआत में ही आधारशिला समारोह की घोषणा की थी, ने आगंतुक मौलवियों के साथ एक औपचारिक फ़ीता काटा. “पीटीआई” की रिपोर्ट के अनुसार, बेलडांगा स्थित कार्यक्रम स्थल पर सुबह से ही हजारों लोग जमा थे, जहां “नारा-ए-तकबीर, अल्लाहु अकबर” के नारे लगाए गए.
कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा इस कार्यक्रम को रोकने से इनकार करने के बाद, समारोह स्थल को उच्च सुरक्षा घेरे में बदल दिया गया, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग 12 के दोनों किनारों पर आरएएफ, जिला पुलिस और केंद्रीय बलों को तैनात किया गया था.
शुक्रवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस कार्यक्रम या मस्जिद के निर्माण में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए निर्देश दिया था कि समारोह के दौरान कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी.
कबीर, जो अतीत में पार्टी के आंतरिक मामलों सहित कई विवादास्पद बयानों के कारण सुर्खियों में रहे हैं, को गुरुवार को टीएमसी ने “सांप्रदायिक राजनीति” में शामिल होने के आरोप में निलंबित कर दिया था. निलंबित नेता ने बाद में विधायक पद से इस्तीफा देने और इस महीने के अंत में अपनी खुद की पार्टी लॉन्च करने के अपने निर्णय की घोषणा की है.
इंडिगो भसड़
अपनी ही रिसेप्शन में नहीं पहुंच पाया नवविवाहित जोड़ा, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मेहमानों से मिले
इंडिगो एयरलाइंस की उड़ानों में मची अफरातफरी के कारण एक नवविवाहित जोड़े को कर्नाटक के हुबली में आयोजित अपनी ही शादी के रिसेप्शन (प्रतिभोज) में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल होना पड़ा. भुवनेश्वर से उनकी फ्लाइट रद्द होने के कारण वे समय पर कार्यक्रम स्थल तक नहीं पहुंच सके.
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, भुवनेश्वर के रहने वाले संग्राम दास और हुबली की मेघा क्षीरसागर की शादी 23 नवंबर को भुवनेश्वर में हुई थी. दोनों बेंगलुरु में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम करते हैं. उनकी योजना 3 दिसंबर को दुल्हन के गृहनगर हुबली में रिसेप्शन करने की थी. इसके लिए उन्होंने 2 दिसंबर की शाम को भुवनेश्वर-बेंगलुरु-हुबली रूट की टिकट बुक की थी. लेकिन उनकी फ्लाइट घंटों लेट होती रही और अंततः अगली सुबह करीब 4 बजे रद्द कर दी गई.
जब हुबली में रिसेप्शन का वेन्यू सज चुका था और मेहमान आने शुरू हो गए थे, तब दूल्हा-दुल्हन भुवनेश्वर में ही फंसे रह गए. इस मुश्किल घड़ी में दुल्हन के पिता, अनिल क्षीरसागर ने तकनीक का सहारा लिया. अनिल ने बताया, “जब मुझे फ्लाइट रद्द होने का पता चला, तो मेरे दिमाग में विचार आया कि तकनीक का उपयोग करके उनकी उपस्थिति सुनिश्चित की जाए.”
कुछ ही घंटों के भीतर कार्यक्रम स्थल पर हाई-स्पीड इंटरनेट और एक बड़ी स्क्रीन का इंतजाम किया गया. अनिल ने जोड़े को वर्चुअली तैयार रहने को कहा. रिसेप्शन में आए मेहमान भी यह देखकर हैरान रह गए क्योंकि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे स्क्रीन के जरिए नवविवाहितों को आशीर्वाद देंगे.
संग्राम और मेघा ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित न हो पाने के लिए मेहमानों से माफी मांगी, जबकि परिवार के सदस्यों ने हुबली में मेहमानों की मेजबानी संभाली. रिपोर्ट के मुताबिक, यह जोड़ा शुक्रवार को दूसरी एयरलाइन के जरिए बेंगलुरु पहुंचा और वहां से सड़क मार्ग से हुबली जा रहा है.
दो दिन से हवाई अड्डों पर फंसे यात्री बोले, कोई मदद करने वाला नहीं; देश भर में अफ़रा-तफ़री
दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के तीनों टर्मिनलों पर शुक्रवार को आक्रोशित यात्रियों की भीड़ इंडिगो के काउंटरों पर उमड़ पड़ी, जब एयरलाइन ने शहर से अपनी सभी 235 घरेलू उड़ानें रद्द करने की घोषणा की. 64.1 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी वाली इस एयरलाइन ने शुक्रवार को देशभर में 1,000 से अधिक उड़ानें रद्द कर दीं, जिससे देश भर के हवाई अड्डों पर अराजकता फैल गई.
एस. ललिता के अनुसार, दोपहर तक, हवाई अड्डे की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाले केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) ने इंडिगो का टिकट रखने वाले किसी भी यात्री को टर्मिनल के अंदर प्रवेश देने से इनकार कर दिया.
एक सूत्र ने बताया, सीआईएसएफ ने स्थिति को संभालने के लिए अपने आरक्षित कर्मियों की पूरी टुकड़ी बुलाई है. सभी सीआईएसएफ पुलिसकर्मियों की छुट्टियां भी रद्द कर दी गई हैं.” कई कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कर्मियों के पास तैनात देखा गया. सूत्र ने आगे कहा कि एयरलाइन को यात्रियों के सवालों का जवाब देने के लिए अधिक काउंटर खोलने और हवाई अड्डों पर अधिक कर्मचारियों को तैनात करने के लिए कहा गया है.
टर्मिनल 1 से लगभग 150 उड़ानें, T2 से 50 और T3 से बाकी उड़ानें संचालित होती हैं. इंडिगो द्वारा एक दिन पहले 8 दिसंबर से उड़ान संचालन में कटौती की घोषणा के बावजूद, शुक्रवार को मध्यरात्रि 12 बजे से रात 11.59 बजे तक 24 घंटे की अवधि के लिए उड़ानें अचानक रद्द कर दी गईं. सबसे अधिक प्रभावित वे ट्रांजिट यात्री थे जो अन्य शहरों के रास्ते में दिल्ली पहुँचे थे लेकिन टर्मिनल के अंदर फंस गए थे.
पश्चिम बंगाल के मूल निवासी जहाँगीर शेख और 14 अन्य, जो जेद्दा, अबू धाबी और दुबई में कार्यरत हैं, गुरुवार दोपहर को यहाँ पहुँचे और देर शाम शुक्रवार तक भी इंडिगो कर्मचारियों से उड़ान के लिए गुहार लगाते रहे. शेख ने बताया, “हम हर दो साल में एक लंबी छुट्टी लेकर अपने परिवारों से मिलने आते हैं. दो दिन अब हवाई अड्डे पर ही बीत चुके हैं और इंडिगो का कहना है कि वे 8 दिसंबर को ही हमारी मदद कर पाएंगे. कल्पना कीजिए कि आप अपने परिवार के साथ होने के बजाय हवाई अड्डे की इमारत में बैठे हैं. इंडिगो में कोई भी यहाँ हमारी मदद नहीं कर रहा है,” उन्होंने आरोप लगाया.
पंजाब से विशाखापत्तनम में एक राष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लेने जा रहे कुछ अभिभावकों, शिक्षकों और 12 लड़कों का 22 सदस्यीय समूह शुक्रवार को लगभग 12 घंटे तक हवाई अड्डे पर फंसा रहा.
शिक्षिका निधि नंदवाना ने कहा, “हमें आज से शुरू होने वाले पाँच दिवसीय हॉकी टूर्नामेंट के लिए विशाखापत्तनम में होना था. हम सुबह 7 बजे दिल्ली पहुँचे और पता चला कि आज की सभी उड़ानें रद्द कर दी गई हैं. लड़के बहुत निराश हैं, क्योंकि वे पंजाब में सर्वश्रेष्ठ हैं और विभिन्न स्कूलों से चुने गए हैं. हमने आयोजकों से कल तक पहुँचने का समय देने की गुहार लगाई है. लेकिन कर्मचारी कह रहे हैं कि आज या कल कोई वैकल्पिक उड़ान की व्यवस्था नहीं की जा सकती.”
हवाई अड्डा के एक अधिकारी ने कहा, “यात्री परेशान और गुस्से में हैं. वे हताशा में एयरलाइन के खिलाफ़ नारेबाजी कर रहे हैं.” बड़ी संख्या में यात्री टिकट लेने की उम्मीद में एयर इंडिया, एयर इंडिया एक्सप्रेस और स्पाइसजेट के काउंटरों पर भी बेतहाशा भीड़ लगा रहे थे.
आने वाली उड़ानों के यात्री भी फंसे हुए थे क्योंकि वे अपना सामान नहीं ले पा रहे थे. अधिकारी ने कहा, “सैकड़ों यात्रियों का सामान फंसा हुआ है और वे जाने से पहले उसे एकत्र करना चाहते हैं. “ उन्होंने कहा कि रद्द हुई उड़ानों का पहले से चेक-इन किया हुआ सामान भी निकालना बाकी है.
पांच दिन बाद सरकार जागी; इंडिगो की उड़ानें रद्द होने के बाद रेलवे ने 84 विशेष ट्रेनों की घोषणा की
पांच दिन बाद रेलवे जागा है. इंडिगो द्वारा बड़े पैमाने पर उड़ानें रद्द किए जाने के कारण यात्री पांच दिन से परेशानियों का सामना कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से किसी प्रकार की ठोस मदद सामने नहीं आई थी. यात्रियों के हंगामे के बाद भारतीय रेलवे ने शनिवार को 84 विशेष ट्रेनों की घोषणा की है, जो 104 फेरे लगाएंगी.
रेलवे मंत्रालय के अनुसार, नई दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, पटना और हावड़ा जैसे प्रमुख केंद्रों में यात्री यातायात का आकलन करने के बाद इन ट्रेनों की व्यवस्था “ की गई है. अधिकारियों ने कहा कि मांग के आधार पर विशेष सेवाओं की संख्या बढ़ सकती है. रेलवे डिवीजनों ने फंसे हुए यात्रियों की सहायता के लिए हवाई अड्डों पर सूचना प्रसारित करना भी शुरू कर दिया है.
पश्चिम रेलवे विशेष किराए पर सात विशेष ट्रेनें चलाएगा, जो मुंबई सेंट्रल-नई दिल्ली, मुंबई सेंट्रल-भिवानी, मुंबई सेंट्रल-शकूर बस्ती, बांद्रा टर्मिनस-दुर्गापुरा, वलसाड-बिलासपुर, साबरमती-दिल्ली, और साबरमती-दिल्ली सराय रोहिल्ला जैसे मार्गों को कवर करेंगी. दक्षिण मध्य रेलवे ने आखिरी मिनट में यात्रा करने वालों की संख्या में वृद्धि को संभालने के लिए चार विशेष ट्रेनों की घोषणा की है.
मध्य और उत्तर रेलवे ने क्रमशः 14 और 10 सेवाओं की योजना बनाई है, जिसमें और अधिक पर विचार किया जा रहा है. “पीटीआई” के मुताबिक, पिछले कम से कम पाँच दिनों से, इंडिगो की उड़ान सेवाओं में काफी व्यवधान आया है, जिससे बड़ी संख्या में रद्दीकरण और देरी के कारण हजारों यात्रियों को कठिनाई हो रही है.
भारत सरकार का स्मार्टफोन की ‘लोकेशन ट्रैकिंग’ सख्त करने का इरादा, एपल, गूगल का विरोध
‘रायटर्स’ की एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में पत्रकारों आदित्य कालरा और मुंसिफ वेंगाटिल ने बताया है कि भारत सरकार टेलीकॉम कंपनियों के एक प्रस्ताव पर विचार कर रही है, जो स्मार्टफोन कंपनियों को ‘सैटेलाइट लोकेशन ट्रैकिंग’ हमेशा ऑन रखने के लिए मजबूर करेगा. दस्तावेजों और सूत्रों के अनुसार, एपल, गूगल और सैमसंग ने गोपनीयता (प्राइवेसी) चिंताओं के कारण इसका कड़ा विरोध किया है.
रिलायंस जियो और भारती एयरटेल का प्रतिनिधित्व करने वाले ‘सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ (COAI) ने प्रस्ताव दिया है कि हैंडसेट निर्माताओं को A-GPS तकनीक (जो सैटेलाइट और सेल्युलर डेटा का उपयोग करती है) को सक्रिय करना चाहिए. सरकार का मानना है कि जांच के दौरान टेलीकॉम कंपनियों से मिलने वाला सेल्युलर टॉवर डेटा सटीक नहीं होता, जबकि A-GPS से यूजर की लोकेशन एक मीटर के दायरे में पता चल सकती है.
एपल और गूगल का प्रतिनिधित्व करने वाले लॉबी ग्रुप आईसीईए ने जुलाई में सरकार को लिखे एक गोपनीय पत्र में कहा कि दुनिया में कहीं भी डिवाइस-लेवल पर ऐसी ट्रैकिंग का कोई उदाहरण नहीं है. उन्होंने चेतावनी दी कि यह फोन को एक “डेडिकेटेड सर्विलांस डिवाइस” (निगरानी उपकरण) बना देगा. उनका तर्क है कि इससे सैन्य अधिकारियों, जजों और पत्रकारों की सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है.
टेलीकॉम कंपनियां यह भी चाहती हैं कि जब लोकेशन ट्रैक हो रही हो, तो यूजर को दिखने वाले “कैरियर आपकी लोकेशन एक्सेस कर रहा है” जैसे पॉप-अप मैसेज को हटा दिया जाए, ताकि टारगेट को पता न चले कि उसे ट्रैक किया जा रहा है. फिलहाल, आईटी और गृह मंत्रालय इस प्रस्ताव का विश्लेषण कर रहे हैं और अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है.
नेपाल का नया 100 रुपये का नोट: भारत के साथ सीमा विवाद फिर गहराया
नेपाल ने एक बार फिर भारत के साथ कूटनीतिक विवाद को हवा दे दी है. निक्की एशिया के लिए दीपक अधिकारी की रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल के केंद्रीय बैंक (नेपाल राष्ट्र बैंक) ने 27 नवंबर को 100 रुपये का एक नया बैंकनोट जारी किया है, जिसमें एक अपडेटेड नक्शा है. इस नक्शे में कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा के विवादित क्षेत्रों को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया है.
दिलचस्प बात यह है कि ये नए नोट ‘चाइना बैंकनोट प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन’ द्वारा छापे गए हैं. नेपाल का दावा है कि ऐतिहासिक नक्शों और जनगणना के अनुसार यह 335 वर्ग किलोमीटर का इलाका उसका है, जबकि भारत इसे उत्तराखंड का हिस्सा मानता है. यह विवाद 2019 में तब बढ़ा था जब भारत ने अपना नया नक्शा जारी किया था, जिसके जवाब में 2020 में नेपाल ने संविधान संशोधन कर अपना नक्शा बदल दिया था.
हालांकि भारत ने इन नए नोटों पर अभी तक कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पहले नेपाल के इस कदम को “एकतरफा” बताया था और कहा था कि “नक्शा बदलने से ज़मीन पर हकीकत नहीं बदलती.”
विश्लेषकों का मानना है कि नेपाल में यह कदम राजनीतिक रूप से संवेदनशील समय पर उठाया गया है, जब वहां एक अंतरिम सरकार है और मार्च 2026 में चुनाव होने हैं. भू-राजनीतिक विश्लेषक सुधीर शर्मा का कहना है कि चूंकि नेपाल ने आधिकारिक रूप से नया नक्शा अपना लिया है, इसलिए सरकारी दस्तावेजों और मुद्रा में इसका आना अपरिहार्य था, भले ही इससे नई दिल्ली के साथ संबंधों में असहजता पैदा हो. भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, लेकिन पिछले एक दशक में दोनों देशों के संबंधों में काफी उतार-चढ़ाव आए हैं.
पाकिस्तान पर अमेरिकी रणनीति में बदलाव, ट्रम्प के दावों को लेकर कांग्रेस का मोदी पर तंज़
नई अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए, कांग्रेस ने शनिवार को कहा कि यह पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी दृष्टिकोण में एक उल्लेखनीय बदलाव को चिन्हित करता है. इसमें 2017 के डोनाल्ड ट्रम्प-युग के दस्तावेज़ की तरह स्पष्ट आलोचना से बचा गया है, जिसने खुले तौर पर इस्लामाबाद पर अमेरिकी भागीदारों को निशाना बनाने वाले आतंकवादियों का समर्थन करने का आरोप लगाया था.
“इंडिया मॉनिटर” की रिपोर्ट के अनुसार, विपक्षी पार्टी ने यह भी बताया कि दस्तावेज़ में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस दावे को दोहराया गया है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच “भयंकर संघर्ष” को सुलझा दिया था.
कांग्रेस के संचार प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि 33 पन्नों वाली राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति व्हाइट हाउस द्वारा अभी जारी की गई है. रमेश ने कहा, “दस्तावेज़ के परिचय में, राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने दावे को दोहराया है कि उन्होंने ‘भारत और पाकिस्तान के बीच भयंकर संघर्ष को सुलझा दिया है’. यही दावा पृष्ठ 8 पर दोहराया गया है. “
उन्होंने दावा किया कि 2025 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी दृष्टिकोण में एक उल्लेखनीय बदलाव को भी चिन्हित करती है. रमेश ने कहा, “यह स्पष्ट आलोचना से बचती है जो 2017 के ट्रम्प-युग के रणनीति दस्तावेज़ की विशेषता थी, जिसने खुले तौर पर पाकिस्तान पर अमेरिकी भागीदारों को निशाना बनाने वाले आतंकवादियों का समर्थन करने का आरोप लगाया था, मजबूत आतंकवाद विरोधी कार्रवाई की मांग की थी, और इस्लामाबाद पर अपने परमाणु शस्त्रागार के जिम्मेदार प्रबंधन का प्रदर्शन करने का दबाव डाला था. नई रणनीति में ऐसे किसी भी संदर्भ को हटा दिया गया है.”
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए हिंदी में कहा, “क्या से क्या हो गया, बेवफ़ा तेरी दोस्ती में,” यह देव आनंद अभिनीत फिल्म ‘गाइड’ (1965) के एक लोकप्रिय गाने पर आधारित है.
कांग्रेस महासचिव ने दस्तावेज़ के स्क्रीनशॉट भी साझा किए जहां मई में भारत-पाकिस्तान संघर्ष को रोकने के ट्रम्प के दावों का उल्लेख किया गया है. रमेश ने दस्तावेज़ के लिए व्हाइट हाउस की वेबसाइट का लिंक भी साझा किया. ट्रम्प प्रशासन द्वारा देर रात गुरुवार को जारी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में दक्षिण चीन सागर में सुरक्षा चुनौती से निपटने के लिए भारत के साथ मजबूत सहयोग पर जोर दिया गया है.
ट्रम्प प्रशासन ने कहा है कि अमेरिका को भारत के साथ वाणिज्यिक और अन्य संबंधों में सुधार जारी रखना चाहिए, ताकि नई दिल्ली को हिंद-प्रशांत सुरक्षा में योगदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके, जिसमें क्वाड समूह के भीतर निरंतर सहयोग शामिल है. दस्तावेज़ में उन आठ युद्धों का भी उल्लेख है, जिन्हें ट्रम्प ने सुलझाने का दावा किया है, जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच मई का संघर्ष भी शामिल है.
दस्तावेज़ में कहा गया है, “राष्ट्रपति ट्रम्प ने शांति के राष्ट्रपति के रूप में अपनी विरासत को मजबूत किया है. अपने पहले कार्यकाल के दौरान ऐतिहासिक अब्राहम समझौते के साथ हासिल की गई उल्लेखनीय सफलता के अलावा, राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने दूसरे कार्यकाल के सिर्फ़ आठ महीनों के दौरान दुनिया भर में आठ संघर्षों में अभूतपूर्व शांति हासिल करने के लिए अपनी ‘डीलमेकिंग’ क्षमता का लाभ उठाया है.”
दस्तावेज़ में उल्लेख है कि उन्होंने “कंबोडिया और थाईलैंड, कोसोवो और सर्बिया, डीआरसी और रवांडा, पाकिस्तान और भारत, इज़राइल और ईरान, मिस्र और इथियोपिया, आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच शांति के लिए बातचीत की, और गाजा में युद्ध समाप्त किया, जिसमें सभी जीवित बंधकों को उनके परिवारों को लौटा दिया गया.”
इस सप्ताह की शुरुआत में, कांग्रेस ने भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित करने के ट्रम्प के बार-बार के दावों पर मोदी पर कटाक्ष किया था, यह कहते हुए कि “इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि मोदी-ट्रम्प ‘हग्लोमेसी’ (गले मिलने की कूटनीति) गहरे ठहराव में है.”
ट्रम्प ने बार-बार दावा किया है कि व्हाइट हाउस में अपने दूसरे कार्यकाल के पहले आठ-नौ महीनों के भीतर, उन्होंने भारत और पाकिस्तान, थाईलैंड और कंबोडिया, आर्मेनिया और अजरबैजान, कोसोवो और सर्बिया, इज़राइल और ईरान, मिस्र और इथियोपिया, और रवांडा और कांगो के बीच संघर्षों को सुलझाया है. उन्होंने इज़राइल-हमास संघर्ष को सुलझाने का श्रेय भी खुद को दिया है.
10 मई से, जब ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर घोषणा की कि वाशिंगटन की मध्यस्थता में लंबी बातचीत के बाद भारत और पाकिस्तान पूर्ण और तत्काल संघर्ष विराम पर सहमत हुए हैं, तब से उन्होंने 60 से अधिक बार यह दावा दोहराया है कि उन्होंने दोनों पड़ोसियों के बीच तनाव को सुलझाने में मदद की. नई दिल्ली ने लगातार किसी भी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप से इनकार किया है.
भारत ने 22 अप्रैल के पहलगाम हमले, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे, के प्रतिशोध में पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी बुनियादी ढांचे को निशाना बनाते हुए 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया था. चार दिनों के सीमा पार ड्रोन और मिसाइल हमलों के बाद भारत और पाकिस्तान 10 मई को संघर्ष समाप्त करने के लिए एक समझ पर पहुँचे थे.
उत्तराखंड में ‘पोषण आपातकाल’: लाखों बच्चे कुपोषण से प्रभावित, सबसे ज्यादा अल्मोड़ा में
उत्तराखंड के लगभग पांच लाख बच्चों पर किए गए एक हालिया अध्ययन ने एक गहन चिंताजनक ‘पोषण आपातकाल’ को उजागर किया है. यह व्यापक बाल कुपोषण राज्य की भविष्य की आर्थिक क्षमता के लिए खतरा पैदा कर रहा है. यह अध्ययन सभी 13 जिलों में 4.83 लाख बच्चों (0 से 5 वर्ष की आयु) के आँकड़ों की समीक्षा पर आधारित है, जो दर्शाता है कि राज्य के पोषण स्वास्थ्य में गंभीर गिरावट आई है.
डॉ. कीर्ति कुमारी, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, टिहरी गढ़वाल और “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” की ब्रांड एंबेसडर, द्वारा संकलित इन चिंताजनक निष्कर्षों में 15,514 आंगनवाड़ी केंद्रों के आंकड़ों के आधार पर चार ऐसे जिलों को चिन्हित किया गया है, जहां तत्काल, लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता है.
नरेंद्र सेठी की रिपोर्ट कहती है कि अल्मोड़ा जिला इस संकट के केंद्र के रूप में उभरा है. सबसे दूरस्थ हिमालयी क्षेत्रों में शामिल न होने के बावजूद, अल्मोड़ा में वेस्टिंग दर 5.34 प्रतिशत दर्ज की गई, जिससे 949 बच्चे प्रभावित हैं. इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि इसकी गंभीर तीव्र कुपोषण (सिवियर अक्यूट मैलन्यूट्रिशन-एसएएम)
दर 1.94 प्रतिशत है—जो राज्य के औसत (0.72 प्रतिशत) से लगभग दोगुनी है. डॉ. कीर्ति ने आग्रह किया, “जिला प्रशासन को तुरंत पोषण आपातकाल घोषित करना चाहिए.” उन्होंने कहा, “अल्मोड़ा और उत्तरकाशी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) की गंभीर सीमा रेखा को पार कर लिया है.”
अध्ययन में बड़े बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से जुड़ी एक छिपी हुई लागत पर भी प्रकाश डाला गया है. टिहरी गढ़वाल जिले में भी कुपोषण का महत्वपूर्ण स्तर दिखाई देता है, जहां 4.17 प्रतिशत बच्चे कमजोर (वेस्टेड) और 25.55 प्रतिशत बच्चे बौने या अविकसित (स्टंटेड) हैं. शोधकर्ताओं का सुझाव है कि यह टिहरी बांध के कारण हुए विस्थापन से जुड़ा हुआ है. डॉ. कीर्ति ने समझाया, “टिहरी गढ़वाल के बच्चे टिहरी बांध का अदृश्य बोझ उठा रहे हैं.”
विस्थापित परिवार उपजाऊ घाटियों से पथरीली, कम उपज वाली भूमि पर चले गए हैं और उन्होंने अपनी पारंपरिक आजीविका और सहायता नेटवर्क खो दिए हैं. एक विस्थापित निवासी, हरीश नेगी ने दुख व्यक्त करते हुए कहा, “हमारे पास दो एकड़ उपजाऊ भूमि थी. अब 0.5 एकड़ पथरीली जमीन है—हम अपने बच्चों को कैसे खिलाएंगे?”
पुनर्वास कॉलोनी की एक बुजुर्ग निवासी कमला बिष्ट ने जोड़ा, “बांध से पहले, हमें अपनी गायों से दूध, अपने खेतों से सब्ज़ियां मिलती थीं... अब हम पथरीली जमीन पर सब कुछ दोगुनी कीमत पर खरीदते हैं, जहां कुछ नहीं उगता. मेरे तीन पोते-पोतियां कुपोषित हैं. क्या यही विकास की कीमत है?”
इसके परिणाम स्वास्थ्य से कहीं आगे तक जाते हैं. विश्लेषण का अनुमान है कि बाल कुपोषण की लागत वर्तमान में उत्तराखंड को सालाना ₹7,000 करोड़ आ रही है, जो राज्य के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 2.5 प्रतिशत के बराबर है. डॉ. कीर्ति ने कहा, “कुपोषण की लागत उत्तराखंड के संपूर्ण स्वास्थ्य बजट (₹4,500 करोड़) से अधिक है.” “विलंब का प्रत्येक दिन राज्य को ₹19 करोड़ का नुकसान पहुंचाता है. यह पैसा बस खो जाता है, कहीं निवेश नहीं होता है.”
उत्तरकाशी भी उच्च मध्यम तीव्र कुपोषण (3.80 प्रतिशत) के साथ गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है, जबकि पिथौरागढ़ डबल्यूएचओ की सीमा रेखा के खतरनाक रूप से करीब है. विशेषज्ञों का कहना है कि तेजी से कार्रवाई की जानी चाहिए, क्योंकि दो साल की उम्र के बाद अपरिवर्तनीय क्षति होती है.
गौरतलब है कि भारत का वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) स्कोर दो दशक पहले के 38.9 से सुधर कर 2020 में 27.2 हो गया. 107 देशों में 94वें स्थान पर रहा भारत 2019 से 8 स्थान और 2018 से 9 स्थान ऊपर आया. देश ‘खतरे की घंटी’ श्रेणी से ‘गंभीर’ श्रेणी में आ गया है, जो भूख कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति का संकेत देता है.
बांग्लादेश धकेल दी गई गर्भवती मुस्लिम महिला भारत वापस लौटी, सुप्रीम कोर्ट ने दिया था दखल
इस साल की शुरुआत में अवैध अप्रवासी होने के संदेह में बांग्लादेश धकेल दी गई पश्चिम बंगाल की एक गर्भवती मुस्लिम महिला सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद शुक्रवार को भारत लौट आई.
अधिकारियों ने बताया कि 25 वर्षीय सुनाली खातून ने अपने आठ साल के बेटे के साथ मालदा जिले में मेहदीपुर सीमा चौकी के रास्ते भारत में फिर से प्रवेश किया. यह वापसी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) और बांग्लादेश बॉर्डर गार्ड (बीजीबी) के बीच एक फ्लैग मीटिंग के बाद हुई.
बीरभूम जिले की निवासी सुनाली, पति दानिश शेख, उनका बेटा, और एक अन्य महिला स्वीटी बीबी (32), अपने दो बच्चों (16 और छह वर्ष) के साथ, सभी को दिल्ली पुलिस ने राष्ट्रीय राजधानी की एक कॉलोनी से पकड़ा था और हिरासत में रखे जाने के लगभग एक सप्ताह बाद 26 जून को भारत-बांग्लादेश सीमा के पार धकेल दिया था। निर्वासन के समय, सुनाली गर्भवती थीं.
हालांकि, केंद्र सरकार ने शेष चार परिवार के सदस्यों की नागरिकता पर अभी भी विवाद खड़ा किया है, लेकिन वह “मानवीय आधार” पर सुनाली को वापस लाने पर सहमत हो गई. दानिश, स्वीटी बीबी और उनके बच्चे अभी भी बांग्लादेश में हैं.
“मकतूब मीडिया” के मुताबिक, सीमा पार करने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए, सुनाली खातून ने कहा, “मैं भारत लौटकर बहुत खुश हूं... मैं बस यही चाहती हूं कि मेरे पति को भी सुरक्षित वापस लाया जाए.”
दोनों परिवारों को 21 अगस्त को बांग्लादेश में पासपोर्ट अधिनियम और विदेशी अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था. उन्हें 1 दिसंबर को चापईनवाबगंज जिला अदालत से जमानत मिल गई थी और वे अदालत की अनुमति से सुनाली के एक रिश्तेदार फारुक शेख के घर पर रह रहे थे.
हरकारा डीप डाइव:श्रवण गर्ग
पुतिन की भारत यात्रा और बदलती वैश्विक राजनीति
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा ऐसे समय में हुई, जब यूक्रेन युद्ध, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव और भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव ने वैश्विक राजनीति को नए स्वरूप में ढालना शुरू कर दिया है. “हरकारा डीप डाइव” में वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग से निधीश त्यागी ने इस यात्रा के निहितार्थ पर बातचीत की. यह बातचीत भारत की वर्तमान विदेश नीति, नैतिक स्थिति और भविष्य की वैश्विक भूमिका को लेकर गंभीर सवाल खड़े करती है.
पुतिन के स्वागत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का असाधारण उत्साह सबसे ज़्यादा चर्चा का विषय रहा. एयरपोर्ट पर दिखी गर्मजोशी और तस्वीरों में दिखाई देती एकतरफा ‘गले पड़ने’ वाली मुद्रा को श्रवण गर्ग भारत की असुरक्षा और मजबूरी का प्रतीक बताते हैं. यह दृश्य 2019 के “हाउडी मोदी” और 2020 के “नमस्ते ट्रम्प” की याद दिलाता है, लेकिन आज की अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियाँ बिल्कुल अलग हैं. अब भारत को ऐसे साझेदारों के साथ खड़ा देखा जा रहा है जो युद्ध, दमन और हिंसा से जुड़े वैश्विक विवादों के केंद्र में हैं.
इसी दौरान संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव आया, जिसमें रूस से कहा गया कि वह यूक्रेन के वे 10,000–20,000 बच्चे वापस करे जिन्हें वहां से उठाकर ले जाया गया है. इस वोटिंग में भारत ने फिर हिस्सा नहीं लिया. 2022 से अब तक रूस के खिलाफ आए हर प्रस्ताव में भारत ने यही किया है, वह वोटिंग से दूर रहा है. इसकी व्याख्या अब वैश्विक स्तर पर तटस्थता नहीं, बल्कि रूस की ओर बढ़ते झुकाव के रूप में की जा रही है. उधर पुतिन ने दोहराया कि रूस भारत को तेल बेचना जारी रखेगा जबकि भारत सस्ते तेल को यूरोप में लाभ के साथ बेचता है. इससे दोनों देशों के बीच व्यापार 100 बिलियन डॉलर के लक्ष्य से भी पहले पहुँच सकता है.
अमेरिका और विशेषकर डोनाल्ड ट्रंप के साथ भारत के संबंध इस पृष्ठभूमि में ठंडे पड़ते नज़र आ रहे हैं. ट्रंप ने भारत पर टैरिफ बढ़ाकर यह संकेत दिया है कि वह भारत की रूस नीति से असहज हैं. श्रवण गर्ग के अनुसार, ट्रंप उन देशों के साथ सख़्ती दिखाते हैं जिन्हें वे कमज़ोर समझते हैं, और भारत आज उसी श्रेणी में आता दिख रहा है.
सितंबर 2025 की तियानजिन शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन से लेकर नवंबर की जोहानेसबर्ग G20 बैठक तक, और अब दिसंबर की यह यात्रा, तीन महीनों में मोदी-पुतिन की तीन मुलाकातें हो चुकी हैं. यह आवृत्ति बताती है कि भारत और रूस के संबंध एक नए चरण में प्रवेश कर चुके हैं, जहाँ पुतिन भारत को अपना स्थायी राजनयिक और राजनीतिक आश्रय मानते दिख रहे हैं. आईसीसी वारंट के चलते पुतिन कई देशों में नहीं जा सकते, इसलिए भारत उनके लिए सुरक्षित क्षेत्र बन गया है.
चीन भी इस नई राजनीति में एक महत्वपूर्ण तत्व है. रूस ने कहा है कि भारत के साथ उसके संबंधों में चीन बाधा नहीं बनेगा. वहीं चीन और फ्रांस के बीच नज़दीकियां बढ़ रही हैं, जबकि भारत और यूरोप के बीच यूक्रेन मुद्दे पर दूरी बढ़ती जा रही है. दुनिया दो हिस्सों में विभाजित हो रही है. एक धुरी अमेरिका, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया की; दूसरी धुरी रूस, चीन, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन की. भारत का झुकाव दूसरी धुरी की ओर बढ़ रहा है, और 2026 में भारत, ब्रिक्स का अध्यक्ष भी बनेगा.
आर्थिक मोर्चे पर तस्वीर चिंताजनक है. रूस-भारत व्यापार अब भी डॉलर में हो रहा है, रुपये में नहीं. इसके चलते डॉलर की प्रधानता बनी हुई है और रुपये के कमज़ोर होने से ईंधन, दवाइयों, इलेक्ट्रॉनिक्स, विदेश में पढ़ाई और यात्रा के ख़र्च में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र और निर्यातक भारी दबाव में हैं. विदेशी निवेश घटा है, करोड़पति देश छोड़ रहे हैं, और स्टार्टअप्स के लिए हालात कठिन होते जा रहे हैं.
भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि भी बदलती दिख रही है. दुनिया भारतीय विदेश नीति को अब उन सरकारों के साथ खड़े होने के रूप में देख रही है जिन पर युद्ध अपराध, मानवाधिकार उल्लंघन और नरसंहार के आरोप लगते हैं, पुतिन हो या नेतन्याहू या तालिबान. यह स्थिति गांधी की नैतिक राजनीति और भारत की पारंपरिक ‘अहिंसा-आधारित कूटनीति’ के विरुद्ध जाती है.
पुतिन की यात्रा के दौरान ही इंडिगो की 1000 उड़ानें रद्द होना भी सामाजिक और प्रशासनिक अव्यवस्था का प्रतीक बना. श्रवण गर्ग के शब्दों में, “देश का भविष्य एयरपोर्ट की तरह दिख रहा है,जहाँ कंट्रोल टावर गायब है. ”
अंत में यह यात्रा एक गहरे सवाल को सामने रखती है: भारत किस ओर खड़ा है और किस दिशा में धकेला जा रहा है? श्रवण गर्ग के अनुसार, भारत धीरे-धीरे एक नई, अनिश्चित विश्व-व्यवस्था में प्रवेश कर रहा है, जहाँ निर्णय संसद, जनता या संस्थाओं को भरोसे में लिए बिना लिए जा रहे हैं. यह स्थिति भारत की वैश्विक प्रासंगिकता, नैतिक नेतृत्व और घरेलू लोकतंत्र, तीनों को प्रभावित कर सकती है.
क्या बाज़ार का मौजूदा जश्न अगले संकट की आहट है? रघुराम राजन ने दी चेतावनी
भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर और शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिज़नेस के प्रोफेसर रघुराम राजन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर एक गंभीर और विश्लेषणात्मक चेतावनी जारी की है. UBS सेंटर फोरम फॉर इकोनॉमिक डायलॉग में बोलते हुए, राजन ने कहा कि भले ही वित्तीय बाज़ार नई ऊँचाइयों को छू रहे हैं, लेकिन सतह के नीचे गहरे ज़ोखिम (risks) पनप रहे हैं जो भविष्य में वित्तीय अस्थिरता का कारण बन सकते हैं.
राजन ने बाज़ारों की मौजूदा स्थिति की तुलना 2008 के वित्तीय संकट से पहले के दौर से की. उन्होंने बताया कि शेयर बाज़ार रिकॉर्ड स्तर पर हैं, क्रेडिट स्प्रेड्स कम हैं, और क्रिप्टो जैसी सट्टा संपत्तियों में भारी उछाल है. यह “सब चंगा सी” (ऑल इज़ वेल) वाला माहौल भ्रामक हो सकता है. उन्होंने 2008 के संकट से पहले के एक मशहूर कथन को याद किया: “जब तक संगीत चल रहा है, हमें नाचना होगा.” राजन के अनुसार, आज भी बाज़ार में संगीत चल रहा है और निवेशक नाच रहे हैं, लेकिन कोई नहीं जानता कि यह पार्टी कब ख़त्म होगी.
राजन ने अकादमिक शोध का हवाला देते हुए समझाया कि जब केंद्रीय बैंक ब्याज़ दरें बहुत कम रखते हैं और लिक्विडिटी बढ़ाते हैं, तो यह क्रेडिट (उधारी) बूम को जन्म देता है. यह एक ‘U-शेप’ पैटर्न बनाता है:
शुरुआत में दरों में कटौती से क्रेडिट बढ़ता है और सब अच्छा लगता है.
लेकिन यही सस्ता कर्ज़ सिस्टम में ज़ोखिम जमा करता है.
जब बाद में महंगाई रोकने के लिए दरें बढ़ाई जाती हैं, तो सिस्टम चरमरा जाता है और मंदी गहरी हो जाती है.
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी न आने का एक बड़ा कारण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और उससे जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर में हो रहा भारी निवेश है. हालाँकि, राजन ने चेतावनी दी कि केंद्रीय बैंकों द्वारा दी गई लिक्विडिटी (तरलता) अब एक “ड्रग” की तरह बन गई है. 2008 में फेडरल रिज़र्व के पास जो रिज़र्व 80 बिलियन डॉलर थे, वे अब 3 ट्रिलियन डॉलर हो चुके हैं. बैंकिंग सिस्टम ने इस अतिरिक्त पैसे का उपयोग कर लिया है, और अब इसे वापस खींचना मुश्किल हो गया है.
भू-राजनीति पर बात करते हुए राजन ने कहा कि दुनिया पहली बार दो असली ‘प्रभुत्वशाली’ —अमेरिका और चीन—के बीच सीधा मुकाबला देख रही है. शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ केवल एक सैन्य ताकत था और जापान केवल आर्थिक, लेकिन चीन अब आर्थिक और सैन्य दोनों मोर्चों पर अमेरिका को चुनौती दे रहा है. उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण ख़त्म नहीं हो रहा, बल्कि यह अब नियमों पर कम और राजनीतिक ताकत पर ज़्यादा आधारित हो गया है.
भारत के संदर्भ में, राजन ने कहा कि यद्यपि भारत तेज़ी से बढ़ रहा है और जल्द ही जापान और जर्मनी से आगे निकल सकता है, लेकिन अमेरिका और चीन के मुकाबले इसका आकार अभी भी छोटा है. उन्होंने कहा कि भारत को महाशक्तियों की श्रेणी में आने के लिए अगले कई वर्षों तक 6-8% की वृद्धि दर बनाए रखने की ज़रूरत है.
राजन ने अंत में अमेरिकी फेडरल रिज़र्व को आगाह किया. उन्होंने कहा कि अभी ब्याज़ दरों में कटौती करना जल्दबाज़ी हो सकती है. महंगाई पूरी तरह काबू में नहीं आई है और बाज़ार पहले से ही बहुत ‘गर्म’ हैं. ऐसे में दरों को कम करना आग में घी डालने जैसा हो सकता है, जिससे भविष्य में एक बड़ा वित्तीय संकट खड़ा हो सकता है.
सुशांत सिंह: 2025 यानी वह साल, जब भारत को पता चला कि दुनिया उसके बिना भी चल सकती है
सुशांत सिंह का मॉर्निंग कॉन्टेस्ट में यह लेख 2025 को भारतीय विदेश नीति के लिए एक “बेहद खराब” साल बताता है. यह साल उन भ्रमों के टूटने का गवाह बना जिन पर पिछले एक दशक से विदेश नीति चल रही थी.
फरवरी में पीएम मोदी ने व्हाइट हाउस में बड़े जोश के साथ ‘मेक इंडिया ग्रेट अगेन’ (MIGA) की बात की थी. लेकिन आठ महीने बाद हालात ऐसे हो गए कि मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का सामना करने से भी कतराने लगे. वारन बफे की कहावत यहाँ फिट बैठती है कि “जब लहरें वापस जाती हैं, तभी पता चलता है कि कौन बिना कपड़ों के तैर रहा था.” 2025 में भारत के साथ यही हुआ.
भारत की लाचारी तब और दिखी जब पुतिन की यात्रा से ठीक पहले फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन के राजदूतों ने एक भारतीय अखबार में रूस के खिलाफ तीखा लेख लिखा. सबसे बड़ा झटका अमेरिका से आया जब ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ (शुल्क) लगा दिया, जो चीन पर लगाए गए टैरिफ से भी ज़्यादा था. जिस भारत को चीन का विकल्प बताया जा रहा था, उसे अमेरिका ने “डिस्पेंसेबल” (जिसके बिना काम चल जाए) मान लिया. यह साफ हो गया कि भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” अब “रणनीतिक अप्रासंगिकता” बन चुकी है.
सरकार को लगता था कि नेताओं के साथ व्यक्तिगत दोस्ती और रैलियां ही कूटनीति है, लेकिन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने इस भ्रम को तोड़ दिया. सैन्य कार्रवाई के बाद भारत दुनिया में अलग-थलग पड़ गया. ट्रंप ने सीज़फायर (युद्धविराम) का श्रेय लिया और भारत केवल सफाई देता रह गया. मोदी ने ट्रंप के गुस्से को संभालने के बजाय उनसे मिलना ही टाल दिया, जो विदेश नीति नहीं हो सकती.
चीन के मामले में हालात और भी खराब रहे. अगस्त में मोदी के चीन दौरे से साफ हो गया कि समझौते की ज़रूरत बीजिंग को नहीं, बल्कि दिल्ली को थी. भारत ने सीमा विवाद पर चीन की “अर्ली हार्वेस्ट” शर्तों को मान लिया, जो 2005 के समझौतों का उल्लंघन है. चीन ने बिना कुछ खोए रणनीतिक बढ़त हासिल कर ली. साथ ही, चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 99.2 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, जो हमारी निर्भरता को दिखाता है.
पड़ोसी देशों में भी भारत की पकड़ कमज़ोर हुई है. बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव में सरकारें बदलीं और भारत विरोधी भावनाएं बढ़ीं. यूरोप के साथ भी ट्रेड डील किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी क्योंकि भारत के पास मोलभाव करने की ताकत नहीं थी.
लेखक अंत में कहते हैं कि इन विफलताओं के लिए किसी की जवाबदेही तय नहीं की गई. आम नागरिकों और पत्रकारों को तो छोटे-मोटे अपराधों के लिए भी सजा मिलती है, लेकिन विदेश नीति की इतनी बड़ी विफलता पर किसी मंत्री या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) का इस्तीफा नहीं हुआ. यह साल यह साबित कर गया कि भारत की विदेश नीति हकीकत पर नहीं, बल्कि भ्रम पर टिकी थी.
कोयला घटाने में धीमी प्रगति, जलवायु रैंकिंग में भारत 13 स्थान फिसला
नवीकरणीय ऊर्जा में तेज़ बढ़ोतरी के बावजूद भारत इस साल क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स (COP30, ब्राज़ील 2025) में 13 स्थान गिरकर 23वें स्थान पर आ गया है. रिपोर्ट के अनुसार, इसकी सबसे बड़ी वजह कोयले का तेज़ी से ख़त्म न होना है. भारत के सामने दुविधा यह है कि कोयला बंद करने से कई राज्यों में सस्ती बिजली और लाखों नौकरियों पर असर पड़ेगा, लेकिन इसे जारी रखने से जलवायु परिवर्तन, गर्मी, प्रदूषण और स्वास्थ्य जोखिम और बढ़ेंगे.
द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में कुल ऊर्जा उपयोग का आधे से ज़्यादा हिस्सा अब भी कोयले पर निर्भर है, जबकि नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता 2021 से 2025 के बीच दोगुनी हो गई है. कुल स्थापित बिजली क्षमता में रिन्यूएबल्स की हिस्सेदारी अब आधी है, लेकिन 2024 में वास्तविक बिजली उत्पादन का 75% हिस्सा कोयले से आया है. दूसरी ओर, भारत घरेलू कोयला उत्पादन भी बढ़ा रहा है.
इसके विपरीत, चिली ने 2016 से 2024 के बीच अपनी कोयला आधारित बिजली को 43.6% से घटाकर 17.5% कर दिया है. आज चिली की बिजली का 60% से ज़्यादा हिस्सा सोलर और पवन जैसे नवीकरणीय स्रोतों से आता है। चिली ने यह परिवर्तन कार्बन टैक्स लगाने, कोयला संयंत्रों पर कड़े उत्सर्जन नियम लागू करने, नवीकरणीय ऊर्जा की प्रतिस्पर्धी नीलामी कराने और 2040 तक कोयला पूरी तरह बंद करने के वादे के ज़रिए हासिल किया. हालाँकि चिली का कोयले पर निर्भरता भारत के मुक़ाबले पहले से ही काफी कम थी, इसलिए उसका बदलाव आसान था.
विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत के लिए कोयले का धीरे-धीरे ख़त्म होना एक “नो रिग्रेट्स पॉलिसी” है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के चलते 2100 तक भारत की जीडीपी 3% से 10% तक घट सकती है. साथ ही, एक अध्ययन में बताया गया है कि 1 गीगावॉट अतिरिक्त कोयला क्षमता बढ़ने से आसपास के इलाकों में शिशु मृत्यु दर 14% बढ़ जाती है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत को अब स्पष्ट रूप से डीकार्बोनाइजेशन पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है.
इसमें सबसे पुराने और प्रदूषक कोयला संयंत्रों को बंद करना, नए संयंत्रों को मंज़ूरी न देना और कोयले के उत्पादन को फर्म रिन्यूएबल ऊर्जा और स्टोरेज सिस्टम से बदलना शामिल है. TERI ने सुझाव दिया है कि भारत चाहे तो 2050 तक कोयला बिजली क्षेत्र को पूरी तरह समाप्त कर सकता है.
साथ ही, बाज़ार सुधारों की भी ज़रूरत है: जैसे कार्बन प्राइसिंग, कोयला सब्सिडी हटाना और ऐसे नियम बनाना जो नवीकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता दें. चिली के अनुभव के आधार पर, भारत को कोयला क्षेत्रों के लिए कामगारों को नए कौशल देने और वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध कराने पर भी काम करना होगा. इसके लिए एक विशेष “ग्रीन एनर्जी ट्रांज़िशन इंडिया फंड” की ज़रूरत बताई गई है.
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत कोयले से बाहर निकलने की योजना को राजनीतिक प्राथमिकता बनाए बिना जलवायु लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकता. नवीकरणीय ऊर्जा में हुई प्रगति महत्वपूर्ण है, लेकिन जब तक कोयले को व्यवस्थित रूप से कम करने की ठोस योजना नहीं बनेगी, भारत की जलवायु महत्वाकांक्षाएँ अधूरी रहेंगी.
भारत में साइबर क्राइम के मामलों में 5 गुना बढ़ोतरी, ‘डिजिटल अरेस्ट’ और ऑनलाइन धोखाधड़ी का कहर
भारत में जैसे-जैसे मोबाइल फोन और इंटरनेट की पहुंच बढ़ रही है, वैसे-वैसे साइबर क्राइम की शिकायतों में भी भारी इजाफा हो रहा है. इंडिया स्पेंड में विजय जाधव द्वारा सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2021 के बाद से साइबर क्राइम की शिकायतों में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है. राज्यसभा में साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, गृह मंत्रालय के ‘नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल’ (एनसीआरपी) पर दर्ज मामले 2021 में 4.52 लाख थे, जो 2024 तक बढ़कर 22.7 लाख (2.27 मिलियन) हो गए.
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के आंकड़े बताते हैं कि 1 लाख रुपये और उससे अधिक की ऑनलाइन पेमेंट धोखाधड़ी के मामले भी तेज़ी से बढ़े हैं. 2023-24 में ऐसे 29,082 मामले सामने आए, जिनमें 1,457 करोड़ रुपये की ठगी हुई. इसके अलावा, ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसे नए तरह के स्कैम ने भी लोगों को अपना शिकार बनाया है. 2024 में डिजिटल अरेस्ट के 1.23 लाख से ज़्यादा मामले सामने आए हैं.
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2018 से 2023 के बीच साइबर क्राइम के दर्ज मामलों की संख्या तीन गुना से ज़्यादा हो गई है. हाल ही में सरकार ने मोबाइल फोन को ट्रैक करने के लिए ‘संचार साथी’ ऐप और सिम बाइंडिंग जैसे कदम उठाए हैं, हालांकि निजता की चिंताओं के बाद ऐप का इस्तेमाल स्वैच्छिक कर दिया गया.
पुणे के साइबर कानून विशेषज्ञ वैभव सालुंखे ने ‘इंडिया स्पेंड’ को बताया, “अगर कोई ऑनलाइन धोखाधड़ी होती है, तो सबसे पहला कदम तुरंत साइबर पोर्टल पर शिकायत दर्ज करना होना चाहिए. इसके बाद बैंक और संबंधित पेमेंट ऐप को सूचित करना चाहिए.” हालांकि, रिकवरी की रफ्तार बहुत धीमी है. एनसीआरपी पोर्टल के मुताबिक, अब तक 3.8 मिलियन शिकायतों में 36,448 करोड़ रुपये के नुकसान की रिपोर्ट हुई है, लेकिन पीड़ितों को केवल 60.52 करोड़ रुपये ही वापस मिल पाए हैं.
डिजिटल अरेस्ट स्कैम में ठग पुलिस या अधिकारी बनकर लोगों को डराते हैं और वीडियो कॉल पर ‘नज़रबंद’ रखते हैं. इस पर साइबर एक्सपर्ट जयेश भांडेकर का कहना है, “यह समझना ज़रूरी है कि भारतीय कानून में ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसा कोई प्रावधान नहीं है. हर गिरफ्तारी के लिए वारंट और कानूनी प्रक्रिया का पालन ज़रूरी होता है.” अध्ययन बताते हैं कि डिजिटल साक्षरता की कमी और मनोवैज्ञानिक डर का फायदा उठाकर ठग लोगों की गाढ़ी कमाई लूट रहे हैं.
चीन के ‘नरसंहार’ से बचकर भागे थे तीन उइगर भाई, भारत की जेल में बीते 12 साल
साल 2013 में चीन के शिनजियांग प्रांत में मुसलमानों पर हो रहे जुल्मों से बचने के लिए तीन उइगर भाई—आदिल, अब्दुल खालिक और सलामू थुरसुन—भाग निकले थे. उन्हें लगा था कि वे सुरक्षित जगह जा रहे हैं, लेकिन लद्दाख सीमा पार करते ही उन्हें भारतीय सेना ने पकड़ लिया. द गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक, अवैध रूप से सीमा पार करने के आरोप में उन्हें 18 महीने की सज़ा सुनाई गई थी, लेकिन 12 साल बीत जाने के बाद भी वे भारत की जेल में बंद हैं.
जब इन भाइयों को गिरफ्तार किया गया, तो उन्होंने बताया कि शिनजियांग में चीनी अधिकारियों ने उनके रिश्तेदारों को हिरासत केंद्रों में डाल दिया था, जहाँ उइगर मुसलमानों को मस्जिद जाने या हिजाब पहनने जैसी बातों पर प्रताड़ित किया जाता है. चीन इसे ‘व्यावसायिक प्रशिक्षण’ कहता है, जबकि अमेरिका समेत कई देश इसे ‘नरसंहार’ मानते हैं.
इन भाइयों की कहानी एक कानूनी और नौकरशाही दुःस्वप्न बन गई है. उन्हें स्थानीय भाषा नहीं आती थी, इसलिए वे अपनी बात नहीं रख पाए. एक साल बाद, जेल में ही भाषा सीखने के बाद वे जज को जवाब दे सके. 18 महीने की सज़ा पूरी होने के बाद उन्हें रिहा किया जाना चाहिए था, लेकिन अधिकारियों ने ‘पब्लिक सेफ्टी एक्ट’ (पीएसए) के तहत उन्हें हिरासत में रखना जारी रखा. यह कानून किसी को बिना मुकदम़े के अनिश्चित काल तक हिरासत में रखने की अनुमति देता है.
फिलहाल ये तीनों भाई हरियाणा की करनाल जेल में बंद हैं और उन्हें अलग-अलग बैरकों में रखा गया है. उनके वकील मुहम्मद शफी लास्सू, जो बिना किसी फीस के उनका केस लड़ रहे हैं, कहते हैं, “ये लोग अपराधी या आतंकवादी नहीं हैं. ये चीन की क्रूरता के शिकार हैं और बस अपनी जान बचाना चाहते थे. सरकार का नैतिक दायित्व है कि उनके साथ न्याय करे.”
वकील शफी बताते हैं कि जेल के खराब खाने और भारत की गर्मी के कारण दोनों छोटे भाइयों की तबीयत बिगड़ गई है. जेल में रहते हुए उन्होंने हिंदी और अंग्रेज़ी समेत चार भाषाएं सीख ली हैं. सबसे बड़ा भाई अक्सर अंग्रेज़ी में बात करने की कोशिश करता है. पूर्व सरकारी अधिकारी लतीफ यू ज़मान देवा का मानना है कि इन लोगों को जेल में रखना कानून का उल्लंघन है क्योंकि ये शरणार्थी हैं, न कि कोई राष्ट्र-विरोधी तत्व. वकील शफी का कहना है कि वे इनकी रिहाई के लिए लड़ते रहेंगे ताकि इन्हें किसी ऐसे देश में भेजा जा सके जो इन्हें शरण दे सके.
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