07/01/2025: अडानी बनाम एक्टिविस्ट, नक्सल हमले में 9 मरे, बस्तर मर्डर में ठेकेदार धरा गया, पीके जेल जाके छूटे, गंभीर चुनौती, डेलरिम्पल क्यों गुस्से में, कानून के हाथ पंहुचते कार्टूनिस्ट की उंगलियों तक
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
‘कानून तोड़़ते’ कार्टून पर पुलिस हरकत में: कई कार्टून देख कर कुछ लोग नहीं हंसते. जैसे कार्टूनिस्ट मंजुल के इस काम पर मुंबई पुलिस को लगा कानून तोड़ा जा रहा है. हालांकि यह समझ पाना मुश्किल है इतने मासूम कार्टून में ऐसा आपत्तिजनक क्या है? मंजुल ने कहा है कि उन्हें शुक्रवार को एक्स (पूर्व में ट्विटर) से एक ईमेल मिला, जिसमें उन्हें सूचित किया गया कि मुंबई पुलिस ने दावा किया है कि उनके एक कार्टून ने कानून का उल्लंघन किया है. संसद में अंबेडकर पर अमित शाह की टिप्पणी पर विवाद के बीच बनाए गए कार्टून को एक्स ने अभी तक पुलिस के अनुरोध पर कार्रवाई नहीं की है, इसलिए वह अभी भी प्लेटफॉर्म पर मौजूद है.
अडानी के खिलाफ अड़ा हुआ एक्टिविस्ट
सोमवार को पत्रकार परनजाय गुहा ठाकुरता ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया में अडानी की कोयला खदानों के खिलाफ चल रहे अदालती मामले के बारे में बताया गया है. इसमें बेन पेनिंग्स से बातचीत है. पेनिंग्स एक एक्टिविस्ट हैं, जिनके खिलाफ अडानी ने दस्तावेज चुराने का आरोप लगाया, अदालत से पेनिंग्स के घर की तलाशी की इज़ाजत मांगी, पेनिंग्स और उनके परिवार पर प्राइवेट जासूस लगाए. जासूसों के काम में पेनिंग्स की नौ साल की बेटी को स्कूल ले जाते समय तस्वीरें लेना भी शामिल था. अदालत ने अडानी की तरफ से दायर याचिका को ‘भ्रमित और शर्मनाक’ बताया. ठाकुरता की इस फिल्म में बताया गया है कि कैसे अडानी अपनी ऑस्ट्रेलिया की खदान से कोयला झारखंड लेकर आते हैं और वहां से बिजली बनाकर बांग्लादेश को बेच रहे हैं. ये वही सौदा है, जो शेख हसीना के ढाका से जान बचाकर भागने के बाद से खटाई में पड़ता बताया जा रहा है.
छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में 9 की मौत
सोमवार को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में नक्सलियों ने सुरक्षा जवानों को लेकर जा रहे एक वाहन को ब्लास्ट कर उड़ा दिया, जिससे दंतेवाड़ा डीआरजी के 8 जवान और एक ड्राइवर समेत कुल 9 लोग मारे गए. बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि संयुक्त ऑपरेशन पार्टी सोमवार को बीजापुर से वापस लौट रही थी. दोपहर करीब 2 बजे बीजापुर मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर कुतरु इलाके में नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट किया. धमाका इतना जोर का था कि सड़क पर लगभग 10 फुट गहरा गड्ढा हो गया और वाहन के परखच्चे उड़ गए. वाहन के कुछ हिस्से 30 फुट दूर एक पेड़ पर 25 फीट की ऊंचाई पर लटके मिले. सूत्रों ने बताया कि कुतरु इलाका अबूझमाड़ के पास है, जहां दो दिन पहले शनिवार को सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में चार माओवादियों को मार गिराया था.
मुकेश चंद्राकर की हत्या: मुख्य आरोपी हैदराबाद से गिरफ्तार
बस्तर के पत्रकार और यूट्यूबर मुकेश चंद्राकर की हत्या के मामले में शामिल मुख्य संदिग्ध सुरेश चंद्राकर को छत्तीसगढ़ के बीजापुर पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने रविवार (5 जनवरी) रात हैदराबाद में गिरफ्तार कर लिया. बस्तर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सुरेश के भाई रितेश चंद्राकर, दिनेश चंद्राकर, और एक अन्य महेंद्र को शनिवार (4 जनवरी) को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है. अधिकारी ने कहा कि रितेश को रायपुर में गिरफ्तार किया गया, जबकि दिनेश और महेंद्र को बीजापुर में हिरासत में लिया गया. उन्होंने यह भी बताया कि हैदराबाद में और चीजें पता की जा रही हैं. इस बीच पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि मुकेश की बेरहमी से हत्या की गई थी. उनके सिर पर चोट के 15 निशान मिले हैं. लीवर के चार टुकड़े, गर्दन टूटी हुई, हार्ट फटा हुआ और पांच पसलियां टूटी थीं. मुकेश चंद्राकार के शव का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने कहा कि अपने 12 साल के करियर में पहला केस देखा, जिसमें इतनी बेरहमी से किसी को मारा गया हो.
द वायर हिंदी ने एक साथी के साथ मुकेश की लिखी एक रिपोर्ट को दुबारा छापा है, जिसमें बस्तर के पत्रकारों के साथ नेताओं, सरकार और पुलिस की धौंस पट्टी, हिंसा और अपराधों का लगातार शिकार बनना पड़ता रहा है.
डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन, प्रेस एसोसिएशन, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, चेन्नई प्रेस क्लब समेत देश की तमाम पत्रकार संगठनों ने शनिवार को छत्तीसगढ़ में स्वतंत्र पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की निंदा की और मांग की कि राज्य सरकार मामले की गहन जांच करे. सभी ने भारत में पत्रकारों पर बढ़ते खतरों पर चिंता जताई और कहा कि हाल के वर्षों में प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक पर भारत की रैंकिंग में तेजी से गिरावट आई है. इस संगठनों ने मांग की कि देशभर में पत्रकारों की सरकार सुरक्षा सुनिश्चित करे.
‘कुछ होगा तो नहीं ना?’
बस्तर पर लम्बे समय तक रिपोर्टिंग करने वाले आशुतोष भारद्वाज ने मुकेश पर सोमवार के इंडियन एक्सप्रेस में एक लम्बा लेख लिखा है. आशुतोष यहां बता रहे हैं कि बस्तर जैसे कॉन्फ्लिक्ट ज़ोन में स्थानीय स्तर पर रिपोर्टिंग करना कितना पेचीदा और ख़तरों से भरा है. आशुतोष लिखते हैं,
“सहयात्री के रूप में, हमने बस्तर के जंगलों में अपने पहले - और सबसे स्थायी - पत्रकारिता के सबक सीखे. फिर मैंने द इंडियन एक्सप्रेस के साथ काम किया, जिस अखबार ने मुझे मध्य भारत से यात्रा करने, रिपोर्ट करने और लिखने का एक महत्वपूर्ण कार्य सौंपा था. मेरे पास 'राष्ट्रीय मीडिया' का एक शानदार कुशन था; वह उन दैनिक जोखिमों के सामने उजागर था जिनसे मैं काफी हद तक अछूता था.
उनके अपने जीवन के अनुभवों ने पुलिस-माओवादी संघर्ष और दंडकारण्य में आदिवासी जीवन की उनकी समझ में बहुत योगदान दिया. उनका जन्म नक्सल विद्रोह के शुरुआती वर्षों के दौरान बीजापुर के बासागुड़ा गांव में हुआ था. उन्होंने अपने पिता को जल्दी खो दिया और बाद में सलवा जुडूम हिंसा में अपने गांव से उखड़ गए. उनकी मां, जो एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थीं, परिवार को अवापल्ली में एक अन्य शरणार्थी शिविर में जाने के लिए मजबूर होने से पहले बासागुड़ा शरणार्थी शिविर में चली गईं. एक दशक बाद, उन्होंने अपनी मां को कैंसर से खो दिया.
अप्रैल 2021 में, उन्होंने और कुछ साथी पत्रकारों, जिनमें गणेश मिश्रा नामक एक अन्य असाधारण रिपोर्टर शामिल थे, ने माओवादियों से सीआरपीएफ की कोबरा इकाई के एक कमांडो को रिहा कराया. जैसे ही अपहरण सुर्खियों में आया, देश के कुलीन अर्धसैनिक बल असहाय रहे, क्योंकि युवा पत्रकारों का एक समूह खुशी में जंगल से बाहर निकला. आज तक, मुकेश के X हैंडल पर कुछ बाइकर्स की एक पिन की गई ट्वीट है जो जश्न में आ रहे हैं, जिसमें वह आगे से नेतृत्व कर रहे हैं और रिहा किए गए कमांडो पीछे बैठे हैं.
एक संघर्ष क्षेत्र से रिपोर्टिंग हमेशा जोखिमों से भरी होती है; बस्तर में, इसमें एक और दुखद घटक जुड़ जाता है. क्षेत्र में राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय मीडिया या शिक्षा जगत में कोई प्रतिनिधि नहीं है. उदाहरण के लिए, कश्मीर के कई प्रतिष्ठित मीडिया हाउसों और शैक्षणिक संस्थानों के साथ अपने मध्यस्थ हैं. बिल्कुल विपरीत, बस्तर की आवाज राज्य की राजधानी रायपुर में भी नहीं है. उनकी कहानियां लिखने के लिए कोई नहीं है, सिवाय कुछ कार्यकर्ताओं या पत्रकारों के, जिन्होंने पहले इस क्षेत्र में काम किया था, जंगल में अपनी भावनात्मक और बौद्धिक ऊर्जा लगाई थी, लेकिन अब अपने उस घर को छोड़ने के अपराधबोध के साथ जी रहे हैं जिसे वे कभी अपना एकमात्र वतन मानते थे.
..पिछले अगस्त में, मुकेश और सुकमा के पत्रकार राजा राठौर ने द वायर हिंदी के लिए एक समाचार कहानी सह-लिखी थी, जिसमें चार बस्तर के पत्रकारों को अवैध खनन पर रिपोर्टिंग करने के बाद एक स्पष्ट रूप से झूठे मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें कथित तौर पर भाजपा नेता शामिल थे. लेख में सुझाव दिया गया था कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने पत्रकारों को फंसाने के लिए सबूत लगाए थे.
अगली सुबह, मुकेश ने मुझे एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी द्वारा एक व्हाट्सएप टेक्स्ट का स्क्रीनशॉट भेजा, जिसमें कैद पत्रकारों के लिए उनके द्वारा लिए गए रुख पर असहमति व्यक्त की गई थी. "कुछ होगा तो नहीं ना?", उन्होंने फोन के दूसरी तरफ से मुझसे पूछा, उनकी आवाज में एक आशंका थी.
कुछ महीनों बाद, वह मृत पाया गया, दो घटनाओं को इस विश्वास से जोड़ा गया कि बस्तर में प्रशासन-अपराधी गठजोड़ साझा करते हैं - कि पत्रकार केवल उनकी दया पर जीवित रह सकते हैं. एक ठेकेदार के परिसर से उनका शव बरामद होने के तुरंत बाद, साथी पत्रकारों ने इसे बस्तर में पत्रकारिता का कब्रिस्तान बताया.
मैदान से उठाकर पीके को बेउर जेल भेजा, छोड़ा
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर को सोमवार को उनके "अवैध" आमरण अनशन के लिए गिरफ्तार किया गया और अदालत द्वारा दी गई जमानत को अस्वीकार करने पर जेल भेज दिया गया. 47 वर्षीय प्रशांत किशोर पर पिछले सप्ताह पटना उच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए गांधी मैदान में 'आमरण अनशन' करने का मामला दर्ज किया गया था. बाद में निशर्त छोड़ भी दिया गया.
इससे पहले उन्होंने घोषणा की कि वह सलाखों के पीछे से अपना आंदोलन "जारी" रखेंगे. किशोर ने 2 जनवरी को अपना आमरण अनशन शुरू किया था, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) द्वारा पिछले महीने आयोजित संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा को रद्द करने की मांग की गई थी, उन्हें सुबह-सुबह समर्थकों के साथ पकड़ लिया गया था. शहर के बाहरी इलाके में बेउर सेंट्रल जेल ले जाने से पहले पत्रकारों से बात करते हुए, किशोर ने आरोप लगाया, "सुबह 4 बजे उठाए जाने के बाद, मुझे मेडिकल जांच के लिए एम्स, पटना ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उनकी जानकारी के कारणों से आवश्यक कार्रवाई करने से इनकार कर दिया." "सुबह 5 बजे से 11 बजे के बीच, पुलिस मुझे अपनी एम्बुलेंस में घुमाती रही, कभी भी स्थान का खुलासा करने की जहमत नहीं उठाई. जब मैंने पूछताछ की, तो उन्होंने कहा कि वे मुझे पीएमसीएच या एनएमसीएच (शहर के दोनों सरकारी अस्पताल) में जांच कराने की कोशिश कर रहे हैं," किशोर ने दावा किया. जन सुराज पार्टी के संस्थापक ने यह भी दावा किया कि उन्हें अंततः शहर के बाहरी इलाके में फतुहा के एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया जहाँ उन्होंने चिकित्सा परीक्षण के लिए सहमति देने से इनकार कर दिया.
उन्होंने आरोप लगाया, "डॉक्टरों ने पुलिस के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया”
मोदी ने 5 बरस पहले पैर धोए थे पर सम्मान की लड़ाई जारी
द प्रिंट में प्रशांत श्रीवास्तव ने लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच साल पहले कुंभ के सफाई कर्मियों के पैर धोए थे, लेकिन वे अब भी अपने सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं. मोदी ने 2019 के कुंभ मेले में पांच सफाईकर्मियों के पैर धोए थे. इनमें से तीन महाकुंभ में अपनी ड्यूटी पर लौट आए हैं. उनका कहना है कि उन्हें अभी भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. कोरबा की 30 वर्षीय स्वच्छता कर्मचारी कहती हैं, “फरवरी 2019 में उस दिन के बाद से बहुत कुछ बेहतर नहीं हुआ है. हम अभी भी भेदभाव का सामना कर रहे हैं, भले ही देश के सबसे शक्तिशाली नेता ने हमारे पैर धोए.” 56 साल के प्यारेलाल ने पूछा, “अब यह भव्य महाकुंभ आयोजित किया जा रहा है, ‘लक्ज़री कुंभ’ के इतने सारे विज्ञापन हैं लेकिन क्या हम जैसे सफाई कर्मचारियों के लिए कुछ बदला है?” उन्होंने कहा कि हम टेंट सिटी के विज्ञापनों को देख रहे हैं, लेकिन हमारे टेंट में कुछ भी नहीं बदला है. कहते हैं, हम तो अपने परिवार के साथ महाकुंभ के एक कोने में अस्थायी घर में रहते हैं. यहां न तो उचित बिजली है और न ही पानी की आपूर्ति. अगर भारी बारिश होती है, तो यहां रहना मुश्किल होगा, लेकिन कोई इसे नहीं देखेगा. हम जाति के साथ सुविधाओं से भी अछूत हैं. ये होर्डिंग बड़े लोगों के लिए हैं, हमारे लिए नहीं,” प्यारेलाल कहते हैं.
मुस्लिम नाम से कुंभ मेले को बम से धमकी देने वाला गिरफ्तार
प्रयागराज में कुंभ मेले को बम से उड़ाने की धमकी देने के आरोप में बिहार के पूर्णिया से आयुष कुमार जायसवाल को गिरफ्तार किया गया है. उसने सोशल मीडिया पर फर्जी मुस्लिम नाम ‘नासिर पठान’ का इस्तेमाल कर धमकी दी थी. यह धमकी 31 दिसंबर को दी गई थी.
यह कोई पहला मामला नहीं है. हाल के वर्षों में फर्जी मुस्लिम नाम का इस्तेमाल कर ‘आतंकी धमकी’ देना एक नया शगल बन गया है. ठीक एक साल पहले 4 जनवरी को लखनऊ से ताहर सिंह और ओमप्रकाश मिश्रा को गिरफ्तार किया गया था. उन दोनों ने भी फेक मुस्लिम नाम से मेल आईडी बनाकर अयोध्या में शिलान्यास होने जा रहे राम मंदिर को उड़ाने और योगी आदित्यनाथ तथा एसटीएफ प्रमुख को जान से मारने की धमकी दी थी. ये फर्जी ईमेल आईडी ‘alamansarikhan608@gmail.com’ और ‘zubairkhanisi199@gmail.com’ के नाम से बनाए गए थे.
तमिलनाडु में राज्यपाल का अचानक विधानसभा से जाना
तमिलनाडु की विधानसभा सोमवार को अप्रत्याशित घटनाक्रम की साक्षी बनी. दरअसल, राज्यपाल आरएन रवि सुबह कार्यवाही प्रारंभ होते ही यह कहते हुए सदन से अचानक बाहर निकल गए कि प्रोटोकॉल का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि सत्र की शुरुआत में राष्ट्रगान नहीं गाया गया. इस घटना ने राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच की दरार को और गहरा करने के साथ संवैधानिक शिष्टाचार और राजनीतिक श्रेष्ठता पर बहस फिर से शुरू कर दी है.विधानसभा के प्रोटोकॉल के अनुसार तमिल थाई वाज़्थु की प्रस्तुति सत्र की शुरुआत में होती है, जबकि राष्ट्रगान दिन के सत्र के अंत में गाया जाता है. राजभवन द्वारा इस प्रोटोकॉल को बदलने पर जोर देना डीएमके सरकार द्वारा एक अतिक्रमण के रूप में देखा जा रहा है. नाटक तब शुरू हुआ जब विधानसभा वर्ष के पहले सत्र के लिए बुलाई गई. परंपरा के अनुसार सत्र की शुरुआत राज्य के आधिकारिक गीत “तमिल थाई वाज़्थु” के पाठ से हुई. हालांकि राष्ट्रगान की अनुपस्थिति पर राज्यपाल ने आपत्ति जताई. उन्होंने कथित तौर पर मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और स्पीकर एम. अप्पावु से इसके समावेश को सुनिश्चित करने का अनुरोध किया.
लेकिन उनका अनुरोध ठुकरा दिया गया, जिसके कारण रवि ने सत्र शुरू होने के पांच मिनट के भीतर ही विधानसभा छोड़ दी. विधानसभा अध्यक्ष अप्पावु ने राज्य सरकार द्वारा तैयार किए गए राज्यपाल के पारंपरिक संबोधन को तमिल में पढ़कर सदन की कार्यवाही जारी रखी. बाद में राजभवन ने सोशल मीडिया पर जारी एक बयान में राज्य सरकार पर “संविधान और राष्ट्रगान के प्रति बेशर्म अपमान” का आरोप लगाया.
यूपी में धर्मांतरण विरोधी कानून का दुरुपयोग
सोनू उन 2,700 लोगों में से एक हैं, जिन पर उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत झूठे आरोप लगाए गए हैं. यह कानून, जिसे 'लव जिहाद' के नाम पर बनाया गया था, वास्तव में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ी जातियों के लोगों को परेशान करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. द वायर के लिए उमर राशिद ने इस तरह के मामलों पर अपनी एक लंबी सीरीज़ की शुरूआत की है.
25 जून, 2023 को, उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के कोदरा गांव में सोनू सरोज के घर के पीछे एक प्रार्थना सभा चल रही थी. सोनू, जो एक दलित समुदाय से हैं और एक मैकेनिक का काम करते हैं, ने अपने घर में 'जीवन द्वार प्रार्थना भवन' नामक एक प्रार्थना केंद्र बनाया था. इस दिन, लगभग 250 लोग यीशु मसीह की प्रार्थना में भाग लेने के लिए एकत्र हुए थे. तभी, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और बजरंग दल से जुड़े 10-15 लोगों की एक भीड़ लाठी और डंडों के साथ वहाँ पहुंची और हंगामा करने लगी. उन्होंने सोनू और उनके परिवार पर हमला किया. सोनू की पत्नी, प्रभा, जो उस समय नहा रही थी, ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो उन लोगों ने उसे भी बुरी तरह मारा, जिससे उसके सिर में गंभीर चोट आई. हमलावरों ने सोनू पर आरोप लगाया कि वह स्थानीय हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए अनधिकृत प्रार्थना सभाएं कर रहा है.
कुछ देर बाद पुलिस आई और प्रभा को अस्पताल ले गई. लेकिन, हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय, पुलिस ने सोनू को धारा 151 के तहत गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया. बाद में, उनके खिलाफ धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि वह "चंगाई सभा" के माध्यम से हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने की कोशिश कर रहे थे.
सोनू, जो पासी उपजाति से हैं, मानते हैं कि उनकी जाति पहचान उनके उत्पीड़न का एक प्रमुख कारण थी. सोनू का कहना है कि वह यीशु मसीह के दर्शन और शिक्षाओं से प्रेरित थे, लेकिन उन्होंने कभी भी औपचारिक रूप से ईसाई धर्म नहीं अपनाया. पुलिस ने सोनू के घर से बाइबिल और अन्य धार्मिक पुस्तकें बरामद कीं, और आरोप लगाया कि वह लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने की कोशिश कर रहे थे.लेकिन, स्थानीय अदालत ने सितंबर 2024 में सोनू को इस मामले से बरी कर दिया. अदालत ने पाया कि सोनू के खिलाफ कोई सबूत नहीं था कि वह लोगों को धर्मांतरण करने की कोशिश कर रहे थे. अदालत ने यह भी कहा कि प्राथमिकी एक "गैरकानूनी दस्तावेज" था क्योंकि शिकायतकर्ता (संजय कुमार तिवारी) इस मामले में पीड़ित नहीं था. सोनू और उनके परिवार के साथ जो हुआ, वह उत्तर प्रदेश में दलितों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ उत्पीड़न का एक उदाहरण है. यह कहानी दिखाती है कि कैसे धर्मांतरण विरोधी कानून का इस्तेमाल लोगों को परेशान करने और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने के लिए किया जा रहा है. सोनू और उनके परिवार को अभी भी अपनी चोटों और मानसिक आघात से उबरना बाकी है, लेकिन उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद है.
औरंगजेब की हवेली को तोड़ने पर बहुत गुस्सा है विलियम डेलरिम्पल
आगरा स्थित ऐतिहासिक विरासत ‘औरंगजेब की हवेली’ के नाम से जानी जाने वाली मुबारक़ मंज़िल को हाल ही में एक 'बिल्डर' ने ध्वस्त कर दिया है. इसके बाद से लोगों में आक्रोश देखा जा रहा है. इनमें भारत में रहने वाले प्रसिद्ध स्कॉटिश इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल भी शामिल हैं. ‘एक्स’ पर उन्होंने लिखा, ‘ऐसा लगता है कि भारत एक पर्यटक स्थल के रूप में अपने आकर्षण को नष्ट करने का हरसंभव प्रयास कर रहा है.’ इसके आगे उन्होंने लिखा- ‘पहले अपने मुख्य विरासत केंद्रों की उपेक्षा करें, डेवलपर्स को अपनी सभी विरासत संपत्तियों को नष्ट करने दें और फिर हैरान हों, जब इस महान देश में दुबई या सिंगापुर से भी कम पर्यटक आएं’. एक और पोस्ट कर डेलरिम्पल ने बताया कि भारत में क्यों कम पर्यटक आते हैं. उन्होंने लिखा, ‘भारत में विरासत की बेहद भयावह उपेक्षा. आगरा की सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारतों में से एक को अधिकारियों की पूरी मिली-भगत से नष्ट कर दिया गया. यही कारण है कि भारत में इतने कम पर्यटक आते हैं’.
पाक सेना के काफिले पर हमला, 47 मरे
शनिवार को बलूचिस्तान के तुर्बत के पास पाकिस्तानी सेना के काफिले पर बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) की ‘फिदायी दस्ता मजीद ब्रिगेड’ के आत्मघाती हमले में 47 पाकिस्तानी जवान मारे गए और 30 से ज़्यादा घायल हो गए. हमले का लक्ष्य 13 वाहनों का काफिला था. इसमें पांच बसें और सात सैन्य वाहन शामिल थे, जो कराची से तुर्बत में फ्रंटियर कॉर्प्स (एफसी) मुख्यालय जा रहे थे. हमलावर की पहचान तुर्बत के ‘फ़िदायी संगत बहार अली’ के रूप में की गई है. अली 2017 में बलूच राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हुआ और शहरी और पहाड़ी दोनों मोर्चों पर सेवा की. उसने 2022 में मजीद ब्रिगेड के ‘आत्मघाती’ मिशन के लिए भी स्वेच्छा से काम किया. बीएलए ने पाकिस्तानी सेना पर ‘निर्दोष बलूच लोगों को प्रताड़ित करने, गोली-बारी करने और कई व्यक्तियों को जबरन गायब करने’ का आरोप लगाया है. एक बयान में बीएलए ने कहा है, ‘हमारी भूमि हमेशा कब्जे वाले राज्य के लिए असुरक्षित रहेगी. हम तब तक अपने संघर्ष से पीछे नहीं हटेंगे, जब तक मुक्ति नहीं प्राप्त कर लेते’. वहीं पाक अधिकारियों ने शुरू में कहा कि शनिवार को तुर्बत आत्मघाती हमले में 11 लोग मारे गए. बीएलए के बयान के बाद भी उसने कोई नया अपडेट जारी नहीं किया है.
भारत और बांग्लादेश के बीच शेख हसीना की सरकार के अपदस्थ होने के बाद से संबंध बिगड़ते जा रहे हैं. पहले अपने यहां के पाठ्य-पुस्तकों में इतिहास बदलकर बांग्लादेश की आजादी में भारत की भूमिका को कम किया और अब रविवार को मोहम्मद युनूस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने भारत में 50 न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को दी जाने वाली प्रशिक्षण कार्यक्रम को रद्द कर दिया. यह एक दिवसीय प्रशिक्षण सत्र फरवरी में होना था. इसके बावजूद कि इस पर आने वाला सारा खर्च का वहन भी भारत सरकार कर रही थी.
हैरिस ने अपनी हार की आधिकारिक पुष्टि की
वाशिंगटन डीसी में आज अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम को सर्टीफाई किया. वे सोमवार दोपहर डोनाल्ड ट्रम्प से राष्ट्रपति चुनाव में अपनी हार की तसदीक करने के लिए कांग्रेस के संयुक्त सत्र की अध्यक्षता कर रही थीं. उपराष्ट्रपति ने कहा, "आज, मैंने वह किया जो मैंने अपने पूरे करियर में किया है, जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान का समर्थन और बचाव करने के लिए कई बार ली गई शपथ को गंभीरता से लेना है, जिसमें आज मेरे संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करना शामिल है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अमेरिका के लोगों, अमेरिका के मतदाताओं के वोटों की गिनती हो, कि उन वोटों का महत्व है और वे चुनाव के परिणाम तय करेंगे." "मेरा पक्की तौर पर मानना है कि अमेरिका का लोकतंत्र केवल उतना ही मजबूत है जितनी हमारी हर एक व्यक्ति के लिए लड़ने की इच्छाशक्ति है, लोकतंत्र के महत्व के लिए लड़ने और सम्मान करने की उनकी इच्छाशक्ति है. अन्यथा, यह बहुत नाजुक है, और यह संकट के क्षणों का सामना करने में सक्षम नहीं होगा. और आज, अमेरिका का लोकतंत्र खड़ा रहा." चार साल पहले जब डोनल्ड ट्रम्प चुनाव हारे थे, तब उनके मागा समर्थकों ने कैपिटल हिल पर हमला बोल दिया था.
ट्रूडो ने पद छोड़ने की घोषणा की
जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि वे कनाडा के प्रधानमंत्री के रूप में नौ साल बाद बढ़ते संकटों के बीच पद छोड़ने का इरादा रखते हैं, एक बार जब नया सत्तारूढ़ पार्टी नेता चुना जाएगा तो वे कार्यालय छोड़ देंगे. 11 वर्षों तक लिबरल पार्टी के नेता और नौ वर्षों तक प्रधानमंत्री रहे ट्रूडो को डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ धमकियों से लेकर प्रमुख सहयोगियों के इस्तीफे और विनाशकारी जनमत सर्वेक्षणों तक कई संकटों का सामना करना पड़ रहा था. उनके इस्तीफे को पीएम के चुनाव से पहले कूदने के रूप में देखा जा सकता है, इस साल के अंत में होने वाले आम चुनाव से पहले, जिसमें उनके हारने की उम्मीद है.
गौतम की चुनौती और गंभीर होने वाली है
गौतम गंभीर की भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच के रूप में नियुक्ति ने आशावाद और संदेह दोनों को जन्म दिया था. प्रशंसकों को उम्मीद थी कि कोलकाता नाइट राइडर्स के साथ उनका सफल कार्यकाल (तीन खिताब, दो बतौर कप्तान, एक अपने मेंटरशिप में) अंतरराष्ट्रीय मंच पर सफलता में तब्दील होगा. उनकी नेतृत्व शैली पर हालांकि सवाल भी उठे. एक खिलाड़ी के रूप में धैर्य और उग्र स्वभाव की पहचान रखने वाले गंभीर को भारतीय क्रिकेट को आगे बढ़ाने के साहसिक विकल्प के रूप में देखा गया.
वहीं अंतरराष्ट्रीय कोचिंग स्तर पर उनके अनुभव की कमी को लेकर चिंताएं भी जताई गई थी.
ऐतिहासिक रूप से भारत के कोच शांत उपस्थिति बनाए रखने वाले अनुभवी दिग्गज रहे हैं. सुपरस्टार से भरे ड्रेसिंग रूम को संभालने में गंभीर की टकराव की शैली के कारण उनकी क्षमता पर संदेह भी उठे.
उनके कार्यकाल के छह महीने बाद, नतीजे निराशाजनक ही रहे हैं. गंभीर की कोचिंग में भारत ने श्रीलंका में टी-20 सीरीज़ और बांग्लादेश के खिलाफ़ घरेलू मैदान पर दो टेस्ट सीरीज़ में जीत हासिल की, लेकिन ये सफलताएँ महत्वपूर्ण झटकों से दब गई हैं. सीनियर खिलाड़ियों से भरी टीम के बावजूद श्रीलंका में वनडे सीरीज़ हारना चिंताजनक था. इससे भी बुरी बात यह रही कि भारत को न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ घरेलू टेस्ट सीरीज़ में 3-0 से ऐतिहासिक वाइटवॉश का सामना करना पड़ा, जो देश के क्रिकेट इतिहास में इस तरह का पहला मामला था. वहीं लगातार नौ साल तक दबदबे के बाद ऑस्ट्रेलिया से बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी हारना निराशा में और इजाफा कर गया. आखिरी झटका सिडनी में भारत की हार से लगा, जिसने विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल के लिए क्वालिफाई करने की उनकी उम्मीदों को धराशायी कर दिया.
उथल-पुथल भरी शुरुआत को याद करते हुए गंभीर ने कठिनाइयों को स्वीकार किया. उन्होंने कहा, ‘यह कठिन रहा है, इसमें कोई संदेह नहीं है. पिछले आठ टेस्ट मैचों में हमें ऐसे नतीजे नहीं मिले, लेकिन खेल की यही प्रकृति है. हम बस संघर्ष करते रह सकते हैं. खिलाड़ी और सहयोगी स्टाफ़ और भारतीय क्रिकेट के लिए क्या अच्छा है, इस पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. नतीजे हमारे पक्ष में नहीं गए हैं’.
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ हालांकि सीरीज़ 3-1 के स्कोरलाइन से ज़्यादा प्रतिस्पर्धी रही है, लेकिन इस तरह के नज़दीकी मुक़ाबले बहुत कम राहत देते हैं. टीम बार-बार महत्वपूर्ण क्षणों को भुनाने में विफल रही, और गंभीर के नेतृत्व में कोचिंग स्टाफ़ जवाबदेही से नहीं बच सकता. आठ टेस्ट मैचों में छह हार एक ऐसी टीम के लिए परेशान करने वाली तस्वीर पेश करती है, जो खेल के सबसे लंबे प्रारूप में अपने प्रभुत्व पर गर्व करती है.
मुख्य कोच के रूप में गंभीर की शुरुआत भारतीय क्रिकेट के लिए एक वास्तविकता की जाँच रही है. चुनौतियों से लड़ने की उनकी प्रतिबद्धता सराहनीय है, लेकिन परिणाम देने का दबाव और भी बढ़ेगा. फिलहाल, गंभीर और उनकी टीम को फिर से संगठित होकर विश्व क्रिकेट में भारत की ताकत को पुनः स्थापित करने के लिए एक रास्ता तैयार करना होगा.
दो दर्जों में बंटने वाला है टेस्ट क्रिकेट!
मज़्कूर आलम
क्रिकेट के कर्ताधर्ता अब टेस्ट क्रिकेट के लिए दो-स्तरीय संरचना की शुरुआत पर विचार कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और भारत एक-दूसरे के साथ अधिक खेलें. द एज के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अध्यक्ष जय शाह इस महीने के अंत में क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया (सीए) के अध्यक्ष माइक बेयर्ड और इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) के अध्यक्ष रिचर्ड थॉम्पसन से मिलेंगे और टेस्ट क्रिकेट को दो डिवीजनों में बांटने की संभावना पर चर्चा करेंगे.
फायदेमंद रहा बीजीटी
इसकी एक वजह यह भी है कि हाल के दिनों में टेस्ट क्रिकेट से दर्शक गायब हो गए हैं, मगर ऐसा देखा गया है कि एशेज या बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी (बीजीटी) में काफी भीड़ उमड़ती है. इस बार भी बीजीटी में काफी दर्शक मैच देखने आए थे और प्रसारकों को राजस्व भी ज्यादा मिले. वर्तमान में किसी भी खेल में खेल भावना से अधिक पैसे का हाथ होता है. यही वजह है कि 2016 में आए इस विचार को लेकर आईसीसी के नये चेयरमैन जय शाह गंभीर हैं. 2016 में इस योजना का विरोध करने वालों में भारत भी था. तब बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि क्रिकेट के लिहाज से छोटे देशों को काफी नुकसान होगा और वहां क्रिकेट खत्म हो सकता है. मगर जय शाह इस विचार पर अमलीजामा पहनाने को लेकर गंभीर हैं और वह इस योजना पर नए सिरे से विचार कर रहे हैं.
भारत के खिलाफ इस सीजन के पांच टेस्ट मैचों में 837,879 दर्शक आए. दर्शक के लिहाज से यह सीरीज ऑस्ट्रेलियाई इतिहास की चौथी सबसे अधिक दर्शकों वाली शृंखला बन गई. वह भी तब जब दो मैच तीन दिनों में खत्म हो गए और एक बारिश में धुल गया.
ऐसे हो सकता है डिवीजन
डिवीजन 1: दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, भारत, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, पाकिस्तान
डिवीजन 2 : वेस्टइंडीज, बांग्लादेश, आयरलैंड, अफगानिस्तान और जिम्बाब्वे
अगर यह दो-स्तरीय संरचना परवान चढ़ती है तो ‘तीन बड़े’ को सबसे ज्यादा फायदा होगा. शीर्ष स्तर के अन्य देश भी फायदेमंद में रहेंगे, मगर बांग्लादेश, अफगानिस्तान, आयरलैंड, वेस्टइंडीज और जिम्बाब्वे जैसे देशों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है, जहां की बोर्डें आईसीसी के मदद भरोसे हैं. इस कदम से इन देशों में क्रिकेट दम तोड़ सकता है.
अगर इस प्रस्ताव को इन दोनों देशों के बोर्डों की मंजूरी मिल जाती है तो 2027 से दो-स्तरीय संरचना प्रभाव में आ सकती है. 2027 तक का मौजूदा फ्यूचर टूर्स प्रोग्राम तय है. इसके बाद इसे शुरू किया जा सकता है. इससे ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और भारत ‘तीन बड़े’ मौजूदा प्रारूप के तहत हर चार साल में दो बार खेलने के बजाय हर तीन साल में दो बार एक-दूसरे के साथ खेल सकेंगे.
गोल्डन ग्लोब पुरस्कारों का ऐलान..
'द ब्रूटलिस्ट', 'एमिलिया पेरेज़' और 'शोगन' ने 82वें गोल्डन ग्लोब्स में बड़ी जीत हासिल की, जो इस साल के पुरस्कार सीज़न की अनौपचारिक शुरुआत है.
पायल कापड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन एज लाइट नामांकित तो थी, पर गोल्डन ग्लोब जीत नहीं पाई. कम बजट की एपिक 'द ब्रूटलिस्ट', जो अमेरिका में एक प्रलय से बचे आप्रवासी वास्तुकार की कहानी कहती है, ने तीन पुरस्कार जीते: ड्रामा श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ फिल्म, एड्रियन ब्रोडी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और अभिनेता से फिल्म निर्माता बने ब्रैडी कोर्बेट के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक. अपने भाषण के अंत में, कोर्बेट ने फिल्म निर्माता जेफ बेना को श्रद्धांजलि दी, जिनका इस सप्ताह निधन हो गया. ब्रोडी, जो पहले 'द पियानिस्ट' के लिए ग्लोब नहीं जीत पाए थे, लेकिन बाद में ऑस्कर जीता था, ने फिल्म को "निर्माण के लिए मानव क्षमता की कहानी" बताया. उन्होंने कहा कि उन्होंने सोचा था कि यह "पल" उन्हें फिर से नहीं मिलेगा, और कहा कि उन्हें उम्मीद है कि फिल्म उन लोगों को प्रेरित करेगी जो अप्रवासी हैं.
नेटफ्लिक्स की क्राइम म्यूजिकल 'एमिलिया पेरेज़', जिसे रात में सबसे अधिक नामांकन मिले, ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म - म्यूजिकल या कॉमेडी, ज़ो सलदाना के लिए सर्वश्रेष्ठ महिला सहायक अभिनेता, मूल गीत, और अंग्रेजी भाषा में नहीं बनी फिल्म सहित चार पुरस्कार जीते.
चलते -चलते : चर्चा में है नॉर्थ इंडियन टूरिस्ट अपने बर्ताव के कारण
भारतीय पर्यटकों के लिए आदर्श पर्यटन स्थलों पर बहस फिर से शुरू हो गई है. इस बार गोवा की तुलना वियतनाम से की गई है, जो एक लोकप्रिय अंतरराष्ट्रीय गंतव्य है. पॉडकास्टर रवि हांडा ने यह साझा कर विवाद खड़ा कर दिया कि उन्होंने इस नए साल में गोवा के बजाय वियतनाम को क्यों चुना? ‘एक्स’ पर गोवा को लेकर वायरल हो रहे एक पोस्ट में हांडा ने गोवा और विदेशों में कुछ उत्तर भारतीय पर्यटकों के व्यवहार की आलोचना की. उन्होंने वियतनाम में एक ट्रेन की घटना का जिक्र किया, ‘जहां भारतीयों का एक समूह अन्य भारतीय यात्रियों को देख जोर-जोर से ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाने लगा. हांडा ने कुछ उत्तर भारतीय पर्यटकों के लाइन तोड़ने की आदत को भी निराशाजनक बताया. उन्होंने एक ‘केबल कार लाइन’ पर एक और अनुभव साझा किया, जहां उन्हें लाइन तोड़ते एक कपल का सामना करना पड़ा, जो यह कह रहा था कि उनके पास स्पेशल पास है. हांडा ने कहा कि संघर्ष से बचने के लिए उन्होंने उन युवकों को कुछ नहीं कहा. हांडा के इस पोस्ट ने बड़े विवाद को जन्म दे दिया है. कई लोगों ने हांडा पर जानबूझकर विवादास्पद पोस्ट करने का आरोप लगाया. एक यूजर ने लिखा, ‘हर कोई उत्तर बनाम दक्षिण बनाम पूर्व बनाम पश्चिम की बहस में व्यस्त है’.
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