07/02/ 2025: हथकड़ियों से हलकान भारतीय, ढाका में तोड़फोड़ आगज़नी फिर, राज्यपाल पर संविधान के उल्लंघन का आरोप, पड़ोस में चीन के सामने भारत का घटता दबदबा, भागवत को अब अंग्रेजी से दिक्कत
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आज की सुर्खियां | 7 फरवरी 2025
क्या हम अपना जहाज भेजकर उनको इज्जत के साथ नहीं ला सकते थे? आखिरकार मोदी जी तो ट्रम्प के दोस्त हैं...!
अमेरिका के 104 भारतीयों को हथकड़ी और जंजीरों में बांधकर भेजने से मोदी सरकार के लिए नई मुसीबत खड़ी हो गई है. सवाल किया जा रहा है कि ट्रम्प तो मोदी जी के दोस्त हैं, तो फिर उन्होंने ऐसा क्यों होने दिया? अमेरिका, मुर्गियों के दड़बे की तरह कार्गो प्लेन में भरकर, बेड़ियों में बांधकर हमारे लोगों को भेज रहा है. हम अपने हवाई जहाज भेजकर उन्हें इज्जत के साथ नहीं ला सकते क्या? जबकि हमने सीरिया और इराक युद्ध के समय करोड़ों भारतीयों को एयरलिफ्ट किया था. इस पर फिल्म भी बनी थी. भारतीयों को ऐसे लाया गया, जैसे वे आतंकवादी हों! उनके साथ कैसा बर्ताव हुआ, इस बारे में पंजाब के होशियारपुर जिले के ताहली गांव के हरविंदर सिंह ने “द इंडियन एक्सप्रेस” से कहा, “40 घंटे तक हमें हथकड़ी लगी रही, हमारे पैर बेड़ियों से बंधे रहे और हमें अपनी सीट से एक इंच भी हिलने नहीं दिया गया. कई बार मिन्नतें करने के बाद हमको वॉशरूम जाने की अनुमति दी गई. हम जैसे-तैसे घिसट-घिसटकर गए तो विमान में मौजूद स्टाफ टॉयलेट का दरवाजा खोलकर हमें उसमें धकेल देते थे.” उन्होंने इस यात्रा को “नरक से भी बदतर” बताया और कहा कि 40 घंटे तक ढंग से कुछ खा भी नहीं पाए. हथकड़ी में ही खाने को मजबूर किया गया. हमने कुछ देर के लिए हथकड़ी खोलने का आग्रह किया, पर हमारी प्रार्थना अनसुनी कर दी गई. इसी तरह का तकलीफों भरा अनुभव अन्य अप्रवासी भारतीयों ने भी शेयर किया है. वृहस्पतिवार को इस मुद्दे पर संसद में भी भारी हंगामा हुआ और इसके चलते दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित हुई और स्थगित करना पड़ी. लिहाजा विपक्ष के सदस्यों ने सदन के बाहर पूरी एकजुटता दिखाई और सरकार के विरोध में नारे लगाए. एक नारा था, “विश्व गुरु जवाब दो, जवाब दो.” विपक्ष का कहना है कि अमेरिका ने भारतीयों को डिपोर्ट करने में जो प्रक्रिया अपनाई है, उससे भारत का अपमान हुआ है. सरकार को इस मामले में ठोस कदम उठाना चाहिए. कुछ विपक्षी सदस्यों ने हाथों में हथकड़ियां लगाई हुई थीं. उनका कहना था कि भारतीयों को ऐसे लाया गया, जैसे वे आतंकवादी हों. यह “अमानवीय” है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने “X” पर हरविंदर सिंह का वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा, “प्रधानमंत्री, इस व्यक्ति का दर्द सुनिए. भारतीय (इंडियंस) गरिमा और मानवता के हकदार हैं, न कि हथकड़ियों के.” प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा, “मोदी जी और ट्रम्प जी की दोस्ती की बहुत बातें होती हैं. मोदी जी ने ऐसा क्यों होने दिया? क्या उनको वापस लाने के लिए हम अपना हवाई जहाज नहीं भेज सकते थे? क्या इंसानों के साथ ऐसा बर्ताव किया जाता है...कि उनको हथकड़ियां पहना दी जाएं और जंजीरों में बांध दिया जाए...प्रधानमंत्री को जवाब देना चाहिए. भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से यह सवाल भी किया जा रहा है कि निर्वासित भारतीय को लेकर आया अमेरिकी सैन्य विमान दिल्ली की बजाय पंजाब की धरती पर क्यों उतारा गया? पंजाब के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने इस पर आपत्ति जताई है और केंद्र सरकार पर पंजाब के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया है. कहा है कि यह शर्मनाक और अस्वीकार्य है. फेक गुजरात मॉडल की रक्षा और पंजाब को बदनाम करने के लिए जानबूझकर अमृतसर में विमान उतारा गया. जबकि डिपोर्ट किए गए 104 लोगों में गुजरात और हरियाणा के अप्रवासी भारतीयों की संख्या ज्यादा है. इस बीच भारतीयों को हथकड़ी और जंजीरों में बांधकर लाए जाने के फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर भी जमकर वायरल हो रहे हैं. हालांकि “द टेलीग्राफ” में अर्नब गांगुली के अनुसार पीआईबी ने फोटो को फर्जी बताया है, लेकिन निर्वासित भारतीयों ने इस बात की पुष्टि की है कि उन्हें हथकड़ी और जंजीरों में बांधकर ही लाया गया. दैनिक भास्कर ने भी अमेरिकी बॉर्डर पेट्रोल चीफ माइकल बैंक्स द्वारा “X” पर शेयर किए गए वीडियो के हवाले से कहा है कि भारतीयों के हाथों और पैरों में बेड़ियां साफ तौर पर देखी जा सकती हैं. लेखक और पत्रकार प्रवीण साहनी ने “X” पर अपनी पोस्ट के जरिए बताया है कि अमेरिका ने ऐसा क्यों किया और महिलाओं और बच्चों को भी हथकड़ियां लगाकर भेजा? साहनी के अनुसार तीन चीजें हैं, जो जानना चाहिए. यहां देखें. ऐसे ही मनीष सिंह @RebornManish ने लिखा, “हमने सीरिया और इराक युद्ध के समय करोड़ों भारतीयों को एयरलिफ्ट किया था. फिल्म भी बनी थी. अमेरिका, मुर्गियों के दड़बे की तरह कार्गो प्लेन में भरकर, बेड़ियों में बांधकर हमारे लोगों को भेज रहा है. हम अपने हवाई जहाज भेजकर उन्हें इज्जत के साथ नहीं ला सकते क्या? गुजरात के पूर्व उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने निर्वासित गुजरातियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए कहा कि वे नौकरी या करियर की तलाश में विदेश गए थे और इसलिए उन्हें अपराधी के रूप में नहीं दिखाया जाना चाहिए. इधर, इस मुद्दे पर विदेश मंत्री एस जयशंकर को अंततः संसद में जवाब देना पड़ा. लेकिन उन्होंने अमेरिका का बचाव करते हुए कहा कि निर्वासितों को हथकड़ियों और बेड़ियों में बांधना 2012 के बाद से उनकी मानक प्रचालन प्रक्रिया (एसओपी) का हिस्सा रहा है. यद्यपि हम अमेरिकी सरकार के साथ सतत संपर्क में हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डिपोर्ट किए जा रहे भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार न हो.
अवैध प्रवासियों की भारत वापसी को इंटरनेशनल मीडिया ने लपका
अमरीका से जहाज भरकर भारत लौटे अवैध प्रवासियों को लेकर देश के भीतर नेताओं में जुबानी जंग तेज हो गई हो. इस मुद्दे ने इंटनेशनल मीडिया का भी ध्यान खींचा है. ‘अलजजीरा’ से लेकर ‘वॉशिगटन पोस्ट’ तक ने इस खबर को अपने यहां जगह दी है. 'अलजजीरा' ने तो इस मसले पर भारत में विपक्षी दलों के प्रतिरोध की खबर को भी तवज्जो दी है. अलजजीरा ने लिखा- ‘विरोधी दल के सदस्यों ने भारतीय संसद के एक सत्र को रोक दिया, जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार से उन 104 भारतीयों के प्रति बेहूदा व्यवहार पर सवाल उठाए, जिन्हें अमेरिका से डिपोर्ट किया गया था.’ ‘वॉशिगटन पोस्ट’ ने भी इस मसले पर दो खबरों को जगह दी है, जिनमें विपक्षी सांसदों के हंगामें की खबर भी है. ऐसे ही ‘न्यूयॉर्क पोस्ट’ और ‘द गार्डियन’ ने भी अवैध प्रवासी भारतीयों के देश लौटने की खबर को प्रमुखता से जगही दी है. ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने भी इस मसले पर रिपोर्ट छापी है.
हिरासत में यातना की वजह से आदिवासी युवक ने की आत्महत्या : जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने गुरुवार 6 फरवरी को जम्मू के कठुआ जिले के एक आदिवासी युवक की मौत की मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया है. 25 वर्षीय युवक माखन दीन ने पुलिस हिरासत में यातना का सामना करने के बाद आत्महत्या कर ली थी. हिरासत में हत्या की जम्मू-कश्मीर में नागरिक समाज और विपक्ष ने कड़ी निंदा की है. पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आदिवासी युवक के लिए न्याय की मांग की है.
सेना की फायरिंग में एक ट्रक चालक की मौत : बुधवार को उत्तरी कश्मीर में सेना की गोलीबारी में एक ट्रक चालक की मौत हो गई. एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि चालक ने सैन्य चौकी को पार कर लिया और चेतावनी दिए जाने के बावजूद नहीं रुका. सैनिकों ने ट्रक के दो टायरों को हवा में उड़ा दिया. बाद में उसे अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसे मृत घोषित कर दिया गया.
ट्रम्प द्वारा ईरान पर दबाव बनाने के लिए चाबहार पर प्रतिबंधों में छूट रद्द हो सकती है : ईरान पर ‘अधिकतम दबाव’ डालने के व्हाइट हाउस के कार्यकारी आदेश से इस बात की संभावना बढ़ गई है कि भारत द्वारा संचालित चाबहार बंदरगाह के लिए प्रतिबंधों में छूट रद्द की जा सकती है. इसमें कहा गया है कि विदेश मंत्री ‘प्रतिबंधों में छूट को संशोधित या रद्द करेंगे, विशेष रूप से वे जो ईरान को किसी भी तरह की आर्थिक या वित्तीय राहत प्रदान करते हैं. इसमें ईरान के चाबहार बंदरगाह परियोजना से संबंधित छूट भी शामिल है". नई दिल्ली और तेहरान ने पिछले साल 10 साल के समझौते पर हस्ताक्षर किया था. इसके तहत बंदरगाह का संचालन सरकारी कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड द्वारा किया जाना है. यह बंदरगाह भारत के लिए एक परिसंपत्ति है, क्योंकि यह उसे इस क्षेत्र में पैर जमाने और पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक व्यापार मार्ग प्रदान करता है.
‘पुरस्कार वापस न करने का शपथ लेना गोपनीयता से समझौता होगा’ : केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर विभाग से संबंधित स्थायी समिति द्वारा दिए गए सुझाव के बाद कहा है कि पुरस्कार की घोषणा से पहले लेखकों से यह हस्ताक्षरित वचन लेना दुर्भाग्य से चयन प्रक्रिया से जुड़ी गोपनीयता से समझौता होगा कि वे राजनीतिक विरोध सहित किसी भी कारण से सम्मान वापस नहीं करेंगे. समिति ने 2023 में यह सिफारिश की थी और सोमवार 3 फरवरी, 2025 को लोकसभा में पेश की गई अपनी कार्रवाई रिपोर्ट में इसे दोहराया है. संस्कृति मंत्रालय ने समिति को सूचित किया कि 2015 में 39 लेखकों ने साहित्य अकादमी को अपने पुरस्कार लौटाए थे.
इकोनॉमिस्ट के मुताबिक भारत पिछड़ रहा है चीन से
हाल के वर्षों में भारत की स्थिति दक्षिण एशिया में कमज़ोर हुई है. मालदीव, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में भारत-समर्थक नेताओं का पतन हुआ, जबकि चीन ने अपनी आर्थिक और कूटनीतिक पैठ बढ़ाई. इकोनामिस्ट ने विस्तार से बताया है कि दक्षिण एशिया में भारत चीन के सामने कैसे अपना प्रभुत्व खोता जा रहा है. अगर दक्षिण एशिया में देखा जाए तो:
बांग्लादेश में पलटवार : शेख हसीना के पतन के बाद बांग्लादेश चीन के करीब आया. चीन ने 2 अरब डॉलर की सहायता का वादा किया और मंगला बंदरगाह विकास पर चर्चा शुरू की, जबकि भारत-विरोधी भावनाएँ बढ़ीं.
श्रीलंका और नेपाल में चीनी प्रभाव : श्रीलंका के राष्ट्रपति ने चीनी तेल रिफाइनरी योजना को हरी झंडी दी. नेपाल ने चीन के साथ आर्थिक संबंध गहन किए.
अडानी समूह पर निर्भरता : अडानी के बुनियादी ढाँचे के सौदे (जैसे बांग्लादेश में बिजली समझौता) विवादों में घिरे हैं, जिससे भारत की विश्वसनीयता प्रभावित हुई.
इकोनामिस्ट के मुताबिक भारत की कूटनीतिक कमियों में एक तो पड़ोसी देशों में सत्तारूढ़ नेताओं पर अत्यधिक निर्भरता और विपक्षी दलों की उपेक्षा रही है. इसके अलावा आर्थिक दबाव के साथ-साथ "पड़ोसी प्रथम" नीति में सामंजस्य का अभाव. तीसरा मोदी सरकार का हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा, जिससे मुस्लिम-बहुल पड़ोसी देशों में अविश्वास पैदा हुआ.
भारत की अस्पष्ट क्षेत्रीय रणनीति और चीन की लचीली कूटनीति के कारण दक्षिण एशिया में उसकी स्थिति दुर्बल हुई है. विशेषज्ञों के अनुसार, भारत को आर्थिक एकीकरण, युवाओं पर ध्यान और पारदर्शी राजनयिक संबंधों पर जोर देने की आवश्यकता है. जब तक भारत अपने पड़ोस में स्पष्ट एजेंडा नहीं बनाता, चीन को फायदा मिलता रहेगा.
तमिलनाडु में राज्यपाल रवि की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट के गंभीर सवाल
विधानसभा में पारित विधेयकों की प्रक्रिया रोक कर संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि से राज्य विधानमंडल की ओर से पारित विधेयकों पर रोक लगाने पर सवाल किया. शीर्ष अदालत ने कहा, “ऐसा लगता है कि उन्होंने मामले से निपटने में अपनी ही प्रक्रिया अपना ली है. इस तरह संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन किया है. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने इस पर आश्चर्य जताया कि राज्यपाल कब तक विधेयकों पर अपनी सहमति रोक सकते हैं.”
अदालत तमिलनाडु सरकार की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. याचिकाओं में विधानमंडल की ओर से पारित विधेयकों पर राज्यपाल के सहमति देने से इनकार करने पर विधानसभा और राज्यपाल के बीच लंबे समय से चल रहे टकराव के बारे में बताया गया है. कोर्ट ने कहा, ‘इसका कोई मतलब नहीं बनता कि राज्यपाल अपनी सहमति रोके रखें और विधानसभा से विधेयकों पर पुनर्विचार करने के लिए भी न कहें.
पीठ ने विचार के लिए मुद्दे तय किए. तय मुद्दों में पॉकेट वीटो की अवधारणा क्या है, यदि इसे संवैधानिक ढांचे में जगह मिलती है और यदि राष्ट्रपति के समक्ष विधेयक पेश करने का राज्यपाल का विवेकाधिकार विशिष्ट मामलों तक सीमित है या यह कुछ निर्धारित विषयों से परे हैं. अन्य बातों के अलावा, न्यायालय ने यह भी जांचने की कोशिश की कि राज्यपाल ने किस विचार के आधार पर विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया और अनुच्छेद 200 की व्याख्या कैसे की जाए.
राज्यपाल का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि एक मामले में कुलाधिपति नियुक्ति प्राधिकारी हैं. यूजीसी के नियमों के अनुसार, जो राज्यपाल के लिए बाध्यकारी हैं. राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति के लिए खोज-सह-चयन समिति की संरचना राज्यपाल के हाथों में है. इस पर पीठ ने जोर देकर अटॉर्नी जनरल से पूछा, "राज्यपाल ने कौन सी खामियां पाईं. वह यह देखना चाहती है कि राज्यपाल के फैसले का आधार क्या था.”
पीठ ने बताया कि राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर अपनी सहमति रोकने की घोषणा, पंजाब के राज्यपाल के मामले में शीर्ष अदालत के इस फैसले के तुरंत बाद आई थी कि राज्यपाल विधेयकों पर बैठकर विधानसभा को वीटो नहीं कर सकते.” पीठ ने यह भी पूछा, “राज्यपाल के पास सभी 12 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने का विकल्प था, लेकिन उन्होंने पहले दो विधेयकों को भेजा और शेष विधेयकों को मंजूरी देने से परहेज किया. आगे क्या होगा? क्या वह कह सकते हैं कि मैं मंजूरी नहीं दूंगा? मैं इसे राष्ट्रपति के पास नहीं भेजूंगा और न ही विधानसभा से पुनर्विचार करने के लिए कहूंगा. चुप रहो." इस पर राज्यपाल की ओर से अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि राज्यपाल ऐसा कर सकते हैं. पीठ ने यह भी पूछा, “राज्यपाल ने असहमति के नाम पर राष्ट्रपति के पास विधेयक भेजने में इतना समय क्यों लगाया. विधेयकों में ऐसी कौन-सी बात है, जिसके लिए राज्यपाल को तीन साल लग गए."
भीमा कोरेगांव मामला : सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र गाडलिंग, ज्योति जगताप और महेश राउत की जमानत पर अपील स्थगित : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 6 फरवरी को वकील सुरेंद्र गाडलिंग और ज्योति जगताप की ओर से भीमा कोरेगांव मामले में प्रतिबंधित माओवादी समूहों के साथ कथित संबंधों को लेकर जमानत की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित कर दी. जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने सह-आरोपी महेश राउत को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की ओर से दायर अपील पर भी सुनवाई स्थगित कर दी और सभी मामलों को एक साथ लेने का फैसला किया. इन सभी पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए हैं.
राजीव गांधी पर अपमानजनक टिप्पणी कर बुरे फंसे एनटीके प्रमुख, कोर्ट ने अपनाया सख्त रुख : मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि किसी को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित संविधान के अनुच्छेद-19 का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए. न्यायालय ने ‘नाम तमिलझर कच्ची’ (एनटीके) के प्रमुख एस सीमन की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणी के लिए अपने खिलाफ दर्ज मामले को चुनौती दी थी. जस्टिस पी वेलमुरुगन ने सीमन को ट्रायल कोर्ट में पेश होने से छूट देने से भी इनकार कर दिया, जो हाल ही में द्रविड़ के दिग्गज ईवीआर पेरियार के खिलाफ अपनी टिप्पणी के लिए चर्चा में थे.
अक्षय शिंदे एनकाउंटर में मां-बाप कार्रवाई नहीं चाहते : बदलापुर स्कूल यौन उत्पीड़न के आरोपी अक्षय शिंदे के माता-पिता ने गुरुवार को बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि कथित मुठभेड़ में पुलिस ने अक्षय की एनकाउंटर की जांच की मांग वाली याचिका को वे आगे बढ़ाना नहीं चाहते. 23 सितंबर को शिंदे (24) की मुंब्रा बाईपास के पास पुलिस वैन में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब उसे नवी मुंबई की तलोजा जेल से जांच के लिए ठाणे के बदलापुर ले जाया जा रहा था. घटना के एक दिन बाद अक्षय शिंदे की माता अलका शिंदे और पिता अन्ना शिंदे ने इस घटना को ‘फर्जी मुठभेड़’ बताते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. आश्चर्यजनक यह है कि यह घटनाक्रम मजिस्ट्रेट अशोक शेंगड़े की उस रिपोर्ट के कुछ दिनों बाद हुआ, जिसमें उन्होंने पांच पुलिसकर्मियों (ठाणे अपराध शाखा के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक संजय शिंदे, सहायक पुलिस निरीक्षक नीलेश मोरे, हेड कांस्टेबल अभिजीत मोरे, हेड कांस्टेबल हरीश तावड़े और एक पुलिस चालक) को दोषी ठहराया था.
बांग्लादेश
मुज़ीब का मक़ान ध्वस्त, हसीना-युनूस के एक दूसरे पर आरोप, ढाका ने भारतीय मिशन को तलब किया
ढाका में सब कुछ ठीक नहीं चलता दिख रहा है. गुरुवार को भारत में पनाह पाई पूर्व राष्ट्रपति ने एक संदेश जारी करते हुए कहा कि अंतरिम सरकार के सलाहकार और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मोहम्मद युनूस ने हसीना औऱ उनकी बहन को जान से मारने की साजिश की. बुधवार रात को भीड़ बुलडोजर लेकर ढाका की धानमंडी में उस मक़ान को तोड़ने पंहुच गई जो बांग्लादेश के जनक शेख मुजीबुर्रहमान का पता है. वे शेख हसीना के पिता भी हैं. ऐसा तब हुआ जब हसीना की पार्टी अवामी लीग ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर यह कहा कि बुधवार रात को हसीना संदेश जारी करेंगी.
उधर युनूस ने हसीना पर आरोप लगाया कि मुजीब के मक़ान पर हमले के लिए हसीना जिम्मेदार हैं. हसीना के बयान के बाद बांग्लादेश ने भारतीय मिशन के प्रमुख को तलब भी किया. युनूस ने कहा कि हसीना के बयानों से लोग भड़क गये.
अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार युनूस के फेसबुक पेज पर जारी एक बयान में कहा गया, "32, धानमंडी में तोड़फोड़ गलत और अवांछित है. जुलाई आंदोलन के खिलाफ शेख हसीना के भड़काऊ बयानों ने लोगों के मन में प्रतिकूल प्रतिक्रिया पैदा की, जो बाहर निकल आई." बयान में आगे कहा गया, "पिछले छह महीनों में, धानमंडी आवास पर कोई हमला या अप्रिय घटना नहीं हुई थी."
बांग्लादेश के दैनिक प्रोथोम आलो की एक रिपोर्ट के अनुसार, अवामी लीग (हसीना के नेतृत्व वाली) के प्रतिबंधित छात्र विंग ने फेसबुक पर पोस्ट किया था कि हसीना बुधवार को बांग्लादेश समयानुसार रात 9 बजे सोशल मीडिया के माध्यम से राष्ट्र को संबोधित करेंगी. भाषण से एक घंटे पहले, जुलाई के विद्रोह में भाग लेने वाले छात्र और अन्य शाहबाग में एकत्र हुए और बुलडोजर के साथ धानमंडी तक मार्च किया.
भीड़ ने 32, धानमंडी स्थित घर का गेट तोड़ दिया - जहां 50 साल पहले 15 अगस्त को मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. बुधवार रात से घर को ईंट-ईंट करके तोड़ा जा रहा है और इमारत के एक हिस्से में आग लगा दी गई है. हसीना के स्वामित्व वाला एक अन्य घर, सुधा सदन, भी बुधवार देर रात आग के हवाले कर दिया गया.
हसीना के देश छोड़ने के बाद स्थापित की गई अंतरिम सरकार, जिसके मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस हैं, ने एक बयान में कहा कि हसीना ने अपने भाषण में उन लोगों का अपमान किया है जिन्होंने पिछले जुलाई में उनके खिलाफ आंदोलन में भाग लिया था. अंतरिम सरकार ने कहा, "उन्होंने जुलाई आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के बारे में झूठ और हास्यास्पद बातें कही और इसे बदनाम करने की कोशिश की. उनका लहजा वैसा ही था जैसा तब था जब उन्होंने भ्रष्टाचार, आतंक और मानवाधिकारों के प्रति पूरी तरह से अवहेलना के साथ शासन किया था."
"वह जन आंदोलन में भाग लेने वाले सभी को धमकी दे रही हैं. बांग्लादेश के लोग अभी भी पिछले जुलाई के घावों को भर रहे हैं और वह उन घावों को कुरेद रही हैं. 32, धानमंडी की घटनाएं उनकी हिंसक शैली की प्रतिक्रिया हैं."
अंतरिम सरकार ने दावा किया कि वह देश में शांति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और कानून और व्यवस्था बनाए रखने में शामिल एजेंसियां शांति बहाल करने के लिए पूरी कोशिश कर रही हैं. बयान में कहा गया है, "अगर हसीना, जिनके खिलाफ वारंट लंबित है, ऐसे बयान देने से परहेज करती हैं, तो ऐसी स्थितियों से बचा जा सकता है."
इससे पहले हसीना का भाषण शेख मुजीबुर रहमान के 32 धानमंडी निवास को भीड़ द्वारा नष्ट किए जाने के बाद आया. पुलिस की मौजूदगी के बावजूद भारी अर्थ मूविंग मशीनरी का उपयोग करके इमारत को ध्वस्त कर दिया गया. एक बयान में, अवामी लीग ने अंतरिम सरकार पर "प्रतिरक्षा" प्रदान करने का आरोप लगाया और कहा, "डॉ. यूनुस और पूरी अंतरिम सरकार पिछली रात की विनाशकारी कृत्यों की जिम्मेदारी से नहीं बच सकते."
"बांग्लादेश के आसपास विनाश का एक खेल शुरू हो गया है, जो अराजकता और उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. बांग्लादेश जो दुनिया भर में विकास का एक रोल मॉडल था, आतंकवादियों और लड़ाकों की भूमि बन गया है. यह वास्तव में हम सभी के लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है," हसीना ने अपने भाषण में कहा.
यूनुस की सरकार को "पूरी तरह से असंवैधानिक" बताते हुए, उन्होंने कहा, "वह (यूनुस) धन शक्ति का उपयोग करके और हमारे देश के कई लोगों के शवों पर पैर रखकर सत्ता में आए हैं. यूनुस साहब द्वारा मेरी और मेरी बहन की हत्या करने की सावधानीपूर्वक योजना बनाई गई थी."
हरियाणा भाजपा प्रमुख के खिलाफ बलात्कार का मामला हिमाचल में बंद अब हरियाणा में शिकायतकर्ता के खिलाफ ब्लैकमेल का केस
हिमाचल प्रदेश पुलिस ने हरियाणा भाजपा प्रमुख मोहन लाल बादोली और गायक रॉकी मित्तल के खिलाफ दर्ज सामूहिक बलात्कार मामले को बंद कर दिया है. इसके साथ ही, हरियाणा पुलिस ने शिकायतकर्ता महिला और तीन अन्य लोगों के खिलाफ ब्लैकमेलिंग का केस दर्ज किया है. इस बीच शिकायतकर्ता ने कहा है कि वह सबूतों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगी.
हिमाचल पुलिस के मुताबिक नालागढ़ कोर्ट में पेश क्लोजर रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता और गवाहों के बयानों में विसंगतियां मिलीं. पुलिस का कहना है कि होटल का सीसीटीवी फुटेज नहीं और पीड़िता ने मेडिकल जांच से इनकार किया. केसूली थाने में यह केस दिसंबर 2023 में दर्ज हुआ था, जबकि घटना जुलाई 2023 की बताई गई थी.
इस बीच पीड़िता का कहना है कि उसके पास सबूत हैं, पर जान को खतरा भी. जनवरी में जारी एक वीडियो में दिल्ली की महिला ने कहा, "डेढ़ साल से चुप रही, अब सबूतों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करूंगी. आरोपियों ने मेरी सहेली को झूठा बयान देने के लिए दबाव डाला. मुझे मारने की धमकी मिली है. पंचकूला में हमें फंसाने की कोशिश हुई, लेकिन मैं लड़ती रहूंगी.”
अब रॉकी मित्तल की शिकायत पर हरियाणा के पंचकूला के सेक्टर 5 थाने में भारतीय न्याय संहिता की धारा 308(2), 308(5), 351(2) और 61 के तहत केस दर्ज किया गया है. आरोप है कि पीड़िता ने 50 लाख रुपये की एवज में केस वापस लेने की मांग की. मित्तल का कहना है, "21-22 जनवरी को उसने मिस्ड कॉल्स की और धमकी दी."
बादोली और मित्तल ने केस को "झूठा और राजनीतिक षड्यंत्र" बताया. बादोली की पत्नी गीता कौशिक ने सीबीआई जांच की मांग की थी. मित्तल का कहना है, "एआई से बनाए फर्जी वीडियो से ब्लैकमेल करने की कोशिश हुई."
विचार
विविधता, असहमति और आज़ादी को रौंदने की कोशिश
'स्क्रॉल' के लिए लिखे अपने एक लेख में समर हलर्नकर ने भारतीय जनता पार्टी की एकरूपता की ओर बढ़ते रुझान की आलोचना की है. उन्होंने भारत की विविधता और बहुलता को चुनौती के रूप में देखा है, जो सरकार की एकरूपता की कोशिशों के खिलाफ खड़ी है. हलर्नकर के अनुसार, भारत की संविधान और संस्कृति में असहमति और विविधता निहित हैं, और इन पर अंकुश लगाने की कोशिशें अंततः विफल हो सकती हैं. उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि सरकार की एकरूपता की कोशिशें मीडिया की स्वतंत्रता और आलोचना की संस्कृति को दबाने की ओर इशारा करती हैं. उदाहरण के लिए, उन्होंने रिपोर्टर्स कलेक्टिव जैसे स्वतंत्र मीडिया संगठनों के खिलाफ आयकर विभाग की कार्रवाइयों का हवाला दिया, जो स्वतंत्र पत्रकारिता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं. उन्होंने लिखा है कि महाकुंभ में 30 लोगों की मौत के बाद, नरेंद्र मोदी की सरकार ने हमेशा की तरह एकता के संदेश को प्रमुखता दी, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत के विविध समाज को एकजुट दिखाना था. यह एकता विशेष रूप से हिंदू एकता की ओर इशारा करती है, जिसे मोदी और उनके सहयोगी बढ़ावा देते हैं. महाकुंभ का संदेश था "विविधता में एकता, एकजुटता में ताकत", लेकिन यह वाक्य मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ज्यादा आक्रामक और धमकी देने वाले बयान "बटेंगे तो कटेंगे" का नरम रूप था.
भारत में एकता के विचार को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं लागू की गई हैं - जैसे "एक राष्ट्र, एक चुनाव", "एक राष्ट्र, एक नागरिक संहिता", "एक भाषा", "एक बाजार" आदि. हालांकि इन योजनाओं के कारण कई भारतीयों को चिंता होती है, जिनमें मोदी के सहयोगी भी शामिल हैं. खासकर "एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक" पर जनता दल (यूनाइटेड) ने व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता की बात की है. यहां एक अहम पहलू यह है कि सरकार का उद्देश्य सिर्फ एकता नहीं है, बल्कि एक "एक आवाज" बनाना भी है, खासकर मीडिया में. मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत के मीडिया में कई बदलाव आए हैं और आज सरकार के समर्थक मीडिया घरानों का दबदबा बढ़ गया है. अधिकतर मीडिया घराने अब सरकार के पक्ष में हैं, जबकि स्वतंत्र मीडिया को काम करने में मुश्किलें आती हैं. सरकारी नीतियों की आलोचना करने वाले पत्रकारों और मीडिया संस्थाओं के खिलाफ आपराधिक मामले, छापे और अन्य दबाव डालने की कोशिश की जाती है.
भारत सरकार ने अपनी विफलताओं पर सार्वजनिक चर्चा को दबाने में मुख्य रूप से सफलता प्राप्त की है, क्योंकि मुख्यधारा मीडिया इसके पक्ष में है, जो या तो अडानी, अंबानी या अन्य समर्पित ओलिगार्क्स के स्वामित्व में हैं. सोशल मीडिया ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया है. अब, डोनाल्ड ट्रम्प उन कंपनियों के पीछे सांस ले रहे हैं, जो इनका संचालन करती हैं, ऐसे में मोदी का विरोध करने का सवाल ही नहीं उठता. इससे स्वतंत्र मीडिया बचता है, जो किसी तरह जीवित है और सरकार को जवाबदेह ठहराने और पत्रकारिता की गूंज बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रहा है. गिरफ्तारी, छापे और आपराधिक मामले अभी तक उन्हें बंद नहीं कर पाए हैं, लेकिन उनकी स्थिति नाजुक है, और उन्हें अक्सर अपनी पीठ के पीछे नजर रखनी पड़ती है.
इसके अलावा, मोदी सरकार का एक और तरीका "टैक्स और दबाव" का है. उदाहरण के लिए, "द रिपोर्टर्स कलेक्टिव" को आयकर विभाग का नोटिस मिला, जिसमें उनकी गैर-लाभकारी स्थिति को खत्म करने की बात कही गई, जिससे उन्हें और उनके दाताओं को कर चुकाना पड़ेगा. इससे पहले 2022 में भी स्वतंत्र मीडिया ट्रस्टों पर आयकर विभाग ने छापेमारी की थी, जो स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करते थे. सरकार की नीतियां और विशेष रूप से हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा दिया जा रहा है. यहां तक कि फिल्मों और टीवी शो में भी सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप बदलाव देखने को मिल रहे हैं.
हालांकि, समर हलर्नकर की उम्मीद खत्म नहीं हुई है. वो भारतीय मीडिया के उस स्वतंत्र हिस्से का भी जिक्र करते हैं जो सरकार के दबावों का सामना करते हुए काम कर रहा है और इसे लोकतंत्र के लिए जरूरी माना जाता है.
कौन से देशों ने ‘डीपसीक’ किया बैन! : 'अलजजीरा' की खबर है कि डीपसीक (DeepSeek) को दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और ताइवान में सरकारी उपकरणों पर प्रतिबंधित कर दिया गया है. अधिक देशों के भी ऐसा करने की संभावना है. इसका कारण चीनी तकनीकी के प्रति सुरक्षा चिंताएं और उपयोगकर्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी के प्रबंधन को लेकर अस्पष्टता है.
वैकल्पिक मीडिया
क्षमा सावंत को वीज़ा के लिए बढ़ता समर्थन
'द मूकनायक' की खबर है कि ‘मोदी सरकार क्षमा सावंत को उनकी बीमार मां से मिलने के लिए वीजा क्यों नहीं दे रही है?’ ये सवाल जोर पकड़ रहा है. सीएटल बेस्ड भारतीय-अमेरिकी राजनेता क्षमा सावंत ने अपनी मां की गंभीर हालत को देखने के लिए बेंगलुरु जाने के लिए भारतीय दूतावास से अपना पासपोर्ट वापस ले लिया है. उन्हें अपने आपातकालीन वीजा आवेदन पर प्रतिक्रिया मिलने में कई हफ्तों तक इंतजार करना पड़ा था. जब सावंत और उनके पति, कैल्विन प्रीस्ट ने अपना पासपोर्ट वापस लिया, तो उन्होंने एक पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि वे चाहते हैं कि उनके वीजा आवेदन की प्रक्रिया जारी रहे. इसके बावजूद, भारत सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे राजनीतिक प्रतिशोध के आरोप और भी मजबूत हो गए. सावंत मोदी सरकार की लंबे समय से आलोचक रही हैं और जातिगत भेदभाव के खिलाफ मुखर रूप से आवाज उठाती रही हैं. भारत ने उन्हें तीन बार वीजा देने से इनकार किया है. दो बार 2024 में और एक बार जनवरी 2025 में. क्षमा के समर्थन में एक ऑनलाइन याचिका, जो भारत सरकार से उन्हें वीजा देने की मांग कर रही है, पहले ही 752 हस्ताक्षर जुटा चुकी है, जिसमें कई लोग मोदी प्रशासन की कार्रवाई को प्रतिशोधपूर्ण और अमानवीय करार दे रहे हैं.
मोहन भागवत को अब अंग्रेजी से दिक्कत
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को केरल में कहा कि हिंदुओं को सार्वजनिक कार्यक्रमों में पारंपरिक परिधान पहनने चाहिए और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए. भागवत ‘हिंदू एकता सम्मेलन’ का उद्घाटन कर रहे थे. उन्होंने कहा कि "धर्म" हिंदू धर्म की आत्मा है और हर किसी को व्यक्तिगत रूप से इसका पालन करना चाहिए. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि प्रत्येक परिवार को सप्ताह में कम से कम एक बार प्रार्थना करने या इस पर विचार करने के लिए इकट्ठा होना चाहिए कि क्या उनकी वर्तमान जीवनशैली परंपरा के अनुरूप है.
केरल के पथनमथिट्टा जिले में पंपा नदी के किनारे आयोजित वार्षिक चेरुकल्पुझा हिंदू सम्मेलन के भाग के रूप में इस सम्मेलन का आयोजन किया गया था. चेरुकल्पुझा हिंदू सम्मेलन का आयोजन केरल स्थित समूह, हिंदुमाता महामंडलम द्वारा किया जाता है, जिसकी कल्पना 1913 में सुधारक चट्टम्बी स्वामीकल ने अस्पृश्यता से लड़ने के लिए एक सुधारवादी संगठन के रूप में की थी. स्वामीकल ने पारंपरिक और कर्मकांडी प्रथाओं के संबंध में हिंदू धर्म में सुधार और महिलाओं और हाशिए के समुदायों के सशक्तीकरण की मांग की.
आरएसएस प्रमुख ने कहा, "धर्म का पालन नियमों के अनुसार किया जाना चाहिए. और यदि कोई प्रथा नियमों के दायरे से बाहर है, तो उसे समाप्त कर दिया जाना चाहिए. जैसा कि गुरु (श्री नारायण गुरु) कहते हैं, जातिवाद और अस्पृश्यता धर्म नहीं हैं. उन्हें समाप्त कर दिया जाना चाहिए."
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