07/03/2025 : टैक्स वाले झांकेंगे मेल और सोशल मीडिया में, पुलिस की निगाह में कपिल मिश्रा बेकसूर, दंगा पीड़ितों को 5 साल बाद भी मुआवजा नहीं, यूक्रेनियों पर ट्रम्प के जुल्म जारी
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आज की सुर्खियां
आयकर विभाग को मिलेगा आपके ईमेल्स और सोशल मीडिया अकाउंट्स का एक्सेस
‘द वायर’ की खबर है कि 1 अप्रैल 2026 से आयकर प्राधिकरण प्रत्येक व्यक्ति के सोशल मीडिया अकाउंट्स, व्यक्तिगत ईमेल्स, बैंक अकाउंट्स, ऑनलाइन निवेश अकाउंट्स, ट्रेडिंग अकाउंट्स और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की जांच करने और उन तक पहुंचने में सक्षम होंगे. प्राधिकरणों को यह अधिकार होगा कि वे डिजिटल प्लेटफार्म्स तक पहुंच प्राप्त कर सकें, यदि उन्हें यह संदेह हो कि किसी व्यक्ति ने आयकर से बचने के लिए कोई आय या संपत्ति मसलन धन, सोना, गहने या कोई अन्य मूल्यवान वस्तु/सम्पत्ति छिपाई है, जिस पर संबंधित आयकर का भुगतान नहीं किया गया है. आयकर अधिनियम, 1961 के तहत अब यह तय किया गया है, अधिकारी कहीं भी घुसकर कुछ भी जांच कर सकंगे. वर्तमान आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 के अनुसार, आयकर प्राधिकरणों को यह अधिकार था कि वे किसी भी दरवाजे, बॉक्स या लॉकर को खोल सकते थे, यदि उनके पास चाबी उपलब्ध नहीं थी और यदि उन्हें संदेह था कि कोई अप्रकट संपत्ति या दस्तावेज वहां रखे गए हैं, लेकिन, नए आयकर विधेयक ने इस अधिकार को नागरिकों के मोबाइल फोन और कंप्यूटर सिस्टम्स तक विस्तारित कर दिया है, जिसे उन्होंने "वर्चुअल डिजिटल स्पेस" कहा है.
ऐसी व्यापक निगरानी शक्तियाँ बिना सुरक्षा उपायों के व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकारों को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे संविधान के अनुच्छेद 21 को चुनौती मिलती है. इसके अतिरिक्त, नए आयकर विधेयक के तहत अनियंत्रित निगरानी संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत व्यक्तियों के बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भी चुनौती देती है, जिससे यह कानूनी रूप से कमजोर और सवालों के घेरे में है.
दिल्ली पुलिस ने कपिल मिश्रा को बेकसूर बताया
2020 के दंगों में भाजपा नेता की संलिप्तता में एफआईआर दर्ज करने का विरोध
दिल्ली पुलिस ने बुधवार को आरोप लगाया कि फरवरी 2020 में राष्ट्रीय राजधानी में हुए दंगों के लिए भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली सरकार में कानून और न्याय मंत्री कपिल मिश्रा को फंसाने की साजिश रची गई थी. पुलिस ने राउज एवेन्यू कोर्ट के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया को लिखित रूप से मोहम्मद इलियास नामक व्यक्ति की याचिका का विरोध किया, जिसमें कपिल मिश्रा पर सांप्रदायिक हिंसा में संलिप्तता के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी. इस दंगे में 53 लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हो गए थे. फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन अधिनियम के समर्थकों और इसका विरोध करने वालों के बीच झड़पें हुई थीं. पुलिस के अनुसार, उनकी जांच में मिश्रा के खिलाफ कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला. अदालत ने अपना आदेश 24 मार्च के लिए सुरक्षित रख लिया.
दिल्ली पुलिस का दावा है कि हिंसा नरेंद्र मोदी सरकार को बदनाम करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा थी. वहीं इलियास ने दावा किया कि उसने 23 फरवरी, 2020 को मिश्रा और उसके साथियों को सड़क जाम करते और रेहड़ी-पटरी वालों की गाड़ियों को नष्ट करते देखा था और उस वक्त पुलिस अधिकारी कपिल मिश्रा के बगल में खड़े थे. प्रदर्शनकारियों को क्षेत्र खाली करने या परिणाम भुगतने का आदेश दिया गया था.
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की तथ्य-खोज समिति की रिपोर्ट के अनुसार, कपिल मिश्रा सहित भाजपा नेताओं द्वारा भड़काऊ टिप्पणियों के कारण दंगे भड़के थे. शिकायतकर्ता मिश्रा समेत अन्य स्थानीय भाजपा नेताओं और पुलिस कर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने स्थानीय पुलिस स्टेशनों में गए थे, तब अधिकारियों ने कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था. इसके बाद उन्होंने कोर्ट का रुख किया है.
दिल्ली दंगे के पांच साल बाद भी पीड़ितों को नहीं मिला मुआवज़ा : कारवां-ए-मोहब्बत की रिपोर्ट
दिल्ली दंगा के पांच साल बाद, ‘कारवां-ए-मोहब्बत’ अभियान की एक रिपोर्ट ‘द एबसेंट स्टेट : कॉम्प्रिहेन्सिव स्टेट डिनायल ऑफ रिपरेशेन एंड रिकम्पेन्स टू द सर्वाइवर्स ऑफ द 2020 दिल्ली पोग्रोम’ बताती है कि आधे दशक बाद भी पीड़ितों को (तत्काल राहत और मौत की एवज में मिले मुआवजे को छोड़कर) कोई ठोस मुआवजा नहीं मिला है. रिपोर्ट के लेखकों का कहना है, ‘यह भारत के इतिहास में सांप्रदायिक हिंसा के बाद मुआवजे के भुगतान की संभवतः सबसे खराब स्थिति है.’
रिपोर्ट बनाने वाले संगठनों में मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर के नेतृत्व वाला ‘कारवां-ए-मोहब्बत’ और कानूनी सहायता समूह ‘अमन बिरादरी ट्रस्ट’ शामिल हैं, जो अब भी हिंसा के पीड़ितों के साथ जुड़कर काम कर रहे हैं.
रिपोर्ट बताती है कि हिंसा के समय दिल्ली पुलिस ने हस्तक्षेप के लिए किए गए इमरजेंसी कॉल को नजरअंदाज कर दिया. हालात इतने गंभीर थे कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस एस. मुरलीधर को आधी रात में दखल देना पड़ा. हिंसा जब चरम पर थी, तब राज्य सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारी मंदिरों में प्रार्थना कर रहे थे. शुरुआत में सरकार ने राहत शिविर तक नहीं लगाए. बाद में, पहले से मौजूद और भरे हुए बेघर आश्रय स्थलों को ही राहत शिविरों में बदल दिया. इतना ही नहीं दिल्ली सरकार ने मुआवजे की राशि भी 1984 के ‘दिल्ली दंगों’ के पीड़ितों को मिले मुआवजे से बहुत कम रखा. इसके अलावा, दिल्ली सरकार ने खुद मुआवजा तय करने का अपना दायित्व हाईकोर्ट के जरिये ‘नॉर्थ ईस्ट दिल्ली राइट क्लेम्स कमीशन’ (एनईडीआरसीसी) को सौंप दिया. संपत्ति के नुकसान का आकलन कर दंगाइयों से भरपाई करवाने के लिए बनाए गए इस आयोग और अदालतों ने संपत्ति के नुकसान का मूल्यांकन तो किया, लेकिन उसके अनुसार मुआवजे का कोई भुगतान नहीं किया गया.
पीडितों का आरोप है कि एनईडीआरसीसी ने निजी मूल्यांकनकर्ताओं को नियुक्त किया, जिनके मानक अज्ञात हैं. पीड़ितों को न तो इसकी कोई सूचना दी गई और न ही उन्हें एक भी बार सार्वजनिक सुनवाई के लिए बुलाया गया.
रिपोर्ट में 146 मुआवजा मामलों का जिक्र है. इनमें से 81% मामले संपत्ति नुकसान के हैं. शारीरिक चोटों से जुड़े मामले 18% हैं. रिपोर्ट के अनुसार, इनमें मुसलमानों के मुआवजे के कुल 139 मामले थे, जबकि अन्य समुदायों से संबंधित केवल 5 मामले सामने आए थे और इनमें से किसी भी मामले में कोई धनराशि वितरित नहीं की गई है.
दिल्ली सरकार का कुल बजट 75,000 करोड़ रुपये से अधिक है (हालिया बजट के अनुसार), लेकिन राहत के लिए केवल 153 करोड़ रुपये की मांग की गई और मंजूर हुए सिर्फ 21 करोड़ रुपये.
ध्यान देने वाली बात यह है कि दिल्ली पुलिस की हिंसा जांच के नतीजे के रूप में मुस्लिम कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को जेल भेजा गया, जबकि रिकॉर्ड पर घृणास्पद भाषण देते पकड़े गए हिंदू नेताओं पर अब तक कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है. कई निचली अदालतें इसकी आलोचना कर चुकी हैं.
जब आईसीयू से भाग खड़ा हुआ मरीज
आयुष्मान भारत योजना के बावजूद आम आदमी को प्राइवेट अस्पतालों की लूट का शिकार होना पड़ रहा है. मध्यप्रदेश के रतलाम से आई यह खबर बताती है कि पैसे ऐंठने के लिए निजी अस्पताल कुछ भी कर सकते हैं. अस्पताल ने कहा, मरीज की हालत गंभीर है और वह कोमा में चला गया है. उसे आईसीयू में भर्ती कर लिया और उसकी पत्नी से पैसे का इंतजाम करने के लिए कहा. पत्नी ने इंतजाम कर कथित तौर पर 50 हजार रुपये अस्पताल में जमा कर दिए. कुछ देर बाद पति आईसीयू से दौड़ता हुआ बाहर आया और उसने तमाम आरोप लगाए. बताया कि रस्सी से उसके हाथ पाँव बांध दिए थे. इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. सरकार पूरे मामले की जांच करा रही है. पूरी खबर को यहां पढ़ सकते हैं.
बलात्कारी को पीड़िता से शादी करने की शर्त पर जमानत
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी को इस शर्त पर जमानत दे दी कि उसे तीन माह के भीतर शिकायतकर्ता पीड़िता के साथ शादी करना होगी. यदि आरोपी ने ऐसा नहीं किया तो उसकी जमानत निरस्त हो जाएगी. 26 वर्षीय आरोपी नरेश मीणा उर्फ नरसाराम मीणा ने जब यह कहा कि वह पीड़िता का अपनी पत्नी की तरह ख्याल रखने के लिए तैयार है, तो न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने 20 फरवरी को जमानत का आदेश पारित कर दिया. हालांकि आदेश इस बात पर मौन है कि ऐसा निर्देश क्यों दिया गया और अदालत ने पीड़िता को सुना या नहीं? कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मीणा के पिछले आपराधिक रिकॉर्ड की अनुपस्थिति और “जमानत एक नियम, जेल एक अपवाद” के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए अभियुक्त को जमानत दी गई. इस मामले में “हिंदुस्तान” ने अपने “एक्स” हैंडल से लिखा- आरोपी ने लड़की के साथ बार-बार रेप किया और उसका अश्लील वीडियो इंटरनेट पर भी पोस्ट कर दिया. हिंदुस्तान ने कोर्ट के इस फ़ैसले पर लोगों की राय भी मांगी है. यह भी संयोग है कि न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने ही रेप के एक अन्य मामले में आरोपी को नाबालिग पीड़िता के साथ शादी और उसके नवजात की देखभाल करने की शर्त पर जमानत दी थी. कोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर 2024 के इस आदेश में नवजात के नाम बैंक में 2 लाख रुपये का फिक्स डिपॉजिट करने के लिए भी कहा गया था.
‘मंगलसूत्र-बिंदी नहीं पहना तो आपके पति को आपमें रुचि क्यों होगी?’
पुणे में जिला अदालत के एक न्यायाधीश ने पति-पत्नी के विवाद में मध्यस्थता करते हुए पत्नी को उसके कर्तव्यों के बारे में उपदेश देना उचित समझा. जज साहब ने महिला से कहा, “मैं देख सकता हूं कि आप मंगलसूत्र या बिंदी नहीं पहने हुए हैं. अगर आप एक विवाहित महिला की तरह व्यवहार नहीं करती हैं, तो आपके पति को आपमें दिलचस्पी क्यों होगी?” बार एंड बेंच में रत्ना सिंह ने जजों की टिप्पणियों के बारे में रिपोर्ट की है.
जैनों को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक देने से इनकार
जैन समुदाय के कई सदस्यों ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, क्योंकि इंदौर के एक फैमिली कोर्ट ने उन्हें हिंदू विवाह अधिनियम के तहत राहत देने से इनकार कर दिया.
इंदौर फैमिली कोर्ट के प्रथम अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश धीरेंद्र सिंह ने पिछले माह फरवरी में जैन धर्म के एक दंपत्ति को हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत तलाक देने से इनकार कर दिया था, यह देखते हुए कि "जैन धर्म एक ऐसा धर्म है जो हिंदू धर्म की मूल वैदिक परंपराओं और विश्वासों का विरोध करता है और वैदिक परंपरा पर आधारित नहीं है, जबकि हिंदू धर्म पूरी तरह से वैदिक परंपरा पर आधारित है.” एक आवेदक के वकील पंकज खंडेलवाल ने “द इंडियन एक्सप्रेस” को बताया, “हमने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और बताया है कि लगभग 28 इसी तरह के आवेदन फैमिली कोर्ट द्वारा खारिज किए गए हैं, जो अब अपील के अधीन हैं.” कोर्ट ने दोनों धर्मों के बारे में और क्या-क्या टिप्पणी की या अंतर बताए, यहां विस्तार से है
भाजपा नेता ने अपनी ही सरकार को भ्रष्ट बताया
गोवा के भाजपा नेता और पूर्व मंत्री पांडुरंग मडकाइकर ने आरोप लगाया है कि गोवा के सीएम प्रमोद सावंत के नेतृत्व वाली कैबिनेट के मंत्री ‘पैसे गिनने में व्यस्त हैं. उन्होंने कहा, “लूट हो रही है. कुछ भी नहीं चल रहा है. वे केवल पैसे गिनने में लगे हैं. सभी मंत्री पैसे गिनने में व्यस्त हैं. गोवा में कुछ भी नहीं हो रहा है.” मडकइकर ने आरोप लगाया कि राज्य के मंत्रियों को “फाइलें पास कराने” के लिए लाखों रुपये देने पड़ते हैं. उन्होंने दावा किया कि पिछले सप्ताह “एक छोटे से काम” के लिए उन्हें भी एक भाजपा मंत्री को 15-20 लाख रुपये की रिश्वत देनी पड़ी थी.
मीडिया पर निगरानी के लिए 10 करोड़ रुपये : महाराष्ट्र सरकार 10 करोड़ रुपये के अनुमानित खर्च से एक मीडिया निगरानी केंद्र स्थापित करेगी. यह केंद्र राज्य सरकार से संबंधित समाचार कवरेज, जिसमें प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, सोशल और डिजिटल माध्यम, की निगरानी करेगा. इसके द्वारा कवरेज का विश्लेषण कर एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी. यह राज्य सरकार से संबंधित नकारात्मक या भ्रामक समाचारों के प्रसार की जानकारी देगा और कार्रवाई भी करेगा.
पुलिस ने गोवध के आरोप में दो को पीटा, जुलूस निकाला : मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में गोवध के आरोप में गिरफ्तार किए जाने के बाद दो लोगों को दिन के उजाले में सार्वजनिक रूप से पीटा गया और उनकी 'परेड' निकाली गई. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में दिखाई पड़ रहा है कि घट्टिया पुलिस उनका जुलूस निकाल रही है. डंडे के बल पर दोनों आरोपियों से “गाय हमारी माता है, पुलिस हमारा बाप” कहलवाया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में घरों को ध्वस्त करने के लिए यूपी सरकार की आलोचना की : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य लोगों के घरों को ध्वस्त करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना की. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कड़ी असहमति जताते हुए कहा कि ये कार्रवाइयां ‘चौंकाने वाली हैं और गलत संकेत’देती हैं. जस्टिस ओका ने राज्य की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि अब अदालत को सरकारी खर्च पर ध्वस्त संरचनाओं का पुनर्निर्माण करने का आदेश देना पड़ेगा. ऐसा करने का यही एकमात्र तरीका है. अदालत ने याद दिलाया कि अनुच्छेद 21 नाम की भी कोई चीज होती है.
मौलाना ने शमी को रोजा न रखने पर अपराधी कहा : ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने रमज़ान के दौरान रोज़ा न रखने के लिए भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी को ‘अपराधी’ करार दिया. उसने कहा, “शमी को ईश्वर को जवाब देना होगा. इस्लाम में रमज़ान के दौरान रोज़ा रखना अनिवार्य कर्तव्य है और इसे न रखना अपराध है. शमी मैच के दौरान पानी या कुछ पी रहे थे. लोग उन्हें देख रहे थे. अगर वह खेल रहे हैं, तो इसका मतलब है कि वह स्वस्थ हैं. मैं शमी को इस्लाम और शरीयत के सिद्धांतों का पालन करने की चेतावनी देता हूं.’’
बरेलवी की टिप्पणी दुबई में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की चार विकेट की जीत के बाद आई. इस बयान की मुसलमान आलिम ही व्यापक आलोचना कर रहे हैं. शिया मौलवी मौलाना यासूब अब्बास ने इसे पब्लिसिटी स्टंट बताया. उन्होंने कहा, “रोजा रखना निजी पसंद है, मजबूरी नहीं.” इस विवाद में भाजपा नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री मोहसिन रजा भी कूदे. उन्होंने कहा, “यह अल्लाह और उसके मानने वालों के बीच का मामला है. मौलाना को इसमें टांग अड़ाने का कोई हक नहीं है. शमी अपना राष्ट्रीय कर्तव्य निभा रहे हैं और हमारा धर्म इसकी इजाजत देता है. मौलाना को अपने बयान के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए.”
तहव्वुर राणा ने प्रत्यर्पण रोकने की मांग की : मुंबई आतंकवादी हमले के आरोपी तहव्वुर राणा ने भारत प्रत्यर्पण के खिलाफ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में ‘आपातकालीन आवेदन’ लगाकर प्रत्यर्पण रोकने की मांग की है. इसमें दावा किया गया है कि वह पाकिस्तानी मूल का मुसलमान है, इसलिए उसे वहां प्रताड़ित किया जाएगा. इसके अलावा उसने अपने स्वास्थ्य ठीक न होने का हवाला भी दिया है.
चिनार काटने की रिपोर्ट पर पत्रकारों को जेल की हवा : नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता और विधायक बशीर अहमद वीरी ने बुधवार को विधानसभा में आरोप लगाया कि पिछले सप्ताह कश्मीर के अनंतनाग जिले में चिनार के पेड़ों की कटाई कवरेज करने वाले कुछ पत्रकारों को जिला प्रशासन ने हिरासत में ले लिया. जहांगीर अली ने बताया कि सूत्रों के अनुसार कम से कम तीन पत्रकारों को हिरासत में लिया गया है. जिला अधिकारी इस बात से नाखुश थे कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट में सरकार का पक्ष शामिल नहीं किया. एक सूत्र ने बताया कि कुछ पत्रकारों को तीन दिनों तक पुलिस स्टेशन में रखा गया और उसके बाद चेतावनी देकर छोड़ दिया गया.
पाठकों से अपील
जंग के बीच पाला बदल कर ट्रम्प की यूक्रेन पर दमनकारी कार्रवाइयां जारी
नये नेता की तलाश, युद्ध शरणार्थियों को डिपोर्ट करने की तैयारी, कीव से इंटेल साझा करना बंद
यूक्रेन की बिसात पर डोनल्ड ट्रम्प की धौंसपट्टी अब भी जारी है. इन अनिश्चितताओं को लेकर ब्रसेल्स में यूरोपीय नेताओं ने गुरुवार को यूक्रेन के साथ एकजुटता दिखाई और रक्षा व्यय बढ़ाने की घोषणा की. इसी दौरान पोलिटिको के मुताबिक ट्रम्प प्रशासन के चार लोगों ने यूक्रेन के विपक्ष के उन नेताओं से बातचीत शुरू की, जो जेलेंस्की के विकल्प हो सकते हैं, और जिनके साथ ‘डील’ करना अमेरिका के लिए आसान हो सकता है. इसी बीच ट्रम्प ने आज युद्ध में जान बचा कर अमेरिका आये यूक्रेनियों की वैधानिक अवस्था को खत्म करने का एलान भी किया है और उन्हें डिपोर्ट करने की धमकी भी दे रहा है. इनकी संख्या 2,40,000 बताई जाती है. इससे पहले अमेरिका ने सैन्य मदद रोकने के तुरंत बाद यूक्रेन से अपनी इंटेलिजेंस साझा करनी बंद कर दी. तेज़ी से बदलते इस घटनाक्रम में अगर ट्रम्प के मुरीद इस वक़्त कहीं भी बढ़ रहे हैं तो रूस में. जहाँ पुतिन के समर्थक अमेरिका और ट्रम्प को अपना दोस्त और पार्टनर कह रहे हैं.
पर यूरोप अभी भी यूक्रेन के साथ खड़ा है. पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने ब्रसेल्स शिखर सम्मेलन में कहा, "रूस के मुकाबले हम सैन्य, आर्थिक और वित्तीय रूप से मजबूत हैं. यूरोप को यह सैन्य होड़ स्वीकार करनी होगी और इसमें जीतना होगा." यूरोपीय नेताओं ने रक्षा व्यय पर 150 अरब यूरो (160 अरब डॉलर) के संयुक्त ऋण के प्रस्ताव का स्वागत किया. यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को यूरोपीय आयोग प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयेन और यूरोपीय परिषद अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा ने गर्मजोशी से स्वागत किया, जो ट्रम्प-ज़ेलेंस्की के हालिया टकराव के विपरीत था. रूसी खतरे को देखते हुए फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने यूरोपीय देशों को अपने परमाणु छत्र के तहत लाने की इच्छा जताई. लिथुआनिया के राष्ट्रपति गितानास नौसेदा ने इसे "रूस के लिए गंभीर चेतावनी" बताया, जबकि जर्मनी ने अमेरिकी भागीदारी पर जोर दिया. जर्मनी की अगली सरकार ने रक्षा व्यय के लिए संवैधानिक उधार सीमाएँ हटाने पर सहमति जताई, जो रूसी खतरे के प्रति गंभीरता को दर्शाता है. मैक्रों ने कहा, "मुझे अमेरिका पर भरोसा है, पर हमें स्वयं तैयार रहना होगा." यूरोप की यह एकजुटता रूसी आक्रमण के खिलाफ एक मजबूत संदेश है, लेकिन अमेरिकी समर्थन के बिना चुनौतियाँ बनी हुई हैं.
हालांकि नाटो का कहना है कि यूक्रेन को पिछले वर्ष 40% से अधिक सैन्य सहायता अमेरिका ने दी, जिसकी भरपाई यूरोप के लिए मुश्किल है. जर्मन चांसलर ओलाफ़ शोल्ज़ ने कहा भी, "अमेरिकी समर्थन की गारंटी जरूरी है, क्योंकि यूक्रेन की रक्षा इस पर निर्भर है." डोनल्ड ट्रम्प को अमेरिका के बाहर और भीतर भी लोग अब भी यूक्रेन के समर्थन में आने की उम्मीद से देख रहे हैं, पर उनके बर्ताव से कोई भी बात तय तौर पर नहीं कही जा सकती. ट्रम्प समर्थक हंगरी के नेता विक्टर ओर्बान ने कीव के समर्थन में एकमत बयान पर वीटो की धमकी दी, हालाँकि यूरोपीय रक्षा व्यय बढ़ाने के उपायों को समर्थन देने का संकेत दिया.
पुतिन और ट्रम्प एक तरफ
एन एपलबाम ने एटलांटिक में क्रूर अमेरिकी के उदय शीर्षक से लिखा है कि यूरोपीयों को यह समझ आ रहा है कि यह "वैकल्पिक वास्तविकता" रूसी प्रचार से सीधे प्रभावित है. वह कहती हैं कि अब ट्रम्प और उनके आसपास के लोग वही वाक्य कह रहे हैं, जो पहले पुतिन के मुंह और रूसी प्रोपोगंडा के जरिये सुना जा चुका है.
“अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प रूसी नैरेटिव को ऑनलाइन, प्रॉक्सी के जरिए, या खुद पुतिन से ग्रहण करते हैं या नहीं, यह स्पष्ट नहीं. परंतु ट्रम्प और उनके उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने रूस के दृष्टिकोण को पूरी तरह अपना लिया है. यह कोई नई बात नहीं : 2016 के चुनाव प्रचार के दौरान, ट्रम्प ने रूसी एजेंसी स्पुतनिक के झूठे दावों को दोहराया था, जैसे "हिलेरी क्लिंटन और ओबामा ने आईएसआईएस की स्थापना की" या "गूगल हिलेरी के खिलाफ खबरें दबा रहा है." उस समय ट्रम्प ने यह भी कहा था कि क्लिंटन "विश्व युद्ध-3" शुरू कर देंगी—एक और रूसी दुष्प्रचार. शुक्रवार को ओवल ऑफिस में उन्होंने ज़ेलेंस्की पर चिल्लाते हुए यही दोहराया : "तुम विश्व युद्ध-3 का जुआ खेल रहे हो!"
अमेरिका से यूरोप का उचटता मन
फ्रांस के 75% लोग अब अमेरिका को "मित्र" नहीं मानते. ब्रिटेन और डेनमार्क जैसे पारंपरिक अमेरिकी समर्थक देशों में भी बहुमत का रुख नकारात्मक हो गया है.
जर्मनी, फ्रांस, स्पेन, इटली और ब्रिटेन में हुए यूगव सर्वे के अनुसार, अधिकांश पश्चिमी यूरोपीय नागरिक डोनाल्ड ट्रम्प को यूरोप की शांति व सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा मानते हैं. यह सर्वे उस समय कराया गया जब ट्रम्प ने यूक्रेन को सैन्य सहायता रोक दी और ज़ेलेंस्की की आलोचना की. 58% (इटली) से 78% (ब्रिटेन) लोग ट्रम्प को "बड़ा खतरा" मानते हैं, जबकि पुतिन को 74% (इटली) से 89% (ब्रिटेन) ने खतरनाक बताया. ट्रम्प की लोकप्रियता बेहद कम : 80% ब्रिटेन और 63% इटली में उनके प्रति नकारात्मक रवैया. 52-78% यूरोपीयों ने यूक्रेन को शांति वार्ता से बाहर रखने को "अस्वीकार्य" बताया. हालांकि यूरोपीय लोग ये भी मानते हैं कि अमेरिकी हिस्सेदारी के बिना और सिर्फ यूरोपीय देशों के बूते यूक्रेन से रूस को बाहर किया जा सकता है और शांति बहाल की जा सकती है. यूक्रेन की लड़ाई में वित्तीय मदद देने को भी केवल 11% (इटली) से 46% (ब्रिटेन) ने खर्च बढ़ाने का समर्थन किया. फ्रांस और ब्रिटेन के शांति सैनिक तैनाती प्रस्ताव को 49 से 53% ने स्वीकृति दी, जबकि जर्मनी और इटली में इसका विरोध अधिक था. 65% ब्रिटेन और 55% स्पेन के लोगों को लगता है कि शांति समझौते के बाद रूस दोबारा हमला करेगा. 44 से 60% यूरोपीयों को डर है कि रूस अगले दशक में अन्य यूरोपीय देशों पर हमला कर सकता है. 26 फरवरी से 4 मार्च के बीच हुए सर्वे के मुताबिक, अमेरिका की नाटो प्रतिबद्धताओं पर यूरोपीयों का भरोसा कम हुआ है. केवल 18-39% को उम्मीद है कि अमेरिका बाल्टिक देशों की रक्षा करेगा. 67% ब्रिटेनवासी यूक्रेन की जीत चाहते हैं.
रूस का गेमप्लान
2025 में यह रवैया और खतरनाक है. यूरोप में रूसी सैन्य आक्रामकता बढ़ी है, साइबर हमले लगातार हो रहे हैं और यूरोपीय देशों में तोड़फोड़ की घटनाएं बार-बार हो रही हैं. वास्तव में, यह पुतिन हैं जिन्होंने युद्ध शुरू किया, उत्तर कोरियाई सैनिकों और ईरानी ड्रोनों को यूरोप लाए, लंदन को परमाणु हमले की धमकी दी, और युद्ध को लगातार विस्तार दिया. अधिकांश यूरोपीय इसी वास्तविकता में जी रहे हैं, न कि ट्रम्प के काल्पनिक संसार में. इस अंतर ने यूरोपीयों का अमेरिका के प्रति नजरिया बदल दिया है:
रूस की मंशा स्पष्ट है. उसने यूक्रेन से हटने या युद्ध रोकने की कोई घोषणा नहीं की है. बल्कि, पिछले एक दशक से रूस ने अपने समाज में क्रूरता के पंथ को ही बढ़ावा दिया है. यही वास्तविकता है, जिसे ट्रम्प और वेंस नजरअंदाज कर रहे हैं.
समझौते की संभावना
न्यूयॉर्कर ने पुतिन और अमेरिका-रूस संबंधों की विशेषज्ञ एंजेला स्टेंट से बात की. वर्तमान में वे ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन में वरिष्ठ फेलो हैं और उनकी नवीनतम पुस्तक "पुतिन्स वर्ल्ड : रशिया अगेंस्ट द वेस्ट एंड विद द रेस्ट" है. उनका कहना था, यूक्रेन को सबसे पहले एक ऐसा समझौता चाहिए, जिसमें यदि उन्हें अस्थायी क्षेत्रीय रियायतें देनी पड़ें, तो युद्धविराम को मजबूत सुरक्षा गारंटी समर्थन मिले. रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने स्पष्ट किया है कि नाटो सदस्य देशों के शांति सैनिकों को वे स्वीकार नहीं करेंगे. अमेरिकी वायु शक्ति और समर्थन के बिना ब्रिटेन-फ्रांस का सैन्य प्रभाव सीमित होगा.
स्टेंट के मुताबिक वर्तमान सैन्य स्थिति में यूक्रेन के लिए 2022 से कब्जाए गए क्षेत्र वापस लेना मुश्किल है. हालाँकि, यूक्रेन इन्हें अस्थायी रूप से खोया हुआ मानने को तैयार हो सकता है, पर स्थायी रूप से नहीं. रूस चार क्षेत्रों (2022 में अधिकृत) का पूर्ण नियंत्रण चाहता है, जबकि वह उन्हें पूरी तरह नियंत्रित भी नहीं करता. यह बातचीत में अड़चन बनेगी.
रूस धीरे-धीरे अधिक यूक्रेन के इलाकों को हासिल कर रहा है. यूक्रेन सैनिकों और अमेरिकी सहायता की अनिश्चितता का सामना कर रहा है. स्टारलिंक जैसी तकनीकी सहायता भी खतरे में है. ऐसे में, यूक्रेन के लिए समझौता करना समझदारी हो सकती है. पर जब तक गारंटी न हो कि रूस आगे नहीं बढ़ेगा, तब तक समझौता अगर होगा भी तो किस बात का. समझौते की बात 2022 में युद्ध के शुरुआती दौर में भी हुई थी पर टूट गई. कीव को पता था कि रूस किस तरह की ज्यादतियाँ कर रहा है. बाइडन प्रशासन ने यूक्रेन को हथियारों की पूर्ति में देरी की, जिससे उनकी सैन्य स्थिति कमजोर हुई. हालाँकि, यह संदेहास्पद है कि रूस उस समय भी गंभीरता से समझौता चाहता था.
क्या पुतिन वास्तव में शांति चाहते हैं? क्रेमलिन ट्रम्प के साथ संबंध सामान्य करने, प्रतिबंध हटाने, और G-7 में फिर से शामिल होने के अवसर को लेकर वह उत्साहित है. पुतिन का मानना है कि पश्चिमी एकजुटता कमजोर हो रही है और यूक्रेन युद्धक्षेत्र में पिछड़ रहा है. ऐसे में, वह समझौते से पहले और लाभ लेने की रणनीति पर चल सकता है.
ट्रम्प शायद पुतिन के साथ "डील" करके नोबेल शांति पुरस्कार पाना चाहते हैं, लेकिन रूस यूक्रेन से नाटो सदस्यता छोड़ने और चार क्षेत्रों का दावा छोड़ने की माँग करेगा. यदि यूक्रेन मना करता है, तो ट्रम्प प्रशासन उसे फिर दोषी ठहरा सकता है. इस स्थिति में, ट्रम्प रूस के साथ संबंध सुधारने को प्राथमिकता दे सकते हैं, भले ही युद्धविराम न हो.
इस बीच कनाडा में डोनल्ड ट्रम्प के खिलाफ यूट्यूब पर गाने डालने शुरू कर दिये गये हैं.
ट्रम्प के फैसले से मानसून आकलन मुश्किल होगा
‘स्क्रोल’ की रिपोर्ट है कि फरवरी के अंत में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) से लगभग 800 कर्मचारियों को निकाल दिया, जो देश की प्रमुख जलवायु और मौसम पूर्वानुमान संस्था है. इस कदम को चिंता के साथ देखने वालों में रघु मर्तुगुड्डे भी थे, जो एक पृथ्वी वैज्ञानिक और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के सेवानिवृत्त प्रोफेसर तथा मैरीलैंड विश्वविद्यालय के एमेरिटस प्रोफेसर हैं. मर्तुगुड्डे की चिंता भारतीय महासागर और उससे जुड़े वार्षिक मानसून पर होने वाले तापमान में वृद्धि के प्रभाव को समझने में थी. इसके लिए वह अक्सर राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (एनओएए) द्वारा संकलित डेटा पर निर्भर थे. मर्तुगुड्डे ने कहा- 'भारत कभी भी एनओएए द्वारा संकलित वैश्विक डेटा के आस-पास भी नहीं है.' मर्तुगुड्डे का कहना है कि एनओएए महासागरों के तापमान, लवणता और समुद्र स्तर पर व्यापक डेटा प्रकाशित करता है. यह जानकारी केवल उनके शोध के लिए महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि मर्टुगुड्डे के अनुसार यह भारत में अधिकांश मौसम विज्ञान गणनाओं का आधार भी है, जिसमें मानसून का पूर्वानुमान भी शामिल है. 'लंबी अवधि के मानसून पूर्वानुमान करते समय हमें महासागर और उसके मानकों को ध्यान में रखना पड़ता है, क्योंकि वे वायुमंडल को नियंत्रित करते हैं.' उन्होंने कहा.
क्यों हुआ अडानी की मन्नार में पवन ऊर्जा परियोजना का विरोध!
उद्योगपति गौतम अडानी की ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (एजीएएल) ने श्रीलंका के उत्तर में मन्नार में प्रस्तावित पवन ऊर्जा परियोजना के दूसरे चरण से अपने कदम वापस ले लिए हैं. इस परियोजना का उद्देश्य 52 पवन टर्बाइनों के माध्यम से 250 मेगावाट बिजली का उत्पादन करना था, लेकिन इसे शुरू से ही पर्यावरणीय प्रभाव और वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों के कारण कड़ा विरोध सामना करना पड़ा. इस परियोजना के खिलाफ स्थानीय पर्यावरण संगठनों ने पांच मुकदमे दायर किए थे. मन्नार क्षेत्र को पारिस्थितिकी के दृष्टिकोण से संवेदनशील माना जाता है और यह प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग है. इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पवन ऊर्जा परियोजना से स्थानीय वन्य जीवन को नुकसान हो सकता था, लेकिन फिलहाल वन्य जीव प्रेमी राहत महसूस कर रहे हैं. हालांकि नवीकरणीय ऊर्जा जलवायु परिवर्तन के दौर में एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, लेकिन श्रीलंकाई पर्यावरणविदों ने इस परियोजना का विरोध किया था, क्योंकि यह मन्नार क्षेत्र की संवेदनशील पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकती थी. इसके अलावा इस परियोजना को बिना प्रतिस्पर्धी बिडिंग प्रक्रिया के ठेका दिए जाने पर भी सवाल उठे थे.
औरंगजेब पर क्या बोले इतिहासकार इरफान हबीब?
भारतीय इतिहास के जाने-माने नाम, 94 साल के प्रोफ़ेसर इरफ़ान हबीब से ‘बीबीसी’ हिंदी के संपादक नितिन श्रीवास्तव ने एक मुलाक़ात में नामचीन ऐतिहासिक हस्तियों, इतिहास को देखने-परखने की मौजूदा बहस और कुछ ख़ास किस्सों पर पहली बार कैमरा पर बातचीत की. प्रोफेसर ने सम्राट अशोक से लेकर अकबर और औरंगजेब तक पर तथ्यों को सामने रखा है. उन्होंने कहा कि औरंगजेब के जमाने में जब यूरोपियन यात्री भारत आए तो उन्हें यह देखकर ताज्जुब हुआ कि यहां अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग आराम से रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम औरंगजेब की चाहे आलोचना कर लें, लेकिन वास्तव में उसके शासनकाल में सहिष्णुता थी.
जब उनसे पूछा गया कि कैसे देखते हैं नामों के बदलने को...? हम अभी अलीगढ़ में हैं. या जैसे औरंगजेब का नाम बदल दिया दिल्ली में... क्या ये सही है ...या कोई बड़ी बात नहीं है... क्या ऐसा दौर होता है… चेंज? इसपर इरफान हबीब कहते हैं - जिस वजह से बदला गया है, वो गलत है. अलीगढ़ का नाम पहले कोल था. कोल इसलिए नहीं रखा क्योंकि वो एक देव था और कृष्ण जी ने मारा था. अलीगढ़, मराठों का दिया हुआ नाम है. कहते हैं कि सिंधिया ने अपने किले का नाम अलीगढ़ रखा था और नगर का नाम कोलगंज रखा, लेकिन जब अंग्रेज आए तो उन्होंने दो नामों पर आपत्ति दर्ज की और ऐसे अलीगढ़ नाम ही शहर की पहचान बन गया. कहते हैं कि शहर का नाम सिंधिया के कमांडर नज्जफ अली खां के नाम पर रखा गया, तो इसकी कोई सनद नहीं. यहां देखिए पूरा इंटरव्यू…
ईरान : महिलाओं की आजादी के सवाल पर गायक ने झेले 74 कोड़े
‘द गार्डियन’ की खबर है कि एक प्रसिद्ध ईरानी गायक मेहदी यराही को ईरान की महिलाओं के लिए बने कठोर ड्रेस कोड के खिलाफ आवाज उठाने के चलते 74 कोड़े मारने की सजा दी गई है. यराही को अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले को समाप्त करने के लिए यह बर्बर समझौता करना पड़ा है. यराही को जनवरी 2024 में उस समय अवैध रूप से कार्य करने का दोषी ठहराया गया था, जब उन्होंने "तुम्हारा हेडस्कार्फ" (रू सरितो) नाम का गीत सितंबर 2023 में "महिलाएं, जीवन, स्वतंत्रता" आंदोलन की पहली सालगिरह पर जारी किया था. इस गाने में यराही ने ईरान में महिलाओं के खिलाफ कठोर कानूनों के खिलाफ सुर लगाया था. उन्होंने इस आंदोलन के दौरान अन्य गाने भी लिखे थे. उनके इंस्टाग्राम पर 1 मिलियन से अधिक अनुयायी हैं. उस समय, यराही ने एक्स पर लिखा था- “मैं 74 कोड़ों की सजा को स्वीकार करने के लिए तैयार हूं, जबकि मैं इस अमानवीय यातना की निंदा करता हूं, मैं इसे रद्द करने की कोई मांग नहीं करना चाहता.”
यराही ने इंस्टाग्राम पर लिखा- “आप हमारे पत्थर को तोड़ने के लिए कांच लाए हैं. जो स्वतंत्रता की कीमत चुकाने को तैयार नहीं है, वह स्वतंत्रता का हकदार नहीं है. आपकी स्वतंत्रता की कामना.” मध्यकालीन शैली की कोड़े मारने की खबर ने ईरानी सोशल मीडिया पर व्यापक आक्रोश पैदा किया है.
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता नगर्स मोहम्मदी ने इंस्टाग्राम पर लिखा- “मेहदी यराही की कोड़े मारने की सजा ईरान की महिलाओं के समर्थन के लिए बदला है. यराही के शरीर पर कोड़े ईरान की गर्वीली, प्रतिरोधी महिलाओं और 'महिलाएं, जीवन, स्वतंत्रता' आंदोलन की खिलती और शक्तिशाली आत्मा पर एक चाबुक हैं.” मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की समाचार एजेंसी के अनुसार 2024 में, ईरानी न्यायपालिका ने कम से कम 131 व्यक्तियों को कुल 9,957 कोड़े मारने की सजा सुनाई.
चलते-चलते
आकाशवाणी पर विज्ञापन और जिंगल्स की दुनिया
रेडियो विज्ञापनों की शुरुआत 1967 में भारत में तब हुई थी, जब आकाशवाणी ने अपना पहला विज्ञापन प्रसारित किया. उस समय रेडियो पर विज्ञापन की प्रक्रिया बहुत जटिल थी. विज्ञापन एजेंसियों को अपनी स्क्रिप्ट पोस्ट के माध्यम से भेजनी पड़ती थी और फिर उसे मंजूरी के लिए बार-बार भेजना पड़ता था. सुजॉय कहते हैं- 'यह प्रक्रिया बहुत समय लेने वाली और निराशाजनक थी. हमारी एजेंसी को 12 रेडियो स्टेशनों से मंजूरी चाहिए होती थी और यह एक कठिन कार्य था.'
रेडियो पर विज्ञापन की शुरुआत ने भारतीय मीडिया की दुनिया में एक नया अध्याय जोड़ा. जिंगल्स और स्पॉट्स ने न केवल दर्शकों को आकर्षित किया, बल्कि ब्रांड रीकॉल को भी बढ़ाया. 'स्क्रोल' ने इसी पर बात करती विक्रांत पांडे और नीलेश कुलकर्णी की नई किताब 'आकाशवाणी : अ सेंचुरी ऑफ स्टोरीज फ्रॉम ऑल इंडिया रेडियो' के हवाले से रेडियो की इसी दुनिया पर एक रिपोर्ट की है.
लाइफबॉय का विज्ञापन भारतीय रेडियो पर प्रसारित होने वाले पहले और सबसे प्रभावशाली जिंगल्स में से एक था. 1967 में भारत में रेडियो पर विज्ञापन की शुरुआत के बाद, यह विज्ञापन सुनने वालों के दिलों में बस गया. भारत में रेडियो विज्ञापनों का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ और इसने अद्वितीय पहचान बनाई.
एक प्रसिद्ध ब्रांड गुरु, लेखक और विज्ञापन विशेषज्ञ संतोष देसाई कहते हैं 'यह एक ऐतिहासिक विज्ञापन था, मैं आपके दोस्त से सहमत हूं'. वे मुस्कुराते हुए यह बात कहते हैं और लाइफबॉय के जिंगल को गुनगुनाने लगते हैं. फिर वे कुछ और प्रसिद्ध जिंगल्स गाते हैं – "वज्रदंती, वज्रदंती, वीको वज्रदंती" और "खुशबूदार एंटीसेप्टिक क्रीम बोरोलीन". ये जिंगल्स आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं.
संतोष बताते हैं, "क्या आप देख सकते हैं कि इन जिंगल्स में समानता क्या थी?" "संगीत! आकर्षक संगीत!" वे खुद ही जवाब देते हैं, 'संगीत एक बड़ा ट्रिगर है याददाश्त के वास्ते. यह भावनाओं और यादों को जागृत कर सकता है.' कला अय्यर, जो पिछले तीन दशकों से जिंगल्स और विज्ञापनों का निर्माण कर रही हैं, समझाती हैं, 'यह सब एक छोटे से तत्व, जिसे हम 'अनैच्छिक संगीतात्मक छवियां' (आईएनएमआई) कहते हैं, उनके कारण होता है. जब आप कोई परिचित संगीत सुनते हैं, तो आपका मस्तिष्क उस धुन से जुड़ी यादों से भर जाता है. यही कारण है कि रेडियो जिंगल्स विज्ञापनों के लिए आदर्श होते हैं.'
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.