07/05/2025: सत्यपाल ने मोदी से माफी मांगने को कहा | पाकिस्तान पर दुनिया चुप | मॉक ड्रिल आज | दुष्यंत दवे के 10 सवाल | सिर्फ मुस्लिम नहीं, ईसाई भी | दोपहिया बिक्री में गिरावट | बनते ही भुतहा हवाई अड्डे
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता मामले का कोर्ट ने किया निबटारा
बांग्लादेश के मरीज अब भारत छोड़ चीन के रास्ते
मोदी को जाति जनगणना पर सभी दलों से बातचीत करने की सलाह
फरार घोषित हिंदुत्व कार्यकर्ता कर रहा है शादी, विशालगढ़ किला दंगे का है मुख्य आरोपी
भारत-ब्रिटेन ने 3 साल बाद व्यापार समझौते पर मुहर लगाई
विश्वास का उल्लंघन : उत्तर प्रदेश में ईसाइयों पर बढ़ता उत्पीड़न
₹7.25 करोड़ की किताबें यूनियन बैंक सवालों के घेरे में
₹4,300 करोड़ के नोटिस पर सैमसंग को एतराज
टोरंटो में हिंदू विरोधी परेड
यूएई | मनी लॉन्ड्रिंग मामले में भारतीय व्यवसायी गिरफ्तार
भारत ने शुरू किया ऑपरेशन सिंदूर, पाक के आतंकी ठिकानों पर साधा निशाना
बुधवार 7 मई को भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी ढाँचे को नष्ट करने के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया. एक सरकारी बयान में कहा गया है, “यह वह जगह है जहां से भारत के खिलाफ आतंकी हमलों की योजना बनाई गई और उन्हें निर्देशित किया गया. किसी भी पाकिस्तानी सैन्य ठिकाने को निशाना नहीं बनाया गया है. इस हमले में नौ जगहों को निशाना बनाया गया है. जल्द ही ऑपरेशन के बारे में बाद में विस्तृत जानकारी दी जाएगी.”
एपी के हवाले से द हिंदू ने लिखा है कि पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, भारत ने सीमा पार पीओके में तीन मिसाइलें दागीं. उनके अनुसार, मिसाइलों ने पीओके और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में कई स्थानों पर हमला किया. किसी के घायल होने या नुकसान की तत्काल कोई रिपोर्ट नहीं मिल पाई है. एएफपी की रिपोर्ट है कि पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई करने की कसम खाई है. पाक सेना ‘अपने हिसाब से समय और स्थान’ पर वह जवाबी करार्रवाई करेगा. वहीं द गार्डियन ने पाकिस्तानी र अनुसार, पाकिस्तानी सुरक्षा सूत्रों के हवाले से खबर की है कि पाकिस्तान की वायु सेना ने पाकिस्तान नियंत्रित क्षेत्र पर हमलों के जवाब में दो भारतीय विमानों को मार गिराया है.
पहलगाम के लिए प्रधानमंत्री को देश से माफी मांगनी चाहिए : सत्यपाल मलिक
‘द वायर’ के लिए करन थापर को दिये गये साक्षात्कार में जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने खुल कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्र सरकार की आलोचना की है. मलिक पहलगाम हमले के लिए केंद्र सरकार, विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, उन पर घोर लापरवाही, बेशर्मी, जवाबदेही से बचने, सांप्रदायिक राजनीति करने और कायरता का आरोप लगा रहे हैं. इस बातचीत का 12 बिंदुओं में सारांश.
पहलगाम हमले पर सरकार की विफलता और बेशर्मी : मलिक का कहना है कि सरकार को पहलगाम में हुई सुरक्षा चूक के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए थी, खासकर प्रधानमंत्री को. उनका आरोप है कि सरकार जानबूझकर लोगों को बहकाने की कोशिश कर रही है और यह ‘बेशर्मी’ की हद है. वे इस बात पर जोर देते हैं कि पहलगाम कश्मीर का सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल है और वहां कोई सुरक्षाकर्मी मौजूद नहीं था, जबकि सरकार के पास हमले के इनपुट थे.
जवाबदेही का अभाव : प्रधानमंत्री सर्वदलीय बैठक में भी नहीं गए, जिसे मलिक अहंकार की पराकाष्ठा मानते हैं. अमित शाह ने कथित तौर पर माफी मांगी, लेकिन प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं किया. मलिक का मानना है कि उपराज्यपाल को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए था, लेकिन उन्हें डर था कि जिम्मेदारी दिल्ली पर आएगी.
समीक्षा बैठकों की निरर्थकता : उनका दावा है कि गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पहलगाम से पहले की गई समीक्षा बैठकें महज ‘गपशप’ और ‘लंच’ थीं, जिनमें जमीनी हकीकत की कोई समझ नहीं थी. अगर उन्हें कश्मीर की जमीनी हकीकत पता होती, तो पहले से सुरक्षा होती.
खुफिया और सुरक्षा चूक : खुफिया अलर्ट के बावजूद कि पर्यटक स्थलों पर हमला हो सकता है और आतंकवादियों द्वारा रेकी किए जाने के बावजूद, सरकार ने न तो कश्मीरियों को और न ही पर्यटकों को कोई आधिकारिक चेतावनी दी.
घरों का विध्वंस और गिरफ्तारियां : मलिक संदिग्धों के घरों को बिना उचित प्रक्रिया के गिराने को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन और गलत मानते हैं, भले ही इसका कुछ लोग समर्थन कर रहे हों. करीब 2000 लोगों की सिर्फ शक के आधार पर गिरफ्तारी मूर्खतापूर्ण था, खासकर तब जब कश्मीरी पहली बार इस घटना के खिलाफ देश के साथ खड़े थे.
देश के अन्य हिस्सों में कश्मीरियों के खिलाफ प्रतिक्रिया : मलिक पंजाब और उत्तराखंड में कश्मीरी छात्रों और मसूरी में शॉल वालों पर हुए हमलों की निंदा करते हैं और कहते हैं कि राज्य सरकारों का कर्तव्य था कि वे उनकी रक्षा करें. दिल्ली सरकार इस पर खामोश रही, जिसे वे ‘निर्दयी और असंवेदनशील’ रवैया मानते हैं.
सरकार और मीडिया द्वारा सांप्रदायिक विभाजन का प्रयास : उनका मानना है कि सरकार हिंदू-मुस्लिम विभाजन से ही पैदा हुई है और इसे बनाए रखना चाहती है, और पहलगाम जैसी घटनाओं का इस्तेमाल इसी उद्देश्य के लिए करती है. मीडिया पर भी आरोप है कि उसने कश्मीरियों की सकारात्मक प्रतिक्रिया (जैसे मस्जिदों को पर्यटकों के लिए खोलना, टैक्सी ड्राइवरों द्वारा मुफ्त सेवा) को देश के सामने ठीक से प्रस्तुत नहीं किया.
सरकार की प्रतिक्रिया दिखावा और कायरता : मलिक का आरोप है कि सरकार ने दो हफ्ते बीत जाने के बाद भी कुछ ठोस कार्रवाई नहीं की है, केवल बैठकें कर रही है और ‘युद्ध उन्माद’ फैला रही है. वे इसे ‘दिखावा’ और देश को डराने की कोशिश मानते हैं. उनका कहना है कि प्रधानमंत्री और सरकार ‘डरपोक’ हैं और उनमें युद्ध शुरू करने या उसे बनाए रखने का ‘गुर्दा’ नहीं है. एयर रेड सायरन और ब्लैकआउट की प्रैक्टिस को वे जनता को मनोवैज्ञानिक रूप से डराने का प्रयास मानते हैं, ताकि हिंदू भावनाएं एकजुट हों और राजनीतिक लाभ मिले.
व्यक्तिगत प्रतिशोध : मलिक ने खुलासा किया कि किसान आंदोलन पर प्रधानमंत्री से असहमत होने के बाद उनके खिलाफ सीबीआई जांच शुरू की गई और उनके पैतृक घर पर भी छापा मारा गया. वे इसे प्रतिशोध की कार्रवाई मानते हैं. मलिक स्पष्ट करते हैं कि वे एक समय प्रधानमंत्री मोदी के प्रशंसक थे, लेकिन अब उनके ‘बहुत खिलाफ’ हैं और उन्हें देश का ‘दुर्भाग्य’ मानते हैं.
पाकिस्तान पर दुनिया चुप
पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद दुनिया भर से भारत के प्रति सहानुभूति की लहर उमड़ी, लेकिन एक महत्वपूर्ण शब्द गायब रहा : पाकिस्तान. भारत लगातार यह कहता रहा है कि यह सीमा पार आतंकवाद का मामला है और इसके तार सीधे इस्लामाबाद से जुड़े हैं. हालांकि, किसी भी देश ने खुले तौर पर पाकिस्तान को दोषी नहीं ठहराया. टेलीग्राफ ने इस पर खबर की है.
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने फॉक्स न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि "पाकिस्तान, जिस हद तक वे जिम्मेदार हैं, भारत के साथ सहयोग करेगा, ताकि उनके क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों का सफाया किया जा सके." हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि उम्मीद है कि भारत इस हमले का जवाब इस तरह से देगा कि क्षेत्रीय संघर्ष न बढ़े.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी से फोन पर बात करते हुए कहा कि दोषियों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत को पूरा समर्थन दिया. लेकिन उन्होंने भी पाकिस्तान पर सीधे आरोप लगाने से परहेज किया. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों को द्विपक्षीय रूप से राजनीतिक और राजनयिक तरीकों से हल करने का आह्वान किया, जो 1972 के शिमला समझौते और 1999 के लाहौर घोषणा के अनुरूप हो.
दुनिया पाकिस्तान की स्पष्ट निंदा नहीं कर रही है भारत की निराशा की वजह है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयानों में भी झलकी. उन्होंने कहा, "जब हम दुनिया को देखते हैं, तो हम साझेदारों की तलाश करते हैं; हम उपदेशकों की नहीं, खासकर उन उपदेशकों की जो घर पर अभ्यास नहीं करते और विदेश में उपदेश देते हैं." संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी, तनाव कम करने का आह्वान किया गया. पाकिस्तान से ‘कड़े सवाल’ पूछे गए और उसके ‘फॉल्स फ्लैग’ ऑपरेशन के दावे को खारिज कर दिया गया, लेकिन कोई औपचारिक बयान जारी नहीं हुआ. चीन और तुर्की ने पाकिस्तान के प्रति अपना मजबूत समर्थन व्यक्त किया. अमेरिका, यूरोपीय संघ, रूस और मध्य-पूर्व के नेताओं सहित अन्य वैश्विक शक्तियों ने हमले की निंदा की, पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त की और न्याय की आवश्यकता पर जोर दिया, लेकिन सीधे तौर पर इस्लामाबाद को दोषी ठहराने से बचते रहे. भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अमेरिकी रक्षा सचिव से बातचीत में पाकिस्तान पर आतंकवादी संगठनों को समर्थन देने का आरोप लगाया.
जो 10 जवाब नहीं मिले देश और दुष्यंत दवे को
पहलगाम को लेकर करन थापर को दिये गये इंटरव्यू में दुष्यंत दवे के 10 तर्क
तत्काल और कठोर जवाबदेही ज़रूरी : पहलगाम में सुरक्षा चूक के लिए खुफिया ब्यूरो, स्थानीय पुलिस, सेना, सीआरपीएफ और यहां तक कि नागरिक प्रशासन की भी ‘शून्य सहनशीलता के साथ उच्चतम मानकों पर जवाबदेही’ होनी चाहिए. उनका मानना है कि इस जवाबदेही में देरी नहीं होनी चाहिए और यह तत्काल, सार्वजनिक और व्यापक होनी चाहिए. वे सरकार के स्पष्टीकरणों (जैसे घास के मैदान का ‘खुला न होना’) को ‘बकवास’ और ‘शर्मनाक’ बताते हैं, जो ‘जख्मों पर नमक छिड़कने’ जैसा है.
भारत में जवाबदेही की व्यवस्थागत कमी : उनका तर्क है कि भारत में कार्यपालिका (नौकरशाहों, मंत्रियों) की विफलताओं के लिए ‘जवाबदेही का लगभग पूर्ण अभाव’ है. वे कारगिल युद्ध (बंकरों का पता नहीं लगना), मुंबई आतंकवादी हमला, गोधरा ट्रेन त्रासदी और पुलवामा जैसी पिछली घटनाओं का हवाला देते हैं, जिनमें किसी को भी सार्वजनिक रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया गया.
पहलगाम में विशिष्ट विफलताएँ : पहले से मिली चेतावनियों और आतंकवादियों द्वारा इलाके की टोह लेने की खबरों के बावजूद खुफिया विफलता रहीं, न तो पर्यटकों और न ही स्थानीय लोगों को चेतावनी दी गई. सुरक्षा में चूक रही, कि सरकार ने सामान्य स्थिति का दावा करते हुए पर्यटन को प्रोत्साहित किया, लेकिन प्रमुख पर्यटक स्थलों पर सुरक्षा प्रदान करने में विफल रही, जैसे बैसरन घास का मैदान (जहां कथित तौर पर एक पुलिस चौकी हटा दी गई थी).
यह वीआईपी लोगों को दी जाने वाली भारी सुरक्षा (‘वीआईपी सिंड्रोम’) के विपरीत है, जहां आम नागरिकों को ‘दोयम दर्जे’ का माना जाता है. वे कश्मीर में पर्यटकों को पर्याप्त सुरक्षा के बिना लुभाने को गैर-जिम्मेदाराना कृत्य कहते हैं, जो उन्हें ‘मौत के जाल’ में फंसाने जैसा है.
उच्च पदस्थ अधिकारियों की जिम्मेदारी : वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि डीजीपी, डीआईजी, सेना कमांडर (संयुक्त कमान के कारण), और विशेष रूप से उपराज्यपाल (जिनके अधीन सुरक्षा आती है) को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. वे गृह मंत्री द्वारा हमले से कुछ दिन पहले की गई सुरक्षा समीक्षा की प्रभावशीलता पर भी सवाल उठाते हैं.
हमले के बाद के उपायों की आलोचना : उचित प्रक्रिया के बिना संदिग्ध आतंकवादियों के घरों को तोड़ना ‘तीसरे दर्जे का तरीका’ है, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की अवहेलना है, और यह प्रतिउत्पादक है, क्योंकि यह निर्दोष परिवारों को दंडित करता है और आतंकवाद को बढ़ावा दे सकता है. केवल संदेह के आधार पर हजारों लोगों को गिरफ्तार करना प्रशासनिक विफलताओं को छिपाने के लिए ‘घुटने टेकने वाली प्रतिक्रिया’ है और इससे राज्य के प्रति अवमानना बढ़ेगी. सुरक्षा बलों को और अधिक सटीक होना चाहिए.
कश्मीर के बाहर कश्मीरियों के साथ दुर्व्यवहार : अन्य राज्यों में कश्मीरी छात्रों और श्रमिकों पर हमले एक समस्याग्रस्त मानसिकता को दर्शाते हैं, जहां अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बावजूद कश्मीरियों को पूरी तरह से भारतीय नहीं माना जाता है. वे इसकी तुलना सिखों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ किए गए दुर्व्यवहार से करते हैं, जहां राजनीतिक लाभ के लिए पूरे समुदाय को बलि का बकरा बनाया जाता है. प्रधानमंत्री को इसकी निंदा करनी चाहिए थी.
मीडिया की भूमिका और विफलता : मीडिया कश्मीर के भीतर आतंकवाद विरोधी भावनाओं और पीड़ितों के समर्थन की व्यापक रिपोर्टिंग करने में काफी हद तक विफल रहा. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि 24/7 कवरेज प्रदान करके, मीडिया आतंकवादियों के हाथ में खेल रहा है, क्योंकि वह उन्हें प्रचार दे रहा है, जिसकी उन्हें तलाश है. उनका मानना है कि पीएम को इसे रोकना चाहिए था.
सवाल करने और जवाबदेही मांगने का नागरिक का अधिकार : यह नागरिक का पूर्ण अधिकार है (अनुच्छेद 21 - जीवन का अधिकार के तहत) कि वह जाने कि उनकी चुनी हुई सरकार उन्हें बचाने में क्यों विफल रही. यह राजनीति के बारे में नहीं है, बल्कि ‘मानवीय गरिमा’ के बारे में है और यह सुनिश्चित करना है कि ऐसी त्रासदी दोबारा न हो. भविष्य की घटनाओं को रोकने के लिए जवाबदेही की मांग महत्वपूर्ण है.
व्यावसायिकता के बजाय निष्ठा पर आधारित नियुक्तियाँ : वे नागरिक, पुलिस और यहां तक कि सेना में उच्च अधिकारियों की नियुक्ति में व्यावसायिकता की जगह निष्ठा को तरजीह देने की प्रवृत्ति की आलोचना करते हैं, जिससे क्षमता से समझौता होता है.
मॉक ड्रिल, जहाजों का सरहद पर अभ्यास आज
सैन्य कार्रवाई की बढ़ती आशंकाओं के बीच भारत बुधवार को राष्ट्रव्यापी मॉक ड्रिल आयोजित करेगा. यह अभ्यास नागरिक सुरक्षा उपायों का हिस्सा है, जो देश भर के 244 जिलों में किया जाएगा और 1971 के बाद यह पहली बार हो रहा है. मंगलवार को कई जगहों पर हवाई हमले के सायरन की जांच के लिए ट्रायल रन भी किए गए. यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सैन्य अधिकारियों को ‘हमारी प्रतिक्रिया के तरीके, लक्ष्य और समय तय करने की पूरी परिचालन स्वतंत्रता’ देने के बाद उठाया गया है.
इन अभ्यासों का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को किसी भी हमले की स्थिति में क्या करना है, इसकी जानकारी देना है. साथ ही, यह ‘सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में नागरिक सुरक्षा तंत्र की तैयारियों का आकलन और उन्हें बढ़ाना’ भी है. गृह मंत्रालय के अनुसार, "वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में नई और जटिल चुनौतियाँ उभरी हैं, इसलिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में हर समय नागरिक सुरक्षा की सर्वोत्तम तैयारी बनाए रखना विवेकपूर्ण होगा." यह मॉक ड्रिल भारत की दबाव बनाने की रणनीति का नवीनतम हिस्सा है.
भारत में कल होने वाले राष्ट्रव्यापी मॉक ड्रिल से पहले, नागरिक सुरक्षा का महत्व समझना जरूरी है. नागरिक सुरक्षा, यानी सिविल डिफेंस, नागरिकों (विशेषकर गैर-लड़ाकों) को सैन्य हमलों या आपदाओं से बचाने का प्रयास है. भारत में यह नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968 के तहत परिभाषित है.
गृह मंत्रालय ने देश भर के 244 चयनित नागरिक सुरक्षा जिलों में इस अभ्यास का आयोजन किया है, जिसका उद्देश्य नागरिक सुरक्षा तंत्र की तैयारियों का आकलन और उन्हें मजबूत करना है. इस तंत्र में प्रशिक्षित स्वयंसेवक शामिल होते हैं, जो बाढ़, भूकंप, आतंकी हमले या विस्फोट जैसी आपात स्थितियों में आधिकारिक मदद पहुंचने से पहले महत्वपूर्ण प्रारंभिक राहत प्रदान करते हैं. 1962 के चीनी आक्रमण और 1965 के भारत-पाक संघर्ष के बाद इस औपचारिक इकाई की आवश्यकता महसूस हुई थी, और 2009 में आपदा प्रबंधन को भी इसके दायरे में लाया गया. लखनऊ में मंगलवार को इस मॉक ड्रिल का पूर्वाभ्यास भी किया गया.
इसके अलावा भारतीय वायु सेना (IAF) बुधवार, 7 मई, 2025 से पाकिस्तान के साथ लगती सीमा पर दो दिवसीय बड़ा सैन्य अभ्यास करेगी. रक्षा सूत्रों ने मंगलवार को बताया कि इस अभ्यास में राफेल, सुखोई-30 और जगुआर सहित सभी प्रमुख लड़ाकू विमान शामिल होंगे.
भारत के नागरिक उड्डयन अधिकारियों ने इस बड़े हवाई अभ्यास के लिए पहले ही 'नोटिस टू एयरमेन' यानी नोटैम जारी कर दिया है, जो मुख्य रूप से भारत-पाकिस्तान सीमा के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से में होगा. सूत्रों के अनुसार, इस अभ्यास में राफेल, सुखोई-30 एमकेआई, मिग-29, मिराज-2000, तेजस और एवैक्स (एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम) विमान शामिल होंगे. अभ्यास के दौरान, वायुसेना दुश्मन के जमीनी और हवाई ठिकानों पर बेहद सटीकता से निशाना साधने का अनुकरण करेगी.
दोनों देशों की सेनाएं बढ़ते तनाव के बाद हाई अलर्ट पर हैं. पहलगाम आतंकी हमले के तुरंत बाद, भारत ने हमले में 'सीमा पार संपर्कों' का हवाला देते हुए इसमें शामिल लोगों को कड़ी सज़ा देने का वादा किया था. 29 अप्रैल को शीर्ष रक्षा अधिकारियों के साथ एक उच्च स्तरीय बैठक में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सशस्त्र बलों को आतंकी हमले पर भारत की प्रतिक्रिया के तरीके, लक्ष्य और समय तय करने की 'पूरी परिचालन स्वतंत्रता' है.
वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए.पी. सिंह ने रविवार (4 मई, 2025) को प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की और उन्हें वायुसेना की तैयारी के बारे में जानकारी दी. शनिवार (3 मई, 2025) को नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी ने प्रधानमंत्री को अरब सागर में महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों की समग्र स्थिति से अवगत कराया था.
कार्टून | मंजुल
विकास के नाम पर भुतहा हवाई अड्डे
भारत में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में तेजी आई है. लेकिन कई परियोजनाएं उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पा रही हैं, जो चीन की पिछली समस्याओं की याद दिलाती हैं.
उदाहरण के लिए, हिसार में एक नया हवाई अड्डा बनाया गया था, जिसकी क्षमता लाखों यात्रियों की थी. इसे दिल्ली के व्यस्त टर्मिनलों के विकल्प के रूप में देखा गया था. परन्तु, उद्घाटन के कई साल बाद भी यह हवाई अड्डा लगभग निष्क्रिय है. आगमन और प्रस्थान हॉल खाली रहते हैं और रनवे पर आवारा कुत्ते घूमते देखे जा सकते हैं. 2021 से अब तक यहां से कुछ ही सब्सिडी वाली वाणिज्यिक उड़ानें संचालित हुई हैं.
यह स्थिति केवल हिसार तक सीमित नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने देश भर में राजमार्गों, बंदरगाहों और दर्जनों नए हवाई अड्डों के निर्माण पर अरबों खर्च किए हैं. लेकिन कनेक्टिविटी में सुधार की यह प्रतिबद्धता कई बार मांग और आपूर्ति की जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाती. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत के 140 हवाई अड्डों में से एक दर्जन टर्मिनलों पर दिसंबर से मार्च के बीच एक भी यात्री नहीं आया, जिससे वे 'घोस्ट एयरपोर्ट' बन गए. एक तिहाई से अधिक हवाई अड्डों पर पिछले साल औसतन प्रतिदिन 5 से कम उड़ानें हुईं.
अधिकारी अब इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि क्या बहुत तेजी से बहुत अधिक निर्माण किया गया. भारतीय अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्सों में हाल ही में थोड़ी कमजोरी देखी गई है, और सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर भी पहले की तुलना में धीमी है. विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ परियोजनाएं वोटरों को लुभाने के लिए बिना सोचे-समझे शुरू की गईं, भले ही उनकी डिजाइन खराब हो या टिकट की कीमतें आम लोगों की पहुंच से बाहर हों.
सिर्फ हवाई अड्डे ही नहीं, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में मेट्रो सेवाएं भी अपने यात्री लक्ष्य से काफी पीछे हैं. मुंबई में यह लक्ष्य का लगभग 30% और बेंगलुरु में 6% है. हालांकि सरकार का तर्क है कि ये हवाई अड्डे भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे हैं, लेकिन कई छोटे हवाई अड्डों को लाभ में आने के लिए प्रतिदिन कम से कम 8-10 वाणिज्यिक उड़ानों की आवश्यकता होती है. हिसार जैसे शहरों में कुछ स्थानीय निवासी हवाई अड्डे को लेकर आशान्वित हैं, उन्हें उम्मीद है कि इससे भविष्य में निवेश और व्यापार बढ़ेगा. सरकार भी 'उड़े देश का आम नागरिक' (उड़ान) जैसी योजनाओं के माध्यम से हवाई यात्रा को सुलभ बनाने का प्रयास कर रही है. लेकिन फिलहाल, इन 'घोस्ट एयरपोर्ट्स' की व्यवहार्यता पर सवाल बने हुए हैं.
राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता मामले का कोर्ट ने किया निबटारा : इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने सोमवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता पर सवाल उठाने वाली याचिका का निपटारा कर दिया और याचिकाकर्ता को अन्य वैकल्पिक कानूनी उपाय तलाशने की अनुमति दे दी. ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के अनुसार, बेंच ने सोमवार को कहा कि चूंकि केंद्र सरकार याचिकाकर्ता की शिकायत को हल करने के लिए कोई समय सीमा नहीं दे पा रही है, इसलिए इस याचिका को लंबित रखने का कोई औचित्य नहीं है.
बांग्लादेश के मरीज अब भारत छोड़ चीन के रास्ते
भारत के साथ रिश्तों में तनाव और मेडिकल वीजा में कमी के चलते बांग्लादेशी नागरिक अब इलाज के लिए चीन का रुख कर रहे हैं. चीन भी इस अवसर का लाभ उठाते हुए बांग्लादेश के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में भारी निवेश कर रहा है.
प्रसिद्ध बांग्लादेशी गायक हैदर हुसैन हाल ही में चीन में इलाज कराकर लौटे और वहां की किफायती व गुणवत्तापूर्ण सेवाओं से काफी संतुष्ट दिखे. पहले जहां अधिकांश बांग्लादेशी बेहतर इलाज के लिए भारत जाते थे, वहीं अब भारत द्वारा मेडिकल वीजा में कथित तौर पर भारी कटौती (लगभग एक-चौथाई) के बाद यह रुझान बदल रहा है. इसके विपरीत, बीजिंग ने बांग्लादेशी मरीजों के लिए नई उड़ानें शुरू की हैं और दक्षिण-पश्चिमी युन्नान प्रांत में चार विशेष अस्पताल नामित किए हैं. चीन, बांग्लादेश को 50 वर्षों के राजनयिक संबंधों के उपलक्ष्य में 1000 बिस्तरों वाला अस्पताल उपहार में देगा और कुल चार अस्पताल बनाने को तैयार है. इसके अतिरिक्त, वह स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास के लिए 138.2 मिलियन डॉलर की सहायता भी प्रदान करेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश की अविकसित स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और चीन के बढ़ते निवेश से स्थानीय लोगों को लाभ होगा और विदेशों में इलाज पर होने वाला अरबों डॉलर का खर्च कम हो सकेगा. चीन, जो पहले से ही बांग्लादेश के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में बड़ा निवेशक है, अब स्वास्थ्य सेवा को एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देख रहा है.
मोदी को जाति जनगणना पर सभी दलों से बातचीत करने की सलाह
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जाति जनगणना कैसे की जानी चाहिए, इस पर तीन सुझाव दिए हैं और आग्रह किया है कि राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना के संचालन पर सभी राजनीतिक दलों के बीच बातचीत की जानी चाहिए. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले सप्ताह घोषणा की थी कि जाति गणना के आंकड़ों को अगली जनसंख्या जनगणना में शामिल किया जाएगा, - 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के रुख से एकदम उलट - इसके कार्यान्वयन के लिए कोई समयसीमा नहीं बताई गई है. ‘द वायर’ के अनुसार, जनगणना प्रश्नावली के डिजाइन को महत्वपूर्ण बताते हुए, खड़गे ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय को ‘तेलंगाना मॉडल का अनुसरण करना चाहिए - प्रश्नावली को अंतिम रूप देने के लिए अपनाई गई पद्धति और पूछे जाने वाले अंतिम प्रश्नों का सेट.” खड़गे ने कांग्रेस की मांग दोहराई कि जाति जनगणना के नतीजे चाहे जो भी हों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और ओबीसी के लिए आरक्षण पर 50% की सीमा को संविधान संशोधन के ज़रिए हटाया जाना चाहिए.
फरार घोषित हिंदुत्व कार्यकर्ता कर रहा है शादी, विशालगढ़ किला दंगे का है मुख्य आरोपी : हिंदुत्व कार्यकर्ता जिसे पुलिस ने आधिकारिक तौर पर फरार घोषित कर दिया है और जो 2024 में कोल्हापुर विशालगढ़ किले में हुई हिंसा का मुख्य आरोपी है, मंगलवार को पुणे में शादी कर रहा है. यह शादी रविंद्र पडवाल की सार्वजनिक उपस्थिति की एक कड़ी में नवीनतम है, जो सोशल मीडिया और सार्वजनिक जीवन में सक्रिय है - यहां तक कि पिछले साल एक समारोह में भी मौजूद था, जहां महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री मौजूद थे. यह तब है, जब पुलिस कह रही है कि पडवाल 14 जुलाई, 2024 को हुई हिंसा के बाद से फरार है. जुलाई 2024 में, किले पर कथित अतिक्रमण का विरोध करने के लिए हजारों की भीड़ एकत्र हुई थी. विरोध दंगे में बदल गया था, क्योंकि भीड़ ने किले की तलहटी में स्थित गजपुर गांव में उतर कर स्थानीय मुस्लिम निवासियों के घरों को निशाना बनाया था. न्यूज लॉण्ड्री की रिपोर्ट के अनुसार, भीड़ ने एक मस्जिद में तोड़फोड़ की, ग्रामीणों पर हमला किया और करीब 42 घरों को नुकसान पहुंचाया. इस हिंसा में दर्जनों वाहन नष्ट हो गए और हथियारबंद भीड़ द्वारा भारी पथराव के बीच एक दर्जन से अधिक पुलिसकर्मी घायल हो गए थे.
भारत-ब्रिटेन ने 3 साल बाद व्यापार समझौते पर मुहर लगाई
तीन साल की लंबी बातचीत के बाद, भारत और ब्रिटेन ने एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कीर स्टार्मर के बीच एक फोन कॉल पर अंतिम रूप दिया गया. पिछले सप्ताह लंदन में गहन चर्चा के बाद हुआ यह समझौता, जो ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन का पहला बड़ा व्यापारिक करार है, पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा वैश्विक टैरिफ लगाए जाने के बाद तेजी से संपन्न हुआ, क्योंकि लंदन और नई दिल्ली घनिष्ठ व्यापारिक संबंध स्थापित करने के इच्छुक थे. इस समझौते का लक्ष्य द्विपक्षीय व्यापार को 25.5 अरब पाउंड तक बढ़ाना है और इसमें चरणबद्ध टैरिफ कटौती शामिल है – भारत दस वर्षों में ब्रिटिश व्हिस्की और जिन पर शुल्क 150% से घटाकर 40% कर देगा. इसके बदले में, यूके भारत से कपड़े, जूते और फ्रोजन झींगे सहित खाद्य उत्पादों के आयात पर टैरिफ कम करेगा. जहां यूके को इस समझौते से 4.8 अरब पाउंड के जीडीपी वृद्धि की उम्मीद है, वहीं भारत को केवल मामूली पेशेवर वीज़ा सुविधा मिली और कोई व्यापक आप्रवासन परिवर्तन नहीं हुआ – जो बातचीत शुरू होने के बाद से नई दिल्ली की एक प्रमुख मांग थी. यूके की प्रेस विज्ञप्ति में जीडीपी वृद्धि, रोजगार सृजन, उद्योग-विशिष्ट लाभों जैसे अनुमानित फायदों का दशमलव तक विवरण दिया गया है, जबकि भारत की विज्ञप्ति अस्पष्ट है, जिसमें आर्थिक प्रभाव, रोजगार वृद्धि या क्षेत्रीय लाभों पर बहुत कम स्पष्टता है.
विश्वास का उल्लंघन : उत्तर प्रदेश में ईसाइयों पर बढ़ता उत्पीड़न
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद से सैकड़ों ईसाइयों की गिरफ्तारी हुई है और आए दिन चर्च पर हमलों की खबर आम है. यह कार्रवाई राज्य में लागू 'धर्मांतरण विरोधी कानून' के तहत की जा रही है, जिसे आलोचक बेहद व्यापक और अस्पष्ट मानते हैं. इस कानून में साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी पर डाल दी गई है, जिससे कानून का दुरुपयोग होने की आशंका और बढ़ जाती है. 'द कैरेवन' के लिए शाहिद तांत्रे ने उत्तरप्रदेश में ईसाई समुदाय के खिलाफ बढ़ रही घटनाओं के पीड़ितों से बात कर मामले को विस्तार से समझाने की कोशिश की है. रिपोर्ट में एक पीड़ित अजय कुमार कहते हैं कि भारत के संविधान में समानता और धार्मिक आजादी की सिर्फ बातें हैं, लेकिन वो जमीन पर लागू नहीं होती. 'धर्मांतरण विरोधी कानून' हिंदुत्व संगठनों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे वे प्रार्थना सभाओं में विघ्न डालने, पादरियों पर हमले करने और चर्चों में तोड़फोड़ जैसी घटनाओं को अंजाम दे पा रहे हैं. पुलिस और प्रशासन की भूमिका भी ऐसे मामलों में राजनीतिक वजहों से अक्सर एकतरफा रही है. कई मामलों में चर्च में शांतिपूर्ण प्रार्थना को धर्मांतरण का प्रयास बताकर कार्यवाही की गई. ग्रामीण इलाकों में स्थानीय हिंदुत्व संगठनों के दबाव में आकर फर्जी शिकायतें भी दर्ज हो रही हैं. देखिए यह रिपोर्ट...
₹7.25 करोड़ की किताबें यूनियन बैंक सवालों के घेरे में
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) कृष्णमूर्ति वी. सुब्रमणियन की किताब पर भारी खर्च को लेकर विवादों में है. बैंक ने लगभग 2 लाख प्रतियां खरीदने का निर्णय लिया, जिसकी कुल लागत ₹7.25 करोड़ बताई गई है. इन किताबों को ग्राहकों, स्थानीय स्कूलों, कॉलेजों और लाइब्रेरियों में वितरित किया जाना था. रिपोर्ट के अनुसार, यूनियन बैंक ने यह ऑर्डर सुब्रमणियन की किताब ‘India@100 : Envisioning Tomorrow's Economic Powerhouse’ के प्रकाशन से पहले ही दे दी थी. यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जब हाल ही में सरकार ने सुब्रमणियन का कार्यकाल समय से पहले समाप्त कर दिया. खबरों के अनुसार, उनके कार्यकाल की समाप्ति के पीछे एक कारण किताब को बढ़ावा देने में कथित अनियमितताएं भी हैं. किताब के प्रकाशन से पहले, बैंक के मुख्यालय की सपोर्ट सर्विस डिपार्टमेंट ने 18 ज़ोनल प्रमुखों को पत्र भेजकर बताया कि हर ज़ोनल ऑफिस को 10,525 पेपरबैक प्रतियां (₹350 प्रति पुस्तक) और 10,422 हार्डकवर प्रतियां (₹597 प्रति पुस्तक) खरीदनी होंगी. इस पर कुल अनुमानित खर्च ₹7.25 करोड़ रुपये आया. इसके लिए प्रकाशक रूपा पब्लिकेशन्स को पहले ही 50% एडवांस भुगतान किया जा चुका था. बाकी राशि को ‘विविध खर्च’ श्रेणी में क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा चुकाया जाना था. अब यूनियन बैंक की एमडी और सीईओ अ. मणिमेखलाई ने सपोर्ट सर्विस डिपार्टमेंट की प्रभारी गिरिजा मिश्रा को सस्पेंड कर दिया है. मणिमेखलाई ने बोर्ड को बताया कि उन्होंने मिश्रा को खरीदारी की अनुमति दी थी, लेकिन निर्देश दिया था कि कोई नियम न तोड़ा जाए. 4 मई को बैंक कर्मचारियों के एक संगठन ने मणिमेखलाई को पत्र लिखकर इस ‘फिजूलखर्ची’ की जांच की मांग की थी.
₹4,300 करोड़ के नोटिस पर सैमसंग को एतराज
'रॉयटर्स' की खबर है कि दक्षिण कोरियाई कंपनी सैमसंग ने भारत के कस्टम्स, एक्साइज और सर्विस टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (CESTAT) में एक अपील दायर कर तकरीबन ₹4,300 करोड़ (520 मिलियन डॉलर) के टैक्स नोटिस को रद्द करने की मांग की है. यह टैक्स उस पर नेटवर्किंग उपकरण के गलत वर्गीकरण के आरोप में लगाया गया है. आरोप है कि सैमसंग ने 2018 से 2021 के बीच रिमोट रेडियो हेड नामक एक अहम 4G मोबाइल टॉवर उपकरण को गलत श्रेणी में दिखाकर 10–20% सीमा शुल्क से बचाव किया और उसे भारत में रिलायंस जिओ को बेचा. सैमसंग ने कहा कि रिलायंस ने भी साल 2017 तक इसी तरह के उपकरण बिना शुल्क चुकाए आयात किए. बाकायदा सरकारी अधिकारियों को इस प्रक्रिया की जानकारी थी. सैमसंग का कहना है कि टैक्स विभाग ने जल्दबाज़ी में फैसला सुनाया और कंपनी को अपना पक्ष रखने का उचित मौका नहीं दिया गया. इसके अलावा सैमसंग के सात कर्मचारियों पर ₹675 करोड़ (81 मिलियन डॉलर) का जुर्माना भी लगाया गया है, जिससे कुल मांग ₹5,000 करोड़ (601 मिलियन डॉलर) तक पहुंच गई है. 281 पन्नों की याचिका में सैमसंग ने कहा कि विभाग को उसके क्लासीफिकेशन की पूरी जानकारी थी, लेकिन कभी सवाल नहीं उठाया गया.
गौरतलब है कि भारत में सैमसंग का पिछले साल का शुद्ध लाभ ₹7,900 करोड़ (955 मिलियन डॉलर) था. ऐसे में टैक्स की मांग उसकी एक बड़ी हिस्सेदारी को प्रभावित कर सकती है. यह विवाद ऐसे समय पर आया है जब विदेशी कंपनियां भारत की टैक्स प्रणाली को लेकर चिंतित और सतर्क हैं. हाल ही में Volkswagen ने भी भारत सरकार के खिलाफ $1.4 बिलियन के टैक्स मामले में मुकदमा दायर किया था.
दोपहिया वाहनों की बिक्री में भारी गिरावट, अप्रैल में 17% की बड़ी कमी
भारत के दोपहिया वाहन बाजार में अप्रैल महीने में निराशाजनक तस्वीर देखने को मिली. पिछले साल की समान अवधि की तुलना में बिक्री में 17% की भारी गिरावट दर्ज की गई. यह एक साल से अधिक समय में सबसे बड़ी मासिक गिरावट है, जो त्योहारी और शादी-ब्याह के मौसम में कमजोर मांग को दर्शाती है. निर्माताओं द्वारा आकर्षक छूट योजनाओं के बावजूद, बिक्री का आंकड़ा उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका.
देश की शीर्ष छह दोपहिया वाहन निर्माता कंपनियों, जिनकी बाजार में लगभग 95% हिस्सेदारी है, ने अप्रैल में कुल मिलाकर 1.41 मिलियन (14.1 लाख) यूनिट्स की घरेलू बिक्री की. विश्लेषकों की रिपोर्ट के अनुसार, शहरी केंद्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में मांग थोड़ी बेहतर रही. यस सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शादी के मौसम (मध्य और उत्तरी बाजार) और त्योहारी बिक्री (पश्चिमी राज्यों) में उठाव अब तक उम्मीद से कम रहा है. हालांकि, उत्तर प्रदेश और बिहार से बिक्री में मामूली सुधार ने इस कमजोरी को कुछ हद तक कम किया, जहां पिछले 2-3 महीनों से 'मलमास' (अशुभ दिन) और उच्च आधार के कारण बिक्री दबाव में थी.
दिल्ली स्थित हीरो मोटोकॉर्प को सबसे बड़ा झटका लगा, जिसकी थोक बिक्री में अप्रैल महीने में साल-दर-साल 43% की भारी गिरावट आई और यह 3,05,406 यूनिट्स रह गई. कंपनी के लिए हाल के समय में यह सबसे बड़ी मासिक गिरावट है. हीरो मोटोकॉर्प ने आपूर्ति श्रृंखला समायोजन और निर्धारित रखरखाव कार्यों के लिए 17 से 19 अप्रैल तक अपने धारूहेड़ा, गुरुग्राम, हरिद्वार और नीमराना संयंत्रों में उत्पादन अस्थायी रूप से बंद कर दिया था. मई 2025 में उत्पादन सामान्य होने की उम्मीद है.
होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया (HMSI) ने एक बार फिर हीरो मोटोकॉर्प को पछाड़ कर भारत की सबसे बड़ी दोपहिया वाहन निर्माता कंपनी का स्थान हासिल कर लिया है. कंपनी ने अप्रैल में अपने डीलर पार्टनरों को 4,22,931 यूनिट्स भेजीं, हालांकि यह पिछले साल की तुलना में 12% कम है.
वहीं, देश की तीसरी सबसे बड़ी दोपहिया निर्माता कंपनी टीवीएस मोटर कंपनी ने सकारात्मक वृद्धि दर्ज की. कंपनी ने महीने के दौरान 3,23,647 यूनिट्स भेजीं, जो साल-दर-साल 7% अधिक है. टीवीएस के इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में 59% का शानदार उछाल आया और यह 27,684 यूनिट्स तक पहुंच गई. देश की चौथी सबसे बड़ी दोपहिया निर्माता कंपनी बजाज ऑटो की घरेलू अप्रैल बिक्री में 13% की गिरावट देखी गई और यह 1,88,615 यूनिट्स पर बंद हुई. कुल मिलाकर, अप्रैल का महीना दोपहिया उद्योग के लिए चुनौतीपूर्ण रहा.
बांग्लादेश की अदालत ने हिरासत में लिए गए हिंदू नेता के खिलाफ गिरफ्तारी का नया आदेश : बांग्लादेश की एक अदालत ने मंगलवार को हिरासत में लिए गए हिंदू नेता चिन्मय कृष्ण दास को चार और मामलों में गिरफ़्तारी आदेश दिया है. एक दिन पहले अदालत ने हत्या के मामले में उनके ख़िलाफ़ इसी तरह की कार्रवाई की थी. जिन चार मामलों में कार्रवाई के आदेश अदालत ने दिए हैं, उनमें कोतवाली पुलिस स्टेशन में पुलिस की ड्यूटी में बाधा डालना और वकीलों और न्याय चाहने वालों पर हमले शामिल हैं. न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इस्कॉन के पूर्व नेता दास को पिछले साल 25 नवंबर को ढाका के हजरत शाहजलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर राष्ट्रीय ध्वज के कथित अपमान के मामले में गिरफ़्तार किया गया था. सोमवार को अदालत ने सहायक सरकारी अभियोजक सैफुल इस्लाम अलीफ की हत्या के सिलसिले में दास की गिरफ्तारी का आदेश दिया था, जिनकी दास की गिरफ्तारी के बाद हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन के दौरान हत्या कर दी गई थी.
टोरंटो में हिंदू विरोधी परेड : कनाडा में खालिस्तान समर्थकों ने हिंदू विरोधी परेड निकाल कर देश से आठ लाख हिंदुओं को भारत वापस भेजने की मांग की है. परेड में एक बड़ा ट्रक भी शामिल था, जिस पर जेल की नकली तस्वीर थी और उस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और विदेश मंत्री एस जयशंकर के पुतले थे. इंडिया टुडे की खबर के अनुसार, कनाडा के टोरंटो के माल्टन गुरुद्वारे में हिंदू विरोधी परेड आयोजित की गई थी. परेड का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. यह आयोजन सिख गुरुद्वारे और हिंदू मंदिर में खालिस्तान समर्थक भित्तिचित्रों के साथ तोड़फोड़ की घटनाओं के बाद हुआ है. यह वीडियो कनाडा में हिंदू समुदाय के नेता शान बिंदा ने पोस्ट किया था. इसमें खालिस्तानी आतंकवादी समूह की ‘घोर हिंदू विरोधी घृणा’ की निंदा की गई थी. शॉन बिंदा ने ट्वीट किया, "यह भारत सरकार के खिलाफ़ कोई विरोध प्रदर्शन नहीं है. यह खालिस्तानी आतंकवादी समूह की ओर से हिंदू विरोधी घृणा है, जो कनाडा के सबसे घातक हमले के लिए कुख्यात हैं. फिर भी अहंकारपूर्वक रहने के अधिकार का दावा कर रहे हैं. #खालिस्तानी आतंकवाद." पिछले महीने सरे में वार्षिक खालसा दिवस वैसाखी परेड में खालिस्तान के झंडे और भारत विरोधी दृश्य भी देखे गए थे. इस कार्यक्रम की तब भी आलोचना हुई थी जब परेड में पीएम मोदी और अमित शाह के ‘वांटेड’ पोस्टर दिखाए गए थे.
यूएई | मनी लॉन्ड्रिंग मामले में भारतीय व्यवसायी गिरफ्तार : दुबई की आपराधिक अदालत ने आपराधिक नेटवर्क के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग मामले में भारतीय व्यवसायी बलविंदर सिंह साहनी, जिन्हें 'अबू सबा' के नाम से भी जाना जाता है, को पांच साल की जेल की सजा सुनाई है. बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, दुबई की अदालत ने एईडी 500,000 (लगभग ₹1.14 करोड़) का जुर्माना भी लगाया और अपराध से जुड़े एईडी 150 मिलियन (लगभग ₹344 करोड़) को जब्त करने का आदेश दिया है. जेल की अवधि पूरी करने के बाद, साहनी को यूएई से निर्वासित कर दिया जाएगा. साहनी दुबई के व्यापारिक अभिजात वर्ग के बीच एक प्रसिद्ध व्यवसायी है. वह एक रियल एस्टेट और प्रॉपर्टी मैनेजमेंट कंपनी, आरएसजी ग्रुप का संस्थापक है. यह कंपनी UAE, भारत, अमेरिका और अन्य देशों में काम करती है. 2016 में सैनी ने तब सुर्खियाँ बटोरीं जब उन्होंने एईडी 33 मिलियन (उस समय लगभग 9 मिलियन डॉलर) में कार नंबर प्लेट ‘D5’ खरीदी थी. यह सौदा अब तक की सबसे महंगी कार प्लेटों में से एक था.
चलते-चलते
जब दुनिया के सबसे लंबे कुत्ते रेजी की मुलाक़ात सबसे छोटे कुत्ते पर्ल से हुई!
रेजी एक विशालकाय ग्रेट डेन है, जो रसोई के काउंटर तक आसानी से सिर टिका सकता है, जबकि पर्ल एक छोटी-सी चिहुआहुआ है, जो ज़मीन से मुश्किल से कुछ इंच ऊपर उठती है. ये दोनों हाल ही में मिले और इनकी दोस्ती ने लोगों का दिल जीत लिया. दोनों के बीच का फर्क सिर्फ आकार का है, लेकिन एक चीज़ समान है, ये दोनों ही गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड के धारक हैं. रेजी दुनिया का सबसे लंबा जीवित नर कुत्ता है, जिसकी ऊंचाई 3 फीट 3 इंच है. पर्ल दुनिया की सबसे छोटी जीवित कुतिया है, जिसकी ऊंचाई सिर्फ 3.6 इंच है. ये खास मुलाकात 4 और 5 अप्रैल को रेजी के घर (आइडाहो फॉल्स) में हुई. पर्ल अपनी मालकिन वेनेसा सेमलर के साथ फ्लोरिडा से सफर कर रेजी से मिलने पहुंची, ताकि विशाल रेजी को हवाई यात्रा न करनी पड़े. इस मिलन को गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने अपने 70वें स्थापना वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित किया था.
शुरुआत में रेजी ने पर्ल को हल्के से सूंघा, फिर दोनों धीरे-धीरे एक-दूसरे के साथ सहज हो गए. वे एक साथ काउच पर लेटे, घर के अंदर और फिर बाहर आंगन में घूमे और यहां तक कि साथ में खाना भी खाया. रेजी के मालिक सैम जॉनसन रीइस ने कहा, “हमें थोड़ी चिंता थी, लेकिन रेजी बहुत ही नरमदिल और सज्जन निकला.” फ़ोटोशूट में पर्ल को रेजी के खाने की कटोरी में बिठाया गया, ताकि उसकी नन्ही काया का अंदाज़ा लगाया जा सके. पर्ल लगभग 5 इंच लंबी है, यानी एक डॉलर के नोट के बराबर. उनकी पंजों की तुलना भी की गई, जिसमें पर्ल का नन्हा पंजा रेजी के विशाल पंजे पर रखा गया. हालांकि वे दिखने में बिल्कुल अलग हैं, लेकिन उनके व्यवहार में कई समानताएँ हैं. दोनों को चिकन बहुत पसंद है. दोनों की अपनी वार्डरोब है. वे सोते समय खर्राटे लेते हैं और बहुत स्नेही हैं. और सबसे महत्वपूर्ण बात, दोनों जानते हैं कि उन्हें क्या चाहिए और कब चाहिए.
रेजी के मालिक बोले, “वो बहुत स्पष्ट है कि उसे कब क्या चाहिए.” पर्ल की मालकिन सेमलर ने कहा, “वो बहुत ज़िद्दी और मुखर है. साफ़ बता देती है कि उसे क्या चाहिए.” रेजी सितंबर 2017 में जन्मा, जबकि पर्ल सितंबर 2020 में पैदा हुई. जन्म के समय उसका वज़न एक औंस से भी कम था. अब वह थोड़ा ज़्यादा एक पाउंड की है. अब यह स्पष्ट नहीं है कि रेजी और पर्ल फिर कभी मिल पाएंगे या नहीं, लेकिन उनके मालिकों का मानना है कि उनकी दोस्ती हमेशा बनी रहेगी.
पाठकों से अपील-
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