07/06/2025: आखिरकार जी-7 से न्यौता | बेचैन बस्तर के आदिवासी | माल्या का पॉडकास्ट, न भगोड़ा, न चोर | ड्रोन हमले का योजनाकार | ब्रेक अप के बाद ट्रम्प मस्क में तूतू-मैंमैं | रूस का बदला | चिनाब पर पुल
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
ऐन वक़्त पर जी-7 का न्यौता आया, मोदी ने सहर्ष स्वीकारा
आदिवासी की बेचैनियाँ कम करने का कोई इंतजाम नहीं बस्तर में : बेला भाटिया
ट्रम्प ने पुतिन को भी बताया मध्यस्थता के जरिये संघर्ष रुकवाने के बारे में
माल्या : मैं न चोर न भगोड़ा, जेटली को बताकर गया
बिहार में खेल बिगाड़ेंगे या बिसात बिछाएंगे पीके
ट्रम्प और मस्क का ब्रेक अप ! ट्विटर पर उतरती भड़ास, एक दूसरे के दुश्मन बने
कर्नाटक हाई कोर्ट ने केएससीए अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष के खिलाफ पुलिस को जबरन कार्रवाई से रोका
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बावजूद अमरनाथ यात्रा के लिए अभूतपूर्व सुरक्षा, 14 दिन भी घटाए
यूएनएससी की महत्वपूर्ण समितियों में पाकिस्तान को मिले पद और मोदी सरकार की चुप्पी के मायने
कमल हासन ने राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया
बच्ची से दुष्कर्म करने वाला व्यक्ति पुलिस मुठभेड़ में मारा गया
रूस का कीव पर भीषण मिसाइल और ड्रोन हमला
'वो एक बुलडॉग है': ये है यूक्रेन के ऑपरेशन स्पाइडरवेब की सफलता के पीछे का आदमी
चिनाब पर एफिल टॉवर से भी ऊंचा आर्च ब्रिज
ऐन वक़्त पर जी-7 का न्यौता आया, मोदी ने सहर्ष स्वीकारा
कनाडा के कनानस्किस में 15 जून को G7 शिखर सम्मेलन और 'आउटरीच' शुरू होने से बमुश्किल एक हफ्ते पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को आखिरकार कनाडा के नये प्रधानमंत्री मार्क कार्नी से न्यौता मिल ही गया. और मोदी ने न्यौता मानने में एक पल की भी देर नहीं की. इंडिया केबल के मुताबिक उन्होंने अपने ट्वीट के लिए जो शब्द चुने, उनसे जानबूझकर इस बारे में अस्पष्टता पैदा करने की कोशिश की गई कि निमंत्रण वास्तव में कब दिया गया था:
"कनाडा के प्रधान मंत्री @MarkJCarney से फोन कॉल पाकर खुशी हुई. उन्हें उनकी हालिया चुनावी जीत पर बधाई दी और इस महीने के अंत में कनानस्किस में G7 शिखर सम्मेलन के निमंत्रण के लिए उन्हें धन्यवाद दिया. गहरे लोगों के बीच संबंधों से बंधे जीवंत लोकतंत्रों के रूप में, भारत और कनाडा आपसी सम्मान और साझा हितों द्वारा निर्देशित होकर नई ऊर्जा के साथ मिलकर काम करेंगे. शिखर सम्मेलन में हमारी मुलाकात का इंतजार है."
न्यौते न जाने को लेकर पिछले दो हफ्तों से मोदी सरकार की बेचैनियां खासी साफ झलक रही थी. इसलिए भी कि कई ग़ैर सदस्यीय देशों को समय रहते निमंत्रण भेेजे और उनकी स्वीकृति ले ली गई थी. भारत और मोदी को इस बार जी सात से बाहर रखने पर दुनिया भर के कयास लग रहे थे. जबकि गोदी मीडिया के कई लोग इसके पीछे मोदी की ही अनिच्छा को कारण बता रहे थे. पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष के बाद भारत के लिए दुनिया में खोई हुई गुडविल को पाने की गरज बढ़ी है. हालांकि कनाडा में खालिस्तानी कार्यकर्ता हरदीप सिंह निज्जर की 2023 में हुई हत्या के लिए कनाडा सरकार द्वारा लगाए गए आरोप के बाद भारत और कनाडा के संबंध अब तक के सबसे निचले स्तर पर हैं.
कनाडा ने दावा किया था कि यह हत्या भारत सरकार का काम था. नई दिल्ली ने इस आरोप का इस्तेमाल कूटनीतिक संबंधों को कमतर करने के लिए किया ताकि ओटावा पर दबाव बनाया जा सके, और यह उम्मीद की थी कि कनाडाई प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा उनके उत्तराधिकारी के लिए निज्जर मामले को दफनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा. ऐसा अब तक नहीं हुआ है और भविष्य में भी इसकी संभावना कम है. पिछले हफ्ते, कनाडा की विदेश मंत्री अनीता आनंद ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से बात की और बाद में पत्रकारों से कहा, "निश्चित रूप से हम इसे एक-एक कदम करके आगे बढ़ा रहे हैं. जैसा कि मैंने बताया, कानून के शासन से कभी समझौता नहीं किया जाएगा, और जिस मामले का आपने उल्लेख किया है, उसकी जांच चल रही है," उन्होंने निज्जर की हत्या के संदर्भ में कहा.
कनाडाई निमंत्रण की कोई संभावना न दिखते हुए, पिछले दो हफ्तों से मोदी और उनके सलाहकार बेचैन थे. उन्होंने 2019 से 'आउटरीच' भागीदार के रूप में वार्षिक G7 शिखर सम्मेलन में भाग लिया है; इससे पहले मनमोहन सिंह नियमित भागीदार थे. इसलिए निमंत्रण की कमी को 'विश्वगुरु' के लिए एक झटका माना गया होगा. वास्तव में, पिछले 48 घंटों में, सरकार समर्थक मीडिया आउटलेट्स को G7 की 'असंगतता' पर हमला करने वाली खबरें प्रसारित करने के लिए तैयार किया गया प्रतीत होता है, यह मोदी की संभावित अनुपस्थिति को भारत के लिए 'सकारात्मक' के रूप में पेश करने का अनुमानित प्रयास था. अब उन्हें यू-टर्न लेते हुए देखना मजेदार होगा.
वास्तव में, कार्नी-मोदी कॉल के बारे में कनाडा सरकार के आधिकारिक विवरण (रीडआउट) में इस तथ्य को पहले उजागर किया गया है कि दोनों नेताओं ने "कानून लागू करने के संवाद और सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करने वाली चर्चाओं को जारी रखने" पर बात की और सहमति व्यक्त की. और उसके बाद ही यह बताया गया है कि कनाडाई प्रधान मंत्री ने मोदी को G7 बैठक में शामिल होने का निमंत्रण भी दिया. कार्नी के अपने ट्वीट में तो निमंत्रण का सीधा उल्लेख भी नहीं है.
पहले से निर्धारित कार्यक्रम के लिए वीवीआईपी निमंत्रण इतनी देर से भेजे जाना बेहद असामान्य है. 2024 में, मोदी को इटली में G7 शिखर सम्मेलन के लिए निमंत्रण अप्रैल में मिला था, जो वास्तविक आयोजन से सात हफ्ते पहले था. तथ्य यह है कि यह निमंत्रण अंतिम क्षण तक लटका रहा, यह सवाल उठाता है कि क्या कनाडा पक्ष ने उपस्थिति की शर्त के रूप में मोदी से कुछ आश्वासन मांगे और प्राप्त किए हैं.
सिख अलगाववादियों को इसकी वजह बताया गया था, जिन्होंने कार्नी प्रशासन से पीएम मोदी को आमंत्रित न करने का आग्रह किया था. अलगाववादियों ने कहा था कि अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज़्जर की हत्या की जांच में भारत सहयोग नहीं कर रहा है. मीडिया में यह भी खबर थी कि यदि ऐन वक्त पर न्योता दिया गया तो भी पीएम मोदी जी-7 समिट में शामिल होने कनाडा नहीं जाएंगे. इसके कारण भी बताए गए थे. ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबेर ने “एक्स” पर एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा, “कुछ दिन पहले ही बीजेपी के “मुखपत्र” की चीफ एडिटर ने बताया था कि कनाडा ने भारत को क्यों आमंत्रित नहीं किया, और अगर आमंत्रित किया भी जाता तो हम शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेते.” भारत 2019 से बतौर अतिथि इस समिट में आमंत्रित किया जाता रहा है.
कड़वी कॉफी
आदिवासी की बेचैनियाँ कम करने का कोई इंतजाम नहीं बस्तर में : बेला भाटिया
इस "कड़वी कॉफी" चर्चा में बेला भाटिया ने बस्तर में माओवाद विरोधी अभियान और उसके आदिवासी आबादी पर पड़ने वाले गहन प्रभाव पर अपनी गहरी समझ और जमीनी अनुभव अपूर्वानंद और निधीश त्यागी के साथ साझा किए. दंतेवाड़ा में रह रहीं बेला ने बताया कि वे दिल्ली से बस्तर इसलिए आईं ताकि वे उस इलाके को करीब से समझ सकें जिस पर बहुत बात होती है, लेकिन जहाँ वास्तव में क्या हो रहा है और कैसे हस्तक्षेप किया जाए, यह वहाँ रहे बिना नहीं जाना जा सकता. उन्होंने आदिवासियों के साथ रहते हुए वकालत सीखी क्योंकि उनका मानना है कि आदिवासियों को सबसे ज्यादा सामना भारतीय कानून का करना पड़ता है और वे अक्सर इसके आगे असहाय होते हैं.
बेला ने राज्य द्वारा माओवाद पर जीत के जश्न को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की. उन्होंने बताया कि जब छत्तीसगढ़ में बीजेपी सत्ता में आई तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक माओवाद खत्म करने की बात कही, जबकि चुनाव से पहले वे शांति वार्ता की बात कर रहे थे. सत्ता में आने के बाद भाषा बदल गई और सैन्यकरण पर जोर दिया गया. बस्तर में पिछले 20 सालों से, किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, सैन्यकरण ही मुख्य रणनीति रही है. जनवरी 2024 के बाद से काउंटर-इंसर्जेंसी अभियान बहुत तेज हो गए हैं, और लगभग रोज ही एनकाउंटर की घटनाएं हो रही हैं.
उन्होंने इस स्थिति को "युद्ध" कहने की वकालत की, जबकि सरकार इसे "टकराव" कहती है ताकि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के दायरे में आने से बचा जा सके. बेला के अनुसार, बस्तर के आदिवासी पिछले 20 सालों से बंदूक के साए में जी रहे हैं. यह क्षेत्र मुख्य रूप से गोंड आदिवासियों का है, जो देश के सबसे गरीब और कुपोषित लोगों में से हैं. उन्होंने बताया कि अंदरूनी इलाकों में शायद ही कोई तंदुरुस्त व्यक्ति दिखता है. ये लोग माओवाद को क्यों समर्थन देते हैं या शामिल होते हैं, इसका एक जटिल इतिहास है, लेकिन मुख्य बात यह है कि वही इस पूरे घटनाक्रम को झेल रहे हैं.
आदिवासियों का जीवन, खासकर उनका सामूहिक जीवन, इस युद्ध के कारण बिखर गया है. परिवार और समुदाय के लोग एक दूसरे के दुश्मन बन गए हैं, कोई माओवादी के साथ है तो कोई पुलिस के साथ. जो पुलिस में शामिल हुए हैं, वे भी निशाने पर आ गए हैं. आम जनता हर पल हिंसा और निगरानी के साए में जी रही है. हर 3 से 5 किलोमीटर पर सुरक्षा कैंप हैं (शायद 300 से ज्यादा), और पैरा-मिलिट्री की संख्या 1 लाख से ऊपर हो सकती है. घरों में सुरक्षा बल का घुसना, सामान उठा ले जाना, हैंडपंप के पास कैंप लगाना, ये सब होता रहा है.
लोगों के लिए घर से बाहर निकलना भी डर से भरा है. बाजार जाना, अस्पताल जाना, जंगल जाना, राशन दुकान जाना, कहीं भी वे सुरक्षित महसूस नहीं करते. उन्हें कभी भी रोका जा सकता है, पकड़ा जा सकता है. रोड पर हर कैंप पर चेकिंग होती है, गाड़ी नंबर, कहाँ जा रहे हैं, कब लौटेंगे, सब पूछा जाता है. युवाओं के मोबाइल जब्त कर लिए जाते हैं.
हिंसा सिर्फ हत्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लगातार निगरानी और डर की स्थिति है. बेला ने पिछले 10 सालों में अनगिनत लाशें देखी हैं, कई विभत्स हालत में जिन्हें पहचानना मुश्किल होता है. यह इतना आम है कि मन सुन्न हो जाता है. उन्होंने ऐसी लाशें भी देखी हैं जहाँ चेहरे पहचानने योग्य नहीं थे, जिससे यह संदेह होता है कि क्या जानबूझकर ऐसा किया जाता है ताकि पहचान छिपी रहे. परिवारों पर इसका गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है. बस्तर में हजारों लोग जेल में बंद हैं (शायद 4000), कईयों पर यूएपीए जैसे काले कानून लगे हैं. जेल और कोर्ट का सामना करना आदिवासियों के लिए बहुत मुश्किल है क्योंकि वे अक्सर हिंदी नहीं जानते, वकील महंगे हैं, और जिला मुख्यालयों तक यात्रा करना, रुकना, खाना बहुत खर्चीला और कठिन है. उन्हें अक्सर रातें बाजारों के शेड्स में बितानी पड़ती हैं. बेला ने कहा कि उन्होंने बस्तर में बहुत कम हंसते हुए आदिवासी देखे हैं. लोग चिंतित और दुखी रहते हैं. उनका पूरा जीवन इस युद्ध से प्रभावित हुआ है.
विकास की कमी पर सरकार का तर्क है कि माओवादियों ने विकास नहीं होने दिया. बेला इस दावे पर सवाल उठाती हैं. उनका कहना है कि आदिवासी संस्कृति और सभ्यता को कभी सराहा नहीं गया, केवल उनका शोषण हुआ. संविधान में उनके लिए सुरक्षा थी (पांचवी अनुसूची, पेसा कानून 1996 - स्वराज की अवधारणा), लेकिन इसका क्रियान्वयन नहीं हुआ. पेसा कानून, जिसे ऐतिहासिक बताया गया था, जिसमें आदिवासियों को अपने जीवन और भविष्य से जुड़े निर्णयों पर खुद फैसला लेने का अधिकार था, उसे नजरअंदाज किया गया. विकास योजनाएं उन पर थोपी गईं, उनकी जरूरतों और प्रणालियों के हिसाब से नहीं थीं. दूसरे राज्यों की तरह यहाँ भी सरकारी योजनाओं का पैसा लोगों तक बहुत कम पहुँचता है, अक्सर गाँवों तक तो पहुँचता ही नहीं है.
बुनियादी सुविधाएँ (शिक्षा, स्वास्थ्य - मलेरिया एंडेमिक जोन) बहुत खराब हैं. सरकार जो इंफ्रास्ट्रक्चर (रोड्स) बना रही है, उस पर भी सवाल है. बेला के अनुसार, ये रोड्स मुख्य रूप से माइनिंग कंपनियों के लिए बन रही हैं, लोगों के लिए नहीं. चौड़ी फोर-लेन रोड्स बिना पेसा कानून के तहत लोगों से पूछे बनाई जा रही हैं, उनकी जमीन और पेड़ कट रहे हैं. ये रोड्स भारी कंपनियों के ट्रकों से जल्दी खराब हो जाती हैं.
जिला मुख्यालयों (टाउन्स) का विकास हुआ है, लेकिन इससे टाउन में रहने वाले (सरकारी अफसर, व्यापारी, गैर-आदिवासी) और अंदरूनी इलाकों में रहने वाले आदिवासियों के बीच एक खाई बनी है. टाउन वाले अक्सर अंदर क्या हो रहा है, इसकी परवाह नहीं करते, जबकि अंदर भयानक चीजें हो रही हैं.
राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी विफल रहा है. आरक्षित सीटों से आदिवासी ही चुनाव लड़ते हैं, लेकिन वे अपनी पार्टी (कांग्रेस या बीजेपी) का प्रतिनिधित्व करते हैं, समुदाय का नहीं. वे पार्टी के प्रति जवाबदेह हैं, लोगों के प्रति नहीं. दोनों प्रमुख पार्टियों का सैन्यकरण और माइनिंग पर दृष्टिकोण समान है. वे अल्पसंख्यकों (जैसे ईसाई) पर हमलों पर भी खुलकर स्टैंड नहीं लेते, वोटों के डर से.
इस पूरे संघर्ष के पीछे पैसे का एक बड़ा खेल है. ठेकेदार बहुत ताकतवर हैं. खुद यह "युद्ध" ही एक आर्थिक गतिविधि बन गया है, जिसमें बहुत पैसा खर्च होता है (सैन्यीकरण पर) जिसकी कोई पारदर्शिता नहीं है. कंपनियाँ भी इसमें योगदान कर रही हैं, क्योंकि सैन्य उपस्थिति उनके माइनिंग हितों को सुरक्षित करती है. बेला ने सवाल उठाया कि अगर माओवाद कमजोर हो रहा है तो क्या सरकार कैंप और सेना हटाएगी. इसकी बात नहीं होती, बल्कि नई कंपनियों को पहाड़ दिए जा रहे हैं.
माओवादियों ने भी राज्य के प्रवेश (सड़क, पुलिस) का विरोध किया, डर से स्कूल भवन तोड़े जो कैंप बन सकते थे. लोग राशन जैसी योजनाएं लेते हैं, लेकिन दूर जाकर. कुछ आदिवासी माओवादियों की धमकी से या गतिविधियों में शामिल न होने के कारण अपने गाँव छोड़कर शहरों में शांति नगरों में रह रहे हैं. कुछ आदिवासी ईसाई बने और माओवादियों के निशाने पर आए. लोगों के शामिल होने के कारण जटिल हैं (डर, मजबूरी). बस्तर में एक युवा और स्वस्थ होना भी संदेह का कारण बन जाता है.
महिलाओं और युवाओं सहित आम लोगों का भविष्य अनिश्चित है. उन्होंने बहुत दुख झेला है, मनोवैज्ञानिक रूप से टूट गए हैं, सामुदायिक ताना-बाना बिखर गया है. उन्हें अपने खेत में काम करते हुए भी मारे जाने का खतरा है. मिर्ची तोड़ने तेलंगाना जाते हुए भी पकड़े जाते हैं. महुआ बीनते या त्यौहार मनाते हुए भी हिंसा का शिकार हुए हैं. न्याय व्यवस्था से कोई उम्मीद नहीं है. फर्जी एनकाउंटर की न्यायिक कमीशन की रिपोर्टें आईं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश आए, पर किसी पर कार्रवाई नहीं हुई.
आदिवासियों का जल, जंगल, जमीन के लिए लड़ने का इतिहास रहा है, और बेला को लगता है कि वे आगे भी लड़ेंगे. लेकिन राज्य की सैन्य शक्ति बहुत ज्यादा है, और न्याय तक पहुँच लगभग शून्य है. जनतांत्रिक तरीकों से काम करने वालों (जैसे सिलगेर के मूलवासी बचाओ मंच) को भी बैन किया गया, नेताओं को जेल हुई (यूएपीए के तहत). यह दिखाता है कि लोकतांत्रिक संघर्ष भी दबाया जा रहा है.
बेला मानती हैं कि बस्तर की स्थिति पूरे देश की स्थिति का प्रतिबिंब है: कॉर्पोरेट राज, बढ़ता अधिनायकवाद, फासीवाद, और जवाबदेही की कमी. आंबेडकर का शिक्षित हो, संगठित हो, संघर्ष करो का संदेश आज की कॉर्पोरेट और सत्तावादी व्यवस्था से चुनौती पा रहा है.
मानव अधिकार कार्यकर्ता के रूप में उनका काम सच्चाई को सामने लाना और लोकतांत्रिक ढाँचे (कोर्ट, एनएचआरसी) में लड़ना रहा है, भले ही वे विफल हों. यह लोगों की पीड़ा से उपजे सवाल पूछना और जवाबदेही तय करना है. यह एक तरह की एकजुटता है. इसमें पकड़े गए लोगों का पता लगाना, लाशें दिलवाना, पुलिस रिपोर्ट लिखवाने में मदद करना शामिल है, जो बहुत मुश्किल और खतरनाक काम है क्योंकि पुलिस अक्सर सहयोग नहीं करती.
सांस्कृतिक रूप से भी आदिवासियों पर प्रहार हो रहा है. अंदरूनी इलाके अभी भी बचे हैं, लेकिन हिंदी माध्यम शिक्षा, शहरों में प्रवास और हिंदुत्व के जानबूझकर प्रचार (मंदिर, त्यौहार, भगवा प्रतीक) के कारण पहचान का क्षरण हो रहा है. आदिवासी नेता भी भगवा प्रतीक अपनाने लगे हैं. आदिवासी ईसाईयों को परेशान किया जा रहा है, दफनाने की जगह तक नहीं दी जा रही. भाषा का भी मुद्दा है; गोंडी भाषी हिंदी स्कूलों में अलग-थलग महसूस करते हैं. यह कॉर्पोरेट और सैन्य प्रहारों के साथ-साथ आदिवासी पहचान पर एक और हमला है.
अंत में, बेला ने बस्तर को समझने के लिए कुछ किताबें भी सुझाईं, जिनमें ग्रियर्सन और एल्विन की औपनिवेशिक काल की किताबें, नंदिनी सुंदर की "Subalterns and Sovereigns", गौतम नवलखा, सुभ्रांशु चौधरी और राहुल पंडिता की हाल की किताबें शामिल हैं. उन्होंने कहा कि बस्तर के भविष्य के बारे में अभी कुछ कहना मुश्किल है, लेकिन उम्मीद है कि स्थिति में कुछ बदलाव आएगा, हालांकि मंडराता खतरा बहुत बड़ा है. यहां देखें पूरी बातचीत.
ट्रम्प ने पुतिन को भी बताया मध्यस्थता के जरिये संघर्ष रुकवाने के बारे में
“द हिंदू” की खबर है कि रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के इस महीने दिल्ली आने की संभावना है. उनकी यह यात्रा इस विवाद के बीच हो रही है, जिसमें रूस ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस दावे को दोहराया है कि पिछले महीने भारत-पाकिस्तान के बीच हुए संघर्षविराम में वाशिंगटन ने मध्यस्थता की थी. हालांकि भारत ने इस दावे को नकार दिया था.
यह ऑपरेशन सिंदूर के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के किसी स्थायी सदस्य देश के विदेश मंत्री की भारत की पहली यात्रा होगी. लावरोव अगले सप्ताह की शुरुआत में ही यात्रा कर सकते हैं, जहां वह विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ रणनीतिक और आर्थिक संबंधों पर चर्चा करेंगे.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत और पाकिस्तान के बीच सशस्त्र संघर्ष पर चर्चा की, जिसे राष्ट्रपति ट्रम्प की "व्यक्तिगत भागीदारी" से रोक दिया गया है, राष्ट्रपति पुतिन के एक प्रमुख सहयोगी ने कहा है. यह पहली बार है जब रूस ने दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष को रोकने में अमेरिकी राष्ट्रपति की भागीदारी का उल्लेख किया है. रूसी राष्ट्रपति के सहयोगी यूरी उशाकोव ने कहा, "इसके अतिरिक्त, मध्य पूर्व पर चर्चा की गई, साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच सशस्त्र संघर्ष पर भी, जिसे राष्ट्रपति ट्रम्प की व्यक्तिगत भागीदारी से रोक दिया गया है." यह संक्षिप्त बयान पुतिन और ट्रम्प के बीच उस फोन कॉल के बाद आया है, जो लगभग 70 मिनट तक चली.
भारत हमेशा यही कहते रहा है कि 10 मई को गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई रोकने का फैसला भारत और पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशकों (डीजीएमओ) के बीच लिया गया था, पाकिस्तान के डीजीएमओ द्वारा भारतीय डीजीएमओ को फोन करने के बाद. नई दिल्ली ने मध्यस्थता से इनकार कर दिया था और ट्रम्प के भारत-पाकिस्तान की राजनीति और शत्रुता में दखल देने को लेकर अपनी असहजता स्पष्ट कर दी थी.
माल्या : मैं न चोर न भगोड़ा, जेटली को बताकर गया
शराब कारोबारी विजय माल्या एक बार फिर चर्चा में हैं. उन्होंने हाल ही में यूट्यूबर राज शमानी को एक इंटरव्यू दिया है, जिसमें कई बड़े दावे किए हैं. विजय माल्या ने कहा, "जब मैं भारत छोड़ रहा था तब मैंने वित्त मंत्री (तत्कालीन) अरुण जेटली को बताया कि मैं लंदन जा रहा हूं. मुझे जेनेवा में एक मीटिंग में शामिल होना है. मैं वापस आऊंगा. कृपया बैंकों से कहें वो मेरे साथ बैठकर सेटलमेंट कर लें."
माल्या ने कहा कि उन्होंने ये दावा कभी नहीं किया कि उन्होंने अरुण जेटली के साथ बैठकर मुलाक़ात की है. ये सब बातें उन्होंने संसद में चलते-फिरते हुई मुलाक़ात में कही हैं. उन्होंने कहा कि वह न तो चोर हैं और न ही भगोड़े. फिलहाल, विजय माल्या ब्रिटेन में रह रहे हैं. साल 2016 में भारत छोड़ने के बाद से भारतीय एजेंसियां ब्रिटेन के कोर्ट में माल्या को भारत लाने की क़ानूनी लड़ाई लड़ रही हैं. माल्या पर आरोप है कि उन्होंने अपनी किंगफ़िशर एयरलाइन कंपनी के लिए बैंकों से क़र्ज़ लिया और उसे बिना चुकाए वो विदेश चले गए. क़र्ज़ की यह रकम क़रीब 10 हज़ार करोड़ रुपए बताई जाती है. किंगफ़िशर एयरलाइन ख़स्ताहाल होने के बाद बंद हो चुकी है. इस इंटरव्यू में माल्या ने रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु टीम के बनने की कहानी भी बताई. साथ ही उन्होंने भारत वापस आने को लेकर और उन्हें 'भगोड़ा' कहे जाने पर भी जवाब दिया है. माल्या ने इस इंटरव्यू को “एक्स” पर शेयर किया और किंगफ़िशर के कर्मचारियों से माफ़ी भी मांगी. उन्होंने लिखा, "बीते नौ सालों में मैंने पहली बार इस पॉडकास्ट में अपनी बात कही है. मैं किंगफ़िशर एयरलाइंस के कर्मचारियों से माफ़ी मांगना चाहता हूं. साथ ही सच्चाई और तथ्यों के साथ जानकारी को स्पष्ट तौर पर रखना चाहता हूं." यह पूरा इंटरव्यू बीबीसी में यहां पढ़ा जा सकता है और “यू ट्यूब” पर देखा जा सकता है.
राजनीति
बिहार में खेल बिगाड़ेंगे या बिसात बिछाएंगे पीके
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर अब खुद को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी में हैं. उनकी जन सुराज पार्टी (जेएसपी) के कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भारती का दावा है कि प्रशांत किशोर बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे लोकप्रिय विकल्प हैं. ‘द हिंदू’ में सुचित्रा कार्तिकेयन ने इस पर एक लम्बा डिस्पैच लिखा है.
अक्टूबर 2022 से प्रशांत किशोर 'बिहार बदलाव यात्रा' के नाम से पैदल यात्रा कर रहे हैं. उन्होंने 17 जिलों में 5000 किलोमीटर की यात्रा पूरी की है. बेरोजगारी, पलायन और महंगाई जैसे मुद्दों को उजागर करते हुए उन्होंने अक्टूबर 2024 में जन सुराज पार्टी की स्थापना की. पार्टी का नारा है 'इंसान पहले' और इसका लक्ष्य ऐसा बिहार बनाना है जहां गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब के लोग काम की तलाश में आएं.
नवंबर 2024 के उपचुनावों में जेएसपी का पहला परीक्षा हुआ. तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज की चार सीटों पर पार्टी को कोई जीत नहीं मिली, लेकिन कुल मिलाकर 10% वोट हासिल किए. प्रशांत किशोर ने इसे संतोषजनक बताया. हार के बाद कुछ नेता पार्टी छोड़कर चले गए लेकिन किशोर का हौसला बना रहा.
पार्टी की खास बात यह है कि वो अमेरिकी शैली की प्राइमरी प्रक्रिया अपना रही है. हर सीट के लिए 5-10 संभावित उम्मीदवारों में से एक का चुनाव होगा. यह चयन प्रक्रिया गांव, ब्लॉक और जिला स्तर से फीडबैक लेकर की जाएगी. पार्टी ने समाज को पांच वर्गों में बांटा है - फॉरवर्ड, बैकवर्ड, अति गरीब, मुसलमान और दलित. जातिगत जनगणना के आधार पर टिकट बांटे जाएंगे. जेएसपी ने कई आकर्षक वादे किए हैं. सबसे बड़ा वादा है शराबबंदी हटाकर शराब की टैक्स से मिली आय को शिक्षा पर खर्च करना. पार्टी का दावा है कि प्रतिबंध सिर्फ कागजों पर है और इससे करीब 20,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है. मजदूर वर्ग के लिए कम ब्याज दर पर लोन की व्यवस्था की जाएगी. बुजुर्गों के लिए 2000 रुपए मासिक पेंशन और महिलाओं के लिए आसान लोन की सुविधा भी दी जाएगी. भूमि सुधार और दलित किसानों को जमीन के अधिकार दिलाने का भी वादा किया गया है.
बिहार में मुसलमान आबादी का 18% हिस्सा हैं. पिछले चुनावों में यह वोट बैंक महागठबंधन (राजद-कांग्रेस) के साथ रहा है. जेएसपी मुसलमानों को 40 सीटें देने की योजना बना रही है. लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (भाजपा-जदयू) कभी भी मुसलमानों की पहली पसंद नहीं रहा. प्रशांत किशोर राघोपुर सीट से चुनाव लड़ने के संकेत दे रहे हैं, जहां तेजस्वी यादव का कब्जा है. इससे दिलचस्प मुकाबला हो सकता है.
मई 2025 में नीतीश कुमार के पूर्व सहयोगी आरसीपी सिंह की 'आप सबकी आवाज' पार्टी जेएसपी में शामिल हो गई, जिससे पार्टी को संगठनात्मक मजबूती मिली है. सिंह पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और बूथ लेवल संगठन बनाने में माहिर हैं. नवंबर 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जेएसपी सभी 243 सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रही है और किसी भी गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर रही है. पार्टी का दावा है कि वो महागठबंधन और एनडीए के अलावा तीसरा मजबूत विकल्प बनकर उभरेगी.
ट्रम्प और मस्क का ब्रेक अप ! ट्विटर पर उतरती भड़ास, एक दूसरे के दुश्मन बने
एक तरफ दुनिया का सबसे अमीर आदमी, दूसरी तरफ सबसे शक्तिशाली. दोनों में पहले दोस्ती और फिर घमासान. इलोन मस्क और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच का रायता ट्विटर पर फैलते हुए पूरी दुनिया ने देखा. जो किसी बॉलीवुड ड्रामा या रियलिटी शो से कम नहीं थी. ये सिर्फ उनका 'पब्लिक ब्रेकअप' था.
मस्क ने ट्रम्प का समर्थन किया, उनकी रैलियों में दिखे, और बहुतों को लगा कि ये 'ब्रोमांस' ज़्यादा टिकने वाला नहीं था, ये सबको पता था. ये कभी भी 'फट' सकता था. जैसे स्पेसएक्स रॉकेट उड़ता है और कभी-कभी... फट भी जाता है. और फटा भी! हाल ही में ट्रम्प के लाए एक 'बड़े और खूबसूरत' बिल पर मस्क ने सवाल उठा दिए. उन्होंने इसे 'घिनौना' और 'पैसे बर्बाद करने वाला' बताया. कहा कि रिपब्लिकन्स को तो शर्म आनी चाहिए ऐसे बिल पर वोट करते हुए. ट्रम्प ने शुरुआत में चुप्पी साधी, जो उनकी आदत नहीं है. सबको पता था कि ये ज़्यादा देर दब नहीं सकता. और फिर वो हुआ. ओवल ऑफिस में बैठे ट्रम्प ने मस्क पर 'पटकनी' मारी. उन्होंने कहा कि वो मस्क से बहुत निराश हैं. मैंने उसकी बहुत मदद की. वो यहां घंटों बैठता था. बिल को अच्छे से जानता था.
ट्रम्प ने कहा कि मस्क को तब तक कोई दिक्कत नहीं थी जब तक मैंने ईवी मैंडेट नहीं हटाया. उसी से उसे अरबों डॉलर का नुकसान होता. इसलिए अब वो मेरे खिलाफ हो गया. उन्होंने इसे 'ट्रम्प डिरेजमेंट सिंड्रोम' बता दिया. और फिर ये सारा 'ड्रामा' ट्विटर पर आ गया... नहीं, एक्स पर. जहां दोनों खुद मालिक हैं. और फिर शुरू हुआ सीधा वार. मस्क ने फिर बिल को 'बड़ा, भद्दा और घिनौना' कहा. कहा कि इतिहास में कोई भी कानून 'बड़ा और खूबसूरत' नहीं रहा.
ट्रम्प ने कहा कि मस्क ने बिल देखा था. मस्क ने कहा: 'झूठ. सरासर झूठ'. उन्होंने कहा कि ये बिल इतनी जल्दी पास किया गया कि कांग्रेस के लोग भी ढंग से पढ़ नहीं पाए. फिर उन्होंने ट्रम्प के पुराने ट्वीट निकाले जहां वो कर्ज़ और घाटे पर भाषण देते थे. मस्क ने पूछा: 'ये आदमी आज कहां है?'. बीच में एक पल ऐसा आया जब मस्क थोड़े भावुक हो गए. उन्होंने ट्रम्प की एक पुरानी तस्वीर रिट्वीट की जिसमें ट्रम्प व्हाइट हाउस के बाहर टेस्ला देख रहे थे. मस्क ने लिखा: 'ये याद है?'. जैसे कोई ब्रेकअप के बाद पुरानी यादें शेयर करता है. लेकिन ट्रम्प ने इसे 'इमोशनल ट्वीट' नहीं समझा. उन्होंने पलटवार किया. कहा कि मस्क 'उन्हें देख-देखकर थक गया था'. इसलिए मैंने ही उसे व्हाइट हाउस से निकाला. और वो मेरे ईवी मैंडेट हटाने पर पागल हो गया. मस्क ने इसे भी 'सरासर झूठ' बताया. लिखा: 'कितना घटिया झूठ. बहुत दुख हुआ'.
फिर ट्रम्प ने सबसे बड़ा 'हथियार' निकाला. उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका को पैसा बचाना है, तो मस्क की कंपनियों को मिलने वाली सरकारी सब्सिडी और कॉन्ट्रैक्ट बंद कर दो. ये अरबों डॉलर का मामला है. उन्होंने कहा कि मुझे तो हैरानी है कि बाइडेन ने ऐसा क्यों नहीं किया. यहां से बात पर्सनल और 'खतरनाक' होने लगी. मस्क को मिर्ची लगी. उन्होंने सीधा 'एपस्टीन फाइल्स' का नाम लिया. कहा कि ट्रम्प उन फाइलों में हैं. यही असली वजह है कि वो फाइलें पब्लिक नहीं हुईं. उन्होंने इसे 'सबसे बड़ा बम' बताया और कहा कि 'इस पोस्ट को मार्क कर लो, सच सामने आएगा'.
फिर तो हद ही हो गई. मस्क ने धमकाया कि अगर ऐसा हुआ तो वो स्पेसएक्स के ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट बंद कर देंगे. जिसमें अभी 4 एस्ट्रोनॉट स्पेस स्टेशन पर हैं. ये धमकी सुनकर लोगों के होश उड़ गए. मामला मजाक नहीं रहा. मस्क यहीं नहीं रुके. उन्होंने एक ट्वीट रिट्वीट किया जिसमें पूछा गया था: 'प्रेसिडेंट बनाम एलन: कौन जीतेगा?'. जवाब था: 'मेरा पैसा एलन पर है. ट्रम्प को महाभियोग लगाकर हटाना चाहिए और जेडी वेंस को उनकी जगह लेनी चाहिए'. मस्क ने इस पर 'हां' लिखा. उन्होंने ट्रम्प के टैक्स प्लान से मंदी आने की भविष्यवाणी भी कर दी. और एपस्टीन के साथ ट्रम्प का 1992 का वीडियो भी रिट्वीट कर दिया.
अंत में, मस्क ने एक पोल किया: 'क्या अमेरिका में एक नई पार्टी बननी चाहिए जो बीच के 80% लोगों का प्रतिनिधित्व करे? हां या नहीं?'. तो भैया. ये थी ट्रम्प और मस्क की 'ट्विटर वॉर' की कहानी. इसमें दोनों ने कुछ बातें सही कहीं (जैसे बिल में गड़बड़ है, या मस्क को अरबों का फायदा होता है) लेकिन दोनों ही एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे थे. ये दो अरबपतियों के ईगो का टकराव था. जो दूसरों की मुसीबत (यानी हमारे मनोरंजन) में मजा लेने वालों के लिए 'गजब' था. लेकिन ये भी दिखाता है कि कैसे दुनिया के कुछ सबसे ताकतवर लोग सिर्फ अपने फायदे और गुस्से के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुक्रवार को अपने पूर्व राजनीतिक सहयोगी इलोन मस्क की मेल-मिलाप की कोशिश को ठुकरा दिया है. ट्रम्प ने मस्क को “एक ऐसा व्यक्ति बताया जिसने अपना दिमाग़ खो दिया है”, जिससे स्पष्ट हो गया कि दोनों के बीच का यह असाधारण झगड़ा अभी खत्म नहीं होने वाला है. ट्रम्प और मस्क, जिन्हें 2024 के चुनाव में ट्रम्प के समर्थन और संघीय सरकार में कटौती करने की जिम्मेदारी दी गई थी, गुरुवार को सोशल मीडिया पर हुई तूफ़ानी बयानबाज़ी के बाद आमने-सामने आ गए.
शुक्रवार को एबीसी न्यूज़ को दिए एक फ़ोन इंटरव्यू में ट्रम्प ने मस्क के प्रति अपनी नाराज़गी को दोहराया, जबकि मस्क ने 2024 चुनाव अभियान में ट्रम्प को करोड़ों डॉलर का समर्थन दिया था. जब चैनल ने ट्रम्प से पूछा कि क्या उनकी मस्क से बातचीत तय है, तो ट्रम्प ने चुटकी लेते हुए कहा, “आप उस आदमी की बात कर रहे हैं जिसने अपना दिमाग़ खो दिया है?” ट्रम्प ने कहा कि फिलहाल "मस्क से बात करने में मुझे खास दिलचस्पी नहीं है.”
एबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, मस्क ट्रम्प से बात करना चाहते थे, लेकिन ट्रम्प इसके लिए तैयार नहीं हैं. इससे पहले मस्क ने संकेत दिया था कि वे ट्रम्प के साथ सार्वजनिक विवाद को शांत कर सकते हैं. मस्क ने अपनी कंपनी स्पेसएक्स द्वारा बनाए गए ड्रैगन अंतरिक्ष यान को हटाने की घोषणा को वापस लेने की बात कही थी. उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर कहा, "ठीक है, हम ड्रैगन को रिटायर नहीं करेंगे." इसके अलावा, मस्क ने अरबपति हेज फंड मैनेजर बिल ऐकमन की उस अपील का भी सकारात्मक जवाब दिया, जिसमें उन्होंने ट्रम्प और मस्क से “देश की भलाई के लिए सुलह करने” को कहा था. मस्क ने जवाब में लिखा, “आप ग़लत नहीं हैं.”
‘पॉलिटिको’ की रिपोर्ट के अनुसार, व्हाइट हाउस ने शुक्रवार को मस्क और ट्रम्प के बीच सुलह कराने के लिए कॉल तय की थी, लेकिन बाद में ऐसी खबरें आईं कि अब यह कॉल रद्द कर दी गई है. यह विवाद कई माध्यमों मसलन सोशल मीडिया और व्हाइट हाउस में हुआ है. ट्रम्प ने मस्क की सार्वजनिक आलोचना को लेकर खुद को “बहुत निराश” बताया. ट्रम्प के एक पोस्ट में उन्होंने कहा - “मुझे मस्क के मेरे खिलाफ जाने से कोई आपत्ति नहीं, लेकिन उन्हें यह महीनों पहले करना चाहिए था.” उन्होंने अपने टैक्स कटौती वाले बिल को “अब तक कांग्रेस के सामने लाया गया सबसे शानदार बिल” बताया. ट्रम्प के सलाहकारों ने उनसे कहा कि मस्क से भिड़ने के बजाय वे अपने टैक्स और खर्च बिल को सीनेट से पारित कराने पर ध्यान केंद्रित करें. एक संक्षिप्त इंटरव्यू में ट्रम्प ने इस झगड़े को लेकर "बिल्कुल निश्चिंतता" जताई और कहा, "सब ठीक है. पहले से बेहतर चल रहा है." और जाते-जाते बोले, “मेरे नंबर रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं, अब तक के सबसे ऊंचे पोल, और मुझे अब जाना है.”
बेंगलुरु भगदड़:
कर्नाटक हाई कोर्ट ने केएससीए अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष के खिलाफ पुलिस को जबरन कार्रवाई से रोका
4 जून को रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) की जीत के जश्न के दौरान चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर मची भगदड़ में 11 लोगों की मौत हुई थी. 'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि इस मामले में दर्ज एफआईआर के तहत केएससीए के अध्यक्ष रघुराम भट, सचिव ए. शंकर और कोषाध्यक्ष ई.एस. जयराम के खिलाफ पुलिस कार्रवाई पर फिलहाल रोक लगा दी गई है. अदालत ने यह अंतरिम आदेश 6 जून को जारी किया. केएससीए ने कोर्ट में कहा कि स्टेडियम केवल किराये पर दिया गया था, कार्यक्रम के आयोजन की जिम्मेदारी रॉयल चैलेंजर्स स्पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड की थी, जो आरसीबी की मालिक है. प्रवेश और निकास व्यवस्था आरसीबी के द्वारा डीएनए एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड के ज़रिए संचालित की जा रही थी. सरकार से जरूरी अनुमतियों की व्यवस्था कराने में केएससीए ने मदद की थी, लेकिन आयोजन की संचालन जिम्मेदारी उनकी नहीं थी. याचिका में केएससीए ने आरोप लगाया कि “आरसीबी और डीएनए के साथ केएससीए को भी दोषी ठहराने का एकमात्र उद्देश्य यह है कि किसी को ‘दोषी’ की कुर्सी पर बैठाया जाए ताकि जनता का गुस्सा और आक्रोश उन मंत्रियों और सरकारी प्रमुखों से हटाया जा सके जो वास्तव में इस त्रासदी के लिए ज़िम्मेदार हैं.”
केएससीए और डीएनए के प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से मुलाकात कर कार्यक्रम के लिए समर्थन और आशीर्वाद मांगा था. विधाना सौधा की सीढ़ियों पर आयोजित समारोह में खुद मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार और कई कैबिनेट मंत्री मौजूद थे. राज्य के मुख्य सचिव ने भी इस कार्यक्रम का मार्गदर्शन किया था. याचिका में कहा गया कि यह एफआईआर एक “घबराहट में की गई कार्रवाई” है जिसे पुलिस ने सरकार के दबाव में दर्ज किया, ताकि मीडिया की आलोचना से बचा जा सके. सरकार ने खुद इस घटना को “अप्रत्याशित दुर्घटना और अनजाने में हुई त्रासदी” कहा है, ऐसे में केएससीए पर मामला दर्ज करना न्याय की विफलता है. साथ ही यह भी कहा गया कि पुलिस पहले ही इस घटना को “अप्राकृतिक मृत्यु” के तहत दर्ज कर चुकी थी, इसलिए दोबारा एफआईआर दर्ज करना गैरकानूनी है. आयोजन में भारी अव्यवस्था और पुलिस की लचर तैयारियों को लेकर पूरे राज्य में सरकार की तीखी आलोचना हो रही है.
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बावजूद अमरनाथ यात्रा के लिए अभूतपूर्व सुरक्षा, 14 दिन भी घटाए
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए सीमा पर आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने के बावजूद भारत कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहता. यही वजह है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के खतरे को ध्यान में रखकर मोदी सरकार ने इस वर्ष की अमरनाथ यात्रा के लिए अभूतपूर्व और वीवीआईपी स्तर की सुरक्षा व्यवस्था लागू की है. “द ट्रिब्यून” की रिपोर्ट के अनुसार इस बार यात्रा मार्ग पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की लगभग 581 कंपनियां, जैमर, ड्रोन के 9 यूनिट्स और 24/7 साइबर मॉनिटरिंग तैनात की जाएगी. हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के मद्देनज़र, क्विक-रिएक्शन टीमें, रोड-ओपनिंग पार्टियां और अर्धसैनिक बलों की एस्कॉर्ट दोनों निर्धारित मार्गों की सुरक्षा करेंगी. इस बार यात्रा की अवधि भी घटाकर 38 दिन कर दी गई है, जबकि 2024 में यह 52 दिन थी.
यूएनएससी की महत्वपूर्ण समितियों में पाकिस्तान को मिले पद और मोदी सरकार की चुप्पी के मायने
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद निरोधक समिति के उपाध्यक्ष और तालिबान प्रतिबंध समिति के अध्यक्ष पद पर पाकिस्तान की नियुक्ति को लेकर भारत ने अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, जबकि इस घटना को 24 घंटे से अधिक बीत चुके हैं. कांग्रेस ने इस घटनाक्रम को भारत की विदेश नीति की "दुखद विफलता" करार दिया है. वहीं, भाजपा ने इस पर सीधी प्रतिक्रिया देने से परहेज किया, लेकिन यह विडंबना किसी से छुपी नहीं रही कि यह नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब मोदी सरकार ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी और अस्थायी सदस्य देशों जिनमें कुल 33 देश शामिल हैं, उनके साथ पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को राज्य की नीति के रूप में अपनाने के खिलाफ जनमत तैयार करने के लिए व्यापक कूटनीतिक प्रयास किए थे.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद निरोधक समिति के उपाध्यक्ष और तालिबान प्रतिबंध समिति के अध्यक्ष पद पर पाकिस्तान की नियुक्ति भारत की विदेश नीति के लिए गंभीर चुनौती है. 24 घंटे बीतने के बाद भी मोदी सरकार की चुप्पी चिंताजनक है. कांग्रेस ने इसे कूटनीतिक विफलता करार दिया है जबकि भाजपा सीधी प्रतिक्रिया से बच रही है.
यह नियुक्ति ऐसे समय हुई है जब भारत ने 33 यूएनएससी सदस्य देशों के साथ पाकिस्तान के आतंकवाद प्रायोजन के विरुद्ध जनमत बनाने के व्यापक प्रयास किए थे. ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने विशेष प्रतिनिधिमंडल भेजे थे लेकिन कोई खास उपलब्धि नहीं मिली. FATF, UNSC और OIC जैसे मंचों पर भारत के तमाम प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान को संवेदनशील पद मिलना भारत की कूटनीतिक रणनीति पर प्रश्नचिह्न लगाता है.
अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं आतंकवाद को नैतिकता के बजाय सामरिक संतुलन के नजरिए से देखती हैं. अमेरिका, चीन और रूस के हित पाकिस्तान से जुड़े हैं. मोदी सरकार की आक्रामक बयानबाजी और सर्जिकल स्ट्राइक की नीति की सीमाएं स्पष्ट हैं. नरम कूटनीति और बहुपक्षीय समीकरणों को साधना जरूरी है. अंदरूनी राजनीति में पाकिस्तान-विरोध को चुनावी मुद्दा बनाना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुप्पी साधना सरकार के विरोधाभास को दर्शाता है.
कमल हासन ने राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया : 'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि मक्कल निधि मय्यम (एमएनएम) के अध्यक्ष और अभिनेता कमल हासन ने शुक्रवार को चेन्नई स्थित तमिलनाडु सचिवालय में राज्यसभा चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल किया. इस मौके पर मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन भी मौजूद रहे. डीएमके ने एक राज्यसभा सीट एमएनएम को दी है, जिसके तहत कमल हासन को उच्च सदन के लिए उम्मीदवार घोषित किया गया था. नामांकन के समय DMK के सहयोगी दलों के नेता भी मौजूद थे. वीएसके प्रमुख तिरुमावलवन, एमडीएमके नेता वैको और तमिलनाडु कांग्रेस अध्यक्ष के. सेल्वा पेरुंदगई. तमिलनाडु विधानसभा में कुल 234 सदस्य हैं और राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए कम से कम 34 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होती है.
बच्ची से दुष्कर्म करने वाला व्यक्ति पुलिस मुठभेड़ में मारा गया : 'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि एक व्यक्ति, जिस पर ढाई साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म का आरोप था, शुक्रवार को लखनऊ में पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया. 26 वर्षीय आरोपी दीपक वर्मा पर ₹1 लाख का इनाम घोषित था. डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (सेंट्रल जोन) आशीष श्रीवास्तव ने पत्रकारों को बताया कि एक दंपत्ति, जो मेट्रो स्टेशन के नीचे रहता है, ने गुरुवार को आलमबाग पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई कि उनकी बेटी के साथ दुष्कर्म हुआ है. इसके बाद मेट्रो स्टेशन पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज का विश्लेषण किया गया और देखा गया कि गुरुवार तड़के करीब 3 बजे एक व्यक्ति सफेद स्कूटर पर वहां आया था. उसने बच्ची को मेट्रो स्टेशन की लिफ्ट के पीछे ले जाकर उसके साथ जबरदस्ती की. "स्कूटर का नंबर पहचाना गया, जिससे पुलिस को ऐशबाग क्षेत्र के निवासी वर्मा तक पहुंचने में मदद मिली,". गुरुवार देर रात पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी भागने वाला है. एक टीम मौके पर पहुंची और उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन आरोपी ने गोलीबारी की, अधिकारी ने दावा किया. डीसीपी ने बताया कि आरोपी पानी बेचने का काम करता था. उन्होंने कहा कि बच्ची फिलहाल किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में इलाज करा रही है, जहां उसकी हालत गंभीर बताई जा रही है.
वैकल्पिक मीडिया
"न्याय की राह में बाधा: घरेलू हिंसा मामलों में वारंट पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, क्या पीड़िताओं के लिए राहत और कठिन?"
'आर्टिकल 14' की रिपोर्ट है कि घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को त्वरित न्याय और सुरक्षा दिलाने के लिए बने कानून की धार अब कुंद होती दिख रही है. जनवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि घरेलू हिंसा कानून के तहत चल रहे मामलों में मजिस्ट्रेट आरोपी पति के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी नहीं कर सकते, क्योंकि ये कार्यवाही "क्वासी-क्रिमिनल" यानी अर्ध-आपराधिक प्रकृति की होती हैं.
यह फैसला उस समय आया जब देशभर की कई अदालतें, खासकर निचली अदालतें, ऐसे मामलों में पति की लगातार गैर-हाज़िरी और अदालत की अनदेखी को देखते हुए वारंट जारी कर रही थीं. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश, कानूनी दृष्टि से चाहे जितना भी तर्कसंगत क्यों न हो, जमीनी स्तर पर घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए न्याय की राह को और कठिन बना सकता है. यहां पढ़िए पूरी रिपोर्ट.
यूक्रेन पर हमला
रूस का कीव पर भीषण मिसाइल और ड्रोन हमला
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के यूक्रेन को "ऑपरेशन स्पाइडरवेब" के जवाब में कार्रवाई की चेतावनी देने के बाद गुरुवार रात राजधानी कीव पर रूस ने भयंकर मिसाइल और ड्रोन हमला किया, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई. मारे गए लोगों में तीन दमकलकर्मी शामिल हैं, जो हमला होने के दौरान लोगों की मदद कर रहे थे. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा कि रूस ने रातभर में 400 से अधिक ड्रोन और 40 से ज्यादा मिसाइलें दागीं. उन्होंने अपने सहयोगी देशों से अपील की कि वे क्रेमलिन पर दबाव बढ़ाएं ताकि यह युद्ध खत्म हो. “अगर कोई दबाव नहीं बनाता और युद्ध को ज़िंदगियां लेने देता है, तो वह भी दोषी और ज़िम्मेदार है,” ज़ेलेंस्की ने सोशल मीडिया पर लिखा.
'वो एक बुलडॉग है': ये है यूक्रेन के ऑपरेशन स्पाइडरवेब की सफलता के पीछे का आदमी

'द गार्डियन' ने उस शख्स के बारे में रिपोर्ट की है जो यूक्रेन के ऑपरेशन स्पाइडरवेब की सफलता के पीछे था. यूक्रेन की सुरक्षा सेवा (एसबीयू) के प्रमुख वासिल मलयुक को जानने वालों के लिए यह कोई हैरानी की बात नहीं थी कि उन्होंने ऑपरेशन स्पाइडरवेब की सफलता की घोषणा करते हुए अपने बयान में एक शक्तिशाली भाषा का इस्तेमाल किया. रूस के रणनीतिक बमवर्षकों वाले दूरस्थ ठिकानों पर किए गए दुस्साहसी ड्रोन हमलों को मलयुक (42), जो कभी बॉक्सर और वेटलिफ्टर रह चुके हैं, ने "रूस की ताक़त के मुंह पर एक करारा तमाचा" बताया. उन्होंने कहा, "हमारे हमले तब तक जारी रहेंगे जब तक रूस यूक्रेनियों को मिसाइलों और शाहेद ड्रोनों से आतंकित करता रहेगा." मुंडा हुआ सिर और एक नाइटक्लब बाउंसर जैसी कद-काठी और मौजूदगी रखने वाले मलयुक ने 2022 में उस समय एसबीयू का नेतृत्व संभाला, जब पूर्व प्रमुख इवान बकानोव, जो राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के बचपन के दोस्त थे, अयोग्यता के आरोप में पद से हटा दिए गए. मलयुक तब उनके डिप्टी थे.
पिछले तीन वर्षों में एसबीयू के कई हाई-प्रोफाइल ऑपरेशन सफल हुए हैं. एक बार मलयुक की एक तस्वीर सामने आई थी, जिसमें वह कथित रूसी डबल एजेंट दिमित्री कोज़्यूरा को कॉलर से पकड़ कर गिरफ्तार करते नजर आ रहे थे, यह तस्वीर प्रचार के लिए ही खींची गई थी. जब रूसी पैरामिलिट्री नेता ज़खार प्रिलेपिन एक एसबीयू प्रायोजित हत्या प्रयास में गंभीर रूप से घायल हुए, तो मलयुक ने कहा कि उनकी "पेल्विस और टांगें बुरी तरह घायल हुई हैं और माफ कीजिए, उनके जननांग नष्ट हो गए." फिर व्यंग्यात्मक लहजे में जोड़ा, "तो अब भगवान की इच्छा है कि वह जीवित रहें और जीवन का आनंद लें."
इसी दौरान, एसबीयू द्वारा विकसित "सी बेबी" समुद्री ड्रोन को रूस के 11 नौसैनिक जहाजों को निशाना बनाने और ब्लैक सी फ्लीट को नोवोरोसिस्क तक पीछे धकेलने का श्रेय मिला. हालांकि, यह सब 1 जून के ड्रोन हमलों की तुलना में फीका है, जिन्हें मलयुक ने अंजाम दिया और जिसने वैश्विक ध्यान खींचा. एक एसबीयू अधिकारी ने कहा, “मुझे पूरा विश्वास है कि वासिल मलयुक के नेतृत्व में किए गए एसबीयू ऑपरेशन पर किताबें और फिल्में बनेंगी. हॉलीवुड भी इसके सामने फीका लग रहा है.” यूक्रेन का दावा है कि इन हमलों में 41 रूसी विमान नष्ट हुए, जबकि अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 10 विमान पूरी तरह नष्ट हुए और 20 को क्षति पहुंची. इन 117 ड्रोनों की वीडियो फुटेज — जो बिना पश्चिमी हथियारों की मदद से रूस के अंदर गहराई तक पहुंचीं, उसने रूस पर न सिर्फ सैन्य बल्कि मनोवैज्ञानिक हमला भी किया. यूक्रेन के विदेश मंत्री सर्गेई किस्लित्स्या ने कहा कि इस हमले ने इस्तांबुल में चल रही शांति वार्ता की "परिपाटी और गति" ही बदल दी. इसके बाद क्राइमिया को रूस से जोड़ने वाले पुल को भी एक भीषण पानी के नीचे धमाके से क्षतिग्रस्त कर दिया गया. यह हमले इतने गंभीर थे कि व्लादिमीर पुतिन ने डोनाल्ड ट्रम्प को फोन कर कहा कि वह "प्रतिक्रिया देंगे". शुक्रवार तड़के कीव पर मिसाइल और ड्रोन हमलों में चार लोग मारे गए.
वासिल मलयुक कौन हैं? एक वरिष्ठ यूक्रेनी अधिकारी ने कहा, “वो एक बुलडॉग हैं. वो चिंतनशील या संकोची नहीं हैं. वो दृढ़ हैं, लेकिन ज़रूरी बात ये है कि वो बुरे नहीं हैं. अक्सर ऐसे पदों पर बैठे लोग निर्दयी होते हैं, लेकिन मलयुक अनावश्यक रूप से किसी को चोट नहीं पहुंचाना चाहते, बस वो जानते हैं कि कभी-कभी ज़रूरी होता है.” मलयुक का जन्म कीव से 130 किलोमीटर पश्चिम स्थित कोरोस्तिशिव शहर में हुआ. 17 की उम्र में ही उन्होंने एसबीयू की अकादमी में दाखिला लिया और 2005 में विधि की डिग्री के साथ स्नातक किया. उन्होंने अपने युवा दिनों में मुक्केबाज़ी की और कहा जाता है कि एक समय में उनकी बांह में चोट भी आई. ब्रिटेन या अमेरिका की तरह नहीं, यूक्रेन की एसबीयू गुप्तचर ऑपरेशन, पुलिस और विशेष बलों जैसे कार्यों का समावेश करती है. मलयुक ने एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार और संगठित अपराध से लड़ते हुए बिताया.
2019 में जब ज़ेलेंस्की राष्ट्रपति बने, तो मलयुक ने उन्हें ज़ाइटोमिर क्षेत्र में अवैध एम्बर खनन की जानकारी हेलिकॉप्टर में बैठकर दी. ज़ेलेंस्की ने कहा - “मैं मलयुक को इन समस्याओं से निपटने का अधिकार देता हूं.” रूस के युद्ध शुरू करने से कुछ पहले उन्हें आंतरिक मंत्रालय में उप मंत्री बनाया गया, लेकिन राजनीति में उनकी कोई रुचि नहीं थी. युद्ध शुरू होते ही वह फिर एसबीयू में लौट आए. उस समय एजेंसी की हालत ख़राब थी. खासकर खेरसोन क्षेत्र के प्रमुख ने एजेंटों को रूसी हमले से पहले ही हटा लिया था. मलयुक ने अंदर बैठे गद्दारों को पकड़ना अपनी प्राथमिकता बनाई. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “ऑपरेशन स्पाइडरवेब की सबसे अच्छी बात ये है कि यह लीक नहीं हुआ - इसका मतलब है कि मलयुक ने भीतर के कई गद्दारों को बाहर निकाल फेंका.”
नेतृत्व और रणनीति : मलयुक खुद "अल्फा यूनिट" में रुचि लेते हैं. ये वह एसबीयू इकाई है जो अग्रिम मोर्चे पर कार्य करती है. एसबीयू के अनुसार, फरवरी से अब तक उन्होंने 2,000 टैंक, 3,000 से अधिक बख्तरबंद वाहन, कई विमान, रॉकेट लॉन्चर, सैन्य ठिकाने और 30 से अधिक तेल रिफाइनरियां नष्ट की हैं. पूर्व एसबीयू एजेंट इवान स्टुपाक ने कहा, “स्पाइडरवेब की योजना गुप्तचर तंत्र के भीतर बनी। और यह विचार सीधे मलयुक तक पहुंचा. उन्होंने इसे राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की तक पहुंचाया और उन्हें मना भी लिया.” सैन्य पत्रकार यूरी बुतुसोव ने कहा, “मलयुक ने युवा एजेंटों को आगे बढ़ाया, पदानुक्रम को नजरअंदाज किया. उनके लिए राजनीति नहीं, सिर्फ युद्ध में जीत मायने रखती है.” मलयुक स्वयं मीडिया प्रचार में रुचि नहीं रखते, लेकिन ज़ेलेंस्की मीडिया-सावधान नेता हैं. एक सूत्र ने कहा, “मलयुक मंत्रियों के साथ संक्षिप्त, बिंदुवार तरीके से बात करते हैं. वही शैली वह अपने अधीनस्थों से भी चाहते हैं.” एक अधिकारी ने कहा, “आज उनके पास सत्ता और स्वतंत्रता है, लेकिन उसे उन्होंने कमाया है. वह परिणाम देते हैं. उन्होंने अपना ‘कार्टे ब्लांच’ अर्जित किया है.”
चलते-चलते
चिनाब पर एफिल टॉवर से भी ऊंचा आर्च ब्रिज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कश्मीर में चिनाब नदी पर दुनिया के सबसे ऊंचे सिंगल-आर्च रेलवे ब्रिज का उद्घाटन किया. "सिंगल-आर्च ब्रिज" शब्द आमतौर पर ऐसे पुल के लिए इस्तेमाल होता है, जिसमें दो सिरों के बीच सतत एक ही मेहराब (आर्च) होती है. यह ब्रिज पहली बार कश्मीर घाटी को ट्रेन के माध्यम से देश के बाकी हिस्सों से जोड़ेगा. “बीबीसी” की रिपोर्ट के मुताबिक यह एफिल टॉवर से 35 मीटर (114 फीट) ऊंचा है और भारतीय रेलवे को इसे बनाने में 20 से अधिक वर्ष लगे. वर्ष 2003 में इस परियोजना को स्वीकृति दी गई थी. यह पुल 272 किलोमीटर (169 मील) लंबी ऑल-वेदर रेलवे लाइन का हिस्सा है, जो जम्मू से होकर गुजरती है और अंततः कश्मीर घाटी तक जाती है. “हिंदुस्तान टाइम्स” के अनुसार चिनाब पुल रेल लिंक परियोजना का हिस्सा है. परियोजना की अनुमानित लागत 43,780 करोड़ रुपये है, इसमें 119 किलोमीटर तक फैली 36 सुरंगें और 943 पुल शामिल हैं.
पाठकों से अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.