07/07/2025: बिहार मतदाता को थोड़ी ढील | सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं | सैफ को भोपाल की जायदाद मिलनी आसान नहीं | आकाशदीप के कारण सीरीज 1-1 पर | एकात्म मानववाद पर आकार पटेल | कृष्ण खन्ना पर अशोक वाजपेयी
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आज की सुर्खियां :
इधर चुनाव आयोग की तरफ से मतदाता को थोड़ी रियायतें, उधर अदालत में विरोध करती दस्तकें
दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर विश्व नेताओं का समर्थन
म्यांमार के चिन विद्रोही गुटों के बीच झड़प, मिजोरम में शरणार्थियों की नई आमद
सैफ अली, उनके परिवार को बड़ा कानूनी झटका, नवाब भोपाल की संपत्तियों के एकमात्र वारिस नहीं
सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने कहा, पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ से सरकारी बंगला खाली कराया जाए
'रॉयटर्स' का एक्स खाता भारत में हुआ बैन
आकाशदीप जीत के हीरो, सीरीज़ 1-1 पर
ऑपरेशन कगार के विरोध में झारखंड के जन संगठनों ने कहा - ‘दमन और हिंसा बंद हो’
आकार पटेल: भाजपा के कितने सदस्य बता सकते हैं कि एकात्म मानववाद की परिभाषा और मतलब क्या है, भले ही वे उसकी शपथ खाते हों…
क्या आदिवासियों से उनका धर्म छीनकर उन पर हिंदुत्व थोपा जाता रहा है?
"जब भी मैं बाहर निकलती, कैमरा ऑन हो जाता"
चीन ने यूरोपीय संघ से कहा – "हम रूस की हार को स्वीकार नहीं कर सकते"
हाफिज़ सईद के बेटे तल्हा का बिलावल पर फूटा गुस्सा
इजरायल में बढ़ रहे दबाव के बीच गाज़ा युद्धविराम के संकेत, नेतन्याहू बोले – 'अमेरिकी राष्ट्रपति से होगी चर्चा'
टेक्सास में बाढ़ से भीषण तबाही, 69 की मौत, राहत अभियान जारी
इलोन मस्क ने की 'अमेरिका पार्टी' की घोषणा, ट्रम्प के बिल के बाद लिया फैसला
कृष्ण खन्ना पर अशोक वाजपेयी: कला-जगत की सबसे वरिष्ठ और उजली उपस्थिति
“वो जो खो गए, जो कह न सके... वही गुरु दत्त थे”
बिहार
इधर चुनाव आयोग की तरफ से मतदाता को थोड़ी रियायतें, उधर अदालत में विरोध करती दस्तकें
बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण को लेकर चुनाव आयोग ने मतदाताओं को बड़ी राहत दी है. अब मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए जरूरी दस्तावेज़ न होने पर भी फॉर्म जमा किया जा सकता है. दस्तावेज़ बाद में भी दिए जा सकते हैं और स्थानीय स्तर पर जांच के आधार पर भी नाम जोड़ा जा सकता है. आयोग का यह फैसला व्यापक विरोध और चिंता के बाद आया है, जिससे लाखों गरीब और वंचित मतदाताओं को राहत मिलेगी.
“द हिंदू” के अनुसार, बिहार मुख्य निर्वाचन कार्यालय ने एक बड़े विज्ञापन के माध्यम से यह घोषणा की कि मतदाता अनिवार्य दस्तावेज़ जमा किए बिना भी मतदाता सूची में सत्यापित हो सकते हैं. रविवार (6 जुलाई, 2025) को बिहार के सभी स्थानीय समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर प्रकाशित विज्ञापन में चुनाव आयोग ने कहा, “यदि आप (मतदाता) आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत करते हैं, तो निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) के लिए आवेदन प्रक्रिया करना आसान होगा. यदि आप आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं, तो ईआरओ स्थानीय जांच या अन्य दस्तावेज़ी प्रमाण के आधार पर निर्णय ले सकते हैं.” उल्लेखनीय है कि कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने चिंता जताई है कि गरीब, पिछड़े और वंचित वर्गों के पास जरूरी दस्तावेज़ नहीं हैं, जिससे करोड़ों लोगों के नाम कट सकते हैं. फॉर्म जमा करने की अंतिम तारीख 26 जुलाई है.
इस बीच “द इंडियन एक्सप्रेस” के मुताबिक, चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि निर्वाचक नामावली के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया गया है. आयोग ने कहा कि 24 जून 2025 के आदेश के अनुसार ही यह प्रक्रिया चल रही है.
आयोग ने स्पष्ट किया कि जिन लोगों के गणना प्रपत्र 25 जुलाई 2025 तक प्राप्त हो जाएंगे, उनके नाम 1 अगस्त 2025 को प्रकाशित होने वाली प्रारूप मतदाता सूची में शामिल किए जाएंगे. दस्तावेज़ 25 जुलाई तक कभी भी दिए जा सकते हैं. यदि प्रारूप सूची में नाम आने के बाद भी दस्तावेज़ अधूरे हैं, तो चुनाव पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) दावों और आपत्तियों की अवधि (1 अगस्त से 1 सितंबर) के दौरान दस्तावेज़ प्राप्त कर सकते हैं. यदि कोई व्यक्ति दस्तावेज़ के बिना प्रपत्र जमा करता है, तो ईआरओ उसे नोटिस भेजेगा और उसे दस्तावेज़ जमा करने का समय मिलेगा. अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित होगी.
पहले ये निर्देश थे : चुनाव आयोग ने 24 जून को निर्देश दिया था कि जिन लोगों का नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं है (करीब 2.93 करोड़ लोग), उन्हें मतदाता पात्रता साबित करने के लिए 11 में से कम से कम एक दस्तावेज़ देना होगा. इन दस्तावेज़ों में जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट, सरकारी कर्मचारियों के लिए पहचान पत्र या पेंशन आदेश, स्थायी निवास प्रमाणपत्र, जाति प्रमाणपत्र, परिवार रजिस्टर, या सरकारी आवास/भूमि आवंटन प्रमाणपत्र शामिल हैं. आधार कार्ड इस सूची में शामिल नहीं है.
चुनाव आयोग के आदेश के खिलाफ याचिकाएं : इस बीच तेजस्वी यादव की आरजेडी और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण, जिसे पूरे देश में लागू किया जाना है, को मनमाना और अवैध बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
आरजेडी की ओर सांसद मनोज झा ने याचिका लगाई है. तेजस्वी यादव, जो बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं, ने सवाल उठाया कि यह प्रक्रिया सिर्फ बिहार में ही क्यों की जा रही है, जबकि पिछली बार ऐसी व्यापक पुनरीक्षण 2003 में पूरे देश में हुआ था. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इस कदम की आलोचना करते हुए इसे 'दलितों और अन्य वंचित वर्गों के वोटिंग अधिकार छीनने की भाजपा-आरएसएस की साजिश' बताया है.
इधर पीयूसीएल के मुताबिक, पुनरीक्षण प्रक्रिया भारत के संवैधानिक लोकतंत्र पर सीधा हमला है, जिससे “हम, भारत के लोग” में निहित जनसत्ता के मूल सिद्धांत और संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन होता है. इससे मताधिकार एक मौलिक अधिकार से हटकर नौकरशाही की मनमानी पर निर्भर एक विशेषाधिकार बन जाता है, जिसमें तथाकथित “स्वयंसेवकों” को डेटा प्रोसेसर बना दिया गया है. लिहाजा, चुनाव आयोग का 24 जून 2025 का आदेश और पत्र निरस्त किया जाना चाहिए, क्योंकि यह अनुच्छेद 327, संबंधित अधिनियम और नियमों के भी विरुद्ध है.
दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर विश्व नेताओं का समर्थन

तिब्बत के निर्वासित धार्मिक नेता दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर रविवार को भारत, अमेरिका और ताइवान के नेताओं ने अपना समर्थन व्यक्त किया. यह ऐतिहासिक अवसर भविष्य के लिए भू-राजनीतिक सवाल भी उठाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी शहर में आयोजित समारोह में अपना संदेश भिजवाया, जिसमें कहा गया, "मैं 1.4 अरब भारतीयों के साथ महामहिम दलाई लामा को उनके 90वें जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं. वे प्रेम, करुणा, धैर्य और नैतिक अनुशासन के स्थायी प्रतीक हैं." अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी तिब्बतियों के मानवाधिकारों के लिए वाशिंगटन की प्रतिबद्धता जताई.
ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने कहा कि दलाई लामा का उदाहरण "स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकारों का सम्मान करने वाले सभी लोगों के साथ गूंजता है." समारोह में बिल क्लिंटन, जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा जैसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों के संदेश भी प्रसारित किए गए.
तिब्बती चिंतित हैं कि चीन अंततः दलाई लामा के उत्तराधिकारी का नाम देगा, जिससे तिब्बत पर बीजिंग का नियंत्रण मजबूत होगा. चीन ने बुधवार को कहा था कि तिब्बती आध्यात्मिक नेता के उत्तराधिकारी के चुनाव में उसकी अंतिम भूमिका होगी. दलाई लामा का कहना है कि केवल उनके भारत स्थित कार्यालय को ही उनके अंतिम उत्तराधिकारी की पहचान करने का अधिकार है.
दलाई लामा 1959 में चीनी सेना द्वारा ल्हासा में विद्रोह को कुचले जाने के बाद हजारों तिब्बतियों के साथ भारत आए थे. चीन ने 1950 में तिब्बत में अपनी सेना भेजी थी और तब से वहां शासन कर रहा है.
म्यांमार के चिन विद्रोही गुटों के बीच झड़प, मिजोरम में शरणार्थियों की नई आमद
मिजोरम के प्रमुख नागरिक संगठन, यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) के एक नेता ने बताया कि म्यांमार के चिन विद्रोही गुटों के बीच हालिया झड़पों के कारण कई म्यांमार नागरिक अपनी सुरक्षा के लिए सीमा पार कर मिजोरम के जोखावतार गांव में शरण लेने पहुंचे हैं.
2021 में म्यांमार में चुनी हुई सरकार को सेना द्वारा हटाए जाने के बाद 30,000 से अधिक म्यांमार नागरिक मिजोरम में शरण ले चुके हैं. इनमें से कई लोग सामुदायिक भवनों और अपने रिश्तेदारों के घरों में रह रहे हैं. म्यांमार में विद्रोही समूहों, "लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों" पर सेना की लगातार कार्रवाई और विद्रोही संगठनों के बीच अक्सर होने वाली झड़पों के कारण मिजोरम में म्यांमार नागरिकों का आगमन बढ़ा है, जबकि राज्य की कुल आबादी केवल 13 लाख है. म्यांमार के चिन और मिजो लोगों के बीच जातीय संबंध हैं, इसी मानवीय आधार पर उन्हें शरण दी गई. लेकिन हाल ही में मिजोरम सरकार ने कहा कि पड़ोसी देश से आए "शरणार्थी" राज्य में दर्ज अपराधों में लगभग 50 प्रतिशत मामलों में शामिल पाए गए हैं.
गुवाहटी से सुमीर करमाकर के अनुसार, स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए, मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदूहोमा ने म्यांमार के "शरणार्थियों" से राज्य के कानून, मिजो संस्कृति और रीति-रिवाजों का सम्मान करने की अपील की है, ताकि अपराधों को रोका जा सके.
सैफ अली, उनके परिवार को बड़ा कानूनी झटका, नवाब भोपाल की संपत्तियों के एकमात्र वारिस नहीं
फिल्म अभिनेता सैफ अली खान को एक बड़ा कानूनी झटका लगा है. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का उस आदेश रद्द कर दिया है, जिसमें सैफ, उनकी बहनों और मां को नवाब भोपाल की संपत्तियों का एकमात्र कानूनी वारिस घोषित किया गया था. हालांकि, सैफ और उनके परिवार के अधिकार पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं, लेकिन अब उनकी कानूनी लड़ाई और मुश्किल हो गई है. “द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, यह मामला 'एनिमी प्रॉपर्टी' (शत्रु संपत्ति) केस से अलग है, जिसमें सैफ पहले से ही कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं.
मामला क्या है? सैफ अली खान को भोपाल की संपत्तियां उनके पिता की मां, साजिदा बेगम से विरासत में मिली थीं. साजिदा के पिता, हमीदुल्ला खान, भोपाल के अंतिम शासक नवाब थे, जिनकी मृत्यु 1960 में हुई थी. उनकी सबसे बड़ी बेटी आबिदा बेगम को उत्तराधिकारी घोषित किया गया था, लेकिन 1950 में वे पाकिस्तान चली गईं. इसके बाद उनकी छोटी बहन साजिदा बेगम को नवाब का खिताब और लगभग 15,000 करोड़ रुपये की संपत्ति मिली.
साजिदा बेगम की शादी नवाब पटौदी इफ्तिखार अली खान पटौदी से हुई थी. उनके बेटे मंसूर अली खान 'टाइगर पटौदी' प्रसिद्ध क्रिकेटर थे, जिन्होंने अभिनेत्री शर्मिला टैगोर से शादी की. उनके तीन बच्चे हैं: सैफ, सोहा और सबा अली खान.
'एनिमी प्रॉपर्टी' क्या है? जब आबिदा बेगम पाकिस्तान चली गईं, तो उनकी संपत्तियों को 'एनिमी प्रॉपर्टी' घोषित कर दिया गया. 'एनिमी प्रॉपर्टी' उन संपत्तियों को कहा जाता है, जो भारत छोड़कर 'शत्रु देश' (जैसे पाकिस्तान या चीन) जाने वालों के पास थीं. 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध और 1962 के चीन युद्ध के बाद, सरकार ने ऐसी संपत्तियों को अपने अधीन ले लिया.
सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने कहा, पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ से सरकारी बंगला खाली कराया जाए
सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ से लुटियंस दिल्ली के कृष्ण मेनन मार्ग स्थित बंगला नंबर 5 को तुरंत खाली कराने की मांग की है. यह बंगला भारत के मौजूदा सीजेआई का आधिकारिक आवास है. पत्र में कहा गया है कि पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने निर्धारित समय सीमा से अधिक समय तक इस बंगले में निवास किया है, जबकि उन्हें रहने की अनुमति 31 मई 2025 को समाप्त हो चुकी है और सुप्रीम कोर्ट जजेस (संशोधन) नियम, 2022 के नियम 3बी के तहत छह महीने की अधिकतम अवधि 1 मई 2025 को ही पूरी हो गई थी.
डीवाई चंद्रचूड़ नवंबर 2022 से नवंबर 2024 तक 50वें सीजेआई रहे. उन्होंने रिटायरमेंट के बाद भी टाइप बंगला खाली नहीं किया तो उनके बाद दो सीजेआई, संजीव खन्ना और वर्तमान सीजेआई भूषण आर. गवई ने इस बंगले में रहने के बजाय अपने पूर्व आवंटित बंगलों में रहना चुना. सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने पत्र में यह भी लिखा है कि बंगला विशेष परिस्थितियों में ही रोके जाने की अनुमति दी गई थी, लेकिन अब वह समय सीमा भी समाप्त हो चुकी है, इसलिए इसे कोर्ट के हाउसिंग पूल में लौटाया जाए.
“हिंदुस्तान टाइम्स” में उत्कर्ष आनंद ने बताया है कि पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ ने देरी का कारण अपने परिवार की निजी परिस्थितियों को बताया. उन्होंने कहा कि उन्हें सरकार द्वारा किराए पर वैकल्पिक आवास आवंटित किया गया है, लेकिन वह घर वर्षों से बंद था और उसकी मरम्मत चल रही है. साथ ही, उन्होंने कहा कि उनकी दो बेटियों को विशेष देखभाल की आवश्यकता है, जिनका इलाज एम्स में चल रहा है. उन्होंने स्पष्ट किया कि जैसे ही नया घर रहने लायक होगा, वे तुरंत स्थानांतरित हो जाएंगे.
'रॉयटर्स' का एक्स खाता भारत में हुआ बैन
'लाइवमिंट' की रिपोर्ट है कि अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी 'रॉयटर्स' का आधिकारिक एक्स (पूर्व में ट्विटर) खाता भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया है. यह प्रतिबंध एक "कानूनी मांग" के जवाब में लगाया गया है, लेकिन अब तक 'रॉयटर्स' की ओर से इस ब्लॉक के कारण को लेकर कोई सार्वजनिक बयान नहीं आया है. 'रॉयटर्स', थॉमसन रॉयटर समूह की मीडिया इकाई है और इसके अनुसार, इसके दुनिया भर में 200 से अधिक स्थानों में 2,600 पत्रकार नियुक्त हैं. शनिवार रात 11:40 बजे तक, 'रॉयटर्स' वर्ल्ड का एक्स खाता भी भारत से एक्सेस नहीं किया जा सका.
क्रिकेट
आकाशदीप जीत के हीरो, सीरीज़ 1-1 पर
भारत बनाम इंग्लैंड, दूसरा टेस्ट, पांचवां दिन : शुभमन गिल और आकाश दीप के शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने एजबेस्टन में इंग्लैंड को 336 रनों से हराकर सीरीज़ 1-1 से बराबर कर ली. भारत ने अंतिम पारी में 608 रनों का बड़ा लक्ष्य दिया था, जिसे इंग्लैंड पार नहीं कर सका. गिल की कप्तानी और बल्लेबाज़ी दोनों ही शानदार रहीं, वहीं आकाश दीप 10 विकेट लेकर मैच के हीरो बन गए.
आकाश दीप ने ब्रायडन कार्स का अंतिम विकेट लेकर मैच में कुल 10 विकेट पूरे किए. उनकी गेंदबाज़ी में अनुशासन और विविधता दोनों देखने को मिली. शुभमन गिल टेस्ट क्रिकेट के 150 साल के इतिहास में एक ही मैच में दोहरा शतक और 150+ रन बनाने वाले पहले बल्लेबाज़ बने. उन्होंने सुनील गावस्कर के 1971 के 344 रनों के रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया. सीरीज़ अब 1-1 से बराबर है. अंतिम टेस्ट लॉर्ड्स में गुरुवार से खेला जाएगा, जिसमें जसप्रीत बुमराह की वापसी की संभावना है.
वैकल्पिक मीडिया
ऑपरेशन कगार के विरोध में झारखंड के जन संगठनों ने कहा - ‘दमन और हिंसा बंद हो’
'द मूकनायक' की रिपोर्ट है कि रांची- झारखंड के जन संगठन, राजनीतिक दल और सचेत नागरिकों ने बस्तर (छत्तीसगढ़), झारखंड और देश के संसाधन समृद्ध आदिवासी क्षेत्रों में "माओवाद खात्मा" के नाम पर बढ़ती हिंसा, दमन, मानवाधिकार उल्लंघन और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की तैयारियों का कड़ा विरोध किया है. उन्होंने केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों से मांग की है कि वे अपने नागरिकों पर सैन्य आक्रमण तुरंत रोकें और संवैधानिक जिम्मेदारियों का पालन करें.
5 जुलाई को स्टेन स्वामी के शहादत दिवस पर झारखंड के 100 से अधिक सचेत नागरिक और संगठनो ने साझा बयान जारी कर बस्तर व झारखंड के आदिवासियों पर हो रहे राज्य दमन को तुरंत रोकने और भाकपा (माओवादी) के साथ शांतिवार्ता शुरू करने की मांग की.
संगठनों ने अपने सांझा ज्ञापन में कहा कि पिछले कई दशकों से आदिवासियों और उनके सहजीवी समुदायों पर माओवाद के खिलाफ अभियान के नाम पर हिंसा और दमन जारी है, जो हाल के वर्षों में और तीव्र हो गया है. जनवरी 2024 में बस्तर में केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार के साथ मिलकर "ऑपरेशन कगार" शुरू किया, जिसमें अब तक लगभग 500 लोग मारे गए हैं, जिनमें अधिकांश आदिवासी हैं. मृतकों में माओवादी और कई सामान्य नागरिक शामिल हैं. सुरक्षा बलों को इन हत्याओं के लिए करोड़ों रुपये का इनाम दिया गया है, जबकि आदिवासियों के शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक विरोध को भी कुचला जा रहा है. बस्तर में "मूलवासी बचाओ मंच" जैसे संगठन, जो जबरन शिविर निर्माण और विस्थापन के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे, पर प्रतिबंध लगा दिया गया. मंच के युवा नेताओं को यूएपीए और अन्य फर्जी आरोपों में गिरफ्तार किया गया है. इतना ही नहीं पिछले कुछ वर्षों में बस्तर, झारखंड के आदिवासी सघन क्षेत्रों और पांचवीं अनुसूची वाले राज्यों में PESA और अन्य संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए, बिना ग्राम सभा की सहमति के कई सुरक्षा बल शिविर स्थापित किए गए. कई शिविर रात के अंधेरे में बिना ग्रामीणों को सूचित किए बनाए गए. बस्तर में 160 से अधिक और झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में 25 शिविर बनाए गए हैं. ये शिविर आदिवासियों की सार्वजनिक और रैयती जमीन पर बनाए गए हैं, जिससे गांवों का सामाजिक माहौल खराब हो रहा है, महिलाओं की असुरक्षा बढ़ रही है और लोगों के दैनिक जीवन पर दमन का साया मंडरा रहा है.
नागरिकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ और झारखंड में माओवाद विरोधी अभियानों का असली उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों को कॉरपोरेट लूट के लिए सुरक्षित बनाना है. ये क्षेत्र खनिज और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं, जिन पर बड़े कारोबारियों की नजर है. ग्राम सभाओं की असहमति और आदिवासियों के प्रतिरोध को दबाने के लिए सरकार कॉरपोरेट हितों की रक्षा में दमनकारी नीतियां अपना रही है.
पिछले कुछ महीनों में भाकपा (माओवादी) ने कई बार युद्धविराम (आत्मरक्षा को छोड़कर) की घोषणा की और शांतिवार्ता में शामिल होने की इच्छा जताई. इसके बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों ने हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघन जारी रखा. हाल ही में बस्तर के करेंगुट्टा पर्वत श्रृंखला में तीन सप्ताह तक चले अभियान में 31 लोग, मुख्यतः आदिवासी, मारे गए. इसमें कुछ सशस्त्र माओवादी और कई निहत्थे आदिवासी शामिल थे. सुरक्षा बलों ने शवों के सामने जश्न मनाया और कई शवों को परिजन से छिपाकर सड़ने तक अस्पताल में रखा. मई 2025 में भाकपा (माओवादी) के महासचिव बसवराजु को कथित रूप से पकड़कर मार दिया गया. उनके और अन्य माओवादी सदस्यों के शवों को पुलिस ने परिवारों की सहमति के बिना जला दिया.
5-6 जून 2025 को बस्तर में 18 या अधिक माओवादी नेताओं को हिरासत में लिया गया, लेकिन उनकी गिरफ्तारी की पुष्टि नहीं की गई, न ही उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया. यह गैरकानूनी और आपराधिक है, जिससे उनकी हत्या की आशंका बढ़ती है. झारखंड के जन संगठन, राजनीतिक दल और सचेत नागरिकों ने केंद्र, झारखंड और अन्य राज्य सरकारों से सशस्त्र आक्रमण और हिंसा तुरंत रोकने और निष्पक्ष सैन्य अभियान विराम लागू करने की मांग की है. साथ ही स्थानीय आदिवासियों के साथ उनके मुद्दों पर तुरंत संवाद शुरू करने की भी मांग है.

विश्लेषण
आकार पटेल: भाजपा के कितने सदस्य बता सकते हैं कि एकात्म मानववाद की परिभाषा और मतलब क्या है, भले ही वे उसकी शपथ खाते हों…
भाजपा के संविधान (अनुच्छेद 3) में कहा गया है, "एकात्म मानववाद पार्टी का दर्शन होगा." पार्टी के सदस्यता फॉर्म में एक शपथ है जो सदस्यों को लेनी होती है. इस शपथ की पहली पंक्ति है: "मैं एकात्म मानववाद में विश्वास करता हूं जो भारतीय जनता पार्टी का मूल दर्शन है." एकात्म मानववाद एक शब्द है, जिससे कई भारतीय परिचित हैं, लेकिन कम ही लोग इसके बारे में ज्यादा जानते हैं.
एकात्म मानववाद में दीनदयाल उपाध्याय द्वारा 22 से 25 अप्रैल 1965 के बीच मुंबई में दिए गए चार भाषणों का पाठ शामिल है. उपाध्याय के पास कला में स्नातक की डिग्री थी और वे आरएसएस के घरेलू प्रकाशन पाँचजन्य में पत्रकार थे. जब उन्होंने ये भाषण दिए तो वे लगभग पचास वर्ष के थे और इन्हें देने के कुछ साल बाद जन संघ के अध्यक्ष बने. आइए भाजपा के दर्शन के संदेश को समझते हैं और फिर किसी और समय इसका विश्लेषण करेंगे. जो कुछ आगे लिखा है, वह उपाध्याय द्वारा अपने भाषणों में प्रस्तुत तर्क का सारांश है, और इसे यथासंभव तटस्थ रूप से प्रस्तुत किया गया है.
भारत के सामने आने वाली समस्याओं का कारण राष्ट्रीय पहचान की उपेक्षा है. राष्ट्र एक व्यक्ति की तरह है और यदि इसकी प्राकृतिक प्रवृत्तियों की अनदेखी की जाए या उन्हें दबाया जाए तो वह बीमार हो जाता है. स्वतंत्रता के बावजूद, भारत अभी भी अनिश्चित था कि विकास को साकार करने के लिए वह कौन सी दिशा अपनाएगा. स्वतंत्रता तभी सार्थक है जब वह संस्कृति को अभिव्यक्त करने का साधन हो.
भारत में फोकस प्रासंगिक समस्याओं पर था: आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक. ऐसा इसलिए था क्योंकि भारत ने पश्चिमी विज्ञान के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सिद्धांतों को देखने का पश्चिमी तरीका अपनाया था. भारतीयों के लिए पश्चिमीकरण प्रगति का पर्याय था. हालांकि, पश्चिम राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और समाजवाद में सामंजस्य नहीं बिठा सका. ये मूल रूप से पश्चिमी आदर्श थे और ये सभी एक-दूसरे के साथ संघर्ष में थे. ये विचारधाराएं न तो सार्वभौमिक थीं और न ही उन विशेष लोगों और संस्कृतियों की सीमाओं से मुक्त थीं जिन्होंने इन वादों को जन्म दिया था. आयुर्वेद कहता था कि हमें स्थानीय बीमारियों के लिए स्थानीय इलाज खोजने की जरूरत है. क्या भारतीय संस्कृति दुनिया के लिए समाधान प्रदान कर सकती है?
आम तौर पर यह सोचा जाता है कि भारतीय संस्कृति आत्मा के उद्धार के बारे में सोचती है और शरीर, मन और बुद्धि की परवाह नहीं करती लेकिन यह सच नहीं है. भारतीय संस्कृति में धर्म को सबसे आगे रखा गया है. धर्म प्राकृतिक नियम है जो शाश्वत और सार्वभौमिक रूप से लागू होता है. धर्म कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका से ऊपर है, और यह लोगों से भी ऊपर है. यदि 45 करोड़ भारतीयों में से एक को छोड़कर सभी ने किसी चीज़ के लिए वोट दिया हो तो भी यह गलत होगा अगर यह धर्म के विरुद्ध है. लोगों का धर्म के विरुद्ध कार्य करने का कोई अधिकार नहीं है. संविधान में प्रयुक्त 'सेक्यूलर' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द गलत और बुरे हैं क्योंकि धर्म राज्य के लिए एक आवश्यक शर्त है. जो धर्म पर आधारित नहीं है वह अस्वीकार्य है और इसलिए धर्मनिरपेक्षता घातक रूप से त्रुटिपूर्ण थी.
राष्ट्रीय एकता भारत का धर्म है और इसलिए विविधता समस्याग्रस्त थी. इस कारण से भारत के संविधान को संघीय से एकात्मक में बदलने की जरूरत है जिसमें राज्यों के लिए कोई विधायी शक्ति नहीं होगी, जो भी होगी वह केवल केंद्र के लिए. व्यक्तियों और समाज की संस्थाओं के बीच संघर्ष अधःपतन और विकृति का संकेत है.
पश्चिम यह मानने में गलत था कि व्यक्ति और राज्य के बीच विरोधी संबंध प्रगति का कारण है. व्यक्ति शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा से मिलकर बना था. मनुष्य आत्मा के साथ पैदा होता है. व्यक्तित्व, आत्मा और चरित्र एक-दूसरे से अलग हैं. व्यक्ति की आत्मा व्यक्तिगत इतिहास से अप्रभावित रहती है. इसी तरह, राष्ट्रीय संस्कृति इतिहास द्वारा निरंतर संशोधित होती रहती है. संस्कृति में वे सभी चीजें शामिल हैं जो अच्छी और प्रशंसनीय मानी जाती हैं, लेकिन वे 'चिति', राष्ट्रीय आत्मा को प्रभावित नहीं करतीं. भारत की राष्ट्रीय आत्मा मौलिक और केंद्रीय है. चिति सांस्कृतिक प्रगति की दिशा निर्धारित करती है. यह छानती है कि संस्कृति से क्या बाहर करना है. समाज जीवित हैं और एक समाज का शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा होती है. कुछ पश्चिमी लोग इस सत्य को स्वीकार करने लगे थे. उनमें से एक, विलियम मैकडूगल ने कहा था कि एक समूह का मन और मनोविज्ञान होता है, उसके सोचने और कार्य करने के अपने तरीके होते हैं जैसे एक व्यक्ति के होते हैं.
समाजों का एक जन्मजात स्वभाव होता है जो उसके इतिहास पर आधारित नहीं होता. घटनाएं इसे प्रभावित नहीं करतीं. यह समूह प्रकृति व्यक्तियों में आत्मा की तरह है, जो इतिहास से भी अप्रभावित रहती है. यह समूह मानसिकता भीड़ की मानसिकता की तरह है लेकिन लंबी अवधि में विकसित होती है. राष्ट्र के लिए एक आदर्श और एक मातृभूमि दोनों की जरूरत होती है और तभी वह एक राष्ट्र होता है. और राज्य इस राष्ट्र की रक्षा के लिए अस्तित्व में है, जिसका एक आदर्श और एक मातृभूमि होती है.
भारत और पश्चिम के बीच अंतर यह था कि हम शरीर को केवल धर्म प्राप्त करने के लिए एक साधन मानते हैं. हमारे प्रयास धर्म, अर्थ (धन), काम (आनंद) और मोक्ष (मुक्ति) के लिए थे. पश्चिम की गलती यह थी कि उन्होंने चारों को अलग-अलग माना. आप वोट का अधिकार पा सकते थे लेकिन फिर आपको खाना नहीं मिलता था. अमेरिका के पास राजनीतिक स्वतंत्रता और धन दोनों थे लेकिन आत्महत्या और मानसिक रोगियों की संख्या में भी वह शीर्ष पर था. यह हैरान करने वाली बात थी — रोटी और वोट का अधिकार था लेकिन शांति या खुशी नहीं थी. अमेरिका में चैन की नींद दुर्लभ थी क्योंकि उन्होंने एकीकृत मानव के बारे में नहीं सोचा था. अमेरिकी कहते थे "ईमानदारी सबसे अच्छी व्यावसायिक नीति है" और यूरोपीय कहते थे "ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है," लेकिन भारतीय कहते थे "ईमानदारी कोई नीति नहीं बल्कि एक सिद्धांत है."
मोटे तौर पर कहें तो भाजपा का मूल दर्शन यही और इतना है. यह दिलचस्प होगा कि कितने भाजपा मंत्री या सदस्य समझा सकते हैं कि इसका क्या मतलब है और इसका क्या उद्देश्य है. यदि वे इसमें विश्वास करते हैं, जैसा कि उन्हें प्रतिज्ञा करनी होती है, तो यह जानने में दिलचस्पी होगी कि वह विश्वास क्या है.
अधिकार
क्या आदिवासियों से उनका धर्म छीनकर उन पर हिंदुत्व थोपा जाता रहा है?
हैदराबाद यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भंग्य भुख्या ‘द वायर’ के लिए लिखे अपने लेख में जनगणना में आदिवासियों की धार्मिक पहचान को लेकर एक गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं. वे अपने व्यक्तिगत अनुभव से बताते हैं कि कैसे जनगणनाकर्मी बिना पूछे ही उनका धर्म 'हिंदू' दर्ज कर देते हैं, जो भारत के लगभग हर आदिवासी का अनुभव है. सरकार ने 2027 में जनगणना कराने का फैसला किया है, जिसमें 1931 के बाद पहली बार जातिगत जनगणना भी शामिल होगी. इसी के साथ यह प्रस्ताव भी चर्चा में है कि आदिवासियों को 'अन्य धर्म और मत' (Other Religions and Persuasions) श्रेणी से हटाकर हिंदू धर्म में शामिल कर लिया जाए. लेखक का तर्क है कि यह कदम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन होगा, जो हर नागरिक को अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है.
आदिवासी धर्म की मौजूदा उलझन की जड़ें ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन में हैं. अंग्रेजों ने शुरू में भारत के सभी स्थानीय धार्मिक मतों को बुतपरस्ती माना. बाद में 19वीं सदी में समाज सुधारकों और औपनिवेशिक जनगणना ने इन विविध परंपराओं को 'हिंदू धर्म' के रूप में गढ़ दिया. ऐतिहासिक रूप से, भारत में हजारों स्थानीय धार्मिक परंपराएं थीं. अंग्रेजों के आने से इस धार्मिक बहुलता पर खतरा मंडराने लगा क्योंकि उन्होंने हिंदू धर्म जैसी विविध परंपराओं को एकरूप करने की कोशिश की. इस प्रक्रिया ने आदिवासी धर्म और विश्वास प्रणालियों पर गहरा असर डाला, क्योंकि हिंदू धर्म में कई आदिवासी देवी-देवताओं को शामिल कर लिया गया, जिससे हिंदू धर्म और आदिवासी परंपराओं के बीच की रेखा धुंधली हो गई.
20वीं सदी की शुरुआत में धर्म ने राजनीतिक मोड़ ले लिया और संख्याबल राजनीतिक शक्ति का आधार बन गया. वी.डी. सावरकर ने 'हिंदुत्व' की अपनी परिभाषा से हिंदू धर्म का दायरा बढ़ाया. इस माहौल में, ईसाई मिशनरियों और हिंदुत्ववादी ताकतों ने आदिवासियों को अपने-अपने धर्म में शामिल करने की होड़ शुरू कर दी. हिंदुत्ववादी संगठनों ने जनगणना आयोग पर दबाव डाला कि आदिवासियों को हिंदू के रूप में गिना जाए.
भारत की जनगणना में आदिवासी धर्म की गणना हमेशा एक जटिल कार्य रही है. 1871-72 की जनगणना में आदिवासियों को 'अन्य' श्रेणी में रखा गया. बाद में, 1891 की जनगणना में उनके लिए 'एनिमिज्म' (Animism) जैसा अपमानजनक शब्द इस्तेमाल किया गया, जिसे 1921 में बदलकर 'आदिवासी धर्म' (Tribal Religion) कर दिया गया. लेकिन हिंदू महासभा के दबाव के कारण 1951 की जनगणना से 'आदिवासी धर्म' की श्रेणी को हटा दिया गया. इसके बाद से, आदिवासी अपनी अलग पहचान का दावा करने के लिए 'अन्य धर्म' श्रेणी का उपयोग कर रहे हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, इस श्रेणी में लगभग 79.3 लाख लोग थे, जिनमें से अधिकांश आदिवासी हैं, और सरना धरम को मानने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. लेखक का मानना है कि आदिवासियों को हिंदू धर्म में मिलाने का कोई भी निर्णय एक राजनीतिक कदम होगा, जिसका उद्देश्य सरना धरम जैसे आंदोलनों से उभर रही उनकी विशिष्ट धार्मिक पहचान को दबाना है. आदिवासियों का अपना एक अनूठा इतिहास, भाषा और संस्कृति है जो उन्होंने जंगलों और पहाड़ों में जाति-आधारित समाज से बाहर रहकर विकसित किया है. जनगणना में उनकी धार्मिक पहचान को मिटाना उनके इतिहास को मिटाने और उन्हें बलपूर्वक हिंदू दायरे में लाने का प्रयास होगा.
कार्टून | मोरपारिया

नज़रबंदी डायरी
"जब भी मैं बाहर निकलती, कैमरा ऑन हो जाता"
'स्क्रोल' के जरिए मेखला सरन ने एक ऐसी प्रेम कहानी पेश की है, जो राजनीतिक भी है और रूहानी भी. यह कहानी न केवल एक राजनीतिक कैदी की है, बल्कि उस प्रेम, प्रतिबद्धता और इंसानी गरिमा की भी है, जो अंधेरे समय में भी अपना प्रकाश नहीं खोती.
"जब भी मैं बाहर निकलती, कैमरा ऑन हो जाता था" - ये शब्द हैं 71 वर्षीय साहबा हुसैन के, जिन्होंने अपने साथी गौतम नवलखा के साथ एक अस्थायी घर में लगभग दो वर्षों तक नज़रबंदी में रहना स्वीकार किया. दिल्ली में बिताए 54 वर्षों की ज़िंदगी को पीछे छोड़कर, उन्होंने अपनी स्वतंत्रता त्याग दी और वह भी स्वेच्छा से.
एक तारीख जिसने सब बदल दिया : “एक तारीख आपकी पूरी ज़िंदगी को पलट सकती है,” साहबा हंसते हुए कहती हैं. उनके लिए वह तारीख थी 28 अगस्त 2018 - जिस दिन दिल्ली स्थित उनके घर पर छापा पड़ा. उनके साथी, मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार गौतम नवलखा को भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार कर लिया गया. दो साल बाद, कोविड महामारी के दौरान, उन्हें आतंकवाद से संबंधित आरोपों में जेल भेजा गया. इस केस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना मिली - स्वतंत्र जांचों में सबूतों के गढ़े जाने के संकेत मिले. गौतम की गिरफ़्तारी को सरकार-विरोधी बुद्धिजीवियों के खिलाफ एक अभियान माना गया.
एक अस्थायी घर में नज़रबंदी : नवम्बर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा को स्वास्थ्य के आधार पर घर में नज़रबंदी की अनुमति दी — बशर्ते वह महाराष्ट्र में ही हो. साहबा ने दिल्ली छोड़ी और नवी मुंबई के बेलापुर में एक लाइब्रेरी की ऊपरी मंज़िल में उनके साथ रहने चली आईं.
इस घर में दो सीसीटीवी कैमरे, मेटल डिटेक्टर, हार्ड ड्राइव, पुलिस की तैनाती और समय-समय पर एनआईए अधिकारियों की जांच - यह सब लगातार चलता रहा. "जब भी मैं दरवाज़ा खोलती और बाहर निकलती, कैमरा ऑन हो जाता," साहबा कहती हैं. “मोबाइल फोन या लैपटॉप घर के भीतर नहीं ले जा सकती थी. मेरे शोध और महिला अधिकार कार्य रुक गए.”
राहत की सांस : 14 मई 2024 को गौतम को अंततः ज़मानत मिली. चार दिन बाद, सुरक्षा हटाई गई. "जैसे ही कैमरे बंद हुए, तारें निकाली गईं, हथियारधारी गार्ड हटे — एक नई हवा मिली," साहबा ने कहा.
इंसानियत की झलक: साहबा ने सुरक्षा गार्ड्स के प्रति कोई कटुता नहीं जताई. “वो बस अपना काम कर रहे थे.” एक बार ट्रैफिक के कारण देर हो गई तो गार्ड खुद ऊपर जाकर देखने गए कि नवलखा ठीक हैं या नहीं. लाइब्रेरी में जिन साथियों ने उन्हें ठिकाना दिया, उन पर गहरा भरोसा था. "दीवारों का रंग नहीं, इस जगह की एकजुटता और समर्थन का रंग ज्यादा अहम था," उन्होंने कहा.
वह पहली मुलाक़ात : 2022 की एक शाम, जब नवलखा जेल से घर लाए गए, तो उनके पास सिर्फ कुछ किताबें और कपड़े थे. “मैं भागती हुई नीचे गई और उन्हें गले लगा लिया,” साहबा याद करती हैं. भीड़ में खड़े अधिकारियों के बीच गौतम बोले — "सर, आप मेरे बारे में कुछ भी लिखें, एक दिन मैं आज़ाद होऊंगा और अपना नाम साफ़ करूंगा." यह सुन साहबा को सुकून मिला — “मुझे लगा, यही है मेरा गौतम.”
जेल से घर तक की यात्रा: जेल में नवलखा फर्श पर चटाई पर सोने के आदी हो गए थे. अचानक कुर्सी, बिस्तर, टेबल मिलने पर शरीर को तकलीफ़ हुई — जैसे शरीर खुद को समेटना भूल गया हो.
कानूनी और भावनात्मक संघर्ष : साहबा को चश्मा भिजवाने से लेकर जेल में मुलाक़ात के लिए लड़ना पड़ा. “जेल प्रशासन शादी का प्रमाणपत्र मांगता था,” वो बताती हैं. “मैंने कहा - हम शादीशुदा नहीं हैं, तो वो हैरान रह गए.” 2021 में कोर्ट आदेश और एनआईए की पुष्टि के बाद जाकर उन्हें पहली मुलाक़ात की अनुमति मिली - शीशे के उस पार, शोरगुल में.
“कोई और विकल्प था ही नहीं” : उनकी बेटियाँ, जो विदेश में हैं, चिंतित थीं लेकिन भरोसा भी था. “गौतम खुद कहते थे — तुम्हारे पास तो विकल्प था, तुम मना कर सकती थीं,” साहबा बताती हैं. लेकिन उनका जवाब था — "न आना विकल्प नहीं था. 30 साल का साथ, प्रेम और प्रतिबद्धता के साथ. मेरे लिए उनके साथ होना सबसे स्वाभाविक निर्णय था."
भविष्य की ओर : अब जब वे कानूनी रूप से आज़ाद हैं, वे बेलापुर की लाइब्रेरी से बाहर जाने की योजना बना रहे हैं. अभी भी गौतम को महाराष्ट्र से बाहर जाने की अनुमति नहीं है, लेकिन वे एक फ्लैट किराए पर लेकर मुंबई में रहेंगे — बिना हथियारधारी गार्ड्स के, टचवुड. साहबा अब वर्तमान पर केंद्रित हैं, लेकिन भविष्य के बारे में आशावादी भी. वो कहती हैं— “मैं चाहती हूँ कि हम फिर दिल्ली लौटें, नवलखा अपने पोतों-पोतियों से मिल सकें और भीमा-कोरेगांव केस के बाकी सभी कैदी भी मुक्त हो सकें.”
चीन ने यूरोपीय संघ से कहा – "हम रूस की हार को स्वीकार नहीं कर सकते"
'सीएनएन' की रिपोर्ट है कि चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने यूरोपीय संघ (EU) की विदेश नीति प्रमुख काया कैलास से एक चार घंटे की बैठक में कहा कि "बीजिंग यूक्रेन युद्ध में रूस की हार को स्वीकार नहीं कर सकता", क्योंकि ऐसा होने पर अमेरिका अपना पूरा ध्यान चीन पर केंद्रित कर देगा. एक यूरोपीय अधिकारी ने यह जानकारी दी, जो वार्ता से अवगत थे. यह बयान चीन की सार्वजनिक 'तटस्थ' स्थिति के विपरीत है, जिससे यह संकेत मिलता है कि बीजिंग यूक्रेन में एक लंबा युद्ध चाहता है, ताकि अमेरिका का ध्यान बंटा रहे और चीन के खिलाफ रणनीतिक फोकस न हो. वार्ता में साइबर सुरक्षा, दुर्लभ खनिजों, व्यापार असंतुलन, ताइवान और मध्य पूर्व से जुड़े कई संवेदनशील मुद्दों पर "दो टूक लेकिन सम्मानजनक" बातचीत हुई. हालांकि चीन ने इस बैठक के विवरण पर सीधे टिप्पणी नहीं की, लेकिन चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने शुक्रवार को एक नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “चीन यूक्रेन मुद्दे का पक्षकार नहीं है. हमारा रुख तटस्थ, निष्पक्ष और वार्ता, संघर्षविराम और शांति की दिशा में है. हम राजनीतिक समाधान के लिए रचनात्मक भूमिका निभाते रहेंगे.” लेकिन विश्लेषकों के अनुसार, चीन की सार्वजनिक बयानबाजी एक जटिल वास्तविकता को ढकने की कोशिश है. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले से कुछ हफ्ते पहले ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पुतिन ने "नो लिमिट्स पार्टनरशिप" की घोषणा की थी. उसके बाद दोनों देशों के बीच राजनीतिक और आर्थिक संबंध मजबूत हुए हैं.
चीन ने खुद को 'शांति मध्यस्थ' के रूप में पेश किया है, लेकिन पश्चिमी देशों ने उस पर रूस को सैन्य-सामग्री सहायता देने के आरोप लगाए हैं. यूक्रेन ने कई चीनी कंपनियों पर रूसी मिसाइलों के लिए ड्रोन और तकनीक मुहैया कराने का आरोप लगाया है. कीव पर रूस के हालिया हमले के बाद यूक्रेन के उप विदेश मंत्री आंद्रेई सिबिहा ने सोशल मीडिया पर कहा कि हमले में इस्तेमाल हुए 'गेरान-2' ड्रोन के टुकड़ों पर "चीन में 20 जून को बना" लिखा था. उन्होंने यह भी बताया कि ओडेसा में चीनी वाणिज्य दूतावास को हमले में मामूली क्षति हुई. उन्होंने कहा — "यह सबसे सटीक प्रतीक है कि कैसे पुतिन युद्ध को और बड़ा कर रहे हैं, जिसमें उत्तर कोरियाई सैनिक, ईरानी हथियार और कुछ चीनी उत्पाद शामिल हैं. यूरोप, मध्य पूर्व और इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा एक-दूसरे से जुड़ी हुई है.”
इस वर्ष यह भी आरोप लगे हैं कि कुछ चीनी नागरिक यूक्रेन में रूस के पक्ष में लड़ाई में शामिल हैं, हालांकि बीजिंग ने ऐसे सभी दावों को खारिज किया और कहा कि वह अपने नागरिकों से युद्ध में भाग न लेने की अपील करता है.
हाफिज़ सईद के बेटे तल्हा का बिलावल पर फूटा गुस्सा
बिलावल के इस बयान के बाद हाफिज सईद के बेटे तल्हा सईद ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा, "बिलावल का बयान पाकिस्तान की राष्ट्रीय नीति, हित और संप्रभुता के खिलाफ है. यह निंदनीय है." तल्हा ने आगे कहा कि बिलावल या तो जमीनी हकीकत से अनजान हैं या फिर "दुश्मन के नैरेटिव को बढ़ावा दे रहे हैं."
क्या बोले थे बिलावल? अलजज़ीरा को दिए इंटरव्यू में बिलावल ने कहा था कि पाकिस्तान में जिन मामलों में इन लोगों पर मुकदमे चले हैं वे आंतरिक आतंकवाद, जैसे आतंकी फंडिंग, से जुड़े हैं. उन्होंने यह भी कहा कि भारत यदि सबूत और गवाहियों के साथ सहयोग करे, तो इनकी सीमा पार आतंकवाद के मामलों में भी सुनवाई मुमकिन है.
बिलावल ने कहा, "हाफिज सईद जेल में हैं और मसूद अजहर पाकिस्तान में नहीं, बल्कि अफगानिस्तान में हैं. यदि भारत उनके पाकिस्तान में होने के प्रमाण देता है, तो हम उन्हें गिरफ्तार करने को तैयार हैं."
तल्हा सईद का पलटवार तल्हा सईद ने सवाल उठाया, "क्या एक राज्य का प्रतिनिधि अपने नागरिकों को किसी दुश्मन देश को सौंपने की बात कर सकता है?" उन्होंने दावा किया कि उनके पिता के किसी भी कार्य ने पाकिस्तान के खिलाफ कुछ नहीं किया है और यह बयान पूरी तरह राजनीतिक अपरिपक्वता का संकेत है. यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब भारत लगातार पाकिस्तान से इन वांछित आतंकियों को सौंपने की मांग करता रहा है, खासकर 26/11 मुंबई हमलों, पठानकोट, पुलवामा और संसद पर हमले जैसे मामलों में.
इजरायल में बढ़ रहे दबाव के बीच गाज़ा युद्धविराम के संकेत, नेतन्याहू बोले – 'अमेरिकी राष्ट्रपति से होगी चर्चा'
'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर देश के भीतर युद्धविराम के लिए जनदबाव लगातार बढ़ रहा है, हालांकि उनकी दक्षिणपंथी गठबंधन सरकार के कुछ सदस्य स्थायी युद्धविराम के विरोध में हैं. दूसरी ओर, विदेश मंत्री गिदोन सार जैसे नेताओं ने इसका समर्थन भी किया है. नेतन्याहू ने कहा है कि सोमवार को वाशिंगटन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से उनकी बैठक गाज़ा में बंधकों की रिहाई और युद्धविराम समझौते को आगे बढ़ाने में मदद कर सकती है. इस दिशा में इज़रायली वार्ताकारों ने रविवार को कतर में बातचीत फिर शुरू की है.
वाशिंगटन रवाना होने से पहले नेतन्याहू ने कहा, "मुझे विश्वास है कि राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ बातचीत इन परिणामों को आगे बढ़ा सकती है." उन्होंने यह भी दोहराया कि वह गाज़ा में बंधकों की सुरक्षित वापसी और इज़रायल के लिए हमास के खतरे को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. यह नेतन्याहू की ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद तीसरी व्हाइट हाउस यात्रा है. इधर, हमास ने शुक्रवार को कहा था कि उसने अमेरिका समर्थित युद्धविराम प्रस्ताव का "सकारात्मक भाव" से जवाब दिया है. इससे पहले ट्रम्प ने दावा किया था कि इज़रायल 60 दिन के संघर्षविराम की शर्तों पर सहमत हो गया है. हालांकि एक फिलिस्तीनी अधिकारी ने चिंता जताई कि मानवीय सहायता, रफ़ा क्रॉसिंग और इज़रायली सेना की वापसी की समय-सीमा को लेकर अब भी स्पष्टता नहीं है.
नेतन्याहू के कार्यालय ने कहा कि हमास द्वारा सुझाए गए कुछ बदलाव इज़रायल को स्वीकार नहीं हैं, लेकिन फिर भी इज़रायली प्रतिनिधिमंडल कतर जाएगा ताकि क़तर के प्रस्ताव के तहत बंधकों की वापसी सुनिश्चित की जा सके.
टेक्सास में बाढ़ से भीषण तबाही, 69 की मौत, राहत अभियान जारी
अमेरिका के टेक्सास के केर काउंटी में आई भीषण बाढ़ में अब तक 69 लोगों की मौत हो चुकी है. मृतकों में कई बच्चे शामिल हैं, जबकि दर्जनों अभी भी लापता हैं. 'द गार्डियन' के अनुसार, बाढ़ का सबसे बुरा असर गर्ल्स समर कैंप 'कैंप मिस्टिक' पर पड़ा, जहां सैकड़ों लड़कियां फंसी थीं. स्थानीय प्रशासन और नेशनल गार्ड की टीमें राहत व बचाव अभियान चला रही हैं. गवर्नर ग्रेग एबॉट ने राज्य में आपातकाल घोषित किया है और राष्ट्रपति ट्रम्प ने फेडरल डिजास्टर की घोषणा की है. अधिकारियों ने इसे "मानव त्रासदी" बताया है और लापता लोगों की तलाश अब भी जारी है.
इलोन मस्क ने की 'अमेरिका पार्टी' की घोषणा, ट्रम्प के बिल के बाद लिया फैसला
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट है कि अमेरिकी टेक अरबपति और टेस्ला के सीईओ इलोन मस्क ने शनिवार को अपनी सोशल मीडिया साइट एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर ऐलान किया कि वह एक नई राजनीतिक पार्टी "अमेरिका पार्टी" शुरू कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य है – “आपकी आज़ादी आपको वापस देना है.” यह घोषणा ऐसे समय पर आई है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक नया टैक्स-कट और खर्च विधेयक पारित किया है, जिसे मस्क ने कड़ी आलोचना के साथ खारिज किया है. इस कानून के तहत इस साल के अंत तक इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद पर मिलने वाला $7,500 का टैक्स क्रेडिट खत्म कर दिया जाएगा.
मस्क पहले ही चेतावनी दे चुके थे कि अगर यह बिल पास होता है, तो वह एक नई पार्टी बनाएंगे और अगले चुनावों में उन सांसदों को हराने के लिए भारी राजनीतिक खर्च करेंगे जिन्होंने इस बिल का समर्थन किया.
एक पोल के बाद, जिसमें 65% लोगों ने नई पार्टी का समर्थन किया, मस्क ने लिखा — “आप एक नई राजनीतिक पार्टी चाहते हैं और आपको वह मिलेगी! आज, अमेरिका पार्टी बन चुकी है.” मस्क ने फिलहाल इस नई पार्टी के ढांचे या नेतृत्व को लेकर कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी है, लेकिन उनका कहना है कि यह पार्टी भविष्य के उद्योगों को नुकसान पहुंचाने वाले और पुराने उद्योगों को फायदा देने वाले विधेयकों के खिलाफ आवाज़ उठाएगी. इस घोषणा के साथ अमेरिका की राजनीति में मस्क की सीधी दखल की शुरुआत मानी जा रही है.
कार्टून
कृष्ण खन्ना पर अशोक वाजपेयी: कला-जगत की सबसे वरिष्ठ और उजली उपस्थिति
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने कृष्ण खन्ना के बारे में लिखा है कि वो हमारे समय के, अपनी कला भर से नहीं, अपनी सक्रियता-विचार और परामर्श से भी, एक निर्णायक मूर्धन्य रहे हैं. इस समय घिरते अंधेरों में वे एक मशाल हैं जो बहुलता, सद्भाव, जातीय स्मृति, सच के लिए और बढ़ते झूठों और घृणा के विरुद्ध निष्कंप, निर्भीक और निरन्तर जल रही है.
उन्होंने 'द वायर' के लिए अपने लेख में लिखा है - यह एक अनोखी घटना है. मूर्धन्य चित्रकार कृष्ण खन्ना इस 5 जुलाई को सौ बरस के हो गए हैं. उनसे पहले उन जैसा और कोई मूर्धन्य सौ वर्ष की आयु पूरी नहीं कर पाया. वे अब भी चित्र बना रहे हैं, वे अब भी ठहाका मारकर हंसते हैं. उनकी स्मृति अब भी शिथिल नहीं, सक्रिय है. उनके एक शतक पूरे करने का एक आशय यह भी है कि अगर भारत में आधुनिक कला की यात्रा, मोटे तौर पर, डेढ़ सौ बरस की मानें तो कृष्ण उसमें लगभग अस्सी वर्ष उपस्थित और सक्रिय रहे हैं.
कृष्ण खन्ना भारतीय आधुनिक कला के मूर्धन्य चित्रकार हैं, जिनकी कला मानवीय पीड़ा, गरिमा और बहुलता का महाकाव्यात्मक आख्यान है. रंग और रेखा पर उनकी पकड़ अद्वितीय है - सफेद-काले रेखांकन से लेकर बहुरंगी चित्रों तक, उनके कार्य में सूक्ष्म संवेदना और सजीव कल्पना का संधान मिलता है. उन्होंने आम जन जैसे बैंडवालों, ट्रक चालकों को भी अपनी कला में वही गरिमा दी जो गांधी या ईसा मसीह को दी. पत्राचार में उन्होंने अनुभव को चित्रकला का आधार माना और शैलीगत विविधता को रचनात्मक स्वतंत्रता का स्रोत. ललित कला अकादमी और भारत भवन में उनकी सक्रियता ने आधुनिक भारतीय कला को नई ऊंचाई दी. यहां पढ़ें पूरा आलेख.
कृष्ण खन्ना पर निधीश त्यागी ने आर्ट विद अबीर यूट्यूब चैनल के लिए अशोक वाजपेयी से उनके योगदान, महत्व, व्यक्तित्व पर लंबी बात की है. आप यहां देख सकते हैं.
चलते-चलते | जन्मशती
“वो जो खो गए, जो कह न सके... वही गुरु दत्त थे”
गुरुदत्त आज होते तो 9 जुलाई को वो अपना सौंवा जन्मदिन मना रहे होते. गुरु दत्त के जीवन में दुख, प्रेम, हताशा और रचनात्मकता की जो विस्फोटक मिलावट थी, वह उन्हें एक साधारण फिल्मकार से कहीं ऊपर ले गई. 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के लिए पूनम सक्सेना ने गुरु दत्त की सौवीं जयंती के मौके पर उन्हें याद किया है. उन्होंने लिखा गुरुदत्त न केवल एक फिल्म निर्देशक के रूप में, बल्कि एक संवेदनशील आत्मा के रूप में देखें जाएं, जिसने हिंदी सिनेमा को आत्मा दी. 10 अक्टूबर 1964 की सुबह, गुरु दत्त अपने बॉम्बे के फ्लैट में मृत पाए गए. वह केवल 39 वर्ष के थे. यह उनकी तीसरी आत्महत्या की कोशिश थी - इस बार वो सफल हो गए थे. उनकी मृत्यु के वक्त वह बिस्तर पर पड़े थे, कुर्ता-पायजामा सिलवटों से भरा. पास में एक गिलास था, जिसमें नींद की गोलियां पानी में घुली थीं - गुलाबी रंग का तरल.
गुरु दत्त ने 1951 में बाज़ी से निर्देशन की शुरुआत की. इसके बाद आर-पार (1954) और मिस्टर एंड मिसेज़ 55 (1955) जैसी हल्की-फुल्की रोमांटिक कॉमेडी आईं, लेकिन वह केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं रहे. 1957 की प्यासा में उन्होंने एक कवि की पीड़ा दिखाई, जिसे समाज ने ठुकरा दिया. वह एक वेश्या के साथ अपनापन पाता है. इस फ़िल्म ने गुरु दत्त को अमर कर दिया.
उसके बाद आई कागज़ के फूल (1959), शायद हिंदी सिनेमा की पहली “फ्लॉप क्लासिक” - एक फिल्म निर्देशक की कथा, जो अपने निजी जीवन की बर्बादी से टूट जाता है. आज ये फिल्में कल्ट क्लासिक हैं.
गुरु दत्त ने तकनीकी दृष्टि से फिल्मों को आगे बढ़ाया. उनकी लाइटिंग, फ्रेमिंग और साइलेंस का उपयोग आज भी पढ़ाया जाता है. वहीदा रहमान और जॉनी वॉकर जैसे कलाकारों के साथ उनके रचनात्मक संबंध भी बहुत चर्चित रहे. कागज़ के फूल की असफलता ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया, लेकिन आज वह भारतीय सिनेमा की सबसे कलात्मक फिल्मों में गिनी जाती है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.