07/10/2025: दलित सीजेआई पर सनातनी जूता | बिहार की बिसात, भारी दांव | कफ़ सिरप मौतों पर फैलता रायता | ट्रामा सेंटर में आग | एवरेस्ट में भसड़ | रंगों के रहस्य
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
बिहार चुनाव का ऐलान: 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में मतदान, 14 को आएंगे नतीजे.
बिहार की बिसात: नीतीश के स्वास्थ्य से लेकर पीके फैक्टर तक, इन 5 चेहरों और मुद्दों पर टिकी सबकी नज़र.
श्रवण गर्ग: मोदी का ‘पैसा तंत्र’ और राहुल का ‘ओवर कॉन्फिडेंस’ विपक्ष पर पड़ सकता है भारी -
बिहार की नई मतदाता सूची में 5 लाख नाम जोड़े जाने पर उठे सवाल, चुनावी अखंडता पर बढ़ी चिंता.
सुप्रीम कोर्ट में हमला: सुनवाई के दौरान वकील ने CJI गवई पर फेंका जूता, लगाए ‘सनातन’ के नारे.
जयपुर हादसा: SMS अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में आग से 8 मरीज़ों की मौत, लापरवाही के आरोप, जांच के आदेश.
यूपी दलित मॉब लिंचिंग: “हम बाबा के आदमी हैं” - रायबरेली में ड्रोन चोर के शक में दलित युवक की पीट-पीटकर हत्या.
लद्दाख तनाव: सोनम वांगचुक की हिरासत पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब, हालात तनावपूर्ण.
ज़हरीला कफ सिरप: मध्य प्रदेश में 16 बच्चों की मौत के बाद जागी सरकार, दो ड्रग इंस्पेक्टर सस्पेंड.
जांच में खुलासा: MP में बच्चों की मौत का कारण बना ज़हरीला कफ सिरप, तमिलनाडु और हिमाचल की कंपनियों पर शिकंजा.
बांग्लादेश चुनाव: दो दशकों के निर्वासन के बाद ऐतिहासिक चुनाव के लिए लौटेंगे तारिक रहमान.
एवरेस्ट हादसा: बर्फीले तूफान में फंसे 200 से ज़्यादा हाइकर्स, एक की मौत, बचाव कार्य जारी.
शोध: हार्वर्ड के वैज्ञानिकों ने उजागर किया भारतीय लघुचित्रों में इस्तेमाल होने वाले रंगों का रहस्य.
बिहार चुनाव
जिन 5 मुद्दों और चेहरों पर रहेगी सबकी नज़र
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण होने जा रहा है. यह चुनाव सिर्फ सत्ता का खेल नहीं है, बल्कि कई बड़े नेताओं के राजनीतिक भविष्य का भी फैसला करेगा. सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार एक आखिरी शानदार पारी खेलने की ताकत रखते हैं, क्या तेजस्वी यादव प्रधानमंत्री मोदी के प्रभाव को रोक पाएंगे, क्या राहुल गांधी अपनी यात्राओं की भीड़ को वोटों में बदल पाएंगे, और क्या प्रशांत किशोर “बिहार के लिए ज़रूरी बदलाव” साबित होंगे?
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जहाँ महागठबंधन में कांग्रेस और एनडीए में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) भी अपनी संभावनाओं को देख रही हैं, वहीं प्रशांत किशोर की नई पार्टी ‘जन सुराज पार्टी’ (जेएसपी) एक ‘डार्क हॉर्स’ यानी छुपा रुस्तम साबित हो सकती है. आइए उन पांच प्रमुख कारकों पर नज़र डालते हैं जो बिहार चुनाव के नतीजों को तय कर सकते हैं.
1. नीतीश कुमार का स्वास्थ्य
74 वर्षीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर लगातार अटकलें लगाई जा रही हैं. राजद के नेतृत्व वाला महागठबंधन इसे एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना रहा है. उनका आरोप है कि नीतीश अब प्रशासन पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं और राज्य को सात-आठ नेताओं और नौकरशाहों का एक गुट चला रहा है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अक्सर सार्वजनिक कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री के वीडियो साझा कर अपने दावों को पुख्ता करने की कोशिश करते हैं. विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी ने तो यहाँ तक कह दिया कि “नीतीश कुमार को अब आराम करना चाहिए. उन्होंने अपनी पारी खेल ली है.” हालांकि, जेडी(यू) इन दावों को लगातार खारिज कर रही है. सहयोगी भाजपा भी कहती रही है कि चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा, लेकिन चुनाव के बाद क्या होगा, इस पर वह चुप है.
2. लोक-लुभावन वादों की बौछार
एनडीए सरकार सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए मतदाताओं के लिए कई वादों की घोषणा कर रही है. अब तक राज्य की 1.21 करोड़ महिलाओं को व्यवसाय शुरू करने के लिए 10,000 रुपये मिल चुके हैं. 1.89 करोड़ परिवारों को 125 मेगावॉट मुफ्त बिजली दी जा रही है. सामाजिक सुरक्षा पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये प्रति माह कर दी गई है. जीविका, आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाया गया है और 18 से 25 वर्ष के बेरोज़गारों के लिए दो साल तक 1,000 रुपये मासिक भत्ता देने की घोषणा की गई है.
3. ‘वोट चोरी’ बनाम ‘घुसपैठिया’
चुनाव आयोग द्वारा चुनाव के अंतिम दौर में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन अभियान की घोषणा को विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ “वोट चोरी” के आरोपों से जोड़ा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के ज़रिए इस मुद्दे को उठाया, जिसमें भारी भीड़ भी जुटी. वहीं, एनडीए ने पलटवार करते हुए विपक्षी गठबंधन पर “घुसपैठियों” को प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया है. हालांकि, चुनाव आयोग के आंकड़े दोनों ही दावों को कमज़ोर करते हैं.
4. एनडीए का चेहरा प्रधानमंत्री मोदी
हालांकि नीतीश कुमार एनडीए अभियान का घोषित चेहरा हैं, लेकिन उनके स्वास्थ्य को देखते हुए इसमें कोई शक नहीं कि गठबंधन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर ही निर्भर रहेगा. कांग्रेस अभियान की कमान राहुल गांधी के संभालने से यह मुकाबला एक और राज्य में दो राष्ट्रीय नेताओं के बीच होगा. भाजपा के स्थानीय चेहरे, जैसे उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, में पूरे बिहार में अपील की कमी है.
5. पीके फैक्टर (प्रशांत किशोर)
चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में अपनी ‘जन सुराज पार्टी’ (जेएसपी) को एक महत्वपूर्ण ताकत के रूप में स्थापित कर दिया है. बिहार की जाति-आधारित राजनीति से ऊब चुके कई लोगों के लिए, किशोर का यह संदेश कि उनकी पार्टी पलायन, बेरोज़गारी, शिक्षा और सुशासन जैसे मुद्दों का समाधान करेगी, एक नई उम्मीद की तरह है. माना जा रहा है कि एनडीए द्वारा की जा रही वादों की बौछार का एक कारण किशोर के दावों का मुकाबला करना भी है.
क्या राजद अपना वोट शेयर बचा पाएगा और बीजेपी वापसी करेगी?
बिहार विधानसभा के 243 सदस्यों के लिए होने वाले चुनाव इस बार पिछले 15 वर्षों में सबसे कम अवधि में संपन्न होंगे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह चुनाव न केवल राजनीतिक दलों के भविष्य को तय करेगा, बल्कि पिछले चुनावों के आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी समझने में मदद मिलेगी कि कौन सी पार्टी कहाँ खड़ी है.
2010 विधानसभा चुनाव
1990 से 15 साल तक लालू प्रसाद-राबड़ी देवी के शासन के बाद, 2005 में नीतीश कुमार जेडी(यू)-भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री बने. 2010 के चुनावों में इस गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया. जेडी(यू) ने 141 सीटों पर चुनाव लड़कर 115 सीटें जीतीं और 22.58% वोट शेयर हासिल किया, जो उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. वहीं, भाजपा ने 102 सीटों पर लड़कर 91 सीटें जीतीं और 16.49% वोट शेयर हासिल किया. दूसरी ओर, राजद-लोजपा गठबंधन केवल 25 सीटें जीत सका, जबकि राजद ने 168 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसे 18.84% वोट मिले थे. कांग्रेस अकेले सभी 243 सीटों पर लड़ी और केवल चार सीटें जीत सकी.
2015 विधानसभा चुनाव
2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए से अलग होने के बाद, नीतीश कुमार ने 2015 में अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी राजद और कांग्रेस के साथ ‘महागठबंधन’ बनाया. इस गठबंधन ने 178 सीटें जीतकर शानदार जीत दर्ज की. राजद 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जिसे 18.35% वोट मिले. जेडी(यू) को 71 सीटें और 16.83% वोट मिले. वहीं, कांग्रेस ने 41 में से 27 सीटें जीतीं. इस चुनाव में एनडीए को केवल 58 सीटें मिलीं, लेकिन भाजपा 24.42% वोट शेयर के साथ सबसे ज़्यादा वोट पाने वाली पार्टी बनी, जो राजद से भी 6% ज़्यादा था.
2020 विधानसभा चुनाव
2020 में एनडीए, जिसमें भाजपा, जेडी(यू) और लोजपा शामिल थीं, ने 122 सीटों के बहुमत के आंकड़े को पार करते हुए 125 सीटें जीतीं. इस चुनाव का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह था कि भाजपा 110 सीटों पर लड़कर 74 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि जेडी(यू) 115 सीटों पर लड़कर केवल 43 सीटों पर सिमट गई. इसके बावजूद, भाजपा ने नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बने रहने दिया. महागठबंधन ने कड़ा मुकाबला करते हुए 110 सीटें जीतीं. राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. इस चुनाव के दो साल बाद नीतीश कुमार फिर से महागठबंधन में शामिल हो गए, लेकिन जनवरी 2024 में वे एक बार फिर एनडीए में लौट आए.
2024 के लोकसभा चुनावों में, एनडीए ने बिहार की 40 में से 30 सीटें जीतीं और 174 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की, जबकि महागठबंधन को सिर्फ 9 सीटें मिलीं और वह 62 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रहा. यह आंकड़े आगामी विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए के पक्ष में एक मज़बूत संकेत देते हैं.
श्रवण गर्ग का विश्लेषण
मोदी का ‘पैसा तंत्र’, पीके का ‘खेल’ और राहुल का ‘ओवर कॉन्फ़िडेंस’ विपक्ष पर पड़ सकता है भारी
बिहार विधानसभा चुनाव को महज़ एक राज्य की चुनावी लड़ाई न मानते हुए, वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए एक ‘लिटमस टेस्ट’ बताया है. हरकारा डीपडाइव में निधीश त्यागी के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने चिंता जताई कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का ‘पैसा तंत्र’, प्रशांत किशोर (पीके) की ‘वोट कटवा’ भूमिका और राहुल गांधी का ‘ओवर कॉन्फ़िडेंस’ विपक्ष के लिए एक बड़ा ख़तरा बन सकता है.
श्रवण गर्ग के अनुसार, यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति के लिए एक अग्निपरीक्षा है, जिसे जीतने के लिए बीजेपी ने अभूतपूर्व तरीक़े से संसाधन झोंक दिए हैं. उन्होंने महिलाओं के खाते में सीधे 100 रुपये भेजने और युवाओं के लिए 62,000 करोड़ के प्रावधान का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह सीधे-सीधे वोट ख़रीदने की कोशिश है. इसके अलावा, उन्होंने चुनाव आयोग की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि लगभग 76 लाख वोटरों का लिस्ट से ग़ायब हो जाना, जिनमें ज़्यादातर अल्पसंख्यक और महागठबंधन के समर्थक हो सकते हैं, लोकतंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय है. गर्ग ने कहा, “यह चुनाव यह सिद्ध करने के लिए है कि लोकतंत्र को ख़रीदा और मैनिपुलेट किया जा सकता है.”
इस चुनावी बिसात पर प्रशांत किशोर की भूमिका को उन्होंने विपक्ष के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताया. गर्ग ने कहा, “मेरा भय है कि बिहार में प्रशांत किशोर वही भूमिका अदा करेंगे जो केजरीवाल ने गुजरात में कांग्रेस के लिए की थी—वोट काटकर मुख्य प्रतिद्वंद्वी को कमज़ोर करना.” उन्होंने सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि पीके नीतीश और तेजस्वी, दोनों के वोट काट रहे हैं, जिसका सीधा फ़ायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है. गर्ग ने यह भी सवाल उठाया कि 243 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए पीके के पास हज़ारों करोड़ रुपये कहाँ से आ रहे हैं.
विश्लेषण में राहुल गांधी के दृष्टिकोण पर भी गहरी चिंता व्यक्त की गई. गर्ग ने कहा, “मोदी जी की बॉडी लैंग्वेज से लग रहा है कि उन्होंने अभी लड़ना शुरू ही नहीं किया, जबकि राहुल गांधी को देखकर ऐसा लग रहा है मानो यात्रा करके उन्होंने अपना काम पूरा कर दिया.” उन्होंने महागठबंधन में सीटों को लेकर चल रही खींचतान और लालू परिवार की अंदरूनी कलह की तुलना एनडीए के अनुशासित रुख़ से की. उनके मुताबिक़, विपक्ष अगर ज़मीनी स्तर पर एकजुट होकर इस ‘पैसे और पावर’ के खेल का जवाब नहीं दे पाया, तो यह सिर्फ़ एक चुनाव की हार नहीं होगी, बल्कि उस उम्मीद की हार होगी जो राहुल गांधी ने हाल के दिनों में जगाई है.
अंत में, श्रवण गर्ग ने निष्कर्ष निकाला कि यह चुनाव बिहार के भविष्य के साथ-साथ यह भी तय करेगा कि क्या भारतीय लोकतंत्र पैसे और रणनीतिक छल-कपट के इस हमले के सामने टिक सकता है.
बिहार की नई मतदाता सूची से उठे सवाल, भारत की चुनावी अखंडता पर चिंता बढ़ी
भारत की चुनावी प्रक्रिया को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. मतदाता सूची में छेड़छाड़, मतदान प्रक्रिया में तोड़फोड़ और वोटों की गिनती में हेरफेर जैसे गंभीर आरोप सामने आ रहे हैं. ‘आर्टिकल-14’ में अनिकेत आग़ा के विश्लेषण के अनुसार, ये चिंताएं केवल कांग्रेस के ‘वोट चोरी’ के आरोपों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पिछले सात वर्षों में जमा किए गए सबूतों पर आधारित हैं.
ताज़ा मामला बिहार का है, जहाँ चुनाव आयोग पर “अंतिम” संशोधित सूची में 1 से 30 सितंबर 2025 के बीच बिना किसी स्पष्टीकरण के लगभग पांच लाख नए मतदाता जोड़ने का आरोप लगा है. इससे यह आशंका पैदा होती है कि क्या इन जोड़-तोड़ का उद्देश्य सत्ताधारी दलों को फायदा पहुँचाना है, खासकर करीबी मुकाबलों में. इससे पहले ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ ने भी खुलासा किया था कि ढाका विधानसभा क्षेत्र में लगभग 80,000 मुस्लिम मतदाताओं के नाम यह कहकर हटाने की कोशिश की गई कि वे भारतीय नागरिक नहीं हैं.
हाल के वर्षों में, चुनाव आयोग पर चुनाव के संचालन की जांच को रोकने, सवालों को टालने और हेरफेर के आरोपों पर पर्याप्त रूप से ध्यान न देने के आरोप लगे हैं. इससे आयोग में जनता का विश्वास भी कम हुआ है. मतदाता सूचियों में छेड़छाड़ के दो मुख्य तरीके हैं: फर्जी मतदाताओं को जोड़ना और असली मतदाताओं को निशाना बनाकर हटाना. महाराष्ट्र में 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच मतदाता सूची में 40 लाख से ज़्यादा की वृद्धि हुई, जिसने फर्जी मतदाताओं को जोड़ने का संदेह पैदा किया. वहीं, कर्नाटक के आलंद विधानसभा क्षेत्र में असली मतदाताओं के नाम हटाने की कोशिश का आरोप विपक्ष ने लगाया था.
मतदान प्रक्रिया में हेरफेर के रूप में मतदाताओं को डराने-धमकाने और वोटों की गिनती में गड़बड़ी के भी मामले सामने आए हैं. गुजरात के पूर्व शिक्षा मंत्री भूपेन्द्रसिंह चूडास्मा के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय ने डाक मतपत्रों की गिनती में हेरफेर के कारण उनकी जीत को रद्द कर दिया था, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बाद में इस पर रोक लगा दी.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि कर्नाटक के आलंद में 2023 के चुनावों से पहले कांग्रेस-समर्थक मतदाताओं के नाम धोखाधड़ी से हटाने की कोशिश की गई. उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग इस मामले की जांच में कर्नाटक सीआईडी का सहयोग नहीं कर रहा है. इन आरोपों के बाद चुनाव आयोग ने अपने ‘वोटर्स सर्विसेज़ पोर्टल’ में बदलाव करते हुए आधार-लिंक्ड फोन को अनिवार्य कर दिया है.
इन सभी घटनाओं के बीच, मोदी सरकार ने दिसंबर 2023 में एक कानून पारित किया, जिससे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सरकार को बहुमत की शक्ति मिल गई और उन्हें सिविल और आपराधिक कार्यवाही से व्यापक छूट भी प्रदान की गई. इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, लेकिन सुनवाई अभी भी लंबित है. ये सभी घटनाएं भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की नींव को कमज़ोर करती हैं, क्योंकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव ही इसका मूल आधार हैं.
6 और 11 नवंबर को वोटिंग, 14 को नतीजे; दो दशकों में सबसे छोटा चुनाव
बिहार में राज्य विधानसभा का चुनाव अगले माह नवंबर में होगा. 243 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में वोट डाले जाएंगे. पहला चरण 6 नवंबर और दूसरा 11 नवंबर को होगा. चुनाव परिणाम 14 नवंबर को आएंगे. चुनाव आयोग ने सोमवार 6 अक्टूबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूरे कार्यक्रम का ऐलान किया.
चुनाव के ऐलान से मतगणना तक की प्रक्रिया 40 दिन चलेगी. पहले चरण का मतदान छठ पर्व के आठ दिन बाद होगा. सभी राजनीतिक दलों ने मतदान की तारीखें दिवाली और छठ के बाद रखने की अपील की थी. दामिनी नाथ के अनुसार, दो दशकों में पहली बार, बिहार में केवल दो चरणों में मतदान होगा, जो राज्यों में मतदान कार्यक्रमों को छोटा करने के रुझान को जारी रखता है. पिछले तीन विधानसभा चुनावों में, बिहार का मतदान कार्यक्रम लगातार छोटा होता गया है. जैसे- 2010 में छह चरण, 2015 में पांच और 2020 में तीन चरण हुए थे. 2005 में, मतदान चार चरणों में हुआ था. यह नवीनतम कटौती आयोग के पिछले साल जम्मू और कश्मीर चुनाव को तीन चरणों में आयोजित करने के फैसले के बाद हुई है, जो कम से कम 28 वर्षों में सबसे छोटा था.
इन चुनावों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदा एनडीए सरकार का मुकाबला राजद और कांग्रेस के विपक्षी महागठबंधन से होगा. पिछली बार, राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन भाजपा और जद (यू) के पास एक साथ 117 सीटें थीं. इस बार चुनाव में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की नई एंट्री हुई है.
बिहार विधानसभा का कार्यकाल 22 नवंबर को समाप्त हो रहा है. चुनाव कार्यक्रम की घोषणा आयोग के 4-5 अक्टूबर को बिहार दौरे के ठीक एक दिन बाद हुई है.
बिहार चुनाव इस मायने में पहले विधानसभा चुनाव भी होंगे, जब आयोग ने इस साल 24 जून को बिहार से शुरू होकर देश में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करने का फैसला किया. बिहार एसआईआर के बाद, राज्य की मतदाता सूची में 68.5 लाख मतदाताओं की छंटनी की गई, जिसमें 21.53 लाख नए जोड़े गए, जिससे कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या लगभग 7.42 करोड़ हो गई. एसआईआर के चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिसकी अगली सुनवाई मंगलवार को होनी है.
बिहार चुनाव इस साल फरवरी में ज्ञानेश कुमार के मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में पदभार संभालने के बाद आयोग द्वारा घोषित किए गए पहले विधानसभा चुनाव भी हैं.
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई गवई पर वकील ने जूता फेंका, - सनातन का नारा लगाया
सोमवार (6 अक्टूबर 2025) को देश की सबसे बड़ी अदालत में चौंकाने वाली और अजीब घटना हुई, जब 71 वर्षीय एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट की कोर्ट नंबर-1 में सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी. आर. गवई पर कथित तौर पर जूता फेंका.
सुचित्रा कल्याण मोहंती के अनुसार, आरोपी मध्यप्रदेश के खजुराहो मंदिर परिसर में भगवान विष्णु की मूर्ति की बहाली की मांग वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) के दौरान सीजेआई द्वारा की गई हालिया टिप्पणियों से कथित तौर पर नाखुश था.
सोमवार को यह घटना होने के तुरंत बाद, दिल्ली पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया, जिसकी पहचान राकेश किशोर के रूप में हुई है, जिसने कथित तौर पर सुबह लगभग 11:36 बजे अपने जूते निकाले और सीजेआई पर फेंके. जब उसे ले जाया जा रहा था, तो वकील को चिल्लाते हुए सुना गया, “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे. सनातन का अपमान, नहीं सुनेगा हिंदुस्तान.” लेकिन, सीजेआई गवई शांत रहे और उन्होंने कोर्ट रूम में मौजूद वकीलों से अपनी दलीलें जारी रखने का आग्रह किया. उन्होंने टिप्पणी की, “इन सब से विचलित न हों. हम विचलित नहीं हैं. ये चीजें मुझे प्रभावित नहीं करतीं.”
दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार, आरोपी को सुरक्षा कर्मियों ने पकड़ लिया और सुप्रीम कोर्ट की सुरक्षा इकाई को सौंप दिया. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “वह मयूर विहार इलाके का निवासी है और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) का एक पंजीकृत सदस्य है.”
वकील को बीसीआई ने निलंबित किया, पुलिस जांच भी
इस बीच, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने अधिवक्ता राकेश किशोर को निलंबित कर दिया है. बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा द्वारा जारी एक आदेश में, काउंसिल ने कहा कि किशोर का आचरण “न्यायालय की गरिमा के साथ असंगत” है और यह वकालत अधिनियम, 1961 और पेशेवर आचरण और शिष्टाचार पर नियमों का उल्लंघन करता है. यह निलंबन तत्काल प्रभाव से लागू होता है, जो उन्हें भारत में किसी भी न्यायालय या न्यायाधिकरण में पेश होने, कार्य करने, दलील देने या प्रेक्टिस करने से रोकता है.
सूत्रों के अनुसार, पुलिस सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के साथ समन्वय कर रही है और मामले में आगे की जांच कर रही है. पुलिस सूत्रों ने बताया कि वकील के कृत्य के पीछे के सटीक मकसद के बारे में विवरण प्रतीक्षित है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस कृत्य को “दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय” बताया और इसे गलत सूचना और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास करार दिया. मेहता ने कहा, “सीजेआई की अदालत में आज की दुर्भाग्यपूर्ण घटना सोशल मीडिया में गलत सूचना का परिणाम है. यह वास्तव में उत्साहजनक है कि सीजेआई ने उदारता के साथ प्रतिक्रिया दी. मुझे बस उम्मीद है कि इस उदारता को अन्य लोग संस्था की कमजोरी के रूप में नहीं लेंगे.”
मेहता ने आगे कहा, “मैंने व्यक्तिगत रूप से सीजेआई को सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों पर पूरी श्रद्धा के साथ जाते हुए देखा है. सीजेआई ने भी इस स्थिति को स्पष्ट किया है. यह समझ में नहीं आता है कि एक उपद्रवी को आज ऐसा करने के लिए किसने प्रेरित किया.”
यह सीजेआई के खिलाफ जातिवादी टिप्पणी, और संविधान पर हमला
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने इस घटना को “समग्र रूप से संस्था पर हमला” करार दिया. उन्होंने कहा, “मैं इस घटना की चश्मदीद नहीं हूं. जो कुछ भी मुझे पता है, वह मैंने प्रेस रिपोर्टों से जाना है. इसमें जांच की आवश्यकता है. मैं इसे केवल सीजेआई पर नहीं, बल्कि समग्र रूप से संस्था पर हमला मानती हूं.”
जयसिंह ने कहा, “मैं इसे सीजेआई के खिलाफ जातिवादी टिप्पणी मानती हूं... इसके लिए भारत के सुप्रीम कोर्ट से कानूनी प्रतिक्रिया की आवश्यकता है.”
विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे बढ़ती असहिष्णुता का एक शर्मनाक और खतरनाक प्रतिबिंब बताया.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस हमले की निंदा करते हुए इसे शर्मनाक बताया और कहा कि यह “विवेकहीन कृत्य” दिखाता है कि समाज को नफरत और कट्टरता ने कैसे घेर लिया है. खड़गे ने “एक्स” पर एक पोस्ट में कहा, “आज सुप्रीम कोर्ट में माननीय मुख्य न्यायाधीश पर हमला करने का प्रयास अभूतपूर्व, शर्मनाक और घृणित है. यह हमारी न्यायपालिका की गरिमा और कानून के शासन पर हमला है.”
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि यह हमला सिर्फ गवई पर नहीं, बल्कि संविधान पर हमला है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने इसे “देश के इतिहास में एक काला दिन” करार दिया और सीजेआई के प्रति एकजुटता व्यक्त की. केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस कृत्य को “संघ परिवार द्वारा फैलाई गई नफरत का प्रतिबिंब” कहा और चेतावनी दी कि इसे एक अलग घटना के रूप में खारिज नहीं किया जाना चाहिए. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने भी इस कृत्य की निंदा की, इसे “शर्मनाक” और “हमारे लोकतंत्र के सर्वोच्च न्यायिक कार्यालय पर हमला” करार दिया. उन्होंने कहा कि सीजेआई की शांत प्रतिक्रिया संस्था की ताकत को दर्शाती है, लेकिन चेतावनी दी कि “दमनकारी और पदानुक्रमित मानसिकता अभी भी हमारे समाज में कायम है.”
लद्दाख | सोनम वांगचुक मामला
तनाव जारी, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
लद्दाख में राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के हिंसक होने के बाद स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. 24 सितंबर को पुलिस फायरिंग में चार लोगों की मौत के बाद, जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत हिरासत में ले लिया गया था, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से मौखिक रूप से कहा कि वह सोनम वांगचुक की हिरासत के आधार को उनकी पत्नी डॉ. गीतांजलि आंगमो के साथ साझा करने पर विचार करे. वांगचुक की पत्नी ने ‘बंदी प्रत्यक्षीकरण’ (Habeas Corpus) याचिका दायर कर अदालत से अपने पति को पेश करने का निर्देश देने की मांग की थी. उन्होंने कहा कि वांगचुक को हिरासत में लिए 10 दिन हो गए हैं और उनके स्वास्थ्य या हिरासत के कारणों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. केंद्र सरकार ने अदालत में कहा कि यह याचिका केवल एक “भावनात्मक माहौल” बनाने के लिए है.
जस्टिस अरविंद कुमार और एन.वी. अंजारिया की बेंच ने केंद्र और लद्दाख प्रशासन को नोटिस जारी करते हुए मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर को तय की है. अदालत ने अधिकारियों को वांगचुक को जेल नियमों के तहत सभी आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने का भी निर्देश दिया.
लेह में क्या हैं हालात?
लेह में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. लद्दाख के उपराज्यपाल कविंद्र गुप्ता ने दावा किया है कि केंद्र शासित प्रदेश में शांति है और स्कूल, कार्यालय व बाज़ार फिर से खुल गए हैं. हालांकि, ‘एपेक्स बॉडी लेह’ के प्रतिनिधियों ने इन दावों को झूठा बताया है. लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के अध्यक्ष चेरिंग दोरजे लकरूक ने कहा, “लोगों को अभी भी पूछताछ के लिए उठाया जा रहा है और इंटरनेट पर प्रतिबंध जारी है, इसलिए सामान्य स्थिति के दावे गलत हैं.”
शनिवार को लद्दाख के मुख्य सचिव पवन कोतवाल ने कहा कि हिरासत में लिए गए 70 युवाओं में से 30 को रिहा कर दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि अगर कुछ नेताओं ने अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर भूख हड़ताल खत्म कर दी होती, तो इस पूरी घटना से बचा जा सकता था.
दूसरी ओर, स्थानीय लोग और प्रदर्शनकारी समूह सरकार की कार्रवाई की निंदा कर रहे हैं. उनका कहना है कि यह उनकी संस्कृति पर हमला है. 24 सितंबर की हिंसा ने लोगों के मन में गहरा घाव छोड़ा है और सुरक्षा बलों की कार्रवाई ने कई लोगों को चुप करा दिया है. कई स्थानीय लोगों का मानना है कि केंद्र सरकार द्वारा किए गए अधूरे वादे और नौकरशाही का बढ़ता नियंत्रण ही इस गुस्से का मुख्य कारण है.
जयपुर एसएमएस के ट्रॉमा सेंटर में आग से आठ मौतें : लापरवाही के आरोप, जांच के आदेश
जयपुर के सवाई मानसिंह (एसएमएस) अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में रविवार रात भीषण आग लगने से आठ लोगों की जान चली गई. अस्पताल के आईसीयू में लगी इस आग ने कई परिवारों को गहरे शोक में डुबो दिया है. पीड़ितों के परिवार अस्पताल प्रशासन पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं.
पीड़ितों में से एक 33 वर्षीय दिगंबर थे, जिनकी सड़क दुर्घटना के बाद आईसीयू में भर्ती कराया गया था और वे ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे. आग लगने के बाद जब ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो गई, तो उनकी तुरंत मौत हो गई. उनका परिवार अस्पताल के बाहर घंटों तक उनके शव के पास बैठकर रोता रहा. एक अन्य पीड़ित दिलीप के परिवार ने बताया कि उन्हें अगले दिन छुट्टी मिलने वाली थी. एक रिश्तेदार ने रोते हुए कहा, “हम उन्हें घर ले जाने वाले थे, अब हम उनका शव घर ले जा रहे हैं.”
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आग लगने से काफी पहले ही धुएं का पता चल गया था और अस्पताल के कर्मचारियों को बार-बार सूचित किया गया, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. भरतपुर के रहने वाले शेरू, जिन्होंने अपनी मां को आईसीयू से बचाया, ने कहा, “हम चिल्लाते रहे कि कुछ जल रहा है, लेकिन कर्मचारियों ने हमें नज़रअंदाज़ कर दिया. जब आग लगी, तो वे सब भाग गए.” उन्होंने बताया कि फॉल्स सीलिंग का प्लास्टिक पिघलने लगा, ट्यूबलाइट फटने लगी और चारों ओर अंधेरा छा गया.
परिवारों का आरोप है कि आग शॉर्ट सर्किट से लगी और आईसीयू के बंद होने के कारण ज़हरीला धुआं तेज़ी से फैल गया. उनका दावा है कि आग बुझाने वाले उपकरण या तो मौजूद नहीं थे या काम नहीं कर रहे थे और अस्पताल के कर्मचारियों ने मरीजों की मदद करने के बजाय उन्हें छोड़ दिया.
इस घटना के बाद ट्रॉमा सेंटर के बाहर गुस्साए रिश्तेदारों ने विरोध प्रदर्शन किया और न्याय की मांग की. मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने इस त्रासदी की जांच के आदेश दिए हैं और चिकित्सा विभाग के आयुक्त इकबाल खान की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है. समिति को जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी अस्पताल का दौरा किया और शोक संतप्त परिवारों से मुलाकात की. उन्होंने सरकार की संवेदनशीलता पर सवाल उठाते हुए न्यायिक आयोग से जांच की मांग की है.
हेट क्राइम
यूपी में दलित युवक की पीट-पीटकर हत्या; कांग्रेस का आरोप हमलावरों ने कहा, “हम बाबा के आदमी”
उत्तर प्रदेश के रायबरेली में “ड्रोन चोर” होने के संदेह में एक भीड़ ने 38 वर्षीय दलित युवक हरिओम की पीट-पीटकर हत्या कर दी. 2 अक्टूबर को ईश्वरदासपुर रेलवे स्टेशन के पास उनका क्षत-विक्षत, अर्धनग्न शरीर मिला. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि हमलावरों ने पीड़ित का मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “हम बाबा (योगी आदित्यनाथ) के आदमी हैं.”
घटना बुधवार देर रात करीब 1 बजे की है, जब हरिओम उन्नाव-डलमऊ रोड पर यात्रा कर रहे थे. लगभग 25 ग्रामीणों ने उन्हें पकड़ लिया और पूछताछ करने लगे. हरिओम ने बताया कि वह पास के एक गांव में रहते हैं, लेकिन ग्रामीण संतुष्ट नहीं हुए. उन्हें “ड्रोन चोर” मानकर, ग्रामीणों ने उन्हें लाठियों और बेल्टों से पीटना शुरू कर दिया. उन्हें एक खंभे से बांधा गया और बेरहमी से पीटा गया, जिसके बाद उनकी मौत हो गई.
पुलिस ने 12 लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है, जिनमें से छह हिरासत में हैं. यह हत्या उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में “ड्रोन चोरों” द्वारा गांवों की रेकी करने की अपुष्ट अफवाहों के बीच हुई है, जबकि ड्रोन को आपराधिक गतिविधि से जोड़ने का कोई सबूत नहीं है.
कांग्रेस ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर लिखा, “वीडियो में, जब दलित युवक आखिरी उम्मीद के तौर पर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का नाम लेता है, तो भी हत्यारे नहीं रुकते और कहते हैं, ‘हम बाबा वाले हैं’.” रायबरेली, जहां यह लिंचिंग हुई, राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र है. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि “यह घटना दिखाती है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने अपराधियों को खुली छूट दे रखी है, खासकर दलितों के खिलाफ अपराधों पर उन्होंने आंखें मूंद ली हैं.”
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने युवक के परिवार से फोन पर बात की है और न्याय की लड़ाई में पूरा समर्थन देने का वादा किया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पवन खेड़ा ने इस घटना को “भयानक” और “दिल दहलाने वाला” बताया. आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने भी इस घटना पर सवाल उठाते हुए कहा कि “समाज में नफरत और भीड़तंत्र का ज़हर गहरा होता जा रहा है.”
दलितों के खिलाफ लिंचिंग की घटनाएं अक्सर गोहत्या, चोरी, भूमि विवाद या जातिगत मानदंडों का उल्लंघन करने जैसे आरोपों से जुड़ी होती हैं. यह घटनाएं कानून प्रवर्तन की विफलताओं और समाज में गहराई तक पैठी जातिवाद को दर्शाती हैं.
मिलावटी कफ सिरप ने कैसे ली मध्य प्रदेश के बच्चों की जान
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में ज़हरीले कफ सिरप के सेवन से बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है. अगस्त से अब तक, पारसिया तहसील में 11 बच्चों की किडनी फेल होने से मौत हो चुकी है, जिनकी उम्र एक से छह साल के बीच थी. इन सभी बच्चों ने दो में से एक कफ सिरप का सेवन किया था - ‘कोल्ड्रिफ’, जो तमिलनाडु की श्रेसन फार्मास्युटिकल द्वारा निर्मित है, और ‘नास्त्रो-डीएस’, जो हिमाचल प्रदेश की एक्विनोवा फार्मास्युटिकल्स द्वारा बनाया गया था.
स्क्रोल में तबस्सुम बरनगरवाला की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे पहले तमिलनाडु के दवा निरीक्षकों ने ‘कोल्ड्रिफ’ कफ सिरप में 48.6% डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) नामक एक अत्यधिक ज़हरीला रसायन पाया. यह एक सस्ता औद्योगिक सॉल्वेंट है जिसका इस्तेमाल दवा में प्रतिबंधित है क्योंकि यह किडनी फेल होने और मौत का कारण बन सकता है. शुरुआत में मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार की जांच में कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी, लेकिन बाद में 5 अक्टूबर को भोपाल की लैब ने भी ‘कोल्ड्रिफ’ के सैंपल में 46.28% डायथिलीन ग्लाइकॉल की पुष्टि की.
यह पहली बार नहीं है जब भारत में बने कफ सिरप से बच्चों की मौत हुई है. 2023 में गाम्बिया में 70 और उज़्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत का कारण भी भारत में बना ज़हरीला कफ सिरप था. छिंदवाड़ा में हुई इस त्रासदी ने न केवल परिवारों को तोड़ा है, बल्कि उन्हें कर्ज़ में भी डुबो दिया है. पांच वर्षीय ऋषिका के पिता सुरेश पीपरे खटीक ने अपनी बेटी के इलाज पर 9 लाख रुपये खर्च किए, जिसके लिए परिवार की महिलाओं को अपने गहने तक गिरवी रखने पड़े.
कई परिवारों ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता और निष्क्रियता की शिकायत की है. एक पीड़ित बच्चे के पिता नीलेश सूर्यवंशी ने कहा, “सरकार की ओर से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिली है. माता-पिता बिना किसी सहारे के अपने बच्चों को अस्पतालों में ले जा रहे हैं.”
इस मामले में, पारसिया के एक सरकारी डॉक्टर प्रवीण सोनी को भी गिरफ्तार किया गया है, जिन्होंने अपने निजी क्लिनिक में कई बच्चों को यह कफ सिरप दिया था. उन पर गलत खुराक देने और बच्चों में किडनी की बीमारी का समय पर पता न लगा पाने का आरोप है. इस घटना के बाद, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों को 2 साल से कम उम्र के बच्चों को खांसी-जुकाम की दवा न देने की सलाह जारी की है.
‘ज़हरीले’ कफ सिरप : 16 बच्चों की जान जाने के बाद हरकत में मध्यप्रदेश सरकार
2 सितंबर को पहली मौत हुई, तब से क्या कर रहा था पूरा तंत्र!
खांसी की जहरीली दवा (कफ सिरप) के सेवन से मध्यप्रदेश में एक-एक करके जब 16 बच्चों की मौत हो गई, तब राज्य की मोहन यादव सरकार ने अपने अमले की खबर लेना शुरू किया है. छोटे मुलाज़िमों के खिलाफ कार्रवाई करके यह जताना शुरू किया है कि वह इस मामले में गंभीर है और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. जबकि हकीकत यह है कि कफ सिरप से किडनी फेल होने के मामलों की शुरुआत एक माह पहले 2 सितंबर को ही हो गई थी, जब 4 साल के शिवम राठौड़ की मौत हुई. लेकिन प्रशासन ने इसे सामान्य घटना मानकर नजरअंदाज कर दिया. इसके बाद, जब 15 दिन के भीतर 6 बच्चों की किडनी फेल होने से मौत हुई, तब जाकर प्रशासन को पहली बार यह भनक लगी कि छिंदवाड़ा के परासिया ब्लॉक में कुछ गलत हो रहा है. आनन-फानन में 20 सितंबर को परासिया सिविल अस्पताल में एक अलग वॉर्ड तो बना दिया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. सवाल यह है कि एक ही इलाके में एक ही पैटर्न से हो रही बच्चों की मौतों पर स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय प्रशासन को सचेत होने में इतना वक्त क्यों लगा? योगेश पांडे ने अपनी रिपोर्ट में यह सवाल उठाया है. बहरहाल, किडनी फेल होने के कारण बच्चों की मौत की जांच के बीच मध्यप्रदेश सरकार ने सोमवार को खाद्य एवं औषधि प्रशासन के दो ड्रग इंस्पेक्टरों और एक उप निदेशक को निलंबित कर दिया है. जबकि राज्य के ड्रग कंट्रोलर, दिनेश मौर्य का तबादला कर दिया गया है. यह फैसला मुख्यमंत्री यादव द्वारा ली गई एक बैठक में लिया गया. बाद में दिन में, मुख्यमंत्री यादव ने मृतक बच्चों के परिजनों से मिलने के लिए परासिया का दौरा किया. मुख्यमंत्री ने कहा कि बच्चों की दुखद मौत के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
अधिकारियों ने रविवार को बताया कि पुलिस ने 14 बच्चों की मौत की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है. उल्लेखनीय है कि रविवार को छिंदवाड़ा के डॉ. प्रवीण सोनी को गिरफ्तार किया गया था और कोल्ड्रिफ कफ सिरप बनाने वाली कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. मृत बच्चों में से 11 परासिया उपखंड से, दो छिंदवाड़ा शहर से और एक चौरई तहसील से थे. अधिकारियों के अनुसार, आठ बच्चों का इलाज नागपुर में चल रहा है - चार सरकारी अस्पताल में, एक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में, और तीन निजी सुविधाओं में.
उत्तराखंड में दो सिरप पर प्रतिबंध : नरेंद्र सेठी के अनुसार, कई राज्यों में कफ सिरप से मौतों के मामले सामने आने के बाद उत्तराखंड सरकार ने दो कफ सिरप कोल्ड्रिफ और डेक्सट्रोमेथॉर्फ़न हाइड्रोब्रोमाइड युक्त सिरप की बिक्री पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिया है.
भारतीय आईटी क्षेत्र में हजारों बेरोजगार, नौकरियों में कटौती : एआई युग के लिए पुनर्गठन
भारत में हजारों आईटी कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं. ये छंटनी टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसे घरेलू दिग्गजों के साथ-साथ एक्सेंचर, ओरेकल, आईबीएम और कैपजेमिनी जैसी वैश्विक फर्मों में भी हुई है. कंपनियों का कहना है कि वे खुद को एआई (AI), क्लाउड और उत्पाद-केंद्रित सेवाओं के लिए नया रूप दे रही हैं. हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि इसके पीछे गहरे कारण हैं.
विस्मय बसु की रिपोर्ट के अनुसार, छंटनी बढ़ने के बावजूद, भारतीय आईटी क्षेत्र देश की निर्यात अर्थव्यवस्था का एक मज़बूत स्तंभ बना हुआ है. 2023-24 में, भारत का आईटी और आईटीईएस निर्यात लगभग 199 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जो कुल निर्यात (778.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का 25.6% था. 2024-25 के लिए, निर्यात 224 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो कुल अनुमानित निर्यात (824.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का लगभग 27% होगा.
कंपनियों ने इन छंटनियों के लिए विभिन्न कारण बताए हैं. टीसीएस ने “भविष्य के लिए तैयार और फुर्तीला बनने के लिए संगठनात्मक पुनर्गठन” के लिए अपनी लगभग 2% वर्कफ़ोर्स यानी 12,000 भूमिकाओं में कटौती की. इंफोसिस ने “अस्थिर मांग के बीच वर्कफ़ोर्स ऑप्टिमाइजेशन” के लिए वित्तीय वर्ष 2024 में 25,994 कर्मचारियों को नौकरी से निकाला. विप्रो ने “लागत दक्षता और उत्पादकता” में सुधार के लिए 24,516 नौकरियों को समाप्त कर दिया. इसी तरह, टेक महिंद्रा ने 10,669, एचसीएलटेक ने 8,080, और ओरेकल इंडिया ने 100 से अधिक पदों में कटौती की. एक्सेंचर की वैश्विक कटौती का भारत पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, जिसका उद्देश्य “एआई और डिजिटल परिवर्तन में पुनर्निवेश” करना था.
विश्लेषकों का कहना है कि यह कहानी गहरी है. 2021-22 में भर्ती में तेज़ी के बाद, वैश्विक मांग धीमी हो गई है. कई परियोजनाएं धीमी कर दी गईं या टाल दी गईं. ऑटोमेशन और एआई ने दोहराए जाने वाले कार्यों को बदलना शुरू कर दिया है. ग्राहक अब आउटसोर्सिंग से हटकर परिणाम-आधारित मॉडल की ओर जा रहे हैं.
इसके अलावा, वियतनाम, फिलीपींस और अफ्रीका के कुछ हिस्सों जैसे कम लागत वाले नए केंद्र अब सरल सेवाओं का अधिग्रहण कर रहे हैं. कई भूमिकाओं के लिए अब क्लाउड, एआई और डेटा कौशल की आवश्यकता है, जो मौजूदा वर्कफ़ोर्स के एक बड़े हिस्से के पास अभी तक नहीं हैं. यह प्रवृत्ति केवल भारत तक ही सीमित नहीं है; इसका वैश्विक प्रभाव है, क्योंकि माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल और सेल्सफोर्स जैसे अन्य तकनीकी दिग्गजों ने भी 2024-25 में हजारों नौकरियों में कटौती की है.
नैसकॉम ने चेतावनी दी है कि यह क्षेत्र एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है. एआई को लगातार अपनाने से नियमित और मध्य-स्तर की भूमिकाएं सिकुड़ेंगी. श्रम अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बड़े पैमाने पर रीस्किलिंग (पुनः कौशल) के बिना सैकड़ों-हजारों मध्य-स्तर की तकनीकी नौकरियां गायब हो सकती हैं.
आने वाले कुछ साल भारत के आईटी क्षेत्र की परीक्षा लेंगे. नियमित भूमिकाएं और सिकुड़ सकती हैं, लेकिन एआई आर्किटेक्चर, डिजाइन और उत्पाद विकास में नई भूमिकाएं विस्थापित श्रमिकों को समायोजित कर सकती हैं — यदि रीस्किलिंग की गति बनी रहे. यह क्षेत्र ढह नहीं रहा है; बल्कि ‘एआई’ युग के लिए पुनर्गठन कर रहा है.
बांग्लादेश: जन-विद्रोह के बाद निर्वासित नेता तारिक रहमान ऐतिहासिक चुनाव के लिए लौटेंगे
बांग्लादेश के अगले प्रधानमंत्री माने जा रहे तारिक रहमान ने दो दशकों के विदेश निर्वासन के बाद देश लौटकर ऐतिहासिक चुनाव लड़ने की घोषणा की है. बीबीसी बांग्ला के मीर सब्बीर को दिए अपने पहले आमने-सामने के इंटरव्यू में, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यकारी अध्यक्ष रहमान ने कहा, “समय आ गया है, ईश्वर ने चाहा तो मैं जल्द ही लौटूंगा.”
फरवरी में होने वाले चुनावों में बीएनपी को सबसे आगे माना जा रहा है, और अगर पार्टी जीतती है तो रहमान के देश का नेतृत्व करने की उम्मीद है. यह चुनाव बांग्लादेश के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं, क्योंकि यह 2024 में हुए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के बाद हो रहे हैं, जिसमें तीन बार की प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था.
संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं के अनुसार, 2024 के अशांति में 1,400 तक लोग मारे गए थे. भारत में शरण लेने वाली शेख हसीना पर सत्ता में रहते हुए मानवता के खिलाफ किए गए अपराधों के लिए उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चल रहा है.
रहमान 2008 से लंदन में रह रहे हैं. बीएनपी और अन्य विरोधियों को 15 साल के शासन के दौरान शेख हसीना की अवामी लीग ने कुचल दिया था. हसीना के हटने के बाद रहमान को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया. नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने अवामी लीग पर तब तक राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है जब तक कि उसके नेताओं का मुकदमा खत्म नहीं हो जाता.
अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी की अनुपस्थिति में, कई लोगों का अनुमान है कि बीएनपी को चुनाव में आरामदायक बढ़त मिलेगी. रहमान की 80 वर्षीय मां, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया बीमार हैं और अभियान में सक्रिय भूमिका निभाने की संभावना नहीं है.
इस बीच, देश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी, जमात-ए-इस्लामी ने पिछले एक साल में कुछ ज़मीन हासिल की है. हालांकि, रहमान को नहीं लगता कि छात्र संघ के नतीजों का आम चुनाव पर कोई असर पड़ेगा.
शेख हसीना के दिल्ली में शरण लेने के बाद बांग्लादेश के सबसे बड़े पड़ोसी भारत के साथ संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं. बांग्लादेश ने उनकी गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है और उनके प्रत्यर्पण की मांग की है. भारत ने अभी तक आधिकारिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. रहमान ने कहा, “अगर वे (भारत) एक तानाशाह को शरण देकर बांग्लादेशी लोगों को नाराज़ करना चाहते हैं, तो हम इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते.”
एवरेस्ट के पास बर्फीले तूफान में फंसे हाइकर्स, बचाव कार्य जारी
माउंट एवरेस्ट के पास अचानक आए बर्फीले तूफान में फंसे हाइकर्स ने हाइपोथर्मिया का अनुभव करने की दर्दनाक कहानियां साझा की हैं, जबकि बचाव दल अभी भी दर्जनों लोगों को निकालने में जुटे हुए हैं. चीनी सरकारी मीडिया के अनुसार, इस घटना में कम से कम एक हाइकर की मौत हो गई है और 200 से अधिक लोग अभी भी तिब्बत में एवरेस्ट के पूर्वी ढलानों पर फंसे हुए हैं.
यह बर्फबारी शुक्रवार शाम को शुरू हुई और सप्ताहांत में तेज़ हो गई. सैकड़ों स्थानीय ग्रामीणों और बचाव कर्मियों को 4,900 मीटर (16,000 फीट) से अधिक की ऊंचाई पर स्थित इस क्षेत्र में पहुंच को अवरुद्ध करने वाली बर्फ को हटाने के लिए तैनात किया गया है. अब तक 350 लोगों को सुरक्षित निकालकर पास के कुडांग कस्बे में पहुंचाया गया है.
प्रकृति फोटोग्राफर डोंग शुचांग उन सैकड़ों पर्यटकों में से थे जो चीन के ‘गोल्डन वीक’ की छुट्टियों के दौरान इस क्षेत्र में आए थे. उन्होंने बताया, “बिजली और गरज के साथ तूफान रुक नहीं रहा था. बर्फबारी इतनी भारी थी कि मैं मुश्किल से सो पाया.” उनके समूह के कई लोगों में हाइपोथर्मिया के लक्षण दिखाई दिए. उन्होंने कहा, “मैंने एक दर्जन से ज़्यादा बार हिमालय की यात्रा की है, लेकिन ऐसा मौसम कभी अनुभव नहीं किया.”
एक अन्य हाइकर चेन गेशुआंग ने कहा कि जब उनके समूह ने वापसी शुरू की तो बर्फ लगभग एक मीटर गहरी थी. उन्होंने कहा, “हम सभी अनुभवी हाइकर्स हैं, लेकिन इस बर्फीले तूफान से निपटना बेहद मुश्किल था. मैं बहुत भाग्यशाली थी कि बाहर निकल पाई.”
अक्टूबर का महीना आमतौर पर साफ आसमान और अनुकूल तापमान प्रदान करता है, जिससे यह माउंट एवरेस्ट क्षेत्र में पदयात्रा के लिए पसंदीदा महीनों में से एक है. यह तूफान चीन के राष्ट्रीय दिवस की छुट्टियों के दौरान आया, जो स्थानीय पर्यटन के लिए एक चरम मौसम होता है. इस क्षेत्र में इस समय चरम मौसम का सामना करना पड़ रहा है. पड़ोसी देश नेपाल भी मूसलाधार बारिश और बाढ़ से जूझ रहा है, जिसमें कम से कम 47 लोगों की मौत हो गई है.
हार्वर्ड के शोधकर्ताओं ने पारंपरिक भारतीय चित्रों में इस्तेमाल होने वाले रंगों का रहस्य उजागर किया

18वीं-19वीं सदी की एक राजस्थानी लघु चित्रकला, जिसमें राक्षसों को एक यज्ञ में बाधा डालते हुए दिखाया गया है, न केवल रामायण का एक दृश्य है, बल्कि 1800 के दशक में वैश्विक व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक स्नैपशॉट भी है. इस पेंटिंग में इस्तेमाल प्रमुख रंग ‘प्रशियन ब्लू’ है, जिसका आविष्कार 1706 के आसपास बर्लिन में हुआ था और इसे एशिया में निर्यात किया गया था. वहीं, इसमें इस्तेमाल ‘इंडियन येलो’ एक स्थानीय रंग था, जो कभी बिहार में केवल आम के पत्ते खाने वाली गायों के मूत्र से बनाया जाता था.
हार्वर्ड विश्वविद्यालय की ‘मैपिंग कलर इन हिस्ट्री’ पहल ने इस तरह के 200 से अधिक दक्षिण एशियाई और हिमालयी चित्रों में उपयोग किए गए रंगों की रासायनिक संरचना का खुलासा किया है. स्क्रोल में विजयश्री वेंकटरमन की रिपोर्ट के अनुसार, यह पहल कंज़र्वेटर, कंप्यूटिंग विशेषज्ञों और कला इतिहासकारों के बीच एक महाद्वीपीय सहयोग का उत्पाद है, जो रंग के माध्यम से इतिहास को पढ़ने का एक नया तरीका प्रदान करता है.
इसकी शुरुआत एक पहेली से हुई जब 2016 में एक 15वीं सदी की जैन पांडुलिपि में कोबाल्ट पाया गया, जबकि यह माना जाता था कि कोबाल्ट-युक्त नीला रंग यूरोप से 17वीं सदी में एशिया आया था. बाद में, हार्वर्ड के वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि यह कोबाल्ट ईरान की एक खदान से आया था, जिससे यह साबित हुआ कि रंगों का व्यापार केवल यूरोप से एशिया तक ही नहीं था.
इस परियोजना का एक महत्वपूर्ण पहलू जीवित परंपराओं का दस्तावेजीकरण करना है. टीम ने जयपुर के पुरस्कार विजेता लघु चित्रकार बाबूलाल मारोठिया की कार्यशाला का दौरा किया. मारोठिया के पैलेट के विश्लेषण से पता चला कि उनके आधे से ज़्यादा रंग 16वीं सदी की पांडुलिपियों में पाए जाने वाले रंगों से मेल खाते हैं, जैसे हरिताल (पीला) और हिंगलू (लाल).
इस पहल का उद्देश्य भारत में संग्रहालयों को भी लाभ पहुँचाना है. अधिकांश भारतीय संग्रहालयों में विश्लेषण के लिए महंगे उपकरण नहीं होते हैं. इसलिए, ‘मैपिंग कलर इन हिस्ट्री’ ने एक ‘मोबाइल हेरिटेज लैब’ स्थापित की है, जो पोर्टेबल उपकरणों से लैस है. इस लैब का उपयोग मुंबई की एशियाटिक सोसाइटी और जयपुर के सिटी पैलेस संग्रहालय में पुरानी पांडुलिपियों का विश्लेषण करने के लिए किया जा चुका है. यह परियोजना न केवल कला के वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ को समझने में मदद कर रही है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए इन कलाकृतियों के बेहतर संरक्षण का मार्ग भी प्रशस्त कर रही है.
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