07/11/2025: आरके सिंह के बाग़ी तेवर | बिना कारण बताये गिरफ्तारी गलत | वोट का अधिकार मौलिक नहीं, केंद्र ने कहा | प्रदूषण वृद्धि में इंडिया नंबर 1 | नास्तिकों का जमावड़ा | हसीना नहीं मानेगी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
आरके सिंह का ‘अडानी बम’, भाजपा से बग़ावती तेवर
राहुल का ‘वोट चोरी से जमीन चोरी’ तक वार
रिकॉर्ड वोटिंग के पीछे पीके का ‘प्रवासी फैक्टर’
बंगाल में वोटर लिस्ट का ‘जानलेवा’ तनाव
गिरफ्तारी के कारण बताना अब लिखित में अनिवार्य
वोटर लिस्ट में झोल तो है, पर वोट किधर गया
वोट का अधिकार मौलिक नहीं, केंद्र की नई दलील
प्रदूषण वृद्धि में भारत अब सबसे आगे
41 साल पुराने केस में पूर्व अफसर को ‘सुप्रीम’ राहत
दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक खुद ‘आईसीयू’ में
दिल्ली के आसमान में विमानों से ‘जीपीएस’ धोखाधड़ी
पूर्वोत्तर की एकजुट आवाज ‘वन नॉर्थईस्ट’
कोलकाता में नास्तिकों का अनोखा जमावड़ा
नए नियमों से पवन ऊर्जा वालों की ‘हवा टाइट’
न्यूयॉर्क की जीत पर मुंबई में ‘खान’ वाली नफरत
बांग्लादेशी घुसपैठ के आरोपी बीजेपी नेता को जमानत
भारत में अमीर और अमीर, गरीब और बेहाल
सत्ता से बाहर शेख हसीना की चुनावी हुंकार
जेल में बंद सांसद राशिद पर जजों की राय बंटी
बिहार
अडानी पर बोलने के लिए चाहे तो निकाल दें मुझे पार्टी से, आर के सिंह के बाग़ी तेवर
2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी टिकट पर आरा से हारने के बाद से भाजपा नेतृत्व के साथ मतभेद रखने वाले पूर्व केंद्रीय बिजली मंत्री आर. के. सिंह ने अब आरोप लगाया है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा भागलपुर में अडानी पावर को थर्मल प्लांट के आवंटन में राज्य के खजाने को “62,000 करोड़ रुपये” का नुकसान हुआ है.
“द इंडियन एक्सप्रेस” को दिए एक साक्षात्कार में, सिंह ने कहा कि जब वह बिजली मंत्री थे, तो उन्होंने उद्योग विशेषज्ञों के साथ मिलकर यह आकलन किया था कि भागलपुर में 2,400 मेगावाट की पीरपैंती बिजली परियोजना लगभग 24,900 करोड़ रुपये की थी, जिसका अनुमानित खर्च 10 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट था.
सिंह ने कहा, “मुझे पता चला कि बिजली परियोजना को 15 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट की निश्चित पूंजी लागत पर आवंटित किया जा रहा है. 10 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट पूंजी लागत के आधार पर बिजली की कीमत लगभग 2.75 रुपये प्रति यूनिट आती थी, लेकिन हमने बिजली कंपनी को 4.16 रुपये प्रति यूनिट पर भुगतान करने के लिए सहमति दे दी है. इससे सालाना लगभग 2,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान होगा. चूंकि समझौता 25 वर्षों के लिए है, इसलिए राज्य के खजाने को अनुमानित नुकसान लगभग 62,000 करोड़ रुपये होगा.”
72 वर्षीय सिंह ने इस बात से इनकार किया कि उनके आरोप विधानसभा चुनावों से जुड़े हैं, “या मेरी पार्टी के साथ मेरे तथाकथित खराब संबंधों से.” पूर्व भाजपा सांसद ने संतोष सिंह से कहा कि उन्होंने इस मुद्दे को नीतीश सरकार के सामने उठाया था, “लेकिन बिना किसी प्रतिक्रिया के.” उन्होंने कहा, “अगर मैं गलत हूं, तो वे मुझे ठीक करें. लेकिन केंद्रीय बिजली मंत्री के रूप में सात साल के अपने अनुभव से, मैं जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूं कि इस परियोजना की समीक्षा की आवश्यकता है.”
सिंह ने कहा कि उनके आरोपों का विधानसभा चुनावों या पार्टी से उनके खराब संबंधों से कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने कहा, “इसका (भाजपा की) बिहार चुनाव प्रचार समिति से मुझे बाहर रखे जाने से भी कोई लेना-देना नहीं है. ये सब कहने के लिए वे (नेतृत्व) मुझे पार्टी से निलंबित या निष्कासित करने के लिए भी स्वतंत्र हैं.”
यह कहते हुए कि वह केवल “उन चीजों के बारे में बोल रहे हैं जिन्हें वह अच्छी तरह से समझते हैं”, पूर्व मंत्री ने कहा: “मैं यह सब अब इसलिए बता रहा हूं, क्योंकि मुझे हाल ही में इसके बारे में पता चला है. कुछ ऊर्जा विशेषज्ञों ने मुझे बस दो दिन पहले ही इसके बारे में आगाह किया था.”
उल्लेखनीय है कि सिंह के बिजली परियोजना को लेकर ये आरोप उनके द्वारा भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल से जन सुराज प्रमुख प्रशांत किशोर द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए दावों पर “सच्चाई बताने” या “पद छोड़ने” के लिए कहने के कुछ दिनों बाद आए हैं.
सिंह ने “शीर्ष भाजपा नेताओं” के साथ बढ़ते मतभेदों को स्वीकार किया और दावा किया कि उनके साथ उनका “असुविधा का भाव” तब शुरू हुआ जब वह बिजली विभाग संभाल रहे थे और उन्हें संकेत मिले थे कि वे “कुछ कंपनियों का पक्ष लेना” चाहते थे. “लेकिन मैं नियम पुस्तिका के अनुसार चला. मैंने किसी भी धांधली वाली बोली या अतिरंजित परियोजना को आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी.”
सिंह ने यह भी दावा किया कि उन्हें यह स्पष्ट था कि भाजपा नेतृत्व उन्हें 2024 का चुनाव जीतते हुए नहीं देखना चाहता था, और सीट से पूर्व आरा सांसद मीना सिंह या उनके बेटे के फिर से प्रवेश का पक्षधर था. उन्होंने कहा, “बूथ एजेंटों ने मेरे खिलाफ काम किया. जब भोजपुरी गायक पवन सिंह (आर के सिंह की तरह एक राजपूत) ने आरा से सटी कराकाट सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया, तो मैंने शीर्ष भाजपा नेताओं से उन्हें रोकने का अनुरोध किया, क्योंकि वह मेरे वोट आधार को विभाजित कर सकते थे. लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया... मैंने अपनी हार के बाद प्रधानमंत्री से मुलाकात की और महत्वपूर्ण कार्य सौंपने के लिए बस उन्हें धन्यवाद दिया.”
प्रशांत किशोर के आरोपों के बाद चौधरी के संबंध में अपनी टिप्पणियों पर, सिंह ने कहा- “मैंने किसी व्यक्ति को निशाना नहीं बनाया. मैंने केवल यह कहा कि सम्राट को प्रशांत किशोर के आरोपों का जवाब देना चाहिए. सम्राट को यह बताना चाहिए था कि क्या उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला लंबित है. मैंने बाद में मतदाताओं से अपील की कि वे सम्राट सहित ऐसे किसी भी उम्मीदवार को वोट न दें, जिसका अतीत संदिग्ध हो.”
भाजपा नेता सिंह ने कहा कि उन्होंने हमेशा खुलकर बात की है. उन्होंने कहा, “एक नौकरशाह के रूप में अपने दिनों से ही, मैंने सच को सच कहा. मैंने अपने पहले कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अधीन भी एक प्रमुख नौकरशाह के रूप में सेवा की. मैं नीतीश को भी अपने मन की बात बताता था.”
खेसारी यदि भाजपा के खिलाफ न लड़ते तो क्या तब भी जारी होता ‘अवैध निर्माण’ का नोटिस?
भोजपुरी अभिनेता खेसारी लाल यादव का यह मामला इस बात को दर्शाता है कि भारत के तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले राज्य बिहार में चुनाव जीतने के लिए भारतीय जनता पार्टी और उसके पूरे तंत्र को क्या-क्या नहीं करना पड़ रहा है. राज्य के 121 विधानसभा क्षेत्रों के लिए मतदान हो चुका है. पहले चरण की इन सीटों में छपरा भी है, जहां से आरजेडी के उम्मीदवार खेसारी लाल यादव मैदान में हैं. अब वे अपनी सीट से मुक्त होकर राज्य के बाकी इलाकों में महागठबंधन के प्रचार-प्रसार में जुट गए हैं, लेकिन इसी बीच महाराष्ट्र से खबर है कि मुंबई के उपनगरीय इलाके में स्थित मीरा भायंदर नगर निगम (एमबीएमसी) ने खेसारी को नोटिस जारी किया है. छपरा में मतदान से तीन दिन पहले यह नोटिस मीरा रोड स्थित उनके आवास पर कथित अवैध निर्माण को लेकर दिया गया है. याद रहे कि महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार है और खेसारी बिहार में उसके खिलाफ लड़ रहे हैं. आरजेडी के सांसद मनोज झा ने “एक्स” पर @BJP4India को लिखा-“वक्त तो सही चुन लेते कम से कम या इत्ती सी भी हया नहीं है.
एमबीएमसी के अनुसार, नोटिस यादव के घर पर लोहे के एंगल और टीन-शीट शेड की अनधिकृत स्थापना से संबंधित है. एमबीएमसी के एक अधिकारी ने कहा कि इन अवैध निर्माणों को हटाने का निर्देश दिया गया है. यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो अतिक्रमण विभाग नगरपालिका कानूनों के अनुसार कार्रवाई करेगा और तोड़फोड़ का खर्च मालिक से वसूला जाएगा. सवाल इस बात का है कि नगर निगम को अवैध निर्माण अभी क्यों दिखा? जब यह किया गया या किया जा रहा था, तब नगर निगम का अमला क्या कर रहा था? तब क्यों नोटिस जारी नहीं हुआ? और, बड़ा सवाल ये भी कि यदि खेसारी चुनाव मैदान में भाजपा के खिलाफ नहीं उतरते तो क्या तब भी उनको “अवैध निर्माण” का नोटिस दिया जाता? भोजपुरी सुपरस्टार यादव छपरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं— जो 2015 से भाजपा का गढ़ रही है. राजनीतिक अनुभव की कमी के बावजूद, यादव भावनात्मक और लोकलुभावन कथानकों का उपयोग करके भाजपा की चुस्त प्रचार मशीनरी को हिलाने में कामयाब रहे हैं. वह भाजपा पर “गरीबी और अपमान के लिए लोगों के विश्वास का व्यापार करने” का आरोप लगाते हुए हमला करते हैं, और पार्टी पर गरीब और प्रवासी मजदूरों की बदहाली पर मोटा होने का आरोप लगाते हैं. उन्होंने बीजेपी की मंदिर-मस्जिद की राजनीति पर भी गहरे तंज़ कसे हैं.
राहुल गांधी ने बिहार में ‘वोट चोरी’ और महाराष्ट्र में ‘ज़मीन चोरी’ को जोड़कर मोदी और भाजपा पर साधा निशाना
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने शुक्रवार को ‘वोट चोरी’ और ‘ज़मीन चोरी’ के बीच संबंध जोड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाया. द टेलीग्राफ़ इंडिया के ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, राहुल ने अपने भाषणों और सोशल मीडिया पोस्ट में दो घटनाओं का ज़िक्र किया, जो दोनों बुधवार को हुईं.
बिहार के बांका में एक रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने बिना किसी का नाम लिए कहा, “मुझे कल पता चला कि दिल्ली में वोट डालने वाले भाजपा नेताओं ने बिहार चुनाव के पहले चरण में भी मतदान किया.” राहुल का यह हमला तब सामने आया जब यह पता चला कि पूर्व राज्यसभा सांसद और दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक राकेश सिन्हा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में मतदान करने के नौ महीने बाद बुधवार को बेगूसराय के मनसेरपुर में अपना वोट डाला. आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों ने सोशल मीडिया पर सवाल उठाए. बाद में सिन्हा ने अपने बेगूसराय के पते वाला मतदाता पहचान पत्र साझा करते हुए कहा कि उन्होंने दिल्ली की मतदाता सूची से अपना नाम हटवा दिया था.
राहुल गांधी ने शुक्रवार को कहा, “हरियाणा के दो करोड़ मतदाताओं में से 29 लाख मतदाता फ़र्ज़ी हैं. भाजपा ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और हरियाणा में ‘वोट चोरी’ की और अब वे इसे बिहार में दोहराने की कोशिश कर रहे हैं.”
दूसरी घटना महाराष्ट्र की है, जहां मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के बेटे से जुड़ी एक कंपनी के साथ हुए ज़मीन सौदे में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है. राहुल गांधी ने इस मामले का ज़िक्र करते हुए शुक्रवार को अपने एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में पूछा, “मोदी जी, आपकी चुप्पी बहुत कुछ कहती है. क्या आप इसलिए चुप हैं क्योंकि आपकी सरकार को उन्हीं लुटेरों के समर्थन की ज़रूरत है जिन्होंने दलितों और वंचितों के अधिकार छीने हैं?”
यह मामला पुणे के मुंढवा इलाके में 1,800 करोड़ रुपये की एक ज़मीन से जुड़ा है, जिसे महार वतन भूमि के रूप में वर्गीकृत किया गया है. यह महार समुदाय की वंशानुगत संपत्ति है, जिसे सरकार की मंज़ूरी के बिना बेचा नहीं जा सकता. राहुल ने लिखा, “महाराष्ट्र में दलितों के लिए आरक्षित 1,800 करोड़ रुपये का एक भूखंड उपमुख्यमंत्री के बेटे की कंपनी को महज़ 300 करोड़ रुपये में बेच दिया गया. सौदे पर स्टांप शुल्क भी हटा दिया गया. यह उस सरकार द्वारा की गई ज़मीन की चोरी है जो वोट चोरी के माध्यम से बनी थी. वे जानते हैं कि वे लोगों से कितना भी लूट लें, वे वोट चोरी के माध्यम से सत्ता में वापस आ जाएंगे.”
बिहार में रिकॉर्ड वोटिंग: क्या एसआईआर से बढ़ा मतदान प्रतिशत?
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 121 पर पहले चरण का मतदान पूरा हो गया है. भारतीय चुनाव आयोग (ECI) द्वारा गुरुवार रात 8:30 बजे तक जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, इन सभी विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर कुल 64.66% मतदान हुआ. यह आंकड़ा इन विधानसभा क्षेत्रों में 2024 के लोकसभा चुनाव या 2020 के विधानसभा चुनावों की तुलना में क्रमशः 9.3 और 8.8 प्रतिशत अंक अधिक है. वास्तव में, यह 2010 के राज्य चुनावों के बाद से बिहार में किसी भी राज्य या राष्ट्रीय चुनाव में सबसे अधिक मतदान प्रतिशत है. 2010 के बाद से ही हमारे पास तुलनात्मक विधानसभा क्षेत्रों की सीमाएं और सीट-स्तरीय मतदान के आंकड़े उपलब्ध हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स ने 1 अगस्त को जारी एसआईआर मतदाता सूची के मसौदे के अपने विश्लेषण में इस संभावना को सूचीबद्ध किया था. बेशक, इसका पूरी निश्चितता के साथ पता नहीं लगाया जा सकता है, क्योंकि चुनाव आयोग मतदान करने वाले मतदाताओं की पहचान का विवरण प्रकाशित नहीं करता है. यह भी सच है कि बिहार का मतदाता प्रतिशत प्रमुख राज्यों में सबसे कम रहा है, जिससे यह पता चलता है कि एसआईआर से पहले की सूचियों में कई व्यक्ति सक्रिय मतदाता नहीं थे.
हालांकि, मतदान प्रतिशत में इस प्रभावशाली वृद्धि को सीधे तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. ऐसा इसलिए है क्योंकि चुनाव आयोग द्वारा किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) अभियान के बाद बिहार की मतदाता सूची में एक महत्वपूर्ण गिरावट आई थी. राज्य में 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद और एसआईआर के बाद की अंतिम सूची के बीच कुल 30.7 लाख मतदाताओं की शुद्ध कमी देखी गई, जिससे कुल मतदाताओं की संख्या में 4% की कमी आई. जिन 121 सीटों पर गुरुवार को मतदान हुआ, वहां 2024 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 15.3 लाख मतदाता या 3.9% कम हुए.
लेकिन, नवीनतम मतदान आंकड़ों से एक और महत्वपूर्ण बात सामने आती है. ECI ने इन 121 विधानसभा क्षेत्रों के लिए कुल पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 3.751 करोड़ बताई थी, जो एसआईआर की अंतिम सूची के 3.737 करोड़ के आंकड़े से 0.4% अधिक है. इसका मतलब है कि आज के चरण के मतदान में 2.43 करोड़ मतदाताओं ने अपना वोट डाला है. यह संख्या उन 2.155 करोड़ मतदाताओं से कहीं ज़्यादा है, जिन्होंने 2024 के लोकसभा चुनावों में इन सीटों पर मतदान किया था.
इस तुलना से सबसे बड़ा निष्कर्ष यह निकलता है कि बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर की प्रक्रिया से मतदान करने वालों की कुल संख्या में कोई कमी नहीं आई है. यह इस तर्क को सैद्धांतिक समर्थन देता है कि एसआईआर ने ज़मीन पर मौजूद वास्तविक मतदाताओं की एक महत्वपूर्ण संख्या को बाहर नहीं किया, और सूची से हटाए गए नाम बड़े पैमाने पर उन मतदाताओं के थे जो या तो पलायन कर चुके थे या एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत थे, और इसलिए वे वैसे भी अतीत में मतदान नहीं करते थे.
इसकी पुष्टि के लिए पिछले चुनावों के आंकड़ों को देखा जा सकता है. 2010 और 2015 के विधानसभा चुनावों के बीच, इन 121 सीटों पर मतदाताओं की संख्या में 21.7% की वृद्धि हुई और वोट डालने वालों की संख्या में 30.5% की वृद्धि हुई. 2015 और 2020 के चुनावों के बीच, मतदाताओं और वोट डालने वालों की संख्या लगभग एक ही गति से बढ़ी: क्रमशः 9.2% और 9.5%. इस बार 2025 के चुनाव में, वोट डालने वालों की संख्या में 17.1% की वृद्धि हुई, जबकि मतदाताओं की कुल संख्या में केवल 1.1% की वृद्धि हुई. इसका मतलब है कि मतदाताओं की संख्या में धीमी वृद्धि के बावजूद, वोट डालने वालों की संख्या पहले की तरह ही बढ़ी.
चुनाव आयोग पर पक्षपात के जो आरोप लगे, वे तो लगे ही, साथ ही दूरदर्शन न्यूज ने ये ट्वीट किया है. सरकारी मीडिया किस कदर तक बेशर्म हो सकता है, उसकी नई मिसाल कायम की जा रही है.
प्रशांत किशोर ने बताए रिकॉर्ड वोटिंग के दो कारण
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर का मानना है कि इस बार बिहार में हुए रिकॉर्ड मतदान के पीछे दो मुख्य कारण हैं और उन्हें उम्मीद है कि इस बढ़े हुए मतदान का सीधा असर उनकी पार्टी की किस्मत पर पड़ेगा. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, किशोर ने मतदान के आंकड़ों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “आज़ादी के बाद हुए चुनावों में, यह बिहार में अब तक का सबसे अधिक मतदान प्रतिशत है.”
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, गुरुवार को 18 ज़िलों के 121 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान समाप्त होने पर, मतदाता उपस्थिति 64.66% तक पहुंच गई, जो 2020 के विधानसभा चुनावों में दर्ज 57.29% से एक बड़ी छलांग है और 1951 के बाद से सबसे ज़्यादा है.
प्रशांत किशोर ने कहा, “यह दो बातें दिखाता है - पहली, जैसा कि मैं पिछले एक-दो महीने से नहीं बल्कि पिछले कुछ सालों से कह रहा हूं, बिहार में 60 प्रतिशत से ज़्यादा लोग बदलाव चाहते हैं.” उनके अनुसार, मतदाताओं की भागीदारी में यह वृद्धि सार्वजनिक भावना में बदलाव को दर्शाती है. उन्होंने कहा, “पिछले 25-30 सालों से, चुनावों के प्रति एक तरह की उदासीनता थी क्योंकि लोगों को कोई वास्तविक राजनीतिक विकल्प नहीं दिख रहा था. जन सुराज के आने से अब लोगों के पास एक नया विकल्प है.”
किशोर ने प्रवासी मज़दूरों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला और उन्हें इस चुनाव का “एक्स फैक्टर” कहा. उन्होंने कहा, “बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर, जो छठ के बाद रुके, उन्होंने खुद वोट दिया और यह सुनिश्चित किया कि उनके परिवार के सदस्य और दोस्त भी वोट दें. इसने सभी को चौंका दिया है.” उन्होंने इस धारणा को भी चुनौती दी कि केवल महिला मतदाता ही परिणाम तय करेंगी. उन्होंने कहा, “महिलाएं महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनके अलावा, प्रवासी मज़दूर इस चुनाव के एक्स फैक्टर हैं.”
किशोर ने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी भी राजनीतिक विशेषज्ञ, पार्टी या नेता ने मतदाता मतदान में इतनी वृद्धि की भविष्यवाणी नहीं की थी. उन्होंने कहा कि चुनावी रुझानों से यह पता चलता है कि इस तरह की बड़े पैमाने पर मतदाता भागीदारी आमतौर पर निरंतरता के बजाय राजनीतिक परिवर्तन की इच्छा का संकेत देती है.
बंगाल में वोटर-लिस्ट के ‘तनाव’ से जुड़ी मौतें बढ़कर 11 हुईं
पश्चिम बंगाल में गुरुवार को दो और लोगों की मौत के बाद, उनके परिजनों ने दावा किया है कि मौत का कारण चुनाव आयोग के मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) से उत्पन्न तनाव था. द टेलीग्राफ़ इंडिया के ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ऐसी मौतों को उजागर कर रही है, जिनकी संख्या अब 11 तक पहुंच गई है, जिनमें कुछ आत्महत्याएं भी शामिल हैं.
तृणमूल कांग्रेस ने एक्स पर पोस्ट किया, “खोई हुई हर ज़िंदगी आतंक, अपमान और राज्य प्रायोजित धमकी से कुचला हुआ इंसान है. कुलपी के शहाबुद्दीन पाइक, जिनकी पत्नी का नाम 2002 की एसआईआर सूची से गायब होने के कारण दिनों के relentless मानसिक पीड़ा के बाद दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई, इस शर्मनाक प्रयोग के नवीनतम शिकार हैं.”
दक्षिण 24-परगना के कुलपी में, 45 वर्षीय शहाबुद्दीन पाइक ने गुरुवार सुबह सीने में दर्द की शिकायत की. उन्हें डायमंड हार्बर सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया गया. तृणमूल महासचिव अभिषेक बनर्जी के निर्देश पर स्थानीय विधायक और सांसद पीड़ित परिवार से मिलने अस्पताल पहुंचे. सांसद बपी हलदर ने कहा, “परिवार के सदस्यों ने हमें बताया कि वह घबराए हुए थे क्योंकि उनकी और उनकी पत्नी के नाम 2002 की एसआईआर सूची से गायब थे.”
एक अन्य घटना में, बीरभूम के सैंथिया में बिमान प्रमाणिक इस बात से चिंतित थे कि 2002 की एसआईआर मतदाता सूची में उनका नाम ग़लती से ‘पाल’ लिखा हुआ था. उनके भाई बिधान ने कहा कि उन्होंने इस बारे में बूथ स्तर के अधिकारी से भी बात की थी, लेकिन वह तनाव में थे.
इस बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को कलकत्ता में एसआईआर प्रक्रिया के खिलाफ एक विरोध रैली का नेतृत्व किया. उन्होंने अपना स्वयं का गणना फॉर्म भरने से इनकार कर दिया है. ममता ने गुरुवार को अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर लिखा, “जब तक बंगाल का हर एक मतदाता अपना फॉर्म नहीं भर देता, मैं अपना फॉर्म जमा नहीं करने जा रही हूं.”
गिरफ़्तारी के समय वजह लिखित में बताना अनिवार्य, भाषा भी ऐसी जो समझ में आए
गिरफ्तारी के समय अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से नशे में गाड़ी चलाने के आरोपी एक व्यक्ति को भले ही फायदा हुआ हो, लेकिन इसका व्यापक प्रभाव कार्यपालिका द्वारा पुलिस शक्तियों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 6 नवंबर को फैसला सुनाया कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023 और अन्य कानूनों के तहत किसी भी अपराध के लिए गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों की लिखित में और उनकी समझ में आने वाली भाषा में जानकारी दी जानी चाहिए.
अपवाद स्वरूप परिस्थितियों में, जहां तत्काल लिखित संचार अव्यावहारिक है (जैसे पुलिस के सामने किए गए अपराध), कारणों को गिरफ्तारी के समय मौखिक रूप से बताया जा सकता है, लेकिन एक उचित समय के भीतर लिखित रूप में प्रदान किया जाना चाहिए— रिमांड की कार्यवाही से कम से कम दो घंटे पहले.
हाल के मामलों, जैसे- पंकज बंसल (2024) और प्रबीर पुरकायस्थ (2024), में फैसला सुनाया था कि विशेष कानूनों (पीएमएलए, यूएपीए) के लिए गिरफ्तारी के लिखित कारण प्रदान करना अनिवार्य था, लेकिन नियमित आपराधिक अपराधों के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के बारे में अस्पष्टता थी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने सभी अपराधों के लिए लिखित संचार को अनिवार्य बनाकर और दो घंटे की न्यूनतम समय सीमा स्थापित करके इस अस्पष्टता को समाप्त कर दिया है.
सीजेआई बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन मसीह की पीठ ने फैसला सुनाया कि इन आवश्यकताओं का पालन न करने पर गिरफ्तारी और उसके बाद की रिमांड अवैध हो जाती है, जिससे गिरफ्तार व्यक्ति रिहा होने का हकदार हो जाता है.
“लाइव लॉ” के मुताबिक, कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यह केवल एक प्रक्रियात्मक औपचारिकता नहीं है, बल्कि अनुच्छेद 21 और 22(1) के तहत एक मौलिक संवैधानिक सुरक्षा है, जो गिरफ्तार लोगों को खुद का प्रभावी ढंग से बचाव करने, कानूनी सलाह लेने और रिमांड का विरोध करने में सक्षम बनाती है.
कांग्रेस ने मतदाता सूची की खामियां तो साबित कर दीं, लेकिन दो बातें सिद्ध करना बाकी
“स्क्रॉल” के आयुष तिवारी ने लिखा है कि राहुल गांधी की “हाइड्रोजन बम” प्रस्तुति जैसे खुलासों के माध्यम से कांग्रेस ने यह तो साबित कर दिया है कि मतदाता सूचियां वास्तव में बहुत खराब स्थिति में हैं, लेकिन यह “अभी तक साबित नहीं किया है कि इन सूचियों में मौजूद संदिग्ध मतदाता बूथ पर वोट डालने गए थे? और यह कि उन्होंने भाजपा को वोट दिया था?” यह भी लिखा कि राहुल गांधी ने बताया था कि हरियाणा के मुल्लाना विधानसभा क्षेत्र के दो बूथों पर 223 मतदाताओं के नाम के आगे एक ही महिला की फोटो कैसे दिखाई दी? थोड़ी सी पड़ताल कर तिवारी ने अपनी पोस्ट में यह भी बताया कि ये कौन से बूथ हैं और वास्तव में इन बूथों ने 2024 के चुनाव में प्रभावशाली ढंग से कांग्रेस की तरफ रुख किया था.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, मतदान का अधिकार, मतदान की स्वतंत्रता से अलग है
“द हिंदू” की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार ने असाधारण रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया है कि चुनाव में ‘वोट देने का अधिकार’, ‘मतदान की स्वतंत्रता’ से अलग है. एक सिर्फ वैधानिक अधिकार है, और दूसरा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है. इसमें कहा गया है कि “वोट देने का अधिकार” 1951 के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62 द्वारा प्रदत्त एक वैधानिक अधिकार है, लेकिन मतदान की स्वतंत्रता ‘संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति के अधिकार का एक प्रकार’ है.” केंद्र सरकार का यह जवाब एक याचिका के संबंध में है, जिसमें लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी गई है. यह मामला न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध था. हालांकि, पीठ बैठी नहीं, जिससे सुनवाई नहीं हो पाई. इस बीच, एक सर्वदलीय बैठक में केरल में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के कार्यान्वयन को कानूनी रूप से चुनौती देने का निर्णय लिया गया. यह निर्णय मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन की अध्यक्षता में हुई बैठक में भाजपा को छोड़कर सभी दलों द्वारा सरकार के फैसले का समर्थन करने के बाद आया है.
भारत में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में रिकॉर्ड वृद्धि
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन 2024 में 2.3% बढ़कर रिकॉर्ड 57.7 गीगाटन CO2 समकक्ष तक पहुंच गया, जिसमें भारत में उत्सर्जन में साल-दर-साल सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज की गई. भारत के बाद चीन, रूस, इंडोनेशिया और संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थान रहा. यूएन पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने चेतावनी दी कि जैसे-जैसे उत्सर्जन बढ़ना जारी है, दुनिया “जलवायु जोखिमों और क्षति के एक गंभीर वृद्धि की ओर बढ़ रही है.” “डाउन टू अर्थ” की रिपोर्ट है, “पर्यावरणविदों के अनुसार, इन निष्कर्षों के साथ-साथ यह तथ्य कि भारत 30 सितंबर की समय सीमा के भीतर अपनी कार्बन उत्सर्जन कटौती योजना प्रस्तुत करने में विफल रहा है, ब्राजील के बेलेम में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की पार्टियों के 30वें सम्मेलन (सीओपी30) में देश को जांच के दायरे में आने की उम्मीद है.” उत्सर्जन कटौती प्रतिज्ञाओं में मामूली प्रगति के बावजूद, वर्तमान वैश्विक प्रक्षेप पथ से 2100 तक पृथ्वी ग्रह के तापमान में पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2.8°C तक की वृद्धि होने का अनुमान है.
इसीलिए मोदी नहीं होंगे शामिल? : भले ही भारत पर दबाव बढ़ रहा है, ‘पीटीआई’ की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल भी पार्टियों के सम्मेलन में शामिल नहीं होंगे, इसके बजाय केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को शिखर सम्मेलन के दूसरे सप्ताह के दौरान ब्राजील के बेलेम में भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए तय किया गया है. पिछले साल भी बाकू, अज़रबैजान में जलवायु परिवर्तन-केंद्रित शिखर सम्मेलन में इनमें से किसी ने भी भारत का प्रतिनिधित्व नहीं किया था, बल्कि पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह गए थे. नई दिल्ली का बाकू शिखर सम्मेलन में अपना कोई मंडप भी नहीं था.
आरएसएस का मार्च : सरकार के आदेश पर कर्नाटक हाईकोर्ट की रोक बरकरार
कर्नाटक हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रस्तावित मार्च से पहले जारी किए गए सरकारी आदेश पर रोक हटाने से इनकार कर दिया है, जिसमें सड़कों, पार्कों और खेल के मैदानों जैसे सार्वजनिक स्थानों पर दस से अधिक लोगों के अनधिकृत जमावड़े को प्रतिबंधित किया गया था. न्यायमूर्ति एसजी पंडित और न्यायमूर्ति केबी गीता की खंडपीठ ने राज्य की अपील को खारिज कर दिया और एकल-न्यायाधीश के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसने सरकार के निर्देश पर रोक लगाई थी. अदालत ने कहा कि राज्य स्थगन को हटाने की मांग के लिए एकल न्यायाधीश के पास जाने के लिए स्वतंत्र है. जजों ने प्रतिबंधों के तर्क पर भी सवाल उठाते हुए पूछा, “अगर लोग एक साथ चलना चाहते हैं, तो क्या इसे रोका जा सकता है?” यह सवाल करते हुए कि क्या दस या अधिक व्यक्तियों के समूह को स्वचालित रूप से गैरकानूनी माना जा सकता है.
उत्तर कर्नाटक में आरएसएस को नई चुनौती: आरएसएस की बात करें तो उत्तर कर्नाटक में संगठन को ‘लाठी नहीं, प्रस्तावना (प्रिएमबल) पकड़ो’ के आव्हान के साथ एक नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि दलित और प्रगतिशील समूह उसके लाठियों के इस्तेमाल पर सवाल उठा रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि वह भगवा ध्वज के बजाय राष्ट्रीय ध्वज हाथ में ले.
गुजरात पुलिस के पूर्व अधिकारी की गिरफ्तारी पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस के सेवानिवृत्त अधिकारी कुलदीप शर्मा की 41 साल पुराने मामले में गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है, जिसमें भुज की एक अदालत ने उन्हें एक स्थानीय पुलिस स्टेशन में एक व्यक्ति को स्वेच्छा से चोट पहुंचाने और अवैध रूप से कैद करने का दोषी ठहराया था. संयोग से, तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने शर्मा पर मुकदमा चलाने की मंजूरी 2012 में दी थी, अमित शाह को सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में जमानत मिलने के दो साल बाद, जिसमें शर्मा ने खुद पुलिस की कथित भूमिका पर रेड फ्लैग उठाए थे. “स्क्रॉल” ने यह रिपोर्ट दी है.
पंजाब: छात्रों के विरोध के सामने केंद्र को झुकना पड़ा, आदेश को लागू करने से रोका
पिछले सप्ताह केंद्र सरकार के अपने शिक्षा संस्थान की व्यवस्था में बदलाव करने वाले आदेश का पंजाब विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा अभूतपूर्व विरोध किए जाने के बाद केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने आदेश का क्रियान्वयन रोक दिया है. इस विरोध प्रदर्शन को राजनेताओं और किसानों का भी समर्थन मिला था. नितिन जैन के अनुसार छात्रों के विरोध के बाद पंजाब भाजपा के नेताओं ने पार्टी ‘हाईकमान’ को बताया कि इस प्रतिक्रिया से 11 नवंबर के तरनतारन उपचुनाव के साथ-साथ 2027 के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी की संभावनाओं पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. इस आदेश ने, अन्य बातों के अलावा, विश्वविद्यालय सीनेट की संख्या 90 से घटाकर 31 कर दी थी और संस्थान को “राजनीतिकरण से मुक्त करने” और निर्णय लेने को ‘सुव्यवस्थित’ करने के प्रयास में राज्य के मुख्य और शिक्षा सचिवों जैसे अतिरिक्त पदेन सदस्यों को शामिल किया था. पंजाब विश्वविद्यालय की छात्र नेता साराह ने इस मुद्दे को विस्तार से समझाया है.
कांग्रेस नेता ने बूटा सिंह को ‘काला सिख’ बोल दिया: तरनतारन उपचुनाव से पहले कांग्रेस भी मुश्किल में पड़ सकती है, क्योंकि उसके पंजाब इकाई के प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग के खिलाफ एक मामला दर्ज किया गया है और उन्हें पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह – जो दलित समुदाय से थे – को कथित तौर पर ‘काला सिख’ जैसा कुछ कहने के लिए कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ रहा है. “द हिंदू” के मुताबिक, बूटा सिंह के बेटे ने वड़िंग के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी उनको नोटिस जारी किया था.
मोहल्ला क्लीनिक को “जानबूझकर पंगु” बना रही दिल्ली सरकार, जरूरी दवाएं स्टॉक से बाहर
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में आशीष श्रीवास्तव की खबर है कि राजधानी दिल्ली की मोहल्ला क्लीनिक में विभिन्न प्रमुख दवाइयों– जिनमें एंटीबायोटिक्स, इनहेलर, कफ सिरप और टिटनस इंजेक्शन, बैंडेज और कपास जैसी वस्तुएं भी शामिल हैं– का टोटा हो गया है. ये दवाएं महीनों से स्टॉक से बाहर हैं. श्रीवास्तव सूत्रों के हवाले से बताते हैं कि इससे कर्मचारियों की मरीजों की देखभाल करने की क्षमता बाधित हुई है. कुछ स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का आरोप है कि भाजपा राज्य सरकार अपनी पूर्ववर्ती आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा शुरू की गई मोहल्ला क्लिनिक प्रणाली को “जानबूझकर पंगु” करती दिख रही है, 545 में से 201 मोहल्ला क्लिनिक बंद कर दिए गए हैं. मोहल्ला क्लिनिक पर सरकार का ध्यान नहीं है, इसके विपरीत जन औषधि केंद्र खोले जा रहे हैं. हालांकि एक अन्य अधिकारी ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ आपूर्तियों को “वर्षों से” नहीं किया गया है. अन्य आरोप लगाते हैं कि दिल्ली की “जनता को निजी स्वास्थ्य सेवाओं की ओर धकेला जा रहा है.”
दिल्ली के आसमान में विमानों के साथ ‘जीपीएस धोखाधड़ी’
“द हिंदू” में जागृति चंद्रा ने पायलटों और एयर ट्रैफिक कंट्रोल कर्मियों के हवाले से बताया है कि पिछले एक सप्ताह या उससे अधिक समय से, दिल्ली क्षेत्र के ऊपर उड़ान भरने वाले कई विमानों ने “जीपीएस स्पूफिंग” का अनुभव किया है – यह एक प्रकार का साइबर हमला है जिसमें नेविगेशन सिस्टम को भ्रमित करने के लिए झूठा जीपीएस डेटा प्रेषित किया जाता है. जागृति के अनुसार, जीपीएस स्पूफिंग आमतौर पर पाकिस्तान और म्यांमार की सीमाओं पर देखा जाता है, लेकिन इसका राजधानी दिल्ली के ऊपर होना असामान्य घटना है. एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने कहा, “नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) मामले से अवगत है और जोड़ा कि वे इन घटनाओं की जांच कर रहे हैं. नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सचिव एसके सिन्हा और डीजीसीए के महानिदेशक फैज़ किदवई के बीच गुरुवार शाम को इस मामले पर एक बैठक भी हुई.
पूर्वोत्तर में नया समूह ‘वन नॉर्थईस्ट’ लॉन्च
मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा, त्रिपुरा सत्तारूढ़ गठबंधन के सदस्य और टीआईपीआरए मोथा नेता प्रद्योत देबबर्मन, और पूर्व भाजपा प्रवक्ता एम्होनलुमो किकोन ने “वन नॉर्थईस्ट” नामक एक नए राजनीतिक समूह का शुभारंभ किया है, जिसके बारे में उनका कहना है कि यह एक सामूहिक राजनीतिक पहचान को पेश करेगा. याकूत अली की रिपोर्ट है कि इसके प्रमुख नेता कहते हैं कि पूर्वोत्तर अपनी विविधता के बावजूद भूमि की सुरक्षा, सांस्कृतिक पहचान और न्यायसंगत विकास जैसी कई चिंताओं को साझा करता है. अली याद दिलाते हैं कि संगमा, जो भाजपा के साथ शिलांग में शासन करने वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी का नेतृत्व करते हैं, ने भगवा पार्टी के साथ गर्मजोशी भरे संबंध बनाए रखे हैं, लेकिन पूर्वोत्तर के लिए अधिक स्वायत्तता की आवश्यकता के बारे में मुखर रहे हैं.
कोलकाता में नास्तिकों का जमावड़ा
ऐसे समय में जब भारत धार्मिक आधार पर तेजी से ध्रुवीकृत हो रहा है, कोलकाता में नास्तिकों और संशयवादियों के 500 सदस्यीय समूह ने ‘एथीस्ट फोरम’ के बैनर तले तर्कवाद, वैज्ञानिक स्वभाव और धर्मविहीनता के संवैधानिक अधिकार का समर्थन करने के लिए इकट्ठा होकर अपनी बात रखी. जॉयदीप सरकार की खबर कहती है कि सम्मेलन के मुख्य आयोजकों में से एक, अर्थशास्त्री शुभेंदु दासगुप्ता ने समझाया, “धर्म का उपयोग अब सभी ज्वलंत मुद्दों और वैध मांगों को दबाने के लिए किया जा रहा है, इसलिए नास्तिकता का महत्व बढ़ रहा है.” 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 29 लाख भारतीयों (0.24%) ने बताया कि उनका “कोई धर्म नहीं” है. 2022 के गैलप इंटरनेशनल सर्वेक्षण में पाया गया कि 18% भारतीय खुद को गैर-आस्तिक मानते हैं, जो लगभग 20 करोड़ लोग हैं.
पवन ऊर्जा उत्पादकों का विरोध
केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग के मसौदा नियम, जो नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों द्वारा वादा की गई और उत्पन्न बिजली के बीच के अंतर की गणना के तरीके को बदलने का प्रस्ताव करते हैं, ग्रिड में विश्वसनीयता और अनुशासन लाने के प्रयास में, पवन ऊर्जा उत्पादकों से कुछ विरोध झेल रहे हैं. “रॉयटर्स” में अपनी रिपोर्ट में सेथुरमन एन.आर. कहते हैं कि अन्य प्रकार के उत्पादकों के विपरीत, वे “अप्रत्याशित” मौसम के प्रति संवेदनशील हैं और नियमों के कारण कुछ परियोजनाओं को 48% तक का नुकसान हो सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, हरित ऊर्जा की आपूर्ति के अपने वादे का सख्ती से पालन करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को बाध्य करने वाले भारत के नियोजित नियम कंपनियों की कमाई को कम कर सकते हैं और इस क्षेत्र में निवेश धीमा कर सकते हैं.
ममदानी पर मुंबई भाजपा अध्यक्ष की इस्लामोफोबिक टिप्पणी : ‘मुंबई पर थोपा गया कोई ‘खान’ बर्दाश्त नहीं होगा’
भारतीय मूल के डेमोक्रेटिक-समाजवादी नेता ज़ोहरान ममदानी के न्यूयॉर्क मेयर चुनाव जीतने के घंटों बाद— यह जीत उन्हें 1 जनवरी को पदभार संभालने पर शहर का पहला मुस्लिम और पहला दक्षिण एशियाई मेयर बनाएगी— भारत की सत्तारूढ़ भाजपा की मुंबई इकाई के प्रमुख अमित साटम ने एक इस्लामोफोबिक भाषण में घोषणा की कि शहर में किसी भी “खान” को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इसे उन्होंने “वोट जिहाद” का मामला बताया. साटम ने “एक्स” पर एक पोस्ट में लिखा, “कुछ अंतर्राष्ट्रीय शहरों का राजनीतिक रंग जिस तरह से बदल रहा है, कुछ मेयरों के उपनामों और महा विकास अघाड़ी के ‘वोट जिहाद’ को देखकर, मुंबई के संबंध में सतर्क रहना आवश्यक लगता है..!”
इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए, एनसीपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनीश गवांडे ने पलटवार किया, “अमित जी, अंतर्राष्ट्रीय शहरों का रंग नहीं बदल रहा है, आपका रंग उस दिन बदल गया जब आपने मुंबई भाजपा अध्यक्ष का पद संभाला.” उन्होंने कहा, “यह मत भूलिए कि शिवाजी की सेना में, जिसने अफजल खान को हराया था, सिद्दी इब्राहिम खान और दौलत खान भी थे. अपनी नफरत की राजनीति को मुंबई से बाहर रखें. अगर कोई भी तुकाराम के महाराष्ट्र पर किसी ‘नाथूराम’ को थोपने की कोशिश करेगा, तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.”
बांग्लादेशियों को घुसपैठ में मदद करने के आरोपी भाजपा नेता को जमानत
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) युवा मोर्चा के पदाधिकारी बिक्रम रॉय को जमानत दे दी, जिन्हें 2023 के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था. यह मामला उत्तरप्रदेश आतंकवाद विरोधी दस्ता (एटीएस) द्वारा बांग्लादेशी नागरिकों को अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने और जाली पहचान पत्र प्राप्त करने में कथित रूप से मदद करने के लिए दर्ज किया गया था. “लाइव लॉ” की रिपोर्ट के अनुसार, यह जमानत अन्य सह-आरोपियों के साथ समानता के आधार पर दी गई, जिन्हें पहले ही रिहा किया जा चुका है. न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति अवधेश कुमार चौधरी की पीठ ने रॉय की अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया, जो उन्होंने राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 21(4) के तहत दायर की थी, जिसमें विशेष न्यायाधीश, एनआईए, लखनऊ के पहले के आदेशों को चुनौती दी गई थी.
बढ़ती असमानता पर रिपोर्ट; भारत के शीर्ष 1% अमीरों की संपत्ति में 62% का इजाफ़ा
जी20 के वर्तमान अध्यक्ष दक्षिण अफ्रीका द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2000 से 2023 तक, भारत के सबसे अमीर 1% लोगों ने अपनी संपत्ति में 62% की वृद्धि की.
“पीटीआई” के अनुसार, 2000 से 2024 के बीच पैदा नई संपत्तियों में से, दुनिया के सबसे धनी 1% लोगों ने 41% पर दावा किया, जबकि सबसे नीचे के 50% लोगों को इसका 1% हिस्सा मिला. भारतीय अर्थशास्त्री जयती घोष सहित एक समिति द्वारा लिखी गई यह रिपोर्ट याद दिलाती है कि “अत्यधिक असमानता एक चुनाव है”: “यह अपरिहार्य नहीं है और इसे राजनीतिक इच्छाशक्ति से उलटा जा सकता है. वैश्विक समन्वय से इसमें बहुत मदद मिल सकती है, और इस संबंध में, जी20 की महत्वपूर्ण भूमिका है.”
शेख हसीना चुनाव लड़ने को उत्सुक, $234 बिलियन के आरोप को ‘हास्यास्पद’ बताया
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने, 15 महीने तक सत्ता से बाहर रहने के बाद, पहली बार एक विशेष साक्षात्कार में अपनी बात रखी है. उन्होंने आगामी संसदीय चुनावों में अपनी पार्टी अवामी लीग की भागीदारी की इच्छा व्यक्त की है और अपने ऊपर लगे 234 बिलियन डॉलर की लूट के आरोपों को ‘हास्यास्पद’ बताया है. गौतम लहरी को दिए एक विशेष ई-मेल साक्षात्कार में, जिसे द न्यू इंडियन एक्सप्रेस और द हिंदू ने प्रकाशित किया है, हसीना ने जुलाई-अगस्त 2024 में उनकी सरकार के खिलाफ हुए व्यापक विरोध प्रदर्शन के दौरान “हज़ारों नागरिकों” की हत्या के लिए पहली बार “नेतृत्व की ज़िम्मेदारी” स्वीकार की.
हसीना ने स्पष्ट किया कि अगर मौका दिया गया तो उनकी पार्टी अवामी लीग निश्चित रूप से आगामी संसदीय चुनावों में भाग लेगी. उन्होंने कहा, “हम चुनाव लड़ने से इनकार नहीं कर रहे हैं. इसके विपरीत, हम पूरी लगन से भाग लेना चाहते हैं. लेकिन हमें एक ऐसे प्रशासन द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया है जो खुद अनिर्वाचित है.”
पिछले साल के विद्रोह के दौरान हुई हिंसा पर, हसीना ने कहा, “मैं पिछले गर्मियों के विद्रोह की दुखद हिंसा में खोए हर एक जीवन पर शोक व्यक्त करती हूं. देश की नेता के रूप में, मैं अंततः नेतृत्व की ज़िम्मेदारी लेती हूं, लेकिन यह कहना कि मैंने ज़मीन पर सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों का आदेश दिया था, मौलिक रूप से ग़लत है.” उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के मृत्यु के आंकड़ों पर भी विवाद किया और कहा कि यह अंतरिम सरकार द्वारा प्रचार के उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
अपने, अपने परिवार और राजनीतिक सहयोगियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर, हसीना ने कहा कि ये सभी आरोप पूरी तरह से निराधार हैं. 234 बिलियन डॉलर के दावे पर उन्होंने कहा, “234 बिलियन डॉलर का दावा हास्यास्पद होने के साथ-साथ अप्रमाणित भी है. यह राशि बांग्लादेश के पूरे राज्य के बजट से कहीं ज़्यादा है. व्यावहारिक रूप से, इतनी बड़ी चोरी संभव ही नहीं है.” इसके बजाय उन्होंने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख डॉ. मोहम्मद यूनुस की संपत्ति पर सवाल उठाए. उन्होंने पूछा कि ग्रामीण बैंक में 6,000 टका के वेतन से शुरुआत करने वाले यूनुस ने इतनी बड़ी संपत्ति कैसे जमा कर ली.
हसीना ने यह भी स्पष्ट किया कि उन्होंने 5 अगस्त, 2024 को देश छोड़ने से पहले इस्तीफा नहीं दिया था. उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री के रूप में इस्तीफा देने के लिए, आपको राष्ट्रपति को एक पत्र सौंपना होता है. मैंने कभी ऐसे पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए, न ही राष्ट्रपति को कोई पत्र मिला.” उन्होंने अपनी सरकार को हटाने में ‘विदेशी हाथ’ की संलिप्तता के सवालों पर इस समय चुप रहना पसंद किया.
संसद में शामिल होने के लिए पैरोल लागत पर इंजीनियर राशिद की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट का खंडित फैसला
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को जेल में बंद जम्मू-कश्मीर के सांसद इंजीनियर राशिद द्वारा दायर एक याचिका पर खंडित फैसला सुनाया. इस याचिका में उन्होंने संसद में शामिल होने के लिए कस्टडी पैरोल देते समय निचली अदालत द्वारा लगाए गए खर्च को चुनौती दी थी. मक़तूब मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की खंडपीठ ने इस मामले पर अलग-अलग राय दी.
न्यायमूर्ति चौधरी ने राशिद की याचिका को खारिज कर दिया, जबकि न्यायमूर्ति भंभानी ने इसे स्वीकार कर लिया. अब यह मामला आगे के आदेशों के लिए मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष रखा जाएगा. राशिद ने 25 मार्च के उस आदेश में संशोधन की मांग की थी, जिसमें उन्हें हिरासत में रहते हुए संसद में भाग लेने की शर्त के रूप में जेल अधिकारियों के पास लगभग 4 लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया गया था.
राशिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एन. हरिहरन ने तर्क दिया कि लगाया गया खर्च अत्यधिक था और सांसद को अपने बारामूला निर्वाचन क्षेत्र का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करने से रोक रहा था. उन्होंने तर्क दिया कि दैनिक लागत गणना में पुलिस अधिकारियों के वेतन को शामिल करना दिल्ली जेल नियमों के विपरीत था.
शेख अब्दुल राशिद, जिन्हें इंजीनियर राशिद के नाम से जाना जाता है, 2024 के लोकसभा चुनाव में बारामूला से सांसद चुने गए. वह 2017 के टेरर फंडिंग मामले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत NIA द्वारा गिरफ़्तार किए जाने के बाद 2019 से तिहाड़ जेल में बंद हैं. इससे पहले फरवरी में, राशिद के बेटे अबरार राशिद ने अपने पिता की लंबी हिरासत पर दुख व्यक्त करते हुए कहा था, “हम सब, एक देश के रूप में, एक लोकतंत्र के रूप में, एक समाज के रूप में, एक सामूहिक ज़िम्मेदारी के रूप में, उनकी स्वतंत्रता के ऋणी हैं.”
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.








