08/01/2025: बलात्कारी बाबा को बेल, आरएसएस के 9 को उम्र कैद, थक गई है जीडीपी, जहरीला कचरा एक जगह ख़तरा, दूसरी जगह नहीं, जिंदा आदमी का डेथ सर्टिफिकेट, वियतनाम का हिंदू इतिहास, चित्रकारी से पत्रकारिता
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
मोटापा मुक्त दुनिया से कितने पास हैं हम
ऑस्ट्रेलियन इंस्टालेशन आर्टिस्ट रोन मुयक की कृति फ़ोटो : निधीश त्यागी
कल्पना कीजिए कि एक ऐसी दुनिया जहाँ कोई मोटा व्यक्ति नहीं है, जहाँ लोगों को स्नैक्स खाने की इच्छा कम हो जाती है, और जहाँ टी-शर्ट निर्माता अतिरिक्त-बड़े आकार बनाना बंद कर देते हैं. यह ओज़ेम्पिक की दुनिया है! यह दवा, जो मूल रूप से मधुमेह के लिए विकसित की गई थी, अब अपने वजन घटाने के गुणों के लिए प्रसिद्ध हो रही है.
कैलिफ़ोर्निया में रहने वाले बद्री राघवन, टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित हैं. उन्होंने एक साल से वेगोवी ले रहे हैं, जो ओज़ेम्पिक के समान है. वह अपने परिणामों से बहुत खुश हैं, उनका मधुमेह नियंत्रण में है और उन्होंने 14 किलो वजन कम किया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अब उन्हें भोजन के समय ज्यादा खाने या फ्रिज में बार-बार जाने की इच्छा नहीं होती है. टेलीग्राफ में प्रकाशित परन बालाकृष्णन के लेख के मुताबिक ओज़ेम्पिक (सेमाग्लूटाइड नामक अणु पर आधारित) हृदय स्वास्थ्य में सुधार, पेट की चर्बी को कम करने और गुर्दे की बीमारियों को रोकने में भी कारगर साबित हुई है. इसके अलावा, यह लिवर की चर्बी को कम करने और अल्जाइमर के शुरुआती चरण के रोगियों के लिए भी मददगार साबित हो सकती है. कुछ शोधों से पता चलता है कि यह कुछ प्रकार के कैंसर को रोकने या उनके विकास को धीमा करने में भी भूमिका निभा सकती है. भारत में, अभी तक केवल राइबेल्सस नामक टैबलेट को ही मंजूरी मिली है, जबकि इंजेक्शन वाला ओज़ेम्पिक अभी भी उपलब्ध नहीं है. सरकार ने अगले तीन महीनों में सभी अनुमोदन को मंजूरी देने का वादा किया है, लेकिन अतीत में ऐसे वादे किए गए और पूरे नहीं हुए हैं. इंजेक्शन वाला ओज़ेम्पिक अमेरिका में 2017 से उपलब्ध है. इन दवाओं की एक और बड़ी समस्या यह है कि ये बहुत महंगी हैं, और अधिकांश भारतीयों के लिए इनकी पहुंच से बाहर हैं. एक महीने के राइबेल्सस की कीमत लगभग 9,000 रुपये है. इसके अतिरिक्त, वैश्विक मांग के कारण ओज़ेम्पिक की आपूर्ति भी कम है. एली लिली ने मूंजारो नामक एक दवा विकसित की है, जो सेमाग्लूटाइड की तुलना में अधिक प्रभावी मानी जाती है. यह दवा दो हार्मोन (जीएलपी-1 और जीआईपी) पर काम करती है, जिससे यह रक्त शर्करा को नियंत्रित करने और वजन कम करने में अधिक प्रभावी होती है. एक और दवा है, रेटाट्रुटाइड, जो तीन हार्मोन पर काम करती है और इससे 20-25% तक वजन कम हो सकता है. इन दवाओं का उपयोग करने के कुछ दुष्प्रभाव भी हैं, जैसे कि मतली, उल्टी, या दस्त, लेकिन ये आमतौर पर हल्के होते हैं और दवा बंद करने पर गायब हो जाते हैं. डॉक्टरों का कहना है कि इन दवाओं को लंबे समय तक लेना पड़ सकता है, और दवा बंद करने पर वजन वापस बढ़ सकता है. इन दवाओं के कारण खाद्य उद्योग पर भी प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि लोग कम कैलोरी वाले भोजन को चुन सकते हैं. मैकडॉनल्ड्स और हर्शे जैसी कंपनियों ने बिक्री में गिरावट देखी है. कुल मिलाकर, ओज़ेम्पिक और अन्य वजन घटाने वाली दवाएं दुनिया को बदल सकती हैं, लेकिन इनकी उपलब्धता, कीमत और दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर कई चिंताएं हैं.
आज की सुर्खियां :
किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की हालत बिगड़ी: किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल, जो 42 दिनों से भूख हड़ताल पर हैं, की हालत बिगड़ रही है. डॉक्टरों के अनुसार, उनका ब्लड प्रेशर और पल्स अनियमित है. पूर्व न्यायाधीश नवाब सिंह की अध्यक्षता वाली समिति भी उन्हें चिकित्सा सहायता लेने के लिए मनाने में विफल रही.
बलात्कारी बाबा को बेल : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (7 जनवरी) को बलात्कार के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कथावाचक आसाराम बापू को 31 मार्च तक के लिए अंतरिम जमानत दे दी. आसाराम को गुजरात की एक अदालत ने दोषी ठहराया था. कोर्ट ने जमानत के आदेश में एक शर्त भी जोड़ी है कि जोधपुर जेल से रिहा होने पर वह अपने अनुयायियों से नहीं मिल पाएगा.
9 आरएसएस कार्यकर्ताओं को उम्र कैद : केरल की एक अदालत ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता की हत्या के 19 साल पुराने मामले में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के 9 कार्यकर्ताओं को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. आरएसएस कार्यकर्ताओं पर 25 वर्षीय रिजित शंकरण की हत्या करने का आरोप था.
आर्थिक मंदी के आसार, जीडीपी 4 सालों में सबसे धीमी: मंगलवार को जारी किए गए सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत की आर्थिक विकास दर 2024-25 में चार साल के निचले स्तर 6.4 प्रतिशत पर पहुंचने का अनुमान है. मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस क्षेत्र में खराब प्रदर्शन इसका कारण है. 6.4 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर कोविड (2020-21) के बाद सबसे कम होगी. कोविड के समय देश ने 5.8 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि देखी थी. 2021-22 में आर्थिक विकास दर 9.7 प्रतिशत, 2022-23 में 7 प्रतिशत और मार्च 2024 को समाप्त पिछले वित्तीय वर्ष में यह 8.2 प्रतिशत थी. गौर करने वाली बात यह है कि राष्ट्रीय आय के बारे में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा 2024-25 के लिए जारी किया गया यह अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दिसंबर 2024 में प्रस्तावित 6.6 प्रतिशत से भी कम है. इतना ही नहीं यह वित्त मंत्रालय के प्रारंभिक अनुमान 6.5-7 प्रतिशत से भी थोड़ा कम है. ये अग्रिम अनुमान देश के आम बजट की तैयारी में उपयोग किए जाएंगे, जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को लोकसभा में पेश करेंगी.
कश्मीर भी रेल से जुड़ जाएगा : अंतिम चरण के सफल परीक्षण के बाद कश्मीर के लिए ट्रेन आखिरकार एक वास्तविकता बनने जा रही है. कश्मीर के लिए ट्रेन 20 जनवरी के बाद औपचारिक रूप से चलने की उम्मीद है. ट्रेन का अंतिम ट्रायल रन मंगलवार और बुधवार को निर्धारित किया गया है. इसके साथ कश्मीर को देश के बाकी हिस्सों से रेल द्वारा जोड़ा जाएगा.
असम में कोयला खदान में हादसा, तीन लोगों की मौत की आशंका: असम के दीमा हसाओ जिले में एक कोयला खदान में पानी भरने से तीन लोगों के मरने की आशंका है. जिला पुलिस प्रमुख के अनुसार, खदान में पानी एक भूमिगत जल चैनल से टकराने के कारण भर गया. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि खदान अवैध प्रतीत होती है. रिपोर्टों के अनुसार, 'रैट-होल' खदानें, जो अवैध हैं, पूर्वोत्तर में चलती रहती हैं. कुछ अन्य मजदूरों ने भागने में सफलता पाई है, जबकि छह अन्य अभी भी अंदर फंसे हैं.
दिल्ली में 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव: चुनाव आयोग ने दिल्ली में विधानसभा चुनाव 5 फरवरी को कराने की घोषणा की है. उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में भी विधानसभा उपचुनाव होंगे. वोटों की गिनती 8 फरवरी को होगी. चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है.
यमन में निमिषा प्रिया की मौत की सजा पर स्पष्टीकरण: यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ लड़ रही सरकार के प्रमुख रशद अल-अलीमी ने केरल की निमिषा प्रिया की मौत की सजा की पुष्टि नहीं की है. यमन दूतावास ने स्पष्ट किया है कि मामला हूती मिलिशिया द्वारा देखा जा रहा है और प्रिया उनकी हिरासत में हैं. इससे पहले मीडिया में गलत रिपोर्ट आई थी कि अल-अलीमी ने सजा की पुष्टि की है.
ओटीपी बना आरटीआई आवेदनों में अड़ंगा : आरटीआई आवेदनों में मेल के जरिये ओटीपी के ऑप्शन ने एक्सेस को जटिल बना दिया है, क्योंकि यह कब आएगा यह निश्चित नहीं है या फिर ओटीपी डालने के बाद भी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ती. उपयोगकर्ता थक जाता है. ऐसा कहना है, जी.एस. मुदुर का. उन्होंने तीन आरटीआई कार्यकर्ताओं के हवाले से बताया कि एक नया फीचर, जिसके तहत आरटीआई आवेदकों को अपने सूचना अनुरोधों की स्थिति जानने के लिए ओटीपी दर्ज करना पड़ता है, सुचारू रूप से काम नहीं कर रहा है. तीन कार्यकर्ताओं में से एक वेंकटेश नायक ने कहा कि अनुरोध करने के तुरंत बाद ओटीपी आया, लेकिन तीन बार दर्ज करने के बावजूद प्रक्रिया के अगले चरण तक नहीं पहुंची. मुदुर ने उनके हवाले से कहा, ‘हर बार जब मैंने ईमेल से आया ओटीपी दर्ज किया, पेज एक नए ऑटो-जेनरेटेड अल्फ़ान्यूमेरिक सुरक्षा कोड के साथ रिफ्रेश हो गया’. उन्होंने यह भी लिखा कि केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि इस मुद्दे को उच्च अधिकारियों के ध्यान में लाया जाएगा.
हिरासत से बाहर आए प्रशांत किशोर अस्पताल पहुंचे : बीपीएसी पेपर लीक मामले में छात्रों के समर्थन में आमरण अनशन कर रहे प्रशांत किशोर गिरफ्तार किए जाने और जमानत पर रिहा होने के बाद अब अस्पताल पहुंच गए हैं. वह डिहाइड्रेशन की समस्या से जूझ रहे हैं.
हसीना की आँच ब्रिटेन में भतीजी मंत्री पर : बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की भतीजी और ब्रिटेन की एंटी-करप्शन मंत्री ट्यूलिप सिद्दीक को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा सकता है. इस्तीफे की नौबत इसलिए आ सकती है, क्योंकि उन्होंने खुद ही खुलासा किया है कि बिना भुगतान किए उन्होंने लंदन में एक अपार्टमेंट हासिल किया है. सिद्दीक, जिन्होंने कथित तौर पर शेख हसीना से जुड़ी विभिन्न संपत्तियों में निवास किया है, एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल के हिस्से के रूप में चीन यात्रा पर जाने वाली थीं. अब उन्हें ब्रिटेन में रहने के लिए कहा गया है ताकि वह उस संपत्ति और अन्य मामलों की जांच का सामना कर सकें, जिनका संबंध उनकी मौसी से है.
तिब्बत में भूकंप, 126 की मौत : मंगलवार सुबह तिब्बत क्षेत्र में आए एक शक्तिशाली भूकंप के कारण कम से कम 126 लोगों की मौत हो गई और 188 घायल हो गए. भूकंप स्थानीय समयानुसार सुबह 9 बजकर 5 मिनट पर आया और इसका केंद्र तिब्बत के डिंगरी में जमीन से 10 किमी नीचे था. चीन भूकंप नेटवर्क केंद्र ने इसकी तीव्रता 6.8 बताई है, जबकि अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के मुताबिक तीव्रता 7.1 थी. भूकंप के कारण नेपाल की राजधानी काठमांडू और भारत के उत्तरी हिस्सों, विशेष रूप से बिहार में झटके महसूस किए गए, जहां लोगों को अपने घरों और अपार्टमेंट से बाहर भागते देखा गया. हालांकि, संपत्तियों को कोई नुकसान नहीं होने की सूचना है.
कांग्रेस का अब नया पता, 47 साल पुराना दफ्तर बंद होगा : कांग्रेस को नई दिल्ली में 9 ए, कोटला रोड पर 'इंदिरा गांधी भवन' के रूप में नया पता मिलने जा रहा है. पार्टी अपने 24, अकबर रोड मुख्यालय को बंद कर देगी, जहां वह पिछले 47 वर्षों से कार्यरत थी. कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी 15 जनवरी को नए भवन का उद्घाटन करेंगी.
कार्बाइड का ज़हर 40 साल बाद
सरकार समझा नहीं पा रही कि जो कचरा भोपाल के लिए ख़तरा है, पीथमपुर के लिए सुरक्षित कैसे है
अमित बरुआ ने फ्रंटलाइन के लिए पीथमपुर के उस स्थान पर जाकर रिपोर्टिंग की है, जहां 1984 के भोपाल गैस त्रासदी के कचरे का निबटान होना है. इस गैस लीक कांड में 8000 ये ज्यादा लोगों की जान चली गई थी और बड़ी तादाद में लोगों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ा था. यही वजह है कि जहां कचरे का निबटान होना है, वहां के लोग कचरे के ‘विषैले असर’ से डरे हुए हैं. हालांकि अधिकारी कह रहे हैं कि इसका कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा, मगर जिस कंपनी की देख-रेख में यह पूरी प्रक्रिया होनी है, उसने चुप्पी साध रखी है. उसका कहना है कि वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी. यह काम अधिकारियों का है. यह भी एक वजह है कि यहां विरोध प्रदर्शन हो रहा है और दो लोगों ने आत्मदाह करने की कोशिश की है.
मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव अनुराग जैन ने 4 जनवरी को संवाददाताओं को बताया था कि शुरू में पीथमपुर से लगभग 220 किलोमीटर दूर भोपाल में यूनियन कार्बाइड इकाई से निकलने वाले कचरे का अनुमान 337 टन था, लेकिन जब इसे लोड किया गया, तो यह 358 टन हो गया. बरुआ के अनुसार, जब वह री-सस्टेनेबिलिटी के अधिकारियों से बात करने का इंतजार कर रहे थे, तब बाहर खड़े कई पुलिसकर्मियों से बात की. इनमें से कई पीथमपुर के भी थे.
एक जूनियर पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘सिविल सेवकों और पुलिसकर्मियों के लिए जनता को यह भरोसा दिलाना काफी नहीं है कि कचरा निपटान प्रक्रिया सुरक्षित है. री-सस्टेनेबिलिटी के वैज्ञानिकों को जनता को भरोसा दिलाना चाहिए कि कचरा निपटान प्रक्रिया सुरक्षित और संरक्षित है. लोगों में यह डर और व्यापक तब हो गया, जब क्षेत्र में यह अफवाह फैल गई कि पीथमपुर ले जाए जाने के बाद कचरे का एक कंटेनर गायब हो गया है. प्रशासन समस्या से अवगत है. इसलिए वह लोगों को समझा रहा है कि इस अफवाह में दम नहीं है. तरपुरा गांव में घूमते हुए, लोगों के चेहरों पर डर देखा जा सकता है. एक महिला ने नाम न बताने की शर्त पर कहा- ‘हम कहीं नहीं जा सकते. हमारे परदादा-परदादी इसी गांव से हैं. हमारे पास जाने के लिए कोई और जगह नहीं है. हमें यहीं रहना और मरना है’. क्षेत्र के एक स्थानीय पार्षद चमन चोपड़ा अपने साथी ग्रामीणों की आशंकाओं को साझा करते हैं. वह कहते हैं, ‘हम स्थानीय लोग हैं, हम कहां जाएंगे’.
धार जिले के कलेक्टर प्रियांक मिश्रा बताते हैं, ‘मुझे लगता है कि लोगों के मन में अब भी कुछ संदेह हैं. हम सही जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं’. मिश्रा ने इस बात से इनकार किया कि प्रवासी मजदूरों ने पीथमपुर में फैक्ट्री के आस-पास के गांवों को इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि उन्हें डर था कि कचरे को जलाने से लोगों के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है. वे बोले, ‘अगर यूनियन कार्बाइड प्लांट से निकलने वाले खतरनाक कचरे को नहीं जलाया जाता तो यह गलत मिसाल कायम करेगा. यह सभी अधिनियमों और नियमों के अनुसार किया जा रहा है’.
प्रशासन ने यह कदम मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 3 दिसंबर के आदेश के बाद उठाया है, जिसमें बेहद तीखे लहजे में कहा गया था, ‘हमने 30.03.2005, 13.05.2005 और 23.06.2005 को पारित विभिन्न आदेशों और उसके बाद हाल ही में पारित 11.09.2024 के अदालत के आदेशों का अवलोकन किया है. कुछ कदम उठाए गए हैं, लेकिन वे न्यूनतम हैं. इनकी सराहना नहीं की जा सकती कि वर्तमान याचिका 2004 की है. करीब 20 साल बीत चुके हैं, लेकिन प्रतिवादी पहले चरण में हैं...’
अदालत ने कहा, ‘यह वास्तव में दुखद है, क्योंकि प्लांट साइट से जहरीले कचरे को हटाना, मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) और सेविन प्लांट को बंद करना और आसपास की मिट्टी और भूजल में फैले दूषित पदार्थों को हटाना भोपाल शहर की आम जनता की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी जरूरत है.
संयोग से, भोपाल में एमआईसी गैस आपदा ठीक 40 साल पहले इसी तारीख को हुई थी. इसके मद्देनजर, हम भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देश देते हैं कि वे इस देश के पर्यावरण कानूनों के तहत अपने वैधानिक दायित्वों और कर्तव्यों का पालन करें. हम भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री साइट की तत्काल सफाई करने और संबंधित क्षेत्र से पूरे जहरीले कचरे/सामग्री को हटाने और सुरक्षित निपटान के लिए सभी उपचारात्मक उपाय करने का निर्देश देते हैं’.
निपटान की स्थिति पर पूछे जाने पर, री-सस्टेनेबिलिटी लिमिटेड के कॉर्पोरेट संचार प्रमुख रमेश बित्रा कहते हैं कि जो हो रहा है, इसके बारे में प्रशासन को बोलना चाहिए. हम कोई टिप्पणी नहीं करेंगे. पब्लिक डोमेन में कंपनी की चुप्पी ने ग्रामीणों में गहरी चिंता पैदा कर दी है.
तथ्य यह है कि भोपाल के कचरे को जलाने पर क्या होगा, इस बारे में न सिर्फ़ पीथमपुर में, बल्कि पड़ोस के शहर इंदौर में भी आशंकाएं हैं. हर किसी की नजर इस बात पर है कि कचरे के निबटान पर हवा किस ओर बहती है. इस बीच सोमवार को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार को मीडिया को आदेश दिया कि वह कचरे के निपटान के संबंध में ऐसी कोई भी खबर प्रकाशित न करे, जिससे जनता में भय और भ्रम पैदा हो. इसके साथ ही उसने कहा है कि कचरे निबटान पर छह सप्ताह बाद 18 फरवरी को अगली सुनवाई होगी.
हाथों में अपना ही डेथ सर्टिफिकेट लिए हुए वह दफ्तर पंहुचा और कहा ज़िंदा साबित करो मुझे
सोमवार को, बेलगावी के डिप्टी कमिश्नर मोहम्मद रोशन के पास एक अजीब अनुरोध लेकर एक मुलाकाती आया. उसके पास खुद अपना डेथ सर्टिफिकेट था. वह खुद को ज़िंदा साबित करने की फरियाद लेकर आया था. गणपति काकटकर के लिए, रोशन के कार्यालय का दौरा एक डेटा एंट्री ऑपरेटर की गलती को सुधारने की एक हताश कोशिश थी, जिसके कारण 62 वर्षीय ग्रामीण ने अपना आधार कार्ड, अपने बैंक खाते तक पहुंच और कई सरकारी लाभ खो दिए थे. इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक गणपति के अनुसार, उनकी परेशानी तब शुरू हुई जब उन्होंने और उनके भाइयों ने अपने दादा मसानु शट्टू ककाटकर द्वारा छोड़ी गई छह एकड़ और 23 गुंटा जमीन में अपना हिस्सा पाने के लिए उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया, जिनका निधन 2 फरवरी, 1976 को हुआ था. अपनी मृत्यु से पहले, मसानु ने अपनी जमीन अपने तीन बेटों के बीच विभाजित कर दी थी, जिसमें छह एकड़ और 23 गुंटा अपने नाम पर रखी थी. उनकी मृत्यु के बाद भी यह भूमि हस्तांतरित नहीं हुई. समय के साथ, मसानु के तीनों बेटों की मृत्यु हो गई, जिससे संपत्ति उनके आठ पोतों, जिनमें गणपति भी शामिल थे, को मिल गई.
दो साल पहले, पोते जमीन को अपने नाम पर हस्तांतरित करना चाहते थे, लेकिन उन्हें देरी का सामना करना पड़ा क्योंकि तहसीलदार के कार्यालय ने उनके दादा का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी नहीं किया था. उन्होंने बेलगावी में एक स्थानीय अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसने तब प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया. हिंडलगा में राजस्व निरीक्षक के कार्यालय में, एक कंप्यूटर ऑपरेटर ने गलती कर दी - एक ऐसी गलती जिसका गणपति को महीनों बाद तब पता चला जब उसका आधार कार्ड लॉक हो गया और उसका नाम परिवार के राशन कार्ड से हटा दिया गया. गणपति को 'आधिकारिक तौर पर मृत' घोषित कर दिया गया था. 3 अगस्त, 2023 को गलती का पता चलने के बाद, गणपति ने तहसीलदार सहित कई स्थानीय कार्यालयों का दौरा किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. जून 2024 में, गणपति को पता चला कि गलती कैसे हुई थी. गणपति ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "मेरे दादा के बजाय मेरा आधार नंबर गलत तरीके से दर्ज किया गया था." उन्होंने आगे कहा, "उन्हें बताने के बावजूद, अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की." सोमवार को, गणपति अपने परिवार के सदस्यों और एक वकील के साथ रोशन के पास पहुंचे, जिन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि मामले का समाधान किया जाएगा और सहायक आयुक्त को कार्रवाई करने का निर्देश दिया.
27500
करोड़ रुपये लगाएगा माइक्रोसॉफ्ट भारत में
आज का संख्यात्मक: मंगलवार को माइक्रोसॉफ्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सत्या नडेला ने कहा कि माइक्रोसॉफ्ट भारत में अपनी क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्षमताओं का विस्तार करने के लिए 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 25,700 करोड़ रुपये) का निवेश करेगा. नडेला ने यहां स्टार्टअप संस्थापकों और प्रौद्योगिकी फर्मों के अधिकारियों की एक कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि तकनीकी दिग्गज 2030 तक भारत में 10 मिलियन लोगों को एआई कौशल में प्रशिक्षित भी करेगा. 1.4 अरब लोगों के देश, भारत, जो एक एआई युद्धक्षेत्र के रूप में उभर रहा है, की यात्रा करने वाले तकनीकी दिग्गजों की सूची में नडेला नवीनतम हैं. चिप निर्माता एनवीडिया के प्रमुख जेन्सन हुआंग, एएमडी की लिआ सू और मेटा के मुख्य एआई वैज्ञानिक यान लेकन ने हाल के महीनों में भारत का दौरा किया था, जो लाखों प्रोग्रामरों और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इंफोसिस और विप्रो जैसी प्रौद्योगिकी कंपनियों का घर है.
उत्तर प्रदेश के अनुबंध शिक्षक: गर्दिश में हैं तारे
उत्तर प्रदेश में, लगभग 25,000 अंशकालिक स्कूल शिक्षक (अनुबंध पर) कम वेतन और अस्थिर रोजगार के बीच संघर्ष कर रहे हैं. इनमें से कई शिक्षक, जिन्हें 'प्रशिक्षक' कहा जाता है, 2013 से काम कर रहे हैं और उन्हें केवल 7,000 रुपये प्रति माह मिलता है, जो उनके परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त नहीं है. आर्टीकल14 के लिए ऋषिराज आनंद ने लम्बा डिस्पैच लिखा है.
इन शिक्षकों ने भाजपा सरकार से कई बार गुहार लगाई है, जिसने 2017 और 2022 में चुनाव जीतने से पहले उनके वेतन में वृद्धि और स्थायी नौकरी देने का वादा किया था. यहाँ तक कि अदालत ने भी उनके पक्ष में फैसला सुनाया है, और सरकार को उनका बकाया भुगतान करने का आदेश दिया है. लेकिन सरकार ने अब तक कुछ नहीं किया है.
इन शिक्षकों की हालत इतनी खराब है कि वे कई तरह के काम करने को मजबूर हैं. कुछ रिक्शा चलाते हैं, कुछ कपड़े सिलते हैं और कुछ छोटी-मोटी दुकानें चलाते हैं. एक कला शिक्षक, जितेंद्र कुमार, स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ एक खिलौने की दुकान पर भी काम करते हैं. उनका कहना है कि उनके बच्चे अक्सर उनसे कुछ लाने को कहते हैं और वे शर्म से भर जाते हैं क्योंकि वे उन्हें कुछ भी नहीं दे पाते हैं.
एक अन्य शिक्षक, टिंकू जायसवाल, शारीरिक शिक्षा पढ़ाते हैं और शाम को एक गोदाम में काम करते हैं. वे बताते हैं कि स्थायी शिक्षक अक्सर उन्हें परेशान करते हैं और वेतन असमानता के कारण उनका अपमान करते हैं.
उत्तर प्रदेश में शिक्षा की स्थिति भी चिंताजनक है. राज्य में साक्षरता दर देश में पांचवीं सबसे कम है. कई सरकारी स्कूलों में केवल एक शिक्षक है, और आधे से भी कम छात्र बुनियादी साक्षरता हासिल कर पाते हैं. इसके बावजूद, सरकार का कहना है कि राज्य में शिक्षकों की कोई कमी नहीं है.
अनुबंध पर काम करने वाले शिक्षक लगातार सरकार से उन्हें सुनने की गुहार लगा रहे हैं. उन्हें सरकार की तरफ से बस वादे मिले हैं, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.
अदालतों के फैसलों के बावजूद सरकार ने इन शिक्षकों की दुर्दशा पर कोई ध्यान नहीं दिया है, जिससे उनके जीवन में कोई सुधार नहीं हुआ है. उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए इन शिक्षकों को सम्मान और उचित वेतन दिया जाना चाहिए, ताकि वे अपने कर्तव्यों को अच्छे से निभा सकें.
क्या ट्रूडो की जगह अनीता आनंद ले सकती हैं?
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के संभावित इस्तीफे को लेकर अटकलें तेज हैं. अगर ट्रूडो पद छोड़ते हैं, तो लिबरल पार्टी के नए नेता के रूप में अनीता आनंद एक संभावित विकल्प हो सकती हैं. संभावित उम्मीदवारों में इनोवेशन मंत्री फ्रेंकोइस-फिलिप शैम्पेन, परिवहन मंत्री अनीता आनंद, विदेश मंत्री मेलानी जोली, पूर्व वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड और बैंक ऑफ कनाडा के पूर्व गवर्नर मार्क कार्नी शामिल हैं.
अनीता आनंद एक अनुभवी राजनेता हैं जो लिबरल पार्टी की सदस्य हैं. वे परिवहन और आंतरिक व्यापार मंत्री हैं. उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा मंत्री के रूप में भी काम किया है और कनाडाई सशस्त्र बलों में यौन दुराचार से लड़ने और सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उनका जन्म और पालन-पोषण कनाडा के नोवा स्कोटिया में हुआ था. कनाडा में गवर्नर जनरल मैरी साइमन सैद्धांतिक रूप से ट्रूडो को हटा सकती हैं, लेकिन इसकी संभावना नहीं है. अनीता आनंद एक संभावित उत्तराधिकारी हैं, लेकिन लिबरल पार्टी को एक नया नेता चुनने और संभावित चुनाव का सामना करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
हालांकि ट्रूडो के तुरंत पद छोड़ने की संभावना नहीं है.घोषणा के मुताबिक वे प्रधानमंत्री और लिबरल पार्टी के नेता दोनों पदों पर तब तक बने रहेंगे, जब तक कि पार्टी एक नया नेता नहीं चुन लेती. कनाडा में, पार्टी नेता को एक विशेष नेतृत्व सम्मेलन में चुना जाता है, जिसमें महीनों लग सकते हैं. संसद को 24 मार्च तक स्थगित कर दिया गया है, जिसका मतलब है कि विपक्षी दलों को सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए मई तक इंतजार करना होगा. संसद का ग्रीष्मकालीन अवकाश 20 जून से पहले शुरू हो जाएगा. यदि लिबरल तब तक सत्ता में रहते हैं, तो चुनाव अक्टूबर के अंत में निर्धारित समय पर होंगे.
कंजर्वेटिव पार्टी और अन्य विपक्षी दल ट्रूडो के नेतृत्व वाली सरकार को अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से हराने की योजना बना रहे हैं. यदि सभी विपक्षी दल एक साथ मतदान करते हैं, तो लिबरल सरकार गिर जाएगी और नया चुनाव कराना पड़ेगा. सरकार को वार्षिक बजट के दौरान भी गिराया जा सकता है.
सर्वेक्षणों से पता चलता है कि लिबरल्स चुनाव हार सकते हैं, चाहे नेता कोई भी हो. लेकिन एक नया नेता ट्रूडो की तुलना में हार का अंतर कम कर सकता है.
जब वियतनाम पर था हिंदू साम्राज्य
सैम डेलरिम्पल ने अपने सबस्टैक पेज ‘ट्रेवल ऑफ सैमवाइज’ पर वियतनाम के हिंदू साम्राज्त्य की रोचक जानकारी दी है. 20वीं सदी तक विभाजित रहा वियतनाम, आज जिस रूप में हम जानते हैं, वह एक हालिया सच है. 500 साल पहले, वियतनामी लोग उत्तरी वियतनाम के रेड रिवर बेसिन तक ही सीमित थे. देश का बाकी हिस्सा हिंदू राज्यों, जिन्हें 'चम्पा साम्राज्य' कहा जाता था, के अधीन था. चम्पा साम्राज्य दक्षिण-पूर्व एशिया की मुख्य भूमि पर हिंदू साम्राज्यों का समूह था. यह एक मातृसत्तात्मक समाज था, जहाँ विशाल हिंदू मंदिर बनाए गए थे. इन मंदिरों में शिव और विष्णु के साथ-साथ अल्लाह और हव्वा के लिए भी जगह थी. वियतनाम में हिंदू धर्म का प्रसार चौथी सदी में शुरू हुआ, जब संस्कृत शिलालेख मिलते हैं. मेकांग डेल्टा में हिंदू मंदिरों का निर्माण भी शुरू हुआ, और माना जाता है कि मेकांग नदी का नाम 'माँ गंगा' से लिया गया है. लगभग 600 ईस्वी में, चाम्स ने चम्पा नामक हिंदू राज्य का गठन किया. 11वीं सदी तक, उन्होंने वियतनाम के तटीय क्षेत्र के दक्षिणी दो-तिहाई हिस्से पर अपना प्रभुत्व बनाए रखा. चम्पा एक एकल राज्य नहीं था, बल्कि छोटे-छोटे तटीय राज्यों का एक समूह था. चाम्स ने तटीय वियतनाम को व्यापारिक केंद्र में बदल दिया. उन्होंने हाथियों के बड़े दस्तों को प्रशिक्षित किया और तटरेखा पर शिव मंदिरों का निर्माण किया, जिनमें माई सोन सबसे बड़ा था. माई सोन परिसर राजा भद्रवर्मन को भगवान शिव के साथ जोड़ने के लिए बनाया गया था. चम्पा साम्राज्य ने एक हजार से अधिक वर्षों तक शासन किया, और इस क्षेत्र पर महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव डाला. उनका मातृसत्तात्मक समाज, विशाल मंदिरों का निर्माण, और धार्मिक सहिष्णुता उस समय के वियतनाम की विशेषता थी. यह कहानी वियतनाम के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो आज भी अपनी छाप छोड़ती है.
चलते-चलते: कला, पत्रकारिता और प्रतिरोध की आवाज़

पश्चिम बंगाल की कलाकार लबानी जांगी को टी.एम. कृष्णा-पारी पुरस्कार मिला है, जो कला और पत्रकारिता को जोड़ने वाले व्यक्तियों को सम्मानित करता है. लबानी खुद को सिर्फ चित्रकार नहीं, बल्कि कहानीकार मानती हैं, जो ब्रश से कहानियाँ लिखती हैं. उनका बचपन ग्रामीण नादिया में बीता, जहाँ द्वितीय विश्व युद्ध में सेना शिविर बनने से कई लोगों की ज़मीनें छिन गईं. उनके पिता, एक वकील, ने उन्हें कला के लिए प्रेरित किया. 2016 में, जब देश में मॉब लिंचिंग बढ़ी, तो लबानी ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए पेंटिंग का सहारा लिया. वे स्व-सिखाई कलाकार हैं. 2017 में, उन्होंने पीएचडी में दाखिला लिया और प्रवासी मजदूरों पर शोध किया. कोविड महामारी के दौरान, उन्होंने 'पारी' (पीपुल्स आर्काइव्स ऑफ रूरल इंडिया) के लिए चित्र बनाना शुरू किया. 'पारी' के साथ काम करते हुए, उन्होंने ग्रामीण जीवन की चुनौतियों और लचीलेपन को दर्शाया. उनकी कला किसानों, महिलाओं और प्रवासी श्रमिकों की कहानियाँ बताती है. लबानी किसी राजनीतिक दल से जुड़ी नहीं हैं, पर उनकी कला राजनीतिक है. वे एक मुस्लिम महिला होने के अनुभवों से प्रेरित हैं, जहाँ नफ़रत और हिंसा सामान्य है. लबानी का मानना है कि दुनिया उनकी पहचान, कौशल और प्रतिभा को स्वीकार नहीं करना चाहती. एक मुस्लिम महिला कलाकार के रूप में उनके काम को अनदेखा किया जाता है. उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी कला साझा करके इसका जवाब दिया है. 2022 में, उनकी पहली एकल प्रदर्शनी 'बीबिर दरगाह' चिट्टोग्राम में आयोजित हुई. 'बीबिर दरगाह' प्रदर्शनी पुरानी महिला पीरों की दरगाहों से प्रेरित थी. लबानी ने इन दरगाहों के नष्ट होने और रूढ़िवादी इस्लाम के बढ़ने के बारे में बताया. उन्होंने महिलाओं के संघर्ष और प्रतिरोध को भी दर्शाया. उनकी कला सामूहिक यादों और सांस्कृतिक पहचान की कहानी कहती है. वे एक ऐसे समाज की कल्पना करती हैं जहाँ हिंसा न हो. लबानी का कहना है कि वे एक बड़ी कलाकार बनने की इच्छा में अपनी भावनात्मक जड़ों से दूर नहीं होना चाहतीं. वे पैसे के लिए अपने मूल्यों को नहीं बेचना चाहतीं. पंजरी आर्टिस्ट्स यूनियन की सदस्य के रूप में, वे कलात्मक संवाद में सक्रिय हैं.
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