08/03/2025 : वेदों के आगे न्यूटन फिसड्डी, पेगासस पर सुनवाई 22 को, ग्लोबल रैंकिंग एजेंसियों को ठेंगा भी, साधने की कोशिश भी, वाट्सएप पर बिकते अवैध हथियार, रूसी हमले तेज़
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियाँ
पेगासस मामले की सुनवाई 22 अप्रैल को
एक और जगुआर क्रैश, पुराने बेड़े को कायम रखने की चुनौती
भारत रूस से टैंक इंजनों के बदले 2 लाख करोड़ रुपये देगा
इफ्तार के एलान पर इमाम समेत 9 गिरफ्तार
महिला पंचों की जगह उनके पति ले रहे थे शपथ
यूक्रेन पर हमले तेज़, ट्रम्प का निशाना रूस की तरफ
हाईकोर्ट ने ‘मनुस्मृति’ को पवित्र ग्रंथ बताया
हाथरस भगदड़ : न्यायिक जांच से योगी के ही दोनों सवालों का जवाब नहीं मिला
अजय भल्ला की अपील का असर नहीं मणिपुर पर
अर्णब गोस्वामी पर नफरत फैलाने वाले को लेकर हुई एफआईआर पर कार्रवाई करने से रोक
राज्यपाल बागड़े का यूनिवर्सिटी में रहस्योद्घाटन, “न्यूटन का ज्ञान तो वेदों में पहले ही आ चुका था”
यही नहीं बिजली, विमान और शायद वाई-फाई का आविष्कार भी सदियों पहले इधर हुआ
एक ऐतिहासिक खुलासे में राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने घोषणा की कि आइज़क न्यूटन ने जरा देर कर दी, जबकि बाजी पहले ही भारत में मारी जा चुकी थी! जैसा कि अक्सर वेदों के हवाले से थ्योरी आती ही रहती हैं, जिनकी खाली पुष्टि नहीं हो पाती है. राज्यपाल ने जयपुर स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र में एक दीक्षांत समारोह में कहा कि भारतीय वेदों में न्यूटन से पहले गुरुत्वाकर्षण का उल्लेख किया गया था. राज्यपाल के मुताबिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत तो 1687 से सदियों पहले वैदिक ग्रंथों में मौजूद था. बागड़े यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने यह भी कहा कि प्राचीन भारतीय ऋषियों ने बिजली, विमान और संभवतः वाई-फाई का आविष्कार भी किया था. बकौल बागड़े महर्षि भारद्वाज ने विमान तकनीक का दस्तावेजीकरण भी किया था और नासा ने 50 साल पहले एक पत्र लिखकर इसकी एक प्रति मांगी भी थी. खैर, अब भारतीयों को कम से कम ऐसी अजब-गजब खोजों की आदत सी हो गई है!
पेगासस मामले की सुनवाई 22 अप्रैल को : शुक्रवार (7 मार्च, 2025) को सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल को उन याचिकाओं की सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की, जिनमें आरोप लगाया गया है कि भारतीय प्रतिष्ठान ने राजनेताओं, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों सहित विभिन्न व्यक्तियों पर जासूसी करने के लिए इज़रायली सैन्य ग्रेड जासूसी स्पाईवेयर पेगासस का इस्तेमाल किया था. 25 अगस्त, 2022 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने खुलासा किया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तकनीकी समिति को पेगासस के अनधिकृत उपयोग की जांच में 29 सेलफोन में से कुछ में मैलवेयर मिला था और सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहे जाने के बावजूद जांच में सहयोग करने से इनकार कर दिया था.
कन्फर्म टिकट वाले यात्री ही रेलवे स्टेशनों पर प्रवेश कर सकेंगे : रेलवे प्लेटफार्मों पर भीड़ को रोकने के लिए भारतीय रेलवे ने निर्णय लिया है कि केवल कन्फर्म टिकट वाले यात्रियों को ही रेलवे स्टेशनों पर प्रवेश की अनुमति दी जाएगी. शुक्रवार को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने शीर्ष रेलवे अधिकारियों के साथ बैठक कर प्रमुख स्टेशनों पर भारी भीड़ को नियंत्रित करने के उपायों की घोषणा की. फिलहाल देश में 60 ऐसे रेलवे स्टेशनों को चिन्हित किया गया है, जहां यह नई व्यवस्था लागू की जाएगी. रेल मंत्री ने कहा, “इन 60 स्टेशनों पर प्रवेश को पूरी तरह से नियंत्रित किया जाएगा. कन्फर्म रिजर्व टिकट वाले यात्रियों को सीधे प्लेटफार्म तक पहुंचने की अनुमति दी जाएगी. बिना टिकट या प्रतीक्षा सूची वाले यात्रियों को बाहर प्रतीक्षा क्षेत्र में रुकना होगा. स्टेशनों पर सभी अनधिकृत प्रवेश द्वारों को सील कर दिया जाएगा.
एक और जगुआर क्रैश, पुराने बेड़े को कायम रखने की चुनौती : शुक्रवार को हरियाणा के पंचकूला में भारतीय वायु सेना का एक फाइटर जेट जगुआर क्रैश हो गया. अंबाला एयरबेस से उड़ान भरते ही यह दुर्घटना हुई. हालांकि, पायलट सुरक्षित बचकर बाहर निकलने में कामयाब हो गया. विमान में तकनीकी खराबी आई थी. वायुसेना ने जांच के आदेश दिए हैं. गौरतलब है कि भारतीय वायुसेना ने हाल के वर्षों में जगुआर विमान के बेड़े से जुड़ी कई घटनाओं का सामना किया है, जो दरअसल, एक पुराने बेड़े को कायम रखने की चुनौतियों को उजागर करता है. ब्रिटिश-फ्रेंच सुपरसोनिक जेट जगुआर 1970 के दशक के अंत से भारतीय वायु सेना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है. हालांकि, जैसे-जैसे यह विमान पुराना हो रहा है, तकनीकी खराबियों के कारण कई दुर्घटनाएं हुई हैं. “द इंडियन एक्सप्रेस” में मन अमन सिंह चीना ने लिखा है कि ये घटनाएं भारतीय वायुसेना के पुराने होते जगुआर विमानों के बेड़े के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करती हैं, जिनकी संख्या अब लगभग 121 विमान है. ये लड़ाकू विमान, जिन्हें 1979 में अधिग्रहित किया गया था, अपनी सेवा अवधि बढ़ाने के लिए एक अपग्रेड से गुजर रहे हैं. हालांकि, कमजोर इंजन और पुराने एयरफ्रेम जैसी समस्याएं बनी हुई हैं, जिन्हें बजट की कमी और इंजन अपग्रेड में देरी ने और बढ़ा दिया है. भारतीय वायु सेना ने स्क्वाड्रन की सेवा क्षमता बनाए रखने के लिए रिटायर्ड एयरफ्रेम्स से पार्ट्स निकालने का सहारा लिया है, जो संसाधनों पर दबाव को दर्शाता है.
भारत रूस से टैंक इंजनों के बदले 2 लाख करोड़ रुपये देगा : 'द टेलीग्राफ' की खबर है कि रक्षा मंत्रालय ने टी-72 टैंकों के लिए इंजन की खरीद के लिए रूस के साथ तकरीबन 21,61,30,14000 रुपये (248 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का सौदा किया है. इस सौदे में रूस से चेन्नई के अवदी में स्थित राज्य-स्वामित्व वाली आर्मर्ड व्हीकल्स निगम लिमिटेड (हेवी व्हीकल फैक्ट्री) को तकनीकी हस्तांतरण भी शामिल है. मंत्रालय ने कहा कि उसने रोसोबोरोनेक्सपोर्ट के साथ 1,000 एचपी इंजन की खरीद के लिए 248 मिलियन अमेरिकी डॉलर का अनुबंध किया है, जो "पूर्ण रूप से बनाए गए, पूरी तरह से नॉकडाउन और सेमी-नॉकडाउन स्थितियों में" होंगे. मंत्रालय ने कहा कि इस सौदे में रोसोबोरोनेक्सपोर्ट से आर्मर्ड व्हीकल्स निगम लिमिटेड को तकनीकी हस्तांतरण भी शामिल है, ताकि इंजन के एकीकरण और बाद में लाइसेंस प्राप्त उत्पादन के लिए टीओटी के तहत 'मेक इन इंडिया' पहल को बढ़ावा दिया जा सके. टी-72 टैंक भारतीय सेना के टैंक बेड़े का मुख्य हिस्सा हैं, जो वर्तमान में 780 एचपी इंजन से लैस हैं.
हाईकोर्ट ने लगाई फिर बुलडोजर जस्टिस पर रोक : वृहस्पतिवार को राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की आलोचना करते हुए टिप्पणी कि वह “दंडात्मक विध्वंस” के लिए आमादा है. कोर्ट ने ब्यावर जिले में बलात्कार और ब्लैकमेल मामले में आरोपियों के घरों को तोड़ने पर रोक लगाने का आदेश दिया. न्यायमूर्ति महेंद्र कुमार गोयल ने उन परिवारों की याचिकाओं पर सुनवाई की, जिन्हें 20 फरवरी को उनके घरों को गिराने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे. इन नोटिसों में राजस्थान नगरपालिका अधिनियम की धारा 194 और 245 के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है, जो भवन मानदंडों और अवैध अतिक्रमण से संबंधित हैं.
इफ्तार के एलान पर इमाम समेत 9 गिरफ्तार : उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक मस्जिद के इमाम को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया, क्योंकि उसने इफ्तार की घोषणा करने के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग किया था. इसकी शिकायत एक हिंदूवादी संगठन ने पुलिस में दी. इसके बाद इमाम सहित नौ मुसलमानों को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने इस कार्य को "नई परंपरा" बताते हुए मस्जिद से लाउडस्पीकर हटा दिया, यह कहते हुए कि इससे सार्वजनिक व्यवस्था पर असर पड़ सकता है.
महिला पंचों की जगह उनके पति ले रहे थे शपथ : छत्तीसगढ़ के कबीरधाम (कवर्धा) जिले के परसवाड़ा ग्राम पंचायत में पंच पद पर निर्वाचित 6 महिलाओं की जगह उनके पति शपथ ले रहे थे. शपथ ग्रहण का वीडियो वायरल होने पर जिला प्रशासन ने पंचायत सचिव को निलंबित कर दिया और स्पष्ट किया कि पंचायत राज कानून में पति को शपथ दिलाने का प्रावधान नहीं है. शपथ लेने वाले चार पुरुषों ने 'इंडियन एक्सप्रेस' को बताया कि वे खुद चुनाव लड़ने के लिए तैयार थे, लेकिन जब वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित हो गए, तो उनके पास अपनी पत्नियों को चुनावी दौड़ में उतारने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं था. गांव की कुल जनसंख्या लगभग 1,700 है, जो 12 वार्डों में बटी हुई है. इनमें से छह वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित हैं.
हफ्ते में 90 घंटे काम से लेकर मासिक धर्म अवकाश तक : हाल ही में 90 घंटे प्रति हफ्ता काम करने की वकालत करने वाले लारसेन एंड टूब्रो (एलएंडीटी) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने घोषणा की है कि कंपनी के मुख्य समूह में कार्यरत महिला कर्मचारियों को अब प्रति माह एक दिन का मासिक धर्म अवकाश मिलेगा. कंपनी के 60 हजार कर्मचारियों में से लगभग 9% महिलाएँ हैं, और यह नीति उन्हीं पर लागू होगी. मिंट के मुताबिक यह कदम नौकरी.कॉम की रिपोर्ट 'दअनफ़िल्टर्ड ट्रूथ : व्हॉट वीमेन प्रोफेशनल्स रियली वॉन्ट्स’ के बाद आया है, जिसमें 34% महिलाओं ने मासिक धर्म अवकाश को समान वेतन से भी ऊपर अपनी प्राथमिक मांग बताया. उल्लेखनीय है कि एलएंडीटी की यह घोषणा सुब्रह्मण्यन के विवादास्पद बयान के बाद हुई है, जहाँ उन्होंने कर्मचारियों से सप्ताह में 90 घंटे काम करने की अपील की थी. इस बयान को सोशल मीडिया पर भारी आलोचना झेलनी पड़ी थी.
फिलीस्तीन में भी भारतीय मजदूर? इजरायली अधिकारियों ने वेस्ट बैंक के अल-ज़ैम गाँव में दस भारतीय निर्माण श्रमिकों को बचाया. श्रमिकों को एक स्थानीय निवासी द्वारा नौकरी का झूठा वादा करके लाया गया था, जिसने उनके पासपोर्ट जब्त कर लिए और उन्हें एक महीने तक बिना काम या दस्तावेज़ फंसाए रखा. चेकपॉइंट पर फिलिस्तीनी लोगों द्वारा उनके पासपोर्ट इस्तेमाल करने की कोशिश के बाद इजरायल ने उन्हें मुक्त कराया. एक अन्य घटना में, केरल के थॉमस पेरेरा को जॉर्डनियाई सुरक्षाकर्मियों ने इजरायल जाने की कोशिश के दौरान गोली मार दी. उनके जीवित बचे साला एडिसन चार्ल्स ने इमरान कुरैशी को बताया कि उन्हें जॉर्डन में नौकरी का झूठा लालच देकर लाया गया, लेकिन वहाँ काम नहीं मिला. एजेंट ने इजरायल जाने का सुझाव दिया, जिसके चलते वे पैदल सीमा पार करने वाले समूह में शामिल हुए. चार्ल्स के अनुसार, बिना किसी चेतावनी के गोली चलाई गई, जबकि भारतीय दूतावास ने परिवार को पत्र भेजकर कहा कि सुरक्षा बलों की चेतावनी को नज़रअंदाज करने के कारण यह घटना हुई.
पाठकों से अपील
ग्लोबल रैंकिंग को एक तरफ ठेंगा दिखाया, दूसरी तरफ बरगलाने की कोशिश भी की नई दिल्ली ने
वैश्विक रैंकिंग से लेकर 'लोकतंत्र' की नई परिभाषा तक : कैसे मोदी सरकार ने कथनों को नियंत्रित करने को बनाया शासन रणनीति
प्लैंक मैगज़ीन के लिए अनीशा दत्त ने एक खोजी रिपोर्ट भारत के विश्व रैंकिग्स को लेकर दुतरफे रवैये पर की है. उनके मुताबिक एक तरफ भारत हर उस ग्लोबल रैंकिंग को खारिज करने का कोरस खड़ा करता है, दूसरी तरफ उसने कई तरह के गुंताड़े और जुगाड़ लगा कर रैंकिंग देने वाली एजेंसियों को प्रभावित करने की कोशिश भी की है.
मसलन मार्च 2021, इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र रैंकिंग को खारिज कर दिया : "कुछ स्वयंभू संस्थाएँ अपने मानक थोपती हैं. भारत को उनकी मंजूरी की जरूरत नहीं."
यह प्रतिक्रिया उस समय आई, जब फ्रीडम हाउस ने भारत को ‘असहिष्णु लोकतंत्र’ घोषित किया और स्वीडन के वी-डेम इंस्टीट्यूट ने इसे ‘चुनावी तानाशाही’ बताया. ऊपर से भारत सरकार जितनी भी छाती ठोंक रही हो, अंदर से सरकार इन रैंकिंग के आर्थिक प्रभाव से चिंतित थी. वित्त मंत्रालय के तत्कालीन प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल की आंतरिक रिपोर्ट ने चेतावनी दी, "ये रैंकिंग हमारी कर्ज लागत बढ़ा सकती हैं."
2020 में कैबिनेट सेक्रेटरी राजीव गाबा ने 32 वैश्विक सूचकांकों पर नजर रखने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति बनाई. लक्ष्य था : रैंकिंग सुधारने के लिए नीतिगत सुधार. इसमें 'डेमोक्रेसी इंडेक्स' भी शामिल था, जिसकी जिम्मेदारी कानून मंत्रालय को दी गई. पहले भी मोदी सरकार ने 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' रैंकिंग में छलांग लगाने के लिए मानकों को रिवर्स-इंजीनियर किया था. उदाहरण के लिए, कंपनी सील की जरूरत खत्म कर दी गई या निर्यात दस्तावेज डिजिटल किए गए. ये छोटे बदलाव रैंकिंग तो सुधारते थे, लेकिन वास्तविक व्यापारिक माहौल में बड़ा बदलाव नहीं लाते थे.
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के 'डेमोक्रेसी इंडेक्स' को समझने के लिए भारतीय दूतावास ने लंदन में उनके प्रिंसिपल इकोनॉमिस्ट फंग सिउ से संपर्क किया. जुलाई 2021 की आंतरिक चर्चाओं के अनुसार, सिउ ने स्पष्ट कर दिया : "हम सरकारी डेटा नहीं लेते. हमारे स्रोत स्वतंत्र संस्थाएँ हैं." इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के 60 सवालों में चुनाव प्रक्रिया, नागरिक स्वतंत्रता, और सरकार के कामकाज जैसे मानक शामिल थे. सरकार को एहसास हुआ कि इन रैंकिंग को सीधे प्रभावित करना मुश्किल है.
नवंबर 2020 में, पूर्व प्रसार भारती अध्यक्ष सूर्य प्रकाश ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर सुझाव दिया : "भारत को लोकतंत्र की अपनी परिभाषा बनानी चाहिए." इस पत्र को गंभीरता से लिया गया और विदेश मंत्रालय को 'भारतीय लोकतंत्र की मजबूती' पर प्रेजेंटेशन बनाने का निर्देश दिया गया. इसमें रामायण के उदाहरण देकर भारत के "सभ्यतागत लोकतंत्र" को प्रस्तुत किया गया.
इसी समय, मंत्रियों के एक ग्रुप ने सरकारी संचार पर 97 पेज की रिपोर्ट तैयार की, जिसमें मीडिया, अकादमिया और वैश्विक मंचों पर नियंत्रण की रणनीति शामिल थी. रिपोर्ट में पत्रकारों को "सहयोगी" और "विरोधी" में वर्गीकृत करने, आलोचकों को हाशिए पर डालने, और सरकारी उपलब्धियों को प्रमुखता देने की बात कही गई.
2023 में सरकार ने ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) को अपना "भारतीय लोकतंत्र सूचकांक" बनाने का जिम्मा दिया. यह पश्चिमी संस्थाओं के विकल्प के रूप में था. साथ ही, वी-डेम जैसे संस्थानों को बदनाम करने का अभियान चलाया गया. सोशल मीडिया पर वी-डेम को "जॉर्ज सोरोस की साजिश" बताया गया, जबकि संसद में राज्यसभा अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने कहा : "स्वीडन की रिपोर्ट का क्या मतलब? ये सब राजनीतिक हैं." वी-डेम के निदेशक स्टैफन लिंडबर्ग ने बताया : "भारत सरकार की प्रतिक्रिया सबसे आक्रामक रही. हमारे भारतीय विशेषज्ञों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा."
सरकार की रणनीति स्पष्ट है : वैश्विक आलोचना को "पश्चिमी षड्यंत्र" बताकर खारिज करो, अपनी कहानी खुद लिखो, और विरोधियों को दबाओ. लेकिन, जब एक लोकतंत्र आलोचना को बर्दाश्त नहीं कर सकता, तो यह उसकी कमजोरी को ही उजागर करता है. जयशंकर ने कहा था : "हमें किसी की मंजूरी नहीं चाहिए." लेकिन, सत्ता की यह जिद लोकतंत्र के मूल सिद्धांत-पारदर्शिता, जवाबदेही, और स्वतंत्र संस्थाओं-के लिए खतरा बनती है. आखिरकार, लोकतंत्र की असली परीक्षा रैंकिंग नहीं, बल्कि उसकी आत्मनिरीक्षण की क्षमता होती है.
अजय भल्ला की अपील का असर नहीं मणिपुर पर
लगभग 22 महीने बाद, जब मणिपुर में जातीय हिंसा शुरू हुई थी, लूटे गए हथियारों और गोला-बारूद का एक बड़ा भंडार अभी भी उग्रवादी समूहों के पास है. हालांकि राज्य सरकार के दबाव में कुछ हथियार सौंपे गए हैं, लेकिन आधुनिक हथियारों की बड़ी संख्या अब भी गायब है, जिससे क्षेत्र में चल रहे सुरक्षा संकट को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं. 27 फरवरी को पहली डेडलाइन के अंतिम दिन अरामबाई टेंगगोल ने इंफाल 246 हथियार सौंपे. इसके अलावा, विभिन्न पहाड़ी और घाटी क्षेत्रों में 61 अतिरिक्त हथियार सौंपे गए, जिससे कुल संख्या 307 हो गई. मणिपुर पुलिस सौंपे गए हथियारों की जानकारी नियमित रूप से “एक्स” पर साझा करती है, लेकिन अरामबाई टेंगगोल द्वारा इसका उल्लेख नहीं किया जाता.
हालांकि, हिंसा शुरू होने के बाद लूटे गए हथियारों का यह एक छोटा हिस्सा है. “द वायर ” के अनुसार अरामबाई टेंगगोल और मैतेई लीपुन ने बड़ी संख्या में हथियार लूटे थे, जिनमें से अधिकांश अभी भी प्रचलन में हैं. उल्लेखनीय है कि 27 फरवरी की अंतिम तिथि नजदीक आने पर भी जब इस दिशा में बहुत प्रगति नहीं हुई, तो राज्यपाल अजय भल्ला ने डेडलाइन को 6 मार्च तक बढ़ा दिया था और अनुपालन न करने पर गंभीर परिणामों की चेतावनी दी थी. लेकिन हथियारों की सुपुर्दगी की रफ्तार बहुत धीमी है. इस बीच स्क्रोल की खबर है कि दो सप्ताह की माफी अवधि के दौरान 1,000 से अधिक हथियार सरेंडर किए गए हैं. राज्य के शस्त्रागारों से लगभग 6,000 हथियार लूटे गए थे.
हाथरस भगदड़ : न्यायिक जांच से योगी के ही दोनों सवालों का जवाब नहीं मिला
इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बृजेश कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग ने अपने निष्कर्षों में कहा है कि हाथरस भगदड़ की घटना यूपी सरकार को बदनाम करने या प्रचार पाने के लिए एक साजिश का हिस्सा हो सकती है. आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपते हुए यह भी कहा कि यदि राज्य सरकार द्वारा गठित एसआईटी से इस आपराधिक पहलू की गहराई से जांच कराई जाए तो यह कानूनी तौर पर उचित होगा. बता दें कि जुलाई 2024 में हुई इस भगदड़ में 121 लोगों की मौत हो गई थी. “द वायर” में ओमर रशीद ने लिखा है कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भगदड़ के बाद न्यायिक जांच की घोषणा करते हुए कहा था, “हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि ऐसी घटनाएं मात्र दुर्घटनाएं नहीं होतीं. यदि यह दुर्घटना थी, तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? और यदि यह दुर्घटना नहीं थी, तो इसके पीछे साजिश किसकी है?” दिलचस्प यही है कि इन दोनों सवालों का जवाब अब भी नहीं मिला है.
हाईकोर्ट ने ‘मनुस्मृति’ को पवित्र ग्रंथ बताया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ‘मनुस्मृति’ को पवित्र ग्रंथ बताते हुए राजद प्रवक्ता और जेएनयू की पीएचडी स्कॉलर प्रियंका भारती के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया है. भारती पर आरोप है कि उन्होंने एक लाइव टीवी डिबेट के दौरान ‘मनुस्मृति’ के पन्ने फाड़े थे. इस घटना के बाद उनके खिलाफ अलीगढ़ के पुलिस स्टेशन में बीएनएस की धारा 299 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. हाईकोर्ट ने एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह कार्य प्रथम दृष्टया एक संज्ञेय अपराध है. न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने 28 फरवरी को दिए गए आदेश में कहा कि कोर्ट इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकती कि प्रियंका भारती एक उच्च शिक्षित व्यक्ति हैं और वह एक टीवी डिबेट में भाग ले रही थीं. इसलिए वह यह दलील नहीं दे सकतीं कि यह कृत्य अज्ञानता में किया गया था. अपनी याचिका में आरजेडी प्रवक्ता ने तर्क दिया था कि बहस के दौरान जब उनसे कुछ सवाल पूछे जा रहे थे, तब यह कथित घटना घटी और उनका कोई इरादा या जानबूझकर किसी व्यक्ति या धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं था. किसी भी हालत में इससे सार्वजनिक व्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ा. हालांकि, कोर्ट ने यह तर्क नकार दिया.
आरएसएस के भीतर फिर एनआरसी का कोरस
एनआरसी का मुद्दा अब राष्ट्रीय राजनीतिक विमर्श में वापसी करता हुआ दिखाई दे रहा है. एनआरसी को संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की वार्षिक बैठक के प्रमुख एजेंडा में शामिल किया जा सकता है, जो संघ के निर्णय लेने वाला सर्वोच्च निकाय है. यह बैठक इस वर्ष 21 से 23 मार्च तक बेंगलुरु में आयोजित की जाएगी. 'इंडियन एक्सप्रेस' ने सूत्रों के हवाले से छापा है कि एबीपीएस में पूरे भारत में एनआरसी के क्रियान्वयन पर चर्चा की संभावना है और यह भी विचार किया जाएगा कि इसे कुछ खास राज्यों में कैसे लागू किया जाना चाहिए. एक आरएसएस पदाधिकारी ने कहा- 'देश के कई राज्यों की जनसंख्या में अवैध अप्रवास के कारण बदलाव आया है. जैसे, झारखंड में मुस्लिमों की तुलना में ईसाई जनसंख्या घट रही है. अरुणाचल प्रदेश जैसे रणनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य की जनसंख्या में भी बांग्लादेश से आव्रजन के कारण तेजी से बदलाव हो रहा है. हम सभी जानते हैं कि असम और पश्चिम बंगाल में क्या हुआ है. यह केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह अवैध अप्रवासियों की पहचान करे और उन्हें निर्वासित करे.'
गौरतलब है कि 2019 के विरोध प्रदर्शनों के बाद सरकार ने एनआरसी पर कोई भी कदम नहीं उठाया है और न ही कोई महत्वपूर्ण बयान ही दिया है. यहां तक कि भाजपा, जिसने 2019 के चुनावी घोषणा पत्र में एनआरसी का मुद्दा शामिल किया था, उसने इसे 2024 के चुनावी घोषणा पत्र से हटा लिया था. हालांकि भाजपा नेता समय-समय पर इस मुद्दे पर बयान देते रहे हैं. पिछले साल झारखंड विधानसभा चुनावों से पहले केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था- 'झारखंड में एनआरसी लागू किया जाएगा और अवैध अप्रवासियों की पहचान कर उन्हें राज्य से हटा दिया जाएगा.' झारखंड के सांसद निशिकांत दुबे ने भी एनआरसी पर कुछ ऐसी ही टिप्पणी की थी.
आरएसएस का एनआरसी पर रुख
संघ हमेशा से पूरे देश में एनआरसी की वकालत करता आया है. अक्टूबर 2019 में आरएसएस के तत्कालीन महासचिव सुरेश भैय्याजी जोशी ने भुवनेश्वर में संघ के कार्यकारी मंडल की बैठक के बाद कहा था- 'यह हर सरकार का काम है कि वह एनआरसी तैयार करे. कई प्रकार की घुसपैठ हुई है. इसलिए, एक एनआरसी तैयार करना और उन सभी की पहचान करना महत्वपूर्ण है, जो भारतीय नागरिक नहीं हैं और फिर उनके बारे में नीति बनाई जाए कि उनके साथ क्या किया जाए.'
जुलाई 2021 में खुद भागवत ने भी इस मुद्दे पर चिंताओं को दूर करने की कोशिश की थी और असम में एक कार्यक्रम में कहा था कि इस मुद्दे को कुछ वर्गों ने राजनीतिक लाभ के लिए सांप्रदायिक रंग दे दिया है. भागवत ने तब कहा था- 'यह एक हिंदू-मुस्लिम मुद्दा बन गया है, जबकि यह कोई मुद्दा नहीं है. एनआरसी यह निर्धारित करने का एक तरीका है कि कौन असली नागरिक है. ऐसी प्रक्रियाएँ दुनिया भर के कई देशों में अपनाई जाती हैं. जो लोग बाहर रह गए हैं, उनके साथ क्या किया जाए, यह एक और मामला है, लेकिन कम से कम हमें पहले यह तो पता चल जाए कि इस देश में नागरिक कौन हैं.'
भागवत ने यह भी बार-बार कहा है कि "भारत में जनसांख्यिकीय असंतुलन" सिर्फ किसी विशेष समुदाय की उच्च जन्म दर के कारण नहीं है, बल्कि यह बिना दस्तावेज़ीकरण वाले प्रवास के कारण भी है.
युद्ध और शांति
यूक्रेन पर हमले तेज़, ट्रम्प का निशाना रूस की तरफ
व्हाइट हाउस से आ रही खबरों के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यूक्रेन युद्ध पर अपने बयानों में विरोधाभासी रुख अपनाया है. एक तरफ, उन्होंने रूस द्वारा यूक्रेन पर "जमकर बमबारी" करने की बात स्वीकार की और इस पर अप्रसन्नता जताई, वहीं दूसरी ओर, उन्होंने यूक्रेन के नेतृत्व के साथ "डील करना मुश्किल" बताया और संदेह जताया कि क्या यूक्रेन शांति चाहता भी है. ट्रम्प ने यहाँ तक कि संभावित "तीसरे विश्व युद्ध " की चेतावनी भी एक बार फिर से दे डाली.
ट्रम्प ने रूस पर "बड़े पैमाने पर बैंकिंग प्रतिबंध, प्रतिबंध और टैरिफ" लगाने की संभावना का अस्पष्ट संकेत दिया, लेकिन यह धमकी, यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य और खुफिया सहायता रोकने के कठोर निर्णय के मुकाबले कमजोर प्रतीत होती है. अमेरिका द्वारा खुफिया जानकारी साझा करना बंद करने के तुरंत बाद रूस ने यूक्रेन के ऊर्जा और गैस अवसंरचना पर व्यापक मिसाइल और ड्रोन हमले शुरू कर दिए, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई है. यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने हमलों की पुष्टि करते हुए कहा कि यह सामान्य जीवन को बाधित करने का प्रयास है.
रूस के राष्ट्रपति पुतिन के बारे में ट्रम्प का कहना है कि उन्हें लगता है कि पुतिन युद्ध को "समाप्त" करना चाहते हैं, हालांकि वे यूक्रेन पर और भी अधिक "कठोरता से हमला" कर रहे हैं. ट्रम्प का यह भी मानना है कि रूस के पास युद्ध में "सभी कार्ड" हैं, और यूक्रेन से निपटना अधिक कठिन है. क्रेमलिन ने यूरोपीय संघ द्वारा अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने की योजनाओं पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि रूस इसे अपने "मुख्य प्रतिद्वंद्वी" के रूप में देखता है.
इन हमलों के बीच, ज़ेलेंस्की सऊदी अरब की यात्रा करने वाले हैं, जहाँ अमेरिकी और यूक्रेनी दल शांति मसविदे पर चर्चा करने के लिए मिलने वाले हैं. ज़ेलेंस्की ने कहा है कि यूक्रेन "तेज़ और विश्वसनीय शांति" चाहता है और ट्रम्प के नेतृत्व में काम करने के लिए तैयार है, लेकिन अमेरिका के शत्रुतापूर्ण रवैये के बावजूद, उन्होंने संघर्ष विराम योजना का भी प्रस्ताव रखा है, जिसमें मिसाइलों, ड्रोन और हवाई बमों के उपयोग पर प्रतिबंध और काला सागर में सैन्य अभियानों को निलंबित करने की बात शामिल है.
यूक्रेनी सांसद येहोर चेर्निएव ने जोर देकर कहा कि यूक्रेन "किसी भी कीमत पर शांति" के लिए तैयार नहीं है और वह आत्मसमर्पण नहीं करेगा. उन्होंने कहा कि यूक्रेन के पास अपनी रक्षा करने की क्षमता है और वह अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी को महत्व देता है. सर्वेक्षणों में यह भी देखा गया है कि ट्रम्प के साथ विवाद के बाद ज़ेलेंस्की की लोकप्रियता में वृद्धि हुई है, क्योंकि यूक्रेनियन अमेरिकी प्रशासन के रवैये को यूक्रेन पर हमले के रूप में देख रहे हैं.
चीन ने अमेरिका को अराजकता का जनक बताया
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के शीर्ष राजनयिक वांग यी ने अमेरिका के ट्रम्प प्रशासन को वैश्विक अराजकता का स्रोत बताया और चीन को शांति और स्थिरता का गढ़ बताया. वांग यी ने कहा कि अमेरिका की तरह स्वार्थी होकर काम करने से दुनिया जंगल राज में लौट जाएगी. उन्होंने ट्रम्प प्रशासन द्वारा वैश्विक व्यापार को बाधित करने और गठबंधनों को कमजोर करने की आलोचना की, जिसके विपरीत चीन खुद को एक जिम्मेदार और स्थिर शक्ति के रूप में पेश कर रहा है.
वांग यी ने चीन की भूमिका को उजागर करते हुए कहा कि चीन अनिश्चित दुनिया को निश्चितता देगा. हालांकि, रिपोर्ट यह भी बताती है कि चीन ने खुद भी वैश्विक तनाव बढ़ाया है. चीनी औद्योगिक नीतियों ने दुनिया को सस्ते सामानों से भर दिया है, जिससे व्यापार असंतुलन पैदा हुआ है. चीन ताइवान और दक्षिण चीन सागर में सैन्य दबाव भी बढ़ा रहा है, जिसे वांग यी ने रक्षात्मक कार्रवाई बताया.
वांग यी ने कहा कि अगर ट्रम्प प्रशासन और अधिक शुल्क लगाता है तो बीजिंग दृढ़ता से पलटवार करेगा.
वांग यी ने कहा, "यदि आप सहयोग करना चुनते हैं, तो आपको पारस्परिक लाभदायक परिणाम प्राप्त होंगे; यदि आप अंधाधुंध दबाव डालते हैं, तो चीन निश्चित रूप से, दृढ़ता से मुकाबला करेगा."
वांग यी ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका को अपने फेंटनिल संकट के समाधान के लिए "अपने भीतर देखना" चाहिए और समस्या के लिए चीन जैसे देशों को दोष नहीं देना चाहिए, उन पर शुल्क लगाना तो दूर की बात है. उन्होंने ट्रम्प प्रशासन पर चीन के प्रति "दोमुंहा" होने का भी आरोप लगाया. कहा- एक तरफ ट्रम्प चीन के नेता शी जिनपिंग को सार्वजनिक रूप से प्रस्ताव दे रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ चीन पर टैरिफ लगाकर हमले कर रहे हैं.
अर्णब गोस्वामी पर नफरत फैलाने वाले को लेकर हुई एफआईआर पर कार्रवाई करने से रोक
'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि राजस्थान हाई कोर्ट ने रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के एडिटर इन चीफ अर्णब गोस्वामी के खिलाफ दर्ज नफरत फैलाने वाले भाषण की एफआईआर पर किसी भी किस्म की कार्रवाई से रोक लगा दी है. यह एफआईआर कांग्रेस नेता पवन खेड़ा की शिकायत पर दर्ज की गई थी. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा- 'एफआईआर की सामग्री का परीक्षण करने पर, यह प्रथमदृष्ट्या प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों में कथित अपराधों से उन्हें जोड़ने वाली कोई ठोस सामग्री नहीं है.' यह एफआईआर 2022 में उदयपुर के अंबामाता पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत दर्ज की गई थी. यह मामला रिपब्लिक भारत द्वारा अलवर के राजगढ़ में एक मंदिर को तोड़े जाने के बारे में रिपोर्ट के बाद दर्ज हुआ था. गोस्वामी के वकीलों ने कहा कि वह रिपब्लिक भारत के संपादकीय निर्णयों में शामिल नहीं थे और न ही उन्होंने इस समाचार, बहस या प्रसारण में किसी भी प्रकार से भाग लिया था.
भारत में व्हाट्सएप के जरिए आसानी से खरीदे जा सकते हैं अवैध हथियार
"राम-राम नमस्कार जिस मेरे भाई को सामान 🔫 चाहिए"
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के अध्ययन में खुलासा : 234 समूहों में 8,000 से अधिक संदेशों से फैल रहा अवैध हथियारों का कारोबार
यशराज शर्मा ने रेस्ट ऑफ वर्ल्ड में व्हाट्सएप समूहों के मार्फत हथियार बेचे जाने के बारे में लिखा है. उत्तर प्रदेश के एक अवैध हथियार विक्रेता राहुल (बदला हुआ नाम) को रोज़ाना व्हाट्सएप पर 100 से अधिक ग्राहकों के संदेश मिलते हैं. वह सार्वजनिक ग्रुप्स में हथियारों की तस्वीरें पोस्ट करते हैं और सीधे खरीदारों से बात करते हैं. उनका कहना है, "कोई हत्या के लिए खरीदे या सुरक्षा के लिए, हमें फर्क नहीं पड़ता."
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के डिजिटल विटनेस लैब के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में व्हाट्सएप अवैध हथियार बाजार का ठीक-ठाक प्लेटफॉर्म बन गया है. अप्रैल 2024 से जनवरी 2025 के बीच शोधकर्ताओं ने 234 व्हाट्सएप ग्रुप्स में 8,000 से अधिक हथियार विज्ञापन संदेश खोजे, जिनमें से अधिकांश सार्वजनिक थे. इनमें से कई ग्रुप्स के सैकड़ों सदस्य थे. व्हाट्सएप पर हथियारों की बिक्री मेटा की नीतियों के खिलाफ है, लेकिन यह कारोबार फल-फूल रहा है. 2023 में मेटा ने फेसबुक पर धार्मिक चरमपंथियों के एक फोरम से हथियार संबंधी पोस्ट हटाए थे, लेकिन व्हाट्सएप पर नियंत्रण मुश्किल है. कंपनी ने कहा, "हम कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर काम करते हैं."
भारत में बंदूक रखने के लिए लाइसेंस अनिवार्य है, पर 2022 में जब्त 97% हथियार अवैध थे. एक पुलिस अधिकारी ने बताया, "सोशल मीडिया पर हथियार बेचना कानून का उल्लंघन है." व्हाट्सएप की एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन सुविधा के कारण संदेशों की निगरानी मुश्किल है, लेकिन ग्रुप्स के नाम और विवरण (जो एन्क्रिप्टेड नहीं होते) में भी हथियारों के विज्ञापन मिले. शोधकर्ता सूर्या मट्टू के अनुसार, "मेटा बुनियादी निगरानी भी नहीं कर रहा."
कई ग्रुप्स हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों से जुड़े थे और मुस्लिम-ईसाई विरोधी संदेश शेयर करते थे. कुछ ग्रुप्स का नाम अपराधी लॉरेंस बिश्नोई के नाम पर था. शोधकर्ताओं ने "राम-राम नमस्कार जिस मेरे भाई को सामान 🔫 चाहिए" जैसे कोड वाक्यों का इस्तेमाल देखा.
उत्तर प्रदेश के दीपक (15 साल के अनुभवी विक्रेता) को रोज़ 400-500 संदेश मिलते हैं, जिनसे 4-5 बिक्री होती है. वह मासिक 4 लाख रुपये तक कमाता है. डिलीवरी का खर्च खरीदार उठाता है. राजस्थान के पूर्व डीआईजी प्रदीप मोहन शर्मा और दिल्ली साइबर यूनिट प्रमुख हेमंत तिवारी ने कहा कि उनके पास व्हाट्सएप पर हथियार बिक्री के मामले नहीं आए. तिवारी के अनुसार, "यह मेटा की विफलता है."
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के अपार गुप्ता ने कहा, "यह कानून प्रवर्तन की विफलता है, न कि कंटेंट मॉडरेशन की समस्या." व्हाट्सएप की पहुंच और गोपनीयता ने अवैध हथियार बाजार को बढ़ावा दिया है. दीपक जैसे विक्रेता निडर हैं: "मुझे डर नहीं, मेरे पास ताकत है."
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