08/04/2025: ट्रम्प और चीन में छिड़ी टैरिफ जंग |दुनिया के स्टॉक मार्केट औंधे मुंह | बिहार में भाजपा के दोस्त दिक्कत में | तमिलनाडु ने 9.69% की रिकार्ड वृद्धि | उस्ताद का राग मारवा
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आज की सुर्खियां :
बिहार में भाजपा के दोस्त दिक्कत में
मणिपुर में वक़्फ़ बिल के समर्थन पर भीड़ ने बीजेपी नेता का घर फूंका
नया कानून सुप्रीम कोर्ट के 'एक बार वक़्फ़, हमेशा वक़्फ़' के सिद्धांत का उल्लंघन करता है
प्रयागराज में केसरिया झंडों के साथ गाज़ी के मकबरे पर चढ़े, नारे लगाए
वाराणसी में 12वीं की छात्रा से 23 लोगों ने 7 दिन
तमिलनाडु ने 9.69% की रिकार्ड वृद्धि दर
सबके लिए 50 रुपए महंगा हुआ गैस सिलेंडर
तहव्वुर राणा की प्रत्यर्पण रोकने की अर्जी फिर खारिज
क्रेडिट कार्ड डिफॉल्ट में 28% की वृद्धि, पहुंचा ₹6,742 करोड़
अमेरिका सड़क पर उतरा ट्रम्प के खिलाफ
गहरी और दूर तक मार पड़ी है यूएसएड पर रोक से
ढाका ने चीन को कोलकाता के पास बंदरगाह सौंपा और पाकिस्तान को एयरबेस
दुनिया का कारोबार ट्रम्प और चीन के बीच फंसा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोमवार को कहा कि अगर चीन ने अमेरिकी सामानों पर लगाए गए 34% के प्रतिशोधी टैरिफ को नहीं हटाया, तो अमेरिका बुधवार से चीनी सामानों पर 50% अतिरिक्त शुल्क लगा देगा. इसका मतलब है कि कुछ अमेरिकी कंपनियों को चीन से आयातित सामान पर कुल 104% टैक्स देना पड़ सकता है. चीन ने कहा कि वह भी देख लेगा. चीन ने कहा कि वह अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के लिए तैयार है और इससे वह और मजबूत होकर उभरेगा.
इस घोषणा के बाद दुनिया भर के शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखी गई. वॉल स्ट्रीट में जहां एसएंडपी 500 में भारी उतार-चढ़ाव हुआ और यह बियर मार्केट के करीब पहुंच गया. एशियाई बाजारों में भी हाहाकार मचा - हांगकांग का शेयर बाजार 13% और ताइवान का 10% तक लुढ़क गया. यूरोपीय बाजारों का हाल भी कुछ बेहतर नहीं रहा, जहां लंदन का FTSE 100 इंडेक्स 4.4% और यूरोप का Stoxx 600 इंडेक्स 4.5% तक गिर गया.
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प के इस फैसले से महंगाई बढ़ेगी, आपूर्ति श्रृंखला बिगड़ेगी और विश्व अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है. क्रिप्टोकरेंसी मार्केट भी इससे अछूता नहीं रहा - बिटकॉइन की कीमत में 10% की गिरावट दर्ज की गई. तेल बाजार में भी हलचल रही और ब्रेंट क्रूड की कीमत $60 प्रति बैरल से नीचे आ गई.
चीन ने अमेरिका की चेतावनी का जवाब देते हुए कहा कि वह व्यापार युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार है और इस लड़ाई से वह और मजबूत होकर उभरेगा. दूसरी ओर, यूरोपीय संघ ने तनाव कम करने के लिए अमेरिका को "ज़ीरो-फॉर-ज़ीरो" टैरिफ का प्रस्ताव दिया है, जिसके तहत कारों और औद्योगिक सामानों पर कोई शुल्क नहीं लगेगा. जापान, मेक्सिको और बांग्लादेश जैसे देशों ने भी ट्रम्प से टैरिफ में छूट की मांग की है.
दिग्गज अरबपतियों ने भी ट्रम्प की इस नीति की आलोचना की है. निवेशक बिल एकमैन ने इसे "आर्थिक परमाणु युद्ध" बताया, जबकि जेपी मॉर्गन के सीईओ जेमी डायमन ने चेतावनी दी कि इससे महंगाई बढ़ सकती है और मंदी आ सकती है. टेस्ला के मालिक इलोन मस्क ने भी यूरोप और अमेरिका के बीच "ज़ीरो टैरिफ" की वकालत की है.
फिलहाल ट्रम्प की टैरिफ नीति से पूरे विश्व के बाजारों में हड़कंप मचा हुआ है. अगर चीन और अमेरिका के बीच तनाव और बढ़ता है, तो विश्व अर्थव्यवस्था गंभीर मंदी की चपेट में आ सकती है. हालांकि कई देश अमेरिका से बातचीत कर रहे हैं, लेकिन ट्रम्प अभी अपने रुख से पीछे हटते नहीं दिख रहे हैं.
भारत पर असर
शेयर बाज़ार में सोमवार को निवेशकों की संपत्ति में भारी गिरावट दर्ज की गई, जिससे उनके लगभग ₹14 लाख करोड़ डूब गए. यह नुकसान प्रमुख सूचकांकों में तेज गिरावट के कारण हुआ, जो वैश्विक बाजारों में मंदी की आशंका के चलते प्रभावित हुए.
30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 2,226.79 अंक या 2.95 प्रतिशत गिरकर 73,137.90 पर बंद हुआ. दिन के दौरान, यह सूचकांक 3,939.68 अंक या 5.22 प्रतिशत की भारी गिरावट के साथ 71,425.01 तक पहुंच गया था. शेयर बाजार में इस मंदी का असर बीएसई-सूचीबद्ध कंपनियों के बाजार पूंजीकरण पर भी पड़ा, जो एक ही दिन में ₹14,09,225.71 करोड़ घटकर ₹3,89,25,660.75 करोड़ (4.54 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) हो गया.
अमेरिकी टैरिफ के बीच, विदेशी निवेशकों ने इस महीने अब तक के पिछले चार कारोबारी सत्रों में भारत के शेयर बाजारों से 10,355 करोड़ रुपये निकाल लिए हैं.
विश्लेषण
आकार पटेल : क्या टैरिफ की जंग भी अमेरिका के पुरानी जंगों की तरह होगी?
व्यापार युद्ध कैसे खत्म होते हैं? इसका जवाब पाने के लिए, हमें यह पूछना होगा कि युद्ध कैसे खत्म होते हैं? जवाब है कि एक बार शुरू हो जाने के बाद, उन्हें खत्म करना आसान नहीं होता. ज्यादातर समय, व्यापार और कूटनीति जनता की नज़र से दूर होते हैं. यह न केवल गोपनीयता के कारण है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि इन कार्रवाइयों के ब्यौरे इतने उबाऊ होते हैं कि समाचार बहसों में लोगों की दिलचस्पी नहीं होती. एक देश दूसरे देश को डेयरी, सोया और ऑटो स्पेयर पार्ट्स पर क्या टैरिफ लगाता है, और उसे क्या लगाना चाहिए, यह कोई रोचक सामग्री नहीं है. इसी तरह, नेताओं के बीच 'शिखर' बैठकों का तमाशा, हालांकि अंततः अर्थहीन होता है. शिखर वार्ताएं उन अधिक महत्वपूर्ण लेकिन ज्यादा उबाऊ बैठकों से हमारा ध्यान खींच लेता है, जिनमें विवादों को सुलझाने के लिए राजनयिकों को बारीकियों पर चर्चा करनी पड़ती है.
इन बैठकों के बाद भी मतभेद रह सकते हैं, लेकिन स्थिति को जैसा है वैसा ही रखने का विकल्प सबसे अधिक अपनाया जाता है. असहमति को हिंसा में बदलना कम ही होता है.
लेकिन जब ऐसा होता है, तो उस पर काबू पाना आसान नहीं होता. कारण यह है कि जो पक्ष इसे शुरू करता है, वह अकेला नहीं होता जिसके पास कार्रवाई करने की शक्ति है. दूसरे देश की प्रतिक्रिया, उसका समय, उसकी तीव्रता और उसकी प्रभावशीलता का अनुमान लगाना असंभव है. जैसा कि मुक्केबाज माइक टायसन ने सुंदर ढंग से कहा: 'हर किसी के पास एक प्लान होता है जब तक घूंसा उनके चेहरे पर नहीं पड़ता.'
युद्ध तब ख़त्म होते हैं जब दोनों पक्षों को बहुत नुकसान हो चुका हो और वे और नुकसान उठाने को तैयार न हों. या वे तब समाप्त होते हैं जब एक पक्ष इतना मजबूत हो जाता है कि दूसरे को झुकना पड़े. बिल्कुल उस तरह जैसे स्कूल में एक बड़े बच्चे और एक छोटे बच्चे के बीच लड़ाई में होता है. कमज़ोर बच्चे के पास हार मानने के अलावा कोई चारा नहीं होता.
इस उदाहरण के विपरीत, युद्धों और व्यापार युद्धों में एक और तत्व होता है, जिसके कारण उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होता है और तनाव बढ़ने की भविष्यवाणी करना असंभव होता है. यह है राष्ट्रीय गर्व और राष्ट्रीय अस्तित्व. इसीलिए व्यापार और कूटनीति तब काम करते हैं जब वे जनता की नज़र से दूर होते हैं. जब वे लोकप्रिय बातचीत का हिस्सा बन जाते हैं और जनता भागीदार बन जाती है, अपने नेताओं की बातों से गुस्से में आकर कि दूसरा पक्ष उन्हें लूट रहा है, तो सब कुछ बदल जाता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति कहते हैं कि वे चीन को टैरिफ के साथ सजा दे रहे हैं और फिर साथ ही उसे चेतावनी देते हैं कि वह बदला न ले नहीं तो वे और सजा देंगे. चीन की प्रतिक्रिया अमेरिका पर तुरंत समान सजा लगाने की है. कुछ लोग तर्क देंगे, और सही भी, कि टैरिफ ज्यादातर उस देश को सजा देता है जो इसे लगा रहा है क्योंकि उसके उपभोक्ता आयात शुल्क का भुगतान करेंगे.
मुद्दा यह नहीं है. यह व्यापार युद्ध है क्योंकि यह गोलीबारी के बिना युद्ध है. प्रभाव वास्तविक हैं क्योंकि एक पक्ष दूसरे को सक्रिय रूप से और भौतिक रूप से नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है और दूसरे को जवाब देने के लिए मजबूर किया जाता है. कनाडा पर टैरिफ लगाने के बाद, ट्रम्प ने लिखा: "कृपया कनाडा के गवर्नर ट्रूडो को समझाएं, कि जब वह अमेरिका पर जवाबी टैरिफ लगाते हैं, तो हमारा पारस्परिक टैरिफ तुरंत उसी राशि से बढ़ जाएगा!"
बहरहाल, कनाडा ने जवाब दे दिया और अब चीन ने भी. ट्रम्प के पास विकल्प हैं कि या तो वे वही करें जो उन्होंने कहा था, यानी उन पर और टैरिफ लगाएं, या पीछे हट जाएं. अगर वे और टैरिफ लगाते हैं, तो तनाव बढ़ता है और हालात उनके काबू से बाहर चली जाती हैं. अगर वे कार्रवाई नहीं करते, तो उन्हें ही हारा हुआ माना जाता है और उनकी विश्वसनीयता खत्म हो जाती है. इसीलिए एक बार शुरू होने के बाद युद्धों को खत्म करना मुश्किल होता है.
इसीलिए यह व्यापार युद्ध कुछ समय तक हमारे साथ रहेगा और इससे हमें भारत में चिंतित होना चाहिए. देखिए, 2004 से 2014 के बीच, भारत तेजी से बढ़ा क्योंकि उसका माल निर्यात लगभग 50 अरब डॉलर प्रति वर्ष से बढ़कर उस दशक में लगभग 320 अरब डॉलर प्रति वर्ष हो गया. यह मुख्य रूप से इसलिए था क्योंकि उस अवधि में वैश्विक व्यापार बढ़ रहा था और जब वैश्विक वित्तीय संकट के बाद व्यापार समतल हो गया, तो हमारी वृद्धि भी धीमी हो गई. आज, 10 साल बाद, माल निर्यात लगभग 400 अरब डॉलर है, जिसका अर्थ है कि तेज वृद्धि दर चली गई है. सीख यह है कि बढ़ता वैश्विक व्यापार भारत के लिए अच्छा है और व्यापार युद्ध हमारे लिए बुरे हैं. इसीलिए यह जरूरी है कि भारत इसे सुलझाने के प्रयास में कुछ नेतृत्व ले.
और हमारे पास आशावादी होने के कुछ कारण हैं. लोकतंत्र आमतौर पर खुद को सुधारते चलते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका तो और भी ज्यादा. इसकी संसद ऐसे प्रतिनिधियों द्वारा चलाई जाती है जिन्हें हर दो साल में चुनाव का सामना करना पड़ता है. अगर टैरिफ अगले कुछ हफ्तों और महीनों में विशेष रूप से विघटनकारी हैं, और जनता बेचैन है, तो नवंबर 2026 में चुनाव के लिए तैयार लोग अपने राष्ट्रपति पर उनके द्वारा पैदा किए गए उथल-पुथल को कम करने का दबाव डालना शुरू कर देंगे. भले ही उनकी योजना लंबे समय में काम करती दिखाई दे, यह दबाव इसे रद्द कर सकता है.
खुद ही सुधार करने वाले इस नियम का एक अपवाद है. और वह है जंग. संयुक्त राज्य अमेरिका का इतिहास दिखाता है कि वह गलत काम करता रहेगा और युद्ध जारी रखेगा, भले ही उसे खुद को नुकसान हो. वियतनाम और इराक इसे दिखाते हैं. 20 साल तक आत्मसमर्पण करने से पहले अफगानिस्तान में, अमेरिका ज्यादतियां करता रहा, कोई सबक नहीं सीखा. इस दौर में खुद को और अपने विरोधियों को सजा देता रहा. अमेरिकी जनता को इस पूरे दौर से कोई दिक्कत नहीं रही. इसकी निरंतरता बनाए रखने के लिए वह नागरिकों की जाने और खजाने के पैसे को खोती रही. सिर्फ इसलिए कि उन्हें लगता है कि इन लड़ाइयों में ही उनका राष्ट्रहित बसता है.
हम केवल आशा कर सकते हैं कि यह ट्रम्प के व्यापार युद्ध के लिए उतना सच नहीं है जितना असली युद्ध के लिए है.
वक़्फ़
बिहार में भाजपा के दोस्त दिक्कत में
पिछले सप्ताह संसद द्वारा वक़्फ़ संशोधन विधेयक पारित होने से बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल सामाजिक न्याय वाले दलों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. राज्य में विधानसभा के चुनाव कुछ माह दूर हैं, ऐसी स्थिति में जनता दल (यू) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने नुकसान की भरपाई के लिए हाथ-पांव मारने शुरू कर दिए हैं. वहीं, मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) मुस्लिम समुदाय के बीच अपना आधार मजबूत करने की कोशिश में लग गया है. उसने वक़्फ़ अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की घोषणा भी की है.
“द इंडियन एक्सप्रेस” में दीप्तिमान तिवारी की रिपोर्ट है कि जद (यू) के बिल का समर्थन करने के कारण राजद ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कथित “धर्मनिरपेक्ष छवि” को नुकसान पहुंचाने के लिए अभियान शुरू कर दिया है. शुक्रवार को उसने “एक्स” पर आरएसएस की यूनिफॉर्म में नीतीश कुमार की फोटो पोस्ट करते हुए कैप्शन दिया : “चीटीश कुमार.” शनिवार को राजद नेता तेजस्वी यादव ने घोषणा की कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो वह “नए कानून को कूड़ेदान में फेंक देंगे.” तेजस्वी के ऐलान के बाद से जद (यू) यह दावा कर रही है कि पार्टी छोड़ने वाले नेता महत्वहीन हैं. पार्टी ने अपने अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ को शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बिल का बचाव करने के लिए भी कहा. हालांकि, पूर्व राज्यसभा सांसद गुलाम रसूल बलियावी और पार्टी एमएलसी गुलाम गौस जैसे कुछ वरिष्ठ मुस्लिम नेताओं की नाराजगी के साथ पार्टी की बेचैनी दिखाई पड़ रही है.
जद (यू) के अलावा लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को भी इस मुद्दे पर दबाव का सामना करना पड़ रहा है. पार्टी के कुछ जिला स्तरीय मुस्लिम नेताओं ने भी विरोध दर्ज किया है. वहीं, लोजपा प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के चाचा और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने वक़्फ़ अधिनियम का विरोध करते हुए कहा है कि यह "एक विशेष समुदाय" की भावनाओं को ठेस पहुंचाता है. पारस एलजेपी के दूसरे धड़े के अध्यक्ष हैं और चिराग की पार्टी के समान मतदाता आधार साझा करते हैं. चूंकि चिराग भाजपा-नेतृत्व वाले एनडीए में प्रमुख स्थान बनाए हुए हैं, इसलिए पारस को राजद के करीब जाते देखा जा रहा है. पटना में चिराग ने कहा, "मैं मुसलमान समाज के हर व्यक्ति से कहना चाहता हूं कि आपकी नाराज़गी मेरे सर आंखों पर है. लेकिन यह भी याद रखा जाना चाहिए मेरे पिता, रामविलास पासवान, अल्पसंख्यकों के लिए हमेशा संघर्ष करते रहे. 2005 में मेरे पिता ने बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की मांग करते हुए अपनी पार्टी को लगभग खत्म कर दिया था.
इस बीच जद (यू) के एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि वक़्फ़ विवाद का विधानसभा चुनावों में पार्टी की संभावनाओं पर "शून्य प्रभाव" पड़ेगा. क्योंकि, पार्टी के पास मुस्लिम समुदाय में शायद ही समर्थन बचा है. हां, धर्मनिरपेक्ष राजनीति के कारण मुसलमान हमारे खिलाफ आक्रामकता से वोट नहीं करते, लेकिन वे हमारे पक्ष में भी बड़ी संख्या में वोट नहीं करते. उदाहरण स्वरूप 2014 में जब नीतीश कुमार ने धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर बीजेपी से संबंध तोड़ा, मुसलमानों ने हमें वोट नहीं दिया और हम केवल दो सीटों पर सिमट गए. हालांकि, एक अन्य जद (यू) नेता ने कहा कि “कड़े मुकाबले” वाले चुनाव में ये चीजें मायने रखती हैं. इसीलिए राजद इस मुद्दे पर आक्रामक है, ताकि वह अपने मुस्लिम आधार को और मजबूत कर सके. राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, वक़्फ़ बिल पर जद (यू) और एलजेपी का समर्थन उनके नेताओं के धर्मनिरपेक्षता के मुखौटे को हटा चुका है. इसका चुनावों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. राजद सांसद सुधाकर सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी इस मुद्दे पर जातिगत आख्यान गढ़ सकती है. एनडीए के लोग कह रहे हैं कि यह कानून वक़्फ़ बोर्ड में पिछड़े मुसलमानों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करेगा. तो फिर हिंदू मंदिरों के बोर्डों में ओबीसी, दलितों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व कब होगा? यह न्याय कब मिलेगा? यह वह आख्यान है जो आने वाले दिनों में आकार लेगा."
मणिपुर में वक़्फ़ बिल के समर्थन पर भीड़ ने बीजेपी नेता का घर फूंका
मणिपुर के थोउबल जिले के लिलोंग में वक़्फ़ संशोधन विधेयक का समर्थन करने से नाराज़ भीड़ ने भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष असकर अली के घर में तोड़फोड़ करने के बाद आग लगा दी. रविवार रात की घटना के बाद अली ने अपने बयान को वापस लेते हुए सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा किया. अली ने संकेत दिया कि वे अब अधिनियम का समर्थन नहीं करते हैं. इसके बाद जिला प्रशासन ने सोमवार को लिलोंग में बीएनएसएस की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी. पांच या अधिक व्यक्तियों के जमावड़े पर प्रतिबंध लगा दिया गया है तथा नागरिकों को आग्नेयास्त्र, तलवार, डंडे, पत्थर या अन्य घातक हथियार रखने पर रोक लगा दी गई है. रिपोर्ट्स के अनुसार, रविवार रात को लगभग 7 से 8 हजार प्रदर्शनकारियों ने लाठियों और पत्थरों से लैस होकर असकर अली के निवास को घेर लिया था.
एक्सप्लेनर
नया कानून सुप्रीम कोर्ट के 'एक बार वक़्फ़, हमेशा वक़्फ़' के सिद्धांत का उल्लंघन करता है
'द हिंदू' के लिए कृष्णदास राजगोपाल की रिपोर्ट है कि सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 शीर्ष अदालत के उस फैसले का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया था कि "एक बार वक़्फ़ घोषित संपत्ति, हमेशा वक़्फ़ रहेगी". यह कानून मुस्लिम समुदाय की पीढ़ियों पुरानी वक़्फ़ संपत्तियों को छीनकर निजी या सरकारी संपत्ति में बदलने का रास्ता खोलता है. सामसथा केरल जमीयत उल उलेमा जैसी संस्थाओं ने अपनी याचिका में (जिसका प्रतिनिधित्व वकील जुल्फिकर अली ने किया) तर्क दिया है कि इस कानून का मूल उद्देश्य देशभर में फैली वक़्फ़ संपत्तियों पर नियंत्रण स्थापित करना है, जो सदियों से अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक और सामाजिक सेवा के लिए हैं.
सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला: 1954 में रतीलाल पनाचंद गांधी बनाम बॉम्बे राज्य के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धार्मिक संपत्ति को धर्मनिरपेक्ष अथॉरिटी के अधीन करना, धार्मिक और संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन है. 1998 में सैयद अली बनाम आंध्र प्रदेश वक़्फ़ बोर्ड के मामले में कोर्ट ने वक़्फ़ को इस्लाम धर्म में एक स्थायी और कुरान आधारित चैरिटी (दान) बताया था - “वक़्फ़ वह संपत्ति है जो अल्लाह को समर्पित की जाती है.” याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि नया कानून इस पवित्र विचारधारा का उल्लंघन करता है, जिससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक परंपराओं पर आघात होगा.
'वक़्फ़ बाय यूजर' की मान्यता समाप्त : नए संशोधनों ने “वक़्फ़ बाय यूजर” की अवधारणा को पूरी तरह खत्म कर दिया है. पहले, अगर कोई संपत्ति लंबे समय से मुस्लिम समुदाय द्वारा धार्मिक या परोपकारी कार्यों के लिए उपयोग हो रही हो, तो वह स्वतः वक़्फ़ मानी जाती थी. इस अवधारणा को सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के रामजन्मभूमि फैसले में भी मान्यता दी थी. अब नए कानून के तहत, वक़्फ़ की मान्यता के लिए संपत्ति का लिखित दस्तावेज (डीड) अनिवार्य कर दिया गया है. इससे अधिकांश प्राचीन वक़्फ़, जिनका कोई दस्तावेज नहीं है, अमान्य घोषित हो सकते हैं.
वक़्फ़ ट्रिब्यूनल की शक्तियां सीमित कर दी गई हैं. वे अब ऐतिहासिक उपयोग के आधार पर वक़्फ़ की पहचान नहीं कर सकते, जिससे अनुच्छेद 26 (धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन होता है.
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी समेत याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह कानून 1995 के मूल वक़्फ़ अधिनियम के उद्देश्यों के खिलाफ है, जो वक़्फ़ संपत्तियों का बेहतर प्रशासन सुनिश्चित करता था.
इस संशोधन से वक़्फ़ की मान्यता पर देशभर में हजारों मुकदमे चलने का रास्ता खुल जाएगा.
हेट क्राइम
प्रयागराज में केसरिया झंडों के साथ गाज़ी के मकबरे पर चढ़े, नारे लगाए
सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में कुछ युवाओं को रामनवमी के दिन प्रयागराज के बहरिया इलाके में विदेशी आक्रमणकारी महमूद गजनवी के भतीजे सैयद सालार मसूद गाजी के मकबरे पर केसरिया रंग के झंडों के साथ देखा गया. वीडियो में युवक नारे लगाते भी सुनाई दे रहे थे. घटना की पुष्टि करते हुए एसीपी, फूलपुर, पंकज लवानिया ने कहा कि “कुछ युवकों ने दरगाह के गेट पर चढ़कर नारे लगाए. सूचना मिलने पर बहरिया पुलिस स्टेशन से पुलिस मौके पर पहुंची और स्थिति को नियंत्रित किया.” दरगाह के बाहर पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया गया है. यह स्थान शहर से लगभग 40 किमी दूर है.
वाराणसी में 12वीं की छात्रा से 23 लोगों ने 7 दिन
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक 19 वर्षीय लड़की के साथ कथित तौर पर 23 लोगों ने सात दिनों तक गैंग रेप किया. यूपी पुलिस के अनुसार यह घटना 29 मार्च से 4 अप्रैल के बीच हुई. आरोपियों में से छह को अब तक हिरासत में लिया गया है. पीड़िता कक्षा 12 की छात्रा है और 29 मार्च को अपने घर से लापता हो गई थी. 4 अप्रैल को वह घर लौटी और परिवार को घटना की जानकारी दी, जिसके बाद परिवार ने पुलिस से संपर्क किया. पीड़िता के बयान के अनुसार, 29 मार्च को उसकी मित्र उसे हुक्का बार ले गई, जहां अन्य लोग भी शामिल हो गए. लड़की ने आरोप लगाया कि उसे नशीला पेय पिलाया गया और फिर सिगरा इलाके के विभिन्न होटलों में ले जाया गया, जहां उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया. पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली है और जांच जारी है.
तमिलनाडु की 9.69% की रिकार्ड वृद्धि दर
गुजरात, यूपी, बिहार का डाटा अभी तक अपलोड नहीं..
गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश उन 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल हैं, जिनके आंकड़े अब तक केंद्र की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किए गए हैं. 'द हिंदू' के लिए टी. रामकृष्णन की रिपोर्ट है कि तमिलनाडु की वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर 2024-25 के लिए 9.69% रही, जो न केवल इस राज्य की पिछले 10 वर्षों में सबसे ऊंची दर है, बल्कि देश के किसी भी राज्य के लिए भी सबसे अधिक है. स्थिर मूल्यों पर (आधार वर्ष: 2011-12), तमिलनाडु का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) वर्ष 2023-24 में ₹15,71,368 करोड़ था, जो 2024-25 में बढ़कर ₹17,23,698 करोड़ हो गया. ये आंकड़े केंद्र सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों से लिए गए हैं. इससे पहले राज्य की सबसे अधिक वृद्धि दर 2017-18 में 8.59% रही थी. वहीं, 2020-21 में कोविड महामारी के दौरान सबसे कम (0.07%) दर्ज की गई थी. उस समय एकमात्र राहत यह थी कि तमिलनाडु की वृद्धि सकारात्मक रही, जबकि कई राज्यों में नकारात्मक वृद्धि देखी गई थी.
'वास्तविक वृद्धि दर' का अर्थ है महंगाई को हटाकर की गई वृद्धि का आंकलन, जबकि महंगाई सहित दर को 'सांकेतिक (नाममात्र) वृद्धि दर' कहा जाता है. उदाहरण के लिए, तमिलनाडु की नाममात्र वृद्धि दर 2024-25 के लिए 14.02% रही – जो देश में सबसे अधिक है. डॉ. शन्मुगम, जो एमएसई के पूर्व निदेशक भी हैं, का कहना है कि तमिलनाडु 2021-22 से लगातार 8% या उससे अधिक की दर से वृद्धि कर रहा है. अगर यह 9.7% की दर बनाए रखे और निर्यात भी मजबूत रहे, तो राज्य 2032-33 तक एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है. उनका यह भी कहना है कि यदि 2024-25 के मुकाबले सभी क्षेत्र 0.5 प्रतिशत अंक अधिक वृद्धि करें, तो 2025-26 में राज्य की वृद्धि दर लगभग 10.7% हो सकती है. राज्य के बजट दस्तावेज़ में 2025-26 के लिए 14.5% की नाममात्र वृद्धि दर का अनुमान पहले ही दर्शाया गया है.
सबके लिए 50 रुपए महंगा हुआ गैस सिलेंडर : मोदी सरकार ने एक बार फिर से घरेलू गैस सिलेंडर की कीमतों में इजाफा करते हुए उपभोक्ताओं को सीधे 50 रुपए का झटका दिया है. 7 अप्रैल को पेट्रोल मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने गैस की बढ़ी हुई कीमतों की जानकारी दी. अभी दिल्ली में गैस सिलेंडर 803 रुपए में मिलता है. दाम बढ़ने के बाद कीमत 853 रुपए हो जाएगी. वहीं उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों के गैस सिलेंडर की कीमत 500 से बढ़कर 550 रुपए हो जाएगी. आखिरी बार सरकार ने 8 मार्च 2024 को महिला दिवस पर सिलेंडर के दामों में 100 रुपए की कटौती की थी. तब दिल्ली में सिलेंडर 903 रुपए का था. सब्सिडी वाले और सामान्य श्रेणी दोनों ही उपभोक्ताओं को आठ अप्रैल से बढ़ी हुई कीमतें चुकानी होंगी.
तहव्वुर राणा की प्रत्यर्पण रोकने की अर्जी फिर खारिज : अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा की भारत में प्रत्यर्पण पर रोक लगाने के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया है. यह फैसला पिछले महीने अमेरिकी शीर्ष अदालत द्वारा राणा की प्रत्यर्पण के खिलाफ याचिका को खारिज करने के बाद आया है. 64 वर्षीय राणा, जो पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है, वर्तमान में लॉस एंजेलेस के मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर में बंद है. इस साल फरवरी में राणा ने सुप्रीम कोर्ट की एसोसिएट जस्टिस और नाइंथ सर्किट की सर्किट जस्टिस एलेना कागन के समक्ष "आपातकालीन आवेदन" दाखिल किया था.
क्रेडिट कार्ड डिफॉल्ट में 28% की वृद्धि, पहुंचा ₹6,742 करोड़
'इंडियन एक्सप्रेस' के लिए जॉर्ज मैथ्यू की रिपोर्ट है कि पिछले एक साल में क्रेडिट कार्ड डिफॉल्ट में 28.42% की बढ़ोतरी हुई है और यह दिसंबर 2024 तक ₹6,742 करोड़ तक पहुंच गया है. भारतीय रिज़र्व बैंक के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2023 में यह ₹5,250 करोड़ था. इसका मतलब है कि एक साल में करीब ₹1,500 करोड़ की वृद्धि हुई है, जो आर्थिक सुस्ती के बीच चिंता का विषय है. दिसंबर 2024 में वाणिज्यिक बैंकों के क्रेडिट कार्ड ऋण की कुल बकाया राशि ₹2.92 लाख करोड़ थी, जिसमें से 2.3% एनपीए हो गया. एक साल पहले यह आंकड़ा 2.06% था, जब बकाया राशि ₹2.53 लाख करोड़ थी. दिलचस्प बात यह है कि दिसंबर 2020 में क्रेडिट कार्ड एनपीए ₹1,108 करोड़ था, जिससे तुलना करें तो इसमें 500% से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. यह जानकारी 'इंडियन एक्सप्रेस' द्वारा दायर एक आरटीआई के जवाब में सामने आई है. जहां बैंकों ने समग्र एनपीए को ₹5 लाख करोड़ (2.5%) से घटाकर ₹4.55 लाख करोड़ (2.41%) कर लिया है, वहीं व्यक्तिगत ऋण और क्रेडिट कार्ड से जुड़े एनपीए में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. यह बढ़ती उपभोक्ता ऋणग्रस्तता का संकेत है, जो वित्तीय क्षेत्र के लिए खतरे की घंटी हो सकती है. पिछले तीन वर्षों में क्रेडिट कार्ड लेनदेन मूल्य तीन गुना होकर ₹18.31 लाख करोड़ (मार्च 2024) हो गया, जो मार्च 2021 में ₹6.30 लाख करोड़ था. जनवरी 2025 में अकेले ₹1.84 लाख करोड़ का लेनदेन हुआ, जबकि जनवरी 2021 में यह ₹64,737 करोड़ था. क्रेडिट कार्ड की संख्या भी तेजी से बढ़ी है. जनवरी 2021 में जहां 6.10 करोड़ कार्ड थे, वहीं जनवरी 2024 में यह संख्या 9.95 करोड़ और जनवरी 2025 तक 10.88 करोड़ हो गई. क्रेडिट कार्ड ऋण असुरक्षित होते हैं और इन पर ब्याज दरें बहुत ऊंची होती हैं. कई मामलों में 42-46% प्रति वर्ष तक. अगर कोई उपभोक्ता भुगतान चूकता है या ब्याज-मुक्त अवधि के बाद भी बकाया रखता है, तो उसे भारी ब्याज देना पड़ता है और उसका क्रेडिट स्कोर भी खराब हो जाता है. नवंबर 2023 में आरबीआई ने उपभोक्ता ऋण, क्रेडिट कार्ड बकाया और एनबीएफसी (NBFCs) पर बैंकों के जोखिम भार को 25% बढ़ाकर 150% कर दिया था. इससे इन क्षेत्रों में जोखिमों को नियंत्रित करने की कोशिश की गई, लेकिन स्थितियां चिंताजनक बनी हुई हैं.
अमेरिका सड़क पर उतरा ट्रम्प के खिलाफ
शनिवार को वॉशिंगटन डी.सी. और पूरे अमेरिका में हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया. गहरे बादलों और हल्की बारिश के बीच लोग वॉशिंगटन मॉन्यूमेंट के चारों ओर घास के मैदान पर जमा हुए. ये प्रदर्शन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनके अरबपति सहयोगी इलोन मस्क द्वारा सरकार में तेज़ी से बदलाव और राष्ट्रपति की शक्तियों के विस्तार के खिलाफ थे. कुल मिलाकर लगभग 1,200 प्रदर्शनों की योजना बनाई गई थी, जिससे यह ट्रम्प के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा एकदिवसीय विरोध प्रदर्शन बन गया. आयोजकों ने रॉयटर्स को बताया कि नेशनल मॉल पर होने वाली रैली में 20,000 से अधिक लोगों के शामिल होने की संभावना है. कार्यक्रम की वेबसाइट के अनुसार, लगभग 150 एक्टिविस्ट संगठनों ने प्रदर्शन में भाग लेने के लिए पंजीकरण कराया था. विरोध प्रदर्शन अमेरिका के सभी 50 राज्यों के साथ-साथ कनाडा और मेक्सिको में भी आयोजित किए गए.
टेरी क्लेन, जो प्रिंसटन, न्यू जर्सी से सेवानिवृत्त बायोमेडिकल वैज्ञानिक हैं, स्टेज के पास मौजूद थीं. उन्होंने बताया कि वह ट्रम्प की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करने आई हैं - "चाहे वो आव्रजन हो, डॉजकॉइन से जुड़ी चीजें हों, इस हफ्ते की टैरिफ नीतियां हों या शिक्षा का मुद्दा हो. हमारा पूरा देश खतरे में है - हमारे संस्थान, हमारी पहचान, वह सब कुछ जो अमेरिका को अमेरिका बनाता है." जैसे-जैसे दिन बढ़ा, स्मारक के आसपास भीड़ बढ़ती गई. कुछ प्रदर्शनकारी यूक्रेनी झंडे लहराते नजर आए, तो कुछ ने फिलिस्तीनी कुफ़िया स्कार्फ पहने हुए थे और “फ्री फिलिस्तीन” जैसे बैनर लिए हुए थे. इस दौरान अमेरिकी कांग्रेस के डेमोक्रेट सदस्य मंच से ट्रंप की नीतियों की कड़ी आलोचना कर रहे थे.
वेन हॉफमैन, 73 वर्षीय सेवानिवृत्त मनी मैनेजर (वेस्ट केप मे, न्यू जर्सी) ने कहा कि उन्हें ट्रंप की आर्थिक नीतियों, विशेष रूप से टैरिफ के अत्यधिक उपयोग को लेकर चिंता है. “यह रेड स्टेट्स (ट्रंप समर्थक राज्यों) के किसानों को नुकसान पहुंचाएगा. लोगों की नौकरियां जाएंगी - उनके रिटायरमेंट फंड (401Ks) खत्म हो जाएंगे. लोग पहले ही हज़ारों डॉलर गंवा चुके हैं,” उन्होंने कहा. वहीं, कायल, जो ओहायो का 20 वर्षीय इंटर्न है, अकेले ट्रंप समर्थक के तौर पर वहां मौजूद था. वह “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” की टोपी पहने रैली के किनारे घूम रहा था और प्रदर्शनकारियों से बहस कर रहा था.
गहरी और दूर तक मार पड़ी है यूएसएड पर रोक से
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के 20 जनवरी के आदेश ने भारत में कार्यरत कई संगठनों की कमर तोड़ दी है. यूएसएड (अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी) द्वारा दी जाने वाली विदेशी सहायता को स्थगित करने के फैसले से हजारों लोगों की नौकरियां चली गई हैं.
स्क्रॉल की रिपोर्टर तबस्सुम बड़नगरवाला की रिपोर्ट के अनुसार, इस कटौती का असर जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर उच्च पदों पर कार्यरत पेशेवरों तक पड़ा है. कई विक्रेता और सेवा प्रदाता अभी भी अपने बकाया बिलों के भुगतान का इंतजार कर रहे हैं.
स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक कार्य और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में चल रही परियोजनाओं को रोक दिया गया है. दक्षिण एशिया रीजनल एनर्जी पार्टनरशिप (SAREP) जैसे संगठनों को भी अपने कर्मचारियों को निकालना पड़ा है. एक 35 वर्षीय पीआर अधिकारी, जिन्हें हाल ही में नियुक्त किया गया था, को भी नौकरी से हाथ धोना पड़ा.
इस कटौती का सबसे गंभीर प्रभाव ग्रामीण और जरूरतमंद महिलाओं पर पड़ा है, जो घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराने या सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए इन संगठनों पर निर्भर थीं. अब उनके लिए सहायता का कोई साधन नहीं बचा है.
छोटे गैर-सरकारी संगठन, जो यूएसएड से अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता प्राप्त करते थे, उन्हें भी अपने कर्मचारियों को निकालना पड़ा है. टाटा ट्रस्ट जैसे बड़े संस्थानों से निकले अनुभवी पेशेवर भी अब रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
अमेरिका का कहना है कि वे अब केवल वहीं पैसा देंगे जहां उन्हें "फायदा" दिखेगा. इसका नतीजा यह है कि भारत और पड़ोसी देशों में कई आवश्यक कार्यक्रम बंद हो गए हैं. 2025 के लिए यूएसएड ने भारत को $31 मिलियन की सहायता पहले ही जारी कर दी थी, जिसे अब रोक दिया गया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में गेट्स फाउंडेशन और विश्व बैंक जैसे संगठनों से मिलने वाली सहायता में भी कमी आ सकती है, जिससे स्थिति और भी गंभीर हो सकती है.
ढाका ने चीन को कोलकाता के पास बंदरगाह सौंपा और पाकिस्तान को एयरबेस
बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने चीनियों को कोलकाता से 200 किलोमीटर की दूरी तक और पाकिस्तानियों को हासीमारा एयर फोर्स स्टेशन से 120 किलोमीटर की दूरी तक आने की अनुमति दे दी है, जो चिकन नेक और सिक्किम-भूटान-तिब्बत त्रिजंक्शन के पास स्थित है. “द टेलीग्राफ ” में देवादीप पुरोहित की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन खुलना डिवीजन के मोंगला बंदरगाह पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने जा रहा है, जो कोलकाता से लगभग 180 किलोमीटर दूर है. यह दूरी शांतिनिकेतन से बंगाल की राजधानी तक की दूरी के समान है.
यह युनूस के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जिन्होंने पिछले दिनों बीजिंग यात्रा के दौरान बंदरगाह के आधुनिकीकरण और विस्तार के लिए चीनी सरकार से लगभग $400 मिलियन (करीब 3400 करोड़ रुपये) की प्रतिबद्धता हासिल की. मोंगला बंदरगाह के बारे में यह घोषणा संभवतः भारत के एक टर्मिनल पर परिचालन अधिकारों को खतरे में डाल सकती है.
सामरिक मामलों के एक भारतीय विशेषज्ञ ने कहा, “चीन बरसों से हिंद महासागर में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है, लेकिन भारत ने चीन के प्रयासों का हमेशा विरोध किया. पर, चीनी अंततः सफल हो गए हैं और अब कोलकाता के दरवाजे पर हैं.” यूनुस, जिन्होंने शुक्रवार को बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी, ने पाकिस्तान की सशस्त्र सेनाओं को भारत की पूर्वी सीमा के करीब दबाव बनाने का रास्ता भी मुहैया कर दिया है. बांग्लादेश वायु सेना ने 27 मार्च को एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि उसके पांच वरिष्ठ अधिकारी पाकिस्तान जाएंगे, जहां उन्हें जेएफ-17 हल्के मल्टी-रोल लड़ाकू विमानों को उड़ाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा. ये विमान पाकिस्तान और चीन द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किए गए हैं.
यह कदम इस बात का संकेत है कि कुछ जेएफ-17 विमान रंगपुर डिवीजन के लालमोनिरहाट हवाई अड्डे पर तैनात किए जा सकते हैं, जो अलीपुरद्वार में हासीमारा एयरबेस से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर है. बहरहाल, रणनीतिक मामलों के कई विशेषज्ञों ने कहा कि नई दिल्ली का ढाका के मोदी-युनूस की बैठक के प्रस्ताव पर सहमति जताना, इन सभी घटनाक्रमों की पृष्ठभूमि में उन्हें आश्चर्यचकित कर गया.
उस्ताद आमिर खान का राग मारवा क्यों पसंद है अर्थ शास्त्री अरविंद सुब्रमण्यम को
स्क्रोल में इस इतवार अर्थशास्त्री और भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम ने तबियत से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर ये लेख लिखा है हर संगीत प्रेमी शायद पढ़ना चाहे और उसमें दिये गये लिंक सुनना भी चाहे.
अरविंद लिखते हैं, “मैं आमिर खान का राग मारवा इतना क्यों पसंद करता था? संगीत को पसंद करने का कारण, दरअसल, पूरी तरह से निजी और शायद कभी न जानने योग्य होता है.” वेब सीरीज़ 'बैंडिश बैंडिट्स' के पहले सीज़न के आखिरी एपिसोड में जोधपुर घराने के शास्त्रीय संगीत के राजा की उपाधि के लिए संगीत प्रतियोगिता होती है, जिसे लंबे समय से पंडितजी (नसीरुद्दीन शाह) संभाले हुए हैं. इसमें उनके बेटे दिग्विजय और पोते-शिष्य राधे के बीच मुकाबला होता है. प्रतियोगिता के दूसरे दौर में दोनों को एक भाव चुनकर अपनी संगीत प्रतिभा दिखानी होती है. दिग्विजय “विरह” भाव चुनते हैं, अपने पिता के द्वारा छोड़े जाने की पीड़ा और अपनी पुरानी प्रेमिका (अब राधे की मां) की याद में. शंकर महादेवन द्वारा गाया गया विरह का बंदिश – “ऐ री सखी मैं अंग अंग जली” – वातावरण को मार्मिकता और नाटकीयता से भर देता है. प्रस्तुति के बाद सन्नाटा छा जाता है – यह मौन ही उस संगीतमय उत्कृष्टता का प्रमाण बनता है. यह बंदिश राग मारवा में थी, जिसे मैं तुरंत पहचान गया क्योंकि यह वही राग था, जिससे मेरा 50 साल पुराना हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत से पहला परिचय हुआ था – आमिर खान का “पिया मोरे अनत देस”.
सिगरेट और गांजे के धुएं में घिरे दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के हॉस्टल के एक कमरे में, 1970 के दशक के आखिरी वर्षों में, मैं और मेरे तीन दोस्त आमिर खान की चार रिकॉर्डिंग्स को बार-बार सुनते थे. तब रिकॉर्डिंग्स की कमी थी, इसलिए बार-बार सुनना ही एकमात्र रास्ता था. अगले दो वर्षों में, मैंने आमिर खान के आठ रागों को दर्जनों बार सुना – मारवा, हंसध्वनि, दरबारी कन्नड़ा, बिलासखानी तोड़ी, ललित, मेघ, मालकौंस और बागेश्री कन्नड़ा. गैब्रियल गार्सिया मार्केज ने कहा है – हर दिल में कई कमरे होते हैं. मेरे सुनने वाले दिल में समय के साथ अनेक शैलियां, संगीतकार, राग और बंदिशों के लिए जगह बनी, पर मैं बार-बार आमिर खान के मारवा पर लौटता रहा. वह मेरे लिए दादी के हाथों से परोसा गया थायर शादम (दही-चावल) था – बचपन का सुकून, आत्मिक भोजन.
एक बार लंदन में हरिप्रसाद चौरसिया के एक कॉन्सर्ट के बाद मैंने उन्हें ऑक्सफोर्ड आने का न्योता दिया (जहां मैं पीएचडी कर रहा था). उन्होंने सहजता से हां कर दी. डिनर पर मैंने उन्हें आमिर खान का वही मारवा सुनाया. कुछ मिनट बाद उनकी आँखें नम हो गईं. उन्होंने कहा – “ऐसा तो मारवा कभी नहीं हुआ है.” एक बिना औपचारिक संगीत शिक्षा वाले श्रोता के रूप में मेरे भीतर एक असुरक्षा रहती थी – क्या मेरा स्वाद सच में अच्छा है? उस दिन मुझे तसल्ली मिली.
तो फिर आमिर खान का मारवा मुझे इतना क्यों भाया? शायद इसकी शुरुआत और समाप्ति के दो खास पल – पहला, जब तबले पर ठेका प्रवेश करता है और दूसरा, जब धीमी गति से तेज गति में संक्रमण होता है – ये दो क्षण जैसे आत्मा को छू जाते हैं. मेरे गुरु शंकर सत्यनाथ ने समझाया कि आमिर खान की शैली में एक खास बात है. वे राग के मंद्र सप्तक (निचले सुरों) में ज़्यादा समय बिताते हैं, कुछ नया, कुछ अनोखा खोजते हैं. जैसे उनके मालकौंस में "जिनके मन राम विराजे" – एक मुस्लिम कलाकार का राम के प्रति समर्पण, जो सूफी और भक्तिकाल को एक कर देता है.
(‘स्क्रोल’ पर मूल लेख आप अंग्रेजी में यहां पढ़ सकते हैं.)
चलते-चलते
क्या 'डम्बर' फोन 'ब्रेन रॉट' का इलाज है?
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के तकनीकी लेखक ब्रायन चेन ने स्वीकारा कि वे "ब्रेन रॉट" से पीड़ित हैं. ब्रेन रॉट यानी मोबाइल पर अत्यधिक स्क्रॉलिंग के बाद गहराई से सोचने की क्षमता का कमज़ोर होना. इसी समस्या के समाधान के लिए लाइट फोन III बाज़ार में आया है. यह $600 का फोन केवल बुनियादी कार्य करता है - कॉल, टेक्स्ट, फोटो, मैप, म्यूजिक और पॉडकास्ट. इसमें वेब ब्राउज़र, ऐप स्टोर, सोशल मीडिया या ईमेल नहीं है. कंपनी का दावा है कि "यह आपकी ज़िंदगी से तब गायब हो जाता है जब आपको इसकी ज़रूरत नहीं होती." चेन ने एक सप्ताह तक आईफोन की जगह लाइट फोन का उपयोग किया. शुरुआत में, उन्हें अपने आसपास की दुनिया पर ध्यान देना अच्छा लगा, लेकिन जल्द ही फोन की सीमाओं ने परेशानी बढ़ा दी. उन्हें ऑफिस जाने में देरी हुई क्योंकि डिजिटल ट्रांजिट पास तक पहुंच नहीं थी. जिम में बारकोड जनरेट नहीं कर पाने के कारण लंबी कतार में खड़ा होना पड़ा. धीमा कीबोर्ड और निम्न गुणवत्ता वाला कैमरे की आदत अब नहीं रही. ईमेल या ब्राउज़र न होने से क्यूआर कोड डाउनलोड में कठिनाई बढ़ीं.
जिस नेक इरादे से लाइट फोन बनाया गया है, लेकिन आधुनिक जीवन में यह व्यावहारिक नहीं है. चेन के अनुसार, यह "ज़्यादा पैसे देकर जान-बूझकर असुविधाजनक अनुभव लेना" जैसा है. यह मुख्य फोन के बजाय सेकेंडरी फोन के रूप में बेहतर हो सकता है - जैसे वीकेंड कार, जब आप तकनीक से दूर रहना चाहें. कंपनी भविष्य में इसमें मोबाइल पेमेंट और कैब बुकिंग जैसे फीचर्स जोड़ने की योजना बना रही है.
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