08/06/2025: मोदी को बुलाने पर कनाडा में विरोध क्यों | वोट की मैच फिक्सिंग पर चुनाव आयोग के जवाब विषय की बजाय व्यक्ति पर | रामदेव की छाया नेपाली नेता पर | जी-7 में होता क्या है?
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां:
मोदी को न्यौतने को लेकर कनाडा में इतनी नाराज़गी क्यों?
कार्नी ने बताई भारत को G7 में बुलाने की वजह, 'कानून के राज' पर मोदी से होगी बात
वोट की मैच फिक्सिंग पर राहुल के आरोप और चुनाव आयोग का बिना तथ्य दिए खंडन
राहुल के आरोपों पर चुनाव आयोग ने ये कहा
रामदेव के चलते संकट मे पूर्व नेपाली प्रधानमंत्री, जड़ी-बूटी के नाम पर जमीनों का मामला
उत्तर सिक्किम के भूस्खलन प्रभावित छटेन से 76 सैनिकों को एयरलिफ्ट किया गया
"आतंकवाद पर भारत की जीरो टॉलरेंस नीति को समझें, भारत और पाकिस्तान की बराबरी न करें": जयशंकर
इलोन मस्क द्वारा ट्रम्प पर हमला "बड़ी भूल", उम्मीद है मस्क दोबारा साथ आएंगे : जेडी वांस
छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले में पुलिस मुठभेड़ में पांच माओवादियों की मौत
रूस से बढ़ते तनाव पर सतर्क जर्मनी बंकर नेटवर्क और नागरिक सुरक्षा को बढ़ाने की तैयारी में जुटा
पीएफए ने “कोबरा” को दिया 6 भारतीय विमानों को गिराने का श्रेय
‘यह हमारे (कश्मीरियों) के लिए नहीं है, सैनिकों और पर्यटकों का आना आसान बनाना मकसद’
मोदी को न्यौतने को लेकर कनाडा में इतनी नाराज़गी क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कनाडा में होने वाले जी 7 शिखर सम्मेलन में शामिल होने को लेकर स्थानीय मीडिया, राजनेताओं और सिख संगठनों की तरफ से जबरदस्त विरोध हो रहा है. 2023 में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत सरकार की भूमिका को लेकर उठ रहे सवालों के बीच यह विवाद और भी गहरा गया है. कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी द्वारा मोदी को जी-7 शिखर सम्मेलन का न्योता देने पर लिबरल सांसद सुख धालीवाल ने तीखी आपत्ति जताई है. सरे, ब्रिटिश कोलंबिया के इस सांसद का कहना है कि यह गलत संदेश देता है और उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोग, खासकर सिख कनाडाई, इस फैसले से नाराज हैं. धालीवाल ने बताया कि उन्हें इस मुद्दे पर दर्जनों फोन आए हैं और सौ से ज्यादा ईमेल मिली हैं, जिसमें लोगों ने चिंता जताई है. ‘ग्लोबल न्यूज’ की रिपोर्ट के अनुसार, धालीवाल ने कहा है कि वे कार्नी के सामने इस चिंता को उठाएंगे.
रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (आरसीएमपी) ने भारत सरकार पर कनाडाई धरती पर हिंसा, हत्या और जबरन वसूली में शामिल होने का आरोप लगाया है. सितंबर 2023 में प्रधानमंत्री ट्रूडो ने भारत सरकार की भागीदारी के "विश्वसनीय सबूत" का जिक्र किया था, जिसके बाद से कनाडा-भारत संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं. हालांकि कुछ आवाजें रणनीतिक और आर्थिक आधार पर मोदी के न्योते का समर्थन करती हैं, जैसे कि एशिया पैसिफिक फाउंडेशन ऑफ कनाडा की वाइस-प्रेसिडेंट वीना नदजीबुल्ला का कहना है कि कनाडा को अपने इंडो-पैसिफिक संबंधों को संतुलित करना चाहिए, लेकिन स्थानीय प्रेस में आलोचना का स्वर ज्यादा मुखर है.
वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइजेशन ऑफ कनाडा ने मोदी के न्योते को "शर्मनाक और खतरनाक" बताते हुए इसे कनाडाई मूल्यों और समुदाय के साथ धोखा करार दिया है. ‘द गार्डियन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, संगठन ने कहा है कि भारत ने निज्जर की जांच में सहयोग नहीं किया है और इनकार की मुद्रा अपनाई है. फेडरल पुलिस ने निष्कर्ष निकाला था कि भारत के "उच्चतम स्तर" निज्जर की हत्या में शामिल थे, जिसके कारण 2023 में राजनयिकों को निकाला गया था.
सिख फेडरेशन ऑफ कनाडा ने इस यात्रा को "गंभीर अपमान" करार दिया है और इसे निज्जर की 2023 में हुई गोली मारकर हत्या से जोड़ा है. ‘सीबीसी’ की रिपोर्ट के अनुसार, संगठन ने कहा है कि यह "असहमति को दबाने और हमारे समुदाय को आतंकित करने के समन्वित प्रयास" का हिस्सा है. निज्जर की हत्या सरे के एक गुरुद्वारे के बाहर हुई थी और इस मामले में चार भारतीय नागरिकों पर आरोप लगाए गए हैं, जिनके मामले ब्रिटिश कोलंबिया की अदालत में चल रहे हैं.
एनडीपी सांसद जेनी क्वान ने कहा है कि मोदी के लिए रेड कार्पेट बिछाना "अनुचित" है और यह विदेशी हस्तक्षेप और हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराने के प्रयासों को कमजोर करता है. ‘सीबीसी’ की रिपोर्ट के मुताबिक, यह चिंता आरसीएमपी की खोजों के मद्देनजर व्यापक राजनीतिक चिंता को दर्शाती है.
कनाडाई मीडिया ने इस विवाद को व्यापक कवरेज दी है. ‘नेशनल पोस्ट’ ने बताया कि धालीवाल को अपने निर्वाचन क्षेत्र से सुरक्षा और न्याय की चिंता को लेकर भारी मात्रा में संपर्क आए हैं. ‘द गार्डियन’ ने उल्लेख किया है कि प्रधानमंत्री कार्नी ने इस सवाल का जवाब देने से इनकार किया कि क्या उनका मानना है कि मोदी की निज्जर की हत्या में भूमिका थी, जिससे जवाबदेही की कमी की धारणा और मजबूत हुई है. भारत ने इन आरोपों से इनकार किया है और कनाडा पर "खालिस्तानी आतंकवादियों" का समर्थन करने का आरोप लगाया है, जिससे राजनयिक गतिरोध पैदा हुआ है.
कार्नी ने बताई भारत को G7 में बुलाने की वजह, 'कानून के राज' पर मोदी से होगी बात
'मिंट' की खबर है कि कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने शुक्रवार को कहा कि भारत, जो विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, उसका G7 सम्मेलन में होना “सही” है. कार्नी यह बात उस सवाल के जवाब में कह रहे थे जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सम्मेलन में आमंत्रित करने के बारे में पूछा गया था. उन्होंने कहा कि G7 देश अपनी आगामी बैठक में सुरक्षा और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करेंगे और इस अंतर-सरकारी राजनीतिक व आर्थिक मंच पर भारत की उपस्थिति आवश्यक है. उन्होंने कहा- “कुछ देश ऐसे होते हैं जिन्हें इन वार्ताओं में शामिल होना चाहिए और मेरी भूमिका के नाते G7 की अध्यक्षता करते हुए, भारत का होना जरूरी है. भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है और कई आपूर्ति श्रृंखलाओं का केंद्र है, इसलिए यह सही है. इसके अलावा, द्विपक्षीय रूप से हमने कानून प्रवर्तन संवाद जारी रखने पर सहमति बनाई है, इसमें कुछ प्रगति हुई है... मैंने इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित किया और उन्होंने इसे स्वीकार किया है,”. प्रधानमंत्री मोदी ने G7 सम्मेलन में भाग लेने की पुष्टि की है.
यह घोषणा दोनों देशों के बीच कड़ी खटास के बीच आई है, जो कनाडाई आरोपों के कारण हुई थी कि भारतीय "एजेंट" जून 2023 में वैंकूवर के एक सिख मंदिर के बाहर प्रो-खालिस्तान कार्यकर्ता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल थे. भारत ने इन आरोपों को कड़ा विरोध किया और दोनों देशों ने प्रत्युत्तर में वरिष्ठ कूटनीतिज्ञों को वापस बुला लिया था.
वोट की मैच फिक्सिंग पर राहुल के आरोप और चुनाव आयोग का बिना तथ्य दिए खंडन
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने शनिवार को भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के उस बयान पर प्रतिक्रिया दी, जिसमें चुनावों में मैच फिक्सिंग के उनके आरोपों को खारिज किया गया है. कांग्रेस सांसद ने कहा कि चुनाव आयोग को टालमटोल नहीं करनी चाहिए, बल्कि उनके सवालों का जवाब देना चाहिए.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, "प्रिय चुनाव आयोग, आप एक संवैधानिक संस्था हैं. बिचौलियों को बिना हस्ताक्षर के, टाल-मटोल करने वाले नोट जारी करना गंभीर सवालों का जवाब देने का तरीका नहीं है. अगर आपके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है तो मेरे लेख में दिए गए सवालों के जवाब दें और इसे साबित करें. महाराष्ट्र सहित सभी राज्यों के लोकसभा और विधानसभा के हालिया चुनावों के लिए समेकित, डिजिटल, मशीन-पठनीय मतदाता सूची प्रकाशित करें, महाराष्ट्र मतदान केंद्रों से शाम 5 बजे के बाद के सभी सीसीटीवी फुटेज जारी करें. चोरी से आपकी विश्वसनीयता सुरक्षित नहीं रहेगी. सच बोलने से आपकी विश्वसनीयता सुरक्षित रहेगी."
राहुल गांधी ने शनिवार को आरोप लगाया कि 2024 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लोकतंत्र में धांधली का ब्लूप्रिंट’ था. उन्होंने कहा कि यह ‘मैच फिक्सिंग अब बिहार में भी दोहराई जाएगी और फिर उन जगहों पर भी ऐसा ही किया जाएगा, जहां-जहां बीजेपी हार रही होगी. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मैच फिक्स किए गए चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर हैं. उन्होंने कहा कि जो पक्ष धोखाधड़ी करता है, वो भले ही जीत जाए, लेकिन इससे लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर होती हैं और जनता का नतीजों से भरोसा उठ जाता है.
राहुल गांधी ने X (पूर्व में ट्विटर) पर सीधे निर्वाचन आयोग को संबोधित करते हुए कहा कि ऐसे "टालमटोल भरे" जवाब आयोग की विश्वसनीयता की रक्षा नहीं कर सकते. उन्होंने मांग की कि चुनाव आयोग महाराष्ट्र के मतदान केंद्रों की शाम 5 बजे के बाद की CCTV फुटेज सार्वजनिक करे और आयोग की प्रतिक्रिया में किन अधिकारियों के हस्ताक्षर हैं, यह स्पष्ट करे. इसपर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पलटवार करते हुए कहा, "राहुल गांधी महाराष्ट्र चुनाव को लेकर बेशर्मी से झूठ फैला रहे हैं."
राहुल के आरोपों पर चुनाव आयोग ने ये कहा
राहुल गांधी के दावों को खारिज करते हुए निर्वाचन आयोग ने कहा कि मतदाताओं से अनुकूल चुनाव परिणाम नहीं मिलने के बाद चुनाव निकाय को बदनाम करना पूरी तरह बेतुका है. चुनाव आयोग ने कहा, "किसी की ओर से प्रसारित कोई भी गलत सूचना चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों की ओर से नियुक्त हजारों प्रतिनिधियों की बदनामी के साथ-साथ चुनाव कर्मचारियों का मनोबल तोड़ने वाला होता है, जो इस बड़ी कवायद के लिए अथक परिश्रम करते हैं." उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र की मतदाता सूची को लेकर लगाए गए निराधार आरोप कानून के शासन का अनादर है. चुनाव आयोग ने यह भी सवाल उठाया कि राहुल गांधी व्यक्तिगत रूप से आयोग को पत्र लिखने और जवाब प्राप्त करने से क्यों बच रहे हैं?
रामदेव के चलते संकट में पूर्व नेपाली प्रधानमंत्री, जड़ी-बूटी के नाम पर जमीनों का मामला
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट है कि नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार जमीन के भ्रष्टाचार के एक मामले में बुरे फंस गए हैं. ये मामला योग गुरु रामदेव की कंपनी पतंजलि योगपीठ से जुड़ा है. मामले में आरोपी बनाए जाने के बाद माधव की सांसदी भी चली गई है. हालांकि, उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से साफ इनकार किया है. उन्होंने केपी शर्मा ओली पर आरोप लगाया कि वह उनसे 'राजनैतिक बदला' ले रहे हैं. पतंजलि योगपीठ ने भी सफाई दी है कि उसने कोई ‘गलत काम नहीं किया है’.
आरोप है कि माधव कुमार ने बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि योगपीठ को कथित तौर पर नियमों से ज्यादा जमीन खरीदने की इजाजत दी थी. यह जमीन जड़ी-बूटियां उगाने, प्रोसेसिंग और अस्पताल बनाने के लिए थी. नेपाल की भ्रष्टाचार रोकने वाली संस्था CIAA ने गुरुवार, 5 जून को काठमांडू की एक स्पेशल कोर्ट में इसे लेकर केस दायर किया था. CIAA का कहना है कि कावरे जिले की कुछ जमीन को बाद में दूसरी जमीन से बदला गया या उन्हें महंगे दाम पर बेचा गया. इससे सरकार को तगड़ा नुकसान हुआ. संस्था ने कोर्ट से अपील की है कि माधव कुमार नेपाल से 18.5 करोड़ नेपाली रुपये (लगभग 11 करोड़ भारतीय रुपये) का जुर्माना वसूला जाए और 17 साल जेल की सजा सुनाई जाए. मई 2009 से फरवरी 2011 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रहे माधव नेपाल ने अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से खारिज किया है. उन्होंने प्रधानमंत्री केपी ओली पर आरोप लगाया है कि उन्होंने उनके खिलाफ साजिश रची है.
पतंजलि ने भी आरोपों को गलत बताया है. ‘द हिंदू’ के मुताबिक, कंपनी के प्रवक्ता एसके तिजारावाला ने रॉयटर्स को एक टेक्स्ट संदेश में बताया कि पतंजलि ने कोई सरकारी जमीन नहीं खरीदी है. स्थानीय राजनीतिक बदले की कार्रवाई में हमारा नाम घसीटना अनुचित है. आयोग ने 92 अन्य लोगों पर भी आरोप लगाए हैं, जिनमें कुछ पूर्व मंत्री और अधिकारी शामिल हैं. इनमें से कई लोगों की पहले ही मौत हो चुकी है. चार्जशीट में पतंजलि प्रमुख बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण का कोई उल्लेख नहीं है. हालांकि, नेपाल के पूर्व कानून मंत्री प्रेम बहादुर सिंह, दिवंगत भूमि सुधार मंत्री डंबर श्रेष्ठ और पूर्व मुख्य सचिव माधव प्रसाद घिमिरे का नाम इसमें शामिल हैं.
उत्तर सिक्किम के भूस्खलन प्रभावित छटेन से 76 सैनिकों को एयरलिफ्ट किया गया
भारी बारिश के चलते उत्तर सिक्किम के छटेन क्षेत्र में हुए लगातार भूस्खलनों के कारण सड़क संपर्क पूरी तरह से टूट गया है. आपदा के बीच शनिवार को भारतीय सेना के 76 जवानों को एयरलिफ्ट कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया. एक अधिकारी ने जानकारी दी, “छटेन से पाकयोंग ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट तक एमआई-17 हेलिकॉप्टरों की मदद से सैनिकों को सुरक्षित निकाला गया है. इससे समन्वित बचाव अभियान पूरा हो गया है.” गौरतलब है कि 1 जून की शाम छटेन में स्थित एक सैन्य शिविर पर भूस्खलन हुआ जिसमें तीन जवानों की मौत, चार घायल, और छह लापता हो गए थे. लगातार बारिश से सड़कें टूट गईं, जिससे लाचेन, लाचुंग और चुंगथांग जैसे इलाकों में 1600 से अधिक पर्यटक फंस गए थे.
"आतंकवाद पर भारत की जीरो टॉलरेंस नीति को समझें, भारत और पाकिस्तान की बराबरी न करें": जयशंकर
यह तीखा बयान भारत और पाकिस्तान के बीच पहलगाम आतंकी हमले के बाद उपजे तनाव के मद्देनज़र आया है. लैमी कुछ हफ्ते पहले पाकिस्तान की यात्रा पर थे, जहां उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि अमेरिका और ब्रिटेन, भारत और पाकिस्तान के बीच "स्थायी युद्धविराम, संवाद और विश्वास बहाली उपायों" को सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रहे हैं. उनका यह बयान, जो 17 मई को इस्लामाबाद में रॉयटर्स को दिया गया था, नई दिल्ली में असंतोष का कारण बना, क्योंकि भारत पहले ही साफ कर चुका है कि इस चार दिवसीय संघर्ष में किसी तीसरे देश की भूमिका नहीं हो सकती.
जयशंकर ने कहा, "हम आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहनशीलता की नीति अपनाते हैं और अपने साझेदारों से इसे समझने की अपेक्षा करते हैं. हम कभी भी दुष्कर्मियों को उनके पीड़ितों के समकक्ष नहीं मान सकते." उन्होंने यह भी कहा कि वे पहलगाम आतंकी हमले की निंदा करने और भारत के आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में समर्थन देने के लिए ब्रिटेन सरकार के आभारी हैं. लैमी की यात्रा से पहले जारी बयान में कहा गया था कि वे "हालिया तनाव की स्थिति और इस क्षेत्र में स्थिरता के हित में स्थायी शांति की संभावनाओं" पर चर्चा करेंगे. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि जयशंकर और लैमी के बीच पाकिस्तान की यूएनएससी भूमिका पर कोई चर्चा हुई या नहीं, लेकिन लैमी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की. जुलाई 2024 के बाद यह उनकी दूसरी मुलाकात है.
लैमी ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से भी मुलाकात की ताकि भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को आगे बढ़ाया जा सके, जो मई में अंतिम रूप दिया गया था. उम्मीद है कि इस पर औपचारिक हस्ताक्षर कनाडा में जून मध्य में जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और ब्रिटिश पीएम कीथ स्टारमर की मुलाकात में हो सकते हैं. जयशंकर ने कहा- “मुक्त व्यापार समझौता हमारे संबंधों में एक मील का पत्थर है. तकनीकी सुरक्षा पहल (TSI) और रणनीतिक निर्यात व तकनीकी सहयोग जैसे समझौते हमारे संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाएंगे.”
इलोन मस्क द्वारा ट्रम्प पर हमला "बड़ी भूल", उम्मीद है मस्क दोबारा साथ आएंगे : जेडी वांस
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वांस ने कहा है कि इलोन मस्क द्वारा पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर सोशल मीडिया पर किए गए तीखे और भड़काऊ हमले “बड़ी भूल” हैं. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि मस्क एक "भावुक इंसान" हैं जो शायद सिर्फ हताश हो गए थे. वांस ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि इलोन मस्क एक दिन दोबारा साथ आएंगे. शायद अब ये मुमकिन न हो, क्योंकि वो काफी 'न्यूक्लियर' हो गए हैं.” यह इंटरव्यू शुक्रवार को जारी किया गया, ठीक मस्क और ट्रम्प के बीच सार्वजनिक विवाद के बाद. मस्क ने हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर ट्रम्प के खिलाफ कई तीखे पोस्ट किए, जिसके जवाब में ट्रम्प ने उन्हें “पागल” कहा और उनके कारोबारी अनुबंधों को खत्म करने की धमकी दी.
मस्क और ट्रम्प पहले करीबी माने जाते थे, कई बार साथ देखे गए थे. लेकिन अब मस्क ने ट्रम्प की 2017 की टैक्स कट योजना और हालिया खर्च विधेयक की आलोचना की है, यहां तक कि ट्रम्प के खिलाफ महाभियोग की मांग की और यह तक आरोप लगा दिया कि सरकार ट्रम्प और कुख्यात यौन अपराधी जेफ़री एपस्टीन के रिश्तों से जुड़ी जानकारियां छुपा रही है, बिना किसी सबूत के.
वांस ने कहा, “मैं खुद कई बार नियंत्रण खो चुका हूं, मस्क जितना या उससे ज़्यादा भी. लेकिन मुझे लगता है राष्ट्रपति बहुत संयमित रहे हैं, क्योंकि वो इलोन मस्क से सार्वजनिक दुश्मनी नहीं चाहते.” मस्क ने जो पोस्ट शेयर किए, उनमें से एक में उन्होंने ट्रम्प की जगह वांस को राष्ट्रपति बनाए जाने की बात कही. इस पर वांस ने प्रतिक्रिया दी, “ये पूरी तरह पागलपन है. राष्ट्रपति अच्छा काम कर रहे हैं.” एक अन्य पोस्ट में मस्क ने ट्रम्प पर एपस्टीन से संबंध रखने का आरोप लगाया. इस पर वांस ने दो टूक कहा— “बिल्कुल नहीं. डोनाल्ड ट्रम्प ने जेफ़री एपस्टीन के साथ कुछ भी गलत नहीं किया. ये बातें मददगार नहीं हैं.” हालांकि, बाद में मस्क ने यह ट्वीट हटा लिया था.
एक्सप्लेनर
फोटो खिंचवाने के अलावा होता क्या है जी 7 में?
जी 7 क्या है ? जी 7 दुनिया की सात सबसे ताक़तवर अर्थव्यवस्थाओं का समूह है. हालांकि कई लोग इसे पश्चिमी देशों का "पुराना क्लब" मानते हैं, लेकिन जी 7 आज भी वैश्विक नीति दिशा तय करने में असरदार है. चाहे वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर नियम बनाना हो, जलवायु वित्त तय करना हो या आर्थिक संकट का समाधान खोजना, जी 7 एक तरह से नीति निर्माण की प्रयोगशाला है.
जी 7 यानी कि 'ग्रुप ऑफ सेवन' एक ऐसा मंच है, जहां दुनिया की सात सबसे विकसित और औद्योगिक शक्तियां अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, इटली और कनाडा बैठकर वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक मामलों पर विचार-विमर्श करते हैं. यह समूह 1975 में अस्तित्व में आया था, जब पहले तेल संकट और वैश्विक मंदी के चलते पश्चिमी देशों को आपस में समन्वय की ज़रूरत महसूस हुई.
जी 7 का उद्देश्य क्या है? जी 7 का कोई स्थायी सचिवालय या संविधान नहीं है. यह एक अनौपचारिक मंच है जहां सदस्य देश हर साल एक बार मिलते हैं और वर्तमान वैश्विक मुद्दों पर विचार करते हैं. मुख्य उद्देश्य होते हैं:
वैश्विक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना
विकासशील देशों की मदद और कर्ज़ राहत
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण पर सहमति बनाना
लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों की रक्षा
टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर सुरक्षा जैसे नए क्षेत्रों में नीति बनाना
पश्चिम के संकटों का समाधान मसलन यूक्रेन संकट, इजरायल-फिलिस्तीन, चीन की आक्रामकता, जैसे अंतरराष्ट्रीय संकटों पर साझा रुख तय करना
जी 7 में भारत और अन्य देशों की भागीदारी क्यों? भारत जी 7 का सदस्य नहीं है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से जी 7 बैठक में आमंत्रित देश के तौर पर भाग ले रहा है. इसका कारण है भारत की आर्थिक ताकत (अब दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था). भारत की रणनीतिक स्थिति — एशिया में लोकतांत्रिक शक्ति और चीन का संतुलन और जलवायु, तकनीक, खनिज और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका के चलते इसे शामिल किया जा रहा है.
बैठकों में क्या चर्चा होती है? हर साल जी 7 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी कोई एक सदस्य देश करता है. इस दौरान नेता वित्तीय सुधार, मुद्रास्फीति, कर्ज़ संकट, टैक्स नियमों आदि पर चर्चा करते हैं. जलवायु फंडिंग, ग्रीन एनर्जी ट्रांज़िशन और विकासशील देशों के लिए समर्थन पर सहमति बनती है. साझा घोषणापत्र जारी होता है, जिसमें नीति के प्राथमिक दिशा-निर्देश शामिल होते हैं. कई बार रूस, चीन या ईरान जैसे देशों के खिलाफ रणनीतिक सन्देश भी दिए जाते हैं.
छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले में पुलिस मुठभेड़ में पांच माओवादियों की मौत
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले स्थित इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में सुरक्षाबलों द्वारा चलाए जा रहे नक्सल विरोधी अभियान में पांच माओवादी मारे गए हैं. पुलिस ने शनिवार को इसकी जानकारी दी. इस अभियान में तीन दिनों में कुल सात माओवादी ढेर किए जा चुके हैं, जिनमें दो शीर्ष नेता सुधाकर और भास्कर शामिल हैं. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, “जिले के इंद्रावती नेशनल पार्क क्षेत्र में चल रहे ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाबलों ने कुल सात माओवादियों के शव बरामद किए हैं.” शनिवार को हुई मुठभेड़ में दो शव बरामद हुए, जबकि शुक्रवार और शनिवार की रात हुई गोलीबारी के बाद तीन अन्य शव मिले.
4 जून को शुरू हुआ ऑपरेशन राज्य पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (STF), जिला रिज़र्व गार्ड (DRG) और केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) की कोबरा यूनिट द्वारा चलाया जा रहा है. ऑपरेशन में तेलंगाना राज्य समिति के सदस्य बंदी प्रकाश, दंडकारण्य विशेष ज़ोनल समिति के पप्पा राव और कई अन्य सशस्त्र माओवादियों की मौजूदगी की जानकारी के आधार पर कार्रवाई की गई.
इलाके में खोज और दबाव निर्माण अभियान जारी है ताकि बाकी माओवादी भी पकड़े जा सकें और जंगल पूरी तरह से सुरक्षित किया जा सके. कुछ सुरक्षाकर्मी सांप के काटने, मधुमक्खी के डंक, डिहाइड्रेशन और अन्य मौसमी परेशानियों से घायल हुए हैं, जिन्हें तत्काल प्राथमिक चिकित्सा दी गई है. इससे पहले 21 मई 2025 को बस्तर क्षेत्र में CPI (माओवादी) के महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराज (70) को भी एक विशेष अभियान में मार दिया गया था.
रूस से बढ़ते तनाव पर सतर्क जर्मनी बंकर नेटवर्क और नागरिक सुरक्षा को बढ़ाने की तैयारी में जुटा
जर्मनी अब उस मानसिकता से बाहर निकलने को मजबूर है जिसमें युद्ध को केवल बीते युग की चीज़ माना जाता था. 'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि जर्मनी की सरकार आने वाले चार वर्षों में रूस से संभावित हमले की आशंका के मद्देनज़र देशभर में बम-प्रूफ बंकरों और नागरिक सुरक्षा ढांचे के तेज़ी से विस्तार की योजना बना रही है. यह चेतावनी देश की शीर्ष नागरिक सुरक्षा एजेंसी फेडरल ऑफिस ऑफ सिविल प्रोटेक्शन एंड डिजास्टर असिस्टेंस (BBK) के प्रमुख राल्फ टीस्लर ने दी है. "अब यह मान लेना कि युद्ध की कोई संभावना नहीं है, बेहद ख़तरनाक होगा," टीस्लर ने जर्मन अख़बार स्यूडडॉयचे साइटुंग को दिए इंटरव्यू में कहा. “यूरोप में बड़े पैमाने पर आक्रामक युद्ध का जोखिम अब वास्तविकता बन चुका है और हमें उसी अनुरूप तैयारी करनी होगी.”
10 लाख लोगों के लिए बंकर तैयार करने की योजना टीस्लर ने कहा कि मौजूदा हालात में जर्मनी की तैयारी बेहद अपर्याप्त है और नए बंकर बनाने के बजाय मौजूदा ढांचों जैसे मेट्रो स्टेशन, अंडरग्राउंड पार्किंग, सार्वजनिक इमारतों की बेसमेंट और पुराने सुरंगों को शरणस्थलों में बदलने पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए. उनका लक्ष्य है कि जल्द से जल्द 10 लाख लोगों के लिए सुरक्षित आश्रय उपलब्ध हो.
यूक्रेन में रूस के ताज़ा हमलों से यूरोप के कई देशों में चिंता बढ़ी है, विशेषकर बाल्टिक देशों, पोलैंड और अब जर्मनी में भी। बीते दिनों खारकीव शहर पर रूस की सबसे ज़बरदस्त मिसाइल और बमबारी के हमले में तीन नागरिकों की मौत और 22 के घायल होने की सूचना मिली है. शहर के मेयर इहोर तेरेखोव ने इसे "युद्ध की शुरुआत से अब तक का सबसे भयावह हमला" बताया.
जर्मनी में शीत युद्ध के दौर के लगभग 2,000 बंकर मौजूद हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ़ 580 ही आज काम करने लायक हैं. ये बंकर केवल 4.8 लाख लोगों को ही शरण दे सकते हैं, जो जर्मनी की कुल आबादी का मात्र आधा प्रतिशत है. वहीं, फ़िनलैंड में 50,000 प्रोटेक्शन रूम हैं, जो वहां की 85% आबादी यानी 48 लाख लोगों को शरण दे सकते हैं.
टीस्लर ने सरकार से नागरिक सुरक्षा के लिए कम-से-कम €10 अरब यूरो (लगभग ₹90 हज़ार करोड़) की मांग की है और अगले दशक में यह राशि बढ़कर €30 अरब तक जा सकती है. उन्होंने नागरिकों से भी अपील की है कि वे बिजली और पानी की आपूर्ति बाधित होने की स्थिति में कम-से-कम 10 दिन की आपूर्ति अपने घरों में रखें. उन्होंने कहा कि “अगर 72 घंटे के लिए भी स्टॉक हो, तो भी छोटी-मोटी आपात स्थिति से निपटा जा सकता है.”
जर्मन संसद ने मार्च में कर्ज़ सीमा नियम को निलंबित कर सेना, पुलों, सड़कों और अब नागरिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में खर्च की अनुमति दी है. हालांकि अभी नागरिक सुरक्षा के लिए तय बजट पर अंतिम सहमति नहीं बनी है, क्योंकि साइबर सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां भी उसी फंडिंग के लिए दावा कर रही हैं.
पीएफए ने “कोबरा” को दिया 6 भारतीय विमानों को गिराने का श्रेय
पाकिस्तान एयर फोर्स (पीएएफ) ने अपनी नंबर 15 स्क्वाड्रन, “कोबरा” को 7 मई की हवाई झड़प में छह भारतीय जेट विमानों को मार गिराने का श्रेय दिया है. वह अब अपने कोब्रा पायलट्स को जल्द ही सम्मानित करेगी. पाकिस्तान की मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पीएएफ के चीन से प्राप्त जे-10सी फाइटर जेट्स ने पीएल-15 मिसाइलों का इस्तेमाल करते हुए कथित तौर पर तीन राफेल समेत छह विमानों को गिरा दिया—जिससे भारत के तथाकथित “गेम-चेंजर” विमानों की प्रतिष्ठा को झटका लगा. 7 मई की इस भिड़ंत में “कोब्राज़” की कथित भूमिका को पाकिस्तान में एक बड़ी हवाई जीत के तौर पर सराहा जा रहा है, हालांकि भारत ने इन दावों की न तो पुष्टि की है और न ही खंडन किया है. भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ने कुछ विमानों के नुकसान को स्वीकार किया है, लेकिन पाकिस्तान के छह विमानों के दावे को खारिज किया है.
इसी बीच, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने 1972 के शिमला समझौते को “एक मृत दस्तावेज़” घोषित कर दिया है, जो कश्मीर पर इस्लामाबाद के रुख में बदलाव का संकेत है. आसिफ ने कहा है कि पाकिस्तान अब 1948 के संयुक्त राष्ट्र समर्थित रुख पर लौट आया है, जिसमें नियंत्रण रेखा (एलओसी) को एक युद्धविराम रेखा माना गया है, न कि एक मान्यता प्राप्त सीमा. उन्होंने कहा, “इससे आगे बढ़ते हुए, इन विवादों का समाधान बहुपक्षीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जाएगा.” रक्षा मंत्री ने अन्य समझौतों पर भी सवाल उठाते हुए कहा, “चाहे सिंधु जल संधि निलंबित हो या नहीं, शिमला समझौता पहले ही खत्म हो चुका है.”
कश्मीर में रेलवे
‘यह हमारे (कश्मीरियों) के लिए नहीं है, सैनिकों और पर्यटकों का आना आसान बनाना मकसद’
भले ही पहलगाम में आतंकी हमले और इसके बाद भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कश्मीर जाने पर मजबूर न किया हो, – लेकिन कटरा-श्रीनगर रेललाइन पर वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाने से वह पीछे नहीं हटे. इतना ही नहीं, चिनाब नदी पर दुनिया के सबसे ऊंचे सिंगल आर्च ब्रिज का उद्घाटन करते हुए तिरंगा हाथ में लेकर ब्रिज पर पैदल भी चले. सदा की भांति स्व रचित “पवित्र परंपरा” के मुताबिक एकदम “अकेले.” परियोजना की “अनावरण रस्म” का यह वीडियो सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है. लेकिन, “न्यूयॉर्क टाइम्स” में शौकत नंदा ने इससे इतर, उधमपुर से शुरू होकर बारामूला में समाप्त होने वाली इस रेल लाइन के तमाम पहलुओं पर स्टोरी की है. उनका कहना है कि कई दशकों के अत्यंत जटिल इंजीनियरिंग कार्य और अरबों डॉलर के निवेश के बाद, भारत ने अंततः कश्मीर के हिमालयी क्षेत्र को देश के बाकी हिस्सों से रेल द्वारा जोड़ दिया है.
एक ओर भारतीय अधिकारी इसे अशांत क्षेत्र के लिए एक परिवर्तनकारी छलांग बताते हैं, वहीं कई कश्मीरी इस परियोजना को केंद्र सरकार के नियंत्रण को मजबूत करने के प्रयास के रूप में भी देखते हैं. "यह सब कुछ बदल देगा," 28 वर्षीय उद्यमी नावेद हसन ने कहा. "अब पर्यटक सीधे दिल्ली से आ सकते हैं. हमारे कारोबार बढ़ेंगे." लेकिन कई अन्य कश्मीरी कहते हैं कि सरकार ने रेल लाइन की सीमाओं को नजरअंदाज कर दिया है. यात्रियों को सुरक्षा जांच के लिए रास्ता बदलना पड़ेगा, जिससे यात्रा और कठिन हो जाएगी, और मालवाहक डिब्बे शुरुआती चरण में शामिल नहीं होंगे क्योंकि टर्मिनल अभी बनने बाकी हैं. श्रीनगर से नई दिल्ली यात्रा करने वाले यात्रियों को कटरा में ट्रेन से उतरना होगा, जहां सुरक्षा जांच के बाद उन्हें दूसरी ट्रेन में सवार होना पड़ेगा. इससे यात्रा में दो घंटे तक का अतिरिक्त समय लग सकता है.
रेलवे लाइन को लेकर कई कश्मीरियों की राय राजनीतिक अविश्वास से भी रंगी हुई है, जो 2019 के बाद और गहरा गया है, जब मोदी ने इस क्षेत्र से वह अर्ध-स्वायत्त दर्जा छीन लिया था, जो भारत की स्वतंत्रता के बाद से उसे प्राप्त था. केंद्र सरकार ने मुस्लिम-बहुल इस क्षेत्र का पूरा प्रशासन अपने हाथ में ले लिया और वहां कड़ा सैन्य लॉकडाउन लागू कर दिया. “वे यह हमारे लिए नहीं, बाहरी लोगों के लिए बना रहे हैं,” कानून की छात्रा अफ़नान फ़ैयाज़ ने जनवरी में एक ट्रायल रन के दौरान रेलवे प्लेटफॉर्म पर खड़े होकर कहा. “वे यहां सैनिकों और पर्यटकों के आने को आसान बनाना चाहते हैं.”
कश्मीर तक रेल लाइन का विचार पहली बार औपनिवेशिक युग के दौरान सामने आया था, और यह 1990 के दशक की शुरुआत में फिर से उभरा. लगभग एक दशक बाद, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने औपचारिक रूप से इस परियोजना की घोषणा की, जो उनकी हिंदू-राष्ट्रवादी पार्टी की इस क्षेत्र को भारत में पूरी तरह एकीकृत करने की सोच के अनुरूप थी.
इस रेल परियोजना की निर्माण गुणवत्ता को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं. इंजीनियरिंग और सुरक्षा विशेषज्ञों, जिनमें भारतीय रेलवे के एक पूर्व मुख्य अभियंता भी शामिल हैं, ने डिज़ाइन में खामियों और अपर्याप्त जोखिम आकलन को लेकर चिंता जताई है. उनका कहना है कि यह परियोजना भारत के सबसे अधिक भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना आगे बढ़ा दी गई.
कश्मीरी व्यापारी और फल उत्पादक इस बात से नाराज़ हैं कि कम से कम शुरुआत में इस मार्ग पर कोई मालगाड़ी नहीं चलेगी. उन्हें बताया गया था कि रेलवे कश्मीर के बागवानी उद्योग, खासकर इसके प्रसिद्ध सेब की बिक्री को बढ़ावा देगा. अधिकारियों ने कहा है कि मालगाड़ियां योजना का हिस्सा बनी रहेंगी और टर्मिनल बनने के बाद चलना शुरू करेंगी. फल उत्पादक उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने रेल लाइन के लिए बलिदान दिए हैं. पूरे बाग काट दिए गए, और कई परिवारों को ट्रेन के रास्ते के लिए विस्थापित होना पड़ा. अधिकांश को उनकी जमीन के लिए मुआवजा दिया गया है, जबकि कुछ अभी भी मुआवजा पाने की कानूनी प्रक्रिया में उलझे हुए हैं.
चिनाब पर पुल
टीएमसी ने मोदी की प्रवृत्ति को ईर्ष्यापूर्ण, आत्ममुग्ध, आत्म-प्रचारक बताया, साथ में थोड़ा इतिहास भी
इस बीच तृणमूल कांग्रेस ने चिनाब नदी पर बने इस रेल पुल समेत पूरी योजना का श्रेय लेने की कोशिश के लिए प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा है. तृणमूल के राज्यसभा नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा, "इतिहास को सामने लाना जरूरी है, ताकि किसी के अहंकार को पटरी से उतारा जा सके." टीएमसी ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चिनाब रेल ब्रिज के पीछे प्रेरक शक्ति बताया, जिन्होंने इस परियोजना में नई जान फूंकी. ओ’ब्रायन ने याद दिलाया कि ममता बनर्जी ने 2009 में संसद में भारतीय रेलवे के लिए 'विजन 2020' दस्तावेज़ प्रस्तुत किया था.
2009 के रेल बजट में, ममता बनर्जी ने उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला खंड के लिए अतिरिक्त 1,949 करोड़ रुपये आवंटित किए थे. चिनाब ब्रिज, जहां मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्रीय ध्वज लहराया, अगले वर्ष (2010) के रेलवे बजट में न्यू लाइन प्रोजेक्ट के रूप में घोषित किया गया था.
तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सांसद सागरिका घोष ने “एक्स” पर लिखा, “नरेंद्र मोदी ने चिनाब रेल ब्रिज के उद्घाटन पर झंडा लहराया, लेकिन उनके पहले आए मेहनती लोक सेवकों – प्रधानमंत्री वाजपेयी और मनमोहन सिंह और सबसे महत्वपूर्ण रेल मंत्री ममता बनर्जी, जिन्होंने वास्तव में इस परियोजना को मंजूरी दी और इसकी नींव रखी – उनके लिए एक शब्द भी नहीं कहा, यह मोदी की विशिष्ट – भ्रमित, आत्ममुग्ध, आत्म-प्रचारक, गंभीरता से रहित – प्रवृत्ति है. इस तरह से ईर्ष्यापूर्ण श्रेय लेने की प्रवृत्ति भारत में अभूतपूर्व है. यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है.”
घोष ने ममता बनर्जी की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और अब्दुल्ला परिवार के साथ मंच पर ली गई एक तस्वीर भी साझा की.
मनमोहन सिंह ने 13 अप्रैल 2005 को यूपीए-1 के पहले वर्ष में जम्मू और उधमपुर के बीच 53 किलोमीटर की रेल लिंक का उद्घाटन किया था. 11 अक्टूबर 2008 को, सिंह ने ही अनंतनाग और मझोम (श्रीनगर से बाहर) के बीच एक और 66 किलोमीटर की रेल लिंक का उद्घाटन किया.
तीसरे चरण में 14 फरवरी 2009 को, मझोम और बारामूला के बीच 31 किलोमीटर की रेल लिंक का उद्घाटन किया गया. अनंतनाग और काजीगुंड के बीच 18 किलोमीटर की रेल लिंक का उद्घाटन 29 अक्टूबर 2009 को किया गया, जहां ममता बनर्जी मौजूद थीं. काजीगुंड से बनिहाल तक की रेल लिंक का उद्घाटन सिंह ने 26 जून 2013 को, प्रधानमंत्री पद के अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्ष में किया.
तृणमूल सांसद घोष ने लिखा, “भारत की प्रगति का मार्ग 2014 में शुरू नहीं हुआ था. हेडलाइन (सुर्खियों) का प्रबंधन जमीनी हकीकत नहीं होता. कुछ लोग बिना प्रचार के चुपचाप काम करते हैं, जबकि कुछ फोटो खिंचवाने के मौके तुरंत लपक लेते हैं.”
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी मोदी को इस परियोजना में उनके पूर्ववर्तियों के योगदान की याद दिलाई. “यह रेल परियोजना 1995 में स्वीकृत हुई थी, जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे. 2002 में, अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया,” रमेश ने कहा. “उधमपुर, श्रीनगर और बारामूला के बीच 272 किलोमीटर के हिस्से में से 160 किलोमीटर का उद्घाटन 2014 से पहले ही हो चुका था. ऐसा नहीं है कि मोदी आए, उन्होंने अनुबंध दिया, और काम शुरू हुआ.”
अमित शाह ने 'भारतीय भाषा अनुभाग' किया लॉन्च: 'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को 'भारतीय भाषा अनुभाग' का शुभारंभ किया. इस पहल का उद्देश्य प्रशासनिक प्रणाली को विदेशी भाषाओं के प्रभाव से मुक्त कर देश की सभी भाषाओं को संगठित मंच प्रदान करना है. शाह ने कहा कि यह अनुभाग भारत की भाषायी विविधता को समाहित करेगा और हमारे सोचने, विश्लेषण करने और निर्णय लेने की प्रक्रियाएं मातृभाषा में ही हों, तभी हमारी संपूर्ण क्षमता का उपयोग संभव हो सकेगा. उन्होंने इस प्रयास को "देश की सभी स्थानीय भाषाओं को सशक्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम" बताया. इस पहल का प्रमुख उद्देश्य प्रशासनिक कार्यों को मातृभाषा में संचालित करने को बढ़ावा देना, भारतीय भाषाओं के लिए एक समर्पित और संगठित मंच प्रदान करना, अंग्रेज़ी जैसे विदेशी भाषाओं पर निर्भरता कम करना और क्षेत्रीय और स्थानीय भाषाओं की गरिमा और व्यावहारिक उपयोगिता को बढ़ाना है. यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जिसमें मातृभाषा में शिक्षा और प्रशासन को प्राथमिकता देने की बात कही गई थी.
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