08/07/2025: पाकिस्तान में पेट्रोल सस्ता | आर्थिक असमानता में भारत 176वां | मटरगश्ती के लिए सरकार के पास पैसे हैं, स्कॉलरशिप के लिए नहीं | ट्रम्प- पुतिन | जय शाह की लिस्ट में सिराज नहीं
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आज की सुर्खियां :
आय असमानता में भारत चौथा है या 176वां ?
पेट्रोल पाकिस्तान से भी मंहगा है आपके लिए
ब्रिक्स देशों से गुस्सा ट्रम्प ने फिर धमकी दी
बाकी ब्रिक्स देश टैरिफ को लेकर परेशान थे, भारत आतंकवाद पर अड़ा था
सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को सुनेगा चुनाव आयोग को चुनौती देने वाली याचिकाएं
यूपी में फेक आईडी से 500 से अधिक फर्जी जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र जारी
पहली बार डिजिटल जनगणना, नागरिकों को स्वयं अपनी जानकारी दर्ज करने का विकल्प
बजट प्रावधान बढ़ाने के बाद भी वंचितों को स्कॉलरशिप देने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं
जय शाह की बधाई लिस्ट में सिराज का नाम नहीं
विमान हादसे के पीड़ितों से बर्ताव पर एयर इंडिया की आलोचना, कंपनी ने आरोपों को नकारा
“हमारे पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक भारत आना क्यों पसंद करते हैं और हमारे अल्पसंख्यक पलायन क्यों नहीं करते?”
विवादों से रहा है नाता, एन रामचंदर राव बने तेलंगाना बीजेपी अध्यक्ष
लद्दाख को लेकर फिर अनशन करेंगे सोनम वांगचुक
रॉयटर्स, टीआरटी वर्ल्ड और ग्लोबल टाइम्स के एक्स अकाउंट भारत में वापस बहाल
डाक विभाग अपनी संपत्तियों का व्यावसायिक उपयोग कर सकता है : सिंधिया
अमेरिका को फिर से महान बना रहे अंबानी
न्यूज 18 द्वारा धार्मिक झंडे को पाकिस्तानी झंडा बताने की कोशिश
दलित गरिमा की खोज
एन एपलबॉम: क्या ट्रम्प पुतिन के साथ है?
पाकिस्तान का पालतू शेर निकल भागा, तुर्की में भी
तस्वीरों में: भारत की बावड़ियों की यात्रा
ऑस्ट्रेलियाई 'पब कॉयर' की डायरेक्टर एस्ट्रिड जॉरगेंसन ने अमेरिका में बिखेरा जादू
"क्या मैं फिर कभी अपनी मातृभूमि लौट पाऊंगा?"
आय असमानता में भारत चौथा है या 176वां ?
प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो की झूठी विज्ञप्ति अखबारों ने बिना अक्ल लगाए प्रकाशित की
“द वायर” में सुरभि केसर ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि भारत 216 देशों में आय असमानता के मामले में 176वें स्थान पर है. हाल ही में कई प्रमुख भारतीय अखबारों- जैसे ‘द हिंदू’, ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’, ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने यह दावा किया कि भारत विश्व का चौथा सबसे समान देश है और इसका स्रोत एक हालिया वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट बताया गया.
“द वायर” के मुताबिक, यह भ्रम प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) की एक प्रेस विज्ञप्ति के कारण फैला, जिसमें वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों की गलत व्याख्या की गई. कई मीडिया संस्थानों ने बिना तथ्य-जांच के यह खबर प्रकाशित कर दी. असल में, वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आय असमानता बहुत अधिक है और यह बढ़ रही है.
सरकारी प्रेस नोट के मुताबिक विश्व बैंक ने भारत को विश्व के सर्वाधिक समानता वाले देशों में शामिल किया है. विश्व बैंक के अनुसार भारत का गिनी सूचकांक 25 दशमलव पांच है और यह भारत को विश्व में आर्थिक दृष्टि से चौथा सर्वाधिक समतावादी देश बनाता है. पहले तीन देश स्लोवाक गणराज्य, स्लोवेनिया और बेलारूस हैं. गिनी सूचकांक से जाना जा सकता है कि किसी देश में किस प्रकार लोगों के बीच समान रूप से आय, सम्पत्ति और खपत का बंटवारा होता है. वर्ल्ड बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत का नवीनतम गिनी सूचकांक कई विकसित देशों, जैसे चीन (35.7), अमेरिका (41.8), और सभी जी7 और जी20 देशों से बेहतर है.
पेट्रोल पाकिस्तान से भी महंगा है आपके लिए
भारत में आम आदमी को एक लीटर पेट्रोल के लिए औसतन ₹101 खर्च करने पड़ते हैं, जो कि अमेरिका (₹79.4) से करीब ₹21.6 अधिक है. यह खुलासा डॉरीन बोरा की नई रिपोर्ट में हुआ है. भारत न सिर्फ अमेरिका बल्कि चीन (₹94.5), पाकिस्तान (₹80.4), रूस (₹67.1) और ईरान (सिर्फ ₹2.4) से भी महंगा पेट्रोल खरीद रहा है. डॉरीन बोरा के मुताबिक इन देशों में पेट्रोल की कीमतें टैक्स नीति और ऊर्जा सब्सिडी पर निर्भर हैं. भारत में टैक्स दरें ज़्यादा हैं, इसीलिए आम जनता को पेट्रोल के लिए जेब ढीली करनी पड़ती है. ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ का ग्राफिक ये बताने को काफी है.
ब्रिक्स देशों से गुस्सा ट्रम्प ने फिर धमकी दी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ब्रिक्स की ‘अमेरिका-विरोधी नीतियों’ का समर्थन करने वाले देशों से आयातित सामान पर 10% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी है. ट्रम्प ने लिखा, “इस नीति में कोई अपवाद नहीं होगा”. यह कदम भारत समेत ब्रिक्स देशों के उस संयुक्त बयान के बाद आया है, जिसमें एकतरफा टैरिफ को मनमाना और अवैध बताते हुए गहरी चिंता जताई गई थी, हालांकि बयान में सीधे तौर पर अमेरिका का नाम नहीं लिया गया. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर भारत और अमेरिका के बीच पहले से जारी तनाव के बीच, ब्रिक्स के इस कड़े रुख से दोनों देशों की व्यापार वार्ता और जटिल हो सकती है.
ट्रम्प की इस धमकी के बाद अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक भागीदार देश हरकत में आ गए हैं और जल्द से जल्द व्यापार सौदे को अंतिम रूप देने या अतिरिक्त समय मांगने की कोशिश कर रहे हैं. ट्रम्प ने कहा है कि वह सोमवार को करीब एक दर्जन देशों को उनके शिपमेंट पर लगने वाले नए टैरिफ की सूचना देंगे. 9 जुलाई की समय सीमा से ठीक पहले ट्रम्प की इस टिप्पणी से साफ है कि बातचीत अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है.
इस बीच, टाइम मैगजीन की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत समय सीमा से पहले अमेरिका के साथ समझौता कर सकता है, जिससे वह अपने निर्यातों पर लगने वाले 27% के ‘पारस्परिक’ टैरिफ से बच सकता है. पारस्परिक टैरिफ पर लगी 90-दिन की रोक खत्म होने में सिर्फ दो दिन बचे हैं और भारत-अमेरिका अंतरिम व्यापार समझौते का भविष्य अब वाशिंगटन के रुख पर टिका है. भारत ने कृषि और डेयरी जैसे क्षेत्रों में अपने गैर-समझौतावादी मुद्दों को स्पष्ट कर दिया है. भारतीय अधिकारियों के अनुसार, अब गेंद अमेरिका के पाले में है.
बाकी ब्रिक्स देश टैरिफ को लेकर परेशान थे, भारत आतंकवाद पर अड़ा था
एक तरफ जहां सबकी नजरें ब्रिक्स देशों के अमेरिका के जवाबी टैरिफ पर रुख को लेकर थीं, वहीं भारत का मुख्य ध्यान समूह के संयुक्त बयान में आतंकवाद और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार जैसे मुद्दों को शामिल कराने पर था. बयान में पहलगाम आतंकी हमले की “कड़े शब्दों में निंदा” की गई और सीमा पार आतंकवाद से निपटने की प्रतिबद्धता दोहराई गई, लेकिन पाकिस्तान का नाम नहीं लिया गया. इसके अलावा बयान में “नागरिक बुनियादी ढांचे और शांतिपूर्ण परमाणु सुविधाओं पर हमलों की भी निंदा की गई”, हालांकि इसमें न तो ईरान का जिक्र था और न ही अमेरिका का.
बिहार
सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को सुनेगा चुनाव आयोग को चुनौती देने वाली याचिकाएं
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ दायर याचिकाओं की त्वरित सुनवाई के लिए गुरुवार 10 जुलाई की तारीख तय की है.
“द हिंदू” के अनुसार, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत बड़ी संख्या में मतदाताओं को नागरिकता के प्रमाण-पत्र जमा करने होंगे, अन्यथा उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे. याचिकाकर्ताओं में आरजेडी सांसद मनोज झा, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), पीयूसीएल, एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव और सांसद महुआ मोइत्रा शामिल हैं. याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन करती है और इससे लाखों वास्तविक मतदाताओं के नाम सूची से हट सकते हैं, खासकर गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग प्रभावित होंगे.
कोर्ट में क्या हुआ : वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, गोपाल शंकरनारायणन और शादान फरासत ने मामले को तत्काल सुनवाई के लिए उठाया. लेकिन, कोर्ट ने याचिकाओं को गुरुवार को सूचीबद्ध करने का आदेश दिया. कोर्ट ने फिलहाल पुनरीक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया, लेकिन याचिकाकर्ताओं को चुनाव आयोग को अग्रिम नोटिस देने की अनुमति दी.
चुनाव आयोग का पक्ष: आयोग ने कहा कि पुनरीक्षण का उद्देश्य योग्य मतदाताओं के नाम जोड़ना और अयोग्य नाम हटाना है. आयोग ने यह भी कहा कि बूथ लेवल अधिकारी घर-घर जाकर दस्तावेजों की जांच करेंगे और कमजोर वर्गों को परेशान न किया जाए, इसका ध्यान रखा जाएगा.
यूपी में फेक आईडी से 500 से अधिक फर्जी जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र जारी
उत्तरप्रदेश में नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) पोर्टल से 500 से अधिक फर्जी जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने का मामला सामने आया है. ये प्रमाणपत्र दो ग्राम पंचायतों, रावल और अलीशाबाद (हरदोई जिले के टडियावां ब्लॉक) से जुड़े आईडी का उपयोग करके बनाए गए. इस मामले में शनिवार देर रात एफआईआर दर्ज की गई. अधिकारियों को संदेह है कि सीआरएस पोर्टल हैक कर 505 फर्जी जन्म प्रमाणपत्र और 23 फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र बनाए गए.
ग्राम विकास अधिकारी राजीव श्रीवास्तव के अनुसार, 13 जून को जब उन्होंने सरकारी काम के लिए सीआरएस पोर्टल पर लॉगिन करने की कोशिश की, तो पासवर्ड गलत होने के कारण उन्हें एक्सेस नहीं मिला. 'पासवर्ड भूल गए' प्रक्रिया शुरू करने पर पता चला कि लिंक्ड ईमेल आईडी बदल दी गई है. जांच में सामने आया कि पोर्टल को ऐसे ईमेल आईडी से एक्सेस किया गया, जो उनसे संबंधित नहीं थी. राजीव ने स्वास्थ्य विभाग के उस अधिकारी को जानकारी दी, जो पोर्टल की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. उन्होंने भी अनाधिकृत बदलाव की पुष्टि की. पहचान ठीक करने के बावजूद, कुछ ही घंटों में पोर्टल फिर से हैक हो गया. ऐसा ही एक मामला जनवरी और फरवरी में अलीशाबाद में भी हुआ था, जिससे यह एक बार की नहीं, बल्कि बार-बार और योजनाबद्ध तरीके से की गई हैकिंग लगती है. हरदोई एसपी नीरज कुमार जादौन ने कहा, "यह गंभीर मामला है. विस्तृत जांच चल रही है और बहुत जल्द पूरे नेटवर्क का खुलासा होगा."
पहली बार डिजिटल जनगणना, नागरिकों को स्वयं अपनी जानकारी दर्ज करने का विकल्प
भारत में पहली बार डिजिटल जनगणना की जाएगी, जिसमें नागरिकों को स्वयं अपनी जानकारी दर्ज करने (सेल्फ-एन्यूमरेशन) का विकल्प मिलेगा. इसके लिए सरकार एक विशेष वेब पोर्टल लॉन्च करेगी, जो जनगणना की दोनों चरणों, हाउस लिस्टिंग एवं हाउसिंग जनगणना (एचएलओ) और जनसंख्या गणना (पीई) के दौरान उपलब्ध रहेगा.
इस डिजिटल जनगणना के तहत गणनाकर्ता नागरिकों का डेटा एंड्रॉयड और एप्पल मोबाइल एप्स के जरिए एकत्र करेंगे. पहली बार, नागरिक स्वयं वेब पोर्टल के माध्यम से अपनी जानकारी दर्ज कर सकेंगे. तकनीक के इस्तेमाल से डेटा सीधे केंद्रीय सर्वर पर भेजा जाएगा, जिससे जनगणना के आंकड़े जल्दी उपलब्ध हो जाएंगे. डेटा संग्रहण, ट्रांसमिशन और स्टोरेज के दौरान कड़ी सुरक्षा व्यवस्था लागू की जाएगी. हाउस लिस्टिंग और हाउसिंग जनगणना (एचएलओ) 1 अप्रैल 2026 से शुरू होगी, जबकि जनसंख्या गणना (पीई) 1 फरवरी 2027 से शुरू होगी. इस बार घर के सदस्यों की जाति की जानकारी भी दर्ज की जाएगी. घर-घर जाकर जानकारी एकत्र करने की प्रक्रिया भी जारी रहेगी, यानी जो नागरिक स्वयं जानकारी नहीं भरना चाहते, उनके लिए अधिकारी घर आएंगे.
बजट प्रावधान बढ़ाने के बाद भी वंचितों को स्कॉलरशिप देने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं
फंड की कमी का हवाला देकर सरकार ने विदेश जाकर पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति रोकी
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 2025-26 शैक्षणिक वर्ष के लिए अपनी राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृत्ति (एनओएस) के लिए चुने गए 106 उम्मीदवारों में से केवल 40 को अनंतिम छात्रवृत्ति पुरस्कार पत्र जारी किए हैं. हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक सरकारी नोटिस में कहा गया है कि शेष 66 उम्मीदवारों के लिए पत्र "फंड की उपलब्धता के अधीन" जारी किए जा सकते हैं.
1 जुलाई की घोषणा के अनुसार, मंत्रालय ने 106 उम्मीदवारों को अपनी चयनित सूची में और 64 को अचयनित सूची में रखा, जबकि 270 उम्मीदवारों को अस्वीकार कर दिया. मंत्रालय के अनुसार, शुरुआत में केवल क्रमांक 1 से 40 तक के उम्मीदवारों को अनंतिम पुरस्कार पत्र जारी किए जाएंगे.
अचयनित का अर्थ है कि छात्रों को 10% राज्य कोटा और अन्य कोटा की सीमा के कारण सूची में शामिल नहीं किया गया है, लेकिन यदि चयनित उम्मीदवार आवश्यक दस्तावेज प्रदान करने में विफल रहते हैं तो उन पर विचार किया जा सकता है. पिछले वर्षों के विपरीत, जब सभी चयनित छात्रों को एक साथ पत्र मिलते थे, इस बार मंत्रालय ने फंड की उपलब्धता के आधार पर चरणबद्ध तरीके से पत्र देने का फैसला किया है, जिससे छात्र अधर में लटक गए हैं.
यह योजना, जिसमें 125 स्लॉट हैं, 1954-55 में शुरू हुई थी और यह अनुसूचित जातियों (एससी), विमुक्त घुमंतू जनजातियों (डीएनटी), भूमिहीन खेतिहर मजदूरों और पारंपरिक कारीगर श्रेणियों के उन छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है जिनकी पारिवारिक आय ₹8 लाख प्रति वर्ष से कम है. यह शीर्ष 500 वैश्विक विश्वविद्यालयों में मास्टर या पीएचडी के लिए फंड देती है.
मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि छात्रवृत्ति देने के लिए आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति से मंजूरी की आवश्यकता होती है और उनके पास पैसा तो है, लेकिन इसे जारी करने के लिए "ऊपर से हरी झंडी" की जरूरत है. यह अनिश्चितता तब आई है जब सरकार ने इस साल फरवरी में बजट में एनओएस के लिए आवंटन 36.84% बढ़ाकर ₹130 करोड़ कर दिया था.
दिल्ली के एक उम्मीदवार ने, जिसे ब्रिटेन के एक विश्वविद्यालय से प्रस्ताव मिला है, कहा, "मैं उलझन में हूं कि क्या मुझे अन्य छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करना चाहिए या इंतजार करना चाहिए. चुने जाने के बाद भी, अगर मेरे पास पर्याप्त फंड नहीं है तो मेरा अकादमिक करियर प्रभावित होगा". इससे पहले, मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप और अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप में भी इसी तरह की समस्याएं सामने आ चुकी हैं.
विपक्षी नेताओं ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है, लेकिन कोई सरकारी प्रतिक्रिया नहीं आई है. विशेषज्ञों ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त की है. एकलव्य इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक राजू केंद्रे ने कहा, "एक तरफ, भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन रहा है, दूसरी ओर, उसके पास ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर मौजूद समुदायों के केवल 125 विद्वानों का समर्थन करने के लिए धन नहीं है. यह दलित और आदिवासी विद्वानों, जो कल के राष्ट्र-निर्माता हैं, के भविष्य में निवेश के प्रति सरकार के दृष्टिकोण को दर्शाता है".
जय शाह की बधाई लिस्ट में सिराज का नाम नहीं
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के अध्यक्ष और भारत के गृह मंत्री के बेटे जय शाह ने एजबेस्टन में इंग्लैंड के खिलाफ दूसरे टेस्ट में भारत की शानदार जीत के बाद टीम को बधाई दी है. उन्होंने अपने बधाई संदेश में “भारतीय क्रिकेट की गहराई और जुझारूपन” की तारीफ करते हुए शुभमन गिल, ऋषभ पंत और रवींद्र जडेजा की सराहना की. लेकिन इस बधाई में उस मोहम्मद सिराज का नाम गायब था, जिन्होंने दूसरी पारी में छह विकेट लेकर पांचवें दिन इंग्लैंड को समेटने और भारत की जीत पक्की करने में सबसे अहम भूमिका निभाई थी.
विमान हादसे के पीड़ितों से बर्ताव पर एयर इंडिया की आलोचना, कंपनी ने आरोपों को नकारा
‘द गार्डियन’ की रिपोर्ट के अनुसार, विमानन मामलों के वकील पीटर नीनन ने तीन हफ्ते पहले हुए एयर इंडिया की फ्लाइट 171 के हादसे में मारे गए लोगों के परिवारों के प्रति एयरलाइन के बर्ताव को “अनैतिक और शर्मनाक” बताया है. नीनन ने कहा कि अपने प्रियजनों के शवों की पहचान करने गए रिश्तेदारों को एक “छोटे, भीड़ भरे कमरे” में रखकर उनसे महत्वपूर्ण वित्तीय जानकारी मांगने वाली एक जटिल प्रश्नावली भरवाई गई. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि परिवारों को कोई कानूनी सलाह या दस्तावेजों की कॉपी नहीं दी गई. वहीं, एयर इंडिया ने इन आरोपों को खारिज किया है. ‘टेलीग्राफ’ को दिये गये बयान में एयरलाइन ने नीनन के दावों को “निराधार और गलत” बताते हुए कहा कि वह पीड़ित परिवारों को अंतरिम मुआवजा देने के लिए “भरसक प्रयास” कर रही है.
“हमारे पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक भारत आना क्यों पसंद करते हैं और हमारे अल्पसंख्यक पलायन क्यों नहीं करते?”
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के बीच सोमवार को सोशल मीडिया पर तीखी नोकझोंक हुई. ओवैसी ने भाजपा नेता के उस बयान की आलोचना की जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक समुदाय से अधिक लाभ और सुरक्षा मिलती है. ओवैसी ने कहा कि अल्पसंख्यक अधिकार मौलिक अधिकार हैं, कोई दान नहीं.
हैदराबाद के सांसद ने 'X' पर एक पोस्ट में कहा, "@KirenRijiju आप भारतीय गणराज्य के मंत्री हैं, कोई सम्राट नहीं. आप एक संवैधानिक पद पर हैं, किसी सिंहासन पर नहीं. अल्पसंख्यक अधिकार मौलिक अधिकार हैं, कोई दान नहीं."
ओवैसी ने आरोप लगाया, "भारत के अल्पसंख्यक अब दूसरे दर्जे के नागरिक भी नहीं हैं. हम बंधक हैं." एआईएमआईएम प्रमुख ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर रिजिजू पर हमला बोला और पूछा कि क्या मुस्लिम हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड (Hindu Endowment Boards) के सदस्य हो सकते हैं? "नहीं. लेकिन आपका वक्फ संशोधन अधिनियम गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल होने के लिए मजबूर करता है और उन्हें बहुमत बनाने की अनुमति देता है."
उन्होंने आगे कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने मौलाना आजाद राष्ट्रीय फेलोशिप को "बंद कर दिया", प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति की फंडिंग रोक दी और पोस्ट-मैट्रिक व मेरिट-कम-मीन्स छात्रवृत्ति को सीमित कर दिया. उन्होंने कहा, "यह सब इसलिए क्योंकि इससे मुस्लिम छात्रों को फायदा होता था."
ओवैसी ने कहा कि मुसलमान अब एकमात्र ऐसा समूह है जिनकी संख्या उच्च शिक्षा में घटी है और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में उनकी उपस्थिति बढ़ी है. उन्होंने आरोप लगाया, "वे आपकी सरकार की आर्थिक नीतियों से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वालों में से हैं." उन्होंने दावा किया कि मुस्लिम बहुल इलाकों में सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और बुनियादी सेवाओं की सबसे ज्यादा कमी है.
ओवैसी ने कहा, "हम दूसरे देशों के अन्य अल्पसंख्यकों से तुलना करने के लिए नहीं कह रहे हैं. हम बहुसंख्यक समुदाय को जो मिलता है, उससे अधिक नहीं मांग रहे हैं. हम वह मांग रहे हैं जिसका वादा संविधान करता है: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय."
एआईएमआईएम अध्यक्ष को जवाब देते हुए, केंद्रीय संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री रिजिजू ने 'X' पर एक पोस्ट में कहा, "ठीक है... हमारे पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक भारत आना क्यों पसंद करते हैं और हमारे अल्पसंख्यक पलायन क्यों नहीं करते? प्रधानमंत्री @narendramodi जी की कल्याणकारी योजनाएं सभी के लिए हैं. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की योजनाएं अल्पसंख्यकों को अतिरिक्त लाभ प्रदान करती हैं."
पलटवार करते हुए, ओवैसी ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, "अगर हम पलायन नहीं करते तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम खुश हैं. असल में, हमें भागने की आदत नहीं है: हम अंग्रेजों से नहीं भागे, हम बंटवारे के दौरान नहीं भागे, और हम जम्मू, नेल्ली, गुजरात, मुरादाबाद, दिल्ली आदि के नरसंहारों की वजह से नहीं भागे. हमारा इतिहास इस बात का सबूत है कि हम न तो अपने उत्पीड़कों के साथ सहयोग करते हैं और न ही उनसे छिपते हैं."
"हम जानते हैं कि अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए कैसे लड़ना है और इंशाअल्लाह हम लड़ेंगे. हमारे महान राष्ट्र की तुलना पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल और श्रीलंका जैसे विफल राज्यों से करना बंद करें. जय हिंद, जय संविधान! इस मामले पर ध्यान देने के लिए आपका धन्यवाद!"
अल्पसंख्यक आयोग के खाली पद बताते हैं रिजिजू के दावे की असलियत
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में दिसंबर से अब तक सात में से पांच आयुक्त रिटायर हो चुके हैं, लेकिन ये पद अभी तक भरे नहीं गए हैं. इनमें अध्यक्ष इकबाल लालपुरा भी शामिल हैं, जो अप्रैल में रिटायर हुए थे. इसका असर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग पर भी पड़ा है, जो पिछले दो साल से सिर्फ एक सदस्य के साथ काम कर रहा है. वहीं, केंद्रीय सूचना आयोग में भी आठ पद खाली हैं. केंद्र सरकार ने 11 महीने पहले इन पदों के लिए आवेदन मांगे थे, लेकिन नियुक्तियां अब तक नहीं हुई हैं. आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त का पद संभाल रहे हीरालाल सामरिया भी इसी साल रिटायर होने वाले हैं.
विवादों से रहा है नाता, एन रामचंदर राव बने तेलंगाना बीजेपी अध्यक्ष
एबीवीपी के पुराने नेता एन रामचंदर राव को तेलंगाना बीजेपी का नया अध्यक्ष बनाया गया है. राव अपने पहले के अध्यक्षों की तरह बहुत चर्चित चेहरा नहीं हैं, लेकिन उनका नाम कई बार सुर्खियों में और विवादों में रहा है. उन्होंने 2007 के मक्का मस्जिद ब्लास्ट मामले में आरोपियों के वकील की भूमिका निभाई थी. इसके अलावा, रोहित वेमुला की आत्महत्या से ठीक पहले उन पर हैदराबाद विश्वविद्यालय प्रशासन पर अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव डालने का भी आरोप लगा था. हालांकि, सबूतों की कमी के कारण हाईकोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी.
लद्दाख को लेकर फिर अनशन करेंगे सोनम वांगचुक
'इकोनोमिक टाइम्स' की रिपोर्ट है कि लद्दाख को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक एक बार फिर अनशन पर बैठने जा रहे हैं. 15 जुलाई से शुरू होने वाला यह सत्याग्रह कम से कम एक महीने तक चलेगा, जिसमें लद्दाख के अलग-अलग क्षेत्रों से आए प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे. वांगचुक ने इकोनॉमिक टाइम्स से बातचीत में कहा, "हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार लद्दाख के प्रतिनिधियों से इन बुनियादी मुद्दों पर गंभीरता से बातचीत जारी रखे." 3 जून को केंद्र सरकार ने लद्दाख के लिए नई डोमिसाइल और आरक्षण नीति का ऐलान किया था. इसके तहत 85% नौकरियां स्थानीयों के लिए आरक्षित की गईं और लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषदों (LAHDC) की एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गईं. हालांकि आंदोलनकारियों का कहना है कि यह कदम स्वागत योग्य है, लेकिन यह आधी-अधूरी राहत है.
मार्च 2024 में वांगचुक के नेतृत्व में हुए जनांदोलन ने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान खींचा था. हजारों लोगों की भागीदारी के बाद केंद्र सरकार को बातचीत की मेज़ पर आना पड़ा था, लेकिन वादों के बावजूद कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया, जिससे जनता में निराशा और रोष बढ़ा है.
वांगचुक और उनके साथियों की मुख्य मांगों में लद्दाख को राज्य का दर्जा देने, लद्दाख को भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत जनजातीय सुरक्षा प्रदान करने जैसी मांगे शामिल हैं.
रॉयटर्स, टीआरटी वर्ल्ड और ग्लोबल टाइम्स के एक्स अकाउंट भारत में वापस बहाल
शनिवार देर रात भारत में रॉयटर्स, तुर्की के ब्रॉडकास्टर टीआरटी वर्ल्ड और चीन के राष्ट्रवादी टैब्लॉइड ग्लोबल टाइम्स के एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट अस्थायी रूप से ब्लॉक कर दिए गए थे. हालांकि कुछ घंटों बाद इन्हें फिर से बहाल कर दिया गया. पीटीआई को एक सरकारी सूत्र ने बताया कि यह कार्रवाई भारत सरकार की ओर से चलाए जा रहे 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत की गई थी. सूत्र के मुताबिक, इन अकाउंट्स पर ब्लॉकिंग के निर्देश पहले ही दिए गए थे, लेकिन एक्स द्वारा देरी से पालन करने पर अस्थायी रूप से इन्हें रोका गया. गौरतलब है कि 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत सरकार उन डिजिटल स्रोतों पर नजर रख रही है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा, सैन्य अभियानों या संवेदनशील सूचनाओं को लेकर गलत या भ्रामक जानकारी फैला सकते हैं. सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के बीच सेंसरशिप को लेकर खिंचाव पहले भी देखने को मिला है.
डाक विभाग अपनी संपत्तियों का व्यावसायिक उपयोग कर सकता है : सिंधिया
डाक विभाग अपने कुछ प्रमुख भवनों, इमारतों या भूमि (रियल एस्टेट) को व्यावसायिक उद्देश्य के लिए विकसित करने पर विचार कर रहा है. यह योजना पूरे नेटवर्क को पुनर्गठित और पुनर्स्थापित करने के लिए है, जिसमें 1.6 लाख डाकघरों को एक लाभ केंद्र में बदलना शामिल है, ऐसा केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने “टाइम्स ऑफ इंडिया” के सिद्धार्थ को बताया है.
"चाहे वह टेलीकॉम हो या डाक विभाग, हमें अपनी संपत्तियों का पूरा उपयोग करना चाहिए. इसलिए, यदि आपके पास बड़ी जमीन है, तो आप जमीन पर डाकघर बना सकते हैं और पूरी इमारत का निर्माण कर सकते हैं तथा उसमें जगह किराए पर दे सकते हैं. सबसे पहले हम यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारे पास कितनी संपत्तियां हैं, हम देख रहे हैं कि टाइटल पेपर्स कहां हैं, म्यूटेशन डिटेल्स क्या हैं और प्रमुख संभावित संपत्तियों की पहचान कर रहे हैं, उसके बाद ही हम किसी डेवलपर को लाएंगे," उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा.
डाक विभाग जैसी एजेंसियां देश भर में प्रमुख रियल एस्टेट पर बैठी हैं. मंत्री ने कहा कि छह वर्टिकल्स बनाए गए हैं और नई राजस्व धाराएं पहचानी जा रही हैं, ताकि प्रत्येक को लाभ केंद्र में बदला जा सके.
अमेरिका को फिर से महान बना रहे अंबानी
ओटावा से बीजिंग तक, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ट्रेड वॉर ने अमेरिका के कई दुश्मन बना दिए हैं. लेकिन इसने अमेरिका को कुछ नए दोस्त भी दिलाए हैं. एशिया के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी अमेरिकी कार्गो का स्वागत करने की तैयारी कर रहे हैं, जो मूल रूप से चीन के लिए भेजा जाना था, लेकिन अब भारत भेजा जा रहा है. अंबानी, दरअसल जिस जहाज का इंतजार कर रहे हैं, उसमें एथेन लदा हुआ है.
यह रंगहीन, गंधहीन प्राकृतिक गैस का घटक है, जिसे विशेष जहाजों में तरल रूप में भेजा जाता है. यह जहाज अमेरिका के गल्फ कोस्ट से भारत के पश्चिमी तट पर गुजरात के दहेज स्थित अंबानी के टर्मिनल की ओर बढ़ रहा है, जहां उनकी प्रमुख कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के पास एथेन क्रैकर है, जो प्लास्टिक उत्पादों के लिए जरूरी एथिलीन बनाता है.
“ब्लूमबर्ग” में एंडी मुखर्जी के अनुसार, यह कदम न केवल अमेरिकी ऊर्जा निर्यात को समर्थन देता है, बल्कि भारत को अमेरिका के साथ व्यापार वार्ताओं में अतिरिक्त ताकत भी देता है. रिलायंस द्वारा अमेरिकी एथेन का आयात उसकी अपनी उत्पादन लागत को कम करता है और अमेरिका के साथ भारत के व्यापार घाटे को भी कम करने में मदद कर सकता है, जो वर्तमान व्यापार वार्ताओं में एक बड़ा मुद्दा है. अंबानी के व्यावसायिक संबंध, सेलिब्रिटी कनेक्शन और रणनीतिक ऊर्जा सौदे अमेरिकी साझेदार के रूप में और वैश्विक पेट्रोकेमिकल बाजार में चीन के मुकाबले भारत की अहमियत को मजबूत कर रहे हैं.
हेट अलर्ट
न्यूज 18 द्वारा धार्मिक झंडे को पाकिस्तानी झंडा बताने की कोशिश
जैसे ही बिहार चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, गोदी मीडिया एक बार फिर अपने पुराने हथकंडों पर लौटती दिख रही है. न्यूज 18 इंडिया और न्यूज 18 बिहार पर हाल ही में प्रसारित एक रिपोर्ट में एक धार्मिक झंडे को पाकिस्तानी झंडा बताकर पेश किया गया, जो न सिर्फ ग़लत है, बल्कि साफ़ तौर पर इस्लामोफ़ोबिया और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण फैलाने की कोशिश है. इस झूठ का पर्दाफाश ‘ऑल्ट न्यूज़’ के फैक्ट-चेकर मोहम्मद जुबैर ने किया. उन्होंने लिखा— "चूंकि बिहार में चुनाव आने वाले हैं, अंबानी का न्यूज़ चैनल फिर सक्रिय हो गया है. जिसे आप पाकिस्तानी झंडा कह रहे हैं, वह दरअसल एक धार्मिक झंडा है. @News18India @News18Bihar, मुस्लिम विरोधी प्रोपेगेंडा चलाना बंद करें."
यह पहला मौका नहीं है जब किसी इस्लामिक प्रतीक या पोशाक को मीडिया द्वारा पाकिस्तान या आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश की गई हो. हरा रंग, चाँद-तारा, उर्दू इबारत, या दर्जियों द्वारा सिलाई गई मस्जिदों की झंडियां – इन सभी को बार-बार पाकिस्तान से जोड़कर आम मुसलमानों को शक की निगाह से देखने लायक बना दिया गया है.
किताब
दलित गरिमा की खोज
रोज़ालिंड ओ'हैनलन एक प्रारंभिक आधुनिक इतिहास की विद्वान और भारत के उपनिवेशकालीन इतिहास की विशेषज्ञ हैं. वह ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में भारतीय इतिहास और संस्कृति की सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं. उन्होंने 'द वायर' में दलित जर्नी फॉर डिग्निटी : रिलीजन, फ्रीडम एंड कास्ट' की समीक्षा की है. ये निबंध-संग्रह (दूसरा खंड) उस विमर्श में एक महत्वपूर्ण योगदान है जिसकी शुरुआत स्वयं डॉ. भीमराव अंबेडकर ने की थी. वर्ष 2016 में प्रकाशित पहले खंड के बाद, यह नया संग्रह 'दलित सोशल' की अवधारणा को केंद्र में रखता है.
19वीं सदी के उत्तरार्ध से ही दलित आंदोलन के नेताओं ने यह पहचाना कि महज़ संस्थागत राजनीति, जाति आधारित धार्मिक और सामाजिक घृणा को चुनौती नहीं दे सकती. अंबेडकर के अनुसार, असली लड़ाई उस सामाजिक जीवन में थी, जहाँ जातिवाद की जड़ें गहराई से फैली थीं और जो दलितों की समान मानव गरिमा के दावे को कुचलने में सक्रिय थे.
इस संग्रह के संपादक – रामनारायण एस. रावत, के. सत्यनारायण और पी. सनल मोहन – अपनी भूमिका में ‘गरिमा’ की अवधारणा का विवेचन करते हैं, जो अंबेडकर के लिए इतनी महत्वपूर्ण थी कि उन्होंने उसे भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्थान दिया. वे दिखाते हैं कि कैसे अंबेडकर ने उन परंपराओं को नकारा, जहाँ गरिमा को या तो तर्कबुद्धि या सामाजिक पद-प्रतिष्ठा से जोड़ा जाता था – जिसे लुईस काबरेरा ने "अहंकारी गरिमा" कहा है. इसके विपरीत, करुणा, बंधुता और ‘मनुस्की’ (मानवता) में उन्हें गरिमा की वास्तविक सम्भावनाएँ दिखीं – विशेषकर बौद्ध धर्म के मैत्री के विचार में.
धर्म और सामाजिक जीवन में गरिमा की खोज : पहले छह निबंध "धर्म और सामाजिक" खंड में आते हैं. इनका फोकस धार्मिक सिद्धांतों से अधिक उन सामाजिक परिस्थितियों, क्रियात्मकताओं और दलित एजेंसी पर है जो गरिमा की तलाश से जुड़ी हैं. चाकली चंद्र शेखर, आंध्र प्रदेश के माला समुदाय के बुनकर और व्यापारी नंचारी के जीवन पर प्रकाश डालते हैं. 1838 में मंदिर में प्रवेश के प्रयास पर जेल भेजे गए नंचारी ने जेल में ईसाई धर्म स्वीकार किया और माला समुदाय में व्यापक धर्मांतरण आंदोलन की नींव रखी. उन्होंने कहा था – “मैं भगवान की खोज में आहूबलम मंदिर गया, तो मुझे कैद कर लिया गया. लेकिन यह नया ईश्वर यीशु मसीह खुद मेरी खोज में आया.”
इसके विपरीत, उत्तर भारत में चमार समुदाय द्वारा संत रविदास की विरासत को अपनाकर गरिमा प्राप्त करने के प्रयास को रामनारायण एस. रावत प्रस्तुत करते हैं. स्वामी अछूतानंद ने अनुभव पर आधारित ज्ञान को वेदाधारित स्मृति पर वरीयता दी, और संत परंपरा के माध्यम से जातिविहीन समाज की परिकल्पना की.
रविदासिया आंदोलन और डिजिटल श्रद्धा : पंजाब में रविदासिया आंदोलन पर कुणाल दुग्गल लिखते हैं, जिसमें दलित सिखों ने रविदास की स्वतंत्र विरासत को अपनाया. 2009 में वियना में संत रामानंद की हत्या के बाद समुदाय ने उन्हें शहीद के रूप में स्मरण किया. यूट्यूब और डीवीडी जैसे डिजिटल माध्यमों से रविदासियों ने वैश्विक समुदाय की आकांक्षाओं को दर्शाया – एक सोने से मढ़ा मंदिर बनारस में बनाने की घोषणा भी इसी सिलसिले में हुई.
लिंग, जाति और सांस्कृतिक द्वैत : लुसिंडा रामबर्ग ने कर्नाटक के बौद्ध परिवारों में विवाह और देव-पूजा की द्वैधता पर ध्यान खींचा – जहाँ बाहरी घर में अंबेडकर और बुद्ध की तस्वीरें आधुनिकता का प्रतीक हैं, वहीं भीतर पुरानी पारिवारिक देवताओं की पूजा जारी है. जेस्टिन टी. वर्गीज ने केरल में दलित ईसाइयों के जीवन और पुरुषत्व की पुनर्परिभाषा की चर्चा की. जातिसूचक अपमानों के जवाब में दलितों ने भी ‘ऊंची जाति के पुरुषों की नपुंसकता’ के लोकप्रिय तर्क का इस्तेमाल किया.
संपत्ति, श्रम और आत्म-सम्मान : शरीका थिरणगामा केरल के दलितों के लिए ज़मीन और घर के स्वामित्व को गरिमा का स्रोत बताती हैं. यह संपत्ति न केवल आर्थिक सुरक्षा देती है, बल्कि विवाह, शिक्षा और पड़ोसी संबंधों में आत्मविश्वास भी. इसके उलट, सुमीत म्हास्कर बताते हैं कि मुंबई की मिलों में कैसे जाति-आधारित श्रम विभाजन ने दलितों को सबसे कठिन और गंदे कामों में धकेल दिया, बावजूद इसके उन्होंने शहरी मजदूरी और संगठन के माध्यम से कुछ स्वतंत्रता हासिल की.
शरीर और परिधान में गरिमा : अनुपमा ने ब्रिटिश काल के उत्तर भारत में दलित परिधान और शारीरिक गरिमा पर निबंध लिखा है. ऊंची जातियों द्वारा दलितों को मृतकों के कपड़े पहनने को मजबूर करना उनकी सार्वजनिक पहचान को कलंकित करता था. अंबेडकर का सूट-बूट इस अपमानजनक इतिहास का उत्तर था , लेकिन दूसरों के लिए यह ‘नव-आधुनिकता’ असहज और असामान्य लगी.
भाषा, स्मृति और प्राचीन जातिविहीन अतीत की खोज : डिकेंस लियोनार्ड ने अय्योथे थास्सर की विचारधारा का विश्लेषण किया – जो बौद्ध परंपरा और तमिल भाषा के माध्यम से एक पूर्व-हिंदू जातिविहीन समाज की कल्पना करते थे. उनके लिए नामकरण की प्रक्रिया ही जाति-मुक्त समाज की पुनर्स्थापना का औज़ार थी.
क्या है गरिमा? इन सभी ‘गरिमा की यात्राओं’ में एक बात स्पष्ट है – दलितों के लिए गरिमा केवल सामाजिक सम्मान नहीं, बल्कि प्रश्न पूछने का हक़, अनुभव का महत्व, प्रतीकों की प्रतिष्ठा, आत्मनिर्णय की स्वतंत्रता, निजी जीवन का विस्तार और संघर्ष की क्षमता भी है.
आइज़ाया बर्लिन के “टू कॉन्सेप्ट ऑफ लिबर्टी” की भाषा में कहें, तो ये निबंध सकारात्मक स्वतंत्रताओं – freedom to – की बात करते हैं, न कि केवल freedom from की. अमर्त्य सेन के “capabilities” दृष्टिकोण के अनुसार, वास्तविक विकास वही है जो लोगों की सामाजिक संभावनाओं को बढ़ाए और यह पुस्तक दलित दृष्टिकोण से उन्हीं क्षमताओं की खोज है. यह संग्रह न केवल भारतीय दलित अनुभव को बल्कि व्यापक मानवीय मूल्यों को भी गहराई से समझने का माध्यम बनता है. डॉ. अंबेडकर और अमर्त्य सेन की परंपरा में, यह पुस्तक गरिमा और स्वतंत्रता के विमर्श को आगे बढ़ाती है. यह किताब अमेजन पर उपलब्ध है.
विश्लेषण
एन एपलबॉम: क्या ट्रम्प पुतिन के साथ है?
डोनाल्ड ट्रम्प व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेनियों को मारते रहने के लिए हर प्रोत्साहन दे रहे हैं.
एन एप्पलबाम ने यह सवाल ‘द अटलांटिक’ में प्रकाशित इस लेख में पूछा है. वे दुनिया में फिसलते लोकतंत्र का अध्ययन करने वाली विशेषज्ञ हैं. कई किताबें लिखी हैं. यहां उस लेख के खास अंश.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने अप्रैल में अपने ट्रूथ सोशल अकाउंट पर लिखा था, "व्लादिमीर, रुको!" लेकिन रूसी राष्ट्रपति ने पूर्वी यूक्रेन में अपना आक्रमण नहीं रोका. यूक्रेनी राष्ट्रपति ने मई में बिना शर्त युद्धविराम का आह्वान किया था, लेकिन रूसी हवाई हमलों से यूक्रेनी नागरिकों पर हमले बंद करने के लिए राज़ी नहीं हुए. डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार वादा किया था कि वे युद्ध को "एक दिन में" समाप्त कर देंगे, लेकिन युद्ध अभी भी जारी है. उन्होंने कल व्लादिमीर पुतिन से बात की, और पुतिन ने पहले से कहीं अधिक ड्रोन और मिसाइलों के साथ जवाब दिया. आज सुबह (4 जुलाई, 2025), कीव के कुछ हिस्से जल रहे हैं.
यूक्रेन पर आक्रमण केवल जारी नहीं है. यह तेज़ हो रहा है. लगभग हर रात, रूसी हवाई हमलों से यूक्रेन के और भी हिस्सों को नष्ट कर देते हैं: अपार्टमेंट बिल्डिंग, फैक्ट्रियां, बुनियादी ढांचा, और लोग. ज़मीन पर, यूक्रेन के शीर्ष कमांडर ने कहा है कि रूसी गर्मियों के नए आक्रमण की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें मोर्चे की पूरी लाइन पर 695,000 सैनिक फैले हुए हैं.
रूसी सैनिक भी असाधारण दरों पर घायल या मारे जा रहे हैं, हर महीने 35,000 से 45,000 के बीच हताहत हो रहे हैं, जबकि यूक्रेनी ड्रोन हर सप्ताह अरबों डॉलर के रूसी उपकरण नष्ट कर रहे हैं. रूसी अर्थव्यवस्था उच्च महंगाई से पीड़ित है और मंदी की ओर जा रही है. लेकिन पुतिन युद्धविराम की तलाश में नहीं है, और वह बातचीत नहीं करना चाहता. क्यों? क्योंकि उसका मानना है कि वह जीत सकता है. अमेरिकी सरकार के कार्यों के कारण, वह अभी भी सोचता है कि वह पूरे यूक्रेन को जीत सकता है.
पुतिन वह देखता है जो बाकी सभी देखते हैं: धीरे-धीरे, अमेरिका अपना पक्ष बदल रहा है. सच है, ट्रम्प कभी-कभी पुतिन को डांटते हैं, या यूक्रेनियों के प्रति सहानुभूति की आवाज़ें उठाते हैं, जैसा कि उन्होंने पिछले सप्ताह किया था जब वे एक यूक्रेनी पत्रकार में रुचि दिखाते दिखे जिसने कहा था कि उसका पति सेना में है. ट्रम्प को नाटो शिखर सम्मेलन में चापलूसी पसंद आई लगती है, जहां यूरोपीय नेताओं ने रक्षा खर्च को और बढ़ाने का एक ऐतिहासिक फैसला लिया. लेकिन उनकी अपनी प्रशासन के सदस्यों के शांत निर्णयों के कारण, जिन्हें उन्होंने नियुक्त किया है, रूस के साथ अमेरिकी गठजोड़ और यूक्रेन और यूरोप के विरुद्ध अमेरिकी पुनर्संरेखण रफ्तार पकड़ रहा है—केवल बयानबाज़ी में नहीं बल्कि वास्तविकता में.
इसी सप्ताह, युद्ध शुरू होने के बाद से सबसे बुरे हवाई बमबारी अभियान के बीच, ट्रम्प प्रशासन ने पुष्टि की है कि हथियारों की एक बड़ी खेप, जिसके लिए पहले से ही बाइडन प्रशासन द्वारा धन मुहैया कराया गया था, यूक्रेन को नहीं भेजी जाएगी. हथियार, जिनमें से कुछ पहले से ही पोलैंड में हैं, में आर्टिलरी शेल, मिसाइल, रॉकेट, और सबसे महत्वपूर्ण, पैट्रियट एयर-डिफेंस सिस्टम के लिए इंटरसेप्टर शामिल हैं, वह गोला-बारूद जिसकी यूक्रेनियों को मिसाइल हमलों से नागरिकों की रक्षा के लिए ज़रूरत है. ट्रम्प ने सुझाव दिया था कि वे यूक्रेन को और पैट्रियट गोला-बारूद की आपूर्ति करेंगे, जो एक अमेरिकी उत्पाद है. "हम देखेंगे कि क्या हम कुछ मुहैया करा सकते हैं," उन्होंने पिछले सप्ताह यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से मिलने के बाद कहा था. लेकिन वह जो कहते हैं और उनका प्रशासन वास्तव में जो करता है, वह बहुत अलग है.
पेंटागन के प्रवक्ताओं ने समझाया है कि यह अचानक बदलाव इसलिए किया गया है क्योंकि अमेरिकी भंडार अपर्याप्त हैं, एक बहाना जिसे बाइडन-प्रशासन के पूर्व अधिकारियों और स्वतंत्र नीति विश्लेषकों दोनों ने विवादित किया है. लेकिन चाहे सच हो या झूठ, यह तर्क रूसियों के लिए मायने नहीं रखता, जिन्होंने पहले से ही इस बदलाव को एक स्पष्ट संकेत के रूप में व्याख्या किया है कि यूक्रेन के लिए अमेरिकी समर्थन समाप्त हो रहा है: "यूक्रेन को दिए जाने वाले हथियारों की संख्या जितनी कम होगी, विशेष सैन्य अभियान का अंत उतना ही करीब होगा," क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने रिपोर्टरों से कहा. स्पष्ट रूप से, "विशेष सैन्य अभियान के अंत" से उनका मतलब यूक्रेन की हार है.
साथ ही, और बहुत कम प्रचार के साथ, अमेरिका अनिवार्य रूप से रूस पर प्रतिबंध हटा रहा है. कोई ऐसी औपचारिक घोषणा नहीं की गई है. लेकिन प्रतिबंधों के रखरखाव के लिए निरंतर बदलाव और समायोजन की आवश्यकता होती है, क्योंकि रूसी कंपनियां और अन्य संस्थाएं प्रतिबंधित उत्पादों को हासिल करने के लिए आपूर्तिकर्ताओं और रणनीतियों को बदलती रहती हैं. बाइडन प्रशासन के दौरान, मैंने उन अधिकारियों से कई बार बात की जो इन बदलावों को बारीकी से देखते थे, और जिन्होंने इनका मुक़ाबला करने के लिए बार-बार नए प्रतिबंध लगाए. जैसा कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट किया है, ट्रम्प प्रशासन ने इन बदलावों को देखना बंद कर दिया है और नए प्रतिबंध लगाना पूरी तरह से रोक दिया है. टाइम्स के अनुसार, यह "नई डमी कंपनियों को रूस में धन और महत्वपूर्ण घटकों को पहुंचाने की अनुमति देता है, जिसमें कंप्यूटर चिप और सैन्य उपकरण शामिल हैं."
गतिज युद्ध और आर्थिक युद्ध में रूस का पक्ष लेने के अलावा, अमेरिका कथा युद्ध में भी अपनी स्थिति को पुनर्संरेखित कर रहा है. बाइडन प्रशासन के दौरान, स्टेट डिपार्टमेंट का ग्लोबल एंगेजमेंट सेंटर (जीईसी) नियमित रूप से दुनिया भर में रूसी गलत सूचना अभियानों की पहचान करता था—लैटिन अमेरिका और अफ्रीका में, साथ ही यूरोप में गुप्त रूप से रूसी ऑपरेटिवों द्वारा चलाई या निर्देशित भ्रामक वेबसाइटों या अभियानों को उजागर करता था. ट्रम्प की नियुक्तियों ने न केवल केंद्र को भंग कर दिया है; उन्होंने निराधार और विचित्र रूप से इस पर आरोप लगाया है कि इसने किसी तरह अमेरिकी रूढ़िवादियों को नुकसान पहुंचाया है, यहां तक कि "अमेरिकियों की आवाज़ों को सक्रिय रूप से दबाया और सेंसर किया है," हालांकि जीईसी के अमेरिका के अंदर कोई ऑपरेशन नहीं थे.
साथ ही, यूएसएड और अन्य कार्यक्रमों में कटौती ने कुछ स्वतंत्र मीडिया और रूसी विपक्षी मीडिया के लिए धन में अचानक कमी कर दी है. रेडियो फ्री यूरोप/रेडियो लिबर्टी में नियोजित कटौती, यदि अदालतों द्वारा नहीं रोकी गई, तो यह उन कुछ बाहरी सूचना स्रोतों में से एक को नष्ट कर देगी जो रूसियों तक युद्ध के बारे में वास्तविक समाचार पहुंचाते हैं. यदि ये सभी बदलाव स्थायी हो जाते हैं, तो अमेरिका के पास रूसी जनता के साथ संवाद करने या रूसी प्रचार का मुक़ाबला करने के लिए कोई उपकरण नहीं रह जाएगा, न तो रूस के अंदर और न ही दुनिया भर में.
अमेरिका के अंदर, रूसी प्रचार को अमेरिकी राष्ट्रपति के नियुक्त लोगों द्वारा सबसे ज़ोर से और प्रभावी रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है. स्टीव विट्कॉफ, रियल एस्टेट डेवलपर जो रूसी इतिहास या राजनीति के बारे में कोई जानकारी नहीं रखने के बावजूद ट्रम्प के रूस के साथ मुख्य वार्ताकार बन गए, नियमित रूप से झूठे रूसी मुद्दों और प्रचार को दोहराते हैं. उन्होंने पुतिन के विचार को दोहराया है, जो उन्होंने शायद रूसी राष्ट्रपति से सुना होगा, कि "यूक्रेन सिर्फ एक झूठा देश है, कि उन्होंने बस इस तरह की मोज़ेक में, इन क्षेत्रों को एक साथ जोड़ दिया है." विट्कॉफ ने पुतिन से सहमत होने का भी इशारा किया है कि यूक्रेनी क्षेत्र जिन्होंने 1991 में मॉस्को से स्वतंत्रता के लिए वोट दिया था, वे किसी तरह "रूसी" हैं.
विवादित दावों को तथ्य के रूप में स्वीकार करके, विट्कॉफ पुतिन को अपना युद्ध जारी रखने में भी मदद कर रहे हैं. रूसियों को साथ रखने के लिए, यूक्रेन के सहयोगियों में विभाजन पैदा करने के लिए, और शायद यूक्रेन के अंदर भी संदेह पैदा करने के लिए, पुतिन को यूक्रेनी कारण को निराशाजनक बताना होगा और यूक्रेनी "मांगों" को अनुचित बताना होगा. उसे इस युद्ध के सबसे बुनियादी तथ्यों को छुपाना होगा: कि उसने इसे शुरू किया, कि उसने इसकी खोज में सैकड़ों हज़ारों लोगों को मारा है, और कि उसका लक्ष्य, फिर से, पूरे यूक्रेन को नष्ट करना या उसका सिर काटना है. विट्कॉफ इन झूठों को बनाए रखने में मदद करता है, रूस में, अमेरिका में, और यूरोप में.
इन सभी चीज़ों को एक साथ जोड़ें, और वे केवल एक पैटर्न से कहीं अधिक हैं. वे प्रोत्साहनों का एक सेट हैं जो पुतिन को लड़ते रहने के लिए राज़ी करने में मदद करते हैं. प्रतिबंध गायब हो रहे हैं, हथियार कम हो रहे हैं, काउंटर-प्रोपेगेंडा सुनना कठिन हो रहा है. यह सब पुतिन को आगे जाने के लिए प्रोत्साहित करेगा—न केवल यूक्रेन को हराने की कोशिश करने के लिए बल्कि यूरोप को विभाजित करने, नाटो को घातक नुकसान पहुंचाने, और दुनिया भर में अमेरिका की शक्ति और प्रभाव को कम करने के लिए.
यूरोप, कनाडा, और लोकतांत्रिक दुनिया का अधिकांश हिस्सा यूक्रेन का समर्थन करता रहेगा. जैसा कि मैंने पहले लिखा है, यूक्रेनी नवाचार करते रहेंगे, नए प्रकार के स्वचालित हथियार, नए ड्रोन, नए सॉफ्टवेयर बनाते रहेंगे. वे लड़ते रहेंगे, क्योंकि विकल्प उनकी सभ्यता, उनकी भाषा, और उनमें से कई के लिए, उनकी जिंदगी का अंत है.
यूक्रेनी अभी भी जीत सकते हैं. अमेरिकी नीतियों का एक अलग सेट उन्हें तेज़ी से जीतने में मदद कर सकता है. अमेरिका अभी भी रूस पर प्रतिबंध बढ़ा सकता है, गोला-बारूद प्रदान कर सकता है, और यूक्रेनियों को कथा युद्ध जीतने में मदद कर सकता है. प्रशासन लड़ाई, मिसाइल हमलों, और घातक ड्रोन झुंडों को रोक सकता है; यह उन बेकार मौतों को रोक सकता है जिनका ट्रम्प ने बार-बार विरोध किया है. रूस का समर्थन करना चुनकर, अमेरिका सुनिश्चित करेगा कि युद्ध जारी रहे. केवल यूक्रेन का समर्थन करने से शांति की उम्मीद है.
पाकिस्तान का पालतू शेर निकल भागा, तुर्की में भी
पाकिस्तान और तुर्की में शेरों के चलते लोग दहशत में आ गए. पाकिस्तान के लाहौर में एक फार्महाउस से भागे पालतू शेर ने एक महिला और उसके दो बच्चों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया. घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आते ही पुलिस ने शेर के मालिकों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस अधिकारी फैसल कमरान के मुताबिक, बुधवार रात को शेर पिंजरे से निकलकर रिहायशी इलाके में पहुंच गया और 5 व 7 साल के बच्चों सहित उनकी मां पर हमला कर दिया. सभी के चेहरे और बाहों पर गंभीर घाव आए हैं. पीड़ित बच्चों के पिता ने पुलिस को बताया कि शेर के मालिक वहां मौजूद थे, लेकिन उन्होंने शेर को रोकने की कोई कोशिश नहीं की. बाद में शेर वापस अपने फार्महाउस चला गया, जहां से उसे वाइल्डलाइफ पार्क भेज दिया गया. पाकिस्तान में कुछ अमीर लोग शेर जैसे खतरनाक जानवरों को पालना रुतबे की निशानी मानते हैं, हालांकि इसके लिए कड़े कानूनी प्रावधान और भारी-भरकम फीस है.
तुर्की में शेर का हमला : तुर्की के अंटाल्या के पास 'लैंड ऑफ लॉयन्स' थीम पार्क से भागा एक शेर रविवार तड़के एक खेत में सो रहे दंपती पर टूट पड़ा. 65 किलोमीटर दूर मानेवगात इलाके में यह घटना हुई. पीड़ित सुलैमान किर नामक कृषि मज़दूर ने बताया, “सुबह की अज़ान के समय मैं उठा तो किसी भारी चीज़ ने मेरा पैर छुआ. पहले मुझे लगा कुत्ता है, लेकिन जब देखा तो वह शेर था.” शेर ने उनकी पिंडली और गर्दन पर काटा, लेकिन उन्होंने उसे गर्दन से पकड़कर कस के दबाया, जिससे वह पीछे हट गया. इसी दौरान सुरक्षा बल पहुंचे और शेर को गोली मार दी. अखबार बिर्गुन के अनुसार, ‘लैंड ऑफ लॉयन्स’ पार्क में करीब 30 बड़े शिकारी जानवर रखे गए हैं.
तस्वीरों में: भारत की बावड़ियों की यात्रा
भारत की प्राचीन बावड़ियाँ सिर्फ जल-संग्रहण की संरचनाएं नहीं थीं, बल्कि सामाजिक, आध्यात्मिक और वास्तुकला की अद्भुत मिसालें भी थीं. फोटोग्राफर क्लॉडियो कैमबोन ने अपने कैमरे के ज़रिए इन बावड़ियों की आत्मा को पकड़ने की कोशिश की है. क्लॉडियो कैमबोन पिछले 30 वर्षों से वृत्तचित्र फोटोग्राफर के रूप में कार्य कर रहे हैं, जिनमें से 25 से अधिक वर्ष उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में बिताए हैं.
भारत में पानी से संबंध कठोर सीमाओं में नहीं बंधा, बल्कि यहाँ पानी तक उतरने के लिए सीढ़ियाँ हैं घाट और बावड़ियाँ जो जल को छूने, महसूस करने और आत्मसात करने का अवसर देती हैं. यह वास्तुकला जीवन और तत्वों के बीच एक गहराई से जुड़ा संवाद रचती है.
बावड़ी: एक यात्रा भीतर की ओर : एक साधारण कुआं जहां सिर्फ जल निकाला जाता है, वहीं बावड़ी एक ऐसा स्थान है जहां मनुष्य स्वयं जल की ओर उतरता है – शांति, ठंडक और मौन के बीच. बावड़ी में उतरना एक ध्यानमग्न अनुभव होता है, और बाहर लौटते समय लगता है जैसे पुनर्जन्म हुआ हो.
नारी और जल: जीवन का स्रोत : इन बावड़ियों को स्त्री-संवेदना से भी जोड़ा गया है – जल और धरती को स्त्री रूप माना जाता है, देवीयों को समर्पित बावड़ियां हैं और पारंपरिक रूप से महिलाएं ही इनकी प्रमुख उपयोगकर्ता रही हैं. कई बावड़ियाँ महिलाओं द्वारा ही बनवाई गई थीं.
आज जब जल संकट, तापमान वृद्धि और सार्वजनिक स्थलों की भीड़ हमारी चुनौतियाँ हैं, तब ये बावड़ियाँ जल-संरक्षण, तापीय आश्रय और सामाजिक एकत्रीकरण के रूप में समाधान प्रस्तुत करती हैं. इनसे हम न केवल वास्तुकला बल्कि जीवन-दृष्टि भी सीख सकते हैं.
ऑस्ट्रेलियाई 'पब कॉयर' की डायरेक्टर एस्ट्रिड जॉरगेंसन ने अमेरिका में बिखेरा जादू
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि ऑस्ट्रेलिया की 35 वर्षीय संगीत निर्देशक एस्ट्रिड जॉरगेंसन ने अमेरिका की टीवी रियलिटी शो ‘अमेरिकाज गॉट टैलेंट’ पर परंपरा तोड़ते हुए खुद नहीं, बल्कि दर्शकों से गाना गवाया – और वही बन गया वायरल मोमेंट. उनके ‘पब कॉयर’ शो का मकसद है, लोगों को साथ गाकर जोड़ना. “बस महसूस करो, गाओ, जीत का अहसास लो – ये कोई बड़ा टेस्ट नहीं है,” एस्ट्रिड कहती हैं. अमेरिका के दौरे में उन्होंने हजारों लोगों को मिलाकर गाने सिखाए. तोतो के हिट गाने अफ्रीका पर जब पूरा हॉल गा उठा, तो विभाजित अमेरिका को एक सुर में पिघलते देखना किसी चमत्कार से कम नहीं था. एस्ट्रिड अब सिंगापुर, टोक्यो और यूरोप में अपनी टूर की तैयारी कर रही हैं. उनका मानना है – "सामूहिक गायन इंसान को इंसान से जोड़ता है और राजनीति से परे एक नई उम्मीद रचता है." यहां देखे उसका वीडियो. आपका दिन बेहतर होगा.
चलते-चलते
"क्या मैं फिर कभी अपनी मातृभूमि लौट पाऊंगा?"
“मैं तिब्बत के नीले आसमान, बर्फीली चोटियों और हरी-भरी घाटियों में लौट आया हूं... लेकिन सिर्फ़ सपनों में.” फिल्ममेकर राखी शांडिल्य और राजीव उपाध्याय की एक भावुक डॉक्युमेंट्री वीडियो में निर्वासित तिब्बती नागरिकों ने अपनी पीड़ा और उम्मीदें साझा की हैं. 1994 में तिब्बत से भागे एक शिक्षक बताते हैं कि कैसे उन्होंने भारत आकर शरण ली, पढ़ाई की और अब दिल्ली के एक तिब्बती स्कूल में प्रधानाचार्य हैं. एक अन्य पूर्व शरणार्थी कहते हैं, “जब तक तिब्बत आज़ाद नहीं होगा, मेरा भविष्य भी अधूरा है. मैं ल्हासा की गलियों में भिखारी बनकर भी खुश रहूंगा, अगर वो आज़ाद हो.” वीडियो में तिब्बती संस्कृति, बौद्ध ग्रंथों और हस्तलिखित पांडुलिपियों को सहेजने की कोशिशें भी दिखती हैं. एक शिक्षिका कहती हैं - "मैंने पूछा, हम अनाथालय क्यों नहीं बनाते, मठ क्यों? उत्तर मिला - मठ शिक्षाओं को अगली पीढ़ियों तक ले जाते हैं, ताकि फिर कोई बच्चा अनाथ न हो.” वीडियो का अंत एक ज़ोरदार सवाल से होता है और वह यह कि क्या तिब्बती लोगों को "भगवान और देश के बीच" चुनाव करने को मजबूर किया जाना सही है? राखी ने ‘टुमॉरो विल कम’ नाम की इस डॉक्युमेंट्री को दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के मौके पर अपने यूट्यूब चैनल पर जारी किया है.
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