08/08/2025: केंचुआ कठघरे में, लोकतंत्र ख़तरे में? | ट्रम्प के जवाब में किसानों की दुहाई | व्यक्तिगत और राष्ट्रीय पर जयति घोष | असम में मुस्लिमों की बेदखली
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खिया
केंचुआ कठघरे में : चुनाव आयोग के डाटा से ही राहुल ने साबित किया लोकतंत्र ख़तरे में है
केंचुआ ने अपने ही कागज़ों पर सबूत मांगे
धराली त्रासदी में 100 से अधिक मौतें
टैरिफ के लिए तैयार, मोदी का जवाब
जयति घोष: मोदी सरकार जैसी व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित विदेश नीति, पूरी तरह से विफल साबित हुई
‘एसआईआर’ पर संसद में गतिरोध जारी
पुतिन जल्द ही भारत आएंगे
मोदी द्वारा शाह की प्रशंसा ने उत्तराधिकार की अटकलों को हवा दी
ओडिशा में आदिवासी और मध्यप्रदेश में दलित महिला के साथ गैंग रेप
जम्मू-कश्मीर में एजी नूरानी, अरुंधति रॉय समेत कई लेखकों की 25 किताबों पर प्रतिबंध
उफनती नदी, पक्षपाती भूमि नीति और मिया मुसलमानों की असम में बेदखली
एक बेगुनाह आतंकवादी पर फिल्म बनाने का साहस : हीमोलिम्फ
केंचुआ कठघरे में : चुनाव आयोग के डाटा से ही राहुल ने साबित किया लोकतंत्र ख़तरे में है
‘चुनाव चुराने के लिए चुनाव आयोग बीजेपी से मिला हुआ है’
कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने गुरुवार, 7 अगस्त 2025 को आरोप लगाया कि 2024 लोकसभा चुनाव के बाद से चुनाव आयोग की मिलीभगत से मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर धांधली और वोटों की चोरी की जा रही है. चुनाव आयोग (ईसीआई) भाजपा के साथ मिलकर यह धोखाधड़ी कर रहा है और वोट चुराने के सबूत नष्ट किए जा रहे हैं . पिछले सप्ताह राहुल गांधी ने दावा किया था कि उनके पास "वोट चोरी" के संबंध में 'एटम बम' जैसा सबूत है. राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और हरियाणा समेत कई राज्यों में मतदाता सूची में बड़ी संख्या में फर्जी नाम जोड़े गए हैं और मतदान के आंकड़ों में गड़बड़ी की गई है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गंभीर खतरा है. उन्होंने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए और आयोग को भाजपा के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया.
राहुल गांधी ने गुरुवार को मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी पर लगभग सवा घंटे तक प्रजेंटेशन दिया. स्क्रीन पर कर्नाटक की मतदाता सूची दिखाते हुए कहा कि इसमें संदिग्ध मतदाता मौजूद हैं.
सोशल मीडिया में उसके बाद आग लग गई. मुख्यधारा का मीडिया उतना आक्रामक और उत्तेजित नहीं हुआ, जितना वह फालतू बातों पर अक्सर हो जाता है. चुनाव आयोग ने बजाय अपने गिरेबान में झांकने के ये तो नहीं कहा कि राहुल गांधी गलत बोल रहे हैं, पर मांग रखी कि राहुल गांधी शपथ पत्र जारी करें. जिस भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी सरकार पर चुनाव आयोग से मिलीभगत के सीधे आरोप राहुल गांधी ने लगाए, उनके भी विरोध खासे हलके रहे.
राहुल गांधी के आरोपों की गंभीरता को देखते हुए सत्तारूढ़ दल, सरकार और केंद्रीय चुनाव आयुक्त से बेहतर प्रतिक्रिया की उम्मीद थी, अगर वे लोकतंत्र और चुनाव आयोग की निष्पक्षता और ईमानदारी को लेकर वाकई गंभीर दिखना चाहते थे. पर ऐसा होता हुआ नहीं दिखलाई पड़ा.
राहुल ने कहा कि महाराष्ट्र के नतीजे देखने के बाद हमारा शक मजबूत हुआ कि चुनाव में चोरी हुई है. मशीन रीडेबल वोटर लिस्ट नहीं देने से भरोसा हुआ कि चुनाव आयोग ने भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र के चुनाव की चोरी की है. कांग्रेस नेता ने दावा किया कि हमने यहां वोट चोरी का जो मॉडल पेश किया, इसी का इस्तेमाल देश की कई लोकसभाओं और विधानसभाओं में किया गया.
कर्नाटक की महादेवपुरा विधानसभा सीट की मतदाता सूची दिखाते हुए राहुल ने आरोप लगाया कि यहां के 6.5 लाख वोट में से 1 लाख वोटों की चोरी हुई है. कांग्रेस की रिसर्च में इस इलाके में करीब एक लाख गलत पतों का खुलासा हुआ और एक ही पते पर थोक में डुप्लीकेट मतदाताओं का पता चला. गांधी ने दावा किया कि यहां 1 लाख से अधिक डुप्लीकेट मतदाता, 40,000 फर्जी और अमान्य पते, तथा 33,000 से अधिक नए मतदाताओं के लिए फॉर्म 6 का दुरुपयोग हुआ.
उन्होंने कहा कि कर्नाटक में हमें 16 सीटों पर जीत मिलती, लेकिन हम सिर्फ 9 सीटों पर जीते. हमने हारी हुई इन सात सीटों में से एक सीट बेंगलुरु सेंट्रल पर जांच की. इस सीट पर कांग्रेस को 6,26,208 और भाजपा को 6,58,915 वोट मिले. दोनों पार्टियों के बीच वोटों का अंतर सिर्फ 32,707 था. वहीं जब महादेवपुरा विधानसभा सीट पर वोटिंग हुई तो यह अंतर 1,14,046 का रहा. जाहिर है, करीब एक लाख वोटों की चोरी हुई.
महाराष्ट्र और हरियाणा का उल्लेख : राहुल गांधी का कहना था कि महाराष्ट्र में चंद महीने में लाखों मतदाताओं के नाम सूची में जोड़े गए, जो काफी चिंताजनक है. 40 लाख मतदाता रहस्यमयी हैं. लोकसभा चुनाव के बाद पांच महीने में कई मतदाता जोड़े गए. मतदाता सूची के बारे में चुनाव आयोग को जवाब देना चाहिए. बताना चाहिए कि मतदाता सूची सही है या गलत? शाम 5 बजे के बाद वोटर टर्नआउट का बढ़ना भी हैरान करने वाला है. चुनाव आयोग इसका जवाब दे कि वोटिंग क्यों बढ़ी? कांग्रेस पार्टी ने वोटों की धांधली के मामले में चुनाव आयोग से सवाल पूछे हैं, लेकिन आयोग ने एक का भी जवाब नहीं दिया. हमें वोटों की चोरी पकड़ने में छह महीने का वक्त लगा है. हरियाणा में हार के लिए मतदाता सूची को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि ये गड़बड़ियां इसलिए हैं, क्योंकि चुनाव आयोग मतदाताओं का डेटा उपलब्ध नहीं कराता. उन्होंने आरोप लगाया कि इस वजह से वोटों की चोरी हो रही है. हरियाणा में कांग्रेस की हार के लिए उन्होंने इन गड़बड़ियों को ही जिम्मेदार बताया.
इसी मुद्दे पर राहुल आज बेंगलुरु में : राहुल गांधी शुक्रवार 8 अगस्त को बेंगलुरु में “वोट चोरी” के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करेंगे, जिसमें वे पिछले साल बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में हुई हेराफेरी को उजागर करेंगे. गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “कर्नाटक से हमारे प्रतिरोध की शुरुआत होगी. हम इस धोखाधड़ी को गली-गली और बूथ-बूथ जाकर उजागर करेंगे.”
केंचुआ ने अपने ही कागज़ों पर सबूत मांगे
कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा मतदाता सूची में गड़बड़ी के गंभीर आरोपों के बाद चुनाव आयोग ने कड़ा रुख अपना लिया है. कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के बाद अब महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव आयोगों ने भी राहुल गांधी को पत्र लिखकर उनके दावों के समर्थन में सबूत के तौर पर शपथ पत्र की मांग की है.
यह मामला तब तूल पकड़ा जब राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर हेरफेर किया जा रहा है, जिसमें योग्य मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं और अपात्रों के नाम जोड़े जा रहे हैं. उन्होंने इसे "वोट की चोरी" करार दिया.
इन आरोपों के कुछ ही मिनटों बाद, कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी वी. अंबु कुमार ने राहुल गांधी को एक पत्र भेजा. पत्र में कहा गया है, "आपसे निवेदन है कि उन मतदाताओं के नामों की लिस्ट के साथ शपथ पत्र पर साइन करके हमें भेज दें, ताकि आगे की कार्रवाई की जा सके."पत्र में यह भी चेतावनी दी गई है कि झूठी जानकारी देने पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.
कर्नाटक के नक्शेकदम पर चलते हुए, महाराष्ट्र और हरियाणा के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों ने भी राहुल गांधी से उनके द्वारा लगाए गए आरोपों को प्रमाणित करने के लिए कहा है. इन राज्यों में भी मतदाता सूची में गड़बड़ी के दावे किए गए थे. राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि हरियाणा में कांग्रेस की हार का एक कारण वोटर लिस्ट में हुई गड़बड़ी थी.
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को "भ्रामक, तथ्यहीन और धमकाने वाला" बताते हुए खारिज कर दिया है. आयोग का कहना है कि अगर राहुल गांधी अपने दावों को साबित नहीं कर पाते हैं, तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.
भाजपा के मुताबिक कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने 3 अगस्त को चुनाव आयोग से संपर्क किया था, और आयोग ने उन्हें 8 अगस्त को मिलने का समय दिया था. हालांकि, राहुल गांधी ने सुनवाई से एक दिन पहले ही 7 अगस्त को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी.
यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब बिहार में भी मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग के बीच बहस चल रही है. चुनाव आयोग ने वहां भी आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि सभी राजनीतिक दलों को हटाए गए मतदाताओं के नामों की सूची उपलब्ध करा दी गई है.
राहुल ने मांग ठुकराई : इस बीच राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की मांग को ठुकरा दिया. उन्होंने कहा, “मैंने इसे सार्वजनिक रूप से कहा है, इसे शपथ समझिए.” उन्होंने यह भी बताया कि आयोग ने उनके द्वारा प्रस्तुत सूचियों की सत्यता से इनकार नहीं किया है, बल्कि केवल औपचारिक पुष्टि मांगी है. “उनको सच पता है,” राहुल ने दावा किया. कांग्रेस नेता ने चुनाव अधिकारियों को चेतावनी दी कि जब विपक्ष सत्ता में आएगा तो इसके परिणाम भुगतने होंगे. “यह मायने नहीं रखता कि आप वरिष्ठ हैं या कनिष्ठ. एक दिन विपक्ष सत्ता में आएगा और तब आप देखेंगे कि हम आपके साथ क्या करते हैं. आप हमारे लोकतंत्र की नींव पर आघात कर रहे हैं, हम इसे सहन नहीं करेंगे,” उन्होंने कहा.
यूपी सीईओ ने गलत बयानी की, ज़ुबैर ने फैक्ट चेक किया : उत्तरप्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने जब राहुल गांधी के इस दावे को गलत बताया कि एक मतदाता आदित्य श्रीवास्तव का नाम लखनऊ की मतदाता सूची में दर्ज है तो फैक्ट-चेकर मोहम्मद ज़ुबैरने तुरंत पुष्टि की कि श्रीवास्तव का नाम लखनऊ की सूची में भी मौजूद है. दरअसल राहुल ने कहा था कि आदित्य श्रीवास्तव का नाम बेंगलुरु और महाराष्ट्र के अलावा लखनऊ में भी दर्ज है.
राहुल के आरोप लोगों का अपमान : इधर, बीजेपी ने राहुल गांधी की कड़ी आलोचना करते हुए उन पर पार्टी की चुनावी जीत को “धोखाधड़ी” कहकर भारत के लोगों का अपमान करने का आरोप लगाया. बीजेपी सांसद रवि शंकर प्रसाद ने गांधी की टिप्पणियों की निंदा करते हुए उन्हें “गैर जिम्मेदाराना और शर्मनाक” बताया और कहा कि कांग्रेस नेता लगातार चुनावी हार से “हताशा और गुस्से” में चुनाव आयोग पर हमला कर रहे हैं.
धराली त्रासदी में 100 से अधिक मौतें
उत्तराखंड के धराली कस्बे में हुई त्रासदी में 100 से अधिक लोग मारे गए हैं. "द न्यू इंडियन एक्सप्रेस" में नरेंद्र सेठी ने एक स्थानीय निवासी के हवाले से बताया है कि तबाही के वक्त धराली में लगभग 1400 लोग थे. 25 होमस्टे तबाह हो गए. रिपोर्ट के अनुसार, आठ विभागों की 1,332 सदस्यीय टीम, जिसमें सेना की राजपूताना राइफल्स, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ शामिल हैं, 24 घंटे खोज एवं बचाव कार्यों में लगी हुई हैं. गुरूवार को 260 लोगों को सफलतापूर्वक बचाया गया और उन्हें उत्तरकाशी के मटली हेलिपैड पर लाया गया. लगभग 400 लोग गंगोत्री में फंसे हुए हैं, जहां सेना के हेलीकॉप्टर उन्हें सुरक्षित स्थानों पर निकाल रहे हैं.
ट्रम्प के 50% टैरिफ
टैरिफ के लिए तैयार, मोदी का जवाब
मोदी ने ऐसा कहा जरूर कि ‘भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरे भाई-बहनों के हितों के साथ कभी भी समझौता नहीं करेगा, हालांकि मोदी का रिकार्ड थोड़ा कमज़ोर रहा है.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को 50% अमेरिकी टैरिफ का जिक्र किए बिना कहा कि हमारे लिए अपने किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है. भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरे भाई-बहनों के हितों के साथ कभी भी समझौता नहीं करेगा. मोदी ने दिल्ली में एमएस स्वामीनाथन शताब्दी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कहा, “मैं जानता हूं कि व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं.” मोदी का यह बयान अमेरिका के भारत पर 50% टैरिफ के ऐलान के एक दिन बाद आया. दरअसल अमेरिका भारत के कृषि और डेयरी क्षेत्र में अपनी शर्तों के साथ प्रवेश चाहता है. लेकिन, भारत इस पर तैयार नहीं है.
जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहा कि "हमारे लिए अपने किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है", सत्यपाल मलिक द्वारा उठाए गए सवाल और किए गए खुलासे याद आ गए. मलिक ने किसान आंदोलन के समय सितंबर 2022 में कहा था, "मोदी आज की स्थिति में, किसानों के पक्ष में नहीं हैं. मोदी जी कुछ लोगों को मालदार बना रहे हैं. अडानी की पूरी तरक्की मोदी जी की दोस्ती का नतीजा है. यह सब क्यों हो रहा है? क्यों वह (अडानी) जेल में नहीं है? उसके यहां छापे क्यों नहीं मारे जाते? उसने बैंकों से इतना कर्ज़ लिया है, अगर वह पैसा वसूल नहीं हुआ तो देश के सारे बैंक डूब जाएंगे.”
हरियाणा के चरखी दादरी में एक सामाजिक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मलिक ने कहा था, "जब मैं किसानों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री से मिलने गया, तो पांच मिनट के भीतर ही मेरी उनसे बहस हो गई. वह बहुत अहंकारी थे. जब मैंने उन्हें बताया कि 500 किसान मर चुके हैं, तो उन्होंने कहा, ‘क्या वे मेरे लिए मरे?’ मैंने हां कहा."
याद रहे, मोदी सरकार तीन कृषि कानूनों को लेकर आई थी, जिनके खिलाफ किसानों ने लंबा आंदोलन चलाया था. आंदोलन के चलते ही 600 से ज्यादा किसानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. किसानों के आंदोलन को खालिस्तानियों का आंदोलन कहा गया था. बाद में, सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा दी थी और विचार के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया था. हालांकि फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माफ़ी मांगते हुए तीनों कृषि कानून वापस ले लिए थे, इसकी एक बड़ी वजह उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों को माना गया था. बहरहाल, किसानों ने तीनों कृषि कानूनों के अलावा एमएसपी समेत जो अन्य मांगें रखी थीं, उन पर मोदी सरकार ने अब तक कोई फैसला नहीं किया है. मांगें पूरी नहीं होने के कारण मोदी के तीसरे कार्यकाल में भी दिल्ली बॉर्डर पर किसानों ने फिर से धरना दिया था, लेकिन मांगें पूरी नहीं हुई हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय सामानों पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाकर भारत के साथ व्यापार तनाव को नाटकीय रूप से बढ़ा दिया है, जिससे कुल शुल्क 50% हो गया है. इस कदम का लक्ष्य भारत द्वारा रूसी तेल की निरंतर खरीद को निशाना बनाना है, जिसके बारे में ट्रम्प का दावा है कि यह यूक्रेन में मॉस्को के युद्ध को फंड करता है. चीन, जो हाल ही में ट्रम्प के साथ अपने संक्षिप्त टैरिफ युद्ध से उभरा है, ने भारत के लिए मजबूत समर्थन व्यक्त किया. चीनी राजदूत जू फेइहोंग ने सार्वजनिक रूप से ट्रम्प को एक "धमकाने वाला" (bully) कहा और भारत को चेतावनी दी कि "धमकाने वाले को एक इंच दोगे, तो वह एक मील ले लेगा," और नई दिल्ली से अमेरिकी व्यापार दबाव के आगे न झुकने का आग्रह किया.
विश्लेषण | जयति घोष
मोदी सरकार जैसी व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित विदेश नीति, पूरी तरह से विफल साबित हुई
द हिंदू के जी संपत के साथ एक साक्षात्कार में, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जयति घोष ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारतीय निर्यातों पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा और उसके बाद भारत के लिए उत्पन्न हुई चुनौतियों का गहराई से विश्लेषण किया. यह कदम, जिसे ट्रम्प ने भारत के कथित उच्च टैरिफ, गैर-टैरिफ बाधाओं, रूस से तेल खरीदने और ब्रिक्स में भारत की सक्रिय भूमिका जैसे कारणों से उचित ठहराया है, भारत को एक दोराहे पर खड़ा करता है. यह न केवल हमारी व्यापार नीति पर बल्कि हमारी रणनीतिक स्वायत्तता पर भी दबाव डालता है. घोष का तर्क है कि भारत ने इस स्थिति को गलत तरीके से संभाला है और उसे अमेरिकी दबाव के आगे झुकने के बजाय अपनी घरेलू ताकत पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
घोष मानती हैं कि यह निस्संदेह ट्रम्प की बातचीत की शैली का हिस्सा है, लेकिन उनकी अप्रत्याशितता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. वह मेक्सिको का उदाहरण देती हैं, जो अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर होने के बावजूद, गरिमा बनाए रखने में कामयाब रहा और ऐसे समझौते किए जो उसके अपने हित में भी थे. इसके विपरीत, भारत ने शुरुआत में ही बहुत अधिक रियायती रुख अपनाया. घोष कहती हैं कि जब आप एक धमकाने वाले (बुली) के सामने झुक जाते हैं, तो उसकी मांगें और बढ़ जाती हैं. भारत सरकार, जो घरेलू स्तर पर एक "भयानक धमकाने वाली" है, एक बड़े वैश्विक धमकाने वाले के सामने ठीक उल्टा व्यवहार करती है.
इस स्थिति में एक बड़ा पहलू चीन का डर है. घोष का तर्क है कि मोदी सरकार का अमेरिका के प्रति स्पष्ट झुकाव चीन के डर से प्रेरित है. उन्हें लगता है कि चीन के मुकाबले उन्हें अमेरिका के संरक्षण की जरूरत है. इस डर ने हमें ब्रिक्स के भीतर व्यापक गठबंधन बनाने से भी रोका है और हमारी रणनीतिक स्वायत्तता को प्रभावी ढंग से समाप्त कर दिया है. घोष कहती हैं, "रणनीतिक स्वायत्तता का मतलब किसी भी शक्ति गुट से स्वतंत्रता होगा. अगर आप चीन और अमेरिका के बीच किसी एक के संरक्षण में महसूस करते हैं, तो आपकी रणनीतिक स्वायत्तता कहाँ है?".
कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि भारत को अपने बाजारों को और अधिक खोलकर लाभ हो सकता है. घोष इस विचार से असहमत नहीं हैं, लेकिन जोर देकर कहती हैं कि कोई भी व्यापार नीति एक व्यापक औद्योगिक नीति का हिस्सा होनी चाहिए. हमें रणनीतिक रूप से सोचना होगा कि कौन से क्षेत्र खोलने से रोजगार सृजन और हमारे राष्ट्रीय हितों को लाभ होगा. किसी और के कहने पर अपने बाजार खोलना अदूरदर्शी है.
घोष के विश्लेषण का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उनका यह तर्क है कि भारत को निर्यात-आधारित विकास के जुनून को छोड़ देना चाहिए. अमेरिका भारतीय निर्यात का 18% से भी कम हिस्सा है. टैरिफ का असर कुछ क्षेत्रों जैसे रत्न और आभूषण, कपड़ा और फार्मा पर पड़ेगा, लेकिन यह कोई बड़ा संकट नहीं है. असली समाधान भारत के विशाल घरेलू बाजार को विकसित करने में निहित है. घोष कहती हैं, "हमारे पास 1.4 अरब लोग हैं. अगर हम यह सुनिश्चित करते हैं कि उनमें से कम से कम आधे, यानी निचले तबके के लोगों के पास न्यूनतम क्रय शक्ति हो, तो वे इलेक्ट्रॉनिक सामान, वस्त्र, ऑटोमोबाइल, सब कुछ खरीदेंगे". इसके लिए, सरकार को असमानता पर ध्यान केंद्रित करना होगा और नीचे के 70-80% लोगों की आय बढ़ानी होगी. यह "ट्रिकल-डाउन" के बजाय अर्थव्यवस्था का "बबलिंग-अप" प्रभाव पैदा करेगा.
घोष जल्दबाजी में किए गए किसी भी व्यापार समझौते को लेकर बहुत चिंतित हैं. उनका मानना है कि अमेरिका के साथ एक जल्दबाजी में किया गया व्यापार समझौता भारत के लिए बेहद हानिकारक होगा. वह ब्रिटेन के साथ हुए समझौते का उदाहरण देती हैं, जहाँ भारत ने पेटेंट जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में रियायतें दीं, जिससे भविष्य में दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं. अमेरिका कृषि और डेयरी क्षेत्रों को खोलने की मांग कर रहा है, जो हमारे लाखों लोगों की आजीविका को नष्ट कर सकता है क्योंकि अमेरिकी कृषि को भारी सब्सिडी दी जाती है.
अंत में, घोष का मानना है कि भारत को अपनी विदेश नीति, व्यापार नीति और एक औद्योगिक एवं रोजगार नीति को एकीकृत करके एक मध्यम-अवधि की दृष्टि विकसित करने की आवश्यकता है. व्यक्तिगत नेताओं के बीच व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित विदेश नीति, जैसा कि मोदी सरकार ने किया, एक पूरी तरह से विफल रणनीति साबित हुई है. भारत को बहुध्रुवीय दुनिया में अधिक से अधिक दोस्त बनाने होंगे और विभिन्न गठबंधनों में शामिल होकर अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को फिर से हासिल करना होगा. केवल तभी भारत अमेरिकी दबाव का सामना कर सकता है और अपने लोगों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित कर सकता है.
भारत के पास 20 दिन, क्या हैं विकल्प?
यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस पर दबाव बनाने की वॉशिंगटन की नवीनतम कोशिश में भारत अप्रत्याशित रूप से एक प्रमुख निशाना बन गया है. बुधवार को, डोनाल्ड ट्रम्प ने रूसी तेल खरीदने के लिए दिल्ली को दंडित करते हुए, भारत पर अमेरिकी टैरिफ़ को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया. भारत ने इस क़दम को "अनुचित" और "अन्यायपूर्ण" बताया है. इन टैरिफ़ का मक़सद रूस के तेल राजस्व में कटौती करना और पुतिन को युद्धविराम के लिए मजबूर करना है. नई दर 21 दिनों में, यानी 27 अगस्त से प्रभावी होगी.
बीबीसी के लिए निखिल इनामदार ने टैरिफ़ के हानिकारक प्रभाव के कारण बहुत कम लोग इनके टिकने की उम्मीद करते हैं. 27 अगस्त से नई दरें शुरू होने के साथ, अगले 20 दिन महत्वपूर्ण हैं और इस सौदेबाजी की अवधि में भारत के क़दमों पर चिंतित बाज़ारों की कड़ी नज़र रहेगी. मुख्य सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार "रूस पेनल्टी" से बचने के लिए रूस के साथ व्यापारिक संबंधों को चुपचाप छोड़ देगी या अमेरिका के ख़िलाफ़ दृढ़ खड़ी रहेगी.
यह भारत को एशिया में सबसे ज़्यादा टैक्स वाला अमेरिकी व्यापारिक भागीदार बनाता है और इसे ब्राज़ील के साथ खड़ा करता है, जो तनावपूर्ण संबंधों के बीच भारी अमेरिकी टैरिफ़ का सामना कर रहा एक और देश है. भारत का कहना है कि उसका आयात बाज़ार के कारकों से प्रेरित है और उसकी ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इन टैरिफ़ से भारतीय निर्यात और विकास पर भारी असर पड़ने का ख़तरा है.
अगर ये दरें बनी रहती हैं, तो अमेरिका को होने वाले भारत के 86.5 अरब डॉलर के सालाना माल निर्यात का लगभग पूरा हिस्सा व्यावसायिक रूप से अव्यवहारिक हो जाएगा. ज़्यादातर भारतीय निर्यातकों ने कहा है कि वे मुश्किल से 10-15% की बढ़ोतरी को झेल सकते हैं, इसलिए संयुक्त 50% टैरिफ़ उनकी क्षमता से बहुत ज़्यादा है. जापानी ब्रोकरेज फ़र्म नोमुरा ने एक नोट में कहा है कि अगर यह प्रभावी होता है, तो यह टैरिफ़ "एक व्यापार प्रतिबंध" जैसा होगा और "प्रभावित निर्यात उत्पादों में अचानक रोक लगा देगा".
अमेरिका भारत का शीर्ष निर्यात बाज़ार है, जो निर्यात का 18% और जीडीपी का 2.2% है. 25% टैरिफ़ से जीडीपी में 0.2-0.4% की कटौती हो सकती है, जिससे इस साल विकास दर 6% से नीचे खिसकने का ख़तरा है. भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और फ़ार्मा निर्यात फ़िलहाल अतिरिक्त टैरिफ़ से मुक्त हैं, लेकिन इसका असर भारत में घरेलू तौर पर महसूस किया जाएगा. सिंगापुर स्थित कंसल्टेंसी एशिया डिकोडेड की प्रियंका किशोर ने बीबीसी को बताया कि "कपड़ा और रत्न एवं आभूषण जैसे श्रम-गहन निर्यात को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा". भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ के राकेश मेहरा ने इन टैरिफ़ को भारत के कपड़ा निर्यातकों के लिए एक "बड़ा झटका" बताया और कहा कि इससे अमेरिकी बाज़ार में उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता तेज़ी से कमज़ोर होगी.
अब तनाव बढ़ने के साथ, विशेषज्ञों ने ट्रम्प के फ़ैसले को एक ऊंचे दांव वाला जुआ कहा है. भारत रूसी तेल का एकमात्र खरीदार नहीं है - चीन और तुर्की भी हैं - फिर भी वॉशिंगटन ने एक ऐसे देश को निशाना बनाने के लिए चुना है जिसे व्यापक रूप से एक प्रमुख भागीदार माना जाता है. तो क्या बदला और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं? भारत के पूर्व केंद्रीय बैंक गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा है कि हालिया घोषणा के साथ भारत की "सबसे बुरी आशंकाएं" सच हो गई हैं. पटेल ने एक लिंक्डइन पोस्ट में लिखा, "उम्मीद है कि यह अल्पकालिक होगा, और इस महीने आगे बढ़ने वाली व्यापार संधि के आसपास की बातचीत आगे बढ़ेगी. अन्यथा, एक अनावश्यक व्यापार युद्ध, जिसकी रूपरेखा इस शुरुआती मोड़ पर समझना मुश्किल है, की संभावना बन जाएगी."
चैथम हाउस के डॉ. क्षितिज बाजपेयी के अनुसार, "भारत के रूसी सैन्य हार्डवेयर पर अपनी निर्भरता कम करने और अपने तेल आयात में विविधता लाने के प्रयास ट्रम्प प्रशासन के दबाव से पहले के हैं, इसलिए दिल्ली अपनी मौजूदा विदेश नीति के अनुरूप कुछ सुलह के संकेत दे सकती है." वह कहते हैं कि यह संबंध "नियंत्रित गिरावट" में है, लेकिन रूस निकट भविष्य के लिए भारत का एक प्रमुख भागीदार बना रहेगा.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प की हालिया कार्रवाइयां भारत को अपने रणनीतिक संबंधों पर पुनर्विचार करने का अवसर देती हैं. दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के अजय श्रीवास्तव का कहना है कि अमेरिका की कार्रवाइयां "भारत को अपने रणनीतिक संरेखण पर पुनर्विचार करने, रूस, चीन और कई अन्य देशों के साथ संबंधों को गहरा करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं". मोदी क्षेत्रीय शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए चीन का दौरा करेंगे - 2020 की घातक गलवान सीमा झड़पों के बाद यह उनका पहला दौरा होगा. कुछ का सुझाव है कि भारत-रूस-चीन त्रिपक्षीय वार्ता को फिर से शुरू करने पर विचार हो सकता है.
तत्काल ध्यान अगस्त की व्यापार वार्ता पर है, क्योंकि एक अमेरिकी टीम भारत का दौरा कर रही है. बातचीत पहले कृषि और डेयरी को लेकर रुकी हुई थी - ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां अमेरिका ज़्यादा पहुंच की मांग करता है, लेकिन भारत दृढ़ है.क्या डेयरी और खेती जैसे क्षेत्रों में रियायतें दी जाएंगी जिनकी भारत ने दृढ़ता से रक्षा की है या राजनीतिक क़ीमत बहुत ज़्यादा हो सकती है?
दूसरा बड़ा सवाल: राष्ट्रों और फ़र्मों के लिए अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं और निवेशों में विविधता लाने के लिए चीन-प्लस-वन गंतव्य के रूप में भारत की बढ़ती अपील का आगे क्या होगा? ट्रम्प के टैरिफ़ इस गति को धीमा करने का जोखिम उठाते हैं क्योंकि वियतनाम जैसे देश कम टैरिफ़ की पेशकश करते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि निवेशक भावना पर प्रभाव सीमित हो सकता है.
ऊंचे दांव के साथ, व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि केवल शीर्ष-स्तरीय कूटनीति ही एक व्यापार सौदे को पुनर्जीवित कर सकती है जो कुछ हफ़्ते पहले ही पहुंच के भीतर लग रहा था. फ़िलहाल भारत सरकार ने एक मज़बूत मोर्चा बनाया है, और कहा है कि वह "अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कार्रवाइयां" करेगी.[5] विपक्ष ने हमले तेज़ कर दिए हैं, कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने ट्रम्प के 50% टैरिफ़ को "आर्थिक ब्लैकमेल" और "भारत को एक अनुचित व्यापार सौदे में डराने का प्रयास" बताया है.
क्या अमेरिका के साथ मोदी की चर्चित "मेगा पार्टनरशिप" अब उनकी सबसे बड़ी विदेश नीति की परीक्षा है? और क्या भारत जवाबी कार्रवाई करेगा? बार्कलेज रिसर्च का कहना है कि भारत द्वारा जवाबी कार्रवाई की संभावना नहीं है लेकिन यह असंभव भी नहीं है, क्योंकि इसका एक उदाहरण मौजूद है. बार्कलेज रिसर्च ने एक नोट में कहा, "2019 में, भारत ने स्टील और एल्यूमीनियम पर अमेरिकी टैरिफ़ के जवाब में अमेरिकी सेब और बादाम सहित 28 अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ़ की घोषणा की थी. इनमें से कुछ टैरिफ़ अंततः 2023 में डब्ल्यूटीओ विवादों के समाधान के बाद वापस ले लिए गए थे."
‘एसआईआर’ पर संसद में गतिरोध जारी
मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर संसद में चर्चा को लेकर दोनों सदनों में गतिरोध बना हुआ है. गुरूवार को मानसून सत्र के 14वें दिन भी कार्यवाही कई बार स्थगित करना पड़ी और कुछ जरूरी कामकाज हंगामे और शोरगुल के बीच ही निपटाया गया. दरअसल, विपक्ष एसआईआर पर बहस की मांग कर रहा है और सरकार चर्चा कराने के पक्ष में नहीं है. वह अदालत की आड़ ले रही है. राज्यसभा में "तटीय नौवहन विधेयक, 2025" पारित हुआ, जबकि विपक्ष के विरोध के बावजूद, लोकसभा में मणिपुर वस्तु एवं सेवा कर संशोधन विधेयक, 2025 पास किया गया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मणिपुर की स्थिति को लेकर विपक्ष पर आरोप लगाए कि वे बजट पर चर्चा से रोक रहे हैं, ताकि राज्य को सहायता न मिल सके. इस बीच गतिरोध समाप्त करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सभी पार्टी नेताओं की बैठक बुलाई है.
उपराष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार चुनने का अधिकार मोदी-नड्डा को दिया
इधर, एनडीए ने गुरुवार को हुई बैठक में एकमत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वर्तमान बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को उपराष्ट्रपति पद के लिए एक उपयुक्त उम्मीदवार चुनने का अधिकार दे दिया. गुरुवार को इस पद के लिए नामांकन दाखिल करने का पहला दिन था. संसद परिसर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई एनडीए की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के निर्णय पर पूरा भरोसा जताया गया. केंद्रीय संसदीय मामलों के मंत्री किरन रिजिजू ने कहा, "आज की बैठक में एनडीए का यह निर्णय सर्वसम्मत था."
महाराष्ट्र में अडानी के भूमि अधिग्रहण पर विवाद, किसानों में रोष
महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में एक बड़े भूमि घोटाले का पर्दाफाश हुआ है, जिसमें एक विशाल कॉर्पोरेट इकाई, स्थानीय राजनेता, एक ज्ञात हिस्ट्री-शीटर जो बिचौलिए के रूप में काम कर रहा है और राज्य प्रशासन के कुछ वर्ग सहित शक्तिशाली अभिनेताओं का एक गठजोड़ शामिल है. विवाद के केंद्र में अडानी समूह से जुड़ी एक कंपनी है, जिस पर आरोप है कि उसने अप्रत्यक्ष तरीकों से कृषि भूमि का अधिग्रहण किया है, जो संभावित रूप से स्थानीय किसानों की सुरक्षा और उन्हें लाभ पहुंचाने के लिए बनाए गए नियमों को दरकिनार कर रहा है, जैसा कि एमी तिरोडकर और आनंद मंगनाले ने रिपोर्ट किया है. भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया, जो अब जांच के दायरे में है, प्रक्रियात्मक उल्लंघनों और सही भूमि मालिकों के हाशिए पर जाने के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा करती है. फ्रंटलाइन में एमी तिरोडकर और आनंद मंगनाले की रिपोर्ट.
बीसीसीआई को आरटीआई के दायरे से बाहर रखने के लिए विधेयक बदला : लोकसभा में खेल प्रशासन पर एक विधेयक पेश करने के कुछ दिनों बाद, मोदी सरकार ने संशोधन परिचालित किए हैं जो व्यावहारिक रूप से बीसीसीआई जैसे खेल निकायों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के दायरे से बाहर कर देते हैं. यह इसके आवेदनों को उन संघों तक सीमित करता है जो केंद्र या राज्य सरकारों से अनुदान या अन्य वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं. भारतीय खेल निकायों के प्रशासन में सुधार लाने वाला यह विधेयक 23 जुलाई को खेल मंत्री मनसुख मंडाविया द्वारा लोकसभा में पेश किया गया था और अभी इस पर सदन में चर्चा होनी बाकी है.
मोदी द्वारा शाह की प्रशंसा ने उत्तराधिकार की अटकलों को हवा दी
टेलीग्राफ ने प्रधानमंत्री द्वारा मंगलवार को दिल्ली में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सांसदों की एक बैठक में अपने दाहिने हाथ के लिए असामान्य रूप से कड़े प्रशंसा शब्दों की रिपोर्ट 'यह तो बस एक गूंज की शुरुआत है': पीएम मोदी द्वारा अमित शाह की प्रशंसा ने उत्तराधिकार की अटकलों को हवा दी' के रूप में की है. शाह ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि मोदी सितंबर में 75 वर्ष के होने पर सेवानिवृत्त नहीं होंगे - यह आयु-सीमा उन्होंने 2014 में भाजपा नेताओं के लिए खुद ही तय की थी - लेकिन अगर राजनीतिक कार्डों की आवश्यकता होती है, तो एक सिद्धांत यह है कि मोदी राष्ट्रपति भवन में जाना चाहेंगे जबकि शाह प्रधानमंत्री के रूप में सरकार की बागडोर संभालेंगे.क्या इसीलिए पहले मोदी और फिर शाह ने पिछले हफ्ते भारत के राष्ट्रपति से मुलाकात की?
ओडिशा में आदिवासी और मध्यप्रदेश में दलित महिला के साथ गैंग रेप
ओडिशा के अंगुल जिले में एक आदिवासी महिला से गैंगरेप का मामला सामने आया है. यह घटना रविवार (4 अगस्त) को छेंदीपाड़ा थाना क्षेत्र में घने जंगल के पास हुई. पीड़िता की शिकायत पर पुलिस ने बुधवार को दो नाबालिग समेत तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने बताया कि आरोपियों के पास से अपराध में इस्तेमाल किया गया ट्रैक्टर, दो मोबाइल फोन और घटनास्थल पर पहने गए कपड़े भी बरामद किए गए हैं. गिरफ्तार आरोपियों में दो नाबालिग हैं.
इधर, मध्यप्रदेश के सीधी जिले में भी दलित युवती से गैंगरेप का मामला सामने आया है. युवती अपने प्रेमी के साथ जंगल में घूमने और फोटो खिंचाने गई थी. जहां चार बदमाशों ने युवक पर हमला कर दिया. इसके बाद युवती से गैंगरेप किया. पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. एक फरार है. वारदात के बाद पीड़िता रोती-बिलखती गांव में आई और आपबीती सुनाई.
जम्मू-कश्मीर में एजी नूरानी, अरुंधति रॉय समेत कई लेखकों की 25 किताबों पर प्रतिबंध
जम्मू-कश्मीर सरकार ने 25 किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिनमें से कुछ किताबें मशहूर लेखक और इतिहासकार जैसे एजी नूरानी, अरुंधति रॉय आदि की हैं. ये किताबें जम्मू-कश्मीर में "अलगाववाद फैलाने" और "भारतीय राज्य के खिलाफ हिंसा भड़काने" के आरोप में प्रतिबंधित की गई हैं. गृह विभाग, जो उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के अधीन है, के आदेश में कहा गया है कि ये किताबें जम्मू-कश्मीर पर "ग़लत नैरेटिव" फैलाकर युवाओं को हिंसा और आतंकवाद में भाग लेने के लिए प्रेरित करती हैं. यह आदेश आर्टिकल 370 के समाप्त होने की छठवीं वर्षगांठ पर जारी किया गया है. प्रतिबंधित किताबों में शामिल हैं- एजी नूरानी की "The Kashmir Dispute 1947-2012", अरुंधति रॉय की "आज़ादी", सुमंत्र बोस की "Contested Lands" और "Kashmir at the Crossroads", मौलाना अबुल आला मौदुदी की जिहाद पर 1927 की किताब, ब्रिटिश लेखक विक्टोरिया स्कोफील्ड की "Kashmir in Conflict". अन्य लेखक जैसे हफ़्सा कंजवाल, अतहर ज़िया, एस्सार बतूल की किताबें भी शामिल हैं.
सरकार का कहना है कि ये किताबें युवाओं को अलगाववादी सोच में फंसाने, आतंकवाद का महिमामंडन करने और सुरक्षा बलों का नकारात्मक चित्रण करने में सहायक हैं, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा हैं. इस प्रतिबंध के तहत इन किताबों की बिक्री, प्रकाशन और पुनःप्रकाशन पर रोक लगा दी गई है, और पुलिस ने इन किताबों की जब्ती के लिए छापामारी भी की है.
सीआरपीएफ वाहन खाई में, 3 जवान मरे, 15 घायल
जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले के बसंतगढ़ इलाके में गुरुवार सुबह सीआरपीएफ जवानों का बंकर वाहन 200 फीट गहरी खाई में गिर गया, जिससे 3 जवानों की मौत हो गई, जबकि 15 अन्य घायल हो गए. पांच जवानों की हालत गंभीर है. सीआरपीएफ के अफसरों के अनुसार, वाहन 23 जवानों के एक दल को ले जा रहा था, जो सड़क से फिसलकर खड़ी ढलान से नीचे खाई में जा गिरा. दो जवानों की मौत घटनास्थल पर हो गई थी, जबकि एक ने अस्पताल में दम तोड़ा. जबकि घायल जवानों को गंभीर हालत में रेस्क्यू कर पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
कनाडा में कपिल शर्मा के कैफ़े पर फिर गोलीबारी : कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में स्थित कॉमेडियन कपिल शर्मा के कैफ़े पर गुरुवार को एक महीने से भी कम समय में दूसरी बार गोलीबारी की गई. गुरुवार तड़के, अज्ञात हमलावरों ने स्कॉट रोड स्थित 'कैप्स कैफ़े' पर गोलियाँ चलाईं, जिससे कैफ़े के शीशे टूट गए और गोलियों के निशान बन गए.[2] घटना के समय स्टाफ़ अंदर मौजूद था, लेकिन किसी के घायल होने की कोई ख़बर नहीं है. सरे पुलिस ने घटनास्थल पर पहुँचकर जाँच शुरू कर दी है. सरे पुलिस सर्विस (SPS) ने एक बयान में कहा, "SPS अधिकारी आज सुबह न्यूटन इलाके के एक व्यवसाय पर हुई गोलीबारी की घटना की जाँच कर रहे हैं. पिछले महीने में इस स्थान पर यह दूसरी घटना है." पुलिस के अनुसार, सुबह लगभग 4:40 बजे गोलीबारी की सूचना मिली थी. इससे पहले 10 जुलाई को भी इसी कैफ़े पर हमला हुआ था. हमले के पीछे का मक़सद अभी साफ़ नहीं है.
योगी आदित्यनाथ पर बनी फ़िल्म पर विवाद : बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार (7 अगस्त, 2025) को केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) को हिंदी फ़िल्म 'अजेय: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ ए योगी' को बिना देखे सर्टिफ़िकेशन आवेदन ख़ारिज करने पर कड़ी फटकार लगाई. अदालत ने CBFC की पुनरीक्षण समिति को 11 अगस्त तक फ़िल्म पर अपनी आपत्तियाँ बताने का निर्देश दिया है. याचिकाकर्ता, सम्राट सिनेमैटिक्स प्राइवेट लिमिटेड को 12 अगस्त तक इन आपत्तियों का जवाब देना होगा, और अगली सुनवाई 14 अगस्त को होगी. यह फ़िल्म 'द मॉन्क हू बिकम चीफ़ मिनिस्टर' नामक किताब से प्रेरित एक काल्पनिक कहानी बताई जा रही है. याचिका के अनुसार, CBFC ने फ़िल्म की स्क्रीनिंग के बिना ही 21 जुलाई को ईमेल के ज़रिए सर्टिफ़िकेशन का अनुरोध ख़ारिज कर दिया था. फ़िल्म निर्माताओं के वकील असीम नफाड़े ने तर्क दिया कि CBFC अधिकारियों ने पहले मौखिक रूप से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) लाने की मांग की थी. जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और नीला गोखले की बेंच ने CBFC के इस रवैये को "अस्वीकार्य" और "मशीनी" क़रार देते हुए कहा, "आप बिना स्क्रीनिंग के कैसे ख़ारिज कर सकते हैं?". अदालत ने कहा कि यह सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन है. याचिकाकर्ताओं के अनुसार, इस देरी के कारण उन्हें लगभग ₹30 करोड़ का व्यावसायिक नुक़सान हुआ है.
पुतिन जल्द ही भारत आएंगे
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जल्द ही भारत का दौरा करेंगे, यह जानकारी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोवाल ने मास्को में एक बैठक के दौरान गुरुवार (7 अगस्त, 2025) को दी. उन्होंने कहा, “हम राष्ट्रपति पुतिन के भारत के दौरे के बारे में जानकर बहुत उत्साहित हैं. मुझे लगता है कि तारीखें लगभग तय हो चुकी हैं. शिखर स्तर की बैठकें हमेशा हमारे संबंधों के लिए महत्वपूर्ण क्षण रही हैं.”
पुतिन की यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है, जब अमेरिका ने रूस से तेल खरीद पर भारत पर 25 से 50 फीसदी तक अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है. अमेरिका ने चेतावनी दी है कि अगर रूस यूक्रेन में युद्ध को रोकने के लिए सहमत नहीं होता है तो वह रूसी तेल के खरीदारों पर और भी कड़े टैरिफ लगाएगा. रूस ने भारत के अपने व्यापारिक फैसलों का समर्थन करते हुए अमेरिका पर निशाना भी साधा है.
जन और तंत्र
उफनती नदी, पक्षपाती भूमि नीति और मिया मुसलमानों की असम में बेदखली

स्क्रोल के लिए रोकिबुज़ ज़मान की रिपोर्ट है कि असम में चल रही बेदखली की कार्रवाइयों के पीछे की कहानी महज़ सरकारी ज़मीन से 'अवैध कब्ज़ा' हटाने तक सीमित नहीं है. यह कहानी एक भूखी नदी, दशकों पुरानी राजनीतिक उदासीनता और एक ऐसी भूमि नीति की है जो विशेष रूप से बंगाली मूल के या 'मिया' मुसलमानों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल की जा रही है. 38 वर्षीय सफीउर रहमान मोंडोल की पीड़ा इसे बयां करती है. वे कहते हैं, "पच्चीस साल पहले, ब्रह्मपुत्र हमारा घर निगल गई. अब, सरकार ने उसे बुलडोज़र से ढहा दिया है." दशकों पहले नदी के कटाव में अपना घर खोने के बाद उनका परिवार धुबरी ज़िले के चुरुबाकरा गाँव में बस गया था. लेकिन पिछले महीने, एक बिजली परियोजना के लिए 1,400 अन्य मुस्लिम परिवारों के साथ उनका घर भी तोड़ दिया गया.
यह कोई अकेली घटना नहीं है. पिछले 45 दिनों में, असम सरकार ने सात अभियानों में 5,333 परिवारों के घर ध्वस्त कर दिए हैं, जिनमें ज़्यादातर मिया मुसलमान हैं. 2016 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद से अब तक 15,270 मुस्लिम-बहुल परिवारों को सरकारी ज़मीन से बेदखल किया जा चुका है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के कार्यकाल में इसमें और तेज़ी आई है. सरमा इन कार्रवाइयों को "जनसांख्यिकीय आक्रमण" और "लैंड जिहाद" के ख़िलाफ़ एक उपाय के रूप में पेश करते हैं, जिससे बंगाली मूल के मुसलमानों के प्रति समाज में आक्रोश बढ़ा है. इन लोगों को अक्सर 'बांग्लादेशी' कहकर प्रताड़ित किया जाता है. गोलपारा की 54 वर्षीय अकिमोन नेसा कहती हैं, "बेदखल तो करते ही हैं, साथ में बांग्लादेशी का नाम भी देते हैं."
शोधकर्ता और विशेषज्ञ इस धारणा को चुनौती देते हैं. उनका कहना है कि भूमिहीनता का यह संकट "अवैध आप्रवासन" का नहीं, बल्कि पारिस्थितिक संकट और राजनीतिक भेदभाव का नतीजा है. आईआईटी-गुवाहाटी में पढ़ाने वाली वसुंधरा जयरथ कहती हैं कि ब्रह्मपुत्र घाटी के ग्रामीण इलाक़ों में बहुत कम लोगों के पास सुरक्षित भूमि अधिकार हैं और यह सिर्फ़ बंगाली मूल के मुसलमानों तक सीमित नहीं है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, असम में 7.46 लाख परिवार सरकारी ज़मीन पर बसे हुए हैं, जिन्हें तकनीकी रूप से "अवैध कब्ज़ाधारी" माना जा सकता है. सबसे ज़्यादा 1.50 लाख परिवार धेमाजी ज़िले में हैं, जो बाढ़ और कटाव से बुरी तरह प्रभावित है और जहाँ मिसिंग जनजाति के लोग रहते हैं. लेकिन बेदखली अभियान धुबरी, गोलपारा और दरांग जैसे मुस्लिम बहुल ज़िलों में केंद्रित हैं.
इस संकट के केंद्र में ब्रह्मपुत्र नदी है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1950 से अब तक ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों ने 4.27 लाख हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन, यानी असम का 7.40% हिस्सा, को काट दिया है. हर साल राज्य औसतन 8,000 हेक्टेयर ज़मीन खो देता है. लेकिन विडंबना यह है कि सरकार भूमि कटाव को प्राकृतिक आपदा नहीं मानती, इसलिए प्रभावित लोगों के लिए मुआवज़े या पुनर्वास की कोई नीति नहीं है. माकपा नेता सुप्रकाश तालुकदार कहते हैं, "ये बेघर लोग कोई विकल्प न होने के कारण सरकारी ज़मीन पर शरण लेने को मजबूर हैं."
समस्या पिछली सरकारों की निष्क्रियता से भी जुड़ी है. राज्य में भूमिहीनों को मालिकाना हक़ देने के लिए 1965 के बाद से कोई व्यापक भूमि सर्वेक्षण नहीं हुआ है. कांग्रेस के एक पूर्व सांसद ने स्वीकार किया कि उनकी सरकार ने भूमिहीन मुसलमानों को पर्याप्त भूमि अधिकार नहीं दिए. वहीं, वर्तमान सरकार की 'मिशन बसुंधरा' जैसी योजना, जिसका उद्देश्य भूमिहीनों को ज़मीन देना है, में भी भेदभाव किया जा रहा है. मुख्यमंत्री सरमा ने विधानसभा में घोषणा की कि इस योजना के तहत बंगाली मूल के भूमिहीन मुसलमान आवेदन नहीं कर सकते क्योंकि वे "स्वदेशी" नहीं हैं. यह एक ऐसी परिभाषा है जिसका भारतीय क़ानून में कोई आधार नहीं है.
अब्दुल बारेक जैसे लोगों के लिए इस नीति ने सारे दरवाज़े बंद कर दिए हैं. 1980 में नदी में घर खोने के बाद उनका परिवार गोलपाड़ा के असुडुबी गाँव में बस गया. पिछले महीने 1,080 अन्य परिवारों के साथ उनका घर भी बुलडोज़र से गिरा दिया गया. बारेक बताते हैं कि कई लोगों ने मिशन बसुंधरा के तहत आवेदन किया था, लेकिन उनके आवेदन यह कहकर ख़ारिज कर दिए गए कि वे स्वदेशी नहीं हैं. वे कहते हैं, "यह अन्याय है." यह स्थिति दिखाती है कि कैसे पारिस्थितिक आपदा के शिकार लोगों को राजनीतिक भेदभाव का निशाना बनाया जा रहा है, जिससे उनकी पीढ़ियाँ भूमिहीन और अधिकारहीन बनी हुई हैं.
असम में 63,959 लोगों को बिना सुनवाई के 'विदेशी' घोषित किया गया: रिपोर्ट
यह उन 63,959 लोगों की संख्या है - "ज्यादातर गरीब, ग्रामीण और अक्सर अनजान - जिन्हें असम राज्य में 30 से अधिक वर्षों में कभी भी अपना बचाव करने का मौका दिए बिना "विदेशी" घोषित कर दिया गया है. गुवाहाटी उच्च न्यायालय के आंकड़ों का उपयोग करते हुए आर्टिकल-14 की रिपोर्ट से पता चलता है कि विदेशी न्यायाधिकरण नियमित रूप से एकतरफा आदेश पारित करते हैं, लोगों को केवल इसलिए गैर-नागरिक करार देते हैं क्योंकि वे एक सुनवाई से चूक गए - अक्सर बीमारी, प्रसव, बाढ़, या वकीलों द्वारा गुमराह किए जाने के कारण. उच्च न्यायालय, सुरक्षा प्रदान करने के बजाय, असंभव मानक स्थापित किए हैं जो कमजोर लोगों को और अधिक नहीं करने के लिए दंडित करते हैं", मोहसिन आलम भट और आरुषि गुप्ता रिपोर्ट करते हैं.
पुतिन और ट्रम्प की जल्द होगी मुलाक़ात, ज़ेलेंस्की ने यूरोपीय नेताओं से की चर्चा
क्रेमलिन ने गुरुवार को कहा कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प आने वाले दिनों में मुलाक़ात करेंगे. यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब ट्रम्प यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए एक सफलता की तलाश में हैं. उन्होंने अपने रूसी समकक्ष के प्रति बढ़ती निराशा व्यक्त की है और नए प्रतिबंधों की धमकी भी दी है. यह ऐलान ट्रम्प के दूत स्टीव विटकॉफ की मास्को में पुतिन के साथ तीन घंटे की लंबी बातचीत के एक दिन बाद हुआ है.
ट्रम्प ने रूस पर दबाव बढ़ाते हुए धमकी दी है कि अगर पुतिन साढ़े तीन साल से चल रहे इस युद्ध को ख़त्म करने के लिए सहमत नहीं होते हैं, तो वह रूस और उसके निर्यातकों से सामान ख़रीदने वाले देशों पर नए प्रतिबंध लगा देंगे. इसी क्रम में उन्होंने रूसी तेल ख़रीदने के लिए भारत पर उच्च टैरिफ़ लगा दिए हैं और चीन पर भी इसी तरह के शुल्क लगाने की चेतावनी दी है. क्रेमलिन के सहयोगी यूरी उशाकोव ने पुष्टि की कि रूस और अमेरिका ने "आने वाले दिनों में" पुतिन-ट्रम्प शिखर सम्मेलन आयोजित करने पर सहमति व्यक्त की है. पुतिन ने संयुक्त अरब अमीरात को बैठक के लिए एक "पूरी तरह से उपयुक्त" स्थान बताया.
इस बीच, यूक्रेन और यूरोपीय नेताओं को चिंता है कि ट्रम्प, जो रूस की कुछ मांगों के प्रति सहानुभूति जता चुके हैं, पुतिन के साथ मिलकर कीव के लिए एक बेहद नुक़सानदेह समझौता कर सकते हैं. द न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट दी है कि ट्रम्प ने यूरोपीय नेताओं को बताया कि उनका इरादा पुतिन से मिलने और फिर रूसी नेता और यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की के साथ एक त्रिपक्षीय बैठक करने का है.
ज़ेलेंस्की ने गुरुवार को फ़्रांस और जर्मनी के नेताओं के साथ-साथ यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन से बात की और कहा कि शांति प्रक्रिया में यूरोप को शामिल होना चाहिए. उन्होंने कहा, "युद्ध यूरोप में हो रहा है, और यूक्रेन यूरोप का एक अभिन्न अंग है. इसलिए, यूरोप को प्रासंगिक प्रक्रियाओं में भागीदार होना चाहिए." उन्होंने कहा कि युद्ध का अंत "सम्मानजनक शांति" के साथ होना चाहिए. हालांकि, रूसी पक्ष ने ज़ेलेंस्की के साथ किसी भी त्रिपक्षीय बैठक के प्रस्ताव पर "पूरी तरह से कोई टिप्पणी नहीं" की है. कीव में विश्लेषक इस बैठक को लेकर संशय में हैं. उनका मानना है कि यह क्रेमलिन को बिना कोई रियायत दिए बातचीत के लिए खुला दिखने का मौक़ा देगा.
हरकारा डीपडाइव
एक बेगुनाह आतंकवादी पर फिल्म बनाने का साहस : हीमोलिम्फ
प्रोसेस एज पनिशमेंट सीरीज में आज सुनिये फिल्मकार सुदर्शन गामारे और अभिनेता रियाज से मेरी बातचीत. गामारे ने अब्दुल वाहिद शेख़ के जीवन पर आधारित 'हीमोलिम्फ' नामक फीचर फिल्म बनाई, जो 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में पांच साल जेल में रहने के बाद बेगुनाह साबित हुए थे। इस फिल्म को इसकी संवेदनशील और सशक्त कहानी के लिए काफी सराहना मिली. अब्दुल वाहिद शेख से हरकारा पहले बात कर चुका है. हमने बात की गामारे ने कैसे सोचा, किस तरह हिम्मत जुटाई और कैसे फिल्म के मुश्किल हिस्सों को मुमकिन किया. इस तरह की फिल्म बनाना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि उन्हें बहुत लोगों ने हतोत्साहित किया. साथ ही रियाज ने बताया वाहिद शेख का रोल, करना कितना चुनौतीपूर्ण था.
पाठकों से अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.