08/10/2025: नितीश का सिमटता जनाधार | आज़म ख़ान के दु:ख | ट्रॉमा सेंटर की दिवार में करंट था | सीजेआई की बहन ने संविधान पर हमला बताया | रूस के लिए लड़ता भारतीय यूक्रेन में बंदी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
बिहार चुनाव: तेजस्वी RJD के CM चेहरा, पर ‘इंडिया’ ब्लॉक में अब भी सस्पेंस
बिहार चुनाव से पहले नीतीश कुमार की बढ़ी चिंता, वोटर लिस्ट से महिलाओं के नाम हटने से JDU को नुकसान?
बिहार वोटर लिस्ट पर सुप्रीम कोर्ट के तीखे सवाल, चुनाव आयोग से पूछा- “यह आंकड़ों का खेल है या असली नाम?”
“मेरी पत्नी ईद पर अकेली रो रही थी, किसी ने फोन किया?”: आजम खान ने इंटरव्यू में जाहिर की नाराजगी
अडानी डिफेंस पर 75 करोड़ की टैक्स चोरी का आरोप, मिसाइल पुर्जों के आयात में हेरफेर की जांच
“दीवारों में करंट था, छतों से पानी टपकता था”: जयपुर ट्रॉमा सेंटर आग पर अधिकारी का सनसनीखेज खुलासा
सीजेआई पर हमले के बाद सरकार की ‘चुप्पी’ पर बहन ने उठाए सवाल, कहा- “यह संविधान पर हमला है”
दक्षिणपंथी यूट्यूबर ने हमले के लिए उकसाया था, वीडियो वायरल
गवाह को धमकाने के आरोप में अजय मिश्रा टेनी और बेटे आशीष पर FIR दर्ज
रायबरेली में ‘ड्रोन चोर’ बताकर दलित की पीट-पीटकर हत्या, पिता का आरोप- “पुलिस देखती रही”
जहरीले कफ सिरप का कहर जारी, मरने वाले बच्चों की संख्या 19 हुई, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
हिमाचल में भीषण भूस्खलन, चट्टानों के नीचे दबी बस, 15 की मौत
रूसी सेना में शामिल भारतीय ने यूक्रेन में किया सरेंडर, वीडियो जारी कर बताई आपबीती
बिहार चुनाव
इंडिया ब्लॉक में अनिश्चितता: तेजस्वी RJD का सीएम चेहरा हो सकते हैं, पर...: कांग्रेस नेता
बिहार विधानसभा चुनाव में 30 दिन से भी कम समय बचा है, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी महागठबंधन में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर मतभेद बने हुए हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते राजनीतिक दबाव और अनिश्चितता के बावजूद, तेजस्वी यादव को गठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने पर आम सहमति नहीं बन पाई है.
हालांकि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे मज़बूत चैलेंजर के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन कांग्रेस ने अभी तक औपचारिक रूप से उनके नाम का समर्थन करने से परहेज़ किया है. मंगलवार को कांग्रेस नेता उदित राज ने इस अनिश्चितता को और हवा दे दी. उन्होंने कहा, “वह (तेजस्वी) RJD के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा हो सकते हैं... लेकिन इंडिया ब्लॉक के मुख्यमंत्री पद का चेहरा सामूहिक रूप से तय किया जाएगा.”
PTI से बात करते हुए उन्होंने आगे कहा, “देखिए, किसी भी पार्टी का कोई भी समर्थक अपनी पार्टी के नेता का नाम मुख्यमंत्री के लिए ले सकता है... लेकिन इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार का फ़ैसला अभी नहीं हुआ है. देखते हैं कांग्रेस मुख्यालय क्या तय करता है.” RJD या तेजस्वी यादव की तरफ से उदित राज की टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
लालू प्रसाद यादव के बेटे और दो बार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने 2020 के चुनाव में अपनी पार्टी को 243 में से 75 सीटें दिलाई थीं, जिससे इस पद पर उनका दावा मज़बूत हुआ है. हालांकि, कांग्रेस उन्हें औपचारिक समर्थन देने से बचती रही है. अगस्त में राहुल गांधी ने भी तेजस्वी की उम्मीदवारी पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया था और कहा था, “इंडिया ब्लॉक के सहयोगी बिना किसी तनाव के काम कर रहे हैं. हम मिलकर चुनाव लड़ेंगे और नतीजे अच्छे आएंगे.” भाजपा ने इसे गठबंधन के भीतर कलह का सबूत बताया था. वहीं, तेजस्वी ने एक मंच पर राहुल गांधी को इंडिया ब्लॉक का प्रधानमंत्री चेहरा बताकर और खुद मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जताकर एक आपसी राजनीतिक समझ का संकेत दिया था.
बिहार में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर में दो चरणों में - 6 और 11 नवंबर को - होंगे और नतीजों की घोषणा 14 नवंबर को की जाएगी. ये चुनाव विपक्ष के लिए बेहद अहम हैं, जिसका लक्ष्य 2015 से सत्ता में काबिज़ नीतीश कुमार और उनके सहयोगी भाजपा के नेतृत्व वाले NDA को हटाना है.
महिला मतदाताओं के नाम अधिक हटना नीतीश कुमार के लिए चिंता का विषय
अंतिम मतदाता सूचियों के विश्लेषण से पता चलता है कि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद बिहार में पंजीकृत महिला मतदाताओं की संख्या जनसंख्या में उनके अनुपात से कम हो गई है. लेकिन, यह गिरावट उन विधानसभा क्षेत्रों में बहुत अधिक है, जिन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल (यू) ने 2020 के विधानसभा चुनावों में जीता था. 2020 के चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की चुनावी सफलता के कारणों में से एक नीतीश कुमार को महिला मतदाताओं का समर्थन माना जाता है. बीजेपी और जेडीयू के नेतृत्व वाले इस गठबंधन ने 243 सीटों में से 125 सीटें जीती थीं.
मतदाता लिंगानुपात में भारी कमी
“स्क्रॉल” के लिए आयुष तिवारी की रिपोर्ट के अनुसार, मतदाता सूची से महिलाओं का बहिष्करण मतदाता लिंगानुपात में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जो पंजीकृत मतदाताओं में प्रति हज़ार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या को मापता है.
जनवरी 2025 में, बिहार के मतदाताओं का लिंगानुपात 914 था (प्रति हज़ार पंजीकृत पुरुष मतदाताओं पर 914 पंजीकृत महिला मतदाता). एसआईआर के बाद, यह आंकड़ा गिरकर 894 हो गया है. यह गिरावट राज्य के जनसंख्या लिंगानुपात (2011 की जनगणना के अनुसार प्रति हज़ार पुरुषों पर 918 महिलाएं) से भी कम है.
महिलाओं का असंतुलित बहिष्करण
1 जनवरी 2025 को बिहार के मतदाताओं में महिला मतदाता 47.8% थीं. विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद जारी अंतिम सूची में यह घटकर 47.2% हो गया है. जनवरी में जारी सूची और 30 सितंबर 2025 की अंतिम सूची की तुलना करने पर पता चलता है कि एसआईआर के दौरान हटाए गए मतदाताओं में से लगभग 59% महिलाएं हैं. राज्य के 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 230 में पंजीकृत मतदाताओं के बीच लिंगानुपात में गिरावट आई है.
सर्वाधिक गिरावट पश्चिमी बिहार के गोपालगंज जिले की कुचायकोट विधानसभा सीट पर दर्ज की गई है, जहां एसआईआर ने लिंगानुपात को 956 से घटाकर 861 कर दिया है. यह सीट 2020 में जेडीयू ने जीती थी. सर्वाधिक गिरावट वाली 10 सीटों में से तीन पिछले चुनावों में जेडीयू ने जीती थीं. गोपालगंज जिले में पूरे बिहार में लिंगानुपात में सबसे अधिक गिरावट आई है.
हालांकि, भोजपुर बिहार का एकमात्र ऐसा जिला है, जिसने एसआईआर के बाद बेहतर लिंगानुपात (877 से 880) दर्ज किया है.
महिलाओं के नाम जुड़े कम, हटाए ज्यादा
1 अगस्त को, एसआईआर शुरू होने के पांच सप्ताह बाद, ईसी ने 7.24 करोड़ मतदाताओं के नामों वाली एक मसौदा सूची प्रकाशित की, जो पिछले रोल के 7.89 करोड़ मतदाताओं से 65 लाख कम थी. “स्क्रॉल” ने पहले बताया था कि हटाए गए इन 65 लाख मतदाताओं में 55% महिलाएं थीं. मसौदा सूची पर आपत्ति और दावा प्रक्रिया के दौरान, 1 अगस्त से 30 सितंबर के बीच, 21.5 लाख मतदाता जोड़े गए और 3.6 लाख मतदाता हटाए गए. इस प्रक्रिया में भी महिलाएं नुकसान में रहीं. जोड़े गए 21.5 लाख नए मतदाताओं में से 10.3 लाख (लगभग 47.8%) महिलाएं हैं. हटाए गए 3.6 लाख मतदाताओं में से लगभग 2 लाख (हिस्सा 53.9%) महिलाएं हैं. सुपौल जिले में मसौदा सूची से हटाए गए मतदाताओं में लगभग 75% महिलाएं हैं.
क्यों जेडीयू के लिए बड़ी समस्या
2010 से बिहार के विधानसभा चुनावों में महिलाओं का मतदान पुरुषों से अधिक रहा है. 2020 के एक सर्वे के अनुसार, महिला मतदाताओं ने महागठबंधन की तुलना में एनडीए को अधिक वोट दिया था. इस कारण, महिला मतदाताओं का असंतुलित बहिष्करण एनडीए को, खासकर जेडीयू को, सबसे अधिक प्रभावित कर सकता है.
चुनाव आयोग का डेटा दिखाता है कि प्रमुख पार्टियों में, जेडीयू द्वारा 2020 में जीती गई सीटों में औसतन लिंगानुपात में सबसे अधिक गिरावट आई है. जेडीयू की गठबंधन सहयोगी बीजेपी इस बहिष्करण से सबसे कम प्रभावित हो सकती है. एसआईआर की अंतिम मतदाता सूची में अभी भी संशोधन हो सकते हैं. आगामी विधानसभा चुनावों के लिए अंतिम सूची नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि - पहले चरण के लिए 17 अक्टूबर और दूसरे चरण के लिए 20 अक्टूबर को प्रकाशित की जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार एसआईआर पर उठाए गंभीर सवाल; अगली सुनवाई गुरुवार को
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, मंगलवार (7 अक्टूबर) को प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि इस बात को लेकर भ्रम है कि अंतिम सूची में जोड़े गए 21 लाख मतदाता वे हैं, जिन्हें पहले मसौदा सूची से हटाया गया था या वे पूरी तरह से नए नाम हैं.
पीठ याचिकाकर्ताओं, जिसमें एडीआर भी शामिल है, की इस मांग पर विचार कर रही थी कि चुनाव आयोग को अंतिम सूची से अतिरिक्त रूप से हटाए गए 3.66 लाख मतदाताओं और जोड़े गए 21 लाख मतदाताओं के नामों की सूची सार्वजनिक करनी चाहिए. कोर्ट ने ईसीआई को आवश्यक जानकारी जुटाने के लिए कहते हुए सुनवाई अगले गुरुवार (9 अक्टूबर) तक के लिए स्थगित कर दी.
याचिकाकर्ताओं के प्रमुख आरोप : “लाइव लॉ” की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि एसआईआर के कारण महिलाओं, मुसलमानों आदि का असंतुलित बहिष्करण हुआ है. उन्होंने दावा किया कि इस प्रक्रिया ने मतदाता सूची को साफ करने के बजाय “समस्याओं को और बढ़ा दिया है.” उन्होंने बताया कि मसौदा सूची के बाद हटाए गए अतिरिक्त 3.66 लाख मतदाताओं को हटाने के कारण नहीं बताए गए हैं और न ही उनकी सूची प्रकाशित की गई है.
अपील के अधिकार पर सवाल : वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एएम सिंघवी ने इस बात पर जोर दिया कि जब तक हटाए गए नामों की सूची प्रकाशित नहीं होती और उन्हें हटाने के कारण नहीं बताए जाते, तब तक वे अपील दायर नहीं कर सकते. सिंघवी ने कहा, “जिन लोगों को हटाया जाता है, उन्हें यह सूचना नहीं मिलती कि उन्हें हटा दिया गया है. अपील का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि किसी को पता ही नहीं है.”
ईसीआई की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने इसका खंडन करते हुए कहा कि हटाए गए व्यक्तियों को आदेश दिए गए हैं, लेकिन याचिकाकर्ता (दिल्ली में बैठे राजनेता और गैर सरकारी संगठन) प्रभावित मतदाताओं के बजाय खुद इस मुद्दे को उठा रहे हैं.
संख्याओं का आकलन या वास्तविक नाम? न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति यह साबित कर दे कि उसे आदेश नहीं मिला है, तो कोर्ट ईसीआई को आदेश देने का निर्देश देगा, क्योंकि “हर किसी को अपील का अधिकार है. “
न्यायमूर्ति बागची ने भी इस “भ्रम” पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि अंतिम सूची “संख्याओं का एक आकलन” प्रतीत होती है और यह स्पष्ट नहीं है कि जोड़े गए 21 लाख नाम पहले हटाए गए 65 लाख मतदाताओं में से थे या पूरी तरह से नए. न्यायमूर्ति बागची ने स्पष्टता की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “यह कवायद उस चुनावी प्रक्रिया की सहायता के लिए है, जिसे आपने शुरू किया है, ताकि चुनावी प्रक्रिया में विश्वास मजबूत हो.”
भूषण ने तर्क दिया कि ईसीआई “एक बटन के क्लिक” से जानकारी दे सकता है, और पहले भी कोर्ट ने मसौदा सूची से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम प्रकाशित करने का निर्देश दिया था.
ईसीआई ने चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद कोर्ट के हस्तक्षेप पर अनुच्छेद 329 का हवाला दिया. हालांकि, पीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए ईसीआई से मसौदा सूची और अंतिम सूची के बीच हटाए गए नामों को छाँटकर जानकारी देने को कहा.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अंत में कहा कि कोर्ट व्यापक जांच तभी करेगा जब कुछ वास्तविक लोग सामने आएं. उन्होंने ईसीआई से ऐसे 100-200 लोगों की सूची मांगी, जो कहें कि वे अपील करना चाहते हैं, लेकिन उनके पास हटाए जाने का आदेश नहीं है.
आजम खान इंटरव्यू
‘मैं सिर्फ अखिलेश से मिलूंगा... तीसरे की जगह नहीं... जब मेरी पत्नी ईद पर अकेली रो रही थी, तो क्या किसी ने फोन किया?’
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान ने जेल से रिहा होने के बाद द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में अपनी नाराज़गी, सपा के भविष्य और अखिलेश यादव के साथ अपने संबंधों पर खुलकर बात की है. यह इंटरव्यू सपा प्रमुख अखिलेश यादव की 8 अक्टूबर को उनसे होने वाली मुलाक़ात से एक दिन पहले सामने आया है. जेल के अनुभव पर आजम खान ने कहा, “व्यवहार बहुत मानवीय था, इंसानियत से भरा हुआ.” अपनी राजनीतिक अयोग्यता और रामपुर सदर सीट पर भाजपा के आकाश सक्सेना की जीत पर उन्होंने कहा, “वह (सक्सेना) प्रतिद्वंद्वी की हैसियत नहीं रखते. उपचुनाव कब हुआ? अगर किसी न्यूज़ चैनल या अखबार ने सच्चाई दिखाई होती, तो क्रांति आ जाती.”
मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की कार्यशैली में अंतर पर उन्होंने कहा, “उन्होंने (मुलायम) पार्टी बनाई. ज़मीन से. हम में से कोई भी उनके कद तक नहीं पहुंच सकता. भविष्य में भी नहीं. लेकिन अखिलेश जी इसे संभाल रहे हैं और इसका श्रेय उन्हें जाता है. जहां तक हमारे व्यक्तिगत संबंधों की बात है, वह मेरा बहुत सम्मान करते हैं, और मैं कहना चाहूंगा कि राजनीति के नए दौर में वह सबसे संस्कारी राजनीतिक नेता हैं.”
आजम खान ने विपक्ष को सलाह देते हुए कहा, “राहुल जी, अखिलेश जी और तेजस्वी जी को सलाह दीजिए कि रामपुर उपचुनाव (2022) में जो हुआ उसे एक प्रतीक बनाएं. अगर उन्होंने रामपुर में हुए ज़ुल्म के खिलाफ लड़ाई लड़ी होती, तो शायद आज ये दिक्कतें न होतीं.” उन्होंने अफ़सोस जताया कि इस मुद्दे को किसी ने नहीं उठाया और कहा, “वह आतंक आज भी मौजूद है. इसके लिए किसी को शहीद होने के लिए तैयार रहना होगा.”
जब उनसे पूछा गया कि क्या सपा और अखिलेश यादव ने उन्हें पिछले कुछ वर्षों में आगे नहीं बढ़ने दिया, तो उन्होंने कहा, “मुझे आगे बढ़ने के लिए कभी किसी की ज़रूरत नहीं पड़ी. न कल, न आज और ईश्वर की कृपा से न कल.”
इंडिया ब्लॉक पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “मुझे इंडिया ब्लॉक के मंच पर उस समुदाय (मुस्लिम) से कोई नहीं दिखता, जिसकी दूसरी सबसे बड़ी आबादी है.” रामपुर लोकसभा टिकट पर अपनी राय न माने जाने पर उन्होंने कहा, “मुझसे सलाह ली गई थी और तय हुआ था कि अखिलेश जी चुनाव लड़ेंगे. बाद में मुझे पता चला कि पार्टी ने तय किया कि अखिलेश जी यहां से न लड़ें. लेकिन, जो उम्मीदवार बना, उससे मैं आज भी आहत हूं. रामपुर के जिन लोगों ने अत्याचार सहे हैं, उनका चुनाव लड़ने का हक़ था.”
अखिलेश यादव से होने वाली मुलाक़ात पर उन्होंने कहा, “मैं सिर्फ़ उनसे मिलूंगा. बाकी लोग मुझसे क्यों मिलें? इतने समय में मेरे परिवार के बारे में किसने पूछा? मेरी पत्नी ईद पर अकेली बैठी रो रही थी. क्या कोई आया? क्या किसी का फोन आया? तो अब वे क्यों आएं? अखिलेश का मेरे शरीर और आत्मा पर हक़ है. यह दो लोगों की मुलाक़ात होगी. तीसरे के लिए कोई जगह नहीं है.”
आयात शुल्क जांच के दायरे में अडानी डिफेंस
भारतीय अधिकारी गौतम अडानी के समूह की रक्षा इकाई ‘अडानी डिफेंस’ की मिसाइल घटकों पर कथित रूप से आयात शुल्क बचाने के मामले में जांच कर रहे हैं. रॉयटर्स के हवाले से द टेलीग्राफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, दो सरकारी अधिकारियों ने इस मामले की पुष्टि की है. राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) के नेतृत्व में यह जांच मार्च में शुरू हुई थी और इसमें लगभग 9 मिलियन डॉलर (लगभग 75 करोड़ रुपये) की टैरिफ चोरी की आशंका है.
यह जांच अरबपति गौतम अडानी के कोयला-से-एयरपोर्ट तक फैले समूह की कंपनी अडानी डिफेंस सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज पर केंद्रित है. यह कंपनी मुख्य रूप से भारत के सुरक्षा बलों के लिए ड्रोन, मिसाइल और छोटे हथियार बनाती है. अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि कंपनी ने कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों (short-range surface-to-air missile) के पुर्जों को लंबी दूरी की मिसाइल प्रणालियों के घटकों के रूप में गलत वर्गीकृत किया, जिन्हें आयात करों से छूट प्राप्त है.
इस कथित गलत वर्गीकरण ने कंपनी को कम दूरी के मिसाइल घटकों पर लागू 10% आयात कर और 18% स्थानीय कर दोनों से बचने में मदद की. रॉयटर्स को दो सूत्रों ने बताया कि जांच के दौरान अडानी के अधिकारियों ने गलत वर्गीकरण की बात स्वीकार की थी. ऐसे मामलों में, कंपनियों को बक़ाया शुल्क के साथ 100% जुर्माना भी देना पड़ता है, जिससे अडानी डिफेंस की कुल देनदारी लगभग 18 मिलियन डॉलर तक बढ़ सकती है.
एक बयान में, अडानी समूह ने कहा कि DRI ने सीमा शुल्क नियमों की अपनी व्याख्या के आधार पर उनके आयात पर स्पष्टीकरण मांगा था. कंपनी ने कहा कि उसने सहायक दस्तावेज़ प्रदान किए हैं और “यह मुद्दा हमारी ओर से बंद हो चुका है.” हालांकि, कंपनी ने यह पुष्टि नहीं की कि मामले को निपटाने के लिए कोई भुगतान किया गया था या नहीं. अडानी समूह ने सितंबर 2025 में सरकार द्वारा बदले गए एक नियम की ओर भी इशारा किया है जो अब सभी मिसाइल पुर्ज़ों के टैरिफ-मुक्त आयात की अनुमति देता है. हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि पुराने नियम कम दूरी की प्रणालियों पर ऐसी छूट नहीं देते थे.
जयपुर अस्पताल आग: हटाए गए अधिकारी का दावा, ट्रॉमा सेंटर में सुरक्षा मुद्दों पर दी थी चेतावनी
जयपुर के सवाई मान सिंह (SMS) अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में लगी भीषण आग में छह लोगों की मौत के बाद, यूनिट के प्रभारी पद से हटाए गए एक अधिकारी ने आरोप लगाया है कि उन्होंने उच्च अधिकारियों को खराब रखरखाव और निर्माण कार्यों के बारे में चेतावनी दी थी, जिसने सेंटर को असुरक्षित बना दिया था. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारी ने यह भी कहा कि इस ख़तरनाक स्थिति से निपटने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई.
रविवार रात ट्रॉमा सेंटर की दूसरी मंजिल पर स्थित न्यूरो आईसीयू में भीषण आग लग गई, जिसमें गंभीर देखभाल सहायता पर रखे गए 11 मरीज़ों में से छह की मौत हो गई. उसी मंजिल पर एक अन्य आईसीयू से चौदह मरीज़ों को भी निकाला गया, जिनमें से दो की बाद में मौत हो गई. हालांकि, अस्पताल प्रशासन ने आग से होने वाली मौतों की संख्या छह बताई है.
इस मामले में कार्रवाई करते हुए राज्य सरकार ने सोमवार को SMS अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सुशील भाटी और ट्रॉमा सेंटर के प्रभारी व नोडल अधिकारी डॉ. अनुराग धाकड़ को उनके पदों से हटा दिया. डॉ. अनुराग धाकड़ ने दावा किया कि उन्होंने SMS अस्पताल के अधीक्षक और अन्य संबंधित अधिकारियों को कई बार पत्र लिखकर दीवारों में करंट आने, छतों से पानी टपकने और इलेक्ट्रिकल पैनल में गंभीर ख़ामियों के बारे में आगाह किया था. उन्होंने कहा कि सबसे हालिया पत्र आग लगने से ठीक दो दिन पहले 3 अक्टूबर को लिखा गया था.
पिछले महीने भी उन्होंने एक पत्र लिखकर चेतावनी दी थी कि ऊपर के निर्माण क्षेत्र से बारिश के पानी के रिसाव के कारण ऑपरेटिंग थिएटरों के अंदर ख़तरनाक स्थिति पैदा हो रही है. उन्होंने 9 सितंबर के पत्र में कहा था, “रिसाव के कारण नमी आ गई है, और इस वजह से ओटी की दीवारों और स्विचबोर्ड में करंट फैल रहा है. इससे डॉक्टरों, कर्मचारियों और मरीज़ों के साथ अनहोनी का ख़तरा है.”
मरीज़ों के परिजनों ने आरोप लगाया कि आग लगने पर अस्पताल का स्टाफ़ मरीज़ों को आग और धुएं के बीच छोड़कर भाग गया. राज्य सरकार ने पीड़ितों के परिवारों के लिए 10-10 लाख रुपये के मुआवज़े की घोषणा की है.
भाजपा असम के ‘इस्लामोफोबिक’ एआई वीडियो को हटाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (BJP) की असम इकाई द्वारा ‘X’ पर पोस्ट किए गए एक कथित इस्लामोफोबिक AI-जनरेटेड वीडियो को हटाने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है. मकतूब मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इस वीडियो में कथित तौर पर यह दिखाया गया था कि अगर पार्टी चुनाव हार गई तो मुसलमान राज्य पर कब्ज़ा कर लेंगे.
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने यह आदेश पत्रकार क़ुर्बान अली और वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर दिया, जिसमें देश भर में हेट स्पीच और हेट क्राइम के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की गई है.
याचिका में कहा गया है कि यह वीडियो BJP की असम इकाई द्वारा 15 सितंबर, 2025 को ‘X’ पर पोस्ट किया गया था. इसमें एक “पूरी तरह से झूठा नैरेटिव” दिखाया गया है कि अगर BJP राज्य में सत्ता में नहीं रहती है, तो असम पर मुसलमानों का कब्ज़ा हो जाएगा. याचिका के अनुसार, “वीडियो में स्पष्ट रूप से मुस्लिम दिखने वाले लोगों (खोपड़ी वाली टोपी और बुर्का पहने हुए) को चाय के बागानों, गुवाहाटी हवाई अड्डे, असम के प्रतिष्ठित स्थलों और सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा करते हुए दिखाया गया है. वीडियो में आगे दिखाया गया है कि अवैध प्रवासी जो स्पष्ट रूप से मुस्लिम हैं, असम में आ रहे हैं, और अंत में राज्य में 90% मुस्लिम आबादी हो गई है.”
@BJP4Assam पर साझा किया गया यह वीडियो “अपना वोट सोच-समझकर चुनें” लाइन के साथ समाप्त होता है और इसे कथित तौर पर मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था. याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह वीडियो खुले तौर पर मुसलमानों को निशाना बनाता है, उन्हें बदनाम करता है और उनका दानवीकरण करता है, और इसका उद्देश्य सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ना है.
गवई पर जूता फेंकने की घटना पर सरकार की ‘चुप्पी’ पर बहन ने जताई चिंता
कोर्टरूम के अंदर भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई पर एक वकील द्वारा जूता फेंके जाने की घटना के एक दिन बाद, उनकी बहन कीर्ति आर. अर्जुन ने सरकार द्वारा बरती जा रही “चुप्पी” पर चिंता व्यक्त की है.
कीर्ति, जो एक शिक्षाविद् और श्री दादासाहेब गवई चैरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्ष हैं, ने “द वायर” को बताया, “यह हमला किसी व्यक्ति पर नहीं, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिनिधि पर... एक संवैधानिक पद पर हुआ था. फिर भी, सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. यह परेशान करने वाला है.”
कीर्ति ने कहा कि उनकी प्रतिक्रिया केवल गवई की बहन के रूप में नहीं है, बल्कि उस व्यक्ति के रूप में भी है जो “युवा दिमागों के भविष्य को आकार देने” के लिए जिम्मेदार है. उन्होंने कहा, “यह हमला भारत के संविधान का अपमान करने का एक प्रयास था. यह अब तक का सबसे निंदनीय कृत्य है और ऐसे घृणित कृत्य के खिलाफ विरोध दर्ज कराना चाहिए.”
कीर्ति ने कहा, “मुझे पता है कि मेरे भाई ने हमलावर के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज न करने का फैसला किया. और घटना पर कैसे प्रतिक्रिया देनी है, इसका फैसला करने वाले वह अंतिम व्यक्ति हैं. लेकिन ऐसी घटनाओं को अनियंत्रित नहीं जाने दिया जा सकता.”
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने घटना की निंदा की है, लेकिन किसी भी मंत्रालय ने इस घटना के खिलाफ खुलकर बोलने वाला कोई बयान जारी नहीं किया है.
गवई दलित समुदाय से आने वाले भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद तक पहुँचने वाले केवल दूसरे न्यायाधीश हैं. कीर्ति ने कहा कि हालांकि वह एक अंबेडकरवादी हैं, उनके भाई एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति भी हैं. पिछले ही सप्ताह, गवई परिवार तब सुर्खियों में था, जब सीजेआई की मां कमलताई ने कथित तौर पर अमरावती में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी समारोह के एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सहमति दे दी थी, लेकिन बाद में उन्होंने इनकार कर दिया था.
यह घटना तब हुई जब 71 वर्षीय वरिष्ठ वकील राकेश किशोर ने एक जनहित याचिका को ख़ारिज करते हुए CJI गवई की टिप्पणियों पर नाराज़गी जताई. याचिका मध्य प्रदेश के खजुराहो में भगवान विष्णु की एक जर्जर मूर्ति को बहाल करने से संबंधित थी. जस्टिस गवई ने याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा था, “जाओ और देवता से ही कुछ करने के लिए कहो.”
इस घटना के बाद एक और सनसनीखेज ख़ुलासा हुआ है. मकतूब मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, हमले से एक हफ़्ते पहले हिंदू दक्षिणपंथी यूट्यूबर्स ने CJI के ख़िलाफ़ हिंसा पर चर्चा की थी और उसे उकसाया था. सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में अजीत भारती, कौशलेश राय और ओपइंडिया के संपादक अनुपम सिंह शामिल हैं. एक वीडियो में कौशलेश राय को यह कहते हुए सुना जा सकता है, “अगर मैं हिंसा का समर्थन करता तो कहता कि कोई हिंदू वकील गवई जी का सिर पकड़कर दीवार पर दे मारे कि दो टुकड़े हो जाएं... गवई के मुंह पर थूकने की आईपीसी के तहत अधिकतम सज़ा क्या है? छह महीने से ज़्यादा नहीं? हिंदू यह भी नहीं कर सकते?”
इस बीच, निलंबित वकील राकेश किशोर ने अपने कृत्य को यह कहकर सही ठहराया कि CJI की “बुलडोज़र राज” के ख़िलाफ़ टिप्पणी ग़लत थी. किशोर ने मॉरीशस में जस्टिस गवई के उस भाषण का ज़िक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था, “भारत की क़ानूनी व्यवस्था क़ानून के शासन के तहत चलती है, बुलडोज़र के शासन के तहत नहीं.”
ज़ुबीन गर्ग की पत्नी ने कहा, ‘मेरा खाली दिल दिन-रात जल रहा है,’ हमें सच जानना है
सिंगापुर में 19 सितंबर को समुद्र में तैराकी के दौरान गायक ज़ुबीन गर्ग की मौत किन परिस्थितियों में हुई, इसे जानने के लिए उनके परिवार ने मांग उठाई है. गायक की पत्नी, गरिमा सैकिया गर्ग ने एक भावनात्मक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, “... हम बहुत जल्द फिर से एक साथ होंगे, गोल्डी. लेकिन अब, बहुत जल्द, हम सभी को यह जानना होगा कि आप शारीरिक रूप से हमसे क्यों दूर हो गए. यह एक बड़ा सवाल है. इसने मेरे खाली दिल को दिन-रात जलाए रखा है. मुझे जवाब चाहिए.” गरिमा ने मीडिया से कहा, “वह वापस नहीं आएंगे, लेकिन अगर हमें सच्चाई पता चली तो हमें शांति मिलेगी.”
गर्ग की बहन पाल्मे बोरठाकुर ने भी कहा, “घटना को 18 दिन हो चुके हैं. हमें पता चलना चाहिए कि उस मनहूस दिन क्या हुआ था. हमें उम्मीद है कि सरकार, सीआईडी और पुलिस हमें बता पाएंगे.”
इस बीच कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर संगीत लीजेंड ज़ुबीन गर्ग की मौत के कारणों को दबाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. गोगोई का यह दावा भी है कि मुख्यमंत्री सरमा सिंगापुर में चौथे पूर्वोत्तर भारत महोत्सव के आयोजक श्यामकानू महंत को संरक्षण दे रहे हैं.
डॉक्टर ने धार्मिक आधार पर मुस्लिम महिला का इलाज नहीं किया, वीडियो वायरल करने पर पत्रकारों के खिलाफ केस
उत्तरप्रदेश के जौनपुर में उस समय विवाद खड़ा हो गया, जब एक मुस्लिम महिला ने जिला अस्पताल के डॉक्टर पर धार्मिक आधार पर उसका इलाज करने से मना करने का आरोप लगाया. हालांकि, अस्पताल के अधिकारियों ने इस आरोप का खंडन किया है.
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. महेंद्र गुप्ता के अनुसार, बिरिबारी गांव की शमा परवीन को 30 सितंबर को रात लगभग 9:30 बजे प्रसव के लिए जिला महिला अस्पताल लाया गया था. उस रात ड्यूटी पर मौजूद एक महिला डॉक्टर ने उसकी जांच की थी.
‘पीटीआई’ के मुताबिक, 1 अक्टूबर को, सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया, जिसमें शमा परवीन ने कथित तौर पर आरोप लगाया कि ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने उससे कहा, “मैं किसी मुस्लिम महिला का इलाज नहीं करूंगी. मैं तुम्हारा प्रसव नहीं कराऊँगी कराऊँगी,” और नर्स को उसे ऑपरेशन थिएटर में न ले जाने का निर्देश देते हुए उसके परिवार को कहीं और ले जाने के लिए कहा. सीएमएस ने कहा कि वह इन आरोपों से हैरान हैं और उन्होंने संबंधित डॉक्टर से स्पष्टीकरण मांगा. डॉक्टर ने धर्म के आधार पर ऐसी कोई भी टिप्पणी करने से इनकार किया है. इस बीच, पुलिस ने दो स्थानीय पत्रकारों— मयंक श्रीवास्तव और मोहम्मद उस्मान के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है, जिन पर सोशल मीडिया पर वीडियो प्रसारित करने का आरोप है. सीएमएस द्वारा कोतवाली पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि दोनों पत्रकारों ने जबरन लेबर रूम में घुसकर वीडियो फिल्माए और अस्पताल की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया.
हरियाणा के आईजी कुमार ने आत्महत्या की
हरियाणा के पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी), वाई. पूरन कुमार ने मंगलवार को चंडीगढ़ में सेक्टर 11 स्थित अपने आवास पर आत्महत्या कर ली. आईपीएस अधिकारी ने अपनी सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मार ली. उन्हें उनकी बेटी ने घर के बेसमेंट में मृत पाया, जो कि साउंडप्रूफ है. आत्महत्या के पीछे का कारण पता नहीं चल पाया है. कुमार की पत्नी, अमनीत पी. कुमार, जो कि एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं, वर्तमान में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल के हिस्से के रूप में जापान में हैं.
कुमार 2001 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. अमनीत भी 2001 बैच की आईएएस अधिकारी हैं और वह विदेश सहयोग विभाग में सचिव के पद पर तैनात हैं. उनके आज बुधवार सुबह घर पहुंचने की उम्मीद है. कुमार पहले अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, रोहतक रेंज के रूप में तैनात थे और 25 सितंबर को उनका तबादला रोहतक के सुनारिया स्थित पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में महानिरीक्षक के रूप में हुआ था.
मध्यप्रदेश में जहरीली कफ सिरप से मरने वाले बच्चों की संख्या 19 हुई, सुप्रीम कोर्ट में मामला
जहरीला कफ सिरप पीने के कारण मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़कर 17 हो गया है, जिसमें पिछले दो दिनों में तीन और बच्चों की मौत शामिल है. दो बच्चों की मौत बैतूल में भी हुई है, इस तरह कुल संख्या 19 हो गई है. इसके साथ ही जनहित याचिका के रूप में यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में भी पहुँच गया है.
छिंदवाड़ा के अतिरिक्त कलेक्टर धीरेंद्र सिंह ने “द हिंदू” को बताया कि जिले के कुल सात बच्चे जो महाराष्ट्र के नागपुर में भर्ती थे, उनमें से एक बच्चे की मौत सोमवार (6 अक्टूबर) की रात हुई, जबकि दो ने मंगलवार को अंतिम सांस ली.
छिंदवाड़ा के चार और बैतूल जिले के पांच बच्चे अभी भी नागपुर के विभिन्न अस्पतालों में इलाज करवा रहे हैं, जिनमें सरकारी मेडिकल कॉलेज, एम्स और निजी अस्पताल शामिल हैं.
उन्होंने कहा, “तीन मृत बच्चों में से दो लड़कियां हैं. वे छिंदवाड़ा के तामिया, जुन्नारदेव और परासिया क्षेत्रों की रहने वाली थीं. उन्होंने एक ही सिरप का सेवन किया था और किडनी फेलियर की ही समस्या से जूझ रही थीं.”
बुखार और सर्दी से पीड़ित होने के बाद, इन बच्चों ने ‘कोल्ड्रिफ’ सिरप का सेवन किया था, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें उल्टी और पेशाब करने में कठिनाई हुई थी. पहली मौत 2 सितंबर को दर्ज की गई थी. यह सिरप तमिलनाडु के कांचीपुरम स्थित श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स द्वारा निर्मित किया गया था.
इस महीने की शुरुआत में, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश के औषधि नियंत्रण अधिकारियों ने पाया कि सिरप में 45 प्रतिशत से अधिक डायथाइलिन ग्लाइकॉल (एक खतरनाक रसायन जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करता है) मिलावट के रूप में मौजूद था. इसके बाद दोनों राज्यों ने सिरप की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया.
इस बीच बाल्य रोग विशेषज्ञ की गिरफ्तारी के विरोध में, कई डॉक्टरों ने परासिया में विरोध प्रदर्शन किया और अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की जिला इकाई ने डॉ. प्रवीण सोनी को तत्काल रिहा करने की मांग की है.
“द हिंदू” से बात करते हुए, आईएमए परासिया इकाई के सचिव और एक जनरल सर्जन डॉ. अंकुर बत्रा ने दावा किया कि डॉ. सोनी के खिलाफ लगाए गए आरोप झूठे हैं और सरकार ने “वास्तव में त्रासदी के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की है.”
हिमाचल में भूस्खलन की चपेट में आई बस; कम से कम 15 की मौत, कई फंसे होने की आशंका
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में मंगलवार शाम को हुए एक भीषण भूस्खलन की चपेट में एक निजी बस के आने से कम से कम 15 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य मलबे के नीचे फंसे हुए हैं. हरप्रीत बाजवा की रिपोर्ट है कि, बस में 30-35 यात्री सवार थे और यह दुर्घटना झंडूता विधानसभा क्षेत्र के भालूघाट इलाके में उस समय हुई, जब बस मरोतन से घुमारवीं जा रही थी.
अधिकारियों ने बताया कि अब तक मलबे से 15 शव बरामद किए जा चुके हैं, जबकि दो बच्चों सहित तीन लोगों को बचाकर अस्पताल पहुंचाया गया है. चूंकि बस विशाल चट्टानों के नीचे पूरी तरह दब गई, इसलिए आशंका है कि मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है, क्योंकि यात्रियों को गंभीर चोटें आई हैं.
बचाव कार्य में लगे एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि यात्रियों के “जीवित बचने की संभावना कम है”, क्योंकि “पूरा का पूरा एक पहाड़ बस पर गिर गया.” घायलों को घुमारवीं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और झंडूता अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया है. पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारी मौके पर मौजूद हैं और बचाव अभियान पूरी तेजी से जारी है. एनडीआरएफ की टीमें भी घटनास्थल पर पहुंच गईं और बचाव कार्य में जुटी हैं. मलबे को हटाने और विशाल चट्टानों के नीचे फंसी क्षतिग्रस्त बस के अंदर फंसे लोगों को निकालने के लिए भारी मशीनरी लगाई गई है. अधिकारियों के अनुसार, क्षेत्र में लगातार बारिश होने से पहाड़ी ढलान कमजोर हो गई थी, जिससे यह घातक भूस्खलन हुआ. सोमवार से ही इलाके में रुक-रुक कर बारिश हो रही है.
एक्स्प्लेनर
बिहार 2025 की लड़ाई: इतिहास क्या बताता है?
बिहार में 18वीं विधानसभा के लिए चुनाव 6 नवंबर से दो चरणों में होंगे. पहली नज़र में यह मुक़ाबला इस बात को लेकर है कि क्या नीतीश कुमार लगातार पाँचवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री बनेंगे या फिर तेजस्वी यादव दो दशकों के बाद अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को जीत दिलाएंगे. हालांकि, इस मुक़ाबले की बारीकियाँ और भी दिलचस्प हैं, क्योंकि बिहार की राजनीति एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहाँ राज्य की राजनीति पर हावी रहने वाले कारक और चेहरे अब ओझल हो रहे हैं और उनकी जगह लेने वाले नए स्थिर किरदार अभी तक उभरे नहीं हैं. हिंदुस्तान टाइम्स के एक विश्लेषण के अनुसार, आगामी चुनावों का बिहार के लिए क्या मतलब है, यह समझने के लिए इसके हाल के इतिहास को समझना ज़रूरी है.
लालू प्रसाद और राजद की राजनीति का उत्थान, पतन और दुविधा
लालू प्रसाद यादव उत्तर भारत में मंडल राजनीति के दो पोस्टर बॉय में से एक हैं, दूसरे उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह यादव थे जिनका 2022 में निधन हो गया. मुलायम के विपरीत, लालू ने बिहार में 15 साल तक सत्ता की बागडोर संभाली. इसमें सात साल वे खुद मुख्यमंत्री रहे और आठ साल उनकी पत्नी राबड़ी देवी, जिन्हें 1997 में चारा घोटाले में गिरफ़्तारी के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री बनाया था. इन तथ्यों से लग सकता है कि लालू और उनकी पार्टी को बिहार में असाधारण समर्थन प्राप्त था, लेकिन चुनावी आँकड़े कुछ और ही कहानी बताते हैं. लालू की राजनीतिक क़िस्मत 1995 में चरम पर थी, जब उनकी पार्टी ने बिहार में साधारण बहुमत हासिल किया था. 2010 तक, जब जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 84.8% सीटें जीतीं, तब तक राज्य में राजद का चुनावी आधार बहुत सिकुड़ गया था. राजद का 2015 में जदयू के साथ गठबंधन करने और नीतीश कुमार के नेतृत्व को स्वीकार करने का फ़ैसला, 2000 से 2010 के बीच पार्टी की लगातार गिरावट की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए. राजद इस समय एक बड़ी दुविधा का सामना कर रहा है: उसके पारंपरिक सहयोगी, जैसे कि कांग्रेस और वाम दल, उसे बिहार में सत्ता की दहलीज़ पार कराने के लिए काफ़ी नहीं हैं, और जो पार्टी उसे सत्ता में लाने में मदद कर सकती है, वह गठबंधन में टिकती नहीं है.
नीतीश कुमार की राजनीतिक कलाबाज़ियों की सीमा
नीतीश कुमार का पहला विरोध 1994 में लालू यादव के राजनीतिक वर्चस्व के ख़िलाफ़ जनता दल के भीतर से ही शुरू हुआ था. उन्होंने पहले वामपंथियों में सहयोगी तलाशे और 1995 का विधानसभा चुनाव सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के साथ लड़ा, जिसमें उनका प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा. 1996 के लोकसभा चुनाव तक, नीतीश वामपंथ से दक्षिणपंथ की ओर चले गए और भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया. यह गठबंधन 2013 तक चला, जब उन्होंने नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी का विरोध करते हुए एनडीए छोड़ दिया. 2015 में, जदयू ने राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और शानदार जीत हासिल की. लेकिन 2017 में यह गठबंधन टूट गया और नीतीश एनडीए में लौट आए. 2022 में, नीतीश ने फिर से एनडीए छोड़ दिया और सत्ता में बने रहने के लिए राजद से हाथ मिला लिया, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले वे फिर एनडीए में वापस आ गए. नीतीश के स्वास्थ्य को देखते हुए, आज जदयू के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनके बाद पार्टी की कमान कौन संभालेगा और क्या जदयू बिहार की चुनावी गणित में अपना महत्व बनाए रख पाएगा.
भाजपा की लगातार बढ़त, पर अकेले जीतना मुश्किल
अगर बिहार की तीन प्रमुख पार्टियों - भाजपा, जदयू और राजद - के वोट शेयर की तुलना की जाए, तो भाजपा एकमात्र ऐसी पार्टी लगती है जिसका ग्राफ़ लगभग लगातार बढ़ रहा है. 2020 तक, भाजपा का लड़ी गई सीटों पर वोट शेयर अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर था. इस शानदार ऐतिहासिक प्रदर्शन के बावजूद, भाजपा अभी भी राज्य में किसी बड़े सहयोगी के बिना सत्ता पर क़ब्ज़ा करने के क़रीब भी नहीं है. भाजपा को यह बात 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में अच्छी तरह समझ आ गई थी. 2020 में, लोजपा द्वारा जदयू को नुक़सान पहुँचाए जाने के बाद एनडीए बमुश्किल बहुमत का आँकड़ा पार कर पाया था.
सभी दलों के लिए परीक्षा
2025 के बिहार चुनाव तीनों प्रमुख दलों की परीक्षा लेंगे. जदयू अपने सबसे बड़े नेता के राजनीतिक परिदृश्य से धीरे-धीरे ओझल होने के साथ चुनाव में जा रहा है. अगर एनडीए सत्ता जीत भी लेता है, तो नेतृत्व का सवाल - जो हमेशा नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द तय होता था - हवा में लटका रहेगा. राजद, नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ सत्ता-विरोधी लहर और जदयू के कमज़ोर होने से फ़ायदे की उम्मीद कर सकता है, लेकिन वह अपने सामाजिक आधार और एक बड़े राजनीतिक गठबंधन के बीच के अंतर्विरोध को हल करने में असमर्थ साबित हुआ है. इन सबके बीच, प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ भी कुछ सीटों पर खेल बिगाड़ सकती है, जिससे बिहार की राजनीतिक उथल-पुथल चुनाव के बाद भी जारी रह सकती है.
रोशन किशोर, निशांत रंजन और अभिषेक झा ने बिहार चुनाव पर विस्तृत रिपोर्ट लिखी है. यहां पढ़िये.
उत्तरप्रदेश पुलिस देखती रही और कुछ नहीं किया : रायबरेली में पीट-पीटकर मारे गए दलित व्यक्ति के पिता का आरोप
“मानसिक रूप से अस्थिर” एक दलित व्यक्ति, जिसे “ड्रोन चोर” कहकर होने का आरोप लगाकर पीट-पीटकर मार डाला गया था, के पिता ने आरोप लगाया है कि रायबरेली जिले में बुधवार रात हुई इस बर्बर घटना के दौरान पुलिसकर्मी मौजूद थे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया.
मृतक हरि ओम (38) के पिता गंगा दीन ने आरोप लगाया है कि पुलिसकर्मी घटनास्थल पर मौजूद थे लेकिन उन्होंने उनके बेटे को बचाने के लिए कोई हस्तक्षेप नहीं किया. हरि ओम को डाउन सिंड्रोम था और वह फतेहपुर जिले के तारावती गांव का निवासी था. रायबरेली के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संजीव सिन्हा ने इस आरोप को सीधे तौर पर नकारा नहीं, न ही इसकी पुष्टि की, लेकिन उन्होंने बताया कि एक उप-निरीक्षक और दो कांस्टेबल को निलंबित कर दिया गया है.
एएसपी सिन्हा ने बताया कि शुक्रवार को पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और उनके खिलाफ शुरू में लगाई गई गैर-इरादतन हत्या की धारा को अब हत्या में बदल दिया गया है. हरि ओम अपनी पत्नी से मिलने रायबरेली के ईश्वरदासपुर गांव पहुंचा था, तभी उसे सड़क पर नशे में धुत लोगों ने घेर लिया. बचने की हताश कोशिश में, हरि ओम ने भीड़ से कहा कि वह स्थानीय सांसद राहुल गांधी को जानता है. हमलावरों ने कथित तौर पर जवाब दिया कि यह पूरा इलाका “बाबा” (संभवतः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उल्लेख) का है, और राहुल का नाम लेने से उसे बचाया नहीं जा सकेगा. लाठी और बेल्ट से पीटने के बाद, उन्होंने हरि ओम को एक रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया.
“द टेलीग्राफ” में पीयूष श्रीवास्तव की रिपोर्ट कहती है, इस क्रूरता को कथित तौर पर पुलिस द्वारा दबा दिया गया था, लेकिन शनिवार को जब एक वीडियो प्रसारित होना शुरू हुआ, तब यह सार्वजनिक हुई. वीडियो में हरि ओम वाल्मीकि को खून से लथपथ जमीन पर पड़े बार-बार यह कहते हुए सुना जा सकता है, “मैं राहुल गांधी को जानता हूं.” जवाब में, भीड़ में से कोई कहता है, “राहुल गांधी का नाम मत लो; हम सब बाबा के हैं.” एएसपी सिन्हा ने दावा किया कि पीड़ित की जाति का “अपराध से कोई लेना-देना नहीं” था और आरोपियों को “यह नहीं पता था कि वे एक दलित को पीट रहे हैं. “
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को फोन पर हरि ओम के पिता गंगा दीन से बात की और उन्हें सहयोग का वादा किया. राज्य कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने इस घटना को आदित्यनाथ के शासन में “जंगल राज” बताया. कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग के प्रमुख राजेंद्र पाल गौतम ने दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश भर में ऐसे 75% मामले भाजपा शासित पांच राज्यों में दर्ज किए गए हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है.
लखीमपुर हिंसा : टेनी और बेटे पर गवाह को धमकाने के आरोप में मामला दर्ज
उत्तरप्रदेश पुलिस ने लखीमपुर खीरी के तिकुनिया क्षेत्र में 3 अक्टूबर 2021 को हुई हिंसा, जिसमें आठ लोगों के मारे जाने का दावा किया गया था, के एक गवाह को धमकाने के आरोप में पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा “टेनी”, उनके बेटे आशीष मिश्रा और दो अन्य के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की है.
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इस अगस्त में पुलिस कार्रवाई हुई, जब कोर्ट ने शिकायत में देरी को लेकर राज्य पुलिस को फटकार लगाई थी. शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप के बाद, 4 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी के पदुआपुर पुलिस स्टेशन में एक गवाह बलजिंदर सिंह की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई. प्राथमिकी में नामित लोगों में अजय मिश्रा, उनके बेटे आशीष मिश्रा, अमनदीप सिंह और एक अज्ञात व्यक्ति शामिल हैं.
“हिंदुस्तान टाइम्स” के मुताबिक, बलजिंदर सिंह, जो भैरापुर गांव के निवासी हैं, के अनुसार, अमनदीप सिंह और एक अज्ञात व्यक्ति ने 15 अगस्त, 2023 को उनके घर जाकर आशीष मिश्रा के खिलाफ चल रहे मुकदमे में गवाही न देने और रिश्वत लेने की धमकी दी. इस घटना के बाद, सिंह ने अगले दिन 16 अगस्त को अदालत में पेश होने की तैयारी करते हुए, अपने परिवार के साथ जिले में अपने ससुराल वालों के घर चले गए. सिंह ने बताया कि 16 अगस्त को पेश होने की तैयारी के दौरान, वही दो लोग उनके ससुराल वालों के घर फिर से आए और उन्हें धमकाया. इसके बाद सिंह ने अपना गांव छोड़ दिया और पंजाब में बस गए.
जनवरी 2025 में, सिंह ने गवाही देने से रोकने के लिए उन्हें धमकाने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. शीर्ष अदालत ने तब यूपी पुलिस को मामले की जांच करने और स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था.
एसपी संकल्प शर्मा ने कहा, “एक खीरी पुलिस दल ने बलजिंदर सिंह से संपर्क किया और शिकायत की पुष्टि की. तदनुसार, एक प्राथमिकी दर्ज की गई है.”
एसपी ने आगे बताया, “एफआईआर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 195ए (झूठा साक्ष्य देने के लिए किसी व्यक्ति को धमकी देना), 506 (आपराधिक धमकी), और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत दर्ज की गई है. आगे की जांच जारी है.” लखीमपुर खीरी हिंसा में कुल आठ लोग मारे गए थे. मिश्रा को छह दिनों के भीतर गिरफ्तार कर लिया गया था.
रूसी सेना में शामिल भारतीय नागरिक ने यूक्रेनी सैनिकों के सामने किया आत्मसमर्पण: यूक्रेनी सेना
यूक्रेन की सेना ने मंगलवार (7 अक्टूबर) को घोषणा की है कि रूसी सेना में शामिल हुए एक भारतीय नागरिक ने तीन दिन अग्रिम मोर्चे पर बिताने के बाद यूक्रेनी सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है. द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, यह पहला ज्ञात मामला है जब किसी भारतीय नागरिक को यूक्रेनी हिरासत में लिया गया है.
नई दिल्ली में आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि कीव में भारतीय दूतावास इस सूचना का सत्यापन कर रहा है. यूक्रेन के 63वें मैकेनाइज्ड ब्रिगेड ने अपने आधिकारिक टेलीग्राम चैनल पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिसका शीर्षक था “एक 22 वर्षीय... भारतीय को बंदी बना लिया गया है!”. वीडियो में उसकी पहचान गुजरात के मोरबी निवासी 22 वर्षीय मजोती साहिल मोहम्मद हुसैन के रूप में की गई है.
रूसी भाषा में बनाए गए वीडियो के अनुसार, हुसैन ने कहा कि वह एक विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए रूस गया था, लेकिन बाद में उसे नशीली दवाओं से संबंधित आरोपों में दोषी ठहराया गया. उसने कहा, “मैं जेल में नहीं रहना चाहता था, इसलिए मैंने ‘विशेष सैन्य अभियान’ के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए. लेकिन मैं वहां से निकलना चाहता था.”
हुसैन ने बताया कि उसे सिर्फ़ 16 दिनों का प्रशिक्षण मिला और 1 अक्टूबर को उसे अग्रिम मोर्चे पर भेज दिया गया. उसने दावा किया कि अपने कमांडर के साथ विवाद के बाद उसने आत्मसमर्पण करने का फ़ैसला किया. उसने यह भी आरोप लगाया कि उसे रूसी पक्ष द्वारा वादा किया गया वेतन कभी नहीं दिया गया और कहा कि वह रूस लौटने के बजाय यूक्रेन में रहना पसंद करेगा. उसने कहा, “वहां कोई सच्चाई नहीं है, कुछ भी नहीं. मैं यहां जेल जाना बेहतर समझूंगा.”
भारत सरकार ने फरवरी में संसद को बताया था कि उसे 127 भारतीयों के बारे में पता है जो यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूसी सेना में शामिल हुए थे. अब तक 12 की मौत हो चुकी है, 18 लापता हैं और बाकी रिहा होने के बाद लौट आए हैं.
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