08/11/2025: नीतीश से टच में नहीं लालू | राणा अय्यूब को धमकी, पर पुलिस केस नहीं | हर घंटे भारत में मरते हैं 8 बाइकर | 70% कैदी विचाराधीन | लंबी शादी के राज | 20 मिनट की डेट और फिर आफ़त
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
लालू का नया नारा रोजगार, नीतीश से कोई वास्ता नहीं
सड़क पर बिखरी वीवीपैट पर्चियां, चुनाव पर उठे गंभीर सवाल
मोदी के मंत्री के नफरती बोल, ‘भारत को मुस्लिम देश बनाने की साजिश’
पुलिस सुरक्षा तो दूर, FIR भी नहीं लिख रही - राणा अय्यूब
हिरासत में टॉर्चर से दलित की मौत, तीन RPF अफसरों पर केस
भारत की सड़कों का जानलेवा सच, हर घंटे 9 बाइकर्स की मौत
निज्जर हत्याकांड में ब्रिटेन का बड़ा खुलासा, भारत पर शक गहराया
नरसंहार का आरोप, तुर्किए ने नेतन्याहू के खिलाफ जारी किया गिरफ्तारी वारंट
नीतीश का ‘दस हज़ारी’ दांव, क्या महिलाएं बनाएंगी सरकार?
भारत की जेलों में बंद 70% कैदियों को सज़ा का इंतज़ार
कागज़ पर मिड-डे मील, राहुल गांधी बोले- बच्चों की थाली भी चुरा ली
BCCI का लिंगभेद, पुरुषों को 125 करोड़, महिला टीम को बस 51 करोड़
शादी के 8 साल, पति तब से भारत की जेल में, पत्नी बोली- असहनीय दुख
टिंडर के शिकारी से 20 मिनट की डेट, सालों तक ज़िंदगी बनी जहन्नुम
लालू : ‘रोज़गार देंगे, नीतीश से कोई संपर्क नहीं’
अपने ‘जंगल राज’ के इर्द-गिर्द घूमते एनडीए के अभियान के सामने रक्षात्मक दिख रहे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव अपने अतीत से दूरी बनाते हुए नज़र आ रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस में नीरजा चौधरी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब उनसे पूछा गया कि अगर महागठबंधन सरकार सत्ता में आती है तो उसका ध्यान किस पर होगा, तो लालू प्रसाद यादव एक अलग ही सुर में बात करते हैं. उन्होंने कहा, “इस बार हम बेरोज़गारी को दूर करेंगे... हम सरकार बनाने जा रहे हैं - और हम नीतीश कुमार को हटाने जा रहे हैं.”
अगर संख्या बल पूरा नहीं होता है तो जद(यू) के साथ एक और गठबंधन की संभावना पर, लालू स्पष्ट हैं. “अब हम नीतीश कुमार को स्वीकार नहीं करेंगे... हमारा नीतीश से कोई संपर्क नहीं है.”
लालू के इस इनकार के बावजूद, बिहार में इस बात की अटकलें तेज़ हैं कि अगर एनडीए की जीत की स्थिति में भाजपा द्वारा नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है - और अगर नई विधानसभा का गणित ऐसा बनता है कि जद(यू) की मदद से महागठबंधन सरकार बन सकती है, तो नीतीश एक और “पलटा” मार सकते हैं.
लालू और नीतीश बिहार की राजनीति के वो दो धुरंधर रहे हैं जिन्होंने पिछले 35 सालों में राज्य की राजनीति को आकार दिया है - कभी प्रतिद्वंद्वी के रूप में तो कभी सहयोगी के रूप में. नीतीश ने 2015 और फिर 2022 में राजद के साथ हाथ मिलाकर और दोनों मौकों पर उनके बेटे तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री बनाकर लालू प्रसाद परिवार की प्रासंगिकता बनाए रखी.
नीतीश ने बड़ी चतुराई से कुर्मी-कोइरी, अति पिछड़ा वर्ग (जो यादवों को बढ़ावा देने से नाराज़ होकर 2005 में लालू से अलग हो गए थे) और ‘महादलितों’ का एक गठबंधन बनाया है. इस वोट बैंक में जब भाजपा और उसके सवर्ण आधार का साथ जुड़ा, तो 2005 में बिहार की राजनीति में नीतीश युग की शुरुआत हुई.
आज, लालू, जिन्होंने राज्य की राजनीति में सवर्णों के दबदबे को तोड़ा था, को “अतीत” के रूप में देखा जाता है. हालांकि, पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने राजद के टिकट तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. फिर भी, राजद उन्हें पोस्टर, होर्डिंग्स या अभियान में आगे रखने को तैयार नहीं है. उन्हें वस्तुतः पर्दे के पीछे रखा जा रहा है - कहीं ऐसा न हो कि वह कोई ऐसा विवाद खड़ा कर दें जो लोगों को “जंगल राज” की याद दिला दे. वहीं तेजस्वी राजद की एक “शांत”, भविष्योन्मुखी छवि पेश कर रहे हैं, जो “नौकरियों, नौकरियों और नौकरियों” पर ध्यान केंद्रित कर रही है और पार्टी के “MY” आधार को न केवल “मुस्लिम” और “यादव” बल्कि “महिला” और “यूथ” के रूप में भी पेश कर रही है.
2025 के चुनावी परिदृश्य में एक चौथे खिलाड़ी - “विघटनकारी” प्रशांत किशोर के नेतृत्व वाले ‘जन सुराज’ का भी प्रवेश हुआ है, जिन्होंने लालू और नीतीश दोनों पर बिहार को “बर्बाद” करने का आरोप लगाया है.
भले ही बिहार 2025 का चुनाव तेजस्वी और किशोर, और साथ ही लोजपा (आरवी) प्रमुख चिराग पासवान और भाजपा नेता सम्राट चौधरी के रूप में “भविष्य” की ओर एक संक्रमण के बारे में है, लेकिन अभी के लिए, स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते हुए भी, नीतीश और लालू ही चर्चा पर हावी हैं. जब लोग अपनी मतदान प्राथमिकताओं के बारे में बात करते हैं, तो वे इसे व्यक्त करते हैं, “हम नीतीश को वोट देंगे (भले ही उम्मीदवार जद(यू) के सहयोगी हम-एस, लोजपा-आरवी, या भाजपा का हो)”, या वे लालू का ज़िक्र करते हैं.
समस्तीपुर में फेंकी मिलीं वीवीपैट पर्चियां; अधिकारी निलंबित
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने शनिवार को बिहार के समस्तीपुर ज़िले के शीतलपट्टी गांव में एसआर कॉलेज के पास बड़ी संख्या में वीवीपैट (वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) पर्चियां फेंके पाए जाने के बाद जांच के आदेश दिए. इन पर्चियों की पहचान उन पर्चियों के रूप में हुई है जिनका इस्तेमाल गुरुवार को पहले चरण के मतदान से पहले आयोजित मॉक पोल के दौरान किया गया था.
चुनाव आयोग ने कहा, “समस्तीपुर के डीएम को मौके पर जाकर जांच करने का निर्देश दिया गया. चूंकि ये मॉक पोल की वीवीपैट पर्चियां हैं, इसलिए मतदान प्रक्रिया की शुचिता से कोई समझौता नहीं हुआ है. चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को भी डीएम द्वारा सूचित कर दिया गया है. हालांकि, संबंधित एआरओ को लापरवाही के लिए निलंबित किया जा रहा है और एक एफ़आईआर दर्ज की जा रही है.”
स्थानीय निवासियों द्वारा कॉलेज के पास बड़ी संख्या में मुद्रित वीवीपैट पर्चियों के बिखरे होने की सूचना दिए जाने के बाद ज़िला प्रशासन हरकत में आया. अधिकारियों ने प्रारंभिक जांच के बाद पुष्टि की कि ये पहले मतदान दिवस पर मतदान से पहले आयोजित मॉक पोल प्रक्रिया की थीं. समस्तीपुर के ज़िलाधिकारी (डीएम) सह ज़िला निर्वाचन अधिकारी (डीईओ) रोशन कुशवाहा ने कहा कि सराय रंजन विधानसभा क्षेत्र में कुछ वीवीपैट पर्चियां पाए जाने की सूचना मिली थी.
डीएम ने कहा, “ये कमीशनिंग और डिस्पैच सेंटर पर मिली थीं. निरीक्षण करने पर, यह देखा गया कि बड़ी मात्रा में कटी हुई पर्चियों के बीच, कुछ बिना कटी पर्चियां भी मौजूद थीं.” उन्होंने बताया कि प्रशासन ने इन पर्चियों को ज़ब्त कर लिया है. लापरवाही के लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की जा रही है. जांच से बरामद पर्चियों की सही प्रकृति का पता चलेगा.
त्यागी गई पर्चियों के मुद्दे पर, कुशवाहा ने कहा, “कमीशनिंग प्रक्रिया के दौरान, 5 प्रतिशत वोटिंग मशीनों पर मॉक पोल आयोजित किए जाते हैं, जिसमें परीक्षण के हिस्से के रूप में प्रत्येक पर लगभग 1,000 वोट डाले जाते हैं. इन मॉक पोल से बड़ी संख्या में वीवीपैट पर्चियां निकलती हैं. इनमें से कुछ कटी हुई और कुछ बिना कटी पर्चियां पाई गई हैं.”
मुख्य चुनाव आयुक्त के निर्देश के बाद, संबंधित सहायक रिटर्निंग ऑफिसर (एआरओ) को चुनाव सामग्री के रखरखाव में लापरवाही के लिए निलंबित कर दिया गया है. इस बीच, राजद ने एक्स पर पोस्ट किया: “समस्तीपुर के सराय रंजन विधानसभा क्षेत्र में केएसआर कॉलेज के पास सड़क पर फेंकी गई ईवीएम से निकली बड़ी संख्या में वीवीपैट पर्चियां मिलीं. ये पर्चियां कब, कैसे, क्यों और किसके निर्देश पर फेंकी गईं? क्या ‘चोर आयोग’ इसका जवाब देगा?”
लोजपा सांसद शंभवी चौधरी की ‘2 स्याही वाली उंगलियों’ पर विवाद, पटना प्रशासन ने दिया जवाब
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की सांसद शंभवी चौधरी द्वारा 6 नवंबर को बिहार चुनाव के बाद दो उंगलियों पर स्याही के निशान दिखाने पर हुए विवाद के बाद, पटना ज़िला प्रशासन ने स्पष्टीकरण दिया है. प्रशासन ने इसे मतदान कर्मचारी की गलती बताया है. जांच के बाद पता चला कि स्याही लगाने के लिए ज़िम्मेदार मतदान कर्मचारी ने गलती से स्याही दाहिने हाथ की उंगली पर लगा दी थी.
प्रशासन ने “एक्स” पर कहा, “पीठासीन अधिकारी के हस्तक्षेप के बाद, बाएं हाथ की उंगली पर भी स्याही लगाई गई. यह स्पष्ट किया जा रहा है कि सांसद शंभवी ने अपना वोट केवल 182-बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्र संख्या 61, संत पॉल प्राइमरी स्कूल, बुद्ध कॉलोनी (मुख्य खंड का उत्तरी कक्ष) की मतदाता सूची के क्रमांक 275 पर ही डाला.”
चौधरी ने गुरुवार को बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के बाद अपनी बाईं और दाईं तर्जनी उंगली पर स्याही दिखाकर विवाद खड़ा कर दिया था. उन पर दो बार मतदान करने का आरोप लगा, जबकि उन्होंने कहा कि यह एक “मानवीय भूल” थी और इसे मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए.
इससे पहले, राजद की राष्ट्रीय प्रवक्ता कंचना यादव ने मतदाता धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए कहा था कि शंभवी चौधरी की दोनों उंगलियों पर स्याही के निशान पाए गए, जिससे यह पता चलता है कि लोजपा सांसद ने चुनाव बूथ पर दो बार मतदान किया था. यादव ने “एक्स” पर लिखा, “यह एक अलग ही स्तर की धोखाधड़ी चल रही है. ये लोजपा सांसद शंभवी चौधरी हैं. दोनों हाथों पर स्याही लगी है. मतलब, इन्होंने दो बार वोट दिया. जब यह मामला सामने आया तो उनके पिता अशोक चौधरी उन्हें आंखों से इशारा कर रहे हैं. चुनाव आयोग, यह सब कैसे हो रहा है? इसकी जांच कौन करेगा?”
प्रशांत किशोर की राजनीति के लिए चुनौती और अवसर दोनों
सुहास पलशीकर इंडियन एक्सप्रेस में अपने विश्लेषण में लिखते हैं कि बिहार में, अधिकांश नए प्रवेशकर्ता हमेशा जनता परिवार की पार्टियों के उत्तराधिकारी या “मंडल” विरासत के दावेदार रहे हैं. प्रशांत किशोर (पीके) राजनीतिक मेन्यू में एक नई पेशकश लेकर आए हैं, जो इन विरासतों से नहीं निकलती. उन्होंने अब तक भाजपा के हिंदुत्व तर्कों पर किसी भी विशिष्ट प्रतिक्रिया से भी चतुराई से परहेज किया है. यह तर्क दिया जा सकता है कि उनकी पार्टी इन दो वैचारिक ध्रुवों के बाहर एक उपयुक्त राजनीतिक मंच की तलाश में है - और यहीं उन्हें एक चुनौती का सामना करना पड़ता है. लेकिन यहीं उनके अवसर भी निहित हैं.
बिहार में सामाजिक-न्याय की विचारधारा व्यावहारिक रूप से अपना प्रभाव खो चुकी है. दूसरी ओर, 10 वर्षों के राष्ट्रीय प्रभुत्व के बाद भी, हिंदुत्व के लिए बिहार मायावी लगता है. ‘घुसपैठियों’ के बारे में मौजूदा बयान इस बात का प्रमाण है कि भाजपा को उत्पीड़न की नई कहानियां गढ़नी पड़ रही हैं. सामाजिक-न्याय की विचारधारा का वैचारिक दिवालियापन और हिंदुत्व की अपर्याप्तता - इन दोनों ने एक वैचारिक शून्य पैदा कर दिया है. क्या पीके की पार्टी (जन सुराज) इस शून्य को भरने के लिए कोई वैचारिक दावा कर सकती है, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है.
यह दूसरे चैलेंज से भी जुड़ता है. उन्हें बिहार की राजनीतिक पार्टियों के कथित “स्थापित” सामाजिक आधारों को भेदने की चुनौती का सामना करना पड़ता है. ये अक्सर जाति-समुदाय के संदर्भ में बात की जाती है. पिछले 10 वर्षों के चुनावी आंकड़ों से पता चलता है कि किसी भी राजनीतिक शक्ति के पीछे ठोस वोट ब्लॉक की कल्पना करना बहुत सरल है. सामाजिक-न्याय ब्लॉक लंबे समय से दोहरी विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रहा है - यह बहुत कुछ नहीं देता, और अगर देता भी है, तो पिछड़ी जातियों के निचले वर्गों को शायद ही कुछ मिलता है. दूसरा, भाजपा के पास राज्य के मतदाताओं की सामाजिक-न्याय की अपेक्षाओं के जवाब में बहुत कुछ नहीं है. इन कारकों का मतलब है, जैसा कि बिहार की राजनीति के पर्यवेक्षकों ने पहले वर्णित किया है, चुनावी समर्थन जीतने के लिए “जाति-प्लस” या “हिंदुत्व-प्लस” दृष्टिकोण आवश्यक है. यहीं पर नई पार्टी के लिए अवसर मौजूद हैं.
इन चुनावों से जो असली सवाल का जवाब मिलेगा, वह यह नहीं है कि क्या पीके राज्य में एक मुख्य खिलाड़ी होंगे, बल्कि यह है कि क्या बिहार के बाद, वह बिहार के बाहर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने का प्रयास कर सकते हैं. भारत में पार्टी प्रतिस्पर्धा का परिदृश्य कमोबेश दो “अखिल भारतीय” पार्टियों और कई राज्य पार्टियों के इर्द-गिर्द घूमता है. लेकिन दो अन्य प्रकार की पार्टियां मौजूद हैं और पार्टी प्रतिस्पर्धा को आकार देने में महत्वपूर्ण हो सकती हैं. एक है स्थानीय, व्यक्ति-केंद्रित और जाति-आधारित “छोटी” पार्टियां. दूसरी वे पार्टियां हैं जो एक राज्य से आगे विस्तार करने की महत्वाकांक्षा रखती हैं. AAP ने दिखाया है कि यह संभव है. अब, जन सुराज पार्टी, अगर वह बिहार में अच्छा प्रदर्शन करती है, तो एक बहु-राज्यीय पार्टी बनने का प्रयास कर सकती है. पीके के संपर्कों और संसाधनों को देखते हुए, बिहार से आगे विस्तार करना कोई समस्या नहीं हो सकती है.
यह काम आसान नहीं है. अपने पिछले अवतार में पीके की राजनीतिक चंचलता हमेशा उनकी राजनीति को संदिग्ध बना सकती है या भाजपा में शामिल होने का एक चैनल बना सकती है.
बिहार की राजनीति एक तरह से तमिलनाडु जैसी है
हिंदुस्तान टाइम्स में रोशन किशोर के मुताबिक बिहार और तमिलनाडु भारत के केवल दो प्रमुख राज्य हैं जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस - भारत की दो राष्ट्रीय पार्टियां - राज्य-आधारित दो पार्टियों की जूनियर पार्टनर हैं. ये दोनों राज्य-आधारित पार्टियां भी एक ही वैचारिक धारा से निकली हैं.
बिहार में, कांग्रेस राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की जूनियर पार्टनर है और भाजपा जनता दल (यूनाइटेड) या जद(यू) की सहयोगी है. राजद और जद(यू) दोनों उत्तर भारत की व्यापक समाजवादी राजनीति की धारा से निकले हैं और 1990 के दशक में बिहार में जनता दल के विभाजन से बने हैं. तमिलनाडु में, कांग्रेस अब द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की जूनियर पार्टनर है और भाजपा ने अंततः ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) के साथ गठबंधन किया है. डीएमके और एआईएडीएमके दोनों द्रविड़ आंदोलन की शाखाएं हैं.
दोनों राज्यों में इन क्षेत्रीय दलों का मुख्य समर्थन आधार तथाकथित पिछड़ी जातियों में है, लेकिन जरूरी नहीं कि वे सामाजिक रूप से उत्पीड़ित, यानी अनुसूचित जातियां (एससी) हों. वास्तव में, तमिलनाडु और बिहार में द्रविड़ और समाजवादी दोनों पार्टियों के स्थानीय अगुआओं का एससी पर हिंसा और उत्पीड़न का इतिहास रहा है, भले ही वे सामान्य रूप से सामाजिक समानता के विचार के लिए प्रतिबद्ध हों.
समानताएं मोटे तौर पर यहीं समाप्त होती हैं.
तमिलनाडु देश के सबसे अमीर, सबसे विकसित राज्यों में से एक है. तमिलनाडु की सफलता एक बहुभिन्नरूपी समीकरण के सफलतापूर्वक हल होने का परिणाम है: इसने जाति-विरोधी आंदोलन लड़ा और दूसरों से बहुत पहले सकारात्मक कार्रवाई शुरू की, जिससे एक ऐसा कार्यबल तैयार हुआ जो सुधार के बाद के विकास का लाभ उठाने के लिए तैयार था.
बिहार में, सामाजिक क्रांति को तथाकथित ‘सबआल्टर्न साहेब’ के साथ उच्च जाति के सामंती प्रभुओं को बदलने के लिए राज्य की सत्ता पर कब्जा करने के रूप में परिभाषित किया गया. तमिलनाडु की सामाजिक क्रांति ने राज्य को एक ऊर्ध्वगामी आर्थिक पथ पर डाल दिया. बिहार अधिक चीनी सांस्कृतिक क्रांति जैसा था: असमानता से लड़ने के नाम पर, इसने संघर्ष के स्थल को ही नष्ट कर दिया. इसका परिणाम यह हुआ है कि बिहार से भौतिक और मानव पूंजी का पलायन हुआ है, जबकि तमिलनाडु में देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी यह पूंजी आई है.
उपरोक्त वर्णित बिहार और तमिलनाडु के बीच सबसे महत्वपूर्ण भौतिक अंतर है. संस्कृति के क्षेत्र में भी एक उतना ही महत्वपूर्ण अंतर है.
तमिलनाडु भारत को हिंदी भाषियों का राष्ट्र बनाने की आधिपत्यवादी राजनीतिक परियोजना के खिलाफ संघर्ष का अगुआ रहा है. यह आज भी इसका विरोध करता है. आज का विरोध, स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती वर्षों के विपरीत, श्रेष्ठता और चिंता दोनों का एक तत्व है. यह भौतिक और सांस्कृतिक प्रतिरोध का मिश्रण है जिसने डीएमके को तमिलनाडु में भाजपा के एजेंडे के खिलाफ एक सुरक्षा कवच प्रदान किया है. बिहार में भाजपा के खिलाफ ऐसी कोई बात मौजूद नहीं है.
कई उदार टिप्पणीकार चेन्नई से पटना तक एक व्यापक सामाजिक-न्याय गठबंधन बनाकर भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के पुनरुद्धार का रास्ता देखते हैं. उन्हें यह महसूस करना चाहिए कि बिहार और तमिलनाडु की राजनीतिक स्थिति के बीच का अंतर उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि समानताएं.
नीतीश की ‘दस हज़ारी’ योजना ‘गेमचेंजर’ होगी?
अन्य राज्यों में चुनाव-पूर्व महिला-केंद्रित योजनाएं सफलतापूर्वक आजमाई गई हैं, लेकिन बिहार की योजना दूसरों से काफी अलग है. मध्य प्रदेश में ‘लाडली बहना’ हो या महाराष्ट्र में ‘लड़की बहन’, ज़्यादातर योजनाएं बिना शर्त सीधे बैंक खाते में पैसे भेजने (डीबीटी) वाली हैं, जिनका उद्देश्य महिलाओं को घरेलू बोझ कम करने के लिए मासिक वित्तीय सहायता देना है. लेकिन बिहार की ‘मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना’ (MMRY) खुद को महिलाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए एक उत्पादक, रोज़गार-उन्मुख पहल के रूप में पेश करती है.
29 अगस्त को घोषित इस योजना में महिला उद्यमियों को अपना व्यवसाय शुरू करने में मदद के लिए किश्तों में कुल 2.10 लाख रुपये देने का वादा किया गया है. इस पैसे से वे दुकान खोल सकती हैं, डेयरी या कपड़ा सिलाई इकाई शुरू कर सकती हैं, या ब्यूटी पार्लर और कला-शिल्प से संबंधित काम कर सकती हैं. पहली किश्त के रूप में 10,000 रुपये 1.21 करोड़ से ज़्यादा भावी उद्यमियों के खातों में जमा किए जा चुके हैं. इसके लिए शर्त यह है कि महिला राज्य सरकार की स्वयं-सहायता समूह ‘जीविका’ योजना के तहत नामांकित होनी चाहिए.
द इंडियन एक्सप्रेस में दीप्तिमान तिवारी और संतोष सिंह की रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों ने कहा कि इस योजना को जानबूझकर ऐसा डिज़ाइन किया गया क्योंकि नीतीश कुमार सैद्धांतिक रूप से नकद सहायता के ख़िलाफ़ रहे हैं. जद(यू) के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “अपने 20 साल के शासन में, नीतीश कुमार ने कई महिला-केंद्रित योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन किसी में भी नकद सहायता शामिल नहीं थी. वे उन नीतियों का समर्थन करते हैं जो महिलाओं को सशक्त बनाती हैं.” नेता ने यह भी कहा कि इस बार चुनाव से पहले ऐसी योजनाओं के चलन और राजद द्वारा सत्ता में आने पर सभी महिलाओं को 2,500 रुपये नकद देने की घोषणा को देखते हुए नीतीश सरकार को “जवाब देने के लिए मजबूर” होना पड़ा. फिर भी, जद(यू) पदाधिकारी ने कहा, “MMRY सशक्तिकरण और नकद सहायता का एक मिला-जुला रूप है.”
अख़बार ने बेगूसराय, मुंगेर, जमुई, पटना, पश्चिम चंपारण, सीवान, गोपालगंज, मुज़फ़्फ़रपुर, दरभंगा और मधुबनी जैसे ज़िलों का दौरा किया, जहां महिला लाभार्थी न केवल मिले 10,000 रुपये के लिए आभारी हैं, बल्कि और ज़्यादा पाने के लिए कुछ करने को लेकर उत्साहित भी हैं. बेगूसराय के मटिहानी के चकबल्ली गांव की 35 वर्षीय सुमन कुमारी कहती हैं कि उनकी जान-पहचान की ज़्यादातर महिलाओं को पहली किश्त मिल गई है और वे “सोच रही हैं कि कौन सा व्यवसाय करें.” वे सभी खुश हैं कि “नीतीश कुमार ने हमारे बारे में सोचा.”
मुंगेर के तारापुर की निवासी और बिहार पुलिस में कांस्टेबल 30 वर्षीय प्रियंका कुमारी कहती हैं कि नीतीश सरकार के उपायों ने ही उन्हें यहां तक पहुंचने में मदद की है. “मैं अपने पूरे परिवार में कोई भी नौकरी पाने वाली पहली महिला हूं. यह तभी संभव हो सका क्योंकि नीतीश सरकार ने महिलाओं के लिए 35% कोटा शुरू किया.” प्रियंका कहती हैं कि ‘दस हज़ारी’ योजना अगली बड़ी छलांग होगी. बघा की 43 वर्षीय सावित्री देवी कहती हैं कि यह योजना ईश्वर का भेजा हुआ तोहफ़ा है. कुछ साल पहले पति को खोने के बाद, वह त्योहार के खर्चों को लेकर चिंतित थीं, तभी यह पैसा उनके खाते में आ गया.
सीवान के हुसैनगंज में, 63 वर्षीय पतासिया देवी कहती हैं कि भले ही उनका बेटा राजद का समर्थन करे, वह नीतीश को ही वोट देंगी. मधुबनी शहर में, साइकिल ठेले पर सामान ढोने वाले मोहम्मद गुलाब कहते हैं कि उनके परिवार के दो सदस्य एनडीए को वोट देंगे, और यह समझ में आता है. वह मुस्कुराते हुए कहते हैं, “मेरी पत्नी को सरकार से 10,000 रुपये मिले. नमक का हक़ तो अदा करना पड़ेगा.”
हालांकि, कुछ जगहों पर इस बात को लेकर असहजता भी है कि महिलाएं अब कैसे “खुद को मुखर” कर रही हैं. गोपालगंज के भोरे निर्वाचन क्षेत्र के बसुदेवा गांव में, राजेंद्र शर्मा इस बात से नाराज़ हैं कि उनकी पत्नी “एक छोटी सी बहस” के बाद अपने माता-पिता के घर चली गईं. वे कहते हैं, “नीतीश मेहरारुन के मनबढ़ू बना देलें बाड़न (नीतीश ने महिलाओं को अहंकारी बना दिया है).” राजनीतिक विश्लेषक प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि नीतीश की महिला योजनाओं की प्रेरणा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गरीबों और महिलाओं तक पहुंच थी.
डाटा जर्नलिज्म
भारत में हर घंटे 9 बाइकर्स की मौत क्यों है?
“इंडियास्पेंड” में प्राची साल्वे द्वारा किए गए राष्ट्रीय आंकड़ों के एक विश्लेषण से पता चलता है कि भारतीय सड़कें अपने सबसे कमजोर उपयोगकर्ताओं के लिए लगातार खतरनाक होती जा रही हैं. 2023 तक के एक दशक में, सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में 24% की वृद्धि होकर यह लगभग 173,000 हो गई, लेकिन पैदल चलने वालों की मौतें भी लगभग तीन गुना, दोपहिया वाहन चालकों की मौतें लगभग दोगुनी और साइकिल चालकों की मौतें 13% बढ़ गईं.
विशेष रूप से, दोपहिया वाहनों से होने वाली मौतें 2014 में कुल मौतों का 30% थीं, जो 2023 तक बढ़कर 45% हो गईं. कुल मिलाकर, 2014 में हर घंटे भारत में औसतन पांच दोपहिया सवारों की मौत होती थी. यह 2023 तक बढ़कर लगभग नौ मौतें प्रति घंटे हो गई. यह सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) का नवीनतम डेटा है. इसके विपरीत, सड़क उपयोगकर्ताओं की अन्य सभी श्रेणियों - कार, जीप, ट्रक, बस और ऑटोरिक्शा - में 2014 की तुलना में 2023 में कम मौतें देखी गईं.
पेरिसर के कार्यक्रम निदेशक रंजीत गाडगिल ने कहा कि यह कमी समग्र रूप से कुछ सुधार का संकेत देती है, यह देखते हुए कि राजमार्गों और वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है. उन्होंने समझाया, “लेकिन यह पैदल चलने वालों और मोटरसाइकिल चालकों जैसे कमजोर सड़क उपयोगकर्ताओं पर और भी ज़्यादा ध्यान केंद्रित करता है.”
गाडगिल ने दोपहिया वाहनों से होने वाली मौतों में वृद्धि के लिए तीन कारकों की ओर इशारा किया: पहला, दोपहिया वाहनों पर निर्भर लोगों की भारी संख्या. 2022 में, दोपहिया वाहनों का भारत भर में पंजीकृत वाहनों में 74% हिस्सा था. दूसरा, हेलमेट का उपयोग अभी भी एक बड़ी कमी है. गाडगिल ने समझाया, “पूरी तरह से सुरक्षित रहने के लिए, सवार और पीछे बैठने वाले दोनों को अच्छी गुणवत्ता वाले, आईएसआई-चिह्नित हेलमेट की ज़रूरत होती है जो ठीक से बंधे हों.” और तीसरा, गति एक बहुत बड़ा कारक है.
भारत की बढ़ती आय और अपर्याप्त सार्वजनिक परिवहन विकल्पों ने निजी वाहनों के उपयोग को तेज कर दिया है. दोपहिया वाहनों पर निर्भरता में वृद्धि, विशेष रूप से ग्रामीण और उप-नगरीय क्षेत्रों में, किफायती और विश्वसनीय सार्वजनिक परिवहन में लगातार कमी को दर्शाती है. एक और समूह जिसमें दोपहिया वाहनों का उपयोग बढ़ा है, वह है भारत के तेजी से बढ़ते ऑनलाइन खाद्य और किराने के उद्योग के लिए गिग वर्कर्स और डिलीवरी पार्टनर. आईआईटी दिल्ली की प्रोफेसर गीतम तिवारी ने बताया, “ड्राइवरों पर डिलीवरी समय सीमा को पूरा करने का लगातार दबाव रहता है, यही कारण है कि हम उन्हें समय सीमा को पूरा करने के लिए शॉर्टकट अपनाते हुए देखते हैं.”
MoRTH डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि ग्रामीण भारत में सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों का बहुमत (69%) है. ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च मृत्यु दर तेज ड्राइविंग गति, खराब हेलमेट अनुपालन, कमजोर प्रवर्तन और ट्रॉमा केयर तक सीमित पहुंच के कारण होती है. 2023 में मारे गए लगभग 75,000 भारतीय दोपहिया सवारों या पीछे बैठने वालों में से 73% ने हेलमेट नहीं पहना था. डेटा से पता चलता है कि ज़्यादातर मौतें राजमार्गों पर हुईं, जहां वाहनों की गति अधिक होती है. 68% सड़क दुर्घटना मौतों के लिए ओवरस्पीडिंग को ज़िम्मेदार ठहराया गया.
सेवलाइफ़ फ़ाउंडेशन के संस्थापक पीयूष तिवारी ने कहा, “भारत की वर्तमान दोपहिया लाइसेंसिंग प्रणाली योग्यता और सुरक्षा तत्परता के बजाय प्रक्रियात्मक जारी करने को प्राथमिकता देती है.”
पुलिस सुरक्षा तो छोड़िए, जान से मारने की धमकी के बावजूद FIR तक दर्ज नहीं की: राणा अय्यूब
अपने बेज रंग के सोफ़े पर हरे रंग की कलाकृतियों के बीच, पत्रकार राणा अय्यूब जैतूनी हरे कुशन पर झुकी हुई हैं. उनका घर अरबी रूपांकनों और पारंपरिक झरोखों से सजा हुआ है, जिसमें उनके परिवार द्वारा दुनिया के विभिन्न हिस्सों से इकट्ठा की गई कलाकृतियाँ हैं. नीले डेनिम और धारीदार शर्ट पहने, वह अपने दो फ़ोन और लैपटॉप के बीच उलझी हुई हैं, अपने दफ़्तर, वकीलों और पत्रकार संगठनों से आने वाले संदेशों की जाँच कर रही हैं. हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, नवी मुंबई में, द वाशिंगटन पोस्ट के लिए काम करने वाली 41 वर्षीय पत्रकार राणा अय्यूब पुलिस के लिए कोई नया चेहरा नहीं हैं.
दो दशकों से ज़्यादा समय से पत्रकारिता कर रहीं अय्यूब ने गुजरात दंगों पर खोजी रिपोर्टिंग की है, मणिपुर दंगों, भारत के मुसलमानों और हिंदू राष्ट्रवाद पर लिखा है, और अपनी किताब ‘गुजरात फाइल्स’ के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान हासिल की है. वह सालों से ऑनलाइन उत्पीड़न का सामना कर रही हैं और ‘हिंदू राष्ट्रवादी हैंडल्स’ द्वारा उनकी निजी जानकारी सार्वजनिक (डॉक्सिंग) की गई है. 2022 में, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अय्यूब पर कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जांच की थी. वह आयकर विभाग की जांच के दायरे में भी थीं. उनके अनुसार, देश के अलग-अलग हिस्सों में ‘दक्षिणपंथी ट्रोल्स द्वारा’ उनके ख़िलाफ़ कई मामले दर्ज किए गए हैं.
पिछले कुछ सालों में, उन्होंने उत्पीड़न का हवाला देते हुए पुलिस में कई शिकायतें दर्ज की हैं. हालांकि पुलिस ने पांच FIR दर्ज कीं, लेकिन उन पर कोई और कार्रवाई नहीं हुई. वह कहती हैं कि पुलिस ने एकमात्र सक्रिय क़दम पत्रकार-कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या के बाद उठाया था. तब पुलिस ने उन्हें रिवॉल्वर के लिए लाइसेंस की पेशकश की थी.
अय्यूब ने कहा, “आज पत्रकारिता खुद एक खतरा बन गई है. मुझे नहीं पता कि इस [ताज़ा] धमकी का कारण क्या है. इस धमकी से पहले एकमात्र चीज़ जो मुझे याद है, वह है इंस्टाग्राम पर मेरी पोस्ट [2 नवंबर, 2025], जिसमें मैंने 1984 के सिख विरोधी जनसंहार के बारे में लिखा था.” उनकी पोस्ट में, उनकी बचपन की तस्वीर और 1992 के दंगों के संदर्भ के साथ लिखा था, “रातों-रात, मेरा परिवार और मैं मुसलमान बन गए - एक ऐसा सदमा जो मेरे साथ रहा, जिसने मेरे बुरे सपनों, मेरे निजी और पेशेवर जीवन को आकार दिया. विडंबना यह है कि मैं इसे 1984 के सिख विरोधी जनसंहार की बरसी पर साझा कर रही हूँ. अन्याय से अन्याय ही पैदा होता है. अगर 1984 में न्याय मिला होता, तो 1992 के अपराधी - जिन्होंने मेरा बचपन बर्बाद कर दिया - आज सत्ता के उच्चतम सोपानों पर नहीं बैठे होते.”
उसी दिन, 2 नवंबर को, अय्यूब को एक कनाडाई नंबर से उनके व्हाट्सएप पर लगातार जान से मारने की धमकी मिली, जिसमें कहा गया कि अगर उन्होंने द वाशिंगटन पोस्ट में इंदिरा गांधी के हत्यारों का महिमामंडन करते हुए एक लेख प्रकाशित नहीं किया, तो उन्हें और उनके पिता को मार दिया जाएगा. कॉल करने वाले, जिसकी डिस्प्ले पिक्चर लॉरेंस बिश्नोई की थी और जिसका नाम हैरी शूटर के रूप में सूचीबद्ध था, ने उनका पता पोस्ट किया, उनके पिता के यात्रा के दौरान के स्थान को जानता था, और उन्हें चार वीडियो कॉल भी किए.
अय्यूब ने कहा, “मैंने हमेशा 1984 के सिख विरोधी जनसंहार का विरोध किया है और कई बार खुले तौर पर कहा है कि अगर कांग्रेस ने तब दोषियों को सज़ा दी होती, तो 1992 नहीं होता. भाजपा के मुस्लिम विरोधी रुख के ख़िलाफ़ होने का मतलब यह नहीं है कि मैं कांग्रेस समर्थक हूँ, और मैं उनकी ग़लतियों को नहीं उजागर करूँगी. एक पत्रकार का काम किसी का पक्ष लेना नहीं है. उसका काम सच बताना है.”
जब उन्होंने FIR दर्ज करने पर ज़ोर दिया, तो एक अधिकारी ने कहा, ‘ज़्यादा मत सोचो. उत्तर प्रदेश में किसी खालिस्तानी ने तुम्हारे पिता को देखा होगा.’ अय्यूब ने कहा, “मैं घबरा गई क्योंकि वह व्यक्ति [जिसने 2 नवंबर को फोन किया] मेरे पिता का सटीक स्थान जानता था. मैं नवी मुंबई पुलिस के पास पहुंची. मुझे नहीं पता कि वह व्यक्ति लॉरेंस बिश्नोई गिरोह से है, या किसी सरकारी एजेंसी का मुखौटा है, या कोई और. यह तथ्य कि यह व्यक्ति मेरा सटीक पता, मेरे परिवार के सदस्यों का स्थान जानता था, मुझे डर था कि इसमें निगरानी शामिल है. मैं अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए डरी हुई हूँ.”
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने उनकी सुरक्षा के लिए चिंता व्यक्त की है और उनके लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की है. “लेकिन पुलिस सुरक्षा देना तो भूल जाइए, उन्होंने अभी तक FIR भी दर्ज नहीं की है,” वह अपनी शिकायतों की प्रतियां दिखाते हुए कहती हैं. पुलिस ने एक गैर-संज्ञेय अपराध (NC) दर्ज किया है.
इस बीच, नवी मुंबई पुलिस ने कहा कि वे मामले में दर्ज एनसी के आधार पर फॉरेंसिक जांच कर रहे हैं. पुलिस उपायुक्त पंकज दहाने ने कहा, “हमने एनसी की जांच करने की अनुमति ले ली है.” नवी मुंबई के पुलिस आयुक्त मिलिंद भारंबे ने कहा कि मामले में फॉरेंसिक जांच चल रही है क्योंकि यह एक अंतरराष्ट्रीय नंबर के साथ वीओआईपी कॉल थी. “लेकिन अगर यह कनाडा का नंबर है, तो चुनौतियां होंगी,” उन्होंने कहा.
भारत के 70% से ज़्यादा कैदियों को अभी तक दोषी नहीं पाया गया है: सुप्रीम कोर्ट के जज
भारत की जेलों में बंद 70% से ज़्यादा लोग ऐसे हैं जिन्हें अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है, लेकिन वे जेलों में बंद हैं. यह बात सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ ने शुक्रवार को कही. वह हैदराबाद की नालसर यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ (NALSAR) की एक रिपोर्ट जारी करने के अवसर पर बोल रहे थे. द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस नाथ ने इस बात पर चिंता जताई कि ज़्यादातर विचाराधीन कैदियों को यह भी नहीं पता होता कि उन्हें मुफ़्त कानूनी सहायता का अधिकार है.
जस्टिस नाथ ने कहा, “74% विचाराधीन कैदियों में से केवल 7.91% ने ही उन्हें उपलब्ध कानूनी सहायता का उपयोग किया है. यहां तक कि जिन मामलों में वे जानते भी हैं, वे अक्सर पिछले अनुभवों से उपजे अविश्वास के कारण इसे लेने से बचते हैं.” उन्होंने कहा कि ज़्यादातर विचाराधीन कैदी किसी निजी वकील को नियुक्त करना पसंद करते हैं, यह मानते हुए कि अगर वे किसी को भुगतान करते हैं, तो वह उस व्यक्ति से बेहतर काम करेगा जिसे इससे कुछ नहीं मिल रहा है.
रिपोर्ट जारी करने के कार्यक्रम में 36 वर्षीय वनिता देवी (बदला हुआ नाम) का मामला भी सामने आया, जिन पर 2017 में अपने तीन और छह साल के दो बच्चों की हत्या का आरोप है. 16 साल की उम्र में शादी के बाद, उन्होंने अपना ज़्यादातर जीवन घरेलू हिंसा में बिताया. परिवार द्वारा त्याग दिए जाने के बाद, उन्होंने बिना किसी उम्मीद के पांच साल से ज़्यादा जेल में बिताए. उन्हें अंततः 2022 में ज़मानत मिली, जिसका श्रेय नालसर यूनिवर्सिटी के फेयर ट्रायल प्रोग्राम (FTP) की एक टीम को जाता है.
स्क्वायर सर्किल क्लिनिक-नालसर (जिसे पहले प्रोजेक्ट 39ए-एनएलयू के नाम से जाना जाता था) ने अपनी 2019 से 2024 की रिपोर्ट में कहा कि उनके द्वारा निपटाए गए 5,783 मामलों में से 41.3% आरोपियों के पास मुकदमे के लिए कोई वकील नहीं था और 77% का अपने परिवारों से कोई संपर्क नहीं था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 72% विचाराधीन कैदियों ने स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं की थी और 51% के पास मुकदमे के लिए आवश्यक दस्तावेज़ नहीं थे. रिपोर्ट के अनुसार, 52% विचाराधीन कैदी 30 वर्ष से कम उम्र के थे और 67.6% वंचित जाति समूहों से थे.
जस्टिस नाथ ने कहा कि विचाराधीन कैदियों द्वारा जेल में बिताया गया समय अक्सर उस अपराध की अधिकतम सज़ा से भी ज़्यादा हो जाता है, जिसके लिए उन पर आरोप लगाया गया है. उन्होंने कहा, “ऐसे विचाराधीन कैदी हैं जिन पर ज़मानती अपराधों के आरोप हैं जो केवल इसलिए हिरासत में रहते हैं क्योंकि वे ज़मानत नहीं दे सके. ऐसे विचाराधीन कैदी हैं जिन्हें बरी कर दिया गया होता या निलंबित सज़ा दी गई होती, अगर उनका मुकदमा समय पर पूरा हो गया होता - फिर भी वे सड़ते रहते हैं.”
उन्होंने कानूनी शिक्षा के तरीक़े में बदलाव का भी आह्वान किया. जस्टिस नाथ ने कहा, “हर लॉ स्कूल को कानूनी सहायता क्लीनिक को ऐसी जगहों के रूप में देखना चाहिए जहां न्याय जीवित होता है, न कि एक सूची से चेक किए जाने वाले अतिरिक्त काम के रूप में.”
स्कूली बच्चों को कागज़ के टुकड़ों पर परोसा मिड-डे मील, राहुल गांधी ने भाजपा पर निशाना साधा
मध्य प्रदेश के एक स्कूल में बच्चों को मिड-डे मील कागज़ के टुकड़ों पर परोसे जाने का एक वीडियो वायरल होने के बाद प्रशासन ने सख़्त कार्रवाई की है. इस घटना पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोला है. इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर के अनुसार, इस मामले में एक स्वयं सहायता समूह (SHG) का अनुबंध रद्द कर दिया गया है, प्रधानाध्यापक को निलंबित कर दिया गया है और अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है.
यह घटना विजयपुर ब्लॉक के हुल्लपुर गांव के एक स्कूल की है. 6 नवंबर को ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने स्कूल का निरीक्षण किया और अपनी रिपोर्ट में बताया कि हुल्लपुर में प्राथमिक और मध्य विद्यालय एक ही परिसर में चलते हैं, और मिड-डे मील तैयार करने और परोसने की ज़िम्मेदारी ‘जय संतोषी मां स्वयं सहायता समूह’ की थी. समूह में पांच रसोइए हैं - तीन खाना पकाने के लिए और दो बर्तन साफ़ करने के लिए. घटना के दिन, दोनों सफ़ाई कर्मचारी अनुपस्थित थे, जिसके कारण बर्तन नहीं धुले थे. उनकी अनुपस्थिति में, स्कूल के कर्मचारियों ने कथित तौर पर कागज़ की शीट पर खाना परोसा, जिसका एक वीडियो 4 नवंबर को वायरल हो गया.
6 नवंबर को, एमडीएम निगरानी समिति ने जय संतोषी मां एसएचजी के अनुबंध को रद्द करने की सिफ़ारिश करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया. अगले दिन अनुबंध औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया. अब मिड-डे मील तैयार करने और परोसने की ज़िम्मेदारी स्कूल प्रबंधन समिति (SMC) को हस्तांतरित कर दी गई है. योजना के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में विफल रहने पर प्रधानाध्यापक को निलंबित कर दिया गया, और निगरानी में लापरवाही के लिए क्लस्टर अकादमिक समन्वयक और ब्लॉक संसाधन केंद्र समन्वयक को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए.
इस वीडियो को अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट करते हुए, राहुल गांधी ने लिखा, “मैं आज मध्य प्रदेश जा रहा हूं. जब से मैंने ख़बर देखी कि वहां बच्चों को अख़बारों पर मिड-डे मील परोसा जा रहा है, मेरा दिल टूट गया है.” उन्होंने आगे लिखा, “ये वही मासूम बच्चे हैं जिनके सपनों पर देश का भविष्य टिका है, और उन्हें सम्मान की एक थाली भी नहीं मिल रही है. 20 साल से ज़्यादा की भाजपा सरकार, और उन्होंने बच्चों की थाली भी चुरा ली - उनका ‘विकास’ सिर्फ़ एक भ्रम है, उनके सत्ता में आने का असली राज ‘व्यवस्था’ है. ऐसे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को देश के बच्चों, भारत के भविष्य को इस दयनीय स्थिति में रखने के लिए शर्म आनी चाहिए.”
घटना के बाद, एक ज़िला-स्तरीय समिति का भी गठन किया गया है ताकि विस्तृत जांच की जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस तरह की चूक दोबारा न हो. शिक्षा विभाग ने अपनी निगरानी प्रणाली को मज़बूत करने के लिए क़दम उठाए हैं. अब सभी ज़िला और ब्लॉक-स्तरीय अधिकारियों को हर महीने कम से कम पांच स्कूलों का औचक निरीक्षण करना होगा, जिसके लिए एक गूगल फॉर्म-आधारित निगरानी प्रणाली शुरू की गई है.
एयर इंडिया दुर्घटना पर दोषारोपण का खेल जारी
भारत में एक विमान दुर्घटना के लगभग पांच महीने बाद, जिसमें 260 लोग मारे गए थे, जांच विवादों में घिर गई है - और अब देश के सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर अपनी राय दी है. उड़ान संख्या 171, 12 जून को पश्चिमी भारत के अहमदाबाद से लंदन जा रही थी. उड़ान भरने के ठीक 32 सेकंड बाद यह एक इमारत से टकरा गई.
बीबीसी के मुताबिक जुलाई में एक अंतरिम रिपोर्ट जारी की गई थी, लेकिन आलोचकों का तर्क है कि इसमें अनुचित रूप से पायलटों की कार्रवाइयों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे विमान में संभावित खराबी से ध्यान हट गया. शुक्रवार को, भारत के सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि कोई भी विमान के कप्तान को दोष नहीं दे सकता. उनकी यह टिप्पणी एयरलाइन के बॉस द्वारा यह जोर दिए जाने के एक सप्ताह बाद आई कि विमान में कोई समस्या नहीं थी.
अक्टूबर के अंत में नई दिल्ली में एविएशन इंडिया 2025 शिखर सम्मेलन में एक पैनल चर्चा के दौरान, एयर इंडिया के मुख्य कार्यकारी कैंपबेल विल्सन ने स्वीकार किया कि यह दुर्घटना “शामिल लोगों, इसमें शामिल लोगों के परिवारों और कर्मचारियों के लिए बिल्कुल विनाशकारी” थी. लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय अधिकारियों द्वारा प्रारंभिक जांच में “संकेत दिया गया था कि विमान, इंजन या एयरलाइन के संचालन में कुछ भी गलत नहीं था.”
दुर्घटना के एक महीने बाद, भारत के एयर एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) ने एक प्रारंभिक रिपोर्ट प्रकाशित की. इस 15-पृष्ठ की रिपोर्ट विवादास्पद साबित हुई. ऐसा मुख्य रूप से दो छोटे पैराग्राफ की सामग्री के कारण है. पहला, इसमें कहा गया है कि टेकऑफ़ के कुछ सेकंड बाद, ईंधन कटऑफ स्विच - जो आमतौर पर उड़ान से पहले इंजन शुरू करने और बाद में उन्हें बंद करने के लिए उपयोग किए जाते हैं - को “रन” स्थिति से कटऑफ स्थिति में ले जाया गया था. इससे इंजनों को ईंधन मिलना बंद हो गया होगा, जिससे उनका थ्रस्ट तेजी से कम हो गया होगा. स्विच को इंजन को फिर से शुरू करने के लिए वापस ले जाया गया, लेकिन तबाही को रोकने में बहुत देर हो चुकी थी.
फिर रिपोर्ट कहती है: “कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डिंग में, एक पायलट को दूसरे से यह पूछते हुए सुना जाता है कि उसने ईंधन क्यों काटा. दूसरे पायलट ने जवाब दिया कि उसने ऐसा नहीं किया.” इस अप्रत्यक्ष रूप से रिपोर्ट की गई बातचीत ने दोनों पायलटों, कैप्टन सुमीत सभरवाल और उनके पहले अधिकारी क्लाइव कुंदर की भूमिका के बारे में तीव्र अटकलों को जन्म दिया.
पीड़ितों के परिवारों की ओर से काम कर रहे एक वकील माइक एंड्रयूज का मानना है कि जिस तरह से जानकारी जारी की गई है, उसने “लोगों को पूरी जानकारी के बिना उन पायलटों को अनुचित और अनुपयुक्त रूप से दोष देने के लिए प्रेरित किया है.”
यह विचार सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन के संस्थापक कैप्टन अमित सिंह द्वारा भी प्रतिध्वनित होता है. उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें दावा किया गया है कि उपलब्ध साक्ष्य “इंजन बंद होने के प्राथमिक कारण के रूप में एक बिजली की गड़बड़ी के सिद्धांत का दृढ़ता से समर्थन करते हैं.” उनका मानना है कि एक बिजली की खराबी ने फुल अथॉरिटी डिजिटल इंजन कंट्रोल (FADEC) को ईंधन की आपूर्ति काटकर शटडाउन शुरू करने का कारण बनाया हो सकता है. इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस मुद्दे पर टिप्पणी की है. न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कैप्टन सुमीत सभरवाल के पिता पुष्करराज सभरवाल से कहा, “यह दुर्घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन आपको यह बोझ नहीं उठाना चाहिए कि आपके बेटे को दोषी ठहराया जा रहा है. कोई भी उसे किसी भी चीज़ के लिए दोषी नहीं ठहरा सकता.”
पुरुषों को टी20 जीत के लिए ₹125 करोड़ तो महिलाओं को सिर्फ ₹51 करोड़
बीसीसीआई ने भारतीय महिला टीम की हालिया विश्व कप जीत को भले ही “1983 के क्षण” के रूप में बताया हो, लेकिन पुरुषों को टी20 जीत के लिए जहां ₹125 करोड़ मिले, वहीं भारतीय महिला क्रिकेट टीम (कर्मचारियों सहित) को हर 4 साल में आने वाले विश्व कप के लिए ₹51 करोड़ मिले. शारदा उग्रा ने बीसीसीआई के लिंगभेद पर लिखा है- “महिलाओं के लिए कोई विजय परेड नहीं, कोई समानता नहीं.”
“आज, विश्व कप जीतने के बाद नकद पुरस्कार में अंतर यह दिखलाता है कि बीसीसीआई को महिला खेल की प्रगति में अपने योगदान के बारे में बिना रुके, आत्म-प्रशंसा में लिप्त होने से भले कोई शर्म-संकोच न हो, लेकिन महिला टीम के लिए अपना पैसा लगाने में वह कितना असमर्थ है. जबकि, स्पष्ट रूप से उसका काम ही है खेल और खिलाड़ियों की चिंता करना.
राज्य क्रिकेट अनुबंधों को औपचारिक रूप देने की तो बात ही छोड़िए, बीसीसीआई बेतरतीब ढंग से नकदी जारी करने की सामंती शक्ति को छोड़ने के डर से अपनी राष्ट्रीय टीम के लिए एक पेशेवर बोनस संरचना स्थापित करने से भी कतराता है. फिर भी यह अपने स्वयं के भत्तों को बढ़ाने में कोई समय नहीं गंवाता है. वे अधिकारी, जो महिला विश्व कप फाइनल के ठीक बाद दुबई में आईसीसी की बैठक के लिए दौड़े थे- वे प्रतिदिन 1000 यूएस डॉलर के विदेशी भत्ते पर हैं, जबकि खिलाड़ी 250 यूएस डॉलर पर हैं.”
अगले वर्ष टी20 वर्ल्ड कप की मेजबानी भारत-श्रीलंका को, पाकिस्तान अपने मैच श्रीलंका में खेलेगा
टूर्नामेंट शुरू होने में सिर्फ तीन महीने बाकी हैं, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने 2026 टी20 विश्व कप के लिए स्थानों को शॉर्टलिस्ट किया है, जिसकी संयुक्त मेजबानी भारत और श्रीलंका करेंगे. टूर्नामेंट अगले साल 7 फरवरी से शुरू होने वाला है, जिसका फाइनल 8 मार्च को अहमदाबाद में खेला जाएगा. “ईएसपीएनक्रिकइन्फो” की एक रिपोर्ट के अनुसार, आईसीसी अगले सप्ताह पूरा कार्यक्रम जारी करने की उम्मीद कर रहा है, जबकि इवेंट शुरू होने में सिर्फ तीन महीने बाकी हैं. भाग लेने वाले अधिकतर राष्ट्र कथित तौर पर टीम समूहों और अन्य विवरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं. टूर्नामेंट के लिए टिकट की जानकारी भी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है. बीसीसीआई और पीसीबी के बीच एक समझौते के अनुसार, पाकिस्तान अपने सभी मैच श्रीलंका में खेलेगा, जो बहु-राष्ट्र टूर्नामेंट के दौरान तटस्थ स्थल के रूप में काम करेगा. अगर पाकिस्तान फाइनल में पहुंचता है, तो वह मैच भी श्रीलंका में होगा.
देश के गृह राज्य मंत्री के इस्लाम का डर दिखाने वाले नफरती बोल, कहा-“भारत को मुस्लिम देश में बदलना इनका लक्ष्य”
मोदी सरकार में गृह राज्य मंत्री बंदी संजय कुमार ने जुबली हिल्स विधानसभा उपचुनाव में इस्लाम का डर दिखाया. अपने भाषण में कहा कि मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी तेलंगाना को मुस्लिम राज्य में बदलने की साजिश रच रहे हैं. उन्होंने हिंदुओं को ओवैसी के कथित सपने के बारे में सतर्क रहने की चेतावनी दी, जिसके तहत वह 2047 तक भारत को एक मुस्लिम देश में बदलने का लक्ष्य रखते हैं. रेड्डी को ऐसा कहते समय यह भी याद नहीं रहा कि मोदी सरकार द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत का पक्ष रखने दुनिया भर में जिन लोगों को भेजा गया था, उनमें ओवैसी भी एक प्रतिनिधि थे. लेकिन, चुनाव कहीं भी हो, अक्सर देखा गया है कि भाजपा का नेतृत्व अंततोगत्वा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के आख्यान को स्थापित करने में ही जुट जाता है. गृह राज्य मंत्री बंदी संजय कुमार के नफरती बोल यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा, “सिर कटा लूंगा, पर वोटों के लिए गोल टोपी नहीं पहनूँगा. मैं एक निडर हिंदू हूं.” “मकतूब मीडिया” की रिपोर्ट के अनुसार, बंदी ने कांग्रेस उम्मीदवार नवीन यादव को “नवीन खान” और बीआरएस की उम्मीदवार मगंती सुनीता को “सुनीता बेगम” कहकर संबोधित किया और कहा कि “ये लोग अगर चुनाव जीत गए तो सारे कम्युनिटी हॉल मस्जिदों में तब्दील हो जाएंगे. सड़कों पर खून बहेगा. दशहरा और विनायक चविथि (चतुर्थी) जैसे पर्व नहीं मनाए जा सकेंगे.”
ट्रम्प ने अब कहा- 8 जेट गिराए गए थे, मोदी के न्यौते पर अगले साल भारत की यात्रा कर सकता हूं
हालिया व्यापार तनावों में कमी का संकेत देते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अब कहा है कि नई दिल्ली के साथ बातचीत सुचारू रूप से चल रही है और संकेत दिया कि वह अगले साल दोनों देशों के बीच आर्थिक और रणनीतिक सहयोग को मजबूत करने के लिए भारत की यात्रा कर सकते हैं. “ब्लूमबर्ग” के अनुसार, पत्रकारों को संबोधित करते हुए ट्रम्प ने कहा कि पीएम मोदी के साथ उनकी बातचीत बहुत अच्छी चल रही है. उन्होंने कहा कि मोदी ने उन्हें भारत आमंत्रित किया था और वह यात्रा करने के लिए तैयार हैं.
एक बार फिर ‘युद्धों को रोकने’ के लिए अपनी पीठ थपथपाते हुए, उन्होंने दावा किया कि भारत-पाकिस्तान सैन्य टकराव के दौरान आठ विमान गिराए गए थे. उन्होंने कहा कि आठवां वाला वास्तव में बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था. ट्रम्प ने यह भी दावा किया कि व्यापार प्रतिबंध लगाने की उनकी धमकियों ने दोनों देशों को संघर्ष विराम पर सहमत होने के लिए मजबूर किया. इससे पहले भी ट्रम्प ने बार-बार दावा किया है कि मई में भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान सैन्य जेट विमानों को मार गिराया गया था, हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस दावे का खंडन किया है. उन्होंने शुरू में यह संख्या पांच बताई थी, और एक महीने बाद इसे बढ़ाकर “सात जेट” गिराए जाने का दावा किया था.
म्यांमार से भागे 270 भारतीयों को अभी घर नहीं जाने देंगे
“द हिंदू” की खबर है कि म्यांमार के साइबर स्कैम कंपाउंड्स में काम करने वाले भारतीय नागरिकों से पहले पूछताछ की जाएगी और अभी उन्हें घर नहीं भेजा जाएगा. रोजगार अवधि के दौरान उनकी गतिविधियों के बारे में सवाल किये जाएंगे. भारत अपने इन 270 नागरिकों, जिनमें 26 महिलाएं भी शामिल हैं, को 6 नवंबर को वापस लेकर आया है. इन सभी ने अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में म्यांमार सेना की कार्रवाई के बाद वहां से भागकर थाईलैंड की शरण ली थी. कल्लोल भट्टाचार्जी की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अधिकारी उन गतिविधियों में रुचि रखते हैं, जिनमें भारतीय नागरिक म्यांमार में शामिल थे. वे म्यांमार कैसे पहुंचे, और भारतीयों को वहां जाने से कैसे रोका जा सकता है?
जेएनयू में वामपंथ का फिर दबदबा, छात्र संघ चुनाव में शानदार जीत से एबीवीपी को झटका
वाम एकता ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में अपना गढ़ बरकरार रखते हुए, छात्र संघ चुनावों में सभी चारों केंद्रीय पैनल पदों पर जीत दर्ज करके इस बार फिर शानदार सफलता हासिल की है. जबकि दक्षिणपंथी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को तगड़ा झटका लगा है.
अखिल भारतीय छात्र संघ (आइसा), स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ) के गठबंधन ने चुनाव में जीत हासिल की और परिसर में अपना प्रभुत्व फिर से स्थापित किया. अदिति मिश्रा ने आरएसएस समर्थित एबीवीपी के विकास पटेल को 449 वोटों से हराकर अध्यक्ष का पद जीता. किझाकूट गोपिका बाबू ने तान्या कुमारी को हराकर उपाध्यक्ष का पद हासिल किया, जबकि सुनील यादव और दानिश अली ने क्रमशः अपने दक्षिणपंथी प्रतिद्वंद्वियों राजेश्वर कांत दुबे और अनुज को हराकर महासचिव और संयुक्त सचिव के पद जीते.
“द हिंदू” के अनुसार, इस साल, लगभग 9,043 छात्र वोट देने के पात्र थे. चुनावों में 67% मतदान दर्ज किया गया, जो पिछले चुनाव के 70.5% से थोड़ा कम है.
आरपीएफ की हिरासत में दलित हत्या, तीन अफसरों पर केस
उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले में तैनात रेलवे सुरक्षा बल के तीन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एक दलित व्यक्ति की हत्या के आरोप में मामला दर्ज किया गया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने अपनी हिरासत में एक दलित व्यक्ति को प्रताड़ित कर मार डाला. मृतक के भाई ने “द टेलीग्राफ” के पीयूष श्रीवास्तव से बात करते हुए बताया कि आरपीएफ कर्मियों ने एक मालगाड़ी से पेट्रोल चोरी की घटना के संबंध में पूछताछ के लिए उसे अपने साथ लिया था. उन्होंने कहा, “हमने उसके शरीर पर कई गहरे चोट के निशान देखे जैसे कि उसे लोहे की छड़ों और चाकुओं से मारा गया हो.” श्रीवास्तव ने पुलिस सूत्रों के हवाले से बताया कि व्यक्ति के गांव के दलित बड़ी संख्या में उसकी मौत के विरोध में वहां जमा हो गए थे.
असम का नेल्ली नरसंहार : हिमंता को 42 साल बाद याद आई, कहीं जुबीन गर्ग तो वजह नहीं!
असम के नेल्ली नरसंहार के 42 साल बाद, जिसमें मतदाता सूची में कथित विदेशियों के खिलाफ असम आंदोलन के दौरान असमिया और तिवा लोगों की भीड़ द्वारा लगभग 1,800 बंगाली भाषी मुसलमानों को मार डाला गया था, मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा है कि उनकी सरकार इस महीने त्रिभुवन प्रसाद तिवारी आयोग की रिपोर्ट पेश करेगी, जिसका गठन घटना की परिस्थितियों की जांच के लिए किया गया था. रोकिबुज ज़मान याद करते हैं कि 18 फरवरी, 1983 को क्या हुआ था, तिवारी आयोग की रिपोर्ट क्या कहती है और क्या नहीं कहती है और स्थानीय राजनेताओं ने इसके साथ क्या किए जाने का दावा किया है? नरसंहार में अपने 12 परिवार के सदस्यों को खोने वाले सोलेमान कासमी ने ज़मान से कहा, “हम नहीं जानते कि 42 साल बाद, सरकार अब रिपोर्ट क्यों जारी कर रही है... इतनी सारी सरकारें आईं और चली गईं. हिमंता स्वयं पिछली कांग्रेस सरकारों में एक शक्तिशाली मंत्री थे, लेकिन तब इसे जारी नहीं किया गया था. हो सकता है कि कोई छुपा मंतव्य हो... शायद सरकार जुबीन गर्ग के आसपास के विरोध प्रदर्शनों को दबाना चाहती हो.”
शादी के 8 साल, पति तब से ही भारत की गिरफ्त में, पत्नी ‘असहनीय रूप से दुखी’
“बीबीसी” के अनुसार, ब्रिटिश नागरिक जगतर सिंह जोहल की पत्नी गुरप्रीत कौर, जो खालिस्तानी आतंकवादी समूहों से संबंध रखने और उन्हें वित्त पोषित करने के आरोपों में नवंबर 2017 से भारतीय हिरासत में हैं, ने कहा है कि वह अपने पति की लंबी कैद को लेकर काफी दुखी हैं. क्योंकि उनकी शादी के तुरंत बाद ही ऐसा हो गया था. उन्होंने एक कानूनी चैरिटी के माध्यम से जारी एक बयान में कहा, “मैं उन वर्षों, उस जीवन के बारे में सोचती हूं, जो हमसे छीन लिया गया है.” जोहल के समर्थकों ने आरोप लगाया है कि पंजाब पुलिस ने उन्हें प्रताड़ित किया और उन्हें कबूलनामा पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया. मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के एक कार्य समूह ने 2022 में कहा था कि उनकी गिरफ्तारी मनमानीपूर्ण कार्रवाई थी. जोहल को इस साल की शुरुआत में उनके खिलाफ एक मामले में बरी कर दिया गया था, लेकिन आठ अन्य मामले उनके खिलाफ लंबित हैं.
यूके ने भारतीय एजेंटों को निज्जर की हत्या से जोड़ने वाली खुफिया जानकारी साझा की थी
“ब्लूमबर्ग” की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूनाइटेड किंगडम (यूके) पहला देश था, जिसने कनाडाई सरकार को भारतीय एजेंटों को खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हुई हत्या और साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम में गुरपतवंत सिंह पन्नू और अवतार सिंह खंडा को निशाना बनाने की साजिशों से जोड़ने वाली खुफिया जानकारी प्रदान की थी.
रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटिश खुफिया एजेंसी ने जुलाई 2023 के अंत में कनाडा के साथ एक फाइल साझा की थी, जिसमें यूके की सिग्नल खुफिया एजेंसी, गवर्नमेंट कम्युनिकेशंस हेडक्वार्टर (जीसीएचक्यू) द्वारा इंटरसेप्ट की गई (अवरोधित) बातचीत का विवरण शामिल था.
समाचार एजेंसी ने कहा, “यह यूके की सिग्नल खुफिया एजेंसी, गवर्नमेंट कम्युनिकेशंस हेडक्वार्टर द्वारा इंटरसेप्ट की गई बातचीत का सारांश और विश्लेषण था, जो उन व्यक्तियों के बीच हुई थी, जिनके बारे में ब्रिटिश विश्लेषकों का मानना था कि वे भारत सरकार की ओर से काम कर रहे थे.” इस इंटरसेप्टेड बातचीत में, जो वर्ष की शुरुआत में हुई थी, कथित तौर पर तीन व्यक्तियों – कनाडा में निज्जर, संयुक्त राज्य अमेरिका में पन्नू और यूनाइटेड किंगडम में खंडा – को निशाना बनाने की योजनाओं पर चर्चा की गई थी.
दस्तावेज में निज्जर के हत्यारों या जिनकी बातचीत इंटरसेप्ट की गई थी, उनका नाम नहीं था, “लेकिन ब्रिटिश विश्लेषकों ने निष्कर्ष निकाला कि इस बात की प्रबल संभावना है कि निज्जर की हत्या भारतीय राज्य द्वारा निर्देशित एक ऑपरेशन में की गई थी.” रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि ब्रिटिश दस्तावेज़ प्राप्त होने के एक घंटे के भीतर, कनाडा की राष्ट्रीय सुरक्षा और खुफिया सलाहकार, जोडी थॉमस ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को जानकारी दी, जिससे सितंबर 2023 में ट्रूडो के इस सार्वजनिक आरोप के पीछे की खुफिया जानकारी पर नया प्रकाश पड़ता है कि भारतीय एजेंट निज्जर की हत्या में शामिल थे.
तुर्किए ने नेतन्याहू के ख़िलाफ़ नरसंहार का गिरफ़्तारी वारंट जारी किया
तुर्किए ने शुक्रवार (8 नवंबर, 2025) को घोषणा की कि उसने गाज़ा में युद्ध को लेकर इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनकी सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ नरसंहार के आरोप में गिरफ़्तारी वारंट जारी किया है. इस घोषणा पर इज़राइल ने कड़ी प्रतिक्रिया दी. इज़राइल के विदेश मंत्री गिदोन सार ने कहा कि इज़राइल इन आरोपों को “अवमानना के साथ दृढ़ता से खारिज करता है” और इसे “(तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप) एर्दोआन का नवीनतम पीआर स्टंट” बताया.
इस्तांबुल के अभियोजक कार्यालय ने एक बयान में कहा कि कुल 37 संदिग्धों को गिरफ़्तारी वारंट का निशाना बनाया गया है, हालांकि पूरी सूची प्रदान नहीं की गई है. इनमें इज़राइली रक्षा मंत्री इज़राइल काट्ज़, राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतमार बेन ग्विर और सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल इयाल ज़मीर शामिल हैं. तुर्किए ने अधिकारियों पर “नरसंहार और मानवता के ख़िलाफ़ अपराध” का आरोप लगाया है, जिसे इज़राइल ने गाज़ा में “व्यवस्थित रूप से अंजाम दिया है.” बयान में “तुर्की-फ़िलिस्तीनी मैत्री अस्पताल” का भी ज़िक्र है, जिसे तुर्किए ने गाज़ा पट्टी में बनाया था और मार्च में इज़राइल ने उस पर बमबारी की थी.
तुर्किए, जो गाज़ा में युद्ध के सबसे मुखर आलोचकों में से एक रहा है, पिछले साल दक्षिण अफ़्रीका के उस मामले में शामिल हो गया था जिसमें अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में इज़राइल पर नरसंहार का आरोप लगाया गया था. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की क्षेत्रीय शांति योजना के हिस्से के रूप में 10 अक्टूबर से तबाह फ़िलिस्तीनी क्षेत्र में एक नाज़ुक युद्धविराम लागू है. इस्लामी आतंकवादी समूह हमास ने तुर्किए की घोषणा का स्वागत करते हुए इसे एक “सराहनीय उपाय” कहा.
सार ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म “एक्स” पर अंग्रेज़ी में अपनी पोस्ट में कहा कि “एर्दोआन के तुर्किए में, न्यायपालिका लंबे समय से राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को चुप कराने और पत्रकारों, न्यायाधीशों और महापौरों को हिरासत में लेने का एक उपकरण बन गई है.” इज़राइल के पूर्व विदेश मंत्री एविग्डोर लिबरमैन ने “एक्स” पर लिखा कि वरिष्ठ इज़राइली अधिकारियों के लिए गिरफ़्तारी वारंट “स्पष्ट रूप से समझाते हैं कि तुर्किए को गाज़ा पट्टी में - प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से - क्यों मौजूद नहीं होना चाहिए.”
तुर्किए, ट्रंप की योजना के अनुसार, युद्ध के बाद गाज़ा में भूमिका निभाने के लिए बनाए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय बल में भाग लेना चाहता है. लेकिन अंकारा के प्रयास, जिसमें क्षेत्र में राजनयिक संपर्क बढ़ाना और संयुक्त राज्य अमेरिका के इज़राइल-समर्थक रुख को प्रभावित करने की कोशिश करना शामिल है, को इज़राइल में अनुकूल रूप से नहीं देखा जाता है, जो तुर्किए को हमास के बहुत करीब मानता है.
धूल पट्टी की दीवारों से मैगसेसे तक: कैसे राजस्थान के एक गांव के विचार ने ‘एशिया का नोबेल’ जीता
राजस्थान के ग्रामीण इलाके में पैदा हुआ एक विचार मनीला तक का सफ़र तय कर चुका है. ‘एजुकेट गर्ल्स’, एक घरेलू गैर-लाभकारी संगठन जिसने लाखों भारतीय लड़कियों को क्लासरूम में वापस लाने में मदद की है, को शुक्रवार को रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसे अक्सर एशिया का नोबेल पुरस्कार कहा जाता है. यह पुरस्कार, जिसकी घोषणा पहली बार अगस्त में की गई थी, फिलीपींस की राजधानी के मेट्रोपॉलिटन थिएटर में औपचारिक रूप से प्रदान किया गया, जहां संस्थापक सफीना हुसैन ने अपनी जमीनी टीम के सदस्यों के साथ यह सम्मान स्वीकार किया.
2007 में शुरू हुआ, ‘एजुकेट गर्ल्स’ राजस्थान के धूल भरे गांवों में एक मामूली प्रयास के रूप में शुरू हुआ था, जहां लड़कियों की शिक्षा अक्सर घरेलू कामों और बाल विवाह के कारण पीछे रह जाती थी. समय के साथ, यह बदलाव के लिए एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन बन गया, जो अब उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार के 30,000 से अधिक गांवों में काम कर रहा है. 55,000 से अधिक सामुदायिक स्वयंसेवकों के समर्थन से, संगठन बीस लाख से अधिक लड़कियों को स्कूल वापस लेकर लाया है और 24 लाख से अधिक बच्चों को उपचारात्मक शिक्षण सहायता प्रदान की है.
मनीला में मंच पर आते हुए, हुसैन ने यह पुरस्कार उन लड़कियों और सामुदायिक कार्यकर्ताओं को समर्पित किया जो इस पहल की रीढ़ हैं. उन्होंने कहा, “यह पुरस्कार हमारी लड़कियों के लिए है - उनके साहस, धैर्य और लचीलेपन के लिए. वे लड़कियां जो दिन में घर संभालती हैं और देर रात तक पढ़ाई करती हैं ताकि अपने, अपने परिवारों और अपने देश के लिए एक बेहतर भविष्य बना सकें.”
उन्होंने ‘एजुकेट गर्ल्स’ की सफलता का श्रेय इसके ‘टीम बालिका’ स्वयंसेवकों को भी दिया - स्थानीय युवा जो घर-घर जाकर माता-पिता को अपनी बेटियों को स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए मनाते हैं. हुसैन ने कहा, “जब समुदाय लड़कियों को शिक्षित करने के लिए एक साथ आते हैं, तो हर लड़की को अवसर, पसंद, आवाज़ और एजेंसी मिलती है.”
मुख्य कार्यकारी अधिकारी गायत्री नायर लोबो ने कहा कि यह मान्यता एक सम्मान और ऊंचे लक्ष्य रखने का आह्वान दोनों है. रेमन मैगसायसाय अवार्ड फाउंडेशन ने अपने प्रशस्ति पत्र में, ‘एजुकेट गर्ल्स’ की “लड़कियों और युवा महिलाओं की शिक्षा के माध्यम से सांस्कृतिक रूढ़िवादिता को संबोधित करने, उन्हें निरक्षरता के बंधन से मुक्त करने, और उन्हें अपनी पूरी क्षमता हासिल करने के लिए कौशल, साहस और एजेंसी से भरने” के लिए सराहना की.
लाखों भारतीयों को प्रीमियम एआई उपकरण मुफ़्त में क्यों दे रहे हैं?
इस सप्ताह से, लाखों भारतीयों को चैटजीपीटी के नए, कम लागत वाले “गो” एआई चैटबॉट तक एक साल की मुफ़्त पहुंच मिलेगी. यह कदम गूगल और परप्लेक्सिटी एआई द्वारा हाल के हफ्तों में की गई इसी तरह की घोषणाओं के बाद आया है, जिन्होंने उपयोगकर्ताओं को अपने एआई उपकरणों तक एक साल या उससे अधिक की मुफ़्त पहुंच देने के लिए स्थानीय भारतीय मोबाइल कंपनियों के साथ साझेदारी की है.
बीबीसी में खबर है कि परप्लेक्सिटी ने देश के दूसरे सबसे बड़े मोबाइल नेटवर्क प्रदाता एयरटेल के साथ समझौता किया, जबकि गूगल ने मासिक डेटा पैक के साथ मुफ़्त या रियायती एआई उपकरण बंडल करने के लिए भारत के सबसे बड़े टेलीफोनी दिग्गज रिलायंस जियो के साथ साझेदारी की.
विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह के ऑफ़र को उदारता नहीं समझना चाहिए क्योंकि ये सोचे-समझे निवेश हैं और भारत के डिजिटल भविष्य पर एक दीर्घकालिक दांव है. काउंटरपॉइंट रिसर्च के एक विश्लेषक तरुण पाठक ने ‘बीबीसी’ को बताया, “योजना भारतीयों को जेनरेटिव एआई का आदी बनाने की है, इससे पहले कि उनसे इसके लिए भुगतान करने को कहा जाए.” पाठक कहते हैं, “भारत जो पेशकश करता है वह है पैमाना और एक युवा दर्शक.”
भारत में 90 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं और यह दुनिया का सबसे सस्ता डेटा प्रदान करता है. इसकी ऑनलाइन आबादी युवा है - अधिकांश इंटरनेट उपयोगकर्ता 24 वर्ष से कम आयु के हैं. इन एआई उपकरणों को डेटा पैक के साथ बंडल करना तकनीकी कंपनियों के लिए एक बड़ा अवसर पैदा करता है, यह देखते हुए कि भारत की डेटा खपत दुनिया के अधिकांश हिस्सों से आगे है. जितने अधिक भारतीय इन प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करेंगे, कंपनियों को उतना ही अधिक प्रत्यक्ष डेटा मिलेगा. पाठक कहते हैं, “जितना अधिक अद्वितीय, प्रत्यक्ष डेटा वे इकट्ठा करेंगे, उनके मॉडल, विशेष रूप से जेनरेटिव एआई सिस्टम, उतने ही बेहतर होंगे.”
हालांकि, यह एआई कंपनियों के लिए एक जीत की स्थिति है, ये मुफ़्त पेशकशें उपभोक्ता के दृष्टिकोण से सवाल उठाती हैं, खासकर डेटा गोपनीयता पर निहितार्थों के संबंध में. दिल्ली स्थित प्रौद्योगिकी लेखक और विश्लेषक प्रसंतो के रॉय कहते हैं, “अधिकांश उपयोगकर्ता हमेशा सुविधा या कुछ मुफ़्त के लिए डेटा देने को तैयार रहे हैं और यह जारी रहेगा.”
वर्तमान में, भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को नियंत्रित करने वाला कोई समर्पित कानून नहीं है. व्यापक डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (डीपीडीपी) 2023 है, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि यह अधिनियम व्यक्तिगत डेटा के आसपास व्यापक सुरक्षा का परिचय देता है, लेकिन इसके कार्यान्वयन नियम अभी भी लंबित हैं. भारत का लचीला नियामक वातावरण ओपनएआई और गूगल जैसी कंपनियों को दूरसंचार योजनाओं के साथ मुफ्त एआई उपकरण बंडल करने की अनुमति देता है, जो अन्य देशों में करना कहीं अधिक कठिन है.
दुनिया के सबसे लंबे समय तक विवाहित जोड़े ने रिश्ते का राज़ बताया: ‘हम प्यार करते हैं’
मियामी के एक पति-पत्नी, जिन्हें हाल ही में दुनिया के सबसे लंबे समय तक विवाहित जोड़े का खिताब मिला है, का कहना है कि उन्होंने यह उपलब्धि सिर्फ एक-दूसरे से प्यार करके हासिल की है. 107 वर्षीय एलेनोर गिटेंस ने लोंगेवीक्वेस्ट (LongeviQuest) वेबसाइट से कहा, “हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं.” उनसे उनके पति लाइल के साथ 83 साल की शादी का राज़ पूछा गया था. वहीं, 108 वर्षीय लाइल गिटेंस का इस सवाल का जवाब था: “मैं अपनी पत्नी से प्यार करता हूं.”
गिटेंस दंपति की एक-दूसरे के बारे में ये दिल छू लेने वाली टिप्पणियां तब आईं जब लोंगेवीक्वेस्ट के वैश्विक सत्यापन आयोग ने उनके 1942 के विवाह प्रमाण पत्र, अमेरिकी जनगणना प्रविष्टियों और दशकों के अभिलेखीय सामग्री का उपयोग करके पुष्टि की कि वे दुनिया में सबसे लंबे समय तक विवाहित जोड़ा हैं.
लोंगेवीक्वेस्ट के एक लेख में कहा गया है कि गिटेंस दंपति ने यह खिताब अक्टूबर में ब्राजील के मानोएल एंजेलिम डिनो की मृत्यु के बाद हासिल किया. 106 वर्षीय डिनो और उनकी 85 साल की पत्नी - 102 वर्षीय मारिया डी सूसा डिनो - फरवरी से लोंगेवीक्वेस्ट के दुनिया के सबसे लंबे समय तक विवाहित जोड़े थे. 216 से अधिक की संयुक्त आयु के साथ गिटेंस दुनिया के सबसे उम्रदराज़ विवाहित जोड़े भी हैं.
लाइल और एलेनोर गिटेंस पहली बार 1941 में एक कॉलेज बास्केटबॉल खेल में मिले थे. वे प्यार में पड़ गए और शादी करने की योजना बनाई, बावजूद इसके कि लाइल को द्वितीय विश्व युद्ध के कारण सेना में भर्ती किया जाना निश्चित था. उन्होंने 4 जून, 1942 को शादी की. जब लाइल अमेरिकी सेना की 92वीं इन्फैंट्री डिवीजन के साथ इटली में सेवा करने के लिए गए, तो एलेनोर को चिंता थी कि क्या वह उन्हें फिर कभी जीवित देख पाएंगी. वह उनके पहले बच्चे के साथ गर्भवती थीं.
युद्ध के बाद, एलेनोर और लाइल ने न्यूयॉर्क में अपना जीवन बनाना शुरू किया. उन्होंने सरकारी नौकरियों में करियर बनाया और यात्रा की. वे दशकों तक अपने कॉलेज के पूर्व छात्र संघ के सक्रिय सदस्य रहे और अंततः अपनी बेटी के करीब रहने के लिए मियामी चले गए. लाइल ने कहा कि वह इस बात पर विश्वास नहीं कर सकते कि उनकी शादी रिकॉर्ड-सेटिंग है, लेकिन वह एलेनोर के साथ रहकर बहुत खुश हैं.
टिंडर के शिकारी के साथ 20 मिनट की डेट ने मेरी ज़िंदगी सालों तक बर्बाद कर दी
एक महिला, जिसने टिंडर पर शिकारी क्रिस्टोफर हार्किन्स के साथ मैच किया था, का कहना है कि उसे मौत की धमकियों और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा, जिसने सालों तक उसके मानसिक स्वास्थ्य को नष्ट कर दिया - और यह सब उसके साथ सिर्फ 20 मिनट बिताने के बाद हुआ.
नादिया ने 2018 में कुख्यात धोखेबाज़ और बलात्कारी के साथ डेट पर जाने के बारे में पहली बार बात करते हुए कहा कि जब उसने “खतरे के संकेतों” के कारण अपनी डेट जल्दी खत्म कर दी, तो दुर्व्यवहार शुरू हो गया. स्पोर्ट्स मसाज थेरेपिस्ट उन आधा दर्जन महिलाओं में से हैं, जिन्होंने स्कॉटलैंड के सबसे कुख्यात रोमांस धोखेबाज़ों में से एक के साथ अपने परेशान करने वाले अनुभवों को नए बीबीसी डिस्क्लोजर पॉडकास्ट ‘मैच्ड विद अ प्रेडेटर’ में साझा किया.
बीबीसी की जांच से पता चला कि 11 महिलाओं ने 2012 में ही हार्किन्स के बारे में पुलिस स्कॉटलैंड को रिपोर्ट करने की कोशिश की थी. शारीरिक हमलों, धोखाधड़ी, धमकियों और दुर्व्यवहार के आरोपों के बावजूद, पुलिस ने 2019 के अंत तक हार्किन्स की जांच नहीं की. पुलिस स्कॉटलैंड ने कहा कि पहले की रिपोर्ट “मुख्य रूप से वित्तीय स्थिति के आसपास” थीं और उन सभी को अलग-अलग माना गया - एक ऐसी स्थिति जिसकी उन्हें उम्मीद है “अब दोहराई नहीं जाएगी.”
अब 34 साल की नादिया और 38 साल के हार्किन्स सात साल पहले टिंडर पर मैच हुए थे. कुछ हफ़्तों तक मैसेज पर बात करने के बाद, उन्होंने ग्लासगो में डिनर पर जाने का फ़ैसला किया. नादिया के लिए, पहला खतरे का संकेत तब आया जब वह हार्किन्स को उसके फ्लैट से लेने पहुंची. उसने जॉगिंग ट्राउज़र और बनियान पहने दरवाज़ा खोला और कहा कि वह बाहर जाने के लिए बहुत थका हुआ है. उसने सुझाव दिया कि वे उसके फ्लैट पर रहें और खाना ऑर्डर करें.
नादिया ने बताया, “मैं अंदर गई. जगह खाली थी. कोई फ़र्नीचर नहीं था. लिविंग रूम कुछ बक्सों पर रखे टीवी को छोड़कर पूरी तरह से खाली था.” जब नादिया ने शराब पीने से मना कर दिया और खुद के लिए डाइट कोक डाली, तो वह कहती है कि माहौल बदल गया. कोक गिराने पर हार्किन्स की आँखों में गुस्सा था और उसने नादिया को “अनाड़ी” और “जोकर” कहा. नादिया ने कहा, “मैंने कहा, ‘देखो, मैं बस जा रही हूँ’. और उसने दरवाज़े की ओर इशारा किया और गाली दी.”
अस्वीकृति हार्किन्स के लिए एक बड़ा ट्रिगर प्रतीत होती है, जिसने नादिया के जाते ही उसे कॉल और संदेशों की बौछार करनी शुरू कर दी. पहले संदेश में लिखा था: “तुम्हारे जैसी किसी की हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ डेट छोड़ने की?” जैसे-जैसे अगले कुछ घंटों में मामला बढ़ा, नादिया कहती है कि हार्किन्स ने उसके घर पर “पेट्रोल बम” फेंकने, उसे मारने और उसके पिता पर हमला करने की धमकी दी.
अगले दिन, नादिया ने धमकियों और दुर्व्यवहार की सूचना पुलिस स्कॉटलैंड को दी. उसने हार्किन्स के एक फ़ोन कॉल की रिकॉर्डिंग भी सुनाई. नादिया ने कहा, “मुझे बताया गया कि मेरे लिए कुछ नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि कोई सीधी धमकी नहीं है - जब और अगर वह कुछ करे तो उन्हें तुरंत वापस बुलाएं.”
हार्किन्स ने डेट खत्म होने के बहुत बाद तक अपना दुर्व्यवहार जारी रखा. नादिया ने उसका नंबर ब्लॉक कर दिया, लेकिन एक साल से अधिक समय बाद भी, वह सोशल मीडिया पर उसके जानने वालों से संपर्क करके उसे परेशान कर रहा था.
हार्किन्स वर्तमान में 12 साल की जेल की सज़ा काट रहा है, उसे 10 महिलाओं के ख़िलाफ़ 19 अपराधों, जिसमें शारीरिक और यौन हिंसा शामिल है, का दोषी ठहराया गया है. नादिया को पता चला कि हार्किन्स ने जिस महिला से बलात्कार किया था, वह घटना उसकी डेट के दो महीने बाद हुई थी. वह कहती है, “उस लड़की को पूरी तरह से बचाया जा सकता था. उसे गिरफ़्तार किया जा सकता था और उसका उस लड़की से कभी कोई संपर्क नहीं होता.”
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.












